भोलानाथ ने अन्तिम कश लेकर सिगरेट ऐशट्रे में कुचल दी ।

–'हम यहां कब तक बन्द पड़े रहेंगे, बद्री ?' उसने पूछा–'मेरा तो दम घुटने लगा है ।'

बद्री बिस्तर पर पड़ा सत्य कथाओं की लोकप्रिय पत्रिका 'मधुर कथाएँ' के ताजा अंक के पेज पलट रहा था । उसकी निगाहें चंदन मित्रा अपहरण कांड से सम्बन्धित एक लेख पर पड़ी और वह उसे पढ़ने लगा । लेकिन कोई नई बात उसमें नजर नहीं आई ।

पुलिस और सी. आई. डी. अभी भी उस केस पर काम कर रहे थे । कोई लीड उनके हाथ नहीं लगी थी । फिरौती की रकम भी बरामद नहीं हुई थी ।

कुल मिलाकर ऐसा लगता था कि लिखने वाले ने पुरानी कट्टिंग्स के आधार पर ही सनसनी बनाए रखने के लिए, वो आर्टिकल लिख मारा था ।

बद्री ने मैगजीन मेज पर डालकर अपने दोनों हाथ गरदन के नीचे रख लिए और छत को ताकने लगा ।

–'मैं पूछ रहा हूं ।' भोलानाथ ने अपना सवाल दोहराया–'हमें कब तक यहाँ रहना पडेगा ?'

–'जब तक मुझे यकीन नहीं हो जाता बाहर जाने में कोई खतरा नहीं है ।'

भोलानाथ उठकर सिंक के पास पहुंचा । बगल में बनी कैबिनेट से बोतल निकालकर कुढ़ता हुआ सा बोला–'इसमें मुश्किल से दो–तीन पैग बचे हैं । फिर हमारे पास व्हिस्की भी ख़त्म हो जायेगी ।' और गिलास में थोडी व्हिस्की डालकर पानी मिलाया–'कम से कम इतना तो हम कर ही सकते है कि मारिया के ठिकाने से दो लड़कियां यहाँ बुला लें । इस तरह और कुछ नहीं तो वक्त तो आराम से गुजर जाएगा ।

–'नहीं ।' बद्री ने कहा–'तुम भूल रहे हो फिरौती की रकम का खरीदार एक बहुत बड़ी आर्गेनाईजेशन का अहम हिस्सा है । अगर उसके आदमी लड़कियों का पीछा करते हुए यहां आ पहुंचे तो हम बेमौत मारे जाएंगे । नहीं, टकरु, हम ऐसा नहीं कर सकते । उन लोगों की सरगर्मी खत्म होने तक हमें यही छिपे रहना होगा । फिर जैसे ही मामला ठंडा पड़ेगा हम यहां से खिसककर बहुत दूर चले जाएँगे ।'

–'ठीक है । अगर तुम्हें इसमें खतरा नजर आता है तो हम मारिया के यहां से लड़कियां नहीं बुलाएंगे । मैं खुद ही बाहर जाकर दो बाजारू लड़कियां पकड़ लाता हूँ...।'

–'नहीं, हम औरत के लफड़े में नहीं पड़ेंगे । औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती । और फिर बाजारू औरतें...वे तो और भी ज्यादा खतरनाक होती हैं । बद्री उसे समझाने की कोशिश करता हुआ बोला–'क्या तुम्हारे भेजे में यह बात नहीं घुसती कि आर्गेनाईजेशन ने हमारी तलाश में हर जगह अपने आदमी लगा रखे होंगे । जरा सोचने की कोशिश करो जब हमें खुले आम गोलियों से भूनने की कोशिश की जा सकती है तो और क्या कुछ नहीं किया जा सकता । उन लोगों को इस बुरी तरह हमारी तलाश कि उन्होंने अपने सोर्सेज के जरिए इस शहर की तमाम बाजारू औरतों, बार्स, होटल्स, जुआघरों वगैरा को हमारे बारे में चेतावनी दे दी होगी और अब उन सबकी निगाहें हम पर ही लगी होंगी ।'

