अगली मुबह पणजी में ऐंजो के घर में डकैती के पांचों भागीदार मौजूद थे। धनेकर और शालू ने बड़े गौर से सुना था कि पिछले रोज वो बम्बई में जहांगीर ईरानी से क्या बात करके आये थे । इस बात से वो दोनों ही बहुत विचलित थे कि मूर्तियों को डिलीवरी के लिये बम्बई पहुंचाया जाना था ।
"ये तो बड़ा मुश्किल काम है।" - शालू बोली- "रास्ते में कहीं तलाशी हो गयी तो ?"
"मैं इतनी बार बम्बई से गोवा बस से आया-गया हूं।" जीतसिंह बोला - "मैंने तो एक बार भी बस की तलाशी होती नहीं देखी ।"
"तुम्हारा इरादा बस से मूर्तियां बम्बई ले जाने का है ?"
"फिलहाल तो है । किसी की निगाह में कोई बेहतर तरीका हो तो वो बताये ।"
“तलाशी हो सकती है। किसी भी रास्ते हो सकती है। रेल से, स्टीमर से, प्लेन से, किसी भी रास्ते हो सकती है ।"
"क्यों हो सकती है ?" -जीतसिंह तनिक झुंझलाकर बोला - "किस चीज की तलाश में हो सकती है ? कैसीनो वालों ने डकैती की रिपोर्ट तो पुलिस में दर्ज कराई नहीं । ऐसा हुआ होता तो खबर अखबार में भी छपी होती ।"
"नहीं दर्ज कराई ।" - धनेकर बोला- "मेरे को पक्का मालूम ।”
"तो ?"
शालू ने बेचैनी से पहलू वदला और फिर वोली - "जो काम पहले नहीं हुआ, वो अब हो सकता है । इतनी मुश्किल से हाथ आया माल तो यूं हाथों से निकल ही जायेगा, हम लोग गिरफ्तार भी हो जायें तो कोई बड़ी बात नहीं । "
"माल हाथ से नहीं निकलना चाहिए ।" - धनेकर बोला ।
"तो क्या किया जाये ?" - जीतसिंह बोला - "मूर्तियां बांट ली जायें ?" -
“क्या हर्ज है ?" - एडुआर्डो धीरे से बोला ।
जीतसिंह ने अचकचाकर उसकी तरफ देखा ।
"मैं भी कहती हूं, क्या हर्ज है ?" - शालू बोली ।
"मैं भी ।" - धनेकर बोला ।
"कैसे बांट ली जायें ?" - ऐंजो बोला- "आठ मूर्तियों को छ: पार्ट्स में कैसे...' IT
"पांच ।” - एडुआर्डो बोला- "कौल के हिस्से का कोई दावेदार नहीं । उसकी तो अभी तक लाश बरामद नहीं हुई।"
“अब होगी भी नहीं ।” - धनेकर बोला - "समुद्र लील गया उसकी लाश को ।"
"आठ मूर्तियां" - जीतसिंह बोला - "पांच हिस्सों में भी कैसे बराबर बांटी जा सकती हैं ?"
"मैं बताता हूं कैसे बांटी जा सकती हैं।" - एडुआर्डो बोला "देखो, इस घड़ी मैं, शालू, और धनेकर मूर्तियां अभी बांट ली जाने के हक में हैं। और" - उसने ऐंजो की तरफ देखा - "तू किधर है, भई ?”
