शॉवर अब भी चल रहा था। खिड़की की चौखट पर गीले पैर का निशान भी था । साबुनदानी में रखे साबुन को देखकर दिव्या कह उठी-“देखो! देखो देव! वह इस साबुन से नहाया है। इसी साबुन से राजदान नहाया करता था।” 


देवांश के साथ ठकरियाल की नजर भी साबुन पर अटक गई।


वह गीला ही नहीं था बल्कि झाग भी लगे थे उस पर। देखकर कोई भी कह सकता था — वह कुछ ही देर पहले इस्तेमाल हुआ है। 


ठकरियाल ने कहा—“इसमें कोई शक नहीं, यहां कोई नहाया है। मगर अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं, वह राजदान नहीं हो सकता।” 


“मैं तो कब से यही राग अलाप रहा हूं ।” देवांश ने कहा – “लेकिन अपने अलावा किसी और की बात तुम्हें जंचती ही नहीं।” 


उसके रोष पर ठकरियाल हौले से मुस्करा उठा । बोला— “तुम यह बात केवल इस बेस पर कह रहे थे कि राजदान तुम्हारे सामने मरा है, वैसी बातें करता मरा है जैसी तुम्हारे ख्याल से कोई और नहीं कर सकता था ।... ये दोनों ही कारण अकाट्य नहीं थे। फेसमास्क से बहुत देर के लिये न सही, कुछ देर के लिये जरूर सामने वाले को धोखा दिया जा सकता है और सजीव एक्टिंग करने वाले एक से एक धुरंधर आर्टिस्टों से दुनियां भरी पड़ी है ।”


“तो अब जरा अपना बेस भी स्पष्ट कर दो।” थोड़े चिड़े से देवांश ने कहा – “सुनूं तो सही, अचानक कौन सा अकाट्य कारण सूझ गया तुम्हें?”


ठकरियाल कुछ और चमकीली मुस्कान के साथ कह उठा – “जितना सब कुछ तुमने बताया उतना कुछ करने का दम खम ही कहां रह गया था राजदान में कैसे विशाल पत्थर के शीर्ष पर पहुंचकर झरने के नीचे नहा सकता है वह ? कैसे इस खिड़की से लॉन में कूदकर तुमसे तेज भाग सकता है? अपने अंतिम समय में तो वह चार-पांच कदम चलने पर ही हांफने लगता था।”


“य-यही...यही कहना चाहता था मैं । "


“है न अकाट्य कारण?” ठकरियाल ने देवांश की 'चिड़न' का मजा लिया – “अब मुझे पोस्टमार्टम से लाश मिलने का इन्तजार नहीं रहा। पक्के तौर पर कह सकता हूं— मरने वाला राजदान ही था । जो राजदान बना घूम रहा है, वह कोई और है ।” 


“म-मगर ।” दिव्या ने पूछा – “वह ऐसा क्यों कर रहा है ?”


“जो कुछ तुमने बताया उससे तो यही भ्रम होता है वह तुम्हें डराना चाहता था।” कहने के बाद ठकरियाल मुड़ा । बाथरूम से ड्रेसिंग में और ड्रेसिंग से बैडरूम में पहुचा। दिव्या, देवांश उसके पीछे थे। 


एक सिगरेट सुलगाने के बाद उसने आगे कहना शुरू किया—“अब मुझे लगता है, हमारा पहला ख्याल ही दुरुस्त था । राजदान ने अपनी मौत से पहले ही किसी को यह सब करने के लिये ठीक उसी तरह नियुक्त कर दिया था जिस तरह मुझे तुम्हें हलकान करने और अंततः जेल भेजने के मिशन पर किया था।” 


“तो फिर तुम्हारे ही द्वारा उठाये गये सवाल के मुताबिक बबलू इतना खुश और निश्चिन्त क्यों है?” देवांश के लहजे में अब भी व्यंग्य था।


“शायद वह राजदान को सचमुच जिन्दा समझ रहा है।"


“मतलब?”


“मतलब समझाने से पहले मैं तुम्हें एक और बात बताना चाहता हूं।” 


“वह क्या?”


“बबलू हवालात से फरार हो गया है।”


“क-क्या?” दोनों के मुंह खुले रह गये ।


“रात के इस वक्त मैं यहां तुम लोगों को यही इन्फॉरमेशन देने पधारा था।” 


“मगर...ऐसा कैसे हो गया?”


“एक बार फिर मानना पड़ेगा, अभी तक जो भी हुआ है— राजदान की प्लानिंग के मुताबिक हुआ है।” 


“क्या कहना चाहते हो?”


