जीप कम्पाउण्ड में आकर खड़ी हुई। बाहर से बख्तावर सिंह के जोर-जोर से बोलने की आवाज आई।


“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, अमीरी" - बख्तावर सिंह बोला- "तुम्हें पता तो था कि रिवॉल्वर की बरामदी के चक्कर में पुलिस महाजन के घर में पहुंचने वाली थी । तुम्हें पहले ही सोचना चाहिये था कि पुलिस अभी भी वहां मौजूद होगी। तुम इन दोनों को कत्ल करने के लिए वहां कैसे ले जा सकते थे ? सारा दिन गुजार दिया तुमने । इस काम के लिये कोई दूसरी जगह नहीं सोच पाये तुम ।”


“सोचना मेरा काम नहीं।" - अमीरी लाल भन्नाये स्वर में बोला ।


"शट अप !" - बख्तावर सिंह चिल्लाया ।


फिर दरवाजा खुला और दोनों आगे-पीछे भीतर दाखिल हुए। वे कमरे के मध्य में पहुंच गए तो पीछे दीवार के साथ चिपका खड़ा विकास रिवॉल्वर उनकी ओर तानता हुआ बोला - "हैंड्स अप ।"


दोनों चौंक कर घूमे । अमीरी लाल का हाथ बिजली की रफ्तार से अपनी जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर पड़ा । लेकिन अभी रिवॉल्वर उसने जेब से निकाली ही थी कि विकास ने फायर कर दिया । गोली अमीरी लाल की बांह में लगी । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई और वह चीख मार कर जहां खड़ा था, वहीं बैठ गया । अपने दूसरे हाथ से उसने अपनी घायल बांह थाम ली ।


बख्तावर सिंह ने अपने हाथ फौरन सिर से ऊंचे कर दिये ।


विकास ने रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ किया ।


"गोली मत चलाना ।" - वह फंसी आवाज में बोला ।


विकास उसे रिवॉल्वर से कवर किए रिहा । उसने आगे बढकर अमीरी लाल के हाथ से निकली रिवॉल्वर फर्श पर से उठा कर अपनी जेब में डाल ली ।


फिर उसने बख्तार सिंह की तलाशी ली ।


उसके पास किसी प्रकार का कोई हथियार नहीं था ।


“महाजन वाली रिवॉल्वर कहां है ?" - विकास कहरभरे स्वर में बोला ।


"मेरी जेब में ।" - अमीरी लाल फौरन बड़े आतंकित भाव से बोला ।


विकास ने यह रिवॉल्वर भी उसके जेब से निकालकर अपने अधिकार में ले ली ।


“खबरदार !” - तभी दरवाजे पर से एक नई आवाज आई- "कोई अपनी जगह से न हिले । "


में घूमा । विकास स्तब्ध रह गया । वह धीरे से आवाज की दिशा


खड़ा था । दरवाजे पर इन्स्पेक्टर तिवारी हाथ में रिवॉल्वर लिये


"हथियार गिराओ।" - वह घुड़क कर बोला ।


विकास ने दोनों रिवॉल्वरें अपने हाथ से निकल जाने दीं


इन्स्पेक्टर ने आगे बढकर विकास की जेबें थपथपाई और फिर अमीरी लाल वाली रिवॉल्वर भी विकास के अधिकार से निकल गई ।


"भीतर कौन है ?" - इन्स्पेक्टर उच्च स्वर में बोला ।


भीतर से तीन अति सुन्दर स्त्रियों को बाहर निकलता देख कर इन्स्पेक्टर हक्का-बक्का रह गया ।


"इन्स्पेक्टर साहब" - तभी भीतर से आवाज आई. “दो आदमी यहां बन्धे भी पड़े हैं। दोनों बेहोश हैं । "


“बाकी इमारत को भी देखो ।" - इन्स्पेक्टर ने आदेश दिया ।


भीतर से धम्म-धम्म करते भारी कदमों की आवाजें आने लगीं । शायद उधर कई पुलसिये मौजूद थे।


