वो आहट नहीं थी।
खटका भी नहीं था।
फिर भी देवराज चौहान की आंख खुल गई। क्यों खुली? वो खुद भी नहीं समझ पाया। पूरे कमरे में अंधेरा था। वो डबल बैड पर लेटा रहा। खुली पलकों की पुतलियां, उसी तरह पड़े-पड़े इधर-उधर घूमीं जगमोहन दूसरे बेडरूम में था। अगर वो वहां आया होता तो अब तक एहसास हो गया होता।
एकाएक हिलती पुतलियां थम गई।
उसे देखती रही आंखें अंधेरे में जो सिर की तरफ खड़ी थी। खुली खिड़की से चंद्रमा की आती रोशनी में उसने स्पष्ट पहचाना उसे। वो मोना चौधरी थी। हाथ में रिवॉल्वर था। जिसकी नाल करीब-करीब उसके सिर के बालों को छू रही थी।
देवराज चौहान आंखें खोले एकटक उसे देखता रहा। अंधेरे में ही दोनों की चमकती नजरें मिलीं। दो भूखे जानवर आंखों ही आंखों में एक-दूसरे को खा जाने की कोशिश में थे।
"मैं...।" तभी नागिन की मेध्यम सी फुफकार देवराज चौहान के कानों में पड़ी—“चाहती तो तुम्हें नींद से न उठने देती और यूं ही शूट कर देती। लेकिन मौत देने से पहले तुम्हें इस बात का एहसास हो जाना चाहिए कि तुम मोना चौधरी के हाथों मरने जा रहे हो।
जिसे मौत के मुंह में भेजकर, खुद चैन से सो गए थे।
देवराज चौहान वैसे ही पड़ा, उसे देखता रहा।
‘‘अब तुम मरने जा रहे हो देवराज चौहान। " फुफकार पुनः उसके कानों में पड़ी।
"यकीन है तुम्हें?" देवराज चौहान के होंठों से सर्द स्वर निकला।
"मुझे पूरा यकीन है और मरने के बाद तुम्हें भी पूरा यकीन आ जाएगा कि मैंने ठीक कहा—।"
तभी देवराज चौहान का शरीर चीते की सी फुर्ती से हरकत में आया। उसके बाएं हाथ ने मोना चौधरी की कलाई पकड़ी और बैड की पुश्त पर दबा दी।
मोना चौधरी को देवराज चौहान की हरकत का एहसास हो गया था। उसने फौरन ट्रेगर दबा दिया। लेकिन तब तक देवराज चौहान का हाथ मोना चौधरी की कलाई पर टिक चुका था। आवाज गूंजी।
फायर की तेज गोली चली।
परन्तु वो गोली देवराज चौहान के कान के पास तकिए को सुलगाती, बैड के गद्दे में रास्ता बनाती, प्लाई बोर्ड में छेद करती फर्श में जा टकराई।
दांत भींचे देवराज चौहान ने मोना चौधरी की कलाई जोरों से बैड की पुश्त से टकराई। तीसरी बार टकराने पर मोना चौधरी के हाथों से रिवॉल्चर निकली तो देवराज चौहान ने फौरन खास अंदाज में उसकी कलाई को तीव्र झटका दिया तो मोना चौधरी बैड पर आ गिरी। गिरते ही वो फुर्ती से खड़ी हुई।
तब तक देवराज चौहान भी खड़ा हो चुका था।
एक दूसरे की जान के भूखे दोनों बैड पर खड़े थे कि तभी कमरे की लाइट ऑन हो गई।
फायर की आवाज सुनकर आने वाला जगमोहन था। हाथ में रिवॉल्वर दबी थी। मोना चौधरी को वहां पाकर चौंका। दो पलों तक तो उसे विश्वास ही नहीं आया।
"तुम?" जगमोहन के होंठों से निकला।
ठीक उसी पल जंगली बिल्ली की तरह मोना चौधरी ने देवराज चौहान पर छलांग लगाई और देवराज चौहान से टकराती, उसे साथ लिए नीचे फर्श पर गिरती चली गई। दोनों किसी नाग-नागिन के जोड़े की तरह बत खा कर ऐसे लिपट गए कि देखने वाला ये बात तय नहीं कर सकता था कि दोनों प्यार कर रहे हैं या एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हैं।
तभी बाहर दौड़ते कदमों की आहट गूंजी। देवराज चौहान दांत भींचे बोला।
"जगमोहन। बाहर संभालो। "
रिवॉल्वर थामे, दांत भींचे जगमोहन बाहर निकलता चला गया। तब तक मोना चौधरी का हाथ, देवराज चौहान की गदन पर टिक चुका था और उस हाथ के पंजे से गले को दबाकर वह देवराज चौहान की सांसें रोकने की चेष्टा कर रही थी। परंतु जब कामयाब न हो पाई तो दूसरे हाथ से देवराज चौहान के सिर के बाल पकड़ कर सिर जोरों से फर्श पर दे मारा।
