कराची
जावेद अब्बासी के जाने के बाद मुनीर पाशा आँधी-तूफान की तरह उस जगह पहुँचा जहाँ पर वह बख्तरबंद गाड़ी सड़क से उतरी पड़ी थी जिसमें यासिर ख़ान सेफ हाउस से नीलेश को लेकर भागा था।
मुनीर पाशा ने बड़ी बारीकी से बख्तरबंद गाड़ी का मुआयना किया। फोरेंसिक वाले अपना काम कर रहे थे। मुनीर जानता था कि इस सारी कवायत का कोई सिला मिलने वाला नहीं था। यह कोई आम लूटपाट या डकैती की घटना नहीं थी। उसे कराची एयरपोर्ट की तरफ जाने वाली सड़क पर टायरों के निशान साफ नज़र आ रहे थे। क्या यासिर ख़ान नीलेश को लेकर एयरपोर्ट की तरफ भाग गया होगा ?
ऐसी दीदा-दिलेरी की उसे उम्मीद नहीं थी। फिर भी उसने एयरपोर्ट और बन्दरगाह पर मौजूद अपने इंटेलिजेंस के आदमियों को सतर्क कर दिया था जो हर फ्लाइट, शिप या बोट पर नीलेश की तलाश कर रहे थे।
तभी उसका फोन बजा।
“सर, भारतीय दूतावास से पाँच आदमियों का एक ग्रुप दिल्ली के लिए रवाना हो रहा है। इंडियन प्लेन बस टेक ऑफ करने ही वाला है।” एक इंटेलिजेंस ऑफिसर की आवाज आयी।
“अरे कमबख्तों, फिर क्या उसके उड़ जाने का इंतजार कर रहे हो, रोको उसे और उसकी मुकम्मल तलाशी लो।” मुनीर फोन पर झल्लाया।
उसने जल्दी से फोन काटकर कराची एयरपोर्ट के फ्लाइट कंट्रोल ऑफिसर को फोन लगाया।
“हैलो, फ्लाइट कंट्रोल ऑफिस, मैं इंटेलिजेंस ऑफिसर मुनीर पाशा बोल रहा हूँ। अभी इंडियन एम्बेसी से एक टीम स्पेशल प्लेन से दिल्ली के लिए टेक-ऑफ करने वाली है। हमें शक है कि उसमें एक ऐसा आदमी शामिल है जिसकी हमें तलाश है। उसे किसी भी कीमत पर उड़ान की परमिशन नहीं देनी है। मैं वहाँ पर पहुँच रहा हूँ। तब तक उसे रोक कर रखो।” मुनीर पाशा ने फोन पर चेतावनी दी।
इस बात की सूचना उसने आईएसआई के सीनियर अफसरों को भी कर दी थी ताकि कोई इसमें अड़ंगा न लगाए।
वह फौरन कराची एयरपोर्ट पहुँचा। उस प्लेन में पूरी खुर्दबीनी से तलाशी हुई। लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। जोश में वह अपनी फजीहत का पूरा सामान कर बैठा था। उसे उम्मीद थी कि नीलेश को पाकिस्तान से जल्दी बाहर निकालने का इससे तेज रास्ता कोई नहीं हो सकता था। लेकिन उसे निराशा हाथ लगी।
कराची बन्दरगाह पर भी भारत की तरफ जाने वाली हर शिप और बोट की तलाशी का अभियान जारी था मगर उसके आदमियों को वहाँ भी कोई सफलता नहीं मिली।
इंडियन एम्बेसी की टीम को रोकने पर मुनीर पाशा के ऊपर पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी से जी भर कर लताड़ पड़ी थी। उधर भारत में स्थित पाकिस्तानी राजदूत को इस मामले में चेतावनी देने के लिए भारतीय विदेश मंत्री ने अपने ऑफिस में तलब कर लिया था। भारतीय मीडिया इस बात को लेकर हाय तौबा मचाये हुए था। वे चीख़-चीख़ कर पूछ रहे थे कि आखिरकार ऐसा क्यों हुआ?
