एक मक्तूल का दोस्त, दोस्त की बीवी, यहां तक कि खुद उसकी बीवी भी उसके मरने के बाद यह झूठा इल्जाम लगा रहे थे कि उसने दोस्त की बीवी के साथ रेप किया था। ऐसा वे कौनसे हालात में कर सकते हैं?”


“बात तो आपकी ठीक है, जो जानकारी आपने जुटाई है उसके बाद निश्चितरूप से हरेक के दिमाग में ये सवाल उभरेंगे मगर..


“मगर?”


“मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आप इस सबको मुझे क्यों बता रही हैं? इन बातों का आखिर मुझसे क्या ताल्लुक हुआ ?”


“इस वक्त तो इतना ही कह सकती हूं कि यदि यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है तो यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।" यह रहस्यमय वाक्य कहने के बाद विभा ने उसका पीछा छोड़ दिया था ।


अगला दिन और भी ज्यादा हंगामाखेज था ।


मेरी नींद होटल के अंडर- कनेक्टिड फोन की घंटी से खुली।


सुबह के नौ बजा रही रिस्टवॉच पर नजर डालने के साथ मैंने रिसीवर उठाया ही था कि दूसरी तरफ से विभा जिंदल की आवाज सुनाई दी----“अगर मैं कहूं कि जल्दी से जल्दी फ्रैश हो जाओ तो कितनी देर में हो सकते हो ?”


“क... क्या हुआ ?”


“ टाइम कम है वेद, सीधी बात का सीधा जवाब दो ।”


“पौने घंटे में ।”


“ आधा घंटा देती हूं । दोनों तैयार होकर लॉबी में पहुंच जाओ। एक सेकिंड भी लेट हो गए तो मैं वहां नहीं मिलूंगी।" शब्दों का यह राकेट दागने के बाद विभा ने रिसीवर रख दिया था ।


मैं सोचता ही रह गया कि ऐसी क्या आफत आ गई?


यह तो तय था कि कुछ हुआ है ।


इस जिज्ञासा ने दिमाग पर डंक मारने शुरु कर दिए कि हुआ क्या है? उसके सुईट का नंबर डायल करने की इच्छा हुई मगर फिर, यह सोचकर बड़ी मुश्किल से इस इच्छा का गोला घोटा कि विभा कुछ भी बताने वाली नहीं है, टाइम वेस्ट होगा सो अलग।


मैं समझ सकता था कि वह सचमुच आधे घंटे बाद नहीं मिलेगी।


सो, जम्प मारकर बिस्तर छोड़ा ।


झंझोड़कर शगुन को उठाया ।


आधे घंटे के अंदर तैयार होने का हुक्म दनदनाया तो वह भी भौंचक्का रह गया । अनेक सवाल किए मगर जवाब जब मेरे ही पास नहीं थे तो उसे क्या बताता ?


उसके बाद हम ऐसी गति से तैयार हुए थे जैसे पर्दे पर चल रही पिक्चर को फारवर्ड कर दिया गया हो ।


उस वक्त आधा घंटा गुजरने में बस पांच ही सेकिंड रह गए थे जब महाराजा की लॉबी में पहुंचे।


वे सेकिंड भी गुजर जाते तो विभा हाथ से निकल चुकी थी क्योंकि वह हमें मेनगेट की तरफ बढ़ती नजर आई थी ।


हम लगभग दौड़ते हुए करीब पहुंचे।


सीढ़ियां उतरती वह लिमोजीन की तरफ बढ़ती बोली ---- “गुड ।”


“गुड तो ठीक हुआ देवी जी ।” मैं तेजी से उसके साथ उतरता हुआ बोला ---- “लेकिन मामला क्या है ?”


“हत्याएं हो गई हैं?” वह अपनी सीट पर बैठ गई।


“हत्याएं ?” मेरे शरीर में सनसनी-सी दौड़ गई ।


“एक बार में सुन लिया करो ।”


मैं लपकर लिमोजीन में घुसता बोला----“कितनी?”


“दो।”


“एकसाथ?”


“फिलाहल यह नहीं कहा जा सकता । ”


“किसी सुबह शुभ समाचार भी सुना दिया करो महामाया।”


“हो सकता है यही शुभ समाचार हो ।”


“क्या बात कर रही हो?” मैं हड़बड़ाया ---- “हत्याएं हो गई हैं! वो भी एकसाथ दो | ये समाचार शुभ कैसे हो सकता है ?"