इमारत में जब कोई और न मिला तो सारे पुलसिये बैठक में जमा हो गए ।


“इसे बाहर ले जाओ।" - इन्स्पेक्टर अमीरी लाल की तरफ संकेत करता हुआ एक हवलदार से बोला- " और इसकी टैम्परेरी मलहम पट्टी का इन्तजाम करो।"


हवलदार और एक और पुलसिये ने अमीरी लाल को उठाया और उसे बाहर ले चले ।


फिर मनोहर ने भीतर कदम रखा । वह अपनी कर्नल की यूनीफार्म में था ।


“ऐवरीथिंग इन कन्ट्रोल इन्स्पेक्टर ?" - वह बड़े दबंग स्वर में बोला ।


“यस कर्नल ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।


"माई डियर गर्ल" - मनोहर वैसे ही दबंग स्वर में शबनम से सम्बोधित हुआ- "तुम्हारी चिट्ठी हाथ लगते ही मैं पुलिस के पास पहुंच गया था। मैंने कोई गलती तो नहीं की ?"


"आपने बहुत अच्छा किया, कनर्ल साहब ।" - शबनम बोली ।


"हम भी पुलिस को बुलाने ही वाले थे।" - विकास बोला ।


"तुम किस लिये ?" -इन्स्पेक्टर अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।


“महाजन के हत्यारे को गिरफ्तार करवाले के लिये ।"


"उसे तो मैंने गिरफ्तार कर लिया है ।"


“आपका इशारा मेरी तरफ है ?"


"हां । तुम महाजन के हत्यारे हो ।”


"गलत । मैं महाजन का हत्यारा नहीं हूं और अगर आप मुझे मौका दें तो मैं न केवल अभी साबित कर सकता हूं कि


मैं हत्यारा नहीं हूं बल्कि यह भी बता सकता हूं कि वास्तव में हत्यारा कौन है ।”


"कैसे करोगे ?"


"मेरे पास से आपने जो पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर बरामद की है, इन्स्पेक्टर साहब, यही मर्डर वैपन है । कर्नल साहब, इसमें से निकली एक टैस्ट बुलेट पहले ही पुलिस से चैक करा चुके हैं और यह साबित हो चुका है कि महाजन का कत्ल इसी से हुआ है । "


" और वह रिवाल्वर मैंने तुम्हारे पास से बरामद की है। फिर भी तुम अपने आपको बेगुनाह कहते हो ।"


"हां । यह महाजन की रिवाल्वर है । यह उसके नाम रजिस्टर्ड है। मेरी तो इस तक पहुंच ही नहीं हो सकती थी। महाजन के कत्ल से कुछ रोज पहले यह उसके घर से गायब हो गई थी लेकिन कल फिर यथास्थान वापिस लौट आई थी । रिवाल्वर वापिस इसलिए लौटाई गई थी क्योंकि हत्यारा कत्ल का इलजाम महाजन की बीवी सुनयना पर थोपना चाहता था । लेकिन यह बात हत्यारे को बाद में सूझी थी कि सुनयना को फंसाया जा सकता था । आरम्भ में तो रिवाल्वर इसलिए चोरी की गई थी क्योंकि हत्यारे को ऐसा कोई हथियार और कहीं से उपलब्ध नहीं था । हत्यारे की मूल योजना सन्देह का रुख बख्तावर सिंह की तरफ मोड़ने की थी। इसीलिए हत्यारे ने कत्ल से एक दिन पहले महाजन के लैटर बक्स में वह कत्ल की धमकी वाली चिट्ठी डाली थी। बाद में ऐसा इत्तफाक हुआ कि कत्ल का इलजाम मुझ पर आ गया लेकिन हत्यारे को क्योंकि मैं जरा पसन्द आ गया था इसलिए योजना में ऐस परिवर्तन किया गया कि कत्ल के इलजाम में सुनयना फंस जाये ।"


"बड़ी पेचीदा बातें कर रहे हो" - इन्स्पेक्टर बोला - "जो कुछ कह रहे हो, उसे साबित कर सकते हो ?"


