विभा के कहने पर गोताखारों ने उसके बचे-कुचे पेट से रेत साफ किया तो उस पर स्केच पेन से लिखा केवल ठ अक्षर पढ़ा जा सका। यह पता नहीं लग पा रहा था कि ठ के आगे-पीछे भी कुछ लिखा है या नहीं क्योंकि मछलियों ने वहां का गोश्त भी कुतर डाला था। हालांकि वह दिल्ली से बाहर का खादर वाला इलाका था। इसके बावजूद काफी लोग इकट्ठा हो गए थे। पुलिस भीड़ को लाश से दूर ही रखे हुए थी । रास्ते से विभा ने अशोक और मणीशंकर बजाज को भी फोन कर दिया था । लिहाजा, हमारे कुछ ही देर बाद वे भी पहुंच गए। उन्हें देखते ही गोपाल मराठा की आंखों में ऐसी चिंगारियां - सी नाचीं थीं जैसे उन्हीं को अपनी बहन का हत्यारा समझ रहा हो । उसके जबड़ों के मसल्स फूलने-पिचकने लगे थे। विभा ने आहिस्ता से उसके कंधे पर हाथ रखा और इस तरह दबाया जैसे भावनाओं पर काबू रखने के लिए कहा हो । लाश को देखते ही अशोक और मणीशंकर की आंखें भी भर आई थीं । गोपाल मराठा की आंखों में तो पहले ही आंसू थे। मैंने महसूस किया कि शगुन की आंखें भी नम थीं। विभा ने उसी से कहा---- “तुमने ठीक कहा था शगुन, शायद यह इतनी अच्छी तैराक थी कि डूबने से नहीं मर सकती थी । ”


“फ... फिर ?” शगुन के मुंह से यही एक शब्द निकला । “लाश बता रही है कि यह डूबने से नहीं मरी । ऐसा हुआ होता तो बॉडी में पानी भरा हुआ होता, जो कि नहीं है। सिर पर लगी चोट को देखो, मेरा ख्याल है कि यमुना में कूदते ही इसका सिर पानी में छुपे किसी पत्थर से टकराया और तत्काल मर गई । अपनी तैराकी का करतब दिखाने का बेचारी को मौका ही नहीं मिला ।”


“ ऐसा भी तो हो सकता है कि पत्थर किसी ने मारा हो, यानी हत्या की गई हो। कपड़ों का गायब होना, पेट पर लिखा..


“नहीं... ऐसा नहीं है।" विभा ने जोर देकर कहा ---- “जख्म बता रहा है कि पत्थर सिर से आकर नहीं लगा बल्कि सिर पत्थर पर जाकर लगा है। मरी तो यह दुर्घटनावश ही है । "


“ फिर कपड़े और..


“लाश की स्थिति यह भी बता रही है कि मरने के बाद यह हत्यारे के हाथ लगी । तब उसने इसके कपड़े उतारे और पेट पर ये लिखा ।”


“ पर जब उसने इसकी हत्या नहीं को तो फिर ऐसा..


“किसी खास कारण से शायद वह इसकी मौत को भी वर्तमान केस में हो रही हत्याओं की कड़ी साबित करनी चाहता है इसीलिए इस हालत में करके पुनः यमुना के हवाले कर दिया । यह तो उसे मालूम ही था कि इसकी खोज किस स्तर पर की जा रही है अतः हत्यारा जानता होगा कि लाश लोगों के सामने तो आ ही जाएगी।”


“मुझे अपनी फ्रेंड के इस अंत का बहुत दुख है आंटी ।”


“तुमसे ज्यादा शायद विराट को होगा क्योंकि ।” इतना कहने के बाद विभा ने एक ठंडी सांस ली, फिर आगे बोली- - - - “वह मुझे बता चुका था कि 'ईग्नू' में पढ़ाई के दरम्यान यह भावनात्मक रूप से उसके काफी करीब आ गई थी। उसी तरह जैसे एल. एल. बी. के दरम्यान वेद मेरे नजदीक आया था और विराट ने मुझे बताया था कि जैसे कभी मैंने वेद को समझाया था उसी तरह विराट ने इसे समझाया था । ”