टकरु ने गिलास से तगड़ा घूँट लेकर हाथ के पृष्ठ भाग से अपने मोटे होंठ पोंछ लिए ।

–'यह भी तो हो सकता है, उन लोगों ने समझ लिया हो हम पहले ही शहर छोड़कर जा चुके हैं ।' उसने कहा, और अपने गिलास में और व्हिस्की डालनी चाही । लेकिन बद्री को अपनी ओर देखता पाकर इरादा बदल दिया–'तुम चौबीसों घंटे यही पड़े रहना चाहते हो तो शौक से पड़े रहो । मुझे कोई एतराज नहीं है । लेकिन मैं इस घुटन को और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता । मुझे खुली हवा चाहिए ।'

बद्री ने गरदन के नीचे से अपने हाथ निकाले और उठकर बैठ गया ।

–'देखो, टकरु, मुझे तुम्हारी नहीं अपनी फिक्र है ।' वह बोला–'अगर तुम उनके हाथ पड़ गए तो वे सीधे मेरी छाती पर भी आ चढ़ेंगे । इसलिए यहां से बाहर जाने का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो ।'

टकरु के चेहरे की मांसपेशियों में कसाव पैदा हो गया ।

–'तुम भी एक बात अच्छी तरह समझ लो, बद्री ।' वह कड़ी निगाहों से उसे घूरता हुआ बोला–'जब से मैंने तुम्हारा साथ पकड़ा है । तुम हमेशा मुझ पर हुक्म चलाते रहे हो–टकरु, यह करो । टकरु, वह करो और मैं आंखें भींचकर तुम्हारी बातें मानता रहा हूँ । लेकिन इस कमरे में मेरा दम घुट रहा है । अगर मैं यही बन्द रहा तो जल्दी ही पागल हो जाऊंगा । इसलिए मैंने बाहर जाने का फैसला कर लिया है ।'

–'मैं मानता हूँ, तुम मेरी बात मानते रहे हो । लेकिन ऐसा करके क्या तुम्हें कभी पछताना पड़ा है ? क्या मैंने कभी तुम्हें गलत सलाह दी है ? मैंने हमेशा सही और फायदे की बातें ही की हैं । इस वक्त भी वही कर रहा हूँ । मेरी बात मानों और बाहर जाने का इरादा छोड़ दो । बद्री गौर से टकरु को देख रहा था । एक पल के लिए उसे लगा उसके चेहरे पर विद्रोह के भाव थे । लेकिन इससे पहले कि वह यकीनी तौर पर समझ पाता टकरु ने उसकी ओर से पीठ कर ली थी–'अगर एक और ड्रिंक लेना चाहते हो तो ले लो ।' वह बोला–'मेरा अभी मन नहीं कर रहा है ।'

टकरु ने बोतल उठाकर गिलास में थोड़ी और व्हिस्की डाल ली । बोतल वापस रखते समय उसने देखा कि उसमें एक पैग से भी कम व्हिस्की बची थी । उसने बची हुई व्हिस्की भी गिलास में डाल ली ।

–'अरे, यह क्या कर रहे हो ?' बद्री ने टोका–'आराम से पियो ।'

टकरु ने उसकी बात पर ध्यान न देकर गिलास में पानी डाल लिया ।

बिस्तर पर बैठे आशंकित निगाहों से अपने लम्बे–चौड़े पार्टनर की पीठ को ताकते बद्री को डर सा लगने लगा । उसने धीरे से अपना हाथ तकिए के नीचे घुसेड़ दिया । वहाँ रखी रिवाल्वर के दस्ते का स्पर्श उसे आश्वस्त सा करता प्रतीत हुआ । टकरु के व्यवहार से वह साफ महसूस कर रहा था उनके बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने वाली है । कई साल पहले चंद महीनों के लिए एक बार टकरु को जेल जाना पड़ा था । तभी से उसे ज्यादा देर किसी एक स्थान पर बन्द रहने से बेहद चिढ़ हो गई थी । इसी वजह से उसे घुटन महसूस होती थी और वह बाहर जाने के लिए बेताब हो जाता था । मौजूदा हालात में उसका बाहर जाना जितना खतरनाक था । उससे कहीं ज्यादा खतरनाक यह था कि ऐसी हालत में वह हिंसक हो जाया करता था ।

