सुधाकर और उसकी टीम अंधेरी पुलिस स्टेशन से निकलकर वसई क्रीक से आगे पहुँची। उस जगह से आगे नवघर फॉरेस्ट रिजर्व का एरिया शुरू हो जाता था।

एक टूरिस्ट स्पॉट होने के कारण वहाँ पर बहुत सारे ढाबे, बार और रेस्टोरेन्ट आबाद हो गए थे। ऐसे ही एक ढाबे पर, जिसका नाम ‘नील सागर फूड कोर्ट’ था, सुधाकर चाय की चुसकियाँ ले रहा था। उसे इंतजार था अब नैना दलवी का।

इस इलाके में मौजूद सुधाकर के खबरी उसके काम की खबर निकालने में आखिरकार कामयाब हुए थे। उनके माध्यम से सुधाकर को जो जानकारी मिली थी वह उसके काम की हो सकती थी। नवघर फॉरेस्ट का एरिया शुरू होते ही एक पेट्रोल पंप था। उस पेट्रोल पंप की दायीं तरफ से एक लिंक रोड़ मुड़ती थी जो फॉरेस्ट रिजर्व जाने का एक चौड़ा रास्ता था जिससे ट्राले जैसा बड़ा वाहन आसानी से जा सकता था। ‘नील सागर फूड कोर्ट’ बिल्कुल उस मोड़ पर पड़ता था। सुधाकर उस फूड रिज़ॉर्ट की सीसीटीवी फुटेज देख चुका था जिसमें वह ट्राला उस मोड़ पर मुड़ता हुआ साफ दिखाई दे रहा था।

उस रास्ते पर डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर आगे जाकर एक कच्चा रास्ता मुड़ता था जिस पर तीन किलोमीटर आगे चलकर एक सुनसान फैक्टरी थी जहाँ पर पुरानी गाड़ियों की चेसी को तोड़ा जाता था। उस फैक्टरी में पुरानी गाड़ियों की चेसी बड़ी तादाद में पड़ी हुई थी।

अगर किसी को विनय मोटवानी का गायब हुआ ट्राला छुपाना था तो यह जगह उस काम के लिए एक महफ़ूज़ जगह हो सकती थी।

सुधाकर को उस इलाके की स्क्रीनिंग के लिए मदद की दरकार थी। इसके लिए उसने पहले आलोक देसाई और फिर श्रीकांत का फोन मिलाया था लेकिन फोन मिल नहीं पाया। आखिरकार उसने नैना दलवी से बात की। नैना तुरंत पुलिस कमिश्नर से बात कर वहाँ के लिए रवाना हो चुकी थी।

कोई दस मिनट बाद नैना दलवी अपने साथ पुलिस फोर्स की एक टुकड़ी को लेकर ‘नील सागर फूड कोर्ट’ पहुँची जहाँ पर सुधाकर बैठा हुआ चाय पी रहा था। नैना की बोलेरो को रुकते हुए देख कर सुधाकर खड़ा हुआ और उसने वेटर को आवाज लगाकर मेज पर कुछ रुपए रखे और फिर वह बोलेरो की बीच वाली सीट पर बैठ गया।

बोलेरो कुछ देर धीमे-धीमे चली और उस फूड कोर्ट से कुछ दूरी पर जाकर रुक गयी।

“बोलो सुधाकर। क्या पोजीशन है?” नैना ने पूछा।

“मैडम। यहाँ से पाँच किलोमीटर दूर एक बंद और वीरान फैक्टरी है जिसमे पुरानी गाड़ियों की बॉडी को तोड़ा जाता है। वहाँ पर मेरे आदमियों ने कुछ एक्टिविटी नोट की हैं जिससे मुझे शक हो रहा है कि हमारा टारगेट वहाँ पर है।” सुधाकर ने कहा।

“शक की कोई वजह। ऐसी कौन सी एक्टिविटी तुम्हें वहाँ पर होती लगी?” नैना ने फिर से पूछा।

