“लेकिन... कर्मचारी थोडे ही है ?" H प्रभूदयाल बोला- "राजप्रकाश बैंक का


" बैंक के उस ड्राईवर को याद कीजिये जो रुपया ले जाने वाले ट्रक को चलाया करता था। अगर उस ड्राईवर की मूंछे उखाड़ दी जायें तो क्या वह राजप्रकाश बन जाता ? राजप्रकाश की हैण्डराइटिंग और हो सके तो फिंगर प्रिन्ट भी मिलाकर देखिये ।"


"शायद आप भूल रहे हैं कि ड्राईवर को कभी भी बैंक के भीतर नहीं जाने दिया जाता था।" - प्रभू ने कहा ।


"मुझे याद है, लेकिन मैंने पहले भी कहा था कि चोरी में कम से कम दो आदमियों का हाथ था। दूसरा आदमी जरूर बैंक में जा सकता होगा।"


"दूसरा आदमी कौन हो सकता है ?"


"डॉक्टर स्वामी बैंक के कर्मचारी नहीं हैं लेकिन बैंक का डॉक्टर होने के नाते उनका भी बैंक से कम सम्बन्ध नहीं है और ऐसा सुना गया है कि चोरी वाले दिन, चोरी से आधा घंटा पहले डॉक्टर स्वामी अपनी नर्स सरोज के साथ बैंक में मौजूद थे।"


"क्या डॉक्टर स्वामी जैसा सम्माननीय व्यक्ति चोरी


जैसे घृणित काम में सहायता कर सकता है ?"


"मैंने यह कब कहा है ?"


"तो फिर ?"


"अगर आप चाहें तो आप मेरे साथ डॉक्टर के क्लिनिक तक चल सकते हैं । "


"वहां क्या होगा ?"


"वहां चलकर देखियेगा ।"


तीनों रामसिंह की जीप पर डॉक्टर के क्लिनिक पर पहुंच गए। डॉक्टर क्लिनिक में था। सरोज उन्हें फौरन ही डॉक्टर के पास ले गयी।


"डॉक्टर साहब !" - औपचारिकता निभा चुकने के बाद सुनील बोला- "हम आपको अंतिम बार कष्ट देने आये हैं।"


"फरमाइये !" - डॉक्टर असमंजसपूर्ण स्वर में बोला । "आपके यहां एक्सरे की मशीन है ?"


" जी हां है । "


"वह कौन से कमरे में रखी हुई है ?"


"बगल वाले कमरे में ।"


"कल जब हम आये थे, जिस समय आप ऑपरेशन में

व्यस्त थे, तब हम किस कमरे में बैठाये गए थे ?"


"एक्सरे की मशीन वाले कमरे के साथ ही जुड़े हुए एक कमरे में ।"


"अगर एक्सरे की मशीन चालू हो तो क्या जिस कमरे में हम बैठे हैं वहां एक्सरे का कैमरे में बंद फिल्म पर असर हो सकता है ?"


"फिल्म बरबाद हो जायेगी, सुनील साहब, एक्सरे उस दीवार पर आसानी से गुजर सकती है और दूसरे कमरे में रखे हुए कैमरे की फिल्म को बरबाद कर सकती है। बगल वाले कमरे में रखी हुई मशीन, जिस कमरे में आप बैठे थे, वहां से दिखाई नहीं देती है।"


"अगर आपके क्लिनिक के किसी व्यक्ति को यह मालूम हो कि हमारे साथ जो कैमरा था, उसमें कोई ऐसा तथ्य निहित है जो उसके लिये घातक सिद्ध हो सकता है और अगर वह कैमरे में पड़ी रील को बर्बाद करना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है न ?"


