शाम के सात बजे चुके थे । रेणु कब की जा चुकी थी । उसके स्थान पर रिसैप्शन पर एक नई लड़की बैठी थी जो हाल ही में ‘ब्लास्ट’ के आफिस में रिसैप्शनिस्ट-कम-टेलीफोन आपरेटर के रूप में नियुक्त की गई थी ।
सुनील रिसैप्शन के आगे से गुजर रहा था कि लड़की ने उसे आवाज दे दी ।
“सर !”
सुनील ठिठका ।
“कोई आपसे मिलने आया है ।” - नई रिसैप्शनिस्ट बोली और उसने रिसैप्शन से कुछ हटकर पड़े सोफों की ओर संकेत किया ।
सुनील ने उसकी ओर देखा । वहां एक बाईस-तेईस साल की खूबसूरत, आधुनिक लड़की बैठी थी । वह भी रिसैप्शन की ओर देख रही थी । सुनील को अपनी ओर देखता पाकर वह उठ खड़ी हुई ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ उस लड़की के पास पहुंचा ।
“आप मुझसे मिलने आई हैं ?” - वह उलझनपूर्ण नेत्रों से उसे लड़की को देखता हुआ बोला । उसे पूरा विश्वास था कि उस लड़की को उसने पहले कभी नहीं देखा था ।
“आप मिस्टर सुनील हैं ?” - लड़की घबराये स्वर में बोली ।
“करैक्ट ।”
“मैं आपसे एक बड़े महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहती हूं ।”
“हूं । अगर विषय महत्वपूर्ण है तो वक्त भी लेगा । लेकिन मैडम, इस वक्त मैं बेहद व्यस्त हूं । मुझे अखबार के चीफ एडीटर और मालिक ने इसी वक्त तलब किया है । उनके पास फौरन न पहुंचने से मेरी नौकरी खतरे में पड़ सकती है ।”
“लेकिन...”
“आप थोड़ी देर यहीं बैठिए । मैं जल्दी-जल्दी उनसे पीछा छुड़ाकर हाजिर होता हूं ।”
“मैं यहां ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकती ।”
“मैं ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा । आप इतमीनान से यहां बैठिये ।”
लड़की हिचकिचाती हुई वहीं फिर सोफे पर बैठ गई । मन-ही-मन लड़की की घबराहट की कोई वजह सोचने का असफल प्रयत्न करता हुआ सुनील मलिक साहब के प्राइवेट आफिस की ओर बढ गया ।
दस मिनट बाद वह वापिस लौटा ।
लड़की वहां मौजूद नहीं थी जहां कि वह उसे छोड़कर गया था ।
सुनील रिसैप्शनिस्ट से सम्बोधित हुआ ।
“वह लड़की कहां गई ?”
रिसैप्शनिस्ट ने रिसैप्शन हाल में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई और फिर हैरानी से बोली - “अभी तो वहां सामने सोफे पर बैठी थी, सर ।”
“तो कहां चली गई ?” - सुनील बोला ।
“मालूम नहीं, सर ।”
“कहीं क्लाक रूम वगैरह...”
“मुमकिन है, सर ।”
“तुमसे उसने क्लाक रूम के बारे में कोई सवाल किया था ?”
“नो, सर ।”
“एक बात सुनो ।”
“यस, सर ।”
“तुम मुझे ‘सर’ मत कहा करो ।”
“वाई, सर ?”
“क्योंकि मैं सर नहीं ।”
“ओके, सर ।”
सुनील ने घूरकर उसकी ओर देखा ।
“ओह, आई मीन” - लड़की हड़बड़ाकर बोली - “आई एम सॉरी, सर ।”
सुनील की हंसी निकल गई ।
लड़की शरमा गई ।
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
पांच मिनट गुजर गये ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और बोला - “अगर वह क्लाक रूम तक गई होती तो अब तक लौट आती ।”
रिसैप्शनिस्ट ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“अजीब बात है” - सुनील बड़बड़ाया - “कहती थी, बड़ी महत्वपूर्ण बात करनी है और खिसक गई यूं, जैसे भूत देख लिया हो ।”
रिसैप्शनिस्ट चुप रही ।
“तुमने उसे यहां से उठकर जाते नहीं देखा था ?”
“जी नहीं ।”
“अपना कुछ नाम-वाम बताया था उसने ?”
“जी नहीं ।”
“कमाल है !”
सुनील रिसैप्शन से हट गया ।
सीढियां उतरकर वह नीचे पहुंचा और इमारत से बाहर निकल आया । पार्किंग से उसने अपनी साढे सात हार्स पावर के शक्तिशाली इंजन वाली मोटरसाइकिल उठाई और बैंक स्ट्रीट की ओर रवाना हो गया ।
वह अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
उसने फ्लैट का ताला खोला और भीतर की ओर कदम बढाया ।
“मिस्टर सुनील !”
सुनील ने चौंककर पीछे देखा ।
गलियारे की मद्धिम रोशनी में भी वह उस लड़की को तुरन्त पहचान गया । उसके सामने वही लड़की खड़ी थी जिसने ब्लास्ट के आफिस में उसने कोई महत्वपूर्ण बात करने की इच्छा प्रकट की थी और फिर एकाएक कहीं गायब हो गई थी ।
सुनील ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला और फिर अपना इरादा बदल दिया । वह कुछ क्षण विचित्र नेत्रों से उस लड़की की ओर देखता रहा और फिर भावहीन स्वर से बोला - “तशरीफ लाइये ।”
लड़की झिझकती हुई आगे बढ़ी ।
सुनील ने फ्लैट की बत्ती जलाई ।
“बैठिये ।”
लड़की सोफे पर बैठ गई ।
“क्या पीजियेगा ? ठण्डा या गर्म ?”
“जी, कुछ नहीं । मेहरबानी ।”
“अगर आप दोबारा अन्तर्ध्यान न हो जाएं तो मैं एक चक्कर किचन का लगा आऊं ?”
लड़की के होंठों पर एक फीकी मुस्कराहट आई ।
सुनील किचन में गया और रेफ्रीजरेटर में से दो कोका कोला निकाल लाया ।
“शुक्र है ।” - एक कोला कोला लड़की के सामने रखता हुआ वह बोला ।
“जी !” - लड़की बोली ।
“मैंने अर्ज किया है कि शुक्र है, आप मुझे वहीं बैठी मिली हैं जहां मैं आपको छोड़कर गया था ।”
“आप मुझे गलत समझ रहे हैं । मैं...”
“‘ब्लास्ट’ के आफिस से आप एकाएक कहां चली गई थीं ?”
“मिस्टर सुनील” - लड़की धीरे से बोली - “मैं विश्वनगर से आई हूं । विश्वनगर से ही दो आदमी मेरे पीछे लग गये थे । बड़ी मुश्किल से मैं राजनगर में उनसे पीछा छुड़ा पाई थी और ‘ब्लास्ट’ के आफिस तक पहुंची थी । जब मैं आपके रिसैप्शन हाल में बैठी आपकी प्रतीक्षा कर रही थी तभी वही दो आदमी मुझे बाहर गलियारे में दिखाई दिये थे । संयोगवश अभी उनकी निगाह मुझ पर नहीं पड़ी थी । मैं घबरा गई और वहां से भाग खड़ी हुई ।”
“कैसे ? बाहर गलियारे में तो, आपके कथनानुसार, वे दो आदमी खड़े थे जो विश्वनगर से ही आपके पीछे लगे हुए थे ?”
“मैं आफिस के भीतर घुस गई थी । भीतरी गलियारे से होती हुई मैं इमारत के दूसरे सिरे पर पहुंच गई थी । वहां भी सीढियां थीं । उन्हीं सीढियों के रास्ते मैं इमारत से भाग निकली ।”
“और यहां आ गई ?”
“जी हां ।”
“आपको मेरे घर का पता मालूम था ?”
“जी नहीं ।”
“तो फिर ?”
“आपके घर का पता टेलीफोन डायरेक्टरी में था । ‘ब्लास्ट’ के ही कालम में ।”
“आई सी ।”
लड़की ने पहलू बदला ।
“कोका कोला पीजिये ।”
लड़की ने कोका कोला उठा लिया ।
“किस्सा क्या है ?”
“मिस्टर सुनील” - लड़की ने कोका कोला दोबारा मेज पर रख दिया और व्यग्र स्वर में बोली - “मैंने आपका बड़ा नाम सुना है । इसीलिए मैं किसी भी दूसरे स्थान पर जाने की बजाय आपके पास आई हूं ।”
“बहुत मेहरबानी आपकी ।”
“और फिर किसी दूसरे स्थान पर मैं जा भी तो नहीं सकती । दूसरा स्थान तो पुलिस स्टेशन ही हो सकता है और वहीं जाने का मैं ख्याल भी नहीं कर सकती । मेरी मजबूरी है ।”
“किस्सा क्या है ?” - सुनील ने फिर अपना प्रश्न दोहराया ।
“मिस्टर सुनील, क्या आप अपने अखबार में कोई ऐसी खबर छाप सकते हैं जो एकदम सच्ची हो, राष्ट्र के हित में जिसका प्रकाश में आना बहुत जरूरी हो, लेकिन जिसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए कोई सबूत न पेश किया जा सकता हो ?”
“वह तो खबर पर निर्भर करता है” - सुनील सावधानी से बोला - “आप पूरी बात तो बताइये ।”
“मिस्टर सुनील, संयोगवश ही मुझे एक ऐसे भंयकर षड्यन्त्र की जानकारी लग गई है जिसकी जानकारी सम्बन्धित अधिकारियों तक पहुचना बहुत जरूरी है । मैं चाहती हूं कि मेरा नाम बीच में लाये बिना आप अपने अखबार के माध्यम से सम्बन्धित अधिकारियों को सावधान करें ।”
“ऐसी कौन-सी बात मालूम हो गई है आपको ?”
लड़की कुछ क्षण चुप रही और फिर एकदम फट पड़ी - “विश्वनगर के कुछ लोग, किन्हीं विदेशी शक्तियों की स्वार्थपूर्ति की खातिर हमारे एटामिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन डा. रंगनाथन के अपहरण का षड्यन्त्र रच रहे है ।”
“क... क्या !” - सुनील बुरी तरह चौंका ।
“मैं बिल्कुल सच कह रही हूं, मिस्टर सुनील” - लड़की व्यग्र स्वर से बोली - “अपहरण से सम्बन्धित सारा वार्तालाप मैंने अपने कानों से सुना था । मैं उस आदमी को भी जानती हूं जो उन अपराधियों का सरगना बना हुआ है जो कि डाक्टर रंगनाथन का अपहरण करने वाले हैं ।”
“कौन है वो ?”
“उसका नाम लाला तीरथराम है । वह विश्वनगर का एक बड़ा महत्वपूर्ण आदमी है । विश्वनगर में पटेल रोड पर उसकी विशाल कोठी है । यह देखिये उसकी तस्वीर ।”
लड़की ने उसके सामने एक अखबार की कटिंग रख दी ।
सुनील ने देखा, वह लगभग पचपन साल के एक हृष्टपुष्ट आदमी की तस्वीर थी जोकि आंखों पर स्याह काला चश्मा लगाये हुए था ।
“जिस समय यह आदमी अपने साथियों के साथ डाक्टर रंगनाथन के बारे में बातचीत कर रहा था” - लड़की बोली - “उस समय मैं वहीं थी । लेकिन मेरी बदकिस्मती कि इसे मेरी मौजूदगी की खबर लग गई । फिर भी मैं वहां से निकल भागने में कामयाब हो गई । लाला तीरथराम के दो आदमी मेरे पीछे लगे हुए थे जिन्हें मैं विश्वनगर में ही डॉज देने में कामयाब हो गई थी । मैं ट्रेन से राजनगर के लिए रवाना हो गई । यहां लिटन रोड पर मेरे फादर के एक दोस्त रहते हैं । मिस्टर के पी अग्रवाल नाम है उनका । मैंने उन्हें सारी कहानी सुनाई और साथ ही यह भी बताया कि मैं यह खबर लेकर पुलिस के पास नहीं जा सकती । अग्रवाल साहब ने ही मुझे राय दी थी कि मैं किसी अखबार के दफ्तर में चली जाऊं और उन्हें सारी दास्तान कह सुनाऊं । उनका ख्याल था कि अखबार के माध्यम से सारी बात सम्बन्धित अधिकारियों के पास पहुंच जायेगी ।”
“आप पुलिस में क्यों नहीं जाना चाहतीं ?”
