जब तक मन-ही-मन कुढ़ता विक्रम खड़ा हुआ, कई जोड़ी भागते पैरों की आहट दरवाजे पर आकर रुकी । फिर भारी ठोकर पड़ने के कारण दरवाजा भड़ाक से खुल गया । और फिर एक भारी अधिकारपूर्ण स्वर गूंजा-
"तुम घिर चुके हो । अपने-आपको पुलिस के हवाले कर दो ।"
विक्रम ने अपेक्षाकृत निश्चिंतता अनुभव की । वो एस. आई. चमनलाल की आवाज थी ।
"अन्दर आ जाओ, चमनलाल !" वह बोला-"यहां मैं अकेला ही बचा हूं ।"
"पहले तुम हथियार फैककर हाथ ऊपर उठाकर बाहर जा जाओ ।"
"क्यों ख्वामख्वाह नाटक करके बेगार कराते हो ? यहां कम-से-कम आधा दर्जन हथियार और पूरी पांच लाशें हैं । यकीन न हो तो खुद ही आकर देख लो ।"
"तुम हाथ ऊपर उठाकर बाहर आ जाओ ।"
विक्रम ने वैसा ही किया ।
चमनलाल अकेला नहीं था । इकबाल और दो अन्य मातहत भी उसके साथ थे ।
"अन्दर जाओ ।" विक्रम ने कहा-"और खुद ही देखकर तसल्ली कर लो ।"
उसे मातहतों के सुपुर्द करके चमनलाल और इकबाल कमरे में दाखिल हुए ।
विक्रम बाहर खड़ा इंतजार करने लगा ।
वे करीब पन्द्रह मिनट बाद बाहर निकले ।
उन्होंने पहले तो विक्रम को किसी अजूबे की भांति घूरा फिर उनके चेहरे कठोर हो गए और उनकी आंखों में उत्पन्न भावों में स्पष्ट था कि अन्दर जो कुछ हुआ पड़ा था, उसके लिए वे उसी को जिम्मेदार समझ रहे थे ।
लेकिन विक्रम साफ मुकर गया था कि अन्दर हुए काण्ड से उसका जरा भी कोई रिश्ता था । उसने सिर्फ इतना कहा कि जीवन को ढूंढ़ता हुआ जब वहां पहुंचा तो अन्दर वही नजारा मौजूद था जो उस वक्त नजर आ रहा था । वह जानता था, उसका वो झूठ चलने वाला नहीं था । क्योंकि अन्दर कारबाइट की बदबू अब तक मौजूद थी । लेकिन इसके अलावा और कोई जवाब उसे सूझ ही नहीं सका ।
अन्त में चमनलाल के बार-बार जोर देने पर, जान छुड़ाने के लिए मजबूरन उसे सान्याल का फोन नम्बर देना पड़ा ।
"बेहतर होगा ।" वह बोला-"तुम्हें जो भी पूछना है, इससे पूछ लो ।"
"वह आदमी है कौन ?"
"यह भी इसी से पूछ लेना ।"
"ठीक है ।" वह विक्रम को घूरता हुआ बोला-"मैं आखिरी दफा तुम पर यकीन कर रहा हूं । वो भी सिर्फ इसलिए कि हेरोइन के पैकेट हमें सौंपकर तुम काफी हद तक अपनी नेकनीयती का सबूत दे चुके हो । लेकिन अगर इस तरह तुम कोई चालाकी करने की कोशिश कर रहे हो तो एक बार फिर सोच लो । तुम्हारी कोशिश कामयाब नहीं होगी ।"
विक्रम मुस्कराया ।
"तुम फोन करके आओ । मैं कहीं भाग नहीं रहा हूं ।"
उसने एक बार फिर विक्रम को घूरा और फिर इकबाल को जरूरी हिदायतें देकर एक मातहत सहित अनिश्चित-सा इमारत से बाहर निकल गया ।
विक्रम वहीं बैठ गया ।
इकबाल असमंजसतापूर्वक उसे ताकता रहा ।
करीब दस मिनट बाद चमनलाल वापस लौटा तो उसके चेहरे पर बड़े ही उलझनपूर्ण भाव थे ।
"क्या रहा ?" इकबाल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
उसने जवाब देने की बजाय विक्रम की ओर देखा ।
"मेरी तरफ से तुम जहां चाहे जा सकते हो ।"
विक्रम मुस्कराया ।
"मुझे हिरासत में नहीं ले रहे हो ?"
"नहीं ।"
"यानी तुम्हारी तसल्ली हो गई ?"
