नैना के प्लान के मुताबिक नागेश, सुधाकर और मिलिंद राणे तीन तरफ से फैक्टरी की तरफ बढ़े। नागेश फैक्टरी की दायीं तरफ की चार दीवारी की ओट लेकर अपने तीन साथियों के साथ पिछली दीवार की तरफ बढ़ा। उसे फैक्टरी की पिछली दीवार फाँद कर फैक्टरी की छत के ऊपर चढ़ना था। सुधाकर और मिलिंद राणे को फैक्टरी के सामने से गेट फाँद कर अंदर घुसना था। उन्हें पुरानी गाड़ियों की आड़ लेते हुए बिल्डिंग के सामने से प्रवेश करना था। नैना अपने ड्रोन के माध्यम से पूरे कैपंस पर नज़र रखने वाली थी।

अब फैक्टरी की सबसे ऊपर की मंजिल पर दो आदमी तैनात थे। यहाँ आये हुए इतना समय बीत जाने के बाद और अभी तक कोई हलचल न होती देखकर वे लोग लापरवाह हो गए थे। इसी बात का फायदा उठा कर सुधाकर और मिलिंद राणे अपने साथियों के साथ निर्विघ्न फैक्टरी की दीवार कूदने में कामयाब हो गए। दीवार कूदने के बाद जब सुधाकर पुरानी गाड़ियों की आड़ लेते हुए इमारत की तरफ बढ़ने लगा तो उसे फैक्टरी की इमारत में लगा लोहे का गेट सरकने की आवाज आयी। सुधाकर तुरंत एक आड़ के पीछे हो गया। तब तक मिलिंद भी धीरे-धीरे उसकी तरफ आ चुका था।

लोहे का गेट खुलने के बाद उस पर राहुल तात्या प्रकट हुआ। उसके साथ असॉल्ट राइफलें लिए हुए दो आदमी भी थे। राहुल एक बार इमारत के बाहर आ कर ठिठका। इसके बाद वे लोग उस इमारत की दायीं तरफ बढ़े जिस तरफ सुधाकर और मिलिंद मौजूद थे। अपनी ओर बढ़ता हुआ देख कर सुधाकर और मिलिंद ने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली और अपने पीछे आने वाले जवानों को छिपने का इशारा किया।

क्या शिकार खुद शिकार होने आ रहा था !

नैना भी अपनी दूरबीन से यह देखकर हैरान थी कि राहुल तात्या इस तरह से इमारत के बाहर क्यों आ गया।

राहुल फैक्टरी के दायीं तरफ के मैदान की तरफ बढ़ा और फिर गाड़ियों के कबाड़ के पीछे ओझल हो गया। सुधाकर और मिलिंद को यह माजरा समझ नहीं आया। फिर कुछ देर के बाद वह दोबारा दिखाई दिया। उसके साथ पाँच आदमी भी बाहर निकले। उन लोगों के हाथ पीछे बंधे हुए थे। वे लोग चलते हुए लड़खड़ा रहे थे और जरा सा रुकने पर तात्या के साथ वाले राइफल धारी उनकी कमर पर प्रहार कर उन्हें आगे धकेल रहे थे।

सुधाकर और मिलिंद दोनों राइफल धारियों पर निशाना साध चुके थे। तभी सुधाकर के कानों में नैना की आवाज गूँजी।

“सुधाकर, मेरे ख्याल से इन लोगों ने बंधकों को अंडरग्राउंड बंकर में रखा हुआ है। हमें पहले उन्हें छुड़ाना चाहिए। तुम उस तरफ बढ़ो।” नैना ने कहा।

“पर ये पाँच लोग जो अंदर ले जाये जा रहें है। वे लोग अगर अंदर फँस गए तो जिंदा बाहर नहीं आ पाएँगे।” सुधाकर ने कहा।

“लेकिन अगर हमने इन पर एक्शन लिया तो वे लोग सतर्क हो जाएँगे और उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाएगा।” नैना ने कहा।

“पहले जो लोग सामने हैं, उन्हें तो काबू करें। बाद में जो होगा देखा जाएगा।” सुधाकर ने कहा और डिस्कनेक्ट कर दिया।

