रास्ते में देवराज चौहान और जगमोहन ने डिनर लिया।


"अब क्या करोगे?" डिनर के दौरान जगमोहन ने पूछा । 


"किस बारे में?" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा। 


"मोना चौधरी के, वो शंकर भाई कहता। "


"भूल जाओ इस मामले को। " देवराज चौहान ने शांत स्वर में जवाब दिया-"शंकर भाई को जो कहना था, वो कह दिया उसने। गलती उसकी भी नहीं थी। तिजोरी हमने ही खोली। उसके भीतर मौजूद कैमरे ने हमारी ही तस्वीरें ली तो ऐसे में वो यही सोचेगा कि तिजोरी हम ले गए। लेकिन अब उसे विश्वास हो चुका है कि कम से कम वो तिजोरी उसके बंगले से हम नहीं ले गए।"


"तुम्हें कैसे पता कि शंकर भाई को विश्वास हो।"


"उसके चेहरे पर लिखा था। उसकी आंखों में ये सब नजर आ रहा था। "


"मतलब कि शंकर भाई अपने तौर पर कुछ भी करे, तुम अब इस मामले में नहीं।"


नहीं। शंकर भाई के वास्ते मैं मोना चौधरी को तलाश करने से रहा ये मेरा काम नहीं है। मैंने उसे असल नाम बता दिया कि ये सब किसका किया धरा है। ये ही बहुत है। "


जगमोहन ने सहमति में सिर हिलाया।


"लेकिन मोना चौधरी की तरफ से खतरा अभी भी सिर पर आ सकता है।" जगमोहन बोला। "कैसे?"


"वो बांके ने नक्शा बनाकर, उसमें कुछ लिख दिया। जब बंगाली वो पढ़ेगा तो। "


"इस बारे में अब क्या कह सकते हैं। " देवराज चौहान का स्वर शांत था "जब ऐसा वक्त आया तो देखेंगे।"


***


उस वक्त रात के बारह बजने वाले थे। दिन भर की भागदौड़ और शोर का माहौल अब एक चौथाई ही रह गया था। सड़क पर शांति का मौहाल था। जिसके दोनों और बंगलों की कतार दूर तक जा रही थी। स्ट्रीट लाइटों का मध्यम प्रकाश वहां फैला था ।


बंगाली ने उस जगह कार रोकी जहां बहुत ही कम अंधेरा था। उसकी बगल में मोना चौधरी और पीछे वाली सीट पर पारसनाथ और नीलू महाजन थे।


"वो सामने। " कार का ईजन बंद करके बंगाली ने एक तरफ इशारा किया—"वो बंगला हल्के नीले रंग का बीच में सफेद रंग भी है। उस बंगले में ही वो फोन लगा है। जिसमें देवराज चौहान से बात होती है। "


तीनों की निगाह बंगले पर जा टिकी।


"पक्की खबर है?"


"बंगाली कभी भी कच्ची खबर नहीं देता।" बंगाली की आवाज में दृढ़ता थी।


मोना चौधरी दरवाजा खोलकर बाहर निकली।


महाजन और पारसनाथ भी निकले।


उनकी निगाहें हर तरफ गई। रात की सुनसानी में वहां कोई भी नजर नहीं आया। कार रुकने के दौरान से अब तक सिर्फ एक ही वाहन वहां से निकला था।


"बंगाली। " मोना चौधरी भीचे स्वर में बोली।


"हां" कार में बैठा बोला बंगाली।


"हम बंगले में जा रहे हैं। तुम एकदम तैयार रहना। मालूम नहीं वापसी के वक्त क्या पोजीशन हो। जब हम बाहर निकलें तो कार के साथ तेरे को सामने ही होना चाहिए। " मोना चौधरी बोली।


"मैं तैयार मिलूंगा।" 


मोना चौधरी ने महाजन और पारसनाथ को आने का इशारा कि और आगे बढ़ गई।


महाजन जब पास से निकला तो बंगाली ने टोका!


"वो मेरी फाइल... |


"चुप बे दुम के।" महाजन ने मुंह बनाया।


"क्या मतलब?"