“है कोई वजह जो मैं आपको बताना नहीं चाहती ।”
“आपने कोई अपराध किया है ?”
“इस विषय में मैं कोई बात नहीं करना नहीं चाहती । मेरी कोई मजबूरी है जिसकी वजह से मैं पुलिस में नहीं जा सकती ।”
“आप लाला तीरथराम की कोठी में कैसे पहुंच गई ? आपका उससे क्या सम्बन्ध है ?”
लड़की ने मजबूती से होंठ भींच लिये । प्रत्यक्ष था कि सुनील के ऐसे किसी सवाल का जवाब देने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
“अच्छा, कम-से-कम अपना नाम तो बता दो ।”
“मेरा नाम वाणी है ।”
सुनील चुप हो गया । कुछ ही दिन पहले, 18 मई, 1974 को भारत ने पहला आणविक विस्फोट परीक्षण करके सारे विश्व को चौंका दिया था और इस प्रकार अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड और चीन के बाद विश्व अणु क्लब में शामिल होने का हकदार छठा राष्ट्र बन गया था । भारत के अणु विस्फोट की आड़ लेकर पाकिस्तान ने विशेष रूप से भारी हो-हल्ला मचाया था कि अब भारत केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं बल्कि एशिया की शान्ति के लिए भारी खतरा बन गया था । भारतीय प्रधानमन्त्री ने 21 मई को पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो को विशेष रूप से पत्र लिखकर स्पष्टीकरण दिया था और सांत्वना दी थी कि भारत का अणु शक्ति का दुरुपयोग करने का कोई इरादा नहीं था लेकिन भुट्टो ने उस पत्र की यहां तक उपेक्षा की थी कि उसने भारत के साथ सम्बन्ध सामान्य करने की दिशा में आयोजित 10 जून को इस्लामाबाद में होने वाली वार्ता का कार्यक्रम रद्द कर देने की घोषणा कर दी थी । भारत के आणविक विस्फोट को लेकर पाकिस्तान जैसा रवैया अख्तियार कर रहा था उसके आधार पर कैसी भी शरातर-भरी हरकत की उससे अपेक्षा को जा सकती थी । वह शरारत-भरी हरकत यह भी हो सकती थी कि भारतीय एटामिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन डाक्टर रंगनाथन का अपहरण करा दिया जाए और फिर उनकी हत्या कर दी जाए ताकि भारत अपने परीक्षण के कार्यक्रम में बुरी तरह पिछड़ जाए । डाक्टर रंगनाथन उस वक्त भारत का सबसे बड़ा न्यूक्लियर साइन्टिस्ट था और 18 मई को थार के रेगिस्तान में हुआ सफल आणविक विस्फोट परीक्षण उसी के प्रयत्नों का परिणाम था ।
लेकिन क्या बिना किसी ठोस आधार के उस लड़की की बताई इतनी सनसनीखेज बात को अखबार में छापा जा सकता था ? लड़की अपना नाम गुप्त रखना चाहती थी, किन परिस्थितियों में उसे उस बात की जानकारी हुई थी, यह वह बताना नहीं चाहती थी और इस सारे षड़यन्त्र का सरगना वह लाला तीरथराम को बता रही थी जिसे सुनील जानता नहीं था लेकिन जो निश्चय ही विश्वनगर का कोई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व था ।
“मिस्टर सुनील” - वाणी व्यग्र स्वर से बोली - “बताइये, आप यह समाचार अखबार में छापेंगे ?”
“मैडम” -सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “बिना किसी आधार के तो यह कतई सम्भव नहीं कि हम इतना खतरनाक बात अखबार में छाप दें । हम न केवल कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगे बल्कि सरकार और जनता भी हमारी तीव्र भर्त्सना करेगी कि हम केवल सनसनी फैलाने के लिये ऐसा स्टण्ट मार रहे हैं ।”
“यानी कि आप डाक्टर रंगनाथन का अपहरण हो जाने देंगे ?”
“अगर वाकई ऐसा कोई उपक्रम होने वाला है तो मैं सम्बन्धित अधिकारियों तक इस बात की जानकारी व्यक्तिगत तौर पर पहुंचाने की कोशिश करूंगा । मैं इस विषय में डाक्टर रंगनाथन से भी बात करूंगा । अगर वाकई ऐसा कोई षड्यन्त्र पनप रहा है तो उनका खुद भी सावधान रहना बहुत जरूरी है । पुलिस में कई उच्चाधिकारी मेरे परिचित हैं । मैं उनसे बात करूंगा और फिर वे स्वयं उचित इन्तजाम कर लेंगे ।”
“लेकिन भगवान के लिए मेरा जिक्र बीच में न लाइयेगा ।”
“नहीं लाऊंगा ।”
“थैंक्यू ।”
“अब आप कहां जायेंगी ?”
“मैं अग्रवाल साहब के अलावा तो यहां किसी को जानती नहीं । वहीं जाऊंगी । लेकिन पता नहीं वे इस वक्त घर पर होंगे या नहीं । अग्रवाल साहब अकेले रहते हैं । उनकी गैरहाजिरी में घर कोई होता नहीं और मैं इधर-उधर भटकना नहीं चाहती । लाला तीरथराम के आदमी अभी भी मुझे तलाश कर रहे होंगे । मैं नहीं चाहती कि मेरा उनसे फिर आमना-सामना हो जाये ।”
“मिस्टर अग्रवाल के यहां टेलीफोन है ?”
“नहीं, लेकिन उनके पड़ोस में है ।”
“आप ऐसा क्यों नहीं करती ? आप पड़ोस के टेलीफोन पर रिंग करके मालूम कर लीजिये कि वे वापस आ गये हैं या नहीं । अगर वे आ गये हों तो आप सीधी वहां चली जाइयेगा वर्ना जब तक वे न आयें, आप यहीं आराम फरमाइये ।”
“ठीक है ।”
“टेलीफोन बैडरूम में है ।”
वाणी बैडरूम में चली गई ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
थोड़ी देर बाद वह वापस लौटी और बोली - “अग्रवाल साहब तो अभी लौटे नहीं लेकिन उनका पड़ोसी कहता कि वह उनके दरवाजे पर यह चिट लगा देगा कि वे जब भी लौटें, यहां वाणी को रिंग कर लें । मैंने आपका टेलीफोन नम्बर बता दिया है ।”
“वैरी गुड” - सुनील बोला - “मैं थोड़ी देर के लिए यहां से जाना चाहता हूं । मेरे लौटने तक आप यहीं रहिये ।”
“ओके ।”
“दरवाजा भीतर से बन्द कर लीजिये । मेरे सिवाय दरवाजा किसी को मत खोलियेगा ।”
“आप ऐसा कीजिये । आप दरवाजे को बाहर से ताला लगा जाइये ।”
“लेकिन...”
“मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मिस्टर सुनील ।”
“जैसा आप ठीक समझें ।”
सुनील फ्लैट से बाहर निकल आया । उसने फ्लैट के बाहर से ताला लगाया और नीचे आ गया ।
वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और उसके मित्र पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट रामसिंह के घर पहुंचा ।
सौभाग्यवश रामसिंह उस समय घर पर ही था ।
सुनील ने उसे सारी दास्तान सुनाई ।
“हूं” - सारी बात सुन चुकने के बाद रामसिंह बेहद गम्भीर स्वर से बोला - “और वह लड़की कहां है ?”
“वह तो वापिस चली गई ।” - सुनील सरल स्वर से बोला ।
“कहां ? विश्वनगर ?”
“हां ।”
“सच बोल रहे हो ?”
“मैंने पहले तुमसे कभी झूठ बोला है ?”
“हां ।”
“कब ?”
“हमेशा ।”
“ओह, रामसिंह...”
“छोड़ो । सुनील, सच्ची बात यह है कि मुझे यह सारी दास्तान चण्डूखाने की गप मालूम होती है ।”
“लेकिन...”
“लेकिन फिर भी मैं सी आई डी के अधिकारियों को इस बात के लिए मजबूर करूंगा कि वे लाला तीरथराम नाम के इस आदमी को चैक करवायें और डाक्टर रंगनाथन के लिए तुरन्त अंगरक्षक नियुक्त करें और उनकी सुरक्षा का पूरा प्रबन्धन करें ।”
“वैरी गुड । मेरा यहां तक आना सफल हो गया ।”
“लेकिन निजी तौर पर मुझे इस कहानी में कतई कोई विश्वास नहीं ।”
“मौजूदा हालात में मुझे तुम्हारे विश्वास की नहीं, तुम्हारे एक्शन की जरूरत है ।”
“ठीक है ।”
“लेकिन एक बात का ध्यान रखना, रामसिंह । उस लड़की का जिक्र मैंने एक दोस्त के नाते तुम्हारे सामने किया है, न कि एक पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट के नाते । इसलिए तुमसे प्रार्थना है कि उस लड़की का जिक्र किसी से मत करना ।”
“नहीं करूंगा । लेकिन वह लड़की पुलिस से घबराती क्यों है ?”
“मालूम नहीं । सम्भव है वह उन्हीं अपराधियों की सहयोगिनी हो जो डाक्टर रंगनाथन के अपहरण का षड्यन्त्र रच रहे हैं । अन्य अपराधों में तो वह उनका साथ देती रही हो, लेकिन शायद वह ऐसे किसी अपराध में हिस्सेदार नहीं बनना चाहती हो जिससे राष्ट्र का अहित होता हो । एक अपराधी में भी तो देशभक्ति की भावना हो सकती है ।”
“हो सकती है ।” - रामसिंह ने स्वीकार किया ।
सुनील ने रामसिंह से विदा ली और उसकी कोठी से बाहर निकल आया ।
वह वापस बैंक स्ट्रीट रवाना हो गया ।
रास्ते में एकाएक सुनील को एक ख्याल आया ।
उसने मोटरसाइकिल को एक पैट्रोल पम्प के सामने रोका । पम्प पर पब्लिक काल बूथ मौजूद था ।
सुनील टेलीफोन बूथ में घुस गया । उसने डायरेक्टरी में डाक्टर रंगनाथन के घर का टेलीफोन नम्बर देखा और फिर वह नम्बर डायल कर दिया । दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही उसने कायन बाक्स में दस-दस पैसे के तीन सिक्के डाले और बोला - “हल्लो !”
“यस !”
“मे आई स्पीक विद डाक्टर रंगनाथन ?”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है । मैं ‘ब्लास्ट’ का स्पेशल कारस्पान्डेन्ट हूं ।”
“आप उनसे किस विषय में बात करना चाहते हैं ?”
“यह मैं उनके सिवाय किसी को नहीं बता सकता, लेकिन विश्वास जानिये, विषय बहुत महत्वपूर्ण है ।”
पहले तो सुनील को लगा कि दूसरी ओर से बोल रहा आदमी उसकी डाक्टर रंगनाथन से बात नहीं करवायेगा, लेकिन कुछ क्षण बाद उसका अनिच्छापूर्ण स्वर उसके कानों में पड़ा - “होल्ड दी लाइन प्लीज ।”
सुनील रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा ।
“हल्लो” - थोड़ी देर बाद एक नया स्वर उसके कानों में पड़ा - “रंगनाथन हेयर ।”
“गुड ईवनिंग, सर” - सुनील तुरन्त मीठे स्वर से बोला - “मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है । मैं ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि हूं । एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर मैं आपसे तुरन्त बात करना चाहता हूं ।”
“इस वक्त ?”
“जी हां । आप इसी से बात के महत्व का अन्दाजा लगा सकते हैं कि मैंने इस वक्त आपके घर पर फोन किया है । सर, अगर आपके हित के लिए मेरा आपसे तुरन्त मिलना जरूरी न होता तो मैं हरगिज आपको तकलीफ न देता ।”
“मेरे हित के लिये ?”
“जी हां ।”
“बात क्या है ?”
“टेलीफोन पर नहीं बता सकता । बात इतनी गम्भीर है कि वह केवल आप ही के कान में पड़नी चाहिये । मुझे इस मामले में टेलीफोन यन्त्र का कोई भरोसा नहीं है ।”
“बड़ी रहस्यपूर्ण बातें कर रहे हो, मिस्टर !”
“आप सही फरमा रहे हैं लेकिन...”
“मेरी कोठी पर आज एक डिनर का आयोजन है । काफी लोग आ रहे हैं । प्रधानमन्त्री भी अपेक्षित हैं । मैं बहुत व्यस्त...”
