R.D.X.

मुम्बई में ही थे, पूना में नहीं ।

धर्मा ने सैवन इलैवन को झूठ बोला था कि वो लोग पूना में हैं।

सैवन इलैवन का फोन आते ही, धर्मा सतर्क हो गया था ।

एक्स्ट्रा और धर्मा, राघव की निगाह, तब धर्मा पर जा टिकी थी ।

धर्मा ने बात करके फोन बंद किया और कह उठा---

"गड़बड़ है ।"

"क्या ?" एक्स्ट्रा के माथे पर बल पड़े थे ।

"सैवन इलैवन हमसे मिलना चाहता है ।" धर्मा ने गहरी सांस ली।

"क्यों ?"

"इस बारे में न तो उसने बताया, ना ही मैंने पूछा। लेकिन वो खामख्वाह तो हमें मिलेगा नहीं ।"

"हम सोच सकते हैं कि तुली के जिन्दा होने के बारे में, सैवन इलैवन को पता चल गया होगा ।" राघव कह उठा ।

"यह सम्भव नहीं ।" एक्स्ट्रा बोला--- "लेकिन सैवन इलैवन से हमारा रिश्ता सिर्फ तुली को लेकर ही है। F.I.A. जब हमें खत्म करने पर आमादा थी। तो सैवन इलैवन ने इस शर्त पर हमारी जान बचाई थी कि हम तुली को खत्म कर देंगे। और हमने अमेरिका के शहर वूस्टर जाकर तुली को खत्म कर दिया, पर हकीकत में हमने तो तुली को वहां से भगा दिया था। और उसके कपड़े पहनाकर C.I.A. एजेन्ट का चेहरा बिगाड़कर, तुली की लाश के रूप में छोड़ दिया था। हमने सैवन इलैवन से यही कहा कि तुली को खत्म कर दिया गया है। तभी C.I.A. ने भी घोषणा कर दी कि वूस्टर में तुली नामक F.I.A. एजेन्ट मारा गया। यानी कि कुल मिलाकर सैवन इलैवन हमसे क्या चाहता है ?

"मेरे ख्याल में तो वो जान गया होगा कि हमने तुली को नहीं मारा। वो जिन्दा है।" राघव ने कहा ।

"मुझे विश्वास नहीं होता ।" एक्स्ट्रा कह उठा ।

"इसके अलावा सैवन इलैवन और किस बात के लिए हमसे मिलना चाहेगा ।"

"मेरे ख्याल में हमें खोजबीन करनी चाहिए कि असल बात क्या है ?"

"इस बात की जानकारी तो F.I.A. का भीतरी आदमी ही बता सकता है। हम उसे कैसे ढूंढेंगे ।"

"तीरथ ?"

"क्या मतलब ?"

"सैवन इलैवन, तीरथ से भी मिल सकता है, अगर मामला तुली के सम्बंध में है तो ।"

"ये ठीक है। हमें तीरथ से पता करना चाहिए कि सैवन इलैवन उससे मिला क्या ?"

"मैं उसे फोन कर रहा हूं।" कहने के साथ ही राघव ने फोन निकाला और तीरथ का नम्बर मिलाने लगा ।

तीरथ का फोन बजने लगा। फिर आवाज आई---

"हैलो।" ये आवाज तीरथ की नहीं थी ।

"तीरथ को फोन दो ।" राघव ने कहा ।

"तुम कौन हो ?"

"राघव, तीरथ का दोस्त ।"

"सप्ताह पहले किसी ने तीरथ का मर्डर कर दिया ।" उधर से कहा गया ।

"क्या ?" राघव चौंका--- "तीरथ को मार दिया गया ?"

"हां ।"

"किसने मारा ?"

"पता नहीं चल सका, उसके फ्लैट पर उसकी लाश पाई गई । उसके सिर में गोलियां मारी गईं ।"

"राघव ने फोन बंद कर दिया ।

"एक्सट्रा और धर्मा की नजर उस पर थी ।

"सप्ताह पहले तीरथ को उसके फ्लैट पर मार दिया गया ।" राघव गहरी सांस लेकर बोला--- "मारने वाले का पता नहीं । मेरे ख्याल में हमें कल सैवन इलैवन के फोन आने का इंतजार करना चाहिए। सैवन इलैवन हमारे फ्लैट पर भी आ सकता है ।

"F.I.A. को हमारी इस जगह के बारे में पता है। ये जगह तुरन्त छोड़ देनी चाहिए। पता लगे कि मामला क्या है, तभी आगे कुछ सोचेंगे ।"

अगले पन्द्रह मिनट में ही R.D.X. फ्लैट लॉक करके वहां से निकल गये ।

■■■

इंडिया ।

मुम्बई ।

तुली कोलीवाड़ा इलाके के एक रेस्टोरेंट में बैठा नाश्ता कर रहा था। इस वक्त दिन के बारह बजे थे। रात एक बजे की फ्लाइट से वो सांताक्रुज एयरपोर्ट पर उतरा था। एयरपोर्ट से सीधा कोलीवाड़ा पहुंचा और वहां से एक सस्ते से होटल में ठहर गया था । सुबह दस के बाद सोया--- उठा और नहा-धोकर पास के रेस्टोरेंट में आ गया था और नाश्ता करने लगा था । कोलीवाड़ा में इसलिए आ ठहरा कि यहां किसी पहचान वाले के मिलने की संभावना नहीं थी। उसका घर यहां से दूर पड़ता था। नाश्ते के साथ वो अखबार पढ़ रहा था। जबकि उसकी सोच F.I.A. के गिर्द घूम रही थी कि F.I.A. का सिर कहां से फोड़े ?

ये तुली का 'ऑपरेशन 24 कैरेट' था ।

सच्चाई का ऑपरेशन ।

उसने F.I.A. के लिए जाने कितनी बार जान की बाजी लगाई थी । कितनी बार खुद को खतरे में डाला था । F.I.A. को वो माँ-बाप की तरह मानता था ।

परन्तु F.I.A. ने उससे धोखेबाजी की ।

F.I.A. ने उसे खत्म करना चाहा। बल्कि किया भी । परन्तु R.D.X. की मेहरबानी से जिन्दा बच गया ।

यहां तक तो तुली ने दिल पर पत्थर रखकर सह लिया था कि उसे खत्म करना F.I.A. की मजबूरी रही होगी। तभी ऐसा कदम उठाया। तब फ्लोरिडा में छिपकर गुप्त जिंदगी बिताने लगा था । परन्तु जब अपने परिवार के खात्मे के बारे में जाना तो खुद को रोकना संभव नहीं था। वो जानता था कि उसके परिवार को F.I.A. ने ही खत्म करवाया होगा। ऐसे में F.I.A. के खिलाफ खड़ा होना चाहता था। अपने परिवार की मौत का बदला लेना चाहता था ।

साथ ही अपने लापता बेटे बंटी को तलाश कर लेना चाहता था।

वो मासूम जाने इस वक्त कहां होगा ।

इस वक्त तुली यही तय करने की कोशिश कर रहा था कि कहां से अपना काम शुरू करे। बंटी को कैसे ढूंढे और F.I.A. के कौन-से हिस्से पर वार करे कि F.I.A. तिलमिला उठे ।

तुली जानता था कि F.I.A. के खिलाफ आवाज उठाना खेल नहीं। F.I.A. से कोई नहीं टकरा सकता, कोई जीत नहीं सकता। वो भी जीत नहीं सकेगा, परन्तु अपने परिवार की मौत का बदला लेने के लिए कोई कदम तो उठाना ही था ।

तभी तुली की निगाह अखबार के एक छोटे से बॉक्स पर जा टिकी ।

तुली की आंखें सिकुड़ी ।

अखबार में F.I.A. के 'ऑपरेशन टू किल' की सच्चाई शीघ्र ही बताने को कहा गया था ।

तुली अखबार में छपे उन शब्दों को घूरता रहा देर तक ।

फिर उसने अखबार की तारीख देखी ।

आज की तारीख थी वो ।।

एकाएक तुली उठ खड़ा हुआ। सौ का नोट टेबल पर रखा और अखबार थामें बाहर निकलता चला गया। बाहर आकर उसने पब्लिक बूथ तलाश किया और अखबार के अंतिम पेज पर छपे नम्बर में अखबार के ऑफिस में फोन किया। दो-तीन बार फोन करने पर रिसीवर उठाया गया ।

"हैलो ।" आवाज कानों में पड़ी ।

"मुझे उस रिपोर्टर से बात करनी है, जो 'ऑपरेशन टू किल' की सच्चाई प्रकाशित करने वाला है ।"

"इसके लिए आपको एडिटर रूम में बात करनी होगी ।

"नम्बर बताइये ।"

उधर से नम्बर बता दिया गया ।

तुली ने उस नम्बर पर फोन किया। जो कि देर तक इंगेज जाता रहा, फिर मिला ।

"कहिये--- 'नया भारत' ।" आवाज तुली के कानों में पड़ी ।

"मुझे उससे बात करनी है जो 'ऑपरेशन टू किल'  के बारे में जानकारी अखबार में प्रकाशित करने जा रहा है ।" तुली ने कहा ।

"आप कौन हैं ?"

"मैं जो भी हूं सिर्फ उसी से बात करूंगा । इस बारे में उसे कई बातें बता सकता हूं ।"

"रुकिये, मैं देखता हूं कि भसीन ऑफिस में है कि नहीं ?"

"भसीन ?"

"मिस्टर महेश भसीन रिपोर्टर है, वो ही इस मामले को हैंडिल कर रहा है ।"

उसके बाद लाइन पर खामोशी छा गई ।

तुली रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा । मिनट दो मिनट बीते । इंतजार लंबा महसूस होने लगा ।

तभी उसके कानों में नई आवाज पड़ी ।

"कौन ?" तुली बोला ।

"तुम कौन हो ?"

"मैं रिपोर्टर महेश भसीन हूं । तुम मुझसे बात करना चाहते थे ?"

"मैं उससे बात करना चाहता हूं जो अखबार में--- 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में खुलासा तौर पर लिख रहा है ।"

"वो मैं ही हूं, तुम कौन हो ?"

"तुली ।"

"क्या ?" भसीन का हैरत भरा स्वर गाना में पड़ा--- "तुली, F.I.A. के एजेन्ट तुली ।"

"हां, वो ही हूं मैं ।"

"तुम्हें तो F.I.A. ने मार दिया था ।

"कोशिश की थी, लेकिन मैं बच निकला। मैं अमेरिका में था । कल ही इंडिया लौटा हूं। मेरे यहां पहुंचने की खबर नहीं है। तुम पहले इन्सान हो, जिसने ये बात जानी ।" तुली ने गम्भीर स्वर में कहा ।

"मुझे हैरत है, अगर मैं सच में तुली से बात कर रहा हूं तो..."

"मैं तुली ही...।"

"मैं तुमसे मिलना चाहता हूं ।"

"तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में जानकारी कैसे मिली ?"

" ये मैं नही बता सकता ।"

"ठीक है, मैंने तुम्हें ये बताने के लिये फोन किया है कि आज के अखबार में 'ऑपरेशन टू किल' से वास्ता रखती खबर देकर, तुमने अपने को खतरे में डाल लिया है। बेशक अभी तक जिन्दा हो लेकिन F.I.A. तुम्हें आज की तारीख में खत्म कर देगी ।"

जवाब में भसीन की आवाज फौरन न आई ।

"तुमने सुना है मैंने क्या कहा ?" तुली ने पुनः फोन पर कहा ।

"मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम सच कह रहे हो ।" महेश भसीन की आवाज आई ।

"मेरी बात का विश्वास करो । मैं F.I.A. का हिस्सा था कभी । F.I.A. को मैं तो बेहतर ढंग से जानता हूं । मुझे हैरानी है कि अभी तक तुम जिन्दा हो ।"

"F.I.A. ऐसा क्यों करेगी ?"

"तुम्हारे पास 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी है ?"

"पूरी, किसी से मैं अभी जानकारी लेकर लौटा हूं । मेरे बैग में है और मैं रिपोर्ट तैयार करने वाला हूं ।"

"तो तुम्हें ये पता होगा कि F.I.A. ने 'ऑपरेशन टू किल' को गुप्त रखने के लिए मुझे मार देना चाहा ।"

"हां।" भसीन की आवाज में बेचैनी भर आई थी ।

"और तुम उसी बात को अखबार में प्रकाशित करने जा रहे हो, जिसे F.I.A. दबाने पर लगी है ।"

महेश भसीन की तरफ से आवाज नहीं आई ।

"तुम कभी भी मर सकते हो । यूं समझो कि F.I.A. तुम्हारे पास ही कहीं है। तुम नहीं बचोगे ।"

"तुम मुझे डरा रहे हो ?"

"मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की सच्चाई दिखा रहा हूं। तुम्हें मेरी बात का भरोसा करना चाहिये ।"

"मैं नहीं जानता तुम कौन हो और...।"

"मैं तुली।"

"ये तुम कहते हो, परन्तु मुझे कैसे भरोसा हो, मैं तुली से कभी मिला नही, उसकी आवाज भी नहीं सुनी ।"

"मैं तुम्हारे सामने आऊं तो तुम मुझे कैसे पहचानोगे ?"

"पहचान लूंगा। मेंरे पास तुम्हारी एक तस्वीर है ।"

"कहां से ली ?"

"तुम्हारे घर से । घर पर पुलिस की 'सील' लगी है, लेकिन एक खिड़की से मैं भीतर चला गया था ।"

तुली ने गहरी सांस ली । चेहरा कठोर हो गया ।

"मेरे परिवार के बारे में जानते हो ?" तुली ने गम्भीर स्वर में पूछा।

"हां । कुछ लोगों ने तुम्हारे परिवार को मार दिया ।" भसीन की आवाज तुली के कानों में पड़ रही थी ।

"किन लोगों ने ?"

"पता नहीं । मैंने उनके बारे में जानने की कोशिश की थी, परन्तु सफल नहीं हो सका । वो जाने कौन लोग थे, जो आये और तुम्हारे परिवार पर गोलियां चला कर गायब हो गये । पुलिस भी उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा सकी ।"

तुली ने कुछ नहीं कहा ।

"सुना है तुम्हारा बेटा बंटी बच गया था, परन्तु वो अचानक ही जाने कहां गायब हो गया ।"

"वो गायब नहीं हुआ, उसे गायब कर दिया गया ।" तुली गुर्रा उठा ।

"किसने किया ऐसा ?" भसीन की आवाज कानों में पड़ी ।

तुली के दांत भिंचे रहे ।

"जवाब नहीं दिया तुमने ?"