टकरु की पीठ को पूर्ववत् ताकता बद्री व्याकुलतापूर्वक सोच रहा था क्या वह सिर्फ बातों से उसे काबू में रख पाएगा । उसकी उंगलियां स्वयंमेव रिवाल्वर के दस्ते पर कसती चली गई ।

और इससे बेखबर टकरु उसी तरह उस की ओर से पीठ किए खड़ा रहा ।

* * * * * *

बाहर जाने के लिए अकेला टकरु ही बेताब नहीं था ।

फिरौती की रकम के खरीदार की भी कमोबेस यही हालत थी । शेव न करने की वजह से उसकी दाढ़ी बढ़ने लगी थी । आँखें सुर्ख हो रही थी और गले की नसें फूली सी नजर आ रही थीं । इन तमाम बातों की जाहिरा वजह थी–ड्रेसिंग टेबल पर एक कतार में रखी खाली बोतलें ।

कुल मिलाकर वह एक ऐसा हताश आदमी नजर आ रहा जिसे अपना खौफनाक अंजाम सामने दिखाई दे रहा था । उसे पता चल चुका था शमशेर सिंह भी इसी शहर में आ पहुंचा है । और उनके आगमन का एक ही अर्थ था–उसे अपने सोर्सेज ने पता लग चुका था फिरौती की रकम बेचने वाला कौन था और अब वह बद्री और बॉक्सर को घेरकर अपने कब्जे में लेना चाहता था ।

वह लडखड़ातासा ड्रेसिंग टेबल के पास पहुंचा । एक–एक करके सभी बोतलों में बची व्हिस्की उसने एक गिलास में डाल ली । इस तरह एक तगड़ा पैग बन गया । उसने एक ही बार में गिलास खाली कर दिया ।

नीट व्हिस्की ने उसके गले में जलन मचा दी । फलस्वरूप उसे खांसी आ गई । मुंह बनाता हुआ वह अपने गले को सहलाने लगा ।

लेकिन उसकी सोच जारी थी । आर्गेनाइजेशन के स्थानीय आदमियों के जरिये शमशेर सिंह ने बद्री को भी जरूर ढूंढ़ निकालना था । फर्क सिर्फ इतना था कि यह काम जल्दी भी हो सकता था और इसमें थोडा वक्त भी लग सकता था । लेकिन हाथ में आने के बाद बद्री ने सब कुछ उगल देना था और शमशेर सिंह को आखिरकार पता लग ही जाना था फिरौती की रकम का खरीदार और उस रकम के नोटों को उस रकम के नोटों से, जो मनमोहन को भेजी गई थी, बदलने वाला कौन था ।

उसने बीस लाख रुपये के उन नोटों के बारे में सोचा जो उसने मनमोहन को भेजी जाने वाली रकम में से फिरौती की रकम के बदले में निकाले थे । वे तमाम नोट उसने अपने बैंक लाकर्स में रख दिए थे । अब वही रकम उसका इकलौता सहारा थी । तो क्या वह भाग जाए और उन नोटों को निकालकर कहीं गायब हो जाए । लेकिन जाएगा कहाँ ? अगर कहीं चला भी गया तो क्या शमशेर सिंह से बच जाएगा ?

खुद को झूठी तसल्ली देना बेकार था । शमशेर सिंह के हाथ इतने लम्बे थे कि उसकी पकड़ से बच पाना नामुमकिन था ।

उसके बचने की अब सिर्फ एक ही सूरत थी–शमशेर सिंह के हाथों में पड़ने से पहले बद्री और उस बॉक्सर के बच्चे को ठिकाना लगा दिया जाए । मगर यह काम आसान नहीं था । उसकी नाकाम कोशिश ने उन दोनों को अण्डरग्राउण्ड कर दिया था । अपनी नाकामी पर वह खुद को बुरी तरह कोसने लगा । अगर उस रात कामयाब हो जाता तो सारा झंझट उसी वक्त खत्म हो गया होता । जबकि अब उसे वक्त के साथ एक ऐसी दौड़ लगानी पड़ रही थी । जिसमें तमाम हालात उसके खिलाफ थे । लेकिन हार जाने से पहले हार मान लेने वाला वह भी नहीं था ।

वह मेज के पास पहुंचा । वहीं पड़े दस्ताने उठाकर जेब में ठूंस लिए । दूसरी रिवाल्वर पहले ही हासिल कर चुका था ।

