भीतर फ्लैट में टैलीफोन की घन्टी बज रही थी ।
सुनील ने फ्लैट का ताला खोला और भीतर प्रविष्ट हो गया । ड्राईंग रूम से गुजरता हुआ वह बैडरूम में पहुंचा । पलंग की बगल में पड़ी मेज पर रखे दो टैलीफोनों में से उस टैलीफोन की घन्टी बज रही थी । जिसका नम्बर डायरेक्ट्री में अनुसूचित नहीं था और जिसके नम्बर की जानकारी रमाकांत और स्पेशल इन्टैलीजेन्स के डायरेक्टर कर्नल मुखर्जी के अतिरिक्त किसी को नहीं थी ।
सुनील ने टैलीफोन से रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और फिर बोला - “हल्लो ।”
“सुनील साहब बोल रहे हैं !” - दूसरी ओर से उसे कर्नल मुखर्जी के नौकर धर्म सिंह की आवाज सुनाई दी ।
“हां ।”
“मैं धर्म सिंह बोल रहा हूं, साहब” - धर्म सिंह बोला - “पिछले तीन घन्टे से मैं लगातार आपका नम्बर ट्राई कर रहा हूं ।”
“क्या बात है ।”
“कर्नल साहब आपसे मिलना चाहते हैं । आप पन्द्रह मिनट बाद मैट्रो के सामने पहुंच जाइये ।”
“ओके ।” - सुनील बोल और उसने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । धर्म सिंह से वजह पूछना बेकार था । उसे ऐसी बातों की जानकारी नहीं होती थी ।
सुनील उठ खड़ा हुआ और द्वार की ओर बढा ।
उसी क्षण टैलीफोन की घन्टी फिर बज बठी ।
सुनील ठिठका । उसने घूमकर टैलीफोन की ओर देखा ।
इस बार भी अनलिस्टिड टैलीफोन की घन्टी बज रही थी ।
सुनील ने विचित्र नेत्रों से टैलीफोन को घूरा और फिर आगे बढकर रिसीवर उठा लिया ।
“यस !” - वह माउथ पीस में बोला ।
“कौन साहब बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से कोई व्यग्रता पूर्ण स्त्री स्वर सुनाई दिया ।
“सुनील ।”
“सुनील कुमार चक्रवर्ती ?”
“हां ।” - सुनील बोला । वह हैरान था कि उसके उस टैलीफोन का नम्बर किसी तीसरे आदमी को कैसे मालूम हो गया जबकि उसकी जानकारी में उस टैलीफोन का नम्बर केवल मुखर्जी और रमाकांत को ही मालूम था ।
“मिस्टर सुनील, मैं आपसे फौरन मिलना चाहती हूं ।”
“क्यों ?... नहीं पहले यह बताइये कि आपको मेरा टैलीफोन नम्बर कैसे मालूम हुआ ?”
“मुझे किसी ने बताया था ?”
“किसने ?”
“उसका नाम मैं टैलीफोन पर नहीं लेना चाहती ।”
“किस्सा क्या है ?”
“मिस्टर सुनील, भगवान के लिए टैलीफोन पर अधिक मत पूछिये । आप बात की गम्भीरता को तब तक नहीं समझ पायेंगे, जब तक आप मुझसे मिल नहीं लेंगे । मैं पिछले पन्द्रह दिन से आपसे सम्पर्क करने के कोशिश कर रही हूं ।”
“जी !” - सुनील हैरानी से बोला ।
“मैं सच कह रही हूं, मिस्टर सुनील । मुझे आपके इस टैलीफोन नम्बर और आपके नाम के अतिरिक्त कुछ भी मालूम नहीं था । सच पूछिए तो यह मुझे अभी तक नहीं मालूम है कि आप कहां से बोल रहे हैं । मेरी निगाहों में जो नम्बर मैंने डायल किया है, वह कहीं का भी हो सकता है ।”
“कमाल है ।”
“मैं पिछले पन्द्रह दिनों में हर रोज कम से कम बीस बार आपका नम्बर ट्राई करती रही हूं लेकिन मुझे कभी भी जवाब नहीं मिला ।”
“मैं राजनगर से बाहर गया हुआ था । कल ही लौटा हूं ।”
“मिस्टर सुनील, फिर आप फौरन यहां आ रहे हैं ?”
“यहां कहां ?”
“मैं वाई डब्ल्यू सी ए के होस्टल में रह रही हूं । मेरा कमरा नम्बर 115 है । मिस्टर सुनील मैं राजनगर की रहने वाली नहीं हूं । पिछले पन्द्रह दिनों से मैं आप ही से सम्पर्क स्थापित करने की खातिर यहां पड़ी हुई हूं । अगर आप फौरन यहां आ जायें तो मैं आपका भारी अहसान मानूंगी ।”
“देखिये मिस... नाम क्या है आपका ?”
“लीला । लीला चौधरी ।”
“देखिए लीला जी, इस समय मैं आपके पास नहीं आ सकता हूं ।”
“क्यों ?” - लीला का व्यग्र स्वर सुनाई दिया ।
“वजह आपकी समझ में नहीं आएगी ।”
“तो फिर आप मुझे अपना पता बता दीजिये । मैं आपके पास आ जाती हूं ।”
“मुझे अफसोस है, यह भी सम्भव नहीं है । मैं फौरन यहां से जा रहा हूं ।”
“तो फिर मैं आपको किस प्रकार मिल पाऊंगी ?” - लीला का रुआंसा स्वर सुनाई दिया ।
“इस विषय में मैं निश्चत कुछ नहीं कह सकता हूं । पता नहीं मैं आपसे मुलाकात के लिये कब समय निकाल पाऊंगा । लेकिन मिस लीला, जहां पन्द्रह दिन गुजर गये हैं, वहां एक आध दिन और भी गुजर जाये तो क्या फर्क पड़ जायेगा ।”
“एक आध दिन बाद तो आप मुझ से मिलेंगे न ।”
“मैं पूरी कोशिश करूंगा ।”
“मैं कहां आऊं ?”
“आपको कहीं आने की जरूरत नहीं है । मैं आपके होस्टल में पहुंच जाऊंगा । जिस काम के लिये मैं इस समय जा रहा हूं वह अगर जल्दी हो गया तो शायद मैं आज ही पहुंच जाऊं ।”
“बहुत मेहरबानी मिस्टर सुनील । मैं आपकी प्रतीक्षा करूंगी ।”
“आप पहले कभी मुझसे मिली हैं ?” - एकाएक सुनील ने पूछा ।
“जी नहीं । ऐसा संयोग नहीं हुआ ।”
“फिर आप मुझे पहचानेंगी कैसे ?”
“पहचान लूंगी ।
“कैसे ?”
“मेरे पास आपकी एक तसवीर है ।”
“मेरी तस्वीर आपके पास ।”
“जी हां । जिस व्यक्ति ने मुझे आपका टैलीफोन नम्बर बताया था, उसी ने मुझे आपकी तस्वीर भी दी थी ।”
“किसने ?”
“सुनील साहब, मैंने कहा न कि मैं उसका नाम टैलीफोन पर नहीं लेना चाहती ।”
“लेकिन देवी जी, किस्सा क्या है ? मुझे कुछ पता तो चले ।”
“सुनील साहब, किसी तीसरे आदमी के हित में मैं आपको टैलीफोन पर कुछ बताना नहीं चाहती ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर पटाक्षेप-सा करता हुआ बोला - “अच्छी बात है । मैं तुमसे मिलूंगा ।”
“जरूर । बहुत मेहरबानी आपकी ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया । धर्म सिंह ने उसे पन्द्रह मिनटों में मेट्रो के सामने पहुंचने के लिये कहा था । लीला चौधरी से बात करने का चक्कर में उस अल्प समय में से पांच मिनट गुजर चुके थे । वह तेजी से फ्लैट से बाहर निकल आया । उसने फ्लैट को ताला लगाया, नीचे आकर मोटर साइकिल सम्भाली और मैट्रो की ओर चल दिया ।
रास्ते में वह रमाकांत और कर्नल मुखर्जी के अतिरिक्त ऐसे किसी नाम को याद करने की कोशिश करता रहा जिसे उसने अपना अनलिस्टिड टैलीफोन नम्बर बताया हो ।
उसे ऐसा कोई नाम याद नहीं आया ।
या शायद कर्नल मुखर्जी या रमाकांत ने किसी को उसका नम्बर बताया हो और फिर उस आदमी ने वह नम्बर लीला को बता दिया हो ।
सुनील को इस बात की सम्भावना नहीं के बराबर लगी ।
अन्त में उसने यह सोचकर बात को अपने दिमाग में से झटक दिया कि लीला से मिलने के बाद तो मालूम हो ही जायेगा कि उसका वह टैलीफोन नम्बर तीसरा कौन सा आदमी जानता है और कैसे जानता है ।
उसने मोटर साइकिल को पार्किंग में लाकर खड़ा कर दिया और मैट्रो के आसपास कर्नल मुखर्जी को तलाश करने लगा ।
सड़क की दूसरी ओर कर्नल मुखर्जी की शेवरलेट गाड़ी खड़ी थी । मुखर्जी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए पाइप पी रहे थे ।
सुनील कार के समीप पहुंचा । कार का दूसरी ओर का दरवाजा खोलकर वह चुपचाप कर्नल मुखर्जी की बगल में बैठ गया ।
मुखर्जी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी और उसे ट्रैफिक में डाल दिया । कुछ क्षण वे चुपचाप पाइप पीते रहे और फिर पाइप को दांतों में दबाये दबाये बोले - “तुमको आज रात को ग्यारह बजे टूरिस्ट होटल में पीटर हाल नाम के एक आदमी से मिलना है ।”
सुनील कुछ नहीं बोला ।
“इस आदमी ने आज सुबह टैलीफोन किया था । इसमें मुझे इसलिये दिलचस्पी लेनी पड़ी है क्योंकि उसने मेरे अल्टाफोन पर टैलीफोन किया था । मेरे अल्टाफोन का नम्बर मेरे एजेन्टों और प्रतिरक्षा मन्त्री, गृहमन्त्री, और प्रधानमंत्री के अतिरिक्त किसी को मालूम नहीं है । इसके बावजूद भी जब एक नितान्त अजनबी उस टैलीफोन पर मुझसे सम्पर्क स्थापित करता है तो वह अपने आप मेरी दिलचस्पी का कारण बन जाता है ।”
“पीटर हाल कौन है ?”
“उसने मुझे टैलीफोन पर अपने बारे में कुछ नहीं बताया । उसने मुझे केवल इतना ही बताया था कि उसका नाम पीटर हाल है । वह हांगकांग से आया है और टूरिस्ट होटल में ठहरा हुआ है ।”
“वह चाहता क्या है ?”
“वह जानता है कि मैं देश की सीक्रेट सर्विस से सम्बन्धित हूं इसलिए वह हम से एक सौदा करना चाहता है ।”
“कैसा सौदा ?”
“उसे एक ऐसी बात की जानकारी है जो हमारे देश की सुरक्षा के लिये भारी फायदे की चीज सिद्ध हो सकती है । वह उसी जानकारी को नकद धन के बदले में हमें बेचना चाहता है । साथ ही उसने यह भी कहा कि अगर वह उस जानकारी का सौदा हमारे साथ नहीं कर सका तो वह दूसरी पार्टी के पास पहुंच जायेगा ।”
“जानकारी क्या है ?”
“यह अभी उसने नहीं बताया है ।”
“वह चाहता क्या है ?”
“यह भी मुझे अभी मालूम नहीं है ।”
“मुझे क्या करना है ?”
“मैंने उससे कहा है कि आज रात को ग्यारह बजे मेरा कोई आदमी टूरिस्ट होटल में उससे सम्पर्क स्थापित करेगा ।”
मुखर्जी एक क्षण चुप रहे । उनकी कार ट्रेफिक सिग्नल पर आकर रुक गई थी । सिग्नल हरा होते ही उन्होंने कार आगे बढा दी और फिर बोले - “तुम पीटर हाल से मिलोगे । वह तुम्हें यह बतायेगा कि उसके पास बेचने के लिये क्या है और वह उसकी कितनी कीमत चाहता है ? उसके बाद ही इस विषय में मैं कुछ फैसला कर सकूंगा ।”
“अगर उसकी जानकारी मुझे महत्वपूर्ण लगे तो सौदे के बारे में मैं उसे कोई आश्वासन दे सकता हूं ?”
“बिल्कुल । हम भला यह क्यों चाहेंगे कि जो जानकारी हमारे लिये फायदेमन्द हो सकती है, वह हमारे शत्रु के हाथ में पहुंच जाये ।”
“ठीक है साहब ।”
“पीटर हाल से सम्पर्क कर चुकने के फौरन बाद तुम मुझे रिपोर्ट करोगे ।”
“राइट सर ।”
मुखर्जी ने कार को सड़क के किनारे रोक दिया ।
सुनील चुपचाप कार से बाहर निकलकर फुटपाथ पर जा खड़ा हुआ । मुखर्जी ने फौरन कार आगे बढा दी ।
थोड़ी ही देर बाद कार मोड़ काट कर दृष्टि से ओझल हो गई ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
सुरक्षा की दृष्टि से कर्नल मुखर्जी की निगाहों में गोपनीय बात करने के लिए चलती हुई कार से बेहतर कोई स्थान नहीं होता था ।
सुनील ने एक टैक्सी की और वापिस मैट्रो के सामने पहुंच गया ।
उसने अपनी मोटर साइकिल को पार्किंग में से निकाला और उसे ड्राइव करता हुआ सड़क पर ले आया ।
उसने अपनी कलाई पर बन्धी घड़ी पर दृष्टिपात किया । सात बजे थे । दूरिस्ट होटल में पीटर हाल से मिलने के लिये अभी बहुत समय बाकी था । क्यों न पहले लीला चौधरी से मिल लिया जाये - उसने मन ही मन सोचा ।
उसने मोटर साइकिल को वाई डब्ल्यू सी ए के होस्टल की ओर बढा दिया ।
होस्टल की पार्किंग में उसने मोटर साइकिल रोकी और इमारत की ओर बढा ।
मुख्य द्वार की बगल में ही रिसैप्शन डैस्क था जिसके पीछे एक युवक बैठा था ।
“मैं 115 नम्बर कमरे की लीला चौधरी से मिलना चाहता हूं ।” - सुनील उससे बोला ।
“पहली मंजिल पर सामने के गलियारे का कोने वाला कमरा है, साहब ।”
“लीला चौधरी अपने कमरे में है ?”
“होंगी । अभी आधा घन्टा पहले दो सज्जन उनसे मिलने गये थे । वे अभी तक लौटे नहीं है । इससे यही मालूम होता हैं कि मिस चौधरी अपने कमरे में हैं ।”
“बशर्ते कि वे आदमी और मिस चौधरी तुम्हारी जानकारी में आये बिना होस्टल से निकल न गये हों ?” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला ।
युवक भी मुस्कराया और फिर बोला - “ऐसा नहीं हुआ है इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि वे दोनों सज्जन अब सीढियों से उतर कर नीचे आ रहे हैं ।”
सुनील ने घूमकर सीढियों की ओर देखा । दो आदमी सीढियां उतर रहे थे । एक पतला लेकिन बेहद लम्बा आदमी था दूसरा आदमी पहले से कम से कम एक फुट छोटा था और उसके चेहरे पर पहलवानों जैसी बड़ी बड़ी मूंछ थीं ।
वे लोग सीढियां तह करके रिसैप्शन डैस्क के समीप से गुजरे ।
लम्बा आदमी रिसैप्शनिस्ट युवक को देखकर मुस्कराया ।
“लीला चौधरी से मिल लिये साहब ?” - युवक भी मुस्कराता हुआ बोला ।
“हां ।” - लम्बे आदमी ने संक्षिप्त सा उतर दिया ।
“अभी वे अपने कमरे में ही हैं न ।”
“हां । क्यों ?”
“ये साहब” - युवक सुनील की ओर संकेत करता हुआ बोला - “लीला चौधरी से मिलने के लिये जा रहे थे ।”
सुनील तनिक हड़बड़ा गया । उसे युवक का बातूनीपन बड़ा असुविधाजनक लगा ।
लम्बे आदमी ने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा । फिर उसकी अपने मूछों वाले साथी से निगाहें मिली और फिर वह बड़े मीठे स्वर से सुनील से सम्बोधित हुआ - “लीला चौधरी अपने कमरे में तो हैं साहब लेकिन एकाएक उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई है । इसी वजह से हमें जल्दी उठकर आना पड़ा है ।”
“ओह ।” सुनील चिन्तित स्वर से बोला - “आपकी राय में मुझे उनसे मिलने किसी और वक्त आना चाहिये ।”
“मैं ऐसी कोई राय देने वाला कौन होता हूं साहब ।” - लम्बा आदमी पूर्ववत् मीठे स्वर से बोला - “आप जो मुनासिब समझें कीजिये ।”
सुनील चुप रहा ।
लम्बा आदमी सुनील और रिसैप्शनिस्ट की ओर देखकर मुस्कराया और फिर अपने साथी के साथ बाहर निकल गया ।
दोनों होस्टल के कम्पाउन्ड से बाहर निकल गये और फिर इमारत के बाहर खड़ी टैक्सियों में से एक में जा बैठे ।
टैक्सी के दृष्टि से ओझल होते ही सुनील रिसैप्शनिस्ट की ओर घूमा और बोला - “ये लोग कौन थे ?”
“आप कौन हैं ?” - रिसैप्शनिस्ट हंसता हुआ बोला ।
“क्या मतलब ?” - सुनील अचकचाया ।
“मतलब यह साहब जब मैंने आप से नहीं पूछा कि आप कौन हैं तो फिर मैं उन्हीं से क्यों पूछता ।”
“ओह । आई एम सॉरी ।”
युवक चुपचाप मुस्कराता रहा ।
सुनील कुछ क्षण अनिश्चित सा रिसैप्शन के सामने खड़ा रहा और फिर बोला - “मिस चौधरी के कमरे में फोन है ?”