"कर सकता है, लेकिन मेरे क्लिनिक में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ऐसी हरकत करे।"


"जरा सरोज को बुलाइये ।"


डॉक्टर ने घंटी बजाई। क्षण भर में ही सरोज डॉक्टर के सामने आ खड़ी हो गई ।


"इन्स्पेक्टर साहब !" - सुनील ने प्रभूदयाल को संबोधित करते हुए कहा- "राजप्रकाश की सहयोगिनी आपके सामने है । "


सरोज के सिर पर जैसे बम-सा फटा । उसने एक बार सहमी हुई दृष्टि से सबकी ओर देखा और फिर यकायक किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर उलटे पांव वापिस भागी । लेकिन वह कमरे से निकलने भी नहीं पायी थी कि प्रभूदयाल ने दौड़कर उसकी कलाई पकड़ ली।


डॉक्टर स्वामी अवाक्-सा बैठा सब-कुछ देख रहा था


***


रमा खोसला, रमाकांत, प्रमिला, डॉक्टर स्वामी, प्रभूदयाल तथा रामसिंह सुनील के फ्लैट में बैठे हुए थे।


" मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी नर्स ही सारे फसाद की जड़ थी ।" डॉक्टर स्वामी ने कहा । -


"आपकी नर्स के कारण ही तो जयनारायण को चोरी का शक आप पर था । उसे मालूम था कि चोरी के आधे घन्टे पहले आप बैंक में थे और आपका पेशा आपके लिए ऐसी ओट था कि कोई आप पर सन्देह कर ही नहीं सकता था । लेकिन उसे यह भूल जाता था कि सरोज भी तो आपके साथ बैंक जाती थी और उसे भी गड़बड़ करने का पूरा मौका था । जयनारायण ने रमा को शायद बता दिया था कि वह आप पर शक करता है, और इसीलिए रमा आपको इस विषय में कुछ बता नहीं पाती थी, क्योंकि जयनारायण नहीं चाहता था कि जब तक उसे आपके अपराधी होने का पक्का सबूत न मिल जाये, यह बात आपके कानों तक पहुंचे। ठीक है न रमा । "


रमा ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया- "मैं यह

सब बातें डायरी में लिखा करती थी, इसीलिए मैं कार चोरी जाने पर घबरा गई थी कि कहीं ये सब डाक्टर बेहद को पता न चल जाये।"


"लेकिन चोरी हुई कैसे ?" - रामसिंह ने पूछा ।


"मैं बताता हूं" - डाक्टर जल्दी से बोला "बैंक के चपरासी से लेकर प्रेसिडेंट तक ट्रीटमेंट के लिए मेरे पास आते थे और कभी-कभी उन्हें चैकअप के लिए अपने कपड़े भी उतारने पड़ते थे। सरोज इन सबकी जेबें टटोलती होगी और इसी प्रकार उसने राजप्रकाश के कहने पर ट्रक के कैश कम्पार्टमेंट की चाबियां और रुपयों वाले बक्सों की मोहरों के सांचे तैयार कर लिए होंगे, चोरी से आधे घन्टे पहले चैकों की फाइल चुराई होगी। फिर उन्होंने एक वैसा ही नकली बक्सा तैयार किया होगा जिसमें उन्होंने पुराने चैक भर दिए होंगे और जमनादास और जयनारायण की नकली मोहरें उस पर जड दी होंगी और मौका मिलते ही बक्से बदल दिये होंगे । क्यों साहब ठीक है न ? " -


"ख्याल है" - सुनील ने कहा- "जयनारायण की तरकीब यह थी कि अगर रमा लम्बी-लम्बी रकमें खर्च करके यह प्रकट करे कि चोरी का माल उसके पास है तो असली अपराधी कभी न कभी उसको फंसाने की चेष्टा करेगा ही। इसलिए उन्होंने रमा की कार चुराई क्योंकि वह जानते थे कि चोरी के कुछ नोट रमा की कार में छुपा दें, लेकिन बाद में उन्होंने इरादा बदल दिया क्योंकि ऐसी सूरत में रमा के लिये यह सिद्ध करना आसान हो जाता कि चोरी का रुपया उसकी कार में किसी और द्वारा रखा गया है। इसके बाद में उन्होंने रुपया छुपाने के लिये रमा का लेक होटल का कमरा चुना । जयनारायण चल ठीक लाइन पर रहा था, लेकिन उसने यह गलती की कि अपनी बुद्धि के अनुसार उसने अपराधी तो पहले छांट लिया और फिर उसका अपराध सिद्ध करने की चेष्टा की । इसीलिये उसका ख्याल डाक्टर स्वामी में ही उलझा रहा और सरोज का उसे ख्याल भी न आया ।"


