पूर्वाभास
अपनी हाहाकारी, खूरोजी से पिरोई ज़िन्दगी को हमेशा के लिये अलविदा कह कर, अपनी पत्नी नीलम और पुत्र सूरज के साथ एक नयी, स्लेट की तरह साफ ज़िन्दगी जीने का तमन्नाई बन कर विमल दिल्ली आकर मॉडल टाउन में मुकाम पाता है और अपनी पुरानी गैलेक्सी ट्रेडिंग कारपोरेशन में एकाउन्ट्स ऑफिसर की नौकरी फिर पकड़ लेता है। लेकिन तकदीर के खंजर ने वक्त की दीवार पर उसकी जो जिन्दगी उकेरी थी, उससे पीछा छुड़ा पाना उसे भारी जान पड़ता है। हर आये दिन कोई ऐसा वाकया हो जाता था जो उसका खून खौलाता था लेकिन नीलम उसे उसमें दखलअन्दाज़ नहीं होने देती थी क्योंकि उसने नीलम से वादा किया था कि वो अपनी गुज़श्ता ज़िन्दगी को पूरी तरह से भुला देगा। उस वादे के तहत वो किसी दीन के हित में तो कुछ कर ही न सका, कई बार खुद को भी अपमान सहना पड़ा।
फिर एक रोज़ एक ऐसा वाकया हुआ जिस की वजह से एकाएक उठे अंधड़ में वो तिनके की तरह उड़ता चला गया और प्रारब्ध ने उसे फिर वहाँ पहुंचा दिया जहां न होने का उस का संकल्प था।
नीलम को चार नौजवान लड़के उठा कर ले गये, उन्होंने उस के साथ भरपूर बद्फ़ेली की और फिर मरने के लिये चलती कार में से बाहर फेंक दिया। इत्तफाक से नीलम मरी नहीं और कुछ भले लोगों की मदद से आधी रात को वो घर पहुंची। विमल ने उस की क्षत-विक्षत हालत देखी तो उसका दिल हाहाकार कर उठा। उसने उस बावत पुरइसरार सवाल किये लेकिन नीलम ने कुछ बताने से इंकार कर दिया।
अगले रोज़ सुबह मुम्बई से कोमल नाम की युवती उन के घर पहुंच गयी, विमल के मुम्बई प्रवास के दौरान सूरज अकेला जिस के संरक्षण में था। एक लम्बा अरसा सूरज उसके साथ रहा था इसलिये, उसने दावा किया कि, वो सूरज बिना उदास थी और वो सूरज को लेने आयी थी। विमल के विरोध के बावजूद नीलम ने सूरज को कोमल के साथ भेज दिया।
उस रात संयोग से आधी रात के बाद विमल की नींद खुली तो उसने नीलम को घर से गायब पाया। वो पीछे विमल के नाम एक चिट्ठी छोड़ के गयी थी जिके मुताबिक वो हमेशा के लिये विमल को छोड़ के जा रही थी, क्योंकि वो विमल के पाँव की बेड़ी बन गयी थी जो कि बदले हालात में टूटनी चाहिये थी इसलिये वो उसे हर उस कसम से मुक्त करती थी जो उसने उसे दी थी। चिट्ठी से ही विमल को मालूम हुआ कि कोमल मुम्बई से खुद ही नहीं चली आयी थी, नीलम ने उसे फोन कर के सूरज को लिवा ले जाने के लिये बुलाया था।
नीलम विमल को नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के लेडीज़ वेटिंग रूम में अकेली बैठी मिलती है क्योंकि सुबह सवा चार बजे से पहले वहां से निकलने वाली कोई गाडी नही थी। तब नीलम आखिर विमल को बताती है कि उसके साथ क्या बीती थी और ये कि उसको लगा था कि उसके साथ बद्फेली करने वाले चार लड़कों में से एक उनके पड़ोस में रहते ठेकेदार चिन्तामणि त्रिपाठी का बिगडैल, अय्याश, आवारागर्द बेटा अरमान त्रिपाठी था। बहुत मिन्नत-मनुहार के बाद नीलम विमल के साथ घर लौटना कबूल कर लेती है।