“है ।” - युवक बोला ।
“जरा रिंग कीजिये ।”
युवक ने डैस्क पर पड़ा टैलीफोन उठाया और आपरेण्ट से बोला - “रूम नम्बर एक सौ पन्दरह मिलाना ।”
थोड़ी देर युवक रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा और फिर उसने ‘ओके’ कह कर रिसीवर रख दिया ।
“मिस चौधरी रिसीवर नहीं उठा रही हैं ।” - युवक बोला - “शायद उनकी तबीयत वाकई खराब है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “मैं बहुत दूर से आया हूं । सोचता हूं एक मिनट के लिये उनके कमरे में हो ही आऊं । पता नहीं दुबारा कब आना हो । आपको कोई एतराज तो नहीं ।”
“मुझे क्या एतराज हो सकता है, साहब शौक से जाइये ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला और सीढियों की ओर बढ गया ।
115 नम्बर कमरे के सामने पहुंचकर उसने कमरे का द्वार खटखटाया ।
कोई उत्तर नहीं मिला ।
“लीला जी !” - सुनील ने दुबारा द्वार खटखटाते हुए आवाज लगाई ।
परिणाम कुछ भी नहीं निकला ।
सुनील तीसरी बार जरा जोर से द्वार खटखटाया तो द्वार का पल्ला भी थोड़ा सा भीतर की ओर सरक गया । सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर उसने द्वार को पूरा खोल दिया ।
एक जवान लड़की का नग्न शरीर आधा पलग पर पड़ा था और आधा पलंग से नीचे लटक रहा था । उसके मुंह पर कपड़े की एक पट्टी बड़ी मजबूती से बन्धी हुई थी । उसके हाथ की कई उंगलियों के नाखून उखड़े हुए थे जैसे किसी ने बड़ी बेदर्दी से उन्हें तोड़-मरोड़ कर उखाड़ दिया हो । उसका सारा शरीर गहरी गहरी खरोंचों से भरा हुआ था जिनमें से खून रिस रिस कर जम गया था । उसकी गरदन पर एक गहरी लाल लकीर दिखाई दे रही थी । शायद पहले उसकी जुबान खुलवाने के लिये उसे बुरी तरह टार्चर किया गया था । और फिर बाद में मतलब हल हो जाने के बाद उसकी रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी गई थी ।
सुनील कुछ क्षण लड़की के खूबसूरत लेकिन पीड़ा और आंतक से विकृत हुए चेहरे की ओर देखता रहा । और फिर उसने आगे बढकर कमरे के दरवाजे को भीतर से बन्द कर लिया ।
वह बड़े धैर्यपूर्ण ढंग से कमरे की एक एक चीज की तलाशी लेने लगा ।
आधे घन्टे में उसने कमरे की एक एक चीज टटोल डाली लेकिन उसे सिवाय इसके और कुछ मालूम नहीं हो सका कि मरने वाली का नाम लीला चौधरी था ।
लीला चौधरी ने सुनील की तस्वीर का जिक्र किया था लेकिन वह तस्वीर उसे कमरे में कहीं नहीं मिली थी । उसके पर्स में कुछ चिट्ठियां थी जिस पर की लीला चौधरी का नाम और विशालगढ का पता लिखा हुआ था । होस्टल का साप्ताहिक बिल था, एक लिफाफा था, जिस पर हांगकांग की डाक टिकटें लगी हुई थीं लेकिन लिफाफे में पत्र नहीं था ।
इस बात की पूरी सम्भावना दिखाई दे रही थी कि हत्या उन्हीं दो आदमियों ने की थी जो सुनील से पहले लीला से मिलने आये थे और रिसैप्शनिस्ट के कथनानुसार आधा घन्टा लीला के कमरे में ठहरे थे ।
सुनील सोच रहा था ।
पन्द्रह दिन तक वह लड़की सुनील से सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश करती रही और जिस दिन वह अपनी कोशिश में सफल हुई उसी दिन उसकी हत्या कर दी गई । पता नहीं वह उससे क्या बात करना चाहता था ।
लाश की हालत साफ बता रही थी कि पहले लीला की जबरदस्ती जुबान खुलवाई गई थी और फिर मतलब की बात मालूम हो जाने के बाद ही उसकी हत्या की गई थी ।
सुनील द्वार खोलकर बाहर निकल आया । अपने पीछे उसने द्वार को धीरे से बन्द कर दिया ।
वह सीढियां उतरकर नीचे आ गया । रिसैप्शन पर बैठे क्लर्क का ध्यान उसकी ओर नहीं था । सीढियों की बगल में एक कमरा था जिस पर लिखा था - टैलीफोन एक्सचेंज । नो एडमीशन ।
सुनील चपचाप द्वार खोलकर उस कमरे के भीतर प्रविष्ट हो गया ।
भीतर एक बड़े से पी बी एक्स बोर्ड के सामने एक लड़की बैठी थी । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
सुनील बोर्ड के समीप पहुंचा और फिर बड़े अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “मैं पुलिस हैडक्वार्टर से आया हूं । इस बोर्ड की अकेली आपरेटर तुम हो ?”
“नहीं जी ।” - लड़की ने बौखलाये स्वर में उत्तर दिया - “दो आपरेटर और हैं । मेरी ड्यूटी दो से दस तक होती है ।”
“तुम लोग कमरों के नम्बर के हिसाब से टैलीफोन काल का हिसाब रखती हो न ?­”
“जी हां ।”
“पिछले पन्दरह दिनों में एक सौ पन्दरह नम्बर कमरे में से कौन कौन से टैलीफोन नम्बर मांगे गये हैं ?”
“मेरी ड्यूटी में तो, साहब 115 नम्बर कमरे में से हमेशा एक ही नम्बर मांगा गया है । इसीलिये वह नम्बर मुझे जबानी याद हो गया है ।”
“क्या नम्बर है ?”
लड़की ने नम्बर बता दिया ।
वह सुनील के अनलिस्टिड टैलीफोन का नम्बर था ।
“इसके अतिरिक्त कभी कोई और नम्बर नहीं मांगा गया ?”
“जी नहीं और इस नम्बर से भी आज शाम की एक बार को छोड़कर कभी जवाब नहीं मिला ।”
सुनील चुप हो गया । अगर 115 नम्बर कमरे में जो लड़की मरी पड़ी थी वह निश्चिय ही वही लड़की थी जिसने फोन पर सुनील से बात की थी ।
सुनील एक्सचेंज के कमरे से बाहर निकल आया ।
रिसैप्शनिस्ट के सामने से उसने चुपचाप गुजर जाना चाहा लेकिन रिसैप्शनिस्ट ने उसे रोक ही दिया ।
“लीला चौधरी मिली, साहब ?” - उसने आवाज लगाई ।
“हां ।” - सुनील ठिठक कर बोला - “लेकिन बात न हो सकी उनकी तबीयत वाकई बेहद खराब है । फिर आना पड़ेगा ।”
और सुनील तेजी से इमारत से बाहर निकल गया ।
वह अपनी मोटर साइकिल पर सवार हुआ और सड़क पर आ गया ।
एक पब्लिक टैलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी ।
उसने पुलिस को फोन किया ।
सम्पर्क स्थापित होते ही वह भावहीन स्वर से जल्दी जल्दी बोलने लगा - “वाई डब्ल्यू सी ए के 115 नम्बर कमरे में लीला चौधरी नाम की एक लड़की की हत्या हो गई है । हत्यारों का हुलिया आपको रिसैप्शन क्लर्क से मालूम हो सकता है ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?” - किसी ने व्यग्र स्वर से प्रश्न किया ।
“सरदार ।”
“सरदार कौन ?”
“सरदार बल्लभ भाई पटेल, बेवकूफ ।”
और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह वापिस मोटर साइकिल पर बैठा ।
कई प्रश्न उसके मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज रहे थे ।
वह लड़की उससे क्या कहना चाहती थी ?
सुनील की तस्वीर और टैलीफोन नम्बर उसे किसने दिया था ।
उसकी हत्या क्यों कर दी गई ?
वगैरह ।
***
जिस लम्बे और पतले आदमी को सुनील ने वाई डब्ल्यू सी ए के होटल में देखा था उसका नाम जोजेफ था । जोजेफ हिल्टन इन्टर कान्टीनेन्टल होटल के सामने टैक्सी से उतरा । उसने अपने उलझे हुए बालों में उंगलियां फिराईं, अपने सूट को झटक कर उसमें से सिलवटें निकालने की कोशिश की और फिर होटल में प्रविष्ट हो गया ।
“सेठ दौलतराम इस समय होटल में कहां होंगे ?” - रिसैप्शन पर पहुंचकर उसने पूछा ।
रिसैप्शनिस्ट ने एक सरसरी निगाह सिर से पांव तक जोजेफ पर डाली और फिर तनिक नाक सिकोड़ कर बोला - “आपका उनके साथ अप्वायन्टमेन्ट है ?”
“नहीं । लेकिन मेरा नाम जोजेफ है । उन्होंने तुम लोगों के लिये मेरे बारे में जरूर कोई निर्देश छोड़े होंगे ।”
सेठ दौलतराम ने विशेष रूप से रिसैप्शन पर कहा हुआ था कि जोजेफ नाम के कोई साहब कभी भी आयें, किसी भी समय आयें, उन्हें तत्काल सेठ जी के पास पहुंचा दिया जाय । जोजेफ नाम के व्यक्ति को इतना महत्व दिया जाता देखकर वह उसकी कल्पना के बहुत ही ऊंचे दर्जे के व्यक्तित्व के रूप में कर रहा था और अब वास्तव में जोजेफ की सूरत देखकर उसे बड़ा विचित्र सा लगा । खोदा पहाड़ और निकला चूहा, क्लर्क मन ही मन बड़बड़ाया ।
“जोजेफ आपका नाम है !” - फिर वह प्रत्यक्ष में बोला ।
“तुम्हें कोई शक है ?” - जोजेफ गुर्राया ।
“जी नहीं, जी नहीं ।” - क्लर्क हड़बड़ाकर बोला । सेठ दौलतराम के मेहमान को नाराज करना और दौलतराम को नाराज करना एक ही बात थी । सेठ दौलतराम होटल का बहुत महत्वपूर्ण और बहुत मोटा ग्राहक था - “सेठ जी स्वीमिंग पूल के पास हैं ।”
“और स्वीमिंग पूल किधर है ?”
क्लर्क ने उसे रास्ता बता दिया ।
जोजेफ लम्बे डग भरता हुआ उस ओर चल दिया ।
सेठ दौलतराम स्वीमिंग पूल के किनारे पर एक ईजी चेयर पर पड़ा हुआ था । वह एक लगभग चालीस साल का हृष्ट पुष्ट सुन्दर व्यक्तित्व वाला आदमी था । उसका नाम सुनकर लोगों के दिमाग में जो उसकी सूरत उभरती थी वह होती थी की भारी तोंद वाले, धोती, कुर्ता, पगड़ी और तिलकधारी थुल थुल सेठ की जिसने अपनी जिन्दगी में नोट गिनने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया था लेकिन वास्तव में लोग जब ऐसी सूरत के स्थान स्थान पर एक सूटबूट धारी पढे-लिखे आदमी को देखते थे तो उन्हें बड़ी हैरानी होती थी । सेठ दौलतराम देश का बहुत बड़ा उद्योगपति था और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति का स्वामी समझा जाता था । देश में उसकी इतनी मिलें कारखाने और दूसरी कम्पनियां थीं कि एक बार तो स्वयं सेठ दौलतराम उन सब का नाम नहीं गिना सकता था ।
सेठ दौलतराम खानदानी रईस नहीं था । सारा रुपया उसने खुद अपने हाथों से कमाया था । अपने जीवन की शुरुआत उसने बेहद, गरीब और बेसहारा आदमी के तौर पर की थी लेकिन पता नहीं कैसे वह आनन-फानन तरक्की की सीढियां चढता चला गया था और अब वह केवल चालीस साल की अल्प आयु में देश के गिने चुने आठ दस सबसे रईस आदमियों में से एक बन गया था । लोग यह तो नहीं जानते थे कि सेठ दौलतराम ने बीस साल में अपना काया पलट कैसे कर लिया था लेकिन इतना हर कोई जानता था कि सेठ की वर्तमान स्थिति उसकी अपनी मेहनत का परिणाम थी ।
जोजेफ सेठ दौलतराम के समीप पहुंचा और उसकी बगल की कुर्सी पर बैठ गया ।
सेठ ने गर्दन घुमाकर उसकी और देखा और फिर गम्भीर स्वर से बोला - “हां ।”
“लीला चौधरी का काम तमाम हो गया है ।” - जोजेफ धीरे से बोला ।
“हूं ।”
“वह पिछले पन्द्रह दिनों से इस आदमी से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न कर रही थी” - जोजेफ और उसने एक पासपोर्ट साइज की तस्वीर सेठ की ओर बढा दी - “यह तस्वीर हमें लीला चौधरी के पर्स में मिली थी और इसी के पीछे वह नम्बर लिखा हुआ है जिस पर वह पिछले पन्द्रह दिनों में लगातार फोन कर रही थी लेकिन सम्पर्क आज ही स्थापित कर पाई थी ।”
सेठ दौलतराम ने उसके हाथ से तस्वीर ले ली । कुछ क्षण वह तस्वीर को देखता रहा और फिर तस्वीर जोजेफ को वापिस करता हुआ बोला - “इस आदमी के बारे में क्या जान पाये हो ?”
“केवल इसका नाम” - जोजेफ बोला - “इसका नाम सुनील चक्रवर्ती है । हम लीला चौधरी की जुबान खुलवाने में सफल हो गये थे लेकिन वह इस आदमी के नाम और टेलीफोन नम्बर के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानती थी । लीला चौधरी को हांगकांग से अपने बाप का एक पत्र प्राप्त हुआ था । वह पत्र मुझे उसके पर्स में मिला है । उस पत्र के अनुसार उसे सुनील कुमार चक्रवती नाम के व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित करना था और उसे यह पत्र दे देना था ।”
“और ?”
“और बस । मेरे ख्याल से इस पत्र में किसी अदृष्य स्याही से या किसी प्रकार की कोई भाषा में कोई सन्देह लिखा हुआ है ।”
“मुझे दिखाओ ।”
जोजेफ ने एक मुड़ा हुआ कागज सेठ दौलतराम के हाथ में रख दिया ।
सेठ कागज को खोलकर कुछ क्षण उसे उलट पलट कर देखता रहा और फिर कागज उसने अपनी जेब में रख लिया ।
“मैं देखूंगा इसे ।” - सेठ बोला ।
जोजेफ चुप रहा ।
“लड़की से और कुछ पता लगा ?” - सेठ ने पूछा ।
“लड़की को और कुछ मालूम ही नहीं था ।”
“यह पता लगा कि सुनील कुमार चक्रवर्ती कौन है ?”
“टेलीफोन नम्बर से तो हम उसके बारे में जानने की कोशिश पन्द्रह दिन से कर रहे थे लेकिन वह टैलीफोन नम्बर क्योंकि डायरेक्ट्री में अनुसूचित नहीं था इसलिये हमें मालूम नहीं हो सका था कि वह टैलीफोन कहां है ? जब तक लीला चौधरी को इस टैलीफोन से कोई उत्तर नहीं मिला था तब तक हमने अपनी तलाश जारी रखी थी लेकिन आज क्योंकि उसने सुनील नाम के इस आदमी से सम्पर्क स्थापित कर लिया था इसलिये लड़की पर हमला बोलना जरूरी हो गया था ।”
“इस मामले में होटल की टैलीफोन आपरेटर तो अपनी जुबान नहीं खोलेंगी ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । उन्हें मैंने ढेर सारा रुपया ही नहीं दिया बल्कि उन्हें अच्छी तरह धमका भी दिया है कि अगर उन्होंने अपनी जुबान खोली तो उनका गला काट दिया जायेगा । वैसे भी टैलीफोन आपरेटरों की ओर किसी का ध्यान नहीं जायेगा । यह बात कभी जाहिर नहीं हो पायेगी कि आपरेटरों ने किसी तीसरे आदमी को यह बताया था कि लीला चौधरी कौन सा नम्बर मांगती थी और कब वह उस नम्बर पर बात करने में सफल हो गई थी ।”
“और ?”
“और यह कि जिस समय हम होटल से बाहर निकल रहे थे, उस समय हमें सुनील नाम का वह आदमी वहां दिखाई दिया था । लीला के पर्स में जब मुझे उसकी तसवीर मिली थी तब मैंने बिना तसवीर को अच्छी तरह देखे इसे अपनी जेब में रख लिया था । इसीलिये जब मैंने इस आदमी को होस्टल के रिसैप्शन पर खड़ा देखा था तो मैं इसे पहचान नहीं पाया था । बाद में जब मैंने इस तसवीर को दुबारा देखा था तो मुझे मालूम हो गया था कि वह वही आदमी है । मैं फौरन वापिस होस्टल में पहुंचा था लेकिन तब तक वह आदमी वहां से जा चुका था और साथ ही होस्टल में पुलिस भी पहुंच चुकी थी । मैंने वहां से खिसक आना ही मुनासिब समझा था ।”
“और कुछ कहना है ?”
“जी नहीं । बस ।”
सेठ कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “अब जो मैं कह रहा हूं उसकी ओर ध्यान दो ।”
“फरमाइये ।” - जोजेफ विनयशील स्वर से बोला ।
“मैंने तुम्हें कहा था कि जिस आदमी से लीला सम्पर्क स्थापित करे, वह भी तुम्हारे अधिकार में होना चाहिये ?” - सेठ कठोर स्वर से बोला ।
“जी ।” - जोजेफ दबे स्वर में बोला - “वह थोड़ी सी चूक हो गई । होस्टल की टैलीफोन आपरेटर ने बताया था कि जिस आदमी से लीला ने बात की है वह फौरन उससे मिलने के लिये नहीं आ सकता जबकि वास्तव में वह लगभग फौरन ही चला आया हम उस समय उसके लिये तैयार नहीं थे ।”
“ऐसी गलती दुबारा नहीं होनी चाहिये ।”
“नहीं होगी ।”
“अब तुम सुनील नाम के उस आदमी को कैसे और कहां तलाश करोगे ?”
जोजेफ सिर झुकाए चुपका बैठा रहा ।
“तुम्हें पूरा विश्वास है कि जिस आदमी की तसवीर नीला के पर्स में से निकाली थी, वही आदमी होस्टल में उससे मिलने आया था ?”