पीड़ा के कारण देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली।
दूसरे ही पल देवराज चौहान ने अपनी टांग को मोड़ा। पैर मोना चौधरी के पेट पर रखा और जोरों का धक्का दिया। मोना चौधरी का शरीर तीव्र झटके के साथ उछला और पास की दीवार से टकराकर पुनः फर्श पर आ गया। होंठों से कराह निकली। इससे पहले वो संभल पाती। देवराज चौहान पुनः उसके करीब था। उस की जोरदार ठोकर, मोना चौधरी के कुल्हे पर पड़ी। खाती चली गई। तभी वो रुकी।
मोना चौधरी दो तीन लुढकनियां उसका जिस्म किसी रबड़ की गुड़िया की भांति इकट्ठा हुआ फिर जैसे किसी ने उसे ऊपर उछाला हो, इस तरह हवा में उठी और फर्श पर सीधी खड़ी हो गई। उसकी आंखों से शोले बरस रहे थे। चेहरा तप रहा था। देवराज चौहान की आंखों में भी अंगारे थे। शरीर में अजीब सा तनाव भरा पड़ा था।
दोनों एक-दूसरे को फाड़कर खा जाने को तैयार थे।
"तुमने गलती कर दी मोना चौधरी " देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला।
"जानती हूं।" मोना चौधरी फुफकारी-"जब तुम्हारे सिर पर पहुंची थी, तभी तुम्हें शूट कर देना चाहिए था। " देवराज चौहान ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
"वो वक्त निकल चुका है।"
"वक्त का चक्र कभी नहीं रुकता देवराज चौहान वक्त का पहिया घूमकर दोबारा कभी न कभी फिर वहीं आता है। लेकिन अब मुझे वक्त के पहिए का इंतजार नहीं मैं तुम्हें जिंदा छोड़कर जाने चाली नहीं।"
"तो मैंने कब कहा कि तुम यहां से जिंदा बचकर जा सकोगी।" देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे।
"तुमने क्या सोचा था कि शंकर भाई तक पहुंचकर मेरी जिंदगी खत्म हो जाएगी। " मोना चौधरी वहशी स्वर में कह उठी "बहुत गलत सोचा तुमने ।
"अब मुझे समझ आ गया है कि तुम्हारी जिंदगी मुझ तक, पहुंचकर ही खत्म होनो थी। तभी तुम यहां मौजूद हो। "देवराज चौहान की आवाज में दरिंदगी नाची।
उसी पल दोनों एक साथ उछले ।
जैसे बिजली सी चमकी हो। वैसी ही आवाज के साथ उनके शरीर हवा में आपस में टकराए और फर्श पर आ गिरे और इसके साथ ही दोनों पुनः आमने-सामने खड़े थे। एक-दूसरे की आंखों में झांक रहे थे।
खतरनाक फैसले के साथ देवराज चौहान ने एक कदम आगे बढ़ाया।
उसकी आंखों में झांकती मोना चौधरी एक कदम पीछे हटी।
लगा जैसे अभी मौत का ताण्डव होगा।
तभी मोना चौधरी ने अपने कपड़ों में हाथ डाला, निकाला तो उसके हाथ में चाकू नजर आया। बटन दबाते ही उसका दांतेदार फल, छः इंच लंबा खुल गया। वो दांते फल के दोनों तरफ थे कि किसी के पेट में घुसे तो पेट को पूरी तरह फाड़कर ही बाहर आए और सामने वाला न बचे।
देवराज चौहान ठिठका। उसके होंठ और भी कस गए।
"अब तुम्हारा वक्त आ गया है देवराज चौहान।" मोना चौधरी के स्वर में मौत थी।
देवराज चौहान के चेहरे पर सर्द-वहशी भाव आ ठहरे। चाकू थामे मोना चौधरी उछली।
देवराज चौहान अपनी जगह स्थिर खड़ा रहा।
दूसरे ही पल मोना चौधरी की टांगें वेग के साथ, देवराज चौहान की छाती से टकराने लगी तो उसने हाथ बढ़ाकर अपनी तरफ आती मोना चौधरी की टांगों को बांह के वेग से रोका और दूसरे हाथ से उसकी पिंडली पकड़नी चाही।
