तीसरी मंजिल पर शांगली तब उस कमरे में पहुंचा था, जब एक्सट्रा ने उसके ग्राउंड फ्लोर वाले केबिन का दरवाजा खोला था । ये छोटा सा कमरा, शांगली का कंट्रोल रूम था । यहां से बाजार के हर हिस्से को देख लेता था कि कहां क्या हो रहा है । आठ स्क्रीनें सामने जगमगा रही थी, पास ही कंट्रोल थे कि जहां चाहता कैमरे को वहां फोकस कर देता ।
शांगली की निगाह स्क्रीन पर नजर आ रहे R.D.X. पर जा टिकी थी
तीनों अब बातें कर रहे थे ।
तभी कदमों की आहट गूंजी । शांगली पीछे देखे बिना बोला---
"लियू ?"
"हां ।" लियू की आवाज सुनाई दी ।
"तुम इन तीनों को जानती हो ?" शांगली ने एक स्क्रीन की तरफ इशारा किया ।
"लियू ने पास आकर वहां नजर मारी।
"नहीं । मैंने इन्हें कभी नहीं देखा--- क्यों ?"
"मुझे लगता है कि ये लोग मुझे तलाश कर रहे हैं, मेरे केबिन में भी इन्होंने देखा ।" कहते हुए शांगली ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा तुरन्त ही बात हो गई ।
"वासु ।" शांगली बोला--- "नीचे मेरे केबिन के पास तीन लोग हैं । संदिग्ध है वो ।"
"नजर रखूं ?" उधर से वासू की आवाज आई ।
"हां ।" शांगली की निगाहें स्क्रीन पर थी--- "देखो वो क्या करते हैं, मुझे बताते रहना।"
"ठीक है ?"
"सुनो--- वो तीनों अलग हो रहे हैं ।"
"मैं वहां पहुंच गया हूं । उन्होंने कैसे कपड़े पहन रखे...?"
"मैं तुम्हें भी देख रहा हूं । वासु तुम्हारे पास में सफेद कमीज और काली पैंट वाला निकल रहा है ।"
"हां ।"
"वो तीनों में से एक है, तुम उस पर नजर रखो ।" कहकर शांगली ने फोन बंद किया और लगी नॉर्बो को धीरे-धीरे घुमाने लगा । स्क्रीन पर दृश्य बदलने लगे ।
तभी लियू बोली-
"कुछ वापस लो।"
शांगली के हरकत करते हाथ रुक गये ।
"वो देखो, एक वो था ।"
स्क्रीन पर अब राघव नजर आ रहा था ।
शांगली की आंखें सिकुड़ी हुई थी ।
"मैंने इन तीनों को कभी भी पहले, अपने यहां नहीं देखा ।"
"ये सोचो कि ये तुम्हें क्यों ढूंढ रहे हैं ?"
"ये ही बतायेंगे ।"
"तुम बात करोगे इससे ?"
"करनी ही पड़ेगी ।"
"वो सीढ़ियों की तरफ से चला गया है । शायद वो ऊपर आने की तैयारी में है ।"
"तुम यहां से इन पर नजर रखो । मैं इनसे बात करके आता हूं ।" शांगली ने कहा और उठ खड़ा हुआ।
लियू उसकी कुर्सी पर बैठती कह उठी---
"मॉल में किसी तरह का झगड़ा होना तुम्हारे हक़ में ठीक नहीं होगा ।"
"जानता हूं ।" कहने के साथ ही शांगली बाहर निकल गया ।
■■■
पन्द्रह मिनट बाद शांगली ने पीछे से एक्स्ट्रा के कंधे पर हाथ रखा ।
एक्स्ट्रा फौरन पलटा । वो इस वक्त दूसरी मंजिल पर था । अपने सामने चीनी मूल के व्यक्ति को देख कर चौंका ।
"तुम कुछ खरीद नहीं रहे । मैं तुम्हें बहुत देर से देख रहा हूं ।" शांगली मुस्कुरा कर बोला--- "तुम किसी को ढूंढ रहे हो ।"
"तुम कौन हो ?"
"मैं यहां का मालिक शांगली हूं ।" शांगली ने सहज स्वर में कहा ।
"तुम्हारी ही तो तलाश थी ।"
"सच में ?"
"बिल्कुल ।" एक्स्ट्रा ने जेब से फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
"अपने साथियों को फोन कर रहे हो ?" शांगली बोला ।
"जानते हो उन्हें ?" एक्स्ट्रा ने उसे देखा ।
"कुछ देर पहले ही तुम तीनों को स्क्रीन पर देखा था ।"
तेज नजर रखते हो ।"
"इतने बड़े बाजार का मालिक हूं । नजर तो रखनी ही पड़ती है ।"
एक्स्ट्रा ने राघव से बात की। उसे बताया कि शांगली मिल गया है । धर्मा के साथ उसे कहां पहुंचना है, ये बताया ।
एक्सट्रा ने फोन वापस रखा ।
"कौन हो तुम लोग ?"
"तुमने हमारे बारे में जरूर सुना रखा होगा ।"
"जरूरी तो नहीं ।"
"जरूरी है । क्योंकि तुम चीनी एजेन्ट हो और एजेन्ट इन बातों की पूरी खबर रखते हो ।"
शांगली के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।
"कौन हो तुम ?"
"R.D.X. ।"
"ओह, तो तुम तीनों R.D.X. हो ।" शांगली के होंठों से निकला--- "तुमने मुझसे चीनी एजेन्ट क्यों कहा ?"
"क्योंकि तुम हो ।"
"ये गलत बात है, तुम खामखाह मुझ पर इल्जाम...।"
"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं सच कह रहा...।"
"नहीं तुम झूठे हो । मैं चीनी एजेन्ट नहीं । मैं पच्चीस सालों से मुम्बई में रह रहा हूं, परन्तु मुझे किसी ने ये नहीं कहा।"
"कभी तो शुरुआत होनी थी, अब हो गई ।"
शांगली इंकार में सिर हिलाता कह उठा---
"अगर तुम्हें विश्वास है तो इस बात की खबर तुम्हें पुलिस को देनी चाहिये।"
"अपने मामले हम खुद ही निपटाते हैं ।"
"क्या है तुम्हारा मामला ?"
तभी राघव और धर्मा भी वहां आ पहुंचे ।
"ये शांगली हैं ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"आखिर तुम लोग चाहते क्या हो ?" शांगली तीनों को देखता कह उठा।
"तुमसे बात करनी है ।" धर्मा बोला--- "कोई जगह है ?"
"हां । नीचे मेरे केबिन है ।
"चल । वहीं चलते हैं ।"
शांगली ने चार कदमों का फासला रख कर खड़े वासु को देखा । उसे पास बुलाया ।
"हम लोग नीचे केबिन में बात करने जा रहे हैं ।"
"जी ।" वासु बोला ।
"ये लोग खतरनाक हैं । ध्यान रखना ।"
वासु ने सिर हिला दिया ।
शांगली R.D.X. के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गया।
■■■
लियू कंट्रोल रूम में बैठी और R.D.X. को बातें करते देख रही थी, परन्तु उनकी बातें वो सुन नहीं पा रही थी । फिर उन्हें लिफ्ट की तरफ जाते देखा तो समझ गई कि वो नीचे या ऊपर आयेंगे ।
लियू स्क्रीनों के सहारे हर तरफ नजर रखने लगी ।
कुछ देर बाद इन तीनों को शांगली के साथ ग्राउंड फ्लोर पर केबिन की तरफ बढ़ते देखा ।
लियू ने फौरन एक स्क्रीन के केबिन पर सैट की और एक बटन दबा दिया । अब वो केबिन में होने वाली बातचीत भी सुन सकती थी । तभी उन चारों को केबिन में प्रवेश करते देखा ।
वासु बाहर ही सतर्कता से खड़ा हो गया था ।
उसी स्क्रीन पर केबिन के भीतर वो चारों दिखे ।
"बैठ जाओ ।" शांगली की आवाज लियू के कानों में पड़ी--- "हमें आराम से बात करनी चाहिये ।"
लियू की पैनी निगाह स्क्रीन पर टिकी थी ।
■■■
शांगली बैठा ।
धर्मा और एक्स्ट्रा भी बैठे । एक्स्ट्रा खड़ा रहा ।
"मुझे ये जानकर सच में हैरानी हुई है कि तुम लोग ही R.D.X. हो । अंडरवर्ल्ड में तुम लोगों का नाम है । अखबारों में भी।"
"तू हमारी तारीफ कर रहा है या गालियां दे रहा है ?" राघव बोला ।
"गालियां क्यों दूंगा ?" शांगली अचकचा कर बोला--- "लेकिन तुम लोग मुझे चीनी एजेन्ट बनाने पर क्यों लगे हो ? मैं जासूस नहीं हूं । सीधा-सा बिजनेसमैन हूं । लगता है मेरे चीनी होने पर, तुम लोग शक कर रहे...।"
"गलत शक कर रहे हैं ?" एक्सट्रा बोला ।
"बिल्कुल गलत ।" शांगली ने सिर हिलाया ।
"कल तेरे पास चीनी एजेन्ट लियू आई थी । बारह बजे के आस-पास ।"
"चीनी एजेन्ट लियू, क्या कह रहे हो ?"
"नहीं ।"
"जरा भी नहीं, मैं किसी लियू को नहीं जानता ।"
एक्स्ट्रा के दांत भिंच गये । रिवॉल्वर निकाल ली ।
शांगली रिवॉल्वर को देखते ही डरे स्वर में कह उठा ।
"तुम लोग क्यों मेरे पीछे पड़ रहे गए हो । मैं बहुत शरीफ इंसान हूं ।"
एक्सट्रा आगे बढ़ा और रिवॉल्वर की नाल शांगली के सिर पर रख दी ।
"मुझे मारोगे क्या ?"