"हां, कर सकता हूं।" - विकास बोला- "लेकिन जरा एक मिनट ठहरिये ।" - वह शबनम की तरफ घूमा और सख्त शिकायत भरे स्वर में बोला- "तुमने मुझे यह क्यों नहीं बताया था कि पिछले बुधवार शाम को तुम महाजन से मिलने उसकी कोठी पर गई थीं । "


"लेकिन मैं तो नहीं गई थी।" - शबनम तीखे स्वर में बोली। 


"सुनयना कहती है तुम गई थीं ।”


“यह गलत कहती है। मैंने और कर्नल ने उस शाम महाजन से मिलने की अप्वायन्टमेंट तो फिक्स की थी लेकिन हम गए नहीं थे। हम क्यों नहीं गए थे, मेरा मतलब है महाजन से हमने क्यों हाथ खींच लिया था, यह मैं तुम्हें बता ही चुकी हूं।"


विकास ने सुनयना की तरफ देखा ।


"मैंने तो अपने पति को" - सुनयना बोली- "फोन पर इनके साथ शाम की अप्वायन्टमेंट फिक्स करते सुना था, मैंने समझा ये आये होंगे।"


" शाम को तुम कोठी पर नहीं थीं ? "


"नहीं।"


विकास ने शान्ति की बड़ी गहरी सांस ली । यह सोच कर उसके दिल से एक भारी बोझ हट गया कि मनोहर या शबनम में कोई महाजन का हत्यारा नहीं था ।


"आगे बढो अब ।" - इन्स्पेक्टर उतावले स्वर में बोला - "क्या कह रहे थे तुम ?"


"मैं यह कह रहा था कि महाजन की रिवाल्वर किसी ने उसका कत्ल करने की ही नीयत से चुनाई थी ।" - विकास बोला ।


"किसने ?"


उत्तर की अपेक्षा में कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया ।


“सुनयना ने।" - योगिता ने चुप्पी तोड़ी ।


सब की निगाहें सुनयना की तरफ उठ गई ।


"यह झूठ है।" - सुनयना उच्च स्वर में बोला- "मुझे तो आज से पहले यही मालूम नहीं था कि मेरे पति की हत्या उन्हीं के रिवाल्वर से हुई थी ।"


"बकवास ।" - योगिता मुंह बिगाड़कर बोली- "क्यों भोली बनकर दिखा रही हो? तुम्हें सब मालूम था । तुम्हें मालूम था कि पापा की रिवाल्वर गायब थी । तुम्हें यह भी मालूम था कि वह पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर थी और तुम्हें यह भी मालूम था कि कत्ल पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर से किया गया था और अब तुम यूं एक्टिंग कर रही हो जैसे दो जमा दो बराबर चार जवाब नहीं निकाल सकतीं ।"


“सुनयना को" - इन्स्पेक्टर उत्सुकता भरे स्वर में बोला "कैसे मालूम था कि हत्या पैंतालीस कैलीबर के रिवाल्वर से हुई थी ?"


"अखबार में छपा था ।" - योगिता बोली ।


“गलत ।" - इन्स्पेक्टर इन्कार में सिर हिलाता हुआ बोला - "मर्डर वैपन के बारे में कोई जानकारी हमने प्रैस को रिलीज नहीं की थी । अखबार में सिर्फ इतना छपा था कि महाजन की हत्या उसे गोली मार कर की गई थी ।"


एकाएक विकास के सारे जिस्म में एक ठण्डक की लहर दौड़ गई । वह मुंह बाये, आंखें फाड़े योगिता की तरफ देखने लगा ।


"ऐसे क्यों देख रहे हो मुझे ?" - योगिता सकपकाकर बोली ।


“योगिता !” - विकास धीरे से बोला- "तुम्हीं ने मुझे यह सुझाया था कि महाजन का कत्ल उसकी रिवाल्वर से हुआ हो सकता था । मुझे तो यह बात कर्नल साहब ने बताई थी कि कत्ल पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर से हुआ था और कर्नल को यह बात सीधे पुलिस से मालूम हुई थी । लेकिन यह बात तुम्हें कैसे मालूम हुई ?"


"तुम्हें गलती लग रही है।" - योगिता का चेहरा लाल हो गया - "मैंने यह कभी नहीं कहा था कि रिवाल्वर कैसी थी


"तुमने सरासर कहा था ।" - विकास दृढ स्वर में बोला "मुझसे तुमने बड़े विश्वास के साथ कहा था कि कत्ल


पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर से हुआ था । योगिता, जिस रिवाल्वर से कत्ल हुआ था, उसका कैलबीर ब्रांड वगैरह कैसे मालूम था तुम्हें ?"


