रजनी राजदान !



सफेद बुंदकियों वाला लाल सलवार सूट ! हर लिहाज से लाजवाब नजर आ रही थी । गालों का पीलापन गायब था । आंखों में सुर्खी का चिंह तक नहीं था । चेहरे पर दिलकश मुस्कराहट थी ।



रंजीत ने करीब साढ़े सात बजे फोन किया तो रजनी ने कहा था वह उसका इंतजार कर रही है ।



अब वह अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने मौजूद थी ।



उसे तारीफी निगाहों से देखते रंजीत को अब कुछ–कुछ समझ आ रहा था कि दिन में रजनी से फोन पर बातें करने के बाद से क्यों हर वक्त उसके दिमाग में उथल–पुथल मचती रही थी । एक चिंगारी थी जो अनजाने में ही दोनों के अंदर सुलग उठी थी । वह सोच रहा था, रजनी राजदान न सिर्फ उसके दिलो–दिमाग में ही सूजी की जगह ले सकती थी बल्कि उसकी कसक और पीड़ा को मिटाकर उसके अंदर के खालीपन को भी पूरी तरह भर सकती थी ।



–"हलो !" रजनी बोली ।



रंजीत मुस्कराया ।



–"हलो !"



–"अंदर आओ ।" एक तरफ हटकर बोली ।



रंजीत अंदर चला गया ।



–"पिछली दफा जब मैंने तुम्हें देखा था उससे कहीं ज्यादा बेहतर नजर आ रही हो...तुम इंतिहाई खूबसूरत हो...वाकई लाजवाब ।"



–"लोग कहते हैं पुलिस वालों की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिये ।"



–"मैंने भी सुना है । लेकिन इस वक्त न तो मैं वर्दी में हूँ और न ही ड्यूटी पर…और मेरे ख्याल से तुम वाकई लाजवाब हो ।"



–"थैंक्यू सर ! लेकिन सच्चाई यह भी है कि आप यहां जानकारी हासिल करने आये हैं ।"



–"और यह भी तुम्हीं ने कहा था काम को मनोरंजन के साथ मिला लेना चाहिये ।" रंजीत ने नोट किया घर साफ–सुथरा था और प्रत्येक चीज व्यवस्थित एवं सही ढंग से अपनी जगह मौजूद थी–"तुम्हारा घर भी तुम्हारी तरह सुन्दर है ।"



–"तशरीफ रखिये । ड्रिंक ?"



–"क्या है तुम्हारे पास ?"



–"वोदका, जिन, व्हिस्की और ब्रांडी ।"



अपने घर के माहौल में रजनी अपनी अलग किस्म की औरत नजर आ रही थी । रंजीत को याद आया पहली मुलाकात में रजनी के कुछेक शब्दों ने उसकी शख्सियत की कितनी गलत तस्वीर पेश की थी और इसकी वजह थी–सदमा ! वह उस वक्त गमजदा थी । उसे याद आया रजनी की बात सुनकर उसे ताज्जुब हुआ था जब राकेश से अपने संबंधों के बारे में बड़ी बेबाकी से कबूल किया था–हम अक्सर मौज–मेला किया करते थे...सहवास करते थे । उस वक्त रंजीत को सुनकर झटका लगा था । बात अजीब लगी थी । लेकिन अब सोचने पर महसूस हुआ असल में इतनी अजीब वो बात नहीं थी । रजनी ओर राकेश के बीच वक्ती प्यार का हल्का सा ज़ज़्बा कहा जा सकता था । लेकिन आत्मविश्वास से भरपूर इस युवती ने इसे हर्गिज कबूल नहीं करना था । वह नये जमाने की उस खास नस्ल से थी जिसे दकियानूसी ढंग से सोचने या कुछ भी करने से नफरत थी ।



अचानक उसे अहसास हुआ रजनी उसके जवाब का इंतजार कर रही थी ।



–"तुम क्या लोगी ?"