शगुन खामोश रहा ।


कुछ देर बाद विभा ने जब मराठा को शिनाख्त करने का इशारा किया तो खुद को रोने से रोकने की कोशिश करता बोला ---- “जब केवल पांच साल की थी तो पापा इसे उछाल-उछालकर खेल रहे थे। उस वक्त इसकी बाईं एड़ी सीलिंग फेन से टकराकर कट गई थी । बहुत खून बहा था। न कभी कटे हुए का निशान जा सका, न दर्द । इतनी बड़ी होने के बाद भी उसमें दर्द की शिकायत करती थी । दर्द ने तो खैर अब पीछा छोड़ दिया होगा लेकिन निशान बाकी होगा। आप खुद ही देख लीजिए । अगर निशान है तो वहीं है । नहीं है तो, नहीं ।” विभा ने जिद नहीं की। खुद आगे बढ़ी। उसके पैरों के नजदीक बैठी । एक ही नजर में बाईं एड़ी को देखा और उठकर खड़ी हो गई । फिर वह अशोक के पास पहुंची। उससे कहा - - - - “तुम भी अपनी नजर से शिनाख्त कर लो।”


“चांदनी की पीठ पर बहुत बड़ा मस्सा था ।” उसने कहा। लाश क्योंकि चित्त अवस्था में पड़ी थी अतः उस पोजीशन में मस्से को नहीं देखा जा सकता था । विभा ने गोताखारों से उसे पलटने के लिए कहा | वैसा होते ही काफी बड़ा मस्सा सबको नजर आ गया । अशोक फूट-फूटकर रो पड़ा ।


“मराठा ।"


विभा ने कहा----“अपने पापा को बुलाना चाहोगे!”


“मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं । वे नहीं आएंगे । उनके लिए तो ये बहुत पहले ही मर चुकी है।” कहकर वह भी फूट पड़ा।


उसी रात बड़ी अजीब घटना घटी ।


हत्यारे के अजीमुश्शान दुःसाहस से भरी घटना।


वह इस केस के कातिल का इतना बड़ा और जबरदस्त दुःसाहस था कि क्रिमिनल्स की 'दिलेरियों' से लबरेज उपन्यास लिखने वाला मैं भी शायद वैसी दिलेरी की कल्पना नहीं कर सकता था।


इस कहानी की भागमभाग में शायद अभी तक मैं यह भी नहीं बता पाया हूं कि दिल्ली में हम लोग होटल महाराजा में ठहरे थे |


अब बताना जरूरी हो गया है ।


कारण ये है कि घटना घटी ही महाराजा में थी ।


बल्कि मेरे और शगुन के सुईट में ।


अगल-बगल के दो सुईट लिए थे हमने ।


एक में विभा थी, दूसरे में मैं और शगुन ।


उस वक्त दो पचपन हुए थे जब मेरी नींद उचटी ।


आमतौर पर ऐसा नहीं होता। एक बार सोने के बाद मेरी नींद छः घंटे बाद ही खुलती है। हां, एक खूबी यह भी है कि कमरे में अगर जरा भी आहट होगी तो उचट जाएगी ।


इसलिए, नींद उचटते ही मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसा हुआ है तो कहीं न कहीं वह आहट जरूर हुई होगी जिसने मेरे अवचेतन मस्तिष्क पर चोट की है ।


उस आहट की खोज में कान खड़े किए, बैड पर पड़े ही पड़े आंखों से कमरे का अवलोकन किया ।


नाइट बल्ब की रोशनी सहायक थी ।


कानों में शॉवर चलने की आवाज आई। आंखें स्वाभाविकरूप से उधर घूम गईं और हल्की-सी झिर्री ने बताया कि बाथरूम की लाइट ऑन है। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह हरकत शगुन की है ।


वह बाथरूम गया होगा और लाइट खुली छोड़कर फिर जाकर सो गया। तभी दिमाग में सावाल कौंधा ---- शॉवर भी तो खुला पड़ा है, रात के इस वक्त उसका इस्तेमाल क्यों किया होगा शगुन ने?


