जगमोहन घटिया-सी बस्ती के पुराने हो रहे टूटे-फूटे मकान में प्रवेश करके, भीतरी कमरे की तरफ बढ़ा तो भीतर से आती मध्यम-सी आवाजें उसके कानों में पड़ी। वो आगे बढ़ता रहा। चेहरे पर सोच और गंभीरता मौजूद थी। कमरे के दरवाजे के पास पहुंचने पर भीतर से आती आवाजें थम गईं। यकीनन भीतर वालों के कानों में उसके कदमों की आहट पड़ गई थी।

जगमोहन ने कमरे में प्रवेश किया। नजरें दौड़ाईं।

पुरानी हो रही टेबल के गिर्द पुराने जमाने की कुर्सियां मौजूद थीं। उस पर सोहनलाल और अंग्रेज सिंह बैठे थे। एक तरफ बिछे फोल्डिंग पर अंकल चौड़ा अधलेटा-सा कश लेने में व्यस्त था। इस वक्त तीनों की निगाह जगमोहन पर टिकी थी।

जगमोहन आगे बढ़ा और कुर्सी खींचकर बैठ गया।

"देवराज चौहान कहां है?" अंग्रेज सिंह ने पूछा।

"अभी आया नहीं तो आ जाएगा।" जगमोहन ने कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर मारी फिर तीनों को देखते हुए बोला--- "सुधाकर बल्ली नहीं पहुंचा?"

"नहीं।" कहते हुए अंकल चौड़ा फोल्डिंग पर सीधा होकर बैठ गया।

अंकल चौड़ा की उम्र पैंतालीस वर्ष की थी। सिर पर बाल ना के बराबर थे और बदन पर सामान्य-सी पैंट-कमीज थी। उसका असली नाम क्या था, वो तो अब वक्त की बीती परत में दब चुका था। यूं वो मारधाड़ में इतना तेज था कि मिनटों में ही, पांच-सात को बन्ने लगा देता था। चूंकि वो डरता किसी से नहीं था और बात-बात पर सबसे चौड़ा होने की आदत थी, ऐसे में लोग उसे अंकल चौड़ा कहकर ठंडा करते और धीरे-धीरे इसी तरह उसका नाम अंकल चौड़ा होता चला गया। गजब का फुर्तीला और पैनी निगाह रखने वाला अचूक निशानेबाज था अंकल चौड़ा। दादाई के दम पर गुजर-बसर ठाठ-बाट से हो रहा था अंकल चौड़ा का।

अंग्रेजी सिंह, बत्तीस वर्ष का था और माना हुआ चोर था। उसकी चंद खूबियों में खास खूबी यह थी कि ऊंची से ऊंची इमारतों पर पलक झपकते चढ़ जाना उसके लिए मामूली काम था। ऊपर जाने के लिए अगर पाईपें ना हों, तो खिड़कियों और छज्जों के सहारे रफ्तार से चढ़ जाता था। जिंदगी में उसने जितनी भी चोरियां कीं, उसके दौरान उसने किसी की हत्या नहीं की थी। वह दक्षेस चाकूबाज था। बहुत ही जरूरत पड़ने पर वो सामने वाले पर चाकू का ऐसा वार करता था कि उसकी जान भी ना जाए और वो वहां से खिसकता बने। छोटे-बड़े कई तरह के चाकू हर वक्त उसके कपड़ों में कई जगह मौजूद होते और पलक झपकते ही चाकू उसके हाथ में आ जाता था। उसे बहुत कम गुस्सा आता था। वह शांत और सदा मुस्कुराते रहने वालों में से था। चूंकि पुलिस वालों से उसने बनाकर रखी हुई थी इसलिए सब ठीक चल रहा था। बचपन से ही अंग्रेज सिंह नाम था उसका और उसे कभी भी अपने नाम पर एतराज नहीं हुआ था।

अंकल चौड़ा ने जगमोहन को देखा।

"शाम के छः बज रहे हैं। रात को हमने हरकत में आना है। देवराज चौहान को जल्दी आना चाहिए था।"

जगमोहन जवाब देने लगा कि किसी के आने की आहट सुनकर खामोश हो गया। और फिर देखते-ही-देखते सुधाकर बल्ली ने भीतर प्रवेश किया।

सुधाकर बल्ली छः फीट लंबा, तीस बरस का पतला युवक था। पेशे से इंजीनियर था। बड़ी-बड़ी इमारतों के बिजली के ठेके लेता था। परन्तु ठेकों में गड़बड़ की वजह से उसके अंडर होने वाली दो इमारतों में शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लग गई। दोनों ही हादसे दस दिन के भीतर हुए। जांच-पड़ताल से मालूम हुआ कि उसने वायरिंग में बेहद घटिया तारों का इस्तेमाल किया था जबकि टेंडर में बढ़िया वायरिंग का रेट दिया था। करोड़ों का नुकसान हुआ। वो पकड़ा गया।

किसी तरह ले-देकर और छः महीने जेल में बिताकर जान बचाई। परन्तु उसका नाम बदनाम हो जाने की वजह से कोई ठेका कोई लाभ उसे नहीं मिला और शानदार जिंदगी जीने वाला सुधाकर बल्ली की ठन-ठन गोपाल वाली नाव पर सवार था इस वक्त।

सुधाकर बल्ली को देखते ही अंकल चौड़ा तीखे स्वर में बोला।

"एक घंटा पहले क्यों आया? दो घंटे और बाद में आता।"

"ट्रैफिक जाम हो गया था।" सुधाकर बल्ली कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।

"शुक्र है भगवान का, वरना मेरा तो ख्याल था कि तू ही जाम हो गया होगा।" वह पहले जैसे स्वर में कह उठा।

सुधाकर बल्ली खामोश रहा।

कई पल खामोशी में ही बीत गए।

सबको चुप पाकर अंग्रेज सिंह कह उठा।

"मैं तुम सबको मजेदार बात बताता हूं। वक्त बीत जाएगा।"

"चुप रह।" अंकल चौड़ा ने मुंह बनाया--- "देवराज चौहान के ना आने पर मैं वैसे ही उखड़ रहा हूं, और मत उखाड़।"

"तेरे पास काम हैं?"

"हैं। तभी तो कह रहा हूं।"

"तो उन्हें बंद कर ले। उनमें जोरों से उंगलियां ठूंस ले।" अंग्रेज सिंह मुस्कुराया।

अंकल चौड़ा ने उसे घूरकर देखा। लेकिन खामोश ही रहा।

अंग्रेज सिंह ने सब पर निगाह मारी फिर कह उठा।

"एक बार बस एक्सीडेंट में पति-पत्नी की मृत्यु हो गई। दोनों की आत्माएं फौरन ऊपर की अदालत में पहुंचीं। यमपुरी के राजा ने रजिस्टर खोलकर उनके कामों का लेखा-जोखा देखा तो चौंका। उन्हें क्योंकि अभी उन्हें दुनिया में और जीना था। वे समय से पूर्व ही आ गए थे। परन्तु ये बात यमराज ने उन दोनों को नहीं बताई और दूत को फौरन नीचे भेजा कि देखकर आए उनके शरीर ठीक-ठाक है कि नहीं। दूत तुरन्त जाकर तुरन्त लौट आया और उसने बताया कि अभी इनके शरीरों का क्रियाक्रम नहीं हुआ। इस पर यमराज ने मरने वाले व्यक्ति रामसिंह की आत्मा को बताया कि उसे इसलिए वापस धरती पर भेजा जा रहा है कि वो गलती से समयपूर्व ही यमलोक में आ पहुंचा है। रामसिंह बहुत खुश हुआ।"

"ये भी कोई बात हुई!" अंकल चौड़ा आदत के मुताबिक तीखे स्वर में कह उठा।

"आगे सुनता रह।" अंग्रेज सिंह बोला--- "इसके साथ ही यमराज ने कहा कि हमारे यहां रिवाज है कि जिसे वापस पृथ्वी पर भेजा जाता है, उसे कर्मों के हिसाब से गिफ्ट दी जाती है। गिफ्ट हम तीन तरह की देते हैं। जिसने शराफत से जिंदगी बिताई हो उसे हौंडा सिटी कार देते हैं। जिसने शादी से पहले गड़बड़ की हो उसे मारुति 800 देते हैं। जो शादी से पहले और बाद में भी गड़बड़ करता रहे उसे मोपेड़ देते हैं और तेरे कर्म बताते हैं कि शादी से पहले और बाद में बहुत अच्छी जिंदगी बिताई है। कभी गड़बड़ नहीं की इसलिए तेरे को हमारी तरफ से होंडा सिटी कार गिफ्ट में। जो कि तेरे को तेरे घर में खड़ी मिलेगी। इनकम टैक्स वालों को हम संभाल लेंगे। इसके साथ ही रामसिंह को वापस पृथ्वी पर उसके शरीर में भेज दिया गया। वहां से रामसिंह जल्दी से घर पहुंचा तो चमचमाती हौंडा सिटी कार को खड़े पाया। रामसिंह बहुत खुश हुआ। टंकी फुल थी। वो उसी वक्त खुशी-खुशी कार लेकर घूमने निकल पड़ा।"

अब अंकल चौड़ा भी दिलचस्पी से उसकी बात सुन रहा था।

अन्य सबका ध्यान तो पहले से ही अंग्रेज सिंह की बात पर था।

अंग्रेज सिंह ने पुनः कहना शुरू किया।

"रामसिंह होंडा सिटी कार पर, सबसे पहले अपने खास दोस्त की दुकान पर पहुंचा। दोस्त, रामसिंह को होंडा सिटी कार में देखकर हैरान हुआ। पूछने पर रामसिंह ने बताया कि उसे कार कैसे मिली। दोस्त ने उसे बधाई दी। वाह-वाह की। कि तभी रामसिंह जोर-जोर से दहाड़े मारकर रोने लगा। दोस्त हैरान हुआ बोला कि तू रोता क्यों है? तू तो हौंडा सिटी कार का मालिक बन गया है। किसी तरह उसने समझा-बुझाकर रामसिंह का रोना रुकवाया, परन्तु वो बराबर सुबक रहा था। तब दोस्त ने पूछा कि अब बता तू क्यों रोया था? तो रामसिंह हिचकियां लेते कह उठा कि उसने अभी-अभी सामने की सड़क पर से अपनी बीवी को मोपेड़ पर सवार होकर जाते देखा है।"

अंग्रेज सिंह का इतना कहना था कि अंकल चौड़ा ठठाकर हंस पड़ा।

बाकि भी हंसे।

"इसका मतलब रामसिंह की पत्नी शादी से पहले और बाद में दूसरे मर्दों के साथ मजा लेती रही।" अंकल चौड़ा बोला।

"हां।" अंग्रेज सिंह मुस्कुराया--- "उसे मोपेड पर देखकर रामसिंह को सच्चाई का पता चला।"

तभी कदमों की आहट गूंजी और उसी पल देवराज चौहान ने कमरे में प्रवेश किया।

सबकी निगाह देवराज चौहान की तरफ उठी। चेहरों पर गंभीरता लौटने लगी।

देवराज चौहान ने बारी-बारी सबको देखा फिर सिगरेट सुलगाई।

"बहुत देर लगा दी आने में।" अंकल चौड़ा ने कहा।

"ऐसे कामों में अक्सर देर हो जाती है।" देवराज चौहान बोला और आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठ गया।

अंकल चौड़ा भी फोल्डिंग से उठकर कुर्सी पर आ बैठा था।

"आज रात का काम पक्का है या आज भी---।" सुधाकर बल्ली ने कहना चाहा।

"आज रात काम होगा।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

"इसका मतलब खेप आ गई?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"हां---।"

"कितने नोट होंगे?" अंग्रेज सिंह की आंखें चमक रही थीं। देवराज चौहान ने उसे देखा।

"दो काले बैगों में, पचास करोड़ के नोट हैं और---।"

"पचास करोड़---!" सुधाकर बल्ली की आंखें भी चमक उठीं--- "तब तो सारी जिंदगी किनारे लग जाएगी।"

"ठीक कहा।" अंग्रेज सिंह बोला--- "माल हाथ में आते ही सारे गलत काम बंद। आराम से जिंदगी बीतेगी।"

अंकल चौड़ा कुछ चुप-सा हो गया था।

"तेरे को खुशी नहीं हो रही?" सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाते हुए उसे देखा।

"नहीं।" अंकल चौड़ा ने सोहनलाल को देखकर सिर हिलाया--- "मैं सपनों में जीने वाला इंसान नहीं हूं। वो पचास करोड़ के नोट हैं, जिन पर हम हाथ डालने जा रहे हैं, जो कि अभी हमसे बहुत दूर हैं। और कोई गारंटी नहीं कि हम सफल रहें, या फिर जान से भी हाथ धो बैठें। जब नोट हाथ में आ जाएंगे तो मैं खुश हो जाऊंगा।"

अंग्रेज सिंह ने मुस्कुराकर देवराज चौहान को देखा।

"हमारे सिरों पर देवराज चौहान का हाथ है तो फिर असफल होने का मतलब ही नहीं है।"

"देवराज चौहान का दूसरा नाम तो गारंटी है।" सुधाकर बल्ली भी मुस्कुराया।

"ऐसा सोचकर तुम दोनों भारी भूल कर रहे हो।" देवराज चौहान बोला।

"बच्चे हैं अभी?" अंकल चौड़ा ने तीखे स्वर में कहा।

"मैं भी तुम लोगों की तरह आम इंसान हूं।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "और गलती तो इंसान से क्या भगवान से भी हो जाती है। कहीं भी चूक हो जाती है। अगर तुम लोग मेरे भरोसे रहे तो याद रखना ये काम हम किसी भी हाल में सफलता से नहीं कर सकेंगे। जब अपने-अपने हिस्से का काम सफलता से करेंगे तो आशा है कि पचास करोड़ के नोट हमारे कब्जे में आ जाएं?"

