कमर में गोली लगते ही दिलावर ओंधे मुँह गिरा। जब नागेश उसके पास पहुँचा तो उसने दिलावर को ठोकर मार कर सीधा किया। दिलावर सीधा हुआ तो उसके हाथ में गन थी जो नागेश की तरफ ताक रही थी। उसने नागेश के सीने पर गोली चला दी जो सीधा नागेश की बुलेट प्रूफ जैकेट से टकरायी। नागेश उस गोली के झटके के प्रभाव से दो कदम पीछे हटा। लेकिन उसी वक़्त नागेश के साथी उस कमरे में दाखिल हुए। दिलावर को एक बार फिर निशाना साधते देख एक ने फायर किया जो सीधा दिलावर के हाथ से टकराया। उसके हाथ से रिवॉल्वर छूट कर फर्श पर गिर गयी। बाकियों ने उसे दबोच लिया।

अपने आप को संभाल कर नागेश खिड़की के पास पहुँचा। कंपाउंड में धूल का गुबार कुछ हद तक साफ हो चुका था। नागेश ने मिलिंद और आलोक देसाई को सुधाकर का लहूलुहान शरीर उठाते हुए देखा जिसे वो तेजी से गेट की तरफ ले जा रहे थे। नागेश की आँखों से जैसे आग बरसने लगी।

“ये तुमने ठीक नहीं किया, भाऊ। इतने लोगों को तुमने बचाया और हम तुम्हें बचा न सके।” नागेश मन ही मन बुदबुदाया।

वह वापस दिलावर की तरफ मुड़ा। दिलावर के चेहरे पर विषभरी मुस्कान एक पल के लिए आयी। नागेश का खून वह देखकर लावा बन गया। सुधाकर का लहूलुहान जिस्म उसकी आँखों के आगे छा गया। जब तक उसके साथी कुछ समझते नागेश दिलावर के शरीर पर अपनी पिस्तौल के उगलते शोले पैवस्त कर चुका था।

उधर रिज़्वी जब कॉरिडोर के आखिरी कमरे में जाने के लिए आगे बढ़ा तो उसका दरवाजा खुला। उस्मान ख़ान उस कमरे से बाहर बदहवासी में बाहर निकला। आसपास के कमरों में हो रहे धमाकों से वह समझ चुका था कि आज बाजी पलट चुकी थी। सामने से शाहिद रिज़्वी को आते देख उसने वापस पलट कर भागना चाहा लेकिन तब तक उसे एटीएस के जवानों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था। उसने अपने हथियार फेंक दिये।

जैसे ही रिज़्वी उसके पास पहुँचा, उस्मान का चेहरे की माँसपेशियों में कुछ हरकत हुई। रिज़्वी बाज की तरह उस पर झपटा और उस्मान को जमीन पर गिरा दिया। इससे पहले कि उस्मान समझ पाता, रिज़्वी की तीन उँगलियाँ उसके मुँह में थी और दूसरा पंजा उसकी गर्दन पर। उस्मान का दम घुटने लगा। जब रिज़्वी का हाथ उस्मान के मुँह से बाहर आया तो साथ में वो खोखला दाँत भी जिसमें साइनाइड का कैप्सुल था।

“इतनी भी हमसे क्या नाराजगी मियाँ प्रोफेसर साहब? अभी तो सिर्फ़ टेलीफोन पर बात हुई हैं तुमसे। जरा रूबरू बैठकर भी बात करने का मौका दो अपने इस चाहने वाले को। न जाने कब से इस दिन का इंतजार था। इस कैप्सूल में क्या रखा है भला। मुँह में घुल जाता तो खामखाह में मारे जाते। जवान, साहब को जरा हिफाज़त से ले चलो। जरा भी खरोंच न आये इनके बदन पर।”

शाहिद रिज़्वी की बातें सिर्फ़ उस्मान समझ रहा था। उसे पता था कि यह शख़्स उसका क्या हाल करने वाला था।

उस्मान खान को सैनिकों की फौलादी जकड़ में छटपटाते हुए जाता देख शाहिद रिज़्वी ने राहत की साँस ली। फिर उसने अपनी जेब से सिगरेट बरामद की और इत्मीनान से उसे सुलगाया।

