रंजीत वापस दूसरे इंटेरोगेशन रूम में पहुंचा ।



असगर अली से पूछताछ अभी भी जारी थी । उसकी हालत खस्ता नजर आ रही थी ।



रंजीत दरवाजे के अंदर ही रुककर वर्मा का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करने लगा ।



अंत में जब वर्मा ने उसकी ओर देखा तो रंजीत उसे इशारा करके बाहर आ गया ।



चंद क्षणोपरान्त वर्मा कमरे से निकला । दरवाज़ा बंद कर दिया ।



–"कुछ बात बनी ?" रंजीत ने पूछा ।



–"नहीं !" वर्मा जवाब देकर बोला–"जितनी देर मुमकिन होगा, उसे यहीं रोका जायेगा और वे दोनों भाई इस फिक्र में सूखते रहेंगे कि आखिर यहां हो क्या रहा है । इस तरह वे इसके साथ तो सख्ती से पेश आयेंगे ही खुद भी घबरा जायेंगे ।" तनिक रुककर पूछा–"लड़की की क्या रिपोर्ट है ?"



–"वक्त आने पर वह कोआपरेट कर सकती है । मैंने उसे जाने दिया ।"



–"नर्मदिली दिखा रहे हो ।"



–"बिल्कुल नहीं, सर !"



वर्मा तनिक मुस्करा दिया ।



–"मुझे काफी काम करना है ।" रंजीत बोला–"आपको यहां मेरी जरूरत है ?"



–"नहीं ! हम निपट लेंगे ।"



–"मैं कोई कांटेक्ट नंबर दूं ?"



–"अगर जरूरत पड़ी तो हम घर पर तुम्हें ट्राई कर लेंगे ।"



–"राइट सर !"



रंजीत पुलिस स्टेशन की इमारत से निकला । उसके दिमाग में दर्जनों विचार घुमड़ रहे थे । सड़कों पर ऑफिसों से घर लौटने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी ।



संयोगवश उसे एक खाली टैक्सी मिल गयी ।



जब तक घर पहुंचा साढ़े छ: बज चुके थे । रजनी राजदान ऑफिस से घर के लिये निकल चुकी होगी । उसे सात बजे के बाद फोन करने के बारे में सोचता हुआ वह बाथरूम में जा घुसा ।



* * * * * *



रमोला न तो अखबार पढ़ पायी थी न टी० वी० देखा और न ही रेडियो सुना था । दिन में काफी देर तक वह अपने नये प्रेमी सतीश के साथ बिस्तर में रही । दोनों में से किसी की भी ड्यूटी शाम साढ़े पांच से पहले शुरू नहीं होनी थी । इसलिये सब कुछ भुलाकर दोनों शारीरिक आनंद के सागर में डूबते–उतरते रहे ।



अंत में दोनों थककर सो गये ।



रमोला की आँखें खुली तो चार बज चुके थे । वह बिस्तर से उतरी । जल्दी से कपड़े पहनकर अपने फ्लैट की ओर दौड़ गयी । ताकि नहा–धोकर कपड़े बदलकर पैराडाइज क्लब में ड्यूटी पर जा सके । टैक्सी में सवार होकर जब क्लब की ओर रवाना हुई तो पहली बार पता चला कितनी ज्यादा थक गयी थी ।



आमतौर पर सीधी क्लब तक के लिये टैक्सी वह नहीं लिया करती थी । रॉक्सी सिनेमा के पास टैक्सी से उतरती और पैदल क्लब जा पहुँचती थी । ऐसा करने की वजह सैर करना हर्गिज नहीं था । दरअसल वह नहीं चाहती थी बलदेव मनोचा या मैनेजमेंट के दूसरे लोग उसे रोजाना टैक्सी में आती देखकर यह न भांप लें कि तनख्वाह के अलावा ग्राहकों से भी उसे मोटी टिप मिल रही थी और उसकी जगह अपनी किसी फेवरेट लड़की की ड्यूटी क्लॉक रूम में लगा दें ।



वह क्लब के पास जा पहुंची । तभी पता चला कोई गड़बड़ थी ।



भारी गड़बड़ !



