“सच नगीना।" राधा कह उठी-“तो मेरे से भी बढ़िया बनाती है। बहुत मजा आया खाने में तू मेरे पास ही रह ले। आखिर घर में कोई काम-धंधा करने वाली तो चाहिये ही । तू अपना और मेरा खाना बनाया कर।"
नगीना के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"तुम्हारा पति खाना नहीं खाता क्या?"
"खाता है। उसका खाना तो मैं ही बनाऊंगी।"
"मैं क्यों नहीं बना सकती।"
“वो मेरा मर्द है। तू ही बता मुझे क्या अच्छा लगेगा कि मेरे होते हुए मेरा मर्द किसी दूसरी औरत के हाथ का खाना खाये। ऐसा हुआ तो फिर वो प्यार भी किसी दूसरी औरत से ही करेगा ।" मुझे क्यों करेगा। राधा ने भोलेपन से कहा।
“हां । ये बात तो है। लेकिन मैं यहां ज्यादा देर नहीं रह सकती।” नगीना बोली ।
“बाहर तो वो बदमाश है। ऐसे में तुम कैसे जाओगी?" नगीना ने कुछ नहीं कहा।
"फिक्र मत कर । आज तो नीलू आ जायेगा। पहले मैं उसे खींचकर लम्बा करूंगी। उसके बाद वो तेरी मुसीबत दूर कर देगा।"
नगीना खामोश ही रही ।
राधा बर्तन समेटने लगी ।
दोनों लंच करके हटी थीं। दोपहर के तीन बजने जा रहे थे। नगीना उठी और ड्राईंगरूम में पहुंचकर मुख्यद्वार खोलकर बाहर देखा। नजरें इधर-उधर घुमाई। दूसरे ही पल उसकी निगाह ठिठक गई। कुछ दूर पेड़ की छाया के नीचे देवराज चौहान खड़ा था। दोनों की आंखें मिलीं।
तभी पीछे से राधा आई ।
“क्या देख रही है ?"
"वो बदमाश बाहर ही है?" नगीता ने शांत स्वर में कहा।
“कहां है ! कहां है !"
नगीना को पीछे करती हुई राधा आगे आई ।
“वो देखो, उधर पेड़ के नीचे- ।”
राधा ने भी देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान इधर ही देख रहा था ।
“वो बदमाश है?"
“हां । मेरी जान के पीछे पड़ा है। "
“मुझे तो वो किसी शरीफ घर का खूबसूरत युवक लग रहा है। तेरे को धोखा हुआ है। वो नहीं हो -"
“वो ही है।” नगीना अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठी- "मैं उसे अच्छी तरह पहचानती हूं।"
“ये बात है तो ठहर । मैं अभी उसे- ।” कहते हुए राधा बाहर निकलने को हुई।
नगीना ने फौरन उसकी कलाई थाम ली।
छोड़ मुझे। मैं उसे पकड़ कर बाथरूम में बंद कर दूंगी। नीलू आकर इसका बुरा हाल कर देगा। इसके हाथ-पांव बांधकर हम दोनों भी इसे मारते रहेंगे। ये तो - "
"उसके पास जाने की गलती मत करना।" नगीना कह उठी।
"मैं क्या उससे डरती हूं। तू देख मैं अभी ।"
" उसके हाथ में रिवाल्वर है।"
“रिवाल्वर ?” राधा ने नगीना को देखा।
"हां । वो वहीं खड़े-खड़े हमें गोली मार सकता है। बहुत खतरनाक है। तेरे पास रिवाल्वर है?"
“वो तो नीलू के पास है। "
“तो फिर उसे आ लेने दे।”
“ठीक है। तू फिक्र मत कर। नीलू आकर इसके टांगें तोड़ देगा।” कहते हुए राधा वापस कमरे में आ गई ।
नगीना ने दरवाजा बंद कर लिया। वो गम्भीर नजर आ रही थी।
“नगीना!” राधा कह उठी- “मुझे तो हैरानी है कि वो इतना खूबसूरत है तो वो खतरनाक कैसे हो सकता है!”
