मोना चौधरी ने हल्के पीले रंग की ढीली ढाली कमीज और जीन की नीली पैंट पहन रखी थी। ब्वाय कट हेयर सदाबहार खूबसूरती के साथ उसने भीतर प्रवेश किया। कानों में छोटी-छोटी-सी बालियां। माथे पर आ रही बालों की मोटी लट। कईयों की निगाहें उसकी तरफ उठीं ।


भीतर प्रवेश करते ही मोना चौधरी ठिठकी। नजरें हर तरफ घूमों। पारसनाथ कुर्सी से उठकर मोना चौधरी की तरफ बढ़ गया। “छोरे!” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया- “मोना चौधरी को अब 'वडना' है ।”


“बाप! काम वैसे ही होएला, जैसे जगमोहन प्लान फिट करेला ।” रुस्तम राव ने कहा- "अपुण को गड़बड़ लगेला।"


“म्हारे को तो सबो कुछ सीधो लगो हो ।”


“नेई बाप । पारसनाथ आपुन के पास आकर बैठेला । बता डाला कि मोना चौधरी आएला । पक्का, पारसनाथ ही मोना चौधरी को इधर कॉल करेला ।” रुस्तम राव बोला।


दोनों की निगाहें पारसनाथ और मोना चौधरी पर थीं। 


“छोरे ! वो आयो आवे या पारसनाथ बुलाये। अंम तो मोना


चौधरी को सामनो देखनो चावें । यो ही तो म्हारो प्लान हौवे ।” 


“वो इधर ही आएला बाप ।”


“अंम तो उसो का लम्बो-चौड़ो स्वागत करो कि उसो को कोई शको न होवो अंम पर ।"


तब तक पारसनाथ और मोना चौधरी पास आ पहुंचे थे।


"हैलो।" मोना चौधरी जान लेने वाले ढंग में मुस्कराई - "तुम दोनों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। कैसे हो तुम लोग। वो जगमोहन, सोहनलाल, देवराज चौहान कैसा है?"


“सब एकदम फिट होएला।" रुस्तम राव कह उठा- "देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल से आपुन बोत दिनों से नेई मिलेला । महाजन कैसा दिखेला ?”


“बहुत अच्छा।" मोना चौधरी उसी अदांज में कहती हुई बैठ गई - "मुम्बई से कब आये ?"


"दो दिन हो गयो म्हारे को दिल्ली आवे। लोग तो बोलो हो दिल्ली दिलो वालों की हौवे।" वांकेलाल राठौर का हाथ मूंछों पर पहुंच गया- "म्हारे को यां पे दिलो की धड़कनो भी न बजती दिखो।"


“दिल भी दिखेंगे और धड़कने भी बजती हैं। सुनने वाले कान चाहिये । "


“कान तो म्हारे ठीको ही होवो।" बांकेलाल राठौर ने मुस्कराकर रुस्तम राव को देखा- “क्यों छोरे ?"


“ठीक कहेला बाप ।”


पारसनाथ भी बैठ गया।


“छोरे ! इनके खानो के वास्ते कुछ मंगवा लयो ।” 


“तुम लोग यहां कैसे ?” मोना चौधरी बोली- “कोई काम है क्या ?"


“यां पे तो अंम खानो के वास्तो आयो । बोत बढ़िया खानो हौवो यां पे ।” बांकेलाल राठौर कह उठा- "मुम्बई में तो मन्ने ऐसा खानो मिलो ना ।”


“बाप! कई पे तो ऐसा खाना पक्का होएला ।”


"मैंने पूछा है मुम्बई से कोई खास काम के लिए यहां आये हो ?” मोना चौधरी ने उसी लहजे में पूछा ।


“अंम खास काम के लियो ही इधर-उधर जायो।" बांकेलाल राठौर सिर हिलाकर कह उठा- "इस बारो तो फंस गयो । वो बंदा बोत दम-खम वालो हौवे । अंम उसो पर काबू न कर पायो । उसो से कुछ पूछनो हौवे । इसो कामो के वास्तो दिल्ली आयो ।”


“किसकी बात कर रहे हो ?”


