नगीना पिंजरे में ही नींद में डूबी हुई थी।

पिंजरे की कैद में खड़ी-खड़ी नगीना इतनी थक गयी थी कि अब खड़े रहना उसके लिये कठिन-सा होने लगा तो वो, पिंजरे में ही नीचे बैठ गई थी। पिंजरे का तल इतना लम्बा-चौड़ा नहीं था कि उस पर आराम से लेटा जा सके।

नीचे बैठकर अधलेटी-सी टेक लगाये, गहरी नींद में जा डूबी थी।

फिर जब मध्यम-सी आहट नींद में डूबे मस्तिष्क से टकराई तो उसने आंखें खोलीं।

चंद कदमों के फासले पर नगीना ने बंगा को मौजूद पाया।

नगीना तुरन्त सीधी होकर बैठ गई।

बंगा, नगीना को देखने पिंजरे के पास आया और शांत स्वर में बोला।

“मेरे आने की आहट से तुम्हारी नींद खराब हुई। इसके लिये माफी चाहता हूं।”

नगीना ने जवाब में कुछ नहीं कहा। बंगा को देखती रही।

पिंजरे के हर तरफ, दूर तक पेड़-ही-पेड़ दिखाई दे रहे थे।

खुशनुमा माहौल पैदा करता दूर तक फैला जंगल था। नगीना को कैद में फंसे एक दिन से ज्यादा का वक्त हो चुका था। इतने वक्त में नगीना ने किसी दूसरे को नहीं देखा था, बंगा के अलावा। उसे पिंजरे में कैद करने के बाद बंगा, कल का गया अब आया था।

इस वक्त सूर्य निकले चार-पांच घंटे हो चके थे। सूर्य पूरी तरह नहीं निकला था। हवा चल रही थी। मौसम सुहावना था।

“रात कैसी बीती?” बंगा ने पिंजरे के बाहर जमीन पर बैठते हुए पूछा।

“तुम...तुमने अपना नाम बंगा बताया था ना?” नगीना के चेहरे पर गम्भीरता थी।

“हां।” बंगा ने सहमति में भी सिर हिलाया।

“तुमने कल कहा था कि मेरी जरूरतों का ख्याल रखोगे।”

“हां।” बंगा ने पुनः सिर हिलाया-“सौदागर सिंह का यही आदेश है मेरे को कि कैदी की हर जरूरत का ध्यान रखूँ।”

“क्या ध्यान रख रहे हो मेरा! कल के गये तुम अब आ रहे हो। रात से मुझे भूख लगी है।”

“माफी चाहता हूं। मैंने कल ही वापस आ जाना था परन्तु काम में ऐसा उलझा कि वक्त नहीं मिल पाया लौटने का। अब ऐसा नहीं होगा। जरूरत के वक्त तुम्हें मेरा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा।” बंगा शांत स्वर में कह उठा-“मैं अभी तुम्हारे लिये खाने का इन्तजाम कर देता हूं। तुम-।”

“तुमने कल कहा था कि मैं पिंजरे के बाहर भी घूम सकती हूं।” नगीना बोली।

“हां। लेकिन मेरी नजरों के सामने। मेरी गैर मौजूदगी में नहीं।”

“मैं बाहर घूमना चाहती हूं। पिंजरे में बन्द रहकर थकान-सी महसूस होने लगी है। उसके बाद खाना खाऊंगी।”

“जैसा तुम पसन्द करो।” कहने के साथ ही बंगा उठा और पिंजरे की तरफ हाथ करके कुछ बुदबुदा उठा। तभी पिंजरे में तेज कम्पन हुआ और दूसरे ही पल वहां पिंजरा नहीं था। जाने कहां गायब हो गया था। इस तरह पिंजरे को गायब पाकर, नगीना गहरी सांस लेकर रह गई।

“अब तुम कहीं भी टहल सकती हो।”

नगीना ने कदम बढ़ाया और पास ही चहलकदमी करने लगी।

चेहरे पर सोच के भाव थे। रह-रह कर वो बंगा को देख लेती थी।

जो अपनी जगह पर सामान्य मुद्रा में खड़ा था।

“तुम नहीं टहलोगे मेरे साथ?” नगीना ने पूछा।

“अगर तुम्हें पसन्द हो तो अवश्य टहलूंगा।”

“आओ...एक साथ टहलते हैं।”

बंगा नगीना के पास पहुंचा और फिर दोनों टहलने की मुद्रा में चलने लगे।

“तुम सिर्फ सौदागर सिंह का हुक्म मानते हो?” नगीना कह उठी।

“हां।”

“जबकि सौदागर सिंह को ढाई सौ बरस से शैतान ने कैद कर रखा है।” नगीना का स्वर हर भाव से परे था।

“हां। इन ढाई सौ बरसों में इस बात का मुझे हमेशा दुःख रहा है लेकिन सौदागर सिंह के लिये मैं कुछ नहीं कर सकता।”

“सौदागर सिंह तुम्हारा मालिक है। तुम्हें सौदागर सिंह को शैतान की कैद से आजाद करवाना चाहिये।”

“सौदागर सिंह ने यहां पर मेरी ड्यूटी लगाई थी। अपनी जिम्मेदारी पर छोड़कर में दूसरे काम पर नहीं लग सकता।” बंगा ने नगीना को देखा-“वैसे भी मुझमें इतनी शक्ति नहीं है कि मैं शैतान से टकरा सकूँ। उसका मुकाबला कर सकूँ।”

“कमाल है। ढाई सौ बरस हो गये तुम्हें सौदागर सिंह का हुक्म मानते हुए। सौदागर सिंह कैद में है आर जाने कब तक कैद में रहे। ऐसे मालिक का हुक्म मानने से क्या फायदा?”

“तुम मुझे सौदागर सिंह के खिलाफ भड़का रही हो।”

“नहीं। यूं ही ये बात कर रही हूं। सौदागर सिंह को ऐसी स्थिति में मालिक मानने का क्या फायदा?”

“मेरा मालिक अच्छा है, बेशक वो शैतान की कैद में है। सौदागर सिंह शैतान से कम नहीं, परन्तु इस वक्त वो बेबस है कैद में। आज भी सौदागर सिंह को अपना मालिक कहने में मुझे फक्र है।” बंगा के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी।

“जबकि ढाई सौ बरस से तुमने सौदागर सिंह को देखा नहीं। उससे मिले नहीं।”

“मालिक तो मालिक होता है। बेशक वो पास रहे या दूर।”

टहलते हुए नगीना इधर-उधर भी देखती जा रही थी। हर तरफ घना-गहरा जंगल था। पेड़ों पर बैठी चिड़ियों और पक्षियों की आवाजें रह-रह कर वहां गूंज रही थीं।

“बंगा।” अचानक नगीना ठिठकी और कह उठी-“तुम मुझे कब आजाद करोगे?”

“मेरा काम कैद करना है। कैदी की देखभाल करना है। कैदी को आजाद करना नहीं।”

“तो मुझे आजाद कौन करेगा?”

“सौदागर सिंह के आदेश से तुम आजाद हो सकोगी। अगर तुम्हें मारने का आदेश मिला तो, तुम्हारी जान ले लूंगा।”

“सौदागर सिंह कैसे आदेश देगा? वो तो शैतान की कैद में है। तुम उससे नहीं मिल सकते।”

“सौदागर सिंह की कैद दो सौ चालीस बरस की थी। परन्तु अब दो सौ पचास बरस हो गये हैं उसे कैद में।” बंगा के चेहरे पर मुस्कान उभर आई-“मैं अच्छी तरह जानता हूं कि सौदागर सिंह के पास ऐसी शक्ति है कि ढाई सौ बरस से ज्यादा उसे कैद में नहीं रखा जा सकता।”

“अच्छा। फिर तो सौदागर सिंह को अब तक आजाद हो जाना चाहिये।”

“तुम ठीक कह रही हो।” बंगा ने शांत स्वर में कहा-“सौदागर सिंह अब शैतान की कैद से कभी भी आजाद हो सकता है।”

“शैतान उसे आजाद होने देगा?”

“सौदागर सिंह को कैद से आजाद होने से अब कोई नहीं रोक सकता।” बंगा ने सिर हिलाकर कहा-“सौदागर सिंह को उसकी शक्ति के मुताबिक ढाई सौ बरस से ज्यादा कैद में नहीं रखा जा सकता। शैतान अब सौदागर सिंह को आजाद होने से नहीं रोक सकेगा।”

चेहरे पर गम्भीरता समेटे नगीना टहलती रही।

बंगा उसके साथ टहल रहा था।

“इन ढाई सौ बरसों में शैतान ने तुम्हें कुछ नहीं कहा, जबकि तुम उसके आसमान पर हो।”

“शैतान के आसमान के एक हिस्से पर सौदागर सिंह ने अपना चक्रव्यूह फैला रखा है। आसमान का ये हिस्सा शैतान ने कभी सौदागर सिंह को सौंप दिया था।” बंगा धीमे स्वर में कह उठा-“शैतान यहां पर, कहीं भी आ सकता है। वो किसी को भी तबाह कर सकता है। मार सकता है। वो सौदागर सिंह के सेवकों को जरा भी पसन्द नहीं करता।”

“तो फिर शैतान ने तुम्हारी जान क्यों नहीं ली?”

