अजय लिफ्ट द्वारा होटल सिद्धार्थ के टॉप फ्लोर पर पहुंचा ।

अपने कमरे के सम्मुख पहुंचकर की होल में चाबी फंसाते ही उसका माथा ठनका ।

दरवाजा लॉक्ड नहीं था ।

उसने जेब से रिवाल्वर निकाल कर डोर नॉब घुमाई और दरवाजा खोल दिया । वह स्वयं तुरन्त उछल कर साइड में ऐसी स्थिति में खड़ा हो गया कि अगर अन्दर से गोलियां चलाई जाएं तो सुरक्षित रह सके ।

कई सेकेण्ड इन्तजार करने के बाद भी अन्दर से किसी प्रकार की हलचल का आभास नहीं मिला तो वह रिवाल्वर ताने सतर्कतापूर्वक धीरे–धीरे भीतर दाखिल हो गया ।

दरवाजे की ओर मुंह किए इकहरे जिस्म का एक आदमी कुर्सी पर बैठा था । अपनी बाँहें आगे फैलाते हुए उसने अजय को घूरा ।

–'मेरे पास कोई हथियार नहीं है ।' उसने कहा फिर धीरे–धीरे उठकर खड़ा हो गया ।

उसने पहले अपनी पैंट की जेबों पर हाथ मारा, फिर कोट की बाहरी जेबों पर और फिर कोट उतारकर दिखा दिया ।

–'तुम्हारे पास हथियार तो कोई नजर नहीं आ रहा ।' अजय बोला–'लेकिन तुम हो कौन ?'

–'मेरा नाम करतार है । मैं मिस्टर शमशेर सिंह के लिए काम करता हूं ।'

अजय रिवाल्वर ताने उसके पास पहुंचा । उसके कोट और पैंट की जेबें थपथपाई । जब उसे यकीन हो गया उसके पास वाकई कोई हथियार नहीं था तो अपनी रिवाल्वर वापस जेब में डाल ली ।

तुम मेरे कमरे में दाखिल कैसे हुए ?

करतार मुस्कराया ।

–'दरवाजे का ताला मामूली है । तार के टुकड़े से आसानी से खुल गया ।'

–'मेरे कमरे का नम्बर कैसे पता चला ?'

–'रिसेप्शनिस्ट ने बताया था । मैंने उससे यह कहते हुए, कि तुम्हारे लिए मैसेज लाया हूं, पूछा क्या तुम अपने कमरे में हो । उसने वो बॉक्स चैक किया । जिसमें तुम्हारे कमरे की चाबी थी तो मैंने नम्बर देख लिया–लॉबी में ही रहकर इंतजार करने के लिए कहकर मैं वहीं बैठ गया । फिर जैसे ही उसकी निगाहें बचीं सीढ़ियों से ऊपर आ गया ।'

–'और चोर की तरह मेरे कमरे में घुसकर इन्तजार करने लगे ।' अजय बोला–'लेकिन यह सब करने की क्या जरूरत थी ? तुम्हें शमशेर सिंह ने भेजा है ?'

–'हाँ ।'

–'किस लिए ?'

–'बॉस तुमसे मिलना चाहते हैं ।'

–'कहाँ ? वह इसी शहर में है ?'

–'हाँ ।'

–'यहां क्या कर रहा है ?'

करतार पुन: मुस्कराया ।

–'यह मुझे नहीं मालूम ।'

–'मुझसे किस सिलसिले में मिलना चाहता है ?'

–'यह भी नहीं मालूम ।'

–'कब मिलना है ?'

–'अभी ।'

–'अजय ने भौंहें चढ़ाकर उसे घूरा ।

–'अगर मैं कहूँ उस मोटे बूढ़े चूहे से नहीं मिलना चाहता । तब तुम क्या करोगे ?'

करतार की मुस्कराहट गहरी हो गई ।

–'कुछ नहीं । लेकिन ऐसा कोई फैसला करने से पहले इतना जान लो ! बॉस ने कहा है, तुम्हें बता दूँ कि उनसे मुलाकात करने में ही सबका फायदा है ।'

अजय ने पल भर सोचा फिर सर हिलाकर हामी भर दी ।

–'ठीक है । इस वक्त कोई काम मुझे नहीं है । मैं उस मोटे से मिलने के लिए तैयार हूं ।

–'मैं उन्हें बता दूँ तुम आ रहे हो ?'