फिर सोचा-- -मुमकिन है पट्ठे को रात के इस वक्त नहाने की सूझ गई हो! हालांकि सर्दियों की रात में वैसा होना नहीं चाहिए था किंतु नई जनरेशन के बारे में कब कोई क्या दावा कर सकता है ?


कोई और तो आ नहीं सकता था कमरे में । सो, यह सोचता हुआ उठा कि नहाया भी था तो लाइट और शॉवर तो बंद कर देता!


सामान्य चाल से चलता मैं बाथरूम के दरवाजे तक पहुंचा।


उसे खोला और खोलते ही हलक से चीख निकल गई ।


मेरी आंखें विस्फारित अंदाज में फैली हुई थीं क्योंकि उनके सामने एक लाश पड़ी थी । पहली नजर में मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं देख पाया ।


“शगुन... शगुन ।” चीखता हुआ वापस बैड की तरफ लपका ।


मगर उन चीखों से शगुन उठा नहीं ।


उठा तब, जब मैंने दोनों कंधे पकड़कर झंझोड़ा |


हड़बड़ाकर उठा वह और जब मैंने बताया कि बाथरूम में किसी की लाश पड़ी है तो उसके भी छक्के छूट गए।


बात समझ में आकर नहीं दे रही थी।


वही कहा उसने---- “बाथरूम में लाश कहां से आ जाएगी पापा ?”


ऐसा कहकर वह बाथरूम की तरफ लपका था ।


मैं पीछे ।


और फिर... हम खुले पड़े बाथरूम के दरवाजे पर स्टेचू बनकर खड़े रह गए थे। इस कदर कि न कुछ कहते बन पड़ रहा था, न हिलते डुलते । यह कहा जाए तब भी गलत नहीं होगा कि कुछ देर के लिए तो पलकें तक झपकने से इंकार करके हड़ताल पर चली गई थीं । वह किसी लड़की की लाश थी । पिछली चार लाशों की तरफ पूरी तरह नग्न | टब में पड़ी थी वह और टब अपने ठीक ऊपर चल रहे शॉवर के कारण लगातार पानी से भरता जा रहा था ।


एक जोड़ी मर्दाना कपड़े सिर के नीचे यूं लगे थे जैसे वह उनका तकिया बनाकर लेटी हो । कपड़ों को बगैर देखे हमने अनुमान लगा लिया कि वे रमेश भंसाली के होंगे।


पेट पर 'यां' लिखा था ।


करीब दो मिनट तक तो हमारी स्थिति स्टेचूओं वाली ही रही, फिर मैं सुईट के मेनगेट की तरफ लपका।


उसे खोलकर आंधी-तूफान की तरह गैलरी में पहुंचा।


विभा के सुईट के बंद दरवाजे को पागलों की तरह भड़भड़ा दिया मैंने। उस क्षण यह भी भूल गया था कि मुझे वैसा न करके कमरे के बाहर लगे बैल स्वीच को दबाना चाहिए था । -


दरवाजे को बार-बार भड़भड़ाने के बावजूद अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उस आवाज को सुनकर फ्लोर सिक्योरिटी का इंचार्ज जरूर दौड़ता हुआ मेरे पास आया।


उसने पूछा कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं मगर मैं भला जवाब देने की मानसिक अवस्था में कहां था ?


उसे इग्नोर करके दरवाजे को भड़भड़ाना जारी रखा तो वह बोला----“ये आप क्या कर रहे हैं सर, वे रूम में नहीं हैं।”


मैंने भन्नाकर उसकी तरफ देखा। कहा ---- “रूम में नहीं हैं?”