“शैतान का बस चलता तो वो अब तक सौ बार मेरी जान ले चुका होता।” बंगा ने लम्बी सांस ली-“लेकिन सौदागर सिंह ने अपने सेवकों पर अपनी शक्ति का कवच छोड़ रखा है। जब तक वो कवच हमारे गिर्द है, कोई भी शैतानी शक्ति मेरी जान नहीं ले सकती।”

“मतलब कि शैतान तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।”

“ऐसा ही समझ लो।”

“सौदागर सिंह के और भी सेवक हैं तुम जैसे, इस चक्रव्यूह में?”

“हां।”

“जानकी दास और पार्वती भी सौदागर सिंह के सेवक हैं?”

“हां। और मुझे मालूम है कि उन दोनों ने ही तुम्हें चक्रव्यूह में फंसाया है तम जिस पार्टी द्वारा यहां आई हो। वहां से वही आ सकता है जिन्हें जानकी दास और पार्वती ने घाटी में धकेला हो।” बंगा ने शांत स्वर में कहा।

“सौदागर सिंह ने आने वाले के लिये, फंसाने का रास्ता क्यों बनाया है कि...।”

“वो चक्रव्यूह कैसा, जिसमें धोखे से भरी कैद न हो।”

नगीना ने बंगा को देखा। कहा कुछ नहीं।

दोनों टहलते रहे।

“कुछ खा लो...तुम्हें रात से भूख लगी है।” बंगा ने कहा।

“शक्ति का कवच अपने सेवकों पर छोड़कर, सौदागर सिंह अपने सेवकों को शैतान से बचा सकता है तो वो खुद कैसे शैतान की कैद में जा पहुंचा। सोचो, तो ये हैरानी वाली बात है।” नगीना बोली।

“कोई हैरानी नहीं। शैतान ने धोखे से सौदागर सिंह को अपनी कैद में ले लिया।”

“तुम्हें मालूम है, इस कैद में आने से पहले मैं सौदागर सिंह से मिली थी।”

“अवश्य मिली होगी। मैं जानता हूं शैतान ने सौदागर सिंह को कैद करके चक्रव्यूह के एक प्रवेश द्वार पर रखा है। तुम उसी द्वार से चक्रव्यूह के भीतर आई होगी।” बंगा ने सिर हिलाया।

“जानना ही चाहोगे कि सौदागर सिंह के साथ मेरी क्या बात हुई थी?”

“मालिक के कामों में दखल देना मैं उचित नहीं समझता। इसलिए मुझे, सौदागर सिंह के बारे में तुम्हारे से कुछ नहीं जानना। सौदागर सिंह से मुलाकात होगी तो सारी बातों की जानकारी हो जायेगी मझे।”

नगीना एकाएक ठिठक कर कह उठी।

“तुमने कहा कि सौदागर सिंह की शक्ति का कवच तुम्हारे गिर्द है। ऐसे में शैतानी शक्ति तुम पर असर नहीं करेगी।”

पाठकों, उपन्यास का पूरा मजा लेने के लिये पूर्व प्रकाशित उपन्यास “पहली चोट”, “दूसरी चोट” और “तीसरी चोट” पढ़ना जरूरी है। तीनों उपन्यासों की मुख्य घटनाएं इस प्रकार थीं-पहले “पहली चोट” में अपने कामों में उलझा देवराज चौहान ऐसे हालातों में फंस जाता है कि राकेशनाथ नाम के व्यक्ति से उसे वायदा करना पड़ता है कि वो मोना चौधरी की हत्या कर देगा, परन्तु फकीर बाबा (पेशीराम) आकर देवराज चौहान को रोकता है कि आगामी दो महीनों में वो मोना चौधरी के सामने न पड़े, वरना दोनों में झगड़े की शुरूआत होने पर, सितारों के हिसाब से उसकी मौत निश्चित है। जगमोहन, नगीना, बांकेलाल राठौर, सोहनलाल और रुस्तम राव इसे रोकने की भरपूर कोशिश करते हैं, परन्तु देवराज चौहान मोना चौधरी को खत्म करने के लिये दिल्ली रवाना हो जाता है। तब नगीना देवराज चौहान के साथ हो जाती है। कुछ हादसों के बाद जब फकीर बाबा (पेशीराम) महसूस करता है कि झगड़ा टलने वाला नहीं तो उन्हें कहता है कि अगर मरना ही है तो गुरुवर की सहायता करते हुए जान दो गुरुवर को शैतान का अवतार परेशान कर रहा है। गुरुवर ऐसे यज्ञ में बैठे हैं, जिसे अधूरा छोड़कर उठ नहीं सकते। अपनी सारी शक्तियां बाल में समेट कर कहीं छिपा दी हैं गुरुवर ने और शैतान के अवतार शक्तियों से भरी बाल की तलाश कर रहा है। अगर बाल उसे मिल गई तो शैतान की ताकतें बढ़ जायेंगी। किन्हीं कारणों से, गुरुवर की आज्ञा न होने के कारण, वो स्वयं इन मामलों में दखल नहीं दे सकता। आखिरकार देवराज चौहान और मोना चौधरी व अन्य सब गुरुवर की सहायता के लिये तैयार हो जाते हैं, तो फकीर बाबा उन सबको ना-मालूम जगह पर शैतान के अवतार की शैतानी जमीन पर पहुंचा देता है। जहां मायावी-जादुई-तिलस्मी जिन्न प्रेत-प्रेतनी का बोल-बाला है। “दूसरी चोट” की मुख्य घटनाएं इस प्रकार थीं-शैतान के अवतार की दुनिया में पहुंचकर वे इधर-उधर भटकने लगते हैं। लोग तो वहां मिलते हैं, परन्तु रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं मिलता। तभी एक जगह पर नन्हीं सी चिड़िया घायल पड़ी नजर आती है, जिसमें माचिस की तीली जैसा तीर धंसा है। राधा यूं ही उसे उठाकर तीर निकाल देती है। चिड़िया को एक तरफ रख देती है। तभी वो चिड़िया परी के रूप में बदल जाती है। खुद को भामा परी बताती है और बताती है कि अस्सी बरस पहले कैसे कारी राक्षस ने उसे अपने तीर से घायल कर दिया था, परन्तु चिड़िया का रूप बनाकर बच गई। उधर कारी राक्षस को मालूम हो जाता है कि भामा परी के शरीर में धंसा तीर किसी ने निकाल दिया है, तो वो फौरन वहां आ पहुंचता है। कारी राक्षस के साथ दिलचस्प लड़ाई होती है। कारी राक्षस के खत्म होने पर भामा परी राहत की सांस लेती है, फिर उन सबसे पूछती है कि पृथ्वी लोक छोड़कर तुम मनुष्य यहां क्या कर रहे हो? भामा परी सबका एहसान मानती है कि कारी राक्षस के तीर से उसे अस्सी बरस के बाद इन्हीं मनुष्यों ने मुक्ति दिलाई है। वो मनुष्यों की सहायता करना चाहती है इसी प्रकार कहानी आगे बढ़ती है। भामा परी शैतान के अवतार की दुनिया के भीतरी हिस्से में सबको ले जाती है। वहां तरह-तरह के हादसे और मोगा तथा जिन्न-बाधात से वास्ता पड़ता है। जादुई और मायावी हादसों का मुकाबला करते हैं। खतरनाक रास्तों में फंसते भी हैं। कई तरह की चालबाजियां सामने आती हैं। आखिरकार भामा परी की सहायता से, रोमांच से भरे अथाह खतरे से खेलने के पश्चात वो सब एक ऐसे काला महल में पहुंच जाते हैं, जहां शैतान का अवतार आता रहता है। जहां एक हादसे का शिकार होकर नगीना पहले से ही कैद है। नगीना उन्हें मिल जाती है, परन्तु शैतान का अवतार नहीं मिलता। वो शैतान के हुक्म से गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को तलाश करने नगरी में गया हुआ है। वो परेशान है कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल की तलाश नहीं कर पा रहा। उन सबके साथ मिट्टी के बुत वाली युवती भी है। शैतान के तिलस्म में वो मिट्टी का बुत थी, परन्तु देवराज चौहान