उसी पल मोना चौधरी ने अपनी बांह देवराज चौहान के गले में डाली और दूसरे हाथ में पकड़े चाकू को उसके पेट में घुसेड़ना चाहा। बहुत नाजुक वक्त था। दांतेदार वो खतरनाक चाकू अगर पेट में घुस जाता तो फिर चाकू ने पूरा पेट खोलकर ही बाहर निकलना था।
देवराज चौहान को पूरी तरह एहसास था, मोना चौधरी की हरकत का आधा पल भी बाकी नहीं बचा था, चाकू पेट में होने को। कोई और रास्ता न पाकर, देवराज चौहान ने अपना बायां हाथ आगे बढ़ाया और चाकू के दांतेदार फल को उसने हथैली में जकड़ लिया और उसका रुख मोड़कर दूसरी तरफ कर दिया। चाकू के दांत हथेली में घंस गए। खींचा।
मोना चौधरी ने चाकू उसकी हथेली से निकालना चाहा। परन्तु देवराज चौहान की हथेली चाकू के फल पर कस चुकी थी। उसी क्षण उसने मुट्ठी में जकड़े चाकू के फल को खास अंदाज में झटका दिया।
तीव्रता से मध्यम- सी आवाज हुई और चाकू का फल मूठ के पास से जुदा हो गया। इसके साथ ही देवराज चौहान ने घुटने की चोट मोना चौधरी के पेट में मारी।
मोना चौधरी पेट थामे कराह के साथ पीछे हटती चली गई। चाकू का हत्या उसके हाथ में था। जिसे उसने एक तरफ फेंका। और सांसें चढ़ी हुई थीं।
चेहरे पर गुस्सा मुट्ठी में जकड़े चाकू के फल को देवराज चौहान ने नीचे गिराया तो पूरी हथेली खून से सराबोर हुई पड़ी थी। हथेली पर जगह-जगह जख्म से नजर आ थे।
देवराज चौहान और मोना चौधरी की मौत से भरी निगाहें पुनः आपस में टकराई।
देवराज चौहान एकाएक दरिंदा-सा नजर आने लगा था। भिंचे दांत। क्रोध से धधकता चेहरा। आंखों में मौत की कालिमा। इस वक्त उसके दिलो-दिमाग में एक ही बात थी। सामने खड़ी मोना चौधरी की मौत या तो ये जिंदा रहेगी या फिर वह। और अब कुछ ऐसा ही हाल मोना चौधरी का था। दोनों के बीच मरो या मारो वाली बात आ चुकी थी। देवराज चौहान मौत का दूसरा रूप बना आगे बढ़ा। मोना चौधरी के होंठों से नागिन सी फुफकार निकली। कुछ कदम आगे बढ़ते ही देवराज चौहान ने चीते की सी छलांग लगा दी मोना चौधरी पर मोना चौधरी ने बचना चाहा। परन्तु देवराज चौहान पहले से ही तैयार था कि मोना चौधरी आगे से हटेगी। यही वजह रही कि वो देवराज चौहान की गिरफ्त से बच न सकी और खून से सने हाथ की गिरफ्त में मोना चौधरी का गला आ फंसा। उसने गला छुड़ाने की भरपूर चेष्टा की। परंतु वो लौह पकड़ थी।
मोना चौधरी के दोनों हाथ आजाद थे। वो दोनों हाथों को घूंसों का रूप देकर देवराज चौहान के पेट और चेहरे पर मारने लगी। जबकि देवराज चौहान के पंजे का दबाव उसके गले पर बढ़ता जा रहा था। सांसों में रुकावट आने की वजह से उसका चेहरा सुर्ख सा होने लगा और उसके घूंसे जो देवराज चौहान के शरीर पर पड़े थे, उससे देवराज चौहान को तकलीफ तो हुई परंतु गर्दन पर पंजा ढीला नहीं होने दिया उसने ।
उसी वक्त मोना चौधरी की ठोकर, देवराज चौहान की टांगों के बीच पड़ी। देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा भरी कराह निकली। मोना चौधरी की गर्दन से हाथ हट गया और दो कदम पीछे होता चला गया। पूरा जिस्म तीव्र पीड़ा से झनझना उठा था। इससे पहले कि वो संभल पाता, मोना चौधरी ने ठोकर का जबर्दस्त प्रहार उसके पेट पर
किया तो दर्द से पेट थामे वो नीचे झुकता चला गया। मोना चौधरी ने पुनः ठोकर का इस्तेमाल किया तो देवराज चौहान लड़खड़ाकर पीछे मौजूद दीवार से जा टकराया। इसके साथ ही उसकी निगाह रिवॉल्वर पर पड़ी जो उसने मोना चौधरी के हाथों से गिराई थी। वह सिर्फ दो कदमों की दूरी पर थी।
