“ अब तो यकीन आया तुम्हें कि मैं झूठ नहीं बोल रहा था ?” ठकरियाल ने कहा ।


माऊथपीस से रूमाल हटाते वक्त दिव्या का चेहरा बुरी तरह भभक रहा था । मारे गुस्से के नथुने बार-बार फूल- पिचक रहे थे। ऐसी हालत हो गई उसकी कि बहुत कुछ कहने की इच्छा के बावजूद मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी। पुनः ठकरियाल ने ही कहा ---" उस रात वह ड्रेसिंग में तुम्हारा जिस्म देखने के लिए नहीं - -- बल्कि तुम्हारे निप्पल्स पर जहर लगाने के लिए छुपा हुआ था । यह काम तुम्हारे द्वारा पकड़े जाने से पहले वह कर भी चुका था । तुम्हारी ब्रा की कटोरियों पर जहर टपका चुका था वह । जिसे बाद में तुमने पहना । इस तरह जहर तुम्हारे निप्पल्स पर पहुंच गया। मंसूबा यही था उनका कि राजदान उन्हें चुसककर मर जायेगा और अगली सुबह तुम हत्या के इल्जाम में पकड़ी जाओगी।" 


वह गुर्रा उठी --- “मैं तुम्हारे कहने के बावजूद विश्वास नहीं कर पा रही थी उसने ऐसा किया होगा। यही सोच रही थी - - - शायद तुम भी अवतार की तरह देवांश को उसका हिस्सा देने के पक्ष में नहीं हो इसलिए मुझे इसके खिलाफ भड़का रहे हो । मगर... मगर वह तो वाकई कभी किसी का सगा नहीं हो सकता।"


“ इसीलिए मेरी सलाह है --- तुम्हें देवांश का नहीं, अवतार का साथ देना चाहिए | "


दिव्या के जबड़े कसे रहे।


“ भले ही वह क्रिमिनल सही । बैंक लुटेरा और हत्यारा सही लेकिन जैसा कि पहले ही बता चुका हूं ।” एक पल ठहरकर ठकरियाल ने पुनः कहा--- "तुम्हारा दीवाना हो चुका है। सचमुच शादी करना चाहता है तुमसे । घर बसाना चाहता है। जिस स्टेज पर तुम उस पर ऐसा आदमी मिला.."


“ उसके बारे में बाद में सोचूंगी इंस्पेक्टर । फिलहाल मुझे देवांश के बारे में सोचना है।”


“ उसके बारे में सोचने के लिए क्या अब भी कुछ रह गया है ?"


“इतनी आसानी से पीछा नहीं छोडूंगी मैं उसका ।”


“मतलब?”


“राजदान के क्लोन की बातों में आकर उसने मुझ पर रिवाल्वर ताना। अपने स्वार्थ की खातिर मुझे उन दरिन्दों के बीच नंगी नचाने को तैयार हो गया । इस सबके लिए मैं उसे माफ कर सकती थी मगर उस गुनाह के लिए कभी माफ नहीं कर सकती जिसका रहस्य मुझ पर अभी-अभी खुला है। राजदान की हत्या के इल्जाम में मुझे ही फांसी करा देना में चाहता था हरामजादा । नहीं! वह किसी हालत में माफी का हकदार नहीं है। ऐसे कमीने को तो..


दांत पीसकर रह गई वह । सेन्टेंस अधूरा छोड़ दिया। ।


“क्या कहना चाहती हो ?” ठकरियाल ने पूछा ।


“इंस्पेक्टर !” दिव्या के जबड़े भिंच गये ---“मैं उसका खात्मा चाहती हूं ।” 


“दिव्या !” ठकरियाल ने अपने हलक से चीख सी निकाली ---- “ ये क्या कह रही हो तुम?”


“नहीं..। वह इस दुनिया में और सांसें लेने का अधिकारी नहीं है । "


“लेकिन... ।” ठकरियाल ने जानबूझकर इस शब्द से आगे कुछ नहीं कहा।


“वैसे भी । ” दिव्या अपनी ही धुन में गुर्राती चली गई ---“अब जबकि हम तीनों उसका हिस्सा न देने के अंतिम फैसले पर पहुंच चुके हैं, उसे जिन्दा नहीं छोड़ा जा सकता। जिन्दा रहा और उसे उसका हिस्सा नहीं मिला तो बखेड़ा करेगा । एस. एस. पी. के पास पहुंचकर सारे भेद खोल देगा ।”


" बात तो ठीक है । मगर..