तभी राघव उठा और उसने केबिन का दरवाजा खोला ।
बाहर खड़े वासु से नजरें मिलीं।
"सुन ।" राघव ने पुकारा ।
"क्या है ?" वासु कुछ पास आया ।
राघव में उसकी बांह पकड़ी और उसे तेजी से भीतर खींच लिया और दरवाजा बंद कर लिया ।
वासु की समझ में कुछ नहीं आया, परन्तु उसने शांगली के सिर पर रिवॉल्वर लगी देखी तो कुछ समय उसने अपना हाथ तेजी से अपनी जेब की तरफ बढ़ाया । राघव ने उसी पल जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा । वो नीचे जा गिरा । उससे पहले कि संभल पाता, राघव ने उसकी जेब से रिवॉल्वर निकाल ली।
"ऐसे ही पड़ा रह, वरना गोली मार दूंगा ।"
वासी नीचे गिरा सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया ।
"देखा।" एक्स्ट्रा शांगली के सिर पर रिवॉल्वर की नाल लगाये कड़वे सर में कह उठा--- "तुम कितने शरीफ बिजनेसमैन हो और तुम्हारे आदमी भी कितने शरीफ हैं, जो रिवॉल्वर जेब में रखे, तुम्हारी पहरेदारी कर रहे हैं ।"
शांगली कुछ न बोला ।
"पहले मैं तुझे गोली मारूंगा । उसके बाद तुम्हारे इस आदमी को गोली मारुंगा । एक्सट्रा गुर्राया ।
"म...मुझे क्यों ?" वासु घबराकर चीखा ।
"क्योंकि मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिल रहा ।"
"तुम्हारे सवाल से मेरा क्या वास्ता ?" वासु ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"अपने मालिक के साथ तू भी मरेगा कल दोपहर को बारह बजे के आसपास शांगली के पास नाम लियू की चीनी युवती आई थी ।
"चीनी युवती तो आई थी ।" वासु बोला--- "परन्तु मैं नहीं जानता उसका नाम क्या था । अब तो मुझे छोड़ दो ।"
"सुना शांगली ।" एक्स्ट्रा ने भिंचे स्वर में कहा ।
शांगली के होंठ भिंच गये ।
"शांगली उस युवती से मिला ?" एक्स्ट्रा ने वासु से पूछा ।
"हां । उसे चौथी मंजिल पर ले गया था । वो जगह गोदाम के तौर पर इस्तेमाल होती है ।"
"वो यहीं रही या चली गई ?"
"चली गई, एक-दो घंटे में ।" वासु घबराये स्वर में बोला--- "अब तो मुझे जाने दो ।"
"उल्लू के पट्ठे ।" धर्मा कह उठा--- "पहले सवालों का जवाब दे ।
"पूछो-पूछो ।" वासु जल्दी से बोला ।
"क्या अब भी वो युवती यहीं पर, चौथी मंजिल पर है ?"
"मैं नहीं जानता । परन्तु ये मालूम है कि ऊपर कोई मेहमान है । उसके लिए ऊपर खाना-पीना गया है ।"
"क्यों शांगली कुछ कहना है तेरे को ?"
"चाहते क्या हो ?"
"मानते हो ना कि तुम चीनी एजेन्ट हो ?"
"मैं कुछ नहीं मानता । तुम बोलो क्या चाहते हो ?" शांगली फंसे स्वर में बोला ।
"हम पक्की जानकारी के बाद कि तेरे पास आये हैं । इसलिए कोई बहानेबाजी मत करना । हमें तुली का ठिकाना बता ।"
"तुली।" शांगली के होंठों से निकला ।
"F.I.A. एजेन्ट तुली । जिसके बारे में लियू, माईक को बताने को बेताब है।"
"मैं नहीं जानता तुली को ।" शांगली बोला ।
"तूने सुना नहीं कि हम पक्की जानकारी के बाद ही तुझ तक आये हैं ?"
"तुम लोगों को किसी ने मेरे खिलाफ भड़का दिया...।"
"मैं तेरे सिर में गोली मारने जा रहा हूं ।" एक्स्ट्रा बेहद कठोर स्वर में कह उठा।
शांगली के होंठ भिंच गये ।
"तुली के बारे में बताता है या नही-हां-या-ना में जवाब दे ।" एक्सट्रा गुर्राया।
"ह...हां ।"
"प्यारा बच्चा है, सब मान जाता है, लेकिन धीरे-धीरे ।" राघव खतरनाक स्वर में बोला ।
"बोल, वो किधर है ?" एक्स्ट्रा रिवॉल्वर का दबाव उसके सिर पर बढ़ाया ।
"मैं तुम लोगों को वहां ले चलता...।"
"वहां हम पहुंच जायेंगे । तू बता वो है किधर ।" एक्स्ट्रा ने दांत पीसे ।
तभी 'भड़ाक' दरवाजा खुला हो तूफान की भांति लियू ने भीतर प्रवेश किया । सामने राघव पीठ किए खड़ा था । लियू ने उसकी कमीज का कॉलर पकड़ा और उसकी पीठ से रिवॉल्वर लगा दी ।
"खबरदार । कोई अपनी जगह से न हिले ।" लियू गुर्रा उठी--- "शांगली को छोड़ दो। रिवॉल्वर जेब में वापस रख लो । वरना मैं इसे गोली मार दूंगी । ये मर गया तो R.D.X. में से एक कम हो जायेगा ।"
सन्नाटा-सा छा गया दो पलों के लिए वहां ।
"शांगली को छोड़ो ।"
परन्तु एक्सट्रा शांगली के सिर पर रिवॉल्वर लगाये रहा ।
धर्मा कुर्सी पर बैठा सतर्क था ।
बाहर केबिन से कुछ दूर पर भट्ट इधर निगाह रखे था । उसने लियू को जब केबिन में जाते देखा तो सैवन इलैवन को फोन किया । कई बार बेल होने पर सैवन इलैवन ने कॉल रिसीव की थी ।
"कहो भट्ट ।"
भट्ट ने शब्दों में फोन पर सारे हालात बताये ।
"तुम वहीं जमे रहो । बीच में दखल मत देना, बेशक जो भी हो । लियू या शांगली के पीछे जाना, उनके बाहर निकलने पर ।"
"तुम लियू हो ।" कहते हुए धर्मा उठा तो लियू गुर्राकर बोली---
"बैठे रहो ।"
"धर्मा वापस कुर्सी पर बैठ गया ।
"तुमने अभी तक रिवॉल्वर नहीं फेंकी ।" लियू राघव से कह उठी ।
राघव ने रिवॉल्वर फेंक दी ।
"वासु रिवॉल्वर उठाओ ।" लियू बोली ।
वासु हड़बड़ा कर उठा और रिवॉल्वर को झपट कर उठा लिया ।
"बोलो ।" लियू ने फैसले वाले भाव में कहा--- "शांगली को छोड़ते हो या गोलियां चलनी शुरू हों । याद रहे, गोलियां चली तो तुम तीनों में दो तो नहीं बचेंगे । शायद तुम तीनों ही खत्म हो जाओ ।"
लियू सच कह रही थी ।
वासु के हाथ में भी तो अब भी रिवॉल्वर थी ।
एक्स्ट्रा ने शांगली के सिर से रिवॉल्वर हटा ली । उसकी निगाह लियू पर थी।
शांगली फौरन उठा और टेबल के गिर्द घूम कर दरवाजे के पास आ गया ।
"निकलो शांगली । वासु को भी साथ लो ।" लियू R.D.X. पर नजर रखे कह उठी ।
वासु को अपने का इशारा करके शांगली दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।
वासु भी बाहर निकल गया ।
लियू उल्टे पांव दरवाजे की तरफ बढ़ते कह उठी ।
"कोई शरारत नहीं । कुछ पल खामोशी से ऐसे ही निकाल लो ।"
फिर लियू बाहर निकली और दरवाजा बंद कर गई ।
"पकड़ो उन्हें ।" एक्स्ट्रा गुर्राया ।
राघव ने तुरन्त दरवाजा खोला । बाहर निकला
परन्तु ठिठक गया ।
सामने मॉल की भीड़ थी । लियू शांगली और वासु को ढूंढना अब आसान नहीं था ।
■■■
तुली का मोबाइल बजा ।
तुली की निगाह घड़ी पर गई । 3:30 हो रहे थे ।
"हैलो ।" तुली ने बात की ।
"'ऑपरेशन टू किल' की घटनाएं लिख ली होंगी ?" उधर से आवाज आई।
"हां ।" तुली ने शांत स्वर में कहा ।
"F.I.A. के एजेन्टों के नाम-पते ?"
"वो भी लिख दिए । ज्यादा के बारे में नहीं जानता । जो जानता था लिख दिया ।"
"उन कागजों के नीचे तुमने साईन भी कर दिए होंगे ?"
"सब काम कर दिया है मैंने-आगे कहो ।"
"अब तो तुमसे मिलना पड़ेगा ।"
"मिलो ।"
"मैं अकेला आऊंगा । तुम्हें भी अकेला आना होगा ।"
"अकेला ही हूं मैं ।"
"एक बार फिर सुन लो । किसी तरह की चालाकी मत दिखाना । हम दोनों का अकेले आना ही ठीक है । जो काम चुपके हो जाये, वो अच्छा है । मेरी जानकारी के बिना तुम अपने परिवार के हत्यारों तक नही पहुंच सकते ।"
"जानता हूं । मैं तुम्हारे साथ शराफत से चल रहा हूं। मुझे तुमसे जानकारी चाहिये ।"
"बातें तो समझदारी की कर रहे हो ।"
"कहां मिलोगे ?"
"जगह जान लो अब ।" इसके साथ ही उधर वाला व्यक्ति तुली को जगह के बारे में समझाने लगा ।
तुली ने उसकी पूरी बात सुनी ।
"समझ गये कि कहां मिलने को कह रहा हूं ?"
"ये जगह तो मुम्बई के बाहर पड़ती है । वहां पहुंचने में मुझे दो घंटे लग जायेंगे । सवा घंटा मुम्बई से बाहर निकलने और चालीस मिनट आगे का सफर है । क्या तुम पास की जगह पर नहीं मिल सकते ?" तुली ने कहा ।
"मैं सावधानी बरत रहा हूं । मुझे भी तो खतरा है । तुम अभी निकल लो ।"
"मैं दस मिनट में चल देता हूं । 5:45 तक मैं वहां पहुंच जाऊंगा ।"
"'ऑपरेशन टू किल' की सारी जानकारी लेते आना ।"
"हां ।"
"अकेले आना । मैं भी अकेला होऊंगा ।"
"निश्चिंत रहो । मैं अकेला ही आऊंगा ।"
"शाम को मिलते हैं ।"
■■■
लियू शांगली के साथ एक अन्य ठिकाने पर पहुंची । साथ में वासु भी था ।
वैसे यहां स्टील की प्लेटें बनाने का काम हो रहा था । शोर पड़ रहा था । वे पीछे वाले हिस्से पर पहुंचे, जो कि आगे वाले हिस्से की अपेक्षा शांति था ।
इधर तो-तीन कमरे बने हुए थे । एक तरफ काले शीशे लगा मैला-सा केबिन था। उनके वहां पहुंचते ही केबिन का दरवाजा खुला और पैंतालीस बरस का एक व्यक्ति निकला । वो पैंट-कमीज में था, परन्तु कहीं-कहीं से मैले हो रहे दिख रहे थे वो ।" वो तुरंत पास आ पहुंचा ।
"तुम अचानक यहां शांगली ।"
"कुछ देर छिपना है ।" शांगली ने कहा ।
"इधर आओ ।" कहते हुए वो एक तरफ बढ़ गया ।
तीनों उसके पीछे थे।
पास के कमरे का दरवाजा खोलकर वो चारों भीतर पहुंचे । वो तीन कमरे आपस में जुड़े हुए थे । साफ जगह थी वो । उस व्यक्ति ने वहां के पंखे चलाते हुए कहा--- "ये सुरक्षित जगह है, यहां कोई नहीं आता ।"
लियू एक कुर्सी पर जा बैठी ।
"हुआ क्या ?"
