‘‘सो हाउ विल यू प्ली़ज योर मिस्ट्रेस टुडे?’’ अगली सुबह माया ने अपनी बगल में लेटे कबीर से शरारत से पूछा।

‘‘ए़ज यू कमांड मिस्ट्रेस।’’ कबीर ने तुरंत उठकर शरारत से सिर झुकाते हुए कहा।

‘‘हूँ... इम्प्रेसिव; फर्स्ट मेक मी ए कप ऑ़फ टी।’’ माया ने लेटे-लेटे अँगड़ाई ली।

कबीर उठकर किचन में गया, और थोड़ी देर में एक ट्रे में टी पॉट, दूध, शक्कर और चाय के कप लिए लौटा। माया के सामने घुटनों के बल बैठते हुए उसने चाय का कप तैयार किया, और उसे अदब से माया को पेश किया।

‘‘वेरी इम्प्रेसिव... लगता है तुमने कहीं से सर्विट्यूड का कोर्स किया है।’’ माया ने चाय की चुस्की ली।

‘‘गॉडेस माया का सौन्दर्य देवताओं को भी दास बना ले, फिर मैं तो अदना सा भक्त कबीरदास हूँ।’’ कबीर ने फिर शरारत की।

‘‘हम्म..वेरीफनी, बट लेट मी टेल यू वन थिंग।’’

‘‘यस मिस्ट्रेस।’’

‘‘मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए, भक्ति नहीं; चलो अब उठकर यहाँ बिस्तर पर बैठो।’’ माया ने कबीर को शरारत से डाँटते हुए कहा।

‘‘ए़ज यू कमांड मिस्ट्रेस।’’ कबीर उठकर बेड पर माया के पास बैठा। उसका सिर अब भी झुका हुआ था।

‘‘कबीर, बंद करो ये शरारत अब।’’ माया की शरारती आँखों ने एक बार फिर कबीर को झिड़का।

‘‘शरारत आपने शुरू की थी गॉडेस माया, और अब आप ही इसे खत्म करें।’’

‘‘हूँ, वह कैसे?’’

‘‘मेरे लिए एक कप चाय बनाकर।’’

माया ने अपना चाय का कप साइड टेबल पर रखा, और कबीर के लिए चाय का कप तैयार करने लगी। माया को चाय बनाता देख, कबीर को अचानक पुरानी यादों ने घेर लिया। वही बेड, वही साइड टेबल, वही ट्रे, वही बोन चाइना का टी-सेट...बस, आज प्रिया की जगह माया थी।

‘‘हेलो! किसके ख्यालों में खो गए?’’ कबीर की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए माया ने पूछा।

वही सवाल।

‘‘कुछ नहीं माया, थैंक्स फॉर द टी।’’ कबीर ने माया से आँखें चुराते हुए कहा।

माया ने जवाब में कुछ नहीं कहा। शायद उस वक्त कुछ कहना ज़रूरी नहीं था।

कबीर का मोबाइल फ़ोन बजा, ‘प्रिया कॉलिंग।’ कबीर ने फ़ोन उठाया।

‘‘हे कबीर!’’ प्रिया की चहकती हुई आवा़ज आई।

‘‘हाय प्रिया! हाउ आर यू?’’ कबीर चाहकर भी उत्साह नहीं जता सका।

‘‘आई एम गुड; तुम कैसे हो कबीर?’’

‘‘अच्छा हूँ प्रिया, तुम्हारी मॉम कैसी हैं अब?’’

‘‘मॉम अब ठीक हैं।’’

‘‘वाओ! दैट्स ए गुड न्यू़ज।’’

‘‘एक और गुड न्यू़ज है।’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।

‘क्या?’