विमल अरमान त्रिपाठी की टोह लेने का अपना अभियान शुरू करता है तो उसे मालूम होता है कि हौज खास में एक गारमेंट फैक्ट्री थी जिसमें सिर्फ जींस और शर्ट्स दो शिफ्टों में बनती थीं और जहां त्रिपाठी पिता पुत्र अक्सर हाज़िरी भरते थे। मुम्बई से आकर दिल्ली में बसे अपने वाकिफ और मेहरबान मुबारक अली के चौदह फर्माबरदार भांजों में से अशरफ नाम के एक भांजे के साथ वो गार्मेंट फैक्ट्री की गहन पड़ताल के लिये पहुंचता है तो मालूम पड़ता है कि फैक्ट्री असल में पिता के छोटे भाई की थी – जो कि मॉडल टाउन इलाके से दिल्ली विधान सभा का विधायक था – और पिता पुत्र का काम फैक्ट्री का प्रबंधन देखना था। साथ ही ये हिंट भी मिलता है कि फैक्ट्री का कोई और पार्टनर भी था जो कि कभी-कभार कहीं बाहर से जाता था और जब आता था तो त्रिपाठी बन्धु उसका हुक्का भरते जान पड़ते थे। फैक्ट्री के बाजू में ‘गोल्डन गेट’ नाम का थ्री-इन-वन – रेस्टोबार, डिस्को, नाइट क्लब – ठिकाना था जहां, न कि फैक्ट्री में – परदेसी पार्टनर मुकाम पाता था, जो कि हैरानी की बात थी।
उस दौरान अशरफ कीमत राय सुखनानी नाम के एक बड़े सेठ को, जो कि सिविल लाइन्स की एक आलीशान कोठी में रहता था, मर्सिडीज़ में चलता था, एक ‘इन्डिका’ में ‘गोल्डन गेट’ पर पहुंचते देखता है। ये विसंगति अशरफ विमल की जानकारी में लाता है लेकिन विमल को उसमें कुछ गौरतलब नहीं दिखाई पड़ता।
एक रोज़ विमल महरौली तक अरमान त्रिपाठी के पीछे लगा ‘लोटस पौंड’ नाम के एक फैंसी रेस्टोरेंट में पहुंचता है जहां विमल उसे एक सुन्दर युवती को सोहबत में पाता है। अरमान और उसकी संगिनी जम के वोदका का आनन्द लेते हैं, फिर दूसरी तरह की तफरीह की जुस्तजू में एक करीबी, उजाड़ पड़े खंडहर में पहुंच जाते हैं। वहां विमल लड़की को खामोश रहने के लिये धमका कर चलता कर देता है और अरमान से जबरन कुबलवाता है कि ग्यारह तारीख को हुई अगवा और बफ़ेली की वारदात में अमित गोयल, अशोक जोगी और अकील सैफी नाम के अपने तीन दोस्तों के साथ वो भी शामिल था। विमल तसदीक करता है कि अमित गोयल वही लड़का था जो वैसी एक वारदात में पहले भी शामिल था लेकिन पकड़े जाने के बावजूद सरकारी गवाह के मुकर जाने की वजह से सज़ा पाने से बच गया था। आखिर विमल अरमान को उसके और उसके साथियों के खतरनाक अंजाम का स्पष्ट संकेत देता है, जो कि अरमान नहीं समझ पाता, और उसे ये आश्वासन भी देता है कि उस ‘खास’ सज़ा के मामले में उसकी बारी आखिर में आयेगी।
एक बार तो विमल ने अपनी आंखों के सामने दिन-दहाड़े एक युवती का अगवा होते देखा लेकिन नीलम ने फिर उसे ये कह कर दखलअन्दाज़ न होने दिया कि और लोग भी वो वाकया देख रहे थे, अकेले उस के आगे आने की कोई ज़रूरत नहीं थी।
अगवा का शिकार वो लड़की हस्पताल में दम तोड़ देती है। फिर खबर आती है कि पुलिस को अगवा की उस वारदात का एक चश्मदीद गवाह मिल गया था जिस की गवाही के तहत पुलिस अमित गोयल, विकास जिन्दल और केतन साहनी नामक बलात्कार के तीन आरोपी युवकों को गिरफ्तार करती है, जोकि पूरी तरह से बेगुनाह होने का दावा करते हैं। कोर्ट में उन पर केस चलता है तो देवन नायर नाम का चश्मदीद गवाह अपनी गवाही से ये कह कर मुकर जाता है कि वो मलियाली था, उसे हिन्दी नहीं आती थी जब कि पुलिस ने उसका बयान हिन्दी में दर्ज किया था और अपनी मनमर्जी के बयान पर ज़बरदस्ती साइन कराये थे। यानी आरोपी युवकों का अपराध साबित करने वाले जिस बयान पर पुलिस का ज़ोर था, वो उसने दिया ही नहीं था। नतीजतन आरोपी युवकों को जमानत मिल जाती है और उन का रिहा हो जाना महज़ वक्त की बात रह जाती है।
