नई दिल्ली!

तिलक नगर

मेट्रो स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर बैठा चाय वाला। तीन-चार रिक्शे वाले उसके पास खड़े चाय पीने में व्यस्त थे। पास ही लोहे की लंबी-बैंच पड़ी थी, जिस पर चार-पांच लोगों के बैठने लायक जगह थी।

पचास बरस के आस-पास का एक आदमी वहां पहुंचा, जिसने पैंट-कमीज पहन रखी थी, जो कि कुछ मैली हो रही थी। तीन-चार दिन की शेव बढ़ी हुई थी। वो बैंच पर बैठता, चाय वाले से बोला।

"चाय बनाने भैया!"

उसके बाद उसकी नजरें इधर-उधर फिरने लगीं। सामने ही दुकानें थीं, लोग आ-जा रहे थे। उन्हें देखते हुए वो सोच रहा था कि ये लोग कितने सुखी हैं। इन्हें कोई चिंता नहीं है। तभी उसकी निगाह पास ही रखे अखबार पर पड़ी। उसने अखबार उठाया और यूँ ही, बे-मन से पन्ने पलटने लगा कि एक जगह निगाह ठहर गई। एक बॉक्स जैसी जगह पर लिखा था---

"पैसा चाहिए तो हमसे फोन कीजिए।"

नीचे फोन नम्बर लिखा था---

वो बार-बार इसी लाइन को पढ़ता और फोन नम्बर पर नजरें दौड़ाने लगता।

चाय वाले का लड़का उसे चाय का गिलास थमा गया।

चाय पीते हुए उसकी नजर अखबार के उसी हिस्से पर दौड़ती रही।

फिर वो चाय समाप्त करके उठा। तब तक उसने अखबार का वो हिस्सा जरा-सा फाड़ लिया था, जहां पर फोन नम्बर लिखा था। चाय वाले को पैसे देकर वो आगे बढ़ गया उसकी नजरें इधर-उधर भी जा रही थीं। शीघ्र ही उसे फोन बूथ दिखा। वो फोन बूथ में पहुंचा और अखबार के उस टुकड़े पर लिखा नम्बर मिलाया।

बेल होते ही उधर से तुरंत रिसीवर उठाया गया।

"हैलो!"

"पैसा चाहिए मुझे।" वो बोला।

"किसने बोला तेरे को इधर से, तेरे को पैसा मिलेगा?" उधर से पूछा गया था।

"अखबार में पढ़ा।"

"नाम क्या है तेरा?"

"ओम प्रकाश।"

"रहता किधर है?"

"पश्चिम बिहार, जनता फ्लैट्स में।"

"करता क्या है?"

"बी•एस•एफ• से निकाला गया हूँ चार महीने पहले। पत्नी को कैंसर है, वो दीनदयाल अस्पताल में वार्ड 4, बेड नम्बर 21 पर पड़ी है। डॉक्टर कहता है कि वो ठीक कर देगा मेरी पत्नी को, परन्तु खर्चा बीस लाख बताता है, जो कि मेरे पास नहीं है।"

"उम्र क्या है तेरी?"

"पचास साल।"

"तो मरने दो पत्नी को।"

"मैं उसे बहुत चाहता हूँ। कोई औलाद नहीं है मेरी। वो ही सबकुछ है।" ओम प्रकाश का स्वर भर्रा उठा--- "मैं उसे बचाना चाहता हूँ।"

"बी•एस•एफ• से क्यों निकाला गया?"

"वहां पर बांग्लादेश के लोगों को इधर से उधर आने-जाने के लिए पैसा लेता था। इसी काम के दौरान बड़े ऑफिसरों ने मुझे पकड़ लिया और नौकरी से निकाल दिया। केस चल रहा है। नौकरी का पैसा भी नहीं मिलेगा, केस का फैसला होने तक। पत्नी को भी बचाना है।"

"क्या काम करेगा तू?"

"जो बोलो।"

"बीस लाख के बदले बड़ा काम करना होगा तेरे को।"

"करूंगा।"

"काम में खतरा भी हो सकता है।"

"बी•एस•एफ• में नौकरी के दौरान बहुत खतरे देखे हैं। मैं काम करूंगा।"

"तेरी जान जाने का भी आधा खतरा हो सकता है।"

"आधा?"

"मतलब कि फिफ्टी-फिफ्टी चांस है। बच भी सकता है तू। बीस लाख आसानी से कोई भी नहीं देगा।"

"ऐसा क्या काम है?"

"तेरी मांगी रकम हम दे रहे हैं, हमारा कहा काम तू कर। पैसा चाहिए तो हमारे इशारों पर चलना होगा।"

"ठीक है, लेकिन बीस लाख मैं एडवांस में लूंगा।"

"क्यों?"

"काम के दौरान मुझे कुछ हो गया तो, कम-से-कम मेरी पत्नी तो बच जाए। वो पैसा मैं डॉक्टर को देकर काम पर लगूंगा।"

"ठीक है, तू आ मेरे पास। बात करते हैं। अपनी नौकरी के कागज-पत्र भी लेते आना ताकि मुझे पता चले कि तू अपने बारे में जो कह रहा है, वह सच है।" इसके साथ ही उधर से पहाड़गंज का पता बताया गया।

"कब आऊं?"

"कब क्या आ-जा।"

"ठीक है, मैं घर से फाइल लेकर पहुंचता हूं। दो-ढाई घंटे तक तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा।"

■■■

तीन दिन बाद... मुंबई में!

'जिन्न' यानी कि F.I.A., फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी। इंडिया की गुप्त जासूसी संस्था।

F.I.A. का स्पेशल एजेंट सैवन इलैवन।

शाम के चार बज रहे थे और सैवन इलैवन एक फ्लैट में बीस बरस की खूबसूरत युवती के साथ बेड पर मौजूद था। दोनों ने चादर ओढ़ रखी थी। और अभी-अभी फुरसत पाकर हटे थे। मेहनत करने की वजह से युवती का चेहरा लाल हो रहा था।

"ओह माई लव विक्रांत!" युवती मस्त स्वर में कह उठी।

"तुम शानदार हो।"

"एक बार फिर हो जाए।" युवती ने मचलते स्वर में कहा।

"मैं तो रात भर यहीं हूं।" सैवन इलैवन ने शोख स्वर में कहा।

"सच?" युवती का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

तभी पास ही साइड टेबल पर रखा मोबाइल बजने लगा।

"ओह विक्रांत! मैंने कहा था फोन बंद कर देना। तुमने फोन बंद क्यों नहीं किया?" वह कह उठी।

सैवन इलैवन ने फोन उठाया और कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया।

"हैलो!"

"सैवन इलैवन!" उधर से जो आवाज कानों में पड़ी, उसे सैवन इलैवन पहचान गया।

"कहो।"

"मेरे पास पक्की खबर है कि कल दिल्ली मेट्रो को बम से उड़ाया जाने वाला है।" आवाज कानों में पड़ी।

सैवन इलैवन के होंठ सिकुड़े।

"पक्की खबर?"

"बिल्कुल पक्की।"

"कौन कर रहा है ये सब?" सैवन इलैवन के माथे पर बल झलकने लगे थे।

"ये मैं नहीं जानता, परंतु एक आदमी को मैं जानता हूं। यार है मेरा। बारूद एक्सपर्ट है। कल रात उसके साथ बैठकर पी तो नशे में उसके मुंह से यह बात निकल गई कि दिल्ली मेट्रो की एक ट्रेन का उड़ाने के लिए उसे, बारूद के दो बैग तैयार करने का ऑर्डर मिला है। कह रहा था कि आज रात बैग तैयार करने हैं और एक आदमी को भी बारूद से तैयार करना है, जो मेट्रो को उड़ाएगा।"

"आदमी को बारूद से तैयार करना है--- इसका मतलब मैं नहीं समझा।"

"जो उसने कहा, तुम्हें बता दिया।"

"कौन-सी मेट्रो ट्रेन को उड़ाया जाएगा?"

"वो मैं नहीं जानता।"

"नाम क्या है उसका?"

"मनजीत।"

"तू किधर है?"

"वहीं, अपने चांदनी चौक में। अपना तो वही ठिकाना है। यहीं पैदा हुआ, यहीं मरना है।"

"मनजीत का अता-पता सब मालूम है?"

"सब।"

"मैं शाम को फ्लाइट से दिल्ली पहुंचता हूं। तुम अपने घर पर ही मिलना।" कहने के साथ ही सैवन इलैवन ने फोन बंद कर दिया।

"जा रहे हो?" युवती नाराजगी से कह उठी।

"मेरे दोस्त की मां मर गई है, मेरा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है। दोबारा हम जल्दी मिलेंगे।"

"एक बार फिर हो जाए, जल्दी जल्दी?"

"इस काम को कभी भी जल्दी नहीं करते। तुम अपने को तैयार रखना, मैं तुम्हें फोन करूंगा।" सैवन इलैवन बेड से नीचे उतरा।

युवती ने गहरी सांस ली और कह उठी।

"जानते हो विक्रांत, तुम्हारे में सबसे ज्यादा प्यारी क्या चीज है, जो मुझे तुम्हारी तरफ आकर्षित करती है?"

"क्या?" सैवन इलैवन मुस्कुरा पड़ा।

"तुम्हारी बिल्लौरी आंखें। तुम्हारी आंखों में देखते हुए मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे सामने शेर खड़ा हो।"

"किस्मत वाली हो। तुमने इंसान के साथ-साथ शेर का भी मजा ले लिया।"

■■■

नई दिल्ली।

करोल बाग, रैगरपुरा।

रात के ग्यारह बज रहे थे। एक गली के बाहर अंधेरे में खड़े कार के पीछे वाली सीट पर सैवन इलैवन पसरा पड़ा था। आधा घंटा पहले ही वो और सुदर्शन वहां पहुंचे थे। सुदर्शन वही, जिसने फोन किया था सैवन इलैवन को।

तभी आगे का दरवाजा खुला और सुदर्शन ने भीतर झांकते हुए कहा।

"मनजीत अपने घर पर नहीं है। ताला बंद है।"

"उसके मोबाइल पर फोन करो।"

"किया, परंतु फोन बंद है।"

"पता करो वह कहां है?" सैवन इलैवन बोला।

"मुझे उसका कोई ठिकाना नहीं मालूम। हम दोनों बहुत कम मिलते हैं। हममें सिर्फ पुरानी पहचान है।" सुदर्शन ने कहा--- "मेरे ख्याल से इस वक्त कहीं पर बैठा, बारूद के बैग तैयार करने में व्यस्त होगा। कल विस्फोट जो किए जाने हैं, दिल्ली मेट्रो में।"

"उसे ढूंढने का कोई जुगाड़ भिड़ा।"

"आसान नहीं लगता, फिर भी आस-पड़ोस से पूछताछ करता हूं।" कहकर सुदर्शन चला गया।

सैवन इलैवन ने आंखें बंद कर लीं।

पंद्रह मिनट बाद सुदर्शन वापस लौटा।

"उसके आस-पड़ोस वाले भी नहीं जानते कि वह किधर गया है।" सुदर्शन ने कहा।

"तो उसके लौटने का इंतजार करना पड़ेगा। अपना काम खत्म करके वो सुबह तक जरूर लौट आएगा।"

"न लौटा तो?"

सैवन इलैवन ने आंखें खोलीं और सुदर्शन को देखा।

"उसने इस बात का जिक्र नहीं किया कि मेट्रो की कौन-सी लाइन पर धमाके किए जाने हैं ?"सैवेन इलैवन ने पूछा।

"नहीं। इस तरह की कोई बात नहीं हुई।"

"यह पता होता तो कल होने वाले विस्फोटों से बचा जा सकता था।" सैवन इलैवन ने कहा--- "हमें उसकी वापसी का इंतजार करना चाहिए। अगर वह सुबह तक न लौटा तो धमाकों के बारे में दिल्ली मेट्रो को सतर्क कर दिया जाएगा।"

"और अगर सुबह तक धमाके हो गए तो?"

"सुबह धमाके नहीं होंगे। धमाके करने वालों का असली मकसद होता है कि विस्फोट में ज्यादा-से-ज्यादा लोग मरें। ज्यादा दहशत फैले। इसलिए नौ बजे से पहले कोई धमाका नहीं होगा। मेट्रो में असली भीड़ नौ बजे के बाद शुरू होती है।"

सुदर्शन कार के भीतर बैठ गया।

"तुमने नींद नहीं लेनी है।" सैवन इलैवन बोला--- "हर बीस मिनट बाद जाकर देखना है कि वह आया या नहीं?"

"हां, ऐसा ही करूंगा।"

कुछ खामोशी के बाद सैवन इलैवन ने पूछा।

"मेट्रो के कौन-से रूट पर ज्यादा भीड़ होती है?"