“मैं आपका बहुत कम समय लूंगा । ज्यादा-से-ज्यादा पांच मिनट ।”
“इस वक्त तो मैं तुम्हें एक क्षण का भी समय नहीं दे सकता, लेकिन अगर तुम साढे नौ बजे तक इन्तजार कर सको तो...”
“मैं इन्तजार कर लूंगा, साहब । मैं ठीक साढ़े नौ बजे हाजिर हो जाऊंगा ।”
“ओके । आई विल सी यू दैन ।”
सम्बन्धविच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर हुक पर टांग दिया और बूथ से बाहर निकल आया ।
वह बैंक स्ट्रीट पहुंचा ।
अपने फ्लैट का ताला खोलकर वह भीतर घुसा ।
वाणी को जिस मुद्रा में वह जहां बैठा छोड़कर गया था, वह वहीं वैसे ही बैठी थी । कोका कोला अभी भी उसके सामने अनछुआ पड़ा था । सुनील के भीतर कदम रखते ही उसने सिर उठाया और आशापूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“मैं पुलिस के एक उच्चाधिकारी से बात कर आया हूं । उसने डाक्टर रंगनाथन की सुरक्षा का पूरा इन्तजाम करवाने का वादा किया है । साढे नौ बजे मैं डाक्टर रंगनाथन से भी मिलने जा रहा हूं । मैं उन्हें खुद भी खतरे से सावधान रहने के लिए कहना चाहता हूं ।”
“ठीक है ।”
“तुम्हारा फोन आया ?”
“नहीं । लेकिन अगर मेरी मौजूदगी से आपको कोई तकलीफ है तो मैं...”
“मुझे कोई तकलीफ नहीं ।”
उसी क्षण बैडरूम में फोन की घण्टी बजी ।
“शायद अग्रवाल साहब का फोन है ।”
सुनील बैडरूम में पहुंचा । वाणी भी उसके पीछे-पीछे वहां पहुंच गई ।
सुनील ने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला - “हल्लो !”
“आप मिस्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से किसी ने तीव्र स्वर से पूछा ।
“जी हां ।” - सुनील बोला ।
“मैं फौरन आपके फ्लैट पर पहुंच रहा हूं । कहीं जाइयेगा नहीं । मुझे आपसे बहुत जरूरी काम है ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“सब कुछ वहीं आकर बताऊंगा ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील विचित्र निगाहों से रिसीवर को घूरने लगा ।
“किसका फोन था ?” - वाणी ने आशंकित स्वर से पूछा ।
“अग्रवाल साहब का नहीं था ।” - सुनील बोला - “पता नहीं कौन था । कहता था कि फौरन पहुंच रहा हूं । कहीं जाना नहीं ।”
“कहीं वह उन्हीं दो आदमियों में से तो नहीं था जो मेरे पीछे पड़े हुए हैं ?”
“मुमकिन है ।”
“मुझे फौरन यहां से निकल जाना चाहिये ।” - वह आंतकित स्वर से बोली ।
“ठीक है” - सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया - “चलो ।”
दोनों फ्लैट से बाहर निकल आये ।
उसी क्षण नीचे की मंजिल से आती एक आवाज सुनील को सुनाई दी ।
“मिस्टर चक्रवर्ती का फ्लैट कौन-सा है ?”
“वाणी” - सुनील जल्दी से बोला - “तुम नीचे जाने की जगह एक मंजिल ऊपर चढ जाओ । जो आदमी मेरे पास आ रहा है, मैं उसे बातों में उलझाये रखूंगा और तुम वहां से निकल जाना और सड़क के मोड़ पर मेरा इन्तजार करना ।”
वाणी ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया और ऊपर ले जाने वाली सीढियों की ओर लपकी ।
सुनील वापिस फ्लैट में आ गया । उसने दरवाजा बन्द कर दिया ।
उसी क्षण कालबैल बजी ।
सुनील ने दरवाजा खोला ।
एक लम्बा-चौड़ा, कठोर चेहरे वाला आदमी उसके सामने खड़ा था ।
“मिस्टर सुनील ?” - उसने पूछा ।
“दैट्स राइट ।” - सुनील बोला और एक ओर हट गया । वह आदमी भीतर प्रविष्ट हुआ ।
“मैं बाहर जा रहा था” - सुनील बोला - “मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं । फरमाइये, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?”
“आज शाम को सात बजे के करीब आपके आफिस में एक लड़की आपसे मिलने आई थी । मैं उसी के सम्बन्ध में पूछताछ करने आया हूं ।”
“क्या जानना चाहते हैं ?”
“उसने क्या बातचीत की थी आपसे ?”
“बातचीत की नौबत ही कहां आई, साहब” - सुनील झल्लाकर बोला - “मैंने उसे कहा, आप बैठिये, मैं अभी हाजिर होता हूं । लौटकर आया तो वह गायब थी । अपना नाम तक तो बताया नहीं उसने । उलटे मिस्ट्री पैदा कर गई ।”
“आपसे उसकी दोबारा मुलाकात नहीं हुई ?”
“कैसे होती ?”
“वह यहां नहीं आई ?”
“अभी तक तो नहीं आई ।”
उस आदमी ने शान्ति की सांस ली ।
“मैं उम्मीद करूं कि वह यहां आयेगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“मुझे क्या मालूम ?” - वह आदमी रूखे स्वर से बोला ।
“मैंने सोचा शायद आपको मालूम हो ।”
“मुझे कुछ नहीं मालूम ।” - और वह जाने के लिए मुड़ा ।
“भाई साहब” - सुनील ने उसकी बांह थाम ली - “कुछ तो मालूम होगा । मुझे तो कतई कुछ नहीं मालूम । मैंने उसकी एक झलक-भर देखी थी । मेरा तो उस एक झलक ने ही फ्यूज उड़ा दिया है ।”
“अरे कहा न, मुझे कुछ नहीं मालूम ।” - और उसने एक झटके से अपनी बांह छुड़ा ली ।
“नाम तो मालूम होगा ? कम-से-कम नाम तो बताते जाओ ।”
उत्तर देने के स्थान पर उस पर आदमी ने भड़ाक से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया । वह तेजी से सीढियां उतरने लगा ।
सुनील के होंठों पर एक मुस्कराहट उभरी । जवाब देने के स्थान पर उसने उस आदमी से उलटे सवाल करने आरम्भ कर दिये थे इसीलिये वह आदमी इतनी जल्दी वहां से खिसका था ।
सुनील ने भी फ्लैट को ताला लगाया और सीढियों की ओर बढ गया ।
इमारत से बाहर निकलकर वह गली के मोड़ पर पहुंचा । वहां एक टैक्सी खड़ी थी । वाणी उसे कहीं दिखाई नहीं दी ।
“मिस्टर सुनील !” - वाणी की आवाज आई ।
सुनील ने अपने चारों ओर देखा ।
वाणी टैक्सी की पिछली सीट पर बैठी थी और हाथ के संकेत से उसे समीप बुला रही थी । सुनील टैक्सी के समीप पहुंचा ।
“मैं अब यहां नहीं रुक सकती” - वाणी बोली - “मैं अग्रवाल साहब के घर जाती हूं । वे नहीं भी आये होंगे तो मैं पड़ोस में इन्तजार कर लूंगी । मुझे लगता है अब लाला तीरथराम के आदमी आपके फ्लैट की भी निगरानी करेंगे ।”
“मैं तुम्हें छोड़ आता हूं ।”
“थैंक्यू । आइये ।”
“मैं मोटरसाइकिल लेकर आता हूं ।”
“रहने दीजिये । टैक्सी पर ही चलिये । मैं जल्दी-से-जल्दी इस इलाके से निकल जाना चाहती हूं ।”
“ओके ।”
सुनील टैक्सी में सवार हो गया ।
टैक्सी आगे बढी ।
वे लिटन रोड पहुंचे ।
के पी अग्रवाल का घर एक छोटा-सा एक मंजिला मकान था । इमारत में अंधेरा था । फाटक ठेलकर वे भीतर प्रविष्ट हुए । बरामदे में जाकर वाणी ने कालबैल बजाई । भीतर कहीं घन्टी बजने की आवाज आई ।
“जिस पड़ोसी को आपने टेलीफोन किया था” - सुनील बोला - “वह तो कहता था कि वह यहां दरवाजे पर आपके सन्देश की चिट लगा देगा । यहां तो चिट दिखाई नहीं दे रही ।”
“शायद चिट अग्रवाल साहब के हाथ लग चुकी हो । शायद वे इमारत में हों । पिछवाड़े के कमरों की रोशनी यहां दिखाई नहीं देती । शायद वे भीतर हों ।”
“दोबारा घन्टी बजाओ ।”
वाणी ने दोबारा घन्टी बजाई ।
उत्तर नदारद ।
सुनील ने दरवाजे को धीरे से धक्का दिया ।
“दरवाजा तो खुला है ।” - वह बोला ।
“अजीब बात है ।” - वाणी बोली ।
दोनों भीतर प्रविष्ट हुए । सुनील ने टटोलकर बिजली का स्विच आन किया । वह ड्राइंगरूम था । खाली था । कोने की मेज पर फूलदान के नीचे एक कागज दबा हुआ था । सुनील ने आगे बढकर वह कागज उठा लिया । वह वही चिट थी जिसकी उपस्थिति बाहर दरवाजे पर अपेक्षित थी । उस पर लिखा था - मिस्टर अग्रवाल, लौटते ही 271193 पर वाणी को रिंग कीजिये ।
वह नम्बर सुनील का था ।
“सन्देश की यह चिट यहां पड़ी होने से तो यही लगता है कि अग्रवाल साहब वापिस लौट चुके हैं और उन्हें तुम्हारा सन्देश मिल चुका है ।” - वह बोला ।
“शायद वे पिछवाड़े में हों” - वाणी बोली - “मैं देखती हूं ।”
वह तेजी से पिछले कमरे की ओर बढ गई ।
सुनील भी उस ओर बढा ।
उसी क्षण उसे अपने पीछे दरवाजा बन्द होने की आवाज आई । सुनील ने चिहुंककर पीछे देखा ।
पीछे दरवाजा अपने-आप बन्द नहीं हुआ था । दरवाजा किसी ने बन्द किया था, क्योंकि सुनील ने ताले में चाबी घूमने की आवाज भी सुनी थी ।
“आओ, आओ, वाणी मेम साहब” - एकाएक पिछले कमरे से एक कर्कश स्वर सुनाई दिया - “यहां तुम्हारा ही इन्तजार हो रहा था ।”
पिछले कमरे में अंधेरा था । ड्राइंगरूम का प्रकाश ही पिछले कमरे में पहुंच रहा था । उस प्रकाश में सुनील को दरवाजे के समीप खड़ी वाणी दिखाई दी और एक हाथ दिखाई दिया जिसमें एक रिवाल्वर चमक रही थी । रिवाल्वर की नाल का रुख वाणी की ओर था ।
रिवाल्वर वाले को शायद सुनील की जानकारी नहीं थी । सुनील की या सुनील और वाणी दोनों की जानकारी केवल उसे थी जिसने बाहर से दरवाजा बन्द किया था । इमारत की साइड से भी पिछवाड़े का रास्ता था और सामने वाला आदमी अब जरूर पिछवाड़े के रास्ते अपने साथी के पास पहुंचने की कोशिश कर रहा था ।
उस संकट की घड़ी में एक ही बात सुनील को सूझी ।
वह दबे पांव बिजली के स्विच के पास पहुंचा । उसने बिजली का स्विच आफ किया और जोर से चिल्लाया - “वाणी ! इधर !”
