छोटे से अलाव की तरह जलती मशाल विकास और मोन्टो से सिर्फ तीन गज दूर गिरी और वे दोनों उससे निकलने वाले प्रकाश से

नहा गए—आग की रोशनी में धनुषटंकार का भभकता चेहरा साफ देखा जा सकता था ।
हाथ में रिवॉल्वर।
नजदीक ही, जमीन पर पड़े जख्मी विकास के हलक से रह-रहकर कराहें निकल रही थीं—कंधे पर मौजूद जख्म से लगातार खून
बह रहा था—मशाल के पार खड़े थे—सशस्त्र, क्रुद्ध, एव उन्मादी ग्रामीण।
"व...वे रहे।" उनमें से कोई चीखा—"मारो सालों को।"
धांय! मोन्टो के हाथ में दबें रिवॉल्वर ने शोला उगला।
हुजूम में से किसी की चीख उभरी।
फायर करने के साथ ही मोन्टो ने बिजली की-सी फुर्ती से न सिर्फ तीन गज दूर पड़ी मशाल पर जंप लगाई, बल्कि उसे उठाकर वापस हुजूम की तरफ फेंककर विकास के नजदीक लौटा।
"सब पोजीशन ले लो।" कोई चीखा—"बंदर के पास रिवॉल्वर है।"
अंधरे में सनसनाते हुए कई बल्लम विकास और मोन्टो के इर्द-गिर्द गिरे—इसे शायद उनका प्रबल भाग्य ही कहा जाएगा कि कोई बल्लम उनके जिस्म में पैवस्त नहीं हुआ—हालांकि ग्रामीणों ने बल्लम इसी मंशा से फेंके थे।
अंधेरे का लाभ उठाकर मोन्टो जख्मी विकास को खींचकर एक विशाल पत्थर की बैक में पहुंचने का प्रयत्न कर रहा था, जबकि कराहों के बीच विकास लगभग चीख पड़ा—"ये क्या कर रहे हो मोन्टो, तुम जाओ यहां से।"
बेचारा मोन्टो!
बोलने से लाचार!
एक यही तो बात थी जो उसके वश में न थी—अगर वह बोल सकता तो जाने कब का चीखकर ग्रामीणों के हुजूम को चेतावनी दे चुका होता कि जिसने भी उसके 'जख्मी गुरु' की तरफ बढ़ने की कोशिश की, वह उसके परखच्चे उड़ा देगा।
और ग्रामीणों को रोकने के लिए इस वक्त ऐसी चेतावनी कारगर साबित होती, मगर बंदर के जिस्म वाला यह व्यक्ति बोल नहीं सकता था। फिर भी दो फायर करके उसने ग्रामीणों को अपना इरादा समझाने की भरसक चेष्टा की और वह इरादा यह था कि वह किसी भी कीमत पर गांववालों को विकास तक नहीं पहुंचने देगा।
विकास के विरोध पर कोई ध्यान दिए बिना अपने इरादे पर दृढ़ मोन्टो ने उसे खींचकर पत्थर के पीछे डाल दिया—स्वयं भी पत्थर के पीछे छुपकर उस दिशा में देखने का प्रयास किया जिधर उनके खून के प्यासे ग्रामीणों का हुजूम था।
कई पत्थरों के पीछे से मशालों की रोशनी झांक रही थी।
जाहिर था कि वे लोग पोजीशन ले चुके था।
अचानक उधर से चेतावनीयुक्त स्वर उभरा—"अगर जिंदा रहना चाहते हो तो खुद को हमारे हवाले कर दो, वरना मार दिए जाओगे।"
मोन्टो कसमसाकर रह गया।
काश, वह बोल सकता।
उधर से उभरने वाली चेतावनी आसपास के पहाड़ों से टकराकर रह गई—विकास के समीप पोजीशन लिए बैठा मोन्टो आंखें फाड़-फाड़कर अंधेरे को घूर रहा था, किसी भी व्यक्ति को इधर बढ़ता देखते ही फायर कर देने के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ।
"म...मोन्टो।" विकास ने उसे पुकारा।
धनुषटंकार उसकी ओर मुखातिब हुआ।
"त...तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़कर यहां से निकल जाओ।"
मोन्टो ने दृढ़तापूर्वक इंकार में गरदन हिलाई।
"यह बेवकूफी होगी मोन्टो जानता हूं दोस्त कि तुम मुझे कितना चाहते हो मगर ये वक्त भावुकता में फंसने का नहीं—हम दोनों की ही नहीं, बल्कि गांव की झोंपड़ी में फंसे ठाकुर नाना, नानी, मम्मी, पापा और गुरु आदि की जान भी इस समय खतरे में है—अगर समय रहते उन्हें पुलिस की मदद न मिली तो कोई जिंदा न बचेगा—प्रतिशोध की आग में सुलगते गुमटी के ये हिंसक और उन्मादी ग्रामीण हम सबकी लाशें बिछा देंगे—तुम जाओ और जितना जल्दी हो सके, डिक्की से पुलिस फोर्स लेकर गुमटी पहुंचो।"
मोन्टो की गरदन इंकार से हिली।
जख्म से उठती दर्द की लहरों को पीते हुए विकास ने कसमसाकर कहा— "अपनी इस जज्बाती जिद से आखिर तुम कर क्या सकोगे—जरा सोच मोन्टो, तुम्हारे रिवॉल्वर में अब सिर्फ चार गोलियां बची हैं—ज्यादा-से-ज्यादा तुम उनके इस्तेमाल तक उन लोगों को यहां पहुंचने से रोके रखोगे—उन पर खून सवार है, वे अपने सैकड़ों साथी गंवाकर भी यहां पहुंचकर रहेंगे—अगर तुम भी उनके चंगुल में फंस गए तो कोई न बच सकेगा।"