"भीड़ के मामलों में दो मेट्रो रूट चर्चित हैं। रिठाला से शाहदरा और द्वारका से इंद्रप्रस्थ। ज्यादा भीड़ द्वारका से इंद्रप्रस्थ रूट पर होती है।"

"तो समझो, अगर कुछ हुआ तो द्वारका इंद्रप्रस्थ के रूट पर ही होगा।" सैवन इलैवन कह उठा।

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सुबह चार बजे।

सुदर्शन ने सैवन इलैवन को हिलाकर नींद से उठाया।

"वो आ गया है।" सुदर्शन ने कहा।

"कब?" सैवन इलैवन उठते हुए बोला।

"अभी। मैं कार में बैठा था। वो मेरे सामने टैक्सी से उतरा और गली में चला गया। वह नशे में लग रहा था।

सैवन इलैवन दरवाजा खोलकर कार से बाहर निकला। दो-तीन घंटे की नींद ले ली थी उसने। चारों तरफ इस वक्त अंधेरे से भी खामोशी छाई हुई थी। सुदर्शन उसे देख रहा था।

"चल, उससे बात करते हैं।" सैवन इलैवन ने कहा।

दोनों गली के भीतर प्रवेश कर गए।

सुदर्शन एक दरवाजे के पास जाकर ठिठका और कॉलबेल बजाई।

दोनों अंधेरे में दरवाजे के पास खड़े रहे। जल्दी ही दरवाजा खुला। शराब का झोंका उनकी सांसो से टकराया।

"कौन है?" आवाज में नशा था।

"मनजीत मैं, सुदर्शन...।"

"तू?" नशे में उसका स्वर हिल रहा था--- "इस वक्त--- आ--- भीतर आ।" पलटकर वह भीतर चल पड़ा।

उसके पीछे चलता सुदर्शन कह उठा।

"आज तो अकेले-अकेले पी आया। मेरी याद नहीं आई?"

"बस ऐसे ही।" कहकर मनजीत हौले-से हंस पड़ा।

वे साधारण से ड्राइंग रूम में पहुंचे।

"बैठ।" मनजीत की नजर अब पहली बार सैवन इलैवन पर पड़ी--- "ये तेरे साथ है। कौन है ये?"

"सैवन इलैवन।"

"ये नाम है इसका?" मनजीत एक कुर्सी पर बैठता कह उठा। उसने ठीक-ठाक पी रखी थी--- "तू बहुत गलत वक्त पर आया। रात का जगा हूं मैं और गहरी नींद लेने के लिए, एक पैग ज्यादा ले रखा है, बता क्यों आया इधर? मैंने अब सोना है।"

सुदर्शन ने सैवन इलैवन को देखा, फिर बोला।

"सैवन इलैवन बात करेगा तेरे से।"

"क्या बात करेगा?"

सैवन इलैवन आगे बढ़ा और जोरदार घूंसा मनजीत के चेहरे पर ठोका।

मनजीत कुर्सी सहित नीचे जा गिरा।

"ये क्या करता...?" मनजीत ने कहना चाहा।

सैवन इलैवन ने उसे कमीज के कॉलर से पकड़ा और खड़ा कर दिया।

"होश आया?" सैवन इलैवन का स्वर शांत था।

"मुझे क्यों मार...?"

"कहां से आ रहा है तू?" सैवन इलैवन बोला।

"मैं फिल्म देख...।"

सैवन इलैवन का हाथ घूमा और पूरी ताकत के साथ उसके गाल पर जा पड़ा। पी रखी होने की वजह से वो खुद को संभाल नहीं सका और पुनः नीचे जा गिरा। उसके बाद जल्दी से उठ बैठा।

"सुदर्शन!" मनजीत अपने चेहरे पर हाथ फेरता कह उठा--- "ये मुझे क्यों मार रहा है, इसे रोक।"

"ये जो पूछ रहा है जवाब दे दे।"

"है कौन ये?"

"सैवन इलैवन।"

"लेकिन ये है कौन जो...।"

"मैं इंडिया की गुप्त जासूसी संस्था F.I.A.का स्पेशल एजेंट हूँ।" सैवन इलैवन ने कहा।

"ओह... तो मैं क्या करूं?"

"मुझे खबर मिली है कि दिन निकलने के बाद, दिल्ली मेट्रो में धमाके होने वाले हैं और इसमें तुम्हारा हाथ है।" सैवन इलैवन का स्वर कठोर हो चुका था--- "अब तुम समझ गए होगे कि तुम कहां फंसे पड़े हो।"

मनजीत ने गहरी सांस ली। थोड़ा-सा नशा उसका कम हुआ।

मनजीत ने सुदर्शन को देखा।

सुदर्शन मुस्कुराया।

"मैं जानता था कि मेरे से एक गलती हो गई है।" मनजीत थके स्वर में कह उठा--- "कल रात मैंने नशे में तेरे को कुछ कह दिया था, लेकिन मैंने सोचा कि तू भूल जाएगा या फिर तूने ठीक से मेरी बात नहीं सुनी होगी क्योंकि उस बारे में तूने दोबारा कोई सवाल नहीं किया था।"

"अब सच बोल दे।" सुदर्शन गंभीर स्वर में कह उठा।

"तू भी F.I.A. में है?" मनजीत ने गहरी सांस ली।

"नहीं। मैं सैवन इलैवन का खबरी हूं।"

"समझा।" मनजीत ने सिर हिलाया--- "मुझे उठा।"

सुदर्शन आगे बढ़ा और मनजीत का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया।

"तेरी जानबख्शी इसी में है कि जो कुछ तेरे अंदर है, बाहर कर दे।" सुदर्शन ने कहा--- "वरना तेरी खैर नहीं।"

"मैं हाथ-मुंह धोना चाहता हूं। इस तरह नशा कुछ कम होगा।" मनजीत बोला।

सुदर्शन ने सैवन इलैवन को देखा।

सैवन इलैवन आगे बढ़ा और मनजीत की तलाशी ली।

उसके पास मोबाइल, पर्स वगैरह ही निकले।

"चल।" सैवन इलैवन बोला--- "मैं तेरे साथ हूं।"

पांच मिनट बाद मनजीत वापस उसी कमरे में था। हाथ-मुंह धो चुका था। अब पहले से बेहतर हाल में था वो। इस दौरान सैवन इलैवन की बराबर उस पर निगाह रही थी। मनजीत की आंखें अभी भी नशे की वजह से लाल हो रही थी। वो बोला।

"इस मामले से मेरा कोई खास वास्ता नहीं है। मैं...।"

"मुझे सारे मामले की सारी जानकारी चाहिए। एक भी बात छूटनी नहीं चाहिए।" सैवन इलैवन ने सख्त स्वर में कहा।

"बाद में मेरा क्या होगा?" मनजीत बोला--- "मैं फंसना नहीं चाहता।"

"तेरे को कुछ नहीं होग। तेरा नाम भी इस मामले में नहीं आएगा। अपना मुंह खोल।"

"वादा करते हो कि मैं इस मामले में नहीं फंसूंगा?" मनजीत ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"वादा है।" सैवन इलैवन ने उसे घूरते हुए कहा।

"सुदर्शन, तू गवाह है कि ये मुझे जाने देगा इस मामले से।"

"चिंता मत कर, मुझ पर भरोसा रख।"

मनजीत ने गहरी सांस ली।

"तेरा इस मामले से क्या वास्ता है?" सैवन इलैवन ने पूछा।

"मैं बारूद एक्सपर्ट हूँ। जिसे जैसी बारूद की सेटिंग चाहिए, वैसी ही करता हूं। पहले मैं मिलिट्री में था।" मनजीत ने बताया।

"वहां से क्यों निकाले गए?"

"मिलिट्री का बारूद बाहर के लोगों को बेचते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था।"

"किनके लिए अब तुम काम करते हो?"

"कोई फिक्स नहीं है। कोई भी काम करा लो। कुछ लोग मेरे बारे में जानते हैं और मुझसे काम कराने आ जाते हैं।"

"तुम उनके बारे में जानते होगे?"

"नहीं।" मनजीत इंकार में सिर हिलाया--- "वो मुझे अपने बारे में कुछ नहीं बताते। मैं जानने की चेष्टा भी नहीं करता। मेरा काम होता है जरूरत के मुताबिक उनका काम करना और ज्यादा-से-ज्यादा पैसे लेना। धंधा है ये।"

"ठीक है। अब इस मामले के बारे में बोलो। दिल्ली मेट्रो में आज कैसे विस्फोट होगा, कहां होगा, कौन करेगा? सब कुछ बताओ।"

मनजीत ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा।

"मैं सब कुछ बता दूंगा, तुम मुझे छोड़ दोगे न? मेरे बारे में किसी को बताओगे तो नहीं?"

"तेरे को इस मामले में नहीं लूंगा।" सैवन इलैवन बोला--- "अब काम की बात कर।"

"तीन दिन पहले दोपहर में मुझसे एक युवक मिलने आया। मैं घर पर ही था। 21-22 बरस की उम्र रही होगी उसकी। उसने अपना नाम नहीं बताया, परंतु उसने अशफाक का नाम लिया जो मुझसे दो बार पहले काम ले चुका था। वो बोला की बारूद के दो बैग तैयार करने हैं, जिन्हें रिमोट से उड़ाया जा सके और एक मानव बम तैयार करना है।"

"मानव बम?"

"हा।" मनजीत ने सैवन इलैवन को देखा।

"कहते रहो।"

"मैंने सारे काम की कीमत सत्तर लाख मांगी, सौदा चालीस लाख में बना।"

"इस काम के लिए तुमने बारूद कहां से लिया?"

"बारूद उनका ही था। मैंने सब कुछ तैयार करना था कि, वक्त पर जैसा वो करना चाहें, वैसा कर सकें।"

"फिर?"

"मैंने पैसे पहले मांगे। वो अपने दिन मुझे पैसे दे गया और बोला कि कल रात आठ बजे मुझे लेने आएगा। उन्हें सुबह तक सब कुछ तैयार चाहिए था और मैंने बता दिया था कि दस घंटे का काम है। फिर वो रात आठ बजे पहुंचा और मुझे ले गया।"

"कहां?"

"रास्ते में मेरी आंखों पर कपड़ा बांध दिया गया था। मैं नहीं जानता था कि वह मुझे कहां ले गया था, परंतु वो फैक्ट्री जैसी जगह थी। मशीनें लगी देखी मैंने। वहां दो आदमी और थे। उन्हीं में से एक ने मानव बम बनना था। पहले मैंने दो बम तैयार किए। उन्होंने पावरफुल बम तैयार करवाए हैं। दोनों बम ब्रीफकेस में फिट किए गए हैं, ताकि किसी को शक न हो। उनका रिमोट भी तैयार किया। इसमें आधी रात हो गई। उसके बाद मैंने मानव बम के लिए जैकेट तैयार किया।"

"जैकेट?"

"हां। सिर से भीतर डालने के बाद छाती, पेट और पीठ की तरफ लटकती है। उन्हें आपस में डोरियों से बांध दिया जाता है, जो कि शरीर के साथ इस तरह सट जाती है कि ऊपर कमीज डाल लेने के पश्चात पता नहीं चलता कि नीचे कुछ है। देखने में लगता है कि आदमी कुछ मोटा-सा है। ठीक पेट की तरफ उस पर दो स्विच होते हैं। जैकेट में पड़े बारूद को ब्लास्ट करने के लिए पहले सर्किट ऑन करने का एक स्विच दबाना पड़ता है फिर ब्लास्ट के लिए दूसरा स्विच।"

"तुम उन तीनों में से किसी को नहीं जानते?"

"नहीं।"

"उनकी प्लानिंग क्या है?"

"इस बारे में उन्होंने मेरे को तो कुछ नहीं बताया, परंतु वे मेरे सामने आपस में बातें कर रहे थे। चूंकि वे जानते हैं कि मैं यह काम करता रहता हूं, इसलिए मेरे सामने बातें करने में उन्हें एतराज नहीं हुआ। उनकी बातों से जो जाना, वो इस तरह है--- कल वे दिन में 10:45 बजे द्वारका-इंद्रप्रस्थ लाइन पर मेट्रो में विस्फोट करेंगे। उनका काम जनकपुरी वेस्ट स्टेशन से शुरू होगा। मानव बम बनने वाला व्यक्ति जनकपुरी वेस्ट से 10:32 पर आने वाली मेट्रो में चढ़ेगा। उसके पास ब्रीफकेस वाले बमों का रिमोट होगा। मेट्रो ट्रेन में राजौरी गार्डन स्टेशन पर विस्फोट किया जाएगा। तब वो दोनों ब्रीफकेस कोई दो लोग मेट्रो में रखकर जा चुके होंगे। रिमोट का बटन दबाकर विस्फोट करने वाला व्यक्ति, राजौरी गार्डन स्टेशन पर ट्रेन से बाहर निकलेगा और विस्फोट के लिए रिमोट का बटन दबाएगा। इस वक्त मेट्रो ट्रेन खचाखच भरी होती है।"

सैवन इलैवन के जबड़े भिंच गए।

"ऐसा ही करना था तो व्यक्ति मानव बम क्यों बना?"

"अगर पकड़ा जाए तो उस स्थिति में वह खुद को बम से उड़ा ले।" मनजीत ने बताया।

"कौन है वो आदमी?"

"ओमप्रकाश नाम है उसका। पश्चिम विहार में रहता है। उसे बारूद की जैकेट पहनाते हुए उससे मेरी थोड़ी-सी बात हुई तो मैंने उसके बारे में उससे पूछा था। तब मैं जैकेट का साइज चैक कर रहा था।"

सुदर्शन चेहरे पर गंभीरता समेटे दोनों को देख रहा था।

मनजीत का नशा बहुत हद तक कम हो चुका था।

"ये बताओ कि इस काम को कैसे रोका जा सकता है?" सैवन इलैवन ने पूछा।

"नहीं रोका जा सकता।" मनजीत ने गंभीर स्वर में कहा।

"क्यों?"