"मुझे नहीं मालूम था ।" - वह चिल्लाई - "मैंने तुमसे ऐसा कुछ नहीं कहा था ।”


"तुमने जरूर ऐसा कहा था ।" - विकास भी चिल्लाया “योगिता, तुमने अपने पापा की रिवाल्वर चुराई थी, इसलिए चुराई थी क्योंकि तुम्हारे जैसी स्थिति वाली लड़की और कहीं से रिवाल्वर हासिल कर ही नहीं सकती थी । अपने पापा की रिवाल्वर चुराना तुम्हारे लिए कोई दिक्कत की बात नहीं थी । तुम अपने पापा की कोठी में नहीं रहती थीं लेकिन वहां की चाबियां तब भी तुम्हारे पास थीं । तुमने जब मुझे कोठी के सामने के दरवाजे की चाबी दी थी तो मैंने तुम्हारे गुच्छे में दो चाबियां देखी थीं । दूसरी चाबी जरूर पिछवाड़े के दरवाजे की थी । तुम मुझे अपने पापा की रिवाल्वर के बारे में बताकर खुद मेरे से पहले अपने पापा की कोठी पर पहुंच गई थीं । जब मैं सामने के दरवाजे से भीतर घुसा था तो मुझे पिछवाड़े में से किसी की आहट मिली थी । योगिता, उस वक्त पिछवाड़े से तुम निकल रही थीं। उस वक्त कोठी के स्तब्ध वातावरण में चैनल फाइव, की गन्ध बसी हुई थी । वह सैंट तुम लगाती हो । वह सैंट तुम इस वक्त भी लगाए हुए हो। और शनिवार को अपने पापा के कत्ल के वक्त भी तुम अपने होटल में नहीं थीं । कत्ल के बाद जब मैं वापिस होटल लौटा था तो तुम मुझे बाहर सड़क पर होटल की तरफ आती मिली थीं । तुमने कहा था कि तुम बाहर कहीं लंच करने गई थीं। लेकिन कहा था कि तुम बाहर कहीं लंच करने गई थीं। लेकिन तुम लंच करने नहीं गई थीं । तुम अपने पापा का खून करने गई थीं । तुम उस वक्त लंच से वापिस नहीं आ रही थीं, उस वक्त तुम अपने


पापा का खून करके रिचमंड रोड से वापिस आ रही थीं ।"


योगिता ने एकाएक अपने कानों पर हाथ रख लिए और चिल्लाकर बोली- "विकास, ऐसा क्यों कह रहे हो ? क्या तुम्हारे लिए मेरी कोई अहमियत नहीं ?"


"अगर तुम हत्यारी हो तो नहीं ।" - वह भावहीन स्वर में बोला ।


"मैंने जो कुछ किया तुम्हारी भलाई के लिए किया ।" - वह कातर स्वर में बोली- "मैं रिवाल्वर को नदी में फेंक आती तो किसी को उसके बारे में कभी कुछ भी पता न लगता । लेकिन तुम्हारी रक्षा के लिए मैं रिवाल्वर वापिस कोठी में रखकर आई, इस वक्त भी तुम्हारी जान बचाने के लिए मैंने अपनी जान को खतरे में डाला और तुमने बदले में यह गिला दिया मुझे ?"


विकास ने उसकी तरफ से निगाह फिरा ली । वह इन्स्पेक्टर से सम्बोधित हुआ- "क्या अब भी किसी और सबूत की जरूरत है, इन्स्पेक्टर साहब ? क्या अब भी मुझ पर कोई चार्ज है ?"


योगिता एक कुर्सी पर ढेर हो गई थी और अपने हाथों में अपना मुंह छुपा कर सुबकियां लेने लगी थी ।


इन्स्पेक्टर ने पहले योगिता की तरफ देखा । फिर उसने बड़े विचलित भाव से बख्तावर सिंह की तरफ देखा और फिर धीरे से बोला- "नहीं, अब तुम पर कोई चार्ज नहीं । लेकिन मुझे यह भी मालूम होना चाहिए कि मेरे यहां पहुंचने से पहले यहां क्या हो रहा था।"


"यहां कुछ नहीं हो रहा था ।" - विकास जल्दी से बोला, उसने एक अर्थपूर्ण निगाह बख्तावर सिंह पर डाली - "क्यों बख्तावर सिंह ?"