"फोन पर हमारी बहुत बात हो चुकी है । तुम्हें अपनी जान की फिक्र करनी चाहिये । तुम्हें शायद मैं ही बचा सकता हूं । F.I.A. किसी भी कीमत पर ये पसन्द नहीं करेगी कि तुम उनकी भीतरी बातें अखबार में छापो । तुम मुझसे मिलो ।"

"हां, मैं भी तुमसे मिलना चाहता हूं । अखबार के दफ्तर आ जाओ ।" उधर से भसीन ने कहा ।

"मैं वहां नहीं आ सकता । तुम्हें बाहर आना होगा ।"

"ठीक है, कहां आऊं ?"

"मिलने के लिए हमें भीड़-भाड़ वाली जगह चुननी है ।"तुली बोला--- "तुम बताओ, वो जगह कौन-सी हो ?"

भसीन की तरफ से आवाज नहीं आई ।

"वरसोवा के 'ओपन मॉल' पर मिलना ठीक रहेगा। वहां हर समय भीड़ रहती है।" तुली ने कहा ।

"ये ठीक है, कितने बजे ?" भसीन की आवाज कानों में पड़ी ।

"अभी, निकल चलो । मैं भी वहीं पहुंच रहा हूं ।"

"वहीं मिलते हैं ।"

"सावधान रहना। F.I.A. तुम्हें कहीं भी घेर सकती है ।"

"मेरे ख्याल में F.I.A. से मुझे इतना बड़ा खतरा नहीं है, जितना कि तुम बता रहे हो...।"

"इससे भी ज्यादा खतरा है। तुमने F.I.A. का नाम सुना है । उसकी हकीकत नहीं जानते ।"

"ठीक है । मैं ध्यान रखूंगा । हम 'ओपन मॉल'  वरसोवा मिलते में हैं । निकल रहा हूं मैं यहां से ।"

"अपना मोबाइल नम्बर मुझे बताओ ।"

उधर से भसीन ने अपना मोबाइल नम्बर तुली को बता दिया ।

■■■

दिल्ली ।

चीनी दूतावास ।

अठारह बरस की बेहद खूबसूरत लियू आज ही दूतावास की कार्यकर्ता के तौर पर दिल्ली पहुंची थी जबकि हकीकत में वो चीनी सीक्रेट सर्विस की बेहतरीन और खतरनाक एजेन्ट थी ।

एबेंसी में पहुंचने के बाद उसने ऊपर के कमरे को अपना ठिकाना बनाया, जहां वो दिल्ली आने पर अक्सर रहा करती थी। नहा-धोकर कपड़े बदले और मुम्बई शांगली को फोन किया।

"मैं आ पहुंची हूं शांगली ।" लियू ने कहा ।

"बहुत अच्छा किया लियू ।" उधर से शांगली ने कहा--- "तुम इस वक्त कहां हो ?"

"दिल्ली ।"

"मुम्बई आ जाओ । सीधा मेरे फ्लैट में आना--- मैं-।"

"फ्लैट पर नहीं, तुम्हारे चाइना बाजार में आऊंगी। मेरे लिये काम है न ?"

"हां । कब आ रही हो मेरे पास ?"

"कल सुबह ।" लियू ने कहा और फोन बंद कर दिया ।

■■■

रिपोर्टर महेश मशीन 'नया भारत' अखबार के दफ्तर से, कंधे पर लम्बी का बैग लटकाये बाहर निकला । साथ में दो लोग और भी थे, जिनसे वो किसी मुद्दे पर बात करता पार्किंग की तरफ बढ़ने लगा था। उसने जान बूझकर दो लोगों को पार्किंग तक किसी बहाने से साथ ले लिया था कि, शायद (तुली) फोन करने वाले का कहना सच हो और उसकी जान को खतरा हो । ऐसे में कोई उसकी जान लेने के लिये बाहर मौजूद हो तो, ये वक्त टल जाये ।

भसीन की ये सावधानी उसकी जान बचा ही गई ।

बाहर निकलने वाले गेट के पास ही राहुल खड़ा था । उसने भसीन को देखा । शायद वो कुछ करता भी, परन्तु साथ में दो आदमियों को देखकर उसने अपना इरादा कुछ देर के लिए रोक दिया । साथ ही फोन निकालकर, नम्बर मिलाया---

"कहो ।" नारंग की आवाज कानों में पड़ी ।

"रिपोर्टर भसीन बाहर आया है । साथ में दो लोग भी हैं ।"

"वो कहीं जा रहा है ?"

"शायद । तुम कहां हो ?" कहने के साथ ही राहुल उस तरफ बढ़ा, जिधर भसीन उन दोनों के साथ गया था ।

"सड़क पर, कार के पास ।"

"वो पार्किंग में गया है ।" आगे बढ़ता राहुल कहता जा रहा था--- "तुम्हारे पास कोई है ?"

"हां, कुछ दूरी पर मुझे मदनलाल और सोना कार के पास खड़े नजर आ रहे हैं ।"

"पवन सिंह और राजी खान किधर हैं ?"

"मुझे नहीं दिख रहे ।"

एकाएक राहुल ठिठका ।

उसने भसीन को पीले रंग की आल्टो में बैठते देखा । साथ के दोनों व्यक्ति अब वापस आने लगे थे ।

"भसीन, पीले रंग की आल्टो कार में यहां से चल रहा है ।"

"आने दो ।"

"मदनलाल और सोना को पीछे आने का इशारा कर देना मैं पवन सिंह को राजी खान को देखता हूं ।"

"ठीक है ।"

"कहना क्या है, पार्टी को साफ करना है ?" राहुल ने पूछा ।

"करना तो है, लेकिन उससे ये जानना है कि 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी उसे कहां से मिली ?"

"वो आ रहा है ।" कहने के साथ ही सामने से आती पीली आल्टो देखी फिर पवन सिंह का नम्बर मिलाया--- "तुम कहां हो, भसीन पीले रंग की आल्टो कार में गेट से बाहर निकलने वाला है ।"

"वो हमारी नजर में है ।"

"मैं भी आ रहा हूं । मौका मिलते ही उसे घेरना है ।" राहुल बोला और अपनी कार की तरफ बढ़ गया--- "मुझे बता देना कि तुम लोग किस दिशा में जा रहे हो ?"

उसके बाद राहुल ने अपनी कार के पास पहुंचकर सोना को फोन किया ।

तब तक पीली आल्टो बाहर निकल गई थी ।

"पीली आल्टो कार के पीछे जाना है । उसमें भसीन है ।" राहुल ने कहा ।

"हमें नारंग का इशारा मिल गया है । तुम आ रहे हो ?" सोना की आवाज उसके कानों में पड़ी ।

■■■

ओपन मॉल ।

पांच हजार गज में बनी वो विशाल इमारत थी ।

जरूरत की हर चीज वहां थी ।

बेसमेंट था, जिसके ऊपर चार मंजिले बनी हुई थीं। ऊपर नीचे जाने के लिए सीढ़ियां और लिफ्ट थीं ।

हॉकी के मैदान जैसी खुली थी ।

हर फ्लोर पर जरूरत का अलग-अलग सामान रखा हुआ था ।

वहां जरूरत से ज्यादा काफी भीड़ थी । औरतें-बच्चे आदमी-बूढ़े सब कुछ खरीदने में व्यस्त थे । लोग भीतर आ रहे थे, बाहर जा रहे थे । रेल-पेल माहौल जारी था । किसी को दूसरे को देखने की फुर्सत नहीं थी ।

तुली पहली मंजिल पर सामने की तरफ खड़ा था, जहां शीशे लगे हुए थे । वहां से वो सड़क का नजारा देख रहा था । और मॉल में प्रवेश करने वाले लोगों को भी काफी हद तक देख पा रहा था ।

उसके ख्याल से अब तक भसीन को पहुंच जाना चाहिये था ।

तुली ने भसीन के मोबाइल पर फोन किया ।

"हैलो ।" भसीन की आवाज और बाहरी शोर कानों में पड़ा ।

"तुम कहां हो ?"

"बस, पहुंच गया ।"

"मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे ?"

"मैं--- मैंने हल्की पिंक कलर की कमीज पहन रखी है । पैंतीस बरस का हूं । कद सामान्य रंग, सांवला । बहुत है ?"

"हां ।"

"मेरे पास बैग भी है । कंधे पर लटका बैग ।"

"बैग लाने की क्या जरूरत थी ?"

"उसमें 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सारी जानकारी है । अभी-अभी मैं जानकारी लेकर लौटा तो तुम्हारा फोन आ गया । बैग को इस तरह मैं ऑफिस में नहीं छोड़ना चाहता था ।" भसीन की आवाज कानों में पड़ रही थी ।

"इस वक्त तुम किधर हो ?" तुली की निगाह शीशे के पार, बाहर-हर तरफ घूम रही थी ।

"मैंने ओपन मॉल के बाहर कार पार्क कर दी है । अब बाहर निकल रहा हूं । पीली आल्टो कार है मेरी ।"

तुली की निगाह उसी पल पीली आल्टो कार पर जा टिकी थी, जो कुछ देर पहले ही सामने नजर आ रही पार्किंग की कतारों में आकर खड़ी हुई थी । तभी उसने कार का दरवाजा खोल कर किसी को बाहर निकलते देखा ।

तुली पहचान गया कि वो ही भसीन है ।

क्योंकि अपने पिंक शर्ट और कंधे पर लंबा बैग लटका रखा था। उम्र पैंतीस की ही थी । उसने हाथ में थाम रखा फोन कान पर लगा रखा था । पार्किंग वाले से पर्ची लेकर, मॉल के प्रवेश गेट की तरफ बढ़ने लगा था ।

"मैंने तुम्हें देख लिया है ।"

"ये तो अच्छा हुआ, तुम कहां हो ?" उधर से भसीन ने पूछा ।

"तुम्हारा किसी ने पीछा तो नहीं किया ?"

"पता नहीं, मैंने ध्यान नहीं दिया, तुम बात को ज्यादा बढ़ा रहे हो।"

तभी तुली की आंखें सिकुड़ी ।

होंठ भिंच गये ।

उसने नारंग को सड़क पार करते हुए मॉल की तरफ बढ़ते देख लिया था । वो जल्दी में था ।

"भसीन ।" तुली भिंचे स्वर में बोला--- "F.I.A. वाले तुम्हारे पीछे हैं ।"

"क्या कहते हो ?"  भसीन का हड़बड़ाया स्वर कानों में पड़ा ।

"मैं उन्हें पहचानता हूं । मैं उन्हें देख रहा हूं ।"

"ओह ।"

"तुम फौरन लिफ्ट पर पहुंचो । लिफ्ट से चौथी मंजिल पर जाओ और वहां से सीढ़ियां उतरना शुरू कर दो। मुझसे सम्पर्क बनाये रखो । फोन को बंद मत करना और घबराओ मत ।"

"तुमने उन्हें सच में अच्छी तरह पहचाना है ?"

"हां। मैं कभी उनके बीच ही रहा करता था । धोखा नहीं खा सकता । तुमसे जो कहा है, वो करो ।"

"मैं लिफ्ट के पास पहुंच रहा हूं । जल्दी कर रहा हूं ।"

वहां खड़ी तुली के होंठ और भी सख्ती से भिंच गये ।

अभी-अभी दो कारें उसने पार्किंग की कतार में रुकते देखी । एक कार में मदन लाल और सोना को निकलते देखा और दूसरी कार से पवन सिंह और राजी खान को ।

"वो ज्यादा लोग हैं ।" तुली फोन पर बोला ।

"कितने ?"

"पांच को मैं देख चुका हूं ।"

"हे भगवान ।"

"तुम घबराओ मत । कहां हो तुम ?"

"मैं लिफ्ट में हूं । चौथी मंजिल पर जा रहा हूं ।"

"चौथी मंजिल पर ज्वैलरी मिलती है । तुम वहां से सीढ़ियों से तीसरी मंजिल पर आ जाओ ।"

"मैं ऐसा ही करूंगा ।"

"फोन सम्पर्क मत तोड़ना ।"

"लेकिन अब  होगा क्या--- तुम कहते हो कि F.I.A. के पांच लोग मेरे पीछे मॉल में घुसे हैं ।"

"मैं सब ठीक कर दूंगा ।"

"कैसे ?"

"वो सामान्य एजेन्ट हैं, मेरी तरह उनमें कोई भी F.I.A. हत्यारा नहीं है ।"

"F.I.A. के हत्यारे को खास ट्रेनिंग मिलती है क्या ?"

"बहुत ही खास । हर कोई F.I.A. हत्यारा नहीं हो सकता । ये बेहद जिम्मेदारी वाली जगह होती है ।"

"मैं चौथी मंजिल पर पहुंच गया हूं । लिफ्ट से...बाहर भी आ गया । अब सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहा हूं ।

"तीसरी मंजिल पर पहुंचकर, चीजों को पसंद करते हुए कुछ वक़्त बिताओ ।" फोन कान से लगाये रहना ।"

"समझ गया ।"

तुली फोन को कान पर लगाये पलटा और आगे बढ़ गया ।

भीड़ बहुत थी, हर कदम पर लोगों से सट कर चलना पड़ रहा था । तुली की पैनी निगाह हर तरफ घूम रही थी । वो दूसरी मंजिल पर था। बेहद सतर्क था ।

फिर वो एक तरफ ऐसी जगह पर खड़ा हो गया, जहां से वो दूसरी मंजिल पर सीढ़ियों से आने वाले को देख सके, परन्तु वो स्वयं ऐसी ओट में था कि उसे कोई न देख सके । आस-पास में ढेरों लोग निकल रहे थे । उठता शोर सुनाई दे रहा था । फोन वाला हाथ कान पर था । तभी फोन द्वारा भसीन की आवाज कानों में पड़ी ।

"मैं तीसरी मंजिल पर हूं और यहां मौजूद कपड़ों को देख रहा हूं।"

"कोई खतरा आये तो मुझे बताना ।"

"खतरा आ सकता है ?"

"बहुत ज्यादा ।"

"ये कैसी मुसीबत में फंस गया ।

"'ऑपरेशन टू किल' में हाथ न डालते तो सब ठीक रहता ।"

"F.I.A. के एजेन्ट मॉल में हैं ?"