“ये बड़ी गूढ़ बात है प्यारे लाल, किसी बात के मर्म को समझे बगैर आदमी नहीं जान सकता कि उसके लिए कौनसा समाचार शुभ है, कौनसा अशुभ ? जिसे शुभ समझ रहा होता है जाने कब वही अशुभ लगने लगे और जिसे अशुभ समझ रहा होता है जाने कब वही..


“ये क्या बके चली जा रही हो तुम?"


“चलो ।” शगुन के गाड़ी में बैठते ही उसने ड्राइवर से कहा।


मैंने पूछा ---- “कौन-कौन गया?”


“पता नहीं।”


“त... तुम्हें ? तुम्हें नहीं पता?”


“ ऐसा भी होता है।" पता नहीं किस मूड में थी वह - - - - “हर बात, हर वक्त, हर किसी को पता नहीं होती ।”


“मैं नहीं मान सकता कि तुम्हें पता नहीं होगा ।”


“तुम्हारे न मानने से दुनिया में भूचाल नहीं आ जाएगा।” वह कहती चली गई - - - - “बस इतना ही बता सकती हूं कि जब मैंने तुम्हें फोन किया, उससे एक मिनट पहले गोपाल मराठा का फोन आया था। उसने बताया कि बस एक ही मिनट पहले भैरोसिंह भंसाली का फोन आया है कि उनके आऊट-हाऊस पर दो लाशें पड़ी हैं।”


“भैरोसिंह भंसाली के आऊट हाऊस पर?"


“कान का मैल निकलवाओ ।”


“ उसने यह नहीं बताया कि लाश किस-किसकी हैं?”


“आऊट हाऊस के चौकीदार को पता नहीं था इसलिए वह भैरो सिंह भंसाली को नहीं बता पाया । इसीलिए भैरोसिंह भंसाली मराठा को नहीं बता पाए, इसीलिए मराठा मुझे नहीं बता पाया और इसीलिए मैं तुम्हें नहीं बता पा रही हूं।”


एकाएक शगुन बोला---- “एक बात कहूं आंटी ?”


“चूको मत ।”


“आप उतनी जादुई चीज भी नहीं हैं जितनी पापा बताया करते हैं।" शगुन ने साफ लफ्जों में कहा ।


“तभी तो कहती हूं, समझाओ अपने इस पप्पू-पप्पा को ज्यादा लफ्फाजियां मारना सेहत के लिए ठीक नहीं होता।” 


“हत्या पर हत्याएं हो रही हैं और आप कुछ नहीं कर पा रहीं ।”


“ उन्हें होने से रोक दूं?"


“ ऐसा तो कोई भी नहीं कर सकता ।”


“फिर?”


“हत्यारा अभी आपके जेहन से बहुत दूर है।”


“ ऐसा किसने कहा तुमसे?”


“क्या मैंने कुछ गलत कहा?"


“किसी अच्छे डाक्टर से अपनी आंखें टेस्ट कराओ और चश्मा चढ़ा लो उन पर । तुम्हें ठीक से दिखाई नहीं देता ।"


“क... क्या मतलब?” शगुन बौखला गया |


----“नोट किया ?” विभा ने ड्राइवर से पूछा-


“जी बहूरानी ।” सम्मानित लहजे में उसने बस इतना ही कहा ।


"गुड "


“क्या करना है ?”


“भूल जाओ कुछ हो रहा है ।” कहने के साथ उसने कोट की जेब से सुनहरे फ्रेम का काले ग्लासों वाला चश्मा निकालकर आंखों पर चढ़ा लिया ---- “सीधे उस एड्रेस पर चलो जो बता चुकी हूं। थोड़ा तेज ।”


“जी । ” उसने एक्सीलेटर पर दबाव डाला।


“अरे!” मैं कुछ भी न समझ पाने की अवस्था में बोला----“ये तुम्हारे बीच क्या बातें हुईं?”


“अच्छे बच्चे दूसरों की बातों पर इतना ध्यान नहीं देते।” कहने के बाद उसने डेशबोर्ड खोला, उसमें से एक रिवाल्वर निकालकर मुझे देती हुई बोली- - - -“इसे रखो।”


“र... रिवाल्वर ?” मेरे सारे जिस्म में चींटियां- सी रेंगीं ।


“ मैं जानती हूं तुम्हें चलाना आता है।”


“अरे मगर..


“जरूरत पड़ेगी, रख लो।”


बुरी तरह हैरान था मैं । कुछ समझ नहीं पा रहा था । रिवाल्वर उसके हाथ से लेता हुआ बोला ---- “बताओ तो सही, हुआ क्या है ?"


