जब जगदीश, मल्होत्रा को कंधे पर लादे वहाँ पहुँचा और सब इकट्ठे होकर बातें करने लगे थे। तब प्यारा और सोनू पेड़ पर बैठे सब कुछ देख रहे थे और मजे ले रहे थे।

"सोनू, ये तो परेशान हो जायेंगे कि इनके साथी को किसने बेहोश किया...। हमें ढूंढ नहीं सकेंगे।"
"मुझे तो बहुत मजा आ रहा है।" सोनू खुश था।
"मुझे भी...।"
"इन्हें पता ही नहीं चलेगा कि हम पेड़ पर बैठे हैं। यहाँ तो घना अँधेरा है।
"वो देखो...।" प्यारे के होंठों से निकला--- "उसने गुस्से में रिवाल्वर निकाल ली है।"
"ओह, अब तो वो इधर आयेगा।"
"इधर क्यों?"
"हमें ढूंढेगा कि...।"
"उसे क्या पता कि हम पेड़ पर हैं। वो देख, वो रिवाल्वर पकड़े इधर ही आ रहा है।"
"गुस्से में लगता है।"
"दूसरा भी इसी तरफ आने को चल पड़ा है...।" प्यारे बोला--- "मुझे तो डर लग रहा है।"
"डर मत। मैं तेरे साथ हूँ...।"
"अब तो तेरी जेब में कुछ नहीं है ना?"
"जेब में, क्या मतलब?"
"भगते की टॉर्च जो गिरी थी पहले...।"
"अब गिरने वाली चीज नहीं है। चुप हो जा। वो इधर आ पहुँचे।" सोनू फुसफुसा उठा।
दोनों की निगाह मलिक और सुदेश पर टिक चुकी थी।
वे दम साधे उन्हें देख रहे थे।
"यहीं कहीं से जगदीश को मल्होत्रा मिला था।" मलिक बोला।
सुदेश ने भी रिवाल्वर निकाल ली।
दोनों आसपास की जगहों को देखने लगे।
"पेड़ों पर भी नजर मारी। वो पेड़ से मल्होत्रा पर कूदा था।"
प्यारे और सोनू दुबके रहे उस पेड़ पर। उन्हें भीगी बिल्ली बने देखते रहे।
करीब दस मिनट तक उनकी साँस अटकी रही, जब तक मलिक और सुदेश नीचे नजर आते रहे। उनका वाला पेड़ देखने की नौबत नहीं आई। वे पहले ही वापस लौट गए।
"सोनू...।" प्यारा धीमे से बोला--- "मेरी तो साँस ही अटक गई थी, जब वो दोनों इस तरफ आने लगे थे।"
"मेरी साँस तो नहीं अटकी। मैं तो उन पर छलांग लगाने को तैयार था।"
"वो दो थे। उनके पास रिवाल्वरें भी थीं और...।"
"तो क्या हो गया! मैं कोई डरता हूँ...।"
प्यारे ने सोनू पर नजर मारकर कहा---
"नहीं डरता?"
"बिल्कुल भी नहीं...।"
"अच्छा। मुझे नहीं पता था कि तू इतना बहादुर है।" प्यारे ने मुँह बनाकर कहा।
"मैं बहुत बहादुर हूँ प्यारे।"
"होगा। मुझे तो गिन्नी की याद आ रही है। मैं जरा एक बार उसके पास चक्कर लगा आऊँ...।"
"तेरी मर्जी...।" अगर तेरे पीछे से वैन खुल गई तो?"
"तो?" सोनू को देखा प्यारे ने।
"तो लाख-डेढ़ जो मिलना है, वो डूब जायेगा। गिन्नी को छोड़। वो नींद में... ओह... वो देख...।" सोनू की नजर सामने थी।
प्यारे ने भी उधर देखा।
"क्या है?"
