रात के ग्यारह बजे ।


देवांश बैण्ड स्टैण्ड पहुंचा।


उस वक्त वहां चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था ।


वातावरण में सागर के गर्जने का शोर गूंज रहा था ।


समुद्र किनारे पड़े विशाल काले पत्थर दैत्य से नजर आ रहे थे।


आगे बढ़कर वह उनमें से एक पत्थर पर चढ़ गया --- समुद्र की दिशा में दूर तक देखा । 


दृष्टि के अंतिम छोर तक पानी ही पानी था ।


किनारे से थोड़ी दूर, लहरें आपस में गुंथ रही थीं ।


जो जीत जाती दौड़कर किनारे पर आती और वहां पड़े पत्थरों से सिर टकराकर दम तोड़ देती । पानी के सफेद झाग चारों तरफ बिखरे रह जाते । यह सिलसिला अनवरत जारी था।


मगर !


देवांश को न इस सिलसिले से मतलब था, न इस बात का होश कि विला के बैण्ड स्टैण्ड तक लगातार एक 'वेगन आर' ने उनका पीछा किया था ।


'वेगन - आर' में था ठकरियाल ।


गाड़ी उसने एक पेड़ की आड़ में खड़ी की थी । वहां से लगभग दौड़ता हुए उस दिशा में लपका जिधर देवांश बढ़ा था।


उस वक्त वह एक पत्थर की बैक में छुपा देवांश की तरफ देख रहा था जब अपने आस-पास हल्की सी सरसराहट महसूस की।  


वह सतर्क हो गया ।


आवाज किसी इंसानी जिस्म के रेंगने की थी ।


वह पलटना ही चाहता था कि ---


“घबराओ मत । ये मैं हूं।” आवाज अखिलेश की थी ।


“त - तुम...? तुम भी यहां पहुंच गये?”


“क्योंकि मेरा शिकार भी यहीं है ।”


“कौन? ठकरियाल!"


"हां ।”


“कहां है ?”


“जहां इस वक्त देवांश है, वहां से करीब एक फर्लांग दूर समुद्र में एक स्टीमर खड़ा है। उसी के अंदर गया है वह । लो... देवांश भी उधर ही चल दिया । ”


सचमुच ।


स्टीमर पर नजर पड़ते ही एक से दूसरे पत्थर पर कूदता देवांश उस तरफ बढ़ गया था ।


“क्या चक्कर है ये?” समरपाल बड़बड़ाया --- “ठकरियाल भी यहीं आया है, देवांश भी ।”


“मेरे ख्याल से खेल शुरू हो चुका है । "


“कैसा खेल ?”


“ उनके द्वारा एक-दूसरे को 'डाज' देने का ।”


“मैं कुछ समझा नहीं।”


“मेरे ख्याल से देवांश यहां दिव्या से छुपकर आया होगा। अर्थात् दिव्या को नहीं बताया होगा उसने कि..


“तुम ठीक कह रहे हो । ठीक इसी तरह, दिव्या भी देवांश से छुपकर विला से निकली थी । ”


“क्या मतलब?” अखिलेश हौले से चौंका।


“मैं और भट्टाचार्य उस वक्त विला के फ्रन्ट लॉन की हैज के पीछे छुपे हुए थे | । मौजूद आफताब से कहा--- 'मैं कहीं जा रही हूं। दो-तीन घण्टे में लौट आऊंगी। देवांश पूछे तो कह देना तुम्हें नहीं मालूम । उसके यह कहने से जाहिर है--- देवांश से बगैर बताये.. 3 तैयार होकर बाहर निकली। वहां


“भट्टाचार्य उसके पीछे गया है?” अखिलेश पूछ |


"हां | ... जो तय हो चुका है, भला उसमें कोताही कैसे हो सकती है?”


“उनका एक-दूसरे से छुपकर निकलना ही इस बात का द्योतक है कि वे अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े हैं। एक-दूसरे को डॉज देने की कोशिश में हैं क्योंकि ठक्रियाल भी उसी स्टीमर में है जिसकी तरफ इस वक्त देवांश बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट है - - - वे दोनों मिलकर कोई खिचड़ी पका रहे हैं । "


"मुमकिन है दूसरी तरफ दिव्या और अवतार मिल रहे हों।”


“ उसी साले का ठिकाना नहीं मिल रहा !” दांतों पर दांत जमाये अखिलेश कह उठा --- “उसके ठिकाने का पता लगाने का काम मैंने वकीलचंद को सौंपा है।”


“ उसकी कोई रिपोर्ट आई?”