“वो उधर । छोरे - वो किधर हौवे ।" बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को देखा।


“राजा गार्डन में वो होएला। दादा-दादा कहेला हैं उसे लोग।" मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा ।


“ये किसकी बात कर रहे हैं ?"


पारसनाथ ने बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव को देखा। 


“नाम क्या है उसका ?"


“नाम तो आपुन को नेई मालूम चावला-चावला कहेला उसे।” 


पारसनाथ का हाथ अपने खुरदरे चेहरे पर फिरने लगा। फिर मोना चौधरी से कहा।


“ये नाम मुझे याद नहीं आ रहा ।” - 


"मोना चौधरी"- बांकेलाल राठौर फौरन कह उठा- “तम चाहो तो म्हारी हैल्प कर सको हो। पांचो मिनट के लियो, उसो पर काबू पायो। अंम उसो से दो वातें पूछ लयो।" 


“मोना चौधरी, आपुन की हैल्प क्यों करेला।” रुस्तम राव ने बांकेलाल राठौर से कहा -“कम्भी-कभी आपुन देवराज चौहान के साथ काम करेला और ये देवराज चौहान का दुश्मन होएला ।” 


“बात तो थारी सोलहो आनो सचो हौवो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।


मोना चौधरी उसी मुस्कान भरे लहजे में कह उठी। 


“ये बात ठीक है कि मैं देवराज चौहान की दुश्मन हूं। हममें झगड़ा है। लेकिन तुम दोनों से मेरा सीधा-सीधा कोई झगड़ा नहीं। ऐसे में तुम दोनों का छोटा-सा ये काम करने पर भी मुझे एतराज नहीं।"


उसी पल बांकेलाल राठौर मुस्कराकर रुस्तम राव से कह उठा । 


“यो बात तो बोत जल्दी बन गयो छोरो। मोना चौधरी उसो चावलो गर्दन पकड़ो हो म्हारे वास्ते ।"


“देर क्यों होएला बाप । अभी उसकी गर्दन - ।” 


“इत्ती भी जल्दी का हौवे । मोन्ना चौधरी का पसीनो सूखने दयो । लंच करनो दो । आराम से चल्लो हो । अबो तो मोन्ना चौधरी म्हारे साथो ही कामो पे होवे ।”


पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेर रहा था। नजरें दोनों पर जा रही थीं ।


“लंच का मन नहीं है। ब्रेक फास्ट ज्यादा ले लिया था।" मोना चौधरी ने कहा- “मुझे अभी चलने में कोई एतराज नहीं ।” 


“म्हारे को क्या एतराज होवे। अंम तो पेट भरो के खा भी लयो और बिलो भी दे दयो । क्यों छोरे अभ्भी चल्लो का ?" कहते हुए बांकेलाल राठौर खड़ा हो गया ।


“ओ०के० बाप । आपुन रेडी होएला ।” रुस्तम राव भी खड़ा हो गया ।


'मोना चौधरी और पारसनाथ की नजरें मिलीं।


“मुझे काम है।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा - "मैं साथ नहीं चल पाऊंगा।”


“मामूली काम है पारसनाथ ।” मोना चौधरी मुस्कराकर, लापरवाही से कह उठी- “तुम्हारी जरूरत भी नहीं है ।” 


“थारो पासो कारो तो हौवे ?” 


"हां"


“अंम थारी कारो में ही जायो । चल्लो चल्लो। चावला की गर्दनों तो ईब पकड़ो अंम।"


***


जगमोहन और सोहनलाल मोना चौधरी को भीतर जाते देख चुके थे। उन्होंने अपनी जगह छोड़ी और कुछ दूर खड़ी कार के साथ तैयार हो गये कि मोना चौधरी बाहर आये और वो उसके पीछे जाकर ठिकाना देखें ।


"तुम्हारा ख्याल ठीक निकला कि बांके और रुस्तम राव को रैस्टोरेंट में बार-बार आता देखकर पारसनाथ इस बात की खबर अवश्य मोना चौधरी को देगा और मोना चौधरी आयेगी। या फिर पारसनाथ, मोना चौधरी को खबर देने, उसके पास जायेगा और पीछा करके हम मोना चौधरी का ठिकाना जान लेंगे।" सोहनलाल बोला। 