सुधाकर और मिलिंद की नजरें मिली और नजरों ने आपस में कुछ कहा और समझा। दोनों की पिस्टल से एक साथ गोलियाँ निकली और तात्या के साथ के दोनों राइफल धारियों के भेजे उड़ गए।

“मिलिंद, तुम बंकर की तरफ जाओ। मैं उन पाँचों को लेकर आता हूँ।” इतना कहकर सुधाकर लोहे के गेट की तरफ भागा।

तात्या जब तक यह माजरा समझ पाता उसके आदमी जमीन पर पड़े तड़प रहे थे। उसने पीछे मुड़कर देखा तो सुधाकर को किसी चीते की तरह अपनी तरफ लपकता हुआ पाया।

उसने आव देखा न ताव अपने आदमियों की जमीन पर पड़ी राइफल उठाने के लिए छलाँग लगा दी। सुधाकर ने तात्या की तरफ फायर किया लेकिन जमीन पर लुढ़कने की वजह से गोली उसके सिर के ऊपर से निकल गयी। सुधाकर की गोली से बाल-बाल बचने के बाद तात्या ने अपना इरादा बदल दिया और लोहे के गेट की तरफ भागा और उसके अंदर छलाँग लगा दी। जब तक सुधाकर वहाँ पहुँचता, तब तक तात्या के आदमी गेट बंद कर चुके थे।

अचानक हुई इस फ़ायरिंग ने छत पर मौजूद दोनों आदमियों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। वे दोनों गाड़ियों वाले मैदान की तरफ पहुँचे। उन लोगों को मिलिंद और उसके साथी इमारत की दायीं तरफ बढ़ते हुए दिखाई दिये। उन लोगों ने मिलिंद की तरफ अंधाधुंध गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। जिसके चलते मिलिंद और उसके साथियों को मजबूरन कंपाउंड में खड़ी गाड़ियों की आड़ लेनी पड़ी। जमीन पर होने की वजह से वे लोग आसानी से गोलियों का निशाना बन सकते थे और सुधाकर भी उन पाँच लोगों को लेकर अपनी जगह से नहीं हिल सकता था।

तभी नैना ने कंपाउंड की दीवार के बाहर तैनात जवानो के साथ मिलकर मिलिंद और सुधाकर को कवर फायर देना शुरू किया जिससे वे लोग मिलिंद और बाकी आदमियों को निशाना न बना सकें।

नागेश इसी मौके का फायदा उठाकर छत तक पहुँचने में कामयाब हो गया। छत पर मौजूद तात्या के आदमियों का ध्यान कंपाउंड की तरफ था। उन्हें भनक भी नहीं पड़ी कि कब नागेश के रूप में मौत उन तक पहुँच चुकी थी। नागेश ने उन्हें तुरंत मौत के घाट उतार दिया।

नागेश ने सफ़ेद रुमाल लहराया जिसे मिलिंद और नैना ने देखा। उनकी तरफ से छत की तरफ की जाने वाली फायरिंग रोक दी गयी। मिलिंद ने सुधाकर को इशारा किया जिसके चलते वह उन पाँचों आदमियों, जिनके बंधन वह खोल चुका था, को लेकर वापस कंपाउंड की उस तरफ भागा जहाँ पर मिलिंद मौजूद था। अपनी जान हथेली पर रख कर वे लोग टूटी हुई गाड़ियों के पीछे पहुँचने में सफल रहे।

तभी आलोक देसाई और शाहिद रिज़्वी फोर्स लेकर वहाँ पर पहुँचे। उन लोगों के साथ पूरी फोर्स पहुँची थी। नैना ने जल्दी से उन्हें पूरी स्थिति से अवगत करवाया।

आलोक देसाई अपने आदमियों के साथ कंपाउंड की चारदीवारी कूद कर सुधाकर और मिलिंद की तरफ बढ़ चला। शाहिद रिज़्वी बाकी फोर्स के साथ फैक्टरी की पीछे की तरफ बढ़ चला जहाँ पर नागेश गया था।

तात्या हाँफता हुआ ऊपर दूसरी मंजिल पर पहुँचा। दिलावर टकला अपने आदमियों के साथ पहले ही हथियारबंद होकर अपनी पोजीशन ले चुका था।