“रामोतार को जानते हो ?”


देवांश के मुंह से निकला – “तुम्हारा वह चहेता पुलिसिया ?”


“बबलू उसी की मदद से फरार हुआ है।”


चौंक पड़ी दिव्या— “ऐसा कैसे हो गया?”


“पैसा बड़ी चीज है ।”


“यानी?”


“अगर पांच लाख के लिये मैं राजदान का पूरा न सही अधूरा काम कर सकता हूं तो क्या दो लाख के लिये रामोतार बबलू को फरार नहीं कर सकता?”


“इस काम के उसे दो लाख मिले हैं?”


“पक्का!”


“किसने दिये?”


“राजदान के अलावा और कौन दे सकता है ?”


“हे भगवान!” दिव्या बड़बड़ा उठी – “मरने से पहले वह कितने लोगो को क्या-क्या बांटकर, क्या-क्या काम सौंप कर गया?” 


“यह काम उसने नहीं, उसके 'क्लोन' ने किया है।”


“अर्थात?”


“रामोतार का कहना है, राजदान आज शाम उसके क्वार्टर पर आया था । वहीं उसे एक लाख रुपये दिये । बबलू को फरार करने का काम सौंपा और बाकी एक लाख काम पूरा होने के बाद पहुंचाने का वादा किया । उसका दावा है राजदान जीवित है।” 


“बाकी एक लाख भी मिल गये उसे ?”


“यही जानने के लिये मैंने रामोतार से अपने क्वार्टर पर फोन करके बीवी से बात करने को कहा। उसकी बीवी ने अपने मियां को बताया- - राजदान साहब अभी-अभी बाकी एक लाख देकर गये है ।”


“यानी वह जो भी है, पूरी ईमानदारी के साथ राजदान द्वारा सौंपे गये काम को अंजाम दे रहा है । ”


“फिलहाल एक ही बात समझ में आ रही — यह कि वह किसी एक व्यक्ति को अपने मिशन का इंचार्ज बनने के बाद मरा है । यह वह व्यक्ति या तो सचमुच बेहद ईमानदार हे या राजदान उसे इतना पैसा सौंप गया है जिसके सामने दो लाख कोई मायने नहीं रखते।” 


“इतना पैसा था ही कहां उसके पास?” देवांश ने कहा ।


“इस फेर में मत पड़ो। राजदान उन लोगों में से था जिनकी चड्डी भी झाड़ो तो करोड़ दो करोड़ टपक पड़ते हैं।” 


“बात तो ठीक कह रहे हो तुम ।” देवांश ने कहा – “मरने से दो ही दिन पहले उसने मुझे रामभाई शाह का कर्जा चुकाने के लिये पचास लाख के शेयर्स दिये थे जबकि उससे पहले मैं सोच रहा था — उसका खजाना खाली हो चुका है।”


“अब तुम बबलू द्वारा राजदान को जीवित समझने का रहस्य समझ गये होंगे।”


“तुम्हारा मतलब है— बबलू राजदान के 'क्लोन' को ही राजदान समझकर खुश और निश्चिन्त है?” 


“क्या ऐसा नहीं हो सकता?”


देवांश कह उठा- -“यकीनन ऐसा ही होगा।”


“राजदान के पास फिलहाल बबलू को अपनी मौत के सदमे से बचाने का भी यही रास्ता था ।” ठकरियाल कहता चला गया— “सारी कड़ियां खुद पर खुद जुड़ती जा रही हैं।”


“मगर अहम् सवाल अब भी वहीं का वहीं है।”


"वह क्या ?”


“राजदान के 'क्लोन' ने बबलू को उसी के मुंह से राजदान का हत्यारा क्यों कहलवाया ? न सिर्फ कहलवाया बल्कि वे सुबूत भी छोड़े जिससे वह हत्यारा सिद्ध हो जाये ।



“इस सवाल का जवाब मेरी जेब में है।”


“जेब में?”