"इसका मतलब तो हमारे मुल्क वाले ही जानते हैं। यह सीक्रेट शब्द हैं। तेरे को नहीं बताया जा सकता है। " महाजन ने तीखे स्वर में कहा "अच्छा भला मामला निपट गया था फिर गाड़ी को धक्का दे दिया। बांके ने ठीक लिखा था कि बंगाली तू गधा है और मैं कहता हूं, तेरे से बड़ा गधा दुनिया में है ही नहीं।" 


बंगाली ने आंखें सिकोड़ कर महाजन को देखा। 


"मुझे लगता है तू बांके से मिला हुआ है और...।" 


"गधा गधा।" महाजन ने कहा और आगे बढ़ गया।


***


बंगले में अधिकतर अंधेरा था। भीतर कहीं एक ही लाइट ऑन थी। देखने पर जिसका एहसास न के बराबर हो रहा था। वो तीनों कुछ देर तक बंगले पर खोज भरी निंगाह टिकाए रहे।


"लगता है, वे लोग सो गए हैं। " महाजन बोला।


"मेरे ख्याल में देवराज चौहान बंगले पर नहीं है। पारसनाथ बोला—"होता तो पोर्च में लाइट ऑन होती। 


"भीतर चलो।" दांत भींचे मोना चौधरी कह उठी-"हर तरह के हालातों के लिए तैयार रहना। वो देवराज चौहान है। कोई बड़ी बात नहीं कि उसे हमारे आने की खबर पहले ही मिल गई हो।" 


"ये कैसे हो सकता है। " महाजन बोला।


"जिस मामले में देवराज चौहान हो। वहां कुछ भी हो सकता है। " मोना चौधरी के होंठों से खतरनाक शब्द निकले और वो बंगले के गेट की तरफ बढ़ गई।


गेट बाहर से ही बंद था।


मोना चौधरी ने गेट की सिटकनी हटाई। थोड़ा सा खोला और महाजन पारसनाथ के साथ भीतर प्रवेश कर गई। उनकी सतर्कता भरी निगाह हर तरफ घूम रही थी। हाथ जेबों में पड़ी रिवॉल्वर पर जा पहुंचे थे। वो तीनों पोर्च तक बिना किसी परेशानी के पहुंच गए। "देवराज चौहान बंगले में नहीं है। " मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा।


"वो कैसे?"


"बंगले में कोई कार नहीं है। पोर्च खाली है। " कहते हुए मोना


चौधरी दरवाजे की तरफ बढ़ी।


"हो सकता है जगमोहन बाहर गया हो और देवराज चौहान भीतर हो।" पारसनाथ बोला।


मोना चौधरी दरवाजे तक पहुंच चुकी थी। वहां अंधेरा था। उसने दरवाजा चैक किया जो कि बंद था। वहां ताला तो नहीं, हाथ की उंगलियों ने दरवाजे पर मौजूद 'की' होल को महसूस किया।


तब तक महाजन और पारसनाथ "दरवाजा लॉक है। " मोना चौधरी बोली "भीतर जाने के लिए कोई और रास्ता देखो। "


भीतर आ पहुंचे थे।


महाजन और पारसनाथ फौरन वहां से हट गए।


एक खिड़की खुली मिली।


मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ वहां से बंगले के भीतर प्रवेश कर गए। रिवॉल्वरें हाथ में थामे सावधानी से उन्होंने पूरा बंगला छान मारा।


बंगला खाली था। भीतर कोई भी नहीं था। 


"देवराज चौहान और जगमोहन में से कोई भी बंगले के भीतर नहीं है। " पारसनाथ बोला। 


मोना चौधरी कुर्सी पर बैठते, मौत से भरे सर्द स्वर में कह उठी। 


"कोई बात नहीं। कभी तो देवराज चौहान आएगा। आज-कल परसों... ।"


"तो क्या तुम उसके इंतजार में इतने दिनों तक बैठी रहोगी?" महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकाली।


"हां। दिन तो क्या, मैं उसके इंतजार में महीनों भी बैठ सकती हूं। अगर मालूम हो कि वो कभी न कभी यहां आएगा। जबकि ये तो उसका बंगला है। ऐसे में वो कभी भी आ सकता है। "


