“ध... धीरज ।” सुधा भंसाली उसे देखकर कह उठी ।
उसके यह कहने से पहले ही सब समझ चुके थे कि वही धीरज सिंहानिया है। सुधा को वहां देखकर उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे। विभा उन दोनों को बहुत ही दिलचस्प नजरों से देख रही थी ।
धीरज ने पूछा- - - - “क... क्या हुआ है सुधा ? ”
“ उसने किरन को भी मार डाला धीरज ।” एक ही झटके में सुधा के धैर्य का बांध टूट गया ---- “किरन को भी मार डाला उसने । ”
“किसने? किसने मार डाला ?” विभा ने तुरंत बात पकड़ी, वह सुधा के दोनों कंधे पकड़कर झंझोड़ती हुई बोली ---- “यही तो पूछ रही हूं मैं बार-बार । कौन कर रहा है ये हत्याएं?”
“हमें नहीं मालूम ।” धीरज बोला ---- " इसी बात ने तो हमारा दिमाग खराब कर रखा है। पहले चांदनी, फिर रमेश और अब तुम लोग कह रहे हो कि उसने किरन को भी... कहां है किरन ? ” 27
“मैंने तुमसे नहीं, सुधा से पूछा है मिस्टर धीरज ।” तेजी से कहने के बाद विभा एक बार फिर सुधा की तरफ मुखातिब हुई ---- “अभी अभी तुमने कहा कि उसने किरन को भी मार डाला। मैं ये पूछ रही हूं किसने? किसके बारे में बात कर रही थीं तुम?”
“ सुधा कहती चली गई ---- “मैं, किरन, धीरज और अशोक शुरु से इस सवाल में उलझे हुए हैं। हमें इस सवाल ने परेशान कर रखा है कि ऐसा कौन कर रहा है? और अब उसने किरन को भी मार डाला । वही तो कहा है मैंने धीरज से ।”
“चलो... मान लेती हूं कि तुम्हें हत्यारे का नाम पता नहीं होगा ? तुम भी उसके बारे में जानने के लिए उतने ही उत्सुक होगे जितने हम हैं लेकिन ये इल्म तो होगा कि कोई ऐसा क्यों कर रहा है? क्यों चुन चुनकर तुम्हारे ही ग्रुप के लोगों को मार रहा है ?"
एक बार फिर उसने यही कहा ---- “रतन और अवंतिका हमारे ग्रुप के नहीं थे। हमारी उनसे कभी कोई दोस्ती नहीं रही । ”
“क्यों मिस्टर धीरज? क्या सुधा ठीक कह रही है ?”
“सुधा ने फोन पर मुझे यह भी बताया था कि आप बार-बार रतन, अवंतिका, संजय और मंजू कपाड़िया को हमारे ग्रुप का कह रही हैं लेकिन ये गलत है। हमारी उनसे कभी कोई दोस्ती नहीं रही।"
“तो फिर यह सवाल नहीं उठा तुम्हारे दिमाग में कि जिस तरह से रमेश की हत्या की गई उसी तरह से रतन और अवंतिका की क्यों की गई ? अवंतिका के कपड़े चांदनी की लाश के साथ क्यों पाए गए ? रमेश ने चांदनी के पापा को क्यों किडनेप कराया ? क्यों उसने चांदनी को रतन की लाश लेकर छंगा - भूरा के पास भेजा ?”
“ये सभी सवाल उठे विभा जी लेकिन यकीन मानिए, जवाब एक का भी नहीं है हमारे पास ।” धीरज सिंहानिया ने कहा- -“बहुत सुना है आपके बारे में, आप खोज पाएं, आप इन गुत्थियों को सुलझा पाएं, आप हत्यारे को पकड़ पाएं तो हम आपके बहुत एहसानमंद होंगे।”
“तुम लोगों का सहयोग मिले तो यह काम जल्दी हो सकता है । ”
“हमें तो खुद समझ में नहीं आ रहा क्या सहयोग करें।”
“ अनुमान तो लगा सकते हो कि ऐसा क्यों हो रहा होगा ?"
“खूब सोच चुके हैं लेकिन दिमाग में नहीं आ रहा कि ऐसा हमने किसी का क्या बिगाड़ा है जो इस तरह से बदला लेगा ।”
“लाशों के कपड़े क्यों उतारता है वह ?” मैंने पूछा ---- “उन्हें अगली लाश के पास क्यों छोड़ता है ?”
“काश हमें पता होता !”
