टामी मोरगन ने बड़ी सावधानी से खिड़की में से सिर निकालकर नीचे झांका ।
एक गोली सनसनाती हुई उसकी कनपटी से छ: इंच दूर से गुजर गई और अगले ही क्षण उसकी पीठ के पीछे की दीवार से ढेर सारा प्लास्टर उखड़ कर कमरे के फर्श पर आ गिरा ।
उसने फौरन सिर भीतर खींच लिया और चौखट की आड़ में से नीचे सड़क पर झांका ।
नीचे पुलिस के सिपाहियों की गिनती बढती ही जा रही थी । रह रहकर फ्लाईंग-स्क्वायड का सायरन सड़क पर गूंज उठता था । पुलिस के सिपाही जीपों के और सामने वाली इमारतों के बाहरी बरामदों के खम्बों के पीछे छिपे हुए अगले आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे । सब के सब हथियार बंद थे ।
“एक-एक को भून कर रख दूंगा ।” - टामी बैंक के चौकीदार से छीनी हुई रायफल के हत्थे को थपथपाता हुआ विषैले स्वर से बुदबुदाया ।
“टामी मोरगन” - नीचे से पुलिस इंस्पेक्टर चिल्लाया - “तुम बच नहीं सकते । तुम हर तरफ से घिरे हुए हो । अच्छा यही है कि तुम समर्पण कर दो । बैंक की इमारत में से फौरन बाहर निकल आओ ।”
“यहां आकर ले जाओ, बेटा इंस्पेक्टर ।” - टामी दहाड़ा और उसने रायफल की नाल खिड़की में से निकाल कर इंस्पेक्टर की ओर फायर झोंक दिया ।
इंस्पेक्टर बाल-बाल बचा ।
नीचे बैंक के आस-पास रहने वाले लोगों की भीड़ बढती जा रही थी ।
“आप लोग बैंक की इमारत से दूर-दूर ही रहें । टामी मोरगन किसी को भी गोली मार देने से नहीं हिचकेगा ।” - इंस्पेक्टर बोला ।
टामी का दिमाग बड़ी तेजी से निकल भागने की कोई तरकीब सोच रहा था । लेकिन वर्तमान स्थिति में उसे यह असम्भव लग रहा था । वह जानता था, इंस्पेक्टर ने झूठ नहीं कहा था । बैंक की इमारत सच ही हर ओर से पुलिस ने घेर रखी थी । बैंक का मुख्य द्वार उसने भीतर से बन्द कर रखा था । और बैंक के दोनों चौकीदारों को वह पहले ही शूट कर चुका था । लेकिन उसके बैंक के स्ट्रांग रूम तक पहुंचने से पहले ही जाने कैसे पुलिस वहां पहुंच गई थी और अब स्थिति यह थी कि वह चूहे की तरह बैंक की इमारत की चौथी मंजिल पर फंसा हुआ था ।
“जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आऊंगा ।” - वह फिर बड़बड़ाया ।
उसी समय नीचे बेहद तीव्र प्रकाश वाली एक सर्च लाइट जल उठी और बैंक की इमारत दिन की तरह जगमगा गई । टामी के चेहरे पर सर्च लाइट की भरपूर रोशनी पड़ी । उसकी आंखें चौंधिया गईं । उसने अपनी आंखों को एक हाथ से ढका और एक दम नीचे बैठ गया ।
कई गोलियां उसके सिर के ऊपर से गुजरती हुई और खिड़की के पल्लों को छेदती हुई कमरे की दीवारों से जा टकराईं ।
टामी ने पूरी सावधानी से रायफल की नाल सर्च लाइट की ओर मोड़ दी और घोड़ा दबा दिया ।
निशाना चूक गया ।
“टामी मोरगन” - इन्स्पेक्टर फिर चिल्लाया - “हम जानते हैं तुम कहां हो । समर्पण कर दो वरना चूहे की मौत मारे जाओगे । तुम पुलिस के हाथों बच नहीं सकते ।”
सर्च लाइट के प्रकाश से कमरे की दीवारें जगमगा रही थीं । टामी खिड़की के नीचे दुबका बैठा था । वह जरा सा भी सिर उठाता था तो कई गोलियां खिड़की की ओर दाग दी जाती थीं । गोली द्वारा लकड़ी में हुए एक छेद में आंख लगाए वह नीचे झांक रहा था ।
उसी समय एक सिपाही बरामदे के खम्बे के पीछे से निकल कर सड़क पर आया और उसने पूरी शक्ति के साथ एक गोला-सा खिड़की की ओर उछाल मारा ।
गोला कमरे की दीवार के साथ टकराया और फट गया । कमरे में गहरे रंग का धुंआ बड़ी तेज से फैलने लगा ।
“विषैले धुयें का बम !” - टामी बड़बड़ाया ।
कुछ ही क्षणों में कमरा धुंयें से भर गया । उसके गले और श्वास नलिका में भारी जलन होने लगी और आंखों और नाक में से पानी बहने लगा ।
टामी ने रायफल सम्भाली और फर्श पर घिसटता हुआ कमरे से बाहर की ओर बढा ।
वह बुरी तरह खांस रहा था और सांस लेने में भारी कठिनाई का अनुभव कर रह था ।
कमरे से बाहर आकर वह उठ खड़ा हुआ । उसने धुयें से भरे कमरे का द्वार बन्द कर दिया और तेजी से छत की ओर ले जाने वाली सीढियों की ओर भागा ।
छत पर पहुंच कर हांफता हुआ लम्बी लम्बी सांस लेने लगा । विषैली गैस के वातावरण में गुजरे कुछ ही क्षणों ने उस की हालत खराब कर दी थी । ताजी हवा के फेफड़ों में पहुंचते ही वह फिर ताजगी का अनुभव करने लगा ।
वह मुंडेर के पास फर्श पर लेट गया और फिर उसने नीचे सड़क पर झांका । छत की मुंडेर पर सर्चलाइट का सीधा प्रकाश नहीं पड़ रहा था ।
टामी ने बड़ी सावधानी से निशाना लगाकर रायफल से फायर कर दिया ।
सर्चलाइट के परखचे उड़ गये और एकदम गहरा अंधकार छा गया ।
टामी को जीवित बच निकलने की क्षीण सी आशा हो उठी ।
वह उठ खड़ा हुआ ।
उसने देखा बगल की बैंक जितनी ही ऊंची इमारत उससे केवल दस फुट दूर थी ।
उसने आस पास दृष्टि दौड़ाई ।
छत के एक कोने में कई लम्बी लम्बी बल्लियां रखी थीं । उसने एक मजबूत सी बल्ली उठाई और उसे दोनों इमारतों की मुंडेरों के बीच में रख दिया ।
नीचे गली में गहन अन्धकार था । स्ट्रीट लैम्प पहले ही उस की गोलियों के शिकार हो चुके थे ।
नीचे भी भारी शोर मचा हुआ था ।
टामी ने रायफल वहीं छोड़ दी और बल्ली को पकड़ कर नीचे लटक गया । इसी प्रकार लटके-लटके वह बड़ी सावधानी से दूसरी इमारत की ओर बढने लगा ।
दोनों इमारतों की पथरीली मुंडेरों पर टिकी बल्ली बुरी तरह हिल रही थी । हर बार यही लगता था बल्ली मुंडेर पर से फिसल जायेगी और उस का शरीर इतनी ऊंचाई से नीचे गली की पक्की जमीन पर गिर कर चकनाचूर हो जाएगा ।
लेकिन शायद भाग्य ने अभी उसका साथ नहीं छोड़ा था । टामी सुरक्षित दूसरी इमारत की छत पर पहुंच गया ।
टामी ने बल्ली उठा ली और छत के दूसरे सिरे की ओर लपका ।
बिल्कुल पहले की तरह उसने अगली दोनों इमारतों में बल्ली का पुल-सा बना दिया ।
अगले दस मिनटों में वह बैंक की इमारत से दूर चौथी इमारत की छत पर था ।
वहां लोगों के शोर की बहुत मद्धम आवाज आ रही थी ।
वह सावधानी से सीढियां उतरने लगा ।
नीचे पहुंचते ही उसे सामने लिफ्ट दिखाई दी । उसने बाकी मंजिलें सीढियों द्वारा तय करने का ख्याल छोड़ दिया और लिफ्ट के काल बटन पर उंगली रख दी । सीढियों द्वारा जाने में किसी न किसी की उस पर दृष्टि पड़ जाने की पर्याप्त सम्भावना थी ।
लिफ्ट उस मंजिल पर रुक गई । क्षण भर बाद लिफ्ट का द्वार खुला । उसने लिफ्ट में घुसने के लिए कदम बढाया ।
एकाएक वह ठिठक गया ।
लिफ्ट में भीतर स्टूल पर आपरेटर बैठा था । रात के एक बजे भी लिफ्ट में आपरेटर के होने की उसे तनिक भी आशा नहीं थी ।
वह केवल एक क्षण के लिए ही ठिठका और फिर लिफ्ट के भीतर घुस गया ।
“ग्राउण्ड फ्लोर ।” - वह इतमीनान भरे स्वर से बोला ।
आपरेटर ने संदिग्ध दृष्टि से उसकी ओर देखा और फिर बोला - “रात का एक बजा है, साहब ।”
“मुझे मालूम है ।” - टामी स्थिर स्वर से बोला ।
“आप भी हार्डवेयर कम्पनियों के मालिकों की मीटिंग में थे ?”
“कैसी मीटिंग ?”
“हार्डवेयर का धंधा करने वालों की मीटिंग हो रही है । बहुत लोग आ-जा रहे हैं । इसलिए मुझे भी अब तक रोका हुआ है । ...आप इसी इमारत में रहते हैं ?”
“हां ।”
“मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा ।”
“मैं यहां किसी का मेहमान हूं ।”
“किसके मेहमान हैं आप ?”
“तुम जरूरत से ज्यादा सवाल पूछ रहे हो बरखुरदार” - टामी रुक्ष स्वर से बोला - “जो तुम्हारा काम है वह करो ।”
आपरेटर और संदिग्ध दिखाई देने लगा । उसका ग्राउण्ड फ्लोर के बटन की ओर बढता हुआ हाथ रुक गया ।
टामी ने कठोर नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
आपरेटर के नेत्रों से एक दम भय टपकने लगा । वह एकाएक स्टूल से उठ खड़ा हुआ और लिफ्ट से बाहर की ओर लपका ।
“रुक जाओ ।” - टामी दबे स्वर से चिल्लाया और उसने जेब से रिवाल्वर निकाल कर आपरेटर की ओर तान दिया ।
आपरेटर एक दम रुक गया । उसका मुंह खुला का खुला रह गया और भय के मारे वह थर-थर कांपने लगा ।
“भीतर आओ ।” - टामी डपट कर बोला ।
आपरेटर चुपचाप भीतर आ गया ।
टामी ने ग्राउण्ड फ्लोर का बटन दबा दिया ।
लिफ्ट का द्वार बन्द हो गया और पिंजरा नीचे की ओर सरकने लगा ।
“दीवार की ओर मुंह करो ।” - टामी बोला ।
आपरेटर के दीवार की ओर घूमते ही टामी ने रिवाल्वर को नाल से पकड़ कर उसका एक भरपूर हाथ उसकी खोपड़ी पर जमा दिया । आपरेटर के मुंह से उफ भी नहीं निकली और वह निष्क्रिय होकर लिफ्ट के फर्श पर ढेर हो गया ।
उसी समय लिफ्ट रुक गई और उसका द्वारा खुल गया ।
टामी आपरेटर की परवाह किये बिना रिवाल्वर को हाथ में ही थामे इमारत से बाहर निकल आया ।
अभी वह लाबी में दो ही कदम आगे बढा था कि एक मोटर साइकिल लाबी में आकर रुकी । सवार ने मोटर साइकिल को स्टैंड पर खड़ा कर दिया था । अभी उसने मोटर साइकिल के ताले में से चाबी निकालने के लिए हाथ बढाया ही था कि टामी उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“चाबी वहीं रहने दो ।” - उसने आदेश दिया ।
“क्यों ?” - मोटर साइकिल वाला एकदम सिर उठा कर बोला । टामी के हाथ में थमी रिवाल्वर पर नजर पड़ते ही उसके नेत्र भय और विस्मय से विस्फारित हो उठे ।
“अगर चिल्लाये तो गोली मार दूंगा” - टामी बोला - “मोटर साइकिल से अलग हो जाओ ।”
लेकिन मोटर साइकिल वाले का मस्तिष्क शायद स्थिति की गम्भीरता को समझ पाने में असमर्थ था । वह रिवाल्वर की परवाह किए बिना गला फाड़ कर चिल्ला उठा - “चोर ! चोर ! बचाओ ! बचाओ !”