"क्यों-खूबसूरत लोग खतरनाक नहीं होते क्या?” नगीना ने कहा- “तुम बता रही थी कि तुम्हारा मर्द भी खूबसूरत है और उसके पास रिवाल्वर भी है।”
“वो तो ठीक है। लेकिन वो बदमाश नहीं है।" राधा ने भोलेपन से कहा- “बहादुर है।”
बरबस ही नगीना मुस्करा पड़ी।
“हो सकता है तुम ठीक कह रही हो। मैंने तुम्हारे मर्द को देखा नहीं। इसलिये कुछ कह नहीं सकती।"
आज आयेगा तो देख लेना। बहुत अच्छा है मेरा नीलू।" राधा मुस्करा कर कह उठी- “मुझे तो उस जैसा कोई दूसरा नजर आता ही नहीं। अब तुम आराम कर लो। मैं भी रोस्ट ले लेती हूं।"
“रोस्ट नहीं। रैस्ट-।"
“वो - ही - । वो-ही। अभी मैं अंग्रेजी सीख रही हूं।"
***
महाजन शाम के पाँच बजे लौटा। बेल बजाई। दरवाजा नगीना ने खोला। अजनबी चेहरे को सामने पाकर महाजन के होंठ सिकुड़े।
"कौन हो तुम -?"
नगीन समझ गई कि यही नीलू गहाजन है ।
"बाद में बताऊंगी कि ये कौन है।"
दूसरे कमरे में आती या ने तीखे स्वर में कहा- "पहले मैं तुम्हारा हालचाल तो पूछ लूँ। चार घंटे के लिये जाते हो और आते हो दूसरे दिन - ।"
महाजन के चेहरे पर सकपकाहट के भाव उभो । "राधा वो- ।” महाजन ने कहना चाहा।
- “अभी तेरे को खींचकर लम्बा करती हूं! चल तो मेरे
साथ - कहने के साथ ही पास आ पहुंची राधा ने महाजन की कलाई पकड़ी और खींचती हुई दूसरे कमरे में ले जाने लगी। ।
“प्लीज राधा मेरी बात तो सुनो। मैं - "
“नीलू! तेरी बहाने वाली बातों को मैं बहुत सुन चुकी हूं। उनमें कुछ नहीं रखा।" दूसरे कमरे में ले जाती राधा कड़वे स्वर में कह उठी- “तेरे को मैं अपनी सुनाऊंगी। उसमें बहुत कुछ रखा है।"
राधा खींचते हुए महाजन को दूसरे कमरे में ले गई। दरवाजा बंद कर लिया।
नगीना के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी फिर गम्भीर हो गई। उसने खुले दरवाजे से बाहर झांका !
देवराज चौहान वहीं पेंड़ के नीचे खड़ा था। इधर ही देख रहा था। नगीना कई पलों तक देवराज चौहान को देखती रही फिर दरवाजा बंद कर लिया। आंखों में व्याकुलता के भाव भर आये थे। कमरे से कुछ देर राधा और महाजन के बीच झगड़ा होने की आवाजें आती रहीं। राधा, महाजन को बोलने का मौका ही नहीं दे रही थी। उसके बाद बिल्कुल ही चुप्पी छा गई । नगीना कुर्सी पर बैठ गई।
डेढ़ घंटे बाद दरवाजा खुला और राधा बाहर निकली। वो नहा-धो चुकी थी। कपड़े बड़ी बदन पर थे। जो पहले पहने हुए थे। चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे बिल्ली ने पेट भर कर तबीयत से मलाई खाई हो और मलाई अभी भी मूंछों के बालों पर अटकी चमक रही हो। नगीना को देखकर राधा खुलकर मुस्कराई।
“सीधा कर दिया नीलू को। अब वक्त पर वापस लौटा करेगा। खींचकर लम्बा कर दिया मैंने, उसे।"
"ज्यादा तो नहीं खींच दिया।" नगीना भी मुस्कराई।
“ज्यादा ही समझो। बाथरूम में है नीलू। मैं उसके लिये चाय बना लाऊं।" कहकर राधा किचन की तरफ बढ़ गई।
इधर महाजन नहा कर वहां पहुंचा। उधर राधा चाय बनाकर ले आई।
महाजन ने नगीना को भरपूर निगाहों से देखा फिर चाय का घूंट भरा ।
“ये बेचारी कल की यहां फंसी तुम्हारा इन्तजार कर रही है और तुम- ।" राधा ने बैठते हुए कहना चाहा।
“मैं इसे नहीं जानता ।” महाजन ने उलझन भरी निगाहों से राधा को देखा।
“नीलू । मैंने कब कहा कि तू इसे जानता है।" राधा हाथ हिलाकर कह उठी- “एक बदमाश इसके पीछे पड़ा हुआ है। मैंने भी देखा है उसे बहुत खूबसूरत है। देखने में बदमाश नहीं लगता। लेकिन ये कहती है कि वो बदमाश ही है, जिसने इसके मां-बाप को मार दिया है और अब इसकी भी जान ले लेने चाहता है । ये तो अच्छा हुआ कि मैंने इसे अपने घर में रहने दिया। वरना अब तक तो वो इसकी भी जान ले चुका होता ।” राधा ने एक ही सांस में कह दिया। ।
महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
“ये कब की बात है ?"