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तबरेज आलम मुंबई के एक पाँच सितारा होटल में अपने सुइट में बैठा उस्मान के उस मैसेज का इंतजार कर रहा था कि कब उसे मुंबई पोर्ट के लिए रवाना होना है। उसकी उत्कंठा वक्त के साथ बढ़ती जा रही थी। उस्मान ख़ान से उसका संपर्क अभी नहीं हुआ था। उसने बेचैनी से अपनी कलाई में बँधी हुई घड़ी की तरफ देखा। तभी उसके कमरे की डोरबेल बजी।

उसकी तंद्रा भंग हुई। उसने उठ कर कमरे का दरवाजा खोला। दरवाजे पर दो आदमी खड़े थे जो शक्ल और पहनावे से होटल का स्टाफ़ तो कहीं से भी नहीं लग रहे थे।

“तबरेज आलम?” उनमें से एक ने पूछा।

तबरेज ने झिझकते हुए अपना सिर हिलाया।

“आप हमारे साथ चलिये।”

“कहाँ? तुम जानते नहीं मैं तबरेज आलम हूँ। तुम लोग आखिर हो कौन जो सरे-आम इस तरह से गुंडागर्दी कर रहे हो।”

“हमें आपको इसी फ्लोर के लास्ट सुइट में ले जाने का हुकुम है। ये पूरा फ्लोर इस वक़्त खाली है और इंडियन इंटेलिजेंस के कब्जे में है। अगर आराम से हमारे साथ चलोगे तो बेहतर होगा। नहीं तो अगर हम घसीट कर भी तुम्हें ले जाएँगे तो भी हमें शाबाशी ही मिलेगी।” कहने के साथ ही दोनों ने अपने कोट के बटन खोल लिए।

उनकी कमर में ठुँसी हुई रिवॉल्वर तबरेज आलम को साफ नज़र आयी। इंडियन इंटेलिजेंस के नाम पर वह सकपकाया। कुछ देर सोचने के बाद वह उनके साथ हो लिया।

उसी फ्लोर के आख़िरी सुइट में जब वह दाखिल हुआ तो तीन लोग उसके सामने बैठे थे। उन तीनों के बीच में बैठे हुए शख़्स को वह अच्छी तरह से पहचानता था।

अभिजीत देवल।

उसके साथ वहाँ पर मुंबई पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय और राजीव जयराम भी मौजूद थे।

“आइये तबरेज आलम साहब। बैठिए। आज इत्तेफाक से मैं भी मुंबई में था। पता चला आप भी किसी काम से मुंबई तशरीफ लाएँ हैं तो सोचा कि आपसे मिल लूँ। यहाँ तक आने में आपको कोई तकलीफ तो नहीं हुई।” अभिजीत देवल ने बड़े नर्म लेकिन बर्फ जैसे सर्द लहजे में पूछा।

“नहीं जनाब। आपसे मिलने में मुझे क्या तकलीफ होगी। आपने तो मेरा मुंबई का सफर और भी ज्यादा खुशगवार कर दिया।” तबरेज ने कनखियों से दरवाजे पर खड़े उन आदमियों की तरफ देखा लेकिन फिर खीसें निपोरता हुआ बोला।

“बस आपसे कश्मीर की घाटी के बारे में बात करनी थी। हम चाहते थे कि इससे पहले की आप किसी समुद्री सफर पर रवाना हो, तो उससे पहले आपसे वहाँ पर शांति बहाली में क्या कदम उठाए जाये, इस बात पर चर्चा कर ली जाये।” अभिजीत देवल अपने चिरपरिचित अंदाज में बोले।

“समुंदर के सफर में? एक पुलिस कमिश्नर और इंटेलिजेंस चीफ़ की मौजूदगी में राजनीति पर चर्चा! ऐसा होता है कभी?” तबरेज आलम के शब्दों में उपहास छुपा था।

“हिंदुस्तान का एक ज़िम्मेवार आदमी, हिंदुस्तान के ही लोगों की जान का सौदा करने वाले आतंकवादियों के लिए डेढ़ हजार करोड़ लेकर हिंदुस्तान से बाहर जाने की ज़िम्मेवारी लेता है। क्यों ऐसा तो इस हिंदुस्तान में कभी-कभी हो जाता है, है ना?”