यह वाक्य सीधा मोन्टो के जेहन से टकराया।
विकास कहता चला गया—"मैं अकेला यदि उनके चंगुल में फंस भी गया तो वे मुझे मारेंगे नहीं। जरा गौर करो—वे मुझसे यह जानने की कोशिश करेंगे कि हमारे बाकी साथी कहां हैं, तुम कहां हो—जब तक उनके सवाल का जवाब नहीं दूंगा, तब तक वे मुझे मार नहीं सकते और टॉर्चर सहने की मुझे आदत है—इससे पहले कि जवाब न मिलने पर झुंझलाकर वे मुझे कत्ल कर दें, तुम पुलिस की मदद से मुझे आजाद कर लोगे।"
मोन्टो को बात जमी।
उसकी गरदन इंकार में न हिलती देखकर विकास को लगा कि मोन्टो के दिमाग पर उसके शब्दों का प्रभाव पड़ रहा है। अतः दृढ़तापूर्वक बोला— "इसके विपरीत खुद मैं चल नहीं सकता और तुम्हारे पास इतना बड़ा शरीर नहीं है दोस्त कि कंधे पर लादकर कहीं ले जा सको—सिर्फ चार गोलियों के बूते पर उन्हें हमेशा के लिए यहां पहुंचने से नहीं रोका जा सकता और यदि तुम भी उनके चंगुल में फंस गए तो हमारी मदद के लिए कोई नहीं पहुंच सकेगा।"
धनुषटंकार को बात जम रही थी, किंतु दिल गवाही न दे रहा था कि अपने गुरु को ऐसी हालत में दुश्मनों से घिरा छोड़कर चला जाए।
अपनी बेबसी पर मोन्टो की आंखें भर आईं।
जमीन पर पड़े जख्मी विकास के चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी उसने। यही समय था जब एक साथ तीन मशालें सामने की तरफ से उस पत्थर के नजदीक फेंकी गईं।
आसपास प्रकाश फैल गया।
सामने से पुनः चेतावनी उभरी—"उस पत्थर के पीछे खुद को महफूज मत समझो—हम फिर कहते हैं, अगर जिंदा रहना चाहते हो तो हथियार फेंककर सामने आ जाओ।"
मोन्टो की दीवानगी देखकर विकास तड़प-सा उठा। अपने एकमात्र बाजू से उसे सीने में भींचकर बोला—"अब ज्यादा समय गंवाना मुनासिब नहीं है मोन्टो, मेरी फिक्र छोड़कर तुम निकल जाओ।"
और फिर।
एक हल्की-सी छलांग के साथ मोन्टो अंधेरे में गुम हो गया।
ग्रामीणों की तरफ से लगातार चेतावनियां दी जा रही थीं—पांच मिनट बाद विकास घिसटता हुआ पत्थर के पीछे से निकला, बोला—"मैं अपने आपको आप लोगों के हवाले करता हूं।"
उधर सन्नाटा छा गया।
पत्थर के इर्द-गिर्द पड़ी सुलग रही मशालों के प्रकाश में उसने पत्थर का सहारा लेकर खड़ा होने का प्रयास किया, तभी सामने से एक आवाज उभरी—"तेरा वो बंदर साथी कहां है?"
"हरेक को अपनी जान प्यारी होती है, मुझे फंसा देखकर वह भाग गया।"
सामने पैना सन्नाटा ज्यादा हो गया।
कुछ देर बाद एक आवाज उभरी—"यह इनकी चाल भी तो हो सकती है। जैसे ही हम अपने स्थानों से निकलकर इसकी तरफ बढ़े, अंधेरे में कहीं छुपा बंदर गोलियां...।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।" विकास बड़ी मुश्किल से बोल सका—"वह उस वक्त तक मेरे साथ रहा जब तक कि महसूस किया कि खुद उसकी जान को कोई खतरा नहीं है, मगर जब उसने अपनी जान का खतरा महसूस किया तो मुझे इस हाल में छोड़कर भाग गया।"
गांववाले फिर भी कुछ देर डरे रहे।
अंत में सब अपने-अपने छुप स्थानों से बाहर निकले—कहीं से कोई गोली न चली तो लगभग सभी ने दौड़कर विकास को घेर लिया—अब विकास उनकी गिरफ्त में था और एक वृक्ष की डाल पर बैठा मोन्टो सबकुछ देख रहा था।
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आगे की कहानी जानने से पहले आपके लिए इस कहानी के मुख्य एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण किरदार के बारे में जानना जरूरी है—भारत की सर्वोच्च जासूसी संस्था का नाम है—'भारतीय सीक्रेट सर्विस।'
मुख्य किरदार इस संस्था का चीफ है और विजय नामक यह किरदार इतना गहरा और रहस्यमय है कि उसके इर्द-गिर्द के लोग उसके बारे में सिर्फ इतना जान पाते हैं जितना कि वह जनवा लेना चाहता है—मसलन उसके पिता ठाकुर निर्भयसिंह पुलिस में आई.जी. होने के बावजूद यह नहीं जानते कि उनके लड़के का सीक्रेट सर्विस से कोई संबंध है—वे समझते हैं कि विजय एक आवारा, बदचलन, बेवकूफ और बदतमीज लड़का है—उनकी नजरों में अपनी यही 'इमेज' बरकरार रखने के लिए विजय अक्सर मूर्खतापूर्ण हरकतें करता रहता है और उसके इस नाटक के पीछे वजह ये है कि वह नहीं चाहता कि ठाकुर साहब को उसके सीक्रेट एजेंट होने का पता चले—दरअसल खुद को गुप्त रखना ही भारतीय सीक्रेट सर्विस के प्रत्येक एजेंट के लिए पहली शर्त है।
