अंतिम यात्रा की तैयारियां चल रही थीं ।
माहौल गमगीन था।
समरपाल सहित राजदान एसोसियेट्स के सभी कर्मचारियों के अलवा शहर के प्रतिष्ठित लोग विला के फ्रन्ट लॉन में मौजूद थे। और अंदर ।
वहां, जहां डैड बॉडी को नहलाया जा रहा था ।
ठकरियाल वहीं था ।
दिव्या और देवांश तो थे ही । लाश पूरी तरह नग्न थी । ठकरियाल ने खूब चैक किया। भिन्यास उड़े चेहरे पर प्लास्टिक सर्जरी का कहीं कोई रेशा नहीं था । केवल इतना ही कहा ठकरियाल ने– “हन्ड्रेड परसेन्ट वही है ।”
“पहले ही कम मुसीबत नहीं थी ।” देवांश बड़बड़ाया – “अखिलेश के रूप हरामजादे ने एक और मुसीबत भेज दी।”
“सचमुच ।... मुसीबत ही है वह ।” दिव्या बोली ।
ठकरियाल ने कहा—“शायद एक खास बात पर ध्यान नहीं दिया तुमने।”
“वह क्या?”
“उसके पास जो लेटर है, उसमें राजदान ने आत्महत्या का जिक्र कहीं नहीं किया है । उल्टे बार-बार कत्ल बताया है अपने अंत को । कातिल कहा है हमें ।"
“मतलब क्या हुआ इस बात का?"
“सीधा सा मतलब है।" देवांश ने कहा- “वही होने वाला है जिसका मुझे पहले ही से डर था । वास्तव में हम आत्महत्या को हत्या का रंग देने के गुनेहगार हैं जबकि साबित होने वाले हैं, सीधे-सीधे राजदान के कातिल ।”
ठकरियाल बोला—“लगता तो यही है राजदान के नये पैंतरे से परन्तु बात समझ में नहीं आ रही । ऐसा हो कैसे सकेगा? खुद हमारे पास उसके हाथ के लिखे ऐसे लेटर हैं जिनमें खुद उसने अपने अंत को आत्महत्या कुबूल किया है। दूसरी बात - -एक तरफ वह खुद को जीवित साबित करने के मिशन पर है, दूसरी तरफ – हमें हत्यारे साबित करने के लिये अखिलेश आ पहुंचा है। आखिर असल में साबित क्या करना चाहता है राजदान ।”
“मैं पहले ही कह चुका हूं।” देवांश ने कहा – “हमारी समझ में उस वक्त तक कुछ आयेगा जब तक जेल की चारदीवारी में नहीं पहुंच जायेंगे और भगवान जाने उस वक्त भी कुछ समझ में आ पायेगा या नही।"
दिव्या कुछ कहना ही चाहती थी कि बाथरूम में 'महापंडित’ प्रविष्ट हुआ।
वह, जिसकी प्रतीक्षा थी ।
जिसे अंतिम संस्कार की रस्में करानी थीं ।
महापंडित ने आते ही मंत्रोच्चारण शुरू कर दिया।
ठकरियाल ने सोच रहा था – कितनी करामाती लाश है ये?
कैसे अनोखे जाल में उलझाये हुये है अपने दुश्मानों को । ठकरियाल अपनी पिछले जीवन में कभी यह कल्पना नहीं कर सका था एक शख्स मरने के बाद किसी के लिये इतना खतरनाक बनाा सकता है ।
दिव्या और देवांश को लग रहा था – लाश अभी खिलखिलाकर हंस पड़ेगी। अपनी खिल्ली सी उड़ाती लग रही थी वह उन्हें जिसे वे महापंडित के निर्देशों के कारण मल-मलकर नहलाने पर मजबूर थे।
ठकरियाल को लगा— अब यहां उसका कोई काम नहीं है।
सो।
बाहर निकल आया।
फ्रन्ट लॉन में पहुंचकर एक सरसरी नजर मौजूद लोगों पर डाली।
रामोतार के अलावा वहां बन्दूकवाला, आफताब, विला का एक अन्य नौकर, भागवंती, समरपाल, भट्टाचार्य, अखिलेश, वकीलचंद, रामभाई शाह और अन्य ऐसे ढेर सारे लोग मौजूद थे जिनके नाम नहीं जानता था । वह खुद भी उन्हीं गमगीन लोगों के बीच जा खड़ा हुआ।
धीरे-धीरे सरकता रामोतार उसके नजदीक आ गया । मौका पाकर फुसफुसाया— “एक बात ने मरी खोपड़ी की जड़े हिला रखी हैं साब।” ठकरियाल कुछ बोला नहीं, केवल सवालिया नजरों से घूरा उसे । “अगर हम राजदान साब की शवयात्रा में शामिल होने आये हैं तो मुझे नांवा पहुंचाने वाला कौन था?” सकपका गया ठकरियाल। बड़बड़ाकर केवल इतना कह सका — 'तू ही जानता होगा।'
“क्या आपको पूरा यकीन है साब, लाश राजदान सब की ही है ?”