ठकरियाल ने जेब से एक कागज निकालकर उन्हें दिखाते हुए कहा- -“यह कागज मुझे अपने फ्लैट में, राईटिंग टेबल की दराज से मिला है।”


“हम कुछ समझ नहीं।”


ठकरियाल ने टेप के बारे में बताते-बताते कागज की तहें खोलीं और बात पूरी करने के साथ कागज उनकी आंखों के सामने लहराता बोला—“हमारे नाम राजदान का यह एक ओर लव लेटर है ।”


देवांश ने लेटर उसके हाथ से झपट सा लिया । दिव्या भी उस पर झुक गई ।


एक बार फिर, राजदान के लेटर पैड पर उसी की राईटिंग मौजूद थी।


लिखा था ।


इंस्पैक्टर ठकरियाल! तू कितना बड़ा कमीना, जलील और दौलत का दीवाना है, यह बात उसी दिन मेरी समझ में आ गई थी जिस दिन तून मुझसे एक ऐसे काम के पचास लाख रुपये मांगे थे जो इंसानियत के नाते फ्री में करना चाहिये था। याद कर उसी दिन को–तूने खुद मुझे 'देवता' कहा था । कहा था – पैंतालीस साल का हो गया हूं मैं। अपनी बीस साल की सर्विस में दुनियां देखी है मगर आप जैसा महान भाई नहीं देखा राजदान साहब ।'...यह बात तूने तब कही थी जब मैंने तेरे चंगुल में फंसे एक शख्स को बख्श देने की रिक्वेस्ट की थी ।... बात तो तूने इतनी बड़ी कही मगर अगले ही पल मेरी रिस्वेस्ट को मानने की कीमत मांग बैठा। पूरे पचास लाख। मजबूर था । सो, देने पड़े लेकिन समझ गया — इंसानियत से दूर-दूर तक तेरा कोई नाता नहीं है। पैसा ही भगवान है तेरा। पैसे के लिये अपनी मां तक को बेच सकता है। मैंने तुझे पचास ही नहीं, पच्चीस लाख और दिये- -एक दूसरे काम के।


और अब...जबकि मुझे दिव्या और देवांश को उनके कर्मों का फल देना है सो दिमाग के किसी कोने में तू भी पड़ा है। मैं तुझे आज रात आठ बजे फोन करूंगा। रात एक बजे अपने बाथरूम में बुलाऊंगा । वहां से तुझे मेरा एक लेटर, जिसे 'इस लेटर' से पहले लिख चुका हूं, पांच लाख रुपयों के साथ मिलेगा। जानता हूं, तू उस लेटर में लिखे मेरे निर्देशों का पालन करेगा। मेरा दूसरा लेटर एक केसिट के साथ उस सोफे के पीछे से मिलेगा जिस सपर मेरी लाश पड़ी होगी । उस लेटर में लिखे निर्देशों का भी पालन करे तू परन्तु केवल तब तक जब तक यह पता नहीं लगेगा इस झमेले के पीछे पांच करोड़ का चक्कर है। मैं अच्छी तरह जानता हूं— पांच करोड़ की बात खुलते ही वह ठकरियाल जाग उठेगा जो एक लाचार इंसान से भी एक नेक काम के पचास लाख मांगने से नहीं चूका था। वहीं से फंसेगा तू लालच के जाल में और...मेरे निर्देशों को धता दिव्या और देवांश के कदमों से कदम मिला बैठेगा। उसके बाद तुम तीनों मिलकर मेरी हत्या के इल्जाम में बबलू को फंसाने की कोशिश करोगे ताकि बीमा कम्पनी से पांच करोड़ ऐंठे जा सकें।


यहां मैंनें तुम्हारे साथ एक छोटा सा खिलवाड़ करने की ठानी है। ऐसी साजिश रची है कि वह बबलू जिसे तुम मेरा हत्यारा सिद्ध करने के लिये मरे जा रहे होंगे खुद तुमसे सैकड़ों कदम आगे बढ़कर खुद को मेरा हत्यारा साबित करने पर आमादा हो जायेगा। मैं ये सोच-सोचकर रोमांचित हूं कि उस वक्त क्या हालत हो रही होगी तुम तीनों की। कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा होगा तुम्हारी। दिमाग के भिन्यास उड़े हुए होंगे । पगलाये हुए से तुम अंततः बबलू के मुंह से हकीकत उगलवाने के लिये उसे टॉर्चर करना चाहोगे और तब...बबलू तुम्हें मेरे जीवित होने का रहस्य बतायेगा । तुम्हारे होश उड़ जायेंगे | जानना चाहोगे— मैंने बबलू से यह क्यों कहा कि उसे खुद को मेरा हत्यारा साबित करना है। यह बात बबलू तुम्हें नहीं बतायेगा, क्योंकि वह खुद ही नहीं जानता मगर तुम इस बात पर विश्वास नहीं करोगे। टॉर्चर करने की कोशिश करोगे उसे लेकिन कर नहीं पाओगे। इसका प्रबन्ध भी मैंने कर लिया है। वकीलचंद सब सम्भाल लेगा । तब, देर-सवेर तू अपने फ्लेट पर पहुंचेगा। वहां मेरी आवाज का एक टेप तेरा इन्तार कर रहा होगा। वहां से मिलेगा तुझे मेरा 'यह लेटर' ।


अब! एक और धमाके से गुजर ।


जिस वक्त तू ये लेटर पढ़ रहा होगा उस वक्त तेरे थाने में बबलू को हवालात से फरार करने की प्रक्रिया चल रही होगी। मैं इसका भी प्रबन्ध कर चुका हूं। एड़ी से चोटी तक का जोर लगाने के बावजूद तू बबलू को फरार होन से नहीं रोक सकेगा। और अब सोच-कितने बीहड़ हालात में फंस गया है तू?