“वे आदमी कहाँ है?” तात्या को खाली हाथ देख दिलावर चिल्लाया।

“नीचे पूरी की पूरी पुलिस फोर्स मौजूद है। वे लोग निकल गए मेरे हाथ से।” तात्या हकबकाया सा बोला।

“फोर्स? वे लोग यहाँ तक कैसे पहुँच गए। तुम्हारे आदमी ऊपर क्या झक मार रहें हैं। अरे, पहले उन कैदियों को ख़त्म करो। उसके बिना हमारा सारा किया कराया बेकार हो जाएगा।” तात्या की बात सुनकर उस्मान चिल्लाया।

तब तक उन लोगों के आदमियों ने खिड़कियों की ओट लेकर बाहर की तरफ फायरिंग शुरू कर दी थी। लेकिन आलोक देसाई और शाहिद रिज़्वी के साथ फोर्स पहुँचने से जवानों का उत्साह पहले से ज्यादा बढ़ गया था। तात्या और उसके आदमियों की गोलीबारी के जवाब में बाहर ग्राउंड से गोलियों की बाढ़ आयी।

दिलावर ने सुधाकर और बंधकों को कंपाउंड में पड़े गाड़ियों के कबाड़ की आड़ के पीछे सुरक्षित पहुँचते देखा तो वह बुरी तरह से बौखला उठा। आलोक देसाई तब तक सुधाकर और मिलिंद की तरफ बढ़ चुका था। वह और उसके साथी लगातार खिड़कियों की तरफ फायर कर रहे थे जिससे उस्मान, दिलावर और उसके साथी खुलकर वार नहीं कर पा रहे थे। इस मौके को मुफीद जानकर आलोक ने अपने जवानों को उन पाँचों बंदियों को कंपाउंड से बाहर ले जाने को कहा।

तात्या को ऊपर की छत पर मौजूद लोगों की तरफ से कोई हरकत होती दिखाई नहीं दी। वह अपने साथियों के साथ छत की तरफ भागा। तभी उसे ऊपर से कई कदमों की आहट सुनाई दी। वह दीवार की ओट में हो गया। ऊपर से आने वाले नागेश और उसके साथी थे। वे भी सीढ़ियों में रुक कर वहाँ की आहट लेने लगे। नागेश ने कुछ होता न देखकर अपनी ओट में खड़े-खड़े ही गलियारे की तरफ गोली चला दी।

तात्या भी बहुत शातिर था। उसने नागेश की गोली का कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि अपने बैग से एक हैण्डग्रेनेड की पिन निकालकर उसे सीढ़ियों की तरफ सरका दिया जहाँ पर नागेश और उसकी टीम थी। उस हरकत को नागेश पहले ही भाँप चुका था। उसने अपने साथियों को वापस ऊपर की तरफ जाने का इशारा कर दिया। इससे पहले की बम फट पाता वे लोग सीढ़ियों के मुहाने के पास पहुँचने में कामयाब हो गए थे। तात्या के द्वारा फेंका गया ग्रेनेड फटा जरूर लेकिन अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका। लेकिन इस वजह से नागेश और उसकी टीम को नीचे जाने के लिए अब की बार अपनी जान की बाजी लगानी थी क्योंकि दुश्मन अब खबरदार था।

सुधाकर और मिलिंद दूसरी मंजिल की तरफ फायरिंग करते हुए उस जगह की तरफ बढ़ रहे थे जहाँ से तात्या बंदी लोगों को लेकर बाहर निकला था। वे लोग हैरान थे कि उस जगह पर कबाड़ के सिवा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। वहाँ पर कोई हलचल भी नज़र नहीं आ रही थी। क्या उस जगह से सभी बंधकों को हटाया जा चुका था ?