वह एक बार फिर कोशिश करने के लिए तैयार हो गया ।

* * * * * *

अजय उस अपार्टमेंट हाउस के सम्मुख टैक्सी से उतरा । जिसका पता शमशेर सिंह ने उसे दिया था ।

भाडा चुकाकर फुटपाथ पर खड़ा हो गया और आस पास निगाहें दौड़ाई । इलाका बहुत ज्यादा बढ़िया न होते हुए भी खासा महंगा था ।

वह इमारत में दाखिल होकर लॉबी से गुजरता हुआ लिफ्ट के सम्मुख पहुंचा ।

अधेड़ लिफ्टमैन बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था ।

–'सिगरेट खत्म कर लो ।' अजय बोला–'मुझे जल्दी नहीं है ।'

–'कौन से फ्लोर पर जाना है आपने ?' लिफ्टमैन ने पूछा ।

–'जिस फ्लोर पर बद्री प्रसाद सोनी का अपार्टमेंट है ।' अजय गौर से उसे देखता हुआ बोला ।

लिफ्टमैन ने सर से पाँव से देखा मानों उसके बारे में कोई सही राय कायम करना चाहता था ।

–'वह अपने अपार्टमेंट में नहीं है, जनाब ।' उसने जवाब दिया ।

–'फिर कहा है, जनाब ?' अजय ने उसी के लहजे में पूछा ।

–'शहर से बाहर गए लगते हैं ।' लिफ्टमैन खींसे निपोरता बोला–'दो रोज से मैंने उन्हें नहीं देखा ।'

अजय उसकी खसलत पहचान चुका था । उसने जेब से सौ रुपये का एक नोट निकाल कर उसके सामने हिलाया ।

–'अगर मेरे कुछ सवालों के सही जवाब देना चाहो तो इसका जुड़वां भाई भी मैं पैदा कर सकता हूँ ।'

लिफ्टमैन की आंखों में लालच झांकने लगा ।

–'आपकी तारीफ जान सकता हूँ ?' उसने हिचकिचाते हुए पूछा ।

–'मैं प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ ।' अजय ने कहा और अपना प्रेस कार्ड निकालकर यूं उसके सामने लहराया की उसे बस फोटो ही नजर आ सके । फिर कार्ड वापस जेब ने डालकर पूछा–'बोलो, सौदा मंजूर है ?'

लिफ्टमैन ने सिगरेट का अवशेष नीचे डालकर जूते से कुचल दिया ।

–'अन्दर चलिए ।' वह बोला ।

दोनों लिफ्ट में सवार हो गए ।

लिफ्टमैन ने जंगला बन्द करके फोर्थ फ्लोर का बटन दबा दिया ।

लिफ्ट ऊपर जाने लगी ।

तीसरे खण्ड से गुजरने के बाद अचानक उसने लिफ्ट रोक दी ।

–'क्या पूछना चाहते हैं आप ?' उसने सीधा सवाल किया ।

–'दो रात पहले इस इमारत के बाहर गोलियां चली थी । अजय ने पूछा–'क्या बद्री भी उसमें इनवाल्व था ?'

–'इसका जुड़वा भाई नजर नहीं आ रहा । लिफ्टमैन ने उसकी उंगलियों में फंसे नोट की ओर इशारा किया ।

अजय ने सौ रुपये का एक और नोट निकाल लिया ।

–'अब तो नजर आ रहा है ?'

लिफ्टमैन ने मुस्कराते हुए सर हिलाकर हामी भर दी ।

–'उस रात गोलियां चलने और दरवाजे का कांच टूटने की आवाजें सुनते ही मैंने खुद को लिफ्ट में बन्द कर लिया था । मैं सिर्फ तभी उन्हें देख पाया । जब वे गली की ओर भागे थे । वे दोनों बद्री प्रसाद और उसका साथी ही थे ।' उसने कहा और अजय की उंगलियों से दोनों नोट खींचकर अपने कोट की भीतरी जेब में ठूंस लिए ।

–'यह बात तुमने पुलिस को नहीं बताई ?'

–'नहीं ।'

–'क्यों ?'

