सतीश परेशान और दु:खी था । वजह थी–बेकारी । अचानक नौकरी जाती रही और वह बेकार हो गया था ।
हालांकि उसे बताया गया था चंदेक रोज में उसे किसी दूसरे क्लब या रेस्टोरेंट में एडजस्ट कर लिया जायेगा । लेकिन न जाने क्यों उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ ।
पिछली रात को रमोला की रंगीन यादों और बिस्तर में उसकी खुशबू के बावजूद उसकी उदासी और थकान बढती गयी ।
कोई अज्ञात आशंका उसे रह–रहकर कचोट रही थी ।
वह सिर्फ दो घण्टे पहले फ्लैट पर लौटा था । देर तक बिस्तर पर पड़ा बेचैनी से करवटें बदलता रहा । फिर एक उपन्यास उठाकर पढ़ने लगा ।
अचानक डोरबैल की चीख सुनकर चौंका । फिर यह सोचकर रोमांचित–सा हो गया कि रमोला आयी होगी । पैराडाइज क्लब की तबाही के बारे में बातें करने । क्लब के बाहर स्टाफ के लोगों में सिर्फ वही उसे नजर नहीं आयी थी ।
उसने उठकर दरवाज़ा खोला । ।
बाहर दो आदमी खड़े थे । उनके चेहरों से तो वह परिचित था लेकिन नाम नहीं जानता था ।
–"सतीश धवन ?" उनमें भारी चेहरे वाले लम्बे–चौड़े आदमी ने पूछा ।
–"हां !"
–"तुम्हें बलदेव मनोचा साहब ने बुलाया है ।"
–"मनोचा साहब ने ?"
–"हां ! उन्हें नहीं जानते ?"
–"जानता हूं ! मैं उन्हीं के लिये काम करता...!"
–"उसी सिलसिले में बुलाया है । तुम्हें और पैराडाइज क्लब के दूसरे कुछेक लोगों को कहीं और एडजस्ट करने की कोशिश की जा रही है ।"
–"नौकरी में ?"
–"तुम क्या समझ रहे हो तुम्हारी फोटो खींचनी है ?"
–"नहीं...नहीं !"
–"तो फिर चलो ।"
वह फ्लैट लॉक करके उनके साथ चल दिया ।
नीचे जाकर तीनों लाल कार में सवार होकर चले गये ।
उसके बाद किसी ने सतीश धवन को नहीं देखा । दो हफ्ते बाद उसका नाम शहर के गुमशुदा लोगों की लिस्ट में शामिल कर लिया गया । उसका हुलिया सभी पुलिस स्टेशनों में दर्ज करा दिया गया । लेकिन कभी कोई लाश बरामद नहीं हुई । पुलिस के पास दो–एक सरकमस्टांशियल एवीडेंस थे लेकिन कोई ऐसा सालिड क्लू नहीं था कि ठोस कार्यवाही की जा सके ।
* * * * * *
होटल एंबेसेडर में ।
दिनेश ठाकुर के सुइट की टेलीफोन लाइन टेप करने की इजाज़त उस रात नौ बजे तक मिल पायी ।
होटल मैनेजमेंट को कोई आइडिया नहीं था कि सुइट के तीनों एक्सटेंशन फोन टेप कर दिये गये थे । होम मिनिस्ट्री से आदेश पाने की औपचारिकताएं पूरी करने के साथ–साथ पुलिस अफसरों की एक टीम ने, जो दिनेश ठाकुर की निगरानी कर रही थी, बाकी तमाम इंतजामात पूरे कर लिये थे ।
दोपहर बाद दो बजे से थोड़ी देर बाद ठाकुर को होटल से निकलते देखा गया । वह एक टैक्सी में सवार हुआ तो सादा लिबास में दो आदमी उसका पीछा करने लगे ।