रजनी ने किसी शरारती स्कूलगर्ल की तरह निचला होंठ दांतों में दबा लिया ।



–"मेरा गुनाह वोदका का है ।"



–"मैं भी अक्सर यह गुनाह कर लेता हूं ।"



–"गुड ! लेकिन मेरा ख्याल था आप व्हिस्की पसंद करते हैं ।"



–"गलत ! वो मुझे अच्छी नहीं लगती ।"



रजनी मुस्कराती हुई ड्रिंक्स बनाने लगी ।



रंजीत ने नोट किया उसका अपना अलग अंदाज़ था । हरकतों और हावभाव में दिखावा या बनावट न होकर सादगी और सलीका था ।



उसे ड्रिंक थमाकर वह सामने सोफाचेयर पर इत्मिनान से बैठ गयी ।



–"चीयर्स !" गिलास ऊपर करके बोली ।



–"सितारों के नाम पर ।"



–"वाह, आप तो रोमांटिक पुलिसमैन हैं ।"



–"जोकर नहीं ?"



–"मुझे रोमांटिक ज्यादा सूट करेगा ।"



–"क्यों ?"



–"क्योंकि मेरे इरादे नेक नहीं हैं ।"



–"मतलब ?"



–"दरअसल मैं कोशिश कर रही हूं मुझसे पूछताछ शुरू करने से पहले ही आपको नशा हो जाये ।



–"देखते हैं ।" रंजीत मुस्कराया–"नशा होने से पहले मैं कहना चाहता हूं तुमने बहुत जल्दी अपने आपको पूरी तरह संभाल लिया । ऐसा बिल्कुल नहीं लगता हाल ही में भारी सदमा पहुंचा है ।



रजनी की आंखों में कौंधी चमक गायब हो गयी ।



–"इसे जाहिर करते रहने से भी कुछ नहीं होता । यह एक कड़वा सबक है लेकिन मैंने मुद्दत पहले ही यह सीख लिया था । हमारी जाती जिंदगी, सिर्फ हमारी होती है । किसी और की नहीं–बशर्ते कि कोई ऐसा खास शख्स न हो जिसके साथ हम इसे शेयर कर सकते हैं । मेरे दिलो–दिमाग में जो होता है उसे दूसरों के सामने बयान करना मुझे पसंद नहीं है । गलत हो या सही मेरी यही फिलास्फी है ।"



–"बहुत अच्छी है ।" रंजीत बोला–"तुमने कहा था मुझे कुछ बताना चाहती हो ।"



–"ओह, अनरोमांटिक पुलिसमैन ।"



–में तुम्हें डिनर के लिये बाहर ले जाना चाहता हूं । कोशिश करुंगा कि वो यादगार बन सके । लेकिन अगर काम बीच में रहेगा तो ऐसा नहीं हो सकेगा । इसलिये काम अभी खत्म कर लेते हैं ।"



–"ठीक है ! तुम्हारी सीधी और साफ बात मुझे अच्छी लगी, रंजीत मलिक !"



–"शुक्रिया ! क्या बताना चाहती हो ?"



–"एक टेलीफोन वार्ता...एकतरफा बातचीत । उसका एक–एक लफ्ज सही दोहरा पाना तो मुश्किल है लेकिन कुछेक बातें खटकने वाली हैं । बताने से पहले क्या में कुछ पूछ सकती हूं ?'



–"पूछो ।"



–"गैट अवे ड्राइवर क्या होता है ?"



–"क्या यह उसी बातचीत का हिस्सा है ?"



–"हां ! लेकिन मैं समझ नहीं पायी ।"



–"पूरी बात बताओ ।"



–"मैं जानना चाहती हूं । राकेश इसे टाल गया था ।"



–"अभी मैं भी टाल रहा हूं । पूरी बात बताओ ।"



–"दरअसल वो बड़ा ही बदमजा वाक़या था । में उसके फ्लैट में थी । हम दोनों सहवास कर रहे थे और आनंद के उन खास पलों से गुजरने ही वाले थे कि फोन बज उठा । यह अजीब बात थी, क्योंकि मेरी वहां मौजूदगी के दौरान ऐसा कम ही होता था और जब भी होता तो वह रिसीवर नहीं उठाता था । टेलीफोन की ओर मुंह बनाकर कहता–अबे देख नहीं रहा है मैं अपनी छोकरी में मसरूफ हूं । फिलहाल तेरे लिये मेरे पास वक्त नहीं है और जो कर रहा होता उसी में लगा रहता । लेकिन उस रोज...घण्टी बजते ही चौंका, घबराया और मेरे ऊपर से उठकर बिस्तर से कूद गया और फौरन रिसीवर उठा लिया !"