“जी । वे करीब एक बजे कहीं चली गई थीं।"


“क... कहां?” मैंने मूर्खाना सवाल किया ।


“इस बारे में मैं क्या कह सकता हूं सर ? मैं किसी कस्टूमर से यह नहीं पूछ सकता कि वह कब, कहां और क्यों जा रहा है ? मेरा काम फ्लोर की गतिविधियों पर ध्यान रखना और सिक्योरिटी करना है।”


“सिक्योरिटी!” मैं चीखा- - - - “क्या सिक्योरिटी करते हो तुम? कोई हमारे बाथरूम में लाश डाल गया और तुम्हें कुछ पता ही नहीं ?” पहले तो उसे मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ और जब हुआ बल्कि कहना चाहिए कि 'करना पड़ा' तो होश उड़ गए पट्ठे के । उसी के क्यों, समूचे स्टाफ के । देखते ही देखते नाइट मैनेजर तक हमारे कमरे में नजर आया । जो भी टब में पड़ी लाश को देखता

उसी के होश फाख्ता हो जाते । आनन-फानन में पुलिस को खबर की गई । यह सवाल मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह चोट कर रहा था कि रात के इस वक्त आखिर विभा कहां गई? मैंने उसका मोबाइल मिलाया । स्वीच ऑफ | दूसरा फोन यह सोचकर गोपाल मराठा को किया कि हमारे सुईट से लाश मिलने के कारण पुलिस कहीं हमें ही परेशान न करने लगे । सुनते ही उसके भी होश उड़ गए। उसने फौरन पहुंचने के लिए कहा ।


उससे पहले विभा आ गई । मेरा पहला सवला था - - - - “कहां गई थीं तुम ?”


“हत्यारे के दुःसाहस की दाद देनी पड़ेगी ।" मेरे सवाल पर ध्यान दिए बगैर वह ऐसा कहती हुई बाथरूम की तरफ बढ़ गई। स्टाफ ने उसे काई की तरह फटकर रास्ता दिया था । एकाएक वह ठिठकी। फिर ऐसा लगा जैसे कुछ सूंघने की कोशिश कर रही हो । बोली----“यहां तो बेहोशी की गैस छोड़ी गई है ।” मुझ सहित सब चकराए। फिर उसने पूछा कि मुझे लाश के बारे में कैसे पता लगा, मैंने एक ही सांस में बता दिया | सुनकर बोली----“तुम्हारी नींद शॉवर की आवाज से नहीं खुली । ऐसा होता तो काफी पहले ही खुल जाती क्योंकि शॉवर काफी पहले से ऑन था । "


मेरा दिमाग काम कर रहा होता तो कोई सवाल भी करता। वही बोले चली गई----“उससे पहले तक तुम सुईट में फैलाई गई बेहोशी की दवा के प्रभाव में थे। बेहोशी टूटी तो जागे।”


मुझे याद आया ---- शगुन मेरे जोर-जोर से चीखने के बावजूद नहीं उठा था। झंझोड़ने पर उठा था वह । विभा ने मुझसे पूछा - - - - “क्या तुम सिर में दर्द महसूस कर रहे हो ?” मैंने ध्यान दिया ।


उससे पहले ऐसी किसी बात पर ध्यान देने का होश ही कहां था ?


और पाया ----सचमुच सिर में भारीपन था ।


शगुन ने कहा ---- “मेरे सिर में दर्द है आंटी ।”


वह बगैर कुछ कहे बाथरूम की तरफ बढ़ गई ।


मैं और शगुन पीछे लपके ।


तब तक टब पानी से लबाबल भर चुका था । इतना ज्यादा कि अब वह टब से बाहर निकलकर बाथरूम के फर्श पर बहने लगा था।


रमेश भंसाली के कपड़े लाश के सिर के नीचे से निकलकर टब के पानी में तैरते नजर आ रहे थे ।


विभा ने मैनेजर से कहा ---- “पानी की सप्लाई बंद करा दो ।” -


जब तक वैसा हुआ यानी शॉवर ने पानी उगलना बंद किया तब तक संबंधित थाने की पुलिस और गोपाल मराठा भी पहुंच चुके थे।