अब कोई कैसे बताए कि नीलेश उसके हाथ से निकल चुका था। मुनीर पाशा की हालत किसी पगलाए सांड जैसी हो गयी थी और उसका मन कर रहा था कि वह अपना मुँह नोच ले।
तभी उसके फोन पर एक मैसेज और एक फोटो झलकने लगी। वह फोटो यासिर ख़ान की थी। उस मैसेज के अनुसार यासिर ख़ान अपने आदमियों के साथ तुरबत के इलाके की तरफ बढ़ रहा था।
‘ये कमबख्त तुरबत की तरफ किसलिए जा रहा है! क्या पता वो फरार हुआ हिंदुस्तानी लौंडा यासिर ख़ान के साथ ही हो।’ मुनीर पाशा के दिमाग में सवाल कौंधा।
अब उसे क्या पता था कि तुरबत का इलाका यासिर खान यानी जुनैर ख़ान बुगती के परिवार का गढ़ था। एक बार वह अपने इलाके में पहुँच जाता तो उसके बाद यासिर खान की किसी को हवा भी नहीं लगनी थी। मुनीर पाशा अंगारों पर पाँव रखता हुआ अपनी टीम के साथ तुरबत की तरफ रवाना हुआ। उसे किसी भी हालत में यासिर ख़ान से पहले तुरबत पहुँचना था।
अपने आदमियों को नीलेश की तलाशी का अभियान जारी रखने की हिदायत देकर वह आनन-फानन में वहाँ से रवाना हुआ।
कराची के ‘मसरूर एयर बेस’ पर एक हेलिकॉप्टर उसके लिए तैयार खड़ा था।
☸☸☸
मुंबई
श्रीकांत और राजीव जयराम अंधेरी पुलिस स्टेशन के कमरे में आमने-सामने मौजूद थे। दोनों के बीच में एक अभेद्य सन्नाटा पसरा हुआ था।
राजीव जयराम अभी अब्दील राज़िक का इक़बालिया बयान वाला वीडियो देख कर हटे थे। इस वीडियो को देखकर राजीव के होश उड़े हुए थे। यह बयान हालाँकि अधिकारिक नहीं था और गैरकानूनी था लेकिन अब्दील को हिरासत में दिखाने के बाद अगर यह बयान किसी अदालत में पेश हुआ होता तो एक विस्फोटक बयान था।
राजीव जयराम ने अभिजीत देवल को फोन किया।
“बोलो राजीव! क्या प्रोग्रेस है?” अभिजीत देवल ने छूटते ही पूछा।
“एक खबर है। हमने उस आदमी, अब्दील राज़िक, को पकड़ लिया है जिसकी जगह नीलेश को यहाँ से कराची पहुँचा दिया गया था।” राजीव ने कहा।
“कुछ पता लगा? किसका खेल है यह?”
“पता लग गया। आप भी सुनेंगे तो बौखला जाएँगे।”
“अच्छा! बहुत दिनों ऐसा नहीं हुआ है कि हम बौखलाए हों। हो सकता है अब की बार तुम हमें कुछ ऐसी खबर सुनाओ।”
राजीव ने अब्दील के इक़बालिया बयान के बारे में बताया। इस बात को सुनकर अभिजीत देवल की तरफ से कुछ समय तक कोई आवाज नहीं आयी।
“क्या हमारे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं?” अभिजीत देवल ने पूछा।
“फिलहाल तो अब्दील राज़िक का इक़बालिया बयान ही है हमारे पास। जल्दी ही हम बाकी लोगों तक भी पहुँच जाएँगे। इसके ऊपर मोहर तो इंवेस्टिगेशन से ही लगेगी।” राजीव जयराम ने हकीकत बतायी।
“यह बयान कानून की नज़र में कोई अहमियत नहीं रखता। यही कमबख़्त अब्दील कोर्ट में मुकर जाएगा। इसे पाकिस्तानी ही साबित करने में हमें बरसों लग जाएँगे। पाकिस्तानी इसे अपना नागरिक तक मानने से इंकार कर देंगे। वे लोग अपने रिकॉर्ड में कोई और अब्दील खड़ा कर देंगे या इसे मरा हुआ दिखा देंगे। वैसे भी हमारे यहाँ के फ्लाइट रिकॉर्ड के मुताबिक यह आदमी इंडिया से जा चुका है। हमारा सिक्योरिटी सिस्टम ही इस मामले में नाकामयाब रहा है।” अभिजीत देवल ने शंका जाहिर की।
“आपकी बात सही है। कानूनन तो बहुत पेचीदगियाँ आएँगी ही। जल्दी ही कोई और लिंक भी हमारे काबू में आ ही जाएगा।” राजीव जयराम ने आशा जताई।
श्रीकांत ने दिलावर टकले के बारे में मिली टिप के बारे में राजीव जयराम को बताया।
“हमारी टीम को इस बारे में एक लीड मिली है। इस ड्रामे का अहम किरदार दिलावर नाम का एक गैंगस्टर हमारे राडार पर आ गया है। मुझे यकीन है कि जल्दी ही हमें सफलता मिलेगी।” श्रीकांत की बात सुनकर राजीव ने यह बात भी जोड़ी।
तभी राजीव के दूसरे फोन पर एक मैसेज फ्लेश आउट हुआ। उस मैसेज को देख कर राजीव के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर गयी।
“अभी-अभी एक खास खबर मिली है, देवल साहब।”
“क्या?”