"हां और तुम्हें ढूंढ रहे हैं ।" तुली की निगाह सीढ़ियों पर थी जहां से कई लोग आ-जा रहे थे ।

तभी उसे राहुल दिखा ।

तुली के होंठ भिंच गये ।

"मैं तुमसे कुछ देर बाद बात करता हूं । फोन बंद मत करना ।" कहकर तुली ने फोन को कमीज की ऊपरी जेब में डाला और सावधानी से राहुल की तरफ बढ़ने लगा । राहुल की निगाह भसीन को तलाशने में लगी थी ।

तुम ठीक उसके पीछे पहुंचा और तर्जनी उंगली उसकी पीठ पर लगा दी ।

राहुल ने पलटना चाहा की तुली ने उसका कंधा दबाकर उसे पलटने नहीं दिया ।

"वैसे ही रहो ।" तुली गुर्राया ।

इस आवाज के सुनते ही राहुल के चेहरे पर जैसे भूकंप उभरा ।

"तुम...तुली ।"

"हां मैं ।" उसके बराबर में आ गया तुली । दायें हाथ की उंगली अभी उसकी पीठ पर लगी थी ।

राहुल ने गर्दन घुमाकर उसे देखा ।

दोनों की नजरें मिलीं।

तुली को करीब पाकर राहुल बेहद बेचैन हो उठा था ।

"अपनी रिवॉल्वर मुझे दो राहुल ।"

"ये तुम क्या कह रहे हो ? मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं ।"

"मैं भी तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं ।" तुली शांत स्वर में बोला--- "रिवॉल्वर मुझे दो ।"

राहुल ने रिवॉल्वर निकालकर तुली को दी ।

तुली ने पीछे वाला हाथ आगे किया और राहुल से रिवॉल्वर लेकर जेब में डालता कह उठा ।

"मेरे पास रिवॉल्वर नहीं थी और मुझे इसकी जरूरत थी ।"

राहुल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर तुली को देखा ।

"मुझे जिन्दा सामने पाकर तुम्हें हैरानी नहीं हुई ?" तुली कठोर स्वर में बोला ।

"हम जानते हैं तुम जिन्दा हो ।"

"कैसे ?"

"तुमने क्रोशिया में मोहन सूरी को मारा, वहां कैमरा लगा था ।" राहुल जल्दी से बोला ।

"फिर तो बातें भी रिकॉर्ड हो गई होंगी ?"

"नहीं । वो C.C.T.V. कैमरा था । उसमें बातें रिकॉर्ड नहीं होती, होती है तो, ठीक से सुना नहीं जा सकता ।"

"भसीन के पीछे हो, उसे मारने के लिए ?"

"ओह, तो भसीन यहां तुमसे मिलने आया है ।"

तुली ने जेब से फोन निकाला और कान से लगा लिया ।

"तुम उसकी जान लेने वाले हो ?" तुली बोला ।

तभी फोन पर उस तरफ से भसीन की आवाज आई ।

"ये तुम क्या कह रहे हो ?"

"तुमसे नहीं कह रहा, लाइन पर ही रहो तुम ।" तुली फोन में बोला ।

"अच्छा ।"

तुली ने फोन वापस जेब में रख लिया ।

"तुमने अभी भसीन से बात की ?" राहुल बोला ।

"भसीन की जान नहीं ले सकोगे तुम लोग क्योंकि मैं उसे बचा रहा हूं ।"

"तुमने भसीन को 'ऑपरेशन टू किल'  के बारे में बताया ?" राहुल कह उठा ।

"नहीं । मैंने C.I.A. को नहीं बताया तो भसीन को क्यों बताऊंगा ।"

"तो भसीन को कैसे पता...।"

"कैसे भी पता चला हो, ये बात छोड़ो ।" तुली कठोर स्वर में कह उठा--- "मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि तुम सब कुत्ते हो।"

"क्या ?" राहुल सकपकाया ।

"F.I.A. ने मुझे खत्म करने की कोशिश करके बहुत बुरा किया।"

"तुम-तुम C.I.A. से मिल गये...।"

"बाद में मिला मैं C.I.A. से । नारंग ने पहले ही मुझे खत्म करने की चेष्टा की । सब पता है तुम्हें । F.I.A. ने राघव, मन्नू, तीरथ के साथ मुझे भी खत्म करने के लिए गोलियां चलाईं कि कहीं मैं C.I.A. के हाथों में पड़कर 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में मुंह न खोल दूं ।"

राहुल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"मैं वफादार था F.I.A. का ।"

"मैं मानता हूं कि तुम्हारे साथ गलत हुआ ।"

"मुझे तुम्हारी मुहर की जरूरत नहीं है ।" तुली ने कड़वे स्वर में कहा--- "मैं चाहूं तो तुम्हें अभी शूट कर...।"

"क्यों ?"

"क्योंकि F.I.A. ने मेरे परिवार को गोलियों से भून दिया और...।"

"ये गलत है ।" राहुल के होंठों से निकला--- "हम खुद परेशान हैं कि किसने ये सब किया ?"

"तुम्हारा झूठ नहीं चलेगा ।"

"मैं सच...।"

"बकवास मत करो । मेरे परिवार को F.I.A. ने ही मारा है । वरना मेरी किसी से क्या दुश्मनी थी? और मैं तब तक F.I.A. पर वार करता रहूंगा। जब तक कि F.I.A. मुझे मार नहीं देती।"

"तुम...।"

"इस वक्त तुम इसलिए जिन्दा छोड़े जा रहे हो कि ये भीड़भाड़ वाली जगह है, यहां F.I.A. के और लोग भी हैं । गोलियां चली तो बे-गुनाह भी मरेंगे। लेकिन मैं तुम सब को चुन-चुनकर कुत्तों की मौत मारूंगा ।" तुली की आवाज सुलग रही थी--- "तुम लोगों ने मेरे साथ ज्यादती की, मैं सहन कर गया, परन्तु मेरे परिवार को खत्म करके, बहुत बड़ी गलती कर दी F.I.A. ने ।"

"यकीन करो, F.I.A. ने तुम्हारे परिवार को नहीं...।"

"दीवान और कपूर जो करते हैं वो तुम्हें पता रहता है ?" तुली ने दांत भींचकर कहा ।

"नहीं ।"

"दीवान-कपूर ने जब नारंग द्वारा मुझे खत्म कराना चाहा तो तुम्हें पता था ?" (ये जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित R.D.X. सीरीज का उपन्यास 'ऑपरेशन टू किल' ) ।

"नहीं ।"

"फिर तुम कैसे कह सकते हो कि F.I.A. ने मेरे परिवार को नहीं मारा ?"

"मैं ठीक कहता...।"

उसी पल दांत भींचकर तुली ने अपना दायां हाथ पूरे वेग से घुमाया ।

जो कि राहुल की कनपटी पर पड़ा ।

आस-पास के जाते लोग ये सब देखकर घबरा कर चीख पड़े ।

राहुल की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे और बेहोश होकर वो नीचे गिर गया ।

इस वार के पश्चात तुली रुका नहीं और लिफ्ट की तरफ बढ़ता भीड़ में खो गया। वहां भीड़ ही इतनी थी कि जो एक बार नजरों से ओझल हो गया, वो दोबारा मिल पाना कठिन था ।

दो मिनट के इंतजार के बाद लिफ्ट मिली। और लोग भी लिफ्ट में थे । तुली ने जेब से फोन निकालकर कान से लगाया तो लाइन खुली होने का आभास हुआ ।

"तुम ठीक हो ?" तुली ने पूछा ।

"हां। लेकिन ये सब कब तक चलेगा ?"

"मैं तुम्हें बताने की चेष्टा कर रहा हूं । तुम लिफ्ट के पास पहुंचो।"

"ठीक है, पहुंचता हूं, वहां मैं क्या करूंगा ?"

"वहां तुम्हें मैं मिलूंगा ।"

"ओह ।"

उसी पल लिफ्ट तीसरी मंजिल पर पहुंची । दरवाजे खुले ।

तुली बाहर निकला ।

उसकी निगाह भसीन पर पड़ी जो कंधे पर बैग लटकाये इधर आता दिखा । फोन वाला हाथ कान पर था ।

भसीन ने भी उसे देखा, परन्तु जल्दबाजी में पहचाना नहीं ।

भसीन पास में निकला तो तुली ने उसकी बांहे थाम लीं ।

वो ठिठका । तुली को देखा ।

"मैं हूं ।" तुली बोला ।

भसीन ने आवाज पहचान ली । चैन की सांस ली ।

"उस तरफ चलो । लटके कपड़ों के पीछे ।"

दोनों वहां पहुंचे । इधर लोग कम थे ।

"ये सब क्या हो रहा है ?" भसीन बेचैनी भरे स्वर में कह उठा ।

"बेवकूफी वाले सवाल मत करो । मैं तुम्हें बचा रहा हूं । F.I.A. से । वो लोग मॉल में तुम्हें तलाश कर रहे हैं । एक को मैंने बेहोश किया है । बाकी सब भी पास ही कहीं होंगे । तुमने मुझे पहचान लिया है ना ?"

"हां । मेरे पास तुम्हारी तस्वीर है । तुम तुली हो, 'ऑपरेशन टू किल' के इंचार्ज थे तुम F.I.A. की तरफ से ।"

"और अब तुम 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सब कुछ जानते हो ?"

"हां ।" भसीन ने सिर हिलाया ।

"किसने बताया तुम्हें ये सब ?"

"मेरे खबरी ने ।"

"उसका नाम क्या है ? पहेलियां मत डालो । सब कुछ मुझे बताओ ।" तुली सख्त स्वर में बोला ।

"तुम्हें क्यों बताऊं कि किसने मुझे बताया ?"

"क्योंकि मैं इस वक्त तुम्हें F.I.A. से बचाने पर लगा हूं । मैं पीछे हट गया तो दस मिनट में ही मॉल के किसी कोने में तुम्हारी लाश पड़ी होगी और अखबार में कुछ भी छप नहीं सकेगा ।" तुली ने कठोर स्वर में कहा ।

"अब तुम बचा लोगे मुझे, परन्तु बाद में मेरा क्या होगा ?"

"तुम्हें बचाने का मैं ठेका नहीं ले सकता । इस समय बचा सकता हूं । उसके बाद तुम अंडर ग्राउंड हो जाना और...।"

"अंडर ग्राउंड हो जाऊं--- मेरे तो कितने काम पड़े हैं करने को ।"

"तुम कहीं छुप जाओगे या मर जाओगे तो उससे दुनिया के काम रुकने वाले नहीं । सब कुछ सामान्य ढंग से ही चलता रहेगा । मैंने तुम्हें समझा दिया है कि तुम कैसे हालातों में फंसे हुए हो, अब मेरी बात का जवाब दो ।"

भसीन ने होंठ भींच लिए ।

"तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी किसने दी ?"

"जानकर तुम क्या करोगे ?"

"मैं नहीं जानता । F.I.A. से मेरा कोई वास्ता-नाता नहीं । वो मुझे मारने के लिये मेरे पीछे हैं ।"

"जैनी ने बताया ।"

"जैनी ।" तुली ने गहरी सांस ली--- "उसे तो मैं भूल ही गया था, वो F.I.A. के कब्जे में थी ।" तुली ने कहा ।

"F.I.A. ने मुंह बंद रखने की वार्निंग देकर छोड़ दिया था ।"

"जैनी ने ये बात तुम्हें क्यों बता दी ?"

"उसने मुझे 'ऑपरेशन टू किल" की हकीकत बेची है । पूरे तीन लाख रुपए लिये हैं ।"

"सिर्फ तीन लाख ?"

"ये पैसे मैंने 'नया भारत' अखबार से लेकर उसे दिये हैं । आज ही 'डील' हुई है मेरे और जैनी के बीच । सुबह दस बजे उससे मिला । उसने सब कुछ कागजों पर लिख रखा है ।" भसीन ने कहते हुए अपना बैग थपथपाया--- "फिर भी मैंने पूछताछ में उसके मुंह से भी सब कुछ जान लिया और तीन लाख उसे दे आया ।"

"बहुत सस्ते में खबर दे दी ।"

"उसकी हालत बुरी लग रही थी । उसे पैसे चाहिए थे ।" भसीन ने कहा ।

"उसने C.I.A. को ये जानकारी बेची होती तो करोड़ों के साथ उसे सुरक्षा भी मिलती ।"

"C.I.A. को तो तुमने बता दिया होगा ।"

"मैंने कुछ नहीं बताया ।" तुली ने इंकार में सिर हिलाया ।

"मुझे तो जैनी ने यही बताया कि तुमने C.I.A. को सब कुछ बता दिया है ।"

"जैनी को ये बात F.I.A. के लोगों ने तब बताई होगी, जब वो कैद में थी उनकी ।"

भसीन ने सहमति से सिर हिलाया ।

"जैनी कहां है ?"

"तुम क्या करोगे उसके बारे में जानकार ?"

"यूं ही पूछ रहा हूं ,बताओ ।"

"जैनी खार, 3rd रोड के 40 नम्बर मकान में बरसाती पर किराये में रह रही है ?"

"अब तुम मेरी सलाह ले लो ।"

"क्या ?"

"जिन्दा रहना चाहते हो तो 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में अखबार में मत छापो तो और कहीं छिप जाओ ।"

"क्या कहते हो । अखबार ने इस खबर को पाने के लिये तीन लाख खर्चा है और...।"

"कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी जान भी, इस खर्चे में शामिल हो जाये ।" तुली तीखे स्वर में बोला--- "अभी तो यहां से तुम्हारा बाहर निकलना भी आसान नहीं है । F.I.A. वाले तुम्हें देख लेंगे।"

"लेकिन वो मेरे पीछे कहां से लगे ? मैं...।"

"तुम्हारे अखबार के दफ्तर से ही लगे । तुम्हारे इंतजार में वो बाहर होंगे ।"

भसीन परेशान दिखने लगा ।

"मेरे आखिरी सवाल का जवाब दे दो ।"

"मुझे अपनी जान की फिक्र हो रही है और तुम्हें अपने सवालों की पड़ी है ।"

"मेरे परिवार के हत्यारों के बारे में क्या जानते हो ?"

"कुछ भी नहीं । मैंने पता लगाने की चेष्टा की थी, परन्तु कोई सफलता नहीं मिली ।

"किसी पर शक हुआ हो ?"

"कुछ भी नहीं । काम करने वालों ने बहुत सतर्कता और फुर्ती से काम किया था। उन्हें ठीक से कोई देख भी नहीं पाया ।"

"वो लोग सतर्कता और फुर्ती से काम करते हैं ।" तुली के होंठों से गुर्राहट निकली ।

"कौन लोग ? किसकी बात कर रहे हो तुम ?"

"मेरे बेटे बंटी के बारे में बताओ ।"

"बंटी-हां, उसे वहां जिन्दा देखा गया था । वो लाशों के बीच मौजूद था। जब गोलियां चलाई गई तुम्हारे परिवार पर तो बंटी उस वक्त पड़ोस में खेल रहा था । इसलिए बच गया, परन्तु पुलिस के आने तक, वो जाने कहां गायब हो गया ?"

"गायब हो गया या कर दिया गया ?" तुली ने दांत भींचे ।

"पुलिस दो बातों को सामने रखकर चल रही है । या तो बंटी लाशों को देखकर घबरा गया और जाने कहां भाग गया हो या फिर किसी ने उसका अपहरण कर लिया । दो में से एक बात तो है ही ।"

"उसका अपहरण किया गया है ।" तुली का चेहरा धधक रहा था।

"यकीन के साथ कैसे कह सकते हो ?"

