पीछे कितनी ही देर तक सन्नाटा छाया रहा ।


फिर जनक न चुप्पी तोड़ी ।


"देखा !" - वह बोला- "मैंने कहा था न कि हमें बॉस को फोन करना चाहिए था ?"


तब तक अमीरीलाल सम्भल चुका था और अपने असली रंग में आ चुका था ।


यहां से चलो ।" "थोबड़ा बन्द रखो।" - वह क्रूर स्वर में बोला - " और


वे वहां से निकले और फिर पिछवाड़े में खड़ी जीप में जा सवार हुए ।


जीप पिछवाड़े से निकलकर मेन रोड पर आई तो विकास को वहां फिर सलेटी एम्बैसेडर दिखाई दी। शबनम कार में बैठी अपने होंठों की लिरस्टिक ठीक कर रही थी । प्रत्यक्षतः जीप की तरफ उसने निगाह तक न उठाई लेकिन जीप के वहां से गुजरते ही विकास ने एम्बैसेडर को भी स्टार्ट होते सुना ।


अमीरीलाल के निर्देश पर जीप चलाता हुआ हनुमान उसे नगर से बाहर ले आया ।


फिर नदी किनारे के एक तनहा कॉटेज के सामने जीप रुकी । 


"यही तो बॉस का कॉटेज है।" - जनक बोला - "तुम यहां इनका कत्ल करोगे ?"


"पागल हुए हो" - अमीरीलाल बोला- "यहां तो हमने अन्धेरा होने तक इन्हें गिरफ्तार करके रखना है । इनकी मौत का सामान तो इस औरत की कोठी के बैडरूम में किया जायेगा ।”


"ओह !"


सब लोग जीप से उतर कर कॉटेज में पहुंचे । विकास और सुनयना को कॉटेज के सामने के बैठकनुमा कमरे में बिठा दिया गया ।


"मैं महाजन की कोठी पर जा रहा हूं" - अमीरीलाल बोला - "वहां से पुलिस जा चुकी हुई तो अन्धेरा होने पर मैं वापिस आऊंगा ।"


"लेकिन अगर वहां रात तक भी पुलिस का पहरा हुआ तो ?" - जनक बोला ।


"तो फिर कोई और जगह सोचेंगे। वैसे मुझे उम्मीद नहीं कि पुलिस वहां इतनी देर टिके | हमारी स्टेज वहीं सैट हुई स्वाभाविक लगेगी। दोनों बैडरूम में गाली खाकर मरे पड़े होंगे । रिवॉल्वर इस ठग के हाथ में होगी । और ऐसा लगेगा जैसे इसने पहले औरत को गोली मार दी और फिर आपको शूट कर लिया ।"


कोई कुछ न बोला ।


" और तुम दोनों" - अमीरीलाल सख्त स्वर में बोला- “सावधान रहना । अगर यह आदमी इस बार भी तुम्हें छकाकर भाग गया तो इससे मैं तुम दोनों का खून कर दूंगा । समझ गये ?"


दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।


अमीरीलाल वहां से विदा हो गया ।


जनक बोला- "सारा दिन इनके सिरहाने रिवॉल्वर लेकर खड़े रहने का क्या फायदा ? क्यों न इनके हाथ-पांव बांध दें ?"


"ठीक है ।" - हनुमान बोला ।


हनुमान इमारत में से एक रस्सी तलाश कर लाया ।


फिर वे विकास और सुनयना को एक बैडरूम में ले आये जहां कि एक डबल बैड लगी हुई थी । जनक ने पहले विकास को पलंग पर पेट के बल लेटने का आदेश दिया । हनुमान उसे रिवॉल्व से कवर किये रहा और जनक ने रस्सी से उसके हाथ-पांव बांधकर उसे सीधा कर दिया ।


वैसी ही गत सुनयना की भी बनाई गई ।


"इस बार देखते हैं कैसे भागता है, साला ।" - जनक सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला- "ऐसी गांठ बांधी है मैंने कि जितनी ज्यादा यह खींचातानी करेगा उतनी ही ज्यादा रस्सी कसती जायेगी ।"


फिर वे दोनों वहां से चले गये ।


***


"मुझे भूख लगी है ।”


विकास ने हैरानी से सुनयना की तरफ देखा । वे मौत की कगार पर खड़े थे और वह अपनी भूख की दुहाई दे रही थी।