वह डेशबोर्ड से दूसरा रिवाल्वर निकालकर शगुन की तरफ बढ़ाती बोली- “तुम भी रखो, आज मुझे तुम्हारा निशाना देखना है।”


“पर चक्कर क्या है आंटी ?” शगुन भी मुझसे कम हैरान नहीं था ---- “आपको पहले ही से कैसे पता है कि इनकी जरूरत पड़ेगी?”


“तुम्हारे उपन्यास के किरदारों में और मुझमें यही फर्क है। वे उठा पटक में माहिर होते हैं। मगर दिमाग से पैदल । खतरे को पहले नहीं भांप पाते। पहले भांप लें तो उतनी उठा-पटक की जरूरत ही न पड़े।"


“कुछ तो बताइए! क्या होने वाला है?”


“मैंने निशाना देखने की बात कही, इसका मतलब समझे ? ”


“ इसका मतलब तो साफ है | दुश्मन को ..


“तमंचा हाथ में आ जाने का मतलब यह नहीं है कि तुम्हें विकास बन जाना है।" वह उसकी बात काटकर कहती चली गई ---- “इसे तुम्हारे हाथ में किसी की जान लेने के लिए नहीं दिया है बल्कि अपनी जान बचाने के लिए दिया है। जब तक अपनी जान पर ही न बन आए, उससे पहले तक गोली दुश्मन की टांगों पर चलानी है या किसी ऐसे अंग पर जिससे वह मरे नहीं ।”


“वे नजदीक आ गए हैं बहूरानी ।" ड्राइवर ने कहा ।


“आएंगे क्यों नहीं! मौका अच्छा जो मालूम पड़ रहा है उन्हें ।” विभा ने कहा ---- “हम सुनसान सड़क पर जो पहुंच चुके हैं !”


“रफ्तार ?” उसने पूछा । “जितनी है, उतनी रखो । आने दो उन्हें ।” कहने के साथ उसने कोट की अंदरूनी जेब से तीसरा रिवाल्वर निकाल लिया था ।


अब मेरी और शगुन की समझ में काफी कुछ आ गया था।


दोनों ने एकसाथ पलटकर पीछे देखा ।


वह एक काले रंग की सूमो थी जो तूफानी रफ्तार के साथ हमारी लिमोजीन की तरफ झपटती-सी चली आ रहीं थी ।


ड्राइवर सहित पांच युवक थे उसमें ।


पांचों ही शक्ल-सूरत से गुंडे - से नजर आ रहे थे ।


“ वे दो कामों में से एक करने की कोशिश करेंगे।” विभा दिमाग दौड़ाती बोली - - - - “पहला, सूमो से लिमोजीन में टक्कर मारकर खाई में गिराने की कोशिश । दूसरा, ओवरटेक करके रोकने की और फिर हम पर गोलियां चलाने की कोशिश | अगर दूसरी कोशिश करें तो हमें कुछ नहीं करना है। आराम से बैठे रहना है क्योंकि उनकी गोलियां हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगी। हां, अगर वे पहली कोशिश करें यानी लिमोजीन को हिट करें तो सूमो के टायरों पर गोली चलानी है ।”


“वे हमें ओवरटेक कर रहे हैं बहूरानी । ”


“करने दो । गधे हैं। रफ्तार कम कर लो । गाड़ी रोकनी पड़ेगी ।”


लिमोजीन की रफ्तार कम होते ही सूमो आगे निकल गई।


मैं और शगुन उत्तेजना - सी महसूस कर रहे थे जबकि विभा पूरी तरह सामान्य नजर आ रही थी। उसने ड्राइवर से कहा ---- " पैर ब्रेक पर रखो । वे सूमो को सड़क पर तिरछी करने वाले हैं ।”


ठीक वही हुआ ।


जैसे वे चल ही विभा के दिमाग से रहे थे।


टायरों की तीव्र चरमराहट के साथ सूमो सड़क पर तिरछी हुई और लिमोजीन का रास्ता रोककर खड़ी हो गई ।


ड्राइवर क्योंकि उस सबके लिए पहले ही से तैयार था इसलिए लिमोजीन को रोकने हेतु उतनी जोर से ब्रेक नहीं मारने पड़े जितनी जोर से ऐसे मौके पर मारने पड़ते हैं।


