सबने भोना चौधरी को देखा। मोना चौधरी ने सब को ।


हर कोई सावधान था। जगमोहन के अलावा सब के हाथों में रिवाल्वरें थीं। सब खा जाने वाली निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे। तनाव से भरा माहौल था इस वक्त ।


पारसनाथ और रुस्तम राव नजर नहीं आ रहे थे। “छोरे!” मोना चौधरी को घूरते बांकेलाल राठौर ने कठोर स्वर में पुकारा | 


“बाप!” कुछ कदम दूरी से झाड़ियों के पीछे से आवाज आई।


“मोना चौधरी तो म्हारे सामने हौवे । 'वड' दूं क्या ?"


"वाप! बच्चे की जान जाएला ।"


बांकेलाल राठौर दांत भींचे मोना चौधरी को देखने लगा। मोना चौधरी की निगाह जगमोहन पर जा टिकी । “अब तुम लोग मेरी जान लेने की कोशिश नहीं कर सकते।" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी।


“किस्मत अच्छी थी जो तुम बच गईं।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा - "लेकिन तुम या पारसनाथ भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ऐसा कुछ हुआ तो यहां कोई भी नहीं बचेगा।"


“यही बात मैं तुमसे कहने वाली थी।" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी-“लेकिन तुम लोगों ने मेरी जान लेने की जो कोशिश की है, वो बहुत ही गलत रही। ऐसा करके तुम लोगों ने नये मामले की शुरूआत कर दी है। "


“मामला तो शुरू होना ही था। हम करते शुरू या देवराज

चौहान ।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा-“वो तुम तक कभी भी पहुंच सकता है और हम उसके साथ हैं। " 


"ये बहुत अच्छा रहा कि इस बात की जानकारी मुझे पहले हो गई।”


सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर कश लिया। वो गम्भीर था ।


"एक बात याद रखना मोना चौधरी ।" जगमोहन मौत भरे स्वर में कह उठा- "अगर पेशीराम की बात सच हो गई। तुम्हारे साथ झगड़े में देवराज चौहान की जान चली गई तो बचोगी तुम भी नहीं । तब हमारी जिन्दगी का एक ही लक्ष्य होगा और वो लक्ष्य तुम्हारी मौत पर जाकर ही खत्म होगा।”


“मुझे मौत का डर मत दिखाओ जगमोहन।" मोना चौधरी गुर्रा उठी ।


“तम तो तोप होवो। थारो को डर क्यों लगो हो ?” 


“ये झगड़ा खत्म नहीं हो सकता," सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहाँ ।


“खत्म ?” मोना चौधरी का स्वर तीखा हो गया- “अभी तो तुम लोग मेरी जान लेने जा रहे थे और अब झगड़ा खत्म करने को कह रहे हो। तुम्हें लगता है कि तुम सही कह रहे हो। उधर देवराज चौहान मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आ चुका है। अच्छा हुआ जो आ गया। कभी तो हार-जीत का फैसला होना ही था। इस बार हो जायेगा ।”


सोहनलाल कुछ कहने लगा कि पारसनाथ की आबाज आई। 


“यहां से निकल जाओ मोना चौधरी ”


मोना चौधरी ने होंठ भींचे सबको देखा फिर दांत भींचे कह उठी। 


“हम लोग अब जल्दी मिलेंगे।" इसके साथ ही मोना चौधरी अपने कार की तरफ बढ़ी।


“रुस्तम राव को छोड़ दो पारसनाथ ।” जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा ।


“मोना चौधरी को यहां से चले जाने दो।"


देखते ही देखते मोना चौधरी कार में बैठी इंजन स्टार्ट किया । जैसे-तैसे बैक किया और सबको चुभती निगाहों से देखते हुए कार को सड़क की तरफ लेती चली गई। ही पलों में कार के इंजन की आवाज आनी बंद हो गई।


“रुस्तम राव को छोड़ो।” जगमोहन ने पुनः कहा । “मेरी कार सड़क पर खड़ी है।" पारसनाथ की आवाज आई- “रुस्तम राव मेरे साथ सड़क तक जायेगा। वहां से में अपनी कार लेकर चला जाऊंगा।”


"म्हारो बात सुन लयो । अंम थारा रैस्टोरैंट जानो हो । थारो ऊपर वालो ठिकानो जानो हो। छोरे का बालो भी टेढ़ा हुओ तो थारो खैर नहीं। 'वड' दूंगा । थारी मोना चौधरी भी थारे को न बचायो सको।"


