जाहिर है, दिव्या के सवाल तभी खत्म हुए जब सारी बातें उसकी समझ में आ गयीं । जब सारी बातें समझ में आ गईं तो यह भी समझ में आ गया---एक ही झटके में वह राजदान के जाल से पूरी तरह बाहर निकल आई है ।
और अब... बीमा कम्पनी से पांच करोड़ मिलने में उसे कोई अड़चन नजर नहीं आ रही थी । बोली- -- “क्या उस रात की फिल्म देखकर भी तुम्हें नहीं लगा, राजदान ने अपने दोस्तों की महफिल में जो मुझे नंगी नचाने का फैसला लिया, वह ठीक ही था ?”
“नहीं।"
“क्यों?” दिव्या की आंखें सुकड़ गई .....
“बहुत स्पष्ट कहूं तो जवाब यही है ---मर्द कभी अपने गिरेहबान में झांककर नहीं देखता । राजदान कनाडा से एड्स लाया था। जाहिर है ---गंदी वेश्याओं में मुंह मारा होगा उसने । ऐसा करना गुनाह नहीं था उसकी नजरों में। लेकिन पत्नी का कहीं और चली जाना गुनाह था । इतना बड़ा गुनाह कि वह उसे दोस्तों की महफिल में नंगी नचाने के बीज बो गया । ये मर्द का औरत पर जुल्म नहीं तो और क्या है ?”
दिव्या देखती रह गयी अवतार की तरफ ।
उसकी बात बहुत ही अच्छी लगी थी उसे ।
न्याय संगत | इंसाफ वाली ।
ठीक ही तो है ---राजदान को अपने गिरेहबान में भी तो झांककर देखना चाहिए था।
और ।
जो दिव्या के साथ हो रहा था वह कोई नई बात नहीं थी ।
जब सामने वाला हमारे मन की, हमारे पक्ष की बात कहता है, भले ही वह चाहे कितनी गलत हो हमें अच्छी लगती है कहने वाला 'अपना' नजर आने लगता है। +
अपना हितैषी । शुभचिंतक ।
लगता है --- 'बस यही है वह शख्स जो मुझे समझ सका।'
कुछ ऐसे ही भाव अवतार के लिए दिव्या के मन में भी उमड़े ।
जी चाहा--- उसके कंधे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रो पड़े जिसने उसकी भावनाओं को समझा है। जजबातों को जाना है।"
मगर तभी ।
याद आया ---अवतार हत्यारा है। बैंक लुटेरा । वेश्याओं का दलाल । वांटेड ।
वह तो यहां आया ही उस पर डोरे डालने के लिए है।
उसे फंसाने । शीशे में उतारने ।
क्योंकि वह धनवान है । हुण्डी है पांच करोड़ की।
ठकरियाल का एक- एक शब्द याद आता चला गया ।
सतर्क हो गयी वह ।
एहसास हुआ ---अवतार ने जो कुछ कहा, अपने दिल की गहराइयों से नहीं बल्कि उसे शीशे में उतारने के लिए कहा है। वह बेवकूफ बना रहा है उसे । जाल में फंसा रहा है अपने ।
नहीं।
उसे इस घुटे हुए क्रिमिनल की बातों में नहीं आना है।
यह सब दिमाग में आते ही चेहरा सख्त होता चला गया । हलक से गुर्राहट निकली --- “मिस्टर गिल, आप जो मेरी नजरों में खुद को दुनिया का सबसे अलग मर्द साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, यह कोशिश कामयाब नहीं होगी।”
“मतलब?”
“ आखिर तुम्हारी कौन लगती हूं मैं जो उनके बीच मुझे नंगी नाचते देखकर अच्छा नहीं लगा।"
“ मैं नहीं समझता इस वक्त तुममें सच सुनने की ताकत है।
“क्यों... कहां से कमजोर नजर आ रही हूं मैं ?"