शगुन ने “लाशों के पेट पर लिखे से कोई अनुमान लगाओ।” कहा ---- “रतन की लाश पर उसने 'क्यों' लिखा था | अवंतिका की लाश पर 'किवो' रमेश की लाश पर अ चांदनी की लाश पर ठ और अब किरन की लाश पर ‘यां' लिखा है। क्या मतलब हुआ इसका ? इस तरह से लाशों पर लिखकर वह क्या कहना चाहता है?”
“जब आप जैसे लोग पता नहीं लगा पा रहे हैं तो हमें क्या और कैसे पता लग सकता है? हम तो बस इतना ही कह सकते हैं कि पता नहीं क्यों कोई हमारे पीछे पड़ गया है ?"
विभा ने अनोखा सवाल किया ---- “क्या तुम्हें यह नहीं लग रहा कि जिसने चांदनी, रमेश और किरन की हत्याएं की हैं वह तुम लोगों का भी यही हश्र करने की कोशिश कर सकता है ? "
“ल...लग तो रहा है।” धीरज बोला ---- “अब तो लग रहा है।”
“फिर भी नहीं बता रहे कि यह सब क्यों हो रहा है?”
“आप बार-बार एक ही बात पूछ रही हैं। कैसे यकीन दिलाएं कि हमें इस बारे में कुछ मालूम नहीं है?”
विभा के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे समझ गई हो कि चाहे जितनी कोशिश कर ली जाए, वे टूटने वाले नहीं हैं। वे
उसने मराठा को इशारा किया ।
मराठा धीरज सिंहानिया का बाजू पकड़कर उसे बाथरूम की तरफ ले गया। किरन की लाश को देखकर उसके चेहरे पर वेदना से ज्यादा खौफ के भाव उभरे थे । चीखा या रोया-पीटा नहीं था वह ।
शायद इसलिए, क्योंकि पहले ही समझ चुका था कि बाथरूम में उसे कोई ऐसा ही दृश्य देखने को मिलेगा ।
लाश को यूं देखता रह गया था वह जैसे शून्य में निहार रहा हो ।
मेरे सुईट में पुलिस कार्यवाई चल रही थी ।
धीरज को लिए विभा अपने सुईट में आ गई ।
मैं, शगुन और मराठा उसी के साथ चिपके थे।
धीरज की हालत उसी क्षण से ऐसी हो गई थी जैसे कसाईयों से घिरे बकरे की हो जाती है जब से विभा ने उससे अपने सुईट में चलने के लिए कहा था। वहां पहुंचकर उसने कहा ---- “मिस्टर धीरज, किसी से परिचित होना, उससे दोस्ती होना क्या कोई अपराध है ?”
“न... नहीं।" उसने विभा के सवाल का मंतव्य समझने की कोशिश के साथ कहा और ध्यान से उसकी तरफ देखा ।
“फिर तुम लोग बिड़ला और कपाड़िया से अपने परिचय को छुपा क्यों रहे हो? तुम भी और सुधा भी ।”
“ आप यकीन क्यों नहीं..
“मेरे यकीन न करने का सबसे बड़ा कारण ये है कि, ये बात किसी से छुपी नहीं है कि बजाज और बिड़ला परिवार एक दूसरे के परिचित ही नहीं, दोस्त थे | दोस्ती भी सिर्फ रतन और अशोक के बीच नहीं थी बल्कि उनके पिताओं के जमाने से थी। चांदनी ने यह बात खुद कुबूल की कि तीन नवंबर की रात को रतन ने उससे रेप किया था।"
“मैंने यह कब कहा कि बजाज और बिड़ला भी एक-दूसरे को नहीं जानते होंगे ?” धीरज का अंदाज काफी सतर्क - सा था - - - - “मगर, जरूरी नहीं मैं अपने परिचित के सभी परिचितों से परिचित होऊं !”
“यानी तुम्हें यह मालूम नहीं था कि बिड़ला और बजाज का..
“मेरा और अशोक का परिचय भी बहुत पुराना नहीं है । "
“मतलब?”
“हम दोनों के पिताओं की मर्जी से दस नवंबर को मेरी और अशोक की एक बिजनेस मीटिंग हुई थी। वह हमारी पहली मुलाकात थी । उसी की वजह से हम लोग एक-दूसरे के इतने नजदीक आए कि पच्चीस नवंबर को पहले गेट-टूगेदर में शामिल हुए।"
“यह कहां हुआ था ? ”
“रमेश के आऊट-हाऊस पर ।"
“रमेश से अशोक पहले से परिचित था?”
“नहीं। उनका परिचय वहां मैंने ही कराया था । "
“उसके बाद?”