“कल दोपहर को ये घर में आ घुसी थी।" राधा बोली ।
“तब से वो बदमाश बाहर ही है। "
“ह्यं । मैंने इसे तसल्ली देकर बिठा रखा है कि मेरा नीलू बहुत बहादुर है। वे आते ही सब ठीक कर देगा।"
महाजन ने तीखी निगाहों से राधा को घूरा ।
“मैंने कुछ गलत कह दिया क्या नीलू - ?"
“नहीं।" महाजन ने उखड़े स्वर में कहा -“लेकिन अब कुछ देर चुप रहो । "
“ठीक है नहीं बोलती- । "
महाजन ने नगीना को देखा।
“क्या नाम है तुम्हारा ? कहां रहती हो?”
"मेरा नाम नगीना है। मुम्बई में रहती हूं।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा - "वहां से वो बदमाश मेरे पीछे पड़ा हुआ है। जाने मेरे पापा के साथ उसकी क्या दुश्मनी थी। उसने मम्मी-पापा को खत्म कर दिया। मैं जान बचाकर भाग निकली। मुम्बई में मेरा कोई नहीं रहा। एक भाई दिल्ली में रहता है। उसके पास आ गई। लेकिन भाई ने किराये का मकान बदल लिया। उसका नया बता मेरे पास नहीं। फिर भी मैं ये सोचकर चैन से थी कि बदमाश से पीछा छूटा। लेकिन एक भीड़ भरे बाजार से निकलते वक्त मैंने उस बदमाश को देख लिया। वो मेरे ही पीछे आ रहा था। जाने उसे कैसे मालूम हो गया कि मैं दिल्ली आ गई हूं। जाने कैसे उसने मुझे ढूंढ लिया। तब मैं अपनी जान बचाने के लिये भागी। किसी तरह उससे बचकर यहां आ गई। वो बदमाश अभी भी मेरे बाहर निकलने का इन्तजार कर रहा है।"
“मतलब कि अभी भी वो बाहर है।" महाजन बोला।
“हां।”
“तुमने उसे देखा है।”
“हां - "
“मैंने भी देखा है नीलू -।" राधा कह उठी-“वो तो ।”
महाजन ने राधा को देखा तो राधा फौरन बोली ।
“ओह! मैं तो भूल ही गई थी कि अभी मुझे चुप रहना है।"
एक घूंट के बाद महाजन नै चाय का दूसरा घूंट नहीं भरा था। कुछ पलों की सोचो के बाद महाजन उठा और दूसरे कमरे में चला गया। तभी राधा कह उठी ।
"फिक्र मत कर। नीलू उस बदमाश को ठीक कर देगा। वो रिवाल्वर लेने कमरे में गया है।”
उधर महाजन ने कमरे में प्रवेश करते ही, जल्दी से छिपा रखी बोतल निकाल कर खोली और एक ही सांस में आधी गले से नीचे उतारी फिर बोतल बंद करके मुंह साफ करके वापस आ गया। वो जानता था कि राधा के सामने घूंट भरा, या राधा ने बोतल देख ली तो सारा मजा खराब हो जायेगा। वो बोलना शुरू कर देगी। उससे बोतल छीन लेगी और रात होने तक पीने का मौका नहीं देगी।
“आप उस बदमाश से मुझे बचा लीजिये- ।” नगीना जल्दी से कह उठी ।
महाजन के चेहरे पर सोच के भाव थे ।
“चाय पी लो नीलू। ठण्डी हो रही है।"
“अभी मन नहीं है।" महाजन ने सिर हिलाया नगीना को देखा- “जो बदमाश मुम्बई से तुम्हारे पीछे है। तुम्हारी जान लेना चाहता है। वो कम खतरनाक नहीं होगा।”
"आप ठीक कह रहे है। वो बहुत खतरनाक है ।" नगीना ने सिर हिलाया ।
“कितने साथी है उसके साथ ?”