“यहाँ पर बहुत से ढाबे हैं। मेरी टीम ने उन पर जाकर पता लगाया तो यहाँ से उस ट्राले को जाते देखा गया है। ‘नील सागर फूड कोर्ट’ पर इस बात की सीसीटीवी फुटेज भी मौजूद है। उसी के साथ लगते ‘कच्छ होटल’ पर पिछले दो दिनों से राहुल तात्या को रात के वक्त बराबर देखा गया है।”

“क्या तुम्हारे पास इस राहुल तात्या की शिनाख्त का पुख्ता सबूत है।”

“फिलहाल तो मोबाइल से फोटो दिखाकर ही पूछा गया है। यहाँ से डेढ़ किलोमीटर के बाद जो रास्ता मुड़ता है, उस पर किसी भारी वाहन के गुजरने के निशान बने है जो वहाँ पर अभी तक मौजूद हैं। उसी इन्फोर्मेशन की बिना पर हमने उस बिल्डिंग के अंदर दीवार फाँद कर भी देखा था। एक ट्राला अंदर मौजूद है लेकिन उस पर नंबर प्लेट मौजूद नहीं है। वहाँ पर कुछ लोगों की मूवमेंट भी हमें देखने को मिली है। हमें पहले वहाँ पर जाकर देखना होगा।”

“हम्म, तो चलें उस जगह। उस इमारत के अंदर तो जाना ही होगा। बाहर खड़े-खड़े हम कुछ नहीं कर सकते।”

“अगर हम इस रास्ते से उस इमारत की तरफ जाएँगे तो वो लोग सावधान हो जाएँगे। उन लोगों की नज़र उस कच्चे रास्ते पर जरूर लगी होगी। यहाँ से दो किलोमीटर आगे ‘फ्लोरा गार्डन रिज़ॉर्ट’ के सामने से एक और रास्ता घूम कर उसी बिल्डिंग के पास आता है। वह रास्ता पक्का भी है। अगर हम सीधे ही उस इमारत में प्रवेश करते हैं और अगर वहाँ पर बंदी हुए तो उन सबकी जान पर बन आएगी।”

“ठीक है। चलो फ्लोरा गार्डन के रास्ते से ही चलो।”

वे लोग ‘फ्लोरा गार्डन’ वाले दूसरे रास्ते से उस बंद इमारत के पास पहुँचे। मिलिंद राणे वहाँ पर पहले से ही मौजूद था और उस इमारत पर निगाह रखे हुए था। वे लोग पेड़ों के घने झुरमुट में आड़ लिए हुए थे।

“क्या डेवलपमेंट है, राणे।” नैना ने मिलिंद से पूछा।

“कहीं कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। मुझे तो लगता है यहाँ पर कोई नहीं है।” मिलिंद ने जवाब दिया।

नैना ने अपने एक असिस्टेंट को इशारा किया। वह आदमी एक बंद वैन में चला गया। जब वह वापस आया तो उसके हाथ में दो ड्रोन और उनका ऑपरेटिंग सिस्टम था।

“बी केयरफुल। ये ड्रोन ज्यादा नीचे नहीं उड़ना चाहिए। अगर कोई इस बिल्डिंग में मौजूद है तो उन लोगों को कानो-कान खबर न हो। जितना ज्यादा से ज्यादा एरिया कवर कर सकते हो, करो।” नैना ने कहा।

असिस्टेंट ने हामी में सिर को हिलाया। कुछ समय बाद ड्रोन उस बिल्डिंग के ऊपर मँडराने लगे। उस फैक्टरी के कंपाउंड में पुरानी गाड़ियों की बॉडी के अम्बार लगे थे। उस कबाड़ में कितने ही आदमी छुपे हो सकते थे। ड्रोन की मदद से एक ट्राला उस कबाड़ में छुपा कर खड़ा किया गया दिखाई दिया। सुधाकर की रिपोर्ट की पहली पुष्टि हुई। ड्रोन धीरे-धीरे उस फैक्टरी की इमारत की तरफ बढ़े। छत पर किसी चिड़िया का भी निशान नहीं था।