–'उनके लिए परेशानी खड़ी करके मुझे क्या मिलता ? वे दोनों अच्छे आदमी थे । अक्सर मुझे टिप देते रहते थे । इसके अलावा एक बात यह भी थी कि शूटिंग उन्होंने शुरू नहीं की । कोई तीसरा था जो उन्हें मार डालना चाहता था ।

–'वह तीसरा कौन था ?'

–'पता नहीं । बारिश की वजह से बाहर रोशनी बहुत कम थी । उसे ठीक से नहीं देख पाया ।'

अजय की आँखें सिकुड़ गई ।

–'उस दौरान किसी संदिग्ध व्यक्ति को तुमने इमारत में या बाहर आस–पास देखा था ? या कोई उन दोनों के बारे में पुछताछ करने आया था...?'

–'इतनी जल्दबाजी मत कीजिए, जनाब । कुछ देर पहले आपने जो पैट्रोल डाला था । वो खत्म हो चुका है । उतना ही पैट्रोल और डालिए । तब गाड़ी आगे चलेगी ।'

अजय ने दो नोट और निकाल लिए ।

–'आप बहुत अच्छे आदमी हैं ।' लिफ्टमैन बोला–'मैंने भी इस मामले से ताल्लुक रखती हरएक बात को अपने दिमाग में करीने से सजा रखा है । मुझे अच्छी तरह याद है, शूटिंग से पहली रात एक आदमी यहां आया था । जब मैं बद्री प्रसाद और उसके साथी को लेकर नीचे आया । वह आदमी लॉबी में बैठा अखबार पढ़ रहा था । उन दोनों के बाहर चले जाने के बाद वह मेरे पास आया और एक नाम लेकर मुझसे पूछा क्या वह फलां आदमी था । जो नाम उसने लिया था । वो तो मुझे अब याद नहीं आ रहा । लेकिन इतना याद है वो नाम बद्री प्रसाद नहीं था । जबकि उस आदमी का इशारा बद्री प्रसाद की ओर ही था ।'

–'उस आदमी को पहले कभी या बाद में भी देखा था ?'

–'नहीं ।'

–'उसका हुलिया बता सकते हो ?'

–'हां ।' लिफ्टमैन यूं बोला–'मानों याद करने की कोशिश कर रहा था–'सांवला रंग, औसत कद– बुत, चेहरे पर चेचक के दाग और उम्र यही कोई पैंतिसेक साल जब मैंने उससे कहा कि वह बद्री प्रसाद था और उसके द्वारा पूछे गए नाम का कोई आदमी इस इमारत में नहीं रहता तो वह चला गया ।'

–'और भी कुछ पूछा था उसने ?'

–'उसकी बातों से लगता था अपने किसी दोस्त को फोन करना चाहता था । मैंने उसे बता दिया पास ही तार घर है वहाँ से जहां चाहे फोन कर सकता था । लिफ्टमैन ने कहा और उसके हाथ से सौ रुपये के दोनों नोट खींचकर अपने कोट की भीतरी जेब में ठूस लिए ।

–'उस आदमी के बारे में कुछ और बता सकते हो ?'

–'नहीं लेकिन एक ऐसी चीज जरूर दे सकता हूँ । जिससे आप खुद शायद उसके बारे में पता लगा सकते है ।'

–'क्या चीज है ?'

लिफ्टमैन अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराया ।

–'इस वक्त आपका हाथ खाली है । पहले की तरह जुड़वा भाई उसमें नजर नहीं आ रहे ।'

मजबूरन अजय को दो नोट और निकालने पड़े ।

–'अब तो नजर आ रहे हैं ?'

–'हाँ । लाइए, मुझे दीजिए ।'

अजय ने नोट उसे दे दिए ।

लिफ्टमैन ने बदले में कागज की एक खाली माचिस दे दी । माचिस के फ्लैप पर खूबसूरत मोनोग्राम के साथ छपा था–'होटल प्लाजा, विशालगढ़ ।

–'वह उसी आदमी की है ?' अजय ने पूछा ।

–'हाँ ।'

–'तुम कहां से मिली ?'

–'लॉबी में जिस कुर्सी पर वह बैठा था । उसके चले जाने के बाद उसकी बगल में पड़ी मिली थी ।'

–'तुम यकीनी तौर पर कह सकते हो उसीने इसे वहां फेंका था ?'