उन्हें पलंग पर बंधे पड़े-पड़े एक घन्टा हो चुका था । "मुझे खा लो।" - विकास झल्लाये स्वर में बोला । सुनयना ने सच ही उसका एक कान चबा डाला । “ऊई !" - वह चिल्लाया ।


“अगर हम बन्धे न होते ।" - वह हसरत भरे स्वर में बोली - "तो भी कोई बात थी ।"


वह खामोश रहा ।


“विकास, कुछ करो न ।" - वह बोली ।


"मैं क्या करू ?" - विकास बोला ।


"तुम मर्द हो । इस मुसीबत से निकलने की कोई तरकीब सोचो ।"


"मुझे कोई तरकीब नहीं सूझ रही । लगता है हमारी मौत निश्चित है ।”


वह रोने लगी ।


“रोना-धोना बन्द करो और इधर मेरी बात सुनो ।"


“बोलो।”


"अब झूठ बोलने से तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला अब तो सच-सच बता दो कि तुमने अपने पति का कत्ल किया है या नहीं।"


" मैंने अपने पति का कत्ल नहीं किया ।" - वह कातर स्वर में बोली ।


"तो फिर किसने किया ?"


"बख्तावर सिंह के किसी आदमी ने ही किया होगा ।"


"नहीं । उसने न तुम्हारे पति का कत्ल करवाया है और न उसे वह धमकी-भरी चिट्ठी भिजवाई थी।"


"ओह !"


"तुमने यह भी सच कहा था कि जिस दिन महाजन के नाम धमकी भरी चिट्ठी आई थी उस दिन महाजन की मेज के दराज में से उसकी रिवॉल्वर गायब थी ?"


“हां ।”


"तुम्हारे और महाजन के अलावा उस रिवॉल्वर तक और किस की पहुंच हो सकती थी ?"


"किसी की भी नहीं । मेरा मतलब है सिवाय हमारे नौकर और नौकरानी के। लेकिन उनमें से कोई भला मेरे पति का कत्ल क्यों करेगा ?"


“घर में मिलने जुलने वाले भी तो आते होंगे ।"


"आते हैं, लेकिन वे पहली मंजिल पर नहीं जाते।"


"कोई अंदाजा कि वह रिवॉल्वर वहां कब से नहीं थी?"


"पिछले सोमवार को वह रिवॉल्वर मैंने दराज में देखी थी। शुक्रवार रात को वह वहां नहीं थी ।


“यानी कि सोमवार और शुक्रवार की रात के दौरान ही किसी वक्त रिवॉल्वर गायब हुई ?"


“हां।”


"उस दौरान घर में तुम्हारे या तुम्हारे पति के मिलने-जुलने वालों में से कौन-कौन आया था ?”


“कोई भी नहीं । काफी अरसे से मेरी अपने पति से अनबन चल रही थी इसलिए घर में हम कभी किसी को इनवाइट करते ही नहीं थे ।" - वह एक क्षण ठिठकी और फिर बोली- "लेकिन बुधवार शाम को मेरे पति से कोई बिजनेस की बात करने दो जने हमारे घर आये थे । मेरा पति उन्हें ठीक से जानता तक नहीं मालूम होता था । ऐसे नितान्त अजनबी मेरे पति का खून थोड़े ही कर सकते थे।"


" उन्होंने अपना कोई नाम वगैरह बताया था ?”


"हां । आदमी का नाम कर्नल जे एन एस चौहान था और औरत का नाम मिसेज पूर्णिमा सरीन था । बुधवार सुबह मेरे पति की फोन पर मिसेज सरीन से शेयर मार्केट से ताल्लुक रखती कोई बात हुई थी। तभी यह जिक्र भी आया था कि वे दोनों शाम को मेरे पति से मिलने हमारे घर आने वाले थे।”


विकास अवाक उसका मुंह देखने लगा ।


"कर्नल चौहान से तो इत्तफाक से मेरी कल मुलाकात भी हुई थी " - वह कहती रही- "तभी उसने मुझे बताया था कि वह मिलिट्री से रिटायर हो चुका था और अब मनोहर कहानियों' में काइम रिपोर्टर के तौर पर काम करता था । बहुत दिलचस्प आदमी है यह कर्नल । उस मिसेज सरीन नाम की औरत से तो पता नहीं क्या रिश्ता था उसका लेकिन..."