"मैं !" - ऐंजो हड़बड़ाया ।
“हां । तू ।”
ऐंजो की जीतसिंह से निगाह मिली। जीतसिंह ने बड़े व्याकुल भाव से उसकी तरफ देखा ।
"मैं बद्री की तरफ है ।" - ऐंजो निःसंकोच बोला ।
जीतसिंह ने बड़े कृतझ भाव से उसकी तरफ देखा ।
"ठीक है।" - एडुआर्डो बोला- "फिर पांच मूर्तियां हम तीन जनों की और तीन मूर्तियां तुम दो जनों की ।"
"तीन जनों का शेयर फाइव नहीं बनता, बॉस" - ऐंजो बोला "फोर प्वाइंट एट बनता है और दो जनों का शेयर थ्री प्वाइंट टू बनताहै।"
"मेरे को तीन मूर्तियां नहीं चाहिये ।" - जीतसिंह बोला "सवा तीन भी नहीं चाहियें। मेरे को पांच चाहियें । और वो वाली पांच चाहिये जिनकी ईरानी ने तस्वीरें दी हैं। मूर्तियों को रोकड़े में फटाफट तब्दील करने का यही एक तरीका है। मैं बार-बार एक ही बात नहीं दोहराना चाहता लेकिर मेरे को दो दिन के भीतर-भीतर अपना हिस्सा नकद चाहिये । और मौजूदा हालात में नकद हिस्सा मुझे बम्बई में ईरानी से ही मिल सकता है ।” -
“बम्बई मूर्तियां कौन ले जायेगा ?" - शालू बोली ।
"कोई नहीं ले जायेगा तो मैं ले जाऊंगा।" - जीतसिंह बोला ।
" और मैं इसका साथ दूंगा।" - ऐंजो बोला ।
" मूर्तियां हाथ से निकल जाएंगी।" - शालू बोली- "मूर्तियां शर्तिया हाथ से निकल जाएंगी।”
"मैडम जी " - जीतसिंह चिड़कर बोला- "क्यों रोते जाओ और मुर्दों की खबर लाओ जैसी बात करती हो !"
"मैं रिस्क नहीं लेना चाहती । मेरा अपने कजन कार्लो से भी वादा है कि मेरे जरिये उसके पल्ले कुछ जरूर पड़ेगा वर्ना वही कम मुंह फाड़ने को आमादा नहीं था ।”
"लेकिन..."
- "सुनो । मेरी बात सुनो । पहले मेरी बात पूरी सुनो । प्लीज ।”
"बोलो।"
"तुम कहते हो कि तुम बम्बई में पांच मूर्तियों के बदले में साठ लाख रुपये क्लैक्ट कर सकते हो ।"
"हां"
"जिसमें हमारा भी हिस्सा होगा ?"
"जाहिर है ।"
“ और बाकी बची तीन मूर्तियों में भी ?"
"वो भी जाहिर है ।"
" तो मेरा कहना ये है कि मुझे एक मूर्ति अभी दे दी जाये और साठ लाख में मेरा जो बारह लाख का हिस्सा बनता है, उसे इस बात को मद्देनजर रखते हुए कम कर दिया जाये कि मैं एक मूर्ति ले चुकी हूं जबकि पूरी एक मूर्ति मेरा हिस्सा नहीं बनती ।" - वो एक क्षण अपने शब्दों का प्रभाव श्रोताओं पर देखने के लिये ठिठकी और फिर बोली- " कहने का मतलब ये है कि मुझे नकद रकम में से कोई हिस्सा मिल जायेगा तो मैं अपने आपको खुशकिस्मत समझुंगी, नहीं मिलेगा तो मैं उसी मूर्ति के हिस्से से सब्र कर लूंगी जो कि मैं चाहती हूं कि मुझे अभी मिल जाये।"
"ये बात तो मुझे भी मंजूर है ।" - तत्काल धनेकर बोला “बरायमेहरबानी मेरे हिस्से का निपटारा भी मैडम वाले तरीके से ही कर दिया जाये । " -
" आप क्या कहते हैं ?" - जीतसिंह एडुआर्डो से बोला ।
एडुआर्डो ने तत्काल उत्तर न दिया, वो कुछ बेचैनी से पहलू बदलता रहा और फिर बोला- "मेरा वोट शालू और धनेकर की तरफ है ।”
"ठीक है।" - जीतसिंह बोला - "फिर हो गया फैसला । आप लोग एक-एक मूर्ति ले लीजिये, पांच मूर्तियों के साथ मैं, ऐंजो और एडुआर्डो बम्बई जाते है । "
“मैं नहीं, भई ।" - तत्काल एडुआर्डो बोला- "मैंने अभी कहा तो है कि मेरा वोट शालू और धनेकर की तरफ है ।”
"ओह ! तो अब पीठ दिखा रहे हो, उस्ताद जी ! संकट की घड़ी में साथ छोड़ रहे हो !"