“हमारे सोर्स नीलेश पासी को उन लोगों की कैद से आज़ाद कराने में कामयाब हो गए हैं।”
“गुड! ग्रेट! लेकिन जयराम, हमें उसे यहाँ मुंबई में वापस सुरक्षित लाना होगा। तभी हमारी कामयाबी पूरी होगी। अगर उसे कहीं कुछ हो गया तो हम यह बाजी जीतकर भी हार जाएँगे।”
“आप बेफिक्र रहिए। हम इसमें भी कामयाब होंगे।”
“हम्म। ठीक है। तुम लोग ऑपरेशन दिलावर संभालो। बाकी हम देखते हैं। मैं भी अभी मुंबई के किए रवाना हो रहा हूँ।” अभिजीत देवल ने कहा।
और लाइन कट गयी।
तभी श्रीकांत के फोन पर वाइब्रेशन होने लगी।
“यस, नैना।” श्रीकांत बोला।
नैना का फैक्टरी से फोन था।
नैना ने श्रीकांत और राजीव जयराम को फैक्टरी के हालात के बारे में बताया।
“नैना। टेक केयर एंड नेब आल ऑफ दीज़ बास्टर्ड्स। हम वहाँ पर तुम्हारी मदद के लिए शाहिद रिज़्वी को भेज रहें हैं। टिल दैन कीप द विजिल टाइट।” यह कहते हुए राजीव जयराम ने फोन पर अपनी बात ख़तम की।
“सर, मुझे भी वहाँ पर जल्दी से पहुँचना चाहिए।” श्रीकांत अपनी जगह से तेजी से उठता हुआ बोला।
“नहीं। वहाँ पर शाहिद और नैना संभाल लेंगे। दिल्ली से कादिर मुस्तफा को लेकर बीएसएफ़ के जवान निकल चुके है। वे पठानकोट बेस पर तुम्हारा इंतजार करेंगे। तुम्हें अभी पठानकोट जाना है। कादिर मुस्तफा को तुम पठानकोट से कुपवाड़ा लेकर जाओगे और उनके हवाले करोगे।” जयराम ने श्रीकांत को रोकते हुए कहा।
“अब शायद हमें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। हम लोग आज ही बाकी बंधकों को छुड़ा लेंगे। फिर कादिर को छोड़ने की जरूरत क्या है।” श्रीकांत ने बेसब्री से पूछा।
“इस खेल के सारे पत्ते अभी हमारे हाथ में नहीं है। नवघर की फैक्टरी में जहाँ नैना इस वक़्त मौजूद है, वहाँ क्या होगा हमें पता नहीं। चाहे कुछ भी हो, हम उस्मान ख़ान की डेडलाइन फॉलो करेंगे। आखिर में क्या होगा? ये बाद में वक्त के अनुसार देखेंगे। तुम पठानकोट बेस के लिए जल्दी से रवाना हो जाओ। एक जेट मुंबई एयरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार कर रहा है।”
श्रीकांत के चेहरे की बेबसी और नाराज़गी राजीव जयराम से छुपी न रह सकी। श्रीकांत मन मसोस कर कमरे से बाहर निकल गया।
☸☸☸
नैना दलवी ने ड्रोन में छिपे माइक्रोफोन के माध्यम से दिलावर और तात्या का वार्तालाप सुना। उन्हें ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि जिस प्रोफेसर उर्फ उस्मान खान को वे लोग ढूँढ रहे थे वह इस वक्त उनके सामने की इमारत में मौजूद होगा।
नैना ने श्रीकांत का नंबर मिलाया।
श्रीकांत उस वक्त राजीव जयराम के साथ अभिजीत देवल से बात कर रहा था।
“यस, नैना।” श्रीकांत बोला।
“एक न्यूज़ है। सुनोगे तो फड़क उठोगे। प्रोफेसर मेरे सामने वाली इमारत में मौजूद है।” नैना की आवाज आयी।
“वॉट? यू मीन उस्मान?”