"खास कुछ नहीं ।" शांगली गम्भीर स्वर में कह उठा--- "साइलेंसर लगी रिवॉल्वर ला ।
"वो बाहर निकल गया ।
"तेरे को जान बहुत प्यारी है वासु ।" शांगली कड़वे स्वर में बोला ।
"क्या...क्या मतलब ?"
"तूने तो उन लोगों के पूछते ही, सब कुछ बता दिया । लियू के बारे में मैं भी बता सकता था ।"
"मैं...मैं घबरा गया था ।" वासु जल्दी से बोला।
"तू तो मेरी लुटिया डुबो देगा ।"
"तभी वो व्यक्ति भीतर आया और साइलेंसर लगी रिवॉल्वर शांगली को दी।
"जा ।" शांगली उससे बोला--- "चाय-पानी का इंतजाम कर । दो चाय ही लाना ।"
"लेकिन तुम तो तीन हो ।" उसने कहा ।
"अब की बार आयेगा तो दो ही रहेंगे ।"
"वो बाहर निकल गया ।
वासु का चेहरा भय से पीला पड़ गया ।
लियू शांत थी ।
"मेरे लिए क्यों बुरा सोच रहे हो शांगली । मैं तो कई सालों से तुम्हारे लिए काम कर रहा हूं ।"
"और तेरे को ये भी पता है कि शांगली को मुंह खोलना पसंद नहीं, परन्तु तुमने मुंह खोला ।
"गलती...हो गई...मैं फिर...।"
तभी शांगली के हाथ में दबे रिवॉल्वर से गोली निकली और उससे दांतो को तोड़ती मुंह में प्रवेश कर गई ।
मर गया वासु।
होंठ भिंचे गये शांगली ने रिवॉल्वर पास ही रखी और सिगरेट सुलगा ली ।
"R.D.X. कौन है ?" खामोश बैठी लियू ने पूछा।
"अंडरवर्ल्ड के खतरनाक लोग हैं।" शांगली ने लियू को देखा ।
"तुम्हारा उनसे क्या वास्ता है ?"
"कुछ भी नहीं ।"
"तो फिर वो तुम्हारे पास क्यों आये शांगली। वो तुमसे तुली का पता ठिकाना पूछ रहे थे । उन्हें कैसे मालूम हुआ कि तुम तुली ठिकाना जानते हो । ये बात बाहर कैसे चली गई ?" लियू के माथे पर बल पड़ गये थे ।
"मैं नहीं जानता कि R.D.X. को कैसे पता चला कि मुझे तुली के ठिकाने के बारे में मालूम है ।"
"R.D.X. का तुम तक तुली के लिये आ जाना हैरानी की बात नहीं है ?"
"है तो ।"
"तुम्हारा कोई आदमी गद्दार हो सकता है । खबर बाहर कर रहा हो सकता है।"
"ये संभव नहीं । मेरे सब आदमी पूरे भरोसे के हैं ।" शांगली ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
"भरोसे वाले ही धोखेबाजी करते हैं ।"
"मेरे आदमी वफादार हैं "
"फिर तो तुम्हें सोचना चाहिये कि R.D.X. तुम तक तुली, के लिये कैसे आ पहुंचे ?"
"शांगली लियू को देख कर कहा ।
"इससे भी बड़ी एक बात ये है कि R.D.X. फिर तुली के पीछे पड़ गए हैं । पहले वूस्टर में इन्होंने तुली को नहीं मारा था। भगा दिया था । परन्तु अब उसके सामने आने पर ये तुली की तलाश में लग गये ।"
"उसे खत्म करने के लिये ?"
"कुछ भी हो सकता है। क्योंकि तुली के जिन्दा सामने आ जाने की वजह से F.I.A. फिर से R.D.X. के पीछे पड़ गई होगी । R.D.X. को अगर बचाना है F.I.A. से, तुली को खत्म कर देना जरूरी होगा ।"
"ओह ।" लियू के एकाएक होंठ सिकुड़े ।
"क्या हुआ ?"
"इस सवाल का जवाब मिल गया कि R.D.X. तुम्हारे पास तुली के लिये कैसे पहुंचे ।" लियू बोली--- "उन्हें सैवन इलैवन ने बताया होगा कि हम तुली का ठिकाना जानते हैं । कल रात जब वेटर के रूप में मेरे कमरे में डिनर लगा रहा था तो उस वक्त मैं तुमसे तुली के बारे में ही बातें कर रही थी । मैंने तुम्हारा नाम भी लिया। किसी तरह सैवन इलैवन या R.D.X. ने तुम्हारे बारे में जान लिया होगा और तुम तक आ पहुंचे ।"
"तुम्हारा मतलब कि सैवन इलैवन ने R.D.X. को हमारा पता देकर बताया कि, हम तुली के बारे में जानते हैं ।"
"हां ।"
"ये बात है तो सैवन इलैवन ने स्वयं कोई एक्शन नहीं लिया । R.D.X. को आगे क्यों किया ?" शांगली बोला।
"ये बात सैवन इलैवन ही जाने कि वो क्या खेल, खेल रहा है । मेरे ख्याल में वो R.D.X. के हाथों तुली को खत्म कर कराना...।"
"ऐसा क्यों--- वो खुद क्यों नहीं मारता ?"
"इससे तो स्पष्ट है कि R.D.X. और सैवन इलैवन मिले हो सकते हैं ।"
"जाहिर है । अब तुम्हारा वापस चाईना बाजार लौटना ठीक नहीं । सैवन इलैवन की नजर तुम पर टिक चुकी हैं ।"
"कोई फर्क नहीं पड़ता । वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । मेरे खिलाफ सबूत नहीं मिलेंगे उसे।"
इसी पल शांगली का फोन बजा ।
"हैलो ।"
"हम तुली के पीछे हैं । वो खंडाला के रास्ते पर जा रहा है ।"
"मुम्बई से बाहर ।" शांगली की आंखें सिकुड़ी ।
"लगता तो ऐसा ही है । अगले दस-पन्द्रह मिनट में स्पष्ट हो जायेगा कि क्या वास्तव में मुम्बई से बाहर जा रहा है ?"
"सावधानी से उसका पीछा करते रहो । वो निगाहों से ओझल न हो । वो हमारे लिए जरूरी है ।" कहकर शांगली ने फोन बंद किया ।
"मुम्बई से बाहर जा रहा है तुली ?" लियू ने पूछा ।
"हां ।"
"कहीं माईक से मिलने तो नहीं जा रहा ?"
"नहीं। वहां भी मेरे आदमियों की नजर है । माईक एंबेसी से निकला होता तो मुझे खबर मिल जाती ।"
"अब तक तुली को माईक से मिल लेना चाहिये था ।"
"क्या पता उसके मन में क्या है वो...?"
तभी दरवाजा खोलकर वो ही भीतर आया । हाथ में थमी ट्रे में चाय के प्याले और खाने का सामान था ।
वासु की लाश देखकर इतनी गहरी सांस ली ।
"लाश ठिकाने लगा दो ।"शांगली बोला--- "पहचाना न जाये इसका चेहरा।"
वो चाय की ट्रे रख कर बाहर निकल गया ।
दोनों ने चाय का एक-एक प्याला उठा लिया ।
"तुम्हें माईक से, तुली के बारे में बात कर लेनी चाहिये ।" शांगली ने कहा।
"अभी माईक को तुली के फोन का इंतजार कर लेने दो । तुम देखना तंग आकर वो खुद ही मुझे फोन करेगा ।"
■■■
F.I.A. का वो ही हॉल कमरा ।
सुरेश छाबड़ा ने भीतर प्रवेश किया ।
दीवान और कपूर पास-पास खड़े किसी मुद्दे पर बात कर रहे थे कि उनकी निगाह सुरेश छाबड़ा पर टिक गई।
"दीवान ।" पास आकर वो दोनों को देखकर बोला--- "तुली से मिलने की जगह फिक्स हो गई है ।"
"कितने बजे ?"
"शाम साढ़े पांच और छः के बीच हमारी मुलाकात होगी ।"
"गुड । तुली खतरनाक है । उसे मार पाना आसान काम नहीं है ।"
"मैं इस काम का ध्यान रखूंगा ।"
सुरेश छावड़ा जल्दी में था । बाहर निकल गया ।
"ये चूक भी सकता है ।" कपूर बोला--- "इसके पीछे दयोल को भेज दो ।"
"दयोल को उस जगह पहुंचने को कहो । बता दो कि सुरेश छावड़ा जिससे मिले, उसे खत्म कर दे।"
"सीधे तुली का नाम ही क्यों ना लूं ?"
"पहले बताने की क्या जरूरत है। दयोल को मौके पर नाम मालूम हो कि उसका शिकार तुली है तो उसे ज्यादा अच्छा लगेगा ।"
■■■
R.D.X. वापस उसी मकान पर आ गये थे । तीनों के चेहरों पर उखड़ेपन के भाव थे । शांगली और लियू का हाथ से निकल जाना उन्हें पसंद न आया था । मॉल की भीड़ का फायदा उठाकर वो निकल भागे थे ।
"पांच मिनट के लिये शांगली हमारे हाथ लग जाता तो हम उससे तुली का पता लगा लेते ।" राघव बोला ।
"मेरे ख्याल में चीनी जासूस लियू कहीं से केबिन के भीतर के हालात देख रही होगी, तभी वो मौके पर आ पहुंची ।" एक्सट्रा ने कहा ।
"हां । ये संभव है ।" धर्मा बोला--- "अब शांगली या लियू को ढूंढना आसान नहीं । वो सतर्क हो चुके हैं ।"
"तुली तक पहुंचने के लिये, शांगली या लियू तक पहुंचना ही होगा हमें ।"
"इसके लिये हमें शांगली के किसी खास आदमी पर हाथ डालना होगा । वो हमें बतायेगा कि शांगली किधर है । मॉल का इतना बड़ा बिजनेसमैन छोड़कर, वो कहीं दूर नहीं भागने वाला।"
"हां, हमें फिर मॉल पर जाकर ऐसे इंसान को ढूंढना है जो शांगली के करीब हो और...।"
धर्मा का फोन बजने लगा ।
"हैलो ।" धर्मा ने बात की ।
"शांगली और लियू दोनों ही हाथ से निकल गये । तीनों शेर फुस्स हो गये ।" सैवन इलैवन की आवाज कानों में पड़ी ।
"हर बार जीत हासिल करने का ठेका हमने नहीं ले रखा ।" धर्मा ने तीखे स्वर में कहा ।
"लियू बहुत फुर्तीली है । मेरा उससे टकराव हो चुका है । वो मेरे हाथों से बचकर भाग निकली थी।"
"जख्मों को कुरेद रहे हो या मरहम लगा रहे हो ?"
"वहां मेरा आदमी मौजूद था । उसे देखा ।" सैवन इलैवन की आवाज कानों पर पड़ रही थी--- "मेरे आदमी ने उनका पीछा भी किया ।"
"तो तुम जानते हो कि शांगली कहां है ?"