"क्योंकि उन लोगों का ठिकाना मैं नहीं जानता जो तुम्हें बता सकूं। अब मैं नहीं जानता कि वे कहां मिलेंगे?"

"कोई अंदाजा भी नहीं?" सैवन इलैवन ने पूछा।

"नहीं।" मनजीत ने इंकार में सिर हिलाया।

"उनका कोई फोन नंबर?"

"नहीं।"

"चालीस लाख तेरे को वो दे चुके हैं।"

"हां। काम करा लेने के बाद वो मुझसे क्यों मिलेंगे? अगला कोई काम होगा वो मेरे से बात करने आएंगे।"

"ओमप्रकाश का हुलिया क्या है?" सैवन इलैवन ने सोच-भरे स्वर में पूछा।

"वो साधारण से चेहरे वाला है। कद पौने छः फीट और सेहत मीडियम है। उसके कान कुछ बड़े हैं। इतने भी बड़े नहीं कि भीड़ से अलग दिखें। उसने ब्राउन कलर की पैंट और नीले रंग की चार खानों वाली कमीज पहन रखी थी। सिर के बाल छोटे हैं। पांवों में उसने एक्शन के जूते पहने हुए थे। जब मैं उससे मिला तो वो ताजी-ताजी शेव कराके आया लगता था।"

सैवन इलैवन के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे।

"तुम्हारा क्या ख्याल है कि काम का वक्त आने तक वो कपड़े बदलेगा?"

"मुझे नहीं लगता।" मनजीत ने इंकार में सिर हिलाया--- "क्योंकि जब मैं वहां से अपना काम खत्म करके चला तो कमीज पैंट उतारकर उसे एक मशीन पर रख दिया था और नींद लेने की तैयारी करने लगा था। मेरे ख्याल में उठकर उन्हीं कपड़ों को पहनेगा।"

"कितने प्रतिशत तुम्हें ऐसा लगता है?"

"नब्बे परसेंट।"

"तो वह ब्राउन पैंट और नीले रंग की चार खानों वाली कमीज पहने हो सकता है, काम के वक्त?"

"हां।"

"मेट्रो में 10:32 पर, जनकपुरी वेस्ट स्टेशन से चढ़ेगा?" मनजीत ने सिर हिलाया।

"मान लो कि उसे पकड़ लेता हूं तो उस पर काबू कैसे करूं?"

"ऐसा किया तो वो खुद को उड़ा लेगा।" मनजीत जल्दी से बोला।

"उसे रोकने का कोई रास्ता बताओ?"

"कोई रास्ता नहीं है।" मनजीत ने पक्के स्वर में कहा--- "वह व्यक्ति, ओमप्रकाश मुझे वैसे भी थोड़ा अकड़ू, पागल-सा लगा। जिंदगी से थका-टूटा भी हो सकता है। ऐसे लोग काम को अंजाम देकर ही रहते हैं।"

"यानी कि तुम्हारे हिसाब से अगर मैंने ओमप्रकाश को पकड़ने की कोशिश की तो वह खुद को बम से उड़ा लेगा?"

"मुझे तो ऐसा ही लगता है।" मनजीत ने गंभीर स्वर में कहा--- "मौका मिलने पर मैंने उससे पूछा कि वो यह काम क्यों कर रहा है तो उसने बताया कि उसकी पत्नी दीनदयाल अस्पताल में है, कैंसर है उसे। उसे बचाने के लिए ये सब कर रहा है।"

सैवन इलैवन के होंठ भिंच गए।

"तुम अस्पताल में उसकी पत्नी को ढूंढ सकते हो सैवन इलैवन!" सुदर्शन कह उठा।

"उस से क्या होगा, उसकी पत्नी को नहीं पता होगा कि वो किधर है और क्या करने के फेर में है।"

मनजीत की निगाह सैवन इलैवन पर थी।

"और क्या है तुम्हारे पास बताने को?"

"कुछ भी नहीं।"

"बस, हो गया?"

"हां।" कहने के साथ मनजीत ने दाएं-बाएं सिर हिलाया।

"तुम कार पर पहुंचो।" सैवन इलैवन ने सुदर्शन से कहा--- "मैं आता हूं।"

सुदर्शन बाहर निकल गया।

सैवन इलैवन ने जेब से रिवाल्वर निकाली, दूसरी जेब से साइलेंसर और साइलेंसर को नाल पर चढ़ाने लगा।

ये देखकर मनजीत की आंखें भय से फैल गईं।

सैवन इलैवन की खतरनाक निगाह मनजीत पर थी।

"य...ये क्या कर रहे हो? तुमने वादा किया था कि मुझे छोड़...।"

"मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा...।"

"त...तो?"

"ये साइलेंसर मैंने नया खरीदा है। अभी तक चैक नहीं किया।" नाल पर साइलेंसर घुमाता सैवन इलैवन कह उठा।

"तुम--- तुम मुझे गोली मारकर---मारकर...।" मनजीत की सांस फूलने लगी थी--- "मुझे गोली मत मारना। गिरफ्तार कर लो मुझे, लेकिन गोली मत मारना। मुझे मत मारना।"

"मैं अपने पर गोली चलाकर साइलेंसर की आवाज को चैक करूंगा।"

"अपने पर?" मनजीत अविश्वास भरे स्वर में कह उठा--- "नहीं तुम...।"

सैवन इलैवन ने रिवाल्वर का रुख मनजीत की तरफ कर दिया।

"ये क्या--- तुम...।"

"तुम जैसे इंसान को तो बहुत पहले मर जाना चाहिए था। हैरानी है कि तुम आज तक जिंदा कैसे बचे रहे!" सैवन इलैवन ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा और एक साथ दो बार ट्रेगर दबा दिया।

'पिट-पिट' दो बार हल्की आवाजें उभरीं।

एक गोली मनजीत के माथे पर लगी, दूसरी छाती पर।

■■■

सैवन इलैवन गली के बाहर खड़ी कार के पास पहुंचा।

सुबह के छः बज रहे थे, दिन निकल आया था।

सुदर्शन स्टेयरिंग पर बैठा था।

"कार मुझे दे। तेरे को फोन पर बता दूंगा कि कार कहां खड़ी है।" सैवन इलैवन ने कहा।

सुदर्शन फौरन की कार से बाहर निकला। उसकी गंभीर निगाह सैवन इलैवन पर थी।

"मनजीत का क्या हुआ?" सुदर्शन ने गंभीर स्वर में पूछा।

"वही हुआ, जो कई साल पहले हो जाता तो ज्यादा अच्छा रहता।" सैवन इलैवन कार की स्टेयरिंग सीट पर बैठता कह उठा।

सुदर्शन ने गहरी सांस ली और कह उठा।

"अब मेरी जरूरत नहीं?"

"नहीं।"

"कुछ खर्चा-पानी मिल जाता तो...।"

"जब कार मिले तो डैशबोर्ड खोलकर निकाल लेना। नोट तेरे को वहीं रखे मिलेंगे।" सैवन इलैवन ने कहा और स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी। फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा।

एक ही बार में बात हो गई।

"मनोज!" सैवन इलैवन बोला--- "कहां हो तुम?"

"दिल्ली, विकासपुरी में।"

"एक हादसा होने वाला है। द्वारका-इंद्रप्रस्थ रूट की मेट्रो ट्रेन 10:45 पर उड़ाई जाने वाली है बम से। जो इंसान मेट्रो में बम विस्फोट करेगा उसका नाम ओमप्रकाश है और वो पश्चिम विहार में रहता है। उसकी बीवी को कैंसर है और वो हरी नगर के दीनदयाल अस्पताल में भर्ती है इलाज के लिए। तुम फौरन दो एजेंट दीनदयाल अस्पताल में भेजो। कैंसर की बीमार, ओम प्रकाश की पत्नी को आसानी से अस्पताल में ढूंढा जा सकता है कि वो कहां एडमिट है। उस पर नजर रखी जाए, हो सकता है ओमप्रकाश बम विस्फोट करने से पहले उससे मिलने आ जाए अगर ऐसा हो तो ओमप्रकाश को पकड़ लिया जाए। वो मुकाबले की चेष्टा करे तो गोली मार दो।"

"समझ गया। मैं अभी दो आदमी दीनदयाल अस्पताल भेजता हूं।" मनोज की आवाज आई।

"तुम दो एजेंटों के साथ मुझे साढ़े नौ बजे जनकपुरी वेस्ट मेट्रो स्टेशन पर मिलो।" कहने के साथ ही सैवन इलैवन ने फोन बंद करके जेब में रख लिया। होंठ भिंचे हुए थे, चेहरे पर सोचों के भाव थे।

■■■

जनकपुरी वेस्ट।

मेट्रो स्टेशन... समय 9:40 बजे।

मनोज दो अन्य एजेंटों के साथ वहां पहुंचा, जो कि मानव और त्रिशूल नाम के थे।

सैवन इलैवन पहले से ही वहां मौजूद था। वो उसके पास आ गए। स्टेशन से अभी-अभी मेट्रो गई थी, इसलिए प्लेटफार्म पर सन्नाटा था, परंतु अगले दो मिनट में ही, यहां ढेरों लोगों को नजर आने लगना था।

"दो एजेंट दीनदयाल अस्पताल में, ओम प्रकाश की पत्नी पर नजर रखे हुए हैं।" मनोज बोला--- "अभी तक ओमप्रकाश वहां नहीं पहुंचा।"

"तुम लोग सुनो।" सैवन इलैवन तीनों पर नजर डालता गंभीर स्वर में बोला--- "बहुत बड़े खतरे का वक्त आने वाला है। 10:45 पर मेट्रो को उड़ाया जाना है। ओमप्रकाश सिर्फ मोहरा है। उसके पीछे जो लोग हैं, उनके बारे में यकीनन ओमप्रकाश के पास कोई जानकारी नहीं होगी। ये काम वो अपनी पत्नी के इलाज के लिए पैसे इकट्ठे करने के लिए कर रहा है।"

"हम उसे रोकेंगे कैसे? हम तो ओमप्रकाश को जानते-पहचानते नहीं।" त्रिशूल बोला।

"मेरे पास जो खबर है उसके मुताबिक ओमप्रकाश जनकपुरी वैस्ट यानी कि इस स्टेशन से 10:32 पर मेट्रो में सवार होगा। अगले दो-तीन स्टेशनों के बीच ब्रीफकेस में लगे बम दो ब्रीफकेसों के रूप में मेट्रो ट्रेन के बीच रख दिए जाएंगे। जाहिर है कि यह काम करने वाले आदमी मेट्रो से निकल कर जा चुके होंगे। उसके बाद राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो के रुकते ही ओमप्रकाश मेट्रो से बाहर निकलेगा। उसके पास उन बमनुमा ब्रीफकेस से वास्ता रखता रिमोट होगा। प्लेटफार्म पर पहुंचते ही ओमप्रकाश रिमोट का इस्तेमाल करेगा और दो बम विस्फोट कर देगा। उस वक्त मेट्रो ट्रेन लोगों से भरी होती है और ऐसा हो गया तो बहुत ज्यादा खून-खराबा होगा।"

मनोज त्रिशूल और मानव की नजरें मिलीं।

"हमने ये नहीं होने देना है।" सैवन इलैवन ने दांत भींचकर कहा--- "परंतु सीधे-सीधे ओमप्रकाश पर हाथ भी नहीं डाला जा सकता, क्योंकि वो मानव बम बना हुआ है। खुद को खतरे में देखकर वह खुद को उड़ा सकता है। इस तरह हम लोग मारे जाएंगे।"

"तुम उसे पहचानते हो?" मानव ने पूछा।

"नहीं।" सैवन इलैवन ने इंकार में सिर हिलाया--- "मैंने उसे कभी नहीं देखा, परंतु इस बात के पूरे चांसेस हैं कि हम उसे पहचान लें, क्योंकि वो ब्राउन पैंट और चार खाने वाली नीली कमीज पहने हो सकता है। 10:32 पर उसने मेट्रो ट्रेन में सवार होना है तो वो पांच मिनट पहले प्लेटफार्म पर पहुंचेगा। हमें नजर रखनी है, अगर उसने ब्राउन पैंट और नीली कमीज पहन रखी होगी तो वह हमें नजर आ जाएगा।"

"मान लो, वो हमें दिख गया तो...?"