पुलिस सुपरिंडेंट रघुनाथ विजय का बहनोई कम दोस्त होने के बावजूद सिर्फ इतना जानता है कि विजय एक प्राइवेट जासूस है—भारतीय सीक्रेट सर्विस के अशरफ, विक्रम, नाहर, परवेज और आशा जैसे सदस्य विजय को अपनी ही तरह सीक्रेट सर्विस का साधारण सदस्य समझते हैं—इस रहस्य को सिर्फ दो व्यक्ति जानते हैं—एक विजय, सीक्रेट सर्विस का वर्तमान चीफ, जो रिश्ते में विजय का चचेरा भाई है दूसरा—विकास, जो स्वयं सीक्रेट सर्विस का सबसे कमउम्र का एजेंट है—विकास दरअसल रघुनाथ का लड़का, विजय का भांजा कम शिष्य है।
एक बार एक स्मगलर का पीछ करता हुआ विजय 'डिक्की' नामक हिल स्टेशन के ऊपर की पहाड़ियों पर पहुंच गया—स्मगलर ने तो खैर एक पहाड़ी से खाई में गिरकर दम तोड़ दिया, परंतु मरने से पहले उसने विजय की जांघ में एक गोली मार दी थी—जख्मी विजय ने गुमटी नामक गांव की जिस झोंपड़ी में शरण ली, उसके मालिक का नाम सुखबीर था।
वह वहां पैंतालीस दिन के करीब रहा और इन पैंतालीस दिनों में विजय ने जो कुछ जाना उससे खोपड़ी घूम गई—उसने देखा कि गुमटी नामक इस गांव में उसके पिता ठाकुर निर्भयसिंह की 'अवपूजा' होती है—प्रत्येक घर में उसके पिता की तस्वीर लगी है और गुमटी का बच्चा-बच्चा सुबह उठते ही सबसे पहले नफरत से उस फोटो पर थूकता है—उसने ये भी देखा कि प्रत्येक साल एक खास दिन रावण की तरह पुतला बनाकर ठाकुर साहब का दहन किया जाता है। विजय इस बारे में सुखवीर से पूछता है तो वह विजय को बताता है कि हर गुमटीवासी टाकुर साहब से घृणा करता है और गुमटी में उन्हें सबसे बड़ा जालिम कहा जाता है—यह सब देख-सुनकर मारे हैरत के विजय का बुरा हाल हो गया है—बातचीत करने पर उसे पता लगा कि आज से बीस साल पहले जब उसके पिता एसoपीo थे, तब इस इलाके में दो डाकू दलों का आतंक छाया हुआ था—एक ठाकुर जाति के डाकुओं का दल था—दूसरा मल्लाहों का, जिसका सरदार सुच्चाराम नामक डाकू था—इन दस्यु दलों का सफाया करने के लिए इस इलाके में ठाकुर निर्भयसिंह की नियुक्ति हुई—उन्होंने इनका सफाया भी कर दिया, किंतु उसके बाद स्वयं ठाकुर निर्भयसिंह ने गुमटी की धरती को गांववालों की लाशों से पाट दिया—उऩ्होंने लोगों को नग्न कर-करके पेड़ की शाखाओं पर उलटा लटकाया—नीचे आग जलाकर उन्हें जिंदा भूना—इनमें स्त्रियां और निरीह बच्चे भी थे—विजय को यह भी पता चला कि शेरबहादुर नामक जिस गुमटीवासी ने सुच्चाराम का अंत करने में ठाकुर साहब की मदद की थी, बाद में निर्भयसिंह ने उसी की नहीं बल्कि उसके सारे परिवार की निर्मम हत्या करके झोंपड़ी में आग लगा दी—इसके अलावा विजय को अऩेक छोटी-छोटी कहानियां सुनने को मिलीं और उन सब कहानियों का सार एक ही था—यह कि ठाकुर साहब ने इस गांव पर बेशुमार जुल्म किए हैं—विजय किसी कीमत पर यकीन नहीं कर सकता था कि उसके पिता ऐसे भी हो सकते हैं, मगर समझ में न आ रहा था कि यह राज क्या है—इसी उलझन में फंसा वह राजनगर लौट आया—इस संबंध में ठाकुर साहब से बात शुरू की थी कि ठाकुर साहब ने छड़ी से मार-मारकर उसे भगा दिया—एक न सुनी—विजय को लगा कि ठाकुर साहब उसकी बात को गंभीरतापूर्वक नहीं ले रहे हैं।
फिर, करीब डेढ़ साल तक विजय सीक्रेट सर्विस से संबधित केसों में बुरी तरह व्यस्त रहा।
इतने दिन में यह बात विजय को समझ में आ चुकी थी कि ठाकुर साहब गुमटी से संबंधित उसके सीधे सवालों का जवाब नहीं देंगे। सो, उसने एक षड़्यंत्र रचाने की योजना बनाई—दिल्ली स्टेज की रश्मि नामक एक ऐसी आर्टिस्ट को उसने अभिनय करने के लिए तैयार कर लिया जिसका चार-पांच महीने का एक बच्चा भी था।
और फिर!