दोनों की निगाहें रैस्टोरैंट पर ही थीं।


“अब तक का काम तो सोचों के मुताबिक ही हुआ है।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा- “सब कुछ ठीक तो तब रहेगा कि आगे का काम भी हमारी सोचों के मुताबिक हो जाये।” 


“कुछ समझ में नहीं आता कि क्या होगा।" सोहनलाल

बेचैन-सा हुआ- "शायद हम मोना चौधरी को खत्म न कर सकें।" 




“शायद कर भी दें।” जगमोहन का स्वर सख्त हो गया- "हम चार उसे अकेला घेरेंगे। ऐसे में मोना चौधरी के लिए अपना बचाव करना कठिन हो जायेगा।"


सोहनलाल कुछ न कह सका। चेहरे पर व्याकुलता के भाव उभरे रहे।


“बांके लाल और रुस्तम राव, मोना चौधरी के साथ बाहर

निकलेंगे या अकेले ?” एकाएक सोहनलाल ने पूछा। 


“विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता।" जगमोहन गम्भीर था- “योजना के मुताबिक दोनों की पहली कोशिश यही होगी कि किसी तरह मोना चौधरी को बातों में लेकर उसके साथ ही बाहर आये। अगर वो अपनी इस कोशिश में कामयाब न हो सके तो हमें कोई और रात ही उसे खत्म करने की चेष्टा करेंगे।" मेरे ख्याल में मोना चौधरी को इतनी आसानी से नहीं घेरा जा सकता।" सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। 


जगमोहन के होंठ भिंच गये।


सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली। 


कुछ देर के लिए उनके बीच बातों का सिलसिला रुक गया। 


"ये भी हो सकता है कि मोना चौधरी और पारसनाथ, उन पर शक खाकर उन्हें पकड़कर कैद कर ले और हम यहीं खड़े उनके बाहर निकलने का इन्तजार करते रहें।" सोहनलाल ने कहा।


"इतना आसान नहीं है उन दोनों पर काबू पाना। रेस्टॉरेंट में बहुत लोग आ-जा रहे हैं ऐसे में पारसनाथ अपने रेस्टोरेंट में गड़बड़ नहीं होने देगा। ऐसा कुछ हुआ तो भीतर वाले का हमें फौरन एहसास हो।" कहते-कहते जगमोहन को आखें सिकुड़ीं- "दो बाहर आ रहे हैं। मोना चौधरी भी साथ है सोहनलाल।" 


दोनों एकाएक सतर्क हो गये।


उनके देखते ही देखते मोना चौधरी के साथ ये पार्किंग में खड़ी उस कार में बैटे, जिस कार में मोना चौधरी यहां पहुंची थी। कार होटल के पार्किंग से निकलकर सड़क पर पहुंची और आगे बढ़ती चली गई।


जगमोहन कार स्टार्ट कर चुका था। उसने कार आगे बढ़ाई और पीछा जारी हो गया।


“हो सकता है हम कुछ ही देर में नोना चौधरी की हत्या करने में सफल हो जायें।" सोहनलाल धीमे स्वर में बोला। 


“शायद ।" जगमोहन गम्भीर था।


“वो दोनों कहां कार रुकवायेंगे ?"


"ऐसी जगह, जहां मोना चौधरी को खत्म किया जा सके।" कहते हुए जगमोहन के दांत भिंचते चले गये थे।


***

जब मोना चौधरी, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव के साथ शीशे का द्वार धकेलकर रेस्टोरेंट से बाहर निकली तो पारसनाथ फौरन शीशे के दरवाजे के पास पहुंचकर बाहर देखने लगा। इस बीच उसने बाहर निकलने की चेष्टा नहीं की। हाव-भाव सामान्य थे, परन्तु आंखों में सख्ती भर चुकी थी।

पारसनाथ ने मोना चौधरी की कार बाहर जाते देखी। इसके साथ ही पारसनाथ की कठोर नजरें हर तरफ फिरने लगीं। तभो उसे कुछ दूर खड़ी कार आगे बढ़ती दिखाई दी। जब वो कार ठीक सामने सड़क से निकली तो उसने साफ तौर पर ड्राईविंग सीट पर बैठे जगमोहन को देखा।

