जी ।” वह क्षमा मांगता - सा बोला ---- " मैं समझ गया ।”
“अब बताओ ----कौन थे वे ?”
“किराये के टट्टू ।”
“किराये पर लेने वाला ?”
“उसके बारे में उन्हें कुछ नहीं मालूम। सौदा फोन पर हुआ था । एक लाख में। पैसा उनमें से एक के बैंक में जमा हो गया।"
“क्या कहा गया था ? "
“आपकी लिमोजीन का नंबर दिया गया था। बताया गया था कि आप किसी समय महाराजा से यहां के लिए निकलेंगी। यह भी कहा गया था कि अगर लिमोजीन में मौजूद लोगों को मारने में कामयाब हो गए तो एक लाख और बैंक में जमा करा दिया जाएगा।"
“ और वे हमारे होटल के सामने जाकर खड़े हो गए ? "
“जी। मेरे आदमियों ने उन्हें पहले ही ताड़ लिया था । ”
एकाएक वह शगुन की तरफ पलटकर बोली- - - - “ अपने सवाल का जवाब मिला मेरे बच्चे?”
“क... कौनसे सवाल का ?” वह बुरी तरह बौखला गया ।
“कि अपराधी मेरे दिमाग के कितने नजदीक है !”
“म... मैं समझा नहीं आंटी ।”
“तभी तो कहा, बुद्धि पैनी करो। हमेशा याद रखना, अपराधी हर हाल में उस वक्त तक खुद को इन्वेस्टीगेटर से दूर रखने की कोशिश करता है जब तक उसे ये भरोसा रहता है कि वह उसके जेहन से दूर है लेकिन जैसे ही उसे यह खतरा सताने लगता है कि वह इन्वेस्टीगेटर के दिमाग में आने लगा है तो बौखलाने लगता है और उस हालत में अपने बचाव के जो रास्ते उसे सूझते हैं उनमें से एक यह भी है कि क्यों न इन्वेस्टीगेटर को ही खत्म कर दिया जाए!"
“ ऐसा है तो आप उसे पकड़ क्यों नहीं रहीं?"
“वक्त से पहले कुछ भी होना अच्छा नहीं होता।" महामाया के होठों पर मुस्कान रेंगीं ---- “क्या तुम्हें पता है कि किसी बच्चे का इस दुनिया में आना कुदरत की सबसे बड़ी नियामत है लेकिन फिर भी कोई नहीं चाहता कि उसका बच्चा वक्त से पहले गर्भ से बाहर आए । "
शगुन पर कुछ कहते नहीं बन पड़ा ।
“अब बताओ, कौन हैं वे ?” वह पुनः मराठा की तरफ घूमी।
“संजय कपाड़िया और सुधा भंसाली । ”
“क... क्या?”
मराठा चुप रहा।
“एक बात माननी पड़ेगी मराठा । "
“वह क्या?”
“ हत्यारा अपना काम जेट की रफ्तार से कर रहा है। इस बार पट्ठे ने एकसाथ दो का कल्याण कर दिया । ”
“इसके पीछे भी कोई वजह लगती है विभा जी ।”
“क्या वजह लगती है?”
“वे ऐसी पोजीशन में हैं कि मैं बता नहीं सकता।”
“दिखा तो सकते हो ?”
“वह तो करना ही पड़ेगा।"
“दिखाओ।” कहने के साथ वह आगे बढ़ गई।
गोपाल मराठा लपककर उससे आगे निकला ।
मंशा उसे वहां ले जाने की थी जहां लाशें थीं ।
अपनी आदत के मुताबिक तेज गति से चलती विभा जिंदल ने पूछा----“संबंधित लोगों को फोन कर दिए ?”
“भैरोसिंह भंसाली तो यहां हैं ही, संजय के घर कर दिया है । "
“कौन मिला ?”
“धनजय कपाड़िया ही मिल गए थे ।”
“उनसे मंजू को लाने के लिए कह दिया है न !”