खूबसूरती को भी लजा देने वाली उस सुंदरी का नाम साधना था, जो गोद में एक बच्चा लिए थाने में प्रविष्ट हुई—इंस्पेक्टर रंगास्वामी ने जब उसकी हरी और चमकदार आंखों में झांकते हुए आऩे का प्रयोजन पूछा तो साधना ने बताया कि वह गुमटी की रहने वाली है—आज से करीब पंद्रह महीने पूर्व उसकी झोंपड़ी में एक जख्मी परदेशी आया—अपना नाम 'विश्वास' बताने वाले इस परदेशी की उसने खूब सेवा की—बर्फीले तूफान में हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों का शारीरिक संबंध स्थापित हो गया—परंतु इसके बाद विश्वास ने यह कहते हुए की वह एक जासूस है और कभी शादी न करने की कसम खाए है, साधना से शादी करने से इंकार कर दिया।
मगर गांववालों ने जबरन विश्वास और साधना की शादी कर दी—जैसे ही विश्वास को यह पता लगा कि वह साधना के गर्भ से एक बच्चे का पिता बनने वाला है, वैसे ही एक दिन न सिर्फ साधना को बल्कि सारे गांव को धोखा देकर गायब हो गया—बच्चे को जन्म देने के बाद अब वह इस विशाल संसार में अपने सुहाग को ढूंढने निकली है।
यह सारी कहानी सुनाने के बाद साधना ने विश्वास का फोटो बताकर जो फोटो सामने रखा, उसे देखते ही रंगास्वामी बल्लियां उछल पड़ा—दरअसल यह फोटो विजय का ही था।
विजय का फोटो प्रस्तुत करके जो कुछ साधना ने कहा था, उसे सुनकर उसकी खोपड़ी नाच उठी—इस सबकी सूचना विजय के बहनोई कम दोस्त, पुलिस सुपरिंडेंट रघुनाथ को देने के अलावा उसे कुछ न सूझा।
फोन पर सूचना सुनते ही रघुनाथ उछल पड़ा—सिर्फ वही नहीं, बल्कि विजय का कोई भी परिचित इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि कैसे भी हालात में विजय किसी से शादी कर सकता है, एक बच्चे का पिता होने की बात तो बहुत दूर है।
रघुनाथ थाने पहुंचा—साधना से बात की और साधना ने ऐसे सबूत पेश किए कि रघुनाथ चकरा गया—हकीकत तक पहुंचने के लिए उसने विजय को फोन किया—विजय उस वक्त विकास और धनुषटंकार के साथ घर पर ही मौजूद था—फोन पर यह सुनते ही एक पल के लिए विजय ने नर्वस होने का नाटक किया कि थाने में 'गुमटी वाली साधना' आई है, किंतु शीघ्र ही उसने खुद को नियंत्रित करके थाने आने का वादा करके रिसीवर रख दिया।
विकास और धनुषटंकार के साथ विजय ने जैसे ही थाने में कदम रखा, साधना 'विशू...विशू' कहकर उससे लिपट गई, जबकि विजय ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया—साधना इस बात के सबूत पेश करने लगी कि वही वह व्यक्ति है जिसने अपना नाम विश्वास बताकर गुमटी में उससे शादी की थी—विजय ने उन सबूतों को झुठलाने की जो कोशिश की, वह इतनी खोखली और अतर्कसंगत थी कि रंगास्वामी से लेकर धनुषटंकार तक को लगा कि साधना सच बोल रही है—रघुनाथ ने सख्ती के साथ पूछताछ करते हुए विजय से कुछ सवालों के जवाब चाहे, मगर जब विजय ने उन सवालों को टालना चाहा तो सुपर रघुनाथ ने मजबूर होकर विजय के पिता को फोन कर दिया।
यही तो विजय भी चाहता था।
सबकुछ सुनने के बाद मारे गुस्से के ठाकुर साहब पागल-से हो उठे—पत्नी उर्मिलादेवी ने जब गुस्से का कारण पूछा तो उन्होंने उनके लाडले बेटे की नई करतूत के बारे में बताया—यह सुनकर उर्मिलादेवी खुशी के मारे झूम उठीं कि वे एक बहू की 'मांजी' ही नहीं एक बच्चे की दादी भी हैं।
ठाकुर साहब थाने पहुंचे—उन्हें देखकर विजय की नकली बौखलाहट कुछ और बढ़ गई, मगर साधना द्वारा पेश किए गए सबूतो के जवाब में उसका विरोध इतना दुर्बल था कि सभी को साधना 'सच्ची' लगी—उर्मिलादेवी साधना को अपनी बहू कहकर घर ले गईं, किंतु विजय ने एक बार भी स्वीकर न किया कि उसका साधना से कोई संबंध है
उधर 'गुमटी' का नाम सुनकर न जाने क्यों ठाकुर निर्भयसिंह बुरी तरह चौंक पड़े—विजय जब थाने से घर पुहंचा—विकास और धनुषटंकार तब भी उसके साथ थे—जब विकास ने यह पूछा कि 'गुरु' आप साधना के बारे में झूठ क्यों बोल रहे हैं, विजय उसे समझाता है कि साधना झूठ बोल रही है, बल्कि साधना किसी अपराधी के षड्यंत्र का हिस्सा है।
मगर विकास नहीं माना, क्योंकि फोन पर 'गुमटी वाली साधना' सुनते ही विजय को नर्वस होते अपनी आंखों से देखा था, अतः वह विद्रोह कर उठा और यह कहकर धनुषटंकार के साथ कोठी से निकल गया कि हकीकत को साबित करके ही दम लेगा।