‘‘अरे बुद्धू, मैं वापस आ रही हूँ।’’

कबीर को यह सुनकर ख़ुशी ही हुई। प्रिया के लौट आने की खबर ने उसे राहत ही दी। प्रिया की गैरमौजूदगी में उसे घुटन सी महसूस हो रही थी; मन पर एक बोझ सा था, जैसे प्रिया से उसका सब कुछ छीन लिया गया हो; उसका प्रेम, उसकी दोस्त, उसका घर। जुर्म का इकबाल कर लेने से उसका बोझ कम हो जाता है। कबीर को भी यही लगा कि प्रिया पर असलियत ज़ाहिर कर, वह अपने मन का बोझ कम कर सकता था।

प्रिया की फ्लाइट शाम की थी। कबीर, प्रिया को लेने हीथ्रो एअरपोर्ट पहुँचा। माया, बाकी के इंत़जाम करने के लिए घर पर ही रुकी। बोझ उसके मन पर भी था, मगर कबीर के मन के बोझ सा नहीं था। उसे समझ आ रहा था, कि यदि कबीर उससे प्रेम करता था, तो प्रिया उसके साथ खुश कैसे रह सकती थी। प्रिया से एक बार धोखा करना, उसे जीवन भर धोखे में रखने से बेहतर था।

प्रिया, कबीर से मिलते ही उससे लिपट गई। पब्लिक में किस करना ब्रिटेन की परंपरा है। भारत में चार हफ्ते गु़जारने के बाद भी प्रिया इस परंपरा को नहीं भूली। उसने कबीर के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे तब तक चूमा, जब तक कि उसके बेली बटन के पीछे थिरक उठी तितली का नृत्य थम नहीं गया। उत्तेजना कबीर को भी हुई, मगर कहीं थोड़ा फर्क आ गया था; लेकिन अपनी स्वयं की उत्तेजना को शांत करने की लगन में शायद प्रिया ने उसे महसूस नहीं किया।

‘‘हे कबीर, आई मिस्ड यू सो बैड।’’

‘‘आई मिस्ड यू टू प्रिया... कैसी हो?’’

‘‘अच्छी हूँ; तुम?’’

‘‘अच्छा हूँ।’’

कबीर ने प्रिया से अधिक बातें नहीं कीं। प्रिया ने भी महसूस किया कि हँसमुख और नटखट कबीर कहीं गुम था।

घर पहुँचकर प्रिया, माया से भी उसी गर्मजोशी से मिली...चहकते हुए।

‘‘हाय माया! कैसी हो? कबीर ने तुम्हें तंग तो नहीं किया न?’’

माया सि़र्फ मुस्कुराकर रह गई।

प्रिया ने अपने अपार्टमेंट का मुआयना किया। अपार्टमेंट की सजावट और रंगत बदली हुई थी। प्रिया को अच्छा लगा। माया, उसके अपार्टमेंट को अपना घर समझकर रह रही थी, उसकी देख-रेख कर रही थी।

‘‘माया, तुमने मेरे घर को तो अपना घर बना लिया है, कहीं मेरे बॉयफ्रेंड को भी...।’’ प्रिया ने शरारत से मुस्कुराकर कहा।

कबीर को घबराहट सी हुई। कहीं प्रिया को अभी से उन पर शक तो नहीं हो गया। उसने अपनी ऩजरें झुका लीं। माया ने भी बस एक बेबस सी मुस्कान बिखेरी।

‘‘क्या बात है, तुम दोनों बहुत चुप चुप से हो; झगड़ा हुआ है क्या?’’ प्रिया ने कबीर और माया की चुप्पी को तोड़ना चाहा।

‘‘नहीं प्रिया; काम से लौटे हैं न, इसलिए थके हुए हैं।’’ माया ने सफाई दी।

‘‘कबीर कब से काम करने लगा?’’ प्रिया ने आश्चर्य में डूबी हँसी से कहा, ‘‘हेलो कबीर, तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘प्रिया, देर सबेर जॉब तो करनी ही थी; अच्छा ऑ़फर मिला तो ज्वाइन कर लिया।’’ कबीर ने माया की ओर देखते हुए प्रिया को जवाब दिया।

‘‘हूँ, कन्ग्रैचलेशऩ्ज कबीर; कहाँ ज्वाइन किया है?’’