मराठा ने भी आते ही और लाश पर नजर पड़ते ही कहा ---- “हद हो गई विभा जी, मैंने पहले कभी ऐसे हत्यारे के बारे में नहीं सुना जिसने लाश इन्वेस्टीगेटर्स के दरवाजे पर ही पहुंचा दी हो।”


“ये तो एक तरह से हमें उसकी तरफ से खुली चुनौती है।” मैंने वह बात कही जिसे बहुत देर से जज्च किए हुए था ---- "जैसे कह रहा हो कि----लो, मेरा अगला शिकार तुम्हारी छाती पर ही पेश है। पता लगाओ तो जानूं कि मैं कौन हूं?”


“कैसी सिक्योरिटी है तुम्हारे होटल की ?” मराठा ने लगभग गुर्राते हुए मैनेजर से कहा था ---- “कोई पूरी लाश को यहां, बाथरूम में छोड़ गया और किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी ?”


“ऐसा नामुमकिन है सर ।" मैनेजर गिड़गिड़ा उठा ---- "हम इस वक्त फिफ्थ फ्लोर पर हैं। होटल के मेनगेट से यहां तक सिक्योरिटी के अनेक लोग तैनात रहते हैं । लिफ्ट का इस्तेमाल किए बगैर कोई यहां नहीं पहुंच सकता । लिफ्ट केवल पांच हैं और पांचों में ही चौबीस घंटे लिफ्टमेन मौजूद रहते हैं। उनके रहते किसी के यहां तक लाश के साथ पहुंचने की कल्पाना तक नहीं की जा सकती।"


“लाश सामने पड़ी है और तुम कल्पना की बात कर रहे हो ?”


“मैनेजर ठीक कह रहा है मराठा ।" विभा जिंदल ने मैनेजर की जान बचाई----“यहां की सिक्योरिटी पर मैंने भी ध्यान दिया है। उस सबके रहते किसी लाश को यहां तक लाना असंभव है। मेरे ख्याल से होटल में, बल्कि फिफ्थ - फ्लोर तक यह अपने पैरों से चलकर आई थी । कत्ल इसी फ्लोर पर कहीं किया गया है । "


" तो फिर इन्हें पता होना चाहिए कि यह कब और किस रूम में आई थी! इस सुईट में तो हो नहीं गई हत्या । जहां भी हुई है, कम से कम वहां से तो यहां तक लाई ही गई है। फ्लोर के सिक्योरिटी इंचार्ज से पूछा जाए कि ऐसा कैसे हुआ ?”


वहीं खड़े फ्लोर इंचार्ज के चेहरे पर हल्दी पुत गई ।


“हत्या इसी सुईट में, बल्कि इसी बाथरूम में हुई है ।" कहने के साथ विभा बाथरूम के अंदर दाखिल हुई और टब की जड़ में पड़ी एक सीरिंज को उठाती हुई बोली ---- “ और हत्यारा हमें यह बात समझाना भी चाहता है। तभी तो इसे यहां छोड़ गया ।”


“ओह माई गॉड! ” मेरे सारे शरीर में सनसनी - सी दौड़ गई ।


“हत्या भी ठीक उस ढंग से जिस ढंग से अवंतिका की, की गई थी ।” कहने के साथ उसने टब के पानी में हाथ डाला और एक खाली इंजेक्शन उठाती हुई बोली-“इंसुलिन ।”


“पर ये है कौन?” सवाल शगुन ने उठाया ।


“बिड़ला दम्पत्ति, अशोक बजाज और सुधा भंसाली की परिचित होनी चाहिए।” विभा ने कहा---- -“बिड़ला दम्पत्ति तो रहे नहीं । मराठा, अशोक और सुधा को फोन करके यहां बुला लो । ”


“उस हरामजादे को तो मैं फोन कर नहीं सकता।”