बल्कि तुम तीनों।


मैं ऐसे बीज बो चुका हूं जो जिस क्षण चाहेंगे बबलू को बेकसूर साबित कर देंगे। इतना ही नहीं, कानून के समक्ष यह भी सिद्ध हो जायेगा—बबलू को फंसाने की कोशिश तुम्हीं ने की । आशा है तुम्हें यह जाल पसंद आया होगा, जिसमें फंस चुके हो ।


तुम्हारा — राजदान ।


एक-एक अक्षर पढ़ते वक्त जहां दिव्या और देवांश के चेहरों पर हैरत के भाव थे, वही अंतिम पंक्तियां पढ़कर होश उड़ गये। पीले पड़ गये चेहरे।


कानों में सांय-सांय की आवाज गूंज रही थी ।


दिमागों ने काम करना बंद कर दिया ।


ठकरियाल ने कहा- “इसे पढ़ते ही मैं फोन की तरफ लपका । इरादा थाने फोन करने का था लेकिन पाया तार टूटा पड़ा था ।”


“जरूर राजदान के 'क्लोन' ने तोड़ा होगा।” आतंकित दिव्या कह उठी।


“अब मेरे पास थाने पहुंचने के अलावा कोई चारा नहीं था। वहां वह सच पाया जो लेटर में लिखा था।” 


“यानी एक बार फिर वही हुआ जो राजदान मरने से पहले निर्धारित कर गया था।”


“हन्डरेड परसेन्ट सहमत हूं मैं इस बात से मगर...


“मगर ?”


“ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि हम हर बार हालात के मुताबिक स्वाभाविक कदम उठाते चले गये।”


“क्या मतलब?”


“हम्म यह बात मेरी समझ में आ चुकी है कि हमारा एक भी अस्वाभाविक कदम राजदान के पूरे प्लान को चौपट कर सकता है।"


“बात भेजे में नहीं घुस रही । ”


“शतरंज के मंजे हुए खिलाड़ियों के बारे में सुना होगा तुमने ।”ठकरियाल कहता चला गया— “जो अच्छे खिलाड़ी होते हैं वे पहले ही अपने प्रतिद्वन्दी की आगमी दस-दस, कई बार तो बीस-बीस चालो का पूर्वानुमान लगा लेते हैं। वे पहले ही सोच लेते हैंमैं ये चाल चलूंगा तो प्रतिद्वन्दी भ यह चाल फलां मोहरा वहां रखना पड़ेगा। राजदान ने कुछ इसी अंदाज में अपना जाल बिछाया है। बेवकूफी अब तक हम यही करते रहे कि हर घटना के जवाब में वही स्टैप उठाते रहे जो उन हालात में स्वाभाविक थे। स्वाभाविक होने के कारण राजदान हमारे हर स्टैप का पूर्वानुमान लगा चुका था और इसीलिये वह पहले ही 'काट' वाली चाल चल गया। ऐसे जाल को तोड़ने के लिए या ऐसे खिलाड़ी को मात देने के लिए जरूरी है - - एक ऐसी चाल चली जाये जिसका पूर्वानुमान वह न लगा सका हो। जाहिर है ऐसी चाल स्वाभाविक नहीं अस्वाभाविक हो सकती है। जैसे ही हमारे द्वारा कोई ऐसी चाल चली जायेगी जो उसने मरने से पहले नहीं सोची थी, वैसे ही उसकी सारी चाल गड़बड़ा जायेंगी। एक बार उसकी चालें गड़बड़ाते ही स्थिति पर हमारा कब्जा होगा ।”


“सुनूं तो सही, तुम ऐसा कौन सा कदम उठाने वाले हो जिसे मरने से पहले राजदान ने नही सोच लिया होगा ।” देवांश के हर लफ्ज में व्यंग्य था।