“जी हां ।” - जोजेफ विश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“गुड” - सेठ बोला - “मुझे विश्वासनीय सूत्रों से पता लगा है कि टूरिस्ट होटल में पीटर हाल नाम का एक अंग्रेज ठहरा हुआ है । मैं उसका हुलिया तुम्हें नहीं बता सकता । केवल नाम से ही तुमने उस आदमी को तलाश करना है और उसे पकड़ कर मेरे पास ले आना है । समझ गये ?”
“समझ गया ?”
“इस मामले में गलती नहीं होनी चाहिये । टूरिस्ट होटल में पचास प्रतिशत विदेशी ही ठहरते हैं । वहां कई अग्रेज होंगे । ऐसा न हो कि तुम किसी गलत आदमी को पीटर हाल समझकर पकड़ कर ले आओ ।”
“मैं ख्याल रखूंगा ।”
“आज रात को ग्यारह बजे सुनील नाम का यही आदमी जिसकी तुम्हारे पास तसवीर है, पीटर हाल से मिलने टूरिस्ट होटल जाने वाला है । तुम्हें उस पर निगाह रखनी है । किसी भी सूरत में सुनील और पीटर हाल की मुलाकात नहीं होनी चाहिये । अगर तुम्हारे पीटर हाल से सामना होने से पहले ही सुनील टूरिस्ट होटल पहुंच जाये तो तुम पहले सुनील का ही खातमा कर दो ।”
“आपको पूरा विश्वास है कि पीटर हाल से मिलने सुनील ही आयेगा ?”
“हां, बशर्ते कि ऐन मौके पर कोई हेर फेर न हो जाये ।”
जोजेफ चुप रहा ।
“इस मामले में कहीं कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये । तुम्हारे आदमी टूरिस्ट होटल के चप्पे चप्पे की निगरानी पर लगे होने चाहियें । कहीं ऐसा न हो कि सुनील पीटर हाल के पास पहुंच जाये और तुम्हें खबर भी न हो ।”
“ऐसा नहीं होगा ।” - जोजेफ विश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
सेठ चुप हो गया ।
थोड़ी देर तक जोजेफ चुपचाप बैठा सेठ का मुंह देखता रहा और फिर आशापूर्ण स्वर से बोला - “मैं जाऊं ?”
“अ - हां” - सेठ बोला - “और यह रख लो ।”
और सेठ ने सौ सौ के नोटों की एक मोटी गड्डी निकाल कर जोजेफ को सौंप दी ।
जोजेफ के नेत्र चमक उठे । उसने नोट ले लिये और उन्हें अपने कोट की भीतरी जेब में रख लिया ।
“थैंक्यू बास ।” - जोजेफ उठता हुआ बोला ।
सेठ दौलतराम ने उत्तर नहीं दिया । उसने अपने नेत्र बन्द कर लिये ।
जोजेफ लम्बे जग भरता हुआ बाहर की ओर चल दिया ।
***
टूरिस्ट होटल से लगभग आधा मील दूर तक रेस्टोरेन्ट था जिसमें सुनील बैठा था । उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । साढे दस बज चुके थे । उसे वहां बैठे हुए डेढ घन्टे के अधिक समय हो चुका था ।
उसने सिगरेट का आखिरी कश लगाया, काफी का आखिरी घून्ट पिया और बिल चुकाकर रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल आया ।
मोटर साइकिल वह अपने साथ नहीं लाया था । पीटर हाल से मिलने में अभी आधा घण्टा बाकी था इसलिये वह पैदल ही टूरिस्ट होटल की ओर चल दिया ।
वह लापरवाही से फुटपाथ पर टहलता हुआ आगे बढता रहा ।
आधा रास्ता तय कर चुकने के बाद एकाएक उसे अनुभव हुआ कि उसका पीछा किया जा रहा है ।
एक मोटा सा आदमी अपने और सुनील के बीच में एक निश्चित फासला रखे हुए सुनील के ही ढंग से लापरवाह सा टहलता हुआ उसके पीछे आ रहा था ।
सुनील सतर्क हो उठा ।
जिन रास्तों से वे आगे बढ रहे थे उन पर से भीड़ घटती जा रही थी । सुनील को आसार अच्छे नहीं लगे ।
वह तेजी से चलने लगा ।
उसके पीछे लगे मोटे आदमी की भी चाल तेज हो गई ।
सुनील ने टूरिस्ट होटल का रास्ता छोड़ दिया और एक अन्य सड़क पर चल दिया ।
मोटा भी उसी ओर मुड़ गया ।
सुनील बिना पीछे मुड़ कर देखे तेजी से उस अर्ध प्रकाशित सड़क पर आगे बढता रहा ।
एकाएक उसे बाईं ओर एक पुरानी सी अन्धेरी इमारत के सामने एक बहुत बड़ा कम्पाउन्ड दिखाई दिया जिसमें पुरानी कारों और ट्रकों की गली सड़ी बाडियां और अन्य लोहे और लकड़ी की चीजों का कबाड़ भरा हुआ था ।
सुनील एक क्षण को उस कम्पाउन्ड के सामने ठिठका और फिर फुर्ती से दीवार फान्द कर भीतर प्रविष्ट हो गया ।
कम्पाउन्ड में एकदम अन्धेरा था ।
सुनील एक टूटे हुए ट्रक की बाडी के पीछे छुप गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
थोड़ी देर बाद वह मोटा आदमी भी फाटक ठेलकर सावधानी से कम्पाउन्ड के भीतर प्रविष्ट हुआ । वह कुछ क्षण फाटक के पास ही ठिठका खड़ा रहा । लगता था वह कम्पाउन्ड के अन्धेरे वातावरण में स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहा था और इसलिए हिचकिचा रहा था । फिर सुनील ने उसका हाथ उसकी जेब की ओर बढता देखा और फिर सड़क पर से आते हुए क्षीण से प्रकाश में उसे उसके हाथ में एक लम्बे फल वाला चाकू चमकता दिखाई दिया ।
मोटा चाकू हाथ में लिये सावधानी से कम्पाउन्ड में आगे बढा ।
सुनील ट्रक की बाडी के पीछे दुबका बैठा रहा ।
मोटा उसी ओर बढ रहा था ।
सुनील ने अपने दायें-बायें फैले हुए कबाड़ को टटोलना आरम्भ कर दिया । लोहे की नाल का लगभग एक फुट लम्बा एक टुकड़ा उसके हाथ में आ गया । सुनील ने उसे मजबूती से अपने दायें हाथ में थाम लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
मोटा अपना चाकू वाला हाथ अपने सामने फैलाये उस ओर बढ रहा था । जब मोटा सुनील से केवल तीन फुट दूर रह गया तो सुनील एकाएक अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ ।
मोटा उसे देखकर चौंका और चाकू वाला हाथ सामने फैलाये उस पर झपटा ।
सुनील ने पूरी शक्ति से लोहे की नाल का टुकड़ा खींचकर उसकी ओर फेंक मारा । लोहे की नाल तेजी से मोटे की छाती से टकराई । उसके मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली और वह दोहरा हो गया ।
सुनील ने उसे सम्भलने का मौका नहीं दिया । वह छलांग मारकर उसके सिर पर पहुंच गया, और उसने कैरेट चाप का भरपूर हाथ मोटे की झुकी हुई गर्दन के पृष्ट भाग पर जमा दिया ।
मोटे के हाथ से चाकू निकल गया । वह मुंह के बल फर्श पर गिरा और शान्त हो गया ।
सुनील ने अपने जूते की नोक से उसकी पसलियों को टटोला लेकिन उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई । मोटा बेहोश हो चुका था और शायद मर ही चुका था ।
सुनील मोटे को कम्पाउन्ड के कबाड़ में औंधे मुंह पड़ा छोड़कर कम्पाउन्ड से बाहर निकल आया ।
वह वापिस टूरिस्ट होटल की ओर चल दिया ।
होटल से लगभग सौ गज दूर पहुंचकर वह ठिठक गया । होटल से थोड़ी दूर उसे वह लम्बा आदमी दिखाई दिया, जिसे वाई डबल्यू सी ए के होस्टल में देखा था । उसका दायां हाथ अपनी पतलून की जेब में था और उसकी निगाहें सड़क पर टिकी हुई थीं ।
सुनील बड़ी सावधानी से पेड़ों की ओट लेता हुआ थोड़ा और आगे बढा और फिर उस लम्बे का साथी पहलवानों जैसी घनी मूछों वाला आदमी भी दिखाई दे गया । वह होटल की बगल की इमारत के एक खम्बे के साथ पीठ लगाये खड़ा था । उसका भी दायां हाथ अपनी पतलून की जेब में था । अगले पांच मिनट में सुनील को ऐसे चार बदमाश से लगने वाले जो होटल के सामने विभिन्न स्थितियों में तैनात थे दिखाई पड़े ।
सुनील को लक्षण अच्छे नहीं नजर आये । उसके सामने उस मोटे की सूरत घूम गई जिसे वह उस अन्धेरी इमारत के कम्पाउन्ड में पड़ा छोड़ कर आया था । कहीं यहां भी उसी के स्वागत का इन्तजाम तो नहीं हो रहा है ।
सुनील ने घड़ी पर दृष्टिपात किया । ग्यारह बजने में दस मिनट थे । वह कुछ क्षण अनिश्चित सा वहीं खड़ा रहा । आगे बढने की उसकी हिम्मत नहीं हुई ।
फिर उसने मन ही मन एक फैसला किया और उलटे पांव वापस लौट आया । वह उस पूरे ब्लाक का चक्कर काटकर होटल की इमारत के पिछवाड़े पहुंचा ।
वहां भी वैसा ही हाल था । इमारत के चप्पे चप्पे पर बदमाश तैनात थे । उनकी जानकारी में आये बिना इमारत में प्रविष्ट हो पाना असम्भव था ।
सुनील फिर घूमकर सामने की सड़क पर आ गया ।
उस ब्लाक के मोड़ पर टैलीफोन एक्सचेंज की इमारत थी जिसके बाहर की दीवार के साथ फुटपाथ पर ही पब्लिक टैलीफोन बूथों की कतार बनी हुई थी । सुनील एक टैलीफोन बूथ में घुस गया ।
उसने टूरिस्ट होटल का नम्बर डायल कर दिया । उसकी सतर्क दृष्टि टूरिस्ट होटल के सामने के बरामदे में और सड़क के दूसरी ओर के पेड़ों भरे फुटपाथ पर टिकी हुई थी ।
“टूरिस्ट होटल !” - दूसरी ओर से आपरेटर की भावहीन आवाज सुनाई दी ।
सुनील ने जल्दी से कायन बाक्स में सिक्के डाले और बोला - “हल्लो, हल्लो ।”
“यस प्लीज ।”
“मैं मिस्टर पीटर हाल से बात करना चाहता हूं ।”
“रूम नम्बर ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“फिर मैं आपको फ्रंट डेस्क में कनैक्ट कर देती हूं । आप वहां से पता कर लीजिये ।”
“ओके ।”
सुनील को एक क्लिक की आवाज सुनाई दी ।
वह सतर्कता से रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा और टैलीफोन बूथ के शीशे के दरवाजे से बाहर सड़क पर झांकता रहा ।
“रिसैप्शन !” - उसी क्षण उसके कान में एक पुरुष स्वर सुनाई दिया ।
“मैं मिस्टर पीटर हाल से बात करना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“रूम नम्बर ?”
“मुझे नहीं मालूम । आप चैक कर लीजिये ।”
“जरा एक मिनट होल्ड कीजिये ।”
“मैं होल्ड कर रहा हूं । जल्दी कीजिये ।”
उसी क्षण मोटी मूछों वाला टूरिस्ट होटल के बरामदे की ओर से निकल कर सड़क पर आ गया । वह एक क्षण के लिये लम्बे आदमी के सामने रुका और फिर टहलता हुआ टैलीफोन एक्सचेंज की इमारत की ओर बढा ।
सुनील का दिल जोरों से धड़कने लगा ।
टैलीफोन पर दूसरी ओर अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला था और मोटी मूछों वाला टैलीफोन बूथ के समीप आता जा रहा था ।
“हल्लो !” - उसी क्षण दूसरी ओर से आवाज आई ।
“यस !” - सुनील व्यग्र स्वर में बोला ।
“क्या मिस्टर पीटर हाल से ग्यारह बजे आप मिलने वाले हैं ।”
“हां ।”
“तो फिर आ जाइये । मिस्टर हाल आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।”
“लेकिन मैं उनसे फोन पर बात करना चाहता हूं ।” - सुनील क्रोधित स्वर से बोला ।
“जरा एक मिनट फिर होल्ड कीजिये ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला और फिर सुनील के कानों में रिसीवर मेज पर रख दिये जाने की आवाज पड़ी ।
सुनील रिसेप्शनिस्ट की मूर्खता पर ताव खाता हुआ रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा ।
मूछों वाला बूथ के काफी समीप आ गया था । एकाएक सुनील को यूं लगा जैसे उसने सुनील को देख लिया हो और सीधा उसी ओर बढ रहा हो । मूछों वाले का दायां हाथ अपनी पतलून की जेब में था और वह जेब बाहर की ओर फूली हुई दूर से ही दिखाई पड़ रही थी । जरूर उसमें रिवाल्वर थी ।
सुनील ने रिसीवर हाथ से छोड़ दिया और फौरन उकडूं होकर टैलीफोन बूथ के फर्श पर बैठ गया । बूथ के दरवाजे का ऊपरला आधा भाग शीशे का था जबकि नीचे के भाग में लकड़ी लगी हुई थी ।
मूछों वाला एकदम बूथ के सामने आकर खड़ा हो गया ।
उसी क्षण मूछों वाले ने अपनी दाईं जेब में से हाथ निकाला । सुनील को उसके हाथ में रिवाल्वर दिखाई दी । मूछों वाले ने रिवाल्वर को पतलून की बैल्ट में खोंस लिया और ऊपर से उसे कोट से ढंक लिया ।
वह वहीं खम्भे का सहारा लेकर खड़ा हो गया । उसका वहां से हटने का कोई इरादा नहीं दिखाई देता था ।
सुनील फंस गया था टैलीफोन बूथ से बाहर निकलना तो दूर वह अपना सिर तक नहीं उठा सकता था । वह अधिक देर तक वहां छुपा नहीं रह सकता था । अगर टैलीफोन करने के लिये आये किसी अन्य व्यक्ति ने एकाएक द्वार खोल दिया या मूछों वाले के दिमाग में ही टैलीफोन बूथ चैक करने का ख्याल आ गया तो कहानी खत्म थी ।
वह वहां से बाहर निकलने की तरकीबें सोचता रहा ।
उसने घड़ी देखी ग्यारह बजकर दस मिनट हो चुके थे । वक्त गुजरता जा रहा था । सुनील को चिन्ता थी कि देर हो जाने से पीटर हाल कहीं यह न समझ ले कि उससे कोई मिलने नहीं आ रहा है और वह सौदा करने के लिए विपक्षियों के पास पहुंच जाये ।
सुनील ने सावधानी से सिर उठाकर फिर शीशे से बाहर झांका ।
मूछों वाला सतर्कता की प्रति मूर्ति बना अभी भी वहीं खड़ा था ।
सुनील को मूछों वाले की जानकारी में आये बिना वहां से निकल जाने का कोई तरीका नहीं सूझ रहा था ।
उसने फिर बाहर झांका ।
मूछों वाला घड़ी देख रहा था । फिर वह एकाएक घूमा और लम्बे डग भरता हुआ सीधा टैलीफोन बूथों की ओर बढा ।
सुनील को अपनी सांस रुकती हुई महसूस हुई । उसने तत्काल अपना सिर नीचे खींच लिया । अगर बूथ खाली समझकर मूछों वाला सीधा उसी बूथ में घुस आया तो...
उसने शोल्डर होल्स्टर से अपनी मोजर रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले ली और द्वार खुलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
लेकिन उस बूथ का द्वार नहीं खुला सुनील को किसी और बूथ का द्वार खुलने और बन्द होने की आवाज आई ।
उसने सिर उठाकर देखा । मूछों वाला उसे कहीं दिखाई नहीं दिया । शायद वह बगल के बूथ में था । सुनील ने रिवाल्वर को वापिस शाल्डर होल्स्टर में खौंसा और धीरे से बूथ का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया ।
वह टेलीफोन एक्सचेंज की इमारत के पीछे से घूमकर फिर पिछवाड़े की छोटी गली में आ गया । कोने की इमारत का पिछला दरवाजा खुला था । सुनील भीतर घुस गया । एक लम्बे गलियारे में से होता हुआ वह इमारत के सामने भाग में आ गया ।
लिफ्ट के रास्ते वह इमारत की सबसे ऊपर की मंजिल पर पहुंच गया ।
किसी ने उसे देखा नहीं । किसी ने उसे टोका नहीं ।
सुनील सीढियों के रास्ते इमारत की छत पर पहुंच गया ।
टूरिस्ट होटल वहां से पांचवी इमारत थी । पांचों इमारतों की बीच की दीवारें एक दूसरे से मिली हुई थी ।
सुनील आशान्वित हो उठा । पीटर हाल तक पहुंचना उसे फिर सम्भव दिखाई देने लगा था ।
सुनील इमारतों की छतों को फांदता हुआ टूरिस्ट होटल की छत पर पहुंच गया । वह सीढियों के रास्ते नीचे की मंजिल पर पहुंचा और फिर लिफ्ट के रास्ते ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंच गया ।
होटल के शीशे के प्रवेश द्वार के एकदम सामने बरामदे के खम्बे के साथ लगा लम्बा आदमी खड़ा था लेकिन उसकी निगाहें बाहर सड़क पर टिकी हुई थीं ।
“मिस्टर पीटर हाल कौन से कमरे में हैं ?” - सुनील ने रिसैप्शन पर पहुंच कर पूछा ।
“सामने कारीडोर में चले जाइये” - रिसैप्शनिस्ट बोला - “दाईं ओर का आखिरी कमरा है ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
गलियारा पार करके वह आखिरी कमरे के सामने पहुंच गया । उसने द्वार खटखटाया ।
भीतर से कोई उतर नहीं मिला ।
उसने द्वार को धक्का दिया । द्वार खुल गया । सुनील शोल्डर होल्स्टर में पड़ी रिवाल्वर की मूठ पर हाथ रखे भीतर प्रविष्ट हुआ ।
कमरा खाली था ।
दाईं ओर की दीवार में एक दरवाजा था जो शायद बाथरूम में खुलता था । सुनील उस दरवाजे की ओर बढा । उसके दरवाजे को हाथ लगाने से पहले ही दरवाजा दूसरी ओर से खुल गया और उसे एक लम्बा तगड़ा अंग्रेज दिखाई दिया । उसके हाथ में एक जलता हुआ सिगार था ।
वह दरवाजा बाथरूम में नहीं, वैसे ही एक अन्य कमरे में खुलता था ।
“हू आर यू ?” - अंग्रेज ने कठोर स्वर से प्रश्न किया ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला - “मैं पीटर हाल से मिलने आया हूं ।”
अंग्रेज ने सन्दिग्ध नेत्रों से सिर से पांव तक सुनील को देखा और फिर बोला - “मेरा ही नाम पीटर हाल है ।”
“बड़ी खुशी की बात है ।” - सुनील बोला - “आप ग्यारह बजे मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे ?”