"ये ही किया गया होगा, ताकि जब मैं सामने आऊं तो, बंटी के दम पर, मुझे कमजोर किया जा सके ।"

भसीन, तुली को देखने लगा ।

"तुम ये बताओ कि किसके बारे में कह रहे थे कि वो सतर्कता और फुर्ती से ही काम करते हैं । तुम्हें किस कर शक...?"

"अपनी जान की फिक्र करो । तुम खतरे में हो । यहां से निकलो।"

"कहां जाऊं? मैं तो F.I.A. वालों को पहचानता भी नहीं, जो...।"

"मैं पहचानता हूं । तुम फोन पर मुझसे बात करते रहो । मैं तुम्हें यहां से निकलने का रास्ता बताऊंगा। यहां से निकल कर कहीं छिप जाना और किसी को पता न चले कि तुम कहां हो । तभी F.I.A.से बच सकते हो ।"

"मेरी नौकरी का क्या होगा ।"

"तुम्हें अपनी जान की फिक्र करनी चाहिये ।" कहते तुली की निगाह घूमी ।

इसी पर तुली के होंठ भिंच गये ।

पच्चीस कदम की दूरी पर उसे पवन सिंह और राजी खान दिखा। जो कि लटके कपड़ों के पास खड़े नजरें घुमा रहे थे । वो अभी यहां पहुंचे थे । कुछ पल पहले तुली ने वहां देखा था, तो तब वहां कोई नहीं था ।

तुली फुर्ती से नीचे बैठता बोला---

"बैठ जाओ ।"

भसीन हड़बड़ाकर नीचे बैठ गया ।

आस-पास कपड़े मौजूद थे । उन्हें देख पाना संभव नहीं था ।

"क्या हुआ ?"

"दो एजेन्ट यहां आ पहुंचे है ।"

"ओह ।" भसीन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"मेरी बात सुनो । उन्हें मैं संभालता हूं ।" तुली कठोर स्वर में कह रहा था--- "तुम लिफ्ट में चले जाओ और लिफ्ट में ही रहना । लिफ्ट ऊपर-नीचे जाती रहेगी, अंदर-बाहर होते रहे, परन्तु तुम बाहर नहीं निकलोगे ।"

"कब तक ?"

"जब तक मैं न कहूं । फोन पर हम बात करते रहेंगे ।"

"ये सब कब तक चलेगा ?"

"मेरे ख्याल में तो चलता ही रहेगा । जब तक जिन्दा हो तुम ।" तुली घुटे स्वर में कह उठा ।

भसीन ने आहत भाव से उसे देखा ।

"मैं इस मामले से बचना चाहता हूं ।"

"इस बारे में तुम्हें देने को मेरे पास कोई सलाह नहीं है । तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल' के मामले में हाथ नही डालना चाहिये था ।"

"मुझे क्या पता था कि F.I.A. वाले मेरे पीछे पड़ जायेंगे ।"

"F.I.A. ने 'ऑपरेशन टू किल' को गुप्त रखने के लिये, मुझे भी नहीं छोड़ा । और जो भी किया, वो तुमने जैनी से जान लिया होगा । ऐसे में अब एक तो तुम्हें पता चल जाना चाहिये कि 'ऑपरेशन टू किल' को दबाने के लिए F.I.A. कुछ भी कर सकती है ।"

"तुम मुझे F.I.A. का पता दो । मैं उनसे बात करूंगा ।"

"बेवकूफी वाली बात मत करो । मैं तुम्हें F.I.A.का पता नहीं दूंगा और अपना भला चाहते तो F.I.A. से दूर रहो और अपनी जान बचाओ । उठो तुमने इस तरह लिफ्ट में प्रवेश करना है कि F.I.A. के एजेन्ट तुम्हें न देख सकें ।"

"मैं उन्हें पहचानता नही  ।" भसीन सूखे स्वर में बोला ।

"तो इस तरह लिफ्ट के पास पहुंचो कि तुम्हें कम से कम लोग देख सकें ।" कहने के साथ ही तुली उठा और एक तरफ बढ़ता चला गया ।

तुली की सतर्क निगाह हर तरफ घूम रही थी ।

पवन सिंह और राजी खान उसे कुछ दूरी पर दिखे ।

तभी तुली का फोन बजा ।

"हैलो ।" तुली फोन को कान से लगाकर बोला । नजरें राजी खान और पवन सिंह पर थीं ।

"मैंने फोन खोल दिया है और लिफ्ट की तरफ जा रहा हूं ।"

"ठीक है ।" तुली ने बात करके फोन कमीज की ऊपर वाली जेब में डाला और राजी खान-पवन सिंह की तरफ बढ़ने लगा ।

तुली का सफर चेहरा चट्टान की तरह कठोर नजर आ रहा था ।

"वो उन दोनों से पांच कदम दूर था कि उन्होंने तुली को देखा ।

राजी खान और पवन सिंह के चेहरों पर हैरानी के भाव आ ठहरे उसे देखते ही ।

तुली उनसे दो कदम पहले ही रुक गया था ।

वहां भीड़ थी । जो कपड़ो को पसंद करने में लगे हुए थे ।

"मेरे परिवार को गोलियों से भूनने में तुम लोग भी शामिल थे ?" तुली भिंचे स्वर में कह उठा ।

"क्या कह रहे हो तुली ?" पवन सिंह के होंठों से निकला ।

"गलत क्या कहा ?" तुली का लहजा खतरनाक हो गया ।

"गलत कहा है ।" राजी खान उसे घूरता बोला--- "F.I.A. का तुम्हारे परिवार की मौत से कोई रिश्ता नहीं ।"

"बकवास मत करो तुम...।"

"F.I.A. तुम्हारे परिवार को भला क्यों...?"

"F.I.A. कुछ भी कर सकती है, जैसे कि F.I.A. ने मुझे मार दिया था ।"

"तुम किस्मत वाले निकले तुली ।" राजी खान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "F.I.A. के मारने के बाद भी तुम जिन्दा हो ।

तुली दांत भींचे दोनों को देखता रहा ।

"कैसे बच गये तुम ?"

"मैं F.I.A. को नहीं छोडूंगा--- तुम लोगों ने मेरे परिवार को...।"

"पागल हो गये हो तुम जो F.I.A.को खत्म करने को कह रहे हो। जबकि तुम जानते हो F.I.A. क्या है ?"

तभी पवन सिंह ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

तुली की खतरनाक निगाह पवन सिंह पर जा टिकी ।

"दीवान या-कपूर को फोन कर रहे हो ?" तुली के होंठों से गुर्राहट निकली ।

"हां ।"  पवन सिंह फोन कान से लगाते बोला--- "तुम्हारे बारे में हमारे पास स्पष्ट आर्डर नहीं है कि तुम्हारा क्या करना है ?"

तुली की आंखों में वहशी भाव उभरे ।

"लो, मेरे बारे में ऑर्डर लो ।" तुली की आवाज में मौत के भाव कांपे ।

राजी खान सतर्क-सा, तुली को देखने लगा था ।

"तुम लोगों को मालूम होगा कि F.I.A. मुझे क्यों मारना चाहती है ?" तुली ने कठोर स्वर में कहा ।

"हां-पता है ।" राजी खान कह उठा ।

"क्यों ?"

राजी खान, तुली को देखता रहा ।

"क्योंकि आठ साल पहले मैंने 'ऑपरेशन टू किल'  सफलता से पूरा किया था । उसी का ईनाम F.I.A. मुझे दे रही है ।" तुली ने एक-एक शब्द चबाकर खतरनाक लहजे में कहा--- "और मेरे परिवार को भी खत्म कर...।"

"ये काम F.I.A. ने नहीं किया ।" राजी खान कह उठा ।

"तुम F.I.A. के सारे कामों से वाकिफ नहीं हो । तुम्हें वही दिखेगा जो F.I.A. दिखायेगी ।"

पवन सिंह की दीवान से बात हो गई ।

"कहो।" दीवान की आवाज पवन सिंह के कानों में पड़ी---

"वो रिपोर्टर भसीन क्या कहता है कि किसने उसे...।"

"अभी वो हाथ नही लगा । वो एक मॉल में है और उसे ढूंढा जा रहा है ।"

"बहुत स्लो काम कर...।"

"इस वक्त हमारे सामने तुली खड़ा है ।" कहते हुए पवन सिंह ने तुली को देखा ।

तुली की सुलगती निगाह पवन सिंह पर थी ।

राजी खान तुली के प्रति पूरी तरह से सतर्क खड़ा था ।

दीवान के गहरी सांस लेने की आवाज पवन सिंह के कानों में पड़ी ।

"तुली...तो वो इंडिया पहुंच गया ।" दीवान का अचकचाया स्वर पवन सिंह को सुनाई दिया ।

"मैं कह रहा हूं कि वो मेरे सामने खड़ा है ।" पवन सिंह पुनः बोला--- "मेरे साथ राजी खान है । क्या कहना है तुली का ?"

"वो C.I.A. का हाथ थाम चुका है । कोई रहम नहीं । खत्म कर दो उसे ।" दीवान की कठोर आवाज कानों में पड़ी ।

तभी पवन ने उधर से कपूर को कहते सुना---

"ये गलत बात है दीवान । तुली ने C.I.A. को कुछ नहीं बताया है । बताया होता तो इस वक्त वो इंडिया में न होता, C.I.A. के पास होता ।"

"तुमने मेरी बात सुनी पवन सिंह ?" दीवान की आवाज कानों में पड़ी ।

"हां ।" कहने के साथ ही पवन सिंह फोन बंदकर कह उठा--- "तुली को खत्म करने को कहा गया है ।"

"दीवान ने ये भी कहा होगा कि उसके परिवार की तरह ही तुली को खत्म करना कि वो दोबारा वो जिन्दा न हो ।" तुली गुर्राया ।

"तुम्हारे परिवार को F.I.A. ने नहीं मारा ।

"तुम सब कुत्ते हो।" तुली का चेहरा धधक उठा था ।

राजी खान और पवन सिंह की नजरें मिलीं ।

तुली ने उसी पल रिवॉल्वर निकाल ली ।

आस-पास के निकलते लोगों ने ये सब देखा तो दूर खिसकने लगे ।

"तुम लोग मुझे नही मार सकते ।" तुली दांत किटकिटा उठा--- "पहले मैं खुद को बचाता भाग रहा था, लेकिन अब मैं पलटकर वार करने की स्थिति में हूं । अब तुली पर वार करना आसान नही ।"

"तुम हमें मारोगे । राजी खान अजीब से स्वर में बोला ।

"F.I.A. मुझे मार सकती है तो मैं तुम्हें क्यों नहीं मार सकता ।"

तभी राजी खान ने उस पर झपटना चाहा ।

"गलती मत करना ।" तुली गुर्रा उठा ।

राजी खान ठिठका ।

"मेरे और तुम्हारे काम में फर्क रहा है ।" तुली वहशी स्वर में बोला--- "तुम लोग F.I.A. के एजेन्ट हो, जबकि मैं एजेन्ट होने के साथ-साथ F.I.A. का स्पेशल हत्यारा भी रहा हूं । तुम लोग मेरा मुकाबला नहीं कर सकते । मुझे पूरा हक है कि तुम दोनों को मार दूं। क्योंकि दीवान तुम्हें ऑर्डर दे चुका है मुझे मारने के। लेकिन पुराने रिश्ते को ध्यान में रखते हुए इस बार तुम्हें छोड़ रहा हूं जिन्दा ।"

इसके साथ ही तुली ने फुर्ती से दो बार ट्रेगर दबाया ।

कानों को फाड़ देने वाले दो धमाके वहां गूंजे ।

पवन सिंह और राजी खान की टांगों में गोलियां लगीं ।

वहां मौजूद लोगों की चीखें गूंजने लगीं, भय के कारण ।

तुली रिवॉल्वर जेब में रखते हुए तेजी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया । चंद पलों में ही भीड़ में गुम हो गया ।

■■■

"दीवान तुम गलती पर गलती करते जा रहे हो ।" कपूर गुस्से से कह उठा--- "तुली को तुम बे-वजह मारने पर लगे हो ।"

"तो क्या करूं ?" दीवान शांत स्वर में बोला ।

"उस पर से अपना आदमी हटा लो ।"

"ये नहीं हो सकता ।"

"क्यों ?"

"उसने C.I.A. का हाथ थाम लिया...।"

"तुम्हारी वजह से। क्योंकि तुम्हारे आदेश पर F.I.A. के एजेन्ट उसकी जान लेने की कोशिश कर रहे थे । लेकिन मैंने तुम्हें तब भी कहा था कि यह बहुत गलत हो रहा है, तुली हमारा एजेन्ट है, परन्तु तुमने मेरी बात की परवाह नहीं की ।"

"सैवन इलैवन ने राघव को जिन्दा छोड़ दिया । तीरथ को जिन्दा छोड़ दिया, जबकि 'ऑपरेशन टू किल' में वो दोनों थे तो तुली को क्यों नहीं छोड़ा जा सकता । उसने तो F.I.A. में अपना जीवन लगा दिया था ।"

"इन बातों का वक्त पीछे छूट चुका है ।" दीवान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अब की सोचो ।"

"अब...।"

"तुली C.I.A. के सामने मुंह खोल चुका है ।"

"ये तुम कैसे कह सकते हो ?"

"माईक उसे अमेरिका ले गया था। माईक ने उसे C.I.A. के एजेन्टों के घेरे में वूस्टर में रखा, जहां...।"

"इससे ये कहां साबित होता है कि तुली ने C.I.A. को 'ऑपरेशन टू किल' का सच बता दिया होगा ।"

"वो C.I.A. के पास रहा । तुली ने अवश्य मुंह खोल दिया होगा।"

"C.I.A. की तरफ से अमेरिकी सरकार की तरफ से अभी तक हमारे देश की सरकार के पास इस तरह का कोई बयान नहीं आया कि हमने आठ साल पहले अमेरिका की विदेश मंत्री की क्रोशिया में हत्या की थी । जबकि इन सब बातों को दो महीने बीत चुके हैं । तुली ने अगर C.I.A. के सामने मुंह खोला है तो अभी तक ये सब हो जाना चाहिये था ।"

दीवान होंठ भींचे, कपूर को देखता रहा ।

"तुमने अपनी बहुत कर ली, अब मेरी सुनो ।"

"क्या कहना चाहते हो ?"