वो फैक्टरी तीन मंज़िला इमारत थी। नैना ने असिस्टेंट को ड्रोन की दिशा इमारत की खिड़कियों की तरफ करने को कहा। नैना की निगाहें असिस्टेंट के पास मौजूद सिग्नल रिसीवर पर लगी हुई थी। तभी उसे दिखाई दे रही फुटेज में दो आदमी उस कबाड़ से निकलकर फैक्टरी की इमारत में जाते दिखाई दिये।

दूसरी मंजिल की खिड़कियों से अंदर पाँच से छह लोगों की मौजूदगी का एहसास उन्हें हुआ। यानी कि इस इमारत में कम से कम आठ लोग मौजूद थे। बाकी इमारत की खिड़कियाँ बंद थी। ड्रोन से मिली फुटेज रिसीविंग मॉनिटर पर दिखाई दे रही थी।

“ये रहा राहुल तात्या। ये दूसरी मंजिल पर मौजूद है। और एक बात ये सब के सब आदमी हथियारबंद हैं।” सुधाकर ने खिड़की के पास मौजूद एक आदमी को देखते हुए कहा।

“तुम्हें पूरा यकीन है कि यही राहुल तात्या है। इन आठ आदमियों को तो हम लोग हैंडल कर लेंगे लेकिन इस इमारत में हमें विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमियों का पता नहीं चल रहा। हमारा पहला मकसद उन लोगों की सुरक्षित रिहाई है और हम लोग इसमें कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं कर सकते।” फिर नैना ने कुछ सोचते हुए कहा, “सुधाकर, हमारे पास ऑडियो इंटरसेप्शन के लिए एक ड्रोन है। हम उसे उस कमरे के पास लोकेट कर देते हैं जहाँ पर राहुल तात्या मौजूद है। उनकी बातचीत से हमें अपनी अगली स्ट्रेटेजी बनाने में मदद मिलेगी।”

इसके बाद नैना ने अपने असिस्टेंट को इशारा किया और वह फौरन उस कार्यवाही में जुट गया।

“यह ठीक रहेगा। लेकिन हम लोग ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते। इस तरह के ऑपरेशन में कोलैटरल डैमेज से बचा नहीं जा सकता। एक्शन तो हमें लेना पड़ेगा।” सुधाकर सधे हुए स्वर में बोला।

“तुम ठीक कह रहे हो। आइ हेव टु टॉक विथ अथॉरिटीज फॉर एप्रूवल ऑफ एक्शन एंड...” बाकी के शब्द नैना के मुँह में ही रह गए।

तभी ‘नील सागर फूड कोर्ट’ वाले कच्चे रास्ते से उन्हें धूल का गुबार उड़ता हुआ दिखाई दिया। तीन गाड़ियाँ आँधी तूफान की तरह उस फैक्टरी के गेट पर आकर रुकी। किसी ने अंदर से फाटक खोला। पलक झपकते ही वे तीनों गाडियाँ उस फाटक के भीतर समा गयी।

उन तीन गाड़ियों से बीस के करीब हथियारबंद आदमी बाहर निकले और फैक्टरी की इमारत में घुस गए।

किस्मत से ड्रोन अभी वहीं मँडरा रहे थे। उनसे तुरंत इमेज बाहर मौजूद नैना और सुधाकर को दिखाई दी।

“आपको पता है कि ये आदमी कौन है जो अंदर दाखिल हुआ है?” सुधाकर ने नैना से पूछा।

“नहीं! कौन है ये?” नैना ने सुधाकर की तरफ प्रश्न सूचक नजरों से देखा।

“ये वही आदमी है जिसकी तलाश में आप एक बार चंडुवाड़ी चाल में गयी थी।”

“कौन?”

“दिलावर टकला!”