तभी बैडरूम में जनक ने कदम रखा ।


वह खामोश हो गई ।


उसने चुपचाप चुपचाप दोनों के बन्धन चैक किये और फिर वापिस बाहर वाले कमरे में चला गया ।


बाहर से आती आवाज से लग रहा था कि वह और हनुमान ताश खेल रहे थे ।


विकास सोच में पड़ गया । वह हैरान था कि शबनम ने उससे झूठ क्यों बोला ? उसने उसे वह क्यों नहीं बताया था कि वह कभी मनोहर के साथ महाजन के घर भी गई थी । शबनम ने उसे सिर्फ यह बताया था कि वह अपने होटल के बार में एक दो बार महाजन से मिली थी । तो क्या बुधवार रात और शनिवार सुबह के बीच ऐसा कुछ हो गया था कि शबनम को या मनोहर को या दोनों को मिल कर महाजन का खून कर देना पड़ा था ?


लेकिन सिर्फ ठगी की बात खून तक नहीं पहुंच सकती थी। महाजन को यह मालूम हो जाने की सूरत में कि वे दोनों ठग थे, वे शहर छोड़ कर भाग सकते थे ।


लेकिन खून किस लिए ?


क्या शबनम की वजह से ?


शबनम एक इन्तहाई खूबसूरत औरत थी और महाजन अपनी बीवी से बेजार था और उससे तलाक का तलबगार था । क्या शबनम की खूबसूरती ने कोई ऐसी पेचीदगी पैदा कर दी थी कि मनोहर को महाजन का कत्ल कर देना पड़ा ?


या शायद शबनम ने खुद कत्ल किया था ?


कोई बात थी जरूर ।


जब वह पहली बार सामने का ताला खोलकर महाजन की कोठी में घुसा था तो उसे पिछवाड़े में किसी की आहट मिली थी और कोठी के भीतर 'चैनल फाइव' की गन्ध बसी हुई मिली थी । सैट की वह गन्ध साबित करती थी कि वह रहस्यपूर्ण आगन्तुक कोई स्त्री थी । तो क्या शबनम ही उस रोज ऐन मौके पर वह रिवाल्वर वापिस रखने आई थी ताकि वह उसे वहां से बरामद कर पाता ? अगर शबनम उससे प्यार न करती होती और वह कत्ल के इल्जाम में फंसा न होता तो शायद वह ऐसा न करती । अपने प्यार की खातिर और विकास की भलाई की खातिर उसने कत्ल का इल्जाम सुनयना पर थोपने में एक तरह से विकास की मदद की थी । जब कि उनकी मूल योजना जरूर वह अपराध बख्तावर सिंह पर थोपने की थी । उस धमकी-भरी चिट्ठी का कोई और मतलब नहीं हो सकता था । बुधवार शाम को शबनम और मनोहर जब महाजन की कोठी पर गए थे तो किसी प्रकार उन्हें वहां रिवॉल्वर की मौजूदगी की खबर लग गई थी और कोई और हथियार उपलब्ध न होने की वजह से उन्होंने उसी रिवॉल्वर को वहां से चोरी कर लिया था । कत्ल का इल्जाम विकास पर न आ रहा होता तो वह रिवाल्वर जरूर नदी की तलहटी में पहुंच चुकी होती लेकिन बाद में उसी की भलाई के लिए मूल योजना में परिवर्तन किया गया था और रिवाल्वर को यथास्थान वापिस पहुंचा दिया गया था ।


"सुनो" - एकाएक उसने सुनयना से पूछा - "तुम चैनल फाईव लगती हो ?”


"यह क्या चीज हूई ?" - सुनयना असमंजसपूर्ण स्वर में बोली ।


"सेंट ।"


"न । मैं कैसा भी सेंट इस्तेमाल नहीं करती। मुझे सेंट लगाना सख्त नापसन्द है । "


और शबनम को सेंट लगाना बेहद पसन्द था । उसे सैकड़ों तरह के सेंटों की वाकफियत थी और उस मामले में उसकी पसंद अक्सर तब्दील होती रहती थी ।


यह सोचकर ही उसका मन खिन्न होने लगा कि शबनम का कत्ल से कोई रिश्ता हो सकता था ।


***


विकास के अनुमान से कम से कम चार घण्टे गुजर चुके थे जबकि बाहर से एक कार के वहां पहुंचने की आवाज आई ।


"वह कटे मुंह वाला राक्षस वापिस आ गया ।” - सुनयना भयभीत स्वर में बोली ।


“हो सकता है" - विकास बोला - "पांच बज चुके हैं। "


दूसरे कमरे में से पहले चलते कदमों की और फिर जनक की आवाज आई - "हनुमान, अमीरी नहीं, कोई छोकरी आई है ।"


फिर शायद हनुमान भी दरवाजे पर पहुंचा ।


"अबे, यह तो अकेली है ।" - हनुमान की आवाज आई "दबोच लें इसे ।"


"पागल हुए हो ! अमीरी हमें कच्चा चबा जायेगा !"