"हां।" - बख्तावर सिंह जल्दी से बोला - "यहां तो कुछ भी नहीं हो रहा था । "


"तो फिर उस आदमी की बांह में गोली कैसे लगी - ?" इन्स्पेक्टर बोला ।


“उसकी अपनी लापरवाही से ।" - बख्तावरसिंह बोला “पता नहीं कैसे कम्बख्त अपने आप पर ही रिवाल्वर दाग बैठा ।"


"ऐसा कैसे हो सकता है ?"


“ऐसा ही हुआ है । तुम उसी से पूछ पूछ लो।"


"ठीक है फिर ।" - इन्स्पेक्टर ने भी चैन की सांस ली।


***


अगले दिन दोपहर तक विकास को मेहतानी के गैरेज से खरीदी अपनी फियेट, जो कि पुलिस ने जब्त की हुई थी, वापिस मिल गई । उसने होटल रिवर व्यू का बकाया बिल चुकाया, शबनम के कमरे से अपना सूटकेस हासिल किया और वापिस होटल में एक नया कमरा हासिल कर लिया । इस बार उसका कमरा शबनम के कमरे की बगल में था । नैशनल बैंक में उसने अपना एकाउन्ट बन्द कर दिया और पचास हजार रुपये का ड्राफ्ट हासिल कर लिया ।


उन तमाम कामों के दौरान शबनम हर क्षण उसके साथ रही । विकास को अब यह सोचकर भी शर्म आ रही थी कि सारे सिलसिले में एक ऐसी स्टेज भी आई थी जब उसने शबनम पर भी कत्ल का शक किया था ।


अब सिर पर से योगिता का जनून उतर जाने के बाद वह महसूस कर रहा था कि योगिता की संगत के दौरान उसे जो गुनाह का अहसास सताने लगता था वह बेमानी नहीं था । तभी उसे यह महसूस हुआ कि उसके दिल के किसी कोने में भी शबनम की मोहब्बत का जज्बा तड़प रहा था ।


उसने वह बात शबनम को बताई ।


उसका ख्याल था कि वह बात सुनते ही शबनम उससे लिपट जायेगी लेकिन वैसा न हुआ ।


"तुम योगिता का गम गलत करने के लिए मेरी ओर झुक रहे हो ।" - वह गम्भीरता से बोली ।


"योगिता का गम मुझे है ही नहीं।" - विकास बोला ।  


" है। तुमने कभी किसी से मोहब्बत नहीं की इसलिए तुम इन बातों को नहीं समझते हो । योगिता की मोहब्बत मे तुम्हें ताजी ताजी मायूसी हासिल हुई । मोहब्बत में चोट खाया हुआ आशिक आम तौर पर जो सबसे पहला सहारा उपलब्ध होता है, उसकी तरफ झुक जाता है । मुझे तुम्हारी ऐसी मोहब्बत नहीं चाहिए।"


"यह वह औरत कह रही है जो कल तक मेरी मोहब्बत की दम भरती थी ?"


"यह वह औरत कह रही है जो अभी भी तुम्हारी मोहब्बत का दम भरती है । लेकिन मैं यह नहीं चाहती कि आने वाले दिनों में तुम्हें यह अहसास हो कि मैंने तुम्हारे टूटे दिल को सहलाकर, तुम पर अहसान करके, तुम्हारी वक्ती कमजोरी का फायदा उठाकर, तुम्हें अपना बना लिया । अपनी मोहब्बत का जो इजहार तुम अब कर रहे हो, वह तब करना जब तुम्हारा दिल योगिता की मोहब्बत में नाकामी का झटका पूरी तरह झेल चुका हो ।”


"तब का क्या मतलब ?"