“नहीं।"


“आओ | देवांश के पीछे चलते हैं।”


खुद को पत्थरों की बैक में रखे वे उसके पीछे लपके ।


स्टीमर के अंदर या बाहर की कोई भी लाइट ऑन नहीं थी।


अंधेरे में अंधेरे का ही एक हिस्सा बना, लहरों पर खड़ा हिचकोले खा रहा था वह ।


कुछ देर देवांश उसकी तरफ देखता रहा ।


फिर ।


घुटनों घुटनों पानी से गुजरकर उस तरफ बढ़ा।


“क्या किया जाये ?” समरपाल फुसफुसाया |


जवाब में अखिलेश अभी कुछ कहने ही वाला था कि बगल वाले पत्थर की बैक से शी-शी की आवाज उभरी ।


जैसे कोई उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहता हो ।


“कौन है ?” अखिलेश फुसफुसाया |


“ठकरियाल और देवांश को देखकर मैं समझ गया था, तुम दोनों भी आसपास ही कहीं होने चाहिएं।” भट्टाचार्य के मुंह से निकली आवाज के साथ उन्होंने उसे पत्थर पर रेंगकर इधर ही आते देखा था । 


“तुम भी यहां?” अखिलेश के मुंह से चौंका हुआ स्वर निकला --- “यानी दिव्या भी यहीं आई है ?”


“स्टीमर के अंदर है।"


“ बात समझ में नहीं आई। वे दोनों एक ही जगह से यहां आये । मगर अलग-अलग । एक-दूसरे से छुपकर । चक्कर क्या है ये? ऐसा है तो स्टीमर के अंदर एक-दूसरे को देखकर उनकी क्या हालत होगी ?”


अखिलेश ने पूछा--- "अवतार को तो यहां आते नहीं देखा तुमने?”


“नहीं।" भट्टाचार्य ने कहा।


“जब ये तीनों आ गये हैं तो मुमकिन है वह भी आये ।” समरपाल ने संभावना व्यक्त की ।


“मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।" भट्टाचार्य बोला--- "स्टीमर में शायद वे अपने आगे के प्लान पर विचार-विमर्श करने वाले हैं ।”


“एक बार नजर आ जाये साला--- ।" अखिलेश दांत भींचकर गुर्रा उठा--- "उसके बाद मैं उसका पीछा तभी छोडूंगा जब सारे सुबूत हासिल कर लूंगा ।”


“वही तो ।” भट्टाचार्य ने कहा--- "ये साले सब 'फुलंगन' तो हमारी नजरों में हैं। जड़ एक बार भी नजर नहीं आई। जड़ तो वही है क्योंकि सारे सुबूत उसी के पास हैं।"


“तुम दोनों यहीं ठहरो ।” एकाएक अखिलेश बोला--- "मैं स्टीमर की तरफ जाता हूं।"


"स्टीमर की तरफ ?”


“ उनके बीच होने वाली बातें सुनना जरूरी है ।” कहने के साथ उसका पतला जिस्म छिपकली की मानिन्द पत्थरों से निकलकर रेत पर रेंग गया।


“ध्यान से।” समरपाल ने धीमी आवाज में कहा--- "वे देख न लें।”


इस मामले में अखिलेश उन सबसे ज्यादा होशियार था ।


पांच मीटर के बाद तो वह खुद भट्टाचार्य और समरपाल को ही नजर आना बंद हो गया ।


उधर, देवांश स्टीमर के अंदर जा चुका था।


इधर, रेत पर रेंगने के बाद अखिलेश पानी में उतरा और इतने धीरे से उतरा कि जरा भी आवाज उत्पन्न न हो सकी। घुटनों घुटनों पानी में वह अपने सारे शरीर को भिगोये तेजी से स्टीमर की तरफ बढ़ रहा था। इसके लिए उसे अपनी हथेलियों और घुटनों पर चलना पड़ रहा था ।


अचानक स्टीमर का इंजन स्टार्ट हुआ।


अखिलेश को अपनी सारी मेहनत पर पानी फिरता नजर

आया।


स्टीमर से करीब दस मीटर इधर था वह अभी ।


रफ्तार बढ़ाई |


मगर व्यर्थ ।


स्टीमर ने एक तेज झटका खाने के बाद पानी पर दौड़ना शुरू कर दिया था । 


अखिलेश उछलकर खड़ा हुआ ।


दौड़ना चाहा।


मगर । कहां स्टीमर, कहां वह ?