"हां ।" चमनलाल गहरी सांस लेकर बोला ।
"मुझे भी तो बताइए ।" इकबाल ने पूछा-"आखिर किस्सा क्या है ?"
"किस्सा नहीं, गोरखधन्धा है ।"
"लेकिन है क्या ?"
"पता नहीं । मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं कि जिस आदमी को मैंने फोन किया वह इंटेलीजेंस डिपार्टमेंट का फील्ड अफिसर है । मैंने उसे मुख्तसर में सारी दास्तान सुनाई तो उसने सिर्फ इतना कहा कि इस बारे में मैं अपने आई० जी से बातें कर लूं । मैंने डरते-डरते आई० जी० साहब को फोन किया । उन्होंने आदेश दे दिया कि विक्रम खन्ना को हिरासत में न लिया जाए । और अगर हिरासत में ले लिया गया हो तो फौरन बाइज्जत रिहा कर दिया जाए ।"
विक्रम खड़ा हो गया ।
"तो तुम मुझे बाइज्जत जाने दे रहे हो ?"
"हां ।"
"थैंक्यू ।"
******
विक्रम वापस होटल विश्राम पहुंचा ।
लॉबी से गुजरकर उसने लगभग दौड़ते हुए सीढ़ियां तय की और अपने फ्लोर पर पहुंचा ।
कामयाबी के नशे में चूर होने की वजह से उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे । वह जल्दी-से-जल्दी किरण वर्मा के पास पहुंचकर उसे कैपसूल सौंपने को मरा जा रहा था ।
लेकिन अपने कमरे के सम्मुख पहुंचते ही उसका माथा ठनका । दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था ।
मन-ही-मन आशंकित विक्रम ने, सावधानीवश, जेब से रिवॉल्वर निकाली और स्वयं को एक तरफ रखते हुए भडाक से दरवाजा खोल दिया ।
आशा के विपरीत अन्दर कुछ नहीं हुआ । विक्रम ने आगे झुककर कमरे में झांका । रोशनी में खाली पड़ा बिस्तर उसे साफ दिखाई दिया ।
वह भीतर दाखिल हुआ । बाथरूम और बालकनी के दरवाजे खुले थे ।
उसने दोनों स्थान देख डाले । लेकिन किरण वर्मा कहीं नहीं थी । अलबत्ता बालकनी में वे मर्दाना जूते जरूर पड़े थे जिन्हें पहनकर वह 'अमन' के ऑफिस से होटल तक आई थी ।
वह जा चुकी थी । और प्रत्यक्षतः बालकनी से होकर फायर एस्केप की सीढ़ियों द्वारा गई थी ।
कमरे में कहीं भी संघर्ष का कोई चिह्न न होना इस बात का सबूत था कि किरण वर्मा ने या तो संघर्ष किया ही नहीं था यानी वह अपनी मर्जी से चली गई थी या फिर उसे संघर्ष करने का मौका ही नहीं दिया गया था ।
इनमें दूसरी बात ठीक होने की ही सम्भावना ज्यादा थी ।
जाहिर था, किरण वर्मा का एक बार फिर अगुवा कर लिया गया था ।
विक्रम प्रवेश-द्वार लॉक करके उसी प्रकार गीले कपड़ों और जूतों समेत बिस्तर पर पड़कर सोचने लगा ।
किरण वर्मा की होटल में मौजूदगी के बारे में पता लगाने का एक ही तरीका था-जब वह उसे लेकर वहां आया तब उनका पीछा किया गया था ।
लेकिन कैसे ? जहां तक अपहरणकर्ताओं का सवाल था । वह यकीनी तौर पर कह सकता था कि वो काम करीम खान के आदमियों के अलावा किसी और का नहीं था । साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता था कि जरूर उसी से कहीं कोई चूक हुई थी ।
विक्रम देर तक सोचता रहा । मगर किसी नतीजे पर वह नहीं पहुंच सका ।
उसे एक बार फिर खुद पर खीज आने लगी कि उसने किरण वर्मा को होटल जैसी असुरक्षित जगह पर लाने की बेवकूफी की ही क्यों ? अब सान्याल को किस मुंह से क्या जवाब दिया जाएगा ? इससे भी बड़ी बात थी किरण वर्मा कहां थी और उस पर क्या गुजर रही थी ?