अभिजीत देवल की बात सुन कर तबरेज सकपकाया।

“इसे तो आप मेरी मदद समझिए। अगर आप उन लोगों की बात मान लेते हैं और मैं उस रकम को हिंदुस्तान से बाहर, अपनी जान जोखिम में ड़ाल कर, उनके नुमाइंदों को सौंप देता हूँ तो इसे मेरी देश सेवा ही समझिए। ये मेरी भरोसेमंद इमेज ही है जिसके कारण वे लोग आप से इस बाबत बात कर रहें है।” तबरेज आलम पूरी ढिठाई से बोला।

“आप की जान की कीमत हम जानते हैं। आपकी इसी भरोसेमंद इमेज का भरोसा करके हम आप के पास आये हैं।” अभिजीत देवल ने बात में बात जोड़ी।

“आपका बातें करने का गोल-गोल अंदाज मैं समझ नहीं पाया। आप मुझसे सीधे मुद्दे की बात करें। आप बताएँ कि मुझे उस रकम के साथ कब निकलना है। आपको तो सब पता होगा इस बारे में, है न देवल साहब।” तबरेज आलम एक बार ठिठका और फिर बोला।

“चलिये, आप के लिए इस बात को सीधा कर देते हैं। हमें उस आदमी का नाम चाहिए जो इस रकम को मॉरीशस में रिसीव करने वाला था। या और सीधा करके कहूँ तो आप किसे यह रकम सौंपने वाले थे?” राजीव जयराम ने कहा।

तबरेज ने सकपका कर अभिजीत की तरफ देखा।

“जवाब दीजिये। ये तो बिल्कुल सीधी सी बात है।” अभिजीत बोले।

“मैं समझा नहीं!” तबरेज आलम ने कहा।

“कमाल है। इतनी सीधी बात आपको समझ नहीं आयी। चलो मैं समझा देता हूँ। आपके रिश्ते सीमा पार बड़े मधुर रहें हैं। आपके बेटे की शादी भी उस पार हुई है। हमारे जन्नत जैसे कश्मीर में जो आग लगती है उसके लिए ईंधन यानी पैसा कहाँ से आता है? इस बात की आपसे बेहतर कौन जानकारी रख सकता है। अब फिरौती के लिए आप जो डेढ़ हजार करोड़ रुपए लेकर मॉरीशस जाने वाले थे, वे रुपए किस रास्ते से वापस हिंदुस्तान आते, उन रास्तों का पता हम आपसे पूछ रहें हैं। वह कौन आदमी था जो इस डेढ़ हजार करोड़ को हिंदुस्तान से बाहर जाने के बाद, हवाला के जरिये वापस हिंदुस्तान में आतंकवादी गतिविधियों के लिए भेजने वाला था? हमें आपसे इस आदमी और उसके नेटवर्क का पूरा कच्चा चिट्ठा चाहिए।” अभिजीत देवल ने कहा।

“मैं मॉरीशस जाने वाला था? मतलब?” तबरेज ने हैरानी से पूछा।

“सही समझे आप। अब आपको वहाँ जाने की तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है। हमने बंधको को रिहा करवा लिया है।” राजीव जयराम ने उस बात का जवाब दिया।

तबरेज आलम को काटो तो खून नहीं। इस प्लान का फेल हो जाना उसके लिए भी नुकसान दायक था। इस रकम को मॉरीशस ले जाकर सौंपने में उसे भी तगड़ा हिस्सा मिलना था जो उसके सियासी मकसद के लिए बहुत जरूरी था। अपनी नयी पार्टी खड़ा करने का ख्वाब उसे मिट्टी में मिलता नज़र आया।

“चलो मेरी जान छूटी। मैं अब वापस अपने घर जा सकता हूँ।” प्रत्यक्ष रूप में वो अपने मनोभाव छुपाता हुआ बोला।

“घर तो आप अब तब ही जा पाएँगे जब हमारे सवालों का जवाब हमें मिल जाएगा। यह आप पर निर्भर करता है कि जवाब हमें यहाँ मिलेगा या जेल में जाकर देंगे।” राजीव जयराम ने कहा।