बाद में विमल पत्रकार होने का बहाना करके देवन नायर से मिलता है तो पाता है कि हिन्दी उसे बाखूबी आती थी। यानी उसने मोटी रिश्वत खा कर अपना बयान बदला था।
अगली पेशी पर तीनों युवक बरी हो जाते हैं तो महज़ इसलिये कि उन के खिलाफ चश्मदीद गवाह ने परजुरी का अपराध किया जिसकी वजह से उस पर कोई एक्शन न हुआ क्यों कि रिश्वत उस सब-इंस्पेक्टर ने भी खायी थी जो कि केस का विवेचन अधिकारी था।
विमल मुबारक अली से मिलता है और उससे सवाल करता है कि क्या वो हिजड़ों की बाबत कछ जानता था मसलन वो कहां से आते हैं, उनकी तादाद में बढ़त कैसे होती, जब वो खुद औलाद पैदा करने से अक्षम होते हैं तो वो मल्टीप्लाई कैसे होते हैं, वगैरह। मुबारक अली खुद तो उस विषय में अनभिज्ञता जाहिर करता है लेकिन दो दिन बाद उसे अल्तमश नाम के एक किन्नर से मिलवाता है जो जनाना रूप अख्तियार करता था तो ऐसी हसीन, दिलफरेब हुस्न की मलिका में तब्दील हो जाता था जिसे देखकर कोई सपने में नहीं सोच सकता था कि वो किन्नर था। उसी से विमल को हिजड़ों की बाबत विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है और वो उस प्रक्रिया से भी अवगत होता है जो किसी अच्छे भले किशोर का जड़ से खतना करके उसे हिजड़ा बनाती थी, ‘निर्वाण’ बनाती थी। उस जानकारी की फीस के तौर पर अल्तमश हज़ार रुपये पाता है और विमल से उस की कार पर मंडी हाउस तक – मर्दाना लिबास में – लिपट पाता है।
मंडी हाउस के रास्ते में तीन युवक निहायत बद्तमीजी से, गाली-गलौज से महज़ इसलिये विमल के गले पडते हैं कि आईटीओ के क्रॉसिंग पर लाल बत्ती पर खड़ा होकर उसने उनका रास्ता रोक दिया था और लाल बत्ती जम्प करके उन्हें आगे नहीं निकल जाने दिया था। सब से जबर, जो कि कार का ड्राइवर था और बाद में उजागर होता है कि दिल्ली पुलिस के एक एसीपी का बेटा था, उस पर गन तान देता है। विमल, जो कि अब नीलम की कसम से मुक्त था, उससे गन छीन लेता है और अकेला ही तीनों को धूल चटा देता है। सब बाकायदा माफियां मांगने लगते हैं तो विमल गोलियां निकाल कर उनकी गन भी लौटा देता है और उन्हें चला भी जाने देता है। अल्तमश विमल के उस करतब से इतना मुतासिर होता है कि पीछे बतौर सहयोग की फीस मिले हज़ार रुपये लौटा देता है और आइन्दा बिना किसी उजरत के विमल की हर खिदमत करने का वादा करता है।
अपनी निगाहबीनी का अगला निशाना विमल अमित गोयल को बनाता है। तीन दिन बाद अमित जब एक हसीन संगिनी के साथ वसन्त कुंज में स्थित ‘हाईड पार्क’ नामक, नाइट क्लब में हाजिरी भर रहा होता है तो विमल को मालूम होता है कि रात के नौ बजे के बाद वहां अकेले मर्द का दाखिला मना था। फिर उसे मालूम होता है कि फीस भरने पर कम्पैनियन बाहर उपलब्ध हो जाता था। वो तीन हजार रुपये फीस भर के प्रियंका नाम की एक सुन्दरी की कम्पनी हासिल करता है और ‘हाइड पार्क’ में दाखिला पाता है। प्रियंका से ही