किपलिंग से मुलाकात

मैंविक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के इंडियन सैक्शन में एक बेंच पर बैठा था जब एक लम्बा, झुका हुआ, वृद्ध भद्रपुरुष मेरी बगल में बैठ गया। मैंने उस पर एक उड़ती हुई नज़र डाली, उसकी साँवली आकृति, घनी मूँछें और कमानीदार ऐनक। उसके चेहरे में कुछ बहुत ही परिचित और परेशान करने वाला था और मैं उसे दोबारा देखने से खुद को रोक नहीं पाया।

मैंने ध्यान दिया कि वह मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था।

“क्या तुम मुझे पहचानते हो?” उसने हल्की मधुर आवाज़ में पूछा।

“बेशक, तुम परिचित दिख रहे हो,” मैंने कहा, “क्या हम कहीं मिले हैं?”

“शायद। लेकिन अगर मैं तुम्हें परिचित लग रहा हूँ तो कोई बात तो है। इन दिनों की समस्या यह है कि लोग अब मुझे नहीं जानते—मैं एक परिचित हूँ, बस इतना ही। पुराने विचारों के लिए खड़ा बस एक नाम।”

थोड़ा परेशान होकर मैंने पूछा, “तुम क्या करते हो?”

“मैं कभी किताबें लिखता था। कविता और कहानियाँ…तुम कहो, किनकी किताबें पढ़ते हो तुम?”

“ओह, मौघम, प्रीस्टले, थर्बर। और पुराने लेखकों में बेनेट और वेल्स…” मैं झिझका, कोई महत्त्वपूर्ण नाम तलाशने के लिए और मैंने एक छाया देखी, एक उदास छाया, मेरे साथी के चेहरे पर छा गयी।

“ओह हाँ, और किपलिंग,” मैंने कहा, “मैं रुडयार्ड किपलिंग को बहुत ज़्यादा पढ़ता हूँ।”

उनका चेहरा एकदम चमक गया और मोटे लेंस वाले चश्मे के पीछे आँखें एकदम जीवंत हो उठीं।

“मैं किपलिंग हूँ,” उन्होंने कहा।

मैंने उन्हें चकित होकर ताका। और फिर यह अनुभव कर कि वह खतरनाक भी हो सकता है, मैं निर्बलता से मुस्कुराया और कहा, “ओह हाँ?”

“तुम शायद मुझ पर विश्वास नहीं करते हो। मैं मृत हूँ, बेशक।”

“मैंने यही सोचा।”

“और तुम भूत में विश्वास नहीं करते हो?”

“किसी नियम की तरह नहीं।”

“लेकिन तुम्हें उससे बात करने में कोई आपत्ति तो नहीं, अगर वह साथ आता है?”

“मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मैं कैसे जान पाऊँगा कि तुम किपलिंग हो? मैं यह कैसे मान लूँ कि तुम ढोंगी नहीं हो?”

“सुनो, फिर:

जब मेरा स्वर्ग खून में बदल जायेगा,

जब अँधेरा मेरे दिन पर छा जायेगा,

बहुत दूर, लेकिन सबसे वफ़ादार, प्रतीक्षारत होगा

वह पुराना तारा जिसे मैंने दूर कर दिया।

मैंने खुद को चाहा, और

मैं न जी सका और न मर ही पाया।”

“एक बार,” उन्होंने कहा, मुझे बाँह से पकड़ते हुए और मेरी आँख में सीधा झाँकते हुए। “एक बार जीवन में मैंने तारा देखा लेकिन मैंने उसे जाने का संकेत किया।”

“आपका तारा अब तक नहीं टूटा है,” मैंने कहा, अचानक द्रवित होते हुए, अचानक इस बात के लिए पूरी तरह आश्वस्त होते हुए कि मैं किपलिंग की बगल में बैठा हूँ, “एक दिन जब यहाँ विदेश में जोखिम की नयी भावना होगी, हम आपको फिर से खोज लेंगे।”

“इतने लम्बे समय तक उन्होंने मुझे इतना तिरस्कृत क्यों किया?”

“आप बहुत युद्धप्रिय थे। मुझे लगता है—बहुत ज़्यादा ही साम्राज्य के वफ़ादार। आप अपने हित के लिए बहुत अधिक देशभक्त थे।”

वह थोड़ी पीड़ा में दिखे। “मैं कभी भी बहुत राजनैतिक नहीं था,” उन्होंने कहा, “मैंने 600 से ज़्यादा कवितायें लिखीं और उनमें से दर्जन भर को ही आप राजनैतिक कह सकते हैं। मुझे इस बात के लिए कोसा गया कि मैं गोरों के उत्तरदायित्व के मुद्दे की बीन बजाता रहता हूँ लेकिन मेरा एकमात्र उद्देश्य था अपने पाठकों को साम्राज्य का दर्शन करवाना—और मैं विश्वास करता था कि साम्राज्य एक बढ़िया और महान चीज़ है। क्या किसी चीज़ पर विश्वास करना गलत है? मैं कभी भी राजनैतिक मुद्दों में गहराई से नहीं गया, यह सच है। तुम्हें ज़रूर याद होना चाहिए, भारत में मेरे सात साल मेरी जवानी के साल थे। मैं अपने बीसवें साल में था, थोड़ा अपरिपक्व अगर तुम्हें अच्छा लगे, और भारत में मेरा रुझान एक लड़के का रुझान था। अभियान मुझे किसी भी और चीज़ से ज़्यादा प्रभावित करते थे। तुम्हें यह समझना चाहिए।”