टामी के रिवाल्वर ने दो बार आग उगली । दोनों गोलियां मोटर साइकिल वाले के सीने में धंस गईं और वह वहीं मोटर साइकिल पर ढेर हो गया । टामी ने बड़ी फुर्ती से उसके शरीर को मोटर साइकिल से अलग धकेला, रिवाल्वर को जेब में रखा और मोटर साइकिल को स्टार्ट करके उस पर बैठ गया ।
अगले ही क्षण वह बैंक की विपरीत दिशा में पूरी रफ्तार से मोटर साइकिल भगाये लिए जा रहा था ।
लेकिन शायद मोटर साइकिल वाले की आखिरी चिल्लाहट पुलिस के कानों तक पहुंच गई थी । पुलिस की जीप का सायरन एक बार फिर उसके कानों में बज उठा ।
टामी ने घूम कर देखा । पुलिस की जीप उससे केवल सौ गज के फासले पर थी और वह फासला भी कम होता जा रहा था ।
उसने मोटर साइकिल की रफ्तार और तेज कर दी ।
पुलिस की जीप में से कोई रुक-रुक कर गोलियां चल रहा था लेकिन सौभाग्य से अभी तक वह स्वयं और मोटर साइकिल दोनों ही गोलियों से सुरक्षित थे ।
टामी ने मोटर साइकिल नगर से बाहर की ओर मोड़ दी । मोटर साइकिल इतनी तेजी से भाग रही थी कि रास्ते में छोटा सा पत्थर भी आ जाता था तो वह कम से कम एक फुट उछल जाती थी और उसके हाथ से हैंडिल छूटने को हो जाता था ।
पुलिस की जीप अब भी उसके पीछे थी ।
कई फायर उसके कानों के पास से होकर गुजर गये थे ।
वह अन्धाधुन्ध मोटर साइकिल भगाये जा रहा था ।
पुलिस की जीप और मोटर साइकिल में फासला कम होता जा रहा था ।
टामी ने सामने देखा । वह उस स्थान पर पहुंच चुका था जहां सड़क लड़काक के जंगल में प्रविष्ट होती थी ।
टामी परेशान हो उठा । लड़काक के जंगल में पेड़ काटे जा रहे थे । जगह-जगह कटे हुए पेड़ फैले हुए थे । मजदूर दिन में पेड़ यदि आधा भी काटा होता था तो शाम को उसे उसी स्थिति में छोड़ कर चले जाते थे । वे रस्से बांध कर सड़क के अधिक समीप वाले पेड़ों का झुकाव सड़क से विपरीत दिशा की ओर रखते थे ताकि कोई पेड़ काट कर सड़क की ओर न आ गिरे । इतनी सावधानी के बाद भी कई कटे हुए पेड़ सड़क पर इस ढंग से पड़े थे कि आधे से अधिक सड़क ब्लाक हो गई थी ।
टामी को जंगल के बीच में तेजी से मोटर साइकिल चलाने में अपार कठिनाई का अनुभव हो रहा था । मोटर साइकिल कई स्थानों पर टहनियों वगैरह से टकरा कर उलटने से बची ।
जीप उसके समीप होती जा रही थी ।
जीप और मोटर साइकिल में फासला इतना कम हो गया था कि अब तो जीप से हुआ कोई भी फायर उसकी इहलीला समाप्त कर सकता था ।
सख्त सर्दी में भी टामी के चेहरे पर पसीने के धारे बह निकले ।
जीप उससे केवल पच्चीस गज दूर रह गई थी ।
टामी बहुत चाहते हुए भी मोटर साइकिल की रफ्तार नहीं बढा पाया ।
“टामी” - जीप से कोई चिल्लाया - “रुक जाओ ।”
लेकिन टामी ने घूम कर भी नहीं देखा ।
उसी समय एक फायर हुआ और गोली टामी की बांह को छीलती हुई निकल गई ।
टामी के हाथ हैंडिल पर थरथराने लगे । उसके पांव का दबाव एक्सीलेटर पर फिर बढ गया ।
उसी समय एक अप्रत्याशित घटना घटी ।
टामी की मोटर साइकिल एक स्थान से निकलते ही एक बहुत बड़ा पेड़ एक भारी चरचराहट के साथ सड़क पर आ गिरा ।
टामी ने घूम कर देखा । पेड़ जीप और मोटर साइकिल के बीच में गिरा था और बहुत सम्भालते-सम्भालते भी जीप पेड़ से जा टकराई थी ।
टामी ने छुटकारे की एक गहरी सांस ली ।
“बच गए ।” - वह बड़बड़ाया ।
अब वह बड़ी बेफिक्री से मोटर साइकिल चला रहा था ।
उसी समय एक फायर हुआ और बौखलाहट में टामी के हाथ से मोटर साइकिल का हैंडल छूटते-छूटते बचा ।
उसने पीछे घूमकर देखा । सड़क दूर तक सुनसान पड़ी थी ।
टामी फिर घबरा गया ।
पहले फायर के फौरन बाद ही दूसरा फायर हुआ और उसकी मोटर साइकिल का पिछला पहिया बैठ गया ।
मोटर साइकिल एक शराबी की तरह झूमने लगी ।
टामी ने बड़ी मुश्किल से मोटर साइकिल को सम्भाला और फिर उसे सड़क के एक किनारे खड़ा कर दिया ।
पिछले टायर के चीथड़े उड़ गए थे ।
टामी ने रिवाल्वर निकाल लिया और अन्धकार में आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखने लगा ।
ढलान पर उसे दो साये दिखाई दिये जो सड़क की ओर बढ रहे थे ।
टामी ने रिवाल्वर उनकी ओर तान दिया और चिल्ला कर बोला - “वहीं खड़े रहो वर्ना गोली मार दूंगा ।”
साए ठिठक गए ।
“कौन हो तुम लोग ?” - टामी ने पूछा ।
उत्तर मिलने से पहले सड़क पर एकाएक प्रकाश फैल गया ।
विपरीत दिशा से एक कार आ रही थी और उसकी हैडलाइट की रोशनी सड़क पर फैल रही थी ।
टामी सड़क से एक ओर हट कर खड़ा हो गया ।
कार एक दम टामी के सामने आ कर रुकी ।
टामी की उंगलियां रिवाल्वर के हत्थे पर और सख्त हो गईं ।
टामी ने देखा, ड्राइवर की सीट पर एक गुंडा सा लगने वाला आदमी बैठा था । पिछली सीट पर एक बेहद क्रूर चेहरे वाला, लम्बा चौड़ा, बदसूरत सा आदमी बैठा था ।
पिछली सीट वाले ने अपने स्थान से तनिक भी हिले बिना कार का द्वार खोला और फिर शान्त स्वर से बोला - “टामी मोरगन, रिवाल्वर जेब में रख लो ।”
टामी चौंक गया । रिवाल्वर पर उसकी पकड़ और मजबूत हो गई ।
“तुम मुझे जानते हो ?” - उसने सन्दिग्ध स्वर से पूछा ।
“सवाल बाद में । रिवाल्वर को कोट में रखो और कार में बैठ जाओ ।”
“तुम हो कौन ?”
“मैं काला चोर हूं । फिलहाल तुम केवल इतना जान लो कि अगर मैंने और मेरे आदमियों ने तुम्हारी सहायता न की होती तो अभी तक या तो तुम पुलिस की गोलियों से छलनी हो कर दम तोड़ रहे होते या फिर पुलिस के हाथों में आकर फांसी के फंदे की ओर अग्रसर हो रहे होते ।”
“तुमने मेरी क्या सहायता की है ?”
“तुम्हारा क्या ख्याल है, बरखुरदार” - पिछली सीट वाला व्यंग्य पूर्ण स्वर से बोला - “वह पेड़ खुद बखुद ही तुम्हारे और पुलिस की जीप के बीच में आ गिरा था ?”
टामी कई क्षण सोचता रहा । फिर उसने रिवाल्वर जेब में रखा और पिछली सीट पर उस आदमी की बगल में आ बैठा ।
ढलान पर खड़े दोनों साये भी नीचे उतर आए और कार से ड्राइवर के साथ आ बैठे ।
टामी ने देखा एक के हाथ में रायफल थी ।
ड्राईवर ने गाड़ी मोड़ी और उसे बैक कर के वापिस उसी ओर चल दिया जिधर से वह आया था ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - टामी ने पूछा ।
“राजनगर ही जांएगे, लेकिन चक्कर काट कर” - उत्तर मिला - “यह सड़क तो उस पेड़ के कारण आगे से बन्द हो गई है न ।”
“लेकिन तुम हो कौन ?” - टामी ने फिर पूछा ।
वह आदमी कई क्षण चुप रहा फिर शान्त स्वर से बोला - “कभी जेबी का नाम सुना है ?”
“जेबी ! जंग बहादुर ! राजनगर का सब से खतरनाक दादा । नगर में हुए आधे अपराधों में जिस का हाथ होता था लेकिन फिर भी जिस पर पुलिस हाथ नहीं डाल पाती थी । टामी के चेहरे से सम्मान झलकने लगा ।”
“तुम... आप..” - वह हकलाया ।
“हां” - जेबी बोला - “टामी, तुम बहादुर हो इस में कोई शक नहीं । लेकिन तुम्हारे काम करने का तरीका बेहद गलत है ।”
“क्या गलती है उसमें ?” - टामी झुंझला कर बोला ।
“अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, बरखुरदार” - जेबी बोला - “तुम हमेशा हर काम अकेले करने की कोशिश करते हो और इसीलिए दो बार जेल जा चुके हो ।”
“आप मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं ?” - टामी हैरान हो कर बोला ।
“जेबी क्या नहीं जानता ? बैंक में डाका डालना भी एक आदमी का काम नहीं था और तुम खुद जानते हो कि तुम पुलिस के हाथों कुत्ते की मौत मरने से बाल-बाल बचे हो ।”
“लेकिन” - टामी उत्तेजित होकर बोला - “मैं बैंक के स्ट्रांग रूम तक पहुंच गया था । स्ट्रांग रूम की चाबी मेरे पास थी । बाकी केवल दो मिनट का काम था ।”
“फिर भी तुम सफल नहीं हो सके ।”
टामी चुप हो गया । बात सच थी ।
“आपने मेरी सहायता क्यों की ?” - कुछ क्षण बाद उसने धीरे से पूछा ।
“क्योंकि मुझे तुम्हारी जरूरत है” - जेबी बोला - “तुम बहादुर हो, निडर हो, बेहिचक गोली चला सकते हो । एक काम ऐसा है जिसमें मुझे तुम्हारे जैसे आदमी के सहयोग की आवश्यकता है ।”
“क्या ?”
“कभी होटल ज्यूल बाक्स का नाम सुना है ?”
“सुना है । देखा भी है ।”
“कुछ महीने पहले उस होटल की ऊपर की मंजिल पर एक जुआघर हुआ करता था जिसे माइक नाम का एक आदमी चलाया करता था । वह जुआघर इतने गुप्त रूप से चलाया जाता था कि पुलिस तो क्या स्वयं जुआ खेलने के लिए कई बार आए हुए लोगों को भी यह मालूम नहीं था कि वह जुआ घर ज्यूल बाक्स की ही ऊपर की मंजिल पर है । फिर माइक की हत्या हो गई थी और माइक का सारा बिजनेस उसकी पत्नी कैरोल और पार्टनर रामपाल में बंट गया था । वह जुआघर भी बन्द कर दिया गया था । जुआघर लगभग तीन महीने बन्द रहने के बाद अब फिर चालू हो गया है । स्थान वही है, चलाने वाले लोग भी वही हैं लेकिन इस बार जुआघर खुले आम चल रहा है । पुलिस जानती है लेकिन उसे बन्द नहीं करती क्योंकि संचालक कमिश्नर तक को रिश्वत देते हैं । एक दो बार केवल दिखावे के लिए पुलिस ने वहां छापा मारा है और बाद में यह घोषित कर दिया गया है कि वह केवल क्लब है, जुआ नहीं होता वहां ।”
“लेकिन यह सब आप मुझे क्यों बता रहे हैं ?”
“सुनते रहो” - जेबी बोला - “उस जुआ घर में मैनेजर के कमरे में एक सेफ है । उस सेफ में कुछ कागजात हैं जिन्हें निकाल कर हमने एक आदमी को सौंप देना है । इस काम के बदले में वह पचास हजार रुपये देगा, बीस हजार रुपये एडवांस मिल चुके हैं, तीस हजार काम हो जाने के बाद मिलेंगे । और अगर उस सेफ में से हमें कोई धन मिलेग तो वह हमारा होगा । उस आदमी को केवल कागजों में ही दिलचस्पी है ।”
“मुझे क्या मिलेगा ?”
जेबी ने कठोर नेत्रों से टामी की ओर देखा और फिर बोला - “अगर तुम जेबी की मित्रता को अपने लिए भारी लाभ की चीज नहीं समझते हो तो मैं तुम्हें लूट के माल में से हिस्सा और दस हजार रुपये दूंगा ।”
टामी ने नेत्र झुका लिए और फिर बोला - “आई एम सारी, बॉस ।”
“परवाह मत करो” - जेबी बोला - “बाकी बात सुनो । इस काम में दिक्कत यह है कि दिन में इसे करने का सवाल ही नहीं पैदा होता और सारी रात वहां जुआरियों की भीड़ रहती है । मतलब यह है कि चोरी छिपे हो सकने वाला काम नहीं है यह ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह है कि हमें जो कुछ करना है, रिवाल्वर के दम पर करना है । शायद कई हत्यायें भी करनी पड़ें । इसीलिए मुझे तुम्हारी जरूरत है । मेरे आदमी बेहिचक रिवाल्वर इस्तेमाल नहीं कर सकते ।”
“चिन्ता मत करो बास” - टामी लापरवाही दिखाता हुआ बोला - “लेकिन वह आदमी कौन है जिसे हमने वे कागज सौंपने हैं ?”
“वह कोई विदेशी है” - जेबी ने बताया “अधिक मैं कुछ नहीं जानता । और अधिक जानने की हमें आवश्यकता भी नहीं है । हमें तो रुपये से मतलब होना चाहिये । बीस हजार रुपया हमें मिल चुका है बाकी के तीस हजार मिल जाने के बाद ही हम वे कागजात उसे सौंपेंगे । ठीक है ?”
“ठीक है ।”
“तो फिर मिलाओ हाथ ।”
टामी ने बड़ी गर्मजोशी से अपना हाथ जेबी की ओर बढा दिया ।
टामी ने पहली बार देखा कि जेबी के दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई थी ।
***
‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर राजेश पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकला और बाहर कारीडोर में लगे पब्लिक टेलीफोन बूथ की ओर लपका ।
बूथ में घुस कर उसने द्वार भीतर से बन्द कर लिया और बड़ी तेजी से ‘ब्लास्ट’ के नम्बर डायल कर दिये ।
“हल्लो, हल्लो” - दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोल पड़ा - “रेणु, फौरन सिटी एडीटर से मिलाओ ।”
“हल्लो !” - कुछ क्षण बाद दूसरी ओर से सिटी एडीटर का स्वर सुनाई दिया ।
“राय” - राजेश जल्दी से बोला - “मैं राजेश बोल रहा हूं । ‘ब्लास्ट’ का ईवनिंग एडीशन आउट होने में अभी कितनी देर है ?”