“ उसी रात तय हो गया था कि अगला गेट-टूगेदर चार दिसंबर को मेरे यहां होगा। जैसा कि सुधा आपको बता ही चुकी है, रात वहां चांदनी नहीं आई थी। अशोक ने हमें यहीं बताया था कि तबियत ठीक न होने के कारण नहीं आई, असलियत वही जानें।”
“तुम्हारी और रमेश की दोस्ती कितनी पुरानी थी ?”
“हम तो कॉलिज के जमाने से ही दोस्त हैं ।”
“चारों साथ पढ़े थे ?”
“जी।”
“जिस रात का ये किस्सा है। यानी चार दिसंबर । बकौल तुम्हीं लोगों के, उस रात चांदनी भले ही तुम्हारे गेट-टूगेदर में शामिल नहीं थी लेकिन अशोक रात के दो बजे तक तुम्हारे साथ था । था न!”
“हां।”
“सुबह को, या उससे अगली सुबह को तुमने अखबार में पढ़ा होगा या किसी और माध्यम से जाना होगा कि चांदनी रतन की हत्या के इल्जाम में पकड़ी गई है। उसने इसलिए छंगा-भूरा को उसके कत्ल की सुपारी दी थी क्योंकि उसने तीन नवंबर को उससे रेप किया था ?”
“हां । यह बात हमारी नॉलिज में आई थी।"
“तो क्या उस वक्त तुमने अशोक और चांदनी को एक फोन करना भी गंवारा नहीं किया ?”
“कौन कहता है मैंने फोन नहीं किया ?”
“यानी किया ?”
“जी।”
“क्या बातें हुईं ?”
“मैंने अशोक से पूछा कि ये सब क्या मामला है ? उसने यह कहकर बात टाल दी कि सारे मामले में कोई सच्चाई नहीं है, किसी ने रतन की हत्या के इल्जाम में चांदनी को फंसाने की कोशिश की है ।”
“यह तो पूछा होगा कि तीन नवंबर को क्या वाकई रतन ने चांदनी से रेप किया था ? जवाब में उसने क्या कहा ?”
“मैंने यह नहीं पूछा ।”
“क्यों?”
“यह सवाल मुझे मुनासिब नहीं लगा । सोचा, शायद अशोक को मेरा यह पूछना अच्छा नहीं लगेगा । ”
“ उसके बाद भी बातें हुई होंगी ?"
“नहीं, मैंने फोन करना मुनासिब समझा ।”
“कुछ ज्यादा ही बेमुरब्बतगी नहीं हो गई ये ? तुम्हारा दोस्त संकट में था, उसकी बीवी पर हत्या का इल्जाम था और तुम केवल एक बार फोन करके रह गए! क्या तुम्हें लगातार उनकी खबर..
“मैडम, मैं आपको बता चुका हूं कि हमारे संबंध इतने अंतरंग नहीं बन पाए थे और दूसरी बात ये कि जब मैंने पहला फोन किया था, अशोक ने तभी बड़े उखड़े हुए मूड में बात की थी । कुछ ऐसे अंदाज में जैसे इस टॉपिक पर बात न करनी चाहता हो ।”
“ पर रमेश तो रतन को जानता था !”
“मेरे ख्याल से तो नहीं।”
“इस ख्याल की वजह?"
“हमारे बीच इतनी अंतरंगता थीं कि अगर वह जानता होता तो शायद मैं भी जानता होता । न भी जानता होता तो उस दिन मुझसे इस बात का जिक्र जरूर करता कि वह रतन को जानता है जिस दिन चांदनी और रतन की स्टोरी सार्वजनिक हुई थी । ”
“उस दिन तुमने क्या सोचा जब तुम्हारी नॉलिज में यह बात आई कि रतन की लाश चांदनी को छंगा - भूरा के पास पहुंचाने के लिए रमेश ने मजबूर किया था और इसके लिए उसने चांदनी के पापा को..
“मेरी नॉलिज में कल ही तो यह बात आई है।"
अचानक ही विभा ने उससे बहुत गहरा सवाल किया ---- “नॉलिज में आते ही तुमने स्वाभाविकरूप से रमेश से बात की होगी! इस बारे में क्या कहना था उसका ? "
“अरे, कमाल कर रही हैं आप! उसके जिंदा रहते यह बात मेरी नॉलिज में आई ही कब?” वह साफ बच निकला ।
“तो कब नॉलिज में आई?”
“जब आप सुधा से पूछताछ करके जा चुकीं । उसने मुझसे फोन पर यह कहा कि आप ऐसा कह रही थीं ।”
“तब क्या सोचा तुमने ?”