अंग्रेज सिंह और सुधाकर बल्ली ने कुछ नहीं कहा।

"दूसरों की जेबों में ठूंसे माल को देखकर खुश नहीं होते।" अंकल चौड़ा कह उठा--- "माल वही अपना जो अपनी जेब में। दूसरे की जेब में पड़े माल के दम पर तो तुम लोग एक रुपए के भुने हुए चने भी नहीं खा सकते।"

"मालूम है।" अंग्रेज सिंह मुस्कुराया।

"बहुत जल्दी मालूम हो गया।" अंकल चौड़ा का स्वर तीखा हो गया।

"समझदारी वाली बात, जल्दी मेरे पल्ले पड़ जाती है।" अंग्रेज सिंह हंसा।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

"अब क्या करना है?"

देवराज चौहान ने कश लेते हुए सब पर गंभीर निगाह मारी।

"यूं तो बीते दो दिनों में इस सारे मुद्दे और प्लान पर खुलकर बातचीत हो चुकी है।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "लेकिन आखिरी बाहर शुरू से अंत तक एक बार फिर सारी बात दोहराना चाहूंगा ताकि आज रात काम करते हुए तुममें से कोई-कोई बात भूल ना जाओ।"

सबकी निगाहें देवराज चौहान पर जा टिकीं।

पैनी खामोशी के बीच चंद पल गुजर गए।

इस काम के लिए इस जगह का इंतजाम अंकल चौड़ा ने ही वक्ती तौर पर किया था कि यहीं से काम के लिए चलेंगे और काम निपटाकर पुनः सब यहीं इकट्ठे होंगे।

"हम बैंक-वॉल्ट या सरकारी प्राइवेट जगह पर हाथ मारने नहीं जा रहे।" देवराज चौहान ने कहा--- "हम गैर कानूनी काम में लगे, ऐसे लोगों को लूटने जा रहे हैं, जिनके लिए दुबई से बराबर दौलत आती है और वो दौलत को कहां, कैसे इस्तेमाल करते है, यह हमें नहीं मालूम।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सुधाकर बल्ली को देखा, तो सुधाकर बल्ली ने सहमति से सिर हिलाया--- "इसलिए पचास करोड़ की दौलत को लूटने के लिए हमें भारी खतरों से निकलना पड़ेगा, क्योंकि हमारा मुकाबला कानून के साथ नहीं है, जो गोली मारने से पहले चेतावनी देकर सामने वाले को, बच निकलने का मौका दे देता है।"

सब देवराज चौहान को देख रहे थे।

तभी सुधाकर बल्ली बोला।

"तुमने मालूम नहीं किया कि वे कौन लोग हैं और दुबई से आने वाली दौलत का क्या करते हैं?"

"मालूम करने की कोशिश की थी, परन्तु मालूम नहीं हो पाया और ज्यादा कोशिश इसलिए नहीं की कि कहीं उन लोगों को शक ना हो जाए कि कोई उनकी टोह ले रहा है। हमारा असली मकसद उनके पास से पचास करोड़ निकालना है। न कि उनके बारे में छानबीन करना।"

"मैं भी यही कहने जा रहा था।" अंकल चौड़ा ने सिर हिलाया।

"आज तुम्हें दिन की रोशनी निकलने से पहले, उन लोगों ने समुंदर में आई, एक वोट से दो काले रंग के बड़े बैग हासिल किए हैं, जिसमें पचास करोड़ के भारतीय करेंसी के नोट हैं।"

"ये बात तुम्हें किसने बताई?" अंग्रेज सिंह ने टोका।

क्षणिक चुप्पी के बाद देवराज चौहान ने कहा।

"उन लोगों का एक आदमी, ये खबर मुझे दे रहा है। बदले में पांच करोड़ वो लेगा।"

"तो वो ये भी बता सकता है कि ये दौलत कौन भेजता है और इसका यहां क्या किया जाता है।"

"वो ये बात बताने को तैयार नहीं और हमें ये बात जानने की जरूरत नहीं।" देवराज चौहान ने शांत लहजे में कहा--- "हमारे काम की बात ये है कि वो दौलत इस वक्त कहां है।"

"कहां है?" जगमोहन के होंठों से निकला।

देवराज चौहान की निगाह सुधाकर बल्ली पर जा टिकी।

"मलाड के बंगले के उसी कमरे में जहां सुधाकर बल्ली ने कुछ दिन पहले ही काम करके उस कमरे को सुरक्षात्मक रूप से, बिजली का कमरा बनाकर, उन लोगों से लाख रुपया ऐंठा था।"

"बिजली का कमरा?" सोहनलाल के होंठों से निकला।

"हां। पहले जब बात हुई तो तुम मौजूद नहीं थे सोहनलाल!" देवराज चौहान ने कहा--- "दरअसल उन लोगों को अक्सर ये खतरा लगा रहता होगा कि उनकी दौलत आने वाली बात लीक हो गई तो कोई भी उस दौलत को लूटने आ सकता है। बेशक तब वहां सख्त पहरा होता होगा परन्तु वे अपनी जगह को और भी सुरक्षित बनाना चाहते होंगे कि कोई किसी भी स्थिति में दौलत न ले उड़े। ऐसे में उन लोगों ने काम-धंधे से बेकार घूमते सुधाकर बल्ली जैसे इंजीनियर को पकड़कर कमरे के फर्श से लेकर दरवाजे खिड़कियों और दीवारों तक में करंट दौड़ाने का इंतजाम करवा लिया।"

"ओह!" सोहनलाल ने सिर हिलाया। 13

"करंट को ऑन या ऑफ करने के लिए कोई स्विच न होकर रिमोट कंट्रोल से ये काम लिया जाता है। जो सुधाकर बल्ली ने ही बनाया है और उस रिमोट का सर्किट सुधाकर बल्ली के मस्तिष्क में था, ऐसे में इसने एक अलग से वैसा ही रिमोट बना लिया, जैसा उनके पास है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "चूंकि सुधाकर बल्ली को वहां पन्द्रह दिन काम करना पड़ा था। और एक-दो बार दूसरे कमरों में होने वाली बातों को सुनकर, सुधाकर बल्ली ने जाना कि सप्ताह में दो बार यहां करोड़ों की दौलत आती है। यह बात मेरे किसी खास पहचान वाले को सुधाकर बल्ली ने बताई तो बात मुझ तक पहुंची। मैंने मालूम किया तो बात सच निकली। इस तरह दौलत को लूटने के लिए मैंने जरूरत के मुताबिक तुम लोगों को इकट्ठा किया और हमें इंतजार था दुबई से दौलत की खेप आने का, जो कि आज सुबह ही आई है और पचास करोड़ से भरे वो दोनों काले बैग मलाड के बंगले के उस कमरे में मौजूद हैं और कमरे में तेज वोल्टेज का करंट दौड़ रहा है। जब तक उस करंट को न हटाया जाए, दौलत तक नहीं पहुंचा जा सकता। और करंट वही हटा सकता है जिसके पास रिमोट कंट्रोल हो और वैसा रिमोट कंट्रोल सुधाकर बल्ली हमें बनाकर दे चुका है। इन सब बातों में खास बात यह है कि आधी रात के बाद, वे लोग दौलत को कहीं आगे भेज देंगे।"

"ये बात उसने बताई, जो पांच करोड़ का पार्टनर है?" जगमोहन ने पूछा।

"हां।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "इसलिए रात को हमने तेजी से काम करना है और काम को जल्दी निपटाकर वहां से निकलना होगा।"

"ये कोई कठिन काम नहीं है।" अंकल चौड़ा कह उठा।

देवराज चौहान ने उसे देखा।

"ये तुम कैसे कह सकते हो?"

"बंगला हमारी नजर में है। उस कमरे का हमें पता है। वो रिमोट कंट्रोल हमारे पास है। इसके बाद भी ये कठिन काम है तो मुझे हैरानी होगी।" अंकल चौड़ा मुस्कुराया।

देवराज चौहान भी शांत भाव में मुस्कुराया।

"अगर ये काम इतना ही आसान है तो फिर तुम लोगों को इकट्ठा करके मुझे हिस्सा देने की क्या जरूरत थी। मैं जाता और पचास करोड़ ले आता।"

अंकल चौड़ा दो पल के लिए सकपका उठा।

देवराज चौहान ने सब पर निगाह मारी फिर बोला।

"बंगले का भीतरी और बाहरी नक्शा मैंने कल ही तुम लोगों को बता दिया था, ताकि दिमागी तौर पर बंगले से अच्छी तरह वाकिफ हो जाओ। अगर किसी को बंगले के भीतरी और बाहरी रास्तों के बारे में फिर पूछना-जानना हो तो, पूछ सकता है।"

कोई कुछ नहीं बोला।

"तो मैं आगे बात करता हूं।" देवराज चौहान ने कहा--- "बंगले के लोहे के गेट के भीतर की तरफ दो गार्ड चौबीसों घंटे मौजूद रहते हैं। आठ-आठ घंटों की शिफ्ट में उनकी ड्यूटी बदलती रहती है। ड्यूटी समाप्त करके वो गार्ड बंगले के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टरों में चले जाते हैं। यानी कि हर कोई अपने दिमाग में रख ले कि वहां छः गार्ड हर वक्त मौजूद रहते हैं। दो गेट के पास तो बाकी के चार सर्वेंट क्वार्टर में, गड़बड़ की हलचल मालूम होते ही उन चारों को गनों के साथ बाहर आने में दो मिनट या फिर ज्यादा-से-ज्यादा तीन मिनट का वक्त लगेगा।"

हर कोई देवराज चौहान की बात ध्यानपूर्वक सुन रहा था।

"इन छः गार्डों के अलावा वहां मौजूद अन्य गनमैनों के बारे में भी जान लो।" देवराज चौहान ने पुनः कहा--- "एक गार्ड छत पर रात भर टहलता है। दिन में छत पर कोई पहरा नहीं होता कि छत पर गनमैन को मौजूद पाकर, कोई यूं ही उन पर शक न करे। इसके अलावा आठ गनमैन बंगले के गिर्द, यानि कि चारदीवारी के भीतर, रात भर टहलते हैं और दिन में इनकी संख्या आधी हो जाती है क्योंकि दिन में किसी के धावा बोलने का खतरा कम होता है।"

"हो सकता है दिन में वे बंगले के भीतर तैयार रहते हों" जगमोहन ने कहा।

"हो नहीं सकता यकीनन ऐसा ही होगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "बहरहाल मैं रात के पहरे पर आ रहा हूं क्योंकि हमने आज रात को ही हरकत में आना है। अभी तक मैंने चौदह आदमी के बारे में बताया है। छः गार्ड जो उस वक्त वहां होंगे और आठ गनमैन। इन सबके हथियारों पर साइलेंसर मौजूद होते हैं। इसलिए कि गड़बड़ वाली स्थिति हो तो, मामले को बिना किसी शोर-शराबे के संभाला जा सके।"

अंकल चौड़ा के होंठ सिकुड़ गए।

सुधाकर बल्ली ने बेचैनी से पहलू बदला।

"और ये स्थिति हमारे लिए भी फायदेमंद है कि आमना-सामना होने पर शोर पैदा नहीं होगा। इसलिए हम भी अपने हथियारों पर, साइलेंसर का इस्तेमाल करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।