“लगभग चालीस मिनट । क्यों ?”
“एक और खबर जा सकती है ?”
“बशर्ते कि बहुत महत्वपूर्ण हो ।”
“फिलहाल विशेष महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन उसके महत्वपूर्ण हो जाने की सम्भावना काफी हैं और दूसरी बात यह है कि अभी ‘ब्लास्ट’ के सिवाय यह समाचार किसी को मिला नहीं है ।”
“शुरू हो जाओ ।” - राय का निर्णयपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“एक आदमी जो अपना नाम मुरारीलाल बताया है, शराब के नशे में कार चलाता पकड़ा गया है । उसकी आयु लगभग बयालीस वर्ष है । कार में उसके साथ एक लगभग छब्बीस वर्ष की बेहद सुन्दर विदेशी लगने वाली लड़की भी थी जिसने अपना नाम जूली बताया है । जूली के कथनानुसार गिरफ्तारी के दस मिनट पहले तक वह मुरारीलाल को नहीं जानती थी । मुरारीलाल उसी ओर जा रहा था जिधर जूली जाना चाहती थी । रिक्वेस्ट करने पर मुरारीलाल ने उस लिफ्ट दे दी थी । मेहता रोड के चौराहे पर मुरारीलाल ने अपनी कार असावधानी से एक दूसरी कार से टकरा दी थी । किसी भी कार को कोई विशेष क्षति नहीं पहुंची थी और शायद मामला रफादफा भी हो जाता अगर ट्रैफिक पुलिस के सिपाही को यह सन्देह न हो गया होता कि मुरारीलाल शराब पीकर गाड़ी चला रहा है । सिपाही ने मुरारीलाल से प्रश्न पूछने आरम्भ कर दिए । मुरारीलाल घबरा गया और फौरन वहां से निकल भागने का इच्छुक दिखाई देने लगा । मुरारीलाल के पास नोटों से ठसाठस भरा हुआ बटुआ था । उसने सिपाही को रिश्वत देने की भी चेष्टा की । सिपाही और भी संदिग्ध हो उठा । सिपाही ने मुरारीलाल का चालान कर दिया । इस समय मुरारीलाल और जूली दोनों पुलिस हैडक्वार्टर में हैं । पुलिस इंस्पेक्टर प्रभूदयाल को मुरारीलाल से अधिक सन्देह उसकी कार पर है । मुरारीलाल जो कार चला रहा था, वह हरे रंग की एम्बैसेडर थी और उसकी बॉडी ड्राईवर वाली साइड के द्वार के पास थोड़ी-सी पिचकी हुई थी । पुलिस में पैट्रोल पम्पों पर दिन दहाड़े डाकाजनी की दो रिपोर्ट लिखाई गई हैं । उन रिपोर्टों के अनुसार ऐसी ही हरे रंग की एम्बैसेडर में एक औरत और एक आदमी दोपहर के समय जब कि पैट्रोल पम्प पर अधिक ग्राहक नहीं जाते, पैट्रोल पम्प के कर्मचारी को रिवाल्वर दिखाकर सारा रुपया लूट कर ले गए थे । पुलिस ने इसी सिलसिले में मुरारीलाल और जूली को पुलिस हैडक्वार्टर में रोका हुआ है । इंस्पेक्टर प्रभूदयाल ने पैट्रोल पम्प के कर्मचारी को मुरारीलाल और जूली की शिनाख्त के लिए बुलाया है अगर पैट्रोल पम्प की कर्मचारी उन दोनों में से किसी को डाकाजनी के सिलसिले में न पहचान सका तो मेरा ख्याल है प्रभू उन्हें छोड़ देगा क्योंकि मुरारीलाल शराब पिए हुए जरूर था लेकिन नशे में मदहोश नहीं था । वह पुरे होश में गाड़ी चला रहा था । वह छोटा-सा ट्रैफिक एक्सीडेंट केवल संयोगवश ही हो गया था ।”
“बस ?” - राय ने पूछा ।
“फिलहाल बस” - राजेश बोला - “लेकिन अगर बीस पच्चीस मिनट प्रतीक्षा कर सको तो समाचार पूरा कर दूंगा । तब तक पैट्रोल पम्प का कर्मचारी यहां पहुंच जाएगा ।”
“ओके ब्वाय” - राय बोला - “मैं बीस मिनट प्रतीक्षा करूंगा । उसके बाद इतना ही समाचार प्रेस में दे दूंगा । लेकिन देख लो, बीस से इक्कीसवां मिनट नहीं होना चाहिए ।”
“ओके ।”
राजेश ने रिसीवर हुक पर लटकाया और टेलीफोन बूथ से बाहर निकल आया ।
वह वापिस प्रभूदयाल के कमरे में लौट आया ।
मुरारीलाल और जूली परेशान मुद्रा में प्रभू के सामने मेज की दूसरी ओर बैठे हुए थे । प्रभूदयाल टैलीफोन पर किसी से बात कर रहा था । राजेश को देखकर उसने उसे एक कुर्सी पर बैठ जाने का संकेत किया ।
राजेश और प्रभूदयाल के बड़े अच्छे सम्बन्ध थे । इन अच्छे सम्बन्धों की स्थापना में मुख्य कारण सुनील था । प्रभूदयाल केवल सुनील को यह दिखाने के लिए राजेश को लिफ्ट देता था कि उसकी मित्रता का किसी को कितना लाभ पहुंच सकता है ।
प्रभूदयाल ने रिसीवर रख दिया और फिर मुरारीलाल की ओर घूमकर गम्भीर स्वर से बोला - “देखो, मिस्टर मुरारीलाल तुम शायद पुलिस स्टेशन पर झूठ बोलने का मतलब नहीं समझते हो । तुम...”
“मैंने कोई झूठ नहीं बोला है ।” - मुरारीलाल बोला ।
“यह तुम्हारा लेटेस्ट झूठ है” - प्रभूदयाल बोला - “मिस्टर, तुम कदम-कदम पर झूठ बोल रहे हो । तुमने अपना पता 32-हर्नबी रोड बताया है । मैंने अभी फोन पर चैक किया है, बत्तीस हर्नबी रोड पर कोई मुरारीलाल नहीं रहता । या तो तुमने पता गलत बताया है, या अपना नाम गलत बताया है या फिर दोनों ।”
मुरारीलाल क्षण भर कसमसाया और फिर बोला - “लेकिन इंस्पेक्टर साहब, मैंने यह कब कहा था कि मैं राजनगर की बत्तीस हर्नबी रोड पर रहता हूं ।”
“तो फिर ?”
“मैं विशालगढ की हर्नबी रोड की बात कर रहा था ।”
“तुम्हारा मतलब है कि विशालगढ में भी कोई हर्नबी रोड है ?” - प्रभू के स्वर में आश्चर्य का पुट था ।
“हां ।”
“मैं अभी चैक करता हूं ।” - प्रभूदयाल रिसीवर उठाता हुआ बोला ।
राजनगर और विशालगढ में ट्रंक डायलिंग की सुविधा प्राप्त थी । प्रभूदयाल एक मिनट में अपना इच्छित सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हो गया ।
“हल्लो” - वह बोला - “पुलिस हैडक्वार्टर, विशालगढ ? ...मैं राजनगर से इंस्पेक्टर प्रभूदयाल बोल रहा हूं । हमने यहां एक आदमी को पकड़ा है जिस पर शराब पीकर गाड़ी चलाने का और डकैती का आरोप है । वह कहता है कि वह बत्तीस, हर्नबी रोड, विशालगढ में रहता है । अभी तक वह बहुत झूठ बोल चुका है इसलिए हमें उस पर विश्वास नहीं... नाम ? नाम उसने मुरारीलाल बताया है । आप फौरन यह पता लगवाइए कि क्या मुरारीलाल नाम का कोई आदमी इस पते पर रहता है । ...जी हां, बहुत जरूरी है । जितनी जल्दी हो सके मुझे सूचना भिजवाइए... थैंक्यू वैरी मच ।”
प्रभूदयाल ने रिसीवर रख दिया और मुरारीलाल की ओर घूमकर बोला - “अगर इस बार भी तुम्हारा बयान झूठा सिद्ध हुआ तो मैं बिना कोई दूसरा सवाल किए तुम्हें हवालात में डाल दूंगा ।”
मुरारीलाल ने भारी बेचैनी का प्रदर्शन करते हुए कुर्सी पर पहलू बदला ।
कई क्षण चुप्पी छाई रही । प्रभूदयाल बार-बार टेलीफोन को यूं घूर रहा था जैसे इस प्रकार घूरने से ही घण्टी बज उठेगी ।
उसी समय घण्टी घनघना उठी ।
प्रभूदयाल ने झपट कर फोन उठा लिया ।
प्रभूदयाल कई क्षण फोन सुनता रहा । फिर उसने रिसीवर रख दिया ।
“तुमने फिर झूठ बोला ?” - वह मुरारीलाल को घूरता हुआ बोला ।
“अब क्या हो गया है ?” - मुरारीलाल दबे स्वर से बोला ।
“तुम्हारा नाम मुरारीलाल नहीं है ।” - प्रभू एक एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “तुम्हारा नाम उमाशंकर चोपड़ा है ।”
मुरारीलाल कहे जाने वाला आदमी बेहद नर्वस हो उठा ।
“तुमने कैसे पता लगाया ?” - उसने पूछा ।
“तुम्हारी एम्बैसेडर कार की सहायता से । यह कार तुमने राजनगर से ही किराये पर ली है । आटोमोबाइल एजेन्सी में तुमने अपना नाम उमाशंकर चोपड़ा लिखवाया है । एजेन्सी के मैनेजर ने बताया है कि तुमने यह सिद्ध करने के लिए कि तुम वास्तव में ही विशालगढ के उमाशंकर चोपड़ा हो, उसे कुछ कागजात और विशालगढ के किसी क्लब का मेम्बरशिप कार्ड भी दिखाया था ।”
वह कुछ क्षण सोचता रहा और फिर गहरी सांस लेकर बोला - “आल राइट । अब छुपाने से कोई लाभ नहीं है । मैं विशालगढ का उमाशंकर चोपड़ा हूं ।”
“तुम यह तीसरा नाम बता रहे हो ।” - प्रभूदयाल व्यंगपूर्ण स्वर से बोला - “अगली बार शायद तुम यह कहोगे कि तुम जवाहर लाल नेहरू हो ।”
“मैं सच कह रहा हूं । मैं उमाशंकर चोपड़ा हूं विश्वास न हो तो यह देखो ।”
उस आदमी ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उसमें से अपना ड्राइविंग लाइसेंस और विशालगढ के सिटी क्लब का मैम्बरशिप कार्ड निकालकर प्रभूदयाल के सामने रख दिया ।
उसी समय फोन की घंटी फिर घनघना उठी ।
“हल्लो” - प्रभूदयाल रिसीवर उठा कर बोला - “क्या ? बत्तीस हर्नबी रोड विशालगढ में कोई मुरारीलाल नहीं रहता ? अच्छा, विशालगढ के किसी उमाशंकर चोपड़ा के विषय में आप कुछ जानते हैं ?” …जानते हैं आप... विशालगढ में वह बहुत मशहूर आदमी ? ...अच्छा ? ...बड़ी अजीब बात है... क्या ? वह सिटी क्लब का प्रेसीडैन्ट है ? ...एक बैंक का डायरेक्टर है ? अच्छा ! ...सरकार का बहुत बड़ा कान्ट्रैक्टर है ? ...इस साल विशालगढ से पार्लियामैंट की मैम्बरशिप के लिए इलेक्शन लड़ रहा है ? ...करोड़पति है ? ...कमाल है साहब... जी ? ...जी नहीं अभी उन पर कोई इल्जाम नहीं लगाया गया है । उन्हें केवल क्वेश्चनिंग के लिए हैडक्वार्टर में रोका हुआ है । हमें उनकी कार के कारण एक डकैती के केस का सन्देह हो गया था उन पर...। जी हां भारी गलती हो गई मालूम होती है । हमें अफसोस है । ...ओके, थैंक्स फार कोआपरेशन ।”
प्रभूदयाल ने रिसीवर रख दिया । उस आदमी के प्रति उसका व्यवहार एकदम बदल गया ।
“आपने पहले ही क्यों नहीं बता दिया था कि आप कौन हैं !” - प्रभूदयाल बोला । उसके स्वर में सम्मान का पुट था और अब वह उस आदमी को तुम के स्थान पर आप कह कर सम्बोधित कर रहा था ।
“मेरे से गलती हो ऐसी हो गई थी” - वह आदमी बोला - “मैं इस साल पार्लियामैंट का इलेक्शन लड़ रहा हूं । अगर यह बात प्रकट हो जाती कि मैं शराब के नशे में एक्सीडैंट कर बैठा हूं और जिस समय मैं पुलिस द्वारा पकड़ा गया था, उस समय मेरी कार में एक सुन्दर युवती भी थी, तो मेरी भारी बदनामी होने की सम्भावना थी । आप जानते ही हैं कि अखबार वाले ऐसी बातों को कैसे नमक मिर्च लगाकर छापते हैं । मेरे इलेक्शन के प्रोग्राम पर इस बात का काफी प्रभाव पड़ सकता था ।”
“आपने अपना पता ठीक बताया था ?” - प्रभदूयाल ने पूछा ।
“बिल्कुल ठीक बताया था । केवल इतना अन्तर है कि बत्तीस हर्नबी रोड विशालगढ में कोई मुरारीलाल नहीं, उमाशंकर चोपड़ा रहता है । मेरा आफिस नैशनल बैंक बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर है । मैं, जैसा कि आप जान ही चुके हैं, नैशनल बैंक का डायरेक्टर हूं । प्रतिरक्षा मंत्रालय का मैं बहुत बड़ा कान्ट्रैक्टर हूं । अभी पिछले साल मैंने उनको सौ जीपें सप्लाई की हैं । और कुछ पूछना चाहते हैं आप ?”