हाथ में दबी शक्तियों से भरी तलवार से उसे छुआ तो वो उसे मनुष्यों जैसा साधारण शरीर प्राप्त हो गया। शरीर में जान आ गई। यही वजह रही कि देवराज चौहान को अपना जीवनदाता मानने लगी। उसके साथ सरजू और दया भी थे। वो शैतान की धरती पर अपने छोटे से गांव के अन्य लोगों के साथ रह रहे थे। कभी पृथ्वी पर, हिन्दुस्तान की जमीन पर उनका गांव था। परन्तु शैतान के अवतार की शैतान दुनिया में खेती-बाड़ी और अनाज पैदा करने के लिये लोगों की जरूरत थी। ऐसे में शैतान ने अपनी शक्ति से सारा गांव ही अपनी धरती पर ले आया था। उन्हें ज्यादा देर इन्तजार न करनी पड़ी। शैतान का अवतार जल्दी ही काला महल में पहुंचा। उसे पहले ही खबर थी कि मनुष्य उसके महल में पहुंचे हुए हैं। देवराज चौहान के हाथ में मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार थी। ऐसे में शैतान ने सबसे पहले देवराज चौहान को मारने के लिये शैतानी चक्र छोड़ा। शैतानी चक्र अपनी प्यास खून से बुझाकर ही लौटता है। यही हुआ। शैतानी चक्र ने देवराज चौहान की गर्दन काट दी। परन्तु तब तक देवराज चौहान अपने हाथ में दबी पवित्र शक्तियों से भरी तलवार, शैतान के अवतार की तरफ फेंक चुका था, जो कि शैतान के अवतार के पेट में धंस कर, पीठ की तरफ से बाहर आ गई थी। शैतानी चक्र से गर्दन कटते ही देवराज चौहान की मौत हो गई। हर कोई स्तब्ध था। उधर पेट में धंसी तलवार को शैतान का अवतार खींचकर बाहर न निकाल सका। क्योंकि वो पवित्र शक्तियों से भरी तलवार थी। उसे शैतान ही अपनी शक्ति से निकाल सकता था। ऐसे में शैतान के पास जाना जरूरी था जो कि जमीन से चार आसमान ऊपर रहता था। शैतान का अवतार वहां से निकलकर महल के खास हिस्से में पहुंचा और एक तरफ मौजूद अजीब-सी मशीन को जाने कहां-कहां से छेड़ा उसने। जाने कौन-कौन सा स्विच दबाया। तभी काला महल को हल्का-सा झटका लगा और वो जमीन छोड़कर आसमान की तरफ बढ़ने लगा। तभी मोना चौधरी, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव वहां आ पहुंचे। शैतान का अवतार निश्चिंत था कि उसकी मौत शैतानी शक्ति वाले हथियार से ही होगी और ऐसा हथियार उन मनुष्यों के पास नहीं है। परन्तु मोना चौधरी के पास प्रेतनी चंदा का शैतानी खंजर था। मोना चौधरी उस शैतानी खंजर से शैतान के अवतार को मार देती है। उसके बाद उन्हें मालूम होता है कि काला महल तो जमीन से बहुत ऊपर आ चुका है और चार आसमान पार, शैतान की जमीन पर ही जाकर रुकेगा। देवराज चौहान की लाश वहां पड़ी थी। अनहोनी पर अनहोनी हो रही थी। काला महल को वापस कैसे ले जाना है। ये नहीं मालूम था उन्हें। तभी काला महल की खिड़कियों से धुंध-सी भीतर प्रवेश करने लगी। मध्यम-सी ठण्डक महसूस हुई। चार आसमान पार जाते काला महल ने पहले आसमान में प्रवेश कर लिया था।

“तीसरी चोट” में आपने पढ़ा कि काला महल में देवराज चौहान की सिर कटी लाश पड़ी है और महल में मोना चौधरी, जगमोहन, भामापरी, सरजू-दया, पारसनाथ, महाजन, राधा, सोहनलाल, रूस्तमराव, मिट्टी के बुत वाली युवती, बांकेलाल राठौर सब मौजूद हैं। नगीना देवराज चौहान की लाश को सामने पाकर पागल हुई पड़ी हैं यूं तो देवराज चौहान की मौत से होश तो सभी गवां चुके हैं। बहरहाल वे लोग नगीना को जबरदस्ती बेड पर लिटा देते हैं कि वो कुछ आराम कर सके। होश में रह सके। तभी पेशीराम (फकीर बाबा) की आत्मा नगीना के मस्तिष्क पर अधिकार जमा कर उससे बात करके बताती है कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल गुरुवर ने इसी महल में छिपा रखी है। सितारों के हिसाब से सिर्फ वो ही उस बाल को प्राप्त कर सकती है। पेशीराम के बताये रास्ते पर चलकर, नगीना गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को काला महल से हासिल कर लेती है। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को वहां देखकर सब हैरान होते हैं। इससे पहले कि वो बाल के बारे में कुछ सोच-समझ पाते कि तभी काली बिल्ली प्रकट होती है और उस बाल को अपने कब्जे में ले लेती है। वो काली बिल्ली मोना चौधरी के पूर्व जन्म की बिल्ली है जो कि गुरुवर की शरण में जा चुकी है और गुरुवर से विद्याएं प्राप्त कर रही है। अब वो सिर्फ गुरुवर का हुक्म मानती है। वो बताती है कि गुरुवर ने बाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस पर छोड़ रखी है। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल पास होने पर भी वो खास सहायता नहीं करती किसी की। क्योंकि गुरुवर ने शक्तियां इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दे रखी। उधर पेशीराम की आत्मा नगीना को बताती है कि शैतान के आसमान पर आत्माओं के कैद खाने में देवराज चौहान की आत्मा पहुंच चुकी है। अगर आत्मा को वहां से लाया जाये तो देवराज चौहान को पुनः जीवित किया जा सकता है। ये बात नगीना बिल्ली से करती है तो बिल्ली कहती है कि ऐसा हो सकता है। अगर देवा की आत्मा को लाया जाये तो, वो देवा को जिन्दा कर देगी। ये जानते ही सब देवराज चौहान की आत्मा को लाने के लिये तैयार हो जाते हैं। परन्तु सितारों के हिसाब से नगीना का जाना अधिक सुरक्षित था। वे नगीना से पूछते हैं कि वो किससे बात कर रही है, परन्तु पेशीराम के बारे में वो किसी को नहीं बताती। पेशीराम की आत्मा के मना कर रखा होता है, बताने को। काला महल शैतान के आसमान पर पहुंच जाता है। पेशीराम की आत्मा, नगीना को लेकर देवराज चौहान की आत्मा लेने चल पड़ती है। काली बिल्ली अपनी ताकत से नगीना को अदृश्य कर देती है कि कोई उसे न देखे और खतरा कम आये। रास्ते में एक जगह कैद सौदागर सिंह मिलता है, जिसे शैतान ने कैद कर रखा है और जो कभी गुरुवर का शिष्य था। वो पवित्र और शैतानी शक्तियों का मालिक है। परन्तु शैतान ने धोखे से उसे कैद कर रखा है और उसे तैयार करने की चिंता में है कि वो उसके लिए काम करे। वो नगीना से कहता है कि देवराज चौहान की आत्मा को ला देगा। उनके सारे खतरे दूर कर देगा। उसे कैद से आजाद करा दिया जाये। परन्तु पेशीराम की आत्मा उसे कैद से आजाद करने के लिए इन्कार कर देती है कि वो विश्वास के काबिल नहीं। आजाद होकर अपने वायदे पूरे नहीं करेगा और गुरुवर के खिलाफ कोई काम न कर दे। वास्तव में वो ताकतवर शक्तियों का मालिक है। पेशीराम की आत्मा, नगीना को सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में ले जाता है, परन्तु देवराज चौहान की आत्मा तक पहुंचने से पहले ही नगीना चक्रव्यूह के धोखे में कैद होकर रह जाती है। उधर बाकी सब शैतान के आसमान पर घूमते, शैतान की चीजों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक जगह शैतान का भाषण हो रहा है तो वो सब उस भाषण को सुनते हैं। शैतान को पकड़ना चाहते हैं। उधर शैतान मौत पा चुके अपने अवतार द्रोणा और प्रेतनी चंदा को जिन्दा करता है कि धरती से आये मनुष्यों को खत्म कर दिया जाये। चूंकि महल में गुरुवर की शक्तियां मौजूद हैं, इसलिये कैसी भी शैतानी शक्ति भीतर नहीं प्रवेश कर पाती तो शैतान, महामाया को याद करता है। जो कि शैतान से एक पलड़ा ऊपर है वो शैतान की सहायता करती है और अपनी शक्तियों से काला महल को जला देना चाहती है, परन्तु वहां गुरुवर की शक्तियां होने की वजह से काला महल को कोई असर नहीं हो पाता। नगीना के कैद में फंसने के बाद, पेशीराम की आत्मा, मोना चौधरी के पास गई और उसे नगीना के चक्रव्यूह के कैद में फंस जाने के बारे में बताकर कहा कि वो चले चक्रव्यूह में देव की आत्मा लेने। वरना पन्द्रह दिनों के भीतर महामाया की शक्तियां काला महल को जलाकर राख कर देगी और उसमें मौजूद गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल भी नष्ट हो जायेगी। मोना चौधरी, पेशीराम की आत्मा के साथ सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में चली जाती है। और अब आगे, महामाया की माया में।

“हां। यही कहा मैंने।”

“मतलब कि पवित्र शक्ति तुम्हारी जान ले सकती है।”

“अवश्य-। लेकिन शैतान के आसमान पर पवित्र शक्ति भला कहां होगी?”

नगीना गहरी सांस लेकर रह गई। उसे मुद्रानाथ की तलवार का ध्यान आया जिसे कि आखिरी वार उसने रुस्तम राव के पास देखा था। अगर वो तलवार उसके पास होती तो बंगा को मारकर, उसकी कैद से आजाद हो सकती थी।

उनके बीच की खामोशी लम्बी होने लगी तो बंगा ने पूछा।

“मैंने अभी तक तुमसे नहीं पूछा कि तुम कौन हो और चक्रव्यूह में क्यों प्रवेश किया?”