“ऐसा कुछ नहीं होगा।” पारसनाथ का सपाट स्वर सुनाई दिया - "झगड़े का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं रुस्तम राव को लेकर सड़क की तरफ जा रहा हूं तुम में से किसी ने भी उस तरफ आने की कोशिश की तो बात खराब हो सकती है । " 


“तुम जाओ।" जगमोहन ने कहा- "हम यहीं खड़े हैं। "


फिर पारसनाथ और रुस्तम राव के पैरों की आहटें सुनाई दीं। वो सड़क की तरफ बढ़ रहे थे। कुछ मिनट के बाद कार स्टार्ट होने और जाने की आवाज सुनाई दी।


“बाप !” रुस्तम राव का सड़क से आता स्वर कानों में पड़ा- “वो जाईला ।”


तीनों सड़क की तरफ बढ़ गये ।


मोना चौधरी बच निकली थी। वो जानते थे कि ये गलत हुआ। झगड़े की बुनियाद गहरी हो गई थी। इसके साथ ही मोना चौधरी जान चुकी थी कि उसे शूट करने के लिए देवराज चौहान दिल्ली में आ चुका है।


***


मोना चौधरी के मस्तिष्क में सिर्फ देवराज चौहान ही था कि वो उसकी हत्या करने के लिए दिल्ली आ चुका है। उसे इस बात का पूरी तरह एहसास था कि देवराज चौहान से मुकाबला करना, लोहे के चने चदाना है। लेकिन ये बात जानने के बाद उसे राहत-सी मिली थी कि पेशीराम ने देवराज चौहान से पहले ही कह दिया था कि मोना चौधरी के साथ हुए झगड़े में इस बार देवराज चौहान की जान जायेगी। 


परन्तु इसका ये मतलब नहीं कि वो लापरवाह हो गई थी ।

वापस फ्लैट पर लौटते समय सतर्क थी वो।


जगमोहन ने उसकी जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जाने बाद में क्या होना था। ये तो पारसनाथ के आने की वजह से बात रुक गई थी। मोना चौधरी समझ चुकी थी कि अब उसे कदम-कदम पर सतर्क रहना है। देवराज चौहान कभी भी, किसी भी रूप में उसके करीब आ सकता था।


अपार्टमेंट की पार्किंग में अपनी कार छोड़कर वो अपने फ्लैट पर पहुंची। ये विचार बार-बार उसके मस्तिष्क से टकराने लगा कि देवराज चौहान उसके फ्लैट में भी मौजूद हो सकता है। देवराज चौहान को इस फ्लैट के बारे में नहीं मालूम। लेकिन अपने किसी सोर्स से मालूम कर सकता है उसके फ्लैट के बारे में।


तभी उसे नंदराम सकलानी नजर आया। जिसने कि अभी-अभी दरवाजा खोलकर, आदत के मुताबिक मुंडी को थोड़ी सी बाहर निकालकर इधर-उधर देखा था। मोना चौधरी को आता पाकर पूरा दरवाजा खोलकर दरवाजे की चौखट पर खड़ा हुआ और दांत फाड़कर कह उठा ।


“मोन्ना डार्लिंग! बोत टेम पर आया नी। बियर वियर मारने का मन हो रहा था। फ्रिज में लगा बियर चिल्ड हुआ पड़ा है नी । अन्दर आ-जा वड़ी। मारते हैं।”


मोना चौधरी उसके पास पहुंचकर ठिठक चुकी थी। “नंदराम जी ।” मोना


चौधरी मीठे स्वर में कह उठी। “आह ।” नंदराम छाती पर हाथ रखकर, गहरी सांस लेकर कह उठा- “साईं तेरे को कित्ती बार कहा है नी। नंद डार्लिंग बोला कर वड़ी। बोत अच्छा लगेगा।"


“नंद डार्लिंग ।”


“आह । इत्ते में ही काम हो गया नी।" नंदराम ने दूसरा हाथ भी छाती पर रख दिया- “बियर वियर अब कल मारेगा नी ।" 


“मेरा एक काम तो कर दो।” 


“एक क्या, पचास काम बोल नीन आह ।” 


मोना चौधरी ने चाबी निकालकर उसकी तरफ बढ़ाई | 


“ये मेरे फ्लैट की चाबी है। लॉक खोलकर फ्लैट के भीतर हो आओ।"


“ऐसा क्यों करूं नी ?" 