"लियू भी ।"
"बताओ ।"
"यही बताने के लिए तो फोन किया है । मुझे मालूम था कि तुम उन्हें ढूंढने के लिए व्याकुल हो रहे होगे ।"
"मुझे बताओ वे दोनों कहां हैं सैवन इलैवन ?"
"अगर इस बार बार भी वो तुम्हारे हाथों से निकल गये तो चिंता मत करना। मैं फिर बता दूंगा कि वो कहां पर हैं ।"
तुम ये बताओ कि इस वक्त दोनों कहां हैं ?"
दूसरी तरफ से सैवन इलैवन ने बता दिया।
"अब आयेगा मजा ।" एक्स्ट्रा गुर्रा उठा ।
■■■
सूर्य पश्चिम की तरफ झुक चुका था ।
घुप पीली और सुनहरी होकर जमीन पर पड़ रही थी ।
तुली ऐसी जगह पर मौजूद था, जहां पहाड़ों के बड़े-बड़े पत्थर इधर-उधर बिखरे हुए थे । पथरीली जमीन थी । लगता था जैसे कभी यहां पर बहुत बड़ा पहाड़ गिरा हो और टूट गया हो । सामने ही सौ फीट ऊंचा, पहाड़ का बड़ा टुकड़ा था । जिसका ऊपरी हिस्सा किसी आदमी के चेहरे जैसा लगता था।
यहीं पर तुली से मिलना तय किया था फोन करने वाले ने ।
मुम्बई खंडाला रोड पर थी ये जगह ।
"तुली यहां तक कार में आया था, जो कि उसने एक पार्किंग से उठाई थी । वो कार हाईवे से उतार कर, एक तरफ झाड़ियों में खड़ी थी और पैदल यहां तक पहुंचा था ।
डूबते सूर्य की धूप बहुत तीखी थी।
तुली इस वक्त जरूरत से ज्यादा सतर्क था । कपड़ों में दो-दो भरी रिवॉल्वरें मौजूद थीं। वो जानता था कि उसे यहां बुलाना किसी की चाल भी हो सकती है, परन्तु अपने परिवार के हत्यारों के बारे में जानने के लिये ये खतरा उठाना जरूरी था । डरता तो वो पहले भी नहीं था, अपने परिवार की मौत के बाद तो उसने बिल्कुल ही डरना छोड़ दिया था। उसके विचारों के तहत ये उसका 'ऑपरेशन 24 कैरट' नाम का मिशन था । सच का मिशन था । वो अपनी जगह पर हर तरफ से सच्चा था और सच के लिए ही लड़ रहा था । मौत का उसे जरा भी डर नहीं था । वो हर हाल में अपने परिवार के हत्यारों को मौत देना चाहता था । इस काम को पूरा करने के दौरान उसके हाथों से कौन मरता है, इस बात की परवाह नहीं थी उसे ।
तुली की निगाह हर तरफ घूमी ।
वो खुले में था ।
हर तरफ से धूप में तपती-चमकती पहाड़ी चट्टाने ही दिखी । पथरीली जगह के पार, कुछ दूरी पर पेड़ों और झाड़ियों का सिलसिला आरंभ हो रहा था ।
तुली ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा--- 5:40 हो रहे थे।
तुली ने नजरें उठाई तो एकाएक सतर्क हो गया। आंखे सिकुड़ गई ।
सामने एक बड़े से पत्थर की ओट से सुरेश छाबड़ा निकलकर खुले में आ गया था । वो कमीज-पैंट पहने था । और धीरे-धीरे तुली की तरफ आने लगा था । उसके चेहरे पर पसीना चमक रहा था ।
तुली ने उसे भरपूर निगाहों से देखा ।
परन्तु उसे नही लगा कि इस इंसान को पहले कभी देखा है ।
सुरेश छाबड़ा सावधानी से चलता तुली के पास आ पहुँचा ।
"मैं पहले से ही पत्थर के पीछे छिपा, तुम्हें आते देख रहा था ।" सुरेश छाबड़ा बोला ।
तुली को तसल्ली हुई कि ये आवाज फोन वाला ही है ।
"तो तुमने देख लिया कि मैं अकेले आया हूं ।" तुली बोला ।
उसने सहमति से सिर हिलाया ।
"लेकिन मैं नही कह सकता कि तुम अकेले ही या नही ?" तुली बोला ।
"विश्वास करो । मैं अकेला ही हूं ।"
"तुम मेरे परिवार के हत्यारों को जानते हो ?" तुली बोला ।
"अच्छी तरह से । मुझे मालूम है किन लोगों ने तुम्हारे परिवार को गोलियों से भूना ।"
"बताओ ।"
"'ऑपरेशन टू किल' की डिटेल और F.I.A. के एजेन्टों के नाम-पते मेरे हवाले करो ।
तुली ने अपनी कमीज के भीतर हाथ डाला ।
सुरेश छाबड़ा ने तुरन्त रिवॉल्वर निकाल ली ।
"कागज निकाल रहा हूं ।" तुली ने कहा और पन्द्रह-बीस कागजों का रबड़ लगा बंडल निकाला और पांच कदम दूर फेंक दिया ।
"ये क्या ?" सुरेश छबड़ा के होंठों से निकला ।
तुली ने रिवॉल्वर निकाल कर हाथ मे ले ली ।
सुरेश छबड़ा ने पहले ही रिवॉल्वर थाम रखी थी ।
"मुझे मेरे परिवार के हत्यारों के बारे बताओ और कागजों का बंडल उठा लो ।" तुली बोला ।
तभी तुली का फोन बजने लगा ।
परन्तु तुली की सतर्क निगाह सुरेश छबड़ा पर ही रही ।
"पहले मैं कागजों को चैक करना चाहता...।"
"मैंने सब कुछ उसमें लिख दिया है । परन्तु मुझे मेरे परिवार के हत्यारों के बारे में बताए बिना तुम कागज नही पढ़ सकोगे ।"
"पहले मैं कागज...।"
"मैं कागज देख लूं तो तुम्हारा क्या जाता है ?"
बजती बेल बंद हो गई ।
"तुम्हें मुझ पर विश्वास करना चाहिये, जैसे मैं तुम पर विश्वास करके यहां तक आ पहुंचा ।"
"फोन की बेल पुनः बजने लगी ।
सुरेश छावड़ा रिवॉल्वर थामे सतर्क खड़ा था ।
इस पर नजरें टिकाये तुली ने फोन निकाला और कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया ।
"हैलो ।"
"तुम फंस गये हो तुली।" दयोल की आवाज कानों में पड़ी ।
तुली चौंका । आंखें सिकुड़ी ।
"क्या मतलब ? " उसके होंठों से निकला।
"इस वक्त तेरे सामने जो खड़ा है, ये F.I.A. एजेन्ट सुरेश छाबड़ा है।" दयोल की आवाज सुनाई दी ।
गर्म शीशे की तरह ये शब्द उसके कानों में पड़े ।
तुली ने सब्र के साथ काम किया । नजरें हर तरफ घूमीं।
दयोल कहीं न दिखा ।
"मैं समझ गया ।" तुली ने सुरेश छावड़ा पर निगाह मारी- "तू कहां है ?"
"मैं पेड़ के तने की ओट में हूं । तेरे को नजर नहीं आऊंगा । सुरेश छाबड़ा के साथ चार लोग और भी हैं। उन्हें मैं देख चुका हूं। कपूर ने मुझे भेजा है तुझे मारने के लिये, लेकिन कुछ देर पहले तक मैं नहीं जानता था कि शिकार तू है ।"
"तुली की आंखों में मौत चमकी ।
चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।
"तूने अच्छा काम किया मुझे बताकर ।" तुली ने कहकर फोन बंद करके जेब में रखा ।
सुरेश छाबड़ा रिवॉल्वर थामे सतर्कता से उसे देख रहा था ।
"जा।" तुली बोला--- "कागज देख ले ।"
"सुरेश छाबड़ा फौरन सिर हिलाकर नीचे गिरे कागजों के बंडल की तरफ बढ़ा ।
तुली मौत की-सी निगाहों से उसे देखता रहा ।
सुरेश छाबड़ा ने कागजों का बंडल उठाया । रबड़ हटाकर कागजों को खोला ।
अगले ही पल चौंका ।
वो खाली कागज थे ।
"तुमने उन पर कुछ भी नहीं लिखा ।" सुरेश छाबड़ा के होंठों से निकला ।
"नहीं लिखा ।" तुली के होंठों पर खतरनाक मुस्कान उभरी ।
सुरेश छाबड़ा एकाएक सतर्क हो गया ।
"दीवान और कपूर कैसे हैं छाबड़ा ?" तुली ने मौत भरे स्वर में पूछा।
सुरेश छावड़ा चौंका । रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया ।
तभी तुली ने ट्रेगर दबा दिया ।
धमाके का तीव्र स्वर गूंजा और गोली सुरेश छाबड़ा के माथे पर जा धंसी ।
सुरेश छाबड़ा इस तरह उछलकर पीछे को गिरा जैसे किसी ने धक्का दिया हो।
तभी एक पत्थर के पीछे से दो व्यक्तियों को निकलते देखा तुली ने ।
तुली ने खुद को फुर्ती से नीचे गिरा लिया ।
गोलियां चलने के धमाके हुए तो तुली बच गया ।
तभी गन से गोलियां चलने के धमाके गूंजे । तुली ने उन दोनों को गिरते देखा । वो समझ गया कि ये काम दयोल ने किया है । मन ही मन उसने दयोल को धन्यवाद दिया । फिर फुर्ती से तुली उठा और पास की चट्टान की तरफ दौड़ा । नजरें हर तरफ घूम रही थीं, परन्तु बाकी के दो न दिखे। दयोल ने कहा था कि सुरेश छाबड़ा के साथ चार लोग हैं।
तुली पत्थर की ओट में जा पहुंचा था ।
सूर्य की किरणें सीधे उसके चेहरे पर पड़ने की वजह से, चेहरा तपता सा लगने लगा । आंखें मिचमिचाते हुए तुली रिवॉल्वर थामे हर तरफ सतर्क निगाह दौड़ा रहा था ।
तभी उसका फोन बजा ।
तुली ने फोन निकाल कर बात की । दयोल की आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम भारी खतरे में हो। तुम जिस चट्टान के पीछे छिपे हो, उसके दाएं तरफ एक बड़ी चट्टान है । मैंने वहां एक आदमी को देखा है, जो रिवॉल्वर थामे तुम्हारा निशाना लेने की फिराक में है ।"
"तुम उसे शूट करो।"
"चट्टान का हिस्सा इस तरह उठा हुआ है कि मेरी तरफ से उसे चट्टान की कुदरती ओट मिल रही है । उसे तुम ही संभालो ।"
"चौथा ?"