आलोक देसाई और जवानों की गोलियों की बरसात के बीच सुधाकर और मिलिंद उस जगह पर पहुँचे तो उन्हें कबाड़ के बीच का कुछ एरिया समतल दिखाई दिया। जिसके एक तरफ कच्ची सीढ़ियाँ नीचे उतर रही थी। सुधाकर संभल कर उन सीढ़ियों से नीचे उतरा। मिलिंद उसके पीछे-पीछे एक कदम की दूरी पर चल रहा था। उनकी समझ में ये पूरा माजरा आ गया था।

उन शैतानों ने एक पूरा का पूरा ट्राला ही जमीन में गाड़ कर छुपा रखा था। निचली सीढ़ी पर पहुँच कर सुधाकर ठिठका। लोहे का एक टेंपरेरी दरवाजा उसके सामने था जो बंद था। अब उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि अंदर कौन मौजूद है और कितने आदमी हैं? फिर भी उसने तीन बार दरवाजे को रिवॉल्वर से ठकठकाया। कुछ देर बाद दरवाजा खुला। एक राइफलधारी ने थोड़ा सा दरवाजा खोल कर अपना मुँह बाहर निकाला।

सुधाकर ने अपनी लात से ज़ोर का प्रहार दरवाजे पर किया जिससे वह दरवाजा जाकर सीधा खोलने वाले के माथे पर टकराया। वह आदमी अपना संतुलन खो बैठा और लोहे के फर्श पर जाकर गिरा। इससे पहले की वह अपनी राइफल का इस्तेमाल कर पाता सुधाकर ने उसके ऊपर पिस्तौल तान दी। अन्दर उसका एक साथी और मौजूद था उसको मामला समझते देर नहीं लगी। उसने तुरंत सुधाकर की तरफ गोली चला दी। किस्मत से सुधाकर उसी वक़्त एक तरफ पलट गया, जिसकी वजह से गोली उसके सिर के ऊपर से निकल गयी।

मिलिंद ने, जोकि सुधाकर के पीछे था, तुरंत परिस्थिति को पहचाना। इससे पहले की वह आदमी सुधाकर की तरफ दोबारा गोली चला पाता, उसने उसके पैरों को निशाना बनाकर गोली चलाई। निशाना अचूक था, वह आदमी लड़खड़ाता हुआ फर्श पर गिरा। सुधाकर और मिलिंद अब उस लोहे के कंटेनर के अंदर मौजूद थे। उनकी आँखें उस माहौल में देखने की अभ्यस्त हो गयी थी।

वहाँ पर मौजूद सभी बंधकों के मुँह और आँखों पर टेप लगी हुई थी और हाथ पीछे बँधे हुए थे। वातावरण में पसीने और मल- मूत्र की बदबू फैली हुई थी। सभी लोगों का ड़र, भूख और गर्मी से बुरा हाल था। उस कंटेनर में दो एग्जॉस्ट-फैन, जो इतने लोगों के लिए नाकाफी थे, लगे हुए थे और एक बल्ब एक कोने में टिमटिमा रहा था जिसकी रोशनी बस नाममात्र की थी।

तो यह वजह थी जिसके कारण पुलिस उन बंधकों को ढूँढ नहीं पा रही थी। वे सभी तो एक तरह से जमीन में दफन थे जिसकी वजह से वहाँ पर कोई हलचल बाहर से दिखाई नहीं देती थी और वह इमारत सुनसान नज़र आती थी।

सुधाकर ने उन दोनों आदमियों को अपने निशाने पर ले लिया था। मिलिंद ने पहले दोनों के हथियार अपने कब्जे में ले लिए और फिर दोनों को मजबूती से बाँध दिया।

सुधाकर ने वहाँ मौजूद लोगों को विश्वास दिलाया कि मुंबई पुलिस और एटीएस वहाँ पहुँच चुकी थी। वे लोग अब सुरक्षित थे। सुधाकर ने नैना से संपर्क साधने की कोशिश की पर उस कंटेनर में ऐसा करना संभव नहीं था।

“देखिए, आप लोग अब अपने आपको आज़ाद समझें। पूरी पुलिस फोर्स बाहर मौजूद है और अपराधी जल्दी ही नेस्तनाबूद कर दिये जाएँगे। हम आप लोगों के टेप खोल रहें हैं। कोई भी आदमी बाहर निकलते ही ड़र कर इधर-उधर न दौड़े। आप लोगों ने बाहर चल रही गोलीबारी से घबराना नहीं है। आप लोगों को हमारे जवान सुरक्षित यहाँ से निकाल लेंगे। उसके लिए आपको हम पर और उससे ज्यादा अपने आप पर भरोसा रखना होगा। हौसला आपको जिंदगी की तरफ लेकर जाएगा और डर मौत की तरफ। समझ गए।” सुधाकर बोला।