"मतलब यह है कि जब तकदीर से हमारी तुम्हारी फिर मुलाकात हो ।"


“फिर मुलाकात ? पागल हुई हो । आज के बाद मैं तुम्हें अपनी निगाहों से ओझल नहीं होने देने वाला ।"


"यह नहीं हो सकता । काटजू का माल झटकने के बाद मैं और मनोहर हर शहर छोड़कर जा रहे हैं । "


"तुम नहीं जा रही हो । मनोहर जाता है तो उसे जाने दो।”


"लेकिन...'


"लेकिन वेकिन कुछ नहीं । आज से तुम्हारी और मनोहर की पार्टनरशिप खतम और तुम्हारी और मेरी पार्टनरशिप शुरू ।”


"लेकिन तुम तो हमेशा से कहते आये हो कि तुम अकेले काम करना पसन्द करते हो ।”


“कहता आया होऊंगा । अब नहीं कहता ।”


"लेकिन..."


लेकिन वेकिन बन्द करो, बहुत लेकिन हो गई, अब मेरी बात सुनो, मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं । अब मेरी आंखें खुल गई हैं । लेकिन अगर तुम मेरी बात मानने से पहले मुझे जलील करना चाहती हो, मुझसे अपने प्यार की भीख मंगवाना चाहती हो तो मुझे वह भी मंजूर है । मैं तुम्हारे कदमों में सिर रख कर..."


शबनम ने हाथ बढाकर उसका मुंह बन्द कर दिया । फिर उसके होंठों पर वह मुस्कराहट आई जिसे देखने के लिये विकास तरह रहा था ।


"हाथ मिलाओ पार्टनर ।" - वह बोली ।


विकास ने उसका हाथ थामा और फिर थामे ही रहा ।


" स्वीट हार्ट, मम्मी को खुशी है कि तुम्हें अक्ल आ गई" वह बोली - "और योगिता का गम छोड़ो । वह तुम्हारी किस्म की औरत नहीं थी। तुम्हारी किस्म की औरत मैं हूं ।


जानते हो क्यों ?"


"क्यों ?"


"क्योंकि जैसी कुत्ती चीज तुम हो, वैसी ही कुत्ती चीज मैं हूं । हम तो विल्स का विज्ञापन हैं। मेड फार ईच अदर । एक ही थैली के चट्टे-बट्टे । योगिता तो फारेन एलीमेंट थी।"


“तुम्हारा साथ छूटने पर मनोहर को कैसा लगेगा ?"


"वह इस बात की कोई खास परवाह नहीं करेगा । देख लेना मुझसे अलहदगी के चौबीस घन्टे के भीतर-भीतर वह अपने लिए कोई नई असिस्टेन्ट तलाश कर लेगा ।"


लंच उनका पहले से ही मनोहर के साथ निर्धारित था । वे दोनों विक्रान्त होटल में पहुंचे। मनोहर डायनिंग हाल में बैठा था ।


मनोहर ने गौर से शबनम को देखा और गम्भीरता से बोला- “आज मैं तुम्हारे चेहरे पर वो चमक देख रहा हूं जो मैंने आज तक नहीं देखी । "


शबनम मुस्कराई ।


“इरादे क्या हैं बरखुरदार ?" - मनोहर ने विकास से पूछा । 


“खलीफा इस वक्त मेरा बाप बनकर दिखा रहे हैं ।" - शबनम बोली - "ये अपनी बेटी के बारे में तुम्हारी नीयत जानना चाहते हैं ।'


"नीयत अच्छी है" - विकास बोला- "इराके नेक हैं ।"


"नहीं हैं तो हो जायेंगे" - शबनम बोली- “अभी तो बेचारा अपना टूटा दिल सहला रहा है । इसे सम्भलने का मौका भी तो मिलना चाहिये । "


मनोहर ने वेटर को बुलाकर लंच का आर्डर दिया ।


"एक बात मेरी समझ में अभी भी नहीं आ रही" - वह बोला - "योगिता के पास कत्ल का जो उद्देश्य था, वह तो मैं समझ रहा हूं । वह इस बात से तिलमिलाई हुई थी कि उसके बाप ने अपनी नौजवान बीवी के फेर में आकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि उसे घर से निकलना पड़ा था और अब सुनयना उसे महाजन की जायदाद से एकदम बेदखल कराने वाली नई वसीयत भी लिखवा सकती थी । ऐसी नौबत आने से पहले उसने महाजन का कत्ल कर दिया ताकि कम से कम आधी जायदाद तो उसे मिल पाती। लेकिन जब उसे सुनयना से इतनी नफरत थी कि पूरी जायदाद उसके हाथ न चली जाये, इस खातिर उसने अपने बाप का कत्ल कर दिया तो उसने शुरू में ही बख्तावर सिंह की जगह उस पर कत्ल का इल्जाम थोपने की योजना क्यों न बनाई ?"