"सचमुच सुनना चाहती हो तो सुनो।” अवतार ने उसे बहुत ने ध्यान से देखा और अपनी ब्राउन कलर की चमकदार आंखें उसके चेहरे पर गड़ाकर कहता चला गया ---"छंटा हुआ क्रिमिनल हूं मैं | एक नम्बर का हरामी । दौलत का दीवाना | औरतखोर... झूठ नहीं बोलूंगा तुमसे, मैं यहां राजदान की मौत पर मातमपुर्सी करने नहीं बल्कि उसकी दौलत पर हाथ साफ करने आया था।"
मन ही मन हैरान रह गई दिव्या ।
उसने स्वप्न तक में नहीं सोचा था अवतार अपने बारे में सीधे-सीधे इतने नंगे शब्दों में सब कुछ बताना शुरू कर देगा। जो उसे छुपाना चाहिए था, उसे साफ-साफ कहता चला गया--- "औरतों को शीशे में उतारने के मामले में मुझे महारत हासिल है। मेरी नजरों में खूबसूरत औरत वैसी नहीं होती थी जैसी तुम हो । बल्कि वह होती थी जो दौलत की चाशनी में लिपटी हो । सोचा था --- राजदान मेरा ही हमउम्र था | ताजा-ताजा बेवा हुई उसकी पत्नी की उम्र भी ज्यादा नहीं होगी। भले ही चमड़ी से चाहे जितनी बदसूरत हो, उसे पटाऊंगा । अपने कब्जे में कर लूंगा उसे, मौका लगते ही दौलत पर हाथ साफ कर लूंगा।”
“ और उस मिशन पर तुम यहां आते ही लग गये थे।” दिव्या के मुंह से स्वतः व्यंगात्मक लहजा निकला--- "मुझ पर नजर पड़ते ही डोरे डालने शुरू कर दिये थे । ”
“बेशक | तुम्हें देखते ही मैंने अपना काम शुरू कर दिया था मगर..
"मगर ?”
“ थोड़ा परिवर्तन आ गया था विचारों में। ... थोड़ा कहना भी शायद गलत होगा। मेरे करेक्टर को देखते हुए अगर उसे 'बड़ा परिवर्तन' कहा जाये तो ज्यादा ठीक होगा।" वह कहता चला गया --- “तुम पर नजर पड़ते ही मुझे लगा- नहीं, खूबसूरती वह नहीं होती जिसे मैं आज से पहले तक खूबसूरती समझता रहा। खूबसूरती तो वह होती है जो इस लम्हा मेरे सामने बैठी है। सच दिव्या जी, हजारों लड़कियां देखी हैं मैंने। सैंकड़ों को भोगा है। मगर सच ये है कि तुमसे ज्यादा..
“ औरत को शीशे में उतारने के अपने हथकंडों को मुझसे दूर रखो ।” दिव्या गुर्राई ।
" बीच में मत बोलो । प्लीज ! वह कहने दो जो मेरा दिल चाह रहा है। कम से कम सुन लेने से तुम्हें कोई नुकसान नहीं होने वाला । अपनी कसम खाकर कहता हूं--- तुम्हें देखकर पहली बार मेरे दिमाग में यह ख्याल आया - - - मुझें शादी कर लेनी चाहिए।”
“ तुम्हारे ही शब्दों में कहूं--- अगर मैं दौलत की चाशनी में लिपटी औरत न होती । अगर पांच करोड़ की बीमा पॉलिसी न होती मेरे पीछे तो क्या तब भी तुम्हारे दिमाग में मुझसे शादी करने का ख्याल आता ! "
“अगर आता तो उसे छिटक देता। नहीं करता तुमसे शादी।”
उसके अनोखे जवाब पर दिव्या चौंक गई। मुंह से निकला --- “क्यों?”
“क्योंकि दौलत के महत्व को मैंने देखा है। दर-दर की ठोकरें खाकर उसकी अहमियत को समझा है । निःसन्देह खूबसूरती वही है जो तुममें है मगर बुरा मत मानना --- पैसे के अभाव में मर्द को यह खूबसूरती बदसूरती लगने लगती है। दोनों ही जरूरी हैं। इसलिए मुझे लगा --- मुझे तुमसे शादी कर लेनी चाहिए । दिमाग में विचार कौंधे --- अवतार, कब तक चोरियां, डकैतियां और मर्डर करके पुलिस के डर से दुम दबाये इधर से उधर भागता रहेगा? कब तक करता रहेगा कॉल गर्ल्स रैकेट चलाने जैसे घटिया धंधे ? मंजिल तेरे सामने हैं--- तेरे द्वारा देखी गई अब तक की सबसे खूबसूरत औरत और पांच करोड़ रुपये । वे पांच करोड़ जिनके बूते पर तू इस औरत के साथ इण्डिया से बाहर जा सकता है। इसे पत्नी बनाकर चैन से रह सकता है। बच्चे पैदा कर सकता है । परिवार बसा सकता है अपना ।”
“मिस्टर गिल ! बहुत दूर तक सोच गये तुम । "
“हां | शायद ठीक ही कहा तुमने ।” हवा में उड़ता अवतार मानो सचमुच धरती पर आ गिरा --- “मगर... मगर दिव्या जी, आखिर गलत क्या सोचा मैंने? क्यों नहीं हो सकता ऐसा ? तुमने कहा था --- 'आखिर तुम्हारी कौन लगती हूं मैं जो उनके बीच मुझे नंगी नाचते देखकर अच्छा नहीं लगा ?” जवाब शायद यही है । तुम्हें देखकर मैं वह सोच बैठा जो पहले कभी किसी औरत को देखकर नहीं सोचा था । तुम्हारे हालात भी तो ऐसे ही हैं कि शायद तुम्हें भी अब इस शहर में रहना रास न आये । इस देश से बाहर ही कहीं बसेरा हो सकता है हमारा । ”
इस बार दिव्या ने कुछ कहा नहीं । केवल देखती रही अवतार की तरफ । उस अवतार की तरफ जिसका समूचा चेहरा इस वक्त भावनाओं की ज्यादती के कारण भभक रहा था ।
अभी वह विचारों में ही गुम थी कि अवतार ने पूछा--- “क्या सोचने लगीं तुम ?”