सवा दो बजे एक जवान जोड़ा होटल में दाखिल हुआ । लिफ्ट द्वारा ठाकुर के सुइट वाले फ्लोर पर पहुंचा । युवती ने हल्का और लम्बा फेशनेबिल कोट पहना हुआ था ।
जब वो जोड़ा सुइट के दरवाजे पर पहुंचा, आसपास होटल का कोई कर्मचारी नहीं था ।
वे दोनों वास्तव में पुलिस अफसर थे सादा लिबास में युवती ने कोट उतार दिया । नीचे होटल मेड की पोशाक पहने थी । उसके साथी ने कोट लेकर अपनी बाँह पर डाला और रिस्टवाच को यूं देखने लगा मानों वो अचानक रुक गयी थी ।
युवती ने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजे का लॉक खोला और अंदर चली गयी ।
मुश्किल से चार मिनट में उसने बटन के आकार के रेडियो माइक्रोफोन फिट कर दिये तीनों टेलीफोन उपकरणों में–जिनमें से एक बेडसाइड टेबल पर था, दूसरा मेन रूम में और तीसरा बाथरूम में ।
ठीक सातवें मिनट में वे होटल से निकल गये ।
होटल के पास पोस्ट ऑफिस की एक छोटी वैन खड़ी थी–एस० टी० डी० जंक्शन बॉक्स की बगल में । वैन की नम्बर प्लेटों का आम जनता के लिये कोई मतलब नहीं था । क्राइम ब्रांच के बड़े अफसरों ने पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ डिपार्टमेंट के आला अफसरों से मिलकर खास मकसद के लिये इस वैन का इंतजाम किया था । वैन के पिछले हिस्से में दो आदमी इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट सहित मौजूद थे । उस इक्विपमेंट में खास फ्रीक्वेंसी पर सैट किया गया एक हाईफ्रीक्वेंसी रेडियो था, जिससे एक बड़ा ही सोफियास्टिकेटिड टेप रिकॉर्डर जुड़ा था ।
इन आदमियों ने रात नौ बजे टेपिंग की परमीशन मिलने से पहले इक्विपमेंट का कोई स्विच ऑन नहीं किया ।
* * * * * *
होटल एंबेसेडर करीमगंज : दिनेश ठाकुर के रूम सुईट 317 के टेलीफोन वार्तालाप का विवरण ।
समय : नो बजकर सात मिनट (रात्रि)
होटल कर्मचारी 'रूम सर्विस ।
दिनेश ठाकुर–दिस इज सुईट नम्बर 317 !"
कर्मचारी–"श्री सेवेनटीन ! ओ० के० !"
ठाकुर–"आई वांट ए स्कॉच !"
कर्मचारी–"ड्रिंक ओर बॉटल सर ?"
ठाकुर–"बॉटल !"
कर्मचारी–"व्हाट ब्रांड, सर ?"
ठाकुर–"शीवाज रीगल !"
कर्मचारी–"ओ० के० ! एनीथिंग एल्स, सर ?"
ठाकुर–"वन लार्ज सोडा, आइस एण्ड रोस्टेड चिकन ।"
कर्मचारी–"राइट, सर !"
ठाकुर–"थैंक्यू ।"
कर्मचारी–"वैल्कम, सर !"
समय : दस बजकर चौदह मिनट (रात्रि)
होटल टेलीफोन आप्रेटर–"यूअर कॉल टु दुबई, मिस्टर ठाकुर !"
दिनेश ठाकुर–"थैंक्यू !"
दुबई कालर–"दिनेश ?"
ठाकुर–"यस !"
कालर–"यू डिड वैल !"
ठाकुर–"थैंक्यू ! टु नाइट वी डु दी नेक्स्ट वन !"
कालर–"क्लब ?"
ठाकुर–"इफ यू एग्री । आई वाज वेटिंग दिस कॉल ।"
कालर–"ऑफकोर्स, आई एग्री ! फिनिश दैम ।"
ठाकुर–"दे आर बीइंग फिनिश्ड ।"
कालर–"दिनेश, आयम कमिंग ।"
ठाकुर–"व्हेअर ?"