"तो उसे मेट्रो में सवार नहीं होने देना है।" सैवन इलैवन ने कहा।

"रोकेंगे कैसे--- तुम तो कहते हो कि वह मानव बम बना होगा। उसे खतरे का अहसास हुआ तो...।"

"मेरे पास प्लान है, वो सुनो...।"

■■■

10:20 पर ओमप्रकाश ने जनकपुरी वेस्ट मेट्रो स्टेशन में प्रवेश किया। वह मनजीत की बताई, वो ही ब्राउन पैंट और नीली चार खाने वाली कमीज पहने हुए था। कमीज के नीचे बारूदी जैकेट पहनी होने के कारण वह कुछ सेहतमंद लग रहा था। कल रात को शेव कराई थी, इसलिए इस वक्त उसका चेहरा चमक रहा था। वो इस वक्त किसी अच्छे घर का लग रहा था।

ओमप्रकाश सीधा टोकन विंडो पर पहुंचा और यात्रा का टोकन लेकर आगे बढ़ गया। कई लोग आ-जा रहे थे। एनाउंसर की आवाज भी कभी-कभार कानों में पड़ जाती थी।

भीतर जाने से पहले रास्ते में खड़े पुलिसमैन चेकिंग कर रहे थे। ओमप्रकाश जानता था कि उसे चैकिंग से बचना है। वो कुछ पल एक तरफ खड़ा होकर उन पुलिसवालों को देखने लगा। उसके चेहरे पर गंभीरता थी। वो अपने काम में हर हाल में सफल होना चाहता था कि वापस अस्पताल में अपनी पत्नी के पास जा सके। इस काम का बीस लाख रुपया उसे मिल गया था। जिसे वो अपनी पत्नी को दे आया और उसे कहा था कि वह दोपहर तक आ जाएगा।

तभी आठ-दस लड़के-लड़कियां छोटे से झुंड के रूप में वहां पहुंचे। पुलिसमैन उसकी चेकिंग में व्यस्त हो गया। ओमप्रकाश फुर्ती से वहां पहुंचा और पुलिस मैन की निगाहों से बचते हुए आगे बढ़ता चला गया। कुछ आगे चलकर सीढ़ियां थीं। वो सीढ़ियां तय करके ऊपर मेट्रो के प्लेटफार्म पर पहुंचा। प्लेटफार्म पर तीन-चार लोग ही दिखे। स्पष्ट था कि अभी-अभी मेट्रो गई है। ओमप्रकाश की नजर प्लेटफार्म पर लगे, लटके उस डिजिटल बोर्ड पर गई जो मेट्रो के आने में कितना वक्त बचा है, ये बताता था। उस पर चार मिनट का समय इस वक्त दर्शाया जा रहा था।

अब प्लेटफार्म पर और लोग आना शुरू हो गए थे।

ओमप्रकाश ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा, 10:28 हो रहे थे।

■■■

सैवन इलैवन, मानव, त्रिशूल और मनोज प्लेटफार्म पर थे जब ओमप्रकाश वहां पहुंचा था।

उन्होंने एक ही निगाह में ओम प्रकाश को पहचान लिया, क्योंकि वही कपड़े उसके शरीर पर थे--- ब्राउन पैंट और चार खानों वाली नीली कमीज। सैवन इलैवन ने और भी अच्छी तरह से उसे पहचाना, क्योंकि मनजीत का बताया हुलिया उसके जेहन में था।

चारों ने एक-दूसरे को देखा और आंखों-ही-आंखों में इशारे हुए।

अब प्लेटफार्म पर लोग पहुंचने शुरू हो गए थे।

प्लान के मुताबिक वे धीरे-धीरे अपना घेरा ओम प्रकाश की तरफ तंग करने लगे।

समय का डिजिटल बोर्ड अब तीन मिनट दिखा रहा था।

उनके लिए एक-एक पल अब इतना भारी था।

मेट्रो ट्रेन में बम फटने के साथ ही हर तरफ लाशें ही लाशें नजर आनी थीं। इसे होने से हर हाल में रोकना था।

समय का डिजिटल बोर्ड अब दो मिनट का वक्त दर्शाने लगा था।

सिर्फ दो मिनट रह गए थे मेट्रो के प्लेटफार्म पर आने में।

सैवन इलैवन जेब में हाथ डालते हुए आगे बढ़ा और ओमप्रकाश के ठीक एक कदम पीछे जा खड़ा हुआ मानव, त्रिशूल और मनोज भी करीब आ पहुंचे थे।

अब प्लेटफार्म पर काफी ज्यादा लोग हो गए थे। अधिकतर की निगाहें दूर तक नजर आ रही मेट्रो की लाइनों पर थीं। कोई नहीं जानता था कि पांच स्टेशनों के बाद मेट्रो ने मौत की ट्रेन बन जाना था, जिसे रोकने की कोशिश जारी थी।

एक मिनट!

तभी दूर लाइनों पर सिल्वर कलर की मेट्रो ट्रेन आती दिखाई देने लगी।

वो पास आती जा रही थी।

फिर वो अपनी खामोश चाल के साथ प्लेटफार्म पर आ पहुंची। रुक गई।

लोग दरवाजे के पास इकट्ठे होने लगे और उनके खुलने का इंतजार करने लगे।

दरवाजे खुले। बाहर निकलने वाले दो-चार लोग ही थे। प्लेटफॉर्म पर खड़े लोग मेट्रो में प्रवेश करने लगे।

ओमप्रकाश भी आगे बढ़ा। मात्र तीन कदम दूर था दरवाजा।

"ओमप्रकाश!" तभी पीछे खड़े सैवन इलैवन ने शांत स्वर में पुकारा।

ओमप्रकाश चिंहुका। उसे अपना नाम लेकर पुकारे जाने की, यहां कोई आशा नहीं थी। उसने गर्दन घुमाकर सैवन इलैवन को देखा। सैवन इलैवन ने मुस्कुराकर फौरन कहा।

"तुम ओमप्रकाश ही हो न, जिसकी पत्नी कैंसर की बीमारी से दीनदयाल अस्पताल में भर्ती है?"

"ह...हां।" अचकचाया-सा ओमप्रकाश कह उठा।

तभी पीछे, मेट्रो के दरवाजे बंद होने लगे थे।

"मैं डॉ. विक्रांत हूं। दीनदयाल अस्पताल में हूं। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि तुम्हारी पत्नी अब नहीं रही।"

"नहीं।" ओमप्रकाश के होंठों से फटा-फटा सा स्वर निकला--- "ऐसा नहीं हो सकता।"

"एक घंटा पहले मैं अस्पताल में था। मैंने ही अंतिम बार तुम्हारी पत्नी की सांसें चैक कीं। मुझे दुख है कि मैंने ये खबर तुम्हें सुनाई।"

मेट्रो ट्रेन स्टेशन से खिसक पड़ी।

ओम प्रकाश को काटो तो खून नहीं। जिस पत्नी को बचाने के लिए वह मेट्रो में बम विस्फोट करने जा रहा था, वो ठीक होने से पहले ही मर गई। इस खबर ने ओमप्रकाश को हिलाकर रख दिया था। तभी मनोज और त्रिशूल ओमप्रकाश पर झपटे।

दोनों ने एक-एक तरफ की बांहें पकड़ी और अपनी-अपनी तरफ खींच लीं।

ओमप्रकाश हड़बड़ा उठा। उसकी समझ में न आया कि ये क्या हो गया है, परंतु उसकी बांहें इस तरह खुले में होने के कारण, वो अब रिमोट का इस्तेमाल करके, जैकेट में भरा बारूद नहीं उड़ा सकता था। उसने बांहों को छुड़ाने की चेष्टा की, परंतु पकड़ इतनी मजबूत थी कि छुड़ा नहीं सका। उसने अजीब-सी निगाहों से सैवन इलैवन को देखा।

सैवन इलैवन के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।

मानव आगे बढ़ा और ओमप्रकाश की तलाशी लेने लगा।

"तुम... तुम कौन हो?" ओम प्रकाश के होंठों से निकला--- "ये सब क्या हो रहा है? छोड़ो मुझे।"

तभी मानव उसकी जेब से माचिस की डिब्बी के आकार का रिमोट कंट्रोल निकालकर पीछे हटता चला गया। उस रिमोट कंट्रोल पर भी दो स्विच लगे नजर आ रहे थे।

"मैं कहता हूं छोड़ो मुझे--- मैं बी•एस•एफ• का जवान हूं और...।"

"तुम मेट्रो ट्रेन उड़ाने जा रहे थे। लोगों से भरी मेट्रो ट्रेन।" सैवन इलैवन मौत भरे स्वर में कह उठा।

ओमप्रकाश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। चेहरा फक्क पड़ गया।

"अपनी पत्नी को बचाने के चक्कर में तुमने सैकड़ों मासूमों को मारने का इरादा कर लिया था।"

"न...न... हीं।" ओमप्रकाश चीखा--- "ये झूठ है।"

"मानव! इसकी कमीज के नीचे चैक करो।"

मानव ने फौरन ओमप्रकाश की कमीज पेट की तरफ से उठाई।

नीचे शरीर पर बारूद की जैकेट बंधी दिखी और पैंट वाले हिस्से पर लाल रंग के दो स्विच लगे दिखे।

ओमप्रकाश का चेहरा हल्दी की तरह पीला हो गया।

मानव पीछे हट गया।

सैवन इलैवन ने जेब से साइलेंसर लगी रिवाल्वर निकाली और वहशी स्वर में बोला।

"तुम सोच रहे होगे कि तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया है अब बच नहीं सकोगे, लेकिन मुझे कूड़ा-करकट इकठ्ठा करने की आदत नहीं है।"

मौत के भय से ओमप्रकाश की आंखें फटकर चौड़ी हो गई थीं।

इस वक्त मेट्रो प्लेटफॉर्म पर कोई नहीं था।

"तुम आतंकवादी हो।" सैवन इलैवन ने रिवाल्वर उसकी तरफ करते हुए मौत से भरे सर्द लहजे में कहा।

"मुझे माफ कर दो।" ओम प्रकाश कांपते स्वर में कह उठा--- "मैं फिर कभी ऐसा काम नहीं करूंगा--- मैं...।"

तभी रिवाल्वर की नाल से बे-आवाज गोली निकली।

गोली ओमप्रकाश के माथे पर जा धंसी।वहां छोटी-सी बिंदी नजर आने लगी। उसी पल ओमप्रकाश बेजान-सा हो गया। आंखें उलट गई थीं उसकी। मनोज और त्रिशूल ने उसे दोनों बांहों को खींचने की मुद्रा में पकड़ा न होता तो वो गिर चुका होता।

फिर मनोज और त्रिशूल ने उसे छोड़ दिया।

ओमप्रकाश का बेजान-सा शरीर 'धड़ाम' से नीचे जा गिरा।

सीढ़ियों की तरफ से एक-दो लोगों के आने की आवाजें आ रही थीं।

"निकल जाओ यहां से।" सैवन इलैवन ने रिवाल्वर जेब में रखते हुए तीनों को देखा और पलटकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।

वे तीनों भी उसी पल सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए।

सैवन इलैवन सीढ़ियां चढ़ते तीन लोगों के पास से नीचे उतर रहा था कि उसका फोन बजने लगा।

"हैलो!" सैवन इलैवन ने फोन निकाल कर बात की।

"ओह विक्रांत डार्लिंग!" उसके कानों में उसी युवती की आवाज पड़ी--- "तुम कहां हो, अभी आ जाओगे, बहुत मन कर रहा...।"

"रांग नंबर।" सैवन इलैवन ने कहा और फोन जेब में रखते हुए सीढ़ियां उतरकर आगे बढ़ता चला गया।

काम हो गया था।

सैकड़ों बे-गुनाह लोग मौत के मुंह में जाते-जाते बच गए थे।

■■■

न्यूयॉर्क!

अमेरिकन जासूसी संस्था C.I.A. का ऑफिस।

शाम के चार बजे।

चीफ टॉम लैरी आज सुबह से ही बहुत व्यस्त था। उसे ये भी पता न चला कि लंच का वक्त गुजर गया है। जब भूख महसूस हुई तो कैंटीन में फोन करके कॉफी और सैंडविच मंगवाए  और दस मिनट के लिए उसने अपने सारे काम रोक दिए कि शांति से सैंडविच खा सके और कॉफी के घूंट भर सके। उसके सिर के बाल बिखरे से लग रहे थे। टाई खुली-ढीली थी। पैंट में डाल रखी कमीज भी एक तरफ से बाहर आ रही थी, परंतु व्यस्तता के कारण इस तरफ उसका ध्यान नहीं गया था।

अभी आधा सैंडविच ही खाया था कि फोन बज उठा।

"क्या मुसीबत है?" खाते-खाते उसने रिसीवर उठाया--- "कहो।"

दूसरी तरफ ऑपरेटर सूजी थी।

"सर! यूरोप से कोई फोन पर है। वो आपसे बात करना चाहता है, परंतु अपना नाम और वजह नहीं बता रहा।" सूजी की आवाज कानों में पड़ी।

"क्या कह रहा है?"

"उसका कहना है कि वो ऐसी बात जानता है, जिससे अमेरिका को फायदा हो सकता है।"

"बात कराओ।" चीफ टॉम लैरी ने कहा और कॉफी का घूंट भरा।

पांच सेकंड ही बीते कि उसके कानों में पुरुष का स्वर पड़ा।

"हैलो!"

"कहो, मैं न्यूयॉर्क से C.I.A. चीफ टॉम लैरी हूं।" चीफ लैरी बोला।

"मैं साउथ-ईस्ट यूरोप, क्रोशिया से बोल रहा हूं।" स्वर बेहद शांत था।

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"नाम रहने दो। हमें काम की बात करनी चाहिए। मैं तुम लोगों के काम आ सकता हूं।" उधर से कहा गया।

"स्पष्ट कहो।"

"आठ साल पहले क्रोशिया में अमेरिकन विदेशी मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या की गई थी और C.I.A. पता नहीं लगा पाई कि हत्यारा कौन था।"

चीफ लैरी की आंखें सिकुड़ी, फिर सिर हिलाकर फोन पर बोला।

"शायद, हां--- तुम ठीक कहते हो। ऐसा ही हुआ था।"

"मैं ड्यूक हैरी की हत्या के बारे में सब कुछ जानता हूं।"

"कौन है हत्यारा?" चीफ लैरी के होंठों से निकला।

"पागल हो क्या?"