☸☸☸

कराची

जावेद अब्बासी आँधी तूफान की तरह कराची के सेफ हाउस में पहुँचा। सेफ हाउस पूरी तरह से खंडहर बन चुका था। जावेद अब्बासी को काटो तो खून नहीं। उस का मन कर रहा था कि वह अपने बाल नोच ले, अपनी नाकामयाबी पर चीखे और किस्मत की दगाबाजी पर कहकहा लगाए। उसकी आँखों में अपमान और शिकस्त की सुर्खी लाल डोरे बन कर उभर आयी थी।

उसके पास जहर का घूँट पीने के सिवा कोई चारा नहीं था। उसे आईएसआई के चीफ़ तक यह बात पहुँचानी ही थी। जो बड़े बोल उसके सामने वह बोल कर आया था, उसे क्या पता था कि वे अब उसके गले की फाँस बन जाने वाले थे।

गेट पर पहुँचते ही समद ख़ान की लाश ने उसका स्वागत किया। समद खान की आँखें खुली हुई थी जैसे उसके आने का इंतजार कर रही थी। जावेद अब्बासी ने अपने हाथों से उन आँखों को फातिहा पढ़ते हुए बंद किया। समद ख़ान उसका सबसे वफादार आदमी था लेकिन अफसोस, किसी ने उनके खेल में ही उसे मात दे दी थी।

कौन था वो कमबख़्त !

काश ! वो उसे मिल जाता।

वो उसे अपने हाथों से दुनिया की सबसे दर्दनाक मौत उसे बख़्शता।

काश !!!

जावेद ने सेफ हाउस में जर्रे-जर्रे का मुआयना किया। सिर्फ़ तबाही और बर्बादी के सिवा वहाँ कुछ बाकी नहीं था।

टीवी चैनल वाले वहाँ अपने लाव-लश्कर के साथ पहुँच चुके थे। लेकिन आर्मी ने वह एरिया पहले ही अपने कब्जे में ले लिया था। सिर्फ़ सरकार और आईएसआई के ओहदेदारों को ही उस घेरे के अंदर जाने दिया जा रहा था।

अपना मुँह छिपाने के लिए आईएसआई ने मीडिया में इसे एक फिदायीन हमले का नाम दिया। लेकिन किसने किया इस बात की ‘जाँच’ अभी जारी थी।

‘कादिर मुस्तफा भी जल्दी ही जेल की सलाखों से निकलकर कुपवाड़ा सैक्टर की रवाना होने वाला ही होगा। और इधर यह कयामत बरपा हो गयी। अब नीलेश हाथ से निकल गया है तो क्या कादिर फिर सलाखों के पीछे फड़फड़ाता रह जाएगा। नहीं... ये मेरी शिकस्त होगी। उन काफिरों को क्या पता कि यहाँ पर क्या हुआ है ? मुझे नीलेश को दोबारा अपनी गिरफ्त में लेना होगा और कादिर मुस्तफा के रिहा होते ही उसे मैं खुद जहन्नुम रसीद... ‘

न जाने ऐसे कितने विचार जावेद अब्बासी के दिमाग में पल भर में कौंध गए।

तभी कंधे पर एक भारी भरकम हाथ की दबिश ने जावेद को जैसे सोते से जगाया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो आईएसआई का सबसे काइयाँ, धूर्त और बेरहम इन्वेस्टीगेटिंग ऑफिसर मुनीर पाशा उसके सामने खड़ा था।

“कहाँ खो गए जावेद साहब? लगता है कि आप को इस वारदात के हो जाने का ख्वाबों में भी गुमान नहीं था। बहुत ज़ोर का सदमा लगा हुआ मालूम होता है आपको।” अंदर तक भेदती आँखों से ताकते हुए मुनीर पाशा ने जावेद अब्बासी से पूछा।

“बेशक। बहुत बड़ी चोट लगी है हमें, मुनीर। इस घाव को हम सिर्फ़ सहला सकते है और अफ़सोस कि किसी को बता भी नहीं सकते।” जावेद ने जवाब दिया।

“चीफ़ ने हमें सारी कहानी बता कर ही यहाँ भेजा है। मुझे पता है तुम्हारा वो हिंदुस्तानी लौंडा तुम्हारे हाथ से फुर्र हो गया है। चीफ़ को उम्मीद है कि तुम कादिर मुस्तफा को लाने में अब भी कामयाब हो जाओगे। इसीलिए वह चुप हैं नहीं तो अब तक तुम आर्मी की गिरफ़्त में होते। अब इस गंदगी को हमें ही साफ करना पड़ेगा।” मुनीर पाशा का इरादा उसके अंदाज से झलक रहा था।