पारसनाथ का एक हाथ अपने खुरदरे चेहरे पर पहुंचा और दूसरे हाथ से उसने जेब में पड़ी रिवाल्वर को टिटोता। इसके साथ ही शीशे का दरवाजा धकेलकर बाहर निकला और पार्किंग में खड़ अपनी कार की तरफ दौड़ पड़ा।

***

खाली-सा रास्ता देखकर, मोना चौधरी की बगल में बैठे बांकेलाल राठौर ने फ़र्ती के साथ रिवॉल्वर निकाली और मोना चौधरी की कमर से लगा दी।

मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े। चेहरे पर हल्की-सी कठोरता उभरी ।

"यो म्हारी रिवाल्वर हौवे मोना चौधरी।" बांकेलाल राठौर की आवाज सख्त थी- “अमेरिका में बनी हो यो रिवाल्वर। पूरो डेढ़ लाख में खरीदो हो इसो को। इसी में बढ़िया बातो तो यो हौवे कि इसो की गोली, जिसो के जिस्मो के भीतरो वड़ो, चो न बचो। म्हारो निशानो भी बढ़ियो हौवो।”

“ मैं जानती थी कि तुम लोग ऐसी ही कोई हरकत करोगे।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी।

"मालूम हौवे । तबो भी म्हारे साथो आयो तम ।”

"हां। ये जानने के लिए आना पड़ा कि आखिर पारसनाथ के रैस्टोरैंट में बार-बार आकर, मेरे बारे में क्यों जानना चाहते हो कि मैं कहां रहती हूं? मेरे से क्या चाहिये तुम्हें ? पारसनाथ से सीधे-सीधे तुम लोगों का वास्ता तो हो ही नहीं सकता था।"

“अंमको थारी जान चाहियो मोना चौधरी ।”

“क्यों ?”

पीछे बैठे रुस्तम राव ने अपने हाथ में दबी रिवॉल्वर मोना चौधरी की गर्दन से लगाई। फिर हटा ली ।

“ये आपुन का रिवाल्वर होएला। महंगा नेई होएला मोना चौधरी । पण काम बढ़िया करेला।"

“मैंने पूछा है तुम मेरी जान क्यों लेना चाहते हो।" मोना चौधरी के कठोर स्वर में ठहराव था- "हम लोगों में ऐसी कोई बात नहीं हुई कि तुम लोगों को सीधे-सीधे मेरी जान लेने के लिए मुम्बई से दिल्ली आना पड़े।”

“ऐसा बात होएला कि आपुन लोगों को दिल्ली का रास्ता देखना पड़ेला ।"

“क्या हुआ ?”

“बता दे छोरे।”

“बाप के होते हुए आपुन नेई कहेला ।” 

“ठीको। अंम ही बतायो।" 

बांकेलाल राठौर मोना चौधरी की कमर से रिवाल्वर की नाल सटाये बेहद सतर्क था। 

मोना चौधरी सामान्य गति से कार ड्राइव कर रही थी-

“कुछ दिनों पैले देवराज चौहान भारी मुसीबत में फंसो हो। तबो उसो को बचानों वालों ने उसो से वायदा लयो कि वो उसो का कामो करो। यो तो बादो में मालूम हौवो कि वो चाहो थारा मर्डर हो जायो। देवराज चौहान धर्म संकटों में फंस गयो। बिना वजहो देवराज चौहान थारों सामनों न पड़ना चाहो। उधर वादो भी एडवांस में कर दयो। यो तो उसो को बादो में मालूम पड़ो कि उसो की जानो बचानो वालो थारी जान लेने के वास्ते कहो।"

“समझी।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में बोली- "तो इसलिए तुम लोग मेरी जान -।"

“बीच में क्यों टोकेला बाप! स्टोरी अभ्भी आगे बढ़ेला।" रुस्तम राव ने कहा- “आगे कहेला बाप ।”

"बात यां तको ही हौवे तो सब कुछ चल्लो हो । पण पेशीराम बीचो में आयो और।" 

“पेशीराम ।”

मोना चौधरी के होंठों से निकला !