“भूख लग रही है।” नगीना बोली-“तुम्हारे सवाल का जवाब खाने के साथ दूंगी...।”

बंगा ने सिर हिलाया और आंखें बन्द करके आसमान की तरफ हाथ किया और होंठो ही होंठों में कुछ बुदबुदाया।

पलक झपकते ही नगीना के सामने खाने से सजी-सजाई टेबल और कुर्सी नजर आने लगी। टेबल पर कई तरह के व्यंजन मौजूद थे। उनकी महक सांसों से टकराने लगी थी।

एक ही कुर्सी देखकर नगीना बोली।

“तुमने अपने लिये कुर्सी नहीं मंगवाई।”

“जरूरत नहीं। मुझे खाना नहीं खाना। तुम खाओ।”

☐☐☐

नगीना ने खाने के दौरान बताया कि वो कैसे पृथ्वी से चार आसमान पार, शैतान के आसमान पर पहुंचा। रास्ते में क्या हुआ और अब वो देवराज चौहान की आत्मा लेने जा रही है।

खामोश बैठा बंगा, उसकी बात सुनता रहा।

“गुरुवर! हां, सुन रखा है गुरुवर के बारे में।”...नगीना के शब्द पूरे होने पर बंगा कह उठा-“सौदागर सिंह ने पवित्र शक्तियों की विद्या गुरुवर से ही पाई थी। गुरुवर की बहुत इज्जत करता है सौदागर सिंह...।”

“इज्जत करता है?” बोली नगीना-“सौदागर सिंह ने तो गुरुवर को धोखा दिया और शैतान से जा मिला था।”

“वो मैं नहीं जानता। मुझे तो इतना मालूम है कि सौदागर सिंह, गुरुवर की इज्जत करता है।”

नगीना ने कुछ नहीं कहा।

“तुम चाहती तो सौदागर सिंह को शैतान की कैद से आजाद कर सकती थीं। वो, जो शैतानी शक्तियों का मालिक न हो-वो सौदागर सिंह को आसानी से कैद से मुक्ति दिला सकता है।” बंगा कह उठा।

“मालूम है सौदागर सिंह ने बताया था।”

“बताया था?” बंगा के होंठों से निकला।

“हां। सौदागर सिंह ने मुझे ये भी कहा था कि उसे आजाद करवा दूं-।”

“तो तुमने सौदागर सिंह की बात नहीं मानी?”

“नहीं-।”

“क्यों?”

जवाब में नगीना होंठ भींचकर रह गई। (ये सब जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “तीसरी चोट”)

“जवाब दो।”

नगीना ने कुछ नहीं कहा।

“मेरे ख्याल से अब तुम बच नहीं सकोगी।” बंगा ने बेहद शांत आवाज में कहा- “सौदागर सिंह के कहने पर भी तुमने उसे आजाद नहीं किया कैद से। ऐसे में सौदागर सिंह, तुम्हें छोड़ने के लिये, मुझे क्यों कहेगा?”

नगीना ने गम्भीर निगाहों से बंगा को देखा।

“तुम चाहो तो मुझे आजाद कर सकते हो।”

“लेकिन मैं ऐसा क्यों चाहूंगा?”

नगीना कुछ कह न सकी। वो खाना खा चुकी थी।

“चलो। पिंजरे में चलो।” बंगा बोला-“अभी मुझे कई काम करने हैं।”

नगीना कुर्सी से उठी।

उसके उठते ही टेबल और कुर्सी इस तरह गायब हो गईं, जैसे हवा में घुल गई हो।

“फिर कब आओगे?” नगीना दूर नजर आ रहे पिंजरे की तरफ बढ़ने लगी।

“शाम को अंधेरा होने पर आऊंगा। तुम्हें खाना देने।”

“ये सब कब तक चलेगा बंगा?”

“जब तक सौदागर सिंह शैतान की कैद से आजाद नहीं हो जाता और मुझे, तुम्हारे बारे में कोई नया हुक्म नहीं देता।”

☐☐☐

पेशीराम की आत्मा, मोना चौधरी को सौदागर सिंह के बारे में बता चुकी थी। ये भी बता चुकी थी कि नगीना कैसे सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में जा फंसी थी।

सब कुछ सुनने के बाद मोना चौधरी गम्भीर-सी, गहरी सोच में जा डूबी। वो तेजी से आगे बढ़ती जा रही थी। पेशीराम की आत्मा के बताये रास्ते पर चलकर, वो आधे से ज्यादा रास्ता तय कर चुकी थी। कुछ देर बाद वो जगह आ जानी थी, जहां सौदागर सिंह कैद में पड़ा था।

“चुप क्यों हो गई मिन्नो?” पेशीराम के शब्दों की सरसराहट, मोना चौधरी के मस्तिष्क से टकराई।

“सोच रही हूं पेशीराम।” मोना चोधरी के होंठ हिले।

“क्या?” पेशीराम के शब्दों का एहसास हुआ मोना चौधरी के मस्तिष्क को।

“सौदागर सिंह को कैद से आजाद करवाना गलत नहीं होगा।”

मोना चौधरी के होंठ हिले।

“क्या कह रही हो मिन्नो?”

“गलत कह दिया क्या?”

“हां।” पेशीराम के आते शब्दों में परेशानी-सी भर आई थी-“गलत कहा। सौदागर सिंह के कैद से आजाद होने का मतलब बहुत खतरनाक होगा। वो हम सबके लिये, लोगों के लिये भारी खतरा बन सकता है। शैतान के साथ मिल गया तो, सौदागर सिंह बड़े से बड़ा कहर ढा देगा। उस पर काबू पाना कठिन होगा। गुरुवर का साथ तो देगा नहीं सौदागर सिंह । देना चाहेगा भी तो शायद गुरुवर उसे स्वीकार न करें। क्योंकि गुरुवर, सौदागर सिंह से एक बार धोखा खा चुके हैं। और अगर सौदागर सिंह ने अपने तौर पर कुछ करना चाहा तो भी मुसीबत खड़ी हो जायेगी। क्योंकि सौदागर सिंह गुरुवर की बताई विद्याओं का भी मालिक है और शैतान से भी उसने शैतानी विद्या सीखी है। ऐसे में सौदागर सिंह ज्यादा ताकतवर है। गुरुवर और शैतान मिलकर तो सौदागर सिंह पर विजय पा सकते हैं। उनका अलग-अलग रहकर सौदागर सिंह को जीत पाना आसान नहीं।”

“पागलों वाली बातें कर रहे हो पेशीराम।” मोना चौधरी के होंठों से बुदबुदाहट निकली-“जिस तरह दो किनारे नहीं मिल सकते, उसी तरह गुरुवर और शैतान एक ही सवारी पर सवार नहीं हो सकते।”

“मैंने गुरुवर और शैतान के मिलने का उदाहरण दिया है। सौदागर सिंह के पास शैतानी और पवित्र विद्याओं का ज्ञान है। यानि कि उस पर काबू पाना असम्भव-सी बात है किसी एक के लिये...।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये।

“तुम्हारा मतलब कि सौदागर सिंह शैतान या गुरुवर को जब चाहे मार सकता है।”

“नहीं मिन्नो। मेरी बात का ये मतलब नहीं था।” पेशीराम के शब्दों का एहसास मोना चौधरी के मस्तिष्क को हो रहा था-“ये दूसरी बात है कि सौदागर सिंह के पास दोनों विद्याओं का ज्ञान है। परन्तु गुरुवर की और शैतान की जान लेने में अपनी मनमानी नहीं कर सकता क्योंकि गुरुवर और शैतान के पास खुद को बचाने की शक्तियां हैं।”

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।

“तुम सौदागर सिंह को आजाद करने के लिये क्यों बोलीं?”

“पेशीराम...।” मोना चौधरी के होंठ हिले-“तुमने बताया कि सौदागर सिंह अब कभी भी आजाद हो सकता है। उसे ढाई सौ बरस से ज्यादा कैद नहीं रखा जा सकता। और ढाई सौ बरस पूरे हो चुके हैं। वो कभी भी आजाद हो सकता है। इससे पहले कि वो स्वयं आजाद हो, उसे आजाद करके उस पर अहसान लादा जा सकता है।”

“अहसान माने और सौदागर सिंह? नहीं, जो गुरुवर को धोखा दे सकता है, वो भला किसका अहसान मानेगा।”

“कोशिश करके देख लेने में क्या हर्ज है। कम-से-कम इसमें नुकसान इसलिये नहीं है कि सौदागर सिंह ने कभी भी आजाद हो जाना है।” मोना चौधरी सोच भरे धीमे स्वर में कह उठी।

पेशीराम की आत्मा की तरफ से कोई सरसराहट, मस्तिष्क की तरंगों से नहीं टकराई। मोना चौधरी कदम आगे बढ़ाती रही।

“मिन्नो...।”

“कहो पेशीराम...।”

“मेरे ख्याल में तुम सौदागर सिंह को मत छेड़ो। हम उसे आजाद नहीं करवायेंगे। ऐसा होना बेहद खतरनाक होगा। आजाद होने पर सौदागर सिंह ने कुछ कर दिया तो गुरुवर भी नाराज...।”

“पेशीराम।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“ये शैतान का आसमान है। यहां की बातों से, मेरी किसी हरकत से, गुरुवर को नाराज नहीं होना चाहिये। सौदागर सिंह कभी यहां आजाद था तो अब कैद है। इस बात से गुरुवर को क्या लेना-देना कि मैंने सौदागर सिंह को आजाद कर दिया है। सौदागर सिंह तो वैसे भी किसी भी समय आजाद होने वाला है।”

“मेरे ख्याल में तुम्हारा इस मामले में दखल देना ठीक नहीं।”

“देखेंगे।” मोना चौधरी ने पेशीराम की आत्मा की बात काटी-“पहले सौदागर से मिल तो लूं। उसे देखूँ तो सही।”

☐☐☐

वो कच्चा रास्ता, उस बड़े मकान पर जाकर खत्म हुआ।

मोना चौधरी ठिठकी।

“मिन्नो।” पेशीराम की आवाज ने उसके मस्तिष्क को छुआ-“अब तुम्हें सावधानी से काम लेना होगा।”

“कैसे?”