“क्यों, तूने नहीं देखा उसे?” कहने के साथ उसने अखिलेश की तरफ देखा था। उसकी तरफ जो अपनी किंग कोबरा जैसी आंखों से उन्हीं की तरफ देख रहा था ।
“देखना अलग बात है साब, चैक करना अलग। आप तो बाकायदा चैक करके आये है।” ठकरियाल ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा | जरा भी तो प्रभाव नहीं पड़ा रामोतार पर । कुछ देर उसके बोलने का इन्तजार करता रहा । जब नहीं बोला तो खुद ही बोला— “साब, क्या बताती है आपकी खोजबीन ? लाश... “राजदान ही की है।” ठकरियाल दांत भींचकर गुर्रा उठा। “फिर वह कौन...
“तुझसे मिला था वह । तुझे ही पता होगा । शायद आंखें फूट गई थीं तेरी जो किसी और को राजदान समझा ।”
“साब । लगता तो नहीं था वह कोई और है।”
“तो मोर्चरी से उठकर टहलता हुआ पहुंच गया होगा तेरे क्वार्टर पर।”
हौले से हंसा रामोतार । बोला – “आप तो 'जोक' करने लगे साब ।”
“जोक तो तू कर रहा है। अभी तक नहीं समझा, वह राजदान का क्लोन था।”
“हां। क्लोन ही होगा।” बड़बड़ाकर रामोतार मानो खुद ही की संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा था— “इसके अलावा और हो भी क्या सकता है? बहरहाल, आप जैसा ब्रिलियेन्ट आदमी खुद लाश को चैक करके आया है।”
ठकरियाल बड़ी मुश्किल से खुद को चुप रख सका। असल में उसका जी रामोतार के जबड़े पर एक घूंसा जड़ने को चाह रहा था मगर अफसोस—वर्तमान हालात में अपनी यह आरजू पूरी नहीं कर सकता था। उसकी मानसिक अवस्था को समझते रामोतार के होठों पर हल्की-हल्की सी मुसकान थी । कुछ देर चुप रहने के बाद वह पुनः बोला— “पर साब मेरी समझ में फिर एक बात नहीं आ रही।”
जबड़े भींचे ठकरियाल ने कहा – “समझ में क्या आ रहा है तेरी?”
“भला क्लोन मुझे इतना नांवा क्यों देगा?” अपनी ही धुन में वह कहता चला गया।
“रामोतार!” वह गुर्राया— “जिस जगह खड़ा ये सारी बकवास तू कर रहा है, तेरी इस बेवकूफी से अगर तेरी करतूत किसी और के कानों तक पहुंचती है तो दोष मेरा नहीं होगा।”
“बात तो ठीक है साब।
मगर...
“फिर मगर?”
“दो ही लोगों से डिस्कस कर सकता हूं इस मसले पर । पहली मेरी घर वाली । दूसरे आप | घरवाली के बारे में तो कहूं क्या? उसकी समझ में तो आज तक यही बात नहीं आई कि वह सात बच्चों की मां बनी तो बनी कैसे? फिर भला ये ‘ओरिजनल’ और ‘क्लोन’ वाली बात क्या समझेगी। रहे आप | लगता है आप इस मसले पर वार्ता के ही इच्छुक नहीं हैं।”
“भलाई इसी में है रामोतार, इस बात को भूल जा कि राजदान तुझे कभी मिला था। उसने तुझे रुपये दिये थे और तूने बबलू को फरार किया था। ऐसी बातों को खुद याद रखो तो कभी न कभी, किसी न किसी के कानों तक पहुंच जाती हैं।" एक बार फिर उसने अखिलेश की तरफ देखा था और अब भी उसे अपनी ही तरफ देखते पाया था।
“ठीक कहा आपने। अब मैं ऐसा ही करूंगा । बहरहाल, आप पुराने ‘एक्सपीरियेंस होल्डर' हैं। और फिर अगर मेरी पोल किसी पर खुल गई तो दिक्कत तो आपको भी हो जायेगी न!”