प्रभूदयाल चुपचाप उंगलियों से मेज थपथपाता रहा ।
उसी समय राजेश ने जल्दी से अपनी डायरी में से एक पृष्ठ फाड़ा और उस पर लिख दिया - “प्रभूदयाल, भगवान के लिए इसे पांच मिनट और यहीं रोके रखो, प्लीज ।”
उसने कागज प्रभूदयाल के सामने सरका दिया ।
प्रभूदयाल ने कागज पढा और फिर उसे मोड़कर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया ।
“ओके ।” - प्रभू राजेश से बोला ।
“थैंक्यू ।” - राजेश बोला और एकदम कुर्सी से उठकर बाहर की ओर लपका ।
प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकलते ही वह एक आदमी से टकरा गया ।
राजेश ने देखा वह उनके प्रतिद्वन्द्वी पेपर क्रानिकल का रिपोर्टर ललित था । उसके कन्धे पर कैमरा लटक रहा था ।
“ऐसी जल्दी क्या है प्यारे !” - वह राजेश से बोला ।
“कुछ नहीं, बस... यूं ही... ललित, मैं तुम से फिर बात करूंगा ।” - और राजेश उसे वहीं छोड़कर भागा ।
ललित हैरानी से उसे देखता रह गया ।
कारीडोर में लगे पब्लिक टेलीफोन बूथ में आकर राजेश ने द्वार भीतर से बन्द किया । उसने एक झटके से रिसीवर हुक से उठाया और बड़ी फुर्ती से ‘ब्लास्ट’ के नम्बर डायल कर दिये ।
“हल्लो, हल्लो, हल्लो ।” - सम्बन्ध स्थापित होते ही उसने कायन बाक्स में सिक्के डाले और उत्तेजित स्वर में बोला - “रेणु, फौरन राय से कनेक्ट कर दो ।...हल्लो, राय । मैं राजेश बोल रहा हूं । अभी बीस मिनट नहीं हुए हैं । आधा मिनट बाकी है । वह मुरारीलाल वाले मामले में नई बात पता लगी है... उसका नाम मुरारीलाल नहीं है । वह नैशनल बैंक का डायरेक्टर है और इस बार विशालगढ से एम पी के लिए इलेक्शन लड़ रहा है । वह सिटी क्लब का प्रेसीडैन्ट भी है । कहने का तात्पर्य यह है कि वह विशालगढ के गिने चुने वी आई पी में से एक है । उसके साथ जो लड़की पकड़ी गई थी, उसके विषय में वह अब भी यही कहता है कि वह उसे नहीं जानता उसने तो उसे केवल लिफ्ट दी थी । इस मामले में इतने बड़े आदमी के सम्बन्धित होने से न्यूज में कलर पैदा हो जाएगा । इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल इस केस की तफ्तीश कर रहा है । अब से पहले वह उस आदमी से बहुत सख्ती से पेश आ रहा था लेकिन जब से उसे यह पता लगा है कि वह इतना बड़ा आदमी है, प्रभूदयाल मक्खन की तरह पिघला जा रहा है । मेरा अपना ख्याल यह है कि वह उसे अधिक से अधिक दस मिनट बाद छोड़ देगा क्योंकि अभी तक उस पर कोई इलजाम तो लगाया नहीं गया था... नहीं इस बात की कोई सम्भावना नहीं है । वह उमाशंकर चोपड़ा ही है । उसने अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया है सिटी क्लब का मेम्बरशिप कार्ड दिखाया है, बैंक की चैक बुक दिखाई है, अपने जीवन बीमे की किश्त की रसीद दिखाई है और इससे अधिक किसी दूसरे शहर में कोई आदमी क्या सबूत दे सकता है । अगर तुम उसके कथन की सत्यता को और चैक करना चाहते हो तो विशालगढ में उसकी पत्नी को फोन करके पूछो कि आजकल उसका पति कहां है । ...हां उसके घर का पता है, बत्तीस हर्नबी रोड विशालगढ... ओके ? और दूसरी बात यह है कि क्रानिकल का रिपोर्टर ललित भी यहीं घूम रहा है अधिक से अधिक आधे घण्टे में उसे यह समाचार मिल जायेगा इसलिए... ओके, ओके आई एम डिस्कनेक्टिंग ।”
राजेश रिसीवर हुक पर लटका कर बाहर निकल आया ।
बूथ के बाहर ललित खड़ा था और संदिग्ध नेत्रों से उसे घूर रहा था ।
“हल्लो !” - राजेश बेफिक्री से बोला । अब उसे कोई जल्दी नहीं था ।
“किस्सा क्या है ?” - ललित ने पूछा ।
“कुछ नहीं, बेटा क्रानिकल” - राजेश ने उत्तर दिया - “जरा एक लौंडिया को फोन कर रहा था कि आज शाम मैं उसके साथ फिल्म देखने नहीं जा सकूंगा ।”
“अच्छा ?” - ललित अविश्वास पूर्ण स्वर से बोला ।
“हां । ओके, बाई ।”
राजेश बिना ललित की ओर दुबारा देखे पैंट की जेब में हाथ ठूंसे सीटी बजाता हुआ सड़क की ओर चल दिया ।
कुछ कदम चलने के बाद उसने घूमकर देखा ।
ललित कारीडोर में प्रभूदयाल के कमरे की ओर भागा जा रहा था ।
***
अगले दिन राजेश बहुत खुश था । उमाशंकर से सम्बन्धित समाचार केवल ‘ब्लास्ट’ में ही छपा था । अखबार की हैडलाइन एक बार फिर उसके दिमाग में घूम गई ।
विशालगढ का प्रमुख उद्योगपति, नैशनल बैंक का डायरेक्टर सिटी क्लब का प्रेसीडैंट, आगामी आम चुनावों में लोकसभा का उम्मीदवार एक ऐसी लड़की के साथ जिसे स्वयं उसके अपने कथनानुसार उसने कभी नहीं देखा था, राजनगर में शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध में गिरफ्तार । उसके बहुत कोशिश करने के बाद भी पुलिस की नजरों से यह तथ्य छुपा नहीं रहा सका कि वह विशालगढ का उमाशंकर चोपड़ा है । मिसेज चोपड़ा ने ‘ब्लास्ट’ के प्रतिनिधि के साथ टेलीफोन पर हुई बातों में इस बात की पुष्टि की है कि उनके पति उमाशंकर चोपड़ा आजकल किसी विशेष कारणवश राजनगर आए हुए हैं ।
उस समय एक चपरासी राजेश के सामने आ खड़ा हुआ ।
“क्या है बे ?” - राजेश ने डपटकर पूछा । उसे वह चपरासी बहुत बुरा लगता था ।
“सुनील साहब बुला रहे हैं ।” - चपरासी बोला ।
“अच्छा ।”
“उन्होंने आापको अभी बुलाया है, अगले हफ्ते नहीं ।” - चपरासी व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“अबे जाता है शुतरमुर्ग की औलाद, या दूं एक हाथ ।” - राजेश क्रोधित होकर बोला ।
चपरासी चेहरे पर ढिठाई भरी मुस्कुराहट लिए वहां से हट गया ।
राजेश सुनील के केबिन में पहुंच गया ।
सुनील के सामने लगभग चालीस वर्ष का एक आदमी बैठा हुआ था । वह शानदार काला सूट पहने हुए था और उसके चेहरे से कठोरता टपक रही थी ।
एक कुर्सी पर गम्भीर मुद्रा बनाए हुए सिटी एडीटर राय बैठा था ।
सुनील ने एक खोजपूर्ण दृष्टि राजेश पर डाली और फिर गम्भीर स्वर से बोला - “बैठो राजेश ।”
राजेश बैठ गया ।
“इन साहब को जानते हो ?” - सुनील काले सूट वाले की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
राजेश ने एक बार फिर उस आदमी को देखा और बोला - “मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा इन्हें ।”
“यह कार्ड देखो जरा ।” - सुनील ने उसकी ओर सुनहरे शब्दों में छपा एक कार्ड बढ़ा दिया ।
राजेश ने देखा । कार्ड पर लिखा था ।
उमाशंकर चोपड़ा, 32 हर्नबी रोड, विशालगढ
“आप उमाशंकर चोपड़ा के प्रतिनिधि हैं ?” - राजेश ने शानदार सूट वाले की ओर मुड़कर पूछा ।
“मैं !” - उसने बर्फ से ठण्डे स्वर से उत्तर दिया - “उमाशंकर शंकर चोपड़ा हूं ।”
राजेश जैसे आसमान से गिरा ।
“क्या ?” - वह हैरान होकर बोला ।
“मैं उमाशंकर चोपड़ा हूं ।” - उसने दोहराया ।
“असम्भव !” - राजेश सम्भल कर बोला - “आप उमाशंकर चोपड़ा नहीं हो सकते । आपकी आयु और कद काठ तो वैसा ही है लेकिन आपकी और उमाशंकर की सूरत में जमीन और आसमान का अन्तर है । वह तो...”
“बरखुरदार” - वह राजेश की बात काट कर बोला - “मैं ही विशालगढ का उमाशंकर चोपड़ा हूं । इसका सबूत मैं मिस्टर राय और मिस्टर राय और मिस्टर सुनील को पहले ही दे चुका हूं ।”
“आपने हमें केवल एक परिचय पत्र दिया है ।” - राय सतर्क स्वर से बोला ।
“क्या वह मेरे कथन की सत्यता को सिद्ध करने के लिए काफी नहीं है ?” - उसने तीव्र स्वर से पूछा ।
“काफी तो है लेकिन...”
“अगर कहीं संदेह की गुंजायश है तो यह भी देखिए ।” - और उसने अखबार की एक कटिंग निकालकर मेज पर रख दी ।
वह विशालगढ से छपने वाले अखबार की कटिंग थी । लिखा था :
प्रमुख उद्योगपति उमाशंकर चोपड़ा का प्रतिरक्षा मंत्रालय के लिए जीपों के उत्पादन में योगदान ।
समाचार की बगल में 2 x 3 इंच का उमाशंकर चोपड़ा का एक क्लोजअप छपा हुआ था ।
सुनील ने कटिंग देखकर उसे राजेश के आगे सरका दिया ।
राजेश ने अखबार में छपी फोटो को उस आदमी से मिला कर देखा । इस बात में कोई सन्देह नहीं था कि अखबार में छपी तस्वीर उसी आदमी की थी जो इस समय उसके सामने बैठा था । साथ ही यह बात भी निसन्देह थी कि जो आदमी इस समय दफ्तर में बैठा था, वह वही नहीं था जिसने पुलिस हैडक्वार्टर पर अपना नाम उमाशंकर चोपड़ा बताया था ।
उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं ।
“यह गड़गड़ कैसे हुई ?” - राय ने राजेश से पूछा ।
“कोई गड़बड़ नहीं हुई है” - राजेश तनिक उत्तेजित स्वर से बोला - “जो आदमी मैंने पुलिस हैडक्वार्टर पर देखा था, वह उमाशंकर चोपड़ा था । उसने उमाशंकर चोपड़ा के नाम का ड्राइविंग लाइसेन्स दिखाया था, क्लब का मेम्बरशिप कार्ड दिखाया था, बैंक की चैक बुक दिखाई थी । इंस्पेक्टर प्रभूदयाल ने पूरी तरह सन्तुष्ट होने के बाद ही उसे छोड़ा था । निश्चय ही वही आदमी उमाशंकर चोपड़ा था ।”
“ड्राइविंग लाइसेन्स पर उमाशंकर चोपड़ा के हस्ताक्षर जरूर होंगे” - नीले सूट वाला बोला - “क्या इन्स्पेक्टर ने उस आदमी से हस्ताक्षर करवा कर ड्राइविंग लाइसेन्स वाले हस्ताक्षरों से मिलाये थे ?”
“नहीं ।” - राजेश धीरे से बोला ।
“फिर भी तुम यह दावा करते हो कि यह आदमी उमाशंकर चोपड़ा था । जब कि वह आदमी जेबकतरा भी हो सकता था जिसने परसों मेरी जेब में से मेरा पर्स उड़ा लिया था ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील ने तेजी से पूछा ।
“परसों किसी ने मेरी जेब में से मेरा पर्स निकाल लिया था । उसमें मेरा ड्राइविंग लाइसेन्स, बैंक की चैक बुक, क्लब का मेम्बरशिप कार्ड वगैरह सब कुछ था । तुम्हारी थ्योरी के हिसाब से तो जिस आदमी के पास भी मेरे वे कागजात हों वही अपने का उमाशंकर चोपड़ा सिद्ध कर सकता है ।”
“आपने जेब कट जाने की रिपोर्ट पुलिस में लिखवाई थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“मैंने उसकी जरूरत नहीं समझी थी । मेरी जेब मेरी अपनी लापरवाही से कटी थी । पुलिस उसमें कुछ कर नहीं सकती थी ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“जानते हैं आप के अखबार ने मेरा कितना अहित किया है” - नीले सूट वाला कठोर स्वर से बोला, “आपने मेरे विषय में ऐसा समाचार छापा है जिसमें मेरी प्रतिष्ठा को भारी धक्का पहुंचा है । सारे विशालगढ में लोग मुझे सन्देह की निगाहों से देखने लगे हैं । मेरे वर्षों में अर्जित इज्जत और सम्मान को आपने एक बेबुनियाद समाचार छापकर गड़बड़ा दिया है ।”
“वह समाचार बेबुनियाद नहीं है ।” - राजेश ने विरोध किया ।
“हां, है, वह समाचार बेबुनियाद है” - नीले सूट वाला चिल्लाया - “आप लोगों ने किसी को, दो कौड़ी के आदमी को उमाशंकर चोपड़ा नाम के कागजात दिखाते देखा और आप लोग बिना सोचे समझे कूदकर इस नतीजे पर पहुंच गए कि वह आदमी उमाशंकर चोपड़ा है । आपकी जरा सी लापरवाही, आप जानते हैं मेरे लिए कितनी घातक सिद्ध हुई है और कितनी घातक सिद्ध हो सकती है ? मैं लोकसभा का आगामी इलेक्शन लड़ रहा हूं । मेरे जीत जाने की पूरी सम्भावना थी । आपके अखबार में छपा समाचार पढ कर कई लोग मेरे विरुद्ध हो गए हैं और निकट भविष्य में अभी और न जाने कितनी गड़बड़ होगी । और अकेला आप ही का अखबार है जिसने इस समाचार को इतना उछाला है । आप लोग नहीं जानते कि...”