इसी उधेड़-बुन में फंसे विक्रम के दिमाग में अचानक बिजली की भांति एक विचार कौंधा और वह मुस्कराने पर विवश हो गया ।
किरण वर्मा का अपहरण कैपसूल की वजह से किया गया था और वो कैपसूल उसके पास था । इसका सीधासा मतलब था-अपहरणकर्ता उससे सम्पर्क जरूर करेगा ।
सहसा टेलीफोन की घण्टी की आवाज ने उसका विचार प्रवाह छिन्न-भिन्न कर दिया । और उसने बेख्याली में हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया ।
"हैलो ?" वह बोला ।
"आदाब अर्ज है, जनाब !" दूसरी ओर से कहा गया । स्वर अपरिचित होने के साथ-साथ कठोर और उत्सुकतापूर्ण था । मगर लहजा ऐसा था मानो बोलने वाले को अपेक्षा थी कि उससे कोई बड़ा ही मजेदार जोक सुनाने को कहा जाएगा ।
विक्रम उठ बैठा । उसकी रीढ़ की हड्डी से अनायास ही एक सर्द लहर गुजरकर रह गई थी ।
"आदाब अर्ज, करीम खान ।" वह बोला ।
"ओह मानना पड़ेगा कि तुम आदमी होशियार हो । और मैं होशियार लोगों की कद्र करता हूं ।"
"तारीफ के लिए शुक्रिया । बेवक्त फोन करने की वजह जान सकता हूं ?"
"अनजान मत बनो । वजह तुम जानते हो ।" अचानक लहजा सर्द हो गया-"तुम्हारे पास एक ऐसी चीज है जो मुझे चाहिए और मेरे पास ऐसी चीज है उसकी तुम्हें जरूरत है । मैं समझता हूं आपस में चीजों का तबादबा करना बेहतर होगा । तुम क्या कहते हो ?"
विक्रम के पास उसकी बात मान लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था । लेकिन इससे पहले कि वह जवाब दे पाता लाइन पर दो बार क्लिक की आवाज सुनाई दी । ऐसा लगा मानो एक पल के लिए कनेक्शन कट गया था । और फिर दोबारा लाइन कनेक्ट की गई ।
"मंजूर है ।" वह बोला-"किन्तु तबादला होगा कैसे ?"
"उसका इंतजाम कर दिया जाएगा ।"
एक मिनट । लड़की से मेरी बातें कराओ । मैं तसल्ली कर लेना चाहता हूं, वह जिंदा है ।"
विक्रम जानता था, किरण जिंदा ही होगी । क्योंकि करीम खान भी जानता था कि उससे यही फरमाइश की जाएगी ।
विक्रम ने करीम खान को आवाज लगाते सुना । और एक बार फिर उसे लगा कि एक संक्षिप्त पल के लिए फोन डिसकनेक्ट किया गया था । और फिर किरण वर्मा का हांफता-सा उत्तेजित स्वर उसे सुनाई दिया ।
"ऐसा मत करना, विक्की !"
विक्रम कुछ नहीं बोला । अपनी विवशता पर दांत पीसकर रह गया ।
"वह ऐसा ही करेगा, मोहतरमा !" लाइन पर पुनः करीम खान का स्वर उभरा-"वह अपने वादे का पक्का एक अच्छा इन्सान है । साथ ही जज्बाती भी कम नहीं है । खासतौर पर तुम्हारे मामले में ।"
"तुम इन्तजाम करके बता देना करीम खान !" विक्रम ने कहा ।
ओ० के०, मैं दस मिनट बाद फोन करके बताऊंगा कि तुमने क्या करना है । और तब तक के लिए मेरी सलाह है कि कोई चालाकी मत करना । समझे ?"
"समझ गया ।" विक्रम जान-बूझकर सहमीसी आवाज में बोला ।
दूसरी ओर से सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया गया ।
विक्रम ने भी धीरे-से रिसीवर यथास्थान रख दिया ।
उसकी आंखें गहन विचारपूर्ण मुद्रा में सिकुडी हुई थीं । उसे लगा, जरूर कहीं कोई गड़बड़ थी-तगड़ी गड़बड़, जिसका आभास तो वह पा रहा था । मगर उसकी. पकड़ में नहीं आ पा रही थी ।
उसने किरण वर्मा से मुलाकात से आरम्भ हुए तमाम किस्से पर बारीकी से सिलसिलेवार गौर करना शुरू कर दिया ।
हर एक वाकया उसके जेहन में सिनेमा के पर्दे पर उभरे सीन की भांति उभरने लगा ।
जल्दी ही उसकी समझ में आ गया कि गड़बड़ कहां और क्या थी ।
साथ ही यह भी वह समझ गया कि किरण वर्मा कहां थी और उस तक कैसे पहुंचा जा सकता था ।
वह बिस्तर से उठा । उसने अपनी रिवॉल्वर चैक की और कमरे से बाहर आ गया ।
वह सीढ़ियों द्वारा नीचे पहुंचा ।
सुनसान लॉबी में नाइट असिस्टेंट मैनेजर रिसेप्शन काउंटर के पीछे टेलीफोन आपरेटर की ड्यूटी अंजाम देने में मसरूफ था । विक्रम की ओर से पीठ किए वह पी० बी० एक्स बोर्ड पर काल अटेंड कर रहा था ।
विक्रम दबे पांव चलता हुआ, काउंटर का फ्लैप उठाकर उसके पीछे जा पहुंचा । रिवॉल्वर निकालकर उसकी पीठ से सटा दी । और पी० बी० एक्स बोर्ड से लाइन काट दी ।
उसने सिहरन-सी ली फिर धीरे-धीरे गर्दन घुमाकर पीछे देखा और विक्रम पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र आतंक से फट पडे ।
"हरामजादे !" विक्रम गुर्राया-"गद्दार !"