–'हां । उस रोज शाम को सफाई की जाने के बाद उसके अलावा और विजिटर इमारत में नहीं आया था ।'

–'यह भी तो हो सकता है, इमारत में रहने वाले ही किसी व्यक्ति ने इसे वहां फेंक दिया था ।'

–'नहीं, यहाँ सभी कायदे के लोग रहते हैं । उनमें से किसी से भी ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं की जा सकती । इसके अलावा मुझे अच्छी तरह याद है उस आदमी के जाने से पंद्रह–बीस मिनट पहले तक यह वहां नहीं थी । अगर होती तो मुझे ज़रूर दिखाई दे जा जाती । क्योंकि नीचे पहुंचते ही सबसे पहले विज़िटर्स के लिए पड़ी कुर्सियों की ओर ध्यान से देखता हूँ । मुझे अक्सर वहां से वो चीजें मिलती रहती हैं जिन्हें या तो लोग भूल जाते हैं या फिर उनकी लापरवाही की वजह वे वहां गिर जाती हैं ।'

अजय को उसके तर्क में दम नजर आया । उस जैसे लालची आदमी का हर वक़्त मुफ्त के माल की तलाश में रहना मामूली बात थी । और इस मामले में ऐसे आदमियों की निगाहें कितनी तेज होती है । यह वह भी जानता था ।

उसने पेपर माचिस जेब में रखकर इस बार सौ रुपये के पाँच नोट निकाले ।

लिफ्टमैन, की आँखें फैल गई ।

–'ये किसलिए हैं ?' उसने अपलक नोटों को ताकते हुए पूछा ।

–'मैं बद्री के अपार्टमेंट की तलाशी लेना चाहता हूं ।' अजय ने सीधी बात की ।

–'नहीं जनाब ।' लिफ्टमैन हिलाकर इंकार करता हुआ बोला–'अगर उनमें से कोई वापस आ गया तो मैं मुसीबत में पड़ जाउंगा...।'

उसकी बात खत्म होने से पहले ही अजय ने उन नोटों में पांच नोट और मिला दिए ।

–'मैं दावे के साथ कहता हूँ, उनमें से कोई भी वापस नहीं आयेगा । साथ ही यह भी यकीन दिलाता हूँ कि इस अपार्टमेंट से कोई चीज मैं नहीं चुराउंगा । तुम अभी और बाद में भी मेरी तलाशी ले सकते हो ।'

लिफ्टमैन का सारा ध्यान नोटों पर केंद्रित था । उसके चेहरे पर व्याप्त भावों से स्पष्ट था उस पर लालच हावी होता जा रहा था ।

–'बोलो, क्या कहते हो ?' अजय ने उसे टोका ।

–'अगर किसी ने देख लिया । वह फंसी सी आवाज में बोला–'या बाद में किसी को पता चल गया तो मेरी नौकरी जाती रहेगी ।'

–'तुम बेकार घबरा रहे हो । ऐसा कुछ नहीं होगा ।' अजय उसे प्रोत्साहन देता हुआ बोला–'और अगर कोई गड़बड़ होती भी है तो मैं सम्भाल लूँगा । तुम पर या तुम्हारी नौकरी पर कोई आंच नहीं आएगी ।' और हाथ में पकड़े सारे नोट उसके कोट की जेब में ठूंस दिए ।

लिफ्टमैन पल भर हिचकिचाया फिर पलटकर पांचवें खंड का बटन दबा दिया ।

लिफ्ट पुनः ऊपर जाने लगी ।

पाँचवें खंड पर लिफ्ट रुकते ही लिफ्टमैन ने जंगला खिसकाकर खोल दिया ।

–'कौन सा अपार्टमेंट है ?' अजय ने सुनसान कारी डोर में निगाहें दौड़ाते हुए पूछा ।

–'बांयी ओर से दूसरा ।'

अजय लिफ्ट से निकलकर अपार्टमेंट से संमुख पहुंचा ।

जेब से चाबियों का एक गुच्छा निकालकर की होल में एक एक करके चाबियाँ ट्राई करने लगा ।

तीसरी चाबी से लॉक खुल गया ।

अजय ने लिफ्ट की ओर देखा । चिंतित खड़ा अधेड़ उसे ही देख रहा था ।

अजय ने भीतर दाखिल होकर दरवाजा पुनः बंद कर दिया । सिलसिले वार अपार्टमेंट की तलाशी लेनी शुरू कर दी ।

