ग्रीटिंग कार्ड और घड़ी
इंसान के किए हुए कर्म-कांड़ और ग़लतियों के अलावा उसकी वर्तमान स्थिति का कोई ज़िम्मेदार नहीं होता है। वीर भी अपनी ग़लतियों का स्वंय ज़िम्मेदार था। माया ने उस घटना के बाद वीर से बात तक नहीं की थी। अब एक महीना हो गया था। वीर फिर से उन्हीं परिस्थितियों में पहुँच गया था, जहाँ से वापिस लौट आने की उसे उम्मीद अब कम ही थी। वीर ने माया को अनगिनत बार फ़ोन किए, लेकिन माया ने जवाब तक नहीं दिया था। माया के थप्पड़ गाल पर जरूर लगा था, लेकिन चोट उसके दिल पर लगी थी। वीर को अपनी बिन वजह की हुई इस ग़लती का अहसास था, लेकिन अब माया यह सब मानने को तैयार नहीं थी। वीर का जन्मदिन भी जा चुका था, लेकिन माया जो हर बार वीर को इस दिन फ़ोन ज़रूर करती थी, उसने इस बार वीर को फ़ोन भी नहीं किया। वीर को इस बात से माया की नाराज़गी का अन्दाजा हो गया था। वीर फिर से धीरे-धीरे शराब और ड्रग्स में डूब रहा था।
वीर के घरवालों ने वीर का शादी को लेकर वैसे ही उसे परेशान कर रखा था। वे चाहते थे कि वीर अब जल्द से जल्द शादी कर ले, लेकिन वीर उनकी बात सुनता तक नहीं था। उन्होने वीर के लिए एक लड़की पसन्द कर रखी थी, बस, उन्हें वीर की ‘हाँ’ का इन्तज़ार था। अजय ने कई बार वीर को समझाया और शादी करने पर ज़ोर डाला, लेकिन सब व्यर्थ गया।
वीर फिर से माया की यादों में डूब रहा था। वह रोज़ अपनी ग़लती का अहसास करता था और आईने के सामने खड़े होकर माफ़ी मांगता था, लेकिन उसकी आवाज़ अब माया तक पहुँचने वाली नहीं थी।
वीर ने सोच लिया था कि एक बार माया से मिलकर अपनी ग़लती की माफ़ी जरुर मांगेगा और उसे कह देगा कि ये वीर तेरे बिना अधूरा है। यही विचार करते हुए वीर को ख़्याल आया कि माया को एक घड़ी चाहिए थी, जो अब तक वीर ने उसे लाकर नहीं दी थी। वीर ख़ुद पर गुस्सा हुआ कि वो बार-बार ग़लती कैसे कर सकता है? वीर तुरंत बाजार गया और माया के लिए एक घड़ी खरीदकर लाया। अजय ने वीर को हिदायत दी कि माया को एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे। जिसमें ‘सॉरी’ लिखा होना चाहिए तो शायद हो सकता है कि माया तुझे माफ़ कर दे, लेकिन इसकी उम्मीद कम है तेरी ग़लती को देखते हुए। दोनों बाज़ार जाकर एक ग्रीटिंग कार्ड खरीद कर लाए और उसमें वीर ने अपनी ग़लती मानी और ‘सॉरी’ लिखा।
वीर और अजय अगले दिन माया के कालेज जाने के लिए निकल चुके थे। हालांकि अजय ने कहा था कि वीर अकेला ही जाए, लेकिन वीर ने कहा कि तुझे भी साथ चलना पडेगा क्योंकि जब तू वोट में साथ देता है तो चोट में भी देना पड़ेगा। इसलिए अजय भी वीर के कहने पर माया के कालेज जाने के लिए साथ निकल चुका था।
“अबे, तू यह कैसे कर लेता है कि अपनी गर्लफ्रेंड पर ही हाथ उठा देता है? लड़कियाँ कोमल होती है। उन्हे प्यार की ज़रूरत होती है इसलिए उन्हें प्यार से ही रखा जाता है। वो गाना नहीं सुना क्या ‘प्यार दो, प्यार लो’। प्रेमियों का प्यार पारस्परिक होता है। अगर प्यार देगा तो प्यार ही मिलेगा और ग़लती करेगा तो ये तुझसे बेहतर कौन जान सकता है कि फिर नाराज़गी ही मिलेगी।” अजय ने वीर पर तंज कसा।
“मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ और बस यह ग़लती कर बैठा। मैं तो यह सोचता हूँ कि मेरे हाथ क्यूँ नहीं कांपे जब मैंने यह जघन्य अपराध किया।” वीर ने कहा।