“क्या मतलब?” जावेद ने मुनीर की तरफ हैरानी से देखते हुए कहा।

“जो वीडियो फुटेज हमें यहाँ आसपास के सीसीटीवी कैमरों से मिली है, उसमें जो शख़्स हमें दिखाई दे रहा है, वह यहाँ पर एक टैक्सी चलाने वाला है, जिसका नाम यासिर ख़ान है। जो बख्तरबंद गाड़ी यहाँ से तुम्हारे पंछी को लेकर भागी है, वह हमें कराची एयरपोर्ट के रास्ते में सड़क से उतरी हुई मिली है। उस जगह से आगे वे लोग शायद एयरपोर्ट की तरफ भागे हैं।”

“तो फिर हम यहाँ पर किस बात का इंतजार कर रहें हैं? हमें तो तुरंत वहाँ के लिये कूच करना चाहिए।” जावेद ने हैरानी से पूछा।

“एयरपोर्ट पर सब को अलर्ट कर दिया है। मुझे नहीं लगता वो लोग ऐसी हिमाकत करेंगे। हमारे जाल में सीधा जाकर कोई क्यों फँसेगा?” मुनीर पाशा बोला।

“अरे। उसका और नीलेश का पकड़ा जाना हमारे लिए बेहद जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कादिर मुस्तफा की आज़ादी खतरे में पड़ सकती है। या ख़ुदा! मेरी किस्मत ने मुझसे इसी वक्त दगा करनी थी ! कितनी नजदीक थी मंजिल मुझसे।” जावेद अब्बासी जबड़े भींचता हुआ बोला।

“चीफ़ ने कहा है कि तुम पहले के प्रोग्राम के मुताबिक मुज्फ़्फराबाद के लिए रवाना हो जाओ। यहाँ पर मैं देख लूँगा। हमने कौन सा उस हिंदुस्तानी लौंडे को वापस सौंपना था।”

“लेकिन उसकी वजह से हमारा दबाव उस पार्टी पर बना रहता लेकिन उसने अपनी सपोर्ट तो हिंदुस्तानी सरकार से वापस ले ही ली है। हमारा वह मकसद भी हल हो गया।”

“तुम्हारा मकसद तो कामयाब हो ही गया है। अब तुम आगे की सोचो। मैं दबोचता हूँ इन पिल्लों को। आखिर मुझसे बचकर कहाँ जाएँगे?”

“ठीक है, पाशा। पर जाने से पहले मैं एक काम तो कर लूँ।” यह कहकर जावेद अब्बासी ने उस्मान ख़ान से संपर्क साधा।

उस्मान ख़ान से हुए उस वार्तालाप के आखिरी शब्द ये थे “… जब मैं तुम्हें कादिर मुस्तफा को सही सलामत मिलने की खबर दे दूँ तो उन बाकी काफिरों को बिना किसी देरी के जहन्नुम रसीद कर देना। कोई भी जिंदा न बचने पाये।”

☸☸☸

मुंबई

दिलावर टकला आँधी तूफान की तरह फैक्टरी के अंदर पहुँचा। जिस तरह से उसके बदन से चिंगारियाँ फूट रही थी उससे लगता था कि जैसे वह अभी फट पड़ेगा। राहुल तात्या उर्फ जमाल शेख अपने आदमियों के साथ उसकी अगुवाई करने पहुँचा तो दिलावर का तगड़ा हाथ राहुल तात्या के चेहरे पर पड़ा।

राहुल तात्या एक मजबूत कद काठी का सत्ताईस अट्ठाईस साल का नौजवान था लेकिन दिलावर का हाथ उस पर भी भारी पड़ा। उसका एक तरफ का नीचे का होंठ कट गया जिसकी वजह से खून की कुछ बूँदें टपक कर उसकी कमीज पर पड़ी। दिलावर की इस हरकत की वजह से वह सकपका गया। अपने आदमियों के सामने उसको अपनी तौहीन महसूस हुई।