“क्या बार-बार एक ही शब्द पर अटक रहे हो?” "


“होगा कैसे ?”


“तरकीब तुम सोचो । करूंगी मैं ।”


“त-तुम?”


“हां मैं। मैं अपने हाथों से सजा दूंगी उस कमीने को ।” दिव्या के चेहरे पर इस वक्त नफरत का ज्वालामुखी धधकता नजर आ रहा था--- “मेरी जिन्दगी को तबाही के रास्ते पर पटकने वाला वही है। वही है वह जो इतने दिनों तक मेरे शरीर को भोगता रहा और मुझे इल्म तक नहीं होने दिया कि एक दिन उसी ने मुझे फांसी पर चढ़ाने के सारे इन्तजाम कर लिये थे। मुझे तुम्हारी मदद चाहिए इंस्पेक्टर । केवल इतनी मदद कि वे हालात क्रियेट कर दो जिनमें मैं अपने सीने में धधकती आग को शांत कर सकूं।" 


होठों पर छुपी सी मुस्कान लिए ठकरियाल ने कहा--- "देखा जाये तो हालात क्रियेट हो चुके हैं। "


“मतलब?”


“अभी-अभी फोन पर हुई वार्ता के मुताबिक वह रात के ग्यारह बजे विचित्रा से मिलने बैण्ड स्टैण्ड पर पहुंचेगा।" ठकरियाल कहता चला गया --- "हालांकि पहले वहां जाने का हमारा कोई इरादा नहीं था मगर अब... सचमुच एक स्टीमर खड़ा किया जा सकता है । जगह भी सबसे माकूल वही रहेगी उसके खात्मे की । लाश को समुद्र में डाल देना । जिस तरह आज तक विचित्रा और उसकी मां की डैड बॉडी नहीं मिली, उसी तरह उसकी भी नहीं मिलेगी। आहार बन जायेगी मछलियों की । लोग सोचेंगे -वह कर्जदारों के डर से कहीं भाग गया है।"


“यही ठीक रहेगा लेकिन..


“अब तुम अटकने लगीं इस शब्द पर । "


“मुझे एक मददगार की जरूरत होगी।”


“क्यों?”


“कहीं भी कोई गड़बड़ हो तो संभाली जा सके।"


“अवतार इस मामले में तुम्हारा सबसे बेहतरीन मददगार साबित हो सकता है । "


“नहीं । अभी मैं उसे अपने साथ किसी काम में इन्वाल्व नहीं करना चाहती ।”


"वजह?”


“विश्वास के काबिल नहीं लगता वह मुझे । ”


“तो बाकी बचा मैं ।”


“ और एक रिवाल्वर ।” दिव्या के चेहरे पर चट्टानी कठोरता विराजमान थी । 


***


“ शुरू में तो इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थी कि देवांश ने राजदान की हत्या की मंशा से उसके निप्पल्स पर जहर लगाया था ताकि वह हत्या के इल्जाम में पकड़ी जाये। तब मैंने उसी तरकीब का इस्तेमाल किया जो तुमने बताई थी। कहा --- 'तुम विचित्रा बनकर खुद देवांश से फोन पर बात कर सकती हो ।' वह बोली --- 'भला मैं विचित्रा की मैं आवाज़ में कैसे बोल सकती हूं?' तब मैंने उसे माऊथपीस पर रुमाल रखकर बात करने की सलाह दी । कहा --- 'इस तरह कम से कम तुम्हारी आवाज तो पहचान नहीं पायेगा वह | विचित्रा को मरे छः महीने से ज्यादा हो चुके हैं। इतने अर्से बाद फोन पर किसी की आवाज के बारे में कन्फ्यूजन हो सकता है।'


“तो उसने बात की ?” अवतार ने पूछा ।


"हां ।”


“उसके बाद ?”