स्टाफ के लोगों की भीड़ फुटपाथ पर खड़ी उत्तेजित स्वरों में बातें कर रही थी । क्लब की हालत देखकर रमोला को जबरदस्त झटका लगा ।



इमारत तबाह हो गयी थी ।



वह टैक्सी से उतरकर स्टाफ के लोगों की ओर बढ़ी ही थी । पीछे से अपना नाम पुकारा जाता सुनकर ठिठक गयी ।



–"मिस रमोला ।"



वह पलटी ।



मजबूत जिस्म का तीसेक वर्षीय पहलवान टाइप आदमी उसके पास आ पहुंचा ।



अपने वर्किंग प्लेस की तबाही से हैरान, परेशान और सहमी–सी रमोला उसे देख रही थी ।



–"फरमाइये ।"



आदमी मुस्कराया ।



–"मनोचा साहब तुमसे मिलना चाहते हैं । कल रात यहां आग लग गयी थी...तुम्हें तो इस बारे में पता होगा...!"



–"नहीं, मैं बस अभी...!"



–"कोई बात नहीं ! दरअसल क्लब की तबाही के बाद बहुत से लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है । दूसरी जगहों पर जो कुछेक जॉब्स हैं वे सिर्फ चुनींदा लोगों को ही दिये जायेंगे और यह काम चुपचाप किया जा रहा है ।"



रमोला को अचानक बेकार हो जाने का ख़ौफ़ सता रहा था ।



–"मनोचा साहब के पास मेरे लिये दूसरी नौकरी है ?" उसने फ़ौरन पूछा ।



–"अगर करना चाहो ।"



–"मैं जरूर करूंगी...!"



–"इसके लिये पहले तुमसे बातें करना जरूरी है । कार उधर खड़ी है ।" वह सड़क पार खड़ी लाल मर्सीडीज की ओर इशारा करके बोला–"चुपचाप चलकर अंदर बैठ जाओ, पीछे या आगे जहां भी चाहो ।"



रमोला उसके पीछे चल दी ।



दोनों कार में जा बैठे ।



पहलवान इंजिन स्टार्ट करके ड्राइव करने लगा ।



अचानक रमोला को अहसास हुआ न तो इस आदमी का नाम जानती है और न ही यह कि वह कौन है । एक ऐसे आदमी पर पूरी तरह भरोसा कर बैठी थी जिसे पहले कभी देखा तक नहीं था ।



–"कहां जा रहे हैं, हम ?" वह पूछ ही बैठी ।



–"ब्लू मून ! तुम रमोला ही हो ना ?"



–"हां !"



–"पहले कभी उस क्लब में गयी हो ?"



–"नहीं सिर्फ बाहर से देखा है ।"



–"बढ़िया जगह है ।"



–"तुम भी वहीं काम करते हो ?"



–"हां ! मेरा नाम चार्ली है । तुम पैराडाइज क्लब में कब से काम करती हो ?"



–"साल से ज्यादा हो गया...करीब चौदह महीने ।"



–"मनोचा साहब तुम्हें बहुत पसन्द करते लगते हैं ।"



–"पता नहीं । मैं तो उनके संपर्क में ज्यादा रही भी नहीं ।"



–"तुम कुछेक चुनींदा लड़कियों में से एक हो ।"



थोड़ी देर दोनों के बीच खामोशी रही ।



चार्ली कुशलतापूर्वक कार चलाता रहा ।



–"कुछ पता चला आग कैसे लगी थी ?" रमोला ने पूछा ।



–"पता नहीं, मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानता । मुझे अपने कामों से ही फुर्सत नहीं है ।"



करीब पांच मिनट बाद कार पार्किंग में जा रुकी ।



दोनों नीचे उतरे ।



क्लब की इमारत शानदार थी ।



दोनों भीतर दाखिल हुये ।



लॉबी से गुजरती रमोला को माहौल दोस्ताना लगा ।



दोनों सीढ़ियों की ओर बढ़ गये ।



चार्ली उसे साथ लिये टॉप फ्लोर पर पहुंचा ।



'मैनेजर' की तख्ती लगे भारी दरवाजे को दस्तक देकर खोला ।



–"अंदर आओ ।"