“तुम वह आदमी हो जिससे मैंने टैलीफोन पर बात की थी ?”
“नहीं ।” - सुनील बोला - “मैं उस आदमी का प्रतिनिधि हूं ।”
“आओ ।” - पीटर हाल बोला ।
सुनील वापिस कमरे के मध्य में लौट आया और पीटर हाल द्वारा निर्दिष्ट एक कुर्सी पर बैठ गया । पीटर हाल ने कमरे का द्वार भीतर से बन्द कर लिया । फिर वह सुनील के सामने आ बैठा ।
“कहो ।” - वह बोला ।
“मैं क्या कहूं ।” - सुनील बोला - “तुम कहो जो कहना है । मैं तो केवल तुम्हारी बात सुनने के लिये आया हूं । तुम बताओ तुम कौन सी जानकारी बेचना चाहते हो और तुम उसकी क्या कीमत चाहते हो ?”
“लेकिन मुझे यह कैसे मालूम हो कि मैं सही आदमी से बात कर रहा हूं ?”
“गलत आदमी तुम तक पहुंच ही कैसे सकता है, बशर्ते कि तुमने कई आदमियों से बात न की हो ।”
“मैंने केवल एक ही आदमी से बात की थी ।”
“तो फिर उसका भेजा हुआ आदमी मैं ही हूं । तुमने राजनगर 78321 पर कर्नल मुखर्जी से बात की थी और ग्यारह बजे का अप्वायेंटमेन्ट तय किया था ।”
“लेकिन तुम तो साढे ग्यारह बजे आये हो ।” - पीटर हाल सन्दिग्ध स्वर से बोला ।
“उसकी वजह यह थी कि कुछ लोग यह नहीं चाहते कि मैं तुम तक पहुंच पाऊं । होटल को कम से कम एक दर्जन बदमाशों ने हर ओर से घेरा हुआ है । मैं बगल की इमारतों की छतें फान्दता हुआ यहां तक पहुंचा हूं ।”
पीटर हाल के मुंह से भयपूर्ण सिसकारी निकल गई ।
“वे लोग मेरे बारे में भी जानते हैं ?” - उसने घबराकर पूछा ।
“मुझे क्या मालूम ? जैसा सिलसिला मुझे दिखाई दे रहा है, उससे तो यही मालूम होता है कि अगर वे नहीं जानते तो जल्दी ही जान जायेंगे ।”
“फिर तो मैं...”
“पीटर हाल !” - सुनील कठोर स्वर से बोला - “तुम बेकार की बातों में वक्त बरबाद कर रहे हो । मतलब की बात करो । तुम क्या बेचना चाहते हो ?”
“मैं तुम्हारी सीक्रेट सरविस के हित की एक बड़ी महत्वपूर्ण बात तुम्हें बता सकता हूं ।” - पीटर हाल सिगार का एक गहरा कश लगाकर बोला ।
“वह तो सुन लिया लेकिन वह महत्वपूर्ण बात क्या है ?”
पीटर हाल कई क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - “मैं नगेन्द्र सिंह चौधरी का वर्तमान पता जानता हूं ।”
सुनील के कान खड़े हो गये ।
“कौन नगेन्द्र सिंह चौधरी ?” - उसने सतर्क स्वर से पूछा ।
“वही नगेन्द्र सिंह चौधरी जो तुम्हारी सीक्रेट सर्विस का बड़ा महत्वपूर्ण एजेन्ट था लेकिन चार साल पहले तुम लोगों को धोखा देकर चीनियों से जा मिला था ।”
नगेन्द्र सिंह चौधरी को सुनील जानता था । एक पिछले केस पर उसके साथ काम भी कर चुका था । चौधरी भी मुखर्जी की स्पैशल इन्टैलीजेन्स का सदस्य था । पता नहीं कौन सा लालच था जिसकी वजह से उसने हिन्दोस्तान को धोखा देकर चीनियों के हाथ बिक जाना स्वीकार कर लिया था । चौधरी के चीनियों के हाथ में पड़ जाने की वजह से भारतीय सीक्रेट सर्विस को कई मामलों में भारी क्षति पहुंची थी । आखिरी बार चौधरी के बारे में यह सुना गया था कि वह पेकिंग में है और चीनियों के जासूसों के एक प्रशिक्षण केन्द्र का निर्देशक बन गया है ।
सुनील के नेत्रों के सामने नगेन्द्र सिंह चौधरी का आकर्षक चेहरा घूम गया ।
“चौधरी का पता जानने से क्या होता है ?” - सुनील बोला उसका पता तो हम भी जानते हैं । वह पेकिंग में कहीं है ।”
“वह अब पेकिंग में नहीं है और चीन में भी नहीं है ।”
“तो फिर कहां है ?”
पीटर हाल मुस्कराया और बोला - “यही तो वह जानकारी है जो मैं तुम लोगों के हाथ बेचना चाहता हूं ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते हो कि उसने चीनियों को भी धोखा दिया है और अब उनके चंगुल से भी निकल भागा है ।”
“करैक्ट ।”
“अगर ऐसी बात है तो वह वापिस हिन्दोस्तान क्यों नहीं आ जाता ?”
“नहीं आ सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि चीनी उसकी ताक में हैं । जहां वह छुपा हुआ है, उस स्थान की जानकारी अपनी भरपूर कोशिशों के बावजूद भी अभी तक चीनियों को नहीं हो पाई है । चौधरी चूहेदान में चूहे की तरह फंसा हुआ है । अगर वहां से निकल कर उसने भारत का रुख भी किया तो उसकी धज्जियां उड़ा दी जायेंगी ।”
“ओह !”
“और वह बीमार भी है । उसमें इतनी शक्ति नहीं है कि वह कोई लम्बा सफर कर सके । किसी भी क्षण उसकी जीवन लीला समाप्त हो सकती है ।”
सुनील चुप रहा । पीटर हाल को सिगार पीता देखकर उसने भी एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“अपने चीन में चार साल के निवास के दौरान में वह चीनियों के कई बड़े महत्वपूर्ण राज जान गया है । उस जानकारी को वह भारतीय सीक्रेट सर्विस तक पहुंचाना चाहता है लेकिन उसका तरीका यही है कि भारतीय सीक्रेट सर्विस का कोई प्रतिनिधि उसके गुप्त निवास स्थान पर जाकर उससे सम्पर्क स्थापित करे ।”
“वह कहां है ?”
“उसके गुप्त स्थान का पता मैं तुम्हें तब बताऊंगा जब तुम मुझे पांच लाख अमेरिकन डालर दे दोगे ।”
“तुम्हारे ख्याल से जो जानकारी तुम बेचना चाहते हो, वह इतनी बड़ी कीमत के काबिल है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।” - पीटर हाल लापरवाही से बोला - “चौधरी ने मुझ से भारत आकर कर्नल मुखर्जी से सम्पर्क स्थापित करने के लिये कहा था । उसने कहा था कि मेरी इस सेवा के बदले कर्नल मुखर्जी मुझे ‘कुछ’ भी देने के लिये सहर्ष तैयार हो जायेंगे । मिस्टर सुनील, मैं भारी मुश्किलें उठाता हुआ हिन्दोस्तान पहुंचा हूं । अगर चीनियों को मालूम हो गया कि मैं चौधरी का हरकारा बनकर भारत आया हूं तो वे मुझे भी मार डालेंगे । इस भारी रिस्क को देखते हुए पांच लाख डालर की मेरी मांग कोई बहुत बड़ी नहीं है ।”
“चौधरी हांगकांग में कहीं छुपा हुआ है ?”
“मैंने यह नहीं कहा ।”
“तुम्हें कर्नल मुखर्जी का नाम और उसका गुप्त टैलीफोन नम्बर खुद चौधरी ने बताया था ?”
“हां ।”
“मतलब यह कि तुम्हें चौधरी ने भेजा है और तुम पांच लाख अमेरिकन डालर हासिल करने के लालच में यहां चले आये हो ।”
“हां ।”
“फिर तो चौधरी हांगकांग में ही कहीं होगा ।”
“मैं तुम्हें अनुमान लगाने से नहीं रोक सकता । वैसे मेरा हांगकांग से भारत में आना यह सिद्ध नहीं करता है कि चौधरी भी हांगकांग में है और फिर अगर वह हांगकांग में है भी तो हांगकांग इतनी छोटी जगह नहीं है कि तुम मेरी सहायता के बिना खुद वहां जाकर उसे तलाश कर लो । हांगकांग चीनी जासूसों से भरा पड़ा है । अगर वे लोग पूरी फोर्स के साथ चौधरी को तलाश नहीं कर पाये हैं तो तुम भारत से जा कर उसे कैसे तलाश कर लोगे ?”
सुनील सोचने लगा ।
“फिर बोलो” - पीटर हाल व्यग्र स्वर से बोला - “तुम्हें सौदा मंजूर है ?”
“मुझे अपने चीफ से पूछना पड़ेगा ।”
“पूछ लो । कल शाम तक मुझे निश्चित उत्तर मिल जाना चाहिये । अगर तुम्हें सौदा मंजूर न हुआ तो मुझे चीनियों से बात करनी पड़ेगी । चौधरी के पते के बदले में चीनी मुझे खुशी से पांच लाख डालर दे देंगे ।”
“तुम्हें हमारे पास चौधरी ने भेजा है । तुम उसके साथ दगा करोगे ।”
“चौधरी क्या मेरा चाचा लगता है । उसके साथ क्या यही मैं भारी ईमानदारी नहीं बरत रहा कि जहां वह छुपा हुआ है, उस जगह की जानकारी का चीनियों से सौदा कर लेने के स्थान पर मैं धक्के खाता हुआ हिन्दोस्तान आ गया हूं । जो रकम मैं यहां तुमसे मांग रहा हूं, वह मैं घर बैठा चीनियों से वसूल कर सकता था । मैं तो दौलत के लालच में यहां आया हूं । अगर तुम मेरी मांग स्वीकार नहीं करोगे तो मुझे चीनियों से बात करनी पड़ेगी ।”
“तुम बहुत खतरनाक खेल रहे हो । क्या तुम्हें कभी यह भी सूझा है कि जो जानकारी तुम बेचना चाहते हो । वह तुम्हारी चमड़ी उधेड़कर तुम से उगलवाई जा सकती है ?”
“सोचा है ।” - पीटर हाल शान्ति से बोला - “खूब अच्छी तरह सोचा है । लेकिन साथ ही यह भी सोचा है कि पैसा देकर जानकारी खरीद लेने का आसान तरीका छोड़कर कोई तुम्हारे बताये हुए तरीके से नतीजा हासिल करने की कोशिश नहीं करेगा । तुम बच्चे हो और पांच लाख रुपये की मामूली रकम को बहुत भारी महत्व दे रहे हो । इस रकम को एक राष्ट्र के स्तर पर सोचकर देखो तो तुम्हें महसूस होगा कि मैं एक बहुत तगड़े माल की बहुत मामूली कीमत मांग रहा हूं ।”
“मैं अपने चीफ से बात करूंगा । मुझे आशा है, तुम्हारी कीमत स्वीकार हो जायेगी ।”
“तुम्हें केवल आशा है लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरी कीमत स्वीकार हो जायेगी ।”
“तुम मुझे दुबारा कहां मिलोगे ?”
“मैं तुम से दुबारा तुम्हारी हां सुनने के बाद ही मिलूंगा । तुम मुझे अपना नम्बर बता दो, मैं तुम्हें कल शाम को पांच बजे फोन कर लूंगा । अगर तुम्हें सौदा मंजूर हुआ तो मैं बता दूंगा कि मैं तुम्हें कहां मिल सकता हूं ।”
सुनील ने उसे अपने फ्लैट का नम्बर बता दिया ।
“मैं चला ।” - पीटर हाल उठता हुआ बोला - “कल शाम को पांच बजे में तुम्हें फोन करूंगा ।”
“तुम जा कहां रहे हो ?” - सुनील बोला - “तुम क्या इसी कमरे में नहीं रहते हो ?”
“मैं इस कमरे में तो क्या टूरिस्ट होटल में भी नहीं रह रहा हूं । यह कमरा तो मैंने तुम से बात करने के लिये किराये पर लिया था और तुम्हारे रिसैप्शन से मेरे बारे में पूछकर यहां आने के बाद ही मैं भी यहां आया था । तुम इस दरवाजे से घुसे । मैं बगल के कमरे के दरवाजे से घुसा था ।”
“बहुत सावधानी बरतते हो ।”
“मुझे अपनी जान प्यारी है ।”
“और वास्तव में तुम कहां ठहरे हुए हो ?”
पीटर हाल यूं मुस्कराया जैसे सुनील ने बहुत बचकानी बात पूछ ली हो । उसने सिगार का आखरी कश लगा कर बचा हुआ टुकड़ा मेज पर रखी ऐश ट्रे में डाल दिया और फिर बगल के दरवाजे की ओर बढा ।
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
“तुम अभी बैठो ।” - पीटर हाल बोला - “तुम यहां से मेरे निकल जाने के पांच मिनट बाद निकलना ।”
सुनील ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया और फिर बैठ गया ।
पीटर हाल बगल के कमरे में प्रविष्ट होकर दृष्टि से ओझल हो गया ।
सुनील ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
उसी क्षण दो बार हल्की सी पिट की आवाज हुई और फिर भड़ाक से दरवाजा खुल गया ।
सुनील चिहुंक कर वापिस घूमा । उसका हाथ अपसे शोल्डर होल्स्टर की ओर बढा ।
“स्टॉप ।”
सुनील ने तत्काल रिवाल्वर की ओर बढता हुआ हाथ रोक दिया । एक साइलेन्सर लगी रिवाल्वर उसकी ओर तनी हुई थी ।
***
टूरिस्ट होटल के बाहर फुटपाथ पर खड़ा जोजेफ बेचैन हो रहा था ।
उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया, फिर सड़क पर दोनों ओर दृष्टि दौड़ाई और फिर टहलता हुआ एक अन्य खम्बे के साथ लगकर खड़े अपने मूछों वाले साथी की ओर बढा ।
“मुरली ।” - वह धीरे से बोला ।
“हां ।” - मूछों वाला बोला ।
“पौने बारह बज चुके हैं । अब शायद सुनील नहीं आयेगा ।”
“फिर ?”
“बाकी आदमियों को यहीं निगरानी पर रहने दो । तुम मेरे साथ आओ । हम भीतर पीटर हाल का पता करते हैं ।”
“चलो ।” - मुरली बोला और उसके साथ हो लिया ।
दोनों होटल के भीतर की ओर चल दिये ।
वे रिसैप्शन पर पहुंचे ।
उनके पहुंचने तक रिसैप्शन से उस क्लर्क की ड्यूटी बदल चुकी थी जिसने सुनील को पीटर हाल का पता बताया था ।
“मिस्टर पीटर हाल कौन से कमरे में हैं ?” - जोजेफ ने क्लर्क से पूछा ।
“मिस्टर पीटर हाल !” - क्लर्क ने दोहराया और फिर अपने पीछे लगे उस बोर्ड पर दृष्टि फिराने लगा जिस पर होटल में ठहरे हुए लोगों के नामों के कार्ड लगे हुए थे ।
“इस नाम के तो कोई साहब इस होटल में नहीं ठहरे हुए हैं ।” - कुछ क्षण बाद क्लर्क बोला ।
“यह कैसे हो सकता है ?” - जोजेफ बेचैनी से बोला ।
“मैं आप से झूठ थोड़े ही बोल रहा हूं, साहब” - क्लर्क बोला - “पीटर हाल नाम के कोई साहब इस होटल में मौजूद नहीं हैं ।”
“लेकिन हमें तो यही बताया गया था कि वे इस होटल में ठहरे हुए हैं ।” - जोजेफ बोला । वह हैरान था कि सेठ दौलतराम से ऐसी भयंकर गलती कैसे हो सकती थी ।
“आप जरा अच्छी तरह चैक कर लीजिये ।” - जोजेफ फिर बोला ।
“मैंने चैक कर लिया है, साहब ।” - क्लर्क बोला - “शायद मिस्टर पीटर हाल यहां आने वाले हों लेकिन अभी पहुंचे न हों ।”
जोजेफ ने उलझनपूर्ण नेत्रों से मुरली की ओर देखा ।
मुरली ने अनभिज्ञतापूर्ण ढंग से कन्धे उचका दिये ।
“तुम यहीं ठहरो” - जोजेफ बोला - “मैं फोन करके आता हूं ।”
“अच्छा ।” - मुरली बोला ।
जोजेफ लाबी में ही बने पब्लिक टैलीफोन में घुस गया ।
उसने हिल्टन इन्टरकान्टीनेन्टल का नम्बर डायल किया ।
जल्दी ही उसे सेठ दौलतराम से कनैक्ट कर दिया गया ।
“मैं जोजेफ बोल रहा हूं, साहब ।” - जोजेफ बोला ।
“काम हो गया ?” - दूसरी ओर से सेठ ने प्रश्न किया ।
“नहीं साहब । सुनील अभी तक टूरिस्ट होटल में नहीं पहुंचा है और मैंने अभी पता किया है, पीटर हाल नाम का कोई आदमी टूरिस्ट होटल में नहीं ठहरा हुआ है ।”
“क्या ?” - सेठ दहाड़ा ।
“मैं सच कह रहा हूं, बास” - जोजेफ कम्पित स्वर से बोला - “पीटर हाल टूरिस्ट होटल में नहीं ठहरा हुआ है । मुझे तो लगता है कि हम गलत जगह की निगरानी कर रहे हैं और इसीलिये सुनील भी यहां नहीं आया है ।”
“बको मत । मेरी जानकारी गलत नहीं हो सकती ।”
जोजेफ चुप रहा ।
कई क्षण दूसरी ओर से भी कोई उत्तर नहीं मिला ।
“जोजेफ ।” - थोड़ी देर बाद सेठ दौलतराम का स्वर फिर सुनाई दिया ।
“यस, सर ।” - जोजेफ सतर्कं स्वर से बोला ।
“होटल के रेस्टोरेन्ट से पता करो कि क्या पीटर हाल नाम का कोई आदमी वहां मौजूद है ? या शायद उसने कोई कान्फ्रेंस हाल बुक कराया हो । पीटर हाल को टूरिस्ट होटल में होना ही चाहिये । अगर इन जगहों पर भी उसका पता न चले तो मुझे फिर फोन करना ।”
“मैं पता करता हूं लेकिन सर...”