“तुम्हें मेरे और देवांश के सम्बन्ध मालूम हैं न ?”
“मुझे सब मालूम है मगर यह सच्चाई तुम्हें कुबूल करनी चाहिए कि पांच करोड़ कमाने की दिशा में न आज तक वह कुछ कर सका न ही ठकरियाल | मैं न होता तो तुम तीनों । इस वक्त भी राजदान के जाल में फंसे छटपटा रहे होते। जो किया, मैंने किया बल्कि अब भी सारे सुबूत मेरे पास हैं। मैं चाहूं तो बीमा कम्पनी से एक पाई नहीं मिल सकेगी किसी को।”
“मतलब?” दिव्या के होठों पर कटु मुस्कान उभर आई। बोली --- "तुम तो अगले ही पल अपनी औकात पर उतर आये ।”
“एक पल पहले तक तुम मेरे प्रेमी नजर आ रहे थे मगर दाल गलती न देखकर धमकी देने लगे । यही तो होती है क्रिमिनल की फितरत!”
“पहली बात - - - मैं क्रिमिनल हूं, क्रिमिनल रहूंगा। अपनी औकात के ऊपर कभी चढ़ा ही नहीं था जो उतर आने वाली बात कही जाये। हां, मन में तुम्हारे प्रति कुछ भावनाएं थीं जिन्हें मैंने बगैर लाग लपेट के कहा। मानना न मानना, तुम्हारे अख्तिार की बात है। दूसरी बात --- जो तुम्हें धमकी लगी वह धमकी नहीं हकीकत है। ठंडे दिमाग़ से सोचना | वैसे तुम न मिल तो मर नहीं जाऊँगा मैं । ऐसा भी नहीं है कि तुम्हारी दीवानगी में फंसा अपना वह हिस्सा तुम पर कुरबान कर जाऊंगा जिस पर मेरा हक बनता है ।”
“मेरी समझ में नहीं आ रहा, तुम किस किस्म की बात कर रहे हो ?”
“ अगर समझ में नहीं आ रहा तो कमी मेरी है । फिर भी, एक बार और कोशिश करता हूं।” कहने के बाद अवतार ने एक सिगरेट सुलगाई। समझाने वाले अंदाज में बोला--- "बहुत साफ-साफ मेरे दिमाग में दो बातें हैं । पहली --- रकम मिलते ही हम उसमें से ठकरियाल का हिस्सा दें और यह मुल्क छोड़ दें। ठकरियाल का हिस्सा देना इसलिए जरूरी है क्योंकि उसकी मदद के बगैर हमारे इरादे परवान नहीं चढ़ सकते । दूसरी -- अगर तुम मेरी पत्नी बनना स्वीकार नहीं करतीं तो रकम के तीन हिस्से होंगे । मेरा, ठकरियाल का और तुम्हारा । तुम्हारा इसलिए क्योंकि रकम को आना ही तुम्हारे हाथ में है। अपना हिस्सा लेकर मैं फिर अपनी दुनिया में लौट जाऊंगा ।”
“ यानी किसी भी हालत में देवांश को हिस्सा देकर राजी नहीं हो ?”
“किस बात का हिस्सा दिया जाये उसे ? उसने किया ही क्या है ? "
दिव्या के पास चुप रह जाने के अलावा कोई चारा नहीं था।
“तो दो रास्ते हैं मेरे पास । पहला - - - तुम्हारे साथ इण्डिया से निकल जाना। दूसरा--- अपने हिस्से के साथ अपनी दुनिया में लौट जाना । दूसरे रास्ते पर बढ़ना पड़ा तो अफसोस होगा क्योंकि मैं वाकई तुमसे प्यार करने लगा हूं और क्राइम की दुनिया छोड़कर सचमुच तुम्हारे साथ सुकून भरी जिन्दगी जीना चाहता हूं। वैसे अभी टाइम है। सलाह तुम्हें भी यही दूंगा - - - फैसला पहले रास्ते के पक्ष में करो। अब इस शहर में देवांश के साथ रहना तुम्हें रास नहीं आयेगा । सारा हिस्सा तो कर्जदार ही हड़प कर जायेंगे। बेहतर यही है --- कर्जदारों के लिए देवांश को छोड़ दो। मेरे साथ निकल चलो। राजदान से कुछ ज्यादा ही प्यार करने वाला साबित होऊंगा मैं ।”
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