“ओह, हां ।” विभा को जैसे अचानक यह बात याद आई कि अशोक के लिए मराठा के दिल में कितनी आग है, बोली ---- “तुम सुधा भंसाली को फोन करो । अशोक को तुम बुलाओ वेद ।”


हम दोनों अपने-अपने मोबाइलों में उलझ गए।


विभा बाथरूम से निकलकर मुकम्मल सुईट का निरीक्षण करने लगी थी। मुख्यरूप से मेनगेट के ‘की-होल' का निरीक्षण किया उसने ।


उसी के बाद बोली ---- “हत्यारे के पास कोई ऐसा इंस्ट्रूमेंट था जिसकी मदद से उसने बेहोशी की गैस 'की-होल' के जरिए सुईट में पहुंचाई। ‘मास्टर की' से लॉक खोलकर सुईट के अंदर तब आया जब विश्वास हो गया कि तुम लोग बेहोश हो चुके हो ।”


एक बार फिर मराठा ने कहा ----“लेकिन जब वह गैलरी में खड़ा यह सब कर रहा था, उस वक्त फ्लोर इंचार्ज क्या कर रहा था?”


“जाहिर है कि हत्यारे ने यह सब उसे धोखा देकर किया और इसकी कीमत उसे कम से कम अपनी नौकरी गंवाकर चुकानी होगी।”


“यह भी तो हो सकता है वह उससे मिला हुआ हो या किसी


लालच में उसे इग्नोर किया हो ?”


“तुम अपने स्तर पर जांच पड़ताल कर सकते हो मगर मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होगा।"


“यह तो बता दो कि तुम कहां थीं?” मैंने पूछा ।


“मैं एक ऐसी धमाकेदार खबर लेकर आई हूं जो तुम्हारे दिमागों के परखच्चे उड़ा देगी।” उसने रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा ।


“ उससे ज्यादा परखच्चे और क्या उड़ेंगे जितने उड़ चुके हैं!” मैं कह उठा ---- “क्या तुम समझ सकती हो कि यह सोच-सोचकर हमारी क्या हालत हो रही होगी कि हत्यारा कमबख्त अपने शिकार सहित हमारे सुईट में आया और हमारी मौजूदगी में हत्या करके चला गया !”


“इसमें समझने की क्या जरूरत है ?” उसने मेरा मजाक-सा उड़ाते हुए कहा ---- “तुम बाप-बेटों के चेहरे ही बता रहे हैं । घड़ी की दोनों सुईंयां बारह से हटने को ही तैयार नहीं हैं। बहुत मर्डर-वर्डर की कहानियां लिखते रहते हो । अब समझ में आया, जब किसी के अगल-बगल में मर्डर होता है तो क्या हालत हो जाती है !”


“मैं उस धमाकेदार खबर के बारे में जानना चाहता हूं।" शगुन ने पूछा - - - - “रात के इस वक्त कहां गई थीं आप? क्या खबर लाईं?”


“अशोक को आने दो, तुम्हारे दिमाग के साथ उसके दिमाग के भी तो परखच्चे उड़ाने हैं।"


“वह तो फोन पर मिल ही नहीं रहा है।" मैंने कहा ।


“अरे, पहले क्यों नहीं बताया ?”


“तुम मौका ही कहां दे रही हो?”


“मोबाइल नहीं मिल रहा ?”


“स्वीच ऑफ है। रेजीडेंस पर उसके पापा ने उठाया ।” मैं बताता चला गया----“पहले बोले कि अभी जगाकर बात कराते हैं। फिर करीब पांच मिनट बाद उनकी हड़बड़ाहट भरी चिंतित आवाज सुनाई दी - - - - वह तो अपने कमरे में ही नहीं है मिस्टर वेद | मैंने पूछा कहां है तो कहने लगे---- हमें तो खुद नहीं मालूम । समझ में नहीं आ रहा कि रात के इस वक्त इस तरह कहां चला गया ?”


“तुमने क्या कहा ?”