साथ ही जयनारायण राजप्रकाश से भी सम्पर्क स्थापित किये हुए था। जिस रात मैं जयनारायण से मिलने गया था उस रात राजप्रकाश भी उसकी कोठी की निगरानी कर रहा था। उसने मुझे खिड़की का ड्रेप खींचते हुए देखा, लेकिन उसे पुलिस की भांति यह सन्देह नहीं हुआ कि मैं किसी को संकेत दे रहा हूं। वह फौरन समझ दया कि मैं उन नोटों से पीछा छुड़ाने की चेष्टा कर रहा हूं जो उसने बड़ी मुश्किल से मुझे फंसाने के लिए मेरे पास भिजवाये थे।”


“लेकिन उसने चोरी के नोट तुम तक कैसे भिजवाये थे ?" - डाक्टर ने पूछा ।


"जयनारायण तो आपको अपराधी मानता था इसलिए शायद उसने राजप्रकाश को यह बता दिया था कि रमा मुझे पन्द्रह सौ रुपये भेजने वाली है। राजप्रकाश एक मेकअप का सामान किराये पर देने वाली कम्पनी से चपरासी की वर्दी किराये पर लाया। लेकिन वर्दी बहुत छोटी थी, इसलिए उसने दोबारा वर्दी लाने की जहमत से बचने के लिए वही वर्दी पहनाकर सरोज को यूथ क्लब भेज दिया । "


"मेरे जयनारायण की कोठी से निकलने के बाद " सुनील क्षण भर रुककर बोला "राजप्रकाश कोठी में घुसा होगा। उसी समय रमा की टैक्सी वहां पहुंची होगी और जयनारायण किचन में गया होगा। उस समय मौका जानकर राजप्रकाश ने ड्रेप नीचे खींचकर रुपये निकाले जिसे राकेश रमा के लिए सिगनल समझा । उसी समय जयनारायण वापिस आ गया होगा और उसने राजप्रकाश को रुपये निकालते हुए देख लिया होगा और उससे एक्सप्लेनेशन मांगी । राजप्रकाश अपनी पोजीशन साफ नहीं कर सका होगा और उसने यह महसूस किया होगा कि जयनारायण अब डाक्टर को छोड़कर उस पर शक करने लगा है। तो उसने अपने को सुरक्षित रखने के लिये जयनारायण की हत्या कर दी होगी ।"


"दुख तो इस बात का है" - रमा भरे हुए स्वर में बोली "कि जिसने अपराधी तक पहुंचने के लिए मेरी इतनी सहायता की और मुझ पर इतना रुपया खर्च किया, अब वही हमारे बीच में नहीं है । "


रमा जयनारायण की बात कह रही थी।


"देखो रामसिंह" - सुनील क्षण भर बाद प्रभुदयाल पर व्यंग्य करने की नीयत से बोला- "पुलिस की खोजबान में जरा-सी लापरवाही दिखाने की देर भर होती है कि कोई न कोई बेगुनाह रगड़ा जाता है, ये लोग अपराधी को जल्दी से जल्दी पकड़कर वाहवाही लूटने की फिराक में होते हैं और जो पहला इंसान उनके हत्थे चढ़ता है उसी पर दोष मढ़ देते हैं और सन्तुष्ट हो जाते हैं कि उन्होंने अपने कैरियर में तरक्की की एक और सीढी पार कर ली है। जमनादास खोसला को अपनी जिंदगी के बेहतरीन पांच साल जेल में गुजारने पड़े, क्योंकि वह आसानी से पुलिस के हत्थे चढ़ गया और पुलिस ने आनन-फानन उसे सजा दिलवाकर अपनी कार्य तत्परता का सिक्का जमा दिया, फिर भी जमनादास खुशकिस्मत है कि पांच साल बाद तो वह जेल से वापिस आ ही रहा है, न जाने कितने दूसरे बेगुनाह जन्म भर के लिए खुले आसमान की छांव से वंचित रह जाते हैं, और न जाने कितने ऐसी जगह पहुंचा दिए जाते हैं जहां से वह बेगुनाह सिद्ध हो जाने के बाद भी लौटकर नहीं आ सकते ।"


प्रभूदयाल का सिर झुक गया ।


***

समाप्त