कमरे में अंधेरा हो गया ।
कोई जोर से चिल्लाया ।
वाणी भागी ।
एक दरवाजा भड़ाक से चौखट से टकराया ।
एक फायर हुआ ।
वाणी सीधी सुनील की छाती से आकर टकराई ।
“दरवाजा बाहर से बन्द है ।” - सुनील बोला ।
“दाईं ओर भी दरवाजा है ।” - वाणी बोली । उसने सुनील का हाथ थामा और दाईं ओर के दरवाजे की ओर भागी । वह दरवाजा एक बाथरूम का था । उसके अगले सिरे पर एक और दरवाजा था । उस दरवाजे से दोनों बाहर निकल आये ।
वह दरवाजा इमारत की साइड की राहदारी में खुलता था ।
राहदारी और बगल की इमारत के कम्पाउण्ड के बीच केवल एक चार फुट ऊंची दीवार थी ।
तभी पिछवाड़े से मोड़ काटकर एक आदमी राहदारी में प्रकट हुआ । सामने वाला आदमी भी किसी भी क्षण वहां पहुंच सकता था ।
“दीवार !” - सुनील फुसफुसाया ।
दोनों बिजली की फुर्ती से दीवार फांद गये ।
एक और फायर हुआ ।
बगल की इमारत में कोई जोर से बोला ।
दोनों कम्पाउन्ड पार करके सड़क पर आ गये और सरपट भागे ।
उन्हें अपने पीछे भागते कदमों की आवाज आ रही थी ।
उन्होंने एक पतली गली में मोड़ काटा । सुनील ने एकाएक वाणी को बांह पकड़कर अपनी ओर घसीटा । दोनों एक-दूसरे को लिये-दिये घनी झाड़ियों के एक झुण्ड के पीछे जा गिरे ।
भागते कदमों की आवाज समीप होती गई ।
दो साये उनसे थोड़ी-सी दूर आकर ठिठके । एक के हाथ में अभी भी रिवाल्वर चमक रही थी ।
दोनों सांस रोके झाड़ियों के पीछे दुबके रहे ।
“किधर ?” - उनमें से एक बोला ।
“इधर ही आई थी” - रिवाल्वर वाला बोला - “फिर किसी इमारत में न घुस गई हो ।”
“उसके साथ एक आदमी भी था” - पहला फिर बोला - “वह कौन था ?”
“पता नहीं । मुझे तो उसकी खबर भी नहीं थी ।”
“वह अमर तो नहीं था ?”
“हो ही नहीं सकता । वह तो विश्वनगर में है ।”
“शायद यहां पहुंच गया हो ?”
“मुझे उम्मीद नहीं ।”
सुनील ने अपने आसपास टटोलकर एक बड़ा-सा पत्थर उठाया । उसने वह पत्थर पूरी शक्त से गली में बहुत दूर उछाल दिया । पत्थर जोर की आवाज के साथ सड़क से टकराया ।
“उधर !” - रिवाल्वर वाला बोला ।
दोनों फौरन गली में भागे ।
सुनील ने वाणी की बांह पकड़ी और झाड़ियों से पीछे से निकल से निकल आया । दोनों दबे पांव विपरीत दिशा में भागे ।
मुख्य सड़क पर उन्हें टैक्सी मिल गई । दोनों हांफते हुए टैक्सी की पिछली सीट पर ढेर हो गये ।
“फिलहाल सीधे चलो ।” - सुनील टैक्सी ड्राइवर से बोला ।
टैक्सी आगे बढ गई ।
“मुझे अग्रवाल साहब की फिक्र लग गई है” - वाणी हांफती हुई बोली - “ये बदमाश उनके घर में घुसे बैठे थे । कहीं इन्होंने उन्हें कुछ कर न दिया हो ।”
“हमें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिये ।”
“नहीं” - वाणी ने तीव्र स्वर से उसकी बात काटी - “सम्भव है यह मेरा वहम ही हो कि अग्रवाल साहब उनके काबू में आ गये हैं । सम्भव है वे अभी तक लौटे ही न हों ।”
“तुम पुलिस के नाम से इतना घबराती क्यों हो ?”
“है कोई वजह ।”
“लेकिन...”
“मिस्टर सुनील, मैं फौरन इस नामुराद शहर से कूच कर जाना चाहती हूं । लेकिन अगर मेरी वजह से अग्रवाल साहब को कोई नुकसान पहुंचा होगा तो मुझे भारी अफसोस होगा । मुझे हर क्षण उनकी चिन्ता लगी रहेगी । आपने मेरी बहुत मदद की है । मेरी एक आखिरी प्रार्थना और है आपसे । आप कृपया अग्रवाल साहब की खोज-खबर कीजियेगा और अगर वे सकुशल हों तो मुझे विश्वनगर सूचित कर दीजियेगा ।”
“कहां !”
“टेलीफोन नम्बर 43566 पर ।”
“यह तुम्हारा नम्बर है ?”
“नहीं, लेकिन इस नम्बर पर आप मेरे लिये जो भी सन्देश छोड़ेंगे वह मुझ तक पहुंच जायेगा ।”
“अपना विश्वनगर का पता बताओ ।”
“उसकी जरूरत नहीं ।”
“फिर भी ।”
“मेरा कोई पक्का ठिकाना नहीं है वहां ।”
“उन बदमाशों ने किसी अमर नाम के आदमी का जिक्र किया था । तुम जानती हो, अमर कौन है ?”
वाणी खिड़की से बाहर देखने लगी । प्रत्यक्ष था वह इस विषय में कोई बात नहीं करना चाहती थी ।
“अब क्या इरादा है ?”
“फौरन विश्वनगर जाऊंगी । दस बजे एक गाड़ी जाती है ।”
“जिस प्रकार वे लोग तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं, उससे तो लगता है वे रेलवे स्टेशन, स्टेट ट्रान्सपोर्ट के बस अड्डों, यहां तक कि एयरपोर्ट का तक की भी निगरानी करवा रहे होंगे ।”
“हे भगवान, इसका तो मुझे ख्याल ही नहीं आया ।”
सुनील चुप रहा ।
“अब मैं क्या करूं ?”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर टैक्सी ड्राइवर से बोला - “सरदारजी, राजनगर से बाहर जा सकते हो ?”
“जा तो नहीं सकता, साहब” - टैक्सी ड्राइवर बोला - “लेकिन अगर अच्छे पैसे मिलें तो चालान का खतरा उठाने के लिए तैयार हूं ।”
“पैसे-वैसे हैं तुम्हारे पास ?” - सुनील ने वाणी से पूछा ।
“हैं ।”
“काफी ?”
“हां ।”
“मेम साहब को हरीपुर स्टेशन पर छोड़कर आना होगा । कितने में बात बनती है ?”
“हरीपुर चालीस मील दूर है, साहब । सौ का पत्ता हो जाये ।”
सुनील ने वाणी की ओर देखा ।
वाणी ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“ठीक है, सरदारजी” - सुनील बोला - “सौदा पक्का ।”
फिर वह वाणी की ओर घूमा - “दस बजे जो गाड़ी विश्वनगर के लिए राजनगर से चलती है, वह हरीपुर भी रुकती है । तुम वहां से उस गाड़ी पर सवार हो जाना । सुरक्षित विश्वनगर पहुंच जाओगी ।”
“इस अमूल्य राय के लिए धन्यवाद ।”
“मैं यहीं उतर रहा हूं । अग्रवाल साहब के बारे में मैं तुम्हें टेलीफोन करूंगा ।”
“बहुत मेहरबानी आपकी । मैंने बहुत तकलीफ दी आपको ।”
“नैवर माइण्ड दैट ।”
सुनील ने टैक्सी रुकवाई और उतरकर फुटपाथ पर आ गया ।
***
नौ बजने में अभी पांच मिनट बाकी थे ।
झाड़ियों के पीछे जहां सुनील वाणी के साथ छुपा था, वहां जमीन मटियाली और गीली थी जिसकी वजह से सुनील के सारे कपड़े खराब हो गये थे । उस हालत में वह डाक्टर रंगनाथन की कोठी पर नहीं जाना चाहता था । अभी समय था । वह अपने फ्लैट पर जाकर कपड़े बदल सकता था । उसने एक टैक्सी ली और वापिस बैंक स्ट्रट पहुंच गया ।
अपने फ्लैट में पहुंचकर उसने अपने मिट्टी से सने कपड़े उतार दिये ।
तभी फ्लैट की घन्टी बजी ।
“अब कौन आ गया !” - सुनील होंठो में बड़बड़ाया । उसने अपनी कमर के गिर्द एक तौलिया लपेटा और जाकर दरवाजा खोला ।
सामने वही लम्बा-चौड़ा कठोर चेहरे वाला आदमी खड़ा था जो वाणी के बारे में पूछता हुआ पहले भी वहां आया था । वह बगोले की तरह फ्लैट में घुस आया ।
“यह क्या बदतमीजी है ?” - सुनील क्रोधित स्वर से बोला ।
“मिस्टर सुनील” - वह आदमी सुनील के मूड की ओर तनिक भी ध्यान दिये बिना कठोर स्वर से बोला - “तुमने मुझसे झूठ क्यों बोला ?”
“कौन-सा झूठ बोला है मैंने तुमसे ?”
“तुमने कहा था कि लड़की यहां नहीं आई थी जबकि मैंने तुम्हारे जाते ही नीचे गली में पूछताछ की थी । तुम्हारी जानकारी के लिये जिस लड़की का मैं जिक्र कर रह रहा हूं, शाम को कई लोगों ने उसे इस इमारत में घुसते देखा था ।”
“तो देखा होगा” - सुनील लापरवाही से बोला - “वह मेरे पास नहीं आई ।”
“इस इमारत में और कहां जा सकती थी वह ?” - वह आदमी अपेक्षाकृत नम्र स्वर से बोला ।
“मुझे क्या मालूम ?”
“मिस्टर सुनील, मैं आपकी भलाई के लिए ही उस लड़की के बारे में सवाल पूछ रहा हूं । आपकी जानकारी के लिये वह लड़की फरार मुजरिम है । पुलिस सारे देश में उसकी तलाश कर रही है ।”
“क्या अपराध किया है उसने ?”
“यह मुझे भी नहीं मालूम । उसका भाई मेरा दोस्त है । उसी ने मुझे फोन करके बताया था कि वह विश्वनगर से चुपके से भाग निकली है और कहीं पुलिस के बखेड़े में फंस सकती है । उसी ने मुझे बताया था कि वह राजनगर में शायद किसी अखबार के दफ्तर में जायेगी । मैंने हर अखबार के दफ्तर से पूछताछ की थी । ‘ब्लास्ट’ से मुझे मालूम हुआ था कि वह आई थी और आपसे मिली थी । मिस्टर सुनील, यहां वह लड़की निश्चय ही किसी मुसीबत में फंस जायेगी । उसके भाई ने मुझसे तीव्र अनुरोध किया ह कि अगर वह मुझे दिखाई दे जाये तो मैं उसे पकड़कर विश्वनगर ले आऊं । उसका भाई विश्वनगर में अच्छा रसूख रखता है । पुलिस से भी उसकी खूब बनती है । वहां वह लड़की को किसी प्रकार पुलिस के चक्कर से निकाल सकता है । मैं आपके सामने सौ फीसदी हकीकत बयान कर रहा हूं मिस्टर सुनील । मेरी उस लड़की में सिवाय इस बात के और कोई दिलचस्पी नहीं है कि मैं उसे किसी प्रकार विश्वनगर उसके भाई के पास पहुंचा दूं । आपकी जानकारी के लिए आप उसके बारे में झूठ बोलकर उसका कोई भला नहीं कर रहे हैं ।”
“लेकिन वह यहां मेरे पास नहीं आई ।” - सुनील तीव्र विरोधपूर्ण स्वर से बोला ।
“वह इस इमारत में निश्चय ही घुसी है और आपके फ्लैट के अलावा वह कहीं नहीं जा सकती ।”
“वह आपको जानती है ?”
“हां ।”
“तो शायद उसने इमारत में आपकी सूरत देख ली हो और यहां से खिसक गई हो ।”
उस आदमी के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे ।
“अब बराय मेहरबानी आप तशरीफ ले जाइये । मेरी कहीं अप्वायन्टमैन्ट है । मैंने फौरन यहां से जाना है ।”
“आप सच कह रहे हैं कि लड़की आपके फ्लैट में नहीं आई ?”
“मैंने पहले कभी आपसे झूठ बोला है ?”
“मजाक मत कीजिये ।”
“कौन मजाक कर रहा है ? मजाक का मेरा-आपका कौन-सा रिश्ता है ?”
“आलराइट । मैं जा रहा हूं । लेकिन जाती बार मैं आपको यह चेतावनी दे जाना चाहता हूं कि अगर आप अपनी भलाई चाहते हैं तो उस लड़की के साथ कोई सम्बन्ध न रखिये, वर्ना वह आपको ऐसे बखेड़े में फंसायेगी कि आप पनाह मांग जायेंगे ।”
“मैं ध्यान रखूंगा ।”
वह आदमी दनदनाता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया ।
सुनील ने शान्ति की सांस ली । उसने कपड़े पहने और फ्लैट से बाहर निकल आया ।
वाणी के आसपास रहस्य की धुंध और गहरी होती जा रही थी ।
अपनी मोटरसाइकिल पर वह डाक्टर रंगनाथन के निवासस्थान पर पहुंचा ।
डाक्टर रंगनाथन की कोठी एक विशाल कम्पाउण्ड में उस विशाल इमारत की बगल में थी जिसमें एटामिक एनर्जी कमीशन का दफ्तर और प्रयोगशाला थी ।
ठीक साढे नौ बजे सुनील कोठी के गेट पर पहुंच गया ।
कोठी में बड़ी चहल-पहल थी । सामने कारें ही कारें दिखाई दे रही थीं । हर तरफ पुलिस के आदमी फैले हुए थे । इससे लगता था कि वहां बहुत महत्त्वपूर्ण आदमी पहुंचे हुए थे, पहुंचने वाले थे । वहां मोटरसाइकिल पर आने वाला शायद सुनील अकेला आदमी था । शायद इसीलिये कई निगाहें उसकी ओर उठ गईं ।
“मेरा नाम सुनील है” - वह गेट पर खड़े एक आदमी से बोला - “मैं...”