–"यह कब की बात थी ?"



–"शनिवार शाम की ।"



–"मेरा मतलब है कितनी पुरानी ?"



–"उसके नेपाल जाने से कोई महीना भर या दो हफ्ते पहले ।"



–"फिर क्या हुआ ?"



–"आमतौर पर दूसरों की टेलीफोन पर बातचीत मैं नहीं सुना करती लेकिन अचानक बीच में लटका दी जाने की वजह से मुझे गुस्सा आ गया था । दूसरे मुझे लगा फोन किसी लड़की का होगा । लेकिन वो आदमी का था ।"



–"तुम्हें पूरा यकीन है ?"



–"हाँ !"



–"कैसे ?"



–"राकेश के बोलने के ढंग से । मुझे लगा किसी औरत से बात कर रहा था क्योंकि उसने कहा था–नहीं, मेरे साथ कोई है । आवाज़ धीमी और ऐसी थी मानों कुछ छिपा रहा था । फिर लहजा बदल गया और कहा–नहीं, दोस्त नहीं सहेली है । कम से कम मेरे ख्याल से किसी औरत से तो वैसा नहीं कहना था उसने । फिर फोनकर्ता ने जरूर ऐसा कुछ कहा कि वह खीज उठा । स्वर तेज और भारी हो गया–मैं जानना चाहता हूं, है क्या उसमें । फिर बोला–नहीं, यह नहीं कि मेरे लिये क्या है, मेरा मतलब है जब वापस आऊंगा तो उसमें होगा क्या–अंधेरे में रहकर काम मैं नहीं कर सकता । फिर फोनकर्ता ने देर तक बातें की और राकेश बार–बार उसे टोकने की कोशिश करता रहा । आखिरकार अपनी बात कहने में कामयाब हो गया और बोला–तुम जो चाहो, उन्हें बता सकते हो । फारूख और अनवर जानते हैं मैं बहुत बढ़िया...।"



–"तुम्हें यकीन है यही सुना था ?" रंजीत ने टोका ।



–"क्या ?"



–"राकेश ने ये ही नाम लिये थे–फारूख और अनवर ?"



–"बेशक ! कल सारी रात में इसे याद करती रही और देर तक इस बारे में सोचती रही । उसने कहा था–फारूख और अनवर जानते हैं मैं बहुत बढ़िया गेटअवे ड्राइवर, लाजवाब शोफर वगैरा हूं । मैंने बहुत काम किये हैं उनके लिये और हमेशा सौ फीसदी कामयाब रहा हूं । उन्हें कभी नीचा नहीं देखने दिया । अगर मैं यह काम करता हूं तो उन्हें मुझ पर भरोसा करना ही होगा । मेरे लिये जानना जरूरी है कि क्या ला रहा हूं । अब तुम बताओ, रंजीत गैटअवे ड्राइवर क्या होता है ?"



–"बस ये ही बातें हुई थीं ?"



–"मुझे तो इतना ही याद है ।"



–"आई सी ।"



–"मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुमने ।"



–"वाकई जानना चाहती हो ?"



–"हाँ ।"



–"सुनकर तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा ।"



–"अच्छा तो वो भी नहीं लगा जिस ढंग से राकेश मारा गया ।"



–"ओ० के० ! गैटअवे ड्राइवर उस कार चालक को कहते हैं जिसे बैंक लूटने या ऐसे ही दूसरे जुर्म करने के बाद जरायम पेशा लोग मौका–ए–वारदात से भाग जाने के लिये इस्तेमाल करते हैं । एक बढ़िया गेटअवे ड्राइवर बहुत ही हाईली पेड और इस काम में स्पेशलाइज्ड मुज़रिम होता है ।"



रजनी को सुनकर वाकई अच्छा नहीं लगा ।



–"तो राकेश गैटअवे ड्राइवर था ?"