"सरदार। वो सरदार ही है। बहुत देर में आया सरदार। क्या चाल है। कितनी शान से चल रहा है। मस्त हाथी की तरह। इसे खबर मिल गई होगी कि वैन खुलने वाली है, तभी ये आ पहुँचा।"
"हाँ, लगता तो ये सरदार ही है।" प्यारे ने फौरन सिर हिलाकर कहा।
वो देवराज चौहान था।
जो कि पेड़ों के बीच में से निकलकर, शांत अंदाज में रोशनी के घेरे में आता जा रहा था।
"सरदार होना भी कितना अच्छा लगता है।" सोनू कह उठा।
"देखता रह। सरदार आया है तो अब कुछ नया होगा।"
"सरदार खतरनाक लगता है प्यारे।"
"तो?"
"ये आसानी से लाख-डेढ़ लाख हाथ में नहीं रखेगा। पाँच-दस हजार में ही टरका देगा।" सोनू ने कहा।
"ये तो गलत बात है।"
"बात तो गलत है ही। लेकिन हम पहले तीन लाख मांगेंगे।"
"इतने ज्यादा?"
"तीन मांगेंगे तो एक पर बात जमेगी। लाख से बात शुरू की तो पाँच हजार ही मिलेगा।"
"ठीक है, ऐसे ही सही।"
◆◆◆
देवराज चौहान पर सबसे पहले अम्बा की नजर पड़ी तो उसे पैरों तले से जमीन खिसकती महसूस हुई। जैसे उसे विश्वास ही नहीं आया कि देवराज चौहान यहाँ आ गया है। उसने आँखें रगड़कर पुनः देखा।
देवराज चौहान ही था वो।
तभी मल्होत्रा ने देखा देवराज चौहान को।
वो ठगा सा रह गया। साँस लेना भूल गया वो। आँखों में अविश्वास के भाव नाच उठे।
यही वो वक्त था कि मलिक और सुदेश पेड़ों के झुरमुट से वहाँ आ पहुँचे। सबसे पहले उनकी निगाह सामने से आते देवराज चौहान पर ही पड़ी। मलिक और सुदेश, दोनों ही ठिठक गये थे।
"ये तो देवराज चौहान है...।" सुदेश के होंठों से निकला।
"ये यहाँ कैसे पहुँच गया?" मलिक परेशान हो उठा।
"अब क्या होगा?" सुदेश हड़बड़ाहट में था।
इसी पल जगमोहन ने देख लिया था देवराज चौहान को। जगमोहन का चेहरा खुशी से भर उठा। वो तेजी से आगे बढ़ता, देवराज चौहान के पास पहुँचता कह उठा---
"सोहनलाल ने बताया था कि तुम कहीं पास ही हो और आने वाले हो...।"
मलिक और सुदेश की नजरें मिलीं। उन्होंने सोहनलाल की तरफ देखा।
सोहनलाल वैन के पीछे से निकल कर सामने आ गया था।
"मलिक! सोहनलाल और जगमोहन एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं।" सुदेश कह उठा।
"ऐसा ही लगता है।"
"देवराज चौहान को, सोहनलाल ने खबर देकर यहाँ बुलाया है।"
"तभी तो ताले खोलने में देर लगा रहा था हरामी...।"
"हम बेवकूफ बनते रहे।"
मलिक कुछ न बोला।
"तुम्हें पहले नहीं पता था कि देवराज चौहान और सोहनलाल एक-दूसरे को जानते हैं?"
"नहीं पता था।" मलिक ने शब्दों को चबाकर कहा।
"लेकिन अब होगा क्या?"
"सब ठीक रहेगा। देवराज चौहान को 60 करोड़ चाहिए और हमें वो कागज...।"
देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा---
"मलिक कौन है?"
"वो...।" जगमोहन ने मलिक की तरफ इशारा किया।
"इसने क्या तुम्हें धमका रखा था कि तुमने इसकी बात न मानी तो, ये मुझे मार देगा।"
"हाँ...।"
"तुम इसके झांसे में कैसे आ गए?"
"झांसा नहीं था। सच कह रहा था ये। इसने मुझे वैन में बिठाकर, कई बार तुम्हें निशाने पर रखकर ये साबित किया कि ये तुम्हें मार सकता है। मुझे इसकी बात माननी पड़ी।
बाद में ये यही कहता रहा कि तुम, इसके आदमियों की नजरों में हो। जबकि इसने तुम पर से आदमी हटा लिए थे। प्राइवेट जासूस है ये। शरीफ बंदा है। छोड़ो इसे।"
"मलिक ने और इसके साथी ने रिवाल्वरें क्यों पकड़ रखी हैं?"