उस आदमी के पीछे खड़ा एक आदमी सामने आया और बोला - “आप ‘ब्लास्ट’ से आये हैं ?”
“जी हां ।”
“मेरे साथ तशरीफ लाइये । मैं डाक्टर रंगनाथन का सैक्रेटरी हूं । आप ही की खातिर यहां खड़ा हूं ।”
सुनील उसके साथ हो लिया ।
अगर सुनील प्रेस से सम्बन्धित न होता तो शायद आज के वातावरण में उसका डाक्टर रंगनाथन से मिल पाना कभी सम्भव न हो पाता । 18 मई के न्यूक्लियर टैस्ट के सन्दर्भ में एटामिक एनर्जी कमीशन से सम्बन्धित हर किसी ने प्रेस पर विशेष कृपादृष्टि रखी थी । टैस्ट के रहस्योद्घाटन के दिन जो पहली प्रेस कान्फ्रेन्स हुई थी उसमें स्वयं प्रधानमन्त्री ने डाक्टर का परिचय प्रेस से करवाया था ।
सैक्रेटरी उसे इमारत के कोने में कहीं स्थित एक छोटे से कमरे में ले आया ।
“आप यहां तशरीफ रखिये” - सैक्रेटरी बोला - “मैं साहब को खबर करता हूं ।”
सुनील ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया । सक्रेटरी वहां से चला गया । सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
थोड़ी देर बाद सैक्रेटरी डाक्टर रंगनाथन के साथ वापस लौटा ।
“मिस्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती” - सैक्रेटरी बोला - “फ्राम ‘ब्लास्ट’ ।”
सुनील उठकर खड़ा हो गया ।
डाक्टर रंगनाथन ने उससे हाथ मिलाया और बोला - “फरमाइये साहब ! मैंने बड़ी मुश्किल से आपके लिए पांच मिनट निकाले हैं इसलिए ज्यादा वक्त न लीजियेगा ।”
“मैं केवल आपसे बात करना चाहता हूं ।” - सुनील अर्थपूर्ण ढंग से सैक्रेटरी को देखता हुआ बोला ।
“अच्छा ।” - डाक्टर रंगनाथन बोला । उसने सैक्रेटरी को कमरे से बाहर प्रतीक्षा करने का आदेश दिया । सैक्रेटरी तुरन्त कमरे से निकल गया । उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
डाक्टर रंगनाथन ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील को ओर देखा ।
“सर” - सुनील बिना एक क्षण भी नष्ट किये सीधा मतलब की बात पर आ गया - “मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि कुछ देशद्रोही लोग निकट भविष्य में आपके अपहरण की योजना बना रहे हैं ।”
“क्या ?” - डाक्टर रंगनाथन चौंका ।
“मैं हकीकत बयान कर रहा हूं, साहब । इसी सन्दर्भ में मैं पुलिस के एक उच्चाधिकारी से भी मिलकर आया हूं । उसने भी सावधानी बरतने का आश्वासन दिया है लेकिन ऐसे मामलों में सरकारी मशीनरी के हरकत में आने में प्रायः वक्त लग जाता है इसलिए मैंने जरूरी समझा कि मैं आपको भी सावधान कर दूं । अगर आप खुद भी सतर्क रहेंगे तो दुश्मनों की चाल आसानी से कामयाब नहीं हो सकेगी ।”
“बट दैट इज प्रीपोस्चरस” - डाक्टर रंगनाथन अविश्वासपूर्ण स्वर से बोला - “कोई मेरा अपहरण क्यों करेगा ?”
“मुझे पक्की खबर मिली है, सर ।”
“लेकिन भला क्यों करेगा कोई ऐसा ? किसी को मेरा अपरहण करने से क्या फायदा ?”
“फायदा मुझे नहीं मालूम । शायद दूसरे को कोई फायदा न हो पाये, लेकिन भारत को तो आपके न रहने से भारी नुकसान होगा । हमारे एटामिक रिसर्च के सारे प्रोग्राम धरे-के-धरे रह जायेंगे ।”
“बड़ी चमत्कृत कर देने वाली बातें कर रहे हो, नौजवान ! सच पूछो तो मुझे तो तुम्हारी बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा ।”
“फिर भी सावधान रहने में क्या हर्ज है, सर ! अगर ऐसा कुछ नहीं होने वाला तो बड़ी अच्छी बात है, लेकिन अगर कुछ होने वाला है तो सावधान रहने में क्या हर्ज है ?”
“जो लोग, तुम्हारे ख्याल से मेरा अपहरण करना चाहते हैं, वे कोई विदेशी शक्ति हैं या भारतीय ?”
“यह मुझे नहीं मालूम, लेकिन उनका सरगना सौ फीसदी भारतीय है ।”
“सरगना ! यानी कि इस कथित षड्यन्त्र के पीछे जिस आदमी का हाथ है, तुम उसे जानते हो ?”
“जी हां ।”
“कौन है वो ?”
“लाला तीरथराम नाम का कोई आदमी है । विश्वनगर की पटेल रोड पर उसकी कोठी है । वह वहां का कोई महत्त्वपूर्ण आदमी है ।”
“और वह आदमी मेरे अपहरण का षड्यन्त्र रच रहा है ?”
“जी हां ।”
डाक्टर रंगनाथन एकाएक हो-हो करके हंसने लगा ।
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“तुम कोई आजकल के नौजवानों में प्रचलित नशा तो नहीं करते ? जैसे मारिजुआना, एल एस डी, हशीश...”
“सर !” - सुनील आहत स्वर से बोला ।
“बुरा मत मानो दोस्त” - डाक्टर रंगनाथन पूर्ववत् हंसता हुआ बोला - “लेकिन तुमने बात ही ऐसी की है कि...”
“लेकिन...”
“मेरे साथ आओ ।” - डाक्टर रंगनाथन ने जबरदस्ती सुनील ही बांह पकड़ी और कमरे से बाहर की ओर बढा ।
वह उसे बाहर लाउंज में ले आया । उसने एक सरसरी निगाह लाउंज में मौजूद समाज के विभिन्न आधारस्तम्भों पर डाली और फिर दृढ कदमों से एक ओर बढा ।
लाउंज के एक कोने में एक बहुत ही संभ्रान्त लगने वाला आदमी खड़ा किसी से बातें कर रहा था । उसके एक हाथ में एक हाथीदांत की मूठ वाली छड़ी थी और दूसरे में एक विस्की का गिलास था । वह आंखों पर रात के समय भी स्याह काला चश्मा लगाये हुए था ।
सुनील उसे देखकर बुरी तरह चौंका ।
वह लाला तीरथराम था । जिस शख्स की अखबार में छपी तस्वीर वाणी ने उसे दिखाई थी, वह निश्चय ही वही आदमी था ।
“लाला जी !” - डाक्टर रंगनाथन उसके समीप जाकर बोला । उसने सुनील की बांह अभी भी नहीं छोड़ी थी ।
“आहा !” - काले चश्मे वाले ने उसकी ओर गरदन घुमाई और हर्षित स्वर से बोला - “डाक्टर रंगनाथन ! शुक्र है आपको हमारा भी ख्याल आया ।”
सुनील की ओर उसने तनिक भी ध्यान नहीं दिया था ।
“आप जरा इधर आइये” - डाक्टर रंगनाथन बोला । साथ ही वह उसी आदमी से बोला जिससे काले चश्मे वाला बातें कर रहा था - “आई होप यू डोन्ट माइन्ड, मिस्टर निगम ।”
“ओह, सरटनली नाट ।” - वह आदमी बोला और स्वयं ही वहां से हट गया ।
“लाला जी” - डाक्टर रंगनाथन निगम के विदा होते ही बोला - “इनसे मिलिये, मिस्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती । ‘ब्लास्ट’ के स्पेशल कारस्पान्डेन्ट हैं ।”
“आनर्ड टु मीट यू, सर ।” - काले चश्मे वाला मीठे स्वर से बोला । उसने अपना विस्की का गिलास छड़ी वाले हाथ में स्थानान्तरित किया और सुनील की ओर हाथ बढा दिया ।
सुनील ने सकपकाते हुए उसका हाथ थाम लिया ।
“और नौजवान” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “ये हैं विश्वनगर के लाला तीरथराम जिनका तुम अभी जिक्र कर रहे थे ।”
सुनील के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
“मेरा जक्र ये कर रहे थे ?” - लाला तीरथराम बोला ।
“जी हां” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “मिस्टर सुनील का कहना है कि आप मेरा अपहरण करवाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
लाला तीरथराम के माथे पर बल पड़ गये ।
“क्या यह सच है, मिस्टर सुनील ?” - वह बोला ।
“जी.. जी.. जी” - सुनील बौखलाकर बोला - “दरअसल बात यह है कि.. कि...”
और सुनील ने मोटे तौर पर उसे बता दिया कि किस प्रकार एक लड़की ने उसने अखबार के दफ्तर में आकर वह कहानी सुनाई थी । उसने उन्हें वाणी का नाम नहीं बताया ।
“वह लड़की खूबसूरत थी, मिस्टर सुनील ?” - सारी बात सुन चुकने के बाद लाला तीरथराम बोला ।
“ज.. जी... जी हां ।”
“फिर तो वह सच ही बोलती होगी, क्योंकि मेरे ख्याल से खूबसूरत लड़कियां कभी गलत बात नहीं कहतीं ।”
और उसने जोर का अट्टाहास किया ।
डाक्टर रंगनाथन ने उसका साथ दिया ।
सुनील पिटा-सा मुंह लिये उनके सामने खड़ा रहा ।
“मिस्टर सुनील” - डाक्टर रंगनाथन एकाएक गम्भीर स्वर से बोला - “मैं लाला तीरथराम को पिछले दस साल से जानता हूं । ये मेरे इने-गिने घनिष्ठ मित्रों में से हैं । क्या तुम्हें लगता है कि लाला तीरथराम जैसा आदमी मेरा अपहरण करने का षड्यन्त्र रच सकता है ?”
सुनील चुप रहा ।
“निश्चय ही उस लड़की ने तुम्हें बेवकूफ बनाया है । उसकी बातों में आकर पुलिस के किसी उच्चाधिकारी के पास जाकर भी तुमने कोई समझदारी का काम नहीं किया । अब पुलिस वाले अलग से मेरी जान खायेंगे । यह खबर प्रेस तक पहुंच गई, जो कि खुद तुम्हारी वजह से पहुंच सकती है, तो सारी दुनिया में मेरा मजाक उड़ जायेगा । लोग कहेंगे कि एक आणविक परीक्षण क्या कर लिया कि डाक्टर रंगनाथन का दिमाग ही खराब हो गया है । उसे यह खुशफहमी हो गई है कि वह एकाएक इतना महत्त्वपूर्ण हो उठा है कि उसे अपहरण की चिंता लग गई । या शायद लोग यह भी कहें कि गलत प्रकार की पब्लिसिटी हासिल करने के लिये मैंने ही कोई स्टण्ट मारा है ।”
“आई एम सॉरी” - सुनील धीमे स्वर से बोला - “मैंने जो कुछ किया, मुनासिब समझकर किया, आपके हित के लिये किया, राष्ट्र के हित के लिये किया ।”
“नानसेन्स !” - डाक्टर रंगनाथन मुंह बिगाड़कर बोला ।
“लेकिन डाक्टर” - लाला तीरथराम बोला - “तुम्हें मिस्टर सुनील के शक को एकदम नजरअन्दाज नहीं करना चाहिये । तुम्हें सावधानी तो बरतनी चाहिये ही । आखिर मिस्टर सुनील ने कुछ ऐसे गुण्डों का भी तो जिक्र किया है जो उस लड़की के पीछे पड़े हुए थे और जो लड़की के कथनानुसार मेरे आदमी थे ।”
“वे गुण्डे किसी और वजह से उस लड़की के पीछे पड़े होंगे” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “लड़की ने सुनील की मदद और सहानुभूति हासिल करने के लिये इसे मेरे अपहरण की सम्भावना की कहानी कह सुनाई होगी ।”
“फिर भी तुम्हें सावधानी बरतनी चाहिये । वर्तमान स्थिति में राष्ट्र के लिये तुम्हारे महत्त्व को झुठलाया नहीं जा सकता ।”
“क्या सावधानी बरतूं मैं ?” - डाक्टर रंगनाथन तीखे स्वर से बोला - “इस नौजवान की बातों में आकर तुम्हारा यहां आना-जाना बन्द कर दूं ?”