"न...नहीं...।" उसने समर्पण की मुद्रा में हाथ ऊपर उठा दिए ।
"तुम्हें कैसे फंसाया गया था ? पैसे का लालच देकर या जवान खूबसूरत छोकरियों के जरिये या फिर किसी और तरह से ?"
"न...नहीं...ऐसा कुछ नहीं है...।"
"बको मत ! मैंने इंटेलीजेंस डिपार्टमेंट की फाइल में मौजूद शराब और शबाब की एक पार्टी की फोटुओं में तुम्हारी फोटो भी देखी थी । उसमें तुम सूटेड-बूटेड और सजे-संवरे नजर आ रहे थे । तुम्हारी गोद में एक अर्धनग्न जवान छोकरी इस ढंग से पसरी हुई थी कि तुम्हारी शक्ल पूरी तरह साफ नजर नहीं आती थी । इसीलिए तब मैं तुम्हें पहचान नहीं पाया था अलबत्ता शक तो तब भी हुआ था कि तुम्हें कहीं देखा है । लेकिन कुछ ही देर पहले करीम खान से मेरी बातचीत के दौरान, बेहद भयभीत होने की वजह से, तुम घबराहट में स्विच बोर्ड के कनैक्शनों के साथ गलती से छेड़छाड़ कर बैठे थे । उसने इतनी ज्यादा मदद की कि मेरी सारी समस्या सुलझा दी ।"
"म...मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।"
"तुम शुरू से ही बहुत कुछ करते रहे हो ।" विक्रम कड़े स्वर में बोला-"जब मैनेजर ललितराज ने मेरा नाम लिया और तुम्हें मेरे यहां ठहरने के बारे में पता चला, तो तुमने अपने आकाओं को मेरे बारे में इत्तिला देकर अपनी वफादारी का सबूत दे दिया । तुम्हें आदेश मिला कि मेरी प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखी जाए और उन्हें बराबर रिपोर्ट दी जाए । तुमने लड़की के साथ मुझे यहां आते देखा और अपने बाप को रिपोर्ट दे दी । तुम्हारा वह बाप यहां आ पहुंचा और मेरी गैरमौजूदगी में लड़की को मेरे कमरे से निकालकर किसी दूसरे कमरे में ले गया और जब मैं वापस लौटा तो वह मेरे साथ सौदेबाजी करने लगा । तुमने वाकई कमाल कर दिया चालाकी करने में !"
उसने बोलना चाहा मगर हकलाकर रह गया ।
"मैं मानता हूं, लड़की होटल में ही है ।" विक्रम रिवॉल्वर को उसकी पीठ में जोर से गड़ाता हुआ बोला और अगर मेरा अंदाजा गलत नहीं है तो वह तुम्हारे कमरे में है । क्यों, ठीक है न ?"
उसने जवाब देने की बजाय सिर हिलाकर हामी भर दी ।
"तुम स्टाफ क्वार्टर्स में रहते हो ?"
उसने पुनः सिर हिलाकर सहमति दे दी ।
कितने नम्बर क्वार्टर में ?"
"सात !"
विक्रम ने उसके कोट की जेबें थपथपाईं और एक जेब से चाबी निकाल ली, जिस पर सात का अंक खुदा था ।
"उठो, मेरे साथ आओ ।" विक्रम ने कहा-"और सुनो, अगर मेरे हाथ से मरना नहीं चाहते तो बेहतर होगा कि चालाकी करने की कोशिश कतई मत करना ।"
वह कांपते हाथों से हैडफोन उतारकर खड़ा हो गया ।
दोनों काउंटर के पीछे से निकले ।
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