“देवराज चौहान ही बतायो कि पेशीराम बीचो में आयो और देवराज चौहान को वोलो कि दो महीनो मोना चौधरी से झगड़ो न करो हो । नेई तो उसो की जानो चली जाये। देवराज चौहान बोलो कि जानो जाने के डरो से अंम न रुको बोत रोको उसो को। पण वो तो थारे को 'वडने' के वास्तो दिल्ली भाग आयो । ईब अंम सब सोचो कि देवराज चौहान धारे सामने पड़ो तो उसो की लाईफ बव. जायो । इसो वास्ते अंम पारसनाथ के रेस्टोरेंट में जाको थारो को ढूंढो कि तन्ने खत्म कर दयो और देवराज चौहान बच जायो। समझो म्हारी बातों को के ना ही?"

"बहुत अच्छी तरह समझ गई।" मोना चौधरी शब्दों को चवाकर बोली- “तो देवराज चौहान मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आया हुआ है ।”

"ठीको। पण म्हारे को नेई मालूम हौवे, वो किधर ठहरो हो।” बांकेलाल राठौर की आवाज में सख्ती आ गई थी- “यो सड़को सुनसान हौवे । तंम अपनी मौत की जगह ढूंढो बढ़िया सी। देर न लगायो । अंम तो थारे को कारो में भी शुट करने को रेडी हौवे ।” रुस्तम राव ने पुनः अपनी रिवाल्वर मोना चौधरी की गर्दन से लगा दी।

मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे। चेहरे पर कठोरता फैली हुई थी। आंखें सुलग रही थीं।

"बाप ।" रुस्तम राव कह उठा- "इसके पास तमंचा होएला।

“छोरे अम तो हिल्लो ना। तम ही हाथ मारो हो। ध्यान रखियो छोरे। ईब तू थोड़ी-थोड़ो जवान होण्यो। तमंचा जब निकालो हो तो मोना चौधरी से शरारत मत कर लयो !”

"क्या बात करेला बाप आपुन शरीफ बच्चा होएला ।" 

"सबसे तक शरीफ बच्चा होएला, जबो तक मौका न मिल्लो हो ।"

रुस्तम राव ने पीछे वाली सीट पर रहकर ही मोना चौधरी की तलाशी ली और उसके कपड़ों में फंसी रिवाल्चर निकालकर अपने कब्जे में कर ली।

"थारे को डर तो लागो हो मरनो से।" 

“नहीं।" मोना चौधरी भिंचे स्वर में बोली- “क्योंकि मुझे मालूम है, मैं नहीं मरूंगी।"

“सुनो हो छोरे । का बोलो मोना चौधरी ?”

"सुनेला बाप। इसकी बात की केयर नेई करेला। मरने से पैले सब ऐसे ही बोएला ।”

"रोको कार को।" 

वांकेलाल राठौर के रिवाल्वर का दबाव कमर पर बढ़ गया - "ये जो कच्चो रास्तो बीचे में जाये, उधर को ही कार मोड़ो हो ।”

मोना चौधरी ने फौरन ब्रेक मारे। कार को बांकेलाल राठौर के कहे अनुसार उसी कच्चे रास्ते पर ले लिया। ये और भी सुनसान जगह थी। दिल्ली के रिंग रोड का एरिया था। जहां झाड़ियां पेड़ और पहाड़ी पत्थर नजर आ रहे थे। इन्सान तो क्या इधर जानवर की भी मौजूदगी का एहसास नहीं हो रहा था। यहां गोली भी चले तो उसकी आवाज, शायद ही दूर मौजूद कोई महसूस कर सके।

“छोरो यो जगहों तो फिट हौवे । तैयार होवो 'वडने' के वास्ते?”

“एकदम रेडी होएला बाप" जालिम छोकरे की आवाज अब किसी दरिन्दे की तरह लग रही थी।

“तमसे पूछो हो अम। भोना चौधरी को तो अंम ही' 'वडो' हो, खोपड़ी में गोली मारी के। रोको ये ई पे। मोना चौधरी ने कार रोक दी। 

“बाहरी निकलो।” बांकेलाल राठौर ने कमर में लगी रिवाल्चर का दबाव बढ़ाया- “छोरे !"