“इसका मतलब मैं गिरफ्तार हूँ?” तबरेज ने अभिजीत देवल से पूछा।

“आप हमारे सवाल का जवाब दीजिये। आपका बेटा पिछले साल कई बार सीमा पार गया। जब भी वह वहाँ से वापस आता है। कश्मीर में दहशतगर्दी बढ़ जाती है। हमने कल उसे गिरफ्तार कर लिया है। आपके घर से बहुत सारा रुपया बरामद हुआ है और हथियार भी। जिसका वह कोई जवाब नहीं दे सका है। अगर आपने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया तो पहले उसकी गिरफ्तारी को सार्वजनिक किया जाएगा। उसके बाद आपको विस्टा के कर्मचारियों के अपहरण, ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में आतंकवादी घटना और देशद्रोहियों के साथ मिलकर पूरा षडयंत्र रचने में संलिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया जाएगा।” अभिजीत देवल ने कहा।

“मेरा इसमें कोई रोल नहीं है। मेरा काम सिर्फ़ पैसा लेकर जाना था। मेरे बेटे का भी इसमें कोई रोल नहीं है।” तबरेज आर्तनाद करता हुआ बोला।

“इसे आपको साबित करना पड़ेगा। उस्मान ख़ान उर्फ प्रोफेसर ने आपका नाम लिया है। आप उनके साथी हैं। ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में मारे गए लोगों के ‘कत्ल’ में शामिल लोगों की लिस्ट में आपका नाम भी होगा। अगर आप बेगुनाह हैं तो कम से कम इस जन्म में यह बात आप साबित नहीं कर पाएँगे।” राजीव जयराम बोला।

“क्यों? क्यों नहीं साबित कर पाऊँगा !” तबरेज परेशान होता हुआ बोला।

“क्योंकि अब उम्र हो गयी है आपकी। उम्र अब ज्यादा नहीं बची भी नहीं है। अब बाहर से सेहतमंद दिखने वाला आदमी कितना दबाव बर्दाश्त कर सकता है, किसे पता?” अभिजीत देवल की सर्द आवाज कमरे में गूँजी।

तबरेज आलम अब तक पूरा पसीने से नहा चुका था। अपने बेटे की गिरफ्तारी और आने वाले समय के खौफनाक मंजर ने उसके कस बल निकाल दिये थे।

“मैं सब बता दूंगा। मेरे बेटे को छोड़ दीजिये। मेरे गुनाह मेरी कमाई है। उनका असर मेरे बेटे पर ना जाने दीजिये।” तबरेज आलम हथियार डालता हुआ बोला।

अभिजीत देवल और राजीव जयराम ने राहत की साँस ली।

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कराची

कराची पोर्ट के पास ‘खेमारी फिशिंग जेट्टी’ से ‘इंपीरियल फिशिंग कॉर्पोरेशन’ का शिप रवाना होने वाला था लेकिन उससे पहले ही उस शिप पर पाक पुलिस और मेरीन सिक्योरिटी गार्ड्स की टीम ने धावा बोल दिया। सारे स्टाफ को एक लाइन में खड़ा करके सबकी शिनाख्त की गयी पर उन लोगों में यासिर और नीलेश का कोई नामोनिशान नहीं था। तलाशी का सारा अभियान एक बार फिर बेकार गया।

आखिरकार ‘इंपीरियल फिशिंग कॉर्पोरेशन’ के शिप को भारत के लिए रवाना होने के लिए हरी झंडी दे दी गयी। जिस वक्त यह शिप ‘खेमारी फिशिंग जेट्टी’ से रवाना हुआ, वहाँ से लगभग तीस किलोमीटर दूर ‘दो-दरिया आइलैंड’ के तट से एक बोट टूरिस्ट स्पॉट के रूप में बेहद मशहूर जगह ‘फिशिंग ज़ोन’ के लिए रवाना हुई।

उस बोट में चार लोग सवार थे। वे चारों लोग मछुआरों की वेषभूषा में थे। उन चारों में से एक नीलेश था। बाकी तीन लोग यासिर ख़ान का जिगरी दोस्त जुबेर ख़ान और उसके दो साथी थे। तट से बीस किलोमीटर दूर जाकर जुबेर और उसके साथियों ने नीलेश को डाइविंग-सूट पहना दिया और खुद भी पहन लिया। फिर उन सबने ऑक्सिजन का मास्क अपने मुँह पर लगाया और अरब सागर में कूद गए। समुंदर के गहराइयों में कुशलता से तैरते हुए जुबेर और उसके साथियों ने वहाँ से कोई दो किलोमीटर की दूरी पर जाकर समुद्र के पानी की सतह के ऊपर आकर गहरी साँस ली। नीलेश को जुबेर और उसका साथी लगातार सहारा दिये हुए थे।