“इस मकान के दरवाजे के भीतर जाते ही आंगन में तुम्हें पांच रास्ते अलग-अलग दिशाओं में जाते दिखाई देंगे। हर रास्ते का अलग रंग होगा। तुमने सिर्फ सफेद रास्ते पर आगे बढ़ना है।”

“ठीक है।” कहने के साथ ही मोना चौधरी आगे बढ़ी और मकान के गेट से भीतर प्रवेश कर गई।

तभी ठिठक गई।

सामने ही पांच रास्ते अलग-अलग दिशाओं में जाते नजर आये।

अलग-अलग रंगों में डूबे चार रास्ते बिलकुल साफ-सुथरे अलग-अलग रास्तों की तरफ जाते नजर आ रहे थे। पांचवां रास्ता सफेद-सा था। वो टूटा-फूटा था। कोई वहां पहुंचे तो कम-से-कम आगे बढ़ने के लिये उस रास्ते को नहीं चुनेगा। उस पर झाड़ियां और पौधे भी खड़े थे। छोटे-बड़े खड्डे भी थे।

“नगीना भी इसी रास्ते से आगे बढ़ी थी?” मोना चौधरी ने पूछा।

“हां...।”

मोना चौधरी ने पांव आगे बढ़ाया और सफेद रास्ते पर चल पड़ी। टूटा-फूटा और झाड़ियों से भरा ज्यादा लम्बा नहीं था वो रास्ता। रास्ता एक बरामदे पर जाकर खत्म हो गया।

अन्य रास्ते भी उसी रास्ते पर आकर खत्म हो रहे थे।

मोना चौधरी ठिठकी। आसपास देखा। सुनसानी थी हर तरफ। कोई भी नजर नहीं आ रहा था।

“पेशीराम।” मोना चौधरी के होंठ हिले-“अब भीतर जाऊं?”

“हां। लेकिन सावधान रहना। भीतर शैतान के आदमी मौजूद हैं। पहरेदारी करते हैं इस जगह की। नगीना तो अदृश्य थी। इसलिये पहरेदार उसे नहीं देख पाये थे। लेकिन तुम पहरेदारों की नजरों से नहीं बच सकतीं। उनसे टकराना पड़ेगा। बरामदे के बाद तीन कमरे तुम्हें पार करने हैं। इस काम में सफल होना है तुमने वरना यहीं समाप्त होकर रह जाओगी।”

मोना चौधरी ने हाथ में दबी मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार को देखा। होंठ भिंच चुके थे उसके।

“मैं सफल रहूंगी पेशीराम। मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार मेरे पास है।”

“भीतर मौजूद लोगों के पास शैतानी शक्ति है।” पेशीराम के शब्द, मोना चौधरी के मस्तिष्क को महसूस हुआ।

मोना चौधरी आगे बढ़ी। बरामदे में पांव रखा और उसके कदम सामने नजर आ रहे दरवाजे की तरफ उठ गये।

दरवाजे के पास पहुंचने पर भीतर से आती मध्यम सी आवाजें कानों में पड़ने लगी थीं।

“ये पहरेदार, शैतान की किस चीज की पहरेदारी कर रहे हैं?” मोना चौधरी ने पूछा।

“सौदागर सिंह की। शैतान ने सौदागर सिंह को यहीं पर कैद कर रखा है और एक रास्ता यहां से ही सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में जाता है। जो भी इधर से चक्रव्यूह में प्रवेश करेगा। सौदागर सिंह से उसकी अवश्य मुलाकात होगी।”

“ओह!” तभी मोना चौधरी दरवाजे के पास जाकर ठिठकी, फिर कमरे में प्रवेश कर गई।

कमरे में तीन कुर्सियों के अलावा कुछ नहीं था। एक कुर्सी पर, एक व्यक्ति बैठा, तलवार को साफ कर रहा था। उसकी निगाह मोना चौधरी पर पड़ी तो माथे पर बल दिखाई देने लगे।

“कौन हो तुम?” उसने तलवार साफ करना रोककर पूछा।

“शैतान ने भेजा है मुझे....।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

“शैतान ने?” उसके स्वर में उलझन आ गई-“क्यों भेजा है? मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।”

“शैतान अपने खास कामों में ही मेरा इस्तेमाल करता है।” मोना चौधरी ने उसे देखकर सिर हिलाते हुए कहा-“शैतान का कहना है कि यहाँ के पहरेदार अकसर लापरवाह रहते हैं। अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर रहे।”

“गलत है। हम अपने काम के प्रति पूरी तरह ईमानदार हैं।”

“तो फिर शैतान ऐसा क्यों कहता है?” मोना चौधरी ने अपनी आवाज में सख्ती भर ली।

“शैतान को गलतफहमी हुई है। किसी ने उसे हमारे खिलाफ कह दिया है।”

“ये बात तुम शैतान के सामने कह सकते हो।” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।

उस व्यक्ति ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। कहा कुछ नहीं।

“चलो मेरे साथ। मैं यहां के बाकी के पहरेदारों को देखना चाहती हूं कि वो क्या कर रहे हैं।” मोना चौधरी ने अपने हाथ में दबी तलवार को थपथपाया-“वापस जाकर शैतान को यहां के हालात बताने हैं।”

वो बिना कुछ कहे मोना चौधरी के साथ चल पड़ा।

दूसरे कमरे में प्रवेश करते ही मोना चौधरी और पहरेदार ठिठका।

यहां तीन व्यक्ति कुर्सियों पर बैठे थे। उनके सामने चांदी का टेबल मौजूद था। तीनों हरे रंग का मादक पेय पदार्थ गिलासों में भर कर पी रहे थे। हंस रहे थे। वे नशे में लग रहे थे।

“तो तुम लोग यहां मादक पदार्थ पी रहे हो। पहरेदारी नहीं कर रहे।” मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी।

तीनों ने नशे से भरी आंखों से उसे देखा।

“मादक पदार्थ पीकर, पहरेदारी नहीं होती क्या?” हंसकर एक ने कहा।

“सुन्दरी तो अच्छी लग रही है।” दूसरा मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखता कह उठा।

मोना चौधरी के साथ आया पहरेदार घबरा कर कह उठा।

“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो। शैतान ने भेजा है इसे। हमारी पहरेदारी को अपनी निगाह से देखने आई है।”

तीनों को कुछ होश आया।

“शैतान ने भेजा है?”

“हम-हम तो ठीक तरह से पहरेदारी कर रहे हैं।” दूसरा बोला।

“वो तो मैंने देख ही लिया है।” मोना चौधरी ने अपनी आवाज को सख्त कर लिया-“इसका मतलब शैतान का कहना ठीक था कि तुम लोग इस रास्ते की पहरेदारी ठीक तरह से नहीं कर रहे। शैतान से जाकर बताऊंगी यहां के हालात...।”

“ऐसा मत करो। हम ठीक से काम कर रहे हैं। द्रव्य मादक पदार्थ को तो हमने आज ही हाथ लगाया है।”

“खामोश रहो।” कहने के साथ ही मोना चौधरी सामने दिखाई दे रहे दरवाजे की तरफ बढ़ी।

पहले वाला पहरेदार पुनः उसके साथ हो गया।

तीनों अपनी जगह पर घबराये से बैठे थे।

तीसरे कमरे में प्रवेश करते ही मोना चौधरी ठिठकी। साथ चल रहा पहरेदार भी ठिठक गया।

इस कमरे में शोर-सा उठा हुआ था।

चार लोग थे वहां जो फर्श पर खिंची रेखाओं पर अजीब से पत्थरों के साथ खेल खेल रहे थे। रह-रह कर वो खुशी से चीख उठते। आस-पास का उन्हें जरा भी होश नहीं था।

“ये किसे ले आया।” एक की निगाह मोना चौधरी और साथी पहरेदार पर पड़ी-“शैतान ने तो नहीं भेजा इसे हमारा दिल बहलाने के लिये कि यहां पड़े-पड़े हम थकान महसूस करने लगे है।”

“शैता-शैतान ने भेजा है इसे।” पहरेदार के होंठों से निकला।

“फिर तो बढ़िया हो गया।” उसने मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखा-”अच्छा वक्त कटेगा और...।”

“होश में आओ।” मोना चौधरी के साथ वाले पहरेदार ने दांत भींचकर कहा-“शैतान ने इसे हम पर नजर रखने भेजा है। ये जाकर शैतान को बताएगी कि हम यहां पर क्या कर रहे थे, जब ये आई...।”

“ओह...।”

तभी दूसरा पहरेदार कह उठा।

“तो हम यहां गलत क्या कर रहे हैं। पहरेदारी तो कर ही रहे हैं। हमारे होते हए कोई भीतर गया हो तो कह दो। हम अपना काम ठीक ढंग से कर रहे हैं। दिन हो या रात, हर वक्त यहीं रहते हैं।”

“पहरेदारी कर रहे हो तो तुम लोगों के हथियार कहां हैं?” मोना चौधरी ने दांत भींचकर पूछा।

“वो रहे।” कमरे के कोने में पड़ी तलवारों और कटारों की तरफ दूसरे ने इशारा किया।

“खूब।” मोना चौधरी ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा-“पहरेदारी कर रहे हो या हथियारों को कोने में रखकर, सिर झुकाये खेल में व्यस्त हो? क्या ये बात शैतान को कह सकते हो?”