“इतना गुस्सा किसलिए दिलावर भाई? आखिर ऐसी क्या गलती हुई मुझसे ?” तात्या ने हैरानी से पूछा।

“गलती भी, साला, तू मेरे से पूछेगा! पूरे मिशन की वाट लगाकर पूछता है कि गलती क्या है?” दिलावर अंगारों पर लोटता हुआ बोला।

“मैंने पूरे मिशन की वाट लगाई... मैंने! दिलावर भाई, मैं ही तो तुम तक नीलेश और उसके साथियों की खबर लेकर आया। मैं और मेरा दोस्त अमीन गोटी ही तो उन्हें अगवा कर यहाँ तक ले कर आए। तुम्हारे कहने पर ही हमने अमीन गोटी को यहाँ से अलग मोहन डेयरी में छोड़ा था। ये तुम्हारा ही प्लान था कि विस्टा के आदमियों को अलग जगह पर रखो। अगर अमीन हमारे साथ यहाँ पर होता तो आज मेरा यार जिंदा होता। अब तुम कहते हो कि मैंने मिशन की वाट लगा दी।” तात्या शिकायती अंदाज में बोला।

“सही बोला मैं। अपुन का असली काम विस्टा के आदमियों को अगवा करके नावाँ पीटने का था। तू साला उस प्रोफेसर का लोचा बीच में ले आया। हमें तो बस उन आदमियों को यहाँ रोक कर रखना था। तू साला खुद उस प्रोफेसर की गोद में जाकर बैठ गया। ये सारा रायता तेरी वजह से फैला है। और जहाँ तक अमीन गोटी की बात है तो साले, हलकट... वह तुम लोगों से अलग रहा तभी तुम लोग यहाँ पर महफ़ूज़ हो। उसका थोबड़ा पुलिस की पहचान में इतना जल्दी आ गया कि वह उनके राडार में फँस गया। इतने सारे लोगों की मूवमेंट अगर यहाँ पर होती तो तुम लोग भी उसके साथ कब के ऊपर जा चुके होते। ये तुम्हारी ही बेवकूफी थी जिसकी वजह से तुमने प्रदीप को वापस ‘पर्ल रेसीडेंसी’ भेजा। जिसकी वजह से मेरे टॉप के दो आदमी, ऑलिवर और अबरार मारे गए?” दिलावर दाँत पीसता हुआ बोला।

“प्रदीप ने यहाँ से भागने की कोशिश की थी। न जाने कैसे वह कमबख्त हमारे कमरे तक पहुँच गया! वह अब्दील और मेरी बातें सुनता हुआ पकड़ा गया। अब उस्मान भाई और आप लोग ही तो चाहते थे कि मुंबई में भारी तबाही हो जिससे आप लोग इंडिया की सरकार पर और ज्यादा दबाव बना सको। मैंने एक तीर से दो शिकार करने की सोची थी। प्रदीप उस होटल में पहले से ही रह रहा था तो उसके सामान की सिक्योरिटी चेकिंग उतनी बारीकी से नहीं होनी थी। इसी बात का फायदा उठाकर हमारे आदमी हथियारों समेत उस होटल में घुस भी गए थे। हमारा इरादा होटल में जाकर सबसे पहले प्रदीप को ठिकाने लगाने का था लेकिन वे दो पुलिस वाले पता नहीं कैसे बीच में आ गए।” तात्या की आवाज में अफसोस झलक रहा था।

“वो कोई आम इंस्पेक्टर नहीं थे जो वहाँ पहुँचे थे। उसमें से एक नागेश कदम था, जिसके काटे का तेरे जैसे मवालियों के पास कोई इलाज नहीं और दूसरा सुधाकर शिंदे था, जो हर उस केस को सुलझा कर ही दम लेता है जो उसे सौंपा जाता है। वे दोनों प्रदीप के चक्कर में वहाँ पर पहुँचे थे। ना प्रदीप वहाँ पहुँचता, ना वे दोनों इंस्पेक्टर वहाँ पर पहुँचते और ना इतनी बड़ी मार होती। मेरे सबसे जाँबाज आदमी ऑलिवर और अबरार मारे गए। और अब उस अब्दील का भी कोई पता नहीं।” दिलावर तड़पा।