“क्या हर्ज है ?”
“नानसेन्स ।”
“लेकिन...”
“मिस्टर सुनील” - डाक्टर रंगनाथन सुनील की ओर घूमा - “तुम समझते हो इस आदमी से मुझे अपहरण का खतरा है । तुम समझते हो कि यह आदमी मेरी कोठी पर आता-जाता है, इसलिये मेरा अपहरण करके ले जायेगा । यह आदमी, जो अपाहिज है, लाचार है, खुद हर क्षण दूसरे की मदद का मोहताज है ।”
“जी !” - सुनील चौंककर बोला ।
“लाला तीरथराम इज ब्लाइन्ड लाइक ए बैट । यह अन्धा है । आंखों से लाचार है । कुछ नहीं देख सकता ।”
सुनील हक्का-बक्का लाला तीरथराम का मुंह देखने लगा ।
लाला तीरथराम के होंठों पर एक विषादपूर्ण मुस्कराहट उभरी ।
तो यह वजह थी लाला तीरथराम के हर क्षण काला चश्मा लगाये रहने की ।
“आई एम सॉरी, सर ।” - सुनील बौखलाये स्वर से बोला ।
“अब तो तुम्हें मान लेना चाहिये कि लड़की ने तुम्हारे साथ एक मजाक किया है ।” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “तुम्हारे साथ ही क्यों ? हम सबके साथ । एक बेहद क्रूर मजाक ।”
“ऐसा ही लगता है, सर ।”
उसी क्षण डाक्टर रंगनाथन का सैक्रेटरी लपकता हुआ वहां पहुंचा ।
“सर” - वह हांफता हुआ बोला - “प्रधानमन्त्री जी आ गई हैं ।”
“एक्सक्यूज मी” - डाक्टर रंगनाथन बोले - “नौजवान, तुम डिनर के लिये रुकना ।”
वे सैक्रेटरी के साथ बाहर की ओर लपके । लाउन्ज में मौजूद अन्य व्यक्ति भी प्रधानमन्त्री के स्वागत के लिये मुख्य द्वार की ओर लपके ।
लाउन्ज के उस कोने में केवल सुनील और लाला तीरथराम रह गये ।
“वाट डु यू से नाओ !” - एकाएक लाला तीरथराम बोला ।
“जी !” - सुनील सकपकाकर बोला ।
“देखो, तुम एक जिम्मेदार आदमी हो । अगर किन्हीं हालात का ठीक से जायजा कर चुकने के बाद तुम इस नतीजे पर पहुंचे हो कि डाक्टर रंगनाथन के अपहरण का षड्यंत्र रचा जा रहा है तो बात में कोई तो दम होगा ही । मुमकिन है जिस लड़की ने तुम्हें यह सबकुछ बताया है, वह - क्या नाम था उसका ?”
“वाणी ।”
“मुमकिन है वाणी सच बोल रही हो ।”
“लेकिन आप... आप...”
“मेरा डाक्टर रंगनाथन का अपहरण करने का कोई इरादा नहीं है लेकिन शायद वाणी को मेरे नाम के बारे में कोई गलतफहमी हुई हो । यानी कि शायद सारी बात सच हो लेकिन अपहरण का षड्यंत्र लाला तीरथराम नहीं, कोई और रच रहा हो । मेरी राय में तुम उस लड़की से दोबारा बात करो ।”
“जी, यह तो मुमकिन नहीं ।”
“क्यों ? तुम उसका पता-ठिकाना नहीं जानते ?”
“नहीं जानता । वह विश्वनगर से आई थी, वहीं वापिस चली गई ।”
“उसका पता-ठिकाना तो तुम्हें मालूम करना चाहिये था ?”
“मैंने कोशिश की थी लेकिन उसने बताया नहीं ।”
“आई सी । बहरहाल मैं समझता हूं कि डाक्टर रंगनाथन को सावधान तो रहना ही चाहिये । तुमने अच्छा किया कि पुलिस में भी खबर कर आये । वे भी डाक्टर रंगनाथन की सुरक्षा का कोई उचित इन्तजाम जरूर करेंगे । अपने अखबार में भी इस बारे में छापने का इरादा है, नौजवान ?”
“जी, पहले था । आपसे मुलाकात के बाद अब नहीं रहा ।”
“फिर तो मुझे अफसोस है, मैंने आपका अखबार पढने वालों को एक सनसनीखेज खबर से महरूम रखा ।”
लाला तीरथराम ठठाकर हंसा ।
सुनील भी मुस्कराया ।
“मुझे इजाजत दीजिये, जनाब ।” - सुनील बोला ।
“क्या डिनर के लिये नहीं रुकोगे ?” - लाला तीरथराम बोला ।
“जी, मुझे फौरन अखबार के दफ्तर में पहुंचना है ।”
“अच्छा ।”
“और जनाब, मैं शर्मिन्दा हूं, मैंने आपको गलत समझा ।”
“परवाह मत करो, बरखुरदार ।”
सुनील चुपचाप डाक्टर रंगनाथन की कोठी से खिसक गया ।
***
सुनील अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
उसने चाबी लगाकर मुख्य द्वार खोला और भीतर प्रविष्ट हुआ । उसने भीतर की बत्ती जलाई और घूमकर दरवाजा बन्द किया । चटकनी चढा पाने से पहले ही एकाएक दरवाजे के दोनों पल्ले भड़ाक से खुले और सुनील के शरीर से टकराये ।
सुनील लड़खड़ाकर पीछे हट गया ।
एक भयंकर सूरत वाला आदमी बगोले की तरह भीतर प्रविष्ट हुआ । उसने सुनील की छाती पर रिवाल्वर रख दी ।
“पीछे हटो ।” - वह सांप की तरह फुंफकारा ।
सुनील पीछे हट गया ।
उस आदमी ने पांव की ठोकर से दरवाजा बन्द किया और फिर बिना सुनील पर से निगाह हटाये टटोलकर चटकनी चढा दी ।
“कौन हो तुम ?” - सुनील बोला ।
“इस वक्त तो तुम्हारा जेलर हूं, मिस्टर सुनील ।”
“तो तुम मेरा नाम भी जानते हो ?”
“जाहिर है । और जब तक मैं इजाजत न दूं, तुम ऐसी कोई हरकत नहीं करोगे जो मुझे नापसन्द हो ।”
“तुम उन लोगों के साथी हो जो डाक्टर रंगनाथन का अपहरण करने का षड्यन्त्र रच रहे हैं ?”
“मिस्टर सुनील” - उस आदमी के होंठों पर एक क्रूर मुस्कराहट उभरी - “उस लड़की ने सारी दास्तान तुम्हें सुनाकर तुम्हारी मौत का ही सामान किया है ।”
“मेरी मौत से क्या होगा ? अभी राजनगर में कम-से-कम एक आदमी और है जो इस सन्दर्भ में उतना ही जानता है जितना कि मैं ।”
“तुम्हारा इशारा लिटन रोड के मिस्टर के पी अग्रवाल की ओर मालूम होता है लेकिन खातिर जमा रखिये, जनाब, उनका इन्तजाम करके ही मैं यहां आया हूं ।”
सुनील सन्नाटे में आ गया ।
अगर वाकई वे लोग अग्रवाल साहब को ठिकाने लगा चुके थे तो फिर सुनील की, और फिर वाणी की भी, खैर नहीं थी । वर्तमान स्थिति में उसे लाला तीरथराम की यह बात सौ फीसदी जंच गई कि अपहरण के षड्यन्त्र की बात में तो निश्चय ही सत्यता थी । केवल अपराधियों का सरगना लाला तीरथराम नहीं, कोई और था ।
अगले दस मिनटों में उस कथित जेलर ने सुनील के सारे फ्लैट का मुआयना किया । सबसे पहले उसने दोनों टेलीफोनों की तारें काट दीं, फिर उसने सुनील को बैडरूम में बन्द कर दिया ।
कुछ क्षण सुनील विचारपूर्ण मुद्रा बनाये बैडरूम में बैठा रहा । फिर उसने बैडरूम और ड्राइंगरूम के बीच का बन्द दरवाजा खटखटाया ।
जेलर ने दरवाजा खोला ।
“यहां कोई और भी आने वाला है ?” - सुनील बोला ।
“चुपचाप भीतर जाकर बैठो” - वह कर्कश स्वर से बोला - “अगर ऐसे अनाप-शनाप सवाल पूछोगे तो किसी के आने से पहले ही तुम्हें शूट कर दूंगा ।”
“लेकिन मैंने खाना नहीं खाया” - सुनील बड़ी मासूमियत से बोला - “मुझे भूख लगी है ।”
वह कुछ क्षण कठोर नेत्रों से सुनील को घूरता रहा, फिर अपेक्षाकृत नम्र स्वर से बोला - “किचन में कुछ है ?”
“रेफ्रिजरेटर में बहुत माल है ।” - सुनील बोला ।
वह आदमी किचन में घुस गया । रिवाल्वर हर क्षण उसके हाथ में रही थी ।
थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उसके बायें हाथ में एक लगभग पूरी डबल रोटी और एक मुरब्बे का जार था ।
“जनाब” - सुनील होंठों पर जुबान फेरता हुआ बोला - “अंडे भी बहुत थे । मैं आमलेट बना...”
“शटअप !”
सुनील फौरन चुप हो गया ।
अपने बायें हाथ का सामान सुनील के सामने मेज पर पटककर वह वापस किचन में चला गया ।
बैडरूम में ड्रैसिंग टेबल कुछ इस स्थिति में पड़ा था कि उसके शीशे में से किचन का काफी सारा भाग प्रतिबिम्बित हो रहा था । सुनील ने उस आदमी को पहले एक गिलास में पानी भरते और फिर पानी में कोई सफेद-सी गोली घोलते देखा ।
कुछ क्षण बाद जब उसने पानी का गिलास लाकर सुनील के सामने रखा तो पानी एकदम साफ था । ऐसा नहीं लगता था जैसे उसमें कुछ घोला गया हो ।
वह आदमी वापस ड्राइंगरूम में चला गया । बीच का दरवाजा फिर बन्द हो गया ।
सुनील ने डबल रोटी और मुरब्बा खा लिया और गिलास का पानी बैडरूम में रखे मनी प्लान्ट में उलट दिया ।
सुनील ने कलाई पर बंधी घड़ी देखी ।
ग्यारह बजने को थे ।
वह पलंग पर ढेर हो गया और उसने नेत्र बन्द कर लिये । उसके नेत्र बन्द थे लेकिन कान मामूली-से-मामूली आहट भी पकड़ने के लिये तैयार खड़े थे ।
थोड़ी देर बाद बीच का दरवाजा खुलने की आहट हुई । कोई भीतर घुसा । कदमों की आहट पलंग तक पहुंची । कोई सुनील के चेहरे पर झुका । सुनील को किसी की गर्म सांस अपने चेहरे पर महसूस हुई ।
सुनील यूं लेटा रहा जैसे उसके लिये दीन-दुनिया का अस्तित्व समाप्त हो गया हो ।
“हूं ।” - उस पर झुके आदमी ने हुंकार भरी और फिर सीधा हो गया ।
सुनील ने बड़ी सावधानी से अपनी एक आंख खोली ।
‘जेलर’ वापस जाने के लिये घूम रहा था । रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी ।
बिजली की फुर्ती से सुनील ने उस पर छलांग लगा दी । उसकी एक बांह उसकी गरदन से लिपट गई और दूसरा हाथ उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ा । रिवाल्वर उसके हाथ से छिटककर परे जा पड़ी और वह उसको लिये-लिये फर्श पर लोट गया । तुरन्त उसका खाली हाथ भी उसकी गरदन से लिपट गया ।
उस आदमी के गले से वेदनापूर्ण घरघराहट निकलने लगी और वह सुनील की पकड़ में छटपटाने लगा ।
सुनील तब तक उसकी गरदन दबाता रहा जब तक उसकी छटपटाहट बन्द न हो गई हाथ-पांव ढीले न पड़ गये ।
वह आदमी औंधे मुंह फर्श पर लुढक गया ।
सुनील ने उसकी कलाई थाम ली । नब्ज बहुत धीमी चल रही थी । निश्चय ही वह जल्दी होश में आने वाला नहीं था ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
उसी क्षण एक नई आवाज उसके कानों में पड़ी ।
कोई धीरे-धीरे फ्लैट का मुख्य द्वार खटखटा रहा था ।
सुनील ने उस आदमी की रिवाल्वर तलाश करके अपने अधिकार में की और फिर मुख्य द्वार की ओर बढा ।
सुनील को लगा जैसे दरवाजा किसी विशिष्ट ढंग से खटखटाया जा रहा था । निश्चय ही दरवाजा खटखटाने वाला कोई भीतर बेहोश पड़े आदमी का संगी-साथी था और किसी पूर्व निर्धारित कोड के अनुसार दरवाजा खटखटा रहा था ।
सुनील ने रिवाल्वर अपने सामने कर ली और सावधानी से दरवाजा खोला ।
सामने एक बैलबाटम जीन और बुश्शर्टनुमा जम्फर पहने एक लड़की खड़ी थी । उसने अपनी ओर तनी रिवाल्वर की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया । उसने एक हाथ से सुनील को दरवाजे से परे धकेला और भीतर आ गई ।
“कहां मर गये थे ?” - वह झुंझलाये स्वर से बोली - “घंटे-भर से दरवाजा खटखटा रही हूं ।”
“वो... वो ।” - सुनील हकलाया ।
लड़की कुछ क्षण सुनील को घूरती रही और फिर बोली - “रणजीत कहां है ?”