“अब क्या है ?”
“सुनील भी तो यहां नहीं पहुंचा है ।”
“वह जरूर पहुंचा होगा । लेकिन तुम्हें और तुम्हारे अन्धे साथियों को खबर नहीं हुई होगी ।”
“लेकिन, सर यह...”
दूसरी ओर रिसीवर को भड़ाक से क्रेडील पर पटके जाने की आवाज आई ।
जोजेफ भी रिसीवर हुक पर टांग कर बूथ से बाहर निकल गया ।
वह वापिस काउन्टर पर लौटा ।
“क्या पीटर हाल नाम के कोई साहब होटल के रेस्टोरेन्ट में मौजूद हैं ?” - जोजेफ ने फिर काउन्टर क्लर्क से पूछा ।
“इस विषय में रेस्टोरेन्ट में जाकर स्टीवर्ट से पता कीजिये ।” - क्लर्क बोला ।
दोनों रेस्टोरेन्ट में आये ।
“मिस्टर पीटर हाल की कौन सी टेबल है ?” - जोजेफ ने स्टीवर्ट से पूछा ।
“वे तो यहां से जा चुके हैं ।”
जोजेफ का जबाड़ा लटक गया । इसका मतलब यह था कि पीटर हाल टूरिस्ट होटल में मौजूद जरूर था ।
“लेकिन उन्होने ग्राउन्ड फ्लोर के पांच नम्बर कमरे में जाना था” - स्टीवर्ट फिर बोला - “वहां वे किसी से मिलने वाले था । आप वहां देख लीजिये । शायद वे अभी भी वहां हों ।”
जोजेफ के नेत्र चमक उठे । उसने मुरली की बांह पकड़ी और तेजी से रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल आया ।
इस सारे घपले में ट्रेजेडी यह हुई कि जिस समय वे पांच नम्बर कमरे वाले गलियारे में पहुंचे, उसी समय पीटर हाल चार नम्बर कमरे से निकल कर उनकी बगल से गुजर गया, और टूरिस्ट होटल से बाहर निकल गया और उनके कान पर जूं भी नहीं रेंगी ।
वे दोनों पांच नम्बर कमरे के सामने पहुंचे । जोजेफ ने धीरे से द्वार को भीतर की ओर धकेला । द्वार भीतर से बन्द था ।
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से मुरली की ओर देखा और फिर रिवाल्वर निकाल ली । उसने एक दूसरी जेब से साइलेन्सर निकाला और उसे रिवाल्वर की नाल के आगे स्क्रू कर दिया । फिर उसने गलियारे में दूर तक दृष्टि दौड़ाई ।
गलियारा खाली था ।
उसने साइलेन्सर लगी रिवाल्वर को उस स्थान पर टिकाया जहां चिटखनी होने की सम्भावना थी । उसने दो बार रिवाल्वर का घोड़ा दबाया और साथ ही द्वार को भीतर की ओर धकेला । द्वार तत्काल खुल गया ।
वे दोनों बुगले की तरह भीतर घुसे ।
भीतर बैठा हुआ सुनील फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और उसका हाथ तेजी से कोट के भीतर की ओर बढा ।
“स्टॉप ।” - जोजेफ दांत भींच कर गुर्राया ।
सुनील का रिवाल्वर की ओर बढता हुआ हाथ रुक गया ।
मुरली ने द्वार भीतर से बन्द कर लिया और उसके साथ पीठ लगा कर खड़ा हो गया ।
हड़बड़ाहट के क्षण गुजर जाने के बाद जोजेफ ने सुनील को पहचाना ।
“तुम !” - उसके मुंह से निकल गया ।
“हम लोग वाई डब्ल्यू सी ए के होटल में मिल चुके हैं” - सुनील शान्ति से बोला - “तुम्हारे लीला चौधरी की हत्या करके नीचे उतरने के बाद ही मैं वहां पहुंच गया था ।”
“पीटर हाल कहां है ?” - जोजेफ ने व्यग्र स्वर से प्रश्न किया ।
“मैं उसी की प्रतीक्षा कर रहा हूं” - सुनील लापरवाही से सिगरेट का कश लगाता हुआ बोला - “वह अभी यहां नहीं आया है ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।” - जोजेफ गुर्राया ।
“अगर मैं झूठ बोल रहा हूं तो फिर तलाश कर लो वह कहां है ।” - सुनील बोला ।
उसी क्षण जोजेफ की दृष्टि मेज पर पड़ी । सुनील ने उस की दृष्टि का अनुसरण किया । मेज पर रखी ऐश ट्रे में पीटर हाल का छोड़ा हुआ सिगार का टुकड़ा पड़ा था जो अभी तक सुलग रहा था और उसमें से धुंआ निकल रहा था । फिर जोजेफ की निगाह सुनील के हाथ में थमे सिगरेट पर पड़ी । फिर उसने बगल के दरवाजे की ओर देखा जो आधा खुला था । उसने द्वार के समीप जाकर दूसरे कमरे में झांका और फिर सारी स्थिति उसकी समझ में आ गई ।
“मुरली” - जोजेफ तीव्र स्वर से बोला - “पीटर हाल अभी यहां से गया है । शायद वह वही अंग्रेज था जो रास्ते में हमारी बगल से गुजरा था । मैं सुनील को संभालता हूं । तुम उसके पीछे भागो । शायद वह हाथ लग जाये । सम्भवतः वह दुबारा रेस्टोरेन्ट में ही गया हो ।”
मुरली फौरन कमरे से बाहर निकल गया ।
जोजेफ ने बगल के कमरे का दरवाजा अपनी ओर से बन्द कर लिया । फिर वह सुनील के पास पहुंचा और उसने बड़ी सफाई से उसके शोल्डर होलस्टर में से उसकी रिवाल्वर निकाल ली । उसने सुनील की रिवाल्वर को जेब में डाल लिया और फिर उसके शरीर के विभिन्न भागों को थपथपा कर तसल्ली कर ली कि उसके पास और कोई हथियार नहीं था ।
“बैठ जाओ ।” - वह धीरे से बोला ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
जोजेफ एक अन्य कुर्सी घसीटकर दरवाजे के समीप ले गया । उसने कुर्सी की पीठ को दरवाजे के साथ भिड़ाया और उस पर बैठ गया । उसकी रिवाल्वर का निशाना एक क्षण के लिये भी सुनील की छाती से नहीं हटा था ।
“कोई शरारत मत करना ।” - जोजेफ ने चेतावनी दी ।
सुनील चुप रहा । जोजेफ ने उसे किसी प्रकार की शरारत करने के काबिल छोड़ा ही नहीं था । वैसे भी सुनील का शरारत करने का कोई इरादा नहीं था । जोजेफ मौत के इस खेल का पक्का खिलाड़ी था । उसको धोखा दे पाना सम्भव नहीं था ।
“तुम यहां कैसे पहुंचे ?” - जोजेफ ने प्रश्न किया ।
“तुम मेरा नाम कैसे जानते हो और मुझे पहचानते कैसे हो ?” - सुनील ने जोजेफ के प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर अपना प्रश्न कर दिया ।
जोजेफ के चेहरे पर एक विषैली मुस्कराहट दौड़ गई ।
“तुम तो” - वह बोला - “इस खेल के सीधे साधे नियम भी नहीं जानते हो । सवाल वह किया करता है जिसके हाथ में रिवाल्वर हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम यहां कैसे पहुंचे ?” - जोजेफ ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“चल कर ।” - सुनील शान्ति से बोला - “मुख्य द्वार के रास्ते ।”
“असम्भव !” - जोजेफ बोला - “हमारी निगाहों में आये बिना मुख्य द्वार के रास्ते तुम्हारा यहां तक आ जाना असम्भव था ।”
“तुम लोग कब से यहां की निगरानी कर रहे हो ?”
“साढे नौ बजे से ।”
“मैं तो सवा नौ बजे ही यहां आ गया था ।”
“ओह ।”
“मैं एक सिगरेट सुलगा लूं, जनाब ?” - सुनील ने बड़ी शराफत से पूछा ।
“नहीं ! चुपचाप बैठो ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली । वह फिर नहीं बोला ।
जोजेफ उसकी ओर रिवाल्वर ताने बैठा रहा ।
लगभग आधे घन्टे बाद किसी ने द्वार खटखटाया ।
जोजेफ अपने स्थान से उठा । उसने कुर्सी सरकाई और थोड़ा सा द्वार खोला । रिवाल्वर एक क्षण के लिए भी सुनील की ओर से नहीं हटी और दोनों में फासला इतना था कि सुनील उस पर छलांग भी नहीं लगा सकता था ।
केवल एक क्षण के लिए जोजेफ ने बाहर झांका । बाहर मुरली को खड़ा देखकर उसने द्वार खोल दिया ।
मुरली भीतर प्रविष्ट हो गया । उसने अपने पीछे वाला द्वार बन्द कर दिया ।
“वह निकल गया” - मुरली ने बताया - “हमने हर तरफ तलाश कर लिया है । वह हमें दिखाई नहीं दिया है ।”
जोजेफ चुप रहा ।
कई क्षण कमरे में मौत का सा सन्नाटा छाया रहा ।
अन्त में वह सुनील से बोला - “तुम हमारे साथ चल रहे हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“होटल से बाहर निकलने तक अगर तुमने जरा भी शरारत की तो तुम्हारी जान चली जायेगी । साइलेन्सर लगी इस रिवाल्वर में से कब गोली निकली और कब तुम्हारे शरीर में घुस गई, किसी को खबर भी नहीं होगी । तुम्हें यहां से निकाल ले जाने के तरीके और भी हो सकते हैं लेकिन उनमें तुम चोट खा जाओगे ।”
“मुझे कहां ले जाओगे ?”
“जब पहुंचोगे तो मालूम हो जायेगा ।”
जोजेफ सुनील के समीप पहुंचा । उसने सुनील की बाईं बांह में अपना दायां हाथ डाल दिया । रिवाल्वर की नाल सुनील की पसलियों से सट गई । इस प्रकार रिवाल्वर किसी तीसरे आदमी को दिखाई नहीं दे सकती थी ।
“चलो” - जोजेफ ने आदेश दिया - “और मैं फिर चेतावनी दे रहा हूं । कोई शरारत मत करना ।”
सुनील ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाया और बाहर की ओर चल दिया । मुरली और जोजेफ उसके दायें बायें इस प्रकार चल रहे थे जैसे वे उसके पक्के यार हों ।
तीनों होटल से बाहर निकल आये । वे सकड़ से पार खड़ी एक कार के समीप पहुंचे ।
मुरली कार का अगला द्वार खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया । जोजेफ ने सुनील को पिछली सीट का द्वार खोलने का संकेत किया । सुनील द्वार खोलकर भीतर प्रविष्ट हो गया । जोजेफ भी उसकी बगल में बैठ गया ।
“मुरली” - जोजेफ बोला - “बाकी आदमियों से कहो कि छुट्टी करें । अब यहां पर उनकी जरूरत नहीं है ।”
मुरली फिर कार से बाहर निकल गया ।
पांच मिनट बाद वह वापिस लौटा और ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।
कार चल पड़ी ।
कार कई रास्तों से गुजरती हुई एक उजाड़ इमारत के सामने आकर रुकी ।
तीनों कार से बाहर निकले और इमारत में प्रविष्ट हुए । वे सुनील को एक बड़े से कमरे में ले आये ।
जोजेफ और मुरली द्वार के पास रुक गये । सुनील भी रुका ।
“आगे बढो ।” - जोजेफ ने आदेश दिया ।
सुनील हिचकिचाता हुआ आगे बढा ।
जोजेफ ने रिवाल्वर को नाल की ओर से पकड़ लिया और उसका एक भरपूर वार सुनील की खोपड़ी के पृष्ठ भाग पर किया ।
सुनील के मुंह से सिसकारी भी नहीं निकली और वह धड़ाम से औंधे मुंह फर्श पर जा गिरा ।
उसकी चेतना लुप्त हो चुकी थी ।
जोजेफ ने रिवाल्वर को पतलून की बैल्ट में खोंस लिया । उसने सुनील को पांव से धकेलकर एक ओर कर दिया । फिर वह कमरे के कोने में एक मेज पर पड़े टैलीफोन की ओर बढा ।
उसने फिर हिल्टन इन्टर कान्टीनेन्टल का नम्बर डायल कर दिया ।
सेठ दौलतराम से सम्पर्क स्थापित होते ही वह विनयशील स्वर से बोला - “साहब, मैं जोजेफ बोल रहा हूं । पीटर हाल हमारे हाथ से निकल गया है लेकिन हमने सुनील को पकड़ लिया है । वह इस समय हमारे अधिकार में है ।”
“सुनील पीटर हाल से मिलने में सफल हो गया था ?” - सेठ दौलतराम का कठोर स्वर सुनाई दिया ।
“ज-जी-जी हां ।” - जोजेफ के मुंह से बड़ी मुश्किल से बोल पड़ा फूटा ।
“और तुम्हें खबर भी नहीं हुई ?”
“हमारी गलती नहीं थी, साहब । हमारे टूरिस्ट पर घेरा डालने से पहले से ही सुनील वहां मौजूद था ।
“तुम इस वक्त कहां से बोल रहे हो ?”
“सर शम्भूदयाल रोड वाली इमारत से ।”
“मैं आ रहा हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
जोजेफ ने रिसीवर रख दिया और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगा । उसके चेहरे से घबराहट टपक रही थी ।
वह चुपचाप जाकर मुरली की बगल में बैठ गया ।
सुनील का अचेत शरीर फर्श पर एक ओर लुढका पड़ा था ।
***
किसी ने सुनील के मुंह पर पानी फेंका ।
सुनील ने नेत्र खोले । उसका सिर घूम रहा था । उसने आंखे फिर बन्द कर ली ।
पानी फिर उसके मुंह पर पड़ा ।
सुनील ने फिर आंखे खोल दी । उसने बड़ी कठिनाई से अपने आप पर काबू किया और फिर कमरे में दृष्टि दौड़ाई ।
मुरली उसके सिर पर हाथ में पानी की बाल्टी लिये खड़ा था । उसकी बगल में जोजेफ खड़ा था । वह अभी भी हाथ में साइलेन्सर लगी रिवाल्वर थामे हुए था ।
उन दोनों के पीछे एक कुर्सी पर बैठा हुआ सुनील को तीसरा आदमी दिखाई दिया । शानदार काले सूट और उस रंग की फैल्ट हैट से सुसज्जित वह आदमी बेहद आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था । वह स्थिर नेत्रों से सुनील को देख रहा था ।
जोजेफ ने बांह पकड़कर उसे उठाया और उसे एक अन्य कुर्सी पर बिठा दिया । फिर उसने जबरदस्ती सुनील के हाथ में एक गिलास थमा दिया और आदेश दिया - “एक ही सांस में पी जाओ ।”
सुनील ने आदेश का पालन किया । नीट ब्रांडी उसके गले से आग सी लगाती हुई गुजर गई । लेकिन शीघ्र ही उसने अपना प्रभाव दिखाया । उसके चेहरे पर लाली आ गई और फिर धीरे धीरे उसके नेत्रों के सामने से अन्धकार के बादल छंट गये । उसने अपने सिर को उस स्थान पर टटोला, जहां रिवाल्वर की चोट पड़ी थी । वहां एक बड़ा गूमड़ बालों से बाहर निकल आया था ।
“हाउ डू यू फील नाउ ?” - हैट वाले ने पूछा ।
सुनील ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा और फिर स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया । वह मुंह से कुछ नहीं बोला । उसने कांपते हाथों से अपनी जेब में से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“तुम लोग बाहर जाओ ।” - हैट वाले ने आदेश दिया ।
जोजेफ हिचकिचाया ।
हैट वाले ने कठोर नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
जोजेफ तत्काल बाहर निकल गया । मुरली ने उसका अनुसरण किया ।
द्वार बन्द हो गया ।
“एकदम तीसरे दरजे के लोग हैं ये” - हैट वाला सहानुभूति पूर्ण स्वर से बोला - “मार-पीट का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते ।”
सुनील चुपचाप सिगरेट के कश लगाता रहा ।
“मेरा नाम दौलतराम है” - वह बोला - “शायद तुमने मेरा नाम सुना हो ।”
“नाम भी सुना है और अखबारों में तसवीरें भी देखी हैं ।”
“वैरी गुड ।”
“बहुत खुशी हुई आपसे मिल कर ।” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“खुशी जाहिर करने का अभी मुनासिब मौका नहीं आया है ।” - सेठ गम्भीरता से बोला - “मुझ से अच्छी तरह मिल चुकने के बाद ही तुम यह नतीजा निकालने की स्थिति में पहुंचोगे कि तुम्हें मुझ से मिलकर खुशी हुई है या नहीं ।”
सुनील चुप रहा ।
“सूरत शक्ल से तुम बहुत समझदार आदमी मालूम होते हो, इसलिये मैं तुमसे आशा करता हूं कि तुम मुझे असावधान पाकर मुझ पर हमला करने जैसी कोई बचकानी हरकत नहीं करोगे ।” - सेठ एक क्षण चुप रहा और फिर बोला - “अगर तुम्हारा ऐसा कोई इरादा हो तो मैं जोजेफ को बुला लूं ताकि वह रिवाल्वर लेकर तुम्हारे सिर पर खड़ा रहे । वाट डू यू से ?”