"ये ठीक रहेगा।" अंग्रेज सिंह बोला।

"ये तो रही बाहर की स्थिति, इस काम में हमारे पांच करोड़ वाले पार्टनर ने बताया कि बंगले के भीतर जब दौलत मौजूद हो तो, भीतर कम-से-कम तीन-चार आदमी हथियारों से लैस मौजूद होते हैं।"

"यानी कि कुल मिलाकर सोलह आदमियों से हमें निपटना होगा।" अंकल चौड़ा ने कहा।

"हां। परन्तु ये वक्त का तकाजा होगा कि सोलह के बीस भी हो सकते हैं और सोलह के बारह भी। यानी कि हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।"

देवराज चौहान ने सब पर निगाह मारी।

"अब मैं बताता हूं कि काम कैसे होगा।" देवराज चौहान पुनः बोला--- "सुधाकर बल्ली और सोहनलाल मेरे साथ रहेंगे। हम तीनों बंगले के भीतर जाएंगे। उस कमरे में जाना होगा हमें, जहां पचास करोड़ के नोट मौजूद हैं। उस कमरे के बंद तालों को सोहनलाल खोलेगा। सुधाकर बल्ली मारधाड़ वाला आदमी नहीं है। वैसे भी रिमोट के लिए ऐन मौके पर इसकी जरूरत पड़ सकती है कि रिमोट ठीक से काम ना करे, या ऐसा ही कुछ---? उसके बाद बाकी बचे तुम तीन। अंग्रेज सिंह। अंकल चौड़ा और जगमोहन। तुम तीनों ने गार्डों-गनमैनों और छत पर मौजूद गनमैन को संभालना है। उस वक्त तुम लोगों के लिए, छत पर मौजूद गनमैन घातक सिद्ध हो सकता है। क्योंकि वो तो तुम लोगों को आसानी से निशाना बना सकता है, लेकिन तुम लोगों की रेंज में वो नहीं आएगा। ऐसे में सबसे पहले उस पर कब्जा किया जाना चाहिए।"

"सही कहा।" अंकल चौड़ा ने कहा--- "हम तीनों में से किसी एक का टारगेट छत पर मौजूद गनमैन होना चाहिए। बाकी के दो, नीचे वालों को संभालेंगे।"

"मैं ऊपर वाले को संभालूंगा।" जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा।

सबकी निगाहें जगमोहन की तरफ उठीं।

देवराज चौहान बोला।

"जगमोहन! ऊपर वाले गनमैन पर काबू पाने के बाद, तुम ऊपर से नीचे मौजूद गार्डों-गनमैनों को निशाना बनाओगे। ऐसा करने से उन लोगों में घबराहट भर जाएगी कि ऊपर हमारा आदमी है और हम पर ही फायर कर रहा है। वजह समझने का उनके पास वक्त नहीं होगा। ऐसा होते ही उनके आधे हौसले पस्त हो जाएंगे। मुकाबला करना छोड़कर वो खुद को बचाने में लग जाएंगे।"

"मैं ऐसा ही करूंगा।" जगमोहन के स्वर में दृढ़ता के भाव थे।

देवराज चौहान ने अंग्रेज सिंह और अंकल चौड़ा को देखा।

"मैं तुम लोगों को बताता हूं कि वहां काम कैसे करना---।"

तभी सुधाकर बल्ली कह उठा।

"न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है। मैं इंजीनियर हूं। ये सब काम तो मेरे लिए नए हैं।"

"दौलत पाने के लिए खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।" देवराज चौहान ने सुधाकर बल्ली को देखा--- "अगर ठीक वक्त पर रिमोट धोखा दे गया तो तुम जैसे-तैसे रिमोट को संभाल सकते हो। क्योंकि कमरे में करंट दौड़ाने का सारा इंतजाम तुमने ही किया है। इसलिए तुम्हें साथ रखा जा रहा है। मात्र खबर देने से तुम करोड़ों का हिस्सा नहीं पा सकते। अगर तुम्हारी जरूरत न होती तो मैं तुम्हें कभी भी साथ चलने को न कहता।"

सुधाकर बदली सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।

देवराज चौहान उन लोगों को पता नहीं लगा कि वहां कैसे हरकत में आना है। सिर्फ देवराज चौहान के धीमे शब्द वहां गूंज रहे थे और वे सब सुन रहे थे।

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इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े।

रात के ग्यारह बज रहे थे। चार दिन पहले दिल्ली से किसी केस के सिलसिले में मुंबई आया था और जिसे मिलना था, वो अभी तक नहीं मिल पाया था। ऐसे में वानखेड़े समझ नहीं पा रहा था कि अभी मुंबई में ही टिके या दिल्ली लौट जाए।

इसी सिलसिले में इस वक्त वानखेड़े मुंबई पुलिस हैडक्वार्टर में बैठा कमिश्नर राधेश्याम पाटिल से बात कर रहा था और इसके बाद वो हैडक्वार्टर में ही मौजूद, रेस्टरूम में जाकर गहरी नींद लेने का इरादा बना चुका था। क्योंकि बीते दो दिनों से वानखेड़े ठीक तरह से नींद भी नहीं ले पाया था।

"इंस्पेक्टर वानखेड़े!" कमिश्नर पाटिल ने कहा--- "बेहतर होगा आप---।"

तभी टेबल पर पड़े तीन में से, एक फोन की बेल बजने लगी।

कमिश्नर राधेश्याम पाटिल ने रिसीवर उठाया।

"हैलो। कमिश्नर ऑफ पुलिस, राधेश्याम पाटिल---।"

"मैं आपको बेहद खास खबर देना चाहता हूं---।" किसी मर्द की बेहद धीमी आवाज पाटिल के कानों में पड़ी।

"कौन हैं आप?" पाटिल के माथे पर बल उभरे।

"आपको मुझसे मतलब है या खास खबर से---?" आवाज धीमी थी। स्वर शांत था।

कमिश्नर राधेश्याम पाटिल के होंठ सिकुड़े।

"मैं कहां से बोल रहा हूं, इस बात को जानने के लिए वक्त बर्बाद मत कीजिए।" आवाज पुनः आई--- "मैं ही बता देता हूं कि, मैं बांद्रा में बूथ नंबर पांच से बोल रहा हूं और जब तक आपके आदमी यहां आएंगे तो मैं पांच मील दूर तो पहुंच ही जाऊंगा। खास खबर दूं?"

"दो।"

"देवराज चौहान का नाम तो आपने सुना ही रखा...।"

"देवराज चौहान?" पाटिल के होंठों से निकला।

सामने बैठा वानखेड़े देवराज चौहान का नाम सुनते ही सतर्क हो गया। कमिश्नर पाटिल की निगाह भी वानखेड़े की तरफ उठी। क्योंकि वो जानता था देवराज चौहान की फाइल वानखेड़े के पास है।

"मतलब कि आप बखूबी देवराज चौहान से वाकिफ हैं।" आवाज पुनः आई--- "तो खास खबर यह है कि देवराज चौहान अपने पांच साथियों के साथ आज रात को एक जगह करोड़ों का हाथ फेरने की फिराक में है। अगर इजाजत हो और देवराज चौहान हाथ पर हाथ डालने की इच्छा हो तो आगे की बात बताऊं---?"

"कहो---?"

"मलाड के एक बंगले में इस वक्त पचास करोड़ रुपया मौजूद है। देवराज चौहान उसी पर हाथ डालने जा रहा है। यह काम वो आज रात बारह बजे के बाद कभी भी कर देगा।"

"मलाड का कौन-सा बंगला?"

बताने वाले बंगले का नंबर बताया।

"अगर सलाह लेने की इच्छा हो तो वो भी बता दूं---?" आवाज पुनः आई।

"कहो---!"

"देवराज चौहान पर तभी हाथ डाला जाए, जब वो अपना काम करके वहां से निकलने की फिराक में हो। क्योंकि काम को अंजाम देने से पहले देवराज चौहान और उसके साथी बहुत आक्रमक मूड में होंगे। ऐसे में पुलिस सामने आ गई तो यकीनन उन लोगों को अपनी जान बचाने के लिए मजबूरी में मुठभेड़ करनी पड़ेगी और वो मुठभेड़ खतरनाक भी हो सकती है। बेकार में पुलिस वालों की जान जाए, ये कोई अच्छी बात तो नहीं है।"

कमिश्नर राधेश्याम पाटिल के चेहरे पर सख्ती के भाव उभरे।

"और देवराज चौहान पचास करोड़ लूटने की खातिर कितनों की जान ले लेगा, उसे तुम भूल रहे हो।"

"निश्चिंत रहिए। मरने वाले यकीनन खतरनाक लोग होंगे। वो लोग सिर से पांव तक गैरकानूनी काम में लिप्त हैं। उनकी मौत के बाद उनके बारे में छानबीन करेंगे तो उनकी मौत पर आपको राहत ही महसूस होगी। वैसे भी कोई जरूरी तो नहीं कि देवराज चौहान कामयाब हो ही जाए। उन लोगों को लड़-मरने दीजिए। जो बच जाएगा, उसे आप तोहफे के रूप में स्वीकार कर लें। इससे बढ़िया और क्या बात होगी।" इसके साथ ही हौले से हंसने का स्वर कानों में पड़ा--- "मेरी बात पसंद ना आए तो अपनी मर्जी कीजिए।"

"तुम कौन हो।"

"ये सवाल पीछे छूट चुका है।"

"बेवकूफी मत करो। हो सकता है, इस मामले में तुम्हें तगड़ा इनाम मिले और---।"

"आपने मुझे इनाम के काबिल समझा। मैं इसी से खुश हो गया।" इसके साथ ही लाइन कट गई।

कमिश्नर पाटिल ने कान से हटाकर रिसीवर को देखा, फिर उसे वापस रख दिया।

वानखेड़े की पैनी निगाह पाटिल पर ही थी।

पाटिल ने गम्भीर और व्याकुल निगाहों से वानखेड़े को देखा।

"देवराज चौहान की क्या बात है?" वानखेड़े के होंठ भिंचते चले गए।

"किसी ने फोन पर अभी-अभी 'टिप' दी है कि आज रात देवराज चौहान अपने पांच साथियों के साथ मलाड के बंगले से पचास करोड़ रुपया लूटने जा रहा है।" पाटिल ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।

"ये तो अच्छी खबर है सर।" वानखेड़े अजीब-से अंदाज में मुस्कुरा पड़ा।

"क्या मतलब?"

"मैंने कहा ये अच्छी खबर है।" वानखेड़े अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "देवराज चौहान को पकड़ने का बहुत ही बढ़िया मौका मिल रहा है। देवराज चौहान से वास्ता रखते, अधिकतर मामले मैंने ही संभाले हैं और यह मामला भी मैं ही संभालूंगा। उसकी फाइल मेरे पास है और---।"

पाटिल ने सिर हिलाकर वानखेड़े को देखा।

"तुम्हारा क्या ख्याल है, देवराज चौहान पर कब हाथ डालना चाहिए?"

"जब वो अपना काम करके, वहां से निकले।" वानखेड़े ने फौरन कहा।

"उस पचास करोड़ को पाने के लिए, वो भीतर जो खून-खराबा करेगा, उसका क्या होगा?"