सभी लोगों ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई हालाँकि उनकी आँखों में डर की परछाइयाँ अब भी तैर रही थीं।

उसके बाद दोनों ने सभी के बंधन खोल दिये। शुरुआती तौर पर कुछ लड़खड़ाने के बाद, सब लोग धीरे-धीरे अपने शरीर की जकड़न पर काबू पाने लगे।

“मिलिंद, मैं बाहर जा रहा हूँ। तुम इन्हें एक-एक करके बाहर भेजो। मैं बाहर से इनको कवर करता हूँ।” इतना कहकर सुधाकर बाहर की तरफ निकल गया।

जब वह ऊपर सीढ़ियों की तरफ पहुँचा। आलोक देसाई कबाड़ की आड़ लेकर उस तरफ ही भाग कर आ रहा था। उसके पीछे जवान कवर फायरिंग करते हुए उस्मान और दिलावर को उलझाए हुए थे। आलोक सुधाकर के पास पहुँचा। सुधाकर ने आलोक को सारा माजरा समझाया।

“हम्म, सुधाकर मैं यहाँ से जवानों को बंधकों की सुरक्षा के लिए एक फायरिंग कवर का कवच बनाने के लिए कहता हूँ जिससे उस तरफ से गोलियाँ न चल सकें। तुम उन लोगों को कहो कि घुटनों के बल यहाँ से उन जवानों के पीछे पड़ी कारों की ओट लेते हुए बाहर जाएँ। कोई भी किसी भी कीमत पर खड़ा ना हो और अपना सर ऊपर उठाने की जुर्रत न करे।”

सुधाकर ने सहमति में सर हिलाया। आलोक देसाई ने सभी जवानों को इशारा किया। वे लोग कारों के कबाड़ के पीछे अपनी अपनी पोजीशन लेकर चाक-चौबन्द हो गए।

“नैना, मैं यहाँ से बंधकों को निकाल रहा हूँ। तुम गेट के पास का एरिया सेक्योर करो। उन लोगों को कवर देते हुए यहाँ से बाहर निकालो।” आलोक ने नैना से संपर्क साधकर कहा। नैना से जवाब मिलने के बाद आलोक ने संपर्क काट दिया।

सुधाकर ने पहले आदमी को समझाया कि उन्हें क्या करना था और किस तरह से गेट की दिशा में जाना था। बाकी सब आदमी भी उसके पीछे बारी-बारी से बाहर निकलते चले गए। सबसे आखिरी में दिलावर के दोनों आदमियों के साथ मिलिंद बाहर निकला। उन दोनों में से एक को पैर में गोली लगने के कारण वहाँ से सुरक्षित लेकर जाना टेढ़ा काम था। आलोक देसाई ने मिलिंद को इशारा किया। मिलिंद ने बला की तेजी से उनके सिर पर अपनी पिस्तौल से प्रहार किया। दोनों अचेत हो गए।

उधर नागेश वापस छत पर अपनी पोजीशन लिए हुए था। तभी उसे इमारत के पिछले हिस्से से रस्सी के सहारे किसी के चढ़ने की आवाजें आयी। नागेश और उसके साथी चौकस हुए। ऊपर आने वाले शख़्स को देख कर वे लोग कुछ निश्चिंत हुए। छत पर आने वाला शख़्स शाहिद रिज़्वी था। नागेश उसे पहचानता था।

“हैलो बॉय्ज़, मैं तो सोच रहा था कि आप लोग नीचे की मंजिल पर पहुँच चुके होंगे!” शाहिद रिज़्वी बोला।

“हम पहुँच ही गए थे लेकिन उन लोगों के पास ग्रेनेड थे। इसलिए कदम पीछे खींचने पड़े।” नागेश ने जवाब दिया।