“ उसके बाद तो ऐसी भड़की कि मुझे उसे देवांश के मर्डर तक लाने के लिए जरा भी मेहनत नहीं करनी पड़ी बल्कि अगर यह कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, खुद वही उसके खात्मे की तलबगार हो उठी। उसे अपने ही हाथों से मारकर अपने कलेजे की आग ठंडी करना चाहती है । "


" इससे बेहतरीन सिच्वेशन और हमारे लिए क्या होगी?” बड़ी ही जानदार मुस्कान के साथ कहने के बाद अवतार ने सिगरेट में एक भरपूर कश लगाया, गाढ़े धुवें से ठकरियाल के फ्लैट के ड्राइंगरूम को दूषित करता बोला--- "मुझे यही उम्मीद थी । ठीक यही कि उस सबके जानने के बाद वह पूरी तरह भड़क उठेगी ।”


“दिव्या ने केवल एक रिवाल्वर और मेरा साथ चाहा है।"


“वो तो हमारे प्लान के मुताबिक भी तुम्हें रहना ही था ताकि पासे अगर उल्टे पड़ने लगें तो तुम संभाल लो ।”  


“पाले उल्टे पड़ने से मतलब?”


“भूल गये विचित्रा और उसकी मां का अंत? तुम उन्हें बड़े कॉन्फिडेंस के साथ मारने के लिए समुद्र के बीच में ले गये थे । मगर एक बार को तो वहां ऐसे पाले पलटे कि उल्टी वे ही दोनों तुम पर हावी हो गईं। जान बचाने के लाले पड़ गये थे तुम्हारे सामने | बड़ी मुश्किल से उन पर काबू पाकर अपने मिशन में कामयाब हो सके।”


चौंकते हुए ठकरियाल ने पूछा---“तुम्हें यह सब कैसे मालूम ?”


“अखिलेश को लिखे हुए राजदान के लेटर में सब लिखा

है।"


“इतने विस्तार से ?”


“हर घटना विस्तार से लिखी है उसने ताकि उसके दोस्तों को एक-एक बात पता रहे । विचित्रा और उसकी मां का काम तमाम करके लौटने के बाद तुमने राजदान को सारी घटना डिटेल में सुनाई होगी । लेटर में उसने उसी अंदाज में लिखी है।"


“ओह!'


“तुम मर्द थे | दिव्या बेचारी तो फिर भी औरत है। क्या देर लगती है पासे पलटते! पता लगा--- मारना दिव्या देवांश को चाहती थी मगर देवांश दिव्या को मार बैठा । ऐसा हो गया तो पांच करोड़ हमेशा के लिए गर्क हो जायेंगे। ठन-ठन गोपाल बनकर रह जायेंगे हम सब । बहरहाल, बीमे की रकम आनी तो दिव्या के एकाउन्ट में ही है। वह न रही तो..


“शुभ - शुभ बोलो।”


“इसीलिए तुम्हारा वहां रहना जरूरी है। ताकि पासे अगर पलटने लगें तो उन्हें फिर उलट दो । याद रहे ---- देवांश की लाश समुद्र में गर्क करके ही लौटना है तुम्हें ।”


“तुम भी साथ रहते तो क्या बुराई थी ? ”


“ मैं ऐसे कामों से तब तक दूर ही रहता हूं जब तक दूर रहकर काम चलता रहे।" कहते वक्त अवतार के रसभरे होठों पर चित्ताकर्षक मुस्कान थी--- "मेरे प्रतिनिधि के रूप में तुम जो होगे ।”


"ठीक है प्यारे, जब तक सारे सुबूत तुम्हारे कब्जे में हैं---तब तक चलाते रहो हुक्म ।” ठकरियाल कहता चला गया --- “करना ही पड़ेगा वह जो कहोगे मगर, सतर्क रहना । बता चुका हूं--- वे चारों जमानत पर छूट गये हैं।" 


***


“जमानत हो जाने का मतलब ये नहीं है हम उनके जाल से निकल गये।” कहने के साथ अखिलेश बड़ी गहराई से कुछ सोचता हुआ महसूस हो रहा था --- “जल्द ही कुछ करना होगा वरना सारे मौके हमारे हाथों से निकल चुके होंगे ।”


“ये ठकरियाल भी साला निकला वाकई ऊंची चीज । " वकीलचंद कह उठा --- “राजदान ने अपने लेटर में बार-बार उसके लिए ‘ब्रिलियेन्ट’ शब्द यूज किया था | क्या कहानी बनाई है कम्बख्त ने ! वकील होने के बावजूद मैं सोच तक नहीं सकता था कि उन्हीं घटनाओं के आधार पर हमें ही मुल्जिम बनाकर कोर्ट में पेश किया जा सकता है जिन्हें हम अपने फेवर में बता रहे थे । जैसे बबलू, स्वीटी, सत्यप्रकाश और सुजाता के किडनैपर्स साबित कर दिया पट्ठे ने हमें ।”