उसके व्यंग्य का जवाब बड़ी ही धूर्त मुस्कान के साथ देते हुए ठकरियाल ने कहा – “अगर मैं ये कहूं तो तुम्हें कैसा लगेगा कि वैसा एक कदम मैं उठा चुका हूं।"


“उ - उठा चुके हो?” दिव्या के मुंह से चकित स्वर निकला।


“एक तरफ राजदान रामोतार को दो लाख रुपये देकर बबलू को फरार करने के मिशन पर नियुक्त करता है, दूसरी तरफ लेटर के जरिये मुझे बता देता है कि जिस क्षण मैं लेटर पढ़ रहा होऊंगा उस क्षण थाने में बबलू की फरारी की प्रक्रिया चल रही होगी। सोचो, ऐसा क्यों किया उसने? क्या सोचकर खेला होगा ये गेम?”


“मैं तो एक ही बात सोच सकता हूं – वह कदम-कदम पर हमें छकाना चाहता है।"


“नहीं।...यह खेल उसने केवल मुझे छकाने के लिऐ नहीं खेला ।”


“फिर?”


“केवल वकीलचंद की बेहोशी ही मुझे बता सकी–बबलू की फरारी के पीछे स्टाफ के किसी आदमी का हाथ है। सुबह पहुंचता तो वकीलचंद को होश आ चुका होता । खुद वह नहीं बता सकता था कि बीच में वह बेहोश हुआ था । यही सोचता—उसकी आंख लग गई होगी। इस स्पॉट पर मैंने सोचा- - अगर राजदान का मकसद केवल बबलू को फरार ही कराना था तो मुझे लेटर के जरिये क्यों बताया? जवाब स्पष्ट था— ऐसा उसने इसलिये किया ताकि मैं तुरन्त थाने पहुंचूं। मेरे टेलेन्ट को देखते हुए इस बात का पूर्वानुमान उसने लगा ही लिया होगा कि अगर मैं तुरन्त पहुंच गया तो रामोतार को ताड़ जाऊंगा।”


“यानी यह सब उसने रामोतार को तुम्हारे हाथों पकड़वाने के लिये किया?” 


“हालात से जाहिर है ।”


“क्यों?”


“बबलू द्वारा हवालात में दिये गये बयान, मोबाईल पर हुई बातें, राजदान के इस लेटर, अपने साथ कुछ देर पहले घटी घटानाओं से और रामोतार के बयान पर गौर करोगे तो पाओगे—इस स्पॉट पर राजदान हमें ही नहीं, सारी दुनियां को इस भ्रमजाल में फंसाना चाहता है कि वह जीवित है । अपना ‘क्लोन' भी उसने यही सिद्ध करने के लिए मैदान में उतारने का प्लान बनाया होगा।” 


“मगर इससे उसे फायदा क्या होने वाल है?” 


“सोचो, अगर मैं रामोतार को गिरफ्तार कर लूं तो वह सार्वजनिक रूप से क्या बयान देगा?”


“क्या तुमने रामोतार को गिरफ्तार नहीं किया ?”


“अपने सवाल बाद में करना, पहले मेरे सवाल का जवाब दो।”


“बयान क्या देना है—यही कहेगा, खुद राजदान ने उसे इस काम के पैसे दिये थे ।”


“उसका यह बयान हमारा बंटाधार कर देगा ।”


“वह कैसे?”


ठकरियाल ने दिव्या से मुखातिब होकर कहा – “मैं सोच रहा था— -कल ही तुम्हारे द्वारा बीमा कम्पनी को राजदान की पॉलिसी के ‘अगेन्स्ट’ क्लेम हेतु एक एप्लीकेशन दिलाऊंगा। सारी दुनियां की नजरों में राजदान का मर्डर हो चुका है। कम्पनी को केस के जजमेन्ट से कोई मतलब नहीं होता। उसकी नजर में अगर राजदान का मर्डर हुआ है, भले ही वह चाहे जिसने किया हो, तो वक क्लेम देने के लिए बाध्य है अर्थात् चार-पांच दिन के अंदर उन्हें तुम्हारे नाम पांच करोड़ का चैक काटना पड़ता लेकिन...अगर यह प्रचारित हो गया— राजदान जीवित है तो समझ सकते हो, क्लेम झमेले में पड़ जायेगा।”