"तुम्हारे लिए नहीं हैं। मल्होत्रा उधर बेहोश मिला था तो ये देखने गये कि वहाँ कौन है।" फिर जगमोहन ने ऊँचे स्वर में मलिक और सुदेश से कहा--- "रिवाल्वरें वापस रखो।"
दोनों ने फौरन रिवाल्वरें वापस रख लीं।
देवराज चौहान मलिक के पास पहुँचा और शांत स्वर में बोला---
"यहाँ मेरे आदमी फैले हैं। कोई शरारत मत करना। वो इधर ही देख रहे हैं।"
मलिक ने सिर हिला दिया।
देवराज चौहान, जगमोहन के साथ कुछ कदम दूर पहुँचकर बोला---
"यहाँ की क्या स्थिति है, वो बताओ।"
"पहले तुम्हें बताता हूँ कि मलिक किस चक्कर...।"
"जान चुका हूँ। उधर वो दोनों आदमी मिल गए थे, जिनके लिए मलिक काम कर रहा है। उन्होंने सब बता दिया कि मलिक किस चक्कर में है। तुम यहाँ की स्थिति बताओ।"
जगमोहन ने यहाँ के हालात बताये।
"तो यहाँ पर सबसे बड़ी समस्या है वो गनमैन, जो भीतर बैठे हैं।"
"वो बाहर नहीं आना चाहते?" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"उन्हें इस बात का डर है कि उन्हें गोली मार दी जाएगी। मैंने बहुत समझाया, परन्तु वो मान नहीं रहे।"
"नहीं मानेंगे वो। उस स्थिति में कोई भी नहीं मानेगा।"
"तो उनका क्या किया जाए?"
"मैं कोशिश करता हूँ उन्हें संभालने की।"
"ठीक है तुम उन्हें संभालो। लेकिन मलिक का क्या करोगे?" जगमोहन ने पूछा।
"मलिक जो चाहता है, वो ले ले। हमारा उनसे कोई मतलब नहीं...।"
जगमोहन कुछ नहीं बोला।
देवराज चौहान सोहनलाल के पास पहुँचा। जगमोहन साथ रहा।
"कैसे हो सोहनलाल?" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"बढ़िया?"
"नानिया भी ठीक है?"
"एकदम फिट।"
"वैन के तालों की क्या पोजीशन है?"
"एक ताला बंद है। दो मिनट में खोल दूँगा।" सोहनलाल ने कहा।
"खोल दो।"
"लेकिन वैन में गनमैन हैं दो... वो...।"
"मैं उनसे बात करता हूँ। तुम लॉक खोल दो। लेकिन दरवाजों के पल्ले खोलने की गलती मत करना।"
"ठीक है।" सोहनलाल ने कहा और वैन के पीछे की तरफ बढ़ गया।
"भीतर बैठे गनमैनों से, कहाँ से बात की जा सकती है?" देवराज चौहान ने कहा।
"वैन की ड्राइविंग सीट के पीछे तीन इंच लंबी-चौड़ी खिड़की है। उस पर लगी शीट को सरका कर पर बात की जा सकती है। परन्तु इस बात का ध्यान रखना है कि वो वहाँ पर गन रखकर घोड़ा ना दबा दें।"
देवराज चौहान ने कश लेकर सिर हिलाया।
"मैं उन्हें बता चुका हूँ कि इस काम में तुम शामिल हो।"
"ठीक है। बात करता हूँ उनसे।" देवराज चौहान ने कहा और वैन की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने मलिक की तरफ देखा।
मलिक ने हाथ के इशारे से पास आने को कहा।
जगमोहन उसके पास जा पहुँचा।
"तुम और सोहनलाल हमें बेवकूफ बनाते रहे, जबकि तुम दोनों एक-दूसरे को बखूबी जानते हो?"