एक बार फिर ठकरियाल की इच्छा उसका जबड़ा तोड़ डालने की हुई । यदि अखिलेश वहां मौजूद न होता तो शायद अपनी इस इच्छा को पूरी कर ही हालता वह । भला हो उन लोगों का जो उसी वक्त राजदान की डैड बॉडी को अर्थी पर रखे विला की इमारत से बाहर निकल आये। जाने और क्या-क्या कहने की रामोतार की इच्छा का अंत हो गया ।
‘राम नाम सत्य' की आवाजों के साथ शवयात्रा शुरू हुई ।
सारे रास्ते अखिलेश भट्टाचार्य और वकीलचंद के साथ रहा था। हालांकि यह स्वाभाविक था। पुराने दोस्त थे वे मगर, , चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावल गलत नहीं है । ठकरियाल के दिमाग को यह सवाल बराबर कचोटता रहा 'वे क्या बातें कर रहे है?' खुद उसने, खुद को रामोतार से दूर रखा था।
उसे डर था, कहीं रामोतार पुनः वही टॉपिक न छेड़ दे ।
वह समझ चुका था - मूर्ख और कार्टून सा नजर आने वाला अखिलेश वास्तव में एक घुटा हुआ जासूस है । एक इंस्पैक्टर और अवलदार के बीच होती खुसफुसाहट उसे खटक सकती है।
शवयात्रा श्मशान पहुंची।
अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिये वहां भी पहले ही से सैकड़ों लोग मौजूद थे।
एस. एस. पी. अर्थात् रणवीर राणा भी था उनमें ।
और।
राणा पर नजर पड़ते ही अखिलेश इस तरह उसकी तरफ लपक पड़ा जैसे किसी ने वर्षो बाद अपनी प्रेमिका को देखा हो। उसी तरफ देख रहे ठकरियाल का दिल उस वक्त जोर-जोर से धड़कने लगा जब राणा को भी उसने अखिलेश को देखते ही चौंकते और फिर इस तरह हाथ मिलाते देखा जैसे वह उसका पूर्व परिचित हो।
ठकरियाल को लगा—अखिलेश नाम का यह शख्स जरूर कुछ गुल खिलाने वाला है।
इसमें कोई शक नहीं, जब बीमा कम्पनी से मिलने वाले क्लेम के लालच में उसने पलटा खाकर दिव्या और देवांश की राह पर चलने का फैसला किया था, तब वह स्वप्न तक में कल्पना नहीं कर पाया था यह मामला इतनी पेचीदगियों भरा साबित होगा। न ही यह कल्पना कर सका था कि राजदान इतना बड़ा खिलाड़ी निकलेगा । इतना बड़ा कि सचमुच उसके किये कुछ भी तो नहीं
हो पा रहा था। जो भी करता था, थोड़ा आगे बढ़ते ही पता लगता था – राजदान पहले कही उसके स्टैप की कल्पना कर चुका था । दिव्या और देवांश से भले ही वह चाहे जो कहकर उनका ढाढस बंधा रहा हो परन्तु हकीकत यह थी – खुद उसे भी महसूस होने लगा था इस मामले में हाथ डालकर वह भूल कर चुका है।
और अब...हालात इतने विकट हो चुके थे कि चाह कर भी कदम वापस नहीं खींच सकता था। अखिलेश नामक मुसीबत उसे, उस शख्स द्वारा खड़ी की गई अब तक की सभी मुसीबतों से खतरनाक नजर आ रही थी, जिसे चिता पर लिटाया जा चुका था। जिसके जिस्म को को पंचतत्वों में विलीन करने हेतु चारों तरफ लकड़ियां लगाई जा रही थीं।
ठकरियाल ने देखा— अखिलेश ने अभी-अभी जेब से एक कागज निकालकर राणा को दिखाया था । समझते देर नहीं लगी उसे — वह वही, राजदान का लेटर होगा । ठकरियाल के दिमाग में विचार कौंधा — आखिर क्या बातें कर रहा है वह एस. एस. पी. से ?