“ओह!” बात दिव्या और देवांश के भेजे में एक साथ उतर गई ।


"ये है वह कारण जिसकी खातिर मरने से पहले राजदान ने अपना क्लोन तैयार किया ।” ठकरियाल एक-एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया— “जिसकी खातिर इस स्पॅट पर वह खुद को जीवित प्रचारित करना चाहता है। जब पांच करोड़ का चैक ही झमेले में फंस जायेगा तो इस केस में हमारे लिये बचेगा ही क्या ? मेरे ख्याल से अब तुम समझ गये होंगे – कितना गहरा जाल बिछाने के बाद मरा है राजदान। यहां तक पहुंचते-पहुंचते उसने वे पांच करोड़ ही हमसे दूर कर दिये जिनके लिये सारे पापड़ बेल रहे हैं।”


देवांश दांत भींचकर कह उठा — -“बड़ा ही हरामजादा था कमीना ।”


“नहीं।” ठकरियाल मुस्कराया— “न मैं उसे हरामजादा कहूंगा! न कमीना!... मैं उसे एक बहुत ही ब्रिलियेन्ट शख्स कहूंगा। मरने से क्या कमाल की शतरंजी बिसात बिछा गया है वह । वह, जो आज इस दुनियां में नहीं है। हमारे द्वारा जरा सी चूक होते ही हमें उन पांच करोड़ से महरूम कर सकता है जिनके लिये इस कीचड़ में उतरे हैं। वाकई — कमाल का प्लान बनाने के बाद मरा है वह।” 


“लेकिन।” दिव्या ने कहा – “यह चाल उसकी चलेगी कब तक? क्लोन बहरहाल क्लोन है । एक न एक दिन यह साबित होगा ही कि असली राजदान वास्तव में मर चुका है। उस दिन क्लेम देना पड़ेगा बीमा कम्पनी को।”


“मेरे ख्याल से उसके प्लान के मुताबिक उस वक्त तक उसके पैंतरे हम तीनों को पूरी तरह सक्सपोज कर चुके होंगे।” 


“ओह!” दिव्या के चेहरे पर निराशा फैल गई।


देवांश ने कहा—— -“सचमुच! हम इतनी दूर तक नहीं सोच पाये थे ठकरियाल । खुद को जीवित प्रचारित करने की कोशिश के पीछे कितना बड़ा उद्देश्य है कम्बख्त का ।”


“ये सब बातें मेरे दिमाग में तब आईं जब यह समझा कि वह रामोतार को मेरे हाथों गिरफ्तार कराना चाहता है और... बातें समझ में आते ही मैंने उसे गिरफ्तार करने का विचार त्याग दिया ।”


“मतलब?”


“यहां में यह भी स्पष्ट कर देना चाहूंगा – मेरी अब तक की रीडिंग के मुताबिक किसी भी मोहरे को राजदान ने अपने पूरे प्लान से अबगत नहीं कराया है। फॉर ऐग्जाम्पिल – शुरू-शुरू में, पांच लाख में खरीदा गया मैं भी उसका एक मोहरा ही था । लेटर्स के जरिये उसने मुझे अधूरी बातें बताकर आगे बढ़ाया। यह भनक तो कहीं लगने ही नहीं दी कि वह मेरे पैंतरा बदलने की कल्पना भी कर चुका था और उससे आगे जाल बिछा चुका था । बबलू और वकीलचंद का उदाहारण भी सामने है। उन दोनों को भी राजदान का पूरा प्लान नहीं बल्कि केवल यह मालूम है जो उन्हें करना है । अर्थात् बड़ी ही चतुराई से उसने हरेक शख्स का 'यूज' किया है । रामोतार भी उन्हीं में से एक है। उसे दो लाख में केवल बबलू को फरार करने का काम सौंपा गया। साथ ही बड़ी चालाकी से उसकी नॉलिज में राजदान के जीवित होने की बात ला दी गई ताकि भविष्य में मेरे द्वार गिरफ्तार होने पर स्वाभाविक रूप से उसके जीवित होने के बयान दे और राजदान का उल्लू सीधा हो जाये । इसके आगे-पीछे राजदान का क्या प्लान है इस बारे में रामोतार कुछ नही जानता। तभी तो उसने मुझे ब्लैक मेल किया ।” ।


“ब्लैक मेल किया?”


“वह उन दो कामों में से एक के बारे में जानता है जिनका जिक्र राजदान ने इस लेटर के शुरू में किया है । जिस काम के मैंने राजदान से पच्चीस लाख लिये थे । रामोतार ने मुझे उसी को लेकर ब्लैक मेल किया । धमकी दी- - अगर मैंने उसे गिरफ्तार किया तो वह मेरी उस करतूत को सार्वजनिक कर देगा । जी चाहा — गर्दन मरोड़ दूं साले की । हवलदार होकर थानाध्यक्ष को ब्लैक मेल करने की कोशिश कर रहा था और... ऐसा कर भी सकता था मैं । बता सकता था कि ठकरियाल ब्लैक मेल होने वालों में से नहीं है परन्तु राजदान की लाश को मात देने के लिये जो अस्वाभाविक चाल चलने की बात मेरे दिमाग में आ चुकी थी उसे परवान चढ़ाने की खातिर फिलहाल मैंने ऐसी ही एक्टिंग करना मुनासिब समझा जैसे उसकी धमकी से डर गया होऊं।” 


“अर्थात्?”


