“मैं सच कह रहा हूं साब।" लहूलुहान बन्दूकवाला राजदान के सामने हाथ जोड़े खड़ा गिड़गिड़ा रहा था “अपनी मर्जी से तो मैंने कुछ नहीं किया । वो तो... वो साली लड़की ही... अब तो मुझे लगता है वह कोई वैश्या थी । कहने लगी उफ्फ क्या बताऊं? बताऊंगा भी तो इन लोगों की तरह आपको भी यकीन नहीं आयेगा । मुझे बचा लो । मुझे इस पुलिस वाले से बचा लो साव ।”


“बता साले!” पुलिस वाले ने उसकी गुद्दी पर एक धप्प जमाया “वो सब बता न सर को, जो कुछ देर पहले हमें बता रहा था।”


राजदान ने कहा “ बताओ बन्दूकवाला ।”


“अजी ये क्या बतायेगा । हम बताते हैं ।” जोश में भरा एक अधेड़ आगे आया “इस साले ने सरेआम ! यहां ! इसी जगह एक लड़की के मम्मे भींचने शुरू कर दिए। लड़की जब चीखी-चिल्लाई तो हम सब आ गये । अब कहता है ऐसा करने के लिए उसी ने कहा था । जरा सुनो तो इसकी । चोरी और सीनाजोरी । भला दुनिया में ऐसी कोई लड़की होगी जो । खुद ही अपने साथ ऐसा करने के लिए कहे ?”


राजदान लड़की?” राजदान ने पूछा । “कहां है वो लड़की?” 


छतरी वाली थुलथुल औरत बोली "गैरत वाली थी । चली गई । अपना तमाशा बनवाने के लिए रुकती क्या यहां ? "


"मैं सोच भी नहीं सकता था बन्दूकवाला तुम इतने घटिया आदमी होगे ।” राजदान थोड़े आवेश में कहने के बाद पुलिस वाले से बोला “इसे ले जाकर हवालात में डाल दो। बल्कि जेल भेज दो ।”


“स- साब! साब मैं कैसे बताऊं कि मेरा कोई कुसूर नहीं था ।" बन्दूकवाला गिड़गिड़ाता रह गया । राजदान सिल्वर कलर की मर्सडीज की तरफ बढ़ चुका था । इधर, देवांश ने बन्दूकवाला से पूछा “की कहां है ?”


"वहीं है साब! इग्निशन में! आप तो मेरी बात....


देवांश भी गाड़ी की तरफ बढ़ गया ।


राजदान और दिव्या पहले ही पिछली सीट पर बैठ चुके थे।


देवांश ने ड्राइविंग डोर खोला । उसका ड्राइवर लपककर नजदीक आता बोला “आप अपनी 'जेन' में चलिए। मैं इसे चलाता हूं।"


“मैं चला लूंगा। तुम मेरी गाड़ी इसके पीछे लाओ।” कहने के साथ देवांश न केवल ड्राइविंग सीट पर बैठ गया बल्कि गाड़ी स्टार्ट करने के बाद बढ़ा भी दी। उसकी अपनी गाडी ओर राजदान एसोसियेट्स की तीन स्टाफ कार उसके पीछे थीं।


काले कांच वाली कार में बैठी वनपीस पहने लड़की ने अपने साथी से कहा "मौत भी क्या चीज है जिसकी आई हो उसका दामन पकड़कर अपनी तरफ खींच लेती है। अब देखो न हमने मौत का जाल राजदान और उसकी बीवी के लिए बिछाया था। उसका भाई लुभाव में मिल रहा है। बेचारा! यंग है! गोरा चिट्टा! पच्चीस बसंत भी नहीं देखे होंगे अभी! सच ! उसकी मौत का अफसोस होगा मुझे।"


"तू भूल रही है ।” युवक ने कहा “हमारा टार्गेट केवल राजदान था।"


“मगर जानते थे, बीवी को तो मियां के साथ गाड़ी में बैठना ही है। वैसे भी, अपने यहां सती प्रथा है । बेभाव मारा जाने वाला है तो सिर्फ वो । अफसोस !”


"दिल आ गया है क्या उस पर ?” युवक ने शरारत की । लड़की बोली “है तो कुछ ऐसा ही वो, मगर अब आ भी गया हो तो क्या फायदा? कुछ देर बाद वह 'है' से 'था' होने वाला है।”


***


राजदान ने एक सिगार सुलगाने के बाद पूछा “बबलू नहीं आया?”


राजदान के मुंह से यह नाम न देवांश को अच्छा लगा न दिव्या को। अपने लहजे की कडुवाहट छुपाती दिव्या ने कहा “ देखा तो है आपने । आता तो चमकता नहीं?”


“उसे पता था मैं आज, इस फ्लाइट से आ रहा हूं?”


“ मैंने उसी समय सूचना दे दी थी जब फोन पर आपने उसे खबर करने के लिए कहा।”


“जरूर कोई मजबूरी होगी।” राजदान ने बड़बड़ाकर मानो खुद से कहा “वरना ये नहीं हो सकता कि बबलू मुझे रिसीव करने न आये।”


न दिव्या ने कोई टिप्पणी की, न देवांश ने।


क्षणिक खामोशी के बाद देवांश ने कहा “भैया, क्या आप अब भी नहीं बतायेंगे बात क्या है ?”


“कौन-सी बात ?”


“एयरपोर्ट पर रोये क्यों थे आप?”