विकास की नस-नस से वाकिफ विजय ने उसके जाते ही रघुनाथ से फोन पर कहा कि विकास ठाकुर निर्भयसिंह की कोठी से साधना को किडनैप और फिर उसे टॉर्चर करने की कोशिश कर सकता है—विजय ने यह भी कहा कि अगर विकास ऐसा करता है तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी, परंतु रघुनाथ कहता है कि 'इस किस्म के खेल खेलने से कुछ नहीं होगा बेटे, साधना ने जो सबूत पेश किए हैं, उनकी जांच के बाद कल पूरी तरह साबित हो जाएगा कि तुम ही वास्तव में उसके पति हो।'
रघुनाथ के बाद विजय ने भारतीय सीक्रेट सर्विस के चीफ 'पवन' की-सी भर्राई हुई आवाज में सीक्रेट एजेंट अशरफ, विक्रम, नाहर और आशा को आदेश दिया कि वे साधना से प्रस्तुत किए गए सारे सबूत गायब कर दें—आदेश चूंकि सीक्रेट सर्विस के चीफ का था इसलिए वे उसे ठुकरा तो नहीं सकते थे मगर यह सबूत गायब कराए जा रहे हैं तो जाहिर है कि विजय झूठा है—साधना वास्तव में उसकी पत्नी और उसके बच्चे की मां है और इस विश्वास ने यदि किसी को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई थी तो उसका नाम था आशा। जी हां, आशा एक ऐसी सीक्रेट एजेंट थी जो मन-ही-मन विजय से प्यार करती थी—अपने मन-मंदिर का देवता मानती थी उसे।
उधर सीक्रेट सर्विस के वास्तविक चीफ यानि ब्लैक ब्वॉय ने विजय को भारतीय सीक्रेट सर्विस के 'गुप्त भवन' नामक ऑफिस में तलब किया—उसे भी यकीन नहीं था कि विजय सच बोल रहा है, किंतु विजय अपने कथन पर अड़ा रहा।
साधना की हिफाजत के लिए ठाकुर निर्भयसिंह की कोठी पर सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम ही नहीं किए गए, बल्कि विजय का फोन मिलते ही रघुनाथ और ठाकुर साहब ने कुछ करने का अवसर दिए बिना विकास के साथ ही धनुषटंकार को भी गिरफ्तार कर लिया।
अकेले में साधना ने ठाकुर निर्भयसिंह से जब 'गुमटी' का नाम आते ही उनके चौंकने का सबब पूछा तो ठाकुर साहब ने बताया कि बीस साल पहले जब वे एस.पी. थे तब डाकू-उन्मूलन के मामले में समूचे विभाग में उनकी धाक थी और उन्हीं दिनों गुमटी और आसपास के गांवों में सुच्चाराम नामक एक डाकू का आतंक छाया हुआ था—उसे खत्म करने के लिए उनकी नियुक्ति उस इलाके के 'डिक्की' नामक स्थित थाने पर हुई थी—उन्होंने यह भी बताया कि गुमटी निवासी शेरबहादुर नामक एक व्यक्ति की मदद से वे डाकू सुच्चाराम का सफाया करने में कामयाब हुए थे—इतना सुनते ही साधना उछल पड़ी और उसने बताया कि वह शेरबहादुर की ही लड़की है—यह जानने के बाद ठाकुर साहब ने उसे उसका हक दिलवाने की कमस खाई।
परंतु अगली सुबह यह पता लगते ही वे तिलमिला उठे कि पिछली रात साधना से पेश किए गए सारे सबूत गायब हो गए हैं—रघुनाथ और पुलिस फोर्स के साथ वे विजय की कोठी पर पहुंचे—उन्हें पूरा यकीन था कि सबूत विजय ने ही गायब कराए हैं, किंतु विजय था कि मानने को तैयार नहीं था और उसके इस ढीठपने के कारण ठाकुर साहब मारे गुस्से के पागल हो गए—विजय को बेनकाब करने की चेतावनी देकर वे वहां से लौटे-साधना से उन्होंने पूछा कि क्या वह अपने हक में उन सबूतों के अलावा भी अन्य कोई सबूत या गवाह पेश कर सकती है जो कल दिए थे—जवाब में साधना ने कहा कि सारा गुमटी गांव उसका गवाह है, वहां वह फोटोग्राफर भी होगा जिसने उसकी और विजय की शादी के फोटो खींचे थे।
इस तरह, ठाकुर साहब का गुमटी जाने का प्रोग्राम बना—पत्नी उर्मिलादेवी, रघुनाथ, रैना और साधना उनके साथ थे—डिक्की नामक हिल स्टेशन से गुमटी पहुंचने के लिए एकमात्र 'खच्चर' ही सवारी होती है। अतः खच्चरों पर सवार वे डिक्की से गुमटी जाने के लिए चले ही थे कि रास्ते में विजय टकरा गया।
विकास, अशरफ, विक्रम, नाहर, ब्लैक ब्वॉय, आशा और धनुषटंकार उसके साथ थे—उन्हें देखते ही रघुनाथ, उर्मिलादेवी और रैना जहां चौंक पड़े, वहीं यह सोचकर ठाकुर साहब की आंखों में खून उतर आया कि विजय अपने गुंडे दोस्तों के साथ सबूत मिटाने यहां भी पहुंच गया है—बाप-बेटे में काफी तकरार और तनातनी के बाद यह फैसला हुआ कि वे साथ-साथ गुमटी में कदम रखेंगे—वहां पहुंचकर यह स्पष्ट हो जाएगा कि साधना झूठ बोल रही है या विजय?