रमोला भीतर चली गयी । लेकिन मनोचा वहां नजर नहीं आया ।



कमरे में तीन आदमी थे । एक लंबे बालों वाला सांवला–सा युवक था और बाकी दोनों को रमोला ने अक्सर पैराडाइज क्लब में देखा था । उन्हें अच्छी तरह तो वह नहीं जानती थी लेकिन स्टाफ के दूसरे लोगों की तरह उनके नाम और शोहरत से वाक़िफ़ जरूर थी ।



वे दोनों फारूख हसन और अनवर हसन थे ।



–"यह रमोला है हसन भाई !" चार्ली ने सपाट स्वर में घोषणा–सी की ।



युवक ने रमोला की ओर देखा तक नहीं ।



–"मैं चलता हूं, हसन भाई । अगर जरूरत पड़े तो...!"



–"नहीं, रंगनाथन, तुमने बेहतरीन काम किया है । हमें फख्र है तुम पर ।"



रंगनाथन मुस्कराता हुआ कमरे से निकल गया ।



अनवर हसन ने रमोला की ओर देखा ।



–"बैठो, रमोला !" फिर चार्ली की ओर गरदन घुमायी–"तुम नीचे जाओ ।"



चार्ली चुपचाप बाहर निकल गया ।



रमोला बैठ गयी । वह अब तक नर्वस हो चुकी थी ।



–"मुझे बताया गया था मनोचा साहब मिलना चाहते हैं ।" वह फंसी–सी आवाज़ में बोली ।



–"मनोचा तो अभी यहां नहीं है लेकिन हम तुमसे बातें कर सकते हैं । मैं तो नहीं मेरा भाई बात करेगा । मेरे भाई फारूख को जानती हो ?"



–"आप दोनों को अक्सर पैराडाइज क्लब में देखा है ।"



बड़ी–सी कुर्सी पर बैठे फारूख हसन की आंखों में अजीब–सी चमक थी और होठों पर बड़ी ही कुटिल मुस्कराहट ।



–"कल रात तुम पैराडाइज क्लब में क्लॉक रूम में ड्यूटी पर थीं ?"



रमोला के होंठ सूख रहे थे । वह कुछ नहीं बोल पायी ।



–"थीं या नहीं ?" फारूख ने टोका ।



पुनः खामोशी । रमोला के दिमाग में भारी उथल–पुथल मची थी । क्लब...सतीश...सामने बैठा आदमी और इसके चर्चे...!



–"जबान टूट गयी है क्या, लड़की ?"



रमोला मानों नींद से जागी ।



–"ज...जी हां, कल रात मैं क्लॉक रूम में थी ।"



–"आज उस क्लब को देखा है ?"



–"जी हां !"



–"कल जैसा ही है ?"



–"जी नहीं, देखकर रोना आ गया । वो तबाह हो चुका है ।"



–"बड़ा भारी नुकसान हुआ है । इतना कि तुम सोच भी नहीं सकतीं । जानती हो, क्यों ?"



–"जी नहीं !"



–"अभी जान लोगी । कल रात के बारे में बताओ ।"



–"जी ? मैं समझी नहीं ।"



–"मैंने फारसी नहीं बोली है, जो समझ नहीं सको ।" फारूख का स्वर एकाएक पैना हो गया–"कल रात के बारे में पूछ रहा हूं । क्या किसी कस्टमर की कोई चीज क्लॉक रूम में छूट गयी थी ?"



–"जी हाँ !"



–"क्या चीज थी ?"



–"एक पैकेट ।"



–"और ?"



–"एक लाइट ओवरकोट !"



–"दोनों चीजें एक ही कस्टमर की थीं ?"



–"जी हां !"



–"वे छूटी नहीं थीं । उन्हें जानबूझकर वह वहां छोड़ा गया था । ठीक है ?"



–"जी...लेकिन क्यों ?"