"हम तुली से बात करेंगे । उसे वापस उसकी जगह देंगे । वो हमारा बेहतरीन एजेन्ट था ।"

"ये संभव नहीं ।"

"क्यों नहीं संभव ?" कपूर गुस्से से बोला--- "हमने उसके साथ ज्यादती की है । वो ठीक था अपनी जगह ।"

"तुली C.I.A. के साथ रह चुका है, बेशक उसने कुछ न बताया हो । क्या पता बता दिया हो उसका इस तरह वापस लौटना C.I.A. की ही कोई चाल है । तुम ही बताओ, हम तुली पर भरोसा कर सकते हैं ?"

"ठीक है उसे तो छोड़ सकते हैं ।"

"वो जब तक जिन्दा रहेगा, तब तक C.I.A. को F.I.A. के बारे में कुछ न कुछ बताता रहेगा । क्या पता तुली ने C.I.A. को हमारे इस ठिकाने के बारे में बता दिया हो । बात ये नहीं है कि F.I.A. ने उसके साथ गलत किया या ठीक किया । तुली ठीक है या गलत । बात ये है कि अब किसी भी स्थिति में तुली को जिन्दा छोड़ना गलती होगी । आज की तारीख में वो C.I.A. का बना एजेन्ट भी हो सकता है । अब हम तुली पर किसी भी हालत में भरोसा नहीं कर सकते ।"

कपूर होंठ भींचे दीवान को देखने लगा ।

दीवान सिर हिलाता गम्भीरता से कह उठा---

"मुझे भी तुली से प्यार है । वो F.I.A. का पुराना एजेन्ट रहा है । लेकिन हालातों का क्या करें, जो हमारे सामने...।"

तभी फोन बजा ।

दीवान ने अपने शब्द अधूरे छोड़े और फोन उठाकर बात की ।

दूसरी तरफ नारंग था ।

"तुली यहां 'ओपन मॉल' में है ।" नारंग का तेज स्वर कानों में पड़ा--- "उसने राजी खान और पवन सिंह की टांग पर गोली मार दी है ।"

"पवन सिंह ने मुझे फोन करके बताया था कि तुली उसके पास है । तुली को बचना नहीं चाहिये । उसे खत्म कर दो ।"

"पक्का ?"

"क्या मतलब ?"

"इतना कुछ होने के बाद भी तुली ने पवन और राजी खान के सिर में गोली नहीं मारी। उन्हें घायल करके छोड़...।"

"तुली को खत्म कर दो ।" दीवान ने कठोर स्वर में कहा ।

"ठीक है ।"

दीवान ने रिसीवर रखा ।

कपूर मुस्कुरा पड़ा । अजीब-सी मुस्कान ।

"वो तुली है दीवान ।" कपूर बोला- F.I.A. का बेहतरीन हत्यारा। उस पर काबू पाना आसान नहीं ।"

"तुम इस बात पर खुश हो रहे हो ।"

"नहीं, उसकी खासियत बता रहा हूं ।"

■■■

"मैं कब तक इस तरह लिफ्ट में ऊपर-नीचे होता रहूंगा ।" भसीन की आवाज तुली के कानों में पड़ रही थी--- "अब तो कई लोग भी मुझे पहचानने लगे हैं कि मैंने लिफ्ट को घर बना लिया है । बाहर ही नहीं निकल रहा ।

"तुम्हें अपनी जान की फिक्र होनी चाहिये ।"

"क्यों मुझे परेशान कर रहे हो ?"

"इस वक्त तुम कहां हो ?" तुली फोन कान से लगाये पहली मंजिल पर लटके कपड़ो और लोगों के बीच टहल रहा था ।

"पता नहीं, मैं कहां हूं । कभी लिफ्ट बेसमेंट में पहुंचती है तो कभी चौथी मंजिल पर-मैं...।"

"मैं तुम्हें मॉल से सुरक्षित निकालने का इंतजाम करता हूं ।"

"तो अब तक तुम क्या कर रहे थे ?" भसीन की आवाज कानों में पड़ी ।

"तुम्हारा ही काम कर रहा था । सुनो F.I.A. के एजेन्ट तुम्हारे कपड़ों से तुम्हें पहचान सकते हैं । इतनी भीड़ में चेहरे को पहचान पाना आसान नहीं । जैन्ट्स के कपड़े पहली मंजिल पर मिलते हैं । तुम पहली मंजिल पर जाओ और जिस रंग के कपड़े तुमने पहने हैं, उससे ठीक जुदा रंग के नये कपड़े खरीदो और पहनकर मुझसे बात करो । पैसे हैं तुम्हारे पास ?"

"हैं।"

"तो जल्दी से वही करो जो मैंने कहा है । पहली मंजिल पर जाओ और कपड़े लो । डरना बिल्कुल मत । मैं तुम्हारे पास ही रहूंगा ।"

"तुम कहां हो ?"

"पहली मंजिल पर ही, परन्तु मुझे तलाशने में अपना वक्त न गंवा देना ।" कहते हुए तुली लिफ्ट की तरफ बढ़ गया ।

"शुक्र है कि मैं लिफ्ट से बाहर निकलूंगा । लिफ्ट पहली मंजिल पर पहुंच रही है ।"

"आते रहो ।" तुली ने कहा और लिफ्ट के सामने दीवार से सटकर खड़ा हो गया ।

तभी लिफ्ट रुकी । दरवाजा खुला ।

लोग बाहर निकले । उसने भसीन को भी बाहर निकलते देखा ।

तुली ने भसीन को अपनी निगाहों में ले लिया । हर तरफ भी देख रहा था ।

भसीन ट्राई रुम में कपड़े पहन रहा था, जब तुली ने सोना को देखा । सोना धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई हर तरफ नजरें घुमा रही थी । तुली फौरन एक ओट में हो गया कि सोना उसे न देख सके।

तुली की निगाह सोना पर ही थी ।

कभी वो नजर आती तो कभी लोगों और कपड़ों के बीच लुप्त हो जाती ।

मॉल में भीड़ की वजह से वो अभी तक बचे हुए थे ।

"क्या कर रहे हो ?" तुली फोन पर बोला ।

"नये कपड़े पहन लिए हैं । पुराने बैग में ठूंस लिए ।" भसीन की आवाज आई--- "बाहर आने वाला हूं ।"

"जब मैं कहूं तभी बाहर निकलना ।"

"ये क्या बात...।"

"F.I.A. के एजेन्ट हैं बाहर ।" तुली दूर नजर आती सोना को देख रहा था ।

"ओह ।"

"ठीक है तुम बाहर निकलो । वहां से सीधा लिफ्ट की तरफ आना । लिफ्ट में प्रवेश कर जाना ।"

"क्या मुझे फिर लिफ्ट में ऊपर-नीचे...।"

"ये जरूरी है । परन्तु इस बार ज्यादा देर नहीं लगेगी ।"

"मुझे कपड़ों की पेमेंट भी नीचे काउंटर पर देनी है ।"

"बेशक देना । बाहर निकलो ।" तुली की निगाह दूर ट्राई रूम पर जा टिकी ।

उसके देखते ही देखते ट्राई रूम का दरवाजा खुला और भसीन बाहर निकलकर लिफ्ट की तरफ बढ़ने लगा । कंधे पर बैग लटकाया और फोन थामें हाथ कानों पर लगा था ।

"तुम मुझे देख रहे हो ?" भसीन की आवाज कानों में पड़ी ।

"हां, ऐसे ही बढ़ते रहो और--- रुको ।" तुली का स्वर तेज हो गया--- "नीचे झुक जाओ, इसी पल, जैसे कि जूते का फीता बांध रहे हो ।

तुली ने भसीन को नीचे झुकते देखा ।

भसीन का एक हाथ फोन पर था और दूसरे से फीते को छेड़ रहा था । उसके चेहरे पर परेशानी थी ।

"क्या हुआ ?" भसीन की आवाज तुली के कानों में पड़ी ।

"ऐसे ही रहो । ठीक ऐसे ही । तुम्हारे सामने की तरफ से F.I.A. कि एजेन्ट आ रही है । परन्तु बे-फिक्र रहो । वो तुम्हें पहचान नहीं सकेगी, क्योंकि तुम झुक गए हो और तुमने कपड़े भी बदल दिए हैं । वो अब तुम्हारे पास से निकल रही है । सिर मत उठाना । ऐसे ही रहो । ठीक से इसी तरह-बस कुछ सेकंड और-हां--- वो तुम्हें पार कर गई । अब उठो और लिफ्ट की तरफ बढ़ जाओ ।"

तुली ने भसीन को सीधा खड़े होकर, लिफ्ट की तरफ बढ़ते देखा । उसका चेहरा पसीने से भरा हुआ था ।

"कैसी मुसीबत में फंस गया हूं मैं ?"

"अभी तो तुम मुसीबत से बच रहे हो मेरी वजह से । लेकिन आगे तुम्हें खुद बचना होगा ।

मैं तुम्हें इस वक्त और नहीं बचा सकता । क्योंकि F.I.A. के एजेन्ट यहां पर मेरी मौजूदगी को जान चुके हैं । वो मुझे मारना चाहते हैं, तुम्हें बचाने में लगा रहा तो वो मुझे घेर लेंगे ।" तुली ने कहा ।

"त...तो मैं क्या करूं ?"

"तुम लिफ्ट से ग्राउंड फ्लोर पर जाओ और कपड़ों की पेमेंट करके बाहर निकल जाओ ।।तुम्हारे बचने के चांसेस ज्यादा हो गये हैं, क्योंकि तुम कपड़े बदल चुके हो । भगवान का नाम लो और निकल लो ।"

"अगर उन्होंने मुझे पहचान लिया तो ?"

"तो समझना तुम्हारी किस्मत बुरी थी ।"

"ऐसा मत कहो । तुमने कहा था कि तुम मुझे बचा सकते हो ।"

"हां । बचाया भी है । परन्तु अब इस वक्त मैंने खुद को बचाना है। यहां जिन्दा बच जाओ तो किसी के सामने मत पड़ना । लम्बे वक्त के लिए छिप जाना कहीं ।" कहने के साथ ही तुली ने फोन बंद किया और उसे जेब में डालता मॉल की उस दिशा की तरफ बढ़ गया, जिधर नीचे फ्लोर पर देखने के लिए रेलिंग शीशा लगा हुआ था ।

तुली वहां पहुंचकर ठिठका और नीचे देखने लगा ।

एक तरफ कैश काउंटर था और पेमेंट के लिये छोटी-छोटी आठ-दस कतारें लगी दिख रही थीं ।

तुली देखता रहा ।

फिर उसे एक कतार में भसीन खड़ा देखा । उसका तीसरा नम्बर था । भसीन बेचैन लग रहा था, क्योंकि उसकी गर्दन बार-बार इधर-उधर घूम रही थी, उसे सच में परेशान होना चाहिये, क्योंकि वहां F.I.A. के लोगों को पहचानता नहीं था ।

तुली की निगाह भसीन पर ही टिकी रही ।

भसीन का नम्बर आया, उसने भसीन को पेमेंट देते और बिल लेते देखा ।

फिर भसीन को लाइन से निकलकर, बाहर जाने वाले गेट की तरफ बढ़ते देखा ।

अगले ही पल तुली के होंठ भिंच गये ।

बाहरी गेट से अभी-अभी मदनलाल ने भीतर प्रवेश किया था । वो उधर ही बढ़ रहा था, जिधर से भसीन आ रहा था ।

तुली के होंठ भिंचे रहे । देखता रहा । इतना वक्त नहीं था, फोन पर भसीन को सावधान कर पाता ।

भसीन के लिए जैसे ये जिन्दगी और मौत के पल थे ।

पास से और लोग भी निकल रहे थे ।

ऊपर शीशा लगे रैलिंग के पास खड़ा तुली, नीचे का स्पष्ट नजारा देख रहा था । मदनलाल की निगाह आगे बढ़ते हुए इधर-उधर घूम रही थी । तभी पीछे से तेजी से आती औरत का कंधा भसीन को लगा ।

भसीन लड़खड़ाया और सामने आते मदनलाल से टकरा गया ।

तुली के दांत भिंच गये । वो समझ गया कि गड़बड़ हो गई है ।

मदनलाल फौरन छोटी-सी टक्कर से संभला और भसीन को थाम लिया ।

भसीन ने मदनलाल का शुक्रिया अदा किया और तेजी से आगे बढ़ा ।

परन्तु मदनलाल ठिठककर फौरन पलटा । तुली ने पुकारते सुना भसीन को ।

भसीन ने चलते-चलते पलट कर पीछे देखा ।

"ठहर जाओ ।" मदनलाल की आवाज का कुछ आभास ऊपर खड़ी तुली को भी हुआ ।

तुली के होंठ भिंच गये ।।

भसीन रुका नहीं बल्कि तेजी से बाहर गेट की तरफ दौड़ पड़ा ।

मदनलाल ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाली और उस पर गोली चला दी ।

गोली चलने का तेज धमाका हुआ ।

तुली ने भसीन को लड़खड़ाते देखा । गोली उसके कंधे में लगी स्पष्ट महसूस हुई । मदनलाल अपनी जगह से दौड़ा और उसने भसीन को पकड़ लिया ।

तुली होंठ भींचे ये सब देख रहा था ।

पहली बात उसके मस्तिष्क में जो बात कौंधी, वो ये कि अब जैनी खतरे में है । F.I.A. भसीन का मुंह आसानी से खुलवा लेगी । F.I.A. को पता चल जायेगा कि जैनी ने भसीन को सारी खबर तीन लाख में बेची है । F.I.A. उसी पल खार की तरह दौड़ेंगे जहां जैनी रह रही है । ये तो अच्छा हुआ कि उसने जैनी का पता जान लिया था । भसीन से ।

वो जैनी को F.I.A. के हाथ नहीं पड़ने देगा ।

F.I.A. का काम बिगड़ना ही अब तुली का उद्देश्य था, साथ ही मन में था कि शायद जैनी उसके परिवार के हत्यारों के बारे में कुछ बता सके। जो भी हो जैनी के पास उसे जल्दी पहुंचना था।

तभी उसने मॉल के दरवाजे से कई पुलिसवालों को भीतर आते देखा ।

तुली समझ गया कि जो गोलियां चली थीं, उसे लेकर पुलिस आई है । किसी ने फोन पर खबर कर दी होगी । तुली को इस बात का अफसोस था कि भसीन F.I.A. के हाथों पड़ गया ।

तुली वहां से जाने के लिए पलटा ।

उसी पल ठिठक गया ।

छः कदमों की दूरी पर नारंग रिवॉल्वर ताने खड़ा था ।

दोनों की नजरें मिलीं।

नारंग की गम्भीर निगाह उस पर टिकी थी ।

"हैलो नारंग ।" तुली के चेहरे पर कठोर मुस्कान बिखर गई--- "मुझे मारने की ये तुम्हारी दूसरी कोशिश होगी। एक कोशिश तुम पहले तब कर चुके हो, जब मैं F.I.A. की तरफ से राघव, मन्नू और तीरथ से मुलाकात कर रहा था ।" (ये सब जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'ऑपरेशन टू किल')

"मुझे अफसोस है ।" नारंग ने सपाट स्वर में कहा ।

"कि मैं पहले बच गया ।"

"नहीं, इस बात का अफसोस है कि मैं तुम्हारे साथ ऐसा कर रहा हूं ।"

"तुम्हें दीवान ने पूछना चाहिये कि वो मुझे मारने का आर्डर क्यों दे रहा है ?" तुली बोला ।

"दीवान बेवकूफ नहीं है, कुछ सोच कर ही उसने फैसला किया होगा ।

"मेरे परिवार को खत्म करा देने का फैसला भी ठीक था ?" तुली के दांत भिंच गये ।

"तुम्हारे परिवार को खत्म होने में F.I.A. का हाथ नहीं है । उनका मुझे दुख है । हम नहीं जानते कि ये किसने किया ?"

