“ मैं बीमा कम्पनी से आ रहा हूं।” अधेड़ आयु के एक सूटेड-बूटेड आदमी ने देवांश की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा--- "बी. एन. सब्बरवाल ।”
देवांश के सारे रोयें एक साथ खड़े हो गये । मारे खुशी के झूम उठा वह मगर उस खुशी का जर्रा मात्र भी चेहरे पर नहीं उभरने दिया । गमगीन आंखों से चौड़े मुंह वाले उस शख्स की तरफ देखता रहा जिसकी दोनों कलमों के बाल सफेद हो चुके थे । मरियल से स्वर में बोला--- "बैठिए ।”
सब्बरवाल जूते उतारकर चांदनी पर बैठ गया। “कहिए!” देवांश ने पूछा । “पता नहीं आपकी नॉलिज में है या नहीं... " -सब्बरवाल ने कहा --- “राजदान साहब की एक पॉलिसी थी । पांच करोड़ रुपये की ।”
“हां । मेरी नॉलिज में है।"
कुछ “चैक लाया हूं उसका ।” उसने अपने कोट की जेब से कागज निकालते हुए कहा ।
देवांश को पहली बार एहसास हुआ कि अपनी खुशी को छुपाना कितना कठिन काम है। फिर भी दिल की सारी
खुशियां छुपाये उदासीन स्वर में कहा - - - “दे दीजिए।"
“मिसेज राजदान को बुलाना पड़ेगा आपको ।”
“जी?”
“लिखत पढ़त का मामला है न, हमारे रिकार्ड के मुताबिक नोमिनी वे ही हैं । चैक सौंपते वक्त मुझे इन पेपर्स पर उनके साइन लेने होंगे।” ।
“बुलाता हूं।” कहने के साथ वह इस तरह उठा जैसे इस काम में भी कष्ट हुआ हो।
मगर ।
लॉबी में पहुंचते ही इस कदर दिव्या के कमरे की तरफ उड़ता चला गया जैसे जिस्म में पंख लग गये हों। खुले हुए दरवाजे में धक्का मारकर घुसने ही वाला था कि ठिठक जाना पड़ा।
अंदर से अवतार की आवाज आई थी ।
गुर्राते से स्वर में अभी-अभी कहा था उसने --- "मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं मिसेज दिव्या, ठकरियाल कहां है ?"
“बहुत हो चुका मिस्टर गिल । सुनना ही चाहते हो तो सुनो। ” दिव्या की आवाज उससे ज्यादा कड़क थी --- “उसे हमने वहां पहुंचा दिया जहां तुम दोनों देवांश को पहुंचाना चाहते थे।”
“दोनों?” अवतार का चौंका हुआ स्वर --- “दोनों से क्या मतलब?”
- “तुम्हारा चौंकना । खुद को हैरान दिखाना। ये एक्टिंग मेरे सामने नहीं चलेगी मिस्टर गिल ।” साफ महसूस हो रहा था वह दांत भींच भींचकर बोल रही है --- “इतनी बेवकूफ भी नहीं हूं कि तुम्हारी साजिश को न समझ जाऊं। एक तरफ तुम मुझे अपनी बीवी बनाकर इण्डिया से बाहर ले जाने के सब्जबाग दिखाते हो, दूसरी तरफ ठकरियाल मेरे जेहन में यह ढूंसने की कोशिश करता है कि तुम मुझ पर मर मिटे हो । शादी करना चाहते हो मुझसे और इसी में मेरी भलाई है । न तुम देव को हिस्सा देने को तैयार हो, न ठकरियाल था । जाहिर है --- एक ही पटरी पर दौड़ रहे थे तुम मेरे । दिमाग में देव के प्रति नफरत भरने के मंसूबे से मुझे बताया गया कि किस तरह उसने मेरे निप्पल्स पर जहर पहुंचाया। मेरे हाथों देव की हत्या करा देना चाहते थे तुम। तुम दोनों। मैंने भी भरपूर एक्टिंग की । वही किया जो तुम चाहते थे। जिससे तुम्हें लगे मैं तुम्हारे जाल में फंस गई हूं। जैसा कि वह चाहता था, विचित्रा बनकर बातें भी कीं देव से और फिर भड़क उठने का नाटक भी मगर... तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं | विचित्रा के जाल में फंसकर देव ने वह किया जरूर था मगर.. उसी रात, एकाकार होने के बाद मुझे बता भी दिया था। कम से कम इस मामले में उसने मुझे कोई धोखा नहीं दिया।"
“ यानी तुम दोनों ठकरियाल का खेल खत्म कर चुके हो ?”