जगमोहन मुस्कुराया।
"सोहनलाल वैन के लॉक खोलने का ड्रामा करता रहा, जबकि हकीकत में वो देवराज चौहान के आने का इंतजार...।"
"अब तो तुम समझ गए होगे।" जगमोहन पुनः मुस्कुराया।
"क्या?"
"तुम बेवकूफ हो।"
मलिक ने होंठ भींच लिए।
सुदेश ने हड़बड़ा कर मलिक को देखा।
"देवराज चौहान हमारे साथ किस तरह पेश आएगा?" मलिक ने पूछा।
"उन कागजों की जरूरत नहीं, जो तुम चाहते हो।"
सुनकर मलिक ने चैन की साँस ली।
"लेकिन उन गनमैनों का क्या करें, जो वैन के भीतर मौजूद हैं?" मलिक ने पूछा।
"देवराज चौहान उनसे बात करने गया है।" जगमोहन ने वैन की तरफ देखा तो देवराज चौहान को भीतर बैठे पाया। जगमोहन भी वैन की तरफ बढ़ गया।
मलिक और सुदेश की नजरें मिलीं।
"देवराज चौहान गनमैनों को बाहर आने को तैयार कर लेगा?" सुदेश ने पूछा।
"पता नहीं।" मलिक के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
मल्होत्रा, अम्बा, जगदीश भी मलिक के पास आ पहुँचे थे।
◆◆◆
देवराज चौहान वैन की ड्राइविंग सीट पर बैठा और पीछे बनी तीन इंच की खिड़की को सरकाया।
"मैं देवराज चौहान हूँ। सुन रहे हो मुझे?" देवराज चौहान बोला।
भीतर से आहट उभरी। परन्तु आवाज नहीं आई।
"सुन रहे हो मुझे कि नहीं?" देवराज चौहान बोला।
"तुम्हारी आवाज हम तक आ रहे है।" रोमी की आवाज सुनाई दी।
"तुम जवाहर हो या रोमी?"
"रोमी...।"
तब तक जगमोहन भी भीतर, बगल वाली सीट पर बैठा था।
"ठीक है। देवराज चौहान का नाम सुना है कभी?"
"हाँ। पैसे को सुरक्षा देते हैं हम तो सबसे बड़े डकैती मास्टर का नाम क्यों नहीं सुना होगा...।" रोमी की आवाज आई।
"और क्या सुना है मेरे बारे में?"
"कई बातें।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और बोला---
"सिगरेट लोगे?"
"नहीं। वैन में धुआं भर जाएगा। हमें तकलीफ होगी।"
"ठीक है।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "हमें दोस्त बन जाना चाहिए।"
"ये नहीं हो सकता...।"
"क्यों?"
"हम जिस पैसे को सुरक्षा दे रहे हैं, तुम लोग उसे हासिल करना चाहते हो।"
"पैसे को भूल जाओ। वो तो अब हमारा हो चुका है, सवाल तुम लोगों के जीने-मरने का है।"
रोमी की आवाज नहीं आई।
"पैसे को सुरक्षा तभी दी जा सकती है जब इंसान खुद सुरक्षित रहे--- और इस वक्त तुम सुरक्षित नहीं हो।"
जवाब में खामोशी रही।
तभी वैन का दरवाजा थपथपाया गया।
देवराज चौहान ने सिर घुमाकर देखा तो सोहनलाल को खड़े पाया।
"लॉक खोल दिया है।" सोहनलाल ने कहा।
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और छोटी-सी खिड़की की तरफ मुँह करके बोला---
"वैन के दरवाजे खुल चुके हैं। लॉक खुल गए हैं। सुन लिया तुम दोनों ने?"
जवाब नहीं आया।
"अब हमारे पास रुकने की कोई वजह नहीं है। पैसा तो हमारा है ही, तुम दोनों अपने बारे में सोचो।"
"क्या चाहते हो?" जवाहर की आवाज आई।
"हथियार वैन में रखकर, शराफत से बाहर आ जाओ। हम नोट लेकर चले जाएंगे।"
"ये नहीं हो सकता।"
"क्यों?"
"तुम गवाहों के रूप में हमें जिंदा क्यों छोड़ोगे?"