“देखना कोई भीतर तो नहीं है । " 


“किसी ने आना था वड़ी ?” 


“मालूम नहीं । तुम देखो जाकर। छोटा-सा काम है। तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी।"


“सांई मैंने कब मना किया नी।" 


कहते हुए चाबी लेकर नंदराम उसके फ्लैट के पास पहुंचा और लॉक खोलकर, पल्ला धकेलते हुए, भीतर प्रवेश करता चला गया। मोना चौधरी वहीं खड़ी रही। कपड़ों में छिपी, रिवाल्वर पलक झपकते ही उसके हाथों में आ जाती अगर कोई गड़बड़ होती। 


देवराज चौहान से वास्ता रखता था ये मामला और देवराज चौहान के प्रति लापरवाह होना अपनी मौत को दावत देना था। जानती धी वो ।


मिनट भर में ही नंदराम बाहर आ गया।


"मोन्ना डार्लिंग! तने तो फ्लैट को बोत अच्छा सजा रखा है नी। बोत अच्छा लगा सांई। मेरी बीवी तो घर को सजाती ही नहीं। मैं ही थोड़ा-बहुत साफ कर लेता -।"


“नंद डार्लिंग।” मोना चौधरी ने प्यार से, मीठ स्वर में कहा- "औरंत एक ही घर सजा सकती है। या तो अपना घर या फिर अपने बॉस का घर।" कहने के साथ ही वो अपने फ्लैट के दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।


मोना चौधरी की बात समझने की कोशिश करता नंदराम, मोना चौधरी को देखे जा रहा था कि मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश करके दरवाजा बंद कर लिया। उसके बाद चंद कदम उठाकर सोफे के पास पहुंची और बैठ गई। चेहरे पर अजीब-सी उलझन और तनाव-सा झलक रहा था।


क्या अब फिर देवराज चौहान से टकराव होगा ?


मोना चौधरी को इस बात का भी एहसास था कि देवराज चौहान से झगड़ा करके कोई भी फायदा हासिल नहीं होगा। अलबत्ता नुकसान अवश्य हो सकता है।


“मिन्नो !”


मोना चौधरी चौंकी। इधर-उधर देखने लगी।


“मिन्नो बेटी!"


“पेशीराम ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।


तभी उसकी निगाह अपने पीछे पड़ी तो उछलकर खड़ी हो गई।


तीन कदम के फांसले पर फकीर बाबा खड़ा था। वो ही रंग-रूप । झुर्रियों से भरा चेहरा और उस पर बढ़ी शेव बदन पर मैले से कपड़े। सिर के बाल पूरी तरह सफेद थे। आंखें अन्दर धंसी महसूस हो रही थीं ।


“पेशीराम।" मोना चौधरी ने खुद को संभाला।


"कैसी हो मिन्नो ?”


“अच्छी हूँ पेशीराम।" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में

झांका- “तुम्हें देखकर अच्छा लगता है।" 


“तेरे मन में मेरी लिए जगह है तो गुरुवर के श्राप से मुझे मुक्ति दिला दे। देवा से दोस्ती कर ले। तीन जन्मों से भटक रहा हूं कि किसी तरह तुम दोनों में दोस्ती - ।”


"बस करो पेशीराम नाम मत ले मेरे सामने देवराज चौहान का।" फुफकार उठी मोना चौधरी- "जगमोहन ने सोहनलाल, बांके और रुस्तम राव के साथ मिलकर कुछ देर पहले ही मेरी जान लेने की कोशिश की। देवराज चौहान भी मेरी जान लेने के लिए यहां आया हुआ है और देवराज चौहान से दोस्ती की बात कर रहे हो। पेशीराम, जब भी देवराज चौहान मेरे सामने पड़ा। उसके और मेरे वीच फैसला हो जायेगा।"


पेशीराम के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभरी ।


“देवा तो फिर भी मेरी बात कभी-कभी मान जाता है। लेकिन तू कभी नहीं मानती मिन्नो ।”


“तुम क्या चाहते हो पेंशीराम कि देवराज चौहान मेरी गर्दन की तलाश करता रहे और मैं सिर झुका दूं।" मोना चौधरी ने कठोर स्वर में कहा - "देवा तुम्हारी बात मानता है तो उसे कहो कि दिल्ली से चला जाये। मेरे रास्ते में न आये।” 