"तुम तो दुश्मन का इंतजार करने को कह रही हो। आजकल तो कोई अपनों का भी इंतजार नहीं - ""


“देवराज चौहान तो मेरे अपनों से भी कहीं ज्यादा है। " मोना चौधरी खूंखार स्वर में कह उठी— "जब दुश्मनी की बुनियादें हद से ज्यादा गहरी हो जाएं तो वो दुश्मनी, दोस्ती से भी गहरी हो जाती है। "


महाजन ने गहरी सांस लेकर पारसनाथ को देखा।


"माना बेबी कि देवराज चौहान आया। फिर तू उसके साथ क्या करेगी?"


"वो मरेगा आज या फिर जब वो यहां आएगा?" मोना चौधरी फुफकार उठी


"और वो असली वाली फाइल जो, बंगाली को देनी ।" 


"अब मुझे फाइल नहीं, देवराज चौहान की जान चाहिए।' 


"क्यों पारसनाथ। " महाजन कह उठा "सुना बेबी को-" 


पारसनाथ ने बिना कुछ कहे सहमति से सिर हिलाया। 


"इसको कुछ समझा। देवराज चौहान पर दबाव डालकर, उससे फाइल ले लेंगे और राम-राम कर देंगे। जान का लेन-देन जरूरी है क्या ?"


"जरूरी है। " बोली मोना चौधरी "मुझे नकली फाइल देकर, उसने लड़ाई के लिए चुनौती दी है। देवराज चौहान की ये हरकत स्पष्ट करती है कि वो मुकाबले के लिए तैयार है। "


महाजन ने कहने के लिए मुंह खोला तो वो खुला का खुला ही रह गया। अब आंखें वहां टिकी रह गईं, जहां फकीर बाबा खड़ा था। वो जाने कब कहां, वहां आया, महसूस ही नहीं हो पाया था। वो ही घिसी पैंट-कमीज, जो कभी उसने पहले देखी थी। सिर के लंबे लंबे बाल चेहरे पर बढ़ी हुई शेव शेव के बालों के बावजूद भी, चेहरे पर मौजूद गहरी झुर्रियां, किसी कपड़े के मोटे बलों की तरह नजर आ रही थीं।


"फकीर बाबा।" महाजन के होंठों से निकला। मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाहें फौरन उस तरफ गईं। फकीर बाबा को देखते ही मोना चौधरी कुर्सी से उठ खड़ी हुई।


***


फकीर बाबा के चेहरे पर गंभीरता और आंखों में व्याकुलता स्पष्ट नजर आ रही थी।


"बाबा" मोना चौधरी के होंठों से निकला।


“कैसी हो मिन्नो?" फकीर बाबा के होंठों से निकला। 


"अच्छी हूं बाबा। " मोना चौधरी का स्वर भी गंभीर था। 


"मन में दुश्मनी लेकर तू देवा के घर पर है ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी।"


मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता नाच उठी।


"ये सब देवराज चौहान की वजह से ही हो रहा है। " मोना चौधरी का स्वर सख्त हो उठा— "उसने मुझे धोखा दिया है और आज उसे धोखेबाजी की कीमत चुकानी पड़ेगी। "


“किसी ने किसी को धोखा नहीं दिया मिन्नो सब वक्त का फेर है। कुछ वक्त ऐसा आता है कि उसे समझदारी से पार कर लिया जाए तो सब ठीक रहता है। "


“तो ये बात आपको देवराज चौहान को समझानी चाहिए।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा।


"दोनों को ही तो समझाता हूं। इस जन्म में ही मेरी बात मान जाओ। मत झगड़ो। दोस्ती कर लो। मुझे मुक्ति मिल जाएगी। मैं भी नया जन्म लेकर सामान्य जीवन व्यतीत करूंगा। तुम दोनों के झगड़े की वजह से, गुरुवर से मिले श्राप की अवधि बढ़ती जा रही है।" फकीर बाबा की आवाज में गहरी गंभीरता थी "इस बार तुम दोनों के रास्ते अलग करने की बहुत कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हो सका। होनी को कौन टाल सकता है। "