“यस। मैंने उन लोगों की कॉनवर्सेशन सुनी है। उस्मान, दिलावर और विस्टा के एम्प्लॉईस का अपहरण का मास्टरमाइंड तात्या, सभी यहाँ पर हैं।”
श्रीकांत ने राजीव जयराम को तुरंत इस नये घटनाक्रम के बारे में बताया।
“अगर उस्मान वहाँ पर है तो शाहिद रिज़्वी को वहाँ पर मौजूद होना चाहिए। वह ही वहाँ पर उस्मान खान के उस्मान होने की तस्दीक़ कर सकता है।” राजीव जयराम बोले।
“नैना। टेक केयर एंड एंड आल ऑफ दीज़ बास्टर्ड्स।” राजीव जयराम ने नैना से कहा। “हम वहाँ पर तुम्हारी मदद के लिए शाहिद रिज़्वी को भेज रहें हैं। टिल देन कीप द विजिल टाइट।” इतना कहकर राजीव जयराम ने अपनी बात ख़तम की।
“अब क्या करना है? उनकी बातों से तो लगता है कि वे लोग विस्टा के आदमियों को जल्दी ही मारने वालें हैं।” सुधाकर ने नैना से कहा।
“हमें अभी और फोर्स का इंतजार करना पड़ेगा। नागेश एटीएस के साथ बस पहुँचता ही होगा।” नैना ने कलाई पर बँधी अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा।
तभी उन्हें फ्लोरा गार्डन से होकर आने वाले रास्ते पर हलचल दिखाई दी। नागेश कदम अपनी टुकड़ी के साथ वक्त पर पहुँच गया था।
“और भाऊ। पहले से मोर्चा संभाला हुआ है। लगता है जोरदार स्वागत की तैयारी है इधर उस दिलावर टकले की।” नैना का अभिवादन करने के बाद नागेश सुधाकर की तरफ देखता हुआ बोला।
“सिर्फ़ टकला ही नहीं है यहाँ पर। उन साँपों को डसने का फन सिखाने वाला अजगर उस्मान उर्फ प्रोफेसर भी उन लोगों के साथ में मौजूद है।” सुधाकर ने नागेश से हाथ मिलाते हुए जवाब दिया।
“यह हुई न बात। अब इस किस्से को आज यहीं पर खल्लास करते हैं। नैना मैडम, आज तो फाइट टू फिनिश का कमांड जारी कर ही दो।” नागेश पूरे जोश से बोला।
“हमें उस्मान को जिंदा पकड़ना है, नागेश। सबसे बढ़कर चिंता की बात यह है कि उन लोगों की गिरफ्त में विस्टा के जितने भी आदमी हैं, हमें उन्हें बिना किसी की जान के नुकसान के पकड़ना है। इसके लिए हमारे पास एक प्लान है।” नैना ने कहा।
फिर वह नागेश, सुधाकर और मिलिंद राणे को अपना प्लान बताने लगी।
☸☸☸
योगराज पासी अपनी कुर्सी पर ऐसे बैठा हुआ था जैसे उसे लकवा मार गया था। काटो तो खून नहीं। बदन का सारा लहू जैसे पसीना बन कर उसके बदन को भिगो रहा था।
इस समय वह अपने मुंबई स्थित निवास पर मौजूद था। उसके सामने अभिजीत देवल बैठे हुए थे। उनके साथ राजीव जयराम भी मौजूद थे। उसकी यह हालत अब्दील राज़िक के इक़बालिया जुर्म का वीडियो देखने के बाद हुई थी। उसके रहे-सहे कसबल अभिजीत देवल और राजीव जयराम को देखकर निकल गए थे।
उसको अपने राजनीतिक जीवन का अंत होता दिखाई दे रहा था और साथ में दुश्मन देश की गोद में बैठकर गद्दारी करने का कलंक भी अपने माथे पर लगता दिखाई दे रहा था।