“अब भी विस्टा के आदमी हमारे काबू में हैं और तुरुप का पत्ता नीलेश भी हमारे कब्जे में है। हम अभी पूरी बाजी नहीं हारे हैं।” तात्या ने उम्मीद कायम रखी।

“वो तुरुप का पत्ता भी अब हमारे हाथ से निकल चुका है।” एक आवाज कमरे में गूँजी।

दिलावर की गर्दन बेसाख्ता आवाज की दिशा में घूम गयी।

बगल के कमरे से निकल कर जो शख़्स उन लोगों के पास आ खड़ा हुआ था, उसे देखकर दिलावर के होश उड़ गए।

वह आदमी उस्मान ख़ान था।

जो प्रेत की तरह कभी कश्मीर, कभी पाकिस्तान के सीमा पार इलाकों में, कभी अफगानिस्तान में दिखाई देता था। उसके बारे में कहा जाता था कि किसी बिल्ली की तरह उसको खुदा ने अनगिनत जिंदगानियाँ बख्श रखी थी। वह मौत का वो फरिश्ता था जिसके कदम रखते ही वहाँ से जिंदगी रुखसत हो जाती थी।

“क्या? ये क्या कह रहे हो प्रोफेसर ?” राहुल तात्या हैरानी से बोला।

“तुरुप का पत्ता हमारे हाथ से एक बार निकल गया है पर इंशाअल्लाह, वो... योगराज का पिल्ला, नीलेश, हमसे अभी ज्यादा दूर नहीं निकला है। जावेद साहब के जाल से निकलना इतना आसान भी नहीं है। जल्दी ही वह उनके कब्जे में होगा। अब तुम लोगउन लोगों को यहाँ पर ले आओ जिन्हें हमनें यहाँ पर कैद किया है। उन को हलाल करने का वक्त आ गया है।” प्रोफेसर यानी उस्मान खान ने दरिंदगी भरे शब्दों में कहा।

“ये हुई न कोई बात। अब आएगा मजा। इतने दिनों से इस मनहूस फेक्टरी में कैद हुए कोफ्त होने लगी थी।” राहुल उर्फ जमाल शेख एक वहशी मुस्कुराहट अपने चेहरे पर लाता हुआ बोला।

“लेकिन तुम लोग इस तरह से उन लोगों को मारने का एक तरफा फैसला कैसे कर सकते हो। अभी तक मुझे मेरा पूरा पैसा कहाँ मिला है।” दिलावर शिकायती अंदाज में बोला।

”एक करोड़ तो तुम्हें पहले ही मिल चुका है और बाकी नौ करोड़ भी तुम्हें जल्द ही मिल जाएँगे। एक करोड़ तात्या का है। इस काम को इसने वाकई बखूबी अंजाम दिया है। इससे हमारे जावेद साहब बहुत खुश हैं। यहाँ का काम ख़तम होने के बाद इसे मुकम्मल ट्रेनिंग के लिए सीमा पार भेज दिया जाएगा।” उस्मान ने दिलावर को दिलासा देते हुए कहा।

“नहीं उस्मान भाई। हमारा धंधा सिर्फ़ हवाई बातों पर नहीं चलता। इससे पहले कि तुम बाकी लोगों का खात्मा करो, मुझे अपना बाकी का रुपया चाहिए।” दिलावर बोला।

“अब यह वक्त इन बातों के लिए मुनासिब नहीं है, दिलावर भाई। कादिर मुस्तफा इस हिंदुस्तानी सरकार के चंगुल से छूटने वाला है। तबरेज आलम के चलते हमारा रुपया भी जल्दी ही हमारे पास होगा। तात्या, तुम जल्दी से आगे की कार्यवाही मुकम्मल करो। उन काफिरों को जल्दी से यहाँ पर लेकर आओ। जल्दी ही दुनिया उनका अंजाम देखेगी।”

तात्या आगे की कार्यवाही के लिए उस कमरे से बाहर निकल गया।