चारों के होंठों से कोई शब्द न निकला।

वे कुछ घबरा गये थे।

“शैतान से कुछ मत कहना। फिर हम कभी नहीं खेलेंगे।”

तभी मोना चौधरी के मस्तिष्क से पेशीराम की आवाज छुई।

“उस बंद दरवाजे की तरफ बढ़ो। हमने उधर जाना है।”

मोना चौधरी क्षणिक खामोशी के बाद कह उठी।

“मुझे सोचना पड़ेगा कि शैतान से क्या कहना है।” मोना चौधरी ने गम्भीर शांत स्वर में कहा-“सच बोला तो शैतान तुम लोगों को माफ नहीं करेगा। झूठ मैं कह नहीं सकती। सोचना पड़ेगा कि शैतान को क्या कहना है।” इसके साथ ही मोना चौधरी बंद दरवाजे की तरफ बढ़ते कह उठी-“मैं आगे नजर मारकर आती हूं। तुम सब सतर्क रहकर पहरा दो। शैतान को लापरवाही पसन्द नहीं।” पास पहुंचकर दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गई।

“दरवाजा बंद करो।” मस्तिष्क में पेशीराम की सरसराहट उभरी-।

मोना चौधरी ने पलटकर फौरन दरवाजा बंद किया, फिर कमरे में नजरें दौड़ाईं।

ये सजा-सजाया खूबसूरत कमरा था। दीवारों पर पेंटिग्स लगी थीं। कमरे में बीचोबीच बड़ा-सा डबलबेड मौजूद था। उस पर खूबसूरत-सी चादर बिछी थी। कमरे में अन्य कोई दरवाजा नहीं था।

“यहां तो कोई भी नहीं है और कोई रास्ता भी नहीं है पेशीराम।”

“अभी हर बात समझ जाओगी मिन्नो।” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क को छुई।

“कैसे?”

“बेड पर पीठ के बल लेट जाओ।”

“वो क्यों?”

“सवाल मत करो मिन्नो। जो कहा है करती जाओ।”

दो क्षणों की सोच के बाद मोना चौधरी आगे बढ़ी और तलवार मजबूती से थामे बेड पर चढ़ी और पीठ के बल लेट गई। इसी पल उसका तलवार वाला हाथ फुर्ती से उठा। दूसरे ही पल मोना चौधरी का हाथ रुका। चेहरे पर अजीब से भाव उभर आये।

दरअसल छत पर जबाड़ा फाड़े शेर बना था। इस तरह कि जो बेड पर लेटे, उसे लगे कि शेर जीवित है और उस पर झपटने जा रहा है। तभी मोना चौधरी का तलवार चाला हाथ उठ गया था। परन्तु जब एहसास हुआ कि शेर असली नहीं है तो गहरी सांस ले कर तलवार वाला हाथ नीचे कर लिया।

मोना चौधरी ने अपने मस्तिष्क की उठती तरंगों पर काबू पाया।

“मिन्नो, तलवार की नोक को चादर पर मारो।” पेशीराम की आवाज मोना चौधरी को अपने मस्तिष्क में महसूस हुई।

“क्या कर रहे हो पेशीराम?”

“जो कहा है वो करती जाओ। वक्त बरबाद मत करो।”

(प्यारे पाठको-पूर्व प्रकाशित उपन्यास “तीसरी चोट” में इस बात का जिक्र है कि कैसे नगीना इस रास्ते को तय करके, सौदागर सिंह तक पहुंची। ये सब आप “तीसरी चोट” में पढ़ चुके हैं। हम समय बरबाद न करते हुए आगे बढ़ते हैं। तो मोना चौधरी ये रास्ता तय करके, वहां जा पहुंची, जहां शैतान ने सौदागर सिंह को कैद कर रखा था।”)

मोना चौधरी ने खुद को ऐसे कमरे में पाया जहां तीव्र प्रकाश फैला आंखों को चौंधिया-सा रहा था। दीवारों पर कोई सजावट नहीं थी। अजीब-सी तरावट से भरी महक वहां फैली थी। शांत और सुकून देने वाला माहौल था यहां।

और मोना चौधरी की निगाह उस बक्से पर टिक चुकी थी, जो कमरे के बीचो-बीच मौजूद था।

“ये...ये बक्सा क्या है पेशीराम?”

“इसमें सौदागर सिंह कैद है।”

“इसके भीतर?”

“हां। आगे बढ़ो और बक्से का ढक्कन खोलो।”

मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

“ये कैसे हो सकता है पेशीराम।” मोना चौधरी के होंठों से निकला-“सौदागर सिंह तो तुमने बताया था कि, शैतानी और पवित्र दोनों शक्तियों का मालिक है। वो ताकतवर है। फिर इस बक्से में कैसे कैद हो गया। वो तो...।”

पेशीराम ने मोना चौधरी को वो बातें भी बताईं, जिससे मोना चौधरी अपने सवालों का जवाब पा गई। (“ये सब बातें पूर्व प्रकाशित उपन्यास “तीसरी चोट” में आप पढ़ चुके हैं।”)

पेशीराम से मोना चौधरी को हालातों का पूर्ण ज्ञान हुआ।

“माना कि गुरुवर को धोखा देने की गलती सौदागर सिंह से हो चुकी है। लेकिन वो इतना बुरा नहीं है कि जितना उसे माना है जा रहा है। इन बातों से मैंने तो अभी तक यही महसूस किया है।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“गलत महसूस किया तुमने। सौदागर सिंह जैसा कमीना, मैंने दूसरा नहीं देखा-।” पेशीराम की आत्मा की आवाज को मोना चौधरी का मस्तिष्क महसूस कर रहा था- “सौदागर सिंह हर बात में, सौदा देखता है कि कहाँ उसे फायदा है। बात करके देखोगी तो समझ जाजोगी। आगे बढ़ो और बक्से का कुण्डा खोलकर, ढक्कन उठाओ।”

मोना चौधरी चेहरे पर गम्भीरता के भाव ओढ़े आगे बढ़ी और कुण्डा हटाकर ढक्कन खोल दिया।

बक्से के भीतर सौदागर सिंह शांत अवस्था में लेटा दिखाई दिया मोना चौधरी को। दोनों हाथ पेट पर रखे हुए थे। पलके बराबर झपक रही थी। सिर के बाल छोटे थे। पतली सी मूंछें। अंगुलियों में कई तरह की चमकदार अंगुठियाँ पहन रखी थी। नगीने चमक मार रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे वे अभी-अभी लेटी हो। (पाठक बन्धु इसी हाल में सौदागर सिंह से “तीसरी चोट” में मिल चुके है।)

मोना चौधरी आंखें सिकोड़े सौदागर सिंह को देखती रही।

इस बीच कई बार सौदागर सिंह से नजरें भी मिलीं।

तभी सौदागर सिंह के होंठ मुस्कराहट के रूप में फैलते पाकर मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“फिर आया तू पेशीराम।” सौदागर सिंह व्यंग्य से कह उठा-“नगीना को बंगा के पास पहुंचा दिया। अब मिन्नो को मेरे चक्रव्यूह में फंसायेगा। कब तक दूसरों को मेरे चक्रव्यूह में फंसाता रहेगा।”

इससे पहले मोना चौधरी कुछ कहती, मोना चौधरी को अपने हाथ-पांव बेकाबू से होते महसूस हुए। पेशीराम की आत्मा ने मोना चौधरी के मस्तिष्क पर काबू पा लिया था। मोना चौधरी सब कुछ देख, महसूस कर रही थी। परन्तु उसका अपना बस कहीं भी नहीं चल पा रहा था। अजीब-सी स्थिति में महसूस किया खुद को। परन्तु उसे कोई परेशानी नहीं हुई।

“बोलता क्यों नहीं?” सौदागर के होंठ पुनः हिले।

“नगीना को तूने ही अपने चक्रव्यूह में फंसाया है।” मोना चौधरी के मुंह से शिकला।

“मैंने नहीं, मेरे पहरेदारों में। तुम लोग मेरे चक्रव्यूह में सेंध लगाओगे तो मेरे पहरेदार क्यों छोड़ेंगे तुम्हें।”

“नगीना को आजाद कर दो सौदागर सिंह-।”

“अवश्य-।” सौदागर सिंह मुस्करा पड़ा-“तुम मुझे आजाद करो, मैं नगीना को आजाद कर देता हूं।”

मोना-चौधरी होंठ भींचे सौदागर सिंह को बक्से में लेटे देखती रही।

सौदागर सिंह हौले से हंसा।

“अगर तुम मुझे आजाद कर दो तो मैं देवा की आत्मा भी तुम्हारे हवाले कर दूंगा। वरना तुम जिसे भी लाओगे, देवा की आत्मा लाने के लिये, वो मेरे चक्रव्यूह में फंसता जायेगा। मेरे पहरेदार उसे नहीं छोड़ेंगे।”

“तुम अच्छी तरह जानते हो सौदागर सिंह कि मैं तुम्हें आजाद नहीं करूंगा। तुम शैतान की कैद में ही रहो तो बेहतर है।”

“डरता है मेरे से-।” व्यंग्य से कह उठा सौदागर सिंह।

“तुमसे तो शैतान भी परहेज करता है तो मेरी क्या हैसियत है।” मोना चौधरी कह उठी-“अगर तुम भला काम करने की इच्छा रखते हो तो देवा की आत्मा तक पहुंचने का आसान रास्ता बता दो। या फिर हमें वहां पहुंचा-।”

“मेरे को आजाद करोगे तो सब-कुछ मिलेगा।” सौदागर फिर हंसा।

“नहीं। मैं तुम्हें कैद से आजाद नहीं करूंगा।”

तभी बक्सा धीरे-धीरे हवा में उठने लगा और पांच फीट ऊपर पहुंच कर हवा में स्थिर हो गया। फर्श के जिस हिस्से पर बक्सा पड़ा था, वहां अब नीचे जाती सीढ़ियां नजर आने लगी थीं।

“जा पेशीराम जा-मिन्नो को ले जा मेरे चक्रव्यूह में। ये भी मेरे चक्रव्यूह की कैद में जा फंसेगी।”

तभी मोना चौधरी ने अपने मस्तिष्क में हल्का-सा झटका महसूस किया। दूसरे ही पल में वो खुद को सामान्य महसूस करने लगी। पेशीराम की आत्मा का शिकंजा उसके मस्तिष्क से हट चुका था। पेशीराम और सौदागर सिंह की बातें सुन ली थीं उसने।

“आगे बढ़ मिन्नो। सीढ़ियों से नीचे उतर-।”

पेशीराम के शब्द मोना चौधरी ने अपने मस्तिष्क में महसूस किये। मोना चौधरी की निगाह बक्से में लेटे पेशीराम पर गई।

“पेशीराम।” मोना चौधरी के होंठ खुले-“सौदागर सिंह को आजाद कैसे किया जा सकता है?”