अजय ने टेलीफोन की ओर इशारा कर दिया ।

–'जरूर । और यह भी बता दो मेरे स्वागत का कोई खास इंतजाम करने की गलती न करे ।'

–'मतलब ?'

–'वह ऐसा कुछ न करे जिसकी वजह से मुझे हिंसा का सहारा लेना पड़े ।'

–'यह तुमने कैसे सोच लिया ? मिस्टर शमशेर सिंह तुमसे सिर्फ बातें करना चाहते हैं । अगर उनका इरादा कुछ और करने का होता तुम्हें इस तरह नहीं बुलाया जाना था ।

–'उसके बुलाने पर कोई एतराज मुझे नहीं है । लेकिन यह बात मैंने मोटे को सावधान करने के लिए कही है । क्योंकि मेरा अहित करने की कोशिश करने वालों के ग्रह बहुत खराब चल रहे है । रोशन नाम के एक आदमी ने ऐसी ही कोशिश की थी । नतीजे के तौर पर उसे वक्त से बहुत पहले ही यह दुनिया छोड़ देनी पड़ी ।'

करतार ने आग्नेय नेत्रों से उसे घूरा फिर टेलीफोन के पास जाकर होटल आप्रेटर से आउट लाइन मांगने के बाद नम्बर डायल करने लगा ।

* * * * * *

करतार अजय को साथ लिए होटल शालीमार पहुंचा ।

वातानुकूलित लॉबी में कस्टमर्स के लिए लगी लिफ्टों के सामने से गुजरकर अन्तिम सिरे पर बने दरवाजे के सन्मुख, पहुंचकर करतार रुक गया ।

वहाँ ग्रे सूट पहने एक लम्बा–चौड़ा आदमी कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था । उसने सर ऊपर उठाया और करतार को देखकर मुस्करा दिया । व्यक्तित्व और लिबास से वह आदमी किसी कम्पनी का उच्चाधिकारी या फिर कोई अय्याश दौलतमंद नजर आता था । लेकिन उसकी सर्द निगाहों और कुटिल आँखों से अजय को भांपते देर नहीं लगी वह पेशेवर गनमैन था ।

वह पुनः अखबार पढ़ने लगा ।

करतार ने दरवाजा खोला और अजय को अपने पीछे आने कर संकेत कर दिया ।

उनके गुजरते ही दरवाजा पुनः बन्द हो गया ।

अजय ने स्वयं को एक करीब दस फुट वर्गाकार बन्द स्थान पर पाया । उस चूहेदानी जैसी जगह में न तो कोई रोशनदान था और न ही कोई खिड़की ।

सहसा, सामने कंक्रीट की दीवार का एक हिस्सा एक ओर खिसक गया और उस स्थान पर लिफ्ट नजर आने लगी । जिसका दरवाजा खुला था और अन्दर लिफ्टमैन मौजूद था ।

अजय समझ गया होटल में प्रवेश करते ही उनके आगमन की सूचना शमशेर सिंह को मिल गई थी फिर उसके आदेश पर लिफ्ट वहाँ आ पहुंची । जहाँ तक दीवार के खिसकने का सवाल था, उसके मैकेनिज्म को कहीं ओर से ऑपरेट किया जाता था । क्योंकि करतार ने उस चूहेदानी में आने के बाद कुछ नहीं किया था । अजय की भांति वह भी चुपचाप खड़ा रहा था ।

लिफ्टमैन ग्रे सूट पहने था और कद–बुत के लिहाज से वह बाहर मौजूद आदमी का जुड़वां भाई लगता था ।

करतार और अजय लिफ्ट में सवार हो गए ।

लिफ्टमैन ने एक–एक करके दो बटन दबा दिए । दीवार पुनः खिसककर यथावत हो गई, लिफ्ट का दरवाजा बन्द हुआ और वो ऊपर जाने लगी ।

लिफ्टमैन पैनी निगाहों से अजय को देख रहा था ।

–'तुम्हारे पास गन है ? वह सपाट स्वर में बोला ।

–'तुम क्यों जानना चाहते हो ?' अजय ने पूछा ।

–'मैं जानना नहीं चाहता । तुम्हें बता रहा हूँ । लाओ, गन मुझे दे दो ।' जब वापस जाओगे तो लौटा दूंगा ।'

अजय ने करतार की और देखा ।

–'गन दे दो ।' करतार बोला–'यह सिर्फ रुटीन है ।'

अजय पलभर हिचकिचाया फिर रिवाल्वर निकालकर लिफ्टमैन को दे दी ।

लिफ्टमैन ने रिवाल्वर अपनी बैल्ट में खोंस ली ।

–'और कोई हथियार तो नहीं है ?'