रणजीत !
यह शायद उस आदमी का नाम था जो बैडरूम में बेहोश पड़ा था ।
“रणजीत !” - सुनील जल्दी से बोला - “रणजीत तो चला गया ।”
“चला गया ! कहां चला गया ?”
“वो... वो... टेलीफोन आया था ।”
“आई सी ।”
लड़की अब तक ड्राइंगरूम के बीच में पहुंच चुकी थी ।
“रिवाल्वर जेब में रखो ।” - उसने आदेश दिया ।
सुनील ने रिवाल्वर जेब में डाल ली, लेकिन उसने उसकी मूठ से हाथ नहीं हटाया ।
भीतर बैडरूम के फर्श पर बेहोश पड़े आदमी की घुटनों तक टांगें वहीं से दिखाई दे रही थीं ।
“इस रिपोर्टर के बच्चे ने” - लड़की बैडरूम की ओर संकेत करती हुई बोली - “कोई तकलीफ तो नहीं दी ?”
“कतई नहीं” - सुनील बोला - “रणजीत के होते तकलीफ का क्या काम ?”
“तुम शेषकुमार हो न ?”
सुनील ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“रणजीत ने तुम्हारा जिक्र किया था । लेकिन तुम तो विश्वनगर से कल सुबह आने वाले थे ?”
“मैं जल्दी आ गया ।”
“एक्शन का कौन-सा दिन निर्धारित हुआ है ?”
एक्शन ! कैसा एक्शन ? जरूर लड़की का इशारा डाक्टर रंगनाथन के अपहरण की ओर था ।
“अभी कुछ पता नहीं ।” - सुनील बोला ।
“कमाल है ! तुम विश्वनगर से आये हो, फिर भी तुम्हें...”
“देखो, मैडम” - सुनील उसकी बात काटकर बोला - “भीतर एक आदमी की लाश पड़ी है । रणजीत का पता नहीं कहां चला गया है । पता नहीं वह कब वापिस लौटे । हमारा मौजूदा माहौल में ज्यादा देर ठहरना ठीक नहीं ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । अड्डे पर चलते हैं । रणजीत वहीं पहुंच जायेगा ।”
अड्डा !
बदमाशों के बारे में तगड़ी जानकारी हासिल होने की सम्भावना दिखाई दे रही थी ।
सुनील उस लड़की के साथ हो लिया ।
फ्लैट के भीतर रणजीत बेहोश पड़ा था । सुनील के ख्याल से वह जल्दी होश में आने वाला नहीं था, लेकिन फिर भी सुनील उसके हाथ-पांव बांधकर जाना ज्यादा पसन्द करता जो कि उस समय सम्भव नहीं था ।
लड़की कार पर आई थी । दोनों कार में सवार हुए । लड़की ने कार आगे बढा दी ।
लड़की की बातों से भी साफ जाहिर हो रहा था कि अपहरण की योजना विश्वनगर में ही तैयार हो रही थी और बदमाशों की राजनगर शाखा से सम्बन्धित लोग विश्वनगर से भेजे गए बदमाशों को बड़ी इज्जत की निगाह से देखते थे ।
लड़की उसे बीच रोड पर स्थित एक इमारत में ले आई ।
“अभी तो यहां कोई नहीं होगा” - लड़की बोली - “जीवन भी कम-से-कम एक घंटे में लौटेगा । लेकिन तुम तो जीवन को जानते नहीं होगे । तुम्हारा कार्यक्षेत्र तो विश्वनगर है ।”
“कहीं जीवन वह तो नहीं जो...”
सुनील ने उस लम्बे-चौड़े कठोर चेहरे वाले आदमी का हुलिया बयान कर दिया जो वाणी को पूछने दो बार उसके फ्लैट पर आ चुका था ।
“बिल्कुल वही” - लड़की बोली - “तुम उससे मिल चुके ?”
“नहीं, लेकिन विश्वनगर में किसी ने उसका जिक्र किया था ।”
“सुनो । तुम लोगों का तो लाला से सीधा सम्बन्ध रहता होगा । तुम लोगों को भी खबर नहीं कि योजना क्या है ?”
लाला ! हे भगवान्, क्या ये लड़की लाला तीरथराम का ही जिक्र कर रही थी ?
असम्भव !
जरूर यह कोई और लाला था और नाम की वजह से ही वाणी को भी गलतफहमी हुई थी ।
“लाला अपनी योजनाओं की किसी को भनक नहीं लगने देता” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “सुनील का सफाया करने का आदेश भी उसने आखिरी क्षण में दिया था ।”
“तुम ठीक कहते हो ।”
उसी क्षण इमारत के भीतर किसी के कदमों की आहट सुनाई दी ।
लड़की आहट की दिशा में देखने लगी ।
सुनील ने होंठों पर जुबान फेरी । उसका हाथ अपने आप पतलून की जेब में पड़ी रिवाल्वर की मूठ पर सरक गया ।
एक आदमी कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
“हरबर्ट !” - लड़की बोली - “तुम इमारत में ही थे ?”
“हां” - हरबर्ट बोला । वह सुनील को सन्दिग्ध निगाहों से देख रहा था - “यह कौन है ?”
“शेषकुमार । विश्वनगर से भेजा गया है ।”
“शेषकुमार !” - हरबर्ट के चेहरे से सन्देह के भाव उड़ गए । उसने सुनील की ओर हाथ बढाया - “नाम सुना है लेकिन कभी मुलाकात नहीं हुई ।”
सुनील की जान में जान आई । उसने बड़ी गर्मजोशी से हरबर्ट से हाथ मिलाया ।
“तुम कागजात लेने आये हो ?” - हरबर्ट बोला ।
सुनील ने मन-ही-मन डरते-डरते सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया । पता नहीं किन कागजात का जिक्र हो रहा था ।
“कागजात तैयार हैं ।”
“वैरी गुड ।”
“लेकिन” - एकाएक हरबर्ट के नेत्र सिकुड़ गये । उसकी आवाज में फिर सन्देह झलक उठा - “तुम तो कल सुबह की गाड़ी से आने वाले थे । इतनी जल्दी यहां कैसे पहुंच गये ?”
“मैं प्लेन से आया हूं ।”
“हमें तो यह नहीं बताया गया ।”
“तुम कागजात की बात करो ।” - सुनील तनिक कठोर स्वर से बोला ।
“कागजात तैयार हैं । मैंने एक-एक कमरे, एक-एक राहदारी का एकदम सही ब्लू प्रिन्ट तैयार किया है । उन इमारतों की मेरे से ज्यादा किसको जानकारी हो सकती है । आखिर मैंने चार साल एटामिक एनर्जी कमीशन की नौकरी की है और उनकी लैबोरेटरी में काम किया है ।”
“कागजात मेरे हवाले करो, ताकि मैं चलता बनूं ।”
“इतनी जल्दी क्या है, दोस्त । आधी रात को कहां जाओगे । यहीं आराम करो । सुबह कागजात लेकर चले जाना । कागजात तो तैयार हैं ही । यह देखो ।”
हरबर्ट ने उसी कमरे की एक अलमारी का ताला खोलकर एक बड़ा-सा सील किया हुआ लिफाफा निकालकर सुनील को दिखाया ।
“मैं होटल में जाकर सोऊंगा” - सुनील बोला - “मुझे सुबह सवेरे विश्वनगर रवाना होना है । लाओ, यह लिफाफा मुझे दो ।”
हरबर्ट के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
“तुम्हारी मर्जी क्या है ?” - सुनील बनावटी क्रोध प्रकट करता हुआ बोला ।
“भई, तुम्हें जीवन के आने तक तो रुकना ही पड़ेगा” - हरबर्ट निर्णयात्मक स्वर से बोला - “यहां की सारी जिम्मेदारी उसकी है ।”
“लेकिन...”
“और फिर मैंने तुम्हारा जिक्र ही सुना है । कभी देखा नहीं तुम्हें ।”
“इससे क्या होता है । तुम खूब जानते हो मैं कौन हूं ।”
“मुझे समझ नहीं आती तुम कल सुबह की जगह आज क्यों आ गये ?”
“अरे कहा न, मैं प्लेन से आ गया हूं ।”
“लेकिन क्यों ? इतनी जल्दी क्या थी ? और फिर तुम्हारे प्रोग्राम में परिवर्तन की सूचना हमें क्यों नहीं मिली ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“सरोज” - हरबर्ट लड़की की ओर घूमा - “तुम्हें ये साहब कहां मिल गये ?”
“सुनील के फ्लैट में ।” - सरोज बोली ।
“सुनील के फ्लैट में ?” - हरबर्ट हैरानी से बोला - “ये वहां कैसे पहुंच गये ? इनका वहां क्या काम ? क्यों मिस्टर ?”