"जब होनी को कोई नहीं टाल सकता तो बाबा तुम क्यों कोशिश ...।"


"मिन्नो। यह सच है कि होनी को नहीं टाला जा सकता। लेकिन कोशिश करके, होनी के प्रभाव को कम किया जा सकता है, वो ही कोशिश में कर रहा हूं। " फकीर बाबा ने कहते हुए पारसनाथ को देखा-"परस् तू तो हर जन्म में मिन्नो के साथ है। नील सिंह । " फकीर बाबा ने महाजन पर नजर मारी-"तू भी तो उसी वक्त से मिन्नो के साथ रहा है। हर जन्म में मिन्नो के साथ रहकर, उसके काम आते हो। तुम क्यों नहीं समझाते मिन्नो को कि—।" 


"बाबा।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा "मैं आपकी इज्जत करता हूं और जानता हूं कि आप जो कह रहे हैं, वो सच है। लेकिन मैं बीते जन्मों की कोई बात नहीं जानता। मेरे सामने सिर्फ यही जन्म है और इस जन्म में, मैं अपने कर्म कर रहा हूं।" 


"वही आदत। सीधा जवाब देने की आदत नहीं गई तेरी और नील सिंह तू...तू क्या कहता है। "


महाजन ने बोतल से घूंट भरा ।


"बाबा। मैं तो मौके बे-मौके पर 'बेबी' को समझाता रहता हूं। अभी तक तो समझी नहीं।" महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा- "मैं चाहता हूं देवराज चौहान से बेशक दोस्ती न करे मोना चौधरी । लेकिन मन में आने वाली दुश्मनी की भावना को निकाल दे। माने तब ना।"


"कोई नहीं मानता मेरी बात फकीर बाबा गहरी सांस लेकर गंभीर स्वर में कह उठा- "शायद तब तक तुम लोग मेरी बात नहीं समझ पाओगे, जब तक मैं तुम लोगों को बीतें जन्मों के बारे में नहीं बताऊंगा। बीते जन्मों के बारे में सुनकर शायद तुम लोगों को यह समझ में आ जाए कि इस झगड़े की बुनियाद, ये जन्म नहीं, पहला जन्म है। "


"पहले जन्म में क्या हुआ था?" महाजन ने पूछा ।


"बताऊंगा।" फकीर बाबा ने गंभीरता से सिर हिलाया"लेकिन यह वक्त न बताने का है और न ही तुम लोगों के पास सुनने का वक्त है। फिर बताऊंगा। लेकिन बाबा की बात ध्यान में रखना । छोड़ दो यह झगड़ा। सिर्फ बरबादी ही होगी। इसके सिवाय और कुछ हाथ नहीं आएगा।" 


कहने के साथ फकीर बाबा ने आंखें बंद की और अगले ही पल देखते ही देखते बाबा धुआं बनकर इस तरह गायब हो गया कि जैसे वहां कुछ क्षण पल पहले कोई था ही नहीं। पल भर के लिए तीनों हक्के-बक्के रह गए।


मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी।


"बेबी।" महाजन घूंट भरकर कह उठा "मान लो, इस बाबा की बात क्यों उसे... |


"महाजन।" मोना चौधरी ने शांत गंभीर स्वर में कहा- "मैं खुद चाहती हूं कि बाबा की बात मानूं, लेकिन जब देवराज चौहान का जिक्र या वह मेरे सामने आता है जाने क्यों मेरा खून खौल उठता है और..."


"बाबा के कहने का यही तो मतलब है कि ये लड़ाई, ये खून खौलना, बीते जन्मों की बातों से वास्ता रखता है। " महाजन ने कहा- "इस जन्म का झगड़ा, पुरानी बातों की वजह से चल-।"


तभी बाहर कार रुकने की आवाज आई। तीनों की निगाहें मिलीं।


मोना चौधरी का चेहरा मौत के भावों से भर उठा। 


"देवराज चौहान आ गया है। उसे जिंदा नहीं बचना चाहिए। कहीं भी वक्त बरबाद नहीं करना। उसे सिर्फ यह जानने समझने का मौका देना है कि वो मरने वाला है, हम उसकी जान लेने वाले हैं।"


***