“ये सब उस साले अवतार की वजह से हुआ है जिसकी आंखों में बचपन की दोस्ती का कोई लिहाज ही नहीं निकला ।” भट्टाचार्य ने कहा --- “विश्वास में अंधे हुए रहे हम । हमें उसी वक्त उसके टेक्ट समझ जाने चाहिए थे जब वह दिव्या पर थूकने के लिए हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ था।"


"सबसे ज्यादा फिक्र तो मुझे बबलू की हो रही है ।” समरपाल बोला --- “हम लोग जमानत पर छूट गये । सत्यप्रकाश, सुजाता और स्वीटी को ठकरियाल ने मुल्जिम बनाया ही नहीं मगर मुख्य मुल्जिम होने के कारण अदालत ने बबलू की जमानत मंजूर नहीं की। जेल चला गया बेचारा । उस वक्त पहली बार मैंने उस लड़के के चेहरे को पीला पड़ते देखा था। राजदान का सारा प्लान तो बिखर ही चुका है। अब उस बेकसूर को बचाना हमारी ड्यूटी है । "


“इसीलिए तो कह रहा हूं।" अखिलेश बोला--- "पुरानी बातों को दोहराते चले जाने से कोई फायदा नहीं। आगे के बारे में सोचना चाहिए | वक्त हाथ से निकल गया तो न खुद को बचा सकेंगे, न बबलू को ।” 


“ किया क्या जाये ?”


“किसी भी तरह से सारे सुबूत पुनः हासिल करने के अलावा कोई चारा नहीं है।”


“सुबूतों को अपने पास छोड़ा ही क्यों होगा उन्होंने?”


“मतलब?”


“ मेरे ख्याल से तो नष्ट कर दिये होंगे ताकि..


“नहीं।" अखिलेश बोला --- "अवतार ने उन्हें नष्ट नहीं किया होगा । उस वक्त तक करेगा भी नहीं जब तक बीमा कम्पनी से मिलने वाली रकम हड़प न ले ।”


" बात समझ में नहीं आई।”


“मेरा एक्सपीरियेंस कहता है --- अपराधियों के बीच पड़ी रकम हमेशा बंदरों के बीच पड़ी गुड़ की भेली साबित होती है। एक भी बंदर गुड़ की भेली को खा नहीं पाता जबकि सभी उसे खाने के फेर में आपस में लड़ मरते हैं । अवतार के पास जो भी सुबूत हैं उन्हें वह तब तक किसी हालत में नष्ट नहीं कर सकता जब तक उसके हाथ इच्छित रकम न लग जाये। उन सुबूतों का इस्तेमाल वह दिव्या, देवांश और ठकरियाल पर हावी होने के लिए करेगा। एक तरह से ब्लैकमेल करेगा उन्हें। कहेगा--- अगर तुमने मुझे मेरी इच्छित रकम नहीं दी तो ये सारे सुबूत पुलिस के पास पहुंच जायेंगे ।"


“इस धमकी से डरकर तो वे पांच के पांच करोड़ उसके हवाले कर सकते हैं।"


“वे चाहें भी तो इतना आसान नहीं होगा।"


"कारण ?”


“दिव्या और देवांश के अपने हालात हैं। जिस आर्थिक संकट में इस वक्त वे है, उसमें उन्हें पैसा चाहिए ही चाहिए। दूसरी तरफ ठकरियाल है जो किसी कीमत पर अपना हिस्सा नहीं छोड़ेगा । ऐसी अवस्था में केवल तभी तक सबकुछ ठीक-ठाक रहता है जब तक कोई ओवरस्मार्ट न बने । लालच में न फंसे । ईमानदार बना रहे। यह न सोचे--- किसी और का हिस्सा या सारी रकम ऐंठ सकता हूं। मगर, अपराधियों में ऐसी प्रवृति जरा कम ही पाई जाती है। निन्यानवे परसेन्ट केसों में झगड़े होते हैं। इसलिए मैंने ऐसे लोगों के बीच पड़ी रकम की तुलना बंदरों के बीच पड़ी गुड़ की भेली से की है। हमें उनके बीच होने वाले इन्हीं हालात का फायदा उठाना है।"


“कैसे?”


“ एक ही रास्ता है - - - इन सब पर नजर रखी जाये ।”