"तुम लोगों में इतना भी दम नहीं कि अपने किए को स्वीकार कर सको ।"

"हम खुद जानने की कोशिश कर रहे हैं कि किसने तुम्हारे परिवार को मारा ?"

"मेरा बेटा बंटी कहां है ?"

"उसे भी हम ढूंढ रहे हैं ।"

"और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारा भरोसा कर लूं । तुम कुत्तों का भरोसा ।

"मत करो, लेकिन पिछली बार जो गलती हुई, उसे मैं सुधारने जा रहा हूं ।" नारंग ने कठोर स्वर में कहा ।

"कैसी गलती ?"

"तुम्हारे बच जाने की । दीवान और कपूर ने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई थी कि मैं अपना काम पूरा नहीं कर सका ।"

"तो तुम मुझे मारने जा रहे हो ।" तुली ने कहते हुए आंख के इशारे में, नारंग के पीछे कुछ इशारा किया ।

उसी पल नारंग फुर्ती से पीछे पलटा ।

परन्तु पीछे कोई नहीं था । कुछ फासले पर लोगों की भीड़ अवश्य दिखी ।

नारंग ने फुर्ती से वापस पलटना चाहा ।

लेकिन उसी पल जूते की ठोकर उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर पड़ी ।

नारंग कराह उठा । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल कर, कुछ दूर लोगों पर जा गिरी ।

ऐसा होते ही कई लोगों के चीखने की आवाज आई ।

नारंग ने दूसरे हाथ से अपनी कलाई थाम, पीड़ा भरे अंदाज में तुली को देखा ।

"मेरा मुकाबला करना आसान नहीं । दीवान-कपूर ने तुम्हें ये नहीं बताया ।" तुली रिवॉल्वर निकालते हुए गुर्रा उठा--- "तुमने दूसरी बार मेरी जान लेने की चेष्टा की है, ऐसे में तुम्हें शूट करने का अब मेरा पूरा हक बनता है ।"

नारंग के दांत भिंच गये ।

"राजी खान, पवन सिंह, राहुल की मैंने जान नहीं ली, परन्तु तुम्हारी जान...।"

"तुली !"

तुली की गर्दन फौरन घूमी ।

चंद कदमों के पास सोना खड़ी थी । उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर तुली की तरफ थी ।

नारंग को शूट मत करना और तुम यहां से निकल जाओ ।" सोना गम्भीर स्वर में बोली--- "मैं गोली नहीं चलाऊंगी ।"

नारंग बे-बस-सा तुली को देख रहा था ।

"जाओ । मैं गोली नहीं चलाऊंगी तुम पर ।" सोना पुनः बोली ।

"तुम बच गये नारंग ।"

नारंग दांत भिंच रहा था ।

तुली ने सोना पर निगाह मारी और अपनी रिवॉल्वर जेब में डालते हुए भीड़ की तरफ बढ़ता चला गया ।

"ये तुमने क्या किया-उसे गोली क्यों नहीं मारी ?" नारंग दांत पीसकर सोना से कह उठा ।

"बकवास मत करो । मैंने तुम्हें बचाया है । वो तुम्हें मारने जा रहा था ।"

■■■

कपूर ने एक कमरे में प्रवेश किया तो दो बैडों पर पवन सिंह और राजी खान को लेटे पाया । दोनों की टांगों पर बेंडिज हुई नजर आ रही थी । वे अंडरवियर और कमीज में लेटे हुए थे ।

"इनकी क्या हालत है डॉक्टर ?" कपूर ने पूछा ।

"कोई खतरा नहीं है इन्हें ?" राजी खान की टांग का मांस गहराई तक, गोली ने उधेड़ दिया है । गहरा जख्म है, सप्ताह तक ठीक होगा और पवन सिंह की टांग में फंसी गोली निकाल कर बैंडेज कर दी है । दस दिन में ठीक हो जायेगा ।" डॉक्टर ने कहा ।

"ठीक है ।" कपूर दोनों पर निगाह मार कर कह उठा--- "तुम दोनों आराम करो ।"

"कपूर ।" राजी खान गम्भीर स्वर में बोला--- "मैं तुली के बारे में बात करना चाहता हूं ।"

"क्या ?" कपूर की निगाह उस पर जा टिकी ।

"तुली हम दोनों की जान ले सकता था, लेकिन उसने हमें सिर्फ घायल किया ।"

"तो ?"

"और हम उसे खत्म कर देना चाहते हैं ।"

"दीवान की नजर में तुली को खत्म कर देना जरूरी है ।" कपूर ने गम्भीर स्वर में कहा ।

"क्यों ?"

"तुली ने C.I.A. का हाथ थाम लिया था। दो महीने वो लापता रहा और हम समझते रहे कि सैवन इलैवन ने उसे खत्म कर दिया है । ये दो महीने उसने यहां बिताये, शायद C.I.A. के साथ । तब वो अमेरिका में ही था । हो सकता है 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में उसने C.I.A. को बता दिया हो । उसके बाद तुली डबल एजेन्ट बनकर C.I.A. की मर्जी से लौटा और फिर से F.I.A. में जगह बनाने की कोशिश में हो । उसका हर कदम चाल हो । कुछ भी हो सकता है ।" कपूर ने शांत स्वर में कहा ।

"तुम्हारा मतलब कि हममें वापस आ सकता है ?" पवन सिंह ने कहा ।

"कभी नहीं । वो अब F.I.A. का नहीं है ।"

"अपने परिवार की मौत वो हम पर डाल रहा है ।" पवन सिंह ने कहा ।

"हम पर ?" कपूर के होंठ सिकुड़े ।

"F.I.A. पर । वो कहता है कि उसके परिवार को F.I.A.ने खत्म किया है ।"

"हो सकता है, वो अमेरिका में छिपकर जिन्दगी बिता रहा हो और अपने परिवार के बारे में जानकर इंडिया लौटा हो ।"

"यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकते ।"

"शायद तुली सच्चा हो और F.I.A. उसके पीछे यूं ही हो ।"

"ये तो पक्का है कि वो C.I.A. से हमारे खिलाफ जा मिला था।" कपूर के दोनों को देखा--- "तुम लोग आराम करो । ये मामला दीवान संभाल रहा है । इस बारे में वो जो करेगा, ठीक करेगा ।"

"तुम्हारा अपना क्या विचार है कपूर ?" राजी खान ने पूछा ।

"मैं अपने किसी भी विचार पर ठीक से काम नहीं रह पा रहा हूं।" कपूर ने कहा और पलट कर बाहर निकलता चला गया । उसके चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं थे । चौड़ी गैलरी में वो आगे बढ़ता रहा ।

ये F.I.A. का ठिकाना था ।

थोड़ा लम्बा रास्ता तय करने के बाद कपूर ने एक दरवाजा धकेला और भीतर प्रवेश कर गया ये वो ही हॉल था, जिसके बीच अंडाकार टेबल रखी हुई थी । इस वक्त वहां सिर्फ दीवान था, जो कि टहल रहा था ।

"वो दोनों कैसे हैं ?" दीवाने ने पूछा ।

"ठीक हैं। सप्ताह में ठीक हो जायेंगे ।"

"कुछ कहा उन्होंने ?"

"तुली की ही बात कर रहे थे कि उसने उन्हें घायल ही किया, जबकि वो उन्हें मार भी सकता था । उनका ये भी कहना है कि तुली ने कहा कि अगली बार वो सामने पड़े तो, जिन्दा नहीं छोड़ेगा । उनका कहना है कि तुली उनसे तेज है ।"

"क्यों ना होगा । F.I.A. का हत्यारा रहा है वो, इस जगह पर खतरनाक लोग ही पहुंच पाते हैं ।" दीवान होंठ को भींचकर बोला ।

दोनों ने एक-दूसरे को देखा ।

तभी दरवाज़ा खुला और नारंग, राहुल और सोना ने भीतर प्रवेश किया ।

नारंग के चेहरे पर उखड़े भाव थे ।

दीवान और कपूर की नजर उन पर गई ।

"मदनलाल कहां है ?" कपूर ने पूछा ।

"वो उस रिपोर्टर, महेश भसीन के पास है ।" नारंग बोला ।

वो तीनों कुर्सियों पर आ बैठे थे ।

"उसने बताया कि 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में उसे कैसे पता चला ?"

"नहीं । वो डरा हुआ है ।" राहुल बोला--- "उसके बैग से 'ऑपरेशन टू किल' की पूरी जानकारी मिली है । ऑपरेशन टू किल के बारे में सब कुछ लिखा है कि कैसे तुली ने मन्नू, तीरथ राघव को इकट्ठा किया । कैसे साउथ ईस्ट यूरोप क्रोशिया में ब्रिगेडियर छिब्बर और अमेरिकी विदेश मंत्री ड्यूक हैरी को मारा गया । कैसे वहां जैनी मिली ? परन्तु नीचे लिखने वाले का नाम नहीं है ।"

"वो लिखाई किसकी है ?"

"पहचाना नहीं जा सका ।"

"समझ में नहीं आता कि 'ऑपरेशन टू किल' की भीतरी बातें कोई बाहरी व्यक्ति कैसे जान गया ?" दीवान बोला ।

"दीवान ।" जैनी, तीरथ, राघव आजाद है, वो बता सकते हैं सब कुछ ।"

"तीरथ को कल किसी ने मार दिया है ।"

"मार दिया ?"

"हां, वो ड्रग्स के धंधे में था, किसी ने उसके सिर में गोली मारी।"

"जैनी और राघव तो बचे हैं ।" कपूर ने कहा ।

दीवान के होंठ भिंच गये ।

कुछ पल खामोशी रही ।

फिर दीवान ने फोन निकाला और नम्बर मिलाकर बात की ।

"सावन ।"

"कहो ।"

"जैनी का तुम्हें पता ही है कि वो कहां...?"

"खार, 3rd रोड । चालीस नम्बर मकान में बरसाती के एक कमरे में ।"

"फौरन वहां जाओ । मदनलाल से रिपोर्ट के पास से मिली कागज में से एक कागज ले जाना । जैनी से वो ही शब्दों को लिखवा कर देखो कि वो लिखाई एक-सी है । एक-सी हो तो जैनी को यहां ले आना ।

"ठीक है ।"

दीवान ने फोन बंद किया फिर नारंग से बोला ।

"तो तुली तुम्हारे हाथों से एक बार फिर बच गया ।

"नहीं, वो मारा जाता । परन्तु सोना ने उस पर गोली नहीं चलाई।" नारंग ने तीखे स्वर में कहा ।

दीवान ने सोना को देखा ।

सोना मुस्कुरा पड़ी । फिर बोली---

"तुली, नारंग को मारने जा रहा था । रिवॉल्वर तान रखी थी । वो किसी भी वक्त गोली चला सकता था । मैंने मौके पर पहुंचकर तुली को कवर किया और उसे इस शर्त पर जाने दिया कि वो नारंग को न मारे ।"

"सोना के पास मौका था, तुली पर गोली चलाने का ।" नारंग उखड़े स्वर में बोला ।

"जरूर था । परन्तु उस वक्त जल्दबाजी में ये जरूरी नहीं था कि मेरी चलाई गोली उसके सिर में ही लगती । वो बच भी सकता था और उसके बाद वो अंधाधुंध गोलियां चला सकता था । वहां बहुत भीड़ थी । कई बेगुनाह मारे जाते ।"

"लेकिन तुम ।" नारंग ने कहना चाहा ।

"बस करो नारंग । खामोश हो जाओ ।" कपूर ने हाथ हिलाकर कहा ।

"लेकिन ये तो पक्का है कि सोना ने ही जानबूझकर तुली को शूट नहीं किया ।"

"तुम्हारी बात कोई नहीं सुन रहा ।" सोना ने गहरी सांस ली ।

कपूर ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया ।

"दीवान ।" राहुल बोला--- "तुली का कहना है कि तुमने उसके परिवार को खत्म किया ।

"पवन सिंह और राजी खान भी ये बात कह रहे थे ।" दीवान झुंझलाया ।

"लेकिन तुली का मानना है कि उसके परिवार को हम लोगों ने ही खत्म किया ।"

"हां ।" नारंग ने गम्भीरता से सिर हिलाया--- "तुली ये ही मानता है।"

"तुली को गलतफहमी है ।"

"जो कि हमारे लिए ज्यादा नुकसानदेह है । वो F.I.A.के पीछे पड़ जायेगा । शायद पड़ चुका है ।"

"तुली की जगह कोई भी होता, इन हालातों में, वो भी यही सोचता ।

"मैंने उसे समझाने की कोशिश की, परन्तु वो अपनी बात पर अड़ा रहा कि उसके परिवार को F.I.A. ने खत्म करवाया ।

"जो भी हो F.I.A.तुली के विचारों की परवाह नहीं करती । उसे खत्म कर दिया जायेगा ।" दीवाने ने कहा--- "कपूर, दयोल को यहां आने को कहा। उसे कहो कि तुरन्त हमारे पास पहुंचे ।"

"दयोल...?" कपूर के माथे पर बल पड़े ।

"हां ।"

"सैवन इलैवन इस मामले को संभाल तो रहा...।"

"सैवन इलैवन और दयोल में बहुत फर्क है । दयोल और तुली कई बार एक ही मिशन पर काम कर चुके हैं । तुली अब, कहां, कैसे सोचता है, दयोल बेहतर जानता है । सैवन इलैवन अपना काम करेगा और दयोल अपना ।"

कपूर के होंठ भिंचे ।

दीवान तीनों को देखता कह उठा।

"तुली की खबर पाने की कोशिश करो ।

सोना, नारंग और राहुल बाहर निकल गये ।

"मैं उन रिपोर्टर से पूछताछ करने जा रहा हूं ।" कहने के साथ ही दीवान बाहर निकल गया ।

कपूर ने फोन निकाला और दयोल को फोन करने लगा।

■■■

वो खाली-सा कमरा था ।

चार कुर्सियां थीं। एक बार मदनलाल बैठा था, दूसरी पर भसीन, बाकी दो खाली थी ।

बीते दस मिनट से भसीन से मदनलाल में कोई बात नहीं की थी। भसीन व्याकुल था । वो रह-रहकर उठता और चहल-कदमी करने लगता फिर बैठ जाता। उसके चेहरे पर घबराहट थी।

"तुम...तुम लोग मेरा क्या करोगे ?" एकाएक भसीन बोला ।

"पहले मुंह खोलो, 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में, किसने बताया तुम्हें ?" मदनलाल बोला ।

"नहीं बताऊंगा । तुम लोग मुझे मार दोगे ।"

"अखबार के रिपोर्टर हो। जानते हो कि F.I.A. के मामले में दखल देना ठीक नहीं, फिर भी तुमने ऐसा किया ।"

भसीन ने होंठ भींच लिए ।

तभी दरवाजा खुला और दीवान ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"मुंह खोला ?"