“गिरफ्तार नहीं किया उसे।” ठकरियाल ने बताया— “वह इस खुशफहमी में है, मैंने उसे धमकी से डरकर गिरफ्तार नहीं किया जबकि हकीकत ये है—मैं केवल इसलिये उसे गिरफ्तार रन करने का फैसला कर चुका था क्योंकि मेरे ख्याल से मरने से पूर्व राजदान ने यही सोचा था कि यहां मैं रामोतार को गिरफ्तार कर लूंगा और वह राजदान के जीवित होने का बयान देगा। यही है मेरी वह अस्वाभाविक चाल जो मेरे ख्याल से राजदान के आगे के सारे प्लान को गड़बड़ा कर रख देगी ।”


“रामोतार से क्या समझौता हुआ तुम्हारा ?”


“वही, जो चोर-चोर मौसरे भाईयों में होता है। न मैं यह बात सार्वजनिक होने दूंगा कि बबलू को फरार करक उसने दो लाख पीट लिये हैं, न वह किसी से मरे पच्ची लाख कमने का जिक्र करेगा।”


“बबलू की फरारी के सम्बन्ध में कहानी क्या गढ़ी जायेगी?”


“वही, जो मेरे सुबह थाने पहुचने पर मुझ तक को सही नजर आती ।... बबलू नाईट ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ और वकीलचंद की गफलत का फायदा उठाकर फरार हो गया।”


“लेकिन।” दिव्या ने कहा- “अकेले रामोतार का मुंह बंद करने से क्या होगा? राजदान के जीवित होने की बात तो लोगों को बबलू भी बतायेगा।”


“वह राजदान का कातिल है । पुलिस कस्टेडी से फरार है। ऐसे शख्स के किसी भी कथन को कोई भी गम्भीरता से नहीं लेता।” 


“राजदान ने अपने लेटर में लिखा है—वह जिस क्षण चाहेगा बबलू को बेगुनाह साबित कर देगा।” 


“हन्डरेड परसेन्ट सही है यह बात ।... गलत नहीं लिखा उसने ।”


“फ-फिर?”


“हमारी कोशिश ऐसा होने से पहले हालात को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेने की होनी चाहिये ।”


दिव्या ने कहा—“कैसे कर सकेंगे ऐसा?”


“कर नहीं सकते मगर कहकर, या सोचकर खुश तो हो ही सकते हैं।" देवांश बड़बड़ाया । “मैं एक बार फिर तुमसे वही कहूंगा देवांश जो अनेक बार पहले भी कह चुका हूं।” ठकरियाल के लहजे में कोड़े की सी फटकार उत्पन्न हो गई थी“हार मान लेने या बुटने टेक देने से काम नहीं चलेगा। मरे हुए राजदान की चाल को यमझने की कोशिश करो । कदम-कदम पर टेप या लेटर्स के जरिये हमें जो उसके मैसेज मिल रहे हैं उनका उद्देश्य ही हमें हतोत्साहित कर देना है । और... वही हम हो जायें। यह एक बार फिर, हमारा उसके जाल में फंस जाना होगा।”


“मैं यह जानना चाहता हूं, हम कर क्या सकते हैं?”


“अपनी समझ में मैं वह पहली चाल चल चुका हूं जिसकी कल्पना मरने से पूर्व रापजदान नहीं कर पाया होगा। अब देखना है— मेरी इस चाल के जवाब में उसकी कौन-सी चाल ‘खुलती' है।”


“जितना चालू राजदान अपनी अब तक की चालों से साबित हुआ है, उसकी रोशनी में मैं ये नहीं मान सकता उसने यह कल्पना भी नहीं कर ली होगी कि किसी स्पॉट पर तुम अस्वाभाविक अर्थात् उल्टी चाल भी चल सकते हो।”


“यानी उसने यह कल्पना भी कर ली होगी कि मुमकिन है— मैं रामोतार को गिरफ्तार न करू?” “बिल्कुल हो सकता है।” ठकरियाल ने कहा – “मरने के बाद जितनी चालू रकम बनकर राजदान सामने आया है उसमें हमें यह कल्पना भी कर लेनी चाहिये कि सम्भत है – उसने यह भी सोच लिया हो और मेरी इस चाल को काटने वाली चाल भी पहले ही चल सोचना है कि ऐसी वह क्या चाल चल गया होगा?” गया हो। इसलिये—अब हमारा काम यह