“मंत्र पढ़ने के बाद, शैतान के बाल को तोड़ना होगा, जो कि इसकी कलाइयों में लिपटा है। जो शैतानी शक्ति का मालिक न हो, वो ही मंत्र पढ़कर इसे शैतान की कैद से मुक्ति दिला सकता है।”

“ऐसा क्यों?”

“क्योंकि शैतान जानता है उसके आसमान पर जो भी मौजूद होगा, वो शैतानी शक्तियों का ही मालिक होगा। ये तो उसने सोचा भी नहीं होगा कि कभी मनुष्य भी उसके आसमान पर आ पहुंचेंगे।”

“मतलब कि सौदागर सिंह को मैं कैद से मुक्ति दिला सकती हूं।”

“हां। धरती से आया कोई भी मनुष्य ये काम कर सकता है, अगर उसे मंत्र का ज्ञान हो।” मोना चौधरी के मस्तिष्क से पेशीराम के शब्द टकराये-“मंत्र न पता हो तो सौदागर सिंह बता देगा।”

बक्से में लेटा सौदागर सिंह खुलकर मुस्करा पड़ा।

“मुझे मंत्र बताओ।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“नहीं मिन्नो, तुम-।”

“पेशीराम। मुझे मंत्र बताओ।” मोना चौधरी दृढ़ता भरे स्वर में कह उठी।

पेशीराम की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

“बताओ पेशीराम-।” मोना चौधरी पुनः कह उठी।

“तुम सौदागर सिंह को कैद से आजाद करना चाहती हो।” पेशीराम की आवाज का एहसास हुआ मस्तिष्क को।

“हां। बुरा इन्सान हर वक्त बुरा नहीं रहता। जो एक बार गलत काम कर दे, वो हमेशा ही गलत काम नहीं करेगा।”

“तुम पागल हो गई हो। ये आजाद होकर शैतान से मिल गया तो सारी सृष्टि के लिये परेशानी खड़ी कर देगा। गुरुवर को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। जाने क्या कर देगा ये-। तुम-।”

“पेशीराम।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई-“मुझे तुम मंत्र के बारे में बताओ।”

“नहीं मानोगी?”

“नहीं।”

“क्यों आजाद करना चाहती हो सौदागर सिंह को।” पेशीराम की सरसराहट परेशानी से भरी थी।

“शायद ये शैतान के खिलाफ हमारी सहायता कर सके।”

“सौदागर सिंह जैसे लोग किसी की सहायता नहीं करते।”

“मंत्र बताओ।”

पेशीराम ने मंत्र बताया।

“याद रखना मिन्नो।” पेशीराम की गम्भीर आवाज मस्तिष्क को महसूस हुई-“सौदागर सिंह के हर बुरे काम की तुम जिम्मेदार होगी। तुम अभी नहीं जानतीं कि सौदागर सिंह कैसी शक्तियों का मालिक है।”

“कुछ देर चुप रहो पेशीराम-।”

पेशीराम की आवाज नहीं आई।

बक्से में लेटा सौदागर सिंह एकटक मोना चौधरी को देख रहा था।

“तुमने मेरी बात सुनी सौदागर सिंह?” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली।

“कुछ-कुछ-।”

“बात समझे?”

“कुछ-कुछ-।” सौदागर सिंह के होंठ हिले।

“मुझे जानते हो?”

“हां। तुम्हारा नाम मिन्नो है।”

“कैसे जानते हो मुझे?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम तो गुरुवर को बहुत पहले से जानते हो। तब तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। मेरे बारे में किसने बताया तुम्हें ?”

“अपनी शक्ति से उसे पहचान लेता हूं,जो गुरुवर से वास्ता रखे।”

“पेशीराम कहता है कि बहुत शक्तियां हैं तुम्हारे पास-।”

“पेशीराम गलत नहीं कहेगा।”

“गलत नहीं कहेगा तो पेशीराम की ये बात भी सही है कि तुम विश्वास के काबिल नहीं हो।”

“सच में मेरा विश्वास करने वाला धोखा खाता है। गुरुवर ने भी धोखा खाया था मेरे से।” मुस्करा रहा था सौदागर सिंह।

“मुझे भी धोखा दोगे?”

“तुम्हें?”

“हां। मैं तुम्हें आजाद करने जा रही हूं। तुमने कहा कि तुम देवा की आत्मा को ला दोगे। नगीना को चक्रव्यूह से निकालकर मेरे हवाले कर दोगे।” मोना चौधरी ने कहा।

“क्यों नहीं। तुम मुझे आजाद करो, तो मैं तुम्हारे सब काम कर दूंगा।”

“हमारी सहायता करोगे शैतान के खिलाफ?” मोना चौधरी ने पूछा।

“हां। शैतान को तो मैं जिन्दा नहीं छोडूंगा।” सौदागर सिंह ने शब्दों को चबाकर कहा।

मोना चौधरी ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“क्या सोचने लगी मिन्नो। आजाद कर मुझे।”

“अगर तुमने आजाद होने के बाद वादा खिलाफी की, तो?”

“इसका जवाब मेरे पास नहीं है। तुम्हें मुझ पर विश्वास करना होगा कि मैं सच कह रहा हूं।” सौदागर सिंह बोला।

“पेशीराम कहता है कि तुम आजाद होकर, शैतान के साथी बनकर, गुरुवर को नुकसान पहुंचा...।”

“बकवास करता है पेशीराम। तुम्हारे मन में मेरे लिये नफरत भर रहा है। मालूम नहीं क्यों, वो मेरी आजादी नहीं चाहता।”

“मैं तुम्हें पेशीराम की मर्जी के खिलाफ आजाद कर रही हूं।” मोना चौधरी बोली।

“बहुत अच्छा कर रही हो। मुझे आजाद हुआ पाकर गुरुवर अवश्य प्रसन्न होंगे।”

तभी मोना चौधरी को, पेशीराम के शब्द अपने मस्तिष्क से टकराते महसूस हुए।

“तू बहुत बड़ी गलती कर रही है मिन्नो।”

“मैं जो कर रही हूं, मुझे कर लेने दो।”

फिर पेशीराम की आवाज नहीं आई।

“तुमने वायदा किया है कि धोखा नहीं दोगे।” मोना चौधरी ने सौदागर सिंह से कहा।

“मैं अभी तक अपने वायदे पर कायम हूं।”

“आजाद होने के बाद भी कायम रहोगे।”

“अवश्य । मैंने सच्चे मन से तेरे साथ वायदा किया है मिन्नो।”

मोना चौधरी ने सौदागर सिंह की आंखों में झांका।

“मैं तुम्हें शैतान की ढाई सौ बरस की कैद से आजाद कर रही हूं सौदागर सिंह।”

“सुनकर मुझे खुशी हो रही है।” सौदागर सिंह ने गहरी सांस ली।

मोना चौधरी ने उसकी कलाइयों के गिर्द लिपटे शैतान के बाल को देखा फिर मध्यम से स्वर में पेशीराम के बताये मंत्र का जाप करने लगी। शीघ्र ही मंत्र समाप्त हो गया।

सौदागर सिंह एकटक मोना चौधरी को देख रहा था।

तभी मोना चौधरी ने हाथ आगे बढ़ाया और शैतान की कलाइयों के गिर्द लिपटे शैतान के बाल को, उंगली में फंसा कर झटका दिया तो वो टूट गया।

तभी सौदागर सिंह के शरीर में जोरों का कम्पन हुआ। ऐसा लगा जैसे उसे करंट लगा हो। फिर वो बेहद सामान्य-सा नजर आने लगा। एकाएक वो सीधा बैठा फिर बक्से में उठ खड़ा हुआ।

बक्सा जमीन से पांच फिट ऊपर हवा में स्थिर था। मोना चौधरी के देखते ही देखते उसने बक्से से छलांग लगाई और फर्श पर आ खड़ा हुआ।

उसी पल वो बक्सा हवा में जाने कहां घुल कर गायब हो गया।

सौदागर सिंह ने मुस्कराकर मोना चौधरी को देखा।

“अपने को आजाद पाकर बहुत खुशी हो रही है मुझे।” सौदागर सिंह ने कहा।

“मेरी वजह से तुम ढाई सौ बरस की कैद से आजाद हुये हो।” मोना चौधरी की निगाह सौदागर सिंह पर थी।

“तुम मुझे आजाद न भी कराती तो कोई फर्क नहीं पड़ता।” मुस्कराते हुए सौदागर सिंह कह उठा।