कहीं वह उसे शीशे में न उतार ले ?
ठकरियाल को लगा- - उसे भी वहां होना चाहिये ।
उनके बीच होने वाली बाते उसकी 'नॉलिज' में होनी चाहिये।
अतः भीड़ को चीरता तेजी से उनकी तरफ बढ़ा।
इस वक्त उसका ध्यान रामोतार की तरफ जरा भी नहीं था । उस रामोतार की तरफ जो लगभग उसके साथ ही साथ रणवीर राणा और अखिलेश की तरफ बढ़ा था ।
नजदीक पहुंचकर ठकरियाल ने हौले से राणा को सैल्यूट किया ।
राणा उसे देखते ही बोला— “आओ। आओ इंस्पैक्टर । इनसे मिलो। अखिलेश गुप्ता है ये। दिल्ली के जाने-माने प्राईवेट डिटेक्टिव। हमारा इनसे वहीं परिचय हुआ था । बड़ी ही आश्चर्यजनक बात बता रहे हैं ये ।”
“मैं इनसे मिल चुका हूं सर और वह आश्चर्यजनक बात भी सुन चुका हूं ।” बहुत ही संतुलित लहजे में ठकरियाल कहता चला गया- -“वाकई ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी ने अपने मर्डर की इन्वेस्टीगेशन के लिये खुद जासूस नियुक्त किया हो। इनके पास अपनी मृत्यु से पूर्व राजदान का लिख हुआ लेटर है ।”
“हम तो चकित रह गये हैं इस रहस्योद्घाटन से।” राणा वाकई रोमांचित नजर आ रहा था— -“इनका दावा है, कातिल बबलू बबलू नहीं हो सकता।”
ठकरियाल ने बहुत ही सावधानी पूर्वक पूछा— “क्या आप इनके दावे से सहमत हैं?”
“सवाल ही नहीं उठता, बबलू को हमने खुद पकड़ा है। उसके खिलाफ इतने सुबूत हैं कि...
“आप भूल रहे है राणा साहब ।” अखिलेश ने कहा – “लेटर से जाहिर है— राजदान को न सिर्फ यह मालूम था उसका कत्ल कौन लोग करने वाले है बल्कि यह भी मालूम था – यह कत्ल किस तरह और कितने बजे होगा?”
“इससे तो एक बार फिर बबलू ही कातिल साबित होता है।” ठकरियाल ने अखिलेश पर हावी होने के लिये तपाक् से कहा – “उस बयान पर गौर कीजिये सर । बबलू ने खुद बताया- - वह दिन ही में राजदान से रात को आने के बारे में कह चुका था। अर्थात् राजदान जानता था वह रात के किस वक्त आयेगा। उसके लिये खिड़की भी खोलकर रखी थी । मतलब साफ है — वह समझ चुका था ज्वेलरी पर बबलू की नीयत खराब हो चुकी है। लालच में फंसा वह उसका कत्ल करने आ रहा है। राजदान के लेटर में यही सब लिखा है, केवल नाम नहीं लिखा बबलू का । नाम ही लिख देता तो राजदान के मुताबिक 'इनके' करने के लिये काम ही क्या रह जाता?”
“आप एक छोटी सी । बहुत ही नन्ही सी बात भूल रहे हैं मिस्टर ठकरियाल ।” अखिलेश ने चटकारा लेते से लहजे में कहा। ठकरियाल ने धड़कते दिल से पूछा – “वह क्या ?”
“यह लेटर राजदान ने अट्ठाईस तारीख को लिखा अर्थात् उसे अपने कत्ल, कातिल और कत्ल के टाईम आदि के बारे में अट्ठाईस को मालूम था जबकि बबलू अपने बयान के मुताबिक उससे उन्तीस को दिन में मिला था।” ‘धाड़’ की जोरदार आवाज के साथ ठकरियाल को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिमाग में गोली मार दी हो । सचमुच अखिलेश के शब्द कुछ इसी तरह उसके जहन से जाकर टकराये थे ।
अवाक् सा रह गया वह ।
कुछ कहते न बन पड़ा।
रणवीर राणा ने कहा – “बात भाई सोचने वाली है । मगर...