“साले, पहले यह हरकत करता तो ठीक था जब वो तेरी ही थी, लेकिन अब उसके साथ ऐसा करना ठीक नहीं है। वैसे भी मैंने कहीं सुना है कि औरत को पैरों के नीचे रखने वाले अक्सर प्यार करते हुए उनके पैरों को भी चूमते हैं।” अजय ने कहा।
“बस, पता नहीं जब भी माया का नाम आता है तो बस लगता है कि वो मेरी ही है, किसी ओर की नहीं। माया किसी ओर की हो चुकी है, मैं इस बात को अभी तक स्वीकार ही नहीं कर पाया हूँ। और मैंने कब उसे पैरों के नीचे रखा, इस बात का मुझसे क्या संबंध है? माया पैरों के नीचे नहीं दिल में वहाँ रहती है जहाँ उसकी जगह हमेशा रहेगी।” वीर ने कहा।
“हाँ, वो तो पता है, लेकिन ये हाथ उठाना जैसी बेवकूफी भरी हरकत मत किया कर। इन चीज़ों की प्यार में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।” अजय ने चलती बाइक पर सिगरेट सुलगाकर कहा।
“हाँ, जानता हूँ, लेकिन ग़लती हो जाती है। इसलिए तो माफ़ी मांगने जा रहा हूँ।” वीर ने सिगरेट पास करने का इशारा करते हुए कहा।
वीर और अजय, दोनों माया के कालेज के बाहर पहुँच चुके थे। कालेज के बाहर से वीर ने माया को बहुत बार फ़ोन किया, लेकिन माया बार-बार फ़ोन काट रही थी। फिर वीर ने माया को मैसेज किया कि वो उसके कालेज के बाहर है और मिलकर उसे कुछ देना चाहता है। माया का कुछ सेकेंड के बाद मैसेज आया कि उसे नहीं मिलना है और न ही उसे कुछ लेना है और बार-बार फ़ोन करने की भी कोई ज़रूरत नहीं है। वीर ने फिर से माया को दो-तीन मैसेज और किए, लेकिन माया ने उन मैसेज का जवाब नहीं दिया।
कुछ देर बाद वीर ने माया को मैसेज किया कि अगर वो बाहर आकर नहीं मिलती है तो वो कालेज के अन्दर आ जाएगा। माया ने मैसेज पढ़ने के बाद वीर को फ़ोन किया और कहा कि वो यहाँ से चला जाए, इस कालेज में वो पढाती है और कोई सीन क्रिएट नहीं करना चाहती है। वीर ने उससे फ़ोन पर अपनी ग़लती का माफ़ी मांगी और कहा कि अगर मिलना नहीं है तो जो तुम्हारे लिए लाया हूँ, वो आकर ले जाओ । माया ने कहा कि वह मिलना ही नहीं चाहती और ना ही उस इंसान का चेहरा देखना चाहती है, जो उस पर हाथ उठाता है। इतना कहकर माया ने फ़ोन काट दिया।
वीर ने फिर से माया को फ़ोन किया और कहा कि अगर तुम बाहर नहीं आती हो तो ठीक है, मैं ही अन्दर आ रहा हूँ। वीर ने इतना कहकर फ़ोन रख दिया। तुरंत माया को मैसेज आया जिसमें लिखा था कि उसे अंदर आने की ज़रूरत नहीं है, वो किसी को बाहर भेज रही है। जो देना है उसे दे दो, लेकिन यहाँ ड्रामा करने की ज़रूरत नहीं है।
अजय ने वीर से कहा कि ठीक ही है, अभी माया तक घड़ी और ग्रीटिंग कार्ड पहुँचा दे, मिल फिर कभी लेना। अब तूने ग़लती जितनी बड़ी की है तो उसकी नाराज़गी भी तो उतनी ही बड़ी होगी।
माया का एक छात्र कालेज के बाहर आया और वीर ने उसे वो पैकेट दे दिया। पैकेट देने के बाद वीर और अजय वहाँ से दिल्ली की तरफ़ निकल गए।
वीर दो दिन तक माया के फ़ोन और मैसेज का इन्तज़ार करता रहा, लेकिन माया ने ना ग्रीटिंग का और ना ही घड़ी का कोई रिस्पोंस दिया। माया की नाराज़गी अभी भी जारी थी। वीर अब भी माया के फ़ोन का इन्तज़ार कर रहा था। कई महीनों तक माया की कोई ख़बर नहीं रही और ना ही उसने कभी वीर को फ़ोन किया। माया की शादी के बाद दोनों का मिलना माया के हिसाब से होता था। उसे जब भी मौक़ा मिलता था तब वह मिलती थी। माया अपनी मर्ज़ी से आती थी और कभी भी कुछ दिनों के लिए ग़ायब हो जाती थी और वीर माया के लिए हमेशा एक अधीर इन्तज़ार में बना रहता था।
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