“अकेले ठकरियाल का नहीं, तुम्हारा भी।”
“क्यों पीछे पड़ी हो मेरे?" अवतार के हंसने की आवाज आई।
“ताकि तुम आगे वैसी कोई खुराफात न सोचो जैसी ठकरियाल के साथ मिलकर सोची थी ।” दिव्या कहती चली गई - - - “पहले देव का खात्मा । फिर, रकम हाथ में आते ही दिव्या का खात्मा । उस अवस्था में बेचारी अकेली अबला कर ही क्या पाती ?”
“अब क्या कहूं? तुम केवल अपनी कल्पनाओं को हमारी साजिश बता रही हो । ठकरियाल के बारे में तो खैर कुछ कह नहीं सकता उसने क्या सोचा था मगर, मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं सोचा । तुम्हारे बारे में आज भी मेरे दिल में वही भावनाएं हैं जो पहले दिन पनपी थीं । वही ऑफर आज भी है। कुबूल करना न करना तुम्हारे हाथ में है। हां, देवांश को हिस्सा न देने की बात जरूर कही थी । वही आज भी कहूंगा । उसका कोई हिस्सा इसलिए नहीं बनता क्योंकि उसने कुछ किया है।”
“मुझे दो हिस्से चाहिएं मिस्टर गिल।" दिव्या ने उसकी बात काटकर कहा--- " पूरे दो हिस्से ।”
“समझा । तुम देवांश के हिस्से के लिए इस कदर इसलिए अड़ी हुई हो क्योंकि एक तरह से वह हिस्सा भी तुम्हारा ही है । तुम्हारे ही कब्जे में रहेगा ।”
“तुम्हें ऐसे सिरदर्द पालने की कोई जरूरत नहीं है। केवल इतना समझ लो, रकम के तीन हिस्से होंगे--- दो हमारे । एक तुम्हारा । वह भी केवल इसलिए कि सारे सुबूत तुम्हारे कब्जे में हैं। और हां, पहले मुझे सुबूत सौंपोगे । रकम उसके बाद मिलेगी।”
“ ऐसा चाहती हो तो ऐसा ही सही । मुझे पांच करोड़ के तीसरे हिस्से की दरकार थी । सो मिल रहा है । देवांश का कम होता या, ठकरियाल का कम हुआ, मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता।”
दिव्या चुप रही ।
पुनः अवतार ने ही कहा --- "वैसे है आश्चर्य की बात ।”
“कौन सी बात में आश्चर्य नजर आ रहा है तुम्हें ?"
“तुम उसके साथ हो जिसने क्षमादान की जरा सी उम्मीद नजर आते ही तुम पर रिवाल्वर तान दिया था जिसने एक तरह से खुद तुम्हें नंगी नाचने की सलाह दी । ”
“बे जख्म आज भी मेरे दिल पर हैं। वाकई देव ने वह सब ठीक नहीं किया मगर, कभी-कभी आदमी को बड़ी बुराई और छोटी बुराई में से किसी एक को चुनना पड़ता है। भले ही देव राजदान जितना नहीं लूटा उसने कभी, कालगर्ल्स रैकिट गुना अच्छा है। बैंक अच्छा न सही मगर तुमसे हजार नहीं चलाया ।” Join
“कमाल है। जिन बातों का असर तुम पर कुछ और पड़ना चाहिए था, उन बातों का असर बिल्कुल उल्टा पड़ा है। "
“मतलब?”