दोनों अलमारियां दो अलग–अलग साइज के पहनने वाले कपड़ों, जूतों वगैरा से भरी हुई थीं । वे सभी चीजें बढ़िया और कीमती थी ।

बैडरूम में बिस्तर पर दो वूलन ड्रेसिंग गाउन–पड़े थे । बाथरूम में शेविंग का सामान, टूथ–ब्रश वगैरा अपने सही स्थान पर मौजूद थे ।

कुल मिलाकर अपार्टमेंट की हालत से ज़ाहिर था वहां दो आदमी रह रहे थे और उनके कपड़ों वगैरा की मौजूदगी इस बात का सबूत थी उन्होंने वहाँ वापस लौटना था ।

करीब आधा घंटा बाद, बैडरूम में खड़ा अजय असमंजसतापूर्वक चारों ओर देख रहा था । उसके हाथ में लगभग डेढ़ दर्जन अश्लील तस्वीरों वाली मैगजीन थीं । जो उसे ड्रेसिंग टेबल की एक बड़ी सी दराज में मिली थीं । उनमें से एक मैगजीन के कवर पर बालपैन से लिखा था ।

टु भोला, विद लव फ्रॉम, रोजी, मारियाज मसाज पार्लर ।

स्पष्ट था भोलानाथ पांडे को अश्लील मैगजीनें इकट्ठी करने का शौक था । और उनमें से कम से कम एक मैगजीन उसे रोजी नाम की किसी औरत ने दी थी । जो मारियाज मसाज पार्लर में काम करती थी ।

अजय ने तमाम मैगजीनें वापस ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉअर में डाल दी ।

अपार्टमेंट से बाहर आकर उसने पुनः दरवाजा लॉक किया और पूर्ववत् सुनसान कारीडोर में चलता हुआ लिफ्ट की और बढ़ गया ।

लिफ्ट उस फ्लोर पर नहीं थी । इंडीकेटर बता रहा था वो ऊपर से आ रही थी ।

अजय बटन दबाकर इंतजार करने लगा ।

चंद सैकेंड पश्चात लिफ्ट आ रुकी ।

अधेड़ ने जंगला खोल दिया ।

उसमें पहले से ही दो औरतें मौजूद थीं । अजय भीतर दाखिल हुआ और धीरे से सर हिलाकर अधेड़ को आश्वस्त कर दिया कि कोई गड़बड़ नहीं हुई ।

अधेड़ ने पुन: जंगला बंद करके ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया ।

लिफ्ट नीचे जाने लगी ।

दोनों औरतों ने अजय पर उचटती सी निगाह डाली फिर अपनी बातों में लग गई ।

लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर जा रुकी ।

दोनों औरतें बाहर निकली लॉबी से गुजरकर इमारत से बाहर निकल गई ।

अजय ने जेब से 'प्लेयरज़ गोल्ड लीफ' का पैकेट निकालकर अधेड़ को सिगरेट ऑफर की और एक सिगरेट अपने होठों में दबा ली ।

–'उनके तमाम कपड़े और रोजमर्रा के इस्तेमाल की दूसरी जरूरी चीजें यहीं हैं ।' वह सिगरेटें सुलगाने के बाद बोला–'इससे लगता है, वे वापस जरूर आएंगे ।'

–'मेरा भी यही ख्याल है ।' अधेड़ सहमति सूचक सर हिलाकर बोला–'उस रात हुई शूटिंग से वे कुछ ज्यादा ही डर गए हैं । कुछ दिनों में जब उन्हें लगेगा मामला ठंडा पड़ गया है । वे वापस आ जाएंगे । वैसे भी किराया तो उन्होंने छह महीने का दे ही रखा है । जब उनका जी करेगा आ जाएंगे ।' उसने जोरदार कश लेकर धुआं उगलने के बाद अपेक्षाकृत धीमी आवाज़ में कहा–'उनमें से जो मुड़े–तुड़े कानो वाला पहलवान सा है । वह तो एक बार यहां भी आ चुका है ।'

अजय चौंका ।

–'कब ?'