कबीर ने एक बार फिर माया की ओर देखा।

‘‘हमारी फ़र्म में कबीर के लिए एक सूटेबल रोल था, तो मैंने रिकमेंड कर दिया।’’ माया ने जवाब दिया।

‘‘वाओ! लेट्स सेलिब्रेट इट देन... कबीर की पहली जॉब।’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।

प्रिया, वाइन रैक से रेड वाइन की बोतल निकालकर वाइन के गिलास भरने लगी। माया ने खाना लगाना शुरू किया।

‘‘सो कबीर, इ़ज माया योर बॉस एट वर्क?’’ प्रिया ने वाइन का घूँट भरते हुए शरारत से पूछा।

‘‘बॉस तो नहीं, मगर तुम्हारी फ्रेंड बॉसी बहुत है।’’ कबीर, माया की ओर देखकर मुस्कुराया।

‘‘तुम्हारी शिकायत हो रही है माया; खबरदार, आइंदा मेरे बॉयफ्रेंड पर रोब जमाया तो।’’ प्रिया ने कबीर के गले में बाँहें डालते हुए शरारत से माया को बनावटी गुस्सा दिखाया।

‘‘तुम्हारे बॉयफ्रेंड को ख़ुद पर रोब जमाया जाना पसंद है।’’ माया ने कबीर की ओर उसी शरारत से मुस्कुराकर देखा।

कबीर ने माया को गुस्से से देखा। उसका गुस्सा बनावटी नहीं था। उसे माया का वह म़जाक उस वक्त पसंद नहीं आया।

‘‘अच्छा प्रिया, अब मैं चलता हूँ।’’ खाना खत्म कर कबीर ने प्रिया से कहा।

‘‘आज यहीं रुक जाओ कबीर।’’ प्रिया ने आग्रह किया।

‘‘नहीं प्रिया; तुम थकी होगी, आराम करो।’’

‘‘आराम तो मैं तुम्हारे साथ भी कर सकती हूँ।’’ प्रिया ने एक बार फिर कबीर के गले में बाँहें डालीं।

कबीर ने बेचैनी से माया की ओर देखा।

‘‘प्रिया, कबीर के साथ तुम कल आराम कर लेना; कितने दिनों के बाद हम मिले हैं, आज तो तुम मुझे वक्त दो।’’ माया ने प्रिया से कहा।

‘‘ओके माया; आज की रात दोस्ती पर प्यार कुर्बान।’’ प्रिया ने कबीर के गले में बाँहें जकडीं और उसके होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उसे एक लम्बा किस किया, ‘‘बाय कबीर।’’

मगर इस बार प्रिया ने महसूस किया कि कबीर में वैसी उत्तेजना नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। उसके होंठ फैलने की जगह सिकुड़ रहे थे।

उस रात माया से बातें करते हुए भी प्रिया, कबीर के बदले व्यवहार पर चिंता करती रही। कबीर पहले जैसा नहीं था... कहीं कुछ ठीक नहीं था।

‘‘कबीर! तुम प्रिया से कब कहोगे?’’ अगले दिन ऑफिस में माया ने कबीर से पूछा।

‘‘क्या माया?’’

‘‘हमारा सच, और क्या।’’ माया ने झुँझलाते हुए कहा।

‘‘मुझे कुछ वक्त दो माया; तुम्हें पता है, प्रिया को ये जानकार कितना बुरा लगेगा?’’

‘‘और जो मुझे बुरा लग रहा है वह? कबीर, प्रिया का तुमसे लिपटना, तुम्हें किस करना, तुम्हारे साथ रात बिताने की बातें करना; तुम्हें क्या लगता है, मुझे ये सब अच्छा लगता है?’’

‘‘मैं समझता हूँ माया... तुम कहती हो तो मैं कुछ दिन प्रिया से नहीं मिलता, धीरे-धीरे उसे ख़ुद समझ आने लगेगा।’’

‘‘तुम्हें जो ठीक लगता है करो कबीर; मगर मैं तुम्हें पहले भी कह चुकी हूँ, मैं अपना बॉयफ्रेंड किसी के साथ शेयर नहीं कर सकती... प्रिया के साथ भी नहीं।’’ माया ने सा़फ शब्दों में कबीर को चेतावनी दी।

अगले दिन कबीर के पास प्रिया का फ़ोन आया।

‘‘हाय कबीर!’’

‘‘हाय प्रिया! कैसी हो?’’