“जी।”
“धीरज को भी बुला लो।”
“जी ।” कहते हुए उसने जेब से मोबाइल निकाला और चलते चलते ही नंबर पंच करने लगा ।
इमारत का आलीशान दरवाजा पार करने के बाद हमने जिस लॉबी में कदम रखा वह डबल हाईट थी । गोल । करीब चालीस बाई चालीस की। दीवारों पर दुनिया के प्रसिद्ध आर्टिस्टों की पेंटिंग्स लगी हुई थीं। सभी पेंटिंग्स में एक बात कॉमन थी । यह कि उनमें औरत-मर्द
के जिस्मों को अर्धनग्न वस्त्रों में उकेरा गया था। विभा ने उन्हें बड़ी दिलचस्प नजरों से देखा था। जबकि उनमें से कुछ पेंटिंग्स तो ऐसी थीं जिनमें हद ही कर दी गई थी । शगुन की मौजूदगी में मुझे उनकी तरफ देखने में भी हिचक हुई । “हिचक क्यों रहे हो वेद ?” वह कमबख्त मेरी उस क्षणिक हिचक को भी ताड़ गई- -“कला का अद्भुत नमूना हैं ये । क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि ये एक- एक पेंटिंग लाखों-लाख रुपयों की है ?”
“मेरे ख्याल से तो ये कला के नाम पर कलंक हैं।" मैं कह उठा ।
“संकीर्ण विचारों के हो, संकीर्ण विचारों के ही रहोगे।" वह गोपाल मराठा के पीछे एक बारादरी में बढ़ती बोली- -- “तुमने सुना होगा, सेक्स शब्दों या चित्रों में नहीं बल्कि आदमी की निगाहों में होता है।" मैं समझ नहीं पाया कि इस वक्त वह किस मूड में थी। जल्दी ही हम एक ऐसे कमरे के दरवाजे पर पहुंच गए जिसके बाहर नौकर टाइप के तीन आदमी और भैरासिंह भंसाली खड़े थे।
उन सभी के चेहरे लटके हुए थे। भैरोसिंह भंसाली ने जब विभा की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर दुख और गम ही नहीं, अजीब किस्म की शर्मिंदगी भी नजर आई। विभा ने नजदीक पहुंचते हुए पूछा ---- “फोन किसने किया था ? ”
“म... मैंने।” करीब चालीस वर्षीय व्यक्ति ने कहा ।
“साफ-साफ क्यों नहीं बताया कि लाशें किसकी हैं?"
“मैं लड़के को पहचानता नहीं था साब ।”
“लड़की को तो पहचानते थे ! वे तो तुम्हारी मेमसाब हैं!”
“दरवाजे से उनकी शक्ल नहीं चमक रही थी साब और दरवाजे से आगे मैं गया नहीं। हिम्मत ही नहीं पड़ी। सूझा ही नहीं कुछ । सफाई करने के लिए दरवाजा खोला ही था कि बैड पर नजर पड़ी और चीखता हुआ वापस भाग लिया। साबजी को फोन किया।”
“ठीक कह रहा है ।” मराठा ने बताया----“दरवाजे से सुधा को नहीं पहचाना जा सकता। मैं भी अंदर जाने के बाद ही पहचान सका।” “छेड़छाड़ तो नहीं की ?” “खुद देख सकती हैं । " वह मुस्कराया ---- “मुझे उम्मीद है कि आपसे कुछ नहीं छुप सकता । ” होठों पर हल्की-सी मुस्कान लिए वह दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।
बैड का सीन देखते ही हमारी समझ में भैरासिंह भंसाली के चेहरे पर नजर आने वाली शर्मिंदगी का कारण आ गया।
दोनों बिल्कुल नंगे थे।
एक-दूसरे की बांहों में, एक-दूसरे की तरफ करवट लिए ।
बल्कि सुधा की तो एक टांग भी घुटने से मुड़कर जांघ तक संजय के कूल्हे पर रखी हुई थी । यकीनन, दरवाजे से देखकर सुधा को नहीं पहचाना जा सकता था क्योंकि इस तरफ उसकी पीठ थी ।
संजय का चेहरा था दरवाजे की तरफ ।
उन दोनों के सभी कपड़े फर्श पर बिछे कालीन पर चारों तरफ छितराए पड़े थे। ठीक ऐसी पोजीशन में जैसे एकाकार होने से पहले जुनूनी अवस्था में उतारकर फैंके गए हों।