सागर की छाती पर दौड़ते दैत्य की मानिन्द वह उससे दूर होता चला गया |

धाड़ ! धाड़ ! धाड़ !

अपना दिल धड़कने की आवाज देवांश ठीक इस तरह सुन सकता था जैसे स्टेथिस्कोप पर सुन रहा हो । साथ ही, अपनी पसलियों से भी टकराता महसूस दे रहा था उसे ।

स्टीमर के अंदर पहुंचते ही उसने जेब से टार्च निकाल ली थी।

उसका प्रकाश दायरा मुकम्मल केबिन में गर्दिश करने लगा।

सोफा, सेन्टर टेबल, लकड़ी के फर्श पर बिछे कार्पेट और दीवारी पर लगी पेन्टिंग्स आदि से अनुमान लगाया ---इस कक्ष को ड्राइंग रूम की तरह इस्तेमाल किया जाता है। प्रकाश दायरा एक दरवाजे पर स्थिर हो गया। वहां मोटे और कीमती कपड़े का पर्दा झूल रहा था ।

देवांश दबे पांव उसी तरफ बढ़ा |

पर्दे का एक कोना हटाकर टॉर्च के प्रकाश से अंदर का निरीक्षण किया ।

वह बैडरूम था ।

खाली ।

इसी तरह - - - वह डायनिंग और किचन आदि में भी पहुंचा।

जब कहीं कोई नजर नहीं आया तो आवाज दी - -- “विनीता ! विनीता!”

कहीं से कोई आवाज नहीं उभरी ।

खुद उसी की आवाज घूम-घूमकर उसके कानों में लौट आई ।

तभी ।

इंजन स्टार्ट होने की आवाज उभरी ।

वह चौंका ।

जोर से चीखा --- “कौन है? कौन है ?... विनीता!”

अचानक झटका लगा ।

तीव्र झटका |

कार्पेट पर गिर गया वह ।

संभलकर फुर्ती से उठा।

तब तक स्टीमर ने दौड़ना शुरू कर दिया था ।

इस बीच देवांश की आंखें काफी हद तक अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं।

जम्प सी लगाकर कॉरीडोर में पहुंचा।

फिर आंधी-तूफान की तरह दौड़ता चला गया ।

रुखा चालक कक्ष की तरफ था ।

वहां पहुंचते ही एक झटके से कक्ष का दरवाजा खोला ।

चालक सीट पर बैठे शख्स के सिर का केवल निचला हिस्सा नजर आया उसे ।

कोई औरत तो वह हरगिज नहीं थी ।

“क-कौन हो ?” देवांश ने कांपती आवाज में दहाड़ने की कोशिश की - - - "कौन हो तुम?”

“बस ! बहुत भाग दौड़ कर चुके।" इस आवाज के साथ उसने रिवाल्वर की ठंडी और कठोर नाल का एहसास अपनी कनपटी पर किया । साथ ही दिव्या की आवाज भी पहचान ली थी।

बौखला सा उठा वह । “द - दिव्या ?” मुंह से निकला --- “त-तुम ?”

“दिव्या नहीं, विनीता बोल ।” दिव्या के हलक से व्यंग्य
निकला --- “विनीता से मिलने आये थे न यहां ।”

देवांश ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि --- 'कट' की आवाज के साथ सारा स्टीमर जगमगा उठा ।

मेन स्विच ऑफ था जिसे ठकरियाल ने ऑन कर दिया। एक पल को तो चौंधिया गया वह । अगले पल जब ठकरियाल को पहचाना तो हलक से चीख सी निकल गई --- “त- तुम ?... तुम भी यहां हो ?” 