अचानक वह फूट-फूट कर रोने लगा।
“अब तुम्हें कुछ तो फैसला करना पड़ेगा, योगराज। तुम्हारे सामने विकल्प बहुत कम रह गए हैं।” अभिजीत देवल ने कहा।
“मैं बहक गया था। मुझे इस बात का गुमान नहीं था कि नीलेश को इस तरह से सीमा पार पहुँचा दिया जाएगा। मुझसे तो सिर्फ़ राजनीतिक मदद माँगी गयी थी जिसके बदले मुझे पैसा मिलना था। मैं अपनी पार्टी को मजबूत करने के लालच में और यहाँ सरकार में बड़ी साझेदारी के लालच में आ गया। मुझे नहीं पता था कि मेरे बेटे को अगवा करवाने का षड्यंत्र मुझे अपने दबाव में लेने के लिए रचा गया था।” योगराज सुबकता हुआ बोला।
“कितने रुपए मिलने वाले थे तुम्हें?” अभिजीत देवल ने पूछा।
“केंद्र से समर्थन वापस लेने के सौ करोड़ और राज्य सरकार में मनचाही हिस्सेदारी।” योगराज दबे हुए स्वर में बोला।
“नीलेश के साथ जो हुआ उसका तुम्हें पता था।” राजीव जयराम बोला।
योगराज चुप रहा।
“सत्ता का नशा सबसे बड़ा नशा होता है, योगराज। यह कलंकित सत्य आदिकाल से अपने आपको बारबार दोहराता रहता है। तुम इसके नये शिकार हो गए लेकिन जरा एक बार सोच कर देखना कि इतना सब कुछ किस लिए? अगर तुम्हारा बेटा ही इस दुनिया में नहीं रहा तो फिर यह सब सुख किसके लिए? क्या तुम इस लांछन को कभी मिटा पाओगे कि तुमने राजसुख के लिए अपने पुत्र को ही बलि चढ़ा दिया। सौ करोड़, जो तुम्हें मिलेंगे भी या नहीं, इस बात का अब संशय है, क्या इस देश और तुम्हारे पुत्र से बढ़ कर होंगे।” अभिजीत देवल की धीर-गंभीर आवाज कमरे में गूँजी।
“मैं अपने ही जाल में फँस गया था। मेरा यकीन करो। मुझे इस बात का भरोसा दिलाया गया था कि मेरे बेटे नीलेश के ऊपर आँच भी नहीं आ पाएगी। वह पूरी तरह सुरक्षित रहेगा।” योगराज के मुँह से निकला।
“आँच! तुमने तो इस देश का दामन झुलसा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी योगराज। तुम आँच की बात करते हो। विस्टा के बाकी लोगों की जान अभी भी सूली पर टँगी हुई है और तुम्हारे इस कुकर्म के दाग को न जाने कितने जवानों और मासूमों को अपने खून से धोना होगा।” राजीव जयराम का धिक्कार भरा स्वर उस कमरे में गूँजा।
“मैं शर्मिंदा हूँ। मैं इसका प्रायश्चित करने के लिए तैयार हूँ। बस मेरे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए। मुझे मेरा बेटा वापस चाहिए। मेरा बेटा वापस आ जाएगा ना?” योगराज कातर स्वर में बोला।
“तुम्हारा बेटा सही सलामत है। वह वापस तुम्हारे पास पहुँच जाएगा। लेकिन इसके लिए तुम्हें भी हमारे लिए कुछ करना पड़ेगा।” अभिजीत देवल ने कहा।
“क्या?” योगराज पासी के मुँह से निकला।
राजीव जयराम ने उसे बताया। योगराज के सामने उसे मानने के सिवा कोई चारा नहीं था।
☸☸☸
0 Comments