उन कपड़ों से बचते हुए हम बैड के उस तरफ पहुंचे।
तब कहीं जाकर सुधा भंसाली का चेहरा साफ नजर आया।
बैड के पीछे वाली दीवार पर एक ऐसी पेंटिंग लगी हुई थी जिसे लॉबी में लगी सभी पेंटिंग्स से आगे का दृश्य कहा जा सकता था।
यहां शायद इतना ही लिख देना काफी है कि उससे आगे चित्रकार के लिए भी बनाने के लिए कुछ नहीं रह जाता।
जाने क्यों, मुझे उस सबको देखकर घृणा - सी हो रही थी।
“ये तो रंगमहल - सा लग रहा है ।” विभा ने मराठा की तरफ - देखते हुए कहा था-- -“ऐसा, जैसा इतिहास की किताबों में विलासी राजाओं के हरमों का जिक्र है। कुछ वैसे ही रसिया लोग मालूम पड़ते हैं ये । बात ठीक भी है----तब के राजा वो थे । आज के राजा वो, जिनके पास पैसा हो । पैसा बहुत खराब चीज ————
“मैं आपको कुछ सुनाना चाहूंगा विभा जी, हालांकि चीज सुनने की नहीं है लेकिन इस वक्त, जबकि हम एक केस की इन्वेस्टीगेशन कर रहे हैं तो इसकी गहराई में जाने के लिए शायद उसे सुनना जरूरी है।" मराठा ने कहा ---- “अगर गुस्ताखी माफ करें तो..
“जरा भी हिचकने की जरूरत नहीं है मराठा ।” विभा ने उसकी बात काटकर कहा ---- “जो भी सुनाना चाहते हो सुनाओ ।”
“आप यहीं रहिए। मैं जो भी सुनवाऊंगा उसकी आवाज मुकम्मल इमारत में गूंजेगी क्योंकि जगह-जगह माइक लगे हैं।" कहने के बाद वह तेज कदमों के साथ कमरे से निकल गया था ।
“वेद ।” विभा जिंदल ने लाशों की तरफ इशारा करने के साथ कहा ---- “इन्हें अलग कर दो ।”
मुझे ग्लानि-सी हुई लेकिन आदेश क्योंकि विभा का था इसलिए बजाना ही पड़ा । आहिस्ता-आहिस्ता चलता मैं बैड के नजदीक पहुंचा।
हाथ बढ़ाकर पहले संजय को सीधा किया ।
उसके चित्त अवस्था में आते ही पेट पर लिखा 'द' चमकने लगा ।
सुधा को चित्त किया। उसके पेट पर 'ब' लिखा था ।
अब दोनों के जिस्मों में गैप नजर आने लगा था और उस गैप में बैड पर दो सीरिंज और इंसुलिन के इंजेक्शंस पड़े थे ।
अभी हममें से कोई कुछ बोल भी नहीं पाया था कि कमरे में बहुत ही मद्धिम आवाज का संगीत गूंजने लगा ।
हम ध्यान से उसे सुनने लगे ।
कोई बोल नहीं थे लेकिन संगीत अपने आप में बहुत ही अश्लील और उत्तेजक किस्म का था । इतना ज्यादा कि मैं विभा और शगुन से आंख नहीं मिला पा रहा था । संगीत ज्यों-ज्यों आगे बढ़ा, उसमें से औरत-मर्द की सिसकारियां निकलने लगीं ।
इतनी ज्यादा अश्लील सिसकारियां कि मैं पागलों की तरह हलक फाड़कर चीख पड़ा----“बंद करो मराठा | बंद करो इसे ।”
मगर संगीत बंद नहीं हुआ।
मेरी आवाज शायद उस तक पहुंची नहीं थी ।
पर वह सब मेरी सहनशक्ति से बाहर था । उसे बंद कराने के लिए मैं दरवाजे की तरफ लपका ही था कि संगीत बंद हो गया ।
जहां का तहां ठिठक गया मैं । पसीने-पसीने ।
“वेद ।” विभा ने कहा ---- “किसी केस की इन्वेस्टीगेशन के लिए निकला करो तो भावनाओं को घर की खुंटी पर टांगकर आया करो। मराठा ने ठीक कहा था, केस की गहराई तक पहुंचने के लिए हर चीज का सामने आना जरूरी है। साथ ही तुम जैसे लोगों के लिए यह जानना भी जरूरी है कि दुनिया कहां से कहां पहुंच चुकी है।”
“ये सब क्या है विभा? ये माहौल ! ये ऐसी पोजीशन में लाशें! क्या है ये सब ? तुम जल्दी से जल्दी इस केस को हल क्यों नहीं करतीं?”