एडुआर्डो ने जवाब न दिया । बड़े विचलित भाव से वो परे देखने लगा ।
" यानी कि आप लोग साठ लाख की रकम में अपने तीन हिस्सों का हम पर एतबार कर रहे हैं ?"
"और चारा क्या है ?” - एडुआर्डो बोला ।
"ओह ! तो एतबार इसलिए कर रहे हो क्योंकि और चारा नहीं है, इसलिये नहीं कर रहे क्योंकि मैं और ऐंजो एतबार के काबिल हैं !"
एडुआर्डो से जवाब देते न बना ।
"ठीक है।" - जीतसिंह निर्णायक भाव से बोला- "मुझे और ऐंजो को ये बंटवारा मंजूर है । तीन मूर्तियां आप रखिये, पांच को लेकर मैं और ऐंजो बम्बई जायेंगे।"
"रास्ते में ही पकड़े गये तो ?" - एडुआर्डो बोला ।
"तो खातिर जमा रखिये, आप लोगों का नाम हमारी जुबान पर नहीं आयेगा ।"
"भले ही हमारा लाइफ चला जाये ।" - ऐंजो जोश से बोला ।
"शुक्रिया ।" - एडुआर्डो बोला- "काश मैं भी नौजवान होता और ऐसा ही जोशोखरोश दिखा पाता ।"
वार्तालाप उससे आगे न बढ़ा ।
"ऐंजो" - जीतसिंह बोला- "तूने मेरा साथ दिया, मैं कैसे तेरा शुक्रिया अदा करू ?"
उस घड़ी वो ऐंजो के घर मे अकेले थे ।
" मैं कुछ नहीं किया, बॉस ।" - ऐंजो बोला- "मैं वही किया जो मेरे को फिट लगा। मैं वही किया जो मेरा कांशस मेरे को करने को बोला ।”
"ऐसे तो कोई मां जाया साथ नहीं देता। मैं बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं तेरा, ऐंजो "
“अब छोड़ वो किस्सा | तू मेरे को बोल कि बम्बई कैसे चलना है, कब चलना है । "
"फौरन चलना है । बस हमारा आजमाया हुआ जरिया इसलिये बस से ही चलना है । "
"मूर्तियां ?"
"एक सूटकेस में। ऊपर-नीचे कपड़े, बीच में मूर्तियां ।"
"बढ़िया । लेकिन मेरी एक राय है ।"
"क्या ?"
“क्यों न मूर्तियों को ऐसा स्प्रे पेंट कर दिया जाये कि वो सोने की लगने की जगह मिट्टी की लगें !"
"वजन चुगली कर देगा।"
"लोहे की लगें तो ?"
"शायद ऐसा हमारे खरीददार को कबूल न हो ।"
"कच्चा पेंट, बॉस, कच्चा पेंट । जो पानी से ही धुल के उतर जाये ।"
जीतसिंह कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - "तू ऐसे पेंट का, स्प्रे गन का और एक बड़े से सूटकेस का इंतजाम कर |"
"अभी किया बॉस । "
***
वे निर्विघ्न बम्बई पहुंच गए ।
रात आठ बजे वे मूर्तियों के साथ सुरक्षित ट्रांजिट कैम्प में चुनिया की खोली में मौजूद थे ।
एक पब्लिक कॉल से जीतसिंह ने जहांगीर ईरानी को फोन किया ।
तत्काल उत्तर मिला ।
"बद्री बोलता हूं।" - वो माउथपीस में बोला ।
"बद्री !" - ईरानी की आवाज आयी ।
“अभी कल तो मिला आपके फ्लैट पर । मूर्तियों की बाबत। इतनी जल्दी भूल भी गये !"
"ओह ! वो क्या है बिरादर, मैं नाम भूल गया था, बाकी सब कुछ नहीं भूला । "
"शुक्र है । "
"माल तैयार है ?”
"हां । "
"बम्बई में ?"
"हां । आपके पास भी हमारा माल तैयार है ?"
"हां"
"तो मैं अपने माल के साथ आपके पास पहुंचूं ?"
"नहीं-नहीं । मेरे फ्लैट पर नहीं। मैं ऐसी कोई चीज अपने पास नहीं रखना चाहता ।"
"तो ?"