"मुझे गवाहों का डर नहीं। क्योंकि कानून से वास्ता रखने वाला हर कोई मुझे बहुत अच्छी तरह जानता है। पुराना खिलाड़ी हूँ मैं। कानून से वो डरते हैं, जो नए खिलाड़ी होते हैं या जिनका नाम पुलिस की लिस्ट में नहीं होता।"
जवाब में कुछ भी सुनाई नहीं दिया।
"मैं गोलियाँ नहीं चलाना चाहता। लाशें नहीं बिछाना चाहता। आज तक ऐसी नौबत ही नहीं आई कि दौलत पाने के लिए मुझे किसी का खून बहाना पड़े। नौबत आई तो जैसे-तैसे मामला संभाल लिया। अब भी तुम दोनों से बात करके मामला संभालने की कोशिश कर रहा हूँ। तभी तो मैंने पूछा था कि मेरे बारे में क्या जानते हो। मेरे बारे में थोड़ा बहुत भी जानते हो तो फिर यह भी जानते होगे कि मैं अपनी जुबान पर कायम रहने वाला इंसान हूँ। यह मेरा वादा है कि तुम दोनों बाहर आ जाओ। हम तुमसे कोई बात भी नहीं करेंगे। नोटों के बक्से नीचे उतारेंगे और तुम दोनों वैन लेकर यहाँ से चले जाना।"
खामोशी रही।
"इससे बढ़िया ऑफर तुम्हें कोई और नहीं देगा।" देवराज चौहान पुनः कह उठा।
खामोशी रही।
"जवाब दो। हमारे पास वक्त कम है। हम नोट निकालकर, यहाँ से चले जाना चाहते हैं।"
"पैसे की रखवाली करना, हमारा काम है।" रोमी की आवाज आई।
"पहले जान है। फिर काम है। इस वक्त मैं सलाह देता हूँ कि अपनी जान बचाओ।"
"हमें तुम्हारी बातों पर भरोसा नहीं।" जवाहर की आवाज आई।
"क्या तुमने कभी सुना कि देवराज चौहान ने कभी बेईमानी की है?"
"हम तुम्हें ज्यादा नहीं जानते।"
"तो अब मौका आया है तुम्हारे सामने। जान लो मुझे। मेरी बात मानकर गन छोड़ कर बाहर आ जाओ।"
"ये हम चाह कर भी नहीं कर सकते।"
"क्यों?"
"तुम पर भरोसा करने की हमारी हिम्मत नहीं हो रही। हमें डर है कि हमें गोली मार दी जाएगी।"
"तो भरोसा दिलाऊँ तुम्हें...।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।
"कैसे?"
"मैं तुम दोनों के सामने आ रहा हूँ, वैन का दरवाजा खोलकर। मुझे भरोसा है कि तुम लोग मुझे शूट नहीं करोगे।"
जवाब में आवाज नहीं आई।
जबकि पास बैठा जगमोहन बेचैन हो उठा।
"हम लोग आपस में मिलने जा रहे हैं। मैं तुम लोगों के सामने आ रहा हूँ...।"
"हम तुम्हें शूट कर सकते हैं।" रोमी ने भीतर से कहा।
"जरूर कर सकते हो। परन्तु मुझे भरोसा है कि ऐसा नहीं करोगे। हममें से किसी एक को तो दूसरे पर भरोसा करना ही होगा। तुम मुझ पर भरोसा करने को तैयार नहीं तो मैं तुम पर भरोसा करके सामने आ रहा हूँ...।"
देवराज चौहान दरवाजा खोलकर नीचे उतरा।
जगमोहन भी जल्दी से वैन से नीचे उतरा और देवराज चौहान के पास आ पहुँचा।
"ये तुम क्या कर रहे हो?" जगमोहन ने तेज स्वर में कहा।
"जरूरी है ऐसा करना--- वरना वो बाहर नहीं आने वाले। गोलियाँ चला देंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"वो तुम पर गोलियाँ चला देंगे।"
"मुझे नहीं लगता कि वो गोलियाँ चलाएंगे। बातों से वो लोग गम्भीर और समझदार लगे।"
"तुम इतने कम वक्त में उनका भरोसा कैसे कर सकते हो?"