“ अभी तक मैंने जितने भी केस देखे हैं या तुमने भी जिनके बारे में पढ़ा, सुना या लिखा होगा, उन सबमें हत्यारा खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा होता है लेकिन इस केस में मैं शुरु से महसूस कर रही हूं कि वह हमें कुछ समझाने की कोशिश कर रहा है। कभी मरने वालों के कपड़े एक-दूसरे के पास छोड़कर, कभी इनके पेट पर कुछ लिखकर, कभी लाशों को एक-दूसरे की बांहों में डालकर और उसी क्रम में अब शायद यहां का माहौल दिखाकर ।”
“ पर क्या... क्या समझाने की कोशिश कर रहा है वह हमें ?”
“ अभी तक तो समझ में आया नहीं है।"
“तुम्हारी !” मैंने कहा---- “तुम्हारी समझ में भी नहीं आया है ?” “नहीं।”
“तो फिर मैं तुम्हें वैसे ही ब्रिलियेंट... ब्रिलियेंट बकता रहता हूं?”
“फिर वही कहूंगी ---- मुझे जादूगरनी समझते हो तो भूल करते हो । बात आखिर मेरी समझ में भी आते-आते ही आती है।"
“इस बार कुछ ज्यादा ही देर लगा रही हो ।”
“इस बार केस तुम नहीं, तुम्हारा पुत्तर जो लाया है।”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
विभा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि गोपाल मराठा कमरे में दाखिल हुआ। आते ही उसने किसी से नजरें नहीं मिलाई थीं।
दृष्टि लाशों की चेंज हो चुकी पोजीशन पर पड़ी तो वहीं चिपककर रह गई । वह भी उनके पेट पर लिखे 'ब' और 'द' को पढ़ रहा था।
विभा ने पूछा----“यहां के माहौल से किस नतीजे पर पहुंचे ?”
“इसके अलावा और क्या नतीजा निकलता है कि यहां का मालिक घोर विलासी प्रवृति का है । उसके लिए सेक्स से बढ़कर कुछ नहीं । हर कमरे को उसी तरह सजा - धजाकर तैयार रखा गया है जैसे ये कमरा नजर आ रहा है। लॉबी के एक सिरे पर बॉर है । मैंने ऐसी किसी शराब का नाम नहीं सुना जो वहां मौजूद न हो। साफ जाहिर है कि ये आऊट हाऊस बनाया ही अयाशी के लिए गया है।"
“तुम्हारे ख्याल से किसकी अ, याशी के लिए है ये?”