उसे मालूम होता है कि जो लड़की अमित के साथ थी, उसका नाम स्वाति था और बतौर बारफ्लाई वो वहां की रेगुलर थी। उसके अनुरोध पर प्रियंका विमल की स्वाति से एक संक्षिप्त, प्राइवेट मुलाकात का इन्तज़ाम करती है जिसमें विमल स्वाति से उस्तरे से चेहरा काट देने की धमकी दे कर तैयार कर लेता है कि अगली शाम को अमित के साथ वहां जो उसकी मीटिंग तय थी, वो उसको मिस कर देगी। स्वाति अंदेशा जताती है कि उसने ऐसा किया तो अमित उसका बुरा हाल करेगा तो विमल उसे आश्वासन देता है कि वो नौबत आने तक का उसका – या किसी का भी – बुरा हाल करने के काबिल ही नहीं बचने वाला था।
अगले रोज़ रात नौ बजे, जैसा कि उसका अमित से वादा था, अदिति ‘हाइड पार्क’ में नहीं पहंचती। अमित अकेला बार पर बैठा डिंक करता, जलता भूनता, उसको कोसता उसका इन्तज़ार करता है। विमल नीलम और जनाना लिबास में परी-चेहरा हसीना बने अल्तमश के साथ वहां पहुंचता है, फिर कुछ समय बाद उसके आदेश पर अल्तमश अमित को शीशे में उतारने के लिये बार पर पहुंच जाता है और जानबूझ कर खुद को अमित को परोसता है। स्टुड-अप का सताया अमित तत्काल ‘मीशा’ – अल्तमश का जनाना नाम – पर लार टपकाने लगता है और ‘मीशा’ के अनुरोध पर बतौर फोरसम विमल नीलम और ‘मीशा’ के साथ शामिल हो जाता है। कई ड्रिंक्स के दौर चल चुकने बाद ‘मीशा’ हिन्ट ड्राप करने लगती है कि इतनी बढ़िया चलती पार्टी को ऑल नाइट अफेयर बनाने के लिये कहीं तनहाई हासिल होती तो कितना मज़ा आता। नशे के हवाले अमित जब बताता है कि ईस्ट आफ कैलाश में उनकी एक खाली पड़ी फर्निश्ड कोठी थी, जिसकी चाबी उसके पास थी और पार्टी को ऑल नाइट अफेयर बनाने के लिये जो उन सब को वहां ले जा सकता था।
सब ईस्ट ऑफ कैलाश वाली अमित की खाली पड़ी कोठी में शिफ्ट हो जाते हैं। वहां ‘मीशा’ अमित को काबू में कर लेती है और विमल की मौजूदगी में उसके आदेश पर उस्तरे के एक ही वार से अमित के गुप्तांग उड़ा देती है।
यूं नीलम के साथ बद्फ़ेली करने वाले चार नौजवानों में से पहला – अमित गोयल – विमल के कहर का शिकार होता है।
अगली सुबह पिता रघुनाथ गोयल को पुत्र के हौलनाक अंजाम की ख़बर लगती है तो वो उसे ग्रीन पार्क के एक प्राइवेट नर्सिंग होम में शिफ्ट किये जाने का इन्तज़ाम करता है।
अरमान त्रिपाठी को उस वारदात की खबर लगती है तो उसे फैंटम की नकाब वाला वो शख्स याद आने लगता है जिसने वहां उसकी दुरगत की थी, चारों के गम्भीर अंजाम की धमकी दी थी और बोला था कि उसका नम्बर आखिर में आयेगा। अब उसे मालूम था कि वो गम्भीर अंजाम क्या था और उसके प्राण कांप रहे थे।
शाम को त्रिपाठी पिता पुत्र ग्रीन पार्क नर्सिंग होम पहुंचते हैं और रघुनाथ गोयल के ट्रबलशूटर जस्से की मौजूदगी में उससे मिलते हैं। वो अमित से तो नहीं मिल पाते लेकिन बाजरिया पिता उन्हें मालूम होता है कि मोटे तौर पर क्या हुआ था! तब अरमान और भी हैरान होता है कि उसके दोस्त का अंग भंग करने वाला ‘फैंटम’ नहीं था, बल्कि एक खूबसूरत लड़की थी। वो पिता को नर्सिंग होम से घर लौट जाने देता है और खुद एक नज़दीकी रेस्टोरेंट में अकेले में जस्से से मिलता है और गोपनीयता की कसम दिला