अब वे साथ चले।
अभी गुमटी से करीब एक मील इधर थे कि उन्हें एक गुमटीवासी मिला और ठाकुर निर्भयसिंह के चेहरे पर नजर पड़ते ही उस पर ऐसी अजीब प्रतिक्रिया हुई कि विजय के अलावा सभी भौंचक्के रह गए—हुआ यूं कि ठाकुर साहब के चेहरे पर नजर पड़ते ही वह आतंकित हो उठा, इतनी बुरी तरह डर गया कि जैसे सामने ठाकुर साहब नहीं कोई भूत-प्रेत खड़ा हो—उनके कुछ समझने से पहले ही वह चिल्लाता हुआ वापस भागा कि 'सावधान हो जाओ गुमटीवासियों, ठाकुर निर्भयसिंह गांव में आ रहा है।'
विजय, विकास आदि ने दौड़कर उसे पकड़ने की चेष्टा की, परंतु भागने के चक्कर में वह एक गहरी खाई में जा गिरा—हजारों फीट नीचे पड़ी ग्रामीण की लाश उन्हें साफ-साफ दिख रही थी और विकास का दिमाग यह सोच-सोचकर सनसना रहा था कि ठाकुर साहब को देखते ही उस पर ऐसी प्रतिक्रिया क्यों हुई?
अभी वह इस सवाल के जवाब से बहुत दूर था कि साधना को बच्चे सहित उन्होंने अपने बीच से गायब पाया—ग्रामीण को पकड़ने की कोशिश के बीच में ही वह कहीं गायब हो गई थी—काफी तलाश करने पर भी जब न मिली तो विजय ने कहा— "साबित हो गया कि मैं झूठा था या साधना। मैंने पहले ही कहा था कि वह किसी षड्यंत्र का हिस्सा है।"
वे पुनः गुमटी की तरफ बढ़े।
गुमटी में दाखिल भी न हो पाए थे कि उन्हें तीन ग्रामीण मिले—एक अधेड़, दो जवान—ठाकुर साहब को देखकर उन पर भी वही प्रतिक्रिया हुई, जो पहले ग्रामीण पर हुई थी—युवकों ने ठाकुर साहब को मारने की कोशिश की—मगर इन लोगों ने उन्हें अपने कब्जे में कर लिया—अधेड़ का नाम काशीनाथ था। उसने बताया कि समूचा गुमटी गांव ठाकुर निर्भयसिंह से सिर्फ नफरत ही नहीं करता, बल्कि उनके खून का प्यासा भी है। गुमटी में उनकी 'अवपूजा' होती है और एक खास दिन वहां रावण के समान ठाकुर साहब का पुतला जलाया जाता है।
इनके यह पूछने पर कि ऐसा क्यों है? काशीनाथ ने बताया कि, आज से बीस साल पहले ठाकुर साहब ने गुमटी की धरती को लाशों से पाट दिया था, गुमटीवासियों को नंगा करके—पेड़ पर उलटा लटकाकर उन्हें आग से भूना था—सुनकर सबसे ज्यादा हैरत ठाकुर साहब को हुई—उन्होंने कहा कि वे तो शेरबहादुर की लड़की साधना के साथ यहां आए हैं—ऐसा सुनते ही काशीनाथ पागलों की तरह हंसने लगा और बोला— "तुम इन गुमटीवासियों को बेवकूफ नहीं बना सकते ठाकुर, शेरबहादुर और साधना सहित तुम उसके सारे परिवार को आज से बीस साल पहले ही जिंदा आग में झोंककर नेस्तनाबूद कर चुके हो—इस हकीकत को सारा गांव जानता है।"
इस सारे झमेले के बीच ठाकुर साहब के चेहरे को घूरता हुआ विजय हकीकत को जानने की कोशिश कर रहा था, जबकि अन्य किसी की समझ में कुछ नहीं आया—उन लोगों को छोड़ते ही पहले ग्रामीण की तरह काशीनाथ गांववालों को सावधान हो जाने के लिए चिल्लाता हुआ गुमटी की तरफ भाग गया।
उर्मिलादेवी इस तर्क के साथ गुमटी न जाकर वापस लौटने के लिए कहने लगी कि जाने गांव वाले किस भ्रम का शिकार हैं और इस भ्रम के वशीभूत जाने वे क्या कर डालें, परंतु विजय की राय थी कि इस गांव से यह जाने बिना नहीं जाना चाहिए कि यहां ठाकुर साहब के बारे में ऐसी भ्रांतियां क्योंकर फैली हैं—उधर, गांव में पहुंचते ही काशीनाथ ने जब चीख-चीखकर यह कहना शुरू किया कि ठाकुर निर्भयसिंह, इस गांव का रावण गांव में पहुंच रहा है तो लगभग सारे मर्द घरों से निकल आए।