वानखेड़े मुस्कुराया।

"सर! देवराज चौहान ने आज तक शरीफ लोगों को नहीं लूटा। उसने किसी नागरिक को परेशान नहीं किया। उसने बैंकों में डकैतियां डालीं। वॉल्ट लूटे। हीरे-जेवरात लूटे। येसब किया उसने। परन्तु शरीफ इंसान को तंग नहीं किया। जनता को आज तक देवराज चौहान से जाती तौर पर कोई शिकायत नहीं।" वानखेड़े ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "और फिर जिन लोगों के पास पचास करोड़ नकद रुपया मौजूद है, वो स्पष्ट तौर पर गलत काम करने वाले, कानून के दुश्मन हैं। आज नहीं तो कल इन लोगों से किसी-ना-किसी रूप में पुलिस को टकराना ही पड़ेगा। अगर ये काम देवराज चौहान कर देता है तो हमें भला क्या दिक्कत हो सकती है।"

कमिश्नर राधेश्याम पाटिल वानखेड़े को देखते रहे।

"ये देवराज चौहान का मामला है सर! इसे मैं ही हाथ में लूंगा। अगर आपको ऐतराज हो तो मैं अभी एक फोन करके ऊपर से आर्डर निकलवा देता हूं।" वानखेड़े ने शांत स्वर में कहा।

कमिश्नर पाटिल के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"इंस्पेक्टर वानखेड़े! यूं तो तुम जाहिर तौर पर इंस्पेक्टर हो, परन्तु तुम्हारी पहुंच के बारे में मैं सुन चुका हूं। और मुझे नहीं लगता कि तुम सिर्फ इंस्पेक्टर ही हो। आगे भगवान जाने कि भारत सरकार के किस ओहदे पर हो तुम और...।"

"सर, मैं आपसे देवराज चौहान के बारे में बात कर रहा हूं। वक्त कम...।"

"देवराज चौहान के मामले को तुम जैसे भी चाहो, संभाल सकते हो---।"

वानखेड़े तुरन्त उठ खड़ा हुआ।

"थैंक्यू सर---।"

■■■

देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, अंग्रेज सिंह, सुधाकर बल्ली और अंकल चौड़ा रात को ठीक डेढ़ बजे हरकत में आए। सबके पास साइलेंसर लगे हथियार थे। बिजली की सी तेजी से सबने अपना काम किया।

देवराज चौहान, सुधाकर बल्ली, सोहनलाल, मौका पाते ही बंगले के भीतर प्रवेश करते चले गए। अंकल चौड़ा और अंग्रेज सिंह ने नीचे का मोर्चा संभाल लिया और जगमोहन ने छत वाले गनमैन को संभालकर, छत पर से मोर्चा संभाल लिया।

फायरिंग की आवाजें, साइलैंसर के इस्तेमाल होने की वजह से न के बराबर थीं। चीखें या फायरिंग के अंगारों की वजह से, वहां कुछ होता महसूस हो रहा था।

एक घंटा ख़ामोशी में मौत का दौर चला।

सब कुछ ठीक रहा।

वहां मौजूद सबको उन लोगों ने खत्म कर दिया। वे सलामत रहे। अलबत्ता अंग्रेज सिंह की टांग में एक गोली जा धंसी थी। उसके बावजूद भी उसके फेंके तरह-तरह के चाकू, वहां मौजूद गनमैनों के शरीर में धंसते रहे। मामला ठीक-ठाक ढंग से निपट गया।

पचास करोड़ के नोटों से भरे वे काले थैले, बंगले के पोर्च तक आ चुके थे। उनकी कार जो कि इस काम के लिए पार्किंग से उठाई थी, वो बंगले के बाहर ही थी। परन्तु पोर्च में एक कार मौजूद थी। अंग्रेज सिंह के अलावा सब वहां पहुंच चुके थे।

"इन थैलों को इसकी कार की डिग्गी में डालो।" देवराज चौहान जल्दी से बोला।

"इतने बड़े थैले की कार की डिग्गी में नहीं आ सकते।" जगमोहन ने जल्दी से कहा।

"एक डिग्गी में आ जाएगा। दूसरा कार के पीछे वाली सीट पर, जल्दी करो।"

"लेकिन हम लोग कार में बैठेंगे कहां?" सुधाकर बल्ली ने कहा।

तब तक अंकल चौड़ा कार की डिग्गी खोल चुका था और जगमोहन के साथ मिल प्लास्टिक का बड़ा-सा काला थैला डिग्गी में रखने में व्यस्त हो गए।

सुधाकर बल्ली का जवाब दिया सोहनलाल ने।

"तू मेरी गोद में बैठ जाना। साले को इस तरह वक्त आराम से बैठने की पड़ी है।"

"अंग्रेज सिंह कहां है?" देवराज चौहान ने इधर-उधर देखा।

"वो उधर, लॉन के उस कोने में पड़ा है। उसकी टांग पर गोली लगी है।" अंकल चौड़ा ने कहा--- "पर गजब का हौसला है अंग्रेज में! क्या निशाना लगाता है अंधेरे में भी चाकू का! घायल होने की भी परवाह नहीं करता। एक गनमैन से मेरी जान बचाई और---।"

तब तक देवराज चौहान, उस तरफ दौड़ पड़ा था, जिधर अंकल चौड़ा ने अंग्रेज सिंह के होने की बात कही थी। लॉन के एक कोने में अंग्रेज सिंह मिला। वो उकड़ू-सा पड़ा कराह रहा था।

"तुम ठीक हो?" देवराज चौहान जल्दी से इसे संभालते हुए बोला।

"हां---। टांग में गोली...।"

"उसकी फिक्र मत करो---।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने उसे बांहों में उठाया और कार की तरफ बढ़ गया। शरीर के हिलने की वजह से अंग्रेज सिंह की कराहें तीव्र हो गई थीं।

दूसरा थैला कार के पीछे की सीट पर रखा जा चुका था।

"कार में जगह नहीं है।" देवराज चौहान ने अंग्रेज से कहा--- "इसलिए तुम्हें तकलीफ बर्दाश्त करनी होगी। यूं ही बैठना होगा। हमें यहां से फौरन निकल चलना है।"

अंग्रेज सिंह सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।

वे सब खुद को ठूंस-ठूंस कर कार में बैठे। जगमोहन ने तेजी से कार आगे बढ़ा दी। गेट आधा खुला हुआ था। गार्ड या गनमैन ने भागने के लिए गेट खोला होगा। कार ने गेट को टक्कर मारी तो गेट पूरा खुल गया। कार बाहर निकलती चली गई।

कार के सड़क पर आते ही एकाएक चार जोड़ी हैडलाइटें जल उठीं। वे और उनकी कार तीव्र प्रकाश में नहा उठी। साथ ही इंस्पेक्टर वानखेड़े की आवाज आई।

"रुक जाओ। तुम सब लोग खुद को पुलिस के हवाले कर दो। देवराज चौहान, मैं वानखेडे तुमसे कह रहा हूं कि पुलिस के इस घेरे को तुम तोड़कर नहीं निकल सकते। मैं जानता हूं, तुम्हें खून-खराबा पसंद नहीं और हम पुलिस वाले भी बहुत मजबूरी आने पर ही गोलियां चलाते हैं। खुद को कानून के हवाले कर दो। यहां से बचकर नहीं जा सकते।" स्पीकर से निकलती तेज आवाज उन सब लके कानों में पड़ी।

"वानखेड़े---!" सोहनलाल के होंठों से निकला।

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

कार की रफ्तार बेहद मध्यम हो चुकी थी। जैसे रुकने जा रही हो।

"ये साली पुलिस कहां से आ गई?" अंकल चौड़ा गुर्रा उठा।

"मेरी तो बची-खुची जिंदगी भी अब जेल में बीतेगी।" सुधाकर बल्ली फक्क-सा कह उठा।

जगमोहन की निगाह हर तरफ घूम रही थी।

"दाईं तरफ वाली जीप को साइड मारते हुए निकलो। साईड मारते ही कार के निकलने की जगह बन जाएगी। देवराज चौहान दांत भींचकर कह उठा--- "और तुम लोग अपने सिर नीचे झुका लो। जल्दी।"

सबने ऐसा ही किया।

बेहद धीमी हो चुकी रफ्तार, पैडल दबाते ही तेज हो गई। कार किसी चीते की छलांग की तरह उछली और पास आ चुकी जीप को साइड मारते हुए निकल भागी। आगे रास्ता साफ था। पीछे से कोई चीख या ऐसा कुछ नहीं लगा कि कोई घायल हुआ हो।

पीछे से गोलियों की आंधी-सी आई।

कई गोलियां कार की बॉडी में आ धंसी। परन्तु वे बच गए। कार तीव्र रफ्तार से दौड़ती चली गई। दो पल ही शांति से गुजरे होंगे कि पुलिस सायरन की तीव्र आवाजें उनके कानों में पड़ने लगीं।

पुलिस की कारें उनके पीछे लग चुकी थीं।

■■■

"ये तो बहुत बुरा हुआ। इस बार वानखेड़े पीछा छोड़ने वाला नहीं। पूरी तैयारी के साथ आया है। साथ में पुलिस वाले भी काफी संख्या में हैं।" दांत भींचे जगमोहन ने कहा। उसका पूरा ध्यान स्टेयरिंग सीट पर था। कार तूफानी रफ्तार से दौड़ी जा रही थी।

अंग्रेज सिंह की पीड़ाभरी कराहें बराबर कानों में पड़ रही थीं। कार के तेज भागने और उछलने की वजह से टांग में फंसी गोली पीड़ा बढ़ा देती थी।

"वानखेड़े के हाथ नहीं पड़ना है।" सोहनलाल कह उठा---। आवाज में सख्ती थी--- "इस बार उसके इरादे खतरनाक लग रहे हैं। पुलिस वालों का पूरा ढेर साथ है।"

"वानखेड़े है कौन?" अंकल चौड़ा ने पूछा।

"पुलिस वाला है। बाकी की कहानी फिर सुनना---।" सोहनलाल ने पूर्ववतःलहजे में कहा।

"अब क्या होगा?" सुधाकर बल्ली की हवा निकली हुई थी।

पुलिस सायरनों की आवाजें बराबर, पिघले शीशे की तरह कानों में पड़ रही थीं। पीछे देखने पर कई मोटी-मोटी हैडलाइटें और कारों पर लगी लाल बत्तियां चमक रही थीं।

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा और भिंचे स्वर में कह उठा।

"जगमोहन---। पुलिस के हाथ नहीं पड़ना है।"

"पक्का रहा, लेकिन अब क्या करें?" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "पीछे चार पुलिस की गाड़ियां हैं। उनसे बचना है लेकिन---।"

"चार की बात मत करो।" देवराज चौहान भिंचे स्वर में कह उठा--- "उनकी गाड़ियों में वायरलैस सेट होंगे। वो हमें घेरने के लिए और भी पुलिस कारें बुलवा सकते हैं।"

जगमोहन दांत भींचकर रह गया।

"कार की लाइटें बंद कर दो।" देवराज चौहान ने कहा।

जगमोहन ने कार की सारी लाइटें बंद कर दीं।

तभी सामने, कुछ दूर पुलिस सायरन बजाती कार नजर आई, जो तेजी से इसी तरफ आ रही थी। सायरनों की तीव्र आवाज दिल को धड़का रही थी।

"हमें घेरने के लिए पुलिस की कारें और आ गई हैं।" अंकल चौड़ा गुर्रा उठा।

उसी पल जगमोहन ने ब्रेक दबाते हुए स्टेयरिंग घुमाया और कार को सड़क के साथ सटी गली में लेता चला गया। गली कुछ चौड़ी और साफ-सुथरी थी। देखते-ही-देखते कार गली को पार करती चली गई। दूसरी तरफ सड़क थी। जगमोहन को जिधर रास्ता मिला, कार को उधर ही दौड़ा दिया, परन्तु पुलिस कारें पीछे ही रहीं।

"पुलिस अभी भी पीछे है।" पीछे देखते हुए अंकल चौड़ा गुर्राया।

तभी देवराज चौहान बोला।

"पुलिस हम सबको पकड़ ले। ये ठीक नहीं होगा। जहां भी मौका मिले, हम लोगों को एक-एक करके कार से निकलना होगा और मुलाकात वहीं होगी, जहां हम लोग शाम को थे।"

"मैं पचास करोड़ की दौलत छोड़कर नहीं जाऊंगा।" अंकल चौड़ा फौरन कह उठा।

देवराज चौहान के दांत भिंच गए।

"मैं उतर जाता।" अंग्रेज सिंह के स्वर में पीड़ा थी--- "लेकिन मेरी टांग...।"

देवराज चौहान ने सुधाकर बल्ली को देखा।

"तुम क्या कहते हो?"