“चालाक अपराधियों का काम ही पुलिस को चकमा देने के लिये बेगुनाह के खिलाफ सुबूत बिखेरना होता है।" अखिलेश के हर शब्द से आत्मविश्वास टपक रहा था— “कुछ लोग इतने घुटे हुये होते है कि बेकसूर किसी कमजोरी का फायदा उठाते हुये उससे जुर्म तक कुबूल करा देता हैं।”
“क्या ऐसा हो सकता है ?” राणा कह उठा- “अगर ऐसा हुआ है तो वाकई, बहुत मार्बलस केस है ये। हमारी जिन्दगी में आया शायद सबसे दिलचस्प केस । और ... हमें अखिलेश की बात कुछ-कुछ जंच रही है । याद करो इंस्पैक्टर, उस वक्त एक बार को तुमने भी शंका व्यक्त की थी । कहा था- - तुम्हें आश्चर्य है, उस लड़के को एक चांटा तक नहीं मारा गया और सारा गुनाह कुबूल करता चला गया। खुद इस तरह धारा प्रवाह बोलता चला गया जैसे पूर्व निर्धारित था कि उसे कब क्या कहना है ? इसका मतलब उस वक्त तुम्हारे द्वारा व्यक्त किया गया संदेह ठीक था । किसी के दबाव में वह वही कह रहा था जो उससे कहलवाया जा रहा था ।”
ठकरियाल ने अपने जाल में खुद को बुरी तरह जकड़ा हुआ महसूस किया।
इस वक्त खुद उसकी हालत वैसी ही थी जैसी वह अपने सामने खड़े मुजरिम की कर दिया करता था । बचाव का एक ही रास्ता सूझा उसे। वही कह दिया— “अगर बबलू को किसी ने फंसाया होता तो घटनास्थल से छेड़छाड़ जरूर की जाती । और सर।” उसने राणा से कहा— “घटनास्थल का निरीक्षण आपने खुद किया है। वहां किसी वस्तु से कोई छेड़छाड़ नहीं...
“छेड़छाड़ की गई थी।” अखिलेश ने उसकी बात बीच ही में काट दी। ठकरियाल कुछ बोल न सका । मुंह खुला का खुला रह गया था उसका ।
राणा ने चकित लहजे में कहा – “घटनास्थल का निरीक्षण तो वाकई हमने खुद किया था मिस्टर अखिलेश । हमें तो नहीं लगा वहां के किसी सामान से छेड़खानी की गई है।”
अखिलेश ने मुंह से जवाब देने की जगह दूर खड़े आफताब को अपने नजदीक आने का इशारा किया।
राणा, ठकरियाल और रामोतार ने भी उधर देखा था । उधर, जिधर आफताब खड़ा था।
दीनू काका और एक अन्य नौकर के साथ सज चुकी चिता के बहुत नजदीक खड़ा था वह।
महापंड़ित मंत्रोच्चारण कर रहा था । देवांश के हाथों में वह लकड़ी थी जिसके अग्रिम सिरे पर आग लपलपा रही थी। चिता की परिक्रमा कर रहा था वह । मगर ध्यान चिता पर नहीं था ।
ध्यान था राणा, ठकरियाल, रामोतार और अखिलेश की तरफ।
जहन में अनेक सवाल कौंध रहे थे ।
उस वक्त तो सारे अस्तित्व में खलबली सी मच गई जब अखिलेश के इशारे पर आफताब को उनकी तरफ बढ़ते देखा । जी चाहा—लकड़ी यहीं फैंककर श्मशान से दूर भागता चला जाये।
परिक्रमाऐं पूरी हो चुकी थीं ।
महापंडित ने चिता को अग्नि देने के लिये कहा । खुद में खोया देवांश उस आदेश को सुन न सका। महापंडित ने पुनः कहा । देवांश ने इस बार भी न सुना।
तब, महापंडित ने उसे झंझोड़ डाला ।
वह चौंका। महापंडित बोला— “दुख से उबरिये जजमान जी । बड़े भाई को अग्नि दीजिये। तभी इन्हे मोक्ष मिलेगा।” देवांश ने चिता पर लेटे चेहरे और खोपड़ी विहीन राजदान को देखा। जी चाहा—अग्नि देने की जगह अपने नाखूनों से नोंच डाले उसे।
मगर ।
अग्नि तो देनी ही थी । सो, दी ।
उधर ।
आफताब, अखिलेश आदि के नजदीक पहुंचा। लगातार रोने के कारण उसकी आंखें सुर्ख होकर सूज गई थीं । ठकरियाल को लगा—उसकी टांगे कांपने लगी हैं। अपने अदरक जैसे जिस्म का भार अचानक ही बहुत वजनी सा लगने लगा था उसे। इस बीच अखिलेश एक सिगरेट का तम्बाकू बायीं हथेली पर फैला चुका था। उसमें सुल्फा मिलाते हुए आफताब से पूछा – “राजदान साहब को उस रात व्हिस्की तुम्हीं ने पहुंचाई?”