"दस मिनट बाद फोन करना । इसी नम्बर पर ।"
"ठीक है ।"
ठीक दस मिनट बाद जीतसिंह ने फिर फोन लगाया । "मैं बद्री ।" वो बोला- "फिर बोलता हूं।" - "मेरी आगे बात हो गयी है।" - ईरानी बोला- "माल जुहू पहुंचाना होगा ।"
"जुहू कहां ?"
"वहां होटल सी-व्यू है । फाइव स्टार, डीलक्स अट्ठारह । मंजिला । दूर से ही दिखाई देता है ।”
"मुझे वहां पहुंचना है ?"
"नहीं, वहां नहीं । वो जगह तो मैंने तुम्हें पहचान के तौर पर बताई है। तुमने उसके करीब की एक इमारत पर पहुंचना है । वो दोमंजिला है और उसकी पहचान ये है कि उसके दरवाजे पर एक लाल रंग का रोलिंग शटर लगा हुआ है । जैसा गोदामों वगैरह पर लगा होता है। समझ गये ?"
"हां"
"वो शटर तुम्हें खुला मिलेगा । तुमने आधी रात को वहां पहुंचना है।"
“आधी रात को ? इतनी देर बाद किसलिये ? मैं तो अभी..."
“अभी नहीं, आधी रात को ।”
"लेकिन क्यों ?"
"क्योंकि आधी रात से पहले मेरा खरीददार वहां नहीं पहुंच सकता । उसने पूना से आना है ।”
"ओह !"
"वैसे भी वो सेफ टाइम होगा क्योंकि उस घड़ी सड़कों पर आवाजाही कम होती है ।"
"मैं समझ गया। आप आगे बढ़िए । "
“पहुंचोगे कैसे ?”
"जाहिर है कि पैदल तो नहीं पहुंचूंगा । कोई गाड़ी-वाड़ी का इन्तजाम तो करना ही पड़ेगा ।"
"वही मतलब था मेरा । तुम वहां पहुंचने के बाद अपनी गाड़ी को सड़क पर न रोकना । न ही सड़क पर गाड़ी में से उतरना । तुम गाड़ी को भीतर इमारत में ले जाना । इसीलिये मैंने बोला कि तुम्हें उसका लाल शटर खुला मिलेगा । ठीक है ?"
"ठीक है । वहां कोई अड़ंगा तो नहीं होगा ?"
"कैसा अड़ंगा ?"
"कैसा भी ?"
"कोई अड़ंगा रहीं होगा । तुम वहां से पांच मिनट में फारिग हो जाओगे। तुम माल डिलीवर करोगे, अपना माल कब्जाओगे और अपनी राह लगोगे ।"
"ठीक है ।"
सम्बन्धविछेद हो गया ।
***
एक टैक्सी पर सवार होकर जीतसिंह और ऐंजो ने आधी रात को मुलाकात के निये निर्धारित जगह का चक्कर लगाया तो उन्होने लाल शटर वाली इमारत को सुनसान और अन्धेरे में डूबी पाया ।
"वो लाल शटर !" - जीतसिंह बोला - "वो तो बन्द है ।”
"टेम पर खुल जायेगा ।" - ऐंजो बोला- "जब वो ईरानी ऐसा बोला तो खुलेगा ही ।"
“न खुला तो ?"
"तो क्या ? वापिस लौट जायेंगे और ईरानी को फिर फोन लगायेंगे ।"
"हूं।" - जीतसिंह एक क्षण चुप रहा औरफिर बोला - "मेरे मन में एक ख्याल बुदबुदा रहा है । "
"क्या ?"
"ये अजीब सी जगह है। यहां अभी आवाजाही न होने के बराबर है, रात को तो बिल्कुल ही नहीं होती होगी ।"
"क्या कहना चाहता है, बॉस ।"
"यहां हमसे माल छीनने की कोशिश हो सकती है । " "ओह नो ।”
"हमें एहतियात बरतनी होगी ।"
"क्या ?"
"एक बड़ी और मजबूत गाड़ी का इंतजाम करना होगा ।"
"बड़ी और मजबूत गाड़ी ।"
" जैसे कोई छोटा-मोटा ट्रक ।"
" ट्रक ! बॉस, टेम तो देख। अब खड़े पैर ट्रक किधर से आयेगा ?"