"क्योंकि उसकी निगाह में सुनयना के पास अपने पति की हत्या का कोई उद्देश्य नहीं था । उसने मुझे खुद बताया था कि उसे मालूम नहीं था कि महाजन सुनयना पर चरित्रहीनता का इलजाम लगाकर उसे तलाक देने वाला था । उसकी निगाह में तो महाजन सुनयना से बहुत खुश था और उसके साथ बड़ी आनन्द की जिन्दगी गुजार रहा था । लेकिन ज्यों ही उसे मुझसे मालूम हुआ कि सुनयना के पास कत्ल का बड़ा तगड़ा उद्देश्य था उससे फौरन उसे फंसवाने की कोशिश आरम्भ कर दी ।"


"यानी कि सुनयना को फंसवाने का सामान उसने सिर्फ तुम्हारी खातिर नहीं किया था ?”


विकास ने बेचैनी से पहलू बदला ।


"दोनों ही बातें रही होंगी" - उसकी हिमायत में शबनम जल्दी से बोली- "उसे विकास की परवाह थी, यह तो इसी से साबित हो जाता है कि जब मैंने उसे बताया था कि विकास को बख्तावरसिंह के आदमियों ने पकड़ लिया था तो वह इसे छुड़ाने में मेरी मदद करने के लिये फौरन मेरे साथ चल पड़ी थी।"


" ओह !" - मनोहर बोला ।


"लेकिन विकी, मैं फिर भी कहती हूं कि वह तुम्हारी किस्म की औरत नहीं थी, वह हत्यारी न भी होती तो भी तुम्हारी किस्म की औरत नहीं थी। डार्लिंग, वह तो तुम्हारा सुधार करना चाहती थी ।"


"डार्लिंग !" - मनोहर भवें उठाकर बोला- "वह डार्लिंग कौन है ? कहीं तुम ही तो डार्लिंग नहीं हो गये हो, बरखुरदार ।”


“इसी से पूछो।" - विकास बोला ।


“विकास मेरा हाथ मांग रहा है ।" - शबनम बोली ।


"सिर्फ हाथ ?" - मनोहर बोला ।


"मेरा मतलब है यह मुझे अपनी पार्टनर बनाना चाहता है, फिलहाल धन्धे में, बाद में जिन्दगी में भी । "


"हूं ! तो यह बात है।"


"हां । और सबसे पहले हम किसी और शहर में जाकर विकास का वहीं कॉन गेम आजमाने वाले हैं जो यहां चल नहीं सका है ।"


"आई सी ! मैं तुम्हें छोड़ना तो नहीं चाहता, शबनम लेकिन अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो ठीक है ।"


"थैंक्यू, पोपी ।"


" अब लगे हाथ यह भी बता दो कि हमारा जो काम अधूरा पड़ा है, उसका क्या होगा ?"


"काटजू वाला काम ? वह तो होकर रहेगा, डैडी । कल रात हम काटजू का काजू बना देंगे । "


"ठीक है । और उसके बाद क्योंकि हम सबको फौरन इस शहर से कूच कर जाना होगा और क्योंकि भविष्य में हमारे रास्ते भी अलग-अलग होने वाले हैं इसलिये मैं सोचता हूं कि हम आज ही अलविदा कह लें । आज रात को फेयरवैल डिनर मेरी तरफ से । ठीक है ?"


विकास और शबनम ने सहमति में सिर हिलाया ।


"आठ बजे ठीक रहेगा ?"