सारे गांव पर अजीब-सी उत्तेजना और जुनून सवार हो गया—ठाकुर साहब का खात्मा करने के लिए तरह-तरह के हथियारों से लैस उनका हुजूम उस तरफ बढ़ा, जिधर ठाकुर साहब आदि थे, मगर विजय की योजना के मुताबिक वे सब दूसरे रास्ते से न सिर्फ गांव वालों को चकमा देकर गुमटी में पहुंच गए, बल्कि चुपचाप गांव की एक ऐसी झोंपड़ी पर कब्जा कर लिया जिसमें उस वक्त सिर्फ एक स्त्री और उसके बच्चे थे।
स्त्री और बच्चों को एक तरफ बांधकर डालने और झोंपड़ी की दीवार में ऐसे छिद्र करने में उन्हें रात हो गई जिनके माध्यम से झौंपड़ी के चारों तरफ नजर रख सकें—सारे गांव में मचता शोर-शराबा उन्होंने अपने कानों से सुना और आंखों से देखी विभिन्न किस्म के हथियारों से लैस वह उग्र भीड़ जो 'चौपाल' पर एकत्रित होती जा रही थी—कुछ देर बाद बनवारी नामक उस झोंपड़ी का मालिक आया—उस बेचारे ने तो ख्वाब में भी कल्पना न की थी कि जिन्हें सारा गांव उन्मादी हुआ ढूंढ रहा है, वे उसी की झोंपड़ीं में छुपे बैठे हैं—झोंपड़ी में कदम रखते ही वह भी उन शैतानों की गिरफ्त में फंस गया—उसने बताया कि—"अब तुम लोगों में से एक भी इस इलाके से जिंदा वापस न जा सकेगा, गांव वालों ने विभिन्न टोलियों में बेहतर बेठकर सारी रात आसपास की पहाड़ियों में तुम लोगों को ढूंढने का निश्चय किया है और यदि तुम लोग किसी तरह गांव वालों को धोखा देने में कामयाब हो भी गए तो बंतासिंह या फूलवती के गिरोह से नहीं बच सकोगे।"
इनके यह पूछने पर कि कौन बंतासिंह और फूलवती—बनवारी ने बताया कि इस इलाके की जमीन 'डाकू' पैदा करती है—बंतासिंह एक ठाकुर डाकू है, फूलवती मल्लाह गिरोह की सरगना—ये दोनों दल एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं, परंतु ठाकुर निर्भयसिंह का खात्मा करने के मामले में वे एक हो जाएंगे—फूलवती का आदर्श वही सुच्चाराम है जिसे कभी ठाकुर निर्भयसिंह ने मारा था और तत्कालीन ठाकुर जाति के डाकू सरदार का खात्मा भी निर्भयसिंह ने ही किया था, जो आज के बंतासिंह का आदर्श है।
इतना सब जानने के बाद उन्होंने बनवारी को भी बांधकर उसके बीवी-बच्चों के पास डाल दिया और तब विजय ने अन्य सबको बताया कि इस राज को वह पहले से ही जानता है कि इस गांव में ठाकुर साहब की क्या 'इमेज' है—दरअसल ठाकुर साहब को इस गांव में लाने के लिए ही उसने रश्मि को साधना बनाकर यह सारा ड्रामा रचा था।
सुनकर सब भौंचक्के रह जाते हैं।
विजय की तरह अब सभी लोग यह राज जानने के लिए आतुर हो जाते हैं कि गुमटीवासियों के जेहन में ठाकुर साहब के बारे में उक्त भ्रांतियों क्यों हैं—विचार विमर्श के बाद वे इस निश्चय पर पहुंचते हैं कि अगर राज जानने के लिए उन्होंने सीधी कोशिश की, तो खून खराबा हो सकता है। अतः इस कार्य में पुलिस की मदद ली जानी चाहिए—गुमटी से संबंधित थाना, क्योंकि 'डिक्की' में था, सो विकास और धनुषटंकार का रात में ही किसी तरह छुपाते-छुपाते, गश्त करते गुमटीवासियों की नजरों से बचते डिक्की पहुंचने का प्रोग्राम बनता है, मगर जब झोंपड़ी से निकलकर वे अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए बढ़ रहे होते हैं तो न चाहते हुए भी गुमटीवासियों से टकराव हो जाता है और इस टकराव में एक ग्रामीण ने विकास के कंधे पर कुल्हाड़ी का इतना जोरदार वार किया कि विकास की कलाई कंधे पर से झूल गई—कुछ देर भागने के बाद वह गिर गया—ग्रामीणों का सशस्त्र हुजूम उनके पीछे था, विकास में भागने की ताकत शेष न बची थी—अपने रिवॉल्वर से हुजूम पर फायरिंग करते हुआ धनुषटंकार उन लोगों को विकास तक पहुंचने से रोकने का प्रयास कर रहा था, जबकि विकास लगातार उससे रिक्वेस्ट कर रहा था कि 'मुझे छोड़कर तुम पुलिस की मदद लेने डिक्की की तरफ निकल जाओ।'
उधर!