"अकेला है वो-।"
'महाजन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
"अकेला?"
“जी हां। मैंने कहा ना, वो बहुत खतरनाक है। अभी तक मैंने तो उसे अकेला ही देखा है।"
"नीलू!" राधा कह उठी- "ये तो उसका नाम भी जानती है। क्या नाम था, मैं तो भूल ही गई - ।”
महाजन ने प्रश्न भरी निगाहों से नगीना को देखा।
“देवराज चौहान नाम है उसका।" नगीना बोली- “सुना है वो बहुत बड़ी डकैतियां डालता है।"
महाजन चिहुँक उठा। चेहरे पर से कई भाव आकर आगे बढ़ गये।
“देवराज चौहान-।"
-“हां। सुना है, वो बहुत खतरनाक है।" नगीना ने घबराहट भरे स्वर में कहा ।
"नीलू!” राधा बोल पड़ी- “तेरे को देखकर तो लगता है कि तू उसे जानता है।"
राधा की बात पर ध्यान न देकर, अपने अपन काबू पाता महाजन कह उठा ।
“देवराज चौहान ने तुम्हारे मां-बाप की हत्या की और अब तुम्हारी जान के पीछे है।"
नगीना ने सहमति भरे भाव में सिर हिलाया।
“नहीं। मैं नहीं मान सकता।" महाजन एकाएक दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा- “देवराज चौहान ऐसा इन्सान नहीं है।"
“ये तू क्या कह रहा है नीलू - ।” राधा के होंठों से निकला।
“मैं ठीक कह रहा हूं राधा, देवराज चौहान बदमाश नहीं है। वो डकैती करता है। यूं ही लोगों की जाने नहीं लेता। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं। अगर इसके पिता की उसने हत्या की होती तो मैं यह सोचकर यकीन कर लेता कि इसके पिता ने देवराज चौहान के साथ कोई भारी गड़बड़ की होगी। लेकिन देवराज चौहान किसी भी हालात में इसकी मां की जान नहीं लेगा। वो औरतों की हत्या नहीं करता। कोई बहुत बड़ी वजह हो तो जुदा बात है।"
"तुम्हारा मतलब कि ये झूठ बोल रही है।"
“मैं सच कह रही हूं - " नगीना तेज स्वर में कह उठी।
"देवराज चौहान मुम्बई से तुम्हारे पीछे है तुम्हें खत्म करने के लिये।" महाजन ने भिंचे स्वर में कहा-"जबकि शिकार सामने हो तो शिकार कर लेना देवराज चौहान के लिये सैकण्डों का खेल है।"
"मेरी बात मानो, मैं सच कह रही हूं।" नगीना यकीन दिलाने वाले स्वर में कह उठी - "उसने मेरे मां-बाप की हत्या मेरे सामने की और अब वो मेरी जान के पीछे-।"
"तुम्हारे पास ऐसी कोई चीज तो नहीं कि जिसकी देवराज चौहान को सख्त जरूरत हो।" महाजन बोला।
“नहीं, मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है।"
“तो फिर तुम मुझे झूठी कहानी सुना रही हो। क्यों कर रही हो ऐसा, ये बात जल्दी ही सामने आ जायेगी।”
राधा ने नगीना के चेहरे पर नजर मारी फिर महाजन से कह उठी।
“नीलू। ये सच कह रही है। वो आदमी बाहर खड़ा है। मैंने खुद उसे देखा है।”
“तुम देवराज चौहान को जानती हो।" महाजन ने कठोर स्वर में राधा से कहा ।
“नहीं ।”