–'शूटिंग के करीब पांच घंटे बाद सुबह के वक्त आया था । कुछ देर अपने अपार्टमेंट में रहा फिर चला गया ।'

–'तुमने बातें की थी उससे ?'

–'नहीं, अगर वह कुछ कहता तो मैं भी बोलता । वह परेशान और गुमसुम सा था । इसलिए भी मैंने उसे छेड़ना मुनासिब नहीं समझा ।'

–'ठीक किया ।' कहकर अजय ने पूछा–'तुमने मारिया मसाज पार्लर का नाम सुना है ?'

अधेड़ बड़े ही कुत्सित भाव से मुस्कराया ।

–'बहुत बार सुना है, जनाब ।' लेकिन वहां जा कभी नहीं सका । वो पैसे वालों के जाने की जगह है ।' वह यूं बोला, मानों वहाँ जाना उसकी जिन्दगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश थी–'अगर आपकी थोड़ी सी मेहरबानी और हो जाए तो मैं भी एक रात वहां गुजार सकता हूँ ।'

–'थोड़ी सी नहीं, मैं पूरी मेहरबानी करूंगा ।' अजय ने कहा–'अगर मेरा अंदाजा गलत नहीं है तो बद्री अक्सर वहाँ जाया करता था ।'

–'बद्री का तो पता नहीं लेकिन उसके पहलवान साथी की एक छोकरी वहां ज़रूर है । उसे दो–तीन बार वह यहां भी लाया था ।' अधेड़ लार टपकाता हुआ सा बोला–'एकदम गोरी–चिट्टी है, मेम जैसी । बाल भी कंधों तक रखती है । कद ऊँचा है जिस्म भरा हुआ और एकदम खिंचा–तना है । और उभार ऐसे कि देखते ही तबियत मचलने लगती है ।'

–'वह पेशेवर है । यह तुम कैसे कह सकते हो ?

–'अगर पेशेवर न होती तो रात में यहाँ दो मुस्टंडों के साथ क्या करने आती ?' अधेड़ ने कहा–'इतना ही नहीं एक रात मैंने उसे कहते सुना था–'मारिया को इतनी मसरुफ रात में मेरा बाहर रहना पसंद नहीं आएगा ।' तब पहलवान ने कहा था–'मारिया की फिक्र मत करो । उसे मैं तुम्हारी रात भर की कीमत चुका दूंगा । तभी मुझे पता चला वह वेश्या है और मैं उसे हासिल करने का ख्वाब देखने लगा ।'

–'तुम इतना जानते हो तो उसका नाम भी पता होगा ।' अधेड़ धूर्ततापूर्वक मुस्कराया ।

–"आप शायद भूल गए हैं पूरी मेहरबानी करने के लिए कहा था ।

–'हां, मैं वाकई भूल गया था ।' अजय बोला–'कितनी मेहरबानी चाहिए ?

अधेड़ ने खीसें निपोर दी ।

–'मैं क्या बताऊं ? आप खुद ही समझदार हैं ।'

–'ठीक है, प्यारे लाल ।' अजय ने कहा–'तुम भी याद करोगे किसी खानदानी रईस से पाला पड़ा है ।' और सौ रुपए के दस नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिए ।

अधेड़ घोर अविश्वासपूर्वक उसे देखने लगा ।

–'अब उल्लू की तरह आंखें क्यों फाड़ रहे हो ।' अजय ने कहा–'लो ।'

अधेड़ ने नोट ले लिए ।

–'आप वाकई दरियादिल इंसान हैं ।'

–'मैं दरियादिल नहीं हूँ । तुम खुशकिस्मत हो यहाँ आने से पहले पच्चीस हजार का एक मुर्गा कट गया था ।

अधेड़ ने किसी गावदी की भांति पलकें झपकाईं ।

–'जी इ ई ।'

–'कुछ नहीं । उस लड़की का नाम बताओ ।'

–'ओह !' अधेड़ बोला–'वह पहलवान उसे रोजी कहता था ।'

अजय समझ गया, वह वही रोजी थी जिसका नाम उसने मैगजीन के कवर पर पढ़ा था ।

–'अब मारिया के मसाज पार्लर का पता भी बता दो ।'

अधेड़ ने बता दिया ।

अजय मन ही मन पते को दौहराता हुआ बाहर निकल गया ।