“आई विल बिहेव ।” - सुनील बोला । उसे सेठ दौलतराम बहुत खतरनाक आदमी मालूम हुआ ।
“थैंक्यू ।” - सेठ सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाता हुआ बोला - “मुझे तुमसे यही आशा थी । वैसे भी एक पढे लिखे समझदार और मान मर्यादा वाले आदमी से बात करते समय मैं जोजेफ जैसे किसी घटिया आदमी की मौजूदगी पसन्द नहीं करता हूं ।”
“बड़ी अच्छी आदत है ।”
“मिस्टर सुनील, शायद तुम्हें यह सुन कर हैरानी हो कि ब्लास्ट के क्राइम रिपार्टर होने के अलावा तुम क्या हो, मैं वह भी जानता हूं ।”
“मैं सुन रहा हूं ।” - सुनील धैर्य पूर्ण स्वर से बोला ।
“तुम सी आई बी की एक ब्रांच स्पेशल इन्टैलीजेंस के एक एजेन्ट भी हो ।”
सुनील चौंक पड़ा । बहुत कोशिश करने के बावजूद भी वह अपने चेहरे पर उभर आये हैरानी के भाव छुपाने में सफल नहीं हो सका ।
“मैं देख रहा हू्ं कि तुम्हें वाकई हैरानी हुई है । तुम्हारी जानकारी के लिये मैं तुम्हारे बास और स्पेशल इन्टैलीजेन्स के चीफ कर्नल मुखर्जी को तबसे जानता हूं जब से वे सी आई बी(सैन्ट्रल इन्टैलीजेंस ब्यूरो) के डिप्टी डायरेक्टर थे और जब स्पैशल इन्टैलीजेंस का अस्तित्व भी नहीं था ।”
“आप कैसे जानते हैं ?” - सुनील के मुंह से अपने आप निकल गया - “जब कि आम आदमी को तो स्पेशल इन्टैलीजेन्स के अस्तित्व की भी जानकारी नहीं है ।”
सेठ मुस्कराया और फिर बोला - “जानकारी हासिल करने के मेरे अपने सोर्स हैं, मेरे अपने तरीके हैं । उनके बारे में मैं किसी दूसरे आदमी को नहीं बताना चाहता ।”
“आई सी” - सुनील से बोला - “लेकिन आप कम से कम कम यह तो बताइये कि आप सेठ दौलतराम होने के अतिरिक्त और क्या हैं ?”
“इस का अनुमान भी तुम्हें खुद ही लगाना पड़ेगा ।”
“आपकी पीटर हाल में क्या दिलचस्पी है और आपके आदमियों ने लीला चौधरी नाम की लड़की को क्यों मार डाला है ?”
“धीरे धीरे तुम्हें सब कुछ मालूम हो जायेगा ।”
“और आप मुझ से क्या चाहते हैं ?”
“वही बताने जा रहा हूं लेकिन भगवान के लिये मतलब की बात तक मुझे अपने तरीके से पहुंचने दो ।”
सुनील चुप हो गया । उसने पहले सिगरेट के टुकड़े से ही एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“पीटर हाल से तुम्हारी क्या बात हुई थी ?” - सेठ ने नम्रता से प्रश्न किया ।
सुनील चुप रहा ।
“तुम्हारा उत्तर देने का इरादा नहीं मालूम होता ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम मुझे मजबूर कर रहे हो कि मैं तुमसे अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिये टार्चर जैसे बर्बरतापूर्ण तरीकों का सहारा लूं ।”
सेठ दौलतराम की नम्रता में भी एक विचित्र प्रकार की क्रूरता और हृदयहीनता का पुट था ।
“बेशक तुम बहुत बहादुर हो लेकिन मिस्टर सुनील, बहादुर से बहादुर और मजबूत से मजबूत आदमी की सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है और उसके बाद वह आदमी टूट जाता है । जोजेफ कई मामलों में बहुत करामाती आदमी है । दूसरे को तकलीफ में देखकर उसे एक विचित्र प्रकार के आनन्द का अनुभव होता है । टार्चर के नये नये तरीके आविष्कार करने के मामले मैं उसे तुम संसार का सबसे बड़ा आविष्कारक समझो । अगर उसे तुम पर अपने आविष्कारों का प्रयोग करने का अवसर दिया गया तो उसे बेहद खुशी होगी ।”
सुनील को चुप रहने में कोई लाभ नहीं दिखाई दिया । पीटर हाल ने उसे अभी विशेष उसे कुछ बताया नहीं था और जो कुछ उसने बतया था उसकी जानकारी किसी तीसरे आदमी को भी हो जाने से कोई अन्तर नहीं पड़ता था ।
“वैसे जो कुछ तुम मुझे बताने वाले हो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं, उसमें से नब्बे प्रतिशत मुझे पहले ही मालूम है ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि जैसे मैं यह जानता हूं कि पीटर हाल ने तुम्हें यह सूचना दी है कि भारतीय सीक्रेट सर्विस का एजेन्ट नगेन्द्र सिंह चौधरी जो चार साल पहले भारत को धोखा देकर चीन से जा मिला था । वह अब चीन में से भी निकल भागा है ।”
सुनील के नेत्र फैल गये ।
“पीटर हाल ने तुम्हें यह बताया है कि चौधरी इस समय कहां छपा हुआ है ?” - दौलतराम ने पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बोला - “लेकिन उनकी बातों से मुझे ऐसा लगा था कि दौलतराम हांगकांग में ही कहीं है ।”
“करैक्ट । तुम्हारा अनुमान एकदम ठीक है । चौधरी हांगकांग में ही कहीं छुपा हुआ है । लेकिन कहां है इस बात का पता नहीं लग पाया है । तुम कभी हांगकांग गये हो ?”
“गया हूं ।”
“तो तुम्हें मालूम होगा कि हांगकांग के समुद्र में विशेष रूप से अबरदीन हार्बर में हजारों लाखों बजड़े तैरते रहते हैं जो मकाऊ के रास्ते लाल चीन से भाग कर आये हुए हैं चीनी रिफ्यूजियों के स्थायी निवास स्थान हैं । हांगकांग की जमीन पर इतनी जगह नहीं है कि हांगकांग की सारी आबादी वहां रह सके । इसलिये आधे से अधिक लोग समुद्र के पानी में तैरते हुए बजड़ों पर रहते हैं । अनुमान यह है कि उन्हीं लाखों बजड़ों में से एक में नगेन्द्र सिंह चौधरी छुपा हुआ है । एक-एक बजड़े की तलाशी ले पाना असंभव काम है । समु्द्र में बजड़ों के मालिक अपने बजड़ों को तैराकर इधर उधर ले जाते हैं और फिर उन्हें नई जगह ले जाकर खड़ा कर लेते हैं । इस प्रकार बजड़ों की स्थिति हमेशा बदलती रहती है । बजड़ो की तलाशी ली भी जाये तो होता यह है कि कई बजड़ों तक तो पुलिस बिल्कुल नहीं पहुंच पाती और कई तीन तीन, चार चार बार सर्च करा लिये जाते हैं और मजेदार बात यह है कि तलाशी लेने वालों को अक्सर एक बजड़े और दूसरे बजड़े में फर्क मालूम नहीं होता ।”
सेठ दौलतराम फिर कुछ क्षण रुका और फिर बोला - “पीटर हाल क्या चाहता है ?”
“चौधरी का पता बताने के बदले में वह पांच लाख अमरीकन डालर चाहता है ।”
“तुमने उससे क्या कहा है ?”
“मैंने उससे कहा है कि मैं अपने चीफ से पूछ कर जवाब दूंगा कि हमें सौदा मंजूर है या नहीं ।”
“मैं समझता था कि पीटर हाल टूरिस्ट होटल में ठहरा हुआ है जबकि वास्तव में उसने टूरिस्ट होटल को तुम से बात करने के लिये चुना था । अब पीटर हाल कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
सेठ दौलतराम ने घूर कर उसकी ओर देखा ।
सुनील भी उसी तरह निडर भाव से उसके नेत्रों में झांकता रहा ।
“तुम अपना जवाब देने के लिये उससे सम्पर्क कैसे स्थापित करोगे ?”
“वह कल शाम को पांच बजे मुझे मेरे फ्लैट पर फोन करेगा ।”
“आई सी ।” - सेठ दौलतराम सोचता हुआ बोला - “आई सी ।”
“धन हासिल हो जाने के बाद पीटर डाल तुम्हें चौधरी का पता बता देगा ?”
“या पता बता देगा और या फिर मुझे चौधरी के पास तक ले चलेगा ।”
“अब मिस्टर सुनील तुम वह बात सुनो जिस की वजह से मैं इतनी रात को यहां दौड़ा दौड़ा आया हूं ।”
“सुनाइये । जो बात मर्जी सुनाइये । मैं तो आप ही की बातें सुन रहा हूं ।”
“मैं तुम्हारे सामने एक सौदा रखने वाला हूं । अगर तुम्हें वह सौदा मंजूर हुआ तो तुम जीवित रहोगे और अगर तुम्हारी राष्ट्र प्रेम की भावनाओं ने बहुत जोर मारा और तुमने वह सौदा अस्वीकार कर दिया तो जोजेफ तुम्हारा अभी काम कर देगा । कहने का मतलब यह है कि अगर तुम जिन्दा रहना चाहते हो तो तुम्हें मेरी बात स्वीकार करनी पड़ेगी ।”
सुनील ने सिग्रेट का बचा हुआ टुकड़ा जमीन पर फेंक दिया वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ उसने बड़ी लापरवाह से एक अंगड़ाई ली और बोला - “सौदा क्या है ?”
और साथ ही उसने लड़खढाने का अभिनय करते हुए एक कदम दौलतराम की ओर बढाया ।
“अपनी जगह पर बैठ जाओ ।” - दौलतराम तीव्र स्वर से बोला ।
“आप कोई महत्वपूर्ण बात करने वाले हैं ।” - सुनील विस्मयपूर्ण स्वर से बोला - “क्या आप यह नहीं चाहते हैं कि मैं और आप समीप आकर बैठूं ?”
“जहां बैठे थे, वहीं बैठ जाओ । मेरी आवाज तुम तक पहुंच जायेगी । मुझे बच्चा मत समझो और होशियारी दिखाने का भी कोई वक्त होता है कोई तरीका होता है ।”
और फिर सुनील को दौलतराम के हाथ में एक खिलौने जैसी खूबसूरत रिवाल्वर दिखाई दी ।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर उसी कुर्सी पर बैठ गया ।
“मुझे क्या करना होगा ?” - उसने पूछा ।
“कल शाम को पांच बजे जब पीटर हाल तुम्हें फोन करे तो तुम उसे बताओगे कि उसकी मांग स्वीकार कर ली गई है । फिर तुम पीटर हाल से मिलोगे । पीटर हाल को देने के लिये पांच लाख अमेरिकन डालर तुम्हें मैं दूंगा । पीटर हाल यह समझेगा कि तुम अभी भी सीक्रेट सर्विस के लिये काम करते हो और पांच लाख डालर उसे कर्नल मुखर्जी से ही मिल रहे हैं । तुम भी कोई ऐसी हरकत नहीं करोगे, जिससे वह इसके विपरीत समझे । फिर पीटर हाल या तो तुम्हें चौधरी का पता बतायेगा और या फिर वह तुम्हें अपने साथ चौधरी तक ले जायेगा । पीटर हाल की सहायता से तुम्हें चौधरी तक पहुंचना है और फिर उसकी सूरत देखते ही तुम्हें उसकी हत्या कर देनी है ।”
“हत्या !”
“हां । तत्काल । तुम्हें उससे कुछ पूछना नहीं । तुमने उससे कुछ सुनना नहीं । तुम्हें फौरन उसकी हत्या कर देनी है । बाद में तुम्हें उसके पास जो कागजात वगैरह मिलें वे तुम्हें मेरे पास ले आने हैं । समझ गये ।”
“चौधरी से आपका क्या वास्ता है ? उसकी हत्या से आपको क्या मिलेगा ?”
“फालतू सवाल मत पूछो । तुम्हें इन बातों से कोई मतलब नहीं होना चाहिये ।”
“इस सेवा के बदले मुझे क्या मिलेगा ?”
“तुम्हें अपनी जिन्दगी मिलेगी ।”
“बस ।”
“यह क्या कम है ?”
“काफी है । लेकिन आप सौदे की बात कर रहे थे । मेरा ख्याल था कि में आपके लिये कुछ करूंगा और बदले में आप मेरे लिये कुछ करेंगे ।”
“अगर तुम मेरे साथ इमानदारी से पेश आये और अपने काम में सफल हो गये तो बदले में मैं तुम्हें दस लाख रुपये दूंगा ।”
सेठ दौलतराम ने इतने सहज भाव से दस लाख रुपये का जिक्र किया जैसे किसी को दस रुपये चन्दा देने की बात कर रहा हो ।
“मुझे सौदा मंजूर है ।” - सुनील बोला ।
“गुड ।” - सेठ दौलतराम संतुष्ट स्वर से बोला - “कल मैं एक छोटी सी सावधानी बरतना चाहता हूं । आखिर मुझे इस बात का भी तो इन्तजाम करना है कि तुम मेरे प्रति ईमानदार बने रहो । मैं यह तो नहीं होने दूंगा कि तुम यहां से विदा होने के बाद सीधे कर्नल मुखर्जी के पास पहुंच जाओ और फिर मेरे सारे किए कराये पर पानी फेर दो ।”
“आप क्या करोगे ?”
उसने उत्तर नहीं दिया । उसने अपने चरणों के पास रखा हुआ एक छोटा से ब्रीफकेस उठाया । उसमें से उसने एक इन्जेक्शन की वायल और एक छोटी सी सिरिंज निकाली । वायल तोड़कर वायल का तरल पदार्थ सिरिंज में भरा और बोला - “विश्वास था कि तुम मेरे लिये काम करना स्वीकार कर लोगे और इसलिये मैं पहले ही तैयार होकर आया था ।”
“यह क्या है ?” - सुनील ने सन्दिग्ध स्वर में पूछा ।
“यह एक इन्जेक्शन हैं जो मैं तुम्हें देना चाहता हूं । ...और घबराओ नहीं इससे तुम मरोगे नहीं । एकाएक तुम मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण आदमी हो उठे हो । मुझे तुम्हारी जिन्दगी प्यारी है । वैसे भी मैंने जब तुम्हें मारना होगा तो मैं इतना बखेड़ा नहीं करूंगा । मैं तुम्हें सीधे-साधे शूट कर दूंगा ।”
सुनील शंकित नेत्रों से सेठ की और देखता रहा । वह मुंह से कुछ नहीं बोला ।
“मैं यह इन्जेक्शन तुम्हें लगाना चाहता हूं । अगर तुम्हारा कोई शरारत का इरादा हो तो मैं जोजेफ को बुला लूं ?” - सेठ ने पूछा ।
“इन्जेक्शन कहां लगायेइगा ? मेरा मतलब है कोट उतारूं या पतलून ?” - सुनील प्रत्यक्षत शान्त स्वर से बोला ।
“कोट उतारो और कमीज की बांह ऊंची कर लो ।”
सुनील ने आज्ञा का पालन किया ।
दौलतराम ने रिवाल्वर निकाल कर बांह हाथ में ले ली । उसने दांये हाथ में सिरिंज सम्भाली और फिर सावधानी से सुनील के समीप पहुंच गया । उसने बड़ी क्रूरता से एक ही हाथ से सुनील की बांह में इन्जेक्शन घुसेड़ दिया । फिर वह सुनील से अलग हट गया ।
सुनील ने कमीज की बांह नीची करके कोट दुबारा पहन पहन लिया ।
“इस समय दो बजे हैं ।” - सेठ दौलतराम अपनी कलाई पर बंधी सोने की घड़ी पर दृष्टिपात करता हुआ बोला - “तुम तीन घन्टे पूरा आराम कर सकते हो । कोने में पड़े सोफे पर सो जाओ । जोजेफ तुम्हारे लिये कम्बलों का इन्तजाम कर देगा ।”
“तीन घन्टे बाद क्या होगा ?”