“चाहता तो मैं अपने बारे में बहुत कुछ छुपा सकता था। मगर कुछ नहीं छुपाया। सब कुछ स्पष्ट कहा । बिल्कुल साफ-साफ । सोचा था तुम मेरी इस बात को 'एप्रीशिएट' करोगी । सोचोगी इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति करने वाला कभी धोखा नहीं दे सकता मगर देख रहा हूं कि---
"कि तुम्हारा जादू मुझ पर नहीं चला।" एक-एक शब्द को
चबाती दिव्या कहती चली गयी --- “बात घूम-फिर कर तुम्हारी जुबान पर आ ही गई मिस्टर गिल । वह सब तुमने मुझे प्रभावित करने के लिए कहा था और अब हैरान हो ऐसा हुआ क्यों नहीं । बड़ा गुरूर है तुम्हें खुद पर ? कामदेव हो तुम ! महारत हासिल है औरतों को शीशे में उतारने के मामले में! मैं समझ गई । हर औरत पर तुम अपना यही गुर इस्तेमाल करते हो । स्पष्ट स्वीकारोक्ति के जाल में फंसाते हो उसे । सोचते हो हर औरत वही सोचेगी जो तुम सुचवाना चाहोगे।”
“अफसोस...तुम मेरे बारे में बहुत गलत सोच रही हो ।”
"बौखलाओ मत मिस्टर गिल। यह सोचकर बौखलाओ मत कि एक औरत तुम्हें ऐसी भी मिल गई जो तुम्हारे जाल में नहीं फंसी। मैं समझ सकती हूं तुमने क्या सोचा होगा? यही न कि --- दिव्या पूरी की पूरी रकम लेकर साथ चल पड़ेगी और तुम किसी भी स्पॉट पर उसे ठिकाने लगाकर पूरे पांच करोड़ के मालिक बन जाओगे?”
"तुमने इतनी बातें कह दी हैं तो एक बात मैं भी कह दूं?”
“करो हसरत पूरी । ”
“मेरे मुकाबले देवांश को तुमने कहीं इसीलिए तो नहीं चुना
कि उस पर काबू पाना, उसे अपने इशारों पर नचाना और अंततः उसका हिस्सा गड़प कर जाना मेरे मुकाबले ज्यादा आसान है ?”
“मतलब?”
“जो आफर मैंने दिया है उसके मुताबिक ढाई करोड़ तुम्हारे होंगे, ढाई मेरे । तीसरा कोई हिस्सा नहीं होगा। पति-पत्नी को एक समझो तो पांच के पांच करोड़ हमारे होंगे जबकि जिस रास्ते पर तुम चल रही हो, उसके मुताबिक तुम्हारे पल्ले केवल एक करोड़ छियासठ लाख से कुछ ज्यादा लगने वाले हैं अर्थात् देखा जाये तो नुकसान है तुम्हें । हां, अगर देवांश । का हिस्सा गड़पने का प्लान दिमाग में रखती हो..
" ऐसी घटिया बातें तुम जैसा घटिया क्रिमिनल ही सोच सकता है।"
“ इन सब बातों के बावजूद अंत में एक ही बात कहूंगा । " ऐसा लगा जैसे अवतार ने गहरी सांस लेने के बाद पुनः कहना शुरू किया हो ---"मुझे दुख है। मेरे बारे में तुम भ्रमित रहीं। सोच नहीं पाईं ठीक से । वाकई मेरे दिमाग में तुम्हें किसी किस्म का धोखा देने की नहीं बल्कि अपनी जिन्दगी में वह दर्जा देने की बात थी जो किसी भी आदमी की जिन्दगी में उसकी पत्नी का होता है। दूसरी बात ---अगर तुम्हारे दिमाग में रकम को लेकर वही गणित है जो कुछ देर पहले मैंने कहा तो वह भी गलत है। तुम्हारे और देवांश के हिस्से को एक मान भी लिया जाये तो उसमें से एक बड़ी रकम कर्जे से मुक्ति की भेंट चढ़ जायेगी । मेरा ऑफर स्वीकार करने का मतलब --- किसी को कोई कर्जा नहीं देना । ढाई का ढाई करोड़ तुम्हारा होगा। कर्जदारों के लिए हम यहां देवांश को ..