कर उसे अपनी ‘फैंटम’ के साथ बीती कह सुनाता है। जस्सा अमित को प्राब्लम चाइल्ड बताता है जो पिता की पैंतालीस लाख रुपये की रिश्वत के सदके एक वारदात से बरी हुआ था तो कोई सबक लेने का जगह वैसी ही दूसरी वारदात कर बैठा था जिसने उसे उसके उस हौलनाक अंजाम तक पहुंचाया था। बहरहाल, अरमान जस्से पर अपना शक जाहिर करता है कि कांड करने वाली लड़की के साथ जो औरत और आदमी थे, उन में वो आदमी ही ‘फैंटम’ था और ये दूर की कौड़ी थी लेकिन फिर भी लगता था कि औरत वही थी जिसे उन चार जनों ने उठाया था, जिसके साथ चलती कार में बद्फ़ेली की थी, और फिर जिसे कार से बाहर फेंक दिया गया था। वो औरत पांव-पांव चल रही थी और नज़दीकी म्यूनीसिपल मार्केट से खरीदारी कर के लौट रही थी। इस लिहाज़ से उसकी रिहायश मॉडल टाउन में मार्केट के करीब ही कहीं होना लाजमी था और जस्सा चाहता तो उसे तलाश कर सकता था।
जस्सा अपनी अतिव्यस्तता की वजह से उस काम को हाथ में लेने में असमर्थता जताता है और अरमान को राय देता है कि उस बाबत वो खुद कोशिश करे। अलबत्ता वो महरौली वाले रेस्टोरेंट के सीसीटीवी कैमराज की रिकार्डिंग से पोशाक के सदके सीसीटीवी फुटेज खंगाल सकता था। ‘हाइड पार्क’ की फुटेज से उन तीनों जनों के साथ मौजूद औरत की सूरत पहचानी जा सकती थी और तदोपरान्त ये जानना आसान होता कि वो मॉडल टाउन में म्यूनीसिपल मार्केट के करीब कहीं रहती थी या नहीं।
विमल मुबारक अली से मिलता है और उसे अपने लिये गन का इन्तज़ाम करने को बोलता है। तब मुबारक अली एक नया रहस्योद्घाटन करता है कि अल्तमश के बतौर मीशा ‘बड़े काम’ की फीस नौ-दस हज़ार रुपये मुकर्रर हुई थी, वो उसने ये कह कर लेने से इंकार कर दिया था कि उसके लिये यही बहुत बड़ी फीस थी कि उसे विमल के किसी काम आने का मौका मिल रहा था। यानी एक मुफ़लिस किन्नर भी विमल की शख्सियत के जादू से मुक्त नहीं था। मुबारक अली विमल के इस ऐलान से भी नाइत्तफाकी ज़ाहिर करता है कि अरमान त्रिपाठी की खबर वो आखिर में लेगा।
आखिर ‘गोल्डन गेट’ को जांचने-परखने का फैसला होता है, क्योंकि विमल को लगता था कि इसमें भी कोई भेद था जो फैक्ट्री का परदेसी पाटर्नर जब दिल्ली आता था तो फैक्ट्री में जाकर बैठने की जगह ‘गोल्डन गेट’ में डेरा जमाता था। तब मुबारक अली ये सम्भावना जताता है कि जिन की फैक्ट्री थी, ज़रूर ‘गोल्डन गेट’ के भी वही मालिकान थे।
जस्सा महरौली वाले रेस्टोरेंट ‘लोटस पौंड’ से तो अपनी दरकार सीसीटीवी फुटिंग हासिल करने में कामयाब हो जाता है लेकिन जब वो वही कोशिश जाकर ‘हाइड पार्क’ में दोहराता है तो उसे डांट कर, बेइज्जत करके, दोबारा कभी ‘हाइड पार्क’ के करीब भी न फटकने की धमकी देकर भगा दिया जाता है।
‘लोटस पौंड’ वाली सीसीटीवी फुटेज जस्सा अरमान को दिखाता है।
अरमान उस में से पोशाक के सदके एक शख्स को सिंगल आउट करता है जो उसके ख़याल में ‘फैंटम’ हो सकता था लेकिन यकीनी तौर पर तभी कुछ रहा जा सकता था जब कि ‘हाइड पार्क’ वाली सीसीटीवी फुटेज हाथ आती। जस्से ने नयी कोशिश करने का वादा किया।