"मैं-मैं भी दौलत के साथ रहूंगा। ह-हम बच जाएंगे।" सुधाकर बल्ली फीके स्वर में कह उठा।

"लेकिन मैं कार से निकलना चाहूंगा?" सोहनलाल ने कहा ल।

"जगमोहन जहां भी मौका मिले। कार को धीमी कर देना। सोहनलाल तैयार रहो।" देवराज चौहान बोला।

जगमोहन फुर्ती और सतर्कता से कार ड्राइव कर रहा था। पुलिस गाड़ियां पहले से कुछ पीछे रह गई थीं। कार की सारी लाइटें ऑफ होने की वजह से यकीनन पुलिसवालों को रात के अंधेरे में उनका पीछा करने में दिक्कत आ रही होगी।

उसी वक्त जगमोहन की निगाह सामने, बहुत दूर आ रही पुलिस कार पर जा टिकी। जिसके ऊपर लगी लाइट चमक रही थी। उसने बैक मिरर में देखा। पीछे भी पुलिस कारें थीं। अब सामने से आती पुलिस कार का सायरन कानों में पड़ने लगा था।

वक्त कम था।

यह रास्ता उन्हें हर हाल में छोड़ देना चाहिए था। वरना वो घिरने जा रहे थे।

"उधर दाईं तरफ।" देवराज चौहान ने भिंचे होंठों से कहा।

जगमोहन ने पल भर के लिए उधर देखा।

वो पतली-सी गली थी। जो अंधेरे में डूबी हुई थी। वो आगे बंद थी या खुली हुई। यह तो भगवान ही जाने। इधर जाने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था।

ब्रेक दबाते हुए जगमोहन ने फुर्ती से स्टेयरिंग मोड़ा। कार के पहियों के साथ-साथ भीतर मौजूद घायल अंग्रेज सिंह भी चीख पड़ा। तीव्र झटका लगने से उसकी पीड़ा और बढ़ गई थी।

"हौसला रख।" अंकल चौड़ा ने दांत भींचे कहा--- "तू तो बहुत जिगरे वाला इंसान है।"

सुधाकर बल्ली का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।

कार मुड़ी और गली में प्रवेश करती चली गई। वो वास्तव में इतनी छोटी गली थी कि शायद ही वहां से दो कारें अगल-बगल होकर निकल सकें। जगमोहन रफ्तार से कार आगे बढ़ाता लेता चला गया। आधी गली ही पार की कि सामने का नजारा देखकर सबके, होंठ भिंच गए।

गली में कार पार्क हुई पड़ी थी। उस कार के बगल से निकल जाने की जगह बहुत कम थी। तभी पीछे गली के कोने पर पुलिस कार आकर रुकी। सायरन की तीव्र आवाजें उनके कानों में पड़ने लगीं कि अब फंसे कि अब फंसे। जगमोहन ने एकाएक कार की रफ्तार तेज की और खड़ी कार की बगल से निकलने की भरपूर चेष्टा की।

दोनों कारों की बॉडियां रगड़ खाती चली गईं।

कार को तीव्र झटका लगा।

अंग्रेज सिंह की चीखें निकल पड़ीं होंठों से।

परन्तु कार आगे निकल गई। लगा जैसे वे भारी मुसीबत से निकले हों। कार तेजी से पुनः गली के दूसरे कोने की तरफ दौड़ पड़ी। पीछे पुलिस कार ने गली में प्रवेश कर लिया था।

"पुलिस वाले पीछे गली में आ गए---।" अंकल चौड़ा दांत किटकिटा उठा।

"वो गली पार नहीं कर सकते।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था--- "उनकी कार, हमारी कार से चौड़ी है। वो गली में खड़ी कार के बगल से नहीं निकल सकते।"

सोहनलाल और अंकल चौड़ा की निगाह पीछे पुलिस कार की हैडलाइट पर ही रही। जो कि गली में खड़ी कार के पास आकर खड़ी हो गई थी। उसके लिए आगे बढ़ने का रास्ता नहीं था।

"पुलिस कार पीछे नहीं आ सकी।" अंकल चौड़ा चीख उठा।

"वो एक पुलिस कार नहीं है। बहुत हैं।" सोहनलाल ने कहा।

गली का मोड़ आ गया।

कार गली से बाहर निकली तो सामने सड़क थी। स्ट्रीट लाईट ऑन थी। गली के सामने से हटते ही जगमोहन ने फुर्ती से कार के ब्रेक मारे।

"सोहनलाल---।" देवराज चौहान तेज स्वर में बोला।

पलक झपकते ही सोहनलाल ने दरवाजा खोला और दरवाजा बंद हो गया। कार पुनः आगे बढ़ गई। सोहनलाल तेजी से विपरीत दिशा में बढ़ गया। तभी उसके कानों में गली से आती पुलिस के जूतों की आवाजें पड़ने लगीं। सोहनलाल को लगा वो फंस सकता है। कोई और रास्ता न पाकर, वो फुटपाथ पर, दुकान के बंद शहर के पास औंधे मुंह इस तरह लेट गया। जैसे कोई गरीब-भिखारी नींद में हो।

पुलिस वाले गली से बाहर निकले।

उनके कानों में पुलिस वालों के तेज स्वर पड़ने लगे।

"वो बच नहीं सकते।" एक पुलिस वाले का गुस्से से भरा स्वर कानों में पड़ा--- "ये सारा इलाका पुलिस वालों से भरता जा रहा है। वो पकड़े जाएंगे।"

तभी सोहनलाल के कानों में एक अन्य स्वर पड़ने लगा।

"हैलो...हैलो... चार्ली...हैलो चार्ली--- वो लोग...। वो कार...।"

सोहनलाल समझ गया कि वायरलैस पर, उस इलाके में मौजूद दूसरी पुलिस कारों को खबर दी जा रही है कि वो कार किस दिशा में गई है। जो भी हो सोहनलाल बच गया था। परन्तु उसे इस बात का भी अहसास हो गया था कि पुलिस वाले किसी भी हालत में उस कार को पकड़ ही कर ही रहेंगे।

पुलिस वालों के इरादे दृढ़ लग रहे थे।

लेकिन इस वक्त सोहनलाल उनके लिए कोई भी सहायता कर पाने की स्थिति में नहीं था।

■■■

"बच गए---?" अंकल चौड़ा के होंठों से निकला--- "पुलिस वाले पीछे रह गए?"

"नहीं बचे।" देवराज चौहान की तेज निगाह हर तरफ घूम रही थी--- "चार पुलिस कारें पहले हमारे पीछे थीं। दो रास्ते में मिलीं। छः में से सिर्फ एक पुलिस पार्टी पीछे छूट गई है। बाकी पांच बाकी है और मेरे ख्याल से, पुलिस वालों ने और पुलिस वालों को भी सहायता के लिए बुला रखा होगा।"

अंकल चौड़ा कुछ न कर सका।

अंग्रेज सिंह खुद पर काबू पाए, धीरे-धीरे कराह रहा था।

सुधाकर बल्ली की तो बोलती बंद थी। वह बहुत घबराया लग रहा था।

"सोहनलाल बच गया होगा।" सुधाकर बल्ली ने कहा।

"शायद---।" देवराज चौहान के भिंचे होंठ खुले--- "अगर चाहो तो तुम दोनों भी बचने का ऐसा मौका मिल सकता है। इस वक्त समझदारी का तकाजा यही है।"

"मैं पचास करोड़ के साथ रहूंगा।" अंकल चौड़ा कह उठा।

सुधाकर बल्ली खामोश रहा।

जगमोहन का पूरा ध्यान तेज रफ्तार ड्राइविंग पर था।

"पुलिस को कैसे मालूम हुआ कि हम क्या करने जा रहे हैं।" जगमोहन दांत पीसकर बोला।

"ये वक्त, इन बातों का नहीं---।"

देवराज चौहान के शब्द अधूरे रह गए। कानो में सायरन की आवाजें पड़ने लगीं। देखते-ही-देखते आगे के मोड़ से दो पुलिस कारें प्रकट हुईं।

जगमोहन ने फौरन दाईं तरफ वाली छोटी-सी सड़क पर कार मोड़ ली। कार के टायर तीव्रता से चीख पड़े। तभी उनकी निगाह उसी सड़क पर सामने पड़ी तो, वहां दूर पुलिस कार खड़ी नजर आई। जिसकी लाल बत्ती तीव्रता से चमक रही थी।

"पुलिस वाले हमें घेरते जा रहे हैं।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर होने लगा--- "वे अच्छी तरह जान चुके हैं कि हमारी स्थिति क्या है। वे अपना घेरा तंग करते जा रहे हैं।"

"मैं-मैं फंस जाऊंगा।" सुधाकर बल्ली के होंठों से घबराया-सा स्वर निकला।

"अच्छा भला काम निपट गया था। खानाखाह ही पुलिस पीछे लग गई।" अंकल चौड़ा कह उठा।

दर्द से कराहते अंग्रेज सिंह बोला।

"पुलिस वाले जब करनी पर आते हैं तो, फिर आगा-पीछा नहीं देखते।"

जगमोहन ने तुरन्त कार को मकानों के बीच की गलियों में मोड़ लिया। कार की सारी लाइटें बंद थीं। कॉलोनी में भी रोशनी का कोई खास इंतजाम नहीं था।

जगमोहन सावधानी से कार को कॉलोनी की गलियों में घुमाने लगा।

देवराज चौहान के दांत भींचे हुए थे। उसकी सोचें तेजी से दौड़ रही थीं।

"हमें यह कार छोड़नी होगी।" देवराज चौहान बोला।

"क्या?" अंकल चौड़ा के होंठों से निकला--- "कार छोड़नी होगी।"

"इस वक्त कार छोड़कर पुलिस के घेरे से निकलने की कोशिश कर सकते हैं।"

"और दौलत, पचास करोड़ नकद...?"

"इतनी भारी दौलत को हम साथ उठाकर नहीं ले जा सकते। पुलिस से बचने के लिए इस दौलत को कार में ही छोड़ना होगा। वरना हमारा बच पाना संभव नहीं?" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

"मैं पचास करोड़ को इस तरह नहीं छोडूंगा। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।" अंकल चौड़ा तीखे स्वर में बोला।

"मैं तुम्हारे साथ कोई जबर्दस्ती नहीं करूंगा।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा--- "जाते वक्त हम कार और पचास करोड़ की दौलत तुम्हारे हवाले करते जाएंगे। जो मन में आए करना---।"

"हां ठीक है। मैं दौलत को बचा ले जाऊंगा।"

पुलिस सायरनों की आवाज में उनके कानों में पड़ रही थीं। उन आवाजों से लग रहा था कि वे सात-आठ कारों की आवाजें हैं। कॉलोनी में भी जाग होने लगी थी। कई घरों की लाइटें जल उठी थीं।

जगमोहन दांत भींचे बोला।

"कार छोड़े---?"

"हां। किसी अंधेरी जगह पर कार रोक दो।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।

तभी अंग्रेज सिंह कह उठा।

"मैं-मैं घायल हूं। चल नहीं सकता।"

"तुम्हें हम अपने साथ ले जाएंगे।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा।

अंकल चौड़ा ने सुधाकर बल्ली को देखा।

"तू मेरे साथ रहेगा या इनके साथ जाएगा?" अंकल चौड़ा ने पूछा।

सुधाकर बल्ली ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर थके स्वर में कहा।

"मैं रहूं या जाऊं, दोनों तरफ से ही बर्बाद हूं। फूटी कौड़ी नहीं है मेरे पास।"

"तो फिर मेरे साथ ही रह। अंकल चौड़ा ने कहा--- "बीच में मत लटक। या तो पूरी तरह बर्बाद हो जा, या फिर मालामाल हो जाना अगर बच निकले।"

सुधाकर बल्ली सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।

जगमोहन ने एक अंधेरे से भरी गली में कार रोकी और इंजन बंद कर दिया। दोनों तरफ बने मकानों की कतार के पिछवाड़े की गली थी ये। कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था। वे लोग दरवाजे खोलकर बाहर निकले। हर तरफ निगाह मारी। अंधेरा और  सुनसानी ही नजर आई।

पुलिस सायरनों की आवाज अभी भी उनके कानों में पड़ रही थी।

दो पलों तक उनके बीच चुप्पी रही।

अंग्रेज सिंह कार के भीतर बैठा, तीव्र पीड़ा से कराह रहा था, परन्तु इस दौरान उसकी भरपूर कोशिश थी कि, उसकी आवाज मध्यम ही रहे। देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"खतरा बराबर का है। एक बार जुआ खेला जा सकता है।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था।

"क्या मतलब?" जगमोहन ने देवराज चौहान का अंधेरे से भरा-चेहरा देखा।

"इस इलाके में पुलिस का घेरा पड़ चुका है। वे जानते हैं कि हम  कॉलोनी में ही हैं। और हर पल पुलिस का घेरा तंग होता जा रहा है। हम यहां से निकलते हैं तो हर हाल में पुलिस वालों की नजरों में अवश्य आएंगे। वे हम पर गोलियां बरसा देंगे। अब तक पुलिस वालों ने और सहायता मांग ली होगी। दस-पन्द्रह मिनट में कॉलोनी का चप्पा-चप्पा पुलिस के अधिकार में होगा।"

"वो तो ठीक है। लेकिन तुम कहना क्या चाहते हो?"

अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की नजरें भी उन पर टिक गई थीं।

"यहां से निकलने की अपेक्षा, कॉलोनी के किसी घर में छिप जाना ही बेहतर होगा। खतरा बराबर का है। बच भी सकते हैं और पकड़े भी जा सकते हैं।" देवराज चौहान ने कहा।

"ऐसे में तो हमें किसी पर भी कब्जा करना पड़ेगा।" जगमोहन के होंठों से निकला।

"हां---।"

"तो ये कैसे होगा कि कि घर पर कब्जा करें? क्या पता वहां हमारे लिए कोई मुसीबत खड़ी हो जाए?"

"इस वक्त हम जिस तरह खतरे में घिरे हुए हैं। उसे देखते ही वो  खतरा कम होगा, जो किसी घर पर कब्जा जमाते हुए हमारे सामने आएगा।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गये--- "और जिस घर पर भी कब्जा करेंगे। वहां रहने वालों को किसी भी तरह से जान-माल का नुकसान नहीं पहुंचाना है। उन्हें सिर्फ इस तरह धमकाना है कि हम सब कुछ कर सकते हैं अगर हमारी बात न मानी गई तो। लेकिन करना कुछ नहीं है। समझदारी से काम लेते हुए, घर के लोगों को काबू में लेना है।"

जगमोहन कुछ नहीं बोला।

"और ये दौलत---?" अंकल चौड़ा कह उठा।

"ये पचास करोड़ भी हमारे साथ रहेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।

"लेकिन ये दोनों काले थैले इतने भारी हैं कि इन्हें लेकर एक कदम भी चलना कठिन है।"

"हमें दस कदम भी नहीं चलना पड़ेगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहते हुए, चार कदम दूर मकान के पिछवाड़े की दीवार पर नजर मारी--- "हम इसी मकान पर कब्जा करेंगे। यही सबसे पास है।"

'लेकिन कार यहां है। पुलिस वाले समझ जाएंगे कि हम पास ही में कहीं हैं।" जगमोहन ने कहा।

"नहीं। यहीं पर पुलिस भ्रम में पड़ेगी कि हम लोग कार को यहां छोड़कर यहां से कहीं दूर जा छिपे है। वे नहीं सोच सकेंगे कि, हम कार के करीब वाले मकान में ही हैं।"

"वानखेड़े बहुत तेज है, वो---।"

"वो भी इस बात को लेकर धोखा खा जाएगा।" देवराज चौहान ने टोका--- "जल्दी करो, हमारे पास वक्त कम है। जगमोहन तुम दीवार पर चढ़कर भीतर देखो। जल्दी...।"

जगमोहन तुरन्त दीवार के पास पहुंचा और उछलकर मुंडेर थामी और ऊपर चढ़कर बैठ गया। वो आठ फीट ऊंची, पिछवाड़े की दीवार थी। जगमोहन ने भीतर देखा। वो पिछवाड़े का छोटा-सा आंगन और अंधेरे में डूबा हुआ था। वहां एतराज के काबिल कोई चीज नजर नहीं आई।

जगमोहन ने सब ठीक होने का इशारा किया।

देवराज चौहान, अंग्रेज सिंह और सुधाकर बल्ली ने डिग्गी में से काला थैला निकाला जो कि भारी था। तीनों ने किसी तरह उस बड़े थैले को संभाला और दीवार के पास ले आए। अब सवाल था कि उस भारी थैले को किस तरह दो फीट ऊपर उछालकर, मकान के भीतर फेंका जा सके? दीवार पर मौजूद जगमोहन, अकेला उस थैले को नहीं संभाल सकता था।

"थैले को दीवार के सहारे संभालकर ऐसे ही टिकाए रखो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान फुर्ती के साथ दीवार पर जा चढ़ा।

अंग्रेज सिंह और सुधाकर बल्ली ने किसी तरह थैले को संभाल रखा था।

देवराज चौहान और जगमोहन ने दीवार पर से झुककर भारी थैले को पकड़ा और खींचते हुए दीवार की मुंडेर पर रख लिया। उसके बाद आहिस्ता से भीतर की तरफ गिरा दिया।

इसी तरह कार की पिछली सीट पर पड़े दूसरे थैले को भीतर पहुंचाया गया।

सब खामोशी से हो रहा था।

अब घायल अंग्रेज सिंह को भीतर ले जाने का सवाल था। तभी देवराज चौहान की नजर मकान के पिछवाड़े खुलने वाले दरवाजे पर पड़ी, जो कि गहरा अंधेरा होने की वजह से वो पहले नहीं देख पाए थे। वरना थैलों को भीतर पहुंचाने के लिए इतनी मेहनत न करनी पड़ती।

देवराज चौहान आहिस्ता से मकान के भीतर दीवार से नीचे उतरा और उस दरवाजे की सिटकनी नीचे गिरा दी। पिछवाड़े के दरवाजे के पल्ले खुल गए

जगमोहन भी दीवार से नीचे उतर आया था।

"अंग्रेज सिंह को सावधानी से उठाकर भीतर ले आओ।" देवराज चौहान ने कहा--- "वो घायल है। उठाते वक्त उसे ऐसा कोई झटका ना लगे कि उसके होंठों से चीख निकले।"

जगमोहन दरवाजे से निकलकर कार की तरफ बढ़ गया। अंकल चौड़ा उसके साथ हो गया। दोनों ने अंग्रेज सिंह को संभालकर उठाया और मकान के भीतर ले आए। सुधाकर बल्ली भी भीतर आ गया।

सब ठीक रहा।

देवराज चौहान ने दरवाजा भीतर से बंद करके सिटकनी चढ़ा दी।

पुलिस सायरनों की आवाज उनके कानों में बराबर पड़ रही थीं।

रह-रहकर वे एक-दूसरे को देखने लगते कि, पुलिस से बच पाएंगे कि नहीं, इस सवाल के साथ।

अंग्रेज सिंह को आहिस्ता से नीचे, फर्श पर ही लिटा दिया था।

"मैं जल्दी ही तुम्हारी गोली निकाल दूंगा।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा--- "कुछ देर और रुक जाओ।"

"हूं।" होंठ भींचे अंग्रेज सिंह सिर्फ इतना ही कह सका

"वहां इतना गहरा अंधेरा था कि वे एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं देख पा रहे थे। चन्द्रमा भी कभी बादलों की ओट में छिप जाता, तो कभी अपनी मध्यम-सी रोशनी फेंक देता। वे सब इस वक्त पसीने से बुरी तरह भीगे हुए थे। देवराज चौहान रिवाल्वर निकालते हुए बेहद धीमे स्वर में बोला।

"हम अपनी कोशिश में तभी सफल हो सकते हैं, जब इस घर में रहने वालों पर बिल्कुल खामोशी के साथ काबू पा ले। एक बार मैं फिर कहता हूं कि किसी की जान नहीं लेनी। घर के लोगों को अपना सहयोगी बनाना है। दुश्मन नहीं। उस हद तक ही उन पर सख्ती रखनी है, जितनी कि जरूरत है। ऐसे वक्त में बेहद समझदारी और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए---?"

सब खामोश रहे।

देवराज चौहान रिवाल्वर संभाले आगे बढ़ा और पिछवाड़े की तरफ से खुलने वाले दरवाजे को चैक किया। वो भीतर से बंद था। जगमोहन और अंकल चौड़ा रिवाल्वरें थामें, उसके साथ थे। सुधाकर बल्ली, अंग्रेज सिंह के पास ही ठहर गया था।

देवराज चौहान ने अगल-बगल की खिड़कियां चैक कीं।

वे भी बंद थीं।

पुलिस सायरनों की आवाजों के साथ, दूर से आती मध्यम-सी चिल्लाहटें भी उनके कानों में पड़ने लगी थीं। यकीनन वो न समझ में आने वाले स्वर, पुलिस वालों के ही थे।

तभी दरवाजे के भीतर आहट-सी हुई। फिर लाइट जल उठी।

तीनों सावधान हो गए।

स्पष्ट था कि भीतर वालों की नींद पुलिस सायरनों की बराबर आने वाली आवाजों से खुल गई थी। भीतर से चंद आहटों के अलावा और कुछ नहीं सुनाई दिया।

देवराज चौहान के जूते ने हल्की-सी आहट पैदा की।

उसके बाद खामोशी छा गई।

कुछ पलों बाद देवराज चौहान ने पुनः वैसी ही आहट पैदा की।

दो पलों के बाद ही किसी युवती का स्वर उसके कानों में पड़ा।

"कौन है?"

इसके बाद खामोशी छा गई। देवराज चौहान ने इस बार कोई आहट पैदा नहीं की। बीस-तीस सेकंड ऐसी खामोशी में बीत गए। तभी दरवाजे की तरफ बढ़ते कदमों की आहट सुनाई दी।

वे तीनों सतर्क हो गए।

भीतर से दरवाजे की सिटकनी हटाए जाने का स्वर कानों में पड़ा। और फिर तुरन्त ही दरवाजे के दोनों पल्ले खुल गए। यकीनन खोलने वाले को विश्वास होगा कि, बाहर बिल्ली वगैहरा के अलावा कुछ नहीं हो सकता। उसी की वजह से पिछवाड़े से कोई आहट उभरी होगी। इस पर भी भीतर वालों ने यूं ही दरवाजा खोला तो उसी पल उसके होंठों पर देवराज चौहान की हथेली टिक गई। हाथ में दबी रिवाल्वर की नाल कमर से जा सटी और देवराज चौहान खतरनाक स्वर में फुसफुसाया।

"खबरदार, कोई आवाज न निकले। हम पांच लोग हैं और हथियारों से लैस हैं। सबको भूनकर रख देंगे।"

मुंह पर हाथ जमा होने के कारण दरवाजा खोलने वाला बोल नहीं पाया। देवराज चौहान को एहसास हो गया कि वो कोई युवती है। कमरे में आते प्रकाश में वो पूरी तरह चमक रही थी और उनके चेहरे भी वो स्पष्ट देख रही थी। उसकी आंखें भय से चौड़ी हो गई थीं।

"सुना तुमने जो मैंने कहा---।" देवराज चौहान दबे स्वर में गुर्राया।

भय में डूबी युवती ने किसी तरह सहमति में सिर हिलाया।

"चीखोगी?"

युवती ने इंकार में सिर हिलाया।

"मैं तुम्हारे मुंह से हाथ हटाने जा रहा हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने उसकी कमर में रिवाल्वर का दबाव बढ़ा दिया--- "तुम्हारे मुंह से तेज आवाज निकली तो, यहीं खड़े-खड़े मरोगी---।"

जगमोहन और अंकल चौड़ा की नजरें कमरे के भीतर दौड़ रही थीं।

देवराज चौहान ने उसके मुंह से हाथ हटाया तो वो डरे अंदाज में गहरी-गहरी सांसें लेने लगी।

"घर में और कौन-कौन हैं?" देवराज चौहान दबे स्वर में गुर्राया।

"क-कोई-नहीं।" युवती के होंठों से सूखा-सा स्वर निकला।

"अकेली रहती हो?"

"मेरे पति हैं।" उसने जल्दी से कहा--- "वो घर पर नहीं हैं।"

"देवराज चौहान ने जगमोहन और अंग्रेज सिंह को इशारा किया तो वो दोनों रिवाल्वर थामें भीतर प्रवेश कर गए और भीतर का फेरा लगा आए।

"चार कमरों का मकान है ये और भीतर वास्तव में कोई नहीं है।" जगमोहन ने कहा।

"अंग्रेज को भीतर लाओ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान युवती को कवर किए कमरे में आ गया।

अंग्रेज सिंह को भीतर लाया गया।

अब वे खुद को सुरक्षित पाकर राहत महसूस करने लगे थे।

तभी देवराज चौहान की निगाह, टी•वी• के ऊपर रखी, फ्रेम वाली तस्वीर पर पड़ी। जो किसी पुलिस वाले की तस्वीर थी। देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

"वो तस्वीर किसकी है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मेरे पति की।" युवती ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा--- "सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर---।"

देवराज चौहान ने युवती को ध्यान से देखा। वो नाइटी पहने हुई थी। मांग में सिंदूर था। गले में मंगलसूत्र। कानों में टॉप्स और हाथ की उंगलियों में दो सोने की अंगूठियां थीं। दोनों कलाइयों में मौजूद चूड़ा बता रहा था कि उसकी शादी हुए, महीने से ज्यादा नहीं हुआ।

"इस वक्त तुम्हारे पति कहां है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"ड्यूटी पर हैं।" युवती भय से भरे स्वर में कह उठी--- "फोन आया था कि वो आएंगे। लेकिन अभी तक नहीं आए। वो कभी भी आ सकते हैं।"

"ये तो खतरे वाली बात हो गई---।" अंकल चौड़ा दांत भींचकर कह उठा।

"क्या नाम है तुम्हारा?" देवराज चौहान ने पूछा।

"रजनी---।" उसका स्वर कांपा।

"ध्यान से सुनो।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कठोर स्वर में कहा--- "तुम्हें तब तक हमसे डरने की जरूरत नहीं है, जब तक तुम हमारे कहने पर चलती हो। और इस वक्त हमें बचाने के लिए हमारी सहायता करोगी। यह इलाका पुलिस के घेरे में है और वो हमारी तलाश में लग गए होंगे। ध्यान रखना। हम बचे तो तुम भी बची। हम नहीं तो तुम भी नहीं। कोई चालाकी करने की कोशिश मत करना। वरना समझ सकती हो कि क्या हालात पैदा हो सकते हैं।"

रजनी खांडेकर सिर हिलाकर रह गई। चेहरा फक्क था।

"तुम्हारा पति सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर, तुम्हें प्यार करता है?" देवराज चौहान ने पूछा।

रजनी खांडेकर ने सहमति से सिर हिलाया।

"किस हद तक वो चाहता है तुम्हें?"