"बस मिस्टर गिल ! बस !" एक बार फिर दिव्या उसकी बात पूरी होने से पहले गुर्रा उठी--- “बहुत बोल चुके । तुम एक क्रिमिनल हो और तुम्हारे सोचने का अंदाज हमेशा घटिया ही रहेगा। अब हमारी मुलाकात केवल तब होगी जब मुझे बीमा कम्पनी से रकम मिल चुकी होगी। इस बार सारे सुबूत साथ लेकर आना यहां "
" जैसी तुम्हारी मर्जी ।” अवतार का लहजा ऐसा था जैसा आदमी के मुंह से तब निकलता है जब सामने वाले को समझाने की भरपूर कोशिश के बाद कामयाब नहीं हो पाता।
देवांश को लगा --- वह लौटने वाला है ।
सो ।
दरवाजे को धकेलकर तेजी से कमरे में दाखिल हुआ।
ठीक ऐसे अंदाज में जैसे अभी-अभी वहां पहुंचा हो ।
'भड़ाक' की जोरदार आवाज के कारण दोनों ने एक साथ उधर देखा था | दिव्या बैड के नजदीक खड़ी थी । अवतार खुली खिड़की के पास । काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला । वे उसे देखते रहे, वह उन्हें । फिर थोड़े नियंत्रित स्वर में देवांश ने पूछा--- "तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“मिलने आया था।” अवतार मुस्कराया--- "कोई परेशानी है तुम्हें?"
देवांश से पहले दिव्या ने कहा--- "तुम जा सकते हो मिस्टर गिल ।”
“जाने से पहले एक और बात बता देना चाहता हूं।"
“बोलो ।” दिव्या का लहजा बहुत शुष्क था।
“होशियार रहना, अखिलेश एण्ड कम्पनी विला पर नजर रखे हुए है। मैं काफी मुश्किल से उन्हें 'डॉज' देकर यहां पहुंच सका हूं। वैसे ही निकलना होगा । ”
“फिक्र मत करो । मुझे उनके बारे में पता है ।” नहले पर दहला मारने वाले अंदाज में दिव्या ने कहा - - - “यह भी पता है कल रात भट्टाचार्य ने बैण्ड स्टैण्ड तक मेरा पीछा किया था इसलिए 'काम' करने के बाद स्टीमर को लेकर हम वापस बैण्ड स्टैण्ड पर नहीं बल्कि गेटवे ऑफ इण्डिया पर पहुंचे थे। वह बेचारा वहीं, इंतजार करता रह गया होगा जबकि हम यहां, विला में आ गये । ”
“वाकई होशियार हो ।” अजीब से स्वर में कहने के बाद उसने खिड़की की चौखट पर पैर रखा और दूसरी तरफ कूद गया ।
देवांश खिड़की की तरफ लपका।
देखा --- खुद को पेड़ों की आड़ में छुपाता वह बाउन्ड्री वाल की तरफ बढ़ रहा था।
दिव्या की तरफ पलटा | पूछा--- "क्या कह रहा था?”
दिव्या ने संक्षेप में बता दिया ।
देवांश ने पूछा ही यह जानने के लिए था वह सच बताती है या कुछ और कहती है । उस वक्त संतुष्टि हुई जब दिव्या ने वे ही बातें बताईं जो उसके और अवतार के बीच हुई थीं। सभी बातें बताने के बाद दिव्या ने पूछा--- "तुम कैसे आये थे?”
“अरे !” देवांश चौंका- “मैं तो उसे यहां देखकर भूल ही
गया। बीमा कम्पनी से पांच करोड़ का चैक लेकर एक आदमी आया है ।”
“क- क्या वाकई ?”
“तुम्हें बुलाया है। कहता है चैक नोमिनी को ही देगा ।”
झूम-झूमकर नाच उठने को दिल चाहा दिव्या का | वैसी ही खुशी हुई उसे जैसी ऐश्वर्या को मिस यूनिवर्स चुनी जाने की घोषणा के वक्त हुई थी।
किल्ली सी निकली मूँह से --- “क्या तुम सच कह रहे हो ?”
“खुद चलकर देख सकती हो, वह बैठक में बैठा है ।” “चलो !” कहने के साथ वह दरवाजे की तरफ उड़ चली ।
देवांश ने पुकारा --- "दिव्या!”
“क्या है ?” वह पलटी।
“तुम्हारा लिबास ।”
दिमाग को झटका सा लगा । वह राजदान द्वारा लंदन से लाया गया जरी के काम वाला कीमती सूट पहने हुए थी । देवांश ने कहा --- “न उसके सामने यह लिबास पहनकर
जाना ठीक होगा। न ही चेहरे पर इतनी खुश समेटे ।"
“तुम ठीक कहते हो ।” कहने के बाद वह ड्रेसिंग की तरफ बढ़ गई |
0 Comments