"मैं उनका भरोसा नहीं कर रहा, बल्कि उन्हें यकीन दिला रहा हूँ कि उनकी जान सलामत रहेगी। इसलिए मुझे उनके सामने जाना ही होगा। उन्हें मेरी जान लेने की अपेक्षा अपनी जान बचाने की दिलचस्पी है। वो डरे हुए हैं।"
""इसी डर में वे तुम पर भी गोलियाँ चला सकते हैं।" जगमोहन खीझकर बोला।
सोहनलाल पास आ गया। उसके चेहरे पर गम्भीरता थी।
"जगमोहन ठीक तो कह रहा है, तुम्हें इस तरह उनके सामने नहीं जाना चाहिए।" सोहनलाल बोला।
"मेरे सामने जाए बिना, यह समस्या हल नहीं होने वाली।" देवराज चौहान ने कहा और वैन के पीछे की तरफ बढ़ गया।
"ये बेवकूफी है। इसे रोको सोहनलाल...।" जगमोहन बेचैनी से कह उठा।
सोहनलाल पलट तेजी से देवराज चौहान के पास पहुँचा।
"सोच-समझकर कदम उठाओ। तुम ठीक नहीं कर रहे...।"सोहनलाल ने उखड़े स्वर में कहा--- "वे तुम पर गोलियाँ चला देंगे।"
"मैं खाली हाथ उनके सामने होऊँगा तो वो गोलियाँ नहीं चलायेंगे। तब के दो मिनट निकल गए तो बाजी हमारे हाथ में होगी।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "तुम देखते रहो। वो गोलियाँ नहीं चलाएंगे।"
सोहनलाल होंठ भींचे खड़ा हो गया। नजरें देवराज चौहान पर थीं।
जगमोहन अभी तक वैन के ड्राइविंग डोर के पास परेशान खड़ा था।
मलिक तेजी से जगमोहन के पास आता कह उठा---
"देवराज चौहान क्या कर रहा है?"
"वो पागल हो गया है।"
"क्या मतलब?"
"वो गनमैनों के सामने जा रहा है।"
"ओह, वो उसे देखते ही गोली मार देंगे।" मलिक के होठों से निकला।
जगमोहन में गर्दन घुमाकर मलिक को घूरा।
"मैंने ठीक तो कहा है कि...।"
"तुमने ठीक कहा है, लेकिन देवराज चौहान यह बात नहीं समझ पा रहा।" जगमोहन दाँत पीसकर कह उठा।
"उसे रोको...।"
"वो नहीं रुकेगा। ये ही तो खास बात है उसमें कि जो बात उसके दिमाग में घुस जाए, वो, वही करके रहता है।"
जगमोहन ने रिवाल्वर निकाली और आगे बढ़कर वैन के दरवाजे के पास साइड में खड़ा हो गया। चेहरे पर खतरनाक भाव ठहरे थ। वो सोच चुका था कि अगर गनमैन गोली चलाते हैं तो वह उन्हें शूट करके ही रहेगा।
सोहनलाल ने गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देखा।
मलिक जगमोहन के करीब आ गया। उसने भी रिवाल्वर निकाल ली।
जगमोहन ने मलिक को देखा।
"जो भी मुसीबत सामने आएगी, उसका हम सब मिलकर मुकाबला करेंगे।" मलिक बोला।
अम्बा, जगदीश, सुदेश, मल्होत्रा भी रिवाल्वरें निकाले वैन के अगल-बगल आ खड़े हुए थे। वो सब तैयार थे कि अगर भीतर से गोलियाँ चलें तो, गनमैनों को हर हाल में खत्म कर देंगे।
देवराज चौहान वैन के पीछे वाले दरवाजे के पास खड़ा हो चुका था। पीछे कार की जलती हैडलाइट की रोशनी सीधे-सीधे वैन पर पड़ रही थी। देवराज चौहान का शरीर रोशनी में नहाया हुआ था।
देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता और दृढ़ता नजर आ रही थी।
देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर वैन के दोनों पल्लों को थामा और खोल दिया।
◆◆◆