दर्द-पीड़ा सब भूलकर देवराज चौहान ने झपट्टा मारा और नीचे पड़ी रिवॉल्चर हाथ में आते ही उसका रुख मोना चौधरी की तरफ हो गया। चेहरे पर मौत नाच रही थी।
और मोना चौधरी तो जैसे मौत की आग में जल रही थी।
"मौत की जंग में सब कुछ जायज है मोना चौधरी " देवराज चौहान की आवाज में दरिंदगी झलक रही थी-"तुम पहले मुझे शूट करने जा रही थी। रिवॉल्वर निकल जाने पर तुमने चाकू का इस्तेमाल किया। ऐसे में अब तुम्हारी ही रिवॉल्वर का इस्तेमाल, तुम पर करने का मुझे पूरा हक है।
''मैंने कब कहा कि तुम्हें कोई हक नहीं।" मोना चौधरी फुफकार उठी।
"तुम क्या समझते हो, मैं मौत से डरती हूं। ऐसा सोचा है तो गलत सोचा है तुमने। मैं तो मौत से लड़ती हूं। तुम फायर करोगे तो खुद को बचाने के लिए, मैं मौत से लड़ने की पूरी कोशिश... |
"अब मैं तुम्हें शूट करने जा रहा हूं।
"फायर मत करना देवराज चौहान" पारसनाथ की सपाट खुरदरी आवाज वहां गूंजी।
दोनों की निगाह दरवाजे की तरफ उठी।
चौखट पर जगमोहन खड़ा था और उसके पीछे पारसनाथ। जिसने जगमोहन की पीठ से रिवॉल्वर लगा रखी थी। उसके पीछे महाजन का चेहरा नजर आ रहा था।
यह देखते ही मोना चौधरी की आंखों में तीव्र चमक लहरा उठी।
"रिवॉल्वर फेंक दो।" पारसनाथ पुनः बोला।
"नहीं। "देवराज चौहान भिंचे स्वर में कह उठा।
"दोबारा इंकार किया तो मैं जगमोहन को गोली मार दूंगा। पारसनाथ का लहजा बेहद कठोर हो उठा।
"मार दो। लेकिन यह मत भूलना कि मेरे निशाने पर मोना चौधरी है। अब सोच लो, जगमोहन को शूट करना जरूरी है, तुम्हारे लिए या फिर मोना चौधरी का जिंदा रहना जरूरी है। " देवराज चौहान खतरनाक स्वर में बोला।
पारसनाथ के होंठ भिंच गए। उसके खुरदरे चेहरे पर कठोरता आ ठहरी।
"मोना चौधरी को जिंदा चाहते हो तो जगमोहन पर से रिवॉल्वर हटा लो। " देवराज चौहान उसी लहजे में बोला।
"और तुम रिवॉल्वर पकड़े रहोगे। "
"तुम भी पकड़े रहना।" देवराज चौहान का स्वर सख्त ही था।
मौत की सी खामोशी छा गई वहां। देवराज चौहान और मोना चौधरी ने खूंखार निगाहों से एक दूसरे को देखा।
"जगमोहेन को कमरे में भेजो। " देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा और मोना चौधरी को बाहर ले जाओ।"
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा। इस वक्त इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था। दोनों समझौते के लिए तैयार थे। इधर मोना चौधरी रिवॉल्वर के निशाने पर थी तो उधर जगमोहन ।
"मैं जगमोहन को कमरे के भीतर भेज रहा हूं। " पारसनाथ बोला।
अगले ही पल जगमोहन कमरे के भीतर आया।
मोना चौधरी दरवाजे की तरफ बढ़ी। चौखट पर पारसनाथ सावधानी से रिवॉल्वर थामे खड़ा था। जगमोहन, देवराज चौहान की हद में पहुंच गया और मोना चौधरी पारसनाथ के पास।
चौखट पर पहुंचकर मोना चौधरी ठिठकी और पलटकर, देवराज चौहान को देखा। आंखों में सुलगन थी, चेहरे पर वहशी भाव नाच रहे थे।
"इस बार तो मामला खत्म होते-होते रह गया देवराज चौहान |
दोबारा ऐसा नहीं होगा। "मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
"मेरा ख्याल भी कुछ ऐसा ही है। "देवराज चौहान की आवाज में दरिंदगी थी।
“निकलो बेबी।" पीछे से महाजन का स्वर कानों में पड़ा-"दिन निकल रहा है। "
देवराज चौहान को खा जाने वाली निगाहों से देखने के पश्चात मोना चौधरी सुलगते अंदाज में बाहर निकलती चली गई। पारसनाथ ने सावधानी से दरवाजा बंद किया और बाहर से सिटकनी लगा दी।
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