“जो हो चुका है, उसकी बात छोड़िये” - सुनील उसकी बात काट कर बोला - “अब आप यह बताइये कि आप चाहते क्या हैं ?”
“मैं यह चाहता हूं कि आप अपने अखबार के पहले पृष्ठ पर खेदप्रकाश छापें कि आपने यह समाचार गलती से छाप दिया है । उस केस से विशालगढ के उमाशंकर चोपड़ा का कोई सम्बन्ध नहीं है । और दूसरे यह कि मेरी प्रतिष्ठा को जो नुकसान आप वह समाचार छाप कर पहुंचा चुके हैं उसकी पूर्ति मैं धन के रूप में चाहता हूं । मतलब यह कि मैं हर्जाना चाहता हूं ।”
“अगर हम खेदप्रकाश के रूप में अपनी गलती स्वीकार कर लेंगे तो फिर आपको हर्जाना किस बात का देंगे ?” - सुनील विस्यम का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
“क्या बात करते हैं आप ?” - वह जलकर बोला - “आप समझते हैं कि उस समाचार द्वारा हुए नुकसान को आप खेदप्रकाश छाप कर कवर कर सकते हैं ? आपने उस समाचार में किसी मामूली आदमी का नाम नहीं लपेटा था । विशालगढ के हाई सर्किल में कोई आदमी ऐसा नहीं जो मुझे नहीं जानता और कोई आदमी ऐसा नहीं जिसने उस सेन्सेशनल समाचार को पढा नहीं । मैं उमाशंकर चोपड़ा, नेशनल बैंक का डायरेक्टर, सिटी क्लब का प्रेसीडेंन्ट, करोड़पति, इण्डियन चैम्बर आफ कामर्स के एडवाइजरी बोर्ड का मेम्बर, भावी एम पी और शराब के नशे में गाड़ी चलाते पकड़ा गया और मेरे साथ एक जवान लड़की भी थी जिसकी आयु मुझसे कम से कम बीस वर्ष कम थी । डैम यू पीपुल । जब से यह समाचार छपा है मेरे पास हजारों टेलीफोन काल, सैंकड़ों टेलीग्राम आ चुके हैं । हर आदमी यह जानना चाहता है कि क्या वास्तव में ही मैंने ऐसा कुछ किया है ? अगर उस समाचार को दस लोगों ने पढा है तो आपके छापे खेदप्रकाश पर एक भी नजर नहीं पड़ेगी । और फिर सब जानते हैं कि मेरे पास बहुत रुपया है । मेरे शत्रु यह कहने से नहीं हिचकेंगे कि मैंने ‘ब्लास्ट’ को रिश्वत देकर उन्हें खेदप्रकाश छापने के लिए तैयार कर लिया है ।”
“ब्लास्ट ऐसा अखबार नहीं है ।” - राय बोला ।
“जरूर नहीं होगा । लेकिन जब कोई कहेगा कि ब्लास्ट ऐसा अखबार है तो आप क्या उसकी जबान पकड़ लेंगे ? नहीं साहब, केवल खेदप्रकाश से मेरा मतलब हल नहीं होता है । रुपया तो आपको मुझे देना ही पड़ेगा । मैं आपसे एक मोटी रकम के चैक की आशा करता हूं । आपको उस चैक का फोटोग्राफ भी ‘ब्लास्ट’ में छापना पड़ेगा । वही फोटोग्राफ मैं विशालगढ के अखबार में भी छपवाऊंगा और वह चैक मैं नैशनल बैंक में जमा करवाऊंगा । इससे लोगों को विश्वास हो जाएगा कि वह खबर झूठी थी । इसलिए मैंने अखबार वालों पर दावा करके उनसे हरजाना वसूल कर लिया है । मैं आपसे चैक रुपये की खातिर नहीं चाहता बल्कि आपके अखबार द्वारा फैलाई गई गन्दगी की सफाई की खातिर चाहता हूं । समझे आप ?”
“जो आप चाहते हैं वह नहीं हो सकता है” - सुनील बोला - “हरजाने के नाम पर हम आपको एक नया पैसा नहीं देंगे । खेदप्रकाश आप जब कहेंगे हम छाप देंगे । हम मानते हैं हमसे गलती हुई लेकिन वह गलती हमने जानबूझ कर नहीं । जिन परिस्थितियों के अन्तर्गत हमें वह समाचार प्राप्त हुआ था उनमें किसी से भी गलती हो जाने की पूरी सम्भावना थी । और फिर, हमने आपकी मिसेज को भी टेलीफोन किया था । उन्होंने भी यही बताया था कि आप राजनगर में हैं ।”
“इससे क्या होता है ! मेरे राजनगर में होने का मतलब यह थोड़े ही है कि मैं पुलिस की हिरासत में हूं ?” - वह उठता हुआ बोला - “मेरा ख्याल है, मैंने अपना काफी समय यहां पर बरबाद कर दिया है । जो मैं चाहता हूं, मैंने आपको बता दिया । पहले आप खेदप्रकाश छापिये और फिर हर्जाने के रूप में मुझे एक मोटी रकम का चैक दीजिए ।”
वह अपनी एड़ियों पर घूमा और द्वार की ओर बढ गया ।
“सुनिये एक मिनट” - सुनील जल्दी से बोला - “बात अभी समाप्त नहीं हुई है । आप ‘ब्लास्ट’ में एडीटर और मालिक मिस्टर मलिक से मिले बगैर मत जाइए ।”
“उन्हें क्या कहूंगा मैं ?”
“जो आपने हमसे कहा है ।”
“नो, थैंक्यू । मेरे पास बरबाद करने के लिए वक्त नहीं है । मैं एक ही बात को कई-कई लोगों के सामने दोहराता नहीं फिर सकता । मुझे बताया गया था मिस्टर मलिक नहीं हैं लेकिन उनकी अनुपस्थिति में मैं मिस्टर राय या मिस्टर सुनील से बात कर सकता हूं । मैंने दोनों से ही बात कर ली है । आप मेरा सन्देश जिसे चाहें पहुंचा सकते हैं । अगर तीन दिन के अन्दर अन्दर आपने अपने अखबार में खेदप्रकाश न छापा और मुझे हर्जाने का चैक न भेजा तो मैं अदालत में ‘ब्लास्ट’ के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा दायर कर दूंगा । एण्ड नाउ, जन्टलमैन, आई विश यू ए वैरी गुड मार्निंग ।”
द्वार भड़ाक से बन्द हो गया ।
“और तुम कहते थे कि” - राय विष भरे स्वर से राजेश से बोला - “ब्लास्ट अकेला अखबार है जिसे यह समाचार प्रकाशित करने का अवसर मिला है ।”
राजेश चुप रहा ।
***
ब्लास्ट के मालिक और एडीटर मलिक साहब लगभग पचास वर्ष के प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले वृद्ध थे । उन्होंने एक खोजपूर्ण दृष्टि सुनील, राय और राजेश पर डाली फिर बोले - “बैठ जाओ ।”
तीनों मलिक साहब की विशाल मेज के सामने अर्ध वृत्त में रखी कुर्सियों पर बैठ गए ।
“सीरियस ?” - मलिक साहब ने पूछा ।
“जी हां ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“थोड़ी देर बैठे रहो” - वे बोले और फिर अपने सामने रखे टाइप किए हुए पत्रों पर हस्ताक्षर करने में जुट गए । मलिक साहब के होंठ भिंचे हुए थे और वे मशीन गन की सी तेजी से कागजों पर अपने हस्ताक्षर घसीटे जा रहे थे ।
आखिरी पत्र साइन कर चुकने के बाद उन्होंने कागजों का पुलन्दा एक ओर सरका दिया और मेज की पैनल में लग एक छोटे से बटन पर उंगली रख दी ।
कुछ ही क्षणों में उनकी सेक्रेट्री कमरे में प्रविष्ट हुई और सारे कागज ले गई ।
मलिक साहब कुछ क्षण सैक्रेट्री के बाहर जाने की प्रतीक्षा करते रहे ।
“क्या बात है ?” - अन्त में वे बोले । प्रश्न किसी एक से नहीं किया गया था ।
“कल हमने जो उमाशंकर चोपड़ा वाली न्यूज छापी थी उसमें गड़बड़ हो गई है ।” - उत्तर राय ने दिया । वह बेहद नर्वस ढंग से बोल रहा था क्योंकि उसे भय था कि कहीं मलिक साहब अपने स्वभावानुसार बात सुनकर उबल न पड़ें ।
“क्या गड़बड़ हुई है ?”
“वह आदमी उमाशंकर चोपड़ा नहीं था ।” - राय धीरे से बोला ।
“पहेलियां मत बुझाओ” - मलिक साहब बेसब्री से बोले - “किस्सा क्या है ?”
उत्तर में राय ने आद्योपांत सारी घटना सुना दी ।
राय की बात समाप्त होते ही मलिक साहब एक दम फट पड़े - “जब आप लोगों को उस आदमी की आईडेन्टिटी पर पूरा भरोसा नहीं था तो यह खबर छापी क्यों ?”
“जिस समय खबर छपी थी, उस समय तो हमें इसमें कोई खराबी नहीं दिखाई दे रही थी । उसने उमाशंकर चोपड़ा के नाम के कई कागजात दिखाए थे जिनमें ड्राइविंग लाइसेंस भी था । पुलिस ने पूरा भरोसा कर लेने के बाद ही उसे छोड़ा था । पेपर प्रेस में जाने में केवल बीस मिनट बाकी थे । उस हालत में इससे अधिक पहचान नहीं हो सकती थी ।”
“इसे आप पहचान कहते हैं ?” - मलिक साहब गर्जे - “यह आइडैन्टिफिकेशन है ? इस के दम पर आप बैंक से दस रुपये का चैक कैश नहीं करवा सकते, मिस्टर ।”
“हमने विशालगढ उसकी बीवी को फोन किया था । उसने भी यही कहा था कि उसका पति राजनगर में है ।”
“इससे क्या होता है । न जाने कितनी बीवियों के पति रोज राजनगर आते हैं ।”
राय चुप रहा ।
राजेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।
सुनील शांत था ।
“अब पोजीशन क्या है ?” - मलिक साहब ने पूछा ।
राय ने सुनील की ओर देखा ।
“वह चाहता है” - सुनील बोला - “कि हम ‘ब्लास्ट’ में खेदप्रकाश छापें और फिर हरजाने के रूप में उसे एक मोटी रकम का चैक दें ।”
“अच्छा !” - मलिक साहब गम्भीर स्वर से बोले ।
“मलिक साहब” - सुनील बोला - “वह राजनगर का वी आईपी है । वह नैशनल बैंक का डायरेक्टर है, सिटी क्लब का प्रेसीडैंट है, लोकसभा के लिए उश्मीदवार है, चैम्बर आफ कामर्स के एडवायजरी बोर्ड का मेम्बर है...”
“ऐसी की तैसी उसकी । कितना हर्जाना चाहता है वह ?”
“उसने कोई रकम नहीं बताई थी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह कहता था कि हर्जाना हासिल करने में महत्व उस धन का नहीं है जो उसे मिलने वाला है, महत्व तो इस बात का है कि उसने हम लोगों को झुका लिया है ।”
“ठीक है, हम झुक जाते हैं । उसे एक रुपया दे दो और कहो कि छुट्टी करे ।” - मलिक साहब बोले ।
“जी नहीं । वह तो एक मोटी रकम का चैक चाहता है और साथ में यह भी चाहता है कि हम उस चैक का फोटोग्राफ खेदप्रकाश के साथ अखबार में छापें ।”
“क्या ?” - मलिक साहब फिर गर्ज पड़े ।
“जी हां । वह समझता है कि यही एक तरीका है जिससे उसके मानहानि की पूर्ति हो सकती है ।”
“तुमने उसे धक्के मारकर दफ्तर से बाहर नहीं निकाला ?”
सुनील चुप रहा ।
मलिक साहब की कहर भरी दृष्टि सुनील पर टिक गई । सुनील ने सिर झुका लिया । उन्होंने एक नजर राय के गम्भीर चेहरे पर डाली और फिर वे राजेश को घूरने लगे ।
“तुम हो वह आदमी” - वे बोले - “जिसने हमें इस बखेड़े में फंसाया है ?”
राजेश के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई ।
“सर” - वह बोला - “मैंने केवल न्यूज भेजी थी । मैंने उसे अपनी योग्यतानुसार पूरी तरह ठोक बजा लिया था और फिर...”
“यह सब कुछ तुम्हारे कारण हुआ है न ?”