–'नहीं ।' अजय ने जवाब दिया–'मैं यहां मिलने आया हूँ हमला बोलने नहीं ।'

लेकिन लिफ्टमैन ने उस पर यकीन करने की बजाय बाकायदा उसकी थपथपाकर तलाशी ली । अपनी तसल्ली करने के बाद पीछे हट गया ।

लिफ्ट रुक चुकी थी ।

लिफ्टमैन ने एक गुप्त बटन दबाकर पूर्व निर्धारित सिग्नल द्वारा अपने आगमन की सूचना दे दी ।

दीवार का एक हिस्सा धीरे–धीरे अलग खिसक गया और सामने कारपेट बिछा गलियारा नजर आने लगा ।

गलियारे के सिरे पर सिक्योरिटी का एक और आदमी खड़ा था । उसने अपना दायां हाथ कोट की जेब में घुसेड़ा हुआ था । उसने लिफ्टमैन की ओर धीरे से सर हिला दिया ।

लिफ्टमैन ने बंगलेनुमा दरवाजा खोल दिया ।

करतार, अजय सहित बाहर निकलकर, गलियारे में चल दिया ।

सिक्योरिटी वाले ने उनका पीछा करने का कोई उपक्रम नहीं किया ।

अजय को साथ लिए करतार सुइट में दाखिल हुआ । उसे ड्राइंगरूम में पहुंचाकर दरवाजा बन्द कर दिया ।

शमशेर सिंह आराम से कुर्सी में पसरा हुआ था ।

–'आओ, अजय ।' वह बोला–'कैसे हो ?'

–'एक दम फर्स्ट क्लास ।' अजय बोला–'अपनी सुनाओ ।'

–'जैसा भी हूँ तुम्हारे सामने हूँ ।'

–'देख रहा हूँ चर्बी ज्यादा चढ़ गई ।' अजय उसके सामने बैठता हुआ बोला–'मुझे कैसे याद किया ?'

–'तुम्हारी मदद की जरूरत है ।'

अजय हंसा ।

–'मेरी मदद की तुम्हें जरूरत है ?'

–'हाँ ।'

–'लेकिन तुम्हारे पास तो अपनी ही पूरी फौज है ।'

–'उन सभी लोगों को पास जिस्मानी ताकत और हौसला तो है । लेकिन दिमाग नाम की चीज उनके पास नहीं है । जबकि मुझे एक ऐसा आदमी चाहिए जिसके पास हौसले के साथ साथ दिमागी सूझबूझ भी हो ।'

–'और तुम्हारी निगाहों में मैं ऐसा ही आदमी हूँ ।'

–'हाँ ।'

–'लेकिन मैं एक प्रेस रिपोर्टर भी हूँ ।'

–'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।'

प्रगट में सामान्य नजर आता अजय मन ही मन हैरान था । उसे उम्मीद थी शमशेर सिंह रोशन की मौत के बारे में उससे पूछताछ करेगा । लेकिन यहां तो मामला ही कुछ और था ।'

–'यानी तुम मुझ पर भरोसा कर रहे हो ।' उसने पूछा–'यह जानते हुए भी कि तुम्हारा पुराना दुश्मन हूं ?'

–'अगर तुम्हारा इशारा बॉक्सर गनपत की हत्या वाले मामले की और है तो तुम मुझे गलत समझ रहे हो । यह ठीक है तुमने इतनी तगड़ी चोट हमें पहुंचाई थी कि एक बार के लिए तो हमारी समूची आर्गेनाइजेशन हिल गई थी । लेकिन ये सब गई गुजरी बातें हैं । और गड़े मुर्दे उखाड़ना मेरी आदत नहीं है ।'

–'लेकिन रोशन वाला मामला तो ताजा है ।'

–'उसमें भी तुमसे कोई शिकायत मुझे नहीं है । वह बेवक़ूफ़ अपनी औकात भूलने लगा था । उस जैसे आदमो का देर सबेर यही अंजाम होता है ।'

–'खैर, छोड़ो । यह बताओ, मुझसे किस मामले में और कैसी मदद चाहिए ?'

–'मैं एक आदमी को तलाश करना चाहता हूँ ।'

–'किसलिए ?'

–'उससे कुछ पूछताछ करनी है ।'

अजय ने गौर से उस घाघ आदमी को देखा ।

–'सिर्फ पूछताछ ?'