“उसकी बेहतर जानकारी तुम्हें तीन घन्टे बाद ही होगी । मैं जाता हूं । पांच बजे फिर हाजिर हो जाऊंगा । तब तक जोजेफ तुम्हारी हर प्रकार की सेवा करेगा ।”
सेठ दौलतराम ने सिरिंज को ब्रीफकेस में रखा ब्रीफकेस उठाया और लम्बे डग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
लगभग फौरन बाद ही जोजेफ भीतर प्रविष्ट हुआ ।
सुनील सोच रहा था ।
पता नहीं सेठ दौलतराम उसे किस चीज का इन्जेक्शन दे गया था । वैसे अभी तक उसने इन्जेक्शन का किसी प्रकार का कोई प्रभाव स्वयं पर अनुभव नहीं किया था ।
और फिर पांच बजे क्या होने वाला था ।
***
सुनील बोझिल पलकें होने के बावजूद भी सोना नहीं चाहता था । वह केवल आंखें बन्द किये सोये होने का अभिनय करता रहा । लेकिन जब भी उसने आंखे खोलीं उसने जोजेफ को हाथ में रिवाल्वर थामे अपनी ओर देखता पाया ।
अन्त में यह फैसला करके कि सतर्कता और सावधानी की प्रतिमूर्ति बने जोजेफ को धोखा देकर वहां से निकल पाना असम्भव था । सुनील ने स्वयं को नींद के हवाले कर दिया ।
पता नहीं उसे कब नींद आ गई ।
फिर एकाएक वह यूं चिहूंक कर उठा जैसे किसी ने नश्तर चुभो दिया हो । उसका दिल धड़ाक धड़ाक धड़कने लगा उसकी नब्ज तेज चलने लगी । सांस धौंकनी की तरह चलने लगी । चेहरा पसीने से डूब गया । उसे बुरी तरह हड़बड़ाहट होने लगी । हर क्षण उसे यूं लगने लगा जैसे अभी उसके प्राण निकल जायेंगे ।
“पानी ! पानी !” - वह हांफता हुआ बोला ।
उसे अपने शरीर में अपनी मर्जी से अपने हाथ पांव हिलाने की शक्ति नहीं महसूस हो रही थी ।
किसी ने पानी का गिलास उसके मुंह से लगा दिया ।
सुनील गटागट पानी पी गया । लेकिन उसकी स्थिति में कोई अन्तर नहीं आया । अपने दिल के तेजी से धड़कने की आवाज उसे नगाड़ों की तरह अपने कानों में बजती सुनाई दे रही थी ।
फिर उसके नेत्र मुंदने लगे । उसका मुंह लटक गया । जिस सोफे पर वह सोया हुआ था, उसी पर वह दुबारा गिर गया और मछली की तरह तड़पने लगा ।
फिर किसी ने उसे सहारा देकर उठाया । किसी ने जबरदस्ती उसके मुंह में एक गोली रख दी और उसे पानी पीने को कहा ।
सुनील ने पानी के साथ वह गोली निगल ली ।
फिर जैसे एक वेगवान तूफान एकाएक थम गया ।
सुनील की उखड़ी उखड़ी सांस व्यवस्थित होने लगी । घबराहट कम होने लगी । पसीना आना बन्द हो गया । दिल की धड़कन ठीक हो गई ।
पांच मिनट के बाद वह एकदम ठीक हो गया । मौत का हल्ला एक डरावने सपने की तरह गुजर गया था ।
सबसे पहले उसने एक सिगरेट सुलगाया और फिर अपने आसपास देखा ।
जोजेफ और मुरली एक ओर खड़े थे ।
सेठ दौलतराम उसके सामने खड़ा था और बड़ी गौर से उसके चेहरे के हर उतार चढाव को नोट कर रहा था ।
“कैसी तबीयत है ?” - उसने सहानुभूतिपूर्ण स्वर से पूछा ।
“ठीक है ।” - सुनील सिगरेट का एक कश लेकर ढेर सारा धुआं उगलता हुआ बोला ।
“क्या टाइम हुआ है ?” - सेठ दौलतराम अर्थपूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील ने अपनी कलाई पर बन्धी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
पांच बजकर पांच मिनट हुए थे ।
हे भगवान ! तो पांच बजे यह कुछ होने वाला था ।
“तुम समझ ही गये होगे कि तुम्हारी यह हालत उस इन्जेक्शन से हुई थी ।” - सेठ बोला - “जो मैंने तुम्हें दो बजे दिया था और तुम्हारी जिन्दगी उस गोली की वजह से बची है जो तुम्हें एक मिनट पहले खिलाई गई है । मिस्टर सुनील उस इन्जेक्शन की वजह से दस दिन तक हर तीन घन्टे बाद फिर आपकी ऐसी ही हालत हो जाया करेगी और अगर कभी भी आपको वह गोली नहीं मिली जो अभी आपको खिलाई गई थी, तो आपको हार्टफेल हो जायेगा ।”
सुनील सिहर उठा ।
“यह इन्तजाम इसलिये किया गया है ताकि तुम हमें धोखा देकर भाग निकलने की कोशिश न करो । वैसे तो मुरली और जोजेफ हर समय साये की तरह तुम्हारे पीछे लगे रहेंगे । इसके बावजूद भी तुम भाग निकले तो तुम तीन घन्टे से ज्यादा नहीं जी सकोगे ।”
“क्या इन्तजाम है !” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्या किया जाये ?” - सेठ दौलतराम हाथ फैला कर बोला - “आज के जमाने में जुबान के पक्के आदमी कहां मिलते हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“जोजेफ हर तीन घन्टे बाद तुम्हें एक गोली दिया करेगा जो तुम्हारी जिन्दगी को तीन घन्टे आगे तक घसीटने के लिये एक तरह से ईंधन का काम करेगी । दस दिन बाद इन्जेक्शन का प्रभाव स्थायी रूप से समाप्त हो जायेगा और उसके बाद तुम्हें इन गोलियों की जरूरत नहीं रहेगी । लेकिन तब तक मेरा काम भी हो जायेगा ।”
सुनील कुछ नहीं बोला । उसका बहुत चालाक व्यक्ति से वास्ता पड़ा था ।
सेठ दौलतराम उठ खड़ा हुआ ।
“मैं जाता हूं । तुम भी आराम करो । शाम को तुमने पीटर हाल से मिलना है । अच्छा यही होगा कि तब तक तुम यहीं रहो । जोजेफ तुम्हारी हर जरूरत पूरी कर देगा ।”
सुनील ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सेठ दौलतराम एक बादशाह की तरह चलता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
सुनील दिन भर उस इमारत में सोता रहा ।
हर तीन घन्टे बाद सुनील पर मौत का हमला होता । कुछ क्षण उसको अपने प्राण हाथों से निकलते मालूम होते, फिर जोजेफ उसे बड़ी शराफत से एक गोली दे देता । गोली खा लेने के दो मिनट बाद ही उस ऐसा अनुभव होता जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं ।
मुरली और जोजेफ बहुत सावधान थे और जेलरों की तरह उसकी निगरानी कर रहे थे । सेठ दौलतराम ने इन्जेक्शन वाली सावधानी न भी बरती होती तो भी सुनील का उन लोगों के चंगुल से निकल पाना असम्भव था ।
चार बजे जोजेफ बाहर से वापिस लौटा ।
“सेठ दौलतराम का क्या ख्याल है” - जोजेफ बोला - “कि शायद तुम्हारा बास तुम्हें तलाश करवा रहा हो । इसीलिये शायद तुम्हारे फ्लैट की भी निगरानी हो रही हो । इसलिये तुम्हारा पीटर हाल की काल रिसीव करने के लिये अपने फ्लैट पर जाना उचित नहीं है ।”
“फिर मैं पीटर हाल से सम्पर्क कैसे स्थापित करूगा ?” - सुनील बोला - “अगर पांच बजे मेरी उससे फोन पर बातचीत न हुई तो वह शायद कर्नल मुखर्जी को फोन कर दे ।”
“मैं मुरली को तुम्हारे फ्लैट पर भेज रहा हूं । पांच बजे वह तुम्हारे फ्लैट पर पीटर हाल की काल रिसीव कर लेगा और उसे तुम से सम्पर्क स्थापित करने के लिये यहां के टेलीफोन का नम्बर दे देगा ।”
“आल राइट !” - सुनील तनिक विचलित स्वर से बोला ।
मुरली चला गया ।
सुनील प्रतीक्षा करने लगा ।
ठीक पांच बजकर पांच मिनट पर वहां के टैलीफोन की घन्टी बजी ।
जोजेफ ने आगे बढकर रिसीवर उठा लिया । थोड़ी देर वह फोन सुनता रहा और फिर उसने रिसीवर सुनील की ओर बढा दिया ।
“पीटर हाल का फोन है ।” - वह बोला ।
सुनील ने रिसीवर ले लिया और उसे कान से लगाता हुआ बोला - “हल्लो । सुनील बोल रहा हूं ।”
“मिस्टर सुनील” - पीटर हाल का व्यग्र स्वर सुनाई दिया - “तुम मुझे पहले वाले टेलीफोन नम्बर क्यों नहीं मिले ?”
“उस टैलीफोन पर हमारी बातें सुन ली जाने की सम्भावना थी । सुरक्षा की दृष्टि से मेरे चीफ ने मुझे इस टैलीफोन को इस्तेमाल करने की राय दी थी ।”
“पहला टैलीफोन कहां का था ?”
“वह एक रेस्टोरेन्ट का फोन नम्बर था ।”
“आई सी । तो तुम्हारा जवाब क्या है ?”
“हमें सौदा मंजूर है । हम तुम्हें पांच लाख डालर देने के लिये तैयार हैं ।”
“थैंक्यू ।” - पीटर हाल की एक गहरी सांस सुनाई दी - “थैंक्यू वैरी मच । अब मैं बाकी बातें करने के लिये तुम से मिलना चाहता हूं ।”
“कहां ?”
“तुम छः बजे एयर इन्डिया बुकिंग आफिस में पहुंच जाना । मैं तुम्हें वेटिंग रूम में बैठा मिलूंगा ।”
“ओके ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर रख दिया और जोजेफ से बोला - “उसने एयर इन्डिया के बुकिंग आफिस में बुलाया है ।”
“मुरली को आ जाने दो ।” - जोजेफ बोला ।
“उसने छः बजे आने के लिये कहा है ।”
“तो फिर क्या है ? एयर इन्डिया का बुकिंग आफिस का यहां से केवल दस मिनट का फासला है ।”
सुनील चुप हो गया ।
पौने छः बजे मुरली वापिस लौटा ।
वे कार पर सवार हुए और एयर इन्डिया के बुकिंग आफिस पहुंच गये ।
मुरली कार में ही बैठा रहा । सुनील और जोजेफ कार से बाहर निकल आये ।
“शायद तुम्हारी मौजूदगी में पीटर हाल मुझसे बात करना पसन्द न करे ।” - सुनील ने संशय व्यक्त किया ।
“घबराओ नहीं ।” - जोजेफ भोला - “मैं तुम से दूर रहूंगा ।”
जोजेफ ने उसे वेटिंग हाल में पहले प्रवेश हो लेने दिया ।
पीटर हाल एक कोने में बैठा हुआ था ।
सुनील उसकी बगल में जा बैठा ।
“हल्लो ।” - सुनील बोला ।
“हल्लो !” - पीटर हाल बोला ।
थोड़ी देर बाद जोजेफ भी हाल में प्रविष्ट हुआ । वह बिना सुनील की दिशा में दृष्टिपात किये उनसे दूर हट कर बैठ गया । उसका हाथ अपने कोट की दाईं जेब में था जिसमें शायद रिवाल्वर थी ।
“अब तो बताओ, नगेन्द्र सिंह चौधरी कहां है ?” - सुनील बोला ।
“हांगकांग में ।” - उत्तर मिला ।
“मेरा भी यही ख्याल था । अगर तुमने किसी और जगह का नाम लिया होता तो मुझे बड़ी हैरानी होती ।”
“तुम बहुत समझदार आदमी हो ।”
“हांगकांग में कहां है वह ?”
“मैं तुम्हें वहां ले चलूंगा ।”
“तुम भी हांगकांग जाओगे ?”
“मैंने तो हर हाल में वहां जाना है । मैं तो वहीं का रहने वाला हूं ।”
“तुम चौधरी के सम्पर्क में कैसे आ गये ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
पीटर हाल कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मैं हांगकांग में ब्लू हैवन नाइट क्लब में वेटर था । वहां मुझे पिलानग पोख नाम का एक थाईलैंड वासी मिला था । उसी ने मुझे कहा था कि अगर मैं नगेन्द्र सिंह चौधरी का पता लेकर भारत चला जाऊं तो मुझे ढेर सारा धन मिल सकता है ।”
“पीटर हाल” - सुनील तीव्र स्वर से बोला - “इसका मतलब तो यह हुआ कि वास्तव में तुम चौधरी से खुद नहीं मिले हो । तुम खुद यह नहीं जानते हो कि चौधरी कहां है ?”
“यह बात नहीं” - पीटर हाल ने विरोध किया - “मैं इस सारे सिलसिले के सम्पर्क में जरूर पिलानंग पोख की वजह से आया हूं लेकिन मैं चौधरी से मिला हूं और और मैं वह स्थान भी जानता हूं, जहां चौधरी छपा हुआ है । सबूत के तौर पर यह देखो ।”
और उसने अपनी जेब में एक तस्वीर निकाल कर सुनील के सामने रख दी ।
सुनील ने देखा वह तसवीर चौधरी और पीटर हाल की थी । चौधरी को सुनील बहुत मुश्किल से पहचान पाया । चार साल पहले के चौधरी में और तसवीर वाले चौधरी में बहुत अन्तर था । तसवीर वाला चौधरी बेहद कमजोर और बूढा इन्सान लग रहा था ।
“यह तस्वीर” - पीटर हाल बोला - “पिलानंग पोख ने खींची थी । उसी ने यह तस्वीर साथ ले जाने को कहा था ताकि मैं सम्बन्धित लोगो को विश्वास दिला सकूं कि चौधरी के बारे में मैं जो कह रहा हूं, सच कह रह रहा हूं ।”
“लेकिन यह भी तो सम्भव है कि चौधरी मर चुका हो और तुम्हें भी मालूम हो कि चौधरी मर चुका है और तुम केवल धोखे से रुपया ऐंठने की खातिर भारत चले आये हो तो ।”
“तुम यह भूल रहे हो कर्नल मुखर्जी का नाम और टैलीफोन नम्बर मुझे चौधरी के सिवाय और कोई नहीं बता सकता था ।”
“मान लिया लेकिन सम्भव है कि चौधरी कर्नल मुखर्जी का नाम और नम्बर वगैरह बताने के बाद मर गया हो ।”
“मैं चौधरी से तीन दिन पहले मिला था और उस मुलाकात के फौरन बाद ही मैं भारत की ओर रवाना हो गया था । अगर इस बीच चौधरी मर गया हो तो मैं क्या कर सकता हूं ।”
पीटर हाल सच कह रहा था ।
“तुम्हारा भारत आने का खर्चा किसने उठाया है ?”
“पिलानंग पोख ने ।”
“यह पिलानंग पोख है क्या बला ?”
“मैं उसके बारे में विशेष कुछ नहीं जानता । मुझे केवल इतना मालूम है कि वह एक अमीर आदमी है । थाईलैंड का है लेकिन अरसे से हांगकांग में रह रहा है । ब्लू हैवन नाइट क्लब में वह रोज आया करता था ।”
“वह चौधरी को कैसे जानता है ?”
“मुझे क्या मालूम ।”
“यह तस्वीर रख लूं ?”
“रख लो । मैंने अब क्या करना है इसका ।”
सुनील ने तसवीर अपने कोट की जेब में रख ली ।
दूर बैठा हुआ जोजेफ सुनील का एक एक एक्शन नोट कर रहा था ।
“मैंने कल रात दस बजे के एयर इन्डिया के प्लेन से हांगकांग के लिये अपनी सीट बुक करवा ली है । तुम भी उस प्लेन से मेरे साथ हांगकांग चलोगे ।” - पीटर हाल बोला ।
“लेकिन यह कैसे सम्भव है ?” - सुनील ने विरोध किया - “इतनी जल्दी तो मेरा पासपोर्ट वगैरह भी तैयार नहीं हो सकता ।”
“तुम सरकार से सम्भन्धित आदमी हो । तुम्हारे लिये सब कुछ बहुत जल्दी हो सकता है ।”
“लेकिन सम्भव है कल दस बजे के प्लेन में मुझे सीट न मिले । यह हिंदुस्तान है । यहां कई-कई दिन पहले प्लेन की सारी सीटें बुक हो जाती हैं ।”
“जो लोग तुम्हें इतनी जल्दी पासपोर्ट और सफर के दूसरे कागजात दिलवा सकते हैं वे कल दस बजे के प्लेन में तुम्हारी सीट का भी इन्तजाम कर सकते हैं ।”
“लेकिन अभी तुमने हमसे पांच लाख डालर की रकम भी लेनी है ।”
“मैं इतना मूर्ख नहीं हूं कि पांच लाख अमेरिकन डालर की भारी रकम मैं तुमसे हिन्दोस्तान में लूं ।”
“क्या मतलब ?”
“क्या मैं पांच लाख अमेरिकन डालर अपने संग में रख कर कस्टम से निकाल कर हांगकांग ले जा सकता हूं ।”
“तो फिर क्या करोगे ?”
“यह रकम तुम मुझे हांगकांग पहुंचने के बाद दोगे ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?”
“क्यों नहीं हो सकता ? गवर्नमेंट लैवल पर तुम जो चाहो हो सकता है । तुम हांगकांग में अपने डिप्लोमेटिक मिशन के माध्यम से हांगकांग में यह रकम मुझे दिलवाने का इन्तजाम कर सकते हो ।”
“मैं चीफ से बात करूंगा और फिर तुम्हें बताऊंगा । दुबारा मैं तुम्हें कहां मिलूं ?”
“दुबारा तो अब मैं तुम्हें हवाई अड्डे पर ही मिलूंगा । उससे पहले मैं तुमसे मिलने की जरूरत महसूस नहीं करता क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि धन का इन्तजाम मेरे बताये ढंग से हो जायेगा ।”
पीटर हाल उठ खड़ा हुआ ।
“मैं तुम्हें कल रात को दस बजे हांगकांग को रवाना होने वाले एयर इन्डिया के प्लेन पर मिलूंगा ।” - वह बोला ।
“और अगर मेरे कागजों का इन्तजाम न हुआ या मेरी सीट बुक न हुई ?” - सुनील बोला ।
“तो मैं समझूंगा कि इस विषय में तुम्हारी सरकार ने कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया है और वास्तव में तुम्हें चौधरी की कोई विशेष जरूरत नहीं है । मैं तो हर हालत में कल रात हांगकांग रवाना हो रहा हूं । तुम प्लेन पर मौजूद हुए तो अच्छा है । नहीं तो हांगकांग उतरते ही मैं सीधा चीनी एजेन्टों के पास पहुंच जाऊंगा । चौधरी के पते के बदले में वे खुशी से मेरी मांग पूरी कर देंगे ।”
“क्या पिलानंग पोख ने तुम्हें यह भी कहा था कि अगर हिन्दोस्तानियों से सौदा न हो तो चीनियों के पास पहुंच जाना ?”
“नहीं ।” - पीटर हाल बोला - “यह मेरा अपना आइडिया है ।”
“बहुत धोखेबाज हो !”
“तुम धोखेबाजी की नौबत ही क्यों आने देते हो ? पहले तो मैं वही कर रहा हूं जो मुझे करने के लिये कहा गया था । मुझे आश्वासन दिया गया था कि मेरी हर मांग स्वीकार कर ली जायेगी । जब मेरी कोई मांग ही स्वीकार नहीं हो रही है तो फिर मुझे कुछ भी करने का अधिकार है । मैं बहुत गरीब आदमी हूं मिस्टर सुनील । मेरी सारी जिन्दगी ही भारी अभाव में गुजरी है । लखपति बनने का जो मौका अनायास ही मेरे हाथ लग गया है, उसे मैं आसानी से छोड़ूंगा नहीं ।”
“तुम बहुत खतरनाक खेल-खेल रहे हो ।”
“यह बात तुम मुझे पहले भी बता चुके हो । ...गुडनाइट मिस्टर सुनील । कल तक के लिये विदा ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ बाहर निकल गया ।
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
जोजेफ उसके समीप पहुंच गया ।
दोनों बाहर निकल आये । वे कार में आ बैठे ।
“मुझे सेठ से मिलावाओ ।” - सुनील बोला ।
“क्यों ?”
“उससे बहुत महत्वपूर्ण बात करनी है ।”
“क्या महत्वपूर्ण बात ?”