दोनों ने फिर हामी भरी ।


***


ठीक आठ बजे विकास और शबनम फिर विक्रान्त के डायनिंग हाल में पहुंचे। हैड वेटर उन्हें कर्नल जे एन एस चौहान के लिये रिजर्ब टेबल पर ले आया ।


"मिस्टर विकास गुप्ता और “आप” - उसने पूछा- मिसेज पूर्णिमा सरीन हैं न ?"


"हां।" - विकास बोला ।


"कर्नल साहब ने आपके लिए यह दिया है।" - वह जेब से एक मोटा लिफाफा निकालकर उन्हें थमाता हुआ बोला ।


वेटर के चले जाने के बाद उन्होंने लिफाफा खोला ।


भीतर सौ-सौ के कई नोट थे और साथ में एक चिट्ठी थी । चिट्ठी में लिखा था:


मेरे बच्चो,


दो उपहार इस पत्र के साथ भेज रहा हूं। पहला उपहार हमारी पैंतीस हजार की कमाई में शबनम का साढे सत्रह हजार का हिस्सा है और दूसरा उपहार तुम दोनों के लिये सीख है जो भविष्य में तुम्हारा मार्ग निर्देशन करेगी । वह सीख है - ठगी के धन्धे में कभी किसी को भरोसा मत करे। इस शहर में मुझे नुकसान भी हुआ है और फायदा भी । नुकसान यह हुआ है कि मेरा पार्टनर मुझसे छिन गया और फायदा यह हुआ कि कल रात तक काटजू का बकरा भूनने का इन्तजार करने की जगह उसका तिया-पांचा मैंने आज ही कर दिया है । आज शाम मैंने उससे एक लाख चालीस हजार रुपये झटक लिये हैं और उनमें मैं शबनम को हिस्सेदार नहीं मानता क्योंकि दोपहर से ही वह मेरी पार्टनर नहीं रही थी ।


यह पत्र तुम्हारे हाथ लगने तक मैं विशालगढ से सैकड़ों मील दूर निकल चुका होऊंगा । मेरी राय में शबनम को भी फौरन यहां से कूच कर जाना चाहिये क्योंकि कल तक काटजू को मेरे से हासिल हुआ स्टाक सर्टिफिकेट किसी दलाल को दिखाने का ख्याल आ सकता है और उसे मालूम हो सकता है कि उस सर्टिफिकेट की दो कौड़ी भी कीमत नहीं है ।


दीवान पुरुषोत्तमदास ने एजरा स्ट्रीट को जो प्रोविजन स्टोर नब्बे हजार में खरीदा था, वह उसने आज बहत्तर हजार का बेच दिया है और वह आज शाम की फ्लाइट से कलकत्ता गया है । कलकत्ता वह जरूर हीरे बेचने की गर्ज से गया है । वहां ज्यों ही उसे मालूम होगा कि उसके पास मौजूद अधिकतर हीरे नकली हैं तो वह भी उल्टे पांव यहां वापिस लौटेगा । कहने का मतलब यह है कि मैंने बहुत सोच समझकर आज ही यहां से कूच कर जाने का फैसला किया है । विकास, इन दोनों महानुभावों की ठगी से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं लेकिन अगर तुम शबनम से वास्ता मानते हो तो इनसे भी वास्ता तुम्हें मानना पड़ेगा । इसलिये यह शहर फौरन छोड़ दो, मेरे बच्चो ।


मेरा आशीर्वाद हमेशा अपने साथ समझना ।


तुम्हारा


जे एन एस चौहान


कर्नल (रिटायर्ड)


गढवाल रेजीमेंट


चिट्ठी समाप्त होने पर कई क्षण दोनों हक्के-बक्के से एक-दूसरे का मुंह देखते रहे, फिर दोनों ने एक साथ अट्टहास किया ।


"देखा !" - शबनम बोली- "कितनी कुत्ती चीज निकली यह मनोहर का बच्चा । कम्बख्त साफ-साफ मुझे सत्तर हजार की थूक लगा गया ।”


"लेकिन यह राय उसने सही दी है।" - विकास बोला - " कि हमें फौरन यहां से कूच कर जाना चाहिये।"


"हां । इस शहर से अब हमारा दाना-पानी उठ गया ।"


दोनों बिना डिनर किये वहां से कूच कर गये ।


समाप्त