–'हाँ ।'

–'किस सिलसिले में ?'

–'यह मैं नहीं बता सकता ।'

–'आदमी कौन है ?

–'पहले यह बताओ तुम इस काम को करने के लिए तैयार हो ?'

–'आदमी कौन है यह जाने बगैर इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकता ।'

–'ओके । वह एक अपहरणकर्ता है ।'

–'किसका अपहरण किया था उसने ?'

–'चन्दन मित्रा का ।'

अजय इस बुरी तरह चौंका कि बड़ी मुश्किल से ही स्वयं को सामान्य बनाए रख सका । उसे लगा अनायास ही वह अपनी मंजिल पा गया था । चंदन मित्रा के अपहरणकर्ता की तलाश में पुलिस और सी. आई. डी. वाले जमीन–आसमान एक कर चुके थे । लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली । उसी अपहरणकर्ता को शमशेर सिंह भी तलाश कराना चाहता था । क्यों ? इसका जवाब वह भी जानता था । लेकिन उसके अपने नजरिए से यह बात महत्वपूर्ण नहीं थी । महत्वपूर्ण बात थी–क्या शमशेर सिंह को अपहरणकर्ता की जानकारी थी ? अगर ऐसा था तो सारी समस्या आसानी से सुलझ सकती थी ।

–'क्रिस सोच में पड़ गए ?' शमशेर सिंह ने उसे टोका ।

–'मैं सोच रहा हूँ ।' अजय गोली देता हुआ बोला–'चन्दन मित्रा के अपहरणकर्ता की अपनी लाख कोशिशों के बावजूद पुलिस गंध तक नहीं पा सकी । उसी को तुम मुझसे तलाश कराना चाहते हो । मैं अकेला आदमी इसमें क्या कर सकता हूँ ?'

–'तुम उसे तलाश कर सकते हो ।'

–'कैसे ?'

–'उसकी गंध मुझे मिल गई है ।'

–'तो फिर अपने आदमियों को भेजकर उसे पकड़ वालो ।'

–'अगर मैं ऐसा कर सकता होता तो तुम्हें यहां नहीं बुलाता । वह कहीं गायब हो गया है और मेरे आदमी उसे नहीं ढूंढ़ सकते ।'

–'फिर तुम उसके बारे में पुलिस को बता दो । वे लोग तो उसे ढूंढ़ लेंगे ।'

–'उससे पूछताछ करने के बाद मैं खुद उसे पुलिस के हवाले कर दूंगा ।'

–'तुम्हारी पूछताछ के बाद वह जिंदा बचेगा ?'

–'हां, मैं वायदा करता हूं, वह सही सलामत रहेगा ।'

–'इस मामले में तुम्हारे किसी वादे पर एतबार मैं नहीं कर सकता ।'

शमशेर सिंह ने यूँ उसे देखा, मानो उसने मोटी गाली दे दी थी ।

–'तुम्हें शमशेर सिंह के वायदे पर एतबार नहीं है ?'

–'नहीं ।'

–'ठीक है । पूछताछ के बाद मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूंगा ।' शमशेर सिंह कड़े स्वर में बोला–'तुम खुद उसे पुलिस को सौंपकर हीरो बन जाना ।'

–'यानी उससे पूछताछ के दौरान मैं भी तुम्हारे पास मौजूद रहूंगा ?'

–'हाँ ।'

अजय ने साफ नोट किया वह झूठ बोल रहा था । लेकिन उसके पास उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था ।

–'मुझे इसमें क्या फायदा होगा ?' उसने मन ही मन कुछ तय करते हुए पूछा ।

–'तुम्हें अपने अखबार के लिए धांसू कहानी मिल जाएगी ।'

–'अखबार की नहीं मैं जाती फायदे की बात कर रहा हूं ।'

–'क्या चाहते हो ?'

–'मेहनताना ।'

–'कितना ?'

–'पचास हजार रुपए ।'

शमशेर सिंह ने अविश्वासपूर्वक उसे देखा ।

–'तुम पैसे के फेर में कब से पड़ने लगे ?'

अजय मुस्कराया ।

–'जब से मुझे दुनियादारी की सही तमीज आई है ।'

–'ठीक है, तुम्हें पचास हजार रुपये मिल जाएंगे ।'

–'कब ?'

