रिवॉल्वर की नोक पर ठेलता हुआ विक्रम उसे लॉबी से गुजारकर होटल से बाहर ले आया ।



बाहर बारिश अभी भी हो रही थी और रह-रहकर बादल भी गरजने लगते थे ।



होटल के भूगोल से भली-भांति परिचित विक्रम स्टाफ क्वार्टर्स की ओर चल दिया ।



उसकी जानकारी के मुताबिक सात नम्बर क्वार्टर वन रूम अपार्टमेंट था ।



वे दोनों उसके सम्मुख जा पहुंचे ।



दरवाजा लॉक्ड था ।



विक्रम ने चाबी निकालकर की-होल में फसाई । साथ ही असिस्टेंट मैनेजर की पीठ पर रिवॉल्वर का दबाव और ज्यादा बढ़ा दिया । जो इस बात की मूक चेतावनी थी कि उसने किसी किस्म की जरा भी आहट नहीं करनी थी ।



विक्रम ने बहुत ही धीरे-धीरे चाबी घुमाई ।



ताला खुल गया ।



उसी प्रकार धीरे-धीरे उसने डोरनॉब घुमाई । भड़ाक् से दरवाजा खोला और असिस्टेंट मैनेजर को तुरन्त भीतर कमरे में धकेल दिया ।



अगले ही पल जो हुआ वो पूर्वापेक्षित था ।



कमरे के अन्दर से फायर किया गया ।



पहली गोली असिस्टेंट मैनेजर की छाती में जा घुसी । इस तरह विक्रम को पर्याप्त समय मिल गया ।



अन्दर मौजूद आदमी की एक झलक मिलते ही सान्याल द्वारा दिखाए गए फोटो और बताए गए हुलिए के आधार पर वह उसे पहचान गया था ।



वह कोई और न होकर खुद करीम खान था और विक्रम की चाल को भांप चुका था । वह समझ गया कि बाजी एक बार फिर उलट चुकी थी । वह अपने मकसद में हरगिज कामयाब नहीं हो सकेगा ।



नाकामयाबी के अहसास और हताशा की वजह से एकाएक वह भयानक निर्णय कर बैठा । और हाथ में पकड़ी भारी पिस्तौल का रुख बिस्तर की ओर कर दिया । लेकिन इससे पहले कि वह ट्रीगर दबाता, विक्रम की रिवॉल्वर गरज उठी । और उससे निकली गोली उसकी दायीं कलाई को फाड़ती हुई गुजर गई ।



करीम खान के हाथ से पिस्तौल छूटकर दूर जा गिरी ।



पीड़ा से होंठ काटते हुए उसने अपनी दायीं कलाई बायें हाथ में थाम ली ।



विक्रम ने दूसरा फायर किया । इस दफा गोली उसकी बायीं कोहनी को फाड़कर गुजर गई ।



इसी प्रकार विक्रम ने एक-एक करके उसके घुटनों के जोड़ भी गोली से उड़ा दिए ।



वह फर्श पर जा गिरा था और उसके आसपास उसके अपने ही खून से तालाब-सा बनता जा रहा था । वह होश में था लेकिन तेजी से खून बहने के कारण उस पर बेहोशी छाने लगी थी ।



विक्रम ने बिस्तर की ओर देखा ।



किरण वर्मा मुस्कराती हुई उठी और बिस्तर से उतर गई । उसने अर्थपूर्ण निगाहों से उसे देखा और दायां हाथ फैला दिया ।



विक्रम फौरन उसका आशय समझ गया और अपनी टिकट पॉकेट से निकालकर कैपसूल उसके हाथ पर रख दिया ।



वह कई क्षण अपलक कैपसूल को ताकती रही फिर अपनी दायीं बांह विक्रम के गले में डाल दी ।



"ओह विक्की...'यू आर स्वीट...ग्रेट...वंडरफूल...फंटास्टिक !" कहती हुई वह बेतहाशा उसे चूमने लगी ।



"ठहरो !" विक्रम उसे स्वयं से परे करता हुआ बोला-"सारा जोश अभी खत्म मत करो । आओ, पहले चलकर सान्याल को फोन करते हैं ।"



"फिर क्या करोगे ?"



"इंतजार ।"



किरण वर्मा ने असमंजसतापूर्वक उसकी ओर देखा ।



"इंतजार ! किसका ?"



तुम्हारे कन्धे का जख्म भरने और तुम्हारे फिर से सेहतयाब होने का ।"



"किसलिए ?"



"इसलिए कि मैं भी तुम्हें आजमाना चाहता हूं ।"



"मतलब ?"



"सीधी-सी बात है, तुम कैपसूल मेरे हवाले करके मुझे आजमा चुकी हो । और मैं तुम्हारी आजमाइश पर खरा उतरा हूं ।" विक्रम शरारती लहजे में बोला-"मैं भी जानना चाहता हूं, क्या तुम 'वैसे भी' उतनी ही हंगामाखेज हो जितनी कि देखने में नजर आती हो ?"



किरण वर्मा ने गौर से उसे देखा । मगर उसके चेहरे पर उसकी बातों से मेल खाता कोई भाव नहीं था । वह समझ गई कि उसे घिसा जा रहा था ।



"अच्छा ?" उसने अपने स्वर को गम्भीर बनाते हुए पूछा-"क्या तुम वाकई यह जानने के ख्वाहिशमंद हो ?"



"बेशक !"



"तो फिर इसके लिए इंतजार करने की क्या जरूरत है ?"



विक्रम ने गावदीकी तरह पलकें झपकाई ।



"क्या मतलब ?"



किरण वर्मा ने बिस्तर की ओर इशारा किया ।



'आओ, यह तो मैं अभी साबित किए देती हूं ।"



"क्या ?" विक्रम हड़बड़ाता-सा बोला ।



"यही कि अभी साबित किए देती हूं ।" वह पूर्ववत् स्वर में बोली ।



"ल...लेकिन...?"



"लेकिन क्या ?"



विक्रम खिसिया गया ।



"म...मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था ।" वह फंसीसी आवाज में बोला ।



"सच ?"



"हां ।"



"तो मैंने भी और क्या किया था । मैं भी मजाक ही तो कर रही थी ।"


विक्रम ने उसे घूरा ।



"सच ?"



"सौ फीसदी सच ।"



"ओह !" विक्रम निगाहें झुकाकर बोला ।



"अफसोस हो रहा है ?"



"नहीं ।"



अचानक दोनों की निगाहें मिली और यह समझते ही कि एक-दूसरे को घिसने की कोशिश कर रहे थे । वे एक साथ कहकहा लगाकर हंस दिए ।



फिर विक्रम ने उसकी पीठ में हाथ डाला और उसे लेकर दरवाजे की ओर बढ़ गया । वह पूर्णतया संतुष्ट था, परवेज आलम की हत्या के बाद अचानक शुरू हुआ खौफनाक सिलसिला पूरी तरह खत्म हो चुका था ।



समाप्त