लिमोजीन सूमो से दो फुट पहले ही रुक गई ।


आनन-फानन में सूमो के दरवाजे खुले ।


हाथों में रिवाल्वर लिए चार दरवाजों से चार युवक कूदे और बगैर कोई चेतावनी दिए लिमोजीन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। मगर मजाल है जो किसी भी गोली ने कोई करिश्मा दिखाया हो! उनमें से कई गोलियां लिमोजीन की विंड-स्क्रीन से भी टकराई थीं लेकिन सब की सब शहीद होकर रह गईं । ऐसा लग रहा था जैसे वे रबर की गोलियां बरसा रहे हों । “देख रहे हो गधों को! ये जानने के बावजूद गोलियां बरबाद कर रहे हैं कि कुछ होने वाला नहीं है।” विभा ने अपने होठों पर हल्की-सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा था ---- “तुम अगर सिगरेट पीना चाहते हो तो सुलगा सकते हो वेद । ऐसे मौके पर मजा कुछ ज्यादा ही आएगा।"


मैं समझ गया कि लिमोजीन बुलेटप्रूफ है । “पर इसका क्या करें ? " शगुन ने रिवाल्वर को हिलाया । “कहा था न, दूसरी कंडीशन में जरूरत नहीं पड़ेगी।” उधर, गुंडे हैरान-परेशान । उन्होंने कई गोलियां लिमोजीन के टायर्स पर भी चलाई थीं। सब बेकार । “चलो।” विभा ने ड्राइवर से कहा ---- “काफी तमाशा हो लिया । ” ड्राइवर ने लिमोजीन बैक की । उसका इरादा जगह बनाने के बाद गाड़ी को आगे निकालने का था लेकिन इस बीच शायद गुंडे भी समझ चुके थे कि उनकी गोलियों की हालत मटर के दानों जैसी क्यों हो गई है। एक ने चीखकर ड्राइवर से कुछ कहा । सूमो स्टार्ट होकर आगे की तरफ गई और फिर ‘यू’ टर्न लेकर वापस लिमोजीन की तरफ आई । विभा ने कहा ---- “अब वे हमें खाई में धकेलने के मूड में आए हैं।” “तो कांच गिराकर गोली चलाएं ?” शगुन ने पूछा । “रिवाल्वर क्या चाटने को दिया था ?” मैंने और शगुन ने फुर्ती के साथ अपनी-अपनी साइड के कांच थोड़े-थोड़े सरकाए ही थे कि ... कि उनसे नाल निकालकर गोली चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी ।


उससे पहले ही पीछे की तरफ से सफेद रंग की एक बुलेरो मौत की दूत-सी बनकर दौड़ती हुई आई और उससे एकसाथ इतनी गोलियां चलीं कि सूमो के चारों टायर शहीद हो गए।


रफ्तार में होने के कारण सूमो सड़क पर घिसटी, मुंह के बल गिरी और जोरदार आवाज के साथ कलाबाजियां खाती चली गई । गुंडे, जो उससे बाहर थे ---- पहले तो सफेद रंग की बुलेरो से अपनी सूमो पर होती गोलीबारी को देखकर बौखलाए । समझ ही नहीं पाए कि ये सब क्या होने लगा है? तब तक बुलेरो रुक चुकी थी। गुंडों ने उस पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। उनकी गोलियां बुलेरो की बॉडी से टकराकर रह गईं जबकि बुलेरो के अंदर से चली गोलियों ने उनके मुंह से चीखें निकालनी शुरु कर दीं। किसी की जांघ में गोली लगी थी, किसी के कंधे में। पलक झपकते ही चारों सड़क पर पड़े फड़फड़ाते नजर आए। लहूलुहान हो चुके थे वे । मैं और शगुन उस चमत्कारी दृश्य को देखते के देखते रह गए थे। समझ नहीं पा रहे थे कि सफेद बुलेरो वाले हमारे वे खुदाई मददगार अचानक कहां से टपक पड़े थे जबकि उन्हें देखकर जाने क्यों विभा के जबड़े भिंचते चले गए। साफ-साफ गुस्से में नजर आ रही थी वह ।


उसी गुस्से में ड्राइवर से बोली- --- “चलो ।” ड्राइवर ने तुरंत उसके आदेश का पालन किया । उस वक्त बुलेरो से तीन हटूटे-कट्टे लड़के हाथों में रिवाल्वर्स लिए बाहर निकले थे जिस वक्त लिमोजीन उनकी बगल से निकलकर आगे बढ़ गई। उन्होंने हमें रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की। मैंने पलटकर पीछे देखा। सड़क पर खड़े वे लीमोजीन की तरफ ही देख रहे थे और मैं देख रहा था उनके चेहरों पर गर्दिश करते आश्चर्य को । मुझे खुद विभा के एटीट्यूट पर आश्चर्य हो रहा था । अंततः अपनी गर्दन सीधी करके उससे कह ही दिया ---- “कम से कम शुक्रिया तो अता कर देतीं उनका | पूछ तो लेतीं कि वे कौन हैं और संकट की इस घड़ी में हमारी मदद क्यों की?” भन्नाई हुई अवस्था में उसने कहा ---- “मैं जानती हूं।” हमारे दिमाग जैसे फ्लोर पर थिरके।