"वो नहीं दिखा मुझे । फोन बंद करो और उसे संभालो ।" दाईं तरफ वाली चट्टान के ऊपर की तरफ। वो चट्टान किसी नाग के फन की भांति आगे को आई हुई थी ।
तुली रिवॉल्वर वाला हाथ उठाये, ऊपर की तरफ देखता रहा ।
कई पल बीत गये ।
फिर वो दिखा । पहले जरा-सा सिरा, फिर रिवॉल्वर वाला हाथ, उसके बाद नीचे झांकने के लिए उसने अपना चेहरा आगे किया । तुली ने एक साथ दो गोलियां चला दीं ।
तेज धमाके गूंजे ।
एक गोली उसका चेहरा उधेड़ गई । उसका रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे को झूलने लगा। उंगलियों में रिवॉल्वर दबी हुई थी । चेहरा नीचे लटक रहा था और खून नीचे गिरता देख रहा था ।
तुली के दांत भिंचे हुए थे ।
उसी पल उसे पास ही सरसराहट महसूस हुई ।
तुली चौंक कर पलटा । अगले ही पल ठिठक गया ।
तीन कदमों के फासले पर वो रिवॉल्वर उसकी तरफ ताने खड़ा था । वो भी घबराया हुआ था और तुली जानता था कि घबराये व्यक्ति के हाथों में रिवॉल्वर होना और भी खतरनाक था।
उसी पल एक के बाद एक दो गोलियां की आवाजें गूंजी और एक गोली उस व्यक्ति की कमर में जा लगी ।
ये दयोल का निशाना था ।
वो चीखा उसके हाथ से रिवॉल्वर नीचे जा गिरी और खुद भी नीचे बैठता चला गया ।
तुली ने रिवॉल्वर वाला हाथ आगे किया और उसके सिर का निशाना लेकर ट्रिगर दबा दिया ।
उसके बाद सन्नाटा-सा छा गया वहां।
चारों लाशें बिखरी थीं इधर ।
तुली का फोन बजा तो बात की तुली ने ।
"सब ठीक है । निपट गया काम ।"
"तू न होता तो मैं मर गया होता ।" तुली के क्रोध भरे चेहरे पर सख्त-सी मुस्कान थी ।
"मुझे तो इस बात का अफसोस है कि ये सब मौके पर आकर पता चला कि तेरा शिकार किया जाने वाला है ।"
"मैं तेरा एहसान याद रखूंगा दयोल । तुझे हमेशा याद रखूंगा।"
"इन बातों को छोड़ और F.I.A. से खुद को बचा के रख ।"
"मैं छुप नहीं सकता । मुझे अपने परिवार के हत्यारों को ढूंढना है । F.I.A. ने बहुत शानदार चाल चली मुझे पास लाने की । दीवान और कपूर का दिमाग अभी तक तो ठीक से चल रहा है दयोल ।" तुली ने कड़वे स्वर में कहा ।
"निकल जा अब यहां से ।"
"मिलेगा नहीं ?"
"हमारा मिलना ठीक नहीं है । यहां गोलियां चल चुकी हैं, कोई देख लेगा । मैं नहीं चाहता कि कपूर-दीवान किसी तरह का शक करें ।"
"ठीक है ।" तुली ने कहकर फोन बंद किया । जेब में रखा और रिवॉल्वर थाम एक तरफ बढ़ता चला गया ।
■■■
कपूर का फोन बजा ।
"हैलो ।" कपूर ने बात की।
"कपूर ।" दूसरी तरफ से दयोल की आवाज आई--- "मुझे यहां पहुंचने में देर हो गई ।
"क्या मतलब ?"
"सुरेश छाबड़ा और उसके चारों साथी एजेन्ट यहां मरे पड़े हैं । उनकी लाशें बिखरी पड़ी हैं । इस वक्त मैं उन लाशों के बीच में खड़ा हूं । लगता है उनकी किसी और के साथ खासी गोली-बारी हुई है ।"
कपूर का चेहरा गुस्से से भर उठा ।
"जानता है दयोल वो कौन था ?"
"कौन ?"
"तुली ।"
"नहीं ।" दयोल की तेज आवाज कानों में पड़ी।
"वो तुली ही था । तुम्हें वक्त पर पहुंचना चाहिये था । तुम...।"
"मुझे बताया क्यों नहीं कि वहां, मैंने तुली को शूट करना है । तब मैं वक्त से पहले, हर हाल में पहुंच जाता ।"
"तुमने देर करके मुझे गलत कर दिया ।" कपूर दांत भींच कर बोला--- "वहीं रहो, मैं लाश से उठावाने के लिए किसी को भेजता हूं ।" कपूर ने कहा और फोन बंद करके दीवान को देखा ।
दीवान माथे पर बल डाले उसे ही देख रहा था ।
"तुली, सुरेश छाबड़ा और चारों एजेन्टों को शूट कर के वहां से निकल गया।" कपूर ने दांत भींचकर कहा।
"बुरा हुआ ।" दीवान बेचैनी से बोला--- "और दयोल...।"
"वो वहां देरी से पहुंचा ।"
"ये तो और भी गलत हुआ । दयोल को वहां वक्त पर पहुंच जाना चाहिये था ।"
"हमारे पांच एजेन्टों को तुली ने मार दिया । मैंने पहले ही कहा था कि तुली को खत्म करना आसान नहीं रहेगा ।"
"उनकी लाशें वहां से उठवाओ । तुली की जिंदगी भी ज्यादा नहीं है ।" दीवान ने कठोर स्वर में कहा ।
■■■
शाम ढल चुकी है ।
अंधेरा घिरना आरंभ हो गया था । लाइटें जलने लगी थीं।
उस फैक्ट्री में स्टील की प्लेटें बनाने का काम भी रुक गया था । वर्करों को छुट्टी दे दी गई थी । अब वहां शांति थी । पीछे वाले कमरों में शांगली और लियू के साथ वो आदमी था, जो फैक्ट्री को चलाता था ।
"बहुत शोर होता है यहां पर ।" शांगली उस व्यक्ति से बोला ।
"स्टील की प्लेटें बनाने के काम में शोर होगा ही । धातु का काम है ।"
"लियू एक तरफ लंबे सोफे पर अधलेटी-सी थी।
"मेरे ब्रांड की व्हिस्की है ?"
"नहीं ।"
"ले आओ । रात बितानी है ।" फिर शांगली ने लियू को देखा--- "तुम्हें कुछ चाहिये ?"
"नहीं ।" लियू ने कहा।
"जाओ । मेरे लिए ले आओ गुलाटी । जल्दी आना । उसके बाद तुमने हमारे लिए खाने का भी इंतजाम करना है ।"
"सब हो जाएगा ।" गुलाटी ने कहा--- "लेकिन मुझे बताओ कि आखिर तुम्हारे साथ क्या हुआ है ?"
"R.D.X. का नाम तो तुमने सुना ही होगा ?"
"हां ।" गुलाटी ने सिर हिलाया ।
"उससे पंगा हो गया है । परन्तु सब ठीक हो जायेगा । कल मैं वापस चाईना बाजार जाऊंगा । वहां उन तीनों के लिए पक्के इंतजाम करके रखूंगा । वो बचेंगे नहीं । तुम मेरी भी व्हिस्की लाओ ।"
गुलाटी चला गया।
शांगली ने लियू को देख कर कहा।
"R.D.X. खतरनाक है ।"
"होंगे । ये तुम्हारा मामला है, तुम संभालो । मेरा इन बातों से कोई मतलब नहीं ।" लियू बोली ।
"तब, तुम मौके पर आई, जब R.D.X. ने मुझे घेर लिया था ।"
लियू कुछ न बोली ।
"तुम किसी होटल में भी रुक सकती हो । वैसे यहां भी ठीक ही तो है ।"
"मेरी फिक्र छोड़ो अपनी फिक्र करो। मेरे ख्याल में सैवन इलैवन भी तुम्हारे चीनी एजेन्ट होने के बारे में जान गया है।"
"मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । मेरी चीनी एजेन्ट होने का उसे कोई सबूत नहीं मिलेगा ।"
कुछ ही देर में गुलाटी व्हिस्की की बोतल और गिलास ले आया ।
"जल्दी आ गये ।"
"दुकान पास ही है ।"
■■■
R.D.X. की निगाह उस फैक्ट्री पर टिकी थी ।
"ये इंडस्ट्रियल एरिया था । आसपास की कई फैक्ट्रियों में काम चल रहा था। सामान-आ-जा रहा था । शाम के साढ़े सात बज रहे थे । कुछ देर पहले ही उन्होंने ,एक आदमी को बोतल भीतर ले जाते देखा था ।
"ये शांगली का ठिकाना है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"उसके कई ठिकाने होंगे । मुम्बई में वो पुराना रह रहा है । उसके पांव पूरी तरह जमे हैं।"
"हमें भीतर चलना चाहिये ।" राघव की नजरें हर तरफ घूम रही थीं--- "चाहे जैसे भी हो, हमने उससे ये जानना है कि तुली कहां पर है । हमारा तुली तक पहुंचना जरूरी है ।"
"आओ ।" धर्मा कह उठा--- "फैक्ट्री के गेट से ही में अलग हो जाना है। ताकि उनकी नजरों से बच सकें ।"
R.D.X.आगे बढ़े ।
फेक्ट्री का गेट बंद था । परन्तु बीच का छोटा गेट खुला था ।
तीनों एक-एक करके भीतर प्रवेश कर गए और अलग-अलग दिशाओं में होते चले गये। रिवॉल्वरें हाथ में आ चुकी थी । पैनी निगाह हर तरफ फिर रही थी ।
धर्मा अभी कुछ ही आगे गया था । कि ठिठक गया ।
फैक्ट्री में कहीं-कहीं रोशनी थी और चंद कदमों की दूरी पर खड़ा गुलाटी उसे देख रहा था । उसके हाथ में रिवॉल्वर आ चुकी थी । धर्मा के होंठ भिंच गये । वो पुनः आगे बढ़ने लगा ।
गुलाटी रिवॉल्वर थामे अपनी जगह पर खड़ा रहा।
धर्मा उससे तीन कदम पहले जा रूका।
"कौन हो तुम ?" गुलाटी ने पूछा ।
"शांगली कहां है ?"
"कौन शांगली ?"
"तुमने रिवॉल्वर पकड़ी है । इसी से जाहिर है कि तुम शांगली के आदमी हो।"
"तुम R.D.X. हो ?"
"मेरे पास R.D.X. नहीं है । ये रिवॉल्वर है...।"
"मैंने पूछा है कि तुम R.D.X. हो--- राघव-धर्मा एक्स्ट्रा ?"