राजेश ने प्रतिवाद करना चाहा लेकिन फिर धीमे स्वर से बोला - “जी हां ।”
“अब ठीक है” - मलिक साहब बोले - “जब मैं किसी से सीधा सवाल पूछता हूं तो मैं उसका सीधा जवाब चाहता हूं । गोल-गोल बातें करने वाले लोग मुझे पसन्द नहीं । अगर तुम यूं ही मुझे अपनी सफाइयां पेश करते रहते तो मैंने तुम्हें अभी नौकरी से निकाल देना था । वास्तव में जो कुछ हुआ है, उसमें मैं तुम्हारी गलती नहीं मानता हूं । तुम्हारी जगह कोई और होता या ‘ब्लास्ट’ की जगह कोई और अखबार होता तो इन परिस्थितियों में वह भी यही गलती करता ।”
राजेश को अपने में जान सी पड़ती महसूस हुई । उसके मुंह से छुटकारे की एक गहन निश्वास निकल गई ।
“तुमने कोई गलती नहीं की है” - मलिक साहब यूं बोले जैसे कोई अध्यापक पहली कक्षा के बच्चे को समझा रहा हो - “तुमने लेटेस्ट समाचार ‘ब्लास्ट’ को देने की चेष्टा की है इसके लिए तुम प्रशंसा के पात्र हो । बरखुरदार, हम समाचार पत्र छापते हैं । समाचार पत्र का काम समाचार छापना होता है इतिहास छापना नहीं । बात ताजी होती है तो वह समाचार होती है । बात पुरानी हो जाती है तो वह इतिहास बन जाती है और समाचार पत्र के काम की चीज नहीं रहती । समझे ?”
राजेश ने स्वीकृतिसूचक ढंक से सिर हिला लिया ।
“हम समाचार पत्र छापते हैं ।” - मलिक साहब फिर बोले - “कोई फिल्म पत्रिका या प्रचार साहित्य नहीं छापते हैं । हम हर समाचार छापते समय इस बात का ध्यान नहीं रख सकते कि इसमें किसी ने सम्मान को चोट न पहुंचे या किसी का अहित न हो । ऐसी बातें हो ही जाती हैं । लोग हर्जाने का दावा भी कर देते हैं । लेकिन हम चुपचाप हर्जाना नहीं दे सकते । हमें लड़ना पड़ता है । अपने पक्ष की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए कभी कभी अनैतिक काम भी करने पड़ते हैं । आज एक उमाशंकर चोपड़ा हमसे हर्जाना मांगता है, हम उसे हर्जाना दे देते हैं । कल दस उमाशंकर हम पर हर्जाने का दावा करेंगे । नतीजा जानते हो, क्या होगा ? हमारा दिवाला पिट जाएगा । हम किसी को हर्जाना नहीं दे सकते । विशेष रूप से उमाशंकर चोपड़ा को क्योंकि हम जानते हैं कि हमसे कोई गलती नहीं हुई है । ऐसे लोगों से निपटने का ‘ब्लास्ट’ का अपना तरीका है । जानते हो क्या ?”
सबकी प्रश्नसूचक दृष्टि मलिक साहब पर टिक गई ।
“उमाशंकर चोपड़ा कहता है” - मलिक साहब बोले - “कि उस समाचार के प्रकाशन से समाज में जो उसकी प्रतिष्ठा बनी हुई है, उसे चोट पहुंची है इसलिए खेदप्रकाश छापने के साथ साथ उसे हर्जाना भी मिलना चाहिए । हम यह सिद्ध करने की चेष्ठा करेंगे कि वह समाज में प्रतिष्ठा पाने योग्य आदमी ही नहीं है । इसलिए उसकी प्रतिष्ठा की कोई हानि नहीं हुई है ।”
“लेकिन कैसे ?” - राजेश हैरानी से बोला ।
“मैं बताता हूं कैसे ।” - मलिक साहब उत्तेजित स्वर से बोले - “कोई आदमी देवता नहीं होता । हर आदमी में मानवीय कमजोरियां होती हैं । उमाशंकर चोपड़ा भी उन कमजोरियों से दूर नहीं हो सकता । उसने भी अपने जीवन में जरूर कई ऐसे काम किये होंगे जिन्हें वह प्रकाश में नहीं आने देना चाहेगा । तुम विशालगढ जाओ । और वहां के लोकल अखबार की पिछले कई वर्षों की फाइल देख डालो । वहां उमाशंकर चोपड़ा के सर्कल के लोगों से मिलो । यह जानने की कोशिश करो कि उसके पास इतना रुपया कहां से आया । वह मनोरंजन के लिए क्या करता है ? क्या उसका किसी स्त्री से अवैध सम्बन्ध है या पहले रहा है ? क्या उसने कभी अपना काम निकलवाने के लिए लोगों को रिश्वतें दी हैं ? उसकी पिछली दस, पन्द्रह, बीस साल की जिन्दगी के बखिये उधेड़ कर रख दो । जब तुम ये सब जानकारी हासिल कर लोगे तो फिर मिस्टर उमाशंकर चोपड़ा की तबियत का हाल मैं पूछूंगा । इज्जत हत्तक के मुकदमे में सबसे पहली बात यह होती है कि जो आदमी कहता है कि उसकी इज्जत हत्तक हुई है क्या वास्तव में उसकी इज्जत है । हमने यह सिद्ध करना है कि वह इज्जत के योग्य आदमी नहीं । जब उसकी इज्जत ही नहीं है तो फिर हत्तक कैसी । तुम... क्या नाम है तुम्हारा ?”
“राजेश ।” - राजेश ने बताया ।
“हां, राजेश, तुम जैसा मैंने कहा है वैसा करो । उमाशंकर चोपड़ा के जीवन के अन्धेरे पक्ष के बारे में जितनी जानकारी हासिल कर सको, करो ।”
“लेकिन अगर उमाशंकर चोपड़ा को पता लग गया कि मैं उस के पिछले जीवन के बारे में खोजबीन करता फिर रहा हूं तो ?”
“परवाह मत करो । ‘ब्लास्ट’ तुम्हारी पीठ पर है । उमाशंकर तुम से बड़ा हो सकता है लेकिन ‘ब्लास्ट’ से बड़ा नहीं हो सकता । उसने ‘ब्लास्ट’ के रिपोर्टर से टक्कर नहीं ली है, ‘ब्लास्ट’ से टक्कर ली है, ‘ब्लास्ट’ की पूरी आर्गेनाइजेशन से टक्कर ली है । यह लड़ाई हमने नहीं उसने शुरू की है । वही उसे भुगतेगा । वह कहेगा उसकी इज्जत की कीमत पचास हजार रुपये है । हम कहेंगे उसकी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं है । देखें कैसे जीतता है वह । तुम उमाशंकर की परवाह किए बिना उसके और उसके पिछले जीवन के पीछे जोंक की तरह लग जाओ । नतीजा जो होगा, ‘ब्लास्ट’ भुगत लेगा । समझे ?”
राजेश ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“अगर उमाशंकर चोपड़ा को यह पता लग गया कि तुम उसके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हो तो वह तुम्हें परेशान करने की कोशिश करेगा लेकिन तुमने डरना नहीं है, हिचकना नहीं हैं और न ही किसी प्रकार की हीनता का प्रदर्शन करना है । तुमने उस पर यह प्रकट करना है कि अगर वह तुम से पीछा छुड़ा लेगा या तुम्हें सफल नहीं होने देगा तो ‘ब्लास्ट’ का कोई दूसरा आदमी तुम्हारी जगह ले लेगा लेकिन वह फाइट बन्द नहीं होगी । तुम सारे विशालगढ में घूम जाओ । उसकी सिटी क्लब की मीटिंग अटैन्ड करो । उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाओ । अगर कभी बात हो तो उसके साथ बड़े सम्मान से पेश आओ लेकिन यह मत भूलो कि तुम विशालगढ उसकी प्रसिद्धि, उसकी प्रतिष्ठा, उसके मान सम्मान को बारूद लगाने जा रहे हो । और किसी प्रकार के खर्चे की परवाह मत करना । ‘ब्लास्ट’ उस आदमी को पचास हजार रुपये देने के स्थान पर तुम पर एक लाख रुपया खर्च कर देना अधिक पसन्द करेगा । समझ गए ?”
“यस सर ।”
“कर सकोगे यह काम ?”
“यस सर ।”
“शाबाश ! तुम अपनी डेली रिपोर्ट सुनील को दोगे । और तुम, सुनील” - मलिक साहब सुनील की ओर घूमे - “मैं तुम्हें इस केस का चार्ज दे रहा हूं । इस केस में जो स्याह सफेद होना है तुम ने करना है । अब के बाद उमाशंकर चोपड़ा के मामले में आप लोग मुझे परेशान करने नहीं आएंगे । ओके ?”
“ओके, सर ।” - सुनील बोला ।
“दैन गैट स्टार्टेड एवरी बाडी ।” - मलिक साहब बोले ।
तीनों मलिक साहब को अभिवादन करके कमरे से बाहर निकल गए ।
***
रात के लगभग साढे बारह बजे थे ।
होटल ज्यूल बाक्स हमेशा की तरह आज भी एक दुल्हन की तरह सजा हुआ था । रूबी जोन के आर्केस्ट्रा की स्वर लहरियां होटल के वातावरण में रंगीनी उत्पन्न करने में विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो रही थीं ।
होटल ज्यूल बाक्स में हुई एक हत्या और उसके बाद होटल के भूतपूर्व मालिक माइक की मृत्यु के बाद एक बार तो ज्यूल बाक्स में उल्लू बोलने लगे थे । लेकिन सन्नाटे का यह आलम एक-आध महीने ही रहा । माइक की पत्नी के ज्यूल बाक्स का मैनेजमेंट सम्भालते ही सब कुछ फिर बड़े सुचारु रूप से चलने लगा । होटल ज्यूल बाक्स अपने फर्स्ट क्लास मनोरंजन के लिए सारे राजनगर में प्रसिद्ध था । उस जैसा आर्केस्ट्रा और डांस फ्लोर अन्य किसी होटल में नहीं था । इसलिए लोग एक बार फिर ज्यूल बाक्स की ओर आकर्षित होने लगे । आज ज्यूल बाक्स की हालत यह थी कि प्रि-रिजर्वेशन के बिना ज्यूल बाक्स में स्थान पा लेना एक बेहद कठिन काम था ।
उसी समय एक कार होटल ज्यूल बाक्स के कम्पाउन्ड में घुसी और पार्किंग में रुकने के स्थान पर राहदारी में से होती हुई होटल के पिछवाडे की ओर घूम गई ।
एक वेटर जो बाहर खड़ा कारों को पार्क करने में और उन्हें पार्किंग में से निकालने में सहायता कर रहा था, कार को पिछवाड़े की ओर घूमती देख कर कार के पीछे भागा ।
“रुकिये साहब ।” - वह अपने स्वर को अशिष्ट होने से बचाये रखने की भरसक चेष्टा करता हुआ जोर से बोला ।
कार साइड में अंधेरे से कोने में रुक गई ।
“पीछे पार्किंग नहीं है, साहब ।” - वेटर कार के समीप आकर बोला । उसने कार के भीतर झांकने की चेष्टा की लेकिन अंधकार में उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया । कार की हैडलाइट भी बुझा दी गई थी ।
उसी समय कार का पिछला द्वार खुला और एक लम्बा-सा आदमी कार से बाहर निकल आया ।
वेटर ने उसकी ओर घूम कर कुछ बोलने के लिए मुंह खोला और फिर उसका मुंह खुला का खुला रह गया ।
लम्बे आदमी का चेहरा नकाब से ढका हुआ था और उसके दायें हाथ में एक रिवाल्वर चमक रहा था जिस की नाल वेटर के पेट की ओर तनी हुई थी ।
“हिले या चिल्लाये तो गोली मार दूंगा ।” - नकाब वाला दबे स्वर से बोला ।
वेटर थर-थर कांपने लगा ।
“तुम मेरे साथ वापिस होटल के सामने चलोगे” - नकाब वाला बोला - “और उसी प्रकार अपना काम करते रहोगे जैसे अब से दस मिनट पहले कर रहे थे । मैं झाड़ियों को पीछे छुपा रहूंगा । अगर तुमने मेरी दृष्टि से ओझल होने की चेष्टा की या किसी को किसी प्रकार के खतरे का संकेत देने की चेष्टा की तो तुम्हारे शरीर में झरोखे ही झरोखे दिखाई देंगे । समझ गए ?”