–"और भी दूसरे काम करता था लेकिन असल पेशा यही था उसका । मैं जानता हूं तुम्हें कैसा लग रहा है । यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी लड़की को अचानक पता चले कि उसका प्रेमी, जिसे वह भरोसेमंद और वफादार समझती रही थी असल में बेवफा और दगाबाज है ।"



–"ऐसी बातों को तो मैंने नजरअंदाज कर जाना था । भूल जाना था ।"



–"यह तुम खुद को दिलासा देने के लिये कह रही हो ।"



रजनी ने गहरी सांस ली ।



–"नहीं, यह सच्चाई है ।"



–"ठीक है, मैं मान लेता हूं । लेकिन कितनी अजीब बात है, हम उसके बारे में जानते तक नहीं थे जबकि पुलिस विभाग हर एक पेशेवर मुज़रिम की जानकारी रखने का दावा करता है । खैर, कुछ और बता सकती हो ?"



–"नहीं ।"



–"क्या तुम इस बारे में अपना बयान दे सकती हो ?"



–"हां !"



–"तुम्हें ये सब फिर से दोहराना होगा । हम लिख लेंगे और तुम्हें दस्तख़त करने होंगे ।"



–"ठीक है ।" रजनी आह–सी भर कर बोली–"उसकी बातें खत्म हो गयी थीं तो मैंने पूछा था–गेटअवे ड्राइवर क्या होता है । वह हंस पड़ा और बताया कि यह कार रेसिंग में इस्तेमाल की जाने वाली टैक्नीकल टर्म होती है । तब मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था । कितनी बेवकूफ़ हूं मैं, कभी सोचा तक नहीं वह पेशेवर मुज़रिम निकलेगा ।"



रंजीत सहानुभूतिपूर्वक मुस्कराया ।



–"तुम्हारी कोई गलती नहीं है । उसके साथ तुम्हारे जो संबंध थे उनमें ऐसा हो ही जाता है ।"



रजनी की आंखों में आँसू छलक आये । पुरानी यादों में खो गयी–सी नजर आयी ।



–"बहुत बढ़िया आदमी था ।" वह यूं बोली मानों खुद से बातें कर रही थी–"और मेरा ख्याल है मैं उसे प्यार करती थी ।"



–"मैं जानता हूं ।"



–"तुम कुछ नहीं जानते । कोई नहीं जानता । मैं खुद भी नहीं जानती । अब उसकी यादों से कतई कोई प्यार मुझे नहीं है । उसे याद तक करना नहीं चाहती । क्या यह अजीब नहीं लगता ?"



–"नहीं । यह स्वाभाविक है ।"



–"लेकिन उस वक्त...उस पूरे दौर में जब भी उसके साथ होती थी मुझे लगता था उसे प्यार करती हूं, मगर उसे कभी नहीं बताया । अभी तक किसी और को भी नहीं । उस हरामजादे के सामने कभी जिक्र तक नहीं किया । सहवास के दौरान पूरे जोश में आने पर उन खास पलों में भी नहीं जब आमतौर पर हरएक औरत बार–बार अपने प्रेमी पर खुलकर प्यार जाहिर करती है । क्या यह भी अजीब बात नहीं है ? मैंने खुद अपने मन में भी कभी नहीं कहा–मैं उससे प्यार करती हूं और वह कमीना पेशेवर मुज़रिम निकला ।" रजनी के गालों पर आँसू बह निकले–"कम से कम वह तो अपने पेशे के बारे में मुझे बता सकता था । भगवान के लिये मुझे बाहर ले चलो, रंजीत !" वह खड़ी हो गयी–"ठहरो, मैं अभी आती हूं ।"



रजनी यूं मुंह पर हाथ रखे बाथरूम की ओर दौड़ गयी मानों उसे उबकायी आने वाली थी ।



रंजीत सिगरेट सुलगाकर इंतजार करने लगा ।



करीब दस मिनट बाद ।



रजनी वापस लौटी तो पूर्णतया सामान्य थी । चेहरे पर मुस्कराहट भरी ताज़गी लौट आयी थी ।



–"याद है, तुमने यादगार डिनर कराने का वादा किया था ?"



–"हां । क्यों ?"



–"मुझे बहुत जोर से भूख लगी है । किसी बढ़िया जगह लजीज खाना खाना चाहती हूं ।



–"ठीक है !"



–"कहां चलोगे ?"



–"जहां एक पुलिस वाले की तनख्वाह ले जा सकती है ।"



दोनों मुस्कराते हुये फ्लैट से निकल गये ।