“किसी ने भी अभियान या भारत को इतनी विविधता से वर्णित नहीं किया। मैं किम के साथ खुद को महसूस करता हूँ। वह ग्रैंड ट्रंक रोड पर जहाँ भी जाता है, बनारस के मन्दिरों में, सहारनपुर के फल के बगीचों में, हिमाच्छादित हिमालय पर किम के पास कविता के रंग और गति है।”

उन्होंने एक आह भरी और एक उदास झलक उनकी आँखों में तैर गयी।

“मैं ज़रूर पूर्वाग्रही हूँ, बेशक,” मैंने कहना जारी रखा, “मैंने अपना अधिकांश जीवन भारत में बिताया है—तुम्हारे भारत में नहीं, लेकिन एक भारत जिसके पास अब भी वे अधिकतर रंग और वातावरण हैं जिन्हें आपने उकेरा था। आप जानते हैं, मिस्टर किपलिंग, आप अब भी रेल के डिब्बे के तीसरी क्लास में बैठकर सबसे निराले लोगों के समूह से मिल सकते हैं। आप अब भी वही स्वागत, गरिमा और साहस पायेंगे जो लामा और किम ने अपनी यात्राओं में पाया था।”

“और ग्रैंड ट्रंक रोड? क्या यह अब भी लोगों के एक लम्बे जुलूस जैसा है?”

“एकदम वैसा तो नहीं,” मैंने थोड़ा उदास होते हुए कहा, “अब बस यह मोटर गाड़ी का जुलूस भर है। बेचारे लामा ट्रक के नीचे आ जायें अगर वह ग्रैंड ट्रंक रोड पर अपनी कल्पनाओं में अधिक खो जायें। समय बदल चुका है। उदाहरण के लिए शिमला में मिसेज हॉक्सबीस जैसे लोग अब और नहीं हैं।”

किपलिंग की आँखों में दूर जाने का भाव था। शायद वह खुद को फिर से एक लड़के जैसा अनुभव कर रहे थे। शायद वह पहाड़ और राजपूताना की लाल धूल देख पा रहे थे। शायद वह अपने प्रसिद्ध पात्रों मलवनी और ओर्थेरिस से निजी वार्तालाप कर रहे थे, या शायद वह अपनी किताब द जंगल बुक के सियोन्स भेड़िये के झुंड के साथ शिकार कर रहे था। लंदन ट्रैफिक की आवाज़ शीशे के दरवाज़े के भीतर से हम तक आ रही थी, लेकिन हमें सिर्फ़ बैलगाड़ी के पहिये और बाँसुरी का दूर से आता संगीत सुनायी दे रहा था।

वह खुद से बात कर रहे थे, अपनी ही एक कहानी के अंश को दोहराते हुए। “और दिन की हवा का आखिरी झोंका किसी अनदेखे गाँव से आता हुआ गीली लकड़ी का धुआँ, उपले, ज़मीन के नीचे की टपकन, और देवदार के निर्जीव पत्तों की गंध लाता था। यह हिमालय की सच्ची गंध थी और अगर एक बार यह एक आदमी के खून में उतर आती है तो वह आदमी आखिरकार, सब कुछ भूल जायेगा और पहाड़ों पर मरने के लिए लौट जायेगा।”

एक धुँध हम दोनों के बीच उठ आयी प्रतीत होती थी—और क्या वह सड़कों से आयी थी?—और जब वह साफ़ हुई, किपलिंग जा चुके थे।

मैंने द्वारपाल से पूछा कि क्या उसने थोड़े झुके कन्धे वाले और चश्मा पहने एक लम्बे इन्सान को जाते देखा है।

“नहीं,” द्वारपाल ने कहा, “पिछले दस मिनट से किसी को नहीं देखा।”

“क्या थोड़ी देर पहले इस तरह का कोई और गैलरी में आया था?”

“ऐसा कोई नहीं जो मुझे याद हो। आपने उस आदमी का नाम क्या बताया था?”

“किपलिंग,” मैंने कहा।

“नहीं जानता उसे।”

“क्या तुमने कभी द जंगल बुक्स पढ़ी है?”

“नाम परिचित लग रहा है। टार्ज़न जैसी कहानियाँ, यही था न?”

मैं संग्रहालय से निकल आया और सड़क पर बहुत देर तक घूमता रहा, लेकिन मुझे किपलिंग कहीं नहीं दिखे। क्या वह लंदन ट्रैफिक का शोर था जो मैं सुन रहा था या सतलुज नदी घाटियों में शोर करती बह रही थी।