"हां । शांगली ने तुम्हें बता दिया है कि...।"
तभी गुलाटी ने गोली चलाने के लिए रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया।
धर्मा को पहले से ही ऐसी हरकत का अंदेशा हो चुका था । इससे पहले की वो गोली चलाता, धर्मा ने ट्रेगर दबा दिया।
तेज धमाका वहां गूंजा और गोली गुलाटी के पेट में जा लगी । उसकी चीख गूंजी ।
धर्मा ने पुनः गोली चलाई । जो कि उसकी छाती में लगी और वो नीचे जा गिरा।
■■■
गोली की आवाज सुनते ही शांगली के हाथ में पकड़ा गिलास छलक उठा ।
लियू उछलकर खड़ी हो गई ।
"ये क्या-गोली तो...।"
"शांगली ।" लियू भिंचे स्वर में कह उठी--- "मुझे उस एजेन्ट का फोन नम्बर बताओ, जो तुली पर निगाह रख रहे हैं ।"
"क्या मतलब ?" शांगली भी खड़ा हो गया ।
"मैं यहां से जाना चाहती हूं । R.D.X. सैवन इलैवन बाहर पहुंच चुके है, जबकि मुझे झगड़ा नहीं करना है। अपने काम को चुपके से करके निकल जाना है । अपने उस एजेन्ट का नंबर बताओ, जो तुली पर निगरानी का काम संभाल रहा है ।"
शांगली ने नम्बर बता दिया ।
लियू ने रिवॉल्वर हाथ में थामी और दरवाजे की तरफ बढ़ी ।
"जा रही हो।?"
"तुम अगर बचे रहो तो मुझे फोन कर...।"
"लेकिन...।"
"चुप रहो, मैं यहां नहीं रुक सकती ।" दरवाजे के पास पहुंचकर लियू ने थोड़ा-सा दरवाजा खोला और बाहर देखा ।
बाहर हर तरफ चुप्पी ही दिखी ।
"शांगली, तुम्हारा आदमी गुलाटी मारा जा चुका है ।"
"कैसे ?"
"जिन्दा होता तो अब तक हमारे पास आ गया होता ।"
शांगली ने एक ही सांस में गिलास खाली किया और रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।
"तुम भी निकल जाओ यहां से ।" कहते हुए लियू ने दरवाजा पूरा खोला और बाहर निकलती चली गई।
शांगली के होंठ भिंच चुके थे ।
गोली चलने के बाद गुलाटी का उनके पास न आना यही स्पष्ट करता था कि वो नहीं बच सका ।
शांगली ने यहां से निकल जाने में ही बेहतरी समझी। वो आगे बढ़ा और खुले दरवाजे से बाहर झांका । कहीं रोशनी नजर आ रही थी तो कहीं अंधेरा। शांगली की निगाह हर तरफ घूमी ।
लियू कहीं भी न दिखी ।
कोई और भी न दिखा।
रिवॉल्वर थामे शांगली तेजी से अंधेरे की तरफ दौड़ा । उसके कदमों की मध्यम-सी आवाज़ गूंजी और चार पलों में ही वो गहरे अंधेरे में पहुंच चुका था । वहां ठिठककर उसने हर तरफ नजरें घुमाईं ।
उसी पल उसकी गर्दन पर रिवॉल्वर के ठंडे लोहे की नाल आ लगी ।
शांगली के शरीर में सर्द लहर दौड़ गई ।
"क्या हाल है शांगली ?" उसके कानों में राघव की फुसफुसाहट गूंजी ।
शांगली को अपनी सांसे रूकती-सी महसूस हुई ।
"त...तुम...।" शांगली के होंठों से निकला
"तुमने क्या सोचा कि बचकर भाग गये । दोबारा हमारी मुलाकात नहीं होगी ?"
"ओह।" शांगली ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "यहां तक कैसे पहुंच गये ?"
"अपनी रिवॉल्वर मुझे दो ।"
राघव का हाथ पीछे से से आगे आया और शांगली के हाथ से रिवॉल्वर ले ली ।
शांगली का हाल बुरा हो चुका था ।
"तुम्हें कैसा लग रहा है शांगली । अब तुम मरने वाले हो...।" राघव ने मौत भरे स्वर में कहा ।
"मुझे मत मारना--- प्लीज मुझे...।"
"तुली कहां है शांगली । बचने के लिये बताना ही पड़ेगा । वरना तू अभी गोल हो जायेगा ।"
"बताता हूं।"
■■■
पूरा दिन बीत गया था । परन्तु तुली का फोन नहीं आया था । जबकि माईक खुद तुली से मिलना चाहता था । वो सारा दिन के तुली के फोन के इंतजार में ही बैठा रहा था । अब रात हो चुकी थी । माईक एम्बेसी के कमरे में ही टिका हुआ था । कुछ देर पहले ही उसने पैग तैयार किया था और छोटे-छोटे सिप ले रहा था । माईक के मन में सैवन इलैवन को भी सबक सिखाने की चाहत थी । क्योंकि ढाई महीने पहले उसने उसके बेटे का अपहरण कर के उसे मजबूर कर दिया था कि तुली का छिपा ठिकाना बता दे । तब अगर सैवन इलैवन उसके बेटे का अपहरण न करता तो अब सब ठीक रहना था । तुली उसके पास ही होना था।
तभी सामने रखा फोन बजा तो माईक ने फौरन रिसीवर उठाया
"हैलो ।"
"सर, कोई मैडम लियू आप से बात करना चाहती हैं ।" उधर से कहा गया ।
"लाइन दो ।"
अगले ही पल उसके कानों में लियू की आवाज पड़ी।
"हैलो माईक।"
"हैलो लियू ।" माईक मुस्कुराया--- "मेरे ख्याल में तुम बोर हो रही हो और मुझसे मिलना चाहती हो ।"
"ऐसा कुछ नहीं है माईक ।"
"वक्त बिताने के लिए मुझे फोन...।"
"तुली से तुम्हारी मुलाकात हो गई होगी ?" उधर से लियू ने कहा ।
"नहीं तो ।" माईक के होंठों से निकला ।
"उसका फोन नहीं आया ?"
"नहीं, आखिर तुम इस मामले में क्यों दिलचस्पी ले रही...?"
"मैं तुम्हें बता सकती हूं कि तुली इस वक्त कहां है ।" उधर से लीयू ने कहा ।
"कहां है ?"
"एक होटल में । वो खुद को छिपा नहीं रहा । आराम से वहां रह रहा है ।"
"होटल का नाम बताओ ।"
"ग्रीन होटल, बरसोवा । कमरा नम्बर-22 ।"
माईक के होंठ सिकुड़ गये ।
"तुम शायद एयरपोर्ट पर भी मुझे यही बताना चाहती थी ?" माईक कह उठा ।
"हां। लेकिन तुमने कहा कि तुली तुम्हें फोन करेगा तो मैं खामोश हो गई।"
"बता देती...मैं...पूरे इंतजाम के साथ तुली के पास जाता ।"
"क्यों--- वो तो खुद ही तुमसे मिलना...।"
"तुली के पास R.D.X. भी पहुंच सकते हैं ।"
"R.D.X. ये तो बारूद...।"
"वो इंसानी बारूद हैं। राघव-धर्मा-एक्स्ट्रा । तुम इनसे पहले कभी नहीं मिले ?"
"नहीं ।"
"नाम भी नहीं सुना ?"
"नहीं ।"
"सैवन इलैवन ने तुली को मारने के लिए वूस्टर में इन तीनों का ही इस्तेमाल किया था।"
"R.D.X. का ?"
"हां । इसी से समझ जाओ ये कितने खतरनाक हैं । हो सकता है कि ये भी तुम्हें तुली के पास ही कहीं मिल जायें । तुली का पता मेरा एक खास आदमी जानता है । वो R.D.X. के हाथ में पड़ गया हो सकता है । इस बात का खतरा है ।
"समझ गया ।"
"तुम जल्दी करो ।"
"तुम क्यों मेरी मदद कर रही हो इस मामले में ?"
"ताकि कभी जरूरत पड़े तो मेरे काम आओ ।"
"ये बात नहीं हैं ।"
"तो क्या बात है ?"
"चीन चाहता है कि अमेरिका के हक में मुंह खोल दे और इंडिया को अमेरिकन विदेश मंत्री की हत्या की सफाई देनी पड़े । इस तरह हो सकता है अमेरिका और इंडिया में मन-मुटाव हो चले । चीन को इन दोनों देशों का करीब आना पसंद नहीं । ठीक कहा मैंने ?"
"सही कहा ।" उधर से लीयू ने हंसकर कहा ।
"चीन कभी भी कोई काम बिना मतलब के नहीं करता ।"
"तुम्हें तुली के बारे में सोचना चाहिए माईक ।"
"हां, मैं उसके पास ही जा रहा हूं ।"
"पूरे इंतजाम के साथ ।"
"हां ।"
"अगर तुली किसी वजह से हाथ से निकल जाये तो मुझे फोन करना ।" लियू की आवाज कानों में पड़ी ।
"तब तुम क्या करोगी ?"
"मेरे पास एक ऐसा मोहरा है, जो वक्त आने पर बेबस कर देगा ।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
माईक ने रिसीवर रखा और बड़बड़ा उठा ।
"लियू तो बहुत हरामी चीज है ।"
■■■
ग्रीन होटल के सामने सड़क पार राघव ने कार रोकी और इंजन बंद कर दिया।
"अभी सोच लो ।" आगे बैठे धर्मा ने गर्दन घुमाकर पीछे बैठे शांगली से कहा--- "तुली यहीं है क्या ?"
"हां, इसी होटल में बाईस नम्बर कमरे में ।" शांगली फंसे स्वर में बोला ।
एक्सट्रा, शांगली की कमर में रिवॉल्वर की नाल सटाये, उसके पास बैठा था ।
"तुम्हारी बात गलत हुई तो तू मरेगा ।"
"मैं सच कह रहा हूं ।" शांगली ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
धर्मा की निगाह होटल पर टिक चुकी थी।
"चल धर्मा ।" राघव ने ड्राइविंग डोर खेलते हुए कहा ।
"रुक जरा ।" धर्मा होटल पर नजरें टिकाये बोला--- "वहां कुछ गड़बड़ लग रही है ।"
सबकी निगाह उधर गईं ।
वहां उनके देखते ही देखते जो कारें रुकीं और उनमें से सात लोग बाहर निकले । दो तो कारों के पास खड़े रहे । बाकी पांच होटल में प्रवेश कर गये थे ।
"वहां जाकर देखते हैं कि क्या हो रहा है । राघव बोला ।
राघव और धर्मा कार से बाहर निकले और सड़क पार करते, होटल की तरफ बढ़ गये ।
एक्स्ट्रा ने कमर से रिवॉल्वर सटाये शांगली को देखा ।
शांगली उसे ही देख रहा था।
"तुम सोच रहे हो कि मुझ पर काबू पाकर यहां से भाग सकते हो ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
शांगली ने मुंह फेर लिया ।
"कोशिश जरूर करना ।" एक्स्ट्रा का स्वर शांत था ।
■■■
माईक दो लोगों के साथ 22 नम्बर कमरे के दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा थपथपाया ।
इस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।
तीन अन्य आदमियों को माईक में इधर-उधर बिखरा दिया था, ताकि कोई खतरा आये तो वे संभाल लें।
दूसरी बार दरवाजा थपथपाने पर भीतर से तुली की आवाज आई ।
माईक का पर दिल धड़का । तुली की आवाज पहचान ली थी।
"कौन ?"