“ इसके अलावा और क्या कह सकता था कि जैसे ही मिले सीधा महाराजा होटल चला आए या फोन पर मुझसे बात करे ।”


एकाएक ही विभा काफी चिंतित नजर आने लगी थी ।


“क्या हुआ विभा जी?” गोपाल मराठा ने पूछा ।


विभा ने जवाब देने की जगह तेजी से अपने मोबाइल पर कोई नंबर पंच किया और संबंध स्थापित होते ही कान से लगाती तेज आवाज में बोली ---- “अशोक बजाज कहां है ?”


शायद यह कहा गया कि 'अपने कमरे में तभी तो उसने रोष भरे स्वर में कहा- “नहीं, वह कमरे में नहीं है । "


दूसरी तरफ से शायद हैरानी प्रकट की गई ।


“अगर वह तुम्हारी नजरों में धूल झोंककर गायब हुआ है तो जाहिर है कि उसे अपनी निगरानी किए जाने का आभास हो गया था। उसे तलाश करो। यह बहुत जरूरी है ।” कहने के बाद उसने जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर कनेक्शन काट दिया ।


“मामला क्या है विभा?” मैं पूछे बगैर न रह सका ---- “तुम क्यों उसकी निगरानी करा रही थीं और वह क्यों गायब हो गया ?”


“ मैं तो हो ही गई हूं। तुम दोनों भी सावधान हो जाओ।" उसने मेरी और शगुन की तरफ देखते हुए कहा ---- “हम लोगों पर हमला हो सकता है और वह हमला कातिलाना भी हो सकता है।"


मेरे सारे शरीर में सनसनी-सी दौड़ गई ।


मुंह से निकला - - - - “य... ये तुम क्या कह रही हो?”


“दुश्मन को पता लग गया है कि मैं क्या धमाकेदार खबर जुटा चुकी हूं! शायद उसी वजह से वह बौखला गया है और बौखलाहट में ऐसा शख्स इन्वेस्टीगेटर्स को नुकसान पहुंचाने वाला कदम उठाता है । "


“वो धमाकेदार खबर..


“सवाल ये है कि उसे पता कैसे लगा ? " बड़बड़ाकर जैसे वह खुद ही से सवाल कर रहीं थी, फिर गोपाल मराठा की तरफ देखती हुई बोली- -“इसका मतलब वह मेरे आसपास है !”


“हमारी समझ में नहीं आ रहा विभा जी कि आप क्या कह रही हैं ?” वह भी हम जितना ही हैरान नजर आ रहा था ---- “यदि आप अपनी और अपने दोस्तों की जान को खतरा महसूस कर रही हैं तो आपकी सिक्योरिटी के इंतजाम कराए देता हूं।"


“नहीं मराठा, विभा इतनी कमजोर नहीं है कि सिक्योरिटी की जरूरत महसूस करे और न ही सिक्योरिटी के बहाने मैं किसी को अपनी गतिविधियों पर नजर रखने की परमीशन दे सकती हूं ।”


“ पर बात क्या है, कुछ बताइए तो सही ।”


“वक्त आने पर बताऊंगी। अभी तो सुधा भंसाली को आने दो ।” कहने के बाद उसने पूछा---- “उसका फोन तो मिल गया था न !”


“हां ।” मराठा ने केवल इतना ही कहा ----“वह आ रही है।”


सुधा अपने ससुर यानी भैरासिंह भंसाली के साथ आई । लाश पर नजर पड़ते ही उसका चेहरा पीला पड़ गया । बहुत ही


जबरदस्त अंदाज में चीखकर कहा था उसने ---- “ये तो किरन है।” “किरन ।” विभा कह उठी - - - - “यानी किरन सिंहानिया ?” अपने ससुर से लिपटकर वह बड़ी मुश्किल से 'हां' में गर्दन हिला सकी। उस वक्त वह इतनी ज्यादा आतंकित नजर आ रही थी जितनी रमेश भंसाली की लाश पर भी नहीं थी ।