“मुझे नहीं मालूम भैरासिंह भंसाली झूठ बोल रहे हैं या सच?” बताते वक्त वह भी अजीब-से रोष में नजर आ रहा था ---- “कहते हैं वे तो शायद एक साल बाद यहां आए हैं। रमेश ही यदाकदा अपने दोस्तों की पार्टियां अरेंज कर लिया करता था । उन्होंने तो यहां लगी वे पेंटिंग्स तक कभी नहीं देखीं जिन्हें देखकर शर्मिंदा हैं ।”
“ और यह तो नजर आ ही रहा है कि वे पार्टियां किस किस्म की होती होंगी !” विभा ने कहा ---- “मतलब ये हुआ कि वे साफ-साफ लफ्जों में यह कह रहे हैं कि अय्याश होगा तो उनका बेटा होगा । वे नहीं हैं। यहां की शानो-शौकत से वे अंजान थे ।”
“मतलब तो उनका यही है ।”
“तुमने कहा नहीं, औलाद पर नजर रखनी चाहिए।”
“कहा, कहते हैं ---- उन्हें पैसे कमाने से ही फुर्सत नहीं थी।”
“तभी तो कहा ---- पैसा बुरी चीज है। खैर, हमें किसी की पर्सनल लाइफ में घुसने की जगह अपने केस पर आना चाहिए।” विभा विषय चेंज करती बोली ---- “क्या तुम्हें लगता है कि यहां के माहौल से हमें अपने वर्तमान केस को समझने में कोई मदद मिलेगी?”
“यहां के माहौल के बारे में तो अभी मैं ठीक से कुछ कह नहीं सकता लेकिन विभा जी, जिस पोजीशन में ये लाशें मिली हैं, मुझे लगता है कि वह पोजीशन हमसे कुछ कह रही है । "
“क्या?” विभा के होठों पर दिलचस्प मुस्कान उभरी।
“ शायद यह कि इन दोनों के बीच अवैध संबंध थे ।”
“ और हत्यारा हमें यह बात बताना चाहता है?"
“हां ।”
“ पर क्यों ? हत्यारा हमें यह बात क्यों बताना चाहता है ?”
“शायद अपने आपको जस्टिफाइड करने के लिए ।”
“ यानी उसने इन्हें इनके इन संबंधों की सजा दी ?”
“ कहना तो शायद वह यही चाहता है।"
“पर क्या कोई हत्यारा इस तरह जस्टिफाइड हो सकता है ?”
“वो अलग विषय है, मैं सिर्फ उसकी मंशा की बात कर रहा हूं।"
“कुछ देर पहले, जब तुम यहां नहीं थे तो मैंने भी यही बात कही थी । यह कि ऐसा हत्यारा मेरे सामने पहली बार आया है जो हर हत्या के साथ हमें कुछ बताने की कोशिश कर रहा है। इनके पेट पर लिखे अक्षर भी शायद उसकी इसी कोशिश का नतीजा है । क्या तुम इन अक्षरों से भी किसी नतीजे पर पहुंचे?"
“कोशिश के बावजूद अभी तक नहीं ।”
“मैं शायद खुद को थोड़ी कामयाब होती लग रही हूं।"
“क... क्या? क्या समझीं आप?" यह सवाल करते वक्त बुरी तरह व्यग्र नजर आया वह और उतने ही, बल्कि शायद उससे भी ज्यादा व्यग्र मैं और शगुन हो उठे
“अभी बताना शायद जल्दबाजी होगी।” विभा ने कहा ---- “यदि हत्यारा अगली हत्या कर सका तो मेरा ख्याल है कि वह उसके पेट पर 'ल' लिखेगा और अगर उसने 'ल' लिखा तो मैं कनफर्म हो जाऊंगी कि मैं जो सोच रही हूं वह दुरुस्त है। " "
“लेकिन पता तो लगे कि तुम क्या सोच रही हो ?” मैं बोला।
“तुम जानते हो वेद, मैं कोई बात वक्त से पहले नहीं कहती ।” एकाएक शगुन बोला-- -“जबकि मेरा ख्याल ये है कि अब वह कोई हत्या नहीं करेगा।”
“ ऐसा नेक ख्याल क्यों है तुम्हारा ?” विभा ने पूछा । है
“क्योंकि अभी तक वह लाश के कपड़े अपने अगले शिकार के पास छोड़ने के लिए ले जाता रहा है। जबकि इन दोनों के कपड़े यहीं मौजूद हैं। यानी इनकी हत्या के साथ उसका काम पूरा हो चुका है।”
“ बात तो तुमने बहुत पते की सोची छुटके राजा लेकिन इस नतीजे पर कैसे पहुंचे कि ये कपड़े इन्हीं दोनों के हैं?”