“इस बार देवा भी मेरी बात नहीं मान रहा। वो किसी को दिए वायदे में फंस चुका है।"


“तो फिर मुझे क्या समझाने आये हो कि जब वो मेरी जान लेने आये तो मैं चुपचाप खड़ी रहूं.... ।”


“अगर तुम दिल से देवा से दोस्त के लिये तैयार हो जाओ तो गुरुवर की कृपा से कुछ मिनटों का वो समय बदल दूंगा। जब देवा तुम्हारे सामने आयेगा। तुम उसे दुश्मनी छोड़कर दोस्ती के लिये कहोगी तो वो मान जायेगा। तब-।”


“नहीं। ये असम्भव है पेशंराम कि वो मेरी हत्या करने आये और मैं दोस्ती करने के लिये कहने लगूं। ईंट का जवाब में पत्थर से ही दूंगी। मुझमें इतनी हिम्मत है कि देवराज चौहान से मुकाबला कर सकूं।"


फ़कीर बाबा के चेहरे पर थकान के भाव दिखाई देने लगे। “मैं बहुत आशा के साथ तुम्हारे पास आया हूं मिन्नो ।” फकीर बाबा ने धीमे स्वर में कहा - "देवा इस स्थिति में नहीं कि चाह कर भी मेरी बात मान सके। लेकिन तुम चाहो तो सब ठीक हो सकता है।"


“नहीं पेशीराम | मैं तुमसे कह चुकी हूं कि में सिर झुकाना पसन्द नहीं करूंगी। देवराज चौहान मेरी जान लेने आ रहा है, तो मैं पूरी ताकत के साथ मुकाबला करूंगी। उसके साधियों ने मेरी जान लेने की कोशिश की। अब ये मामला रुक नहीं सकता। इस झगड़े की शुरूआत जगमोहन, बांके, सोहनलाल, रुस्तम ने की है।” 


“नादान हो मिन्नो । झगड़े की शुरूआत तो सितारों ने की है। बुरे सितारे तो यही काम करवाते हैं। वो ही इन्सान की सोचें-हालात बदलकर मजबूर कर देते हैं कि धरती का रंग सुर्ख हो जाये। वहां खून गिरे । ”


"इन बातों को रहने दो पेशीराम। कोई फायदा नहीं होगा। दुश्मन के सामने हथियार डालने का मेरा कोई इरादा नहीं है।"


"इस वार के झगड़े में देवा की जान चली जायेगी मिन्नो। मुझे फिर से तुम लोगों के अगले जन्म का इन्तजार करना पड़ेगा। गुरुवर से मिले श्राप का वक्त आगे बढ़ जायेगा। मुझे अपने बूढ़े और पुराने शरीर से मुक्ति - ।”


“मैं इसमें अभी तो तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकती पेशीराम- ।" मोना चौधरी ने दो टूक जवाब दिया।


पेशराम के होंठों पर विचारों से भरी मुस्कान उभरी।


“ठीक है मिन्नो। मैं तुम्हें या देवा को अपनी शक्तियों से मजबूर भी नहीं कर सकता। क्योंकि गुरुवर के मुताबिक श्राप से मैं तभी मुक्त हो सकता हूं, जब तुम और देवा अपनी खुशी से एक-दूसरे को दोस्त मान लो ।”


“माफ करना पेशीराम।" मैं इस स्थिति में नहीं हूं कि तुम्हारी वात मान सकूं। मोना चौधरी धीमे स्वर में कह उठी।


“यही तो सितारों का खेल है कि उन्होंने हर किसी को हालातों के चक्रव्यूह में फंसा रखा है। मैं जा रहा हूं मिन्नो । अब और नहीं रुक सकता।" फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा ।


फिर मोना चौधरी के देखते ही देखते फकीर बाबा का शरीर धुएं में बदलता चला गया। वो धुआं धीरे-धीरे छोटा-सा गोला बनते हुए निगाहों से ओझल हो गया पल भर के लिये मोना चौधरी को लगा जैसे वहां कोई था ही नहीं। कई क्षणों के लिये वो वहीं की वहीं खड़ी रही ।


चेहरे पर गम्भीरता लपेटे मोना चौधरी वापस सोफा चेयर पर बैठ गई। सोच के गहरे भाव चेहरे पर नजर आ रहे थे, परन्तु मस्तिष्क में इतनी ज्यादा सोचें करवटें ले रही थीं कि वो समझ नहीं पाई कि क्या सोच रही है।


***