"हम-हमने लव मैरिज की है। उसके घर वाले तैयार नहीं थे तो उसने घरवालों को छोड़ दिया---।" रजनी खांडेकर के स्वर में कंपन था--- "वो मुझे बहुत चाहता है।"

देवराज चौहान सोच भरे ढंग से सिर हिलाकर रह गया।

"तुम्हारा इरादा कोई शरारत करने का है या हमारी बात मानने का?" देवराज चौहान का स्वर सख्त था।

"मैं-मैं वही करूंगी, ज-जो आप लोग कहेंगे।" रजनी खांडेकर सिर से पांव तक डरी हुई थी।

"हमारी बात मानने में ही तुम्हारी भलाई है।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा--- "देर-सवेर में तुम्हारा पति सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर भी यहां आएगा। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी किसी चालाकी पर तुम्हारे साथ-साथ हमें तुम्हारी पति की भी जान लेनी पड़े।"

"नहीं-नहीं! भगवान के लिए ऐसा मत करना।" रजनी खांडेकर कांपकर, फीके स्वर में कह उठी। आंखों में खौफ से भरा पानी चमक उठा।

■■■

कॉलोनी में अधिकतर जाग हो चुकी थी। पुलिस सायरनों और पुलिस वालों की चीखो-पुकार की वजह से लोग जाग चुके थे। हर किसी के मुंह पर यही सवाल था कि क्या हुआ? क्या बात है? परन्तु जवाब देने वाला कोई नहीं था।

जब उस कॉलोनी को अच्छी तरह घेर लिया गया तो, सायरन बंद हो गए और लाउडस्पीकर पर पूरी कॉलोनी में घोषणा की जाने लगी कि सब लोग अपने-अपने घरों में रहें। कोई बाहर निकलने की चेष्टा न करें। कुछ खतरनाक लोग यहां आ पहुंचे हैं और हो सकता है वे आप ही के घर में छिप जाएं। कृपया सावधान रहें और किसी भी अजनबी को देखते ही कॉलोनी में फैले, घेराबंदी किए पुलिस वालों को फौरन सूचित करें। घबराने की जरूरत नहीं, आपकी सुरक्षा के लिए हम लोग हर तरफ मौजूद हैं।

यह घोषणा कॉलोनी में बार-बार हो रही थी।

इसके साथ ही कॉलोनी में तीव्र हलचल मच गई थी। मध्यम वर्गीय लोगों के मकान थे यहां। किसी का मकान छोटा था तो किसी का बड़ा।

रात के सन्नाटे को, पुलिस के बूटों की आवाजें तोड़ रही थी। जैसे भी हो, पुलिस वाले कालोनी की सड़कों और गलियों में रोशनी करने की चेष्टा कर रहे थे। लोगों से कहा जा रहा था कि घर के बाहर की लाइटें रोशन कर लें। पुलिस की गाड़ियों की रोशनियां दूर-दूर तक फैल रही थीं।

ढेर सारे पुलिस वाले हथियार और टॉर्च थामें सतर्कता से कॉलोनी में उस कार की तलाश कर रहे थे, जिसका पीछा करते हुए, वे यहां तक पहुंचे थे।

पूरी कॉलोनी जैसे छावनी-सी बन गई हो।

आखिरकार गली में पुलिस वालों को देवराज चौहान की वह कार मिली जिसमें वे सब यहां पहुंचे थे, परन्तु कार खाली थी।

फौरन वानखेड़े को खबर की गई।

दो मिनट में ही वो सीनियर पुलिस वालों के साथ वहां था। उसने कार को देखा, जांचा। आसपास देखा। चेहरे पर सख्ती नजर आ रही थी।

"देवराज चौहान और उसके साथी कॉलोनी में ही कहीं छुप गए हैं। इतनी जल्दी वो बाहर नहीं निकल सकते। उनके पास लूटी हुई करोड़ों की दौलत भी है।" वानखेड़े ने एक-एक शब्द चबाकर कहा। इस ऑपरेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर वानखेड़े ही था।

"सर!" पास खड़ा इंस्पेक्टर कह उठा--- "जब कार ने इस कॉलोनी में प्रवेश किया तो इसी वक्त हमने कॉलोनी को घेरना शुरू कर दिया था। कॉलोनी के हर रास्ते पर उस वक्त इत्तेफाक से हमारी पुलिस कारें मौजूद थीं। आप ठीक कह रहे हैं कि वे लोग बाहर नहीं निकल सकते।कॉलोनी में ही कहीं छुप गए हैं।"

वानखेड़े के चेहरा कठोर था।

"देवराज चौहान और उसके साथियों को हर हाल में हमने पकड़ना है।" वानखेड़े ने एक-एक शब्द चबाकर कहा--- "अनाउंसमेंट कर दो कि वे लोग कॉलोनी में ही किसी घर में छिपे हैं। उनके बारे में पुलिस को फौरन खबर कर दें। उनके पास हथियार हैं। ऐसे में वे लोग घरवालों को चुप रहने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इसके लिए हमें कोई रास्ता निकालना होगा कि मालूम हो सके, वे किस घर में हैं?"

"सर!" दूसरा इंस्पेक्टर बोला--- "हमें एक-एक घर की तलाशी लेनी होगी। ऐसे में...।"

"एक-एक घर की तलाशी लेना, आखिरी कदम होगा और ऐसा करने में, उस परिवार के लोग खतरे में पड़ सकते हैं, जिस घर में वे छिपे बैठे हैं।" वानखेड़े दांत भींचकर कह उठा।

वानखेड़े ने आखिरी बार कार को देखा फिर वहां से हट गया। चंद पुलिस वाले उसके साथ रहे, बाकी इधर-उधर मुस्तैदी से फैलते चले गए।

वानखेड़े का दिमाग तेजी से चल रहा था। वो जानता था कि इस वक्त देवराज चौहान चूहेदान में फंसे चूहे की तरह कॉलोनी के किसी मकान में फंसा पड़ा है। वो जानता था कि घर-घर की तलाशी लेने पर देवराज चौहान फंसने की स्थिति में उस परिवार को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। जिन्हें उसने बंधक बना रखा है। देवराज चौहान कभी किसी बेगुनाह की जान नहीं लेगा। परन्तु खबर के मुताबिक वो कुल छह थे और जाने वे कौन-कौन थे। वानखेड़े उनकी गारंटी तो नहीं ले सकता था। वानखेड़े की सोचों के मुताबिक जब वे पुलिस को अपने सिर पर पाएंगे तो, देवराज चौहान की भी बात नहीं मानेंगे और खतरनाक से खतरनाक हरकत कर गुजरेंगे।

वानखेड़े को लगने लगा कि मामला नाजुक है। सोच-समझकर कदम उठाना होगा। इस हाल में दो बातें ही जायज थीं। एक तो यह कि खामोशी से मालूम किया जाए कि वे लोग किस घर में मौजूद हैं, या फिर देवराज चौहान और उसके साथियों को यहां से निकलने का मौका देकर, उन्हें कहीं और घेरा जाए।

"क्या किया जाए सर?"

वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाई। वे गली से बाहर आ चुके थे। वानखेड़े की निगाह, वहां फैले पुलिस वालों पर जा रही थी। लाउडस्पीकर की आवाज कानों में पड़ रही थी।

"सुनो।" वानखेड़े ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मेरे ख्याल में देवराज चौहान और उसके साथी किसी घर पर, हथियारों के दम पर कब्जा जमाए बैठे हैं। यही वजह है कि उनके बारे में हमें कोई खबर नहीं मिल पा रही और ना ही मिलेगी। कोई भी उनके खिलाफ चलकर अपनी और परिवार वालों की जान नहीं गंवाना चाहेगा और मजबूरी में उनकी हर संभव सहायता करेगा।"

"आप ठीक कह रहे हैं सर।"

"अब हमारे पास एक ही रास्ता है कि लाउडस्पीकर पर, ये घोषणा की जाए कि देवराज चौहान और उसके साथी किसी घर में छिपे हुए हैं, पुलिस इस बात को अच्छी तरह जान चुकी है। और पुलिस को इस बात का भी एहसास है कि बंधक बने परिवार वाले, पुलिस को खबर नहीं कर पा रहे। ऐसे में वो लोग अपने घर के आगे या पीछे किसी भी तरफ सफेद रंग का कपड़ा फेंक दे। ऐसा होते ही पुलिस समझ जाएगी कि वो लोग कहां हैं और हम परिवार वालों को बचाकर, बदमाशों को गिरफ्तार कर लेंगे।"

"यह ठीक रहेगा सर।"

"इसके साथ ही दूसरे स्पीकर पर देवराज चौहान के लिए घोषणा की जाए कि पुलिस जानती है कि वो अपने साथियों के साथ किसी घर में छिपा है। और उसे गिरफ्तार किए बिना, पुलिस अपना घेरा नहीं उठाएगी। अगर दिन निकलने तक वो अपने साथियों के साथ, पुलिस के सामने नहीं आया तो पुलिस एक-एक घर की तलाशी लेना शुरू कर देगी। ये दोनों घोषणा फौरन आरंभ कर दो।"

"राइट अवे सर।" कहने के साथ ही एक पुलिस वाला वहां से तेजी से चला गया।

"आपका क्या ख्याल है सर! देवराज चौहान और उसके साथी पकड़े जाएंगे?" पुलिस वाले ने पूछा।

वानखेड़े ने सिर को झटका देकर कश लिया।

"कोई और होता तो मैं सौ प्रतिशत गारंटी देता कि हम ऑपरेशन में कामयाब रहेंगे। परन्तु ये मामला देवराज चौहान का है। और वो बचने का कोई-न-कोई रास्ता निकाल लेता है। लेकिन इस बार हमारी पूरी कोशिश होगी कि देवराज चौहान को बच निकलने का कोई रास्ता न मिले।" वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा--- "देवराज चौहान से कई बार मेरा सामना हो चुका है। परन्तु वो नहीं पकड़ा गया, हर बार उसकी फाइल ही मोटी हुई?"

"तभी एक सब-इंस्पेक्टर पास पहुंचा और सैल्यूट मारकर इंस्पेक्टर वानखेड़े से बोला।

"सर, मैं सब-इंस्पेक्टर खांडेकर हूं। हैडक्वार्टर में मेरी तैनाती और पैट्रोलिंग कार में मेरी ड्यूटी थी। देवराज चौहान और उसके साथियों को घेरने के लिए मेरी वाली पैट्रोलिंग कार को भी मैसेज मिला था।"

"क्या कहना चाहते हो?" वानखेड़े बोला।

"सर, मेरा घर इसी कालोनी में है। मैं इस कॉलोनी का चप्पा-चप्पा जानता हूं। ऐसे में मेरी किसी खास सहायता की जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं।" सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने कहा।

"वैल सब-इंस्पेक्टर खांडेकर। तुम्हारी जरूरत दिन निकलने पर पड़ेगी। जब हम एक-एक घर की तलाशी लेना शुरू करेंगे। इस दौरान तुम अपनी हर पहचान वाले के घर जाओ। चैक करो। हो सकता है देवराज चौहान अपने साथियों के साथ वहीं कहीं हो और हमारा काम आसान हो जाए। लेकिन सावधान रहना कहीं भी देवराज चौहान से तुम्हारा टकराव हो सकता है।"

"मैं सावधान रहूंगा सर---।"

तभी अन्य पुलिस वाला पास पहुंचा।

"सर! हैडक्वार्टर से, तीस पुलिस के जवान और आए हैं।"

"गुड! खांडेकर।" वानखेड़े ने कहा--- "हैडक्वार्टर से अभी पुलिस वालों को कहां-कहां चौकसी के लिए तैनात करना है। ये काम तुम अच्छी तरह कर सकते हो। क्योंकि इस कॉलोनी में तुम बाखूबी वाकिफ हो।"

"राइट सर।"

सब-इंस्पेक्टर खांडेकर, अब पुलिस वाले के साथ वहां से चला गया।

इंस्पेक्टर वानखेड़े ने पास खड़े इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर और हवलदार को देखा।

"मैं इस कालोनी के रास्तों पर अच्छी तरह निभा डालना चाहता हूं।" वानखेड़े ने कहा--- "ताकि जरूरत के मुताबिक आगे की योजना के बारे में सोचा जा सके कि क्या, कैसा करना है।"

"आइए सर---!"