रात को विमल नीलम अशरफ और अल्तमश – मीशा – फोरसम की सरत में ‘गोल्डन गेट’ पहंचते हैं। वहां पहले तो उन्हें सब कछ नार्मल लगता है फिर उनकी तवज्जो में पिछवाड़े की दो रिज़र्ल्ड टेबल आती हैं जिन पर कोई आकर बैठता था तो उस से बिना आर्डर लिये फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया जाता था, स्टीवार्ड उसके पास पहुंचता था तो वो जेब से मोबाइल निकाल लेता था, फिर थोड़ी देर बाद ड्रिंक को बिना किसी खास खातिर में लाये उठता था और स्क्रीन के पीछे कहीं गायब हो जाता था। ऐसा दो तीन बार और हुआ तो उन्होंने यही फैसला किया कि स्क्रीन के पीछे कोई प्राइवेट डायनिंग एरिया था जहां किन्हीं विशिष्ट अतिथियों को ही, पहले रिज़र्ल्ड टेबल पर शिनाख्त के बाद, जाने दिया जाता था।
पीछे नीलम के पास एक लाल गाऊन वाली युवती पहुंचती है जो उसे एक रुक्का थमा कर वहां से चली जाती है। विमल लौट कर वो रुक्का देखता है तो पाता है उसपर एक तरफ मोटे अक्षरों में लिखा था :
फेरा का फेरा फिर। आगे बोलने का
और दूसरी तरफ कुछ नामों की लिस्ट, बमय प्रोफेशन और मोबाइल नम्बर, टाइप्ड थे जिस पर हैडिंग था – ‘टु बी स्क्रींड बिफोर फेरा फेरा’। किसी की समझ में नहीं आता कि वो लिस्ट क्या थी, उस मैसेज का क्या मतलब था। अलबत्ता ये ज़रूर पता लगता है कि लाल गाउन वाली का नाम मीनू ईरानी था, वो वहां होस्टेस थी और वहां के सिक्योरिटी चीफ गजानन चौहान को रिपोर्ट करती थी। लाल गाउन वाली एकाएक उन की टेबल पर पहुंचती है, गुस्से में मैसेज वाला रुक्का विमल के हाथ से झपटती है, उसकी धज्जियां उड़ाती है और पांव पटकती वहां से चली जाती है।
अशरफ लौट कर बताता है कि सिन्धी सेठ सखनानी की मर्सिडीज़ बाहर पार्किंग में नहीं थी, लेकिन वहां दो ‘इन्डिका’ आती जाती रहती थीं जो कि कहीं करीब से कोई खास पैसेंजर्स ढोकर वहां लाती थीं। वो करीब जगह ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन की पार्किंग थी और वहां पार्किंग में सुखनानी की मर्सिडीज़ खड़ी थी। लिहाजा वो दो ‘इन्डिका’ ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन की पार्किंग और ‘गोल्टन गेट’ के बीच शटल सर्विस का काम करती थीं जो कि उन खासुमखास मेहमानों को ही उपलब्ध थीं जो रेस्टोरेंट में आकर रिज़र्ल्ड टेबल्स पर बैठते थे। खास मेहमान जैसे कि कीमतराय सुखनानी जो कि वहां के उस खास सैटअप के बारे में उन्हें ब्रीफ कर सकता था।
क्यों? कैसे? ये बाद में ग़ौर करने लायक मसले थे।
डिनर के दौरान उन्हें लाल गाउन वाली मीन ईरानी फिर दिखाई देती है। वो रेस्टोरेंट के प्रवेशद्वार के करीब के एक बन्द दरवाजे पर पहुंचती है और उसे खोलकर उसके पीछे गायब हो जाती है। विमल जाकर भीतर झांकता है तो भीतर मौजूद अटेंडेंट उसे बताती है कि वो स्टाफ का रैस्टरुम था, गैस्ट्स के लिये नहीं था। वो मीनू ईरानी के बारे में सवाल करता है तो मालूम होता है कि वो पिछवाड़े के रास्ते से वहां से चली गयी थी लेकिन जल्दबाजी में अपना हैण्डबैग पीछे छोड़ गयी थी। विमल खुद को चौहान का – मीनू ईरानी का भी – दोस्त बताता है और ये कहके हैण्डबैग झपट लेता है कि मीनू को वो लौटा देगा। बाहर मीन उसे कहीं दिखाई नहीं देती। वो हैण्डबैग टटोलता है तो पता लगता है कि वो 14/1, ईस्ट पटेल नगर के एक फ्लैट में रहती थी। बैग में एक चाबियों का गुच्छा था जिस में तीन चाबियां थी। विमल तीनों चाबियों की आउटलाइन कागज पर उकेर लेता है, कई कोणों से उनकी अलग-अलग तसवीरें खींच लेता है और चाबियों को बैग के हवाले करके बैग रैस्टरूम की अटेंडेंट को ये कहता लौटा देता है कि बाहर मीनू उसे नहीं मिली थी।