“अपने काम से काम रखो” - सुनील गर्जा - “यह लिफाफा मेरे हवाले करो वर्ना, बाई गॉड, बहुत पछताओगे ।”
“लिफाफा तुम्हारे ही लिये है” - हरबर्ट नम्र स्वर से बोला - “लेकिन जीवन के आने से पहले यह तुम्हें नहीं मिलेगा । तुम्हें जीवन का इन्तजार करना पड़ेगा ।”
“सरोज” - सुनील असहाय भाव से सरोज की ओर देखता हुआ बोला - “इस आदमी को अक्ल दो ।”
“यह काम तुम खुद ही करो ।” - अब सरोज की आवाज में भी धृष्टता का पुट आ गया था ।
“अच्छी बात है” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला - “अगर तुम लोग यही चाहते हो तो ऐसे ही सही । मैं इन्तजार कर लूंगा ।”
और सुनील धम्म से एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“यह हुई न बात ।” - हरबर्ट संतोषपूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील की जेब में रिवाल्वर थी लेकिन उसे इस्तेमाल के लिये निकाल पाना सम्भव नहीं था । हरबर्ट के पास भी रिवाल्वर थी जो कि उसकी पतलून की बैल्ट में खुंसी हुई थी । हरबर्ट बड़ा सतर्क आदमी था । सुनील अभी अपनी रिवाल्वर निकालकर उसकी नाल भी सीधी नहीं कर पाया होता कि वह उसे शूट कर देता ।
उसी क्षण बाहर कम्पाउण्ड में एक कार रुकने की आवाज आई ।
कम्पाउन्ड का काफी भाग उस कमरे की खिड़की में से दिखाई दे रहा था जिसमें कि वे उस समय मौजूद थे । सुनील ने खिड़की के बाहर झांका ।
उसे कार में से रणजीत बाहर निकलता दिखाई दिया ।
सुनील के होंठ सूख गये । रणजीत उम्मीद से बहुत ज्यादा जल्दी होश में आ गया था ।
एक अन्य आदमी कार से बाहर निकला ।
वह वही लम्बा-चौड़ा, कठोर चेहरे वाला आदमी था जो दो बार वाणी के लिये सुनील के फ्लैट का चक्कर लगा गया था और, सरोज के कथनानुसार, जिसका नाम जीवन था ।
रणजीत और जीवन इमारत की ओर बढे और उसकी दृष्टि से ओझल हो गये ।
फिर फ्लैट की घन्टी बजी ।
हरबर्ट ने सीलबन्द लिफाफा वापिस अलमारी में बन्द किया और दरवाजा खोलने चला गया ।
सुनील ने सरोज की ओर देखा ।
सरोज एकटक सुनील को देख रही थी ।
“गधे !” - एकाएक सुनील के कान में रणजीत की क्रोधित आवाज पड़ी - “पता नहीं किसे घर में घुसाया हुआ है तुमने । वह शेषकुमार नहीं हो सकता । शेषकुमार कल सुबह से पहले राजनगर नहीं पहुंच सकता ।”
सुनील ने सरोज की ओर देखा ।
सरोज अपने स्थान से उठकर खड़ी हो गई थी और अपना पर्स खोल रही थी ।
सुनील उस पर झपटा । उसने सरोज को एक जोर का धक्का दिया । सरोज फर्श पर ढेर हो गई । पर्स उसके हाथ से निकल गया और उसमें से छोटी-सी खिलौने जैसी खूबसूरत पिस्तौल निकलकर दूर जा गिरी ।
सुनील तोप से छूटे गोले की तरह खिड़की की ओर भागा । एक ही छलांग में वह खिड़की फांद गया ।
तभी कमरे में हरबर्ट के साथ रणजीत और जीवन ने कदम रखा । तब तक सरोज भी उठकर खड़ी हो गई थी ।
“रुक जाओ ।” - कोई चिल्लाया ।
सुनील की जान पर बनी थी । रुकने का सवाल ही नहीं था ।
पीछे से तीन-चार फायर एक साथ हुए ।
जिस कार पर रणजीत और जीवन आये थे, उसके समीप से गुजरते समय एकाएक सुनील की निगाह कार के भीतर पड़ी । इग्नीशन की चाबी इग्नीशन में लटक रही थी ।
सुनील ने एक झटके से कार का दरवाजा खोला और भीतर घुस गया ।
उसने इंजन स्टार्ट किया ।
कोई खिड़की से कूदा ।
कई गोलियां आकर कार की बॉडी से टकराईं ।
सुनील ने कार को रिवर्स गियर में डाला ।
कार गोली की तरह उलटी भागी, कम्पाउन्ड के दरवाजे की साइड से भड़ाक से टकराई और फिर सुरक्षित मुख्य सड़क पर आ गई ।
सुनील ने गियर बदला और उसे पूरी रफ्तार से सामने दौड़ा दिया ।
उसकी तकदीर ही अच्छी थी जो वह वहां से बच निकलने में सफल हो गया था ।
***
सुनील ने षड्यन्त्रकारियों की कार रास्ते में ही कहीं छोड़ दी और एक टैक्सी पर सवार होकर यूथ क्लब पहुंचा ।
जिस समय उसने यूथ क्लब में कदम रखा, उस समय साढे बारह बजने को थे ।
रमाकान्त की रमी की महफिल जमी हुई थी ।
“आओ, प्यारयो ।” - रमाकान्त उसे देखते ही हर्षित स्वर से बोला ।
“आने का वक्त नहीं है” - सुनील शुष्क स्वर में बोला - “मैं ऊपर जा रहा हूं । तुम एक मिनट मेरी बात सुनो ।”
“यह बाजी खेलकर आता हूं ।”
सुनील ने प्रतिवाद नहीं किया । वह फर्स्ट फ्लोर पर स्थित रमाकान्त के बैडरूम में पहुंचा । वह पलंग पर बैठ गया । टेलीफोन उसने अपने सामने घसीट लिया और फिर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह की कोठी का नम्बर डायल कर दिया । कितनी ही देर घंटी बजने की आवाज आती रही, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला । या तो नम्बर में कोई खराबी थी और या फिर उस समय कोठी पर कोई भी नहीं था - जिसकी सम्भावना बहुत कम थी ।
सुनील ने पलंजर दबाकर सम्बन्धविच्छेद किया और पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर डायल कर दिया ।
तुरन्त दूसरी ओर से उत्तर मिला ।
“बीच रोड की चौदह नम्बर इमारत में” - सुनील यन्त्रचालित स्वर से बोला - “इस समय कुछ बदमाश मौजूद हैं जो हमारे एटामिक एनर्जी कमीशन के चीफ डाक्टर रंगनाथन के अपहरण का षड्यन्त्र रच रहे हैं । इमारत में इस समय मौजूद लोगों के नाम हैं रणजीत, जीवन, हरबर्ट और सरोज । कृपया फौरन वहां पहुंचिये और सबको गिरफ्तार कर लीजिये ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“इमारत के एक भीतरी कमरे में एक अलमारी है” - सुनील कहता रहा - “जिसमें ताला लगा हुआ है । उस अलमारी में एक बड़ा-सा सीलबन्द लिफाफा है । कृपया तलाशी के दौरान उसे अपने अधिकार में अवश्य कीजियेगा । उस लिफाफे का डाक्टर रंगनाथन के अपहरण के षडयन्त्र से भारी सम्बन्ध है ।”
“लेकिन आप बोल कौन रहे हैं ?”
“मैं उन्हीं लोगों का एक साथी हूं । पहले मैं भी इस षड्यन्त्र में शामिल था लेकिन देशद्रोह के इस काम के लिये मेरी अन्तरात्मा मुझे धिक्कारने लगी तो मैं उनसे अलग हो गया । मेरे साथी इस भयंकर षड्यन्त्र में सफल न हो सकें इसीलिए मैं आपको फोन कर रहा हूं ।”
“अपना नाम और पता बोलो ।” - दूसरी ओर से कोई कर्कश स्वर में बोला ।
सुनील ने सम्बन्धविच्छेद कर दिया ।
सुनील ने टेलीफोन परे सरका दिया, अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
तभी रमाकान्त ने बैडरूम में कदम रखा । चारमीनार का एक सिगरेट उसके होंठों में लगा हुआ था और दूसरा उसके हाथ में था ताकि वह पहला सिगरेट खतम होते ही दूसरा सुलगा सके ।
“क्या माजरा है ?” - रमाकान्त आते ही बोला ।
“रमाकान्त...”
“लेकिन, देखो यार, कोई काम मत बताना । मैं आज पपलू में बहुत रुपये हार गया हूं । मैंने आज ही के खेल में सारे कवर करने हैं ।”
“बेईमानी करोगे ?”
“क्यों भला ?” - रमाकान्त आंखें तरेरकर बोला ।
“वर्ना क्या गारन्टी है कि आगे तुम जीतोगे ही । और भी तो हार सकते हो ?”
“नहीं हार सकता । मुझे पत्ते की सरकुलेशन की खूब पहचान है और पत्ता पलट रहा है । जिन्दगी-भर का तजुर्बा है पपलू का । आज तक घास नहीं खोदी मैंने ।”
“ठीक है । ठीक है । अगर मैं कोई ऐसा काम बताऊं जिसे तुम्हारा कोई आदमी कर सकता हो, फिर तो तुम्हें कोई एतराज नहीं होगा ?”
“फिर भला मुझे क्या एतराज होगा ? फिर तो एक की जगह दस काम बताओ ।”
“वैरी गुड ।”
“क्या कोई नगदऊ वाला काम है ?”
“नहीं ।”
“ओह !” - रमाकान्त निराश स्वर से बोला - “तो फिर कह भी चुको ।”
“किसी आदमी को मेरे फ्लैट पर भेज दो । फ्लैट का मुख्य द्वार खुला होगा । यह लो चाबी” - सुनील ने चाबी उसे थमा दी - “उसे कहना कि फ्लैट को ठीक से बन्द कर आये ।”
“तुम फ्लैट खुला क्यों छोड़ आये ?”
“मेरे सिर में फोड़ा निकल आया था ।” - सुनील झल्ला-कर बोला ।
“अच्छा” - रमाकान्त बड़ी मासूमियत से बोला - “देखूं ।”
“रमाकान्त !” - सुनील चिल्लाया ।
“ओके । ओके । और बोलो ।”
“और आदमी ऐसा भेजना जो जरूरत पड़ने पर दो-तीन गुण्डों से भी निपट सके ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“माजरा क्या है ?”
“माजरा सुनने का तुम्हें वक्त नहीं है । नीचे पपलू की महफिल ठण्डी हो रही होगी ।”
“झाड़ू मार यार पपलू को ।” - रमाकान्त गम्भीर स्वर से बोला - “बात क्या है ? किसी से ठन गई है तो नाम बताओ । मैं अभी साले का तिया पांचा एक कराता हूं ।”
“ऐसी कोई बात नहीं है । जब होगी तो बताऊंगा । फिलहाल हालात पूरी तरह से काबू में हैं ।”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“आलराइट । मैं दो-तीन आदमी तुम्हारे फ्लैट पर भेजता हूं ।”
“थैंक्यू ।”
“तुम्हारा क्या प्रोग्राम है ? नीचे आओ, पपलू हो जाये ।”
“नहीं । मैं सोने लगा हूं ।”
“मर्जी तुम्हारी । किसी चीज की जरूरत हो तो बताना ।”
“जरूर ।”
रमाकान्त चला गया । पपलू में हार रहा था, लेकिन फिर भी आज रमाकान्त अच्छे मूड में था ।
सुनील पलंग पर ढेर हो गया ।
किसी ने उसे झंझोड़कर जगाया तो उसकी नींद खुली ।
सामने रमाकान्त खड़ा था ।
उसने घड़ी देखी । डेढ बजा था ।
“यह लो अपने फ्लैट की चाबी ।” - रमाकान्त बोला - “वहां पूरी तरह से शान्ति है । कोई गुण्डा-वुण्डा मौजूद नहीं था वहां । यह टेलीग्राम” - रमाकान्त ने एक टेलीग्राम का लिफाफा उसे थमा दिया - “तुम्हारे लैटर बाक्स में पड़ी थी । डाकिया तुम्हारी जान-पहचान का होगा जो बिना यूं दस्तखत करवाये टेलीग्राम छोड़ गया ।”
सुनील ने लिफाफा फाड़कर टेलीग्राम निकाला । टेलीग्राम विश्वनगर से आया था । उस पर भेजने वाले का नाम या पता नहीं लिखा हुआ था । सन्देश की जगह लिखा था :
“अगर वाणी राजनगर में आपके पास आई है तो उसे किसी भी कीमत पर विश्वनगर वापिस न आने देना । यहां उसके लिए बहुत खतरा है ।”
सुनील ने टेलीग्राम लपेटकर जेब में रख लिया ।
“किसका टेलीग्राम है ?” - रमाकान्त उत्सुक स्वर से बोला - “क्या लिखा है ?”
“जीनत अमान का टेलीग्राम है” - सुनील बोला - “लिखा है बारात लेकर फौरन बम्बई पहुंचो ।”
“अच्छा !” - रमाकान्त हर्षित स्वर में बोला - “बधाई हो फिर तो । मैं नीचे जाकर बाकी लोगों को खबर करता हूं । अभी तुम्हारी ओर से जानीवाकर की दो-तीन बोतलें खुलवाता हूं ।”
“अबे ओ रमाकान्त के घोड़े !” - सुनील बौखलाकर बोला । उसे मजाक भारी पड़ता मालूम हो रहा था ।
रमाकान्त वहां से खिसक गया । सुनील उसे आवाज ही देता रह गया ।
राजनगर और विश्वनगर में ट्रंक डायलिंग की सुविधा प्राप्त थी । वाणी उसे वह टेलीफोन नम्बर बता गई थी जिस पर उसके कथनानुसार उसके नाम छोड़ा गया हर संदेश उसे अवश्य मिल जाने वाला था । वाणी की ट्रेन सुबह से पहले विश्वनगर पहुंचने वाली नहीं थी, लेकिन वह 43566 पर वाणी के लिए सन्देश तो छोड़ ही सकता था । वाणी को टेलीग्राम में वर्णित खतरे से सावधान करना आवश्यक था ।
सुनील ने उस नम्बर पर टेलीफोन किया ।
कितनी ही देर दूसरी ओर घंटी बजती रही, लेकिन किसी ने टेलीफोन नहीं उठाया । सुनील ने सम्बन्धविच्छेद करके फिर नम्बर मिलाया लेकिन नतीजा सिफर निकला ।
परेशान होकर उसने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया और फिर पलंग पर ढेर हो गया ।
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