‘‘अच्छी हूँ; आज शाम डिनर पर आ रहे हो न?’’ प्रिया ने उत्साह से पूछा।

‘‘सॉरी प्रिया, आज कुछ ज़्यादा काम है; काम पर देर तक रुकना होगा।’’ कबीर ने बहाना बनाया।

‘‘जब काम खत्म हो जाए तब आ जाना; घर ही तो है, कोई रेस्टोरेंट थोड़े ही है।’’ प्रिया को कबीर का बहाना अच्छा नहीं लगा।

‘‘प्रिया, तुम्हें बेकार ही मेरे लिए वेट करना पड़ेगा; ऐसा करते हैं, कल जल्दी काम निपटाकर आता हूँ।’’ कबीर ने प्रिया को आश्वस्त करना चाहा।

‘‘ओके कबीर; मगर कल कोई बहाना नहीं चलेगा।’’ प्रिया ने थोड़े मायूस स्वर में कहा।

‘‘बहाना नहीं बना रहा प्रिया, प्ली़ज अंडरस्टैंड मी।’’

‘‘ओके फाइन, लव यू कबीर।’’

‘‘आई लव यू टू।’’ कहते हुए कबीर ने फ़ोन काट दिया।

प्रिया को कबीर का व्यवहार एक बार फिर विचित्र लगा। कबीर में उससे मिलने की कोई व्यग्रता न देख प्रिया की चिंता बढ़ गई।

अगले दिन भी कबीर ने व्यस्तता का बहाना बनाया। कबीर का रवैया प्रिया की बर्दाश्त से बाहर होने लगा। उसका कबीर पर शक पुख्ता हो गया।

दो दिनों बाद प्रिया ने कबीर को फ़ोन किया,

‘‘कबीर, अगर तुम मुझसे मिलने नहीं आ सकते, तो मैं ही तुमसे मिलने आ जाती हूँ।’’ प्रिया ने गुस्से से कहा।

‘‘आई एम वेरी सॉरी प्रिया; क्या तुम लंच पर बॉम्बे स्पाइस पहुँच सकती हो? मैं भी वहीं पहुँचता हूँ।’’

‘‘ओके, वन ओक्लॉक?’’ प्रिया ने खुश होते हुए कहा।

‘‘येह, दैट्स फाइन, सी यू प्रिया।’’

एक बजे प्रिया और कबीर, बॉम्बे स्पाइस रेस्टोरेंट पहुँचे। रेस्टोरेंट के भीतर माहौल अच्छा था, मगर भीड़ कम थी। इंडियन करी रेस्टोरेंट में भीड़ शाम को ही अधिक होती है। लंच में फ़ास्ट़फूड की माँग अधिक होती है।

कबीर ने खाना ऑर्डर किया। प्रिया की अधिक दिलचस्पी कबीर से बात करने में थी।

‘‘कबीर, क्या हो गया है तुमको? तुम्हारे पास मुझसे मिलने का समय भी नहीं है।’’ प्रिया ने नारा़जगी दिखाई।

‘‘आई एम रियली वेरी सॉरी प्रिया, मगर अब तो आ गया हूँ।’’ कबीर ने बहुत विनम्रता से कहा।

‘‘कबीर, तुम्हें यह जॉब करने की क्या ज़रूरत है?’’

‘‘प्रिया, क्या कह रही हो! मुझे अपना करियर तो बनाना है न? कोई न कोई जॉब तो करनी ही होगी।’’

‘‘मैं भी वही कह रही हूँ, यही जॉब क्यों?’’

‘‘इस जॉब में बुराई क्या है प्रिया? अभी कुछ ज़्यादा काम है, कुछ दिनों में नॉर्मल हो जाएगा।’’

‘‘कबीर, तुम डैड की फ़र्म क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते? इस छोटी सी जॉब में तुम्हें क्या मिलता होगा! डैड तुम्हें बहुत अच्छी पो़जीशन और पैकेज दे सकते हैं।’’

‘‘प्रिया, तुम्हें मेरी पो़जीशन से दिक्कत हो रही है?’’

‘‘मुझे तुम्हारे समय न देने से दिक्कत हो रही है; और तुम्हें डैड की फ़र्म ज्वाइन करने में क्या दिक्कत है?’’