–'काम होने पर ।'

–'लेकिन मुझे पच्चीस हजार पेशगी चाहिए ।'

–'मिल जाएंगे ।'

–'दैन इट्स ए डील ।' मैं उस आदमी को सही सलामत वन पीस तुम्हारे पास ले आऊंगा । तुम मुझे मेरी बकाया रकम दोगे और उस आदमी को भी पूछताछ के बाद उसी वक्त में मेरे हवाले कर दोगे ।'

–'मंजूर है ।' शमशेर सिंह ने कहा फिर बने बॉडीगार्ड को हाँक लगा दी ।

दरवाजा खोलकर करतार प्रगट हुआ ।

–'यस, बॉस ।'

–'अमरकुमार को ले आओ ।'

करतार उल्टे पैरों वापस लौट गया ।

अजय असमंजसतापूर्वक शमशेर सिंह को देखने लगा ।

चंद क्षणोपरांत अपने पीछे आहट सुनकर उसने गर्दन घुमाई ।

अमरकुमार भीतर दाखिल होने के बाद ठिठककर रुक गया था और हैरानगी से मुंह बाए खड़ा देख रहा था ।

–'यह सब क्या है ?' लम्बी खामोशी के बाद उसने पूछा ।

–'तुमने करतार से कहा था मुझसे मिलना चाहते हो ।' शमशेर सिंह बोला–'आओ, मैं मिलने के लिए तैयार हूँ ।'

–'जानते हो ।' अमरकुमार ने अजय की ओर उंगली तानकर पूछा–'यह आदमी कौन है ?'

–'यह अजय है । मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं । फिलहाल यह मेरे लिए काम कर रहा है । इसलिए अब तुम्हें इससे डरने की जरूरत नहीं है । तुम इसकी ओर से बेफिक्र हो सकते हो ।' कहकर शमशेर सिंह ने अजय की ओर देखा–'यह भी हमारे बीच हुई डील का एक हिस्सा है ।'

–'लेकिन पहले तो तुमने यह नहीं बताया ।' अजय बोला ।

–'यह मामूली बात है । इसलिए मैंने जिक्र नहीं किया । और फिर तुम अपने पचास हजार कमाने में इतने मसरूफ रहोगे कि अमर के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा । वैसे भी इस आदमी की कोई अहमियत नहीं है । इसके फेर में पड़ना बेकार वक्त जाया करना है ।'

अमरकुमार आगे आकर ठीक शमशेर सिंह के सामने खड़ा हो गया ।

–'मैं मामूली आदमी नहीं हूँ, शमशेर सिंह । वह दांत पीसता हुआ बोला–'मैं जब चाहूँ, तुम्हें तबाह कर सकता हूँ । कान खोलकर सुन लो, इस आदमी के साथ किसी भी तरह का तुम्हारा कोई ताल्लुक मुझे पसन्द नहीं......।'

शमशेर सिंह ने उसे यूं देखा मानो उसकी अक्ल पर तरस आ रहा था ।

–'तुम अव्वल दर्जे के बेवकूफ हो, अमर ।' वह शांत स्वर में बोला–'अगर सामने वाला जुआरी तगड़े से तगड़ा दांव लगाने को तैयार हो तो समझदार आदमी को ब्लफ की चाल ज्यादा लंबी नहीं खींचनी चाहिए । जानते हो ?'

–'मैं ब्लफ नहीं मार रहा हूँ ।' अमर गुर्राया ।

–'मान लिया कि तुम्हारे पास तीन बादशाह हैं । लेकिन दूसरे के पास तीन इक्के भी हो सकते है ।'

–'नहीं, शमशेर सिंह । इस बाजी में ऐसा नहीं है । मैं जानता हूँ मेरे पास तीन इक्के है । तुम भी इस बात को जानते हो । ब्लफ मैं नहीं तुम मार रहे हो ।' कह कर अमर ने खा जाने वाले भाव में, अजय को घूरा–'यह आदमी नहीं शैतान है । अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मेहनताना देने की बजाय इसे ठिकाने लगवा देता ।'

–'ऐसे हादसे पहले ही काफी हो चुके हैं ।' शमशेर सिंह बोला–'लेकिन हम लोग बिजनेसमैन हैं । हमें बिजनेसमैन वाले ढ़ंग से ही काम करना चाहिए । मनमोहन सहगल या उस औरत रिपोर्टर या रोशन के साथ जो हुआ । उस सबकी कोई जरूरत नहीं थी । असलियत यह है किसी ने डबल क्रॉस किया और हालात हमारे हाथ से निकल गए । घबराओ मत, हम हालात पर फिर से काबू पा लेंगे–बगैर किसी और को ठिकाने लगाये ।' उसने पास खड़े करतार की ओर देखा और फिर उसका लहजा एकाएक बर्फ की मानिंद सर्द हो गया–'किसी आदमी के साथ अमर को वापस इसके घर पहुंचा दो । रास्ते में इसके साथ कोई गड़बड़ न होने पाये ।'