–"क्या पहले भी ऐसा हुआ है ।"



–"जी हां ! अक्सर हो जाता है । लोग चीजें भूल जाते हैं ।"



–"तब तुम्हें क्या करना होता है ? क्या ज़िम्मेदारी है तुम्हारी ?"



रमोला की घबराहट बढ़ गयी । धड़कनें तेज और खाली पेट में अजीब–सी फड़फड़ाहट । उस पर ख़ौफ़ हावी होने लगा ।



–"मिस्टर मनोचा को बता दिया जाता है ।"



–"कल रात भी बताया था ?



–"जी नहीं ।"



–"क्यों ?"



–"मिस्टर मनोचा मुझे नजर नहीं आये ।" रमोला ने झूठ का सहारा लिया ।



–"तुमने ढूंढा था ?"



–"जी हां ।"



–"उसके ऑफिस में गयी थीं । किसी से पूछा था ?"



–"जी नहीं ।"



–"क्यों ?"



झूठ नहीं चला ।



–"म...मैं जाना चाहती थी ।"



–"जल्दबाजी में थीं ?"



–"जी हां ।"



–"क्यों ?"



–"मुझे किसी से...!" रमोला कहती–कहती रुक गयी । खाली से हो रहे दिमाग में कोई बहाना तलाशने की कोशिश की, जिसे कल रात से न जोड़ा जा सके ।



–"तुम्हें किसी से मिलना था ?" फारूख ने टोका–"ठीक है ?"



–"जी हां ।"



–"ब्वॉय फ्रेंड से ? तुम्हारी डेट थी ?"



रमोला चुप रही । जरूर कोई भारी गड़बड़ थी ।



–"तुम्हारी डेट थी ?" फारूख ने सख्ती से दोहराया ।



–"जी हाँ ।" फंसी–सी आवाज़ में बोली ।



–"इसलिये ओवरकोट या पैकेट की इत्तिला मनोचा को नहीं दी ?



–"जी ।"



–"और क्लब की तबाही भी देख चुकी हो ?"



–"जी हाँ ।"



–"क्या पुलिस ने तुमसे पूछताछ की थी ?"



–"पुलिस ? नहीं, क्यों...?"



–"अगर पुलिस तुमसे पूछती है तो तुमने सिर्फ एक ही बात कहनी है कल रात तुम क्लॉक रूम में ड्यूटी पर नहीं थीं...तुमने कोई पैकेट या ओवरकोट कभी नहीं देखा...कल रात पैराडाइज क्लब के आस–पास भी नहीं गयीं । समझ गयीं ?"



–"लेकिन...क्यों...?"



–"मेरी प्यारी क्लॉक रूम अटेंडेंट, इसलिये कि उस मनहूस पैकेट ने क्लब तबाह किया है । तुम्हारे पैकेट की इत्तिला न देने की वजह से वो सब हुआ । क्लब की तबाही के लिये तुम जिम्मेदार हो क्योंकि तुम्हें डेट पर जाना था ।"



–"लेकिन...!"



–"अब तुम्हें कैसा लग रहा है ? उस सारी तबाही के लिये सिर्फ तुम जिम्मेदार हो । क्योंकि तुम्हें किसी नामर्द कुत्ते के साथ हमबिस्तर होने की जल्दी थी...।"



–"वह कोई...।"



–"तो फिर तुम उसके लिये तड़प रही थीं । तुम जल्दी से जल्दी उसके निचे बिछने के लिये मरी जा रही थीं । यही बात थी न ?"



रमोला के अंदर नफरत का उबाल–सा तो उठा लेकिन मुंह नहीं खुल सका ।



–"इसलिये मैं जानना चाहता हूं, इस तबाही से हुये नुकसान भी भरपाई तुम कैसे करोगी ?



–"म...लेकिन, सर…!"



–"मेरा नाम फारूख है । यही कहकर पुकारो । तुम अपनी नौकरी जारी रखना चाहती हो ?"



रमोला समझ नहीं पायी यह सवाल था या धमकी ।



–"मनोचा साहब मुझे वापस काम पर नहीं रखेंगे...।"



–"हम मनोचा की नहीं तुम्हारी बात कर रहे हैं । क्या तुम नौकरी जारी रखना चाहती हो ?"