‘‘पहले मुझे किसी बड़ी पो़जीशन के लायक तो बनने दो; तुम्हारी सिफारिश से मुझे पो़जीशन तो बड़ी मिल जाएगी, मगर उसे सँभालना तो मुझे ही होगा।’’

‘‘कबीर, ये जॉब भी तो तुम्हें माया की सिफारिश पर ही मिली है...।’’

‘‘प्रिया, कहना क्या चाहती हो? क्या मैं इस जॉब के लायक नहीं हूँ? क्या मुझमें कोई काबिलियत ही नहीं है?’’

‘‘कबीर मैंने ऐसा नहीं कहा, तुम ग़लत समझ रहे हो।’’

‘‘प्रिया तुम्हारी दिक्कत क्या है! मैं छोटी जॉब कर रहा हूँ, या मैं माया के साथ जॉब कर रहा हूँ?’’

‘‘मेरी दिक्कत ये है कि तुम मुझसे ज़्यादा वक्त माया को दे रहे हो।’’

‘‘तो सा़फ-सा़फ कहो न, कि तुम्हें माया से जलन हो रही है।’’

‘‘हाँ कबीर, मुझे माया से जलन हो रही है। माया में ऐसा क्या है; क्या वह मुझसे ज़्यादा हॉट है? मुझसे ज़्यादा सेक्सी है? मुझसे ज़्यादा सुंदर है? मुझसे ज़्यादा रिच है? क्या है ऐसा माया के पास, कि तुम मुझे धोखा देकर उसके पास जा रहे हो।’’ प्रिया चीख उठी।

‘‘प्रिया, ये रेस्टोरेंट है घर नहीं; हम ये बात कहीं और भी कर सकते हैं।’’ कबीर ने प्रिया को शांत कराना चाहा।

‘‘मुझे अब तुमसे कोई और बात नहीं करनी कबीर; फैसला तुम्हें करना है... तुम्हारा जो भी फैसला हो मुझे बता देना, मैं तुम्हें रोकूँगी नहीं।’’ प्रिया ने गुस्से से कहा, और फिर अपना बैग उठाकर उसमें से उसने एक ख़ूबसूरती से रैप किया हुआ गिफ्ट निकाला, ‘‘और हाँ, ये मैं तुम्हारे लिए इंडिया से लाई थी, तुम्हें पसंद हो तो रख लेना।’’

कबीर को गिफ्ट देकर, प्रिया अपना बैग उठाकर रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई। कबीर, प्रिया को जाते हुए देखता रहा। ये वही प्रिया थी, जिसकी अल्हड़ चाल पर वो फ़िदा था, जिसकी आँखों के तिलिस्म में वह खो जाना चाहता था। प्रिया की चाल अब भी उसे लुभाती थी; प्रिया की आँखें अब भी उसे, उनमें डूब जाने का आमन्त्रण देती थीं। कुछ ख़ास तो नहीं बदला था; बस उन दोनों के बीच माया आ खड़ी हुए थी। नहीं; दरअसल माया उनके बीच नहीं आई थी; माया को तो कबीर ने ख़ुद अपने और प्रिया के बीच लाकर बैठाया था, और उसके सम्मोहन के आगे समर्पण कर दिया था। माया में ऐसा क्या था जो प्रिया में नहीं था? प्रिया में सब कुछ था, मगर यदि कबीर किसी के सम्मोहन की दासता स्वीकार कर सकता था, तो वह माया का था, प्रिया का नहीं। यदि कबीर ख़ुद को चार्ली की तरह किसी के सामने सिर झुकाए देख सकता था, तो वह माया थी, प्रिया नहीं।

कबीर ने गिफ्ट रैप खोला। भीतर डायमंड और रो़ज गोल्ड की खूबसूरत सी पर्सनलाइज्ड रिस्ट वॉच थी। इतनी महँगी वाच पहनने की कबीर की हैसियत नहीं थी। हैसियत तो कबीर की, प्रिया का जीवनसाथी बनने की भी नहीं थी।

उस शाम प्रिया, माया से खिंची-खिंची सी रही, जिसका अहसास और अपराधबोध दोनों ही था माया को; मगर माया ने अपना रास्ता तय कर लिया था। वह कबीर की तरह दुविधा में जीने वालों में नहीं थी।

अगले दिन ऑफिस में माया, गुस्से से कबीर की डेस्क पर पहुँची। ‘‘यह क्या है कबीर; तुमने रि़जाइन कैसे किया?’’