करतार ने उसकी बांह थामी और एक प्रकार से जबरन उसे दरवाजे की ओर ले चला । अमर प्रतिरोध करने की बजाय चुपचाप उसके साथ चला गया ।

–'जोकर की दुम ।' शमशेर सिंह ने हिकारत से कहा, फिर अजय से मुखातिब हो गया–'तो तुम उस अपहरणकर्ता का पता लगाने को तैयार हो...।'

–'इस फिल्म स्टार का इससे क्या ताल्लुक है?' अजय ने उसे टोककर पूछा ।

–'कुछ नहीं । कुछ देर पहले जो तुमने सुना । वो उसका और मेरा जाती मामला है ।'

अजय ने जानबूझकर अविश्वासपूर्वक उसे देखा ।

–'सच कह रहे हो ?'

–'हाँ ।'

–'लेकिन एक बात अभी भी मेरी समझ में नहीं आई ।' अजय ने पूछा–'तुम उस अपहरणकर्ता को पुलिस को क्यों सौंपना चाहते हो ?'

–'इसलिए कि मैं उससे सिर्फ पूछताछ करना चाहता हूं । उसमें और कोई दिलचस्पी मेरी नहीं है ।'

अजय समझ गया वह टाल रहा था ।

–'खैर, छोड़ो । उसने कहा–'अपहरणकर्ता के बारे में बताओ ।'

–'उसका नाम बद्री प्रसाद सोनी है । वह एक भूतपूर्व बॉक्सर भोलानाथ पांडे के साथ मिलकर काम कर रहा है दो रोज पहले किसी ने उसके अपार्टमेंट हाउस के बाहर ही उसे शूट करने की कोशिश की थी । वह तभी से अन्डरग्राउन्ड है ।'

–'उसके अपार्टमेंट हाउस का पता ?'

शमशेर सिंह ने पता बता दिया ।

अजय ने जेब से पैकेट निकालकर इत्मिनान से सिगरेट सुलगाई ।

–'तुम्हारा कोई आदमी पहले से ही इस पर काम कर रहा है ?' उसने पूछा ।

–'नहीं ।'

–'अब करेगा ?'

–'नहीं ।'

–'यानी मैं अपने ढंग से काम करने के लिए आजाद हूँ ?'

–'हाँ ।'

–'गुड । अब मैं एक और बात साफ कर देनी चाहता हूँ ।' अजय बोला–'हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं । अगर मुझे जरा भी शक हो गया तुम्हारा कोई आदमी इस मामले में दखल दे रहा है या मेरे पीछे लगा हुआ है तो मैं फौरन इस मामले से हाथ खींच लूँगा । और अगर तब तक अपहरणकर्ता का पता मुझे लग गया तो तुम्हारे हाथ पड़ने से पहले ही मैं उसे शूट कर दूंगा । समझ गए ?'

–'हाँ, तुम भी एक बात अच्छी तरह समझ लो । अगर तुमने मेरे साथ किसी किस्म की चालाकी करने की कोशिश की तो मैं भी तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा ।'

अजय खड़ा हो गया ।

–'एक बात और ।' शमशेर सिंह बोला–'अमर का मनमोहन और उस औरत रिपोर्टर की हत्याओं से कोई ताल्लुक नहीं है । इसलिए उससे दूर ही रहना । वैसे भी उस पर जल्दी ही बड़ी भारी गर्दिश आने वाली है । बस मुझे सही वक्त का इन्तजार है ।'

उससे पहले तो खुद तुझ पर ही गर्दिश आ जाएगी मोटे । अजय ने मन ही मन कहा । लेकिन प्रगट में बोला, 'ठीक है, मैं चलता हूँ ।'

शमशेर सिंह ने उठने या हाथ मिलाने का कोई उपक्रम नहीं किया ।

–'जाती बार नीचे रिसेप्शनिस्ट से अपने पच्चीस हजार रुपये लेते जाना । उसने कहा और अपने बॉडीगार्ड को हाँक लगा दी ।

करतार फौरन दरवाजे में प्रगट हो गया ।

अजय पलट कर उसके पास पहुंचा और फिर उसे साथ लिए बाहर निकल गया ।