अगली सुबह अखबार में मीनू ईरानी के क़त्ल की खबर छपती है। फिर सुबह सवेरे अशरफ और अल्तमश विमल के पास पहुंचते हैं। सब में यही फैसला होता है कि युवती को पिछली रात गलत जगह मैसेज पहुंचाने की सज़ा – मौत की सज़ा – मिली थी, इस लिहाज़ से उस बेमानी लगने वाले मैसेज की कोई खास अहमियत होनी चाहिये थी जो कि किसी को नहीं सूझती। वो दोनों विमल को बताते हैं कि वो पिछली रात घर गये ही नहीं थे, सारी साल ‘गोल्डन गेट’ की निगाहबीनी करते रहे थे जिसका ये नतीजा सामने आया था कि सुबह सवेरे, मुंह अन्धेरे बारास्ता फैक्ट्री दो-दो तीन-तीन कर के कोई तीस मेहमान वहां से बाहर निकले और ‘इन्डिका’ कारों पर सवार हो कर खामोशी से वहां से रूखसत हो गये। यूं ही सिन्धी सेठ सुखनानी भी रूखसत हुआ। और रूखसत हुईं आठ निहायत हसीन, जवान, आवर-ग्लास फिगर वाली लडकियाँ। तब अल्तमश ने अपना शक जाहिर किया कि ‘गोल्डन गेट’ की ओट में वहां ज़रूर कोई खुफिया वेश्यालय चलता था, लेकिन विमल उम्रदराज़ सिन्धी सेठ सुखनानी की कल्पना रण्डीबाज़ के तौर पर नहीं कर पाता। लिहाज़ा विमल अशरफ से दरख्वास्त करता है कि वो किसी प्रकार सुखनानी से उसकी मुलाकात का प्रबन्ध करे। साथ ही वो अशरफ को मीनू ईरानी के बैग से निकाली चाबियों का खाका वगैरह सौंपता है और आननफानन डुप्लीकेट चाबियां बनवाई जाने का इन्तज़ाम करने की वो दरख्वास्त करता है।
चाबियां उसे आननफानन ही हासिल होती हैं जिनकी मदद से विमल मीनू ईरानी के ईस्ट पटेल नगर वाले फ्लैट में दाखिला पाने में कामयाब हो जाता है। वहां की तलाशी में, वो दो लिस्टें बरामद करता है जिनमें से एक पर इकतीस कोड दर्ज थे और दूसरी पर नब्बे नाम और मोबाइल नम्बर दर्ज थे। वो अभी इतना ही देख पाता है कि उन नामों में सुखनानी का नाम भी था कि उसपर पीछे से हमला होता है और वो लिस्टें उसके हाथ से निकल जाती हैं। बेहोश होने से पहले वो इतना फिर भी देख पाता है कि उसकी हमलावर पिछली रात के मेकअप वाली नीलम जान पड़ती थी यानी वो, वो औरत थी जिसके मुगालते में मीनू ईरानी ने ‘सन्देशा’ नीलम को सौंपा था।
अरमान जस्से से मिलता है तो जस्सा अपना ख़याल ज़ाहिर करता है कि उनकी बद्फेली का शिकार हुई औरत मॉडल टाउन में म्यूनीसिपल मार्केट के आसपास रहती कोई हाउसवाइफ थी, बदले की भावना से प्रेरित जिसका पति सब फसाद खड़ा कर रहा था। जिस औरत की ऐसी फजीहत हुई थी, वो हफ़ता-दस दिन घर से बाहर नहीं निकल सकती थी और पूछताछ से, पड़ताल से ऐसी किसी औरत का पता निकाला जा सकता था और इस काम को खुद करने का जस्से ने अरमान को आश्वासन दिया।