कालर–"टु सी यू !"
ठाकुर–"हेयर ?"
कालर–"हेअर एल्स ?"
ठाकुर–"आई विल मैनेज ।"
कालर–"आई नो यू विल ।"
ठाकुर–"यू थिंक इट इज वाइज एण्ड सेफ ।"
कालर–"यस । आई नो यू आर डुइंग वेल । बट वी हैंड ए डील विद दैम । दे आर नॉट आनरिंग इट । बट ए डील इज ए डील । वी विल टेक ओवर । दिस सिटी एण्ड वी आल नीड ए चेंज ।"
ठाकुर–"यू केन गेट इन ?"
कालर–"श्योर, आई कैन ! विद एज मैनी पीपल एज आई वांट ।"
ठाकुर–"यू विल बी इन टच ?"
कालर– श्योर । लुक एट दी कैलेंडर ऑफ रिलीजियस इवेन्टस इन करीमगंज । देट विल गिव यू अन आइडिया ।"
ठाकुर–"ओ० के० ! आई विल डू दैट । टु नाइट इज ओ० के ?"
कालर–"फाइट फायर विद फायर, दिनेश !"
ठाकुर–"ओ० के० ।"
कालर–"आई विल सी यू सून ! बाई नाऊ !"
ठाकुर–"बाई ।"
समय : दस बजकर सोलह मिनट (रात्रि)
आउट गोइंग कॉल टू लोकल करीमगंज नम्बर ।
ठाकुर–"यासीन ?"
लोकल नम्बर–"यस ।"
ठाकुर–"इट इज दिनेश !"
लोकल नम्बर–"आई नो ।"
ठाकुर–"टु नाइट इज आन !"
लोकल नम्बर–"गुड ! यू हियर फ्रॉम हिम ?"
ठाकुर–"यस, ही इज एग्री ।"
लोकल नम्बर–"ओ० के० ।"
ठाकुर–"आई वांट टू मीट यू एण्ड मंसूर ।"
लोकल नम्बर–"वी विल कम ।"
ठाकुर–"नो, आई विल कम ।"
लोकल नम्बर–"व्हेअर ?"
ठाकुर–"सम व्हेअर नोबडी वुड एक्सपैक्ट ।"
लोकल नम्बर–"नो बडी नोज ।"
ठाकुर–दोज हसन ब्रदर्स हैव गोट टु नो नाउ आफ्टर लास्ट नाइट । दे आर नॉट सो फूल...एनीवे कम टु गार्डन रूम रेस्टोरेंट इन रायल गार्डन होटल । आई विल मेक रिजर्वेशन नाऊ फार टैन फोर्टी फाइव । ओ० के० ?"
लोकल नम्बर–"ओ० के० ! व्हेअर वी विल पार्क दी कार ?"
ठाकुर–"इन पार्किंग इन दी होटल बेसमेंट ?"
लोकल नम्बर–"वी विल बी देअर ।"
ठाकुर–"थैंक्यू !"
समय : दस बजकर बीस मिनट (रात्रि)
आउट गोइंग कॉल टू लोकल करीमगंज नम्बर ।
लोकल नम्बर–"रायल गार्डन होटल, कैन आई हैल्प यू ?"
ठाकुर–"कनेक्ट मी टु गार्डन रूम !"
लोकल नम्बर–"वन मोमेंट, सर !"
गार्डन रूम से–"गार्डन रूम ! कैन आई हैल्प यू ?"
ठाकुर–"प्लीज रिजर्व ए टेबल फॉर थ्री इन हाफ एन ऑवर ।"
गार्डन रूम–"ओ० के० ! यूअर गुड नेम सर ?"
ठाकुर–"दिनेश ठाकुर ।"
गार्डन रूम–"थैंक्यू सर ।"
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