–"क्लॉक रूम जॉब के लिये अब कौन मुझ पर भरोसा करेगा ?"



–"क्लॉक रूम के अलावा और भी रूम्स होते हैं । तुम लड़कियों के लिये काम की कोई कमी नहीं है ।"



–"मैं समझी नहीं...!"



–"तुम मेरी बात नहीं समझ रही हो ? जबकि असलियत यह है अच्छी तरह समझ रही हो, मैं क्या कह रहा हूँ । किसी ठण्डी और भोली लड़की का नाटक मत करो । तुमने बड़ी भारी मुसीबत पैदा कर दी है । सिर्फ इसलिये कि यार के साथ हमबिस्तरी के मुक़ाबले में हिस्सा लेने की जल्दबाजी में कुछ होश नहीं रहा । अपनी अहम ज़िम्मेदारी तक भूल गयीं । इसका सीधा–सा मतलब है तुम्हारे अंदर खास ख़ूबियाँ हैं, जिन्हें तुम बिस्तर में इस्तेमाल करती हो । इसलिये में तुम्हें ऐसा जॉब दिलाऊंगा जिससे तुम उन खूबियों के दम पर इतना कमाओगी कि कल रात किये गये नुकसान का कुछ हर्जाना भी चुका सको । उस काम में ऐसी कोई ज़िम्मेदारी भी तुम पर नहीं होगी कि पैकेट, ओवरकोट वगैरा की इत्तिला देनी पड़े...!"



–"म...मुझे नहीं लगता...!"



–"तुम्हें क्या लगता है इससे कोई मतलब हमें नहीं है । मैं वो बता रहा हूं जो हमें करना है ।"



रमोला सर से पांव तक कांप गयी ।



–"देखो, लड़की ! कल रात जो तुमने किया उसके बाद हर एक मालिक ने तुम्हारे साथ सख्ती से ही पेश आना था । इतनी सख्ती से कि तुम कभी कहीं काम करने के लायक नहीं रहतीं । तुम्हारी सूरत के साथ–साथ तुम्हारे जिस्म की भी वो गत बना देनी थी कि कोई तुम पर थूकता तक नहीं । तुम खुद भी अपने आपसे नफरत करने लगतीं । बड़ी बेरहमी से टार्चर किया जाता–कांच की बोतल से लेकर तेजाब तक इस्तेमाल करके । मेरे भाई का भी यही इरादा हो सकता है । तुम्हारे सामने और कोई चारा नहीं है ।"



–"मुझे क्या करना...?"



–"यह तो तुम्हारी खूबियों को देखने पर ही तय किया जायेगा...अगर तुम काम करती रहना चाहती हो, अभी भी काम करना चाहती हो ।"



–"में कहीं भी जा सकती हूँ । क्लबों से बाहर काम कर लूंगी । काम की कमी नहीं है ।"



–"तुम मेरी बात नहीं समझ रही हो । कल रात की बात अलग थी । तुमने ऐसा काम किया जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा । इसलिये क्लबों से बाहर काम करने की इजाज़त तुम्हें नहीं दी जायेगी और अगर भागने की कोशिश की तो ज्यादा से ज्यादा दस मिनट में पकड़वा ली जाओगी और मरते दम तक पछताओगी कि भागने की कोशिश ही क्यों की । तुम्हारी तकदीर अच्छी है कि तुम्हें मेरे हवाले कर दिया गया । वरना मेरे भाई ने अब तक तुम्हें पानी में बीस फुट नीचे पहुंचा देना था । लेकिन मेरी हिफाज़त में तुम...खैर, छोड़ो, आओ देखते हैं तुम्हारे अंदर क्या ख़ूबियाँ हैं ।"



वह उठकर एक दरवाजे के पास पहुंचा । जिसकी ओर अब तक रमोला का ध्यान नहीं गया था ।



फारूख ने दरवाज़ा खोल दिया ।



रमोला ने देखा अंदर एक बिस्तर के अलावा दो कुर्सियां पड़ी थीं । हर दीवार पर एक दर्पण और वाशबेसिन लगे थे ।