तभी उन्हें दूर से आते हुए ‘इंपीरियल फिशिंग कॉर्पोरेशन’ के शिप के दर्शन हुए। जुबेर ने शिप को देख कर राहत की साँस ली और नीलेश को साथ लेकर वे उस शिप की तरफ बढ़ चले। शिप का कैप्टन दूरबीन से उनकी तरफ ही देख रहा था। जैसे ही नीलेश और जुबेर शिप के नजदीक पहुँचे, उन्हें शिप के ऊपर ले जाने के लिए सीढ़ी नीचे लटका दी गयी। उस सीढ़ी का इस्तेमाल कर जुबेर और नीलेश शिप पर आसानी से चढ़ गए। वह शिप इसके बाद समुंदर की लहरों पर द्रुत गति से दौड़ने लगा।

मंजिल थी... मुंबई।

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मुंबई

‘करंट न्यूज़’ का स्टार एंकर स्वर्ण भास्कर अपनी पूरी लकदक के साथ अपने शो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ में अपने स्थायी पैनल के साथ हाजिर था। अपने चिरपरिचित अंदाज में स्क्रीन पर मजमा लगाए हुए अपने दर्शकों से मनमोहक अंदाज में रूबरू था।

“हैलो व्यूअर्स। एक बार फिर स्वागत है आपका भारत के सबसे लोकप्रिय शो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ में। एक ऐसा शो जो रखे आपको खबरदार, हर दिन, हर-पल होशियार, बिना थके... लगातार।

दर्शकों! हमारे पास एक सनसनीखेज खबर आ रही है कि मुंबई में नवघर के पास एक फैक्टरी में पुलिस की जोरदार कार्यवाही हो रही है। हमारे संवाददाता समर्थ सिंह वहाँ घटनास्थल पर मौजूद हैं। आइए उनसे जानते हैं कि वहाँ पर क्या कार्यवाही चल रही है? समर्थ बताइए... हमारे दर्शकों के लिए आपके पास क्या अपडेट है?”

“जी बिल्कुल, यहाँ नवघर फॉरेस्ट एरिया की तरफ जाने वाले सारे लिंक रोड़ बंद कर दिये गए हैं। हमें भी वहाँ पर जाने नहीं दिया जा रहा है। पुलिस की काफी बड़ी कार्यवाही हो रही है वहाँ पर। इस कार्यवाही में मुंबई पुलिस फोर्स, खास तौर पर एटीएस, के जवान लगे हुए हैं। कहा जा रहा है कि इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के आधार पर यह कार्यवाही की जा रही है।” समर्थ सिंह ने विराम लिया।

“समर्थ, हमारे दर्शकों को बताइए कि क्या यह मुंबई के माफिया के विरुद्ध कोई कार्यवाही है या विस्टा टेक्नोलॉजी के अपहृत लोगों से संबंधित कोई कार्यवाही हो रही है?” स्वर्ण भास्कर ने अगला प्रश्न दागा।

“जी भास्कर, विस्टा अपहरण कांड पुलिस के लिए नासूर बन गया है। इसी के कारण केंद्रीय और राज्य की सरकार पर संकट के बादल मंडरा गए हैं। कहीं ना कहीं यह केंद्र की क्षमता पर सवाल उठाता है। अब पुलिस की मजबूरी है कि इस गुत्थी को जल्द से जल्द सुलझाए, नहीं तो उसकी कार्यक्षमता पर सवाल उठने शुरू हो जाएँगे। अब यह कार्यवाही किस संबंध में हो रही इस मामले में पुलिस चुप्पी साधे हुए है। सुरक्षा और गोपनीयता की दुहाई देकर सभी पत्रकारों को घटना स्थल से काफी दूर रखा जा रहा है। कुछ पत्रकारों ने बिल्डिंग के पास जाने की कोशिश की थी। लेकिन उन्हें एहतियात के तौर पर पुलिस की गाड़ी में बैठा लिया गया है। कहा गया है कि पुलिस पत्रकारों की सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं लेना चाहती है।” समर्थ साँस लेने के लिए रुका।

“बहुत बहुत शुक्रिया, समर्थ। तो दर्शकों, ये थे हमारे संवाददाता समर्थ, जो ग्राउंड ज़ीरो से आपको रिपोर्ट कर रहे हैं, जहाँ पर पत्रकारों की जान को भी बेहद खतरा है। हम उनसे बाद में जुड़ेंगे फिर कोई ताजा अपडेट के लिए... तो दर्शकों अभी कहीं नहीं जाइएगा।जल्द ही लौटते हैं एक छोटे से कमर्शियल ब्रेक के बाद आपके पसंदीदा शो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ में...”