“अगर जीत के लिए पीछे हटना पड़े तो कोई हर्ज नहीं है। नाओ बॉयज़, टेक पोजीशंस। अब हमारे सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है। लेट अस फिनिश दीज़ बास्टर्ड्स। और एक बात ध्यान रहे कि हम जितने लोग यहाँ पर आये हैं, उतने ही वापस जाएँगे। मरेगा तो सिर्फ़ हमारा दुश्मन।” शाहिद रिज़्वी दृढ़ निश्चय से भरे अंदाज में बोला।

नागेश ने रिज़्वी को बताया कि उसका प्लान क्या था। रिज़्वी ने उसके प्लान से सहमति जताई। तभी सीढ़ियों से गोलियों की बौछार आयी। लेकिन वे सभी इस हमले के लिए मुस्तैद थे। राहुल तात्या अपने आदमियों के साथ छत पर आने की कोशिश कर रहा था।

शाहिद रिज़्वी ने अपनी गन हाथ में ली और वे लोग ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए सीढ़ियों के दरवाजे की तरफ बढ़े। जैसे ही वे लोग सीढ़ियों की तरफ पहुँचे तो रिज़्वी ने एक जवान को इशारा किया। जवान ने एक ‘स्टन ग्रेनेड’ सीढ़ियों में उछाल दिया।

‘स्टन ग्रेनेड’ से बहुत तेज धमाका और तेज रोशनी निकलती है जिससे दुश्मन कुछ समय के लिए देख नहीं पाता और तेज धमाके के कारण कानों में हुए असर की वजह से अपना बैलेंस भी खो बैठता है।

तात्या और उसके साथी इस धमाकेदार जवाब के लिए तैयार न थे। वे लोग वापस नीचे दूसरी मंजिल के कॉरीडोर में पनाह लेने के लिए भागे। जब तक वे लोग संभलते, रिज़्वी और उसके जवान नीचे पहुँच चुके थे।

नागेश ने रस्सी के सहारे ऊपर आने से पहले दूसरी मंजिल की पीछे की तरफ की खिड़कियों का जायजा ले लिया था। उसने अपने चारों साथियों के साथ रस्सी के सहारे नीचे उतरना शुरू किया। उसे कामयाबी तभी मिलनी थी जब पीछे के कमरों में कोई नहीं होता। उसे उम्मीद थी कि फिलहाल सबका ध्यान इमारत के सामने कंपाउंड में या सीढ़ियों की तरफ होगा। वह निर्विघ्न दूसरी मंजिल की एक खिड़की के पास पहुँचा। अपनी गन के प्रहार से उसने शीशे को तोड़ा और चिटकनी खोल कर निर्विघ्न कमरे में प्रवेश किया।

एक के बाद एक उसके चारों साथी उस कमरे में दाखिल हो गए। उस कमरे में लकड़ी की बड़ी सी पेटियाँ रखी हुई थी। उसने एक पेटी का ताला तोड़कर देखा तो सन्न रह गया। अलग-अलग तरह के हथियार उस पेटी में मौजूद थे। ऐसी चार पेटियाँ उस कमरे में मौजूद थी। अगर उनमें भी ऐसा समान था तो मुंबई बारूद के ढेर पर बैठी हुई थी। उसने कमरे से बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोलना चाहा कि तभी दरवाजा ज़ोर से खुला। नागेश के सामने एक आदमी खड़ा था। नागेश और वह आदमी दोनों सकपकाए। उस आदमी ने नागेश पर गन तानने की कोशिश की लेकिन उससे पहले नागेश की गोली उसके माथे में से सुराख करती हुई पार हो गयी। इस जहान की तमाम हैरत लिए वह शख़्स कटे पेड़ की तरह गलियारे में गिरा।

नागेश ने उसके गिरते ही दरवाजे का सहारा लेकर गलियारे में झाँका। उस आदमी के साथ आते हुए उसके दो साथी उसे हलाक होता देख सकते में अपनी जगह पर खड़े रह गए। नागेश ने उनको भी शूट कर दिया। अब वे लोग उस इमारत के गलियारे में मौजूद थे। सीढ़ियों से रिज़्वी और उसके जवान नीचे उतर रहे थे। तात्या और उसके साथी अभी संभल भी नहीं पाये थे कि शाहिद रिज़्वी काल बन कर उनके सिर पर खड़ा था। तात्या के सिर पर पहुँचकर रिज़्वी ने उसे गर्दन से पकड़ कर एक कमरे के अंदर दीवार के साथ सटा दिया। उसकी कनपटी पर गन रखते हुए कहा-

“तुझसे बड़ी मुख़्तसर सी बात करूँगा मैं। तेरी हाँ में जिंदगी है और ना में मौत। समझा?”