‘‘माया, किसी कमरे में चलें? यहाँ आसपास लोग हैं।’’ कबीर ने माया के तमतमाए चेहरे को देखकर धीमी आवा़ज में कहा।

माया झटपट मुड़ी, और पास ही बने एक मीटिंग रूम की ओर बढ़ी। कबीर भी उसके पीछे मीटिंग रूम में पहुँचा। माया ने रूम का दरवा़जा बंद करते हुए एक बार फिर कबीर को तमतमाकर देखा।

‘‘माया, मुझे कुछ वक्त चाहिए; और तब तक मैं प्रिया और तुमसे, दोनों से ही दूर रहना चाहता हूँ।’’ कबीर ने कहा।

‘‘कबीर, अब तुम हम दोनों से ही दूर भागना चाहते हो? अब तक प्रिया से मुँह छुपा रहे थे, अब मुझसे भी मुँह छुपाओगे? तुम हिम्मत करके सिचुएशन को फेस क्यों नहीं करते?’’

‘‘माया, ऐसा नहीं है।’’

‘‘ऐसा ही है कबीर! प्रिया से धोखा तो तुम कर ही चुके हो, अब क्या तुम मुझे भी धोखा दोगे?’’

‘‘माया, मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा, बस थोड़ा सा वक्त माँग रहा हूँ।’’

‘‘तीन दिन देती हूँ तुम्हें; इन तीन दिनों में अगर तुमने प्रिया से नहीं कहा, तो मैं ख़ुद कह दूँगी; और हाँ, तुम्हारा रेजिग्नेशन एक्सेप्ट नहीं होगा; चुपचाप यहीं काम करो।’’ माया आज फिर अपने पूरे बॉसी अंदा़ज में थी। माया के इसी अंदा़ज पर तो कबीर मर-मिटा था।

उस शाम माया भी प्रिया से खिंची-खिंची रही। वैसे भी कुछ दिनों से उनके बीच गैर-ज़रूरी बातें बंद थीं। कभी साथ बैठकर खाना खा लेते, तो कभी ‘बाहर से खा आई हूँ’ या ‘आज भूख नहीं है’, कहकर अपने-अपने कमरों में सिमट जाते। कबीर का भी कोई ज़िक्र उनके बीच कभी न होता। माया को प्रिया के अपार्टमेंट में रहना एक ज़बरदस्ती लिया जाने वाला अहसान लगने लगा था। रात का खाना खाते हुए माया ने प्रिया से कहा,

‘‘प्रिया! आजकल ऑफिस में काम बहुत है; यहाँ से आने-जाने में का़फी समय लग जाता है... ऑफिस के पास ही रेंट पर एक अपार्टमेंट देखा है, सोचती हूँ वहीं शिफ्ट हो जाऊँ।’’

‘‘कबीर को भी साथ ले जाओगी माया?’’ एक छोटे से मौन के बाद प्रिया ने कहा।

माया थोड़ा चौंकी, मगर उसने कुछ नहीं कहा, बस सिर झुकाकर खाना खाती रही।

‘‘क्यों माया, जवाब क्यों नहीं देती? कबीर को भी साथ ले जाओगी? क्यों ले जा रही हो कबीर को मुझसे दूर? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा?’’ प्रिया चीख उठी।

‘‘सॉरी प्रिया; मैंने कुछ नहीं किया है... ये कबीर का फ़ैसला है; कबीर तुम्हें छोड़कर मेरे पास आना चाहता है।’’

‘‘ऐसा क्या जादू किया है तुमने कबीर पर! ऐसा क्या है तुम्हारे पास, कि वह मुझे ही नहीं, बल्कि मेरी करोड़ों की दौलत को भी ठुकराकर तुम्हारा होना चाहता है?’’ प्रिया की आँखों में, हैरत में लिपटा रोष था।

‘‘इस सवाल का जवाब तुम कबीर से ही पूछो तो बेहतर होगा।’’ माया ने रूखा सा उत्तर दिया।

उसके बाद प्रिया और माया की कोई बात नहीं हुई। अगले दिन माया प्रिया के अपार्टमेंट से चली गई।

माया के जाने के बाद कबीर प्रिया से मिलने पहुँचा।

‘‘हाय कबीर! कैसे हो?’’ प्रिया ने दूर से ही पूछा।

‘‘ठीक हूँ प्रिया, तुम कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूँ, बैठो; क्या लोगे?’’