“एक जोड़ी मर्दाने कपड़े हैं, दूसरे..
“तो फिर किरन के कपड़े कहां गए ?”
शगुन का मुंह कुछ कहने के लिए खुला जरूर लेकिन उससे कोई आवाज नहीं निकल सकी। जैसे कहने की कोशिश करते-करते ही
समझ गया हो कि विभा क्या कहना चाहती है ।
“जिन कपड़ों को तुम केवल लेडीज के होने के कारण सुधा के समझ रहे हो, वे किरन के भी हो सकते हैं। ऐसा है या नहीं, यह बात धीरज सिंहानिया ही बता सकता है।"
“भैरोसिंह भंसाली भी तो बता सकते हैं।" मैंने कहा ।
“मैं उनसे पूछ चुका हूं।" मराठा बोला ---- “उनका कहना ये है कि वे ये बात गारंटी से नहीं कह सकते कि कपड़े सुधा के हैं या नहीं? वे उसके सभी कपड़ों को नहीं पहचानते।"
“पर ये यहां पहुंच कैसे गई ?” विभा ने पूछा ---- “ सुबह के करीब साढ़े चार बजे तक तो उनके साथ हमारे होटल में ही थी ।”
“ उनका कहना है कि ये लोग पांच बजे भंसाली निवास पहुंचे। वहां पहुंचते ही सुधा अपने कमरे में बंद हो गई। भैरोसिंह ने भी सोचा कि उसे अकेलेपन और आराम की जरूरत है। वे अपने कमरे में चले गए थे लेकिन नींद नहीं आई। नौकर का फोन पहुंचते ही हड़बड़ा गए। मुझे फोन किया और आनन-फानन में यहां के लिए निकल पड़े । इस बात की तो वे कल्पना तक नहीं कर सकते थे कि यहां सुधा की लाश देखने को मिलेगी।" मराठा यह सब एक ही सांस में बताता चला गया लेकिन ऐसा लगा ही नहीं कि विभा को उसकी इन बातों में कोई दिलचस्पी थी। वह कमरे का निरीक्षण करती घूम रही थी ।
कभी वह बैड की दराज खोलकर देख रही थी, कभी ड्रेसिंग टेबल पर रखे समान को बहुत गौर से ।
उसकी दराज भी खोलकर देखी उसने ।
उस पर से तो कुछ नहीं मिला लेकिन ड्रेसिंग टेबल के स्टूल के नीचे शायद कुछ नजर आया।
कुछ ऐसा जिसे कुछ देर के लिए वह ध्यान से देखती रही और फिर झपटने के-से अंदाज में उसे उठाया।
कोई नहीं देख सका कि उसने क्या उठाया है क्योंकि उस वक्त हम सभी की तरफ उसकी पीठ थी । उस वक्त भी जब वह उस चीज को अपने आंखों के काफी नजदीक लेजाकर देख रही थी ।
और फिर अचानक अपने मुंह से 'वॉव' शब्द निकालती पलटी ।
बरामद चीज उसकी मुट्ठी में थी ।
मैंने उसकी आंखों में चमक देखी।
वहीं चमक जो कोई मार्के की जानकारी मिलने पर नजर आती थी । बुरी तरह अधीर होकर मैंने पूछा ---- “क्या हुआ विभा ?'
“ और भी कुछ मिलना चाहिए ।” वह मेरी बात पर ध्यान दिए बगैर एक बार फिर अपनी खुर्दबीनी निगाहों से कमरे में बिछे कालीन का निरीक्षण करने लगी थी---- “हालांकि हत्या के बाद यहां की सफाई जरूर की गई होगी मगर, यदि ये चीज मिली है तो वो भी मिलनी चाहिए। वो तो इससे भी छोटी है, इससे भी बारीक ।” किसी की समझ में नहीं आया कि वह क्या कह रही थी और
क्या ढूंढने की कोशिश कर रही थी ?
सभी उसे सस्पेंस भरी निगाहों से देखते रहे।
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