“जी साब ।”
“गिलास कितने थे ?”
“त...तीन साब।”
अखिलेश ने ठकरियाल से पूछा – “घटनास्थल से कितने मिले?”
“ए-एक ।” ठकरियाल को कहना पड़ा ।
तम्बाकू को वापस सिगरेट में भरते अखिलेश ने राणा से पूछा – “आपकी नॉलिज के मुताबिक ?”
“एक ।”
“बाकी दो कहा गये ?”
सन्नाटा !
“यानि वहां मौजूद सामान से केवल छेड़छाड़ ही नहीं की गई।” सिगरेट को हथेली पर ठोकते अखिलेश ने कहा-“बल्कि पूरी तरह गायब ही कर लिये गये दो गिलास| क्यों?”
चिता की तरफ से लकड़ियां चटकने की आवाज आई।
ठकरियाल को लगा- - उसके दिमाग की नसें चटक रही हैं।
उम्मीद है आपके दिमाग की नसें भी चटकने लगी होंगी। साथ ही दिमाग में सवाल होंगे—क्या राजदान जीवित है? अगर हां - तो कैसे? नहीं— तो कौन है उसका 'क्लोन' ? उद्देश्य क्या है उसका ? ठकरियाल ने कहा- -'वह क्लोन को पहचान चुका है।' क्या यह सच है या दिव्या और देवांश को बेवकूफ बना रहा है? खेल आखिर है क्या? कौन खेल रहा है असली खेल? अखिलेश ने क्या गुल खिलाये? क्या सचमुच सारा प्लान मरे हुए राजदान का है? बबलू, उसके मां-बाप और स्वीटी कहां गायब हो गये? क्या राजदान का चौथा दोस्त अवतार भी मैदान में आया? अगर हां — तो क्या किया उसने ? उसका वर्तमान स्वरूप क्या है? क्या ठकरियाल राजदान के जाल को तोड़ सका? क्या हुआ दिव्या और देवांश का? शांतिबाई और विचित्रा क्या सचमुच मर चुकी थीं? सबसे अहम् सवाल है - -राजदान दिव्या, देवांश और ठकरियाल के लिये क्या सजाऐं मुकर्रर करने के बाद मरा था? ऐसी वे क्या सजायें थी जिन्हें वह फांसी से भी बड़ी सजा कहता था? क्या उसके दुश्मनों को वे सजायें मिलीं? क्या कहीं कोई गड़बड़ हुई? हुई— तो क्या? क्या दिव्या, देवांश और ठकरियाल को पांच करोड़ हासिल हो सके? क्या गुल खिलाये उन पांच करोड़ ने? क्या सचमुच राजदान का प्लान परवान चढ़ सका? ऐसे अनेक सवालों का केवल एक ही जवाब है— 'मदारी ।' जी हां, 'तुलसी पॉकेट बुक्स' के अगले सैट में निश्चित रूप से प्रकाशित होने वाला वेद प्रकाश शर्मा का ताजा-तरीन उपन्यास- -'मदारी ।' आप समझ सकते हैं — मदरी सम्बोधन राजदान को दिया जा रहा है। उस राजदान को जो मरने के बाद भी अपने दुश्मानों के दिमाग में जिन्दा है। जो डुगडुगी बजा - बजाकर अपने शिकारों को मनचाहें ढंग से नचा रहा है। मदारी के खेल और उसके शिकारों के ठुमकों का मजा लेने के लिये पढ़ें – 'मदारी ।'
समाप्त
0 Comments