तात्या ने कातर भाव से गर्दन हिलाई।

“तेरा नाम?”

“राहुल...”

“असली नाम बोल मा...”

“जमाल शेख...”

“जमाल शेख... तो तू है वो तात्या।”

“हाँ।”

“उस्मान कहाँ पर है?”

तात्या झिझका। रिज़्वी का वार तात्या के पीठ पर पड़ा। तात्या के जख्मी मुँह से खून की फुहार निकली और दीवार को लाल कर गयी।

“इसी मंजिल पर। आखिरी कमरे में।” कराहते हुए तात्या का जवाब आया।

“तू भागेगा तो नहीं?” रिज़्वी का अगला सवाल हुआ।

तात्या की आँखों में उलझन के भाव आए।

रिज़्वी ने दो फायर किए और तात्या के घुटने फूट गए। वह लहरा कर फर्श पर गिरा।

“सजा तो तुझे पता नहीं कब मिलेगी। लेकिन मेरी निशानी तो ले ही जा।” रिज़्वी की आवाज गूँजी।

रिज़्वी ने एक जवान को इशारा किया।

“इसे लादकर पीछे के रास्ते से नैना के पास ले जाओ।”

रिज़्वी ने दो जवान उसके साथ और भेज दिये। वे तीनों तात्या को लादकर सीढ़ियो से वापस उस तरफ चल पड़े जहाँ से वो लोग ऊपर आये थे। तात्या का हाल देख कर कॉरीडोर में दिखाई देने वाले बाकी लोगों ने हथियार डाल दिये।

अब दुश्मनों के सिर्फ़ वही लोग उस इमारत में बचे थे जो कमरों की खिड़कियों से बाहर गोली-बारी कर रहे थे। जब रिज़्वी तात्या को रवाना कर कमरे से बाहर निकला तो उसे कॉरीडोर में सामने नागेश दिखाई दिया। दोनों के चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर गयी।

उधर कंपाउंड में सुधाकर और मिलिंद बारी-बारी से सभी बंधकों को उस कंटेनर से निकालने में कामयाब हो गए। आलोक देसाई और उसके जवान लगातार खिड़कियों की तरफ निशाना लगा रहे थे लेकिन उनका मकसद वहाँ से होने वाली गोली बारी को रोकना था। दिलावर काफी देर से खिड़की से सुधाकर या मिलिंद को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा था लेकिन उस तरफ से लगातार हो रही आलोक देसाई की जवाबी कार्यवाही के कारण उसका निशाना चूक रहा था। तभी उसका ध्यान फैक्टरी के गेट की तरफ गया। नैना और उसके जवान ढाल बने गेट की तरफ सरक रहे थे और उन जवानों के बीच विस्टा के लोग सुरक्षित बाहर जाने में कामयाब हो गए थे।

उन बंधकों को अपने से दूर रखने का दुष्परिणाम अब दिलावर के सामने था। हालाँकि इसी कारण से वे लोग अब तक पुलिस की निगाहों में आने से बचे भी रहे थे। इस तरह बाजी अपने हाथ से निकलता देखकर वह गुस्से से पागल हो गया। वह अपने कमरे में पड़े एक लोहे के संदूक से एक रॉकेट लॉन्चर निकाल लाया। उसने उसका मुँह उस दिशा में कर दिया जहाँ पर सुधाकर, मिलिंद और आलोक मौजूद थे।

तभी उस कमरे का दरवाजा एक धमाके के साथ खुला। नागेश ने दिलावर को लॉन्चर से निशाना साधते हुए देखा। दिलावर भी नागेश को पहचान चुका था। नागेश की गन से निकली गोली जब तक दिलावर को अपना निशाना बनाती, वह लॉन्चर का ट्रिगर दबा चुका था।