एक बार फिर राजदान के चेहरे पर कालिमा सी छा गई । बैक व्यू मिरर के जरिए उसका चेहरा देखते देवांश ने कहा “इस वक्त भी आपके फेस पर वह वास्तविक खुशी और असल चमक नहीं है जो इतने दिन बाद लौटने के बाद होनी चाहिए थी । बनावटी प्रसन्नता दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं आप | मगर मैं... कम से कम आपके बारे में धोखा नहीं खा सकता । बचपन गुजारा है आपकी गोद में। आपकी अंगुली पकड़कर चलना सीखा है। मैं आपका चेहरा देखकर बता सकता हूं कब क्या सोच रहे हैं?”


“बड़ा होशियार हो गया है छोटे । ऐसा है तो बता । बता इस वक्त क्या सोच रहा हूं मैं?”


“बात को उड़ाने की कोशिश मत करो भैया ।”


दिव्या बोली “ अपनी कोई भी, कैसी भी प्रॉब्लम आप हमें नहीं बतायेंगे तो किसे बतायेंगे ?”


“बात एकदम ठीक है । तुम दोनों के अलावा मेरा इस दुनिया में है ही कौन ? तुम दोनों मेरी दो आंखें हो और....।” स्वर भावुकता के जल में भीगता चला गया “मैं बता नहीं सकता मुझे उदास या किसी प्रॉब्लम में घिरा महसूस करके जो बेचैनी तुममें है उसे देखकर कितना अच्छा लग रहा है मुझे । जाहिर है तुम मुझे उतना ही प्यार करते हो जितने प्यार की मुझे तुमसे दरकार है।"


"मगर आप हमें उतना प्यार नहीं करते ।"


"जुबान सम्भाल छोटे ! जुबान संभाल ।" एकाएक राजदान अत्यधिक उत्तेजित हो उठा "बेवकूफाना ख्याल तेरे जहन में आया कैसे ? "


"करते होते तो क्या हमें अपनी प्रॉब्लम नहीं बताते?"


"प्रॉब्लम कोई हो तो बताऊं भी ।" राजदान उसी तरह चीख रहा था "कोई प्रॉब्लम नहीं है। धोखा हुआ है तुम दोनों को। अब इस बारे में मैं कुछ सुनना नहीं चाहता । ”


ये शब्द राजदान ने इतने आवेश में कहे थे कि प्रत्युत्तर में न दिव्या की कुछ कहने की हिम्मत पड़ी, न देवांश की। हालांकि उसकी झुंझलाहट स्वयं बता रही थी कि कुछ न कुछ है जो उसके अंदर ही अंदर घुल रहा है ।


दिव्या और देवांश सकपका से गये । राजदान को लगा 'मैं बेवजह उत्तेजित हो रहा हूं।' खुद को नियंत्रित करने के प्रयास में उसने सिगार में कश लगाया ।


मर्सडीज में तनावपूर्ण खामोशी छा गई थी । इंजन की हल्की सी आवाज साफ सुनाई देने लगी थी ।


एकाएक देवांश के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे ।


कान लगाकर वह इंजन की आवाज को बहुत ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा और फिर... एकाएक उसने गाड़ी बीच सड़क पर रोक दी। टायरों की चरमराहट के साथ मर्सडीज के पीछे चली आ रही राजदान एसोसियेट्स की अन्य गाड़ियां भी रुक गई।


दिव्या और राजदान ने एक साथ पूछा “क्या हुआ ?”


देवांश ने होठों पर अंगुली रखकर उन्हें चुप रहने के लिए कहा । इग्निशन से चाबी निकाल ली। इंजन ऑफ हो गया। मगर देवांश अब भी कुछ सुनने की कोशिश कर रहा था । अचानक उसकी इन रहस्यमय गतिविधियों ने दिव्या और राजदान के दिमागों को सवालों के जाल ने जकड़ लिया । जब रहा न गया तो बोल ही पड़ा राजदान “छोटे ! आखिर बात क्या है? गाड़ी बीच सड़क पर क्यों रोक दी ?”


“भैया, गाड़ी में कोई आवाज है। तुम भी सुनने की कोशिश करो भाभी।”


तीनों चुप हो गये । कान जैसे चींटी के रेंगने तक की आवाज को सुनने का प्रयत्न कर रहे थे । और फिर तीनों ने एक साथ आवाज सुनी टिक्-टिक्-टिक् !


“तुम भी बस... तुम्हीं हो छोटे ।” राजदान हंस पड़ा "आवाज हममें से किसी की रिस्ट वॉच की है।”


दिव्या बोली "रिस्टवॉच की आवाज इतनी तेज नहीं होती कि बगैर कान के नजदीक लाये सुनी जा सके। आवाज यहां से आ रही है ।” कहने के साथ उसने सीट की गद्दी और पुश्त के बीच हाथ डाल दिया । मुंह से निकला “अरे! ये क्या है ?”


“क्या है?” देवांश ने उत्सुकता से पीछे देखा । ।


दिव्या ने हाथ सीट और पुश्त के बीच से बाहर निकाला।


उसमें सिगरेट के पैकिट के बराबर धातु का बना एक ऐसा लाल बॉक्स था जिस पर घड़ी भी लगी थी ।


“बम ! ये बम है भाभी! फैंक दो!” देवांश बुरी तरह चिल्लाया ।


दिव्या घबराई | हाथ-पांव फूल गये उसके और घबराहट में बम गाड़ी की खुली खिड़की से बाहर फेंक दिया।


“धड़ाम !”


एक जबरदस्त विस्फोट हुआ।


पलक झपकते ही एक पेड़ होलिका मैया में तब्दील हो गया ।


यह वह पेड़ था जिससे बम टकराया था। तीनों के चेहरे पीले पड़ गये । हल्दी जैसे। उधर स्टॉफ कार में बैठे कर्मचारी सोच रहे थे 'उनकी मालकिन ने आखिर ये क्या किया ?"