"तो फिर तुम कैसे कह सकती हो कि वो देवराज चौहान ही है। दूसरा कोई नहीं।”
"देवराज चौहान को तो मैं भी नहीं जानटी।" नगीना कह उठी - “जब मेरे मां-बाप को मारा गया। तब किसी ने मुझे बताया था कि ये तो माना हुआ डकैती मास्टर देवराज चौहान है।”
“वो देवराज चौहान नहीं होगा।" महाजन उठते हुए बोला- “अभी वो बाहर है ? "
"हां।" नगीना ने घबराहट भरे स्वर में कहा-“दो घंटे पहले तो उसे देखा था ! "
“आ नीलू! मैं दिखाती हूं। मैंने दिन में उसे पेड़ के नीचे खड़ा देखा था।" कहने के साथ ही राधा उठी और आगे बढ़कर दरवाजा खोला कह उठी- “देख नीलू, वो अभी भी खड़ा है।"
महाजन तेजी से आगे बढ़ा और राधा के पास पहुंचकर बाहर झांका।
पेड़ के नीचे खड़ा देवराज चौहान नजर आया, महाजन को । खुद को अजीब-सी स्थिति में पाया महाजन ने। नगीना देवराज चौहान के बारे में जो कह रही थी वो महाजन के गले से नीचे नहीं उतर रहा था। क्योंकि देवराज चौहान की आदतों से वो अच्छी तरह वाकिफ था, परन्तु देवराज चौहान भी सामने था। झूठ, सच बनाकर उसके सामने मौजूद था।
"नीलू -। ये देवराज चौहान है ?”
"हां-।" महाजन के दांत भिंचे हुए थे।
“देख।” राधा ने कहा- “मैंने बोला था कि नगीना सच कहती है। वो झूठ नहीं बोल सकती ।”
महाजन ने गर्दन घुमाकर राधा को घूरा।
"मैंने गलत कह दिया क्या?”
“तुम नगीना को कब से जानती हो?” महाजन ने एक-एक शब्द जोर देकर कहा ।
“कल से - ।”
“ और मैं देवराज चौहान को बहुत पुराना जानता हूं।"
"लेकिन बात तो नगीना की ही सच निकली।” राधा हाथ हिलाकर बोली- “तुमने ही तो कहा है कि वो देवराज चौहान है। दोपहर से वहां खड़ा इधर ही देख रहा है, पेड़ के नीचे खड़ा होकर।"
होंठ भींचे महाजन ने पुनः देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान की नजरें इधर ही थीं।
“राधा ।”
“तुम यहीं खड़ी रहो । देखना देवराज चौहान भाग न जाये। मैं अभी आया ।” कहकर महाजन वापस पलट गया ।
नगीना गम्भीरता में डूबी कुर्सी पर बैठी थी। महाजन ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं। पुनः उसी कमरे में गया और बोतल निकालकर तीन-चार तगड़े घूंट भरे और वापस राधा के पास आया।
""नीलू, तू बार बार-बार कमरे में क्या करने जाता है ?” राधा कह उठी।
“कहीं घूंट मारने तो नहीं जाता? वहां बोतल छिपा रखी हो।”
“क्या बात करती हो राधा? तेरे को तो मालूम ही है कि मैं सिर्फ शाम के बाद ही पीता हूं।" महाजन ने लापरवाही से कहा- “यहीं खड़ी रहना। आगे मत आना। मैं देवराज चौहान के पास जा रहा हूं।”
“रिवाल्वर ले ली है?” राधा ने पूछा। "रिवाल्वर की जरूरत नहीं।”
“वो तेरे को मार देगा नीलू और - ।”
तब तक महाजन, देवराज चौहान की तरफ बढ़ गया था।
***
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