"नहीं ,दीवान ।"

दीवान ने ठिठककर भसीन को देखा ।

भसीन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"हमारे पास और भी तरीके हैं तुम्हारा मुंह खुलवाने के ।" दीवान का स्वर कठोर था ।

"तु...तुम मुझे मार दोगे ।"

"किसने कही तुमसे ये बात ?" दीवान एकाएक मुस्कुराया ।

"त...तुली ने ।"

"वो बेवकूफ है। हम भला तुम्हें क्यों मारेंगे ? वो तुमसे कहां मिला ?"

"वहीं, ओपन मॉल में । वहां उसने भी बुलाया था बात करने को। उसका फोन आया था । वो कह रहा था कि मैं 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में अखबार में छाप रहा हूं । इसलिए F.I.A. वाले मुझे कभी भी मार सकते हैं ।"

"तुम्हें हमारे बारे में कोई भी बात अखबार में नहीं छापनी चाहिए थी ।

"गलती हो गई ।"

"हम तुम्हें नहीं मारेंगे । तुम हमें सहयोग दो और बताओ कि तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में किसने बताया ।

भसीन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । उसके कंधे में दर्द होने लगा था, जहां से गोली रगड़ खाते निकल गई थी । हालांकि डॉक्टर ने वहां बैंडीज कर दी थी । भसीन कुर्सी पर बैठ गया ।

"सब कुछ जानने के बाद तुम लोगों ने मेरी जान ले ली तो ?"

"क्या तुम दोबारा कभी अखबार में हमारे बारे में छापने का इरादा रखते हो ?"

"न...नहीं ।"

"फिर हम तुम्हें छोड़ देंगे और तुम किसी को नहीं बताओगे कि हमारी-तुम्हारी क्या बातें हुई ।"

"नहीं बताऊंगा ।"

"अब मुंह खोलो ।"

"मुझे जैनी ने बताया सब कुछ ।"

"जैनी ?" दीवान के होंठ भिंच गये ।

"हां।" भसीन ने गर्दन हिलाई ।

"सच कह रहे हो ?"

"मैं झूठ क्यों बोलूंगा । सब कुछ बताने के बदले, उसे तीन लाख रुपया दिया गया, ये सौदा आज सुबह ही हुआ ।"

दीवान ने मदनलाल से पूछा ।

"सावन, तुमसे लिखा हुआ कागज ले गया ?"

"हां । वो तो कब का जा चुका है ।"

"मुझे वो पागल दिखाओ ।"

मदनलाल उठा और दीवार के साथ रखे बैग के ऊपर पड़े कागज उठाकर दीवान को दिया।

दीवान ने उन कागजों को देखते हुए भसीन से पूछा ।

"ये क्या है ?"

"ये...ये जैनी ने लिख कर दिया है, वो कहती है कि इन कागजों पर 'ऑपरेशन टू किल' की सच्चाई, हर बात लिखी है ।"

"हमें कैसे यकीन हो कि तुम सच कह रहे हो, ये काम जैनी ने ही किया है ।"

"जैनी की लिखाई मिला लो । जैनी ने कहा है कि ये उसने ही लिखा है ।"

"हां, ऐसा किया जा रहा है ।" दीवान ने कागज मदनलाल को थमाये और फोन निकालकर, सावन को फोन किया ।

जल्दी ही बात हो गई---

"तुम कहां हो ?"

"बस, खार पहुंच गया ।"

"जैनी की हैंडराइटिंग लाकर मुझे फोन करो । मैं इंतजार कर रहा हूं ।"

■■■

तुली ने ओपन मॉल से निकलने के बाद एक रेस्टोरेंट में खाना खाया फिर पब्लिक बूथ से अपने पड़ोसी शर्मा को फोन किया । फोन शर्मा ने ही उठाया ।

"हैलो ।"

"शर्मा ।"

'ओह--- तुली ।" शर्मा की आवाज में फुसफुसाहट आ गई--- "घंटा भर पहले तुम्हें कोई पूछने आया था ।"

"क्या ?"

"वो पूछ रहा था कि हाल ही में तुली का कोई फोन तो नहीं आया, कि वो अपने परिवार के बारे में पूछ रहा हो । मैंने तो फौरन मना कर दिया कि मुझे तो तुली को कोई फोन नहीं किया। मैंने उसे कहा कि मैंने सुना है वो मर गया है । तो बोला गलत सुना है । तुली जिन्दा है ।" शर्मा ने एक ही सांस में कह दिया ।

"कौन था वो ?"

"पूछा मैंने, परन्तु उसने अपने बारे में नहीं बताया । यही कहा कि वो पुलिस वाला है ।"

"कोई बात नहीं ।"

"नया तो कुछ नहीं । तुम कहां हो ?"

"यहीं--- मुम्बई में ।"

"आ-जाओ मेरे पास । एक साथ खाना खायेंगे । शतरंज भी लगा लेंगे ।

"अभी व्यस्त हूं । फिर आऊंगा । तुम ये बताओ कि मेरे परिवार को किसने मारा होगा । कुछ सुना इस बारे में ?"

"नहीं । मैंने कुछ नहीं सुना । किसी पर शक होते ही नहीं सुना।"

"आखिर तुम क्या करते फिर रहे हो ? मुझे भी तो कुछ बताओ। तुम्हारे साथ इतना बुरा क्यों हुआ ?"

"फोन बंद करता हूं । दोबारा फोन करूंगा ।" कहने के साथ ही तुली ने फोन बंद कर दिया ।

तुली खार के 3rd रोड पर पहुंचा ।

40 नम्बर का मकान ढूंढने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई ।

दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे । तीखी धूप थी । वो मकान सड़क पर ही था और सड़क पर लोग आ-जा रहे थे, तुली एक तरफ हटकर, एक पेड़ की ओट में, तने का सहारा लेकर खड़ा हो गया । जैनी तक पहुंचने से पहले जान लेना चाहता था कि वही F.I.A. तो जैनी पर नजर रखते हुए नहीं हैं ?"

तुली की निगाह हर तरफ घूम रही थी ।

छः-सात मिनट बीत गये ।

तुली को रास्ता साफ दिखा ।

इससे पहले कि उस मकान की तरफ बढ़ता, उसकी आंखें सिकुड़ी । एक कार को वहां रुकते देखा और उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति को देखते ही उसके होंठ भिंच गये ।

वो सावन था।

F.I.A. का एजेन्ट ।

तो F.I.A. पर नजर रखते हुए हैं, जबकि भसीन ने कहा था कि जैनी ने उसे 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में बताया है । ऐसे में जैनी किसी भी अखबार के सामने मुंह नहीं खोलेगी । वो बेवकूफ नहीं है ।

तुली की निगाह सावन पर थी, जो मकान के गेट की तरफ बढ़ रहा था । गेट के भीतर से ही तुली को ऊपर जाने की सीढ़ियां दिखाई दे रही थीं। सावन को उसने ऊपर जाते देखा ।

तुली वहीं खड़ा रहा ।

■■■

जैनी घर पर, यानी कि बरसाती के उसी कमरे में था। पूरी छत धूप से तप रही थी । एक कोने में वन रूम सैट बना हुआ था । जिसका दरवाजा खुला हुआ था ।

सावन उस दरवाजे पर खड़ा हुआ ।

भीतर कमरे में जैनी फोल्डिंग बैड पर लेटी हुई थी । उसने कमीज-सलवार पहन रखा था । छत पर लटका पंखा चल रहा था । परन्तु कमरे में पर्याप्त तपिश थी । कमरे में ही प्लास्टिक की डोरी बंधी हुई थी । जिस पर दो-तीन कपड़े लटके हुए थे । कमरे में एक कोने में सूटकेस रखा हुआ था ।

किसी के आये होने का एहसास पाकर जैनी ने फौरन गर्दन घुमाई ।

दरवाजे पर सावन को खड़े देखा तो फौरन उठ बैठी ।

"कौन हो तुम ?" जैनी के होंठों से निकला ।

"F.I.A. ।" सावन भीतर प्रवेश करता बोला--- "तुम मुझे नहीं जानती, परन्तु मैं तुम्हें जानता हूं ।"

"क्या चाहते हो--- अब क्यों तुम मेरे पीछे पड़े हुए हो ?" जैनी परेशान-सी कह उठी ।

सावन ने जेब से तह किया कागज निकाला और खोलकर सामने किया ।

जैनी, उन कागज को देखते ही चौंकी । रंग कुछ फक्क पड़ा ।

"ये क्या है ?" उसने सावन को देखा ।

"कागज पैन निकालो और बिना कोई सवाल पूछे, इन शब्दों को कागज पर लिखे ।"

"लिखाई मिलाना चाहते हो ।" जैनी फोल्डिंग से नीचे उतरती कह उठी ।

"हां ।"

"ये क्या है ?" जैनी सूटकेस की तरफ बढ़ती बोली ।

"सवाल मत करो ।" सावन ने रिवॉल्वर निकाली--- "सूटकेस से क्या निकाल रही हो ?"

"कॉपी ।"

"मेरे हाथ में रिवॉल्वर है । शरारत मत करना ।"

"क्या बात करते हो । मैं ऐसी नहीं हूं । शरीफ हूं ।" जैनी ने कहा और सूटकेस खोलकर कॉपी निकाली और पलटी ।

सावन ने रिवॉल्वर जेब में रख ली ।

"पैन नहीं है मेरे पास ।"

सावन ने उसे अपनी जेब से निकाल कर दिया ।

पैन लेकर, जैनी ने अपने चेहरे पर, गर्मी से आया पसीना पोंछा।

"तुम्हारा असली नाम 'जगदीप कौर है ?" सावन बोला ।

"हां ।"

"क्रोशिया जाकर तुम जैनी बन गई । कितने अजीब हो तुम लोग जो अपना नाम भी बदल लेते हो ।"

"बदलना पड़ता है । वहां के माहौल को स्वीकार करना पड़ता है।"

"लिखो।"

जैनी उस कागज को सामने रखकर, कॉपी में उन्हीं शब्दों को लिखने लगी ।

इस दौरान छिपी निगाहों से जैनी, सावन को भी देख लेती थी ।

सावन की निगाह उसकी लिखाई पर थी । वो पास आ गया था।

जब चार-पांच लाइन जैनी ने लिख ली तो, सावन ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

"क्या कह रहे हो ?" जैनी ने सिर उठाकर उसे देखा ।

"बस करो, मत लिखो ।"

जैनी ने लिखना छोड़ दिया ।

सावन ने फोन पर दीवान से बात की ।

"वो लिखाई जैनी की नहीं है ।" सावन बोला ।

"पूरे विश्वास से कह रहे हो ?" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"हां ।"

"जैनी की लिखाई साथ लेते आना ।"

"बढ़िया ।" सावन ने कहा और फोन बंद करके जेब में रखा फिर अपना दिया कागज़ उठाया और जैनी का कॉपी में लिखा कागज़ फाड़ा और दोनों कागज जेब में रखते बोला--- "तुम यहां से उठना मत ।"

"आखिर बात क्या है ?"

"मैं इस कमरे की तलाशी लेने जा रहा हूं । तुम खामोशी से बैठी रहो ।"

इसके साथ ही सावन कमरे की तलाशी लेने लगा ।

सूटकेस भी अच्छी तरह देखा ।

दस मिनट लगे, परन्तु तलाशी में कुछ नहीं मिला ।

"जा रहा हूं ।" सावन बोला ।

"F.I.A. ने मुझे वार्निंग देकर छोड़ दिया था कि 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में उसे अपना मुंह बंद रखना है और मैंने मुंह बंद रखा हुआ है । उन सब बातों को भूल जाना चाहती हूं । अब F.I.A. क्यों मेरे पीछे हैं ?" जैनी सावन से बोली ।

सावन ने कुछ नहीं कहा और बाहर निकल गया ।

जैनी उसी प्रकार फोल्डिंग पर बैठी खुले दरवाजे को देखती रही।

कई पल बीत गये थे ।

फिर जैनी ने फुर्ती से अपनी कमीज के भीतर हाथ डालकर, ब्रा में फंसा फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगी । रह-रहकर उसकी निगाह दरवाजे की तरफ उठ रही थी । फिर उसकी बात हो गई ।

"कहो ।" दूसरी तरफ से धीमी आवाज कानों में पड़ी ।

"मेरे ख्याल से रिपोर्टर  महेश भसीन F.I.A. के हाथों में पड़ गया है ।" जैनी फुसफुसाते स्वर में बोली---

"कैसे कह सकती हो ?"