जीतसिंह ने एक गुप्त निगाह टैक्सी ड्राइवर पर डाली और फिर ऐंजो के कान के करीब मुंह ले जाकर फुसफुसाया "चोरी करना पड़ेगा ।” -
"क... कहां से ?"
"जगह मुझे मालूम है । लेकिन अहम सवाल ये है कि क्या तू ट्रक चला लेगा ? क्योंकि ट्रक चलाना मेरे बस की बात तो है नहीं ।”
"मैं चला लूंगा।" - ऐंजो पूरे विश्चास से बोला - "पणजी में टैक्सी पकड़ने से पहले मैं बस ड्राइवर था । लड़कियों के स्कूल की बस चलाता था । "
"छोड़ क्यों दी ?"
"छोड़ी नहीं, छूट गयी । एक लड़की की बगलों में हाथ डाल उसे गुदगुदी कर रहा था कि हैडमिस्ट्रेस ने देख लिया। खड़े पैर डिसमिस कर दिया । "
जीतसिंह हंसा ।
“जो कि अच्छा ही हुआ।" - ऐंजो भी हंसता हुआ बोला -
"स्कूल बस ही चलाता रहा होता तो तेरे से यारी न होती।"
"वो तो है ।”
टैक्सी वापिस धारावी लौट पड़ी ।
***
बारह बजे से जरा पहले एक हाफ ट्रक लाल शटर वाली इमारत वाली सड़क पर मुड़ा । ट्रक की ड्राइविंग सीट पर ऐंजो था और जीतसिंह उसके पहलू में बैठा था ।
ट्रक के पिछवाड़े में उसके लगभग आधे भाग में सेबों की पेटियां भरी हुई थीं और उसके ऊपर तिरपाल तनी हुई थी । सेबों की पेटियों में ही एक पेटी मूर्तियों वाली भी थी ।
वो सड़क उस घड़ी सुनसान थी ।
जीतसिंह के पास उस वक्त वो भारी रिवॉल्वर थी जो उसे आमगाम में विष्णु आगाशे से हासिल हुई थी और जिसके लिये अतिरिक्त गोलियां उसने आगाशे की जीप से से बरामद की थीं ।
पिस्तौल उसने जाफर रंगीले को उसकी खोली में शूट करने के बाद उसकी बाकी गोलियों समेत वहीं रंगीले की लाश के करीब फेंक दी थी दी थी ।
"जरा रोक ।" - एकाएक जीतसिंह बोला । ऐंजो ने ट्रक रोका और प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
"मैं पीछे सवार हो जाता हूं।" - जीतसिंह बोला ।
"क्यों ?"
"सावधानी बरतने में क्या हर्ज है ?"
"किसी ने तेरे बारे में सवाल किया तो ?"
"तो बोलना तू अकेला आया है। मामला सीधा-सीधा हुआ तो माल कि अदला-बदली करना और चलते बनना । आगे कोई गड़बड़ हुई या किसी धोखे का प्रोग्राम हुआ तो मेरा हथियारबन्द पीछे छुपा होना काम आयेगा ।”
"यू आर राइट, बॉस । "
जीतसिंह ट्रक से उतरा और जाकर उसके पिछवाड़े में सवार हो गया । ट्रक इस प्रकार बना हुआ था कि उसके ड्राइविंग केबिन और पिछवाड़े के लोडिंग एरिया के बीच में एक झरोखा-सा था जिसके रास्ते पिछवाड़े में सवार कोई व्यक्ति भी सामने देख सकता था ।
"चलूं ?" - ऐंजो दबे स्वर में बोला । "हां ।" - जीतसिह बोला । - ट्रक आगे को सरका । उसकी रफ्तार बढ़ी |
"इधर कोई गाड़ी क्यों नहीं है ?" - एकाएक जीतसिंह बोला|
"गाड़ी !" - ऐंजो सकपकाया ।
"ईरानी वोलता था कि मूर्तियों का खरीददार पूना से आने वाला था ।
"उसने टेम के टेम ही आना होगा, बॉस ।”
"हां । ऐसा तो ईरानी बोल था । बोला था कि वो आधी रात से पहले यहां नहीं पहुंच सकता था ।"
"फिर क्या प्रॉब्लम है ! वो अभी इधर पहुंचा नहीं होगा । हम पहले पहुच गये हैं। नो ?"
"यस ।"
"ओके नाओ ?"
"हां"
ट्रक इमारत के करीब पहुंचा ।
इमारत का लाल शटर खुला था और भीतर की मद्धम-सी रोशनी थोड़ी-बहुत बाहर सड़क पर भी पहुंच रही थी ।
ऐंजो ने एक बार हौले से हार्न बजाया और फिर ट्रक को खुले फाटक की ओर मोड़ा ।
हाथ में रिवॉल्वर थामे सांस रोके जीतसिंह झरोखे में से सामने देख रहा था ।
ट्रक की हैडलाइट भीतर पड़ी। ऐंजो ने एक बार ब्लिंकर मारा ।
जीतसिंह को सामने एक मालगोदाम जैसा बड़ा हॉल दिखाई दिया जिसके अग्रभाग मे एक बड़ा-सा, शीशे की खिड़कियों वाला आफिसनुमा केबिन बना हुआ था ।
ट्रक भीतर दाखिल हुआ ।
ने जीतसिंह ने घूमकर सड़क की दिशा में देखा। सड़क तब भी पूर्ववत् सुनसान थी ।
ट्रक पूरा इमारत में घुस गया ।
"सब ठीकठाक ही लगता है, बॉस ।" - ऐंजो बोला ।
एकाएक लाल शटर नीचे गिरने लगा ।
धोखा !
आफिसनुमा केबिन में से चार आदमी दौड़ते हुए बाहर निकल रहे थे । चारों हथियारबन्द थे ।
"ऐंजो !" - जीतसिंह आतंकित भाव से फुसफुसाया - "ट्रक वापिस ले । रिवर्स में चला । भाग चल । "
लेकिन भाग चलना संभव न हो सका । तब तक ट्रक गोदाम में काफी गहरा धंस गया था । ऐंजो के उसको बैक करके वहां से निकाल ले जाने से पहले ही पीछे शटर बन्द हो गया और ट्रक की पीठ धड़ाम की आवाज के साथ उसके साथ टकराई । नतीजतन ऐंजो के हाथ से स्टियरिंग छूट गया और उसके पांव पैडलों से हट गये ।
जीतसिंह का भी सन्तुलन बिगड़ गया और वो पेटियों में जाकर गिरा | जल्दी से वो संभला ।
तभी गोलियां चलने लगी ।
ऐंजो ने घबराकर ट्रक का ड्राइविंग सीट की साइड का दरवाजा खोला और उकडूं होकर नीचे छलांग लगाई ।
टूटे शीशे की फुहार उसके सिर पर आकर गिरी । ऐंजो ने ट्रक के नीचे घुस जाने की कोशिश की लेकिन तभी
एक गोली आकर उसकी खोपड़ी में लगी, फिर कई गोलियां उसके जिस्म से भी टकराई लेकिन तब तक उनको महसूस करने के लिये वो जिन्दा नहीं था । वो धड़ाम से ट्रक के पहलू में जमीन पर गिरा |
फिर खामोशी छा गयी ।
"मर गया ?" - कोई बोला ।
" और क्या जिन्दा बचेगा ?" - कोई और बोला - "सबकी गोलियां उसको लगी थीं ।”
"पक्की करो ।"
फिर खामोशी ।
"मर गया ।" - फिर किसी ने तसदीक की ।
"लेकिन ये अकेला क्यों है ?" - फिर एक नयी, अधिकारपूर्ण आवाज सुनायी दी - "हमें तो खबर लगी थी कि ये तीन जने थे। ईरानी के पास तीन जने पहुंचे थे। बाकी दो कहां गये ?"
"साहब, ट्रक में तो ये अकेला ही था ।"
"ईरानी कहां गया ? इधर लाओ उसे ।"
"भाई" - जीतसिंह को ईरानी की कांपती आवाज सुनायी दी "मैं इधर हूं।" -
"सामने आओ।"
फर्श पर पड़ते, करीब आते भारी कदमों की आवाजें ।
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