भैरोसिंह भंसाली उसे छाती से लगाए बाथरूम से दूर ले गए । विभा जिंदल ने जब उससे धीरज सिंहानिया का नंबर पूछा तो अपनी वर्तमान हालत के कारण बड़ी मुश्किल से याद करके बता सकी। विभा ने वह नंबर अपने मोबाइल पर पंच किया ।


कॉल केवल एक बार बैल जाने पर रिसीव की गई ।


कहा गया ---- “धीरज हीयर । " ।”


“तुम्हारी मिसेज कहां है ?” विभा ने सीधा सवाल किया ।


“जी?” चौंका हुआ स्वर - - - - “क्या मतलब?”


विभा ने कड़क आवाज में कहा ---- “जो पूछा गया है वो बताओ।”


- “मैं तो खुद ही उसके लिए परेशान हूं। डांस - फ्लोर पर डांस करते-करते पता नहीं कहां गायब हो गई ?”


“कौनसे डांस - फ्लोर से ? इस वक्त तुम कहां हो?”


“होटल महाराजा के डिस्कोथ में । "


“ओह !” विभा ने कहा ---- "फौरन फिफ्थ - फ्लोर पर आ जाओ।"


“क्यों?” हड़बड़ाकर पूछा गया ---- “अ... आप कौन हैं?”


“ पुलिस की एक इन्वेस्टीगेटर ।” विभा ने बहुत ही जल्दबाजी में कहा था ----“और किरन इस वक्त यहीं है।"


“क... क्या हुआ है ?”


“यहां आने पर पता लग जाएगा।” कहने के बाद विभा जिंदल ने कनेक्शन काट दिया । फुर्सत मिलते ही उसकी आंखें सुधा भंसाली पर स्थिर हो गईं। बोली- -“मैं एक बार फिर वही कहूंगी सुधा जो कल भी बार-बार कहा था। कम से कम अब तो तुम्हें इस बात पर यकीन कर ही लेना चाहिए कि कोई है जो चुन-चुनकर तुम्हारे ग्रुप के लोगों की हत्या कर रहा है। पहले रतन फिर अवंतिका..


“कितनी बार कहूं... कितनी बार कहूं कि वे हमारे ग्रुप में नहीं थे?” वह दहशतजदा अंदाज में चीखी थी - - - - “ आप यकीन क्यों नहीं कर रहीं कि उनसे और कपाड़ियाज से हमारा कोई संबंध नहीं था?”


उस वक्त मैंने विभा के होठों पर ऐसी मुस्कान थिरकती देखी जैसे उसे मालूम हो कि सुधा भंसाली झूठ क्यों बोल रही है। मगर मुंह से बहुत ही तीखी आवाज निकली थी---- “चांदनी तो थी तुम्हारे ग्रुप की ? रमेश भंसाली तो तुम्हारा पति ही था? और ये... ये जो बाथरूम में मरी पड़ी है, इसी के यहां तो हुआ था तुम्हारा गेट-टूगेदर ?”


“वह तो मैं आपको बता ही चुकी हूं । ”


“मगर ये नहीं बता रही हो कि इनकी हत्याएं क्यों हुईं ?”


“मुझे नहीं पता... पता होता तो मैं ही हत्यारे को नोंचकर नहीं खा जाती? उसने मेरे पति को मारा है ।”


“टब में तैरते कपड़े पहचान लिए हैं न तुमने ?”


“क... कपड़े?”


“ रमेश के हैं। तुम्हारे पति के ।”


सुधा संज्ञा - शून्य - सी अवस्था में विभा को देखती रह गई ।


“प्लीज विभा जी ।" भैरोसिंह भंसाली कह उठा ---- "इस वक्त इससे और सवाल मत कीजिए । मुझे डर है कि कहीं ये..


बात अधूरी ही थी कि दो पुलिसवाले एक नौजवान को साथ लिए सुईट के अंदर आए । वह बदहवाशी की-सी हालत में था। वहां कदम रखते ही पूछने लगा----“कहां है? कहां है मेरी किरन ? ”