झोंपड़ी में जब सब लोगों ने ठाकुर साहब से पूछा कि बीस साल पहले यहां क्या हुआ था तो उन्होंने बताया कि ठाकुर जाति के डाकू का सफाया तो उन्होंने आसानी से कर दिया था परन्तु, सुच्चाराम हाथ न आ रहा था, तब शेरबहादुर सिंह ने उन्हें बताया कि पहाड़ों से घिरी जगह में सुच्चाराम ने एक घर बनवा रखा है, जिसमें उसके बीवी-बच्चे रहते हैं—सुच्चाराम इस घर और अपनी बीवी-बच्चों को बहुत प्यार करता है, यदि उन्हें अपने कब्जे में कर लिया जाए तो सुच्चाराम स्वयं आत्मसमर्पण कर देगा—ठाकुर साहब ने इसी गुरुमंत्र का पालन किया—उन्होंने अपने 'बजाज' नामक इंस्पेक्टर के जरिए सुच्चाराम के मकान में तीस मिनट का टाइम भरकर एक टाइम बम फिट कर दिया और सुच्चाराम को धमकी दी कि यदि उसने आधे घंटे के अंदर खुद को उनके हवाले न किया तो बम उसके घर और बच्चों को एक साथ नेस्तनाबूद कर देगा—यह धमकी इतनी कारगर साबित हुई कि सुच्चाराम अपने समूचे गिरोह सहित आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हो गया, मगर टाइम बम ना जाने कैसे दस मिनट पहले ही फट गया—अपने घर और बीवी-बच्चों को नेस्तनाबूद होते देख सुच्चाराम पागल हो उठा और वह पुलिस से भिड़ गया—इस मुठभेड़ में सुच्चाराम मारा गया।
ठाकुर साहब ने बताया कि इसके बाद वे डिक्की थाने पर सिर्फ एक हफ्ता रहे, फिर उन्हें वहां से ट्रांसफर कर दिया गया, क्योंकि सिर्फ डाकुओं का सफाया करने के उद्देश्य से ही उन्हें वहां भेजा गया था।
ठाकुर साहब के मुंह से सबकुछ सुनने के बावजूद किसी की समझ में कुछ न आया—अतः उन्होंने यह प्रोग्राम बनाया कि आधे लोग सो जाते हैं और आधे पहरा देते हैं।
सुबह चार बजे!
विजय, अशरफ और ब्लैक ब्वॉय आदि उस वक्त पहरे पर थे—ठाकुर साहब, रैना और उर्मिला आदि सो रहे थे—एकाएक टॉयलेट के बहाने विजय झोंपड़ी से बाहर निकला—झोंपड़ी से दूर, एक वृक्ष की जड़ में जाकर उसने ट्रांसमीटर पर 'मनुक्का' नामक व्यक्ति से रहस्यमय बातें कीं—बातें करने के बाद अभी वह झोंपड़ी की तरफ बढ़ना ही चाहता था कि झोंपड़ी से निकलकर ठाकुर साहब उसके सामने आ खड़े हुए—यहां ठाकुर साहब ने स्वयं अपने मुंह से न सिर्फ यह स्वीकार किया कि बीस साल पूर्व उन्होंने गुमटी में नरसंहार किया था, बल्कि यह भी कहा कि फूलवती की मदद से वे उसे, रैना, रघुनाथ, विकास और उर्मिलादेवी आदि को कत्ल कर देंगे—इसी उद्देश्य से वे उन सबको यहां लाए हैं—ठाकुर साहब ने यह भी कहा कि वे राज जानते हैं कि वह सीक्रेट सर्विस का चीफ है—सुनते ही विजय की खोपड़ी घूम गई—सिद्धान्ततः वह ऐसे व्यक्ति को एक पल के लिए भी जीवित नहीं छोड़ सकता था जो उसके सीक्रेट एजेंट होने के राज को जानता हो। अतः वह ठाकुर साहब की हत्या करने पर आमादा हो गया, जबकि ठाकुर साहब तो पहले ही उसके खून के प्यासे हो रहे थे—उनकी जंग का कोई फैसला न हो पाया था, जबकि गांव की हिंसक भीड़ उनकी तरफ लपकी।
बाहर विजय और ठाकुर साहब के बीच चल रही गोलियों को देखकर रैना आदि और उर्मिलादेवी झोंपड़ी से बाहर निकलने के लिए मचल उठीं, परंतु ब्लैक ब्वॉय का प्रयास उन्हें बाहर न निकलने देने का था।

बस—यहां तक का कथानक आपने 'मेरे बच्चे मेरा घर' नामक उपन्यास में पढ़ा—इससे आगे का कथानक 'आज का रावण' नामक इस उपन्यास में प्रस्तुत है, पूरा पढ़ने के बाद अपनी राय से लेखक को अवश्य अवगत कराएं।