उन तीनों के साथ वानखेड़े आगे बढ़ा।

"सर!" हवलदार ने कहा--- "ये सोचना पड़ेगा कि वे लोग कहां हो सकते हैं।"

"जहां गली में कार खड़ी मिली है।" वानखेड़े के शब्दों में यकीनी भाव थे--- "देवराज चौहान और उसके साथी वहां से दूर नहीं गए। आसपास के ही किसी मकान में हैं।

तीनों चौंके।

"व्हाट, ये आप क्या कह रहे हैं?" इंस्पेक्टर के होंठों से निकला।

"मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं।"

"लेकिन---।"

"मैंने उन लोगों को मलाड के बंगले से, निकलने से पहले देखा था। वे पोर्च में खड़ी कार में दो काले थैले रख रहे थे। वे थैले  काफी बड़े और भारी थे। एक थैले को दो आदमी संभाल रहे थे। ऐसे में गली में उन लोगों ने थैलों के साथ कार छोड़ी तो पक्के तौर पर वे वहां से दूर नहीं गए होंगे और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कार के आसपास के पन्द्रह-बीस मकानों को छाना जाए तो देवराज चौहान अपने साथियों के साथ मिल जाएगा।"

"तो फिर देर किस बात की सर---!" सब-इंस्पेक्टर ने कहा--- "हम उन्हें---।"

"नहीं। अभी नहीं।" वानखेड़े चलते-चलते सिर हिलाया--- "इन लोगों को पकड़ने से ज्यादा जरूरत उन लोगों को बचाने की है, जिन पर काबू पाकर वे उस मकान में छिपे बैठे हैं। मैं नहीं चाहता कि उन्हें पकड़ने के फेर में निर्दोष लोगों की जान चली जाए। मैं सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहता हूं कि सब कुछ ठीक भी रहे और देवराज चौहान अपने साथियों के साथ कब्जे में आ जाए।"

तीनों की निगाह वानखेड़े पर थी।

"और इस बीतते वक्त के साथ हम इस बात का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि उस कार के पास के किस मकान में वो लोग मौजूद हो सकते हैं।" वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैंने इस बात का खुलासा पहले इसलिए नहीं किया कि, सारे पुलिस वाले वहीं घेरा डाल लेते और इससे उन लोगों की जान को खतरा बढ़ जाता जिन्हें बंधक बना रखा है।"

"सुना है देवराज चौहान बहुत खतरनाक है सर?" हवलदार बोला।

"हां। लेकिन वो खतरनाक लोगों के लिए खतरनाक है। राह चलते लोगों के लिए नहीं। देवराज चौहान जैसा डकैती मास्टर तेज दिमाग वाला मैंने पहले कभी नहीं देखा। इतना सब कुछ होने पर भी वो अपने उसूलों के साथ रहता है। दो-तीन बार वो मेरी जान बचा चुका है, जबकि वो जानता है कि कानून ने मुझे उसे पकड़ने की ड्यूटी सौंप रखी है। ऐसे में वो कहता है कि उसने इंसान को बचाया है। पुलिस वाले को नहीं। आज तक मैं उसे ठीक से नहीं समझ सका, जबकि उसकी सारी गैरकानूनी हरकतें, मेरे पास मौजूद फाइल में दर्ज हैं।"

■■■

रजनी खांडेकर का जिस्म रह-रहकर खौफ से कांप उठता था। कई बार चलते वक्त, भय से उसके पांव डगमगा जाते। देवराज चौहान के कहने पर, मकान के स्टोर में जाकर, नाइटी के बदले सूट पहन लिया था, ताकि उसका झलकता जिस्म छिप जाए। ये देवराज चौहान का पहला ऑर्डर था रजनी खांडेकर के लिए।

जबकि अंकल चौड़ा की निगाहें नाइटी से झलकते उसके जिस्म से पहचान बढ़ाने की चेष्टा कर रही थी। सुधाकर बल्ली ने थके और भारी अंदाज में कुर्सी संभाल ली थी। लाउडस्पीकर से आती चेतावनी की आवाजें उनके कानों में पड़ रही थीं। कभी-कभार मकान के बाहर आगे या पीछे से पुलिस के भारी जूतों या उनके बात करने के स्पष्ट से स्वर उनके कानों में पड़ने लगते।

अंग्रेज सिंह की हालत बुरी हो रही थी। एक घंटा होने को आ रहा था। उसकी टांग में गोली फंसे। पीड़ा से वो बे-दम-सा हो चुका था।

रजनी खांडेकर जब स्टोर में कपड़े बदलने गई तो जगमोहन साथ था। वो बाहर ही खड़ा रहा और दरवाजे की चौखट में जूता फंसा दिया कि वो भीतर से दरवाजा बंद न कर सके। उधर रजनी स्टोर के भीतर कपड़े चेंज करती, शक में थी कि कहीं बाहर खड़ा व्यक्ति भीतर न आ जाए। वो जानती थी कि वो बहुत ही खूबसूरत है कि उसका जिस्म सांचे में ऐसा ढला है कि हर कोई उसे पाने को बेताब हो उठता है।

जगमोहन, रजनी को अपने साथ कमरे में लाया।

देवराज चौहान अंग्रेज सिंह से कह रहा था।

"अंग्रेज! इस समय यहां कोई डॉक्टर नहीं मिल सकता। ये तो तुम भी जानते हो। डॉक्टर होता तो तुम्हें पीड़ा का एहसास न होने देता और गोली निकाल देता। मेरे गोली निकालने से तुम्हें तकलीफ होगी और बाहर पुलिस वाले हैं। अगर तुम्हारी चीख निकली तो हम सब फंसेगे। इसलिए तुम चीखोगे नहीं।"

"दर्द बर्दाश्त करने की अब मुझमें हिम्मत नहीं रही।" होंठ भींचे अंग्रेज सिंह कह उठा।

"मर्द बन---।" अंकल चौड़ा कह उठा--- "तू तो बहुत हिम्मती...।"

"इससे ज्यादा मैं मर्द नहीं बन सकता।" अंग्रेज सिंह पीड़ा से वास्तव में अधमरा हो रहा था।

"अगर गोली न निकाली गई तो जहर फैल सकता है।" देवराज चौहान बोला--- "जहर फैलने पर यहां डॉक्टर का भी इंतजाम नहीं जो तुम्हारी टांग काट सके। ऐसे में तुम्हारी जान भी जा सकती है।"

"मैं जानता हूं। समझता हूं---।" अंग्रेज सिंह ने आंखें बंद कर ली--- "लेकिन मैं और पीड़ा सहूंगा तो चीख निकलेगी।"

देवराज चौहान का चेहरा सख्त हो उठा। उसने रजनी को देखा।

"तुम पतीला भरकर पानी गर्म करो और उसमें दो चाकू उबालो।"

रजनी जल्दी से किचन की तरफ बढ़ी।

जगमोहन उसके साथ हो गया।

रजनी ने शकभरी निगाहों से उसे देखा तो जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।

"निश्चिंत रहो। मेरी नजर तुम्हारे जिस्म पर नहीं। तुम्हारी हरकतों पर है। हमें औरतों की इज्जत करनी आती है।"

रजनी ने फिर कुछ नहीं कहा। परन्तु काम के दौरान उसकी घबराहट भरी निगाह, किचन के दरवाजे पर रही, जहां जगमोहन की सतर्क निगाह, उस पर थी कि वह कोई गड़बड़ न कर सके।

जब रजनी खांडेकर गर्म पानी और उसमें उबल रहे दो चाकुओं के साथ कमरे में पहुंची तो पानी का पतीला वहां मौजूद तिपाई पर रखवाया गया। देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकालते हुए रजनी से पूछा।

"घर में फर्स्ट-एड-बॉक्स है?"

"ह...हां।" देवराज चौहान को रिवाल्वर निकालते पाकर रजनी कांपी--- "स-सब कुछ है।"

"लाओ।"

रजनी गई तो जगमोहन भी साथ गया।

तभी अंकल चौड़ा तीखे स्वर में कह उठा।

"तुम गोली निकालोगे?"

"हां। नहीं तो गोली का जहर फैल जाएगा। ये मर जाएगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

"इसे बचाने के चक्कर में हम सब मरेंगे।" अंकल चौड़ा के चेहरे पर कठोरता उभरी--- "यह खुद कह रहा है कि यह पीड़ा नहीं सह सकता। ये हर हाल में चीखेगा। और बाहर, हमें ढूंढ रहे पुलिस वाले चीख को सुनकर हमें घेर लेंगे। फिर जो होगा, तुम समझ ही सकते हो, देवराज चौहान---।"

देवराज चौहान मुस्कुराया।

रजनी फर्स्ट-एड-बॉक्स ले आई। जगमोहन बराबर उसके साथ था।

"तो तुम्हारे ख्याल से इसे मरने दूं?"

"इसके मरने से हम सब बचते हैं तो इसे मरने देना चाहिए।" अंकल चौड़ा ने होंठ भींचकर कहा।

"माटुंगा वाले बंगले में इसने तुम्हारी जान बचाई थी। तुमने ही कहा था।" देवराज चौहान ने जैसे उसे याद दिलाया।

"हां याद है मुझे। लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि, बच गई जान को फिर जाने दूं।"

देवराज चौहान ने सुधाकर बल्ली को देखा।

"तुम इस मामले में क्या कहते हो?"

"मैं कुछ नहीं कहता।" सुधाकर बल्ली ने व्याकुल स्वर में कहा--- "जिसके मन में जो आता है वही करे।"

तभी अंग्रेज सिंह दर्द भरे स्वर में कह उठा।

"अंकल, ठीक ही तो कहता है, मेरे कारण क्यों, सब बे-मौत मरें। मुझे---।"

तभी देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर के दस्ते का वार अंग्रेज सिंह पर हुआ। ठीक कनपटी पर। अंग्रेज सिंह उसी पल गहरी बेहोशी में डूबता चला गया।

रजनी खांडेकर की आंखें जैसे फैल गईं।

"चीखना मत---।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।

रजनी खांडेकर ने अपने होंठों पर हाथ रख लिया।

अंकल चौड़ा की आंखें सिकुड़ी।

"मिलकर काम करना हो तो अपने हर साथी को अपने जैसा समझो। अपने भले के साथ-साथ दूसरों का भी भला सोचो। अगर ऐसी आदत नहीं डालोगे तो कभी भारी तौर पर खता खाओगे।"

अंकल चौड़ा, देवराज चौहान को देखता रहा।

"यह मत भूलो कि इसकी जगह पर तुम भी हो सकते थे।" देवराज चौहान का स्वर तीखा था।

अंकल चौड़ा कुछ नहीं कह सका।

देवराज चौहान ने रिवाल्वर जेब में डाली और रजनी के हाथ से फर्स्ट-एड-बॉक्स लेकर चैक किया। उसमें जरूरत का सामान मौजूद था।

"उठो अब।" देवराज चौहान ने फर्स्ट-एड-बॉक्स में से हाथ में डालने वाले, महीन दस्ताने निकालकर, पहनते हुए अंकल चौड़ा से कहा--- "इसकी पैंट को फाड़ो, वहां पर गोली धंसी है।"

अंकल चौड़ा फौरन उठा। अंग्रेज सिंह को उसने ठीक तरह लिटाकर जख्म के आसपास की सारी पैंट फाड़ दी। देवराज चौहान ने गर्म पानी के पतीले में से दोनों चाकू निकाले और गोली निकालने में व्यस्त हो गया। इस वक्त वहां गहरी खामोशी छा चुकी थी।

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