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बसंत पवार ने स्वर्ण भास्कर के शो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ में ब्रेक की घोषणा होते ही अपना चैनल बदलने के लिए रिमोट उठाया ही था कि उसका पर्सनल सेक्रेटरी उस कमरे में दाखिल हुआ।

“अरे क्या आफत आ गयी, दामले।” बसंत पवार ने उसे देखकर झींकते हुए कहा।

“आपसे मिलने कोई आया है।” दामले ने धीमी आवाज में झिझकते हुए कहा।

“मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि पार्टी के काम से कोई आये तो उसे पार्टी मुख्यालय में आने के लिए बोला करो। उससे कह दो कि अभी मैं बिजी हूँ।” बसंत पवार ने अपना व्हिसकी का पैग उठाते हुए कहा। वह इस वक़्त कुछ भी सुनने की मूड में नहीं था।

दामले ने धीरे से आने वाले का नाम बताया।

बसंत पवार नाम सुनकर बस चुप रह गया। खामोशी से वह अपना जाम खाली करने लगा।

तभी उस कमरे में किसी के आने की आहट हुई। उसने अपनी गर्दन उठा कर देखा। उसके सामने के सोफे पर अभिजीत देवल विराजमान थे। उनकी साथ वाली कुर्सी पर राजीव जयराम उपस्थित था।

‘क्या है ये आदमी! छलावे की तरह हर तरफ मौजूद।’

“कैसे हैं आप, बसंत पवार जी? आज आप इस मूड में इतनी जल्दी! लगता है आज मौसम कुछ ज्यादा ही खुशगवार लग रहा है आपको। ” अभिजीत देवल ने बातचीत का सिरा अपने हाथ में लेते हुए कहा।

“मैं तो सदाबहार हूँ, देवल साहब। हर तरह के मौसम अपने इस जीवन में देखें है। अब कोई भी मौसम आये और कोई मौसम जाये, हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता। और फिर मैं अपनी शामें अपने हिसाब से बिताना पसंद करता हूँ। आप कुछ लेंगे? राजीव भाई तुम ?” बसंत ने बेफिक्री से कहा।

“आपका साथ देने के लिए हम लोग कॉफी ले लेंगे। वैसे दुरुस्त फरमाया आपने। भारत की राजनीति में आप से वरिष्ठ नेता शायद बहुत कम होंगे। उम्र में ज्यादा हो सकते हैं लेकिन जो दाँव-पेंच आप लड़ाते हैं उनका कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता।” अभिजीत देवल नपे-तुले अंदाज में बोले।

पवार ने दामले को कॉफी का इंतजाम करने को कहा। दामले सहमति में सिर हिलाता कमरे से बाहर निकल गया।

“दाँव-पेंच कुछ नहीं होते, देवल साहब। ये तो अपने आप को बचाए रखने की कशमकश होती है। अगर मौके पर आप चूक गए तो कोई दूसरा बाजी ले जाएगा। अपने हुनर को सँवारना पड़ता है, हर पल, हर दिन। इस दुनिया में आप की जगह लेने को हमेशा कोई दूसरा तैयार बैठा होता है। मेरे ख्याल से... आप मेरे दाँव-पेंच के बारे में बात करने तो यहाँ आये नहीं होंगे!” बसंत अपनी धुन में बोला।

“फिर भी आपको यह दुख तो हमेशा रहता होगा कि आप आज तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाये।” अभिजीत उसकी बात को नजरंदाज करते हुए बोले।

“राजनीति भी चौसर के खेल की तरह ही है, देवल साहब। जिसके पासे सही पड़े, वही गद्दी का पीर। मेरे भाग्य में शायद वो दिन अभी नहीं आया या शायद आज तक मेरे पासे सही नहीं पड़े।” बसंत पवार अपने हाथ में गिलास लेता हुआ बोला।