शाम को मुबारक अली और अशरफ विमल के पास पहुंचते हैं, गुज़श्ता वाकयात पर फिर तबसरा होता है तो मुबारक अली भी इस बात से इत्तफाक जाहिर करता है कि ‘गोल्डन गेट’ की ओट में ज़रूर कोई रण्डीखाना ही चलाता था और जो बड़ी लिस्ट विमल के हाथ से निकल गयी थी, वो ज़रूर स्थायी ग्राहकों की थी और छोटी लिस्ट में रोज़ बदलने वाले कोड उनके लिये दाखिले के परमिट का काम करते थे, और विमल की हमलावर औरत पर अब उन लिस्टों को महफूज़ रखने की ज़िम्मेदारी थी।
फिर मुबारक अली विमल को दो गन सौंपता है, जिन में से एक नन्हीं सी थी जो कि ऐंकल होल्स्टर में रखने के काम आती थी।
जस्सा हाइड पार्क के मैनेजर नमित मेहरोत्रा से उसे घर जाकर फिर मिलता है, लेकिन मैनेजर उसे सीसीटीवी फुटेज मुहैया करवाने की उसकी दरख्वास्त को फिर ठुकरा देता है। मैनेजर के घर ठहरने के दौरान जस्से को उनके हयातो नाम के जपानी नस्ल के लाखों रुपये की कीमत के कुत्ते की खबर लगती है जिसकी बाबत मैनेजर बड़े गर्व से कहता है कि वो उनके परिवार का अंग था।
रात को जस्सा कुत्ते को जहर देकर मार देता है और वार्निंग जारी करता है कि अगला शिकार मैनेजर की जुड़वां बेटियों में से एक हो सकती थी।
मैनेजर के कसबल ढीले पड़ जाते हैं, वो जस्से को वांछित सीसीटीवी फुटेज मुहैया करा देता है। वो अरमान को वो फुटेज दिखाता है तो अरमान के नोटिस में पहले ‘मीशा’ आती है, जो फुटेज में साफ जाहिर होता था कि जानबूझ कर अमित से जा चिपकी थी, फिर नीलम और विमल आते हैं। नीलम को विमल कद-काठ में ‘फैंटम’ जैसा लगता है और ये भी फैसला होता है कि अपनी असली सूरत छुपाने के लिये ‘हाइड आउट’ में वो मेकअप में था। लेकिन क्योंकि ‘मीशा’ – उर्फ़ अल्तमश – उन के साथ थी इसलिये ईस्ट ऑफ कैलाश वाली वारदात निश्चय ही उन्हीं लोगों का – ‘मीशा’ का – काम था और वो लोग पहले से अमित की ताक में थे। इस लिहाज़ से वारदात वाली रात से पहले के कुछ दिनों की ‘हाइड पार्क’ की सीसीटीवी फुटेज में वो लोग हो सकते थे। जस्से को वो बात जंचती है, वो, वो फुटेज भी निकलवाने का अरमान को आश्वासन देता है।
मुबारक अली के भांजों के जरिये विमल को मालूम होता है कि 29 तारीख को ‘ब्लैक पर्ल’ नाम के एक लग्ज़री होटल में एक भव्य शादी थी जिसमें अशोक जोगी की सपरिवार शिरकत थी। विमल अशरफ और ‘मीशा’ के साथ उस शादी में घुसपैठ करता है, खुद को बाजरिया अमित गोयल, अशोक से पहले मिला बताता है, और उसकी नशे की हालत का फायदा उठा कर उसे इस बाबत यकीन दिलाने में भी कामयाब हो जाता है। दोनों डिक्स शेयर करने लगते हैं और विमल के प्रोत्साहन पर अशोक वहां अकेली घूमती फिरती, ड्रिंक एनजॉय करती लखनवी बेगम ‘मीशा’ पर लार टपकाता है। ‘मीशा’ उस को शह देती है, खुद को बारात के साथ आयी बताती है जिसके लिये कि होटल में अलग कमरा बुक था। वो थोड़ा रैस्ट करने के बहाने अपने कमरे में जाती है तो पीछे अशोक के लिये हिन्ट छोड़ के जाती है कि अगर वो भी रैस्ट का तालिब था तो उसके कमरे में आ सकता था।
लार टपकाता, नशे के हवाले अशोक उसके कमरे में पहुंच जाता है।
और अमित गोयल वाले अंजाम को पहुंचता है; विमल के कहर का दूसरा शिकार बनता है।
(यहां तक की कहानी आपने पूर्वप्रकाशित उपन्यास ‘कहर’ में पढ़ी, अब आगे पढ़िये...)
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