"तो फिर पूछो इससे यह क्या चाहती है और फिर चलता करो इसे ।"


पिछवाड़े में कहीं से एक दरवाजा खुलने और बन्द होने की आवाज आई ।


फिर सामने से आती शबनम की आवाज विकास को साफ सुनाई दी - "सुधाकर साहब की कॉटेज यही है न ?”


जनक का जवाब विकास को सुनाई न दिया ।


"लेकिन मुझे यही कहा गया था कि पेट्रोल पम्प से दांयी तरफ का पहला मोड़ मुड़ना था । "


"यह दूसरा मोड़ है ।" - हनुमान की आवाज आई. "पहला मोड़ आप मिस कर आई हैं । "


तभी बैडरूम का पिछला दरवाजा धीरे से खुला ।


विकास ने गरदन घुमाकर उधर देखा तो हैरानी से उसके नेत्र फट पड़े ।


हाथ में एक रिवाल्वर लिए योगिता भीतर कदम रख रही थी ।


योगिता ने होंठों पर उंगली रखकर उसे खामोश रहने का इशारा किया । फिर पलंग के समीप आकर उसने जल्दी-जल्दी विकास के बन्धन खोलने आरम्भ कर दिये ।


बाहर शबनम कह रही थी- "मुझे तो रास्ते में कोई और मोड़ दिखाई नहीं दिया था। अगर है तो इसका मतलब है कि अब मुझे वापिस जाना होगा। अजीब मुसीबत है। क्या आगे से कोई रास्ता नहीं है ?"


योगिता तब तक एक ही गांठ खोल पाई थी ।


"आप पेट्रोल पम्प तक वापिस चली जाइए ।” हनुमान की आवाज आई - "और वहीं से पूछताछ कीजिए ।”


तभी विकास के बन्धन खुल गये । वह उठकर खड़ा हो गया लेकिन नसों में खून जम चुका होने की वजह से वह अपना सन्तुलन न रख पाया और धड़ास से फर्श पर गिरा। उसके गिरने की आवाज कमरे के स्तब्ध वातावरण में बुरी तरह से गूंजी।


योगिता लपक कर उसके पास पहुंची। उसने उसे उठाकर उसके पैरों पर खड़ा किया और उसकी बांहों को मसलने लगी ।


विकास को अपने शरीर में रक्त का संचार व्यवस्थित होता लगने लगा फिर उसने योगिता को परे धकेला और स्वयं अपनी टांगों पर मुक्कियां मारने लगा ।


तभी बाहर वाला दरवाजा बन्द होने की आवाज आई।


विकास ने योगिता से उसकी रिवाल्वर ले ली और उसे दरवाजे की ओट में हो जाने का संकेत किया । वह फौरन दीवार के साथ जा लगी। विकास लपककर दरवाजे के दूसरे पहलू की दीवार की ओट में हो गया ।


दरवाजा खुला । कमरे में हनुमान ने कदम रखा ।


विकास ने पूरी शक्ति से रिवाल्वर की मूठ का प्रहार उसकी खोपड़ी पर किया ।


हनुमान बिना मुंह से एक आवाज निकाले फर्श पर ढेर हो गया ।


विकास ने बाहर झांका ।


उसे शबनम की कार राहदारी पर बैक होती दिखाई दी । जनक बैठक के दरवाजे के बाहर खड़ा था ।


विकास ने बैठक में कदम रखा । फिर लपककर बाहरले दरवाजे की ओट में हो गया ।


शबनम की कार काटेज के कम्पाउण्ड से निकल जाने के बाद जनक वापिस लौटा। उसके भीतर कदम रखते ही वह भी कमरे के फर्श पर लोटता दिखाई देने लगा ।


योगिता बैडरूम के दरवाजे पर पक्रट हुई ।


"तुम यहां कैसे ?" - विकास ने पूछा ।


"तुम्हारी सहेली मिसेज पूर्णिमा सरीन लाई है । उसे किसी मददगार की जरूरत थी । उसने मुझे इस रोल के लिए चुना तो मैं रिसैप्शन से छुट्टी कर उसके साथ चली आई ।"


"उसने तुम्हें बताया था कि मैं और सुनयना यहां फंसे हुए थे ?" 