“लगाते रहो कयास।" देवांश बोला


-“मेरे ख्याल से हम उसके दिमाग तक कभी नहीं पहुंच पायेंगे।”


“ऐसा सोचकर हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठा जा सकता। इस ‘स्पॉट' पर वह अगर यह जाल बिछाकर गया है कि लोगों को उसके जीवित होने का भ्रम हो जाये तो हमें यह कोशिश करनी है— लोगो को उसकी मौत का पक्का विश्वास हो जाये।” “इसके लिये क्या कर सकते हैं हम?"


“मेरे ख्याल से राजदान के प्लान की रीढ़ की हड्डी यही शख्स है ।" देवांश की बात ध्यान दिये बगैर ठकरियाल एक बार फिर कहता चला गया—“प्लान के बारे में पूरा न सही, सबसे ज्यादा मालूम भी उसी को होना चाहिये । वही बबलू को भ्रम में रखे हुए है। उसी ने रामोतार को दो लाख दिय । एक तरह से यह कहा जा सकता है - - राजदान के बाद वही उसके प्लान को संचालित कर रहा अर्थात् अगर एक बार हम किसी तरह उस तक पहुंच जायें। उस पर काबू पा लें तो सारे हालात हमारे पक्ष में मुड़ सकते हैं।”


“वो सब तो मैं समझ गया मगर ऐसा हो कैसे... ठकरियाल उसकी बात काटकर कह उठा“कया?” “


इसके लिये मैने एक तरकीब सोची है।”


“मैं बबलू के मां-बाप को उठा लेता हूं।" ?”


“ल-लेकिन...उन्हें किस जुर्म में उठाया जा सकता है।


“यह जुर्म कम नहीं है कि वे बबलू के मां-बाप हैं।” “यह क्या जुर्म हुआ?”


“हम पुलिस वालों की नजर में किसी छोटे-मोटे अपराधी के मां-बाप होना भी का फी बड़ा जुर्म होता ह। और वे...वे तो कातिल के मां-बाप हैं। कातिल भी ऐसा जो सारे थाने को धता बताकर फरार हो गया हैं उस पर दबाव बनाने के लिये, उसे सामने लाने के लिए पुलिस ऐसा कर सकती है।”


“मान लो ऐसा कर भी लिया, फायदा क्या होगा?”


“राजदान के लेटर की अंतिम पंक्तियों पर ध्यान दो... लिखा है, बबलू को चाहे जिस क्षण बेकसूर साबित किया जा सकता है। जाहिर है — राजदान को क्लोन जल्द ही इस दिशा में कोई कदम उठा सकता है। हमारी यह कार्यवाई एक तरह से उस पर यह धमकी होगी की यदि उसने बबलू को बेकसूर और हमें कुसूरवार सिद्ध करने की कोशिश की तो भले ही हम जेल चले जायें मगर बबलू के मां-बाप की खैरियत नहीं है ।”


“क्या इस धमकी से वह डरेगा ?”


“अगर वह उसका शुभचिन्तक न होकर, केवल खरीदा हुआ मोहरा हुआ ?”


“तब भी हाथ पर हाथ धरे बैठकर दुश्मन की चाल का इन्तजार करने से बेहतर कुछ करना है।” ठकरियाल के दिमाग की जाम पड़ी नसों ने मानो खुलना शुरू कर दिया था – “दुश्मन के आक्रमण कर देना। हमारी यह कार्यवाई एक तरह से उन पर आक्रमण ही होगी । हमारी तरफ से पहला आक्रमण ।”


“बात जम रही हैं” अब देवांश भी उत्साहित ही नजर आया— “बबलू हो या राजदान का क्लोन । यह कार्यवाई दोनों पर हमारी दबाव बढ़ा देगी मगर...


“मगर ?”


“मेरे ख्याल से हमें अपनी कार्यवाई का दायरा थोड़ा बढ़ा देना चाहिये ।” “मतलब?”


“बबलू के मां-बाप के साथ स्वीटी को भी उठा लेना चाहिये । क्लोन के बारे में तो नहीं कह सकता मगर बबलू पर एक्सट्रा दबाव जरूर पड़ेगा।”


“व...वेरी गुडा।” दिव्या कह उठी – “देवांश बिल्कुल ठीक कह रहा है।”