रुस्तम राव बाहर निकला और मोना चौधरी से रिवाल्वर सटा दी। मोना चौधरी ने रुस्तम राव को देखा फिर खतरनाक ढंग में पुस्करा पड़ी।

"बाप ये तो अपुन को पटाएला।" 

"इसो का आखिरी हथियार हौवे हुस्नो के वाणों से फायर करनो का । " मोना चौधरी बाहर निकली और दोनों बाहें उठाकर अंगडाई ली।

बांकेलाल राठौर अपना दरवाजा खोलकर बाहर आ चुका था। हाथ में दबी रिवॉल्चर का रूख मोना चौधरी की ही तरफ था।

चेहरे पर मौत के भाव थे ।

“छोरे!” बांकेलाल राठौर वहशी स्वर में कह उठा-"तम देखो अंम कैसो 'वडो' मोना चौधरी को।”

“आपुन देखेला बाप ।” रुस्तम राव रिवाल्वर थामे सावधानी से चार कदम पीछे हट गया।

“जगमोहन और सोहनलाल के आने का इन्तजार नहीं करोगे।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा-“अपनी आंखों के सामने वो मुझे मरता देखेंगे तो उन्हें बहुत शान्ति मिलेगी। "

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव की नजरें मिलीं।

“छोरे ।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया- "यो तो सबो कुछ जानो हो।"

“बाप । पक्का वो पारसनाथ ही इसे ये बात बताएला वो जानेला कि दोनों रैस्टोरेंट के बार खड़ा होएला ।"

“इसो को सबो कुछ मालूम होवे। फिरो भी यो म्हारे साथो भरनो वास्तो आ गयो।"

“जिसका वक्त आएला। वो पक्का करेला।" तभी इंजन की आवाज उनके कानों में पड़ी ।

देखते ही देखते कार पास आकर रुकी और जगमोहनसोहनलाल बाहर निकले।

“ठीक वक्त पर आएला बाप मोना चौधरी अभ्भी शूट होने को जाएला ।"

जगमोहन ने दांत भींचकर मोना चौधरी को देखा। "हैलो जगमोहन।” मोना चौधरी जहर भरे ढंग में मुस्कराई - '

"इस बार बिना वजह मुझे घेरा गया है।"

“वजह है।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा - "तुम - " “सुन चुकी हूं वजह बांके से।”

“अगर तुम्हारी जान नहीं ली गई तो देवराज चौहान को मरना पड़ेगा।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।

“पेशीराम ने ये बात कही है तो यकीनन सच होगी।" मोना 
चौधरी उसी मुस्कान के साथ कह उठी- "उसकी बात कभी भी गलत नहीं होती। उसने मेरी मौत के बारे में तो कुछ नहीं कहा?" 

"नहीं।"

"तो फिर तुम लोग मेरी जान कैसे ले सकते हो। मुझे नहीं मार सकते। अगर मेरी मौत आई होती तो पेशीराम इस बारे में भी तुम लोगों से या फिर मुझसे जिक्र अवश्य करता ।”

"इसका मतलब तुम्हें विश्वास है कि तुम बच जाओगी ।” जगमोहन गुर्रा उठा ।

“तुम लोगों की बातें सुनकर तो ऐसा ही लगता है।" मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।

"ईब अंम थारे को 'वडो' हो ।” बांकेलाल राठौर ने दरिन्दगी से कहा - "बाद में अंम पेशीराम को बतायो कि थारे को अंम गोली मारो के 'वडो' हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर ने रिवाल्वर सीधी की।

“पारसनाथ को नहीं दिखाओगे मेरी मौत ?"

“पारसनाथ ?” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला- "वो तो रैस्टोरैंट में हौवे । ”

“वो यहां है। उसके हाथ में दबी रिवाल्वर तुम लोगों की तरफ  है । तुम लोग तो मुझ पर बाद में गोली चलाओगे। वो पहले ही तुम चार में से, कम से कम दो को तो शूट कर ही देगा।" मोना चौधरी का जहरीला स्वर सख्त और दृढ़ था ।