"तुम्हारा बताया था सुनयना का नहीं । जरा ठहरो । पहले मैं तुम्हारी सहेली को ऑल क्लियर सिगनल दे दूं । "


वह दरवाजे से बाहर निकल गई और हाथ ऊंचा करके एक सफेद रूमाल हवा में हिलाने लगी ।


कुछ क्षण बाद एक कार के वापिस लौटने की आवाज आई । 


"तुम जाकर सुनयना के बन्धन खोलो।" - विकास बोला ।


योगिता अपने स्थान से हिली भी नहीं ।


तभी सलेटी एम्बैसेडर फिर कम्पाउण्ड में दाखिल हुई ।


विकास के संकेत पर शबनम उसे पिछवाड़े में ऐसी जगह खड़ी कर आई जो सामने सड़क से दिखाई नहीं देती थी ।


"योगिता" - विकास बोला- "मैंने कहा है जाकर सुनयना के बन्धन खोलो ।"


"मैं अपने पिता की हत्यारी को छूने तक को तैयार नहीं ।" - वह नफरत भरे स्वर में बोली ।


“योगिता, सुनयना ने तुम्हारे पिता का कत्ल नहीं किया है।"


उसने बैडरूम की तरफ कदम न बढाया ।


विकास ने खुद जाकर सुनयना के बन्धन खोले ।


तभी शबनम भी वहां पहुंच गई ।


"खैरियत ?" - वह बोली ।


"हां" - विकास बोला । उसने सुनयना को सहारा देकर पलंग से उठाया - "तुमने तो कमाल ही कर दिया, शबनम| "


“श - श" - वह बोली- "मिसेज सरीन ।”


"ओह हां मिसेज सरीन । मिसेज सरीन, अब जरा इन दोनों बदमाशों की मुश्कें कसने में मेरी मदद करो ।"


दोनों ने मिलकर हनुमान और जनक के हाथ-पांव बांध दिये और उन्हें किसी प्रकार घसीटकर पलंग पर डाल दिया ।


"जब तुम्हें पता लगा था" - विकास बोला - "कि मैं बदमाशों के हाथों में फंस गया था, तब तुमने पुलिस को क्यों नहीं बुलाया ?"


"क्योंकि हालात बता रहे थे कि मर्डर वैपन तुम महाजन के घर में प्लांट करने में नाकामयाब रहे थे । यानी कि अपने को बेगुनाह साबित करने वाली तुम्हारी स्कीम बिगड़ चुकी थी। ऐसे में अगर मैं पुलिस को बुलाती तो तुम्हारी हालत आसमान से गिर कर खजूर में अटकने जैसी होती।"


“ओह !"


"मदद के लिए पहले मैं मनोहर के पास गई थी लेकिन वह मुझे होटल में मिला नहीं । होटल में वह बताकर भी नहीं गया था कि वह कहां जा रहा था। मैंने वहां उसके पास एक चिट्ठी में सारी स्थिति लिखकर छोड़ दी और अपने होटल में लौटी । वहां मुझे उस रिवॉल्वर की याद आई जो तुमने मेरे पास रख छोड़ी थी । उस रिवॉल्वर ने मेरी बड़ी हिम्मत बंधाई । मैं उसे लेकर वापिस आने लगी थी तो मुझे रिसेप्शन पर योगिता दिखाई दी। मैंने सोचा अगर वह वाकई तुम्हारी दीवानी है तो तुम्हारी मदद से इन्कार नहीं करेगी। मैंने उसे सारी बात बताई । वह फौरन मेरे साथ चलने को तैयार हो गई । यहां भी हम बहुत देर के आये हुए थे लेकिन हमारी समझ में ही नहीं आ रहा था कि हम क्या करें? फिर बाद मे जो कुछ हमने किया, वह तुम्हारे सामने है । खुदा का शुक्र है कि उसने हमारी लाज रख ली ।"


तभी बाहर से एक कार के समीप पहुंचने की आवाज उभरी । विकास लपककर बाहर के दरवाजे पर पहुंचा ।


जीप लौट रही थी ।


"योगिता !” - वह बैठक में मौजूद योगिता से बोला. "तुम भी भीतर मिसेज सरीन और सुनयना के पास जाओ । जल्दी करो ।"


“कौन आया है ?” - वह उत्सुकता से बोली ।


"बख्तावर सिंह और उसका जल्लाद अमीरीलाल । अब जाओ भी यहां से।"


योगिता लपककर बैडरूम में दाखिल हो गई ।


विकास दरवाजे की ओट में हो गया ।