"मैं हूं तुली--- माईक ।"
जवाब में तुली की आवाज नहीं आई ।
"तुली ।" माईक ने पुकारा ।
"सुन रहा हूं ।" तुली की आवाज आई ।
"दरवाजा खोलो । मैं हूं । तुमसे बात करनी है ।" माईक ने कहा ।
"तुम्हारे साथ कौन है ?"
"मेरे दो आदमी हैं ।"
तभी दरवाज़ा खुला और तुली का चेहरा दिखा।
उसने तीनों को देखा ।
"तुम अकेले भीतर आना ।" तुली माईक से बोला ।
"हां ।" माईक ने सिर हिलाया ।
तुली ने थोड़ा-सा दरवाजा खोला । माईक भीतर आ गया । तो तुली ने दरवाजा बंद कर दिया ।
तुली के हाथ में रिवॉल्वर दबी थी ।
दोनों की नजरें मिलीं ।
तुली के चेहरे पर कठोरता थी ।
"तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहां हूं ?" तुली बोला ।
"मेरे एजेन्टों ने तुम्हें ढूंढ लिया।
तुली ने रिवॉल्वर हाथ में ही रखी ।
"तुम्हें इस तरह होटल में नहीं रहना चाहिये । F.I.A. तुम तक पहुंच सकती है। वो लोग तुम्हें मार देंगे ।"
"तुली बेहद सतर्क था इस वक्त।
माईक पुनः बोला--- "तुमने वूस्टर में बढ़िया चकमा दिया C.I.A. को । खुद चुपके से खिसक गये और अपने कपड़े हमारे एजेन्ट की लाश को पहना गये, उसका चेहरा तुमने गोलियों से बिगाड़ दिया कि पहचाना न जा सके । परन्तु हमने जान लिया था कि वो हमारा ही एजेन्ट है । परन्तु तुम दोबारा लौटकर हमारे पास नहीं आये । तुम्हें हमारे पास-आना चाहिये था ।"
तुली खामोश रहा ।
"C.I.A. तुम्हारे हक में सोचती है । हम ही तुम्हें F.I.A. से बचा सकते हैं ।"
तुली ने कुछ नहीं कहा।
"मुझे पता चला कि तुमने एम्बेसी फोन करके मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की है तो मैं इंडिया आ गया । पिछली बार तुम्हें मैं अमेरिका न ले जाता तो F.I.A. ने तुम्हें खत्म कर देना था । तुम बुरे फंसे ।"
तुली की निगाह माईक पर थी ।
"फ्लोरिडा एयरपोर्ट पर तुमने एक आदमी का पासपोर्ट चोरी किया । मुझे मालूम हो गया कि यह काम तुमने किया है । तुम्हारे लिए मैं फौरन फ्लोरिडा पहुंचा, परन्तु तुम वहां से गायब हो गये थे ।" माईक ने पुनः कहा।
तुली ने सिगरेट सुलगा ली । परन्तु वह सतर्क था ।
"तुम्हें इंडिया नहीं आना चाहिए था । लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा । C.I.A. तुम्हारे साथ है । पहले की तरह हम तुम्हें आसानी से इंडिया से निकालकर अमेरिका पहुंचा सकते हैं और इस बार तुम्हें पहले से बेहतर सुरक्षा दी जायेगी ।"
तुली ने कश लिया ।
कुछ तो बोलो तुली ।"
"मेरे परिवार को किसी ने गोलियों से भून दिया ।" तुली ने कहा ।
"इसका मुझे दुःख है । मैंने भी बात सुनी । किसने किया ऐसा ?"
"नहीं जानता।"
"तुम C.I.A. पर विश्वास करो ।" माईक ने कहा--- "हम तुम्हारे परिवार के हत्यारों की तलाश करके, उन्हें सजा देंगे । खत्म कर देंगे उन्हें । ये हमारा तुमसे वादा है । परन्तु इस तरह खुले मत रहो--- तुम मेरे साथ...।"
"माईक मुझे मेरे परिवार के हत्यारे चाहिये।"
"वादा रहा कि...।"
"वादा अपने पास रखो । मुझे वो लोग चाहिये, जिन्होंने मेरे परिवार को मारा है।"
"तुली हम...।"
"मेरे परिवार को तुम लोगों ने मारा हो सकता है ।"
"हम लोगों ने ?" माईक अचकचा उठा ।
"हां ।" तुली ने एक-एक शब्द चबाकर कठोर स्वर में बोला--- "मेरे परिवार को इसलिए मारा गया कि जब मुझे उनकी हत्या हो जाने का पता चले तो मैं अपनी छिपी जगह से बाहर निकल आऊं । और ऐसा ही हुआ ।"
"ये काम हमने नहीं किया।"
"F.I.A. भी यही कहती है कि ये काम उसने नहीं किया ।"
"कोई बेवकूफ ही तुम्हारे परिवार को मारेगा ।"
"बेफकूफ नही, वो बहुत शातिर है । मेरे परिवार को मारकर मुझे बाहर निकालने की शानदार चाल चली उसने ।"
"मुझ पर भरोसा करो तुली । C.I.A. उन लोगों को ढूंढ निकालेगी ।"
"वो लोग, F.I.A. के भी हो सकते हैं ।"
"नहीं तुली C.I.A. ऐसा घटिया काम नहीं करती । हम मासूमों का खून नहीं बहाते । तुम मेरा विश्वास करो ।"
"तुली का सब पर से विश्वास उठ चुका है।"
"मैं कहता हूं तुम मुझ पर भरोसा करो, मेरे साथ चलो और...।"
"मेरा एक बेटा जिंदा बच गया, परन्तु वो लापता है और मुझे पूरा यकीन है कि मेरे बेटे को उन्हीं लोगों ने उठाया है, जिन्होंने मेरे परिवार को मारा है । वो देर-सवेर मेरे बेटे के दम पर मुझसे कोई सौदा तो अवश्य करेंगे।"
"तुम मुझ पर भरोसा करो तुली, मैं सब कुछ समझा दूंगा ।"
तुली ने कश लिया और बोला---
"तुम चाहते हो कि मैं 'ऑपरेशन टू किल' नाम के मिशन की सच्चाई अमेरिका को बयान करूं और अमेरिकी विदेश मंत्री की हत्या के सिलसिले में अमेरिका के हक में गवाही दूं ।"
"हां । यही...।"
"मैं ऐसा ही करूंगा अगर तुम मेरे परिवार के हत्यारों के बारे में मुझे बताओ। मेरे बेटे को मेरे पास ले ओओगे ।"
"इसमें वक्त लगेगा ।"
"मैं इंतजार करूंगा ।" तुली ने माईक की आंखों में देखा।
"तब तक F.I.A. तुम्हें मार देगी--- तुम समझते क्यों नहीं--- मैं...।"
"दांव पर मेरी जान लगी है, तुम क्यों चिंता करते हो ?" तुली का स्वर शांत था ।
माईक के होंठ भिंच गये ।
■■■
राघव और धर्मा होटल से बाहर आ गये । एक निगाह सामने कारों के पास खड़े दोनों आदमियों पर मारी और सड़क पार करके, उस तरफ खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ गये । फिर बीच में ही राघव की ठिठककर रुका और होटल के मुख्य गेट पर निगाह रखने लगा । जबकि धर्मा वापस कार के पास आ पहुंचा।
भीतर एक्स्ट्रा, शांगली को संभाले बैठा था ।
"क्या रहा ?" एक्सट्रा ने पूछा ।
"तुली होटल में ही है । हमारे आगे-आगे माईक अपने साथ-साथ लोगों को लेकर यहां पहुंचा है । उसे भी तुली की खबर लग गई है ।"
शांगली समझ गया कि माईक में को लीयू ने खबर दी ।
"अब क्या पोजीशन है ?"
"दो आदमी बाहर कारों के पास हैं । तीन होटल में पोजीशन दिए हैं । बाकी के दो बाईस नम्बर कमरे के दरवाजे के बाहर । माईक कमरे से तुली से बात कर रहा होगा ।" राघव ने कहा।
"मेरी बात सही निकली की बाईस नम्बर कमरे में है ।" शांगली कह उठा--- "अब तो मुझे जाने दो ।"
राघव और एक्स्ट्रा की नजरें मिलीं ।
"इसका टांटा निपटा ।" राघव बोला--- "बाहर तेरी जरूरत पड़ सकती है ।"
"टांटा ?" हड़बड़ाकर बोला--- "तुम क्या करने वाले हो ? मुझे मारना मत--- मैं....।"
एक्स्ट्रा का रिवॉल्वर वाला हाथ उठा और नाल शांगली की कनपटी पर जा लगी ।
शांगली की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे और वो बेहोश होकर सीट पर लुढ़क गया।
राघव ने उसकी तरफ का दरवाजा खोला और शांगली के बेहोश शरीर को बाहर खींचकर सड़क के किनारे डाल दिया ।
एक्स्ट्रा बाहर निकला और रिवॉल्वर जेब में रख ली ।
"आओ ।" राघव बोला और दोनों आगे बढ़ गये ।
"धर्मा के पास पहुंचे ।
"क्या रहा ?"
