सैवॉय होटल का भूत

ह किसका भूत था, जिसे राम सिंह (सेवॉय होटल का बारटेंडर) ने पिछली रात देखा था? लम्बे, काले चोगे में एक आकृति जो होटल की मंद रोशनी वाली दहलीज़ में खड़ी थी और फिर पुराने बरामदे की परछाईं में चली गयी। राम सिंह ने आकृति का पीछा किया लेकिन बरामदे में कोई नहीं था और कोई दरवाज़ा या खिड़की नहीं थी जिसके माध्यम से वह इन्सान (अगर वो इन्सान था) बाहर जा सकता था।

राम सिंह पियक्कड़ नहीं था; या उसने ऐसा कहा। वह कल्पनाशील भी नहीं था।

“क्या तुमने इस इन्सान को देखा है—यह भूत—पहले?” मैंने पूछा।

“हाँ, एक बार। पिछली सर्दियों में, जब मैं नृत्य कक्ष (बाल रूम) से गुज़र रहा था। मैंने सुना कोई पियानो बजा रहा है। नृत्य कक्ष के दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था और मैं अन्दर नहीं जा सकता था, न ही कोई और। मैं किनारे खड़ा हुआ और एक खिड़की से देखता रहा, और वह यह आदमी—एक कनटोपे वाली आकृति, मैं उसका चेहरा नहीं देख सका—वह पियानो के सामने स्टूल पर बैठा था। मैंने वहां संगीत बजता सुना और मैंने खिड़की पर हल्का सा खटखटाया। आकृति मेरी ओर घूमी, लेकिन कनटोपा खाली था, वहाँ कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था! मैं अपने कमरे में दौड़ा और दरवाज़ा बन्द कर लिया। हमें वह पियानो बेच देना चाहिए, सर। वहाँ उसे बजाने वाला कोई नहीं था सिवाय भूत के।”

मसूरी के इस पुराने होटल की लगभग हर कहानी में असम्भव चीज़ों का तत्व था तब भी जब वे तथ्यों से समर्थित थे। पहले वाले मालिक, मिस्टर मैकक्लिंटौक की नकली नाक थी—नन्दू के अनुसार, उन्होंने इसे पहले कभी नहीं देखा था। इसलिए मैंने बूढ़े नेगी से जानना चाहा, जो पहले इस होटल में रूम ब्वॉय के तौर पर काम करने 1932 में आया था (मेरे जन्म से कुछ साल पहले) और जो लगभग सात सालों बाद और दो पत्नियों के बाद प्रमुख कार्यालय देखने लगा। नेगी कहता है कि यह बिलकुल सही है।

“मैं रोज़ मैकक्लिंटौक को रात में अन्तिम चीज़ के तौर पर कोको का कप देता था। मैं उनका कमरा छोड़ने के बाद फुर्ती से किसी खिड़की के पीछे जाता और उन्हें देखता जब तक वह बिस्तर पर नहीं चले जाते थे। बत्ती बन्द करने से पहले अन्तिम काम वह करते थे, अपनी नकली नाक हटाना और उसे बिस्तर के बगल वाली मेज़ पर रखना। वह कभी भी उसे पहनकर नहीं सोते थे। मुझे लगता था इससे उन्हें परेशानी होती थी जब भी वह करवट बदलते या अपने चेहरे के बल सोते। सुबह पहला काम, अपनी चाय का कप लेने के बाद, वह उसे फिर पहन लेते। एक महान आदमी, मैकक्लिंटौक साहब।”

“लेकिन उन्होंने अपनी नाक खोयी कैसे?” मैंने पूछा।

“पत्नी ने काट ली,” नन्दू ने कहा।

“नहीं, सर,” नेगी ने कहा, जिसकी सच बोलने की मिसाल दी जाती थी, “वह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन गोली द्वारा घायल हुए। उन्हें क्षतिपूर्ति के तौर पर विक्टोरिया क्रॉस मिला था।”

“और जब वह मरे, क्या उन्होंने अपनी नाक पहन रखी थी?” मैंने पूछा।

“नहीं, सर,” बूढ़े नेगी ने कहा, थोड़ा साँस लेते हुए उसने अपनी कहानी जारी रखी, “एक सुबह जब मैं साहब के लिए चाय का कप लेकर गया, मैंने पाया कि वह मृत पड़े थे, बिना नाक के! वह बिस्तर के बगल वाली मेज़ पर पड़ी हुई थी। मुझे लगा, मुझे उसे वहीं छोड़ देना चाहिए, लेकिन मैकक्लिंटौक साहब अच्छे आदमी थे। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि पूरी दुनिया उनकी नकली नाक के बारे में जाने, इसलिये मैंने उसे वापस उनके चेहरे पर लगा दिया और मैनेजर को सूचना दी। एक प्राकृतिक मौत, अचानक दिल का दौरा। लेकिन मैंने यह बात निश्चित की कि वह अपने ताबूत में जुड़ी हुई नाक के साथ जायें।”

हम सब सहमत हुए कि नेगी सहयोगी के तौर पर एक अच्छा आदमी था, खासकर संकट के समय में।

ऐसा माना जाता है कि मैकक्लिंटौक के भूत ने होटल के गलियारों को ग्रसित कर रखा है, लेकिन मेरा उससे अब भी सामना होना बाकी था। क्या भूत ने अपनी नाक पहन रखी थी? बूढ़ा नेगी ऐसा नहीं सोचता है (नकली नाक के मानव निर्मित होने के कारण) लेकिन उसने भूत को करीब से नहीं देखा था, बल्कि दो विशाल देवदारों के बीच की जगह पर ‘बीयर गार्डन’ के किनारे पर।

काफ़ी लोग जो ‘राइटर्स बार’ में घुसते हैं, बहुत ही गये-गुज़रे और बेहाल लगते हैं और कई बार मुझे ज़िन्दा लोगों और मृत लोगों में अन्तर करने में मुश्किल आती। लेकिन सच्चे भूत वे होते हैं जो अपनी शराब का भुगतान किये बिना वहाँ से रफ़ूचक्कर हो जाते हैं।