मोना चौधरी के शब्दों के साथ ही सबकी गर्दनें फुर्ती के साथ इधर-उधर घूमी।

यही वो पल थे कि मोना चौधरी चंद कदम गोली की सी रफ्तार से दौड़ी और फिर झाड़ियों के ढेर में किसी चीते की तरह छलांग लगा दी। अब वो उन लोगों की नजरों से ओझल हो चुकी थी। अभी वो ठीक से सांस भी नहीं ले पाई थी कि एक साथ कई फायर हुए। गोलियां उसके दायें-वायें झाड़ियों में आईं। एक गोली उसके कंधे से रगड़ खाती हुई जमीन में जा धंसी थी। इससे पहले कि पुनः गोलियां आती वो बिल्ली की भांति दौड़ी। चंद कदमों के फांसले पर मौजूद पेड़ के तने की ओट में हो गई।

जिधर झाड़ियां थीं, गोलियां उधर पुनः आईं। परन्तु मोना चौधरी तो इधर, तने की ओट में थी। घुटना मोड़कर उसने पैर ऊपर किया और जूते में फंसा रखा चाकू निकालकर उसे खोला। चार इंच लम्बे फल की धार दोनों तरफ थी । मोना चौधरी के चेहरे पर मौत के भाव नाच रहे थे । आंखें अंगारों की तरह हो रही थीं। उसका पूरा जिस्म वहशी तनाव से भर चुका था। उसे उन चारों में से किसी की आहट का इन्तजार था। वो जानती थी कि उसका फैंका चाकू चार में से एक को पक्का खत्म कर देगा। लेकिन बाकी बचे तीनों के साथ उसे जमकर मुकाबला करना पड़ेगा।

तभी पारसनाथ की सपाट कठोर आवाज वहां गूंजी। - "कोई गोली नहीं चलायेगा। रुस्तम राव मेरी रिवॉल्चर पर है। वो मारा जायेगा।”

गहरी खामोशी छा गई थी इन शब्दों के साथ। 

“जगमोहन।” पारसनाथ की आवाज पुनः आई। 

“हां ।”

"मेरी बात के जवाब में क्या कहते हो ?”

कुछ चुप्पी के बाद जगमोहन का सख्त स्वर मोना चौधरी ने भी सुना ।

“कोई फायर न करे। पारसनाथ ने रुस्तम राव को कवर कर रखा है । "

“पारसनाथ।” बांकेलाल राठौर का क्रोध से भरा स्वर वहां गूंजा - "म्हारे छोरे का एको बालो भी टूटा तो थारे को वड कर

टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा।" “और अगर मोना चौधरी को कुछ हुआ होगा तो मैं तुम चारों को जिन्दा नहीं छोड़ने वाला ।” पारसनाथ का सपाट स्वर खतरनाक भाव लिए हुए था- “चारों मिलकर एक को घेरते हो ।” 

“म्हारी मर्जी । थारे को अंग नामर्द लगो तो, मंजूर हौवे मन्ने ये बात ।”

तभी पारसनाथ का ऊंचा स्वर वहां गूंजा। 

“मोना चौधरी !”

“हां ।” जवाब में तने की ओट में खड़ी मोना चौधरी जोर से बोली। 

“बाहर आ जाओ।"

“मेरे पास रिवॉल्चर नहीं है। ये लोग कभी भी मेरा निशाना ले सकते हैं।" मोना चौधरी ने कहा।

“जगमोहन!" पारसनाथ का स्वर सुनाई दिया- "मोना चौधरी को रिवॉल्वर दो।"

“कैसे दूं। वो तो -"

“जिस दिशा से मोना चौधरी की आवाज आ रही है, उधर रिवॉल्वर फैंक दो।"

पारसनाथ के इन शब्दों के कुछ पलों बाद ही मोना चौधरी मे चंद कदमों की दूरी पर मध्यम सी आवाज के साथ रिवॉल्वर आ गिरी । 

मोना चौधरी फौरन आगे बढ़ी और रिवॉल्वर उठाकर उसे चैक किया। वो भरी हुई थी।

"रिवाल्वर मिल गई मोना चौधरी ?" पारसनाथ का स्वर सुनाई दिया।

"हां।" मोना चौधरी ने ऊंचे स्वर में कहा ।

"निश्चिंत होकर सामने आ जाओ। अगर ये तुम्हारा निशाना लेने की कोशिश करेंगे, तो इनमें से भी कोई नहीं बचेगा। तुम सब भी ये बात अच्छी तरह सुन लो।"

रिवाल्वर थामे मोना चौधरी सावधानी से आगे बढ़ने लगी।

***