"अभी F.I.A. का एजेन्ट आया था मेरे पास । उसके पास तुम्हारे लिखे कागजों में से एक कागज था। जो तुमने 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में लिखे थे। उन सारी बातों को तीन लाख में हमने भसीन को बेचा था। उसने मेरी लिखाई उन कागज से मिलाई कि कहीं वो कागज मैंने तो नहीं लिखा । इसका मतलब भसीन को F.I.A. ने पकड़ लिया है और भसीन ने उन्हें सब कुछ बता दिया होगा । उसकी बात का विश्वास करने के लिये ही F.I.A. का एजेन्ट मेरी लिखाई मिलाने आया था ।

"ओह ।"

"उसने कमरे की तलाशी भी ली कि शायद तीन लाख मिल जाएं और भसीन के शब्दों की सत्यता की सच्चाई सामने आ जाये ।"

"तुम खतरे में हो ।" धीमा स्वर कानों में पड़ा ।

"फिक्र मत करो । बात आगे बढ़ी तो मैं कभी भी यह नहीं मानूंगी कि मैंने भसीन को भी देखा है ।"

"फिर भी तुम मुसीबत में पड़ सकती हो । हमें यहां से निकल चलना चाहिये ।"

"तीन-चार दिन लगेंगे अभी पेपर्स तैयार होने में। बात सिर्फ मेरी होती तो में इंडिया से निकल गई होती । ये अच्छा हुआ कि तुमने आने वाले हालातों को पहले ही भांप लिया था और मुझसे न लिखवा कर, तुमने 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सब कुछ लिखा और तुम्हारे कहने पर तीन लाख रुपया भी मैं तुम्हारे हवाले कर आई थी । बुरी तरह फंसते-फंसते बची हूं मैं।"

"तुम्हें सतर्क रहना...।"

तभी जैनी की आंखें फैल कर चौड़ी होती चली गई ।

उधर से क्या कहा जा रहा है, वो उन शब्दों को नहीं सुन रही थी।

वो तो सामने देख रही थी ।

दरवाजे पर तुली खड़ा हुआ था ।

"तुम सुन रही हो मेरी बात ?" दूसरी तरफ से कहा जा रहा था ।

"त...तु... तुली ।" जैनी के होंठों से निकला ।

"क्या ?" दूसरी तरफ से घबराया स्वर, जैनी के कानों में पड़ा ।

"तुली...म...मेरे पास...सामने...।" कहने के साथ ही जैनी के हाथ से फोन पर वाला हाथ नीचे होता चला गया ।

तुली मुस्कुराया और आगे बढ़ कर उसने जैनी के हाथ से फोन लिया ।

"हैलो ।" तुली ने फोन कान से लगाया ।

दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई ।

"हैलो ।" तुली पुनः बोला ।

दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया ।

तुली ने फोन को फोल्डिंग कर, जैनी के पास उछाल दिया ।

जैनी अभी भी हक्की-बक्की बैठी, आंखें फाड़े तुली को देखे जा रही थी ।

"कौन था फोन पर ?" तुली ने शांत स्वर में पूछा ।

जैनी जैसे बोलना भूल गई थी ।

"तुमने किसे बताया कि मैं यहां हूं ?"

जैनी ने एकाएक बहुत गहरी और लम्बी सांस ली ।

"क्या F.I.A. को मेरे बारे में बताया ?"

जैनी ने इंकार में सिर हिला दिया ।

"तुम मेरे से घबराओ मत । अब मैं F.I.A. के लिए काम नहीं करता ।" तुली बोला ।

"तुम...तुम्हें तो F.I.A. ने मार दिया था ।" जैनी के होंठों से निकला ।

"हां ।" तुली ने सिर हिलाया--- "F.I.A. ने मुझे मार दिया था ।"

"त...तो तुम जिन्दा कैसे हो ?"

"मैं मरा नहीं था । भाग्य से बच गया ।" तुली मुस्कुरा पड़ा ।

"बच गये ?"

"तुम्हारे सामने खड़ा हूं ।"

"मुझे यकीन नहीं होता ।"

"तुम्हें किसने बताया कि F.I.A. ने मुझे मार दिया है ?" तुली ने पूछा ।

"F.I.A. ने । तब मैं उनकी कैद में थी । उन्होंने मुझे मुंह बंद रखने की शर्त पर छोड़ा था ।"

"और तुमने मुंह बंद नहीं रखा ।"

"बंद रखा ।"

"दोपहर को अखबार का वो रिपोर्टर भसीन मेरे साथ था ।" तुली ने कहा ।

"तुम्हारे साथ ?"

"हां । लेकिन बाद में वो F.I.A. के हाथों में पड़ गया । उसने मुझे बताया कि तुमने तीन लाख में उसे 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी बेची है ।"

"वो झूठा है ।"

"वो सच्चा है । मैं जानता हूं कि वो झूठा नहीं है । उसी ने मुझे तुम्हारा पता बताया ।"

"जैनी से कुछ कहते न बना ।

"F.I.A. का आदमी तुम्हारे पास क्यों आया था ?"

"वो...वो मेरी हैंडराइटिंग का मिलान करने आया था ।"

"तो फिर तुम्हें छोड़ क्यों गया ?"

"हैंडराइटिंग नहीं मिली । तुम इस बारे में क्या जानते हो ?"

"यही कि तुमने 'ऑपरेशन टू किल' की सारी जानकारी लिखकर, भसीन को बेची ।"

"मैंने नहीं लिखी ।" जैनी के होंठों से निकला ।

"तभी तुम बच गई । F.I.A. का एजेन्ट तुम्हें छोड़ गया । तो तुमने वो जानकारी किसी से लिखवा कर उसे दी ।"

जैनी चुप रही ।

"F.I.A. का खतरा तुम्हारे सिर पर है, फिर भी तुमने भसीन को जानकारी देने का खतरा उठाया ?"

"जरूरी था ।"

"क्या जरूरी था ?"

"हमें पैसे चाहिये ।" जैनी के होठों से निकला--- "इंडिया से निकल जाना चाहते हैं हम ।"

"हम ?" तुली के माथे पर बल पड़े--- "ये दूसरा कौन है ?"

जैनी के होंठ भिंच गये ।

"मन्नू तो मर गया था, तब मैं भी वहां था, जब वो मरा । अब तुमने किसका साथ हासिल कर लिया ?"

"तुम्हारी वजह से ही सब मुसीबत में पड़े ।"

"किसी को क्या कहूं, मैं खुद मुसीबत में हूं । तो तुम्हारे साथ कौन है, इस काम में ?"

"नही बताऊंगी ।"

"क्यों ?"

"जरूरत नही समझती ।"

जैनी ने पक्के स्वर में कहा ।

तुली ने गहरी निग़ाहों से जैनी को देखा ।

"तुम मुझसे डर रही हो ।"

"तुमसे डरना ही चाहिये ।"

"मैंने पहले भी कहा है कि अब मैं F.I.A. के लिये काम नही करता । तुम्हें मुझसे डरना नही चाहिये ।"

"F.I.A. जानती है कि तुम जिन्दा हो ?"

"वो जान चुकी है ।"

जैनी ने गहरी सांस ली।

"सब ठीक रहता अगर मन्नू, C.I.A. को 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी बेचने की चेष्टा न करता । सारी गड़बड़ वहां से शुरू हुई और फिर सब फंसते चले गये । उलझते चले गये । तब 'ऑपरेशन टू किल' को खत्म हुए आठ साल बीत चुके थे । मन्नू ने ही गड़बड़ की । मैंने गड़बड़ की होती तो तुम लोग आठ साल चैन से न रह पाते ।" तुली बोला ।

"तुम्हें मेरे पास नही आना चाहिये था । F.I.A. मुझ पर नजर रखती हो सकती है ।"

"कोई तुम पर नजर नही रख रहा । ये तसल्ली करके ही तुम्हारे पास पहुंचा हूं ।"

"क्या चाहते हो ?"

"दो महीने मैं अमेरिका में रहा ।" तुली बोला--- "इस दौरान किसी ने मेरे परिवार को मार दिया ।"

जैनी ने गहरी सांस ली । फिर बोली---

"तुम्हरा बेटा बच गया है । एक बेटा ।"

"तुम्हें कैसे पता ?"

"अखबारों में पढ़ा ।"

"अखबारों में ये तो नही लिखा था कि वो तुली का परिवार है। F.I.A. वाले तुली का ।"

जैनी ने तुली को देखा ।"

"जो भी हो, मुझे तुम्हारे परिवार का पता है ।"

"तो ये भी पता होगा कि किसने मारा मेरे परिवार को ?"

"नही पता ।"

"सुना हो कि किसने...?"

"सुना भी नही ।"

"मेरे बेटे के बारे में जो लापता हो गया है ?"

"मेरा इन बातों से को मतलब नही । वैसे तुम्हारे परिवार के साथ जो हुआ, उसका मुझे दुःख है ।"

तुली ने जैनी को घूरा ।

"मुझे लगता है कि मेरे परिवार को F.I.A. ने मारा है ।" तुली ने कठोर स्वर के कहा ।

"मैं नही जानती ।"

"तो मुझे इस बारे के कुछ नही बता सकती ?" तुली ने शब्दों को चबाकर कहा ।

"नही । अब मेरा पीछा छोड़ दो। तुम्हारी वजह से मैं बहुत मुसीबतें उठा रही हूं।"

"अपनी वजह से मैं भी बहुत मुसीबतें उठा रहा हूं ।" तुली ने तीखे स्वर में कहा--- "तुम कुछ छिपा रही हो ।"

"मैं क्या छिपाऊंगी ?"

"जब मैं यहां आया तो तुम किससे फोन पर बातें कर रही थी ?"

जैनी ने होंठ भींच लिए ।

"तुमने मुझसे कहा कि हमें पैसों की जरूरत थी, कौन है तुम्हारे साथ इस मामले में ? भसीन को 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में जो जानकारी बेची वो किसने लिखी थी, वो कैसे जानता है, इस मामले को ।"

जैनी के होंठ सख्ती से भिंचे रहे ।

तुली ने रिवॉल्वर निकाली और जैनी की तरफ कर दी ।

जैनी की आंखे भय में फैल गई ।

"मैं तुम्हें शूट करने जा रहा हूं ।"

"गोली मत मारना तुली ।"  जैनी चीखी--- "मैं तुम्हें सब बताती हूं।"

तुली दांत भींचे जैनी को देखता रहा ।

जैनी ने चंद गहरी सांसे ली । फिर कह उठी---

"व...वो मन्नू है ।"

तुली के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा ।

वो जैनी को देखता रह गया ।

जैनी बेचैन-सी उसे देख रही थी ।

"वो मर गया था ।" तुली ने सख्त स्वर में कहा ।

"वो जिन्दा है ।" जैनी फंसे स्वर में बोली--- "उसे गोली लगी थी। तुम, तीरथ और R.D।X. ने उसे कार में अपने साथ ले लिया था। रास्ते में R.D.X. ने देखा उसकी सांसें नही चल रही, तो उसे कार से निकालकर फुटपाथ पर लिटा दिया था । परन्तु तब उसकी सांसे बहुत ही धीमी थीं, जिन्हें समझा नहीं जा सका । मन्नू कहता है कि तब सबकी बातें सुन रहा था, उसके कानों में पड़ रही थी आवाजें, परन्तु हिलने या जवाब देने की स्थिति में वो नहीं था । या यूं कह लो वो ऐसी बेहोशी में था कि बातें सुन सकता था, परन्तु हिल-बोल नहीं सकता था ।" (ये सब जानने के लिए पढ़े अनिल मोहन का R.D.X. सीरीज का उपन्यास 'ऑपरेशन टू किल' )  तुम लोग उसे फुटपाथ पर डाल गये। लेकिन उसकी किस्मत अच्छी थी कि दो मिनट बाद ही वहां से निकलती पुलिस पैट्रोल कार की उस पर नजर पड़ गई । पुलिस ने उसे सरकारी अस्पताल में दाखिल करा दिया । इस तरह मन्नू बच गया । बाद में उसने पुलिस को यही बताया था कि दो लोगों ने उसे लूटने की कोशिश की और गोली मारी । बाकी मामले के बारे में मुंह बंद रखा । खोलता तो पुनः F.I.A. के हाथों में पड़ जाता ।"

"हैरानी है कि मन्नू जिन्दा है ।"

जैनी बेचैन थी ।

"तो अब तुम दोनों क्या करने जा रहे हो ?"

"हम इंडिया से निकल जाना चाहते हैं । परन्तु हमारे पास पैसा नहीं था । इसी कारण हमने 'ऑपरेशन टू किल' की जानकारी अखबार को बेचकर तीन लाख रुपए हासिल किये । एजेन्ट हमारे कागजात तैयार करने लगा था । तीन-चार दिन में हम निकल जायेंगे ।"

"ऑपरेशन टू किल' का खुलासा मन्नू ने लिखा ?"

"हां। तभी तो मैं बच गई ।"

"मन्नु तुम्हारे साथ ही रहता है ?"

"नहीं । यहां रहेगा तो F.I.A. की नजर में आ जायेगा । वो उसे मार देंगे ।"

"कहां है वो ?"

"छुपा हुआ है कहीं ।"

"किधर ?"

"जैनी ने होंठ भींच लिये ।"

"मैं मन्नु से मिलना चाहता हूं ।"

"क्या जरूरत है ?" जैनी के होंठों से निकला ।

"मुझे जरूरत है ?" बोलो, वो कहां है ? तुम मेरे साथ चलो तो ज्यादा बेहतर होगा ।"

"मैं साथ नहीं जा सकती । F.I.A. वालों का कोई भरोसा नहीं कि वो कहां मिल जायें । मैं मन्नू को खतरे में नहीं डालना चाहती ।" जैनी ने परेशान स्वर में कहा--- "हम पागल हो गये हैं इस मामले में फंसकर ।"

"'ऑपरेशन टू किल' का मामला आठ साल से दबा पड़ा था । मन्नू की गलती की वजह से ही, सब कुछ फिर शुरू हुआ ।"

जैनी ने आंखें बंद कर लीं।

"तुमने अभी कहा कि तुम सब मेरी वजह से मुसीबत में फंसे हो।"

"हां, 'ऑपरेशन टू किल' के इंचार्ज तुम ही थे ।"

"इसलिए तुम लोगों ने अपना गुस्सा मेरे परिवार पर उतार दिया।"

"क्या ?" जैनी चिहुंकी--- "क्या हमने तुम्हारे परिवार को मारा है ?"

"ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?"

"पागल हो तुम । हम भला ऐसा क्यों करेंगे ?"

"अपना गुस्सा उतारने के लिये ।"

"ये बातें मत करो, हमने ऐसा कुछ नहीं किया । हम तो खुद अपने को बचाने में लगे हैं ।"

"तुम और मन्नू फिर से कहां मिले ?"

"इत्तेफाक से, एक बाजार में आमने-सामने पड़ गये ।" जैनी परेशान दिख रही थी । पसीने की वजह से उसका चेहरा गीला हो रहा था ।

"मन्नू को फोन करो । उसे कहो कि मैं आ रहा हूं और उससे बात करना चाहता हूं ।"

जैनी ने फोन उठाया । मन्नू से बात की ।

"तुली, तुमसे मिलने आ रहा है मन्नू ।"

"ये तुम क्या कह रही हो ?"

"मेरे बस में कुछ नहीं, उसे बताना पड़ा कि तुम जिन्दा हो । अब वो F.I.A. में नहीं है । वो खुद से भागा फिर रहा है ।"

उधर से मन्नू के गहरी सांस लेने की आवाज आई ।

"उससे मिल लेना ।"

"ठीक है, लेकिन हमारा किसी से न मिलना ही बेहतर है ।"

"तुली हमारी मजबूरी बन गया है ।" जैनी ने तुली पर निगाह मारी--- "तुम्हारे पास आयेगा। वहीं रहना ।" कहने के साथ ही जैनी ने फोन बंद किया और तुली को देखा ।

"अब बताओ कि मन्नू किधर है ?"

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