“क्या मतलब?” मोना चौधरी के होंठों से निकला। माथे पर बल उभर आये।

“मेरी शक्ति मुझे शैतान की कैद से मुक्त कराने जा रही थी। आज के दिन ही मैंने शैतान की कैद से आजाद हो जाना था। लेकिन तुम आ गईं। तुमने मुझे आजाद कर दिया। न भी करती तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”

“तुमने क्यों कहा मुझे, कैद से आजाद करने को-।”

“ऐसा मैं हर आने वाले से कहता था। क्योंकि मैं जानता था कि कोई मुझे आजाद नहीं करेगा। लेकिन तुमने मुझे आजाद कर दिया। अगर मुझे मालूम होता कि तुम मुझे आजाद कर दोगी तो मैं तुमसे न कहता।”

मोना चौधरी होंठ भींचे सौदागर सिंह को घूरती रही।

सौदागर सिंह बराबर मुस्करा रहा था।

“तुम्हें याद है कि तुमने मुझसे वायदा किया था।”

“याद है।” सौदागर सिंह बोला-“वायदा किया था मैंने। ये बात स्वीकार करने से मैं पीछे नहीं हटता।”

“मुझे तुम्हारी स्वीकारिता नहीं चाहिये। वायदे को पूरा करो, जो तुमने किया है। तुम्हारे चक्रव्यूह के खास हिस्से में शैतान आत्माओं को बंधक बना कर रखता है। वहां से मुझे देवा की आत्मा को लाकर दो। मेरा साथ दो शैतान को खत्म करने में।” मोना चौधरी शब्दों पर जोर देकर कह उठी।

“वायदा!” सौदागर सिंह हंस पड़ा-“वायदा सिर्फ करने के लिये होता है। जो पूरा कर दिया जाये, वो वायदा ही नहीं रहता। ऐसे में मैं हमेशा याद रखूँगा कि मैंने, मिन्नो से वायदा किया था।”

“चालबाजी करता है सौदागर सिंह।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“मत भूल मैंने तुझे ढाई सौ बरस की कैद से आजाद करवाया है।”

“एहसान नहीं किया मुझ पर। अगले कुछ ही घंटों में, मेरी शक्ति ने मुझे इस कैद से आजाद करा देना था। ऐसे में मैं खुद आजाद हुआ या मुझे आजाद कराया गया, इस बात से मेरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता।”

“तेरी जुबान की, तेरे वायदे की कोई कीमत नहीं-।” मोना चौधरी के होंठों से खतरनाक स्वर निकला।

“सौदागर सिंह वायदे नहीं, सौदे पूरे करता है इसलिये सौदागर सिंह से जब भी बात करो, सौदेबाजी में करो। तभी फायदे में रह सकते हो।” सौदागर सिंह हंस कर कह उठा।

मोना चौधरी खुद को बेबस सी महसूस कर रही थी कि वो सौदागर सिंह का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

“कम से कम नगीना को तो अपने चक्रव्यूह की कैद से आजाद कर दो।”

“कभी नहीं। मैं दया भी नहीं करता। सिर्फ सौदा करता-।”

“सच में तुम बहुत कमीने हो। धोखा खा गई मैं। तुम्हारी बुरी सोचों को समझ नहीं पाई।”

सौदागर सिंह हौले से हंस पड़ा।

“पेशीराम पहचान गया था मुझे कि मैं कैसा हूं। तभी तो पेशीराम की आत्मा तुम्हें रोक रहीं थीं कि, मुझे कैद से आजाद न करो। तुम्हें पेशीराम की बात मान लेनी चाहिये थी।”

“सच में।” मोना चौधरी भिंचे दांतों से कह उठी-“पेशीराम की बात न मानकर मैंने भूल की।” खतरनाक गुर्राहट के साथ मोना चौधरी तलवार थामे छः कदमों के फासले पर खड़े सौदागर सिंह पर पलट पड़ी।

तलवार का खतरनाक वार सौदागर सिंह के लिए था।

इससे पहले कि तलवार सौदागर सिंह के जिस्म से टकराती, एकाएक वह हवा में इस तरह स्थिर हो गई जैसे किसी ने उसे थाम लिया हो। लम्बे समय से हवा में ही फिक्स हो।

मोना चौधरी के शरीर को झटका लगा।

तलवार को खींचा। पूरी ताकत से खींचा। लेकिन वो नहीं हिली। सख्ती से थाम रखा था। उसने तलवार को। उसमें और सौदागर सिंह में सिर्फ दो फीट का फासला बचा था।

तलवार को फिक्स जैसी हालत में पाकर मोना चौधरी के दांत भिंच गये।

सौदागर सिंह के होंठों पर शांत मुस्कान नाच रही थी।

“बेवकूफ हो मिन्नो, जो तुमने सोच लिया कि मुझ पर वार कर सकोगी। मुझ पर तो अब शैतान का वार भी सफल नहीं हो सकता। मेरी शक्तियां मुझे हमेशा सुरक्षित रखती हैं। जैसे कि अब तुम्हारी तलवार बेबस हो चुकी है।”

“सौदागर सिंह-।” मोना चौधरी दांत किटकिटा कर रह गई।

सौदागर सिंह हौले से हंसा।

“धोखा किया है तुमने मुझसे-।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“अपने वायदे को पूरा नहीं किया।”

“वायदों को मैं कभी भी पूरा नहीं करता।”

“देवा की आत्मा मेरे हवाले करने में, नगीना को कैद में आजाद करने में तुम्हारा क्या जाता है।”

“कुछ नहीं जाता।”

“क्या ये काम तुम्हारे लिये कठिन है।”

“मामूली है।”

“तो फिर इन्कार क्यों कर रहे-।”

“जरूर नहीं समझता, इन कामों को पूरा करने की।” सौदागर सिंह ने कहा-“ढाई सौ बरस बाद आजाद हुआ हूं मैं। अभी बहुत काम करने हैं। यहां रुके रहने से मेरा समय व्यर्थ हो रहा है।”

तभी मोना चौधरी के मस्तिष्क को झटका लगा। हाथ-पांव उसके नियन्त्रण से बाहर हो गये।

उसके मस्तिष्क पर पेशीराम की आत्मा ने काबू कर लिया था।

“सौदागर सिंह, तेरी कमीनी आदत से वाकिफ था मैं।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“ओह-पेशीराम-।”

“हां। मैं-मुझे तो शर्म है कि तूने गुरुवर से शिक्षा ग्रहण थी-।” स्वर गुस्से में था।

“गुरुवर को भी अवश्य शर्म आयेगी मुझे अपना कहने में-।”

“अवश्य।” सौदागर सिंह हंसा-“गुरुवर को-।”

“अब क्या करेगा तू-।” मोना चौधरी की निकलने वाली आवाज में सख्ती थी।

“अब...?”

“शैतान से दोस्ती करेगा।”

सौदागर सिंह व्यंग्य भरे ढंग में हंसा।

“कहता क्यों नहीं।”

सौदागर सिंह पुनः हंसा।

“गुरुवर तो तुझे अपने पास बिठाने से रहे।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“पेशीराम...हो सकता है गुरुवर मेरी गलती को क्षमा कर दें और-।”

“गुरुवर धोखा देने वाले शिष्य को पास नहीं आने देंगे।”

“परवाह नहीं जो होगा। वैसे मैंने अभी तय नहीं किया कि मैंने क्या करना है।”

“मिन्नो से तूने वायदा किया हैं, वो पूरा कर।” मोना चौधरी के होंठ पुनः हिले।

“बेवकूफ है मिन्नो कि उसने मेरे वायदे पर यकीन किया।” सौदागर सिंह कड़वे स्वर में कह उठा।

मोना चौधरी के हाथ में दबी तलवार अभी भी हवा में थी।

“आज भी तू अपनी मनमानी कर रहा है सौदागर सिंह।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये थे।

“सौदागर सिंह हमेशा अपने मन की करता है।” कहने के साथ ही सौदागर सिंह नीचे दिखाई दे रही सीढ़ियों पर पैर रखे नीचे उतरता चला गया।

मोना चौधरी ने हल्का-सा कम्पन महसूस किया और खुद को मुक्त महसूस करने लगी।

“अब क्या कहती हो मिन्नो?” मोना चौधरी के मस्तिष्क से पेशीराम की आवाज टकराई।

“सच में पेशीराम। सौदागर सिंह बहुत घटिया इन्सान है। मैंने उसे आजाद करके गलती की।”

“अफसोस मत कर मिन्नो। सौदागर सिंह ने आज शैतान की कैद से आजाद हो जाना था। उसकी शक्ति ने उसे आज आजाद करा ही देना था। इस बारे में सौदागर सिंह झूठ नहीं कह सकता।”

“तुम्हें यकीन है कि सौदागर सिंह से बात सच कहेगा? वो तो नम्बरी झूठा-।”

“अपनी शक्ति के जिक्र के साथ झूठापन नहीं लगाएगा। वरना उसकी शक्ति कमजोर हो जायेगी।”

चंद पलों की चुप्पी के पश्चात मोना चौधरी के होंठ हिले।

“अब क्या करें पेशीराम-?”

“हमने सिर्फ अपने कर्म करने हैं। आगे बढ़ो और सीढ़ियां उतरो। सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में प्रवेश करो। देवा की आत्मा को लाना है। नगीना को चक्रव्यूह से आजाद कराना है।”

“सौदागर सिंह भी चक्रव्यूह में गया है।”

“हमें इससे मतलब नहीं कि सौदागर सिंह कहां गया है। या वो क्या करेगा। हमें अपना काम करना है। चलो-।”

मोना चौधरी आगे बढ़ी और सीढ़ियां उतरती चली गई।

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