आऊट-हाऊस तो बस नाम ही था उसका ।


अगर सही शब्द इस्तेमाल किए जाएं तो वह फार्म हाऊस था । -


करीब पांच हजार गज के भूखण्ड को करीब बारह फुट ऊंची चारदीवारी ने अपने आगोश में ले रखा था और चारदीवारी के शीर्ष पर लगे थे ---- तीन-तीन फुट ऊपर तक कंटीले तार ।


मेरे दिमाग में सवाल उठा ---- इतनी सुरक्षा किसलिए?


लोहे वाले गेट से शुरु होकर डाबर की बनी जो सड़क भूखण्ड के बीचों-बीच बनी इमारत तक गई थी, उसके एक तरफ घना जंगल सा नजर आ रहा था। दूसरी तरफ लंबा-चौड़ा सरसों का खेत ।


दूर तक फैले सरसों के पीले फूल बहुत अच्छे लग रहे थे ।


इमारत के चारों तरफ मखमली घास का मैदान था ।


और थे----फॉल्स और फव्वारे ।


दोमंजिली इमारत ऐसे लाल पत्थरों से बनी हुई थी जैसे उन्हें लाल किले से चुरा - चुराकर लाया गया हो।


इमारत के बाहर लंबा-चौड़ा पोर्च था ।


इतना लंबा-चौड़ा कि इस वक्त वहां पहले ही से तीन गाड़ियां खड़ी थीं, फिर भी लिमोजीन पोर्च में समा सकती थी ।


ड्राइवर ने गाड़ी रोकी ही थी कि इमारत के अंदर से लपकता - सा गोपाल मराठा हमारी तरफ आया ।


विभा का मूड मुझे उसी वक्त से खराब नजर आ रहा था जब से उसने सफेद बुलेरो वालों को देखा था। मैंने उसके खराब मूड की वजह जानने की काफी कोशिश की किंतु कामयाब न हो सका।


मराठा ने बड़े सम्मान के साथ विभा की तरफ का दरवाजा खोला था। जबकि उसे देखकर उसका मूड कुछ और खराब हो गया था ।


बाहर निकलती हुई वह उसे घूरती हुई गुर्राई ----“अभी बच्चे हो मराठा | ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश करोगे तो अपनी सरकारी नौकरी में बहुत लंबी पारी नहीं खेल पाओगे ।”


“क्या हुआ विभा जी ?” वह उसका मूड देखकर बौखला गया ।


“ मैंने कहा था न ! मुझे खुद पर नजर रखने वाले पसंद नहीं हैं !”


“ब... बात ये है विभा जी कि..


“मैंने यह भी कहा था कि मैं अपनी हिफाजत खुद कर सकती ।” वह इतने गुस्से में थी कि गोपाल मराठा को बोलने ही जो नहीं दे रही थी ---- “अपराधियों से यूं ही पंगे लेती नहीं फिरती मैं।"


“ पर उन्होंने बताया कि गुंडों ने आप पर हमला किया था।"


“यह नहीं बताया कि वे हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सके थे और न ही बिगाड़ सकते थे ! ” लहजा अब भी रोष भरा था ---- -- “तुम्हारे आदमी अफलातून बनकर न भी पहुंचते तब भी उनका वही हश्र होना था । "


“ बताया कि आपकी गाड़ी बुलेटप्रूफ है, पर आप..


“बोलो।”


“आपको कैसे पता कि सफेद बुलेरो में मेरे आदमी थे ?”


“ पुलिसवाले अगर वर्दी में न हों तो उनके बालों की कटिंग ही बता देती है कि वे पुलिसवाले हैं। "


“अ... आपसे कोई पार नहीं पा सकता।”


“ अगर सचमुच इस बात को समझ गए हो तो याद रखना, एक बार फिर कह रही हूं-- -- मुझे ऐसा आदमी बिल्कुल पसंद नहीं है जो मुझ पर नजर रखने की कोशिश करे । उस अवस्था में तो हरगिज नहीं जब वह कोशिश मेरी हिफाजत करने की आड़ में की जाए ।”