सुनील ने घूर कर उसकी ओर देखा ।
“ओके ! ओके ।” - जोजेफ बोला । फिर उसने ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए मुरली को सम्बोधित किया - “हिल्टन चलो ।”
कार चल पड़ी ।
“सेठ दौलतराम हिल्टन में रहता है ?” - सुनील ने पूछा ।
“सेठ दौलतराम सारी दुनिया में रहता है । उसका कोई स्थायी निवास स्थान नहीं है । वह सैलानी आदमी है । जहां उसका जी चहाता है, पहुंच जाता है ।”
सुनील चुप हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
कार हिल्टन के सामने आकर रुक गई । पहले की तरह मुरली कार में ही बैठा रहा । सुनील और जोजेफ बाहर निकल आये ।
वे रिसैप्शन पर पहुंचे ।
“सेठ दौलतराम इस समय कहां होंगे ?” - जोजेफ ने प्रश्न किया ।
“आपका शुभ नाम ?” - क्लर्क ने पूछा ।
“मेरे सवाल से मेरे नाम का क्या सम्बन्ध है ?” - वह कठोर स्वर से बोला ।
“साहब” - क्लर्क नम्रता से बोला - “सेठ दौलतराम का आदेश है कि केवल उन्हीं लोगों को उस तक पहुंचने दिया जाये जिनका नाम उन्होंने रिसैप्शन पर दिया हुआ है ।”
“मेरा नाम जोजेफ है ।” - जोजेफ बोला ।
“वैरी गुड ।” - क्लर्क बोला - “आपके लिये सेठ दौलतराम बार में हैं ।”
“और बार किधर है ?”
क्लर्क ने मेज पर पड़ी घन्टी बजाई । एक वर्दीधारी बैल ब्वाय रिसैप्शन के समीप पहुंचा ।
“साहब को बार में पहुंचा कर आओ ।” - क्लर्क बोला ।
बैल ब्वाय जोजेफ और सुनील को बार में छोड़ गया । सेठ दौलतराम कोने की एक अर्धप्रकाशित मेज पर अकेला बैठा था ।
दोनों उसके सामने पहुंचे ।
सेठ ने प्रश्न सूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“आप से बात करनी है ।” - सुनील बोला ।
“अच्छी बात है” - सेठ बोला - “तुम बैठो और जोजेफ जब तक मैं सुनील से बात करता हूं, तुम जरा दायें बायें घूमो ।”
सुनील दौलतराम के सामने बैठ गया । जोजेफ अपमान सा अनुभव करता हुआ बार से बाहर निकल गया ।
“क्या पियोगे ?” - सेठ ने पूछा ।
सुनील ने देखा, सेठ के सामने हाईबाल का लम्बा गिलास रखा हुआ था ।
“हाईबाल !” - वह बोला ।
सेठ ने आर्डर दिया । वेटर सुनील को भी हाईबाल सर्व कर गया । सुनील ने काकटेल का एक घूंट पीकर गिलास नीचे रख दिया ओर एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“कहो ।” - सेठ बोला ।
सुनील ने उसे अपने और पीटर हाल में हुआ सारा वार्तालाप सुना दिया ।
“सब इन्तजाम हो जायेगा ।” - सेठ दौलतराम निश्चिन्त स्वर से बोला - “मैं ऐसा इन्तजाम कर दूंगा कि हांगकांग में उतरते ही पीटर हाल को पांच लाख अमेरिकन डालर मिल जायें मैं अभी हांगकांग में इस विषय में निर्देश भेज दूंगा । तुम्हारे पास कर्नल मुखर्जी की ओर से मिला हुआ अन्तर्राष्ट्रीय पासपोर्ट नहीं है ?”
“नहीं ।”
“कोई बात नहीं । पासपोर्ट का भी इन्तजाम हो जायेगा । जोजेफ और मुरली तुम्हारे साथ हांगकांग जायेंगे । उनके भी पासपोर्ट मिल जायेंगे और उसी प्लेन पर तुम्हारी सीटें भी बुक हो जायेगी जिस पर पीटर हाल जा रहा है ।”
“इतने थोड़े समय में आप इतता इन्तजाम कर लेंगे ?” - सुनील सन्दिग्ध स्वर से बोला ।
सेठ दौलतराम मुस्कराया । वह परम सन्तुष्टि की मुस्कराहट थी ।
सुनील चुप रहा । उसे इस बात में सन्देह नहीं रहा था कि सेठ दौलतराम सब इन्तजाम कर लेगा ।
“अब एक महत्वपूर्ण बात सुनो ।” - सेठ बोला ।
“फरमाइये ।”
“कर्नल मुखर्जी तुम्हारे प्रति बहुत चिन्तित मालूम होते हैं । वे खुद तुम्हारे और पीटर हाल के बारे में टूरिस्ट होटल में पूछताछ करने गये थे । पीटर हाल का हुलिया उन्हें जरूर ही मालूम हो जायेगा और उसके बाद बड़ी सरगर्मी से उसकी तलाश होने लगेगी । एक बार तलाश आरम्भ हो गई तो वे लोग पीटर हाल को ढूंढ ही लेंगे । लीगल पासपोर्ट लेकर आये हुए किसी विदेशी का किसी गैरमुल्क में जाकर गुम हो जाना बहुत मुश्किल होता है ।”
सेठ दौलतराम ने हाईबाल की एक चुस्की ली और फिर बोला - “भारत की भूमि से बाहर निकलने के रास्तों पर विशेष रूप से पुलिस की निगरानी हो रही होगी । किसी हवाई अड्डे पर या किसी बन्दरगाह पर पीटर हाल के दिखाई देने की देर है कि वह धर लिया जायेगा ।”
“आप कहना क्या चाहते हैं ?” - सुनील बोला ।
“मैं यह कहना चाहता हूं कि इस बात की पूरी सम्भावना है कि पीटर हाल जब कल दस बजे का प्लेन पकड़ने के लिये हवाई अड्डे पर आयेगा तो वह प्लेन पर सवार होने से पहले ही पुलिस द्वारा घेर लिया जायेगा ।”
“फिर तो बहुत गड़बड़ हो जायेगी ।”
“कोई गड़बड़ नहीं होगी । मुझे विश्वास है कि तुम पीटर हाल के बिना भी हांगकांग में चौधरी को तलाश कर लोगे । पीटर हाल ने तुम्हें दो महत्वपूर्ण नाम बताये हैं । एक ब्लू हैवन क्लब और दूसरा पिलानंग पोख । ब्ल्यू हैवन क्लब के माध्यम से तुम पिलानंग पोख को तलाश कर सकते हो । फिर पिलानंग पोख तुम्हें चौधरी तक ले जायेगा ।”
“और अगर न ले गया तो ?”
“क्यों नहीं ले जायेगा । पीटर हाल के माध्यम से भी तो वह यही चाहता था कि कोई भारतीय सीक्रेट सर्विस का एजेन्ट आयेगा और आकर चौधरी से मिलेगा । अब पिलानंग पोख को यह विश्वास दिलाना तुम्हारा काम होगा कि तुम वाकई भारतीय सीक्रेट सर्विस के एजेन्ट हो ।”
“वह पीटर हाल के बारे मे पूछेगा ?”
“तो तुम कह देना कि पीटर हाल लौटकर हांगकांग नहीं आना चाहता था । वह सीधा अमेरिका या कहीं और चला गया है । पीटर हाल से तुम्हारी मुलाकात हुई थी उसके सुबूत के तौर पर तुम उसे पीटर हाल और चौधरी की वह तस्वीर दिखा सकते हो जो पीटर हाल ने तुम्हें दी है ।”
“मान लिया, हांगकांग में सब कुछ वैसे ही होगा, जैसे आप सोच रहे हैं लेकिन फिर भी आप एक बात भूल रहे हैं ।”
“क्या ?”
“अगर पीटर हाल पकड़ा गया तो वह यह जरूर बतायेगा कि वास्तव में वह भारत के ही हित में काम कर रहा है और इसी सिलसिले में वह मुझसे पहले ही सम्पर्क स्थापित कर चुका है और यह कि हांगकांग पहुंचने पर उसे भारत सरकार ही की ओर से पांच लाख डालर मिलने वाले हैं जबकि मैंने अभी तक इस विषय में कर्नल मुखर्जी को कोई रिपोर्ट नहीं दी है और अन्त में यह कि मैं भी उसी प्लेन पर उसके साथ हांगकांग जा रहा हूं । अगर ऐसा हो गया तो मैं भी गिरफ्तार कर लिया जाऊंगा, मेरी पोल खुल जायेगी कि मैं कर्नल मुखर्जी को धोखा देने की कोशिश कर रहा हूं और फिर आपकी स्कीम भक्क से उड़ जायेगी ।”
सेठ दौलतराम मुस्कराया, फिर हंसा और फिर विनोदपूर्ण स्वर से बोला - “क्या तुम्हें मैं ऐसा मूर्ख आदमी दिखाई देता हूं कि इतनी मामूली सी बात भूल जाऊं ?”
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“अगर हवाई अड्डे पर पुलिस ने या तुम्हारे विभाग के लोगों ने पीटर हाल पर हाथ डाला तो पीटर हाल इस काबिल नहीं रहेगा कि वह अपनी जुबान खोल सके ।”
“आप क्या करेंगे ?”
“समय आने पर खुद ही देखना मैं क्या करूंगा ?”
“मैंने कल पीटर हाल से मिलने के फौरन बाद कर्नल मुखर्जी से सम्पर्क स्थापित करना था । इस मामले में मैं कम से कम बीस घंटे लेट हो चुका हूं । सम्भव है कर्नल मुखर्जी पीटर हाल की तरह मेरी भी तलाश शुरू करवा दें और फिर मैं ही हवाई अड्डे पर रोक लिया जाऊं ?”
“इसका भी इन्तजाम हो चुका है ।” - सेठ दौलतराम शान्ति से बोला ।
“क्या ?”
“अभी थोड़ी देर बाद पुलिस को राजनगर के किसी सुनसान इलाके में पड़ी हुई एक लाश की सूचना मिलेगी । मरने वाले का पहरावा और बनावट तुमसे मिलती होगी लेकिन उसका चेहरा इस बुरी तरह से कुचला हुआ होगा कि तत्काल शिनाख्त नहीं हो पायेगी । उसके शरीर पर तुम्हारे कपड़े होंगे और कपड़ों की जेब में तुम्हारा ब्लास्ट का आइडेन्टिटी कार्ड और इससे मिलते जुलते कागजात होंगे । पुलिस यही समझेगी कि या तो तुम्हारी हत्या हो गई या तुम किसी भारी दुर्घटना के शिकार हो गये हो । फिर जब तक हकीकत उनके सामने आयेगी तब तक तुम हांगकांग पहुंच चुके होंगे ।”
सुनील कई क्षण तक मन्त्र मुग्ध सा सेठ दौलतराम का चेहरा देखता रहा और फिर बोला - “अब एक आखिरी बात बताइये ।”
“क्या ?”
“आप कुछ भूलते भी हैं ।”
सेठ दौलतराम मुस्कराया ।
सुनील ने हाईबाल का आखिरी घूंट पिया और खाली गिलास नीचे रख दिया ।
“और ?” - सेठ ने पूछा ।
“नहीं । धन्यवाद ।”
“आओ चले” - सेठ उठता हुआ बोला ।
“आप तशरीफ रखिये मैं चला जाऊंगा ।” - सुनील सहज स्वर में बोला ।
“सोच रहा हूं, तुम्हें जोजेफ के सुपुर्दकर आऊं ।” - सेठ बोला ।
“आपको अभी भी सन्देह है मैं भाग जाऊंगा ।”
“नहीं । मैं तुम्हें जोजेफ के पास इसलिये पहुंच रहा हूं ताकि तुम्हें समय पर गोली हासिल करने में तकलीफ न हो । दस दिन तक तो वह गोली तुम्हारे लिये संजीवनी बूटी की हैसियत रखने वाली है ।”
सुनील चुप रहा ।
“मुरली तुम्हारे फ्लैट से तुम्हारा एक सूट निकाल लाया है । तुम अपने वे कागजात वगैरह उसे दे देना जिससे तुम्हारे सुनील कुमार चक्रवर्ती होने का प्रमाण मिलता है ।”
“अच्छा ।” - सुनील अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
“तुम्हारा पासपोर्ट और तुम्हारे लिये सफर का बाकी जरूरी सामान कल दोपहर तक तुम्हारे पास पहुंच जायेगा ।”
“धन्यवाद ।”
दोनों चलते हुए होटल से बाहर आ गये ।
जोजेफ फौरन उनके सामने आ प्रकट हुआ ।
“जोजेफ !” - सेठ चेतावनी पूर्ण स्वर से बोला - “साहब को कोई तकलीफ न होने पाये ।”
“नहीं होगी ।” - जोजेफ बोला ।
“ओके मिस्टर सुनील !” - सेठ उससे हाथ मिलाता हुआ बोला - “गुड बाई एन्ड गुड लक । आशा है आप अपने मिशन में सफल होंगे ।”
“आपका मिशन ।” - सुनील ने संशोधन किया ।
“दोनों का । आखिर तुमने भी तो अपनी इस सेवा के बदले में मुझ से दस लाख रुपये लेने हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
सेठ ने उसका हाथ छोड़ दिया और घूम कर फिर होटल में प्रविष्ट हो गया ।
***
कर्नल मुखर्जी चिन्तित थे ।
सुनील एकदम गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गया था ।
वे हर क्षण सुनील के या उसके टैलीफोन के आगमन की प्रतीक्षा करते रहे ।
जब चौबीस घन्टे गुजर गये और सुनील ने अपनी खबर नहीं दी तो उन्होंने एक्शन लेने का इरादा कर लिया ।
वे इन्सपेक्टर जनरल से मिले ।
कर्नल मुखर्जी पृष्ठभूमि में ही रहे और पीटर हाल की इन्क्वायरी आरम्भ हो गई ।
टूरिस्ट होटल में पूछताछ की गई ।
रेस्टोरेन्ट के स्टीवर्ट ने और एक रिसैप्शन क्लर्क ने पीटर का हुलिया बयान किया ।
कद लभभग छः फुट । आयु लगभग पैतालीस साल, बाल भूरे । आंखे नीली । सिगार पीने का आदी और माथे से पीछे को कंघी किये हुए बाल ।
कहने की जरूरत नहीं कि जाति से अंग्रेज ।
फिर उसके बारे में राजनगर हवाई अड्डे से पूछताछ की गई ।
पिछले दिन की बी ओ ए सी के एक प्लेन की पैसेन्जर लिस्ट में उनका नाम था । पीटर हाल हांगकाग से भारत आया था ।
फिर नगर के ही तमाम ट्रैवल ऐजन्टों को सरकुलर भिजवाया गया कि अगर पीटर हाल नाम का कोई अंग्रेज एयर या सी पैसेज बुक करने के लिए उनके पास आये तो उसको रोक लिया जाए और उसकी सूचना तत्काल पुलिस को दी जाये ।
सारे देश के हवाई अड्डों और बन्दरगाहों पर पीटर हाल के बारे में सूचना भिजवा दी गई ।
इतना भारी इन्तजाम किया गया था कि पीटर हाल का अधिकारियों की जानकारी में आये बिना देश से बाहर निकल जाना असम्भव था ।
सूचनाएं कर्नल मुखर्जी तक पहुंचती रही ।
कर्नल मुखर्जी बड़ी बेचैनी से कोई परिणाम निकलने की प्रतीक्षा करते रहे ।
सुनील के बारे में भी वे आई जी को बता चुके थे लेकिन अभी तक उसका पता नहीं लगा था ।
फिर उन्हें सूचना मिली कि पीटर हाल के नाम से एयर इन्डिया के अगली रात को दस बजे जाने वाले प्लेन में हांगकांग के लिये बुकिंग कराई गई है ।
अधिकारी सतर्क हो गये । अगले दिन सरकारी तौर पर पीटर हाल के राजनगर हवाई अड्डे पर स्वागत का इन्तजाम हो गया ।
फिर सुबह के चार बजे उन्हें सूचना मिली कि सुनील की लाश विशालगढ हाइवे के समीप के घने जंगल में पड़ी पाई गई है । पुलिस की सूचना के अनुसार लाश किसी भारी गाड़ी के नीचे आकर कुचली गई थी । पुलिस की तफ्तीश के अनुसार लाश कुचली कहीं और गई थी लेकिन बाद में उस जंगल में लाकर फेंक दी गई थी ।
कर्नल मुखर्जी मार्ग में लाश देखने गये । लाश की चेहरे से शिनाख्त होनी असम्भव थी । चेहरा बुरी तरह कुचला गया था लेकिन बाकी बातें इसी ओर संकेत करती थी कि लाश सुनील की थी ।
लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गई ।
स्पैशल इन्टैलीजेंस के एक सुयोग्य सदस्य की मौत का अफसोस करते हुए मुखर्जी लौट आये ।
यह बात निश्चित थी कि सुनील की हत्या की गई थी । लेकिन क्यों ?
इस क्यों का उन्हें एक ही उत्तर सूझा । सुनील जरूर पीटर हाल से कोई ऐसी बात जानने में सफल हो गया था जो कोई विरोधी पार्टी नहीं चाहती थी कि भारत सरकार को मालूम हो जाये । सुनील का मुंह बन्द करने के लिये उन्होंने सुनील की हत्या कर डाली ।
इस बात के दिमाग में पनपते ही कर्नल मुखर्जी को पीटर हाल की चिन्ता होने लगी । शायद सुनील की ही तरह विरोधी पार्टी ने पीटर हाल की भी हत्या कर दी हो या पीटर हाल उनकी कैद में हो और वे उसे यातनायें देकर यह जानने की कोशिश कर रहे हों कि वह क्या जानता है या उसने सुनील को क्या बताया है या सुनील के अतिरिक्त उसने किसे क्या बताया है ।
कर्नल मुखर्जी को पीटर हाल के रात के दस बजे का हांगकांग का प्लेन के पकड़ने के लिये हवाई अड्डे पर आने की सम्भावना घटती दिखाई देने लगी ।
वे और व्यग्रता से अगली रात के दस बजने की प्रतीक्षा करने लगे ।
एक बात रह-रह कर कर्नल मुखर्जी के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज उठती थी - पीटर हाल किस चीज का सौदा करना चाहता था ?
वह क्या जानता था ?