“ रमेश पार्टी से गया था और बकौल आपके, सारी गड़बड़ उसी दरम्यान हुई । यह बात हम दोनों को खटक जरूर रही है लेकिन दिल नहीं मान रहा कि उसने वह सब किया होगा ।”
“किरन के गायब होने के बारे में कुछ बताओ।”
“उसके बारे में क्या बताऊं?"
“ उसकी लाश मेरे दोस्त के बाथरूम में कैसे पहुंच गई ? ”
"मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं? मुझे तो बस इतना पता है कि डिस्कोथ में हम डांस कर रहे थे। अचानक महसूस किया कि किरन कहीं नजर नहीं आ रही है। मैंने उसकी खोज शुरु की । डांस कर रहे लोगों से पूछा । स्टाफ से भी । उसके न मिलने के कारण मैं बुरी तरह हलकान था कि आपका फोन पहुंचा।”
“कितनी देर से गायब थी वह ? "
“मेरा ध्यान तो एक घंटा पहले गया था। पता नहीं उससे पहले कितनी देर से फ्लोर पर नहीं थी ।”
“क्या ये बात अजीब नहीं है मिस्टर धीरज कि कल ही तुम्हारे दोस्त का मर्डर हुआ है। दोस्त भी वो जिसे तुम अंतरंग कह रहे हो।” विभा ने उसे ध्यान से देखते हुए कहा ---- “और आज ही की रात तुम यहां, डिस्कोथ में पहुंच गए। पति-पत्नि डांस कर रहे थे !”
“हां । यह बात सभी को अजीब लग सकती है लेकिन किरन का ध्यान बंटाने के लिए मुझे इसके अलावा और कुछ नहीं सूझा ।”
“किरन का ध्यान बंटाने के लिए? ”
“रमेश की मौत ने उसे बहुत सदमा पहुंचाया था । वह बार-बार पूछे जा रही थी कि उसकी लाश के पास से चांदनी के कपड़े क्यों मिले हैं? उसके पेट पर अ क्यों लिखा था ? अखबारों में छपी रतन और अवंतिका के मर्डर की स्टोरियां भी याद आ रही थीं उसे । शायद इसलिए कि वे हत्याएं भी इसी तरह हुई थीं। रतन के कपड़े अवंतिका की लाश के पास से मिले थे और उनके पेट पर भी कुछ न कुछ लिखा था । किरन का ख्याल था कि कोई है जो इस देश के बड़े घराने के लोगों की हत्याएं कर रहा है। फिर उसने टी.वी. पर चांदनी की लाश देख ली । यह भी जान लिया कि उसके गले से अवंतिका के कपड़े मिले हैं। तब से तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी। मैं उसे उसी स्थिति से निकालने के लिए यहां लाया था । ”
“अब मैं तुम्हें एक बहुत ही दिलचस्प बात बताने वाली हूं।” विभा जिंदल ने एकाएक बातों का रुख बदला और हमारी तरफ देखती हुई बोली ---- "इस बात को तुम भी गौर से सुनो, उसी धमाकेदार बात का जिक्र कर रही हूं जिसके लिए रात के वक्त होटल से गायब थी । ”
मैंने अपने दिमाग की सारी नसें एक जगह समेट लीं।
“दिल्ली में ब्लैक डायमंड नाइट क्लब का नाम सुना है तुमने ?”
है।" गोपाल मराठा ने कहा । “मैंने सुना
“क्या होता है वहां?”