ड्राइव करता ठकरियाल हंसा ।

बड़ी ही भयानक हंसी थी वह ।

उसके दांत इस वक्त सामान्य से ज्यादा लम्बे नजर आये।

रिवॉल्वर उसके मस्तक की तरफ ताने दिव्या ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी थी ।

देवांश की हालत ऐसी थी कि मुंह से आवाज तक न निकाल सका।

स्टीमर दौड़ा चला जा रहा था ।

साथ ही, पानी पर उसकी रोशनियां दौड़ रही थीं ।

“तुझसे बड़ा जलील मैंने अपनी लाइफ में नहीं देखा।” दांत भींचकर दिव्या कह उठी --- "कमीने, विचित्रा के साथ मिलकर राजदान की हत्या का षड्यंत्र रचा। मेरे निप्पल्स पर जहर पहुंचाया ताकि मैं फांसी के फंदे पर झूल जाऊं। और... छः महीने का लम्बा टाइम गुजर जाने के बावजूद उसके बारे में कभी मुझे बताया नहीं। भोगता रहा मुझे।”

“म - मैंने कई बार कोशिश की दिव्या । मगर.. “मगर ?”

“हर बार हिम्मत जवाब दे गई

" इन बातों का कोई फायदा नहीं दिव्या ।” ठकरियाल ने कहा--- “काम पूरा करो अपना | "

“न-नहीं! नहीं! दिव्या मुझे माफ कर दो ।" देवांश उसके कदमों में बैठ गया।

“खबरदार!” रिवाल्वर का मुंह उसके सिर पर रखती दिव्या गुर्राई- -- “खबरदार, जो कोई चालाकी दिखाने की कोशिश की । मेरी अंगुली की बाल बराबर हरकत तुम्हारे सिर को राजदान के सिर की तरह बिखेर देगी।"

देवांश सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था ।

ड्राइव करता ठकरियाल गर्जा--- " भावुकता के भंवर से निकलो दिव्या । ऐसी ही बेवकूफियों के कारण पासे पलट जाते हैं | शूट कर दो । मौका ही मत दो कोई ।”

“चिंता मत करो ठकरियाल । बहुत धोखे दे चुका ये। अब मैं इसके किसी धोखे का शिकार नहीं होऊंगी। स्टीमर को जरा वहां तो पहुचा ले sy जहां लाश पानी में हमेशा के लिए गर्क हो सके।”

"स्टीमर ऐसी जगह पहुंच चुका है।” ठकरियाल दहाड़ा --- “काफी गहरा पानी है यहां ।”

“तो ये लो।” कहने के साथ देवांश ने दिव्या के सामने हाथ फैला दिया, जो रिवॉल्वर दिव्या ने अभी तक उस पर तान रखा था उसे बड़े प्यार से देवांश के हाथ पर रख दिया और देवांश ने उसे ठकरियाल के पिछले भाग की तरफ तानते हुए अपना वाक्य पूरा किया --- “ आ गयी तुम्हारी मंजिल !”

“क- क्या मतलब?” ठकरियाल के होश उड़ गये ।

“तुम मेरे नहीं, अपने मर्डर के प्लान पर काम कर रहे थे बेवकूफ! अपनी लाश को खुद दफनाने आये हो तुम यहां।” कहने के साथ ---

धांय! धांय!!

अंगुली को दो बार जुम्बिश दी उसने ।

दोनों गोलियां ठकरियाल के भेजे में उतर आईं।

मामले को ठीक से समझने का या कुछ कहने का कोई मौका  नहीं मिला उसे । 

चारों तरफ खून के छींटे छितरा गये ।

लाश ड्राइविंग सीट पर झूलती रह गयी ।

“अब तो नहीं कहोगी तुम कि मैंने कुछ नहीं किया ?" देवांश मुस्कराते हुए दिव्या की तरफ देखा ।

दिव्या ने अपनी एड़ियां ऊपर उठाई। पंजों पर खड़ी हुई, उचकी | बांहें देवांश की गर्दन के चारों तरफ लपेटी और होंठ, उसके होठों पर रख दिये । 

पानी का कलेजा चीरता स्टीमर बगैर चालक के दौड़ा चला
जा रहा था ।