"क्या मतलब?"

"इतनी कीमती खबर मैं क्या तुम्हें मुफ्त में दे दूंगा।"

"चीफ टॉम लैरी ने गहरी सांस ली, फिर बोला।

"क्या चाहते हो?"

"मुझे पैसे की जरूरत है।"

"कब से जानते हो इस बात को?"

"जब से ड्यूक हैरी की हत्या हुई तब से ही।"

"तो पहले क्यों नहीं बताया?"

"तब पैसों की जरूरत नहीं थी।" उधर से आता स्वर शांत चीफ लैरी के कानों में पड़ा।

"क्या पता तुम सही कह रहे हो या नहीं।"

"मैं सही हूं।"

"क्या तुमने हत्यारों को देखा था। पहचानते हो उन्हें?"

"मैं खुद उन लोगों में शामिल था।"

चीफ टॉम लैरी के होंठ सिकुड़ गए।

"इस बात की तसल्ली करानी होगी हमें।"

"करा दूंगा, परंतु हममें हुई बात गुप्त ही रहे। आम न हो। जिसने ड्यूक हैरी की हत्या की, उसके हाथ भी तुम लोगों से कम नहीं हैं।"

"क्या चाहते हो?" चीफ टॉम लैरी ने सतर्क स्वर में पूछा।

"तुम इस खबर के कितने डॉलर दे सकते हो?"

"तुम अपनी डिमांड बताओ।"

"दस लाख डॉलर।"

"ज्यादा हैं।"

"अमेरिका के लिए नहीं। अमेरिका के विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या की सारे राज का खुलासा करूंगा। मारने वाले कौन-कौन लोग थे और किसने ड्यूक हैरी की हत्या कराई। क्या वजह थी कि ड्यूक हैरी की हत्या की गई। मुझे लगता है कि मैंने कम मांगा है। मुझे ज्यादा डॉलर मांगने थे। तुम सोच लो, मुझे कोई जल्दी नहीं है, मैं तुम्हें फिर फोन...।"

"सुनो--- सुनो--- फोन बंद मत करो।" चीफ लैरी जल्दी से बोला--- "मुझे सौदा मंजूर है, तुम...।"

"कल फोन करूंगा।" उधर से कहा गया और फोन बंद कर दिया गया।

टॉम लैरी ने गहरी सांस ली और रिसीवर वापस रखा।

चेहरे पर गंभीरता थी।

फिर इंटरकॉम का रिसीवर उठाकर एक नंबर दबाया और रिसीवर कान पर लगा लिया।

"कहो चीफ।" अगले ही पल आवाज उसके कानों में पड़ी।

"मेरे पास आओ माईक। एक मुसीबत वाला काम आ गया है।" कहकर उसने रिसीवर रखा और पुनः सैंडविच खाने लगा।

■■■

माईक ने टॉम लैरी के कमरे में प्रवेश किया तो उसे कॉफी के घूंट लेते पाया।

माईक बत्तीस बरस का पांच फीट दस इंच लंबा था और सामान्य सेहत वाला था। सिर के बाल छोटे और पीछे की तरफ से बालों की एक मोटी-सी लट पलटकर माथे पर झूल रही थी। क्लीन शेव्ड चेहरा। वो कुर्सी पर बैठता बोला।

"कहो चीफ!"

"मुसीबत वाला काम है तुम्हारे लिए। आठ साल पहले क्रोशिया में हमारे विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या हुई थी। उसके साथ इंडियन मिलिट्री का एक ब्रिगेडियर भी मारा गया था। वो ब्रिगेडियर तब ड्यूक हैरी को कोई सूचना दे रहा था, जब दोनों की हत्या कर दी गई और हत्यारा वो सूचना भी ले भागा। तब हम लोगों ने विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या की तफ्तीश की थी और साल-भर की चेष्टाओं के बावजूद भी हमें हत्यारे का कोई सुराग नहीं मिला था। हम असफल रहे थे, जो कि हमारे लिए शर्म की बात थी।"

"सुना था मैंने, लेकिन अब क्या हो गया?"

"अभी-अभी किसी ने क्रोशिया से फोन किया है। वो दस लाख डॉलर के बदले हमें ड्यूक हैरी के हत्यारे के बारे में बताना चाहता है। जो जानकारी उसके पास है, वो हमें देना चाहता है। उसका कहना है कि वो खुद हत्यारों में शामिल था।"

"ओह!" माईक सतर्क हुआ--- "अपने बारे में क्या बताया उसने?"

"कुछ नहीं। वो जो भी है सतर्कता बरत रहा है।"

"पहले क्यों नहीं बताई उसने यह बात?"

"कहता है अब उसे डॉलरों की जरूरत है।"

माईक सोच भरी नजरों से चीफ लैरी को देखता रहा।

"अभी बात अधूरी रह गई थी। कल फिर फोन करने को कह कर उसने फोन काट दिया। वो कल फिर फोन करेगा, क्योंकि मैंने दस लाख डॉलर उसे देने के लिए हां कर दी है। इस मामले में वो सारी हमारी पूरी तसल्ली कराएगा। तुम्हें क्रोशिया जाना होगा।"

"अभी कल उसका फोन आना है?" माईक बोला।

"हाँ।"

"न फोन आया तो नहीं... जाना पड़ेगा?"

"उसका फोन आएगा।"

माईक ने गहरी सांस ली।

"तुम जानते हो माईक कि मैं तुम्हें वो ही काम करने को देता हूं जो महत्वपूर्ण होते हैं। तुम्हें C.I.A. के खतरनाक एजेंटों में से एक माना जाता है।"

"मैं इस बारे में विश्वास नहीं रखता।"

"लेकिन मैं जानता हूं कि तुम खतरनाक हो। पिछली बार की तरह गड़बड़ मत कर देना।"

माईक ने चीफ को देखा।

"स्पेन में तुमने पांच लोगों को सरेआम गोलियों से भून दिया था।"

"वो मुझे मारने जा रहे थे।"

"लेकिन गवाहों का कहना है कि वो ऐसा कुछ नहीं कर रहे थे। वह तुम्हारे आस-पास थे--- बस...।"

"गवाह बेवकूफ हैं।" माईक तीखे स्वर में कहते हुए उठ खड़ा हुआ--- "वो दुश्मन के आदमी थे। मैं उन्हें पहचानता था।"

तभी इंटरकॉम का बजर बजा।

"कहो।" चीफ लैरी ने रिसीवर उठाया।

"क्रोशिया से वो फोन पब्लिक फोन से, कार्ड द्वारा किया गया। फोन करने वाले का पता नहीं लगाया जा सकता।" उधर से कहा गया।

"ठीक है।" कहकर टॉम लैरी ने रिसीवर रखा--- "तुम क्रोशिया जाने की तैयारी कर लेना।"

"पहले उसका फोन तो आने दो।" माईक ने कहा और पलट कर बाहर निकल गया।

सामने चार फीट चौड़ा रास्ता था, जिसके दोनों तरफ केबिन बने हुए थे।

कुछ केबिन खुले थे तो कुछ के दरवाजे बंद थे। वो रास्ता पार करके माईक एक हॉल में पहुंचा। जहां तीस-पैंतीस पुलिसमैन अपनी-अपनी टेबलों पर मौजूद थे। कोई फोन पर व्यस्त था तो कोई कंप्यूटर पर, कोई कागजों को थामें इधर-उधर भाग रहा था।

"माईक।" एक कुर्सी पर मौजूद विक्टर ने हाथ हिलाया।

माईक उसके पास पहुंचा।

"दो दिन की मैं छुट्टी ले रहा हूं।" विक्टर बोला--- "तुम भी ले लो। पिछली बार की तरह, फिर मौज करने चलेंगे।"

"मैं नहीं जा सकता। नया काम हाथ में आया है।"

"तुम अभी चीफ के पास गए थे--- क्या काम दिया चीफ ने?" विक्टर कह उठा।

"हमारे विदेश मंत्री ड्यूक हैरी को आठ साल पहले क्रोशिया में किसी ने मारा था। साथ में इंडियन ब्रिगेडियर भी मारा गया था। तब उससे कुछ सूचनाएं ली जा रही थीं। उसी सिलसिले में क्रोशिया जाना पड़ रहा है।"

"हां, मुझे मालूम है कि ड्यूक हैरी को मारने वाला हाथ नहीं लगा था, क्या कोई खबर हाथ लगी?"

"इस बारे में चीफ से पूछो। अभी मुझे कुछ नहीं पता। फिर मिलेंगे।" माईक ने कहा और आगे बढ़ गया।

■■■

रात नौ बजे!

विक्टर कार पर ऑफिस से निकला। इस बात का उसने पूरा ध्यान रखा कि कोई उस पर नजर तो नहीं रख रहा। आधे घण्टे की ड्राइविंग के बाद उसने कार को कैफे की पार्किंग में रोका और भीतर जाकर कॉफी पी। जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि उस पर नजर नहीं रखी जा रही तो वो कैफे के पीछे के रास्ते से निकला और पैदल ही आगे बढ़ गया।

उसने सड़क पार की और सामने नजर आ रही मार्किट में पहुंचा।

वहां पब्लिक बूथों के तीन केबिन बने हुए थे। दो फूल थे। एक खाली था। विक्टर ने भीतर प्रवेश किया और रिसीवर उठाकर, कार्ड निकालकर उस पास मौजूद मशीन में पंच किया और नम्बर मिलाने लगा।

तीसरी बार कोशिश के पश्चात नंबर लगा। दूसरी तरफ से बेल बजी।

"हैलो!" उधर से फौरन फोन रिसीवर उठाया गया।

"इंडिया?" विक्टर बोला। बात करते हुए उसकी निगाह बूथ के बाहर भी जा रही थी।

"हां।"

"F.I.A.।"

"हां।"

"मेरा कोड नंबर 776 है।"

"होल्ड करो।"

विक्टर रिसीवर कानों से लगाए रहा।

मात्र आधे घंटे बाद वो स्वर पुनः कानों में पड़ा।

"नाम?"

"अपना नाम लेना मैं ठीक नहीं समझता। खतरा हो सकता है। कोड नंबर 776...।"

"ठीक है तुम न्यूयॉर्क में हो?"

"हां। लगता है तुमने कंप्यूटर पर मेरी फाइल खोल रखी है। मैं खास सूचना देना चाहता हूं। किसी बड़े से मेरी बात कराओ।" विक्टर बोला।

"मुझे बता सकते हो।"

"नहीं, किसी बड़े से मेरी बात कराओ। दीवान से बात हो या कपूर से।"

"होल्ड करो।"

फिर फौरन ही विक्टर के कानों में पहचानी आवाज पड़ी।

"हैलो!"

"मिस्टर दीवान! आपसे बात करके मुझे खुशी हुई। फोन पर मेरा नाम मत लेना।"

"क्या खबर देना चाहते हो?"

"क्रोशिया में अमेरिकन विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या हुई थी, तब साथ में कोई इंडियन ब्रिगेडियर भी मारा गया था।"

"वो पुरानी बात है।" दीवान का स्वर कानों में पड़ा।

"मेरे ख्याल में C.I.A. के हाथ कुछ लगा है इस मामले में। C.I.A. के खतरनाक एजेंट माईक को इस काम पर लगाते हुए क्रोशिया भेजा जा रहा है। ये खबर देनी मैंने इसलिए ठीक समझी कि ड्यूक हैरी के साथ इंडियन ब्रिगेडियर भी मारा गया था। संभव है, इस मामले में इंडिया का कोई वास्ता हो।"

"C.I.A. के हाथ ऐसा क्या लगा कि आठ साल बाद उसे इस मामले को फिर से जिंदा करना पड़ रहा है?"

"ये मैं नहीं जानता, परंतु माईक को इस मामले में लेने का मतलब है कि चीफ के हाथ कुछ खास ही लगा है।"

"तुम पता करो।"

"कोशिश करूंगा, लेकिन शायद पता न कर सकूं।"

"कुछ और पता लगे तो हमें बताना।"

"ठीक है। मेरी हर महीने की तनख्वाह बैंक अकाउंट में डाली जा रही है क्या--- कुछ ही महीनों बाद में इंडिया आने वाला हूं।"

"तुम्हारी तनख्वाह हर महीने बैंक में पहुंच जाती है।"

"थैंक्स।"

"ये जानने की कोशिश करो कि C.I.A. क्यों आठ साल बाद इस मामले में दखल देने जा रही है।"

■■■

साउथ-ईस्ट यूरोप!

क्रोशिया।

मोहन सूरी क्रोशिया में F.I.A. यानी कि 'जिन्न' का एजेंट था। दस सालों से वह क्रोशिया में अपने परिवार के साथ रह रहा था। और इंडियन होटल खोल रखा था जो कि अच्छा चलता था।

इस वक्त वो रेस्टोरेंट में ही मौजूद था कि उसका मोबाइल फोन बजा।

"हैलो।"

"जिन्न।" दूसरी तरफ से दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"होल्ड कीजिए।" मोहन सूरी ने धीमें स्वर में कहा और पास ही मौजूद अपने केबिन में प्रवेश करके दरवाजा बंद किया--- "कहिए।"

"ऑपरेशन टू किल याद है तुम्हें?"