वेटर का चेहरा सफेद पड़ गया था ।
“हां, साहब ।” - वह कठिन स्वर से बोला । प्रत्यक्ष था कि वह शहीद नहीं होना चाहता था ।
“वापिस चलो ।” - नकाब वाला रिवाल्वर से उसे कवर करके बोला । कार फिर चल पड़ी और ज्यूल बाक्स के पिछवाड़े में आकर रुक गई ।
पिछवाड़े में अन्धकार छाया हुआ था । वहां एक छोटा सा बरामदा था जिसके सामने एक स्टूल पर एक चौकीदार बैठा हुआ था और उसकी जांघ के साथ टिकी एक रायफल दिखाई दे रही थी ।
कार को देख कर वह एकदम उठ खड़ा हुआ । उसने रायफल सम्भाल ली ।
“कौन है ?” - उसने कठोर स्वर से पूछा ।
उत्तर में कार की खिड़की का एक शीशा लगभग दो इंच नीचे घूमा फिर साइलेंसर लगे रिवाल्वर में से निकली गोली की हल्की सी पिट की आवाज हुई और चौकीदार बिना दूसरा शब्द मुंह से निकाले वहीं ढेर हो गया ।
गोली उसके सीने के आर पार हो गई थी ।
कार में से पांच आदमी निकले । उनके चेहरे नकाबों से ढके हुए थे, हाथों में दस्ताने थे और उनमें साइलेंसर लगे रिवाल्वर चमक रहे थे ।
ड्राइवर की सीट पर बैठा आदमी अपने स्थान से नहीं हिला । वह स्टेयरिंग पर कोहनियां टिकाये अन्धकार पूर्ण गलियारे पर नजर जमाए हुए था । उसके हाथ में भी रिवाल्वर था ।
एक आदमी ने चौकीदार की बगलों में हाथ डाले और उसके मृत शरीर को घसीट कर झाड़ियों में डाल दिया।
बरामदे में जीरो वाट का बल्ब जल रहा था जिसके धुंधले प्रकाश में पहली मन्जिल की ओर जाती हुई सीढियां दिखाई दे रही थीं ।
पांचों चुपचाप सीढियां चढने लगे ।
जहां सीढियां समाप्त होती थीं वहां एक और द्वार था और उसके आगे गलियारा था ।
गलियारे के दूसरे सिरे पर एक और द्वार था । उस द्वार को खोलते ही वे एकाएक अन्धकार में से तीव्र प्रकाश में आ गए ।
वह एक बहुत बड़ा हाल था । उसके एक कोने में बार था जिसके काउन्टर के सामने कई आदमी स्टूलों पर बैठे शराब पी रहे थे । हाल में कई मेजें थीं और उन पर लगभग तीस आदमी बैठे विभिन्न प्रकार के जुए के खेल रहे थे जिनमें से रोलेट भी एक था ।
नकाबपोशों पर सबसे पहले बारटेन्डर की नजर पड़ी । हाल के लोगों की ओर तनी पांच रिवाल्वरों को देखकर उसके हाथ से पैमाना छूट गया और मुंह से एक घर-घराहट सी निकल कर रह गई ।
अगले क्षण तक नकाबपोशों पर सबकी नजर पड़ चुकी थी । एक दम से हाल में खलबली मच गई । लोगों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
“शट अप एवरीबाडी” - रिंग लीडर सा लगने वाला एक लम्बा चौड़ा नकाबपोश आगे बढकर चिल्लाया - “सब लोग अपने-अपने हाथ अपने सिरों से ऊपर उठा लें । कोई अपनी जगह से हिले नहीं । आपकी मामूली सी हरकत भी आपकी मौत का कारण बन सकती है ।”
सबने चुपचाप हाथ सिरों से ऊपर उठा दिए । प्रत्यक्ष था कि कोई भी गोली का शिकार नहीं होना चाहता था । शायद उन लोगों को पहली बार महसूस हो रहा था कि तुरप के इक्के से रिवाल्वर की गोली हर हाल में बड़ी होती है ।
उसी समय भीड़ के पीछे से एक आदमी निकल कर नकाबपोशों के सामने आ खड़ा हुआ ।
“यह क्या हरकत है ?” - वह अपने स्वर में सन्तुलन पैदा करने का भरसक प्रयत्न करते हुए बोला - “आखिर आप लोग चाहते क्या हैं ?”
“वह भी बताते हैं, बताते हैं, मिस्टर रामपाल” - रिंग लीडर बोला - “अच्छा है तुम खुद ही प्रकट हो गए, वर्ना मुझे तुम्हारी तलाश करवानी पड़ती ।”
रामपाल माइक का भूतपूर्व पार्टनर और जुआघर का वर्तमान संचालक था ।
रिंग लीडर ने तीन आदमियों को वहीं रहने का संकेत किया और एक को अपने साथ आने का संकेत करके रामपाल की ओर बढा ।
उसने रिवाल्वर रामपाल की छाती पर रख दी ।
“अपने कमरे में चलो ।” - वह बोला ।
रामपाल ने प्रतिवाद के लिए मुंह खोला लेकिन उस से पहले ही रिंग लीडर रिवाल्वर की नाल उसकी छाती में चुभोता हुआ बोला - “चलो” ।
रामपाल चुपचाप अपने कमरे की ओर चल दिया । कमरे के भीतर आकर नकाबपोश ने चारों ओर देखा । एक कोने में एक भारी सी सेफ रखी हुई थी ।
“वह सेफ खोलो ।” - रिंग लीडर बोला ।
“उसमें रुपया नहीं है ।” - रामपाल धीरे से बोला ।
“शट अप । मैंने तुम से यह नहीं पूछा है कि उस में रुपया है या नहीं ।”
रामपाल ने चुपचाप सेफ खोल दी ।
“इसे कवर करके रखना ।” - रिंग लीडर अपने साथी से बोला । उसने अपनी रिवाल्वर जेब में रख ली और सेफ की ओर बढा ।
सेफ सोने के जेवरों और नोटों की गड्डियों से भरी हुई थी लेकिन उसने उन चीजों की परवाह किए बिना सेफ के बाकी सामान को टटोलना आरम्भ कर दिया ।
एक दराज में आठ गुणा दस इंच साइज का एक मोटा सा भूरे रंग का लिफाफा रखा था । वह कुछ क्षण उलझनपूर्ण दृष्टि से उसे देखता रहा फिर उसने उसे अपने कोट की जेब में डाल लिया ।
“उस लिफाफे में कुछ नहीं है । वह तो तुम्हारे लिए एकदम बेकार की चीज है ।” - रामपाल विरोधपूर्ण स्वर से बोला ।
“तुम अपनी चोंच बन्द रखो ।” - रिंग लीडर बोला और बाकी दराजों में देखने लगा ।
एक दराज में कागजों का एक मोटा सा पुलन्दा रखा था । उसने उसे भी जेब में डाल लिया ।
सेफ में और कोई कागज नहीं था ।
उसके बाद उसने अपनी सारी जेबें नोटों से भरनी आरम्भ कर दीं । उसने जेवरों को हाथ नहीं लगाया ।
जब सारी जेबें बुरी तरह ठुंस गई तो उसने नोटो की दस बारह गड्डियां दूसरे नकाबपोश की ओर उछाल दीं ।
“रामपाल” - रिंग लीडर जेब में से रिवाल्वर निकाल कर फिर हाथ में लेता हुआ बोला - “अगर मुझे यह मालूम होता कि तुम्हारी सेफ में इतना रुपया है तो मैं साथ में अटैची केस लेकर आता ।”
रामपाल चुप रहा । अपना धन लुटता देख कर तो उस के दिल पर छुरियां चल रही थीं ।
“खैर, फिर कभी सही ।” - वह बोला ।
“बस” - दूसरा नकाबपोश लालच भरे स्वर से बोला - “अभी तो सेफ में बहुत धन है । जेवर वगैरह...”
“बेवकूफ मत बनो” - रिंग लीडर ने डांटा - “काम हो चुका है । अब फूटो यहां से ।”
वे बाहर निकल आए ।
बाहर तीनों नकाबपोश अब भी हाल के लोगों को कवर किए हुए थे ।
रिंग लीडर ने सब को बाहर निकलने का संकेत किया । तीनों नकाबपोश हाल के लोगों पर दृष्टि जमाए उल्टे पांव चलते हुए द्वार की ओर बढने लगे ।
उसी क्षण एकाएक दूसरा नकाबपोश चिल्ला उठा - “उस्ताद बचो ।”
रिंग लीडर एकदम घबरा कर पीछे हट गया ।
एक गोली उस के सिर से एक इन्च दूर से होती हुई निकल गई ।
उसी क्षण दूसरे नकाबपोश के रिवाल्वर ने तीन बार आग उगली और बार के काउन्टर के पीछे छिपा एक आदमी एक लम्बी चीख के साथ फर्श पर लोट गया । उसका शरीर फर्श पर पड़ा एक दो बार तड़फड़ाया और फिर शान्त हो गया ।
उसके हाथ में थमे रिवाल्वर में से अब भी धुआं निकल रहा था ।
हाल में मौत का सा सन्नाटा छाया हुआ था ।
दोनों नकाबपोश फुर्ती से बाहर निकल गए । उन्होंने द्वार बाहर से बन्द कर दिया ।
वे तेजी से भागते हुए नीचे पहुंचे ।
पहले तीन नकाबपोश गाड़ी में बैठ चुके थे । ड्राइवर ने इंजन चालू किया हुआ था ।
उन दोनों के बैठते ही गाड़ी एक झटके से चल पड़ी । ड्राइवर ने बड़ी तेजी से मोड़ काटा ।
क्षण भर के लिए ड्राइवर ने पार्किंग के सामने ब्रेक लगाया । झाड़ियों में से एक नकाबपोश निकला और पलक झपकते ही कार में प्रविष्ट हो गया ।
अगले ही क्षण गाड़ी बन्दूक में से निकली गोली की तरह खुली सड़क पर फर्राटे भर रही थी ।
***
सुनील अपने विरोधी अखबार ‘क्रानिकल’ में होटल ज्यूल बाक्स में पड़े डाके का विवरण पढ रहा था ।
उसी समय टेलीफोन की घण्टी बज उठी ।
सुनील ने रिसीवर उठा लिया और कहा - “यस ?”
“सुनील” - दूसरी ओर से रिसेप्शनिस्ट रेणु का स्वर सुनाई दिया - “एक महिला उमाशंकर चोपड़ा के मामले में मलिक साहब से बात करना चाहती है । मैं उन्हें...”
“रेणु” - सुनील जल्दी से बोला - “उन्हें मेरे पास भेज दो । अब इस मामले में मलिक साहब को डिक्टर्ब नहीं किया जा सकता ।”
“ओके ।”
कुछ क्षण बाद चपरासी एक महिला को सुनील के केबिन में छोड़ गया ।
“तशरीफ रखिये ।” - सुनील शिष्टाचार पूर्ण स्वर से एक कुर्सी की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“थैंक्यू ।” - वह बैठ गई ।
सुनील ने देखा, वह लगभग तीस वर्ष की तीखे नाक नक्श वाली महिला थी । वह सुन्दर परिधान पहने थी बाल कटे हुए थे और चेहरे पर गहरा किन्तु आकर्षक मेकअप किया हुआ था उसके चेहरे पर चिन्ता के लक्षण परिलक्षित हो रहे थे ।
“फरमाइये ।” - सुनील बोला ।
“मैं ‘ब्लास्ट’ के एडीटर - प्रोप्राइटर से मिलना चाहती थी ।” - वह बोली । प्रत्यक्ष था कि वह सुनील से बात करके सन्तुष्ट नहीं थी ।
“उमाशंकर चोपड़ा के मामले में ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी हां ।”
“आप ?”
“मैं उमाशंकर चोपड़ा की पत्नी हूं ।”
“ओह !”
“अपने पति के हित में और आपके अखबार के हित में यह बहुत अच्छी बात होती अगर मैं मिस्टर मलिक से मिल पाती ।”
“मुझे दुख है मिस्टर मलिक बहुत बिजी आदमी हैं । छोटी-छोटी बातों के लिए उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता ।”
“यह छोटी बात नहीं है ।”
“देखिए श्रीमती जी” - सुनील तिक्तता का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “जब तक आप मुझे कुछ बताएंगी नहीं कैसे पता लगेगा कि बात छोटी है या बड़ी । उमाशंकर चोपड़ा का केस मैं डील कर रहा हूं । अगर आप उस मामले से संबन्धित कोई बात कहना चाहती हैं तो शौक से कहिए । बाद में अगर मैं समझूंगा कि मलिक से मिले बिना आपका काम नहीं चल सकता तो मैं कोशिश करूंगा कि वे आपसे मिल लें ।”
“वैरी वैल ।” - वह बोली । उसके स्वर से निराशा स्पष्ट झलक रही थी ।
सुनील चुप बैठा रहा ।
“मेरे पति से सम्बन्धित आपने जो समाचार छाया था उस सिलसिले में मेरे पति आपसे मिले थे ?”
“जी हां ।”
“आप उस सिलसिले में क्या कर रहे हैं ?”
“यह तो आप बड़ा अनुचित प्रश्न पूछ रही हैं । हम दूसरी पार्टी को अपने पत्ते कैसे दिखा सकते हैं ?”
वह कुछ क्षण कसमसाई और फिर बोली - “ओके । आप अपने पत्ते मत दिखाइए । मैं ही अपने पत्ते आपको दिखाती हूं । पत्ते दिखाने का बड़ा कारण यह है कि मेरे पास इक्का एक भी नहीं है । देखिये मेरी निजी राय यह है कि अखबार वालों से टक्कर लेकर मेरे पति ने कोई अच्छा काम नहीं किया है । मैंने अपने पति के वकील से इस सिलसिले में बात की थी उसका कथन है कि जब भी कोई आदमी अखबार वालों पर मानहानि का दावा करता है तो वे अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उसकी पिछली जिन्दगी खोदना आरम्भ कर देते हैं ताकि उन्हें उस आदमी के विरुद्ध इस्तेमाल करने के लिए कोई ऐसा तथ्य हासिल हो जाये जिसे वह प्रकाश में न आने देना चाहता हो । क्या यह सच है ?”