तभी दामले एक नौकर के साथ कॉफी ले कर कमरे में दाखिल हुआ और कॉफी सर्व करवा कर चला गया। अभिजीत और जयराम ने कॉफी चुसकने के साथ आगे अपनी बात जारी रखी।

“आपने सही कहा। चौसर और राजनीति की बिसात का कुछ पता नहीं। इसमें अक्सर शकुनि जीत जाता है और धर्मराज को हारना पड़ता है। पासे तो आपने अबकी बार भी सही चले थे लेकिन आपके मन मुताबिक परिणाम तो शायद अब की बार भी नहीं आएगा।” अभिजीत देवल ने पैनी नजरों से बसंत पवार की तरफ देखते हुए कहा।

बसंत पवार ने असमंजस से भरी नजरों से अभिजीत देवल और राजीव जयराम की तरफ देखा। राजीव जयराम ने, जो अब तक इस वार्तालाप का मूक श्रोता बना हुआ था, अपना मोबाइल बसंत पवार को थमा दिया।

बसंत पवार ने मोबाइल अपने हाथ में लिया। मोबाइल में एक वीडियो प्ले हो रहा था। उस वीडियो में अब्दील राज़िक का इक़बालिया बयान था।

“इससे मेरा क्या संबंध? जिन लोगों ने यह किया उनको पकड़ो जाकर। जिस मवाली दिलावर टकले और वो क्या... जो भी है... तात्या करके... का यह आदमी नाम ले रहा है। पकड़ो उनको। मुझे यह वीडियो क्यों दिखा रहे हो?” बसंत पवार ने मोबाइल वापस राजीव को दे दिया।

“अगर आप को इस आदमी के नाम का पता होता तो आपकी दिलचस्पी इसमें बढ़ जाती।” राजीव ने अपना मोबाइल वापस लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

“कौन है यह? और मेरी इस आदमी में क्या दिलचस्पी होगी और क्यों होगी?” बसंत पवार ने मोबाइल की तरफ अनमने भाव से देखकर पूछा।“इस आदमी का नाम अब्दील राज़िक है। यह वही आदमी है जिसके वीजा पर नीलेश पासी को हिंदुस्तान से बाहर भेज दिया गया।” राजीव जयराम ने कहा।

“भई कमाल है। इस देश का एक नागरिक दिन-दहाड़े अगवा हुआ और कोई ऐसा-वैसा आदमी नहीं, सत्ता में भागीदार एक पार्टी के अध्यक्ष का लड़का! और तुम बड़े शान से मुझे यहाँ बैठकर कर बता रहे हो कि वो सीमा पार भी चला गया। देवल साहब! ये आदमी क्या कह रहा है। इसने तो हमारे देश की सुरक्षा को एक मज़ाक बना दिया। और अगर ये सत्य है... तो आप लोगों के लिए बड़े शर्म की बात है। अच्छा हुआ आपने हमें बता दिया। ये बात कल हम प्रेस और मीडिया से साझा करेंगे।” बसंत पवार अपने लिए एक और पैग बनाता हुआ बोला।

“हाँ। यह अच्छा रहेगा। इन सब बातों के अलावा कुछ और बातें भी हैं जो आपको मीडिया से शेयर करनी चाहिए। जरा अगला वीडियो देखिये। शायद आपको समझ में आ जाये।” राजीव जयराम ने जवाब दिया।

अगले वीडियो में दिलावर टकला एक एंबुलेंस में हॉस्पिटल में ले जाया जा रहा था। उस एंबुलेंस में नैना उसके साथ सवार थी और इसके बाद वह हॉस्पिटल में वह अपनी डाइंग डिक्लेरेशन दे रहा था। बसंत पवार ने आगे की वीडियो भी देखी जिसमें राहुल तात्या और उस्मान खान गिरफ्तार दिखाई दे रहे थे। दिलावर और राहुल तात्या को देखकर बसंत पवार के चेहरे पर परेशानी के लक्षण पहली बार दिखाई दिये।

उसने मोबाइल मेज पर रख दिया और रिमोट उठा कर कर कमरे के एसी का रूम टेंपरेचर और कम कर दिया। रूमाल निकालकर अपने माथे पर छलक आया पसीना पोंछा।

तभी टीवी पर ब्रेक के बाद स्वर्ण भास्कर की आवाज गूँजने लगी। बसंत पवार ने फिर अपना जाम उठा लिया। अभिजीत देवल और राजीव जयराम अपनी कॉफी चुसकने लगे।

“... वेलकम बैक व्यूवर्स। एक बार फिर स्वागत है आपका भारत के सबसे लोकप्रिय शो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ में।

...अब हम अपना रुख मुंबई से दिल्ली की तरफ करते हैं। वहाँ से भी एक बहुत बड़ी खबर आ रही है। पिछले दिनों भारत की राजनीति में भूचाल आ गया था। केंद्र सरकार से उनके एक विश्वस्त सहयोगी दल ‘जन विकास पार्टी’ ने भारत में बढ़ती असुरक्षा का हवाला देकर अपना समर्थन वापस ले लिया था। एक हैरतअंगेज घटना, जिसके चलते जन विकास पार्टी के अध्यक्ष योगराज पासी का बेटे का अपहरण हो गया था, इसका मूल कारण बनी थी।

आज हमें अभी-अभी सूचना मिली है कि योगराज पासी अपने कुछ साथियों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँचे है। उनकी प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग जारी है। इस मीटिंग में गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के राजनैतिक सलाहकार भी मौजूद हैं। ऐसा लगता है कि योगराज पासी ने अपना इरादा एक बार फिर बदल दिया है।

पिछली बार योगराज के साथ भारत के प्रमुख विपक्षी दल के नेता बसंत पवार दिल्ली में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ थे लेकिन आज की इस मीटिंग में बसंत पवार साथ नहीं है। इसका मतलब यह है कि उन दोनों का साथ जल्दी ही छूट गया है। हमारी संवाददाता रितु कुमार इस महत्वपूर्ण घटना की जानकारी हमारे दर्शकों को देने के लिए वहाँ पर मौजूद है। जैसे ही योगराज जी प्रधानमंत्री कार्यालय से बाहर आते हैं, हम ताजा तरीन घटनाक्रम का विवरण आपको देंगे। तब तक हम अपने पैनलिस्ट से इस घटना क्रम के बारे में राय ले लेते है। मेरा उनसे प्रश्न है कि क्या सत्तारूढ़ दल ने बसंत पवार की बाजी को पलट दिया है ....”

बसंत पवारने वह ख़बर देखते हुए अपने जाम का आखिरी घूँट पिया। उसे लगा जैसे जहर का घूँट पिया हो।

‘मेरी बाजी सत्तारूढ़ दल ने नहीं पलटी... जिसने पलटी है वो कमबख्त मेरे सामने बैठा है ... अभिजीत देवल’

“आपकी यह बाजी भी पलट गयी, पवार साहब। जिस प्यादे के दम पर आपने अपनी जीत की बुनियाद रखी गयी थी, वही अपना पाला बदल गया।” अभिजीत देवल ने उसके रंग बदलते चेहरे की तरफ देखते हुए कहा।

“फिलहाल तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है। तुम ये सब वीडियो मुझे दिखा कर आखिर साबित क्या करना चाहते हो?” बसंत पवार ने रूखे अंदाज में पूछा।

अभिजीत देवल ने राजीव जयराम को इशारा किया।

“पवार साहब, इस सारे खेल की शुरुआत एक हसद के साथ शुरू होती है। और वो थी एक व्यापारी या यूँ कहिए टेक्नोलॉजी जगत के एक बड़े खिलाड़ी की दूसरे दिग्गज की कंपनी को हड़प जाने की हसरत।

वो आदमी अपनी इस हसरत को पूरा करने के लिए शेयर मार्केट से चुपचाप दूसरी कंपनी के शेयर ओपन मार्केट से खरीदना शुरु करता है। लेकिन उस मार्केट भाव पर लगातार पूँजी लगाना एक असंभव काम था। तो इसके चलते उसने अपने दोस्त से संपर्क किया और उससे मदद माँगी...” राजीव जयराम की बात बीचे में अधूरी रह गयी।

“अरे! किसकी कहानी मुझे सुना रहे हो यार? आज तुम लोगों को मैं ही मिला था ये गप्पें सुनाने को। अब बस बहुत हो गया, देवल साहब। ये तो आपका लिहाज है वरना मैं इतना वक्त किसी को नहीं देता।” बसंत पवार हत्थे से उखड़ते हुए बोला।