‘‘कुछ नहीं।’’ सो़फे पर बैठते हुए कबीर ने लिविंग रूम में ऩजर घुमाई। माया की सारी निशानियाँ वहाँ से जा चुकी थीं। अपार्टमेंट एक बार फिर, सि़र्फ और सि़र्फ प्रिया का लग रहा था।

‘‘प्रिया! एक पेग व्हिस्की का मिलेगा?’’ कबीर ने अचानक कहा।

‘‘हाँ, कौन सी लोगे?’’

‘‘कोई भी।’’

प्रिया, कबीर के लिए हैण्डकट क्रिस्टल के गिलास में स्कॉच व्हिस्की का एक बड़ा पेग बना लाई। उसे पता था, कबीर को उसकी ज़रूरत थी। कबीर ने व्हिस्की का गिलास उठाकर एक घूँट में ही खत्म कर दिया। अब जाकर उसमें प्रिया से बात करने की हिम्मत आई।

‘‘प्रिया! पता है तुम लड़कियों की प्रॉब्लम क्या है? तुम एक ऐसा आवारा आशिक चाहती हो, जिसकी आवारगी तुम्हारी अपनी दहली़ज से ही लिपटी रहे।’’

कबीर ने नशे में बात तो कुछ गहरी ही कह दी, मगर उसे ख़ुद अपनी बात का मकसद समझ नहीं आया था।

‘‘कबीर, तुम्हारी आवारगी तो मेरी दहली़ज के भीतर ही किसी और से लिपटती रही।’’

प्रिया के शब्द कबीर को चुभ गए, उसका गला कुछ भर आया।

‘‘प्रिया, तुम्हें माया को मेरे हवाले करके नहीं जाना चाहिए था।’’

‘‘मैंने तुम्हारी नीयत पर भरोसा किया था कबीर!’’

‘‘मगर मेरी नीयत, मेरी आवारा फ़ितरत को सँभाल नहीं पायी; आवारगी की लौ में न जाने कब माया से प्रॉमिस कर बैठा। प्रिया, तुमसे तो धोखा कर ही चुका हूँ, अब माया से भी धोखा करने की हिम्मत नहीं होती।’’ कबीर का गला अब भी भरा हुआ था।

‘‘तुम्हें माया को धोखा देने की ज़रूरत नहीं है कबीर; माया को भी तुम्हें आ़जमा लेने दो। देखना चाहती हूँ कि माया कब तक तुम्हारी आवारगी को काबू रख पाती है... अगर तुम माया के काबू में रहे, तो समझ लूँगी कि कमी मुझमें ही है।’’ प्रिया की आँखें भर आई थीं।

‘‘कमी मुझमें है प्रिया; कभी मैं प्रेम पाने के लायक ही नहीं था; फिर प्रेम पाना तो सीख लिया, मगर प्रेम को सँभालना नहीं सीख पाया... कोशिश करूँगा कि अबकी डार्क नाइट में प्रेम सँभालना भी सीख लूँ।’’

‘‘डार्क नाइट?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘डार्क नाइट को डार्क नाइट से गु़जरकर ही समझा जा सकता है प्रिया। मैं उस दर्द को भूल गया था, अच्छा हुआ याद आ गया।’’ कबीर की आँखें भी भर आर्इं, ‘‘अच्छा चलता हूँ; और हाँ, ये घड़ी मैं तुम्हें वापस नहीं करूँगा; मेरे पास रहेगी, तुम्हारी याद बनकर।’’ कबीर ने अपनी कलाई पर बँधी प्रिया की दी हुई रिस्ट वॉच की ओर इशारा किया।

प्रिया ने उठकर, कबीर को गले लगाकर कहा, ‘‘गुडबाय कबीर, आई विल मिस यू।’’

‘‘मैं भी तुम्हें मिस करूँगा प्रिया।’’ कबीर ने भरे गले से कहा।