"अभी सब कुछ वैसा ही है।"
"तुली अगर माईक के साथ मिल गया तो ?" एक्स्ट्रा बोला ।
"तो उसे खत्म कर देंगे ।" धर्मा शब्दों को चबाकर कह उठा ।
"माईक, तुली को छोड़कर जाने वाला नहीं ।" राघव ने कहा ।
"मैं होटल जाता हूं ।" एक्स्ट्रा ने कहा और आगे बढ़ गया।
■■■
"तुम मेरे साथ चलो---तुली ।" माईक ने कुछ खामोशी के बाद कहा--- "मैं सब ठीक कर दूंगा ।"
"मेरे परिवार के हत्यारों और मेरे बेटे को सामने ला दो । तब मैं तुम्हारी बात मानूंगा ।" तुली ने कहा ।
"जिद मत करो तुली । वो सब हो जायेगा ।"
"जब हो जायेगा, तब मेरे पास आ जाना ।"
उसी पल माईक की जोरदार ठोकर तुली के रिवॉल्वर वाले हाथ पर पड़ी ।
तुली चूक गया । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई ।
उसी पल माईक के हाथ में भी रिवॉल्वर नजर आने लगी ।
तुली के दांत भिंच गये । उसने माईक की आंखों में झांका ।
"इस तरह तुम मेरा फायदा नहीं उठा सकोगे माईक ।" तुली कठोर स्वर में बोला।
"मेरा इरादा तुम्हें सुरक्षित जगह पर पहुंचाने का है । मैं तुम्हारी जान बचाने के बारे में सोच रहा हूं । तुम जिंदा रहोगे तभी तो मेरे मतलब के रहोगे ।" माईक ने तुली को सतर्क स्वर में कहा--- "रही बात तुम्हारे परिवार के हत्यारों की या तुम्हारे बेटे की तो मैं बहुत जल्दी उन लोगों की तलाश कर लूंगा । परन्तु इस वक्त तुम्हें मेरे साथ चलना होगा ।"
"मेरे से जबरदस्ती मत....।"
"मैं तुम्हें सुरक्षित रखना चाहता हूं ।"
"और मैं अपने परिवार के हत्यारों को तलाश....।"
"ये काम मुझ पर छोड़ दो । वो जो लोग भी हैं, मेरे आदमी उन्हें ढूंढ लेंगे । बेशक तुम उसके बाद C.I.A. का साथ देना । अब तुम दरवाजे की तरफ चलो । बाहर मेरे आदमी खड़े हैं । अब कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"मेरा तो पहले भी कोई नहीं बिगाड़...।"
"चलो तुली....।" माईक सतर्क स्वर में बोला ।
"मैं तुम्हारे साथ नहीं जाना चाहता ।"
"मैं तुम्हें लेकर जाऊंगा तुली । बेहतर होगा कि मुझे सहयोग दो और जैसा मैं कहता हूं वैसा करो ।"
तुली ने माइक की आंखों में झांका । चेहरे पर दरिंदगी थी ।
"चलो ।"
तुली होंठ भींचे घूमा और दरवाजे के पास जा पहुंचा ।
माईक उससे तीन कदम पीछे था ।
"दरवाजा खोलो ।"
तुली ने दरवाजा खोला तो बाहर खड़े दोनों आदमियों की निगाह इस तरफ उठी।
"इसे अपने साथ ले जाना है ।" माईक ने उससे कहा--- "दोस्तों की तरह ।"
उन दोनों ने आगे बढ़कर तुली के दांये-बायें जगह ले ली ।
वे तुली को लिए आगे बढ़ने लगे ।
माईक रिवॉल्वर थामे तीन कदम पीछे को चल रहा था ।
तुली कोई मौका ढूंढ रहा था इनसे बचने का। परन्तु ये सब सतर्क थे । एकाएक तुली के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे। उसकी आंखें धोखा नहीं खा सकती थीं। सामने से एक्स्ट्रा आ रहा था ।
चलते हुए तुली की निगाह एक्स्ट्रा पर टिक चुकी थी। तुली को पूरा यकीन था कि पास ही कहीं राघव और धर्मा भी होंगे । इन हालातों में एक्स्ट्रा का नजर आना इत्तेफाक नहीं हो सकता ।
लापरवाही से भरी चाल चलता एक्सट्रा उसके सामने पहुंचा ।
"भाई साहब माचिस होगी...?" एक्स्ट्रा कह उठा ।
तुली को ले जाते वो दोनों पल भर के लिए ठिठके ।
तुली समझ गया कि कुछ होने वाला है ।
"मैं देता हूं ।" पीछे खड़े माईक ने कहा ।
"धन्यवाद सर ।" एक्स्ट्रा उनके सामने से हटा और माईक के साथ आ गया।
वो दोनों तुली को लिए आगे बढ़ गये ।
माईक भी चल पड़ा । जेब से लाईटर निकालकर एक्स्ट्रा को दिया ।
एक्स्ट्रा ने लाईटर थामते हुए कहा।
"आप विदेशी लगते हैं ।"
"अमेरिकन ।"
"ओह, फिर तो आपके पास विदेशी सिगरेट होगी । एक देना जरा।"
चलते-चलते माईक ने एक्स्ट्रा को घूरा और पैकिट निकालकर एक सिगरेट दी ।
"धन्यवाद । आप कितने नरम दिल हैं एक छोटी-सी रिक्वेस्ट है ।" साथ चलता एक्स्ट्रा कह उठा--- "मैं अमेरिका जाकर बसना चाहता हूं । परन्तु वीजा नहीं मिल रहा अमेरिका का । अमेरिकन एम्बेसी में आपकी कोई पहचान होगी ?"
"नहीं।" सुनकर बुरा लगा। मेरा अमेरिका जाने का सपना...।"
"सिगरेट जलाओ । मेरा लाईटर दो और जाओ ।" माईक एकाएक सख्त स्वर में कह उठा ।
"अभी लो ।" एक्स्ट्रा ने कहा और सिगरेट-लाईटर जेब में डाल कर रिवॉल्वर निकाली और माईक की कमर से लगा दी।
ये सब अचानक हुआ । माईक चौंका ।
"चलते रहो ।" एक्स्ट्रा ने कठोर स्वर में कहा।
माईक के होंठ भिंच गये । चलता रहा वो । चाल अवश्य कुछ धीमी हो गई
तुली को ले जा रहे दोनों आदमी सात-आठ कदम आगे बढ़ गये थे ।
"क्या चाहते हो ?"
"तुली को ।"
माईक के दांत भिंचे।
"कौन हो तुम ?"
"एक्स्ट्रा ।"
"R.D.X......?" माईक की आंखें सिकुड़ी ।
"जानकारी अच्छी है तुम्हारी ।" एक्स्ट्रा ने बेहद सतर्कता के साथ उसकी कमर से रिवॉल्वर लगी देखी थी--- "वूस्टर में हम तीनों ही तुली को मारने गये थे । पता है तुम्हें ?"
"नहीं । सैवन इलैवन के कहने पर तुली को मारने गये ।"
"हां ।"
"F.I.A. के लिए भी काम करते हो ?"
"नहीं ।"
"तो सैवन इलैवन के कहने पर तुली को मारने वूस्टर क्यों गये थे ?"
"वो एक सौदा था हमारे और सैवन इलैवन के बीच ।"
"तो तुली को जिंदा क्यों छोड़ दिया ?"
"हमें ऐसी कोई वजह नजर नहीं आई कि, जिसके लिए तुली को मार देते।"
"हम तो तभी समझ गये थे कि वो लाश तुली की नहीं है, जो....।" कहते-कहते माईक लड़खड़ाया ।
एक्स्ट्रा ने फुर्ती से रिवॉल्वर उसके सिर से लगा दी।
"चालाकी नहीं...।" एक्स्ट्रा गुर्राया ।
माईक ने गहरी सांस ली ।
तभी तुली को ले जा रहे दोनों आदमियों ने पलट कर पीछे देखा कि ठिठक गये ।
एक्स्ट्रा ने सिर से रिवॉल्वर हटा कर पुनः कमर पर लगाते कहा ।
"इन्हें कहो कि चलते रहें और होटल से बाहर निकलें।"
तुली ने भी गर्दन पीछे घुमाई ।
"चलते रहो।" माईक बोला--- "पीछे मत देखो ।"
वो दोनों तुली को लेकर फिर से आगे बढ़ने लगे
"वूस्टर में हमने तुम्हारे 6-7 लोगों को मारा था । अब तुम लोग आठ हो । मेरे साथियों ने घेरा डाल रखा है ।"
"तुली को ले जाना चाहते हो ?"
"हां ।"
"सैवन इलैवन के लिये।
"अपने लिये हमें तुली से मिले बहुत देर हो गई । गले मिलना है ।" एक्स्ट्रा बेहद सतर्क था ।
सामने होटल का बाहर निकलने वाला दरवाजा था ।
इधर-उधर फैले तीनों एजेन्ट भी अब पास आ गये थे और एक्स्ट्रा को घूर रहे थे । शायद वो समझ चुके थे कि माईक की कमर में छिपे ढंग से रिवॉल्वर लगी हुई है
"अगर तुम्हारे लोगों ने उस पर काबू पाने की चेष्टा की तो मैं उसी वक्त तुम पर गोली चला दूंगा।"
माईक ने उन तीनों को कुछ न करने का इशारा किया । फिर एक्स्ट्रा से कहा ।
"मैं तुम्हें अच्छी कीमत दे सकता हूं इस मामले से हटने की ।"
"धन्यवाद ।"
वो सब होटल के दरवाजे से निकल कर बाहर आ गये ।
"अपने दोनों आदमियों से कहो कि सड़क के उस पार खड़ी कार तक तुली को छोड़ आयें ।"
"तुम...।"
"जो मैंने कहा है वो करो।"
माईक ने उखड़े अंदाज में उन दोनों आदमियों को यही कहा ।
वे तुली को लेकर सड़क पर खड़ी कार की तरफ बढ़ गये।
अब तक अंधेरे से निकलकर धर्मा और राघव भी सामने आ गये थे । उन्होंने मामला समझ लिया था । धर्मा उसी पल कार की तरफ दौड़ा । जबकि राघव जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर हाथ कस चुका था । कभी भी कुछ भी हो सकता था । माईक के साथी मौके के इंतजार में सतर्क खड़े थे ।
"अपने आदमियों से कहो कि कोई हरकत न करें ।"
माईक ने ऐसा ही आदेश दिया ।
"गुड। चलो अब हम दोनों भी उस कार तक घूम आएं ।" उसकी कमर में रिवॉल्वर लगाये एक्स्ट्रा ने कहा।
एक्स्ट्रा की बात माननी माईक की मजबूरी थी । वो चल पड़ा ।
राघव फासला रखकर उनके पीछे था ।
माईक के साथी अपनी जगह पर विवश-से खड़े रहे ।
धर्मा कार के पास पहुंचकर ठिठका । शांगली को जहां बेहोश करके छोड़ा था । वो वहां नहीं था । स्पष्ट था कि होश आते ही वो खिसक गया होगा ।
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम आखिर तुली का करना क्या चाहते हो ?"
"इस बात को लेकर तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है ।"
"तुली को मेरे हवाले कर दो, मैं तुम्हें लाख डॉलर दे...।"
"चुप रहो ।" एक्स्ट्रा ने कठोर स्वर में कहा ।
धर्मा ने तुली की डिलीवरी ले ली । रिवॉल्वर हाथ में पकड़ रखी थी ।
"तुम कार में बैठो ।" धर्मा तुली से बोला । फिर उन दोनों से कहा--- "पलट कर पीछे भी मत देखना।"
वो दोनों वहां से चले गये ।
धर्मा की निगाह एक्स्ट्रा और माईक पर जा टिकी, जो इधर ही आ रहे थे ।
कुछ फासला रखकर पीछे राघव था ।
वे कार के पास पहुंचे ।
"इसकी तलाशी लो ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
धर्मा ने माईक की तलाशी ली और रिवॉल्वर निकाल ली ।
राघव भी पास पहुंचा ।
"चलो ।"
धर्मा ने फौरन स्टेयरिंग सीट संभाली ।
राघव पीछे तुली के पास जा बैठा ।
एक्स्ट्रा ने माइक से कहा ।
"अब तुम कार स्टार्ट करो माईक ।"
माईक के होंठ भिंच गये ।
धर्मा कार स्टार्ट कर चुका था ।
एक्स्ट्रा के भीतर बैठते ही उसने कार आगे बढ़ा दी।
माईक दांत पीसकर रह गया ।
तुली हाथ से निकल गया था ।
■■■
0 Comments