मोहन सूरी के माथे पर बल पड़े।

"याद है।" मोहन सूरी के होंठों से निकला।

"C.I.A. हरकत में आ गई है। उन्हें अपने विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या से वास्ता रखता, कोई सुराग मिला है।"

"ये नहीं हो सकता।"

"क्यों नहीं हो सकता?"

"इस ऑपरेशन को आठ बीत चुके हैं और...।"

"सुराग तो पचास साल के बाद भी मिल सकता है मोहन सूरी।"

"असंभव लगता है।"

"ये संभव हो चुका है। माईक एक-दो दिन में इसी संबंध में क्रोशिया आ रहा है।"

"ये तो खतरे वाली बात हो गई। वो किस दम पर आठ साल पुराना मामला ताजा करने जा रहा है।"

"मालूम नहीं हो सका।"

"कुछ तो खास बात C.I.A. को पता चली ही होगी कि...।"

"यकीनन वो दोनों कहां हैं?"

"मन्नू और जैनी?"

"हां।"

"लीवनों में। दोनों मजे से जिंदगी बिता रहे हैं। मैंने किसी से कह रखा है। मुझे उनकी खबर मिलती रहती है।"

"हो सकता है उन्होंने C.I.A. से संपर्क किया हो।" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"ये संभव नहीं।"

"क्यों?"

"वो दोनों भी ऑपरेशन का हिस्सा थे।" मोहन सूरी ने धीमे स्वर में कहा--- "कहो तो मैं उनसे मिलूं। बात करूं?"

"क्यों?"

"उन दोनों से पता तो करूं कि 'ऑपरेशन टू किल' पूरा होते ही वे चुपचाप क्यों खिसक गए। मन्नू ने तो अपने बीस लाख भी नहीं लिए।"

"जो बातें इधर भी हैं, उन्हें दबा ही रहने दो। कुरेदने से कोई फायदा नहीं। हमारे लिए इतना ही बहुत है कि हमारी नजरों में हैं चार सालों से और उनका मुंह बंद है, जबकि वे दोनों यही सोचते हैं कि हमारी नजरों से छिपे, वे आराम से रह रहे हैं।" दीवान ने उधर से कहा।

"लेकिन उन्हें तो पता ही नहीं है कि 'ऑपरेशन टू किल' के पीछे कौन है। उनकी निगाहों में तो सिर्फ तुली ही था।"

"जो भी हो, अभी उन्हें छेड़ने की जरूरत नहीं है। C.I.A. के बारे में सोचो। माईक के बारे में सोचो।"

"माईक खतरनाक एजेंट है।"

"हां, अपने सोर्स द्वारा माईक पर नजर रखो कि वह कब अमेरिका से क्रोशिया के लिए रवाना होता है। क्रोशिया पहुंचते ही तुम्हारी निगाह हर वक्त माईक पर होनी चाहिए। वो क्या करता है। किससे मिलता है। कहां जाता है। सब कुछ तुम्हें मालूम होना चाहिए।"

"ठीक है। अगर माईक, मन्नू या जैनी मिलने की चेष्टा करें तो...?"

"तो उन्हें खत्म कर देना--- फौरन। माईक को नहीं मारना। अगर माईक मरा तो C.I.A. क्रोशिया में डेरा जमा लेगी। तब खतरा बढ़ जाएगा।"

"मैं समझ गया।"

"मुझे ताजा जानकारी देते रहना माईक के बारे में।"

■■■

सुबह ग्यारह बजे!

न्यूयॉर्क। C.I.A. का ऑफिस।

चीफ टॉम लैरी तब दो जासूसों से बात कर रहा था कि फोन बजने लगा।

"हैलो।" चीफ लैरी ने रिसीवर उठाया।

"चीफ, क्रोशिया से कल वाला व्यक्ति है।" सूजी की आवाज कानों में पड़ी।

"लाइन दो।" चीफ लैरी ने कहा, फिर दोनों जासूसों से बोला--- "तुम दोनों से मैं बाद में बात करूंगा, जाओ।"

दोनों उठे और बाहर निकल गए।

उसी पल कानों में कल वाला ही स्वर पड़ा।

"तुमने ही कल मुझसे बात की थी?"

"हां।" उसकी आवाज को पहचानते चीफ लैरी ने कहा--- "मैं चीफ टॉम लैरी हूं।"

"तुम्हारा नाम जानता हूं और अब तो तुम्हारी आवाज भी पहचानने लगा हूं। तो क्या सोचा तुमने?" उधर से वो कह रहा था।

"मैंने तो तुम्हें कल ही कह दिया था कि मुझे सौदा मंजूर है। दस लाख डॉलर।"

"मैं चाहता था कि तुम सोचकर जवाब दो।"

"तुम्हें दस लाख डॉलर पक्का मिलेंगे, अगर तुम हमें विदेश मंत्री ड्यूक हैरी के हत्यारों के बारे में बताओगे। ये भी बताओगे कि कौन-कौन लोग उसे मारने में शामिल थे और उसे क्यों मारा गया। हमारी तसल्ली करानी होगी।"

"तसल्ली के लिए अगर सबूत पेश करने पड़े तो ये नहीं कर पाऊंगा। सबूत तुम लोगों को खुद ही ढूंढने होंगे। मैं उन लोगों के साथ इस काम में शामिल था और मुंह-जुबानी सब कुछ बता सकता हूं। सब कुछ समझा सकता हूं।"

"इतना ही बहुत है। बाकी काम हमारे आदमी कर लेंगे।"

"मेरे साथ कोई हेराफेरी तो नहीं होगी?" उधर से पूछा गया।

"जरा भी नहीं।"

"अगर मेरे साथ चालाकी की गई तो कोई फायदा नहीं होगा। तुम लोगों को कभी भी कुछ भी पता नहीं चलेगा।"

"C.I.A. तुम्हारे साथ ईमानदारी से पेश आ रही है और आगे भी ऐसा ही होगा। मन में शंका मत पालो। तुम हमारे दोस्त हो। क्या तुम न्यूयॉर्क आकर हमसे मिलना पसंद करोगे कि दस लाख डॉलर हम तुम्हें दे सकें।"

"नहीं, तुम्हें अपना आदमी क्रोशिया भेजना होगा।"

"ठीक है। C.I.A.  का बेहतरीन एजेंट माईक आज ही क्रोशिया के लिए फ्लाइट पकड़ लेगा। ये बताओ कि माईक तुमसे कहां मिले?"

दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई।

"तुम चुप क्यों हो गए--- बोलो।" चीफ लैरी फौरन बोला--- "क्रोशिया में तुम कहां मिलोगे? या तुम्हारा संपर्क नंबर...।"

"वही नाइटक्लब जहां ड्यूक हैरी और इंडियन ब्रिगेडियर की हत्या हुई थी। वक्त शाम के सात से ग्यारह के बीच।"

"दिन कौन-सा---- क्या आज रात या कल रात?"

"ये मैं नहीं जानता। जब मुझे सब ठीक लगेगा, मैं तुम्हारे एजेंट माईक से मिल लूंगा। वक्त 7 से 11 के बीच। वो ही नाइटक्लब। दस लाख डॉलर उसके पास होने चाहिए। आज रात से पहला दिन शुरू होगा। समझ गए तुम।"

"समझ गया। बेहतर होता कि अगर तुम मिलने का दिन भी तय कर लेते।"

"ये मैं नहीं कर सकता।" इसके साथ उधर से उसने फोन बंद कर लिया।

चीफ लैरी ने माईक को बुलाया।

"बात हो गई है। अभी पहली फ्लाइट से तुम्हें क्रोशिया रवाना हो जाना होगा।"

"मेरा पासपोर्ट मेरी जेब में है चीफ! वो शख्स क्रोशिया में मुझे कहां मिलेगा?"

"वो तुम्हें उसी नाइट क्लब में मिलेगा, जहां ड्यूक हैरी की हत्या हुई थी। समय शाम के 7:00 से 11:00 के बीच। तुम उसे नहीं पहचानते, परंतु वो तुम्हें पहचान लेगा। बेशक कैसे भी पहचाने। क्रोशिया स्थित हमारी एजेंसी से तुम्हें दस लाख डॉलर मिल जाएंगे। तुम्हें ये समझाने की जरूरत नहीं कि डॉलर उसे तब देना जब तुम्हारी तसल्ली हो जाए।"

"कौन से दिन वो मिलेगा मुझे?"

"वो घबराया हुआ है या जरूरत से ज्यादा सतर्कता बरत रहा है।" चीफ लैरी ने गंभीर स्वर में कहा--- "उसका कहना है कि आज से तुम रोज उस नाइट क्लब में डॉलरों के साथ आओगे। जब उसे सब ठीक लगेगा तो वो तुमसे मिल लेगा।"

"चीफ ये तो बोरियत वाला काम हो गया। मुझे सप्ताह भर भी इंतजार करना पड़ सकता है।"

"ये काम हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वो आदमी हमें ऐसी खबर देने वाला है, जिसके बारे में हम आठ साल पहले कुछ नहीं जान सके थे। इस काम की गंभीरता को समझो।" चीफ लैरी ने कहा।

"सिर्फ एक बात का जवाब चाहूंगा।" माईक बोला।

"कहो।"

"मिस्टर ड्यूक हैरी इंडियन मिलिट्री के ब्रिगेडियर से आठ साल पहले की रात क्यों मिले थे?"

"ये सीक्रेट है, लेकिन इस बारे में तुम्हें कल बताया भी था, क्योंकि तुम इस पर काम करने जा रहे हो।" चीफ लैरी ने कहा--- "इंडियन ब्रिगेडियर अमेरिका को इस बात की जानकारी भेज रहा था कि इंडिया वादों के खिलाफ चलता हुआ गुप्त तौर पर परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा चुका है। वो ड्यूक हैरी को इस बात के सारे सबूत बेचने उस नाइटक्लब में आया था।"

"और तभी उसकी और हमारे मंत्री की हत्या कर दी गई।" माईक बोला।

"हाँ।"

"और वो सबूत, जो ड्यूक हैरी को सौंपे जाने थे?"

"वो भी हत्यारे साथ ले गए।"

"फिर तो स्पष्ट है कि यह हत्याकांड इंडियन गवर्नमेंट ने कराई है।"

चीफ टॉम लैरी मुस्कुरा पड़ा।

"क्या हुआ?" माईक ने होंठ सिकोड़कर पूछा।

"ये हमें भी पता है कि वह हत्याएं इंडियन सरकार के इशारे पर की गई, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं है। इंडियन सरकार से भी हम कुछ नहीं कह सकते, वरना ये बात भी हमें अपने मुंह से कहनी पड़ेगी कि हमारा विदेश मंत्री उनके देश के रहस्य खरीद रहा था, जब उसकी हत्या हुई। तब हम अपनी ही बातों में फंस जाएंगे।"

"समझा।"

"अगर हमें ये पता चल जाए कि हत्या करने वाले कौन थे। उन्हें हम पकड़ लें तो फिर यह मामला, अपने हक में तोड़-मरोड़ कर भारत सरकार के सामने रखकर, उन्हें दोषी करार दिया जा सकता है। तब हमें ठोस सबूत मिल जाएंगे।"

"दस लाख डॉलर के बदले हम ठोस सबूत खरीद रहे हैं?" माईक मुस्कुराया।

"ये ही हमारी ड्यूटी है। काम है। इसी बात के लिए अमेरिकन सरकार हम पर करोड़ों डॉलर खर्च करती है।"

माईक उठ खड़ा हुआ।

"मुझे यह मामला सीधा-सीधा लगता है।" माईक बोला--- "यह काम कोई दूसरा एजेंट भी कर सकता था।"

"C.I.A. की निगाहों में ये गंभीर मामला है। तभी तुम्हें सौंपा गया है। तो अभी क्रोशिया रवाना हो रहे हो?"

"बिल्कुल अभी। यहीं से सीधा एयरपोर्ट पर जा रहा हूं। मुझे यकीन है कि दो-तीन दिन में लौट आऊंगा। इसमें मेरे करने को कुछ नहीं है।" माईक ने कहा और पलटकर बाहर निकलता चला गया।

उस हॉल में पहुंचा तो विक्टर मिल गया।

या फिर यूं कह लें कि जैसे विक्टर इसी इंतजार में था कि वो चीफ ऑफिस से निकले।

"हैलो माईक!" विक्टर पास आता कह उठा--- "चलते हो दो-दिन की छुट्टी पर?"

"मैं क्रोशिया जा रहा हूं--- अभी।" माईक ठिठका।

"अभी?"

"हां।"

"विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या के सिलसिले में?"

माईक ने सिर हिलाया और आगे बढ़ता चला गया।

■■■

क्रोशिया स्थित मोहन सूरी को दीवान का फोन आया।

"तुमने क्या किया?" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"मन्नू और जैनी लीवनो में ही मौजूद हैं। मुझे नहीं लगता कि वह कुछ करने की फिराक में हैं और मैं एयरपोर्ट पर नजर रख रहा हूं।" मोहन सूरी ने कहा।

"न्यूयॉर्क से खबर है कि C.I.A. एजेंट माईक आज क्रोशिया के लिए चल रहा है।" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"अच्छा किया जो मुझे बता दिया।"

"वो तुम्हारी नजरों में रहे। हर वक्त। जरूरत समझो तो दूसरे एजेंटों को भी इस्तेमाल करो, परंतु मुझे उसकी पल-पल की खबर मिलती रहे।"

"माईक की पूरी खबर आपको मिलेगी।"

"सावधान रहना। माईक खतरनाक है।"

■■■

क्रोशिया से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर एक छोटा-सा शहर लीवनो।

यहां तीस प्रतिशत आबादी किसानों की थी। बीस प्रतिशत लीवनों में ही दुकानें या दूसरी तरह का काम करते थे और बाकी के पचास प्रतिशत अमीर लोग थे जो कि क्रोशिया में बिजनेस करते थे। उनका क्रोशिया रोज आना-जाना होता था।

क्रोशिया शहर के बीचोंबीच चर्चित बाजार था, यहां की एक दुकान में चौंतीस बरस का मन्नू बैठा था। वो सेहतमंद और स्मार्ट युवक जैसा लगता था। दुकान में कोल्डड्रिंक, कॉफी, पैटी-बर्गर, बियर, व्हिस्की के अलावा वीडियो गेम्स की मशीनें भी रखी थीं, वहां बैठने को। इन दिनों वो अकेला ही दुकान संभाल रहा था। हर समय खिला रहने वाला मन्नू इस वक्त व्याकुल-सा दिख रहा था। दुकान पर कई ग्राहक मौजूद थे। कुछ वीडियो गेम्स पर लगे थे। मशीनें तेज आवाज कर रही थीं। तीन लोग टेबलों पर बैठे कॉफी और बर्गर का मजा ले रहे थे तो दो-तीन खड़े हुए बीयर पीते बातें कर रहे थे।

उसकी दुकान चलती थी।

तभी मन्नू के पास पड़ा फोन बजा।

"हैलो!" उसने फौरन रिसीवर उठाया।

"7 दिन बीत गए।" उधर से आती आवाज कानों में पड़ी--- "बाकी बचे 23 दिन। तुझे 30 दिन का वक्त दिया था।"

"मैं भूला नहीं हूं।" मन्नू ने बेचैनी से कहा।

"जैनी है बहुत तीखी चीज।" उधर से हंसते हुए कहा गया था।

"तुमने जैनी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया।" मन्नू का स्वर तेज हो गया--- "वो ठीक है या...?"

"फिक्र मत कर। 30 दिन तक उसे कोई उंगली भी नहीं लगाएगा। बचे हैं 23 दिन। कहां से इंतजाम करेगा एक लाख डॉलर का?"

"मैं---मैं कर लूंगा।"

"गलती तेरी है। तुझे मार्शल से इतना उधार नहीं लेना चाहिए था। पैंसठ हजार डॉलर तूने मार्शल से साल-भर में ले लिए। अब ब्याज लगाकर पूरे लाख डॉलर बन गए। तेरी जुए की आदत ने तुझे बर्बाद कर दिया।"

"स... सब ठीक हो जाएगा।"

"वो तू जाने।" उधर से लापरवाही भरे स्वर में कहा गया--- "तेरे को याद दिलाने के लिए फोन किया है कि अगर मार्शल के कहे मुताबिक तूने 30 दिनों में एक लाख डॉलर चुकता नहीं किए तो जैनी मार्शल की होगी और तेरी हत्या कर दी जाएगी। उसके बाद तुम्हारी ये दुकान भी हम ले लेंगे और वह दो कमरों का फ्लैट भी, जहां तुम रहते हो। ये याद दिलाने के लिए हर सात दिन में एक फोन तेरे को किया जाएगा। ये सात दिन बाद पहला फोन है, अगले सात दिन बाद दूसरा फोन करूंगा।"

"सुनो।" मन्नू जल्दी से बोला--- "एक बार जैनी से मेरी बात करा दो।"

"इस बारे में मार्शल का कोई आर्डर नहीं है। एक बात और बता रहा हूं तेरे फायदे की।"

"क्या?"

"जिस कसीनो में तू जुआ खेलता था। वहां पर हेरा-फेरी होती है। वहां भी मशीनें इस तरह सेट कर रखी है कि कोई चीत कर नहीं जा सकता और तेरे को लगता रहा कि अब बाजी तेरे हाथ रहेगी। तू जीत जाएगा। इसी चक्कर में तूने मार्शल से उधार ले-लेकर पैंसठ हजार डॉलर गंवा दिए।"

"उस कसीनो में तो मार्शल भी हिस्सेदार है। फिर तो उससे उधार लिया पैसा उसी के पास पहुंच गया।" मन्नू के होंठों से निकला।

"तूने मार्शल से पैंसठ हजार डॉलर उधार लिए?"

"हाँ।"

"तो अपना दिमाग मत लगा। वो तेरे को वापस देना ही पड़ेगा, जो कि तू नहीं दे पाएगा और मारा जाएगा।" इसके साथ ही उधर से फोन बंद कर दिया गया।

मन्नू ने रिसीवर वापस रखा। चेहरे पर उभर आए पसीनो को हथेली से पोछा।

दो ग्राहक आए तो उन्हें कॉफी दी, तभी एक ने पूछा।

"जैनी नजर नहीं आ रही कई दिनों से।"

मन्नू ने मुस्कुराने की चेष्टा करते हुए कहा--- "उसके पापा की तबीयत खराब है। वो अपने पापा के पास गई है, आ जाएगी।"

■■■

रात ग्यारह बजे मन्नू दुकान बंद करके उस फ्लैट पर जा पहुंचा, जहां पिछले आठ सालों से वो जैनी के साथ रह रहा था। जैनी यानी कि जगदीप कौर के साथ खुश था वो। उस दुकान से इतनी कमाई हो जाती थी कि दोनों के खर्चे मजे से पूरे होते रहें। जैनी पर वो जान छिड़कता और प्यार करने में जैनी भी कम नहीं थी, परंतु साल भर से कैसीनो जाकर जुआ खेलने की जो आदत पड़ी उसे सारा कबाड़ा हो गया था। उसकी और जैनी की जिंदगी में भारी उथल-पुथल हो गई थी। जुआ खेलने के लिए वह मार्शल से उधार लेता रहा था। जो कि पैंसठ हजार डॉलर तक जा पहुंचा, परंतु इतना पैसा चुकाता कैसे!

मार्शल ने उस पर वापसी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था। अपना पैसा वापस न आते पाकर, मार्शल ने जैनी को उठवा लिया और उसे एक महीने का वक्त दिया कि या तो उसका पैसा ब्याज सहित एक लाख डॉलर दे, वरना जैनी उसकी और तीस दिन बाद उसे भी शूट कर दिया जाएगा।

मन्नू ने थके अंदाज में गहरी सांस ली। कपड़े बदले। डिनर के तौर पर दो बर्गर बियर के साथ खा आया था। जैनी के बिना उदास हो गया था वो। जैनी से उसकी मुलाकात आठ साल पहले 'ऑपरेशन टू किल' के दौरान हुई थी। मन्नू का मन आज उखड़ा हुआ था और जैसे वो बीती हुई हर बात याद कर लेना चाहता था।

आठ साल पहले वह इंडिया में था--- मुंबई में...। वहीं उसका घर था। घर में माँ-बाप, छोटे भाई बहन थे, परंतु वो घर पर कम ही रहता था। छब्बीस बरस का था और गैर-कानूनी काम करने में माहिर हो चुका था। चूंकि पुलिस उसकी ताक में रहती थी, इसलिए कम ही घर जाता और जब जाता तो यही कोशिश करता कि कोई उसे घर आते देखे नहीं।

उस्मान अली के होटल के एक कमरे को ही उसने अपना ठिकाना बना रखा था। जब कभी खतरा ज्यादा महसूस करता तो एक पुल के नीचे बना रखी झोपड़ी में जा टिकता।

उस दिन वो उसी झोपड़ी में था। जिसके बारे में उसे पूरा भरोसा था कि उसके लिए वहां तक कोई नहीं आ सकता, परंतु वो वहां तक भी आ पहुंचा था। तुली नाम बताया था उसने अपना।

झोपड़ी का दरवाजा खुला ही था। वो भीतर आ गया।

मन्नू अचकचाकर देखने लगा उसे।

"मुझे तुली कहते हैं।" तुली का चेहरा भावहीन था--- "तुम मन्नू हो।"

तुली ने सादी पैंट-कमीज पहन रखी थी।

"तुम मेरा नाम भी जानते हो। क्या चाहते हो मुझसे?" मन्नू ने उसे गहरी निगाहों से देखा।

"पांच दिन पहले तुमने सात लाख लेकर राजेंद्र आहूजा का मर्डर किया।" तुली बोला।

मन्नू चौंका।

"डेढ़ महीना पहले तुमने विनोद खरबंदा के घर पर, तीनों लोगों के साथ डकैती डाली। वहां तुम लोगों ने विनोद खरबंदा की बहन की जान ले ली, परंतु हाथ कुछ नहीं लगा। भागना पड़ा।" तुली ने शांत निगाहों से उसे देखते हुए कहा।

मन्नू के शरीर में चींटियां रेंगती चली गईं। उसी पल उसने रिवाल्वर निकाल ली।

"पुलिस हो तुम? बाहर कितने लोग हैं?" मन्नू गुर्रा उठा।

"मैं पुलिस वाला नहीं हूं।"

"तो?"

"तुम जैसा ही हूं।"

"मेरे पास आने की वजह?"

"मैंने एक आदमी को मारने का ठेका लिया है--- एक करोड़ में।" तुली बोला।

"एक करोड़?" मन्नू की आंखें सिकुड़ी।

"एडवांस ले चुका हूं।"

मन्नू कुछ पल उसे देखता रहा, फिर कह उठा।

"तो मुझसे क्या चाहते हो?"

"मैं अकेले उस आदमी की हत्या नहीं कर सकता। मुझे दो-तीन लोग और चाहिए।"

"दो-तीन लोग?"

"हाँ। उनमें से एक तुम भी हो सकते हो। बीस लाख मिलेगा काम का। क्या कहते हो?"

मन्नू के चेहरे पर सोचकर के भाव उभरे।

"मेरे बारे में तुम्हें किसने बताया?"

"किसी ने नहीं, मैंने खुद ही तुम्हें तलाश किया है। मेरे पास वक्त कम है। कुछ ही घंटों में मैंने अपने साथियों को इकट्ठा करना है। क्या तुम्हारी हाँ है?"

"बीस लाख मिलेगा?"

"पक्का।"

"एक हत्या?"

"हाँ।"

"मंजूर है, लेकिन क्या तुम्हारे पास सच में देने को बीस लाख रुपया है?" मन्नू ने आंखें सिकोड़कर कहा।

"तुमने ठीक से सुना नहीं। एक करोड़ मैं एडवांस ले चुका हूं। चाहो तो दिखा देता हूं, लेकिन पेमेंट काम के बाद दूंगा।"

"ठीक है। हत्या किसकी करनी है?"

"है कोई। उसके लिए हमें साउथ यूरोप क्रोशिया नाम के शहर में जाना होगा। वहां काम करना है। चलने की तैयारी, पासपोर्ट वगैरह मैं कुछ घंटों में तैयार कर लूंगा। ये मेरा काम है। बीस लाख देने के साथ मेरी एक शर्त भी है।"

"वो क्या?"

"यह काम खास है और पार्टी नहीं चाहती कि काम हो जाने के बाद किसी को याद रहे कि उसने क्या काम किया है। इसलिए तुम्हारे दिमाग से, इस काम की याददाश्त मिटा दी जाएगी। मेरे ख्याल में इस पर तुम्हें कोई एतराज नहीं होगा।"

"कैसे मिटाई जाएगी याददाश्त?"

"आधा घंटा लगेगा। ये काम पार्टी करेगी। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं।" तुली शांत स्वर में बोला।

"क्या ऐसा उन सबके साथ होगा, जो इस काम में शामिल होंगे?" मन्नू ने पूछा।

"हाँ।"

"तो फिर मुझे क्या एतराज हो सकता है!"

"उठो और मेरे साथ चलो। अभी से हमारा काम शुरू होता है। दो और लोग तीरथ और राघव इस काम के लिए मैंने चुन रखे हैं। उनसे बात करनी है। वक्त कम है। चार-पांच घंटों में ही सब तय करके हमें क्रोशिया के लिए फ्लाइट पकड़ लेनी है।"

"इतनी जल्दी, पासपोर्ट तो है नहीं जो...?"

"वो मेरा काम है।" तुली ने ठोस स्वर में कहा--- "हो जाएगा।"

"तुम हो कौन?"

"ये जानने की कोशिश कभी मत करना। काम की तरफ और अपने बीस लाख की तरफ ध्यान दो।"

■■■

तीरथ!

तीस बरस का युवक था। जब होश संभाला तो खुद को अकेला ही पाया। माँ-बाप उसे याद नहीं थे कि वे कौन हैं। बचपन आवाराओं की तरह बीता। पांच-छः क्लास तक स्कूल गया था। तब वह स्कूल के टीचर के यहां नौकर था। उसने ही स्कूल में उसका दाखिला कराया था। जब बारह साल का हुआ तो वहां से भाग गया। मुंबई आ पहुंचा। इधर-उधर काम करके अपना पेट भरने लगा। धीरे-धीरे अपने ही हमउम्र लड़कों से दोस्ताना होता चला गया। नन्हे चोरों का ग्रुप बन गया। वह रेड लाइट पर रुकने वाली कारों से सामान उठाकर भाग जाते।

पकड़े जाते तो बच्चे होने का फायदा उठाकर छूट जाते।

बीस बरस की उम्र तक तीरथ अच्छा-खासा चालबाज बन चुका था। तब उसके ग्रुप में सिर्फ दो ही थे और तीसरा वो खुद--- बाकी अपने-अपने रास्ते पर बढ़ गए थे।

तब तीरथ ने कुछ बड़ा करने की सोची। उसके दोनों दोस्त सहमत थे उसकी बात से। इलाके के ड्रग्स माफिया से मिले और उसके लिए काम करने लगे। साल तीरथ ने ड्रग्स का काम किया और सारे गुर सीख लिए।

वो समझ चुका था कि फायदे का धंधा है ये।

फिर तीरथ ने दूसरे इलाके में जाकर ड्रग्स का अपना काम शुरू कर दिया।

बढ़िया धंधा जमाया।

पैसा बरसने लगा। वक्त बीतता चला गया। धंधे की वजह से कइयों को कत्ल किया। वो अचूक निशानेबाज था।

तब वो तीस बरस का था, जब एक दादे से झगड़ा खड़ा हो गया। वो ज्यादा ताकतवर निकला। उसने तीरथ के सारे धंधों को तबाह कर दिया। उसके आदमियों को मार दिया था या अपनी तरफ कर लिया। तीरथ को अपनी जान के लाले पड़ गए।

उसी शाम तीरथ स्टेशन पर पहुंचा और यार्ड में खड़ी गाड़ियों पर रात बिताने की सोची। ये जगह उसे सुरक्षित लगी कि उसे ढूंढने वाले उस तक नहीं पहुंच सकेंगे। जेब में सिर्फ दो-चार हजार रुपया ही पड़ा था। सब कुछ बर्बाद हो चुका था। मन-ही-मन सोच रहा था कि कुछ सालों के लिए इस शहर से निकल जाए तो ठीक रहेगा। बहरहाल रात गुजारने के लिए उसने एक मालगाड़ी का डिब्बा चुना। यूँ वो पूरा ध्यान रख रहा था कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा, परंतु तुली और मन्नू को नहीं देख सका जो दो घंटे से उसके पीछे थे।

मालगाड़ी के डिब्बे में वो पहुंचा ही था कि पीछे से वे दोनों आ पहुंचे।

तीरथ ने चिंहुककर तुरंत जेब से रिवाल्वर निकाली।

"गोली मत चलाना।" तुली कह उठा--- "हम तुम्हारे दोस्त हैं।"

ट्रेगर दबाते-दबाते रुका वो। चेहरे पर कठोरता थी। दोनों को देखा।

"मेरा कोई दोस्त नहीं है।" तीरथ ने शब्दों को चबाकर कहा। रिवाल्वर का रुख उन दोनों की तरफ था।

"हम हैं। मन्नू कह उठा--- "मैं भी तुम जैसा ही हूं। सिर्फ दो घंटे पहले इस, तुली से मिला हूं। ये मेरे पास आया। इसने मुझे ऑफर दी। ऑफर पसंद आई तो इसके साथ हो गया। इसे तुम्हारी भी जरूरत है।"

तीरथ की आंखें सिकुड़ी। उसने तुली को देखा।

"क्या चाहते हो मुझसे?" तीरथ बोला।

"मुझे मालूम है तुम्हारा तलवड़े से पंगा हो गया है और वह तुम पर भारी पड़ा। उसने तुम्हारा धंधा बिखेर दिया और तुम्हारे आदमी भी उसके कब्ज कब्जे में चले गए। तलवड़े तुम्हें मारने के लिए भागा-दौड़ा फिर रहा है।"

"ये सब कैसे जानते हो?"

"इतना जान लो कि जानता हूं। कल से तुम मेरे आदमी की नजरों में हो। मुझे तुम्हारे बारे में बराबर खबर मिल रही थी।" तुली ने कहा--- "इस वक्त तुम खतरे में हो। तुम्हें मुंबई से बाहर निकल जाना चाहिए और मैं तुम्हें रात-रात में देश से बाहर ले जा सकता हूं।"

तीरथ ने मन्नू को देखा तो मन्नू कह उठा।

"मुझे भी इसने देश से बाहर ले जाने को कहा, लेकिन इसके आदमियों के बारे में मैं कुछ नहीं जानता।"

"कौन हो तुम?" तीरथ ने तुली को देखा।

"तुली कहते हैं मुझे। इससे ज्यादा तुम्हें मेरे बारे में जानने की जरूरत नहीं है। मैंने एक आदमी को मारने का ठेका लिया है। और वो आदमी इस वक्त यूरोप में है। इस काम का एक करोड़ एडवांस लिया है, लेकिन मुझे इस काम में और आदमियों की जरूरत है। तुम अच्छा निशाना लगा लेते हो। मैं तुम्हें बीस लाख दे सकता हूं अगर तुम इस काम में मेरा साथ दो।"

"मुझे ही क्यों चुना तुमने?"

"किसी को तो चुनना ही था। तुम निशानेबाज हो। हम आज ही रात क्रोशिया रवाना हो सकते हो।"

"इतनी जल्दी?"

"मेरे पास वक्त कम है।"

तीरथ ने रिवाल्वर नीचे कर ली, परंतु वो सतर्क था।

"पासपोर्ट का इंतजाम भी...?"

"वो मैं कर लूंगा। मेरी बात मानकर तलवड़े से कुछ देर के लिए दूर हो जाओगे। बाद में वो भी शांत हो जाएगा।"

"ये है कौन?" तीरथ ने मन्नू से पूछा।

"तुली। बस इतना ही जानता हूं और यह मुझे बीस लाख देगा।" मन्नू मुस्कुरा पड़ा।

"ये तुम्हारी कोई चाल भी हो सकती है।" तीरथ शक भरे स्वर में कह उठा।

"मुझ पर भरोसा करो, ये कम-से-कम तलवाड़े का आदमी नहीं है, जो तुम्हारी जान के पीछे है।" मन्नू बोला।

"तुम कौन हो?"

"मन्नू। बाकी बाद में बता दूंगा। वैसे खास कुछ नहीं है बताने को। तुम्हें इसकी बात मान लेनी चाहिए।"

तीरथ के चेहरे पर उलझन थी।

"किसे मारना है?"

"ये क्रोशिया पहुंचकर ही पता चलेगा। एक सप्ताह के भीतर हम लौट आएंगे।"

"इस काम से तुम बीस लाख दोगे?"

"हाँ।"

"एडवांस?"

"नहीं, बाद में। हम यहां से साथ चलेंगे और साथ ही लौटेंगे।" तुली ने कहा।

"काम के दौरान हम अलग भी हो सकते हैं। तब बीस लाख लेने के लिए तुम्हें कहां ढूंढूंगा?" तीरथ बोला।

"ऐसा कुछ नहीं होगा। क्रोशिया का ठिकाना हम सब जानते होंगे। काम के बाद अलग हुए तो वहीं मिलेंगे। वैसे काम में कोई खतरा नहीं है। मैं सावधानी के तौर पर तुम सबको इकट्ठा कर रहा हूं कि काम हर हाल में पूरा हो।"

"कौन है वो, जो ये काम कराना चाहता है?"

"ये गुप्त है। किसी को भी उसके बारे में नहीं बताया जाएगा। अब तुम बोलो हां या न?"

"मैं तैयार हूं।" तीरथ सोच भरे स्वर में कह उठा।

तुली ने सिर हिलाया।

"इसे अपनी शर्त भी बता दो।" मन्नू ने तुली से कहा।

"कैसी शर्त?" तीरथ ने तुली को देखा।

"मुझे तो शर्त मानने में कोई हर्ज नहीं लगा, तुम्हें भी ऐतराज नहीं होना चाहिए।" मन्नू कह उठा।

"पार्टी चाहती है कि इस काम में जो लोग भी रहें, काम के बाद उनकी ये याददाश्त साफ कर दी जाएगी कि उन्होंने उस आदमी को मारा है। आधे घंटे में ये काम हो जाएगा।" तुली ने तीरथ से कहा।

"सारी याददाश्त?" तीरथ के माथे पर बल पड़े।

"नहीं।" तुली ने इंकार में सिर हिलाया--- "सिर्फ इन्हीं दिनों की याददाश्त साफ की जाएगी।"

"ये कैसे होगा?"

"ये पार्टी की समस्या है, हमारी नहीं। हम यहां से एक साथ क्रोशिया जाएंगे। एक साथ वापस आएंगे। तुम लोग को पैसे देने के साथ-साथ याददाश्त भी साफ कर दी जाएगी कि तुम लोगों ने क्रोशिया में किसी को मारा है।"

"अजीब बात है।" तीरथ बड़बड़ा उठा--- "ये कैसे पता चलेगा कि याददाश्त का कौन-सा हिस्सा कितना मिटाना है?"

"पार्टी के पास इस बात का सारा इंतजाम है।" तुली बोला।

"तुम्हारी भी याददाश्त साफ की जाएगी?" तीरथ ने पूछा।

"हाँ।" तुली ने फौरन सिर हिला दिया।

"बीस लाख हमें मिल रहा है।" मन्नू बोला--- "चालीस ये ले लेगा।"

"चालीस क्यों?" तीरथ ने मन्नू को देखा।

"सारा काम मैं संभाल रहा हूं। मेरे आदमी क्रोशिया पहुंच चुके हैं। वे पार्टी के बारे में सारी जानकारी हमें देंगे। हर तरफ मेरा खर्चा हो रहा है। यूँ समझो कि सब कुछ निबटकर मेरे पास बीस लाख से ज्यादा नहीं बचने वाला।" कहते हुए तुली पहली बार मुस्कुराया था।

"ठीक है, चलो। अब क्या कर करना है?" तीरथ ने रिवाल्वर जेब में रखते हुए कहा।

"एक और है राघव। उससे भी बात करनी है। उसके बाद तुम सब की तस्वीरें लेने के बाद पासपोर्ट और जरूरी कागजात तैयार किए जाएंगे। इसमें सिर्फ दो घंटे लगेंगे, फिर...।"

"सिर्फ दो घंटे?" मन्नू के होंठ सिकुड़े।

"नकली पासपोर्ट में इससे ज्यादा वक्त क्या लगेगा?" तीरथ ने मन्नू को देखा।

"पासपोर्ट असली होगा, लेकिन काम के बाद तुम लोगों से वह पासपोर्ट ले लिया जाएगा।" तुली ने कहा।

"असली होगा?" मन्नू ने आंखें सिकोड़कर तुली को देखा--- "तुम सरकारी आदमी हो?"

"नहीं, लेकिन हर काम को कराने का रास्ता है मेरे पास। चलो, राघव से भी बात करनी है।" तुली ने कहा और पलटकर मालगाड़ी के डिब्बे से छलांग लगाकर नीचे आया और जेब से फोन निकालकर नंबर मिलाने लगा।

"ये ठीक आदमी है क्या?" तीरथ ने मन्नू से पूछा।

"ठीक-गलत से हमें क्या लेना-देना। एक को खत्म करना है और बीस लाख लेना है, फिर अपने-अपने रास्ते...।"

"तुम कहां के हो?"

"चैंबूर।"

"करते क्या हो?"

"फिर बातें करेंगे। अब हमें कुछ दिन एक साथ बिताने हैं। तब के लिए भी बातें रख लो।"

"ये याददाश्त वाली बात मुझे अटपटी लगी थी।" तीरथ ने मन्नू को देखा।

"जो इंसान एक हत्या के लिए एक करोड़ दे रहा है और हमें बीस-बीस लाख मिल रहा है, उसकी थोड़ी-सी बात मान लेनी चाहिए।"

"अगर उसने हमारी सारी याददाश्त मिटा दी तो?"

"वो जो भी है, ऐसा क्यों करेगा? इससे उसका कोई फायदा तो होने से रहा। वहम में मत पड़ो और नीचे आ जाओ।" कहने के साथ ही मन्नू मालगाड़ी के डिब्बे से कूदकर नीचे आ गया।

तुली फोन को कान से लगाए खड़ा था।

तीरथ भी नीचे कूद आया। उसकी निगाह आसपास घूमी। हर तरफ पटरियों का जाल बिछा नजर आ रहा था। इस तरफ गाड़ियों के डिब्बे खड़े थे। कभी-कभी कोई इंजन या गाड़ी शोर  करती पास से निकल जाती थी।

तुली की फोन पर बात हो गई।

"राघव कहां है?" तुली फोन पर बोला।

उधर से सुनने के बाद तुली ने फोन बंद करके जेल में रखा और बोला।

"चलो।"

"सुनो।" तीरथ बोला--- "क्या मेरा साथ जाना जरूरी है?"

"क्या मतलब?" तुली ने ठिठककर उसे देखा।

"तलवड़े के आदमी मुझे ढूंढ रहे हैं, वे...।"

"परवाह मत करो। अब तुम मेरे साथ हो।" तुली ने टिकाऊ स्वर में कहा।

"उन्होंने हमें घेर लिया तो--- तुम क्या कर लोगे तब?"

"तब देख लेना।"

तीरथ ने अजीब-सी निगाहों से मन्नू को देखा तो मन्नू हंसकर कह उठा।

"अपना तुली शेर है शेर।"

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