“जी हां, सच है” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “देखिये हम लोग समाचार पत्र छापते हैं और समाचार पत्र का काम बड़ी तेज रफ्तार से होता है । हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि हमसे कोई गलती न हो लेकिन फिर भी कोई न कोई गलती हो जाती है । हमारी उस गलती से अगर किसी का अहित होता है तो हम पूरी चेष्टा करते हैं कि हम उस गलती को सुधार लें । हम क्षमा याचना के रुप में खेदप्रकाश छाप देते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि वह आदमी सन्तुष्ट हो जाए । लेकिन अगर कोई आदमी क्षमा याचना को पर्याप्त न समझ कर हमसे भिड़ना चाहता है तो हम भी उससे भिड़ जाते हैं । हमारी नजर में ऐसी कोई गलती नहीं होती है जो खेदप्रकाश छापने से सुधर न सकती हो । हमसे हुई गलती का झंडा खड़ा करके अगर कोई हमसे रुपया ऐंठने की कोशिश करता है तो फिर हम झुकते नहीं हैं । हम दूसरे को झुकाने के लिए जमाने भर के हथियार इस्तेमाल करते हैं । अगर कोई हमारी नाक पर घूंसा मारता है तो हम भी उसकी नाक पर घूंसा मारते हैं । अगर कोई हमारी एक आंख फोड़ना चाहता है तो हम उसकी दोनों आंखें फोड़ने के फिराक में लग जाते हैं । अगर कोई एक फाउल करता है तो हम दस फाउल करते हैं । यह है अखबार वालों के लड़ने का तरीका । अगर फिर भी कोई समझे कि वह हमें धमकियों से झुका सकता है तो उसकी मर्जी ।”
“लेकिन यह जरूरी थोड़े ही है कि आप हर आदमी की पिछली जिन्दगी में से कोई न कोई ऐसी बात निकाल ही लें जिसके प्रकट होने से वह डरता हो ।”
“जी हां, जरूरी है” - सुनील जोर देकर बोला - “कोई आदमी देवता नहीं होता । हर आदमी के अन्तर में एक शैतान पल रहा होता है और आप जानती हैं कि शैतान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता ।”
“लेकिन मेरे पति ऐसे नहीं है ।” - वह बोली ।
“तो फिर आप यहां किसलिए तशरीफ लाई हैं ?” - सुनील जलकर बोला ।
वह चुप रही । कई क्षण चुप रहने के पश्चात वह बोली - “क्योंकि इस बार मेरे पति ने भारी मूर्खता की है । उसे आपको मानहानि के मुकदमे की धमकी नहीं देनी चाहिए थी ।”
सुनील चुप रहा ।
“आप खेदप्रकाश छाप दीजिए और बात को समाप्त समझिये ।”
“लेकिन आपके कहने से बात कैसे समाप्त हो सकती है ? हमारा वास्ता तो आपके पति से है और हम उनके मुंह से ही यह सुनना पसन्द करेंगे ।”
“उनकी बात छोड़िये । मैं राजनगर अपने पति के प्रतिनिधि के रूप में आई हूं । मेरे पति के वकील मिस्टर शर्मा मेरे साथ आये हैं । मिस्टर शर्मा इस समय पैलेस होटल में है । मेरे पति इस मामले में ‘ब्लास्ट’ के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठायेंगे । इस विषय में आप जैसी कानूनी गारन्टी चाहेंगे, मिस्टर शर्मा आपको देंगे ।”
“लेकिन यह बात हम मिस्टर उमाशंकर चोपड़ा के मुंह से सुनना पसन्द करेंगे ।”
“आखिर इसकी जरूरत क्या है ?”
“किस बात की जरूरत है और किस बात की जरूरत नहीं है, यह हमारे सोचने की बात है ।”
“आखिर आप बात को खत्म क्यों नहीं करना चाहते हैं ? - वह परेशान स्वर से बोली - “आप को आम खाने से मतलब होना चाहिए न कि पेड़ गिनने से । मैं कहती हूं आप मेरे साथ पैलेस होटल चलिए । आप जैसी गारण्टी चाहेंगे मिस्टर शर्मा आप को दे देंगे और सारा झमेला खत्म हो जायेगा ।”
“आपके वकील साहब यहां क्यों नहीं आते हैं ?”
“वे वृद्ध आदमी हैं । विशालगढ से राजनगर आने के लिए ही वे बड़ी मुश्किल से तैयार हुए थे । वे ज्यादा भाग दौड़ करें तो उनका ब्लड प्रेशर बढ जाता है ।”
सुनील कई क्षण सोचता रहा । उसे समझ नहीं आ रहा था कि मलिक साहब उसका वहां जाना पसन्द करेंगे या नहीं । अन्त में वह उठ खड़ा हुआ और निर्णयपूर्ण स्वर से बोला - “चलिए ।”
मिसेज चोपड़ा उठ खड़ी हुई ।
सुनील ने आगे बढकर उसके लिए केबिन का द्वार खोला ।
“थैक्यू ।” - वह बोली और बाहर निकल गई ।
सुनील भी टाई की नाट ठीक करता हुआ उसके साथ चल दिया ।
साउण्डप्रूफ केबिन से बाहर निकलते ही रोटरी मशीन के चलने का शोर सुनाई देने लगा । केबिनों की कतारों के बीच में बनी राहदारी में से होता हुआ सुनील जब रिसेप्शन के काउंटर के पास से गुजरा तो रेणु ने उसे देखकर आवाज दी - “मिस्टर सुनील, प्लीज ।”
सुनील ने देखा, रेणु की आंखों से शरारत टपक रही थी ।
“क्या है ?” - वह समीप आकर झुंझलाये स्वर से बोला ।
रेणु ने एक अर्थपूर्ण दृष्टि मिसेज चोपड़ा पर डाली और फिर सुनील के कान के पास मुंह ले जाकर धीमे स्वर से गुनगुनाई - “तेरी उफलत है नई नवेली, कि सैयां जरा बचके रहियो ।”
“रेणु, रेणु” - सुनील दांत पीसकर बोला - “सम डे आई विल किल यू ।”
“च, च ।” - रेणु उसे पुचकारती हुई बोली ।
सुनील ने एक बार सीढियों के पास खड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करती मिसेज चोपड़ा को देखा और फिर सिर को एक झटका देकर उसकी ओर बढ गया ।
“क्या बात थी ?” - मिसेज चोपड़ा ने पूछा ।
“कुछ नहीं । वह लड़की आपकी सुन्दरता और चमक दमक देखकर आपको फिल्म अभिनेत्री समझ बैठी थी ।”
“अच्छा !” - मिसेज चोपड़ा का चेहरा चमक उठा ।
“जी हां ।”
“क्या मैं वाकई फिल्म अभिनेत्री लगती हूं ?” - उसने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
“जी नहीं ।” - सुनील ने बर्फ से ठण्डे स्वर से उत्तर दिया ।
वह एकदम चिहुंक पड़ी । शायद उसे ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । उसने एक विचित्र दृष्टि सुनील पर डाली और फिर तेजी से सीढियां उतर गई ।
नीचे पहुंचकर उन्होंने एक टैक्सी ली और वे पैलेस होटल पहुंच गए । मिसेज चोपड़ा ने अपना पर्स निकाला और टैक्सी ड्राईवर को पैसे देने लगी । सुनील ने औपचारिक रूप से पैसे स्वयं देने का उपक्रम नहीं किया ।
वह बिना एक शब्द बोले होटल में घुस गई । सुनील उसके पीछे था ।
वे दोनों लिफ्ट की सहायता से होटल की छठी मंजिल पर पहुंच गए ।
मिसेज चोपड़ा ने एक द्वार खटखटाया ।
द्वार एक वृद्ध ने खोला ।
दोनों भीतर घुस गए ।
“सो नाइस आफ यू टु हैव कम, मिस्टर मलिक ।” - वृद्ध सुनील से बोला ।
“वकील साहब” - मिसेज चोपड़ा जल्दी से बोली - “ये मिस्टर मलिक नहीं हैं, ये मिस्टर सुनील हैं । ‘ब्लास्ट’ से ही सम्बन्धित हैं ये । इनके कथनानुसार इस मामले में ये मलिक साहब का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । और मिस्टर सुनील ये मेरे पति के वकील मिस्टर शर्मा हैं ।”
दोनों ने एक दूसरे का अभिवादन किया ।
“तशरीफ रखिए ।” - वकील बोला ।
“मैं खड़ा ही ठीक हूं, मेहरबानी ।” - सुनील रुक्ष स्वर से बोला ।
“लेकिन शायद बातचीत में देर लग जाए ।”
“देर वाली कोई बात नहीं है । आप भूमिका को छोड़कर एकदम से सीधी बात कहिए कि आप चाहते क्या हैं ?”
वकील उलझनपूर्ण नेत्रों से सुनील को देखता रहा ।
“आप यह समझ लीजिए कि जो आप कहना चाहते हैं उस की पृष्ठभूमि मिसेज चोपड़ा पहले ही तैयार कर चुकी हैं ।”
वकील ने एक गहरी सांस ली और उत्साह रहित स्वर से बोला - “मैंने अपने मुवक्किल मिस्टर उमाशंकर चोपड़ा को यह राय दी है कि उस समाचार के मामले में वह आपके अखबार के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही न करे । मिस्टर चोपड़ा कोई बखेड़ा नहीं चाहते ।”
“पहले तो वह बहुत बखेड़ा चाहते थे ।”
“पहले की बात छोड़िए ।”
“बदले में ‘ब्लास्ट’ को क्या करना होगा ?”
“आप केवल खेदप्रकाश छाप दीजिए कि वह समाचार भूल से छप गया है । विशालगढ के उमाशंकर चोपड़ा का इस मामले से कोई सम्बन्ध नहीं है ।”
“हम आपकी बात तो छाप देंगे, वकील साहब लेकिन शीर्षक खेदप्रकाश नहीं होगा ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि हम यह बात एक समाचार के रूप में छापेंगे कि विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि जिस आदमी ने राजनगर पुलिस हैडक्वार्टर में अपना नाम उमांशकर चोपड़ा बताया था, वह वास्तव में उमाशंकर चोपड़ा नहीं था बल्कि कोई पेशेवर अपराधी था, जिसने मिस्टर चोपड़ा का पर्स चुराया था और पर्स में से निकले उमाशंकर चोपड़ा के कागजात की सहायता से पुलिस इंस्पेक्टर को धोखा देकर बच निकला था । अगर आपको यह स्वीकार है तो आप मिस्टर चोपड़ा को कहिए कि वे एक लिखित स्वीकृति पत्र हमें दे दें । अगर आपको यह स्वीकार नहीं है तो आप खुशी से ‘ब्लास्ट’ पर दावा कर दिजिए यह हमारा अन्तिम उत्तर है ।”
सुनील को पूरा विश्वास था कि उसकी बात सुनते ही वकील फट पड़ेगा लेकिन उस यह देखकर सख्त हैरानी हुई कि वकील के चेहरे पर पूर्ण सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे ।
“हमें मन्जूर है ।” - वकील बोला ।
“बड़ी अच्छी बात है ।” - सुनील बोला ।
“और मैं मिस्टर चोपड़ा से एक स्वीकृति पत्र भी लिखवा लाया हूं ।” - वकील जेब में से एक लम्बा कागज निकाल कर सुनील को देता हुआ बोला - “उसमें मैंने मिस्टर चोपड़ा से जो कुछ लिखवाया है उसका आशय यह है कि कथित समाचार के ‘ब्लास्ट’ में प्रकाशन की किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से मिस्टर चोपड़ा आपको मुक्त करते हैं ।”
सुनील ने स्वीकृति पत्र पर उमाशंकर चोपड़ा के हस्ताक्षर देखे और फिर उसने उसे मोड़ कर जेब में रख लिया ।
“ओके” - वह वकील की ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “थैक्यू वैरी मच । सो नाइस आफ यू ।”
वकील ने उसका हाथ थाम लिया और बोला - “नो हार्ड फीलिंग मिस्टर सुनील ?”
“नो हार्ड फीलिंग ।”
वकील के मुंह से छुटकारे की गहन निश्वास निकल गई ।
सुनील ने मिसेज चोपड़ा का अभिवादन किया और होटल के कमरे से बाहर निकल आया ।
***
मलिक साहब ने एक भरपूर दृष्टि सुनील पर डाली और फिर बोले - “वह उमाशंकर चोपड़ा वाले केस की क्या पोजीशन है ?”
“वह तो कल ही समाप्त हो गया था, मलिक साहब ।”
“क्या मतलब ?”
“कल आपको बताने का अवसर नहीं मिला था । कल मैं मिसेज चोपड़ा और उनके वकील से मिला था । उन्होंने कहा है कि अगर हम अपने अखबार के अगले अंक में उस गलती को किसी भी रूप में स्वीकार कर लें तो मिस्टर चोपड़ा सन्तुष्ट हो जायेंगे । वकील ने मुझे चोपड़ा का लिखित स्वीकृति पत्र भी दिया है ।”
“लेकिन यह हुआ कैसे ? तुम तो उस दिन बता रहे थे कि वह इस समाचार से इतना क्रोधित हुआ था कि अगर उसका बस चल तो ‘ब्लास्ट’ की ईंट से ईंट बजा दे ।”
“मैं खुद हैरान हूं, मलिक साहब” - सुनील बोला - “उस दिन तो वह क्रोध से उफनता हुआ हमारे दफ्तर से आया था । भगवान जाने एकाएक उसके इरादे क्यों बदल गए ?”
“राजेश उसके पीछे लगा हुआ है । सम्भव है, उसने कोई ऐसी बात खोद निकाली हो जिससे उमाशंकर चोपड़ा डर गया हो और उसने यही बेहतर समझा हो कि वह हम से न उलझे ।”
“सम्भव है ।” - सुनील ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाते हुए कहा ।
“राजेश ने कोई रिपोर्ट भेजी है ?” - मलिक साहब ने पूछा ।
“परसों तो आप ही ने उससे बात की थी ।”
“मैं कल के बारे में पूछ रहा हूं ।”
“कल लंच के बाद उसका फोन आया था । फोन पर उसने कहा था कि उसे चोपड़ा के बारे में एक ऐसी बात मालूम हुई है जो अगर सच सिद्ध हो गई तो वह उसकी सामाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठा को आग लगा देगी । उसने कहा था कि इसी सम्बन्ध में वह एक विदेशी लड़की के पीछे लगा हुआ है । उसने टेलीफोन पर अधिक गम्भीर बातें करनी उचित नहीं समझी थीं । उसने कहा था कि आज वह स्वयं आफिस में आकर रिपोर्ट देगा ।”
“अभी तक आया नहीं वह ?”
“आया तो नहीं लेकिन वह किसी भी समय आने वाला होगा ।”
“जब आए तो उसे कहना कि चोपड़ा का पीछा करना बन्द कर दे । हमारा काम हो चुका है । अब हमें उसकी पिछली जिन्दगी के बखिये उधेड़ने की जरूरत नहीं ।”
उसी समय फोन की घन्टी बज उठी ।
“देखो, कौन है ।” - मