'V' silent
वीर माया की तस्वीर बना रहा था। वह जल्द से जल्द इसे पूरा करके माया को देना चाहता था। वीर ने माया को कभी कुछ नहीं दिया था, लेकिन वीर इस तस्वीर के रूप में माया को एक क़ीमती याद देना चाहता था। माया से मिलकर आने के बाद वीर ने अपना पूरा ध्यान तस्वीर बनाने पर लगा दिया था। तस्वीर भी लगभग पूरी हो चुकी थी।
वीर ने ब्रश टेबल पर रखा और थोड़ा पीछे हटकर माया की तस्वीर को देखने लगा। तस्वीर में माया इतनी ज़्यादा ख़ूबसूरत लग रही थी कि वीर को माया के साथ बिताए अपने रूमानियत भरे पल याद आ गए। वीर ने एक सिगरेट सुलगाई और सोचने लगा कि माया से दोबारा इस तरह छुप-छुपकर मिलना कहीं एक दिन माया के लिए कोई मुसीबत न बन जाए। वैसे भी माया के साथ अब क्या रिश्ता है मेरा? ये छुपकर मिलना, कभी-कभी फ़ोन पर बात करना, अब तो मैं माया को अपना भी नहीं कह सकता। माया के साथ रिश्ते का अब क्या नाम था? हर इंसान के जीवन में कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जिन्हे वो समझते तो है लेकिन समझना नहीं चाहते। वीर भी जानता था कि इस रिश्ते का क्या अंत होना है, लेकिन समझना नहीं चाहता था।
जब माया से मुलाक़ात हुई थी तब उसने बताया था कि उसकी एक बेटी भी है। उसका नाम काव्या है। आज सोचता हूँ कि साला जिसकी वजह से वो इस नशे के अंधे कुएँ में गिरा, वो किसी ओर की वजह से खट्टा खा रही थी, लेकिन कुछ भी हो, अब हम ग़लत कर रहे थे।
वीर का माया के साथ रिश्ता अब Affair से Extramaritial affair की कैटेगरी में तब्दील हो गया था, लेकिन वीर जब भी माया को अपने नजदीक पाता था तो सब कुछ भूल जाता था। वो यह सोच ही नहीं पाता था कि क्या सही है और क्या ग़लत? वीर और माया का रिश्ता अब एक बेनामी रूप ले चुका था, जिसकी आगे ना कोई मंजिल थी और ना ही कोई ख़ूबसूरत अंत। बस, थी तो केवल पुराने प्यार की गहरी खाई, जिसमें दोनों डूब रहे थे। ऐसे रिश्ते को क्या कहा जाए, जिसमें दोनों समाज से छुप के अपने प्यार की उपस्थिति दर्ज कराते थे। वैसे भी जिन रिश्तों का नाम नहीं होता है, उनका रंग बहुत गाढ़ा होता है, जो आसानी से नहीं छूटता है और जब छूटता है तो जिंदगी को बहुत बेरंग कर देता है। वीर ने अपना ध्यान इन सब बातों से हटाया और माया की तस्वीर को फाइनल टच देने में लग गया।
वीर और माया इतने साल के बाद धीरे-धीरे अपनी पुरानी जिंदगी में कदम रख रहे थे। वीर माया से दोबारा मिलने की कह रहा था, लेकिन माया मिलने के लिए मना कर रही थी क्योंकि माया अपने घर पर आई हुई थी। माया कहती थी कि यहाँ तुम आ नहीं सकते हो और तुम्हारे पास आने के लिए मुझे काव्या को घर पर अकेले छोड़ना पडेगा। लेकिन वीर के बार-बार कहने पर माया ने मिलने के लिए हामी भर दी।
माया ने घर पर किसी फ्रेंड़ की शादी का झूठ बोला और दो दिन के बाद माया काव्या के साथ दिल्ली पहुँच गई थी। माया और काव्या को वीर मेट्रो स्टेशन से अपने फ़्लैट पर ले आया था। वीर ने काव्या को देखा और माया से कहा कि ये तो बिल्कुल तुम्हारी ही कॉपी है, बहुत स्वीट है। माया ने वीर की टी-शर्ट और लॉवर पहन लिया था। वीर और माया, दोनों काव्या के साथ टाइम स्पैंड कर रहे थे। दोनों काव्या के साथ मस्ती कर रहे थे, उसे कभी-कभी तंग भी कर रहे थे। वीर ने माया की कमर में हाथ डाला तो काव्या ने वीर का हाथ हटा दिया और माया से लिपट गई। बच्चे ऐसे ही होते हैं, वो अपनी चीज़ों पर अपना पूरा हक़ समझते है। माया यह देखकर खूब हँस रही थी।
शाम को तीनों बाजार में घूमने के लिए चले गए। माया बाज़ार में अपनी हील्स पहन कर नहीं जाना चाहती थी तो वीर सामने फ़्लैट में रह रही फैमिली की एक लेडीज़ चप्पल बिना बताए बाहर से उठा कर ले आया और माया को पहनने के लिए दे दिए। बाज़ार में वीर ने काव्या को एक ड्रेस दिलवाई और पेस्ट्री भी खिलाई। माया ने भी अपने लिए एक सूट ख़रीद लिया था। वहाँ वीर ने माया से कहा कि यहाँ किसी रेस्टोरेंट से खाना पैक करा लेते है, फिर फ़्लैट पर चल कर खा लेंगे, लेकिन माया ने ये कहकर मना कर दिया कि वो खाना ख़ुद वीर के लिए बनाएगी।
रात को माया किचन में खाना बना रही थी। शायद माया ने वीर के दिल की आवाज़ सुन ली थी। वीर ने कभी यह सोचा था कि माया उसके घर के किचन में उसके लिए खाना बनाए। हमेशा के लिए तो नहीं, पर हाँ एक बार के लिए तो माया ने वीर की यह हसरत पूरी कर दी थी। वीर ने अपनी इस ख़्वाहिश में एक और ख़्वाहिश पूरी कर ली थी। वीर खाना बनाती हुई माया के पास गया और माया को पीछे से बाँहों में ले लिया और फिर वीर ने माया की गर्दन से बाल हटाए और चूम लिया।
रात को काव्या दूध पीकर सो गई थी। वीर और माया एक-दूसरे के पास बैठें थे।
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ माया। प्लीज़ तुम वापिस मेरे पास लौट आओ ना।” वीर ने माया के हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा।
“प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करती हूँ, लेकिन लौट कर आना समाज की नज़र में ठीक नहीं होगा। मैं भी तुम्हारे पास आना चाहती हूँ, लेकिन अब ऐसा करना काव्या के लिए ग़लत होगा।” माया ने कहा।
“तो क्या हम ऐसे ही छुप-छुपकर मिलते रहेंगे? वो भी कभी मौका मिला तो मिलेंगे नहीं तो फिर मौके का इन्तज़ार करते रहो।” वीर ने कहा।
“हाँ, शायद ऐसा ही होगा। हमें अब अपने प्यार को ऐसे ही जिन्दा रखना होगा। बस हमें अब नदी के उन दो किनारों की तरह प्यार करना होगा जो जानते हैं कि कभी एक नहीं हो पाएँगे, लेकिन फिर भी ताउम्र साथ चलते हैं एक-दूसरे के।” माया ने कहा।
“तुम बहुत बदल गई हो। पहले तुममे हिम्मत थी कि तुम मेरे साथ अपना रिलेशनशिप बताने से पीछे नहीं हटती थी और आज कह रही हो कि ऐसे ही मिलना होगा।” वीर ने कहा।
“हाँ, शायद मैं बदल गई हूँ। अब शादी और काव्या के बाद मेरी लाइफ़ बदल चुकी है, लेकिन मेरा प्यार हमेशा तुम ही रहोगे, वो नहीं बदलेगा कभी। जिस तरह Pneumonia में ‘P’ silent होता है, Ptyalin में ‘P’silent होता है, ठीक वैसे ही मेरी लाइफ़ में ‘V’ silent है, लेकिन है ज़रूर। इस ‘V’ के बिना तो मेरे जीवन का आधार भी नहीं है।” माया ने कहा।
“लेकिन मैं तुम्हारी लाइफ़ में Silent Role नहीं निभाना चाहता हूँ।” वीर ने माया के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़कर कहा।
“तो क्या Silent से Violent होना है? इससे तो मेरी लाइफ़ में तूफ़ान आ सकता है। इससे पहले भी आंधी तो आ ही चुकी है, जिसके कारण मैं काफ़ी दिनों तक परेशान रही थी, यही चाहते हो क्या तुम?” माया ने कहा।
वीर को अजय की ग़लती का अहसास हुआ और उसने अपनी नज़रें फेर लीं।
“मैंने कब चाहा कि तुम्हारी लाइफ़ में कोई तूफ़ान आए और तबाही मचा दे? मैं तो हर पल तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ। हाँ, Violent तो नहीं, पर Wild होना चाहता हूँ।” वीर ने शरारती लहजे में टॉपिक बदला।
Wild शब्द सुनते ही माया ने वीर की तरफ़ देखा और फिर ख़ुद को वीर के सीने में छुपा लिया और धीरे से कहा ‘हाँ, Wild तो ठीक है’। यह सुनने के बाद वीर ने माया से शरारती लहजे में कहा कि अरे, दोबारा बोलो। मैंने सुना नहीं क्या कहा तुमने? माया ने अपनी नज़रें उठाईं और वीर की आँखों में देखा और मुस्कुराकर दोबारा वीर के सीने पर अपना सिर टिका दिया।
माया जब वीर के फ़्लैट पर आई थी तो वीर ने माया की तस्वीर को छुपा दिया था। वीर माया की तस्वीर पूरी करने के बाद उसे Surprise देना चाहता था, इसलिए वीर ने माया को तस्वीर के बारे में बताया भी नहीं था। अब वो तस्वीर बनकर पूरी तैयार हो चुकी थी। वीर माया को यह कीमती तोहफ़ा मिलकर देना चाहता था। अगले दिन माया दिल्ली से अपने घर जा चुकी थी।
कुछ दिन बाद वीर माया से मिलने के लिए नारनौल आया। वह माया को वो तस्वीर देना चाहता था। उससे पहले वीर ने माया की बनाई तस्वीर को फ्रेम करवाया और माया से मिलने के लिए चला गया। दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे। वीर ने माया को वो तस्वीर दिखाई और बताया कि यह उसने अपने हाथों से बनाई है। माया वीर के इस Surprise से काफ़ी खुश थी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वीर कभी उसे ऐसा Surprise देगा। वीर ने माया से कहा कि मैं तुम्हें कुछ भी दे सकता था, लेकिन यह तस्वीर मेरे दिल के बहुत करीब है और यह तस्वीर इसलिए देनी थी कि तुम इसे अपने कमरे में लगाओ और तुम यह हमेशा याद रखो कि वीर तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ हमेशा है। माया बहुत खुश दिख रही थी। वो बस वीर की बातें सुन रही थी और मुस्कुरा रही थी।
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