“ उसका नाम ब्लैक डायमंड नाइट क्लब है ही इसलिए क्योंकि वह केवल रात ही को गुलजार होता है। दिन में बंद रहता है। सारी रात हंगामेंदार पार्टियां चलती हैं वहां और उन पार्टियों में केवल क्लब के मेंबर ही हिस्सा ले सकते हैं। उसकी मेंबरशिप बीस लाख रुपए है । "
“क्लब के किसी मेंबर की सिफारिश पर गेस्ट भी जा सकते हैं ।”
“गेस्ट के लिए एक रात की फीस एक लाख रुपए है । "
“काफी अच्छी जानकारी है तुम्हें ।”
“दिल्ली पुलिस में सर्विस कर रहा हूं विभा जी ।” गोपाल मराठा ने कहा ---- “इतनी जानकारियां तो रखनी पड़ती हैं।"
“तो लगे हाथों ये भी बता दो कि वहां की फीस इतनी तगड़ी क्यों है? होता क्या है वहां ? "
“ होता तो वही सब है जो आम नाइट क्लब्स में होता है । कैबरे, डिस्को, जुआ और तरह-तरह के खेल । वहां वो शराब मिल जाती है जो शायद दिल्ली में कहीं और न मिले। आप संसार के जिस किसी मुल्क का खाना खाना चाहेंगे, तीस मिनट के अंदर आपकी टेबल पर होगा। वहां की इतनी तगड़ी फीस इसलिए है ताकि एक खास स्टेटस के लोग ही मेंबर बन सके। स्टेंडर्ड बना रहे और कोई ओछा शख्स अंदर दखिल न हो सके। यह सब इसलिए है ताकि एक खास तबके के लोगों की मौज-मस्ती में कोई कमी न आए।"
“ अंदर दाखिल होते वक्त अपना मेंबरशिप कार्ड काऊंटर पर जमा कराना होता है। एक रजिस्टर में साइन करने होते हैं और आने का टाइम लिखना होता है।” विभा बताती चली गई ---- “जाने पर कार्ड वापस लेना होता है। टाइम लिखकर पुन: साइन करने होते हैं।"
“यह सब वहां की सुरक्षा के लिए है ।
“ और आज रात मैंने वहां जाकर यह पता लगाया है कि अशोक उस क्लब का मेंबर है तथा तीन नवंबर की रात को नौ से दो बजे तक वह चांदनी के साथ वहीं था । रजिस्टर में दोनों के साइन हैं।”
धीरज सिंहानिया का चेहरा फक्कू ।
“क... क्या बात कर रही हो विभा ?” मुझे जैसे एकसाथ हजारों बिच्छुओं से डंक मारा था ---- “ये रात तो वो है जिस रात होटल राज पैलेस के कमरे में रतन ने चांदनी से रेप किया था !”
“है न धमाकेदार खबर !” उसके होठों पर मुस्कान थी ।
मराठा भी उछल पड़ा--- "इसका मतलब रेप हुआ ही नहीं।”
“तो फिर चांदनी ने यह झूठी बात क्यों कुबूली ?” मैंने महसूस किया कि शगुन भी अपनी बुद्धि उलट गई महसूस कर रहा था ।
“ शायद अपने पिता की खातिर ।" विभा ने कहा ।
“हो सकता है चांदनी की तरफ से हम यह सोचकर संतुष्ट हो जाएं लेकिन असली सवाल ये है कि अशोक ने इस बात को कुबूल क्यों किया?” बुरी तरह पगलाया-सा मैं कह उठा ---- उसी समय क्यों नहीं समझ गया कि चांदनी सरासर झूठ बोल रही है?” -- "वह
“इसका मतलब तो वह भी चांदनी के झूठ में शामिल था।"
“सवाल उठता है, क्यों? क्या राज है ये ?”
“इसी राज तक पहुंचने के लिए तो मुझे अशोक की तलाश थी लेकिन वह गायब है।" विभा ने कहा- - - - “शायद उसे क्लब से इस बात की इंफारमेशन मिल गई है कि मैंने वहां क्या पूछताछ की है और क्या कुछ जानने के बाद वहां से लौटी हूं!”
“हे भगवान! क्या झमेला है ये ?” मेरा सिर शायद पहले कभी इतनी बुरी तरह नहीं चकराया था - - - - “पहली रात एक लड़की यह तो कहती है कि उसने रतन के मर्डर की सुपारी नहीं दी, उसे किसी षड़यंत्र में फंसाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन यह कुबूल करती है कि उसके साथ रेप हुआ था जबकि वह सरासर गलत है। इसका मतलब तो उसने खुद ही जानबूझकर एक ऐसा कारण खड़ा किया जिसे सुनते ही पुलिस को उसके द्वारा रतन की हत्या का मकसद मिल जाए । कहने वाली का पति भी इस झूठ में पूरी तरह शामिल है। अर्थात् वह भी चाहता है कि रतन की हत्या के इल्जाम में उसकी बीवी फंस जाए। वही बात मक्तूल की बीवी यानी अवंतिका भी कहती है । इसका मतलब तो ये हुआ कि तीनों मिले हुए थे। सभी एक झूठ को सच बनाने पर तुले थे! वे, जो पहली नजर में अलग-अलग प्लेटफार्म पर खड़े नजर आ रहे थे। अब तो ऐसा लग रहा है कि सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। कैसे हुआ ये? क्यों हुआ? ये क्या झमेला है विभा?”
“क्यों मिस्टर धीरज ।” एकाएक उसने अपनी पैनी नजरें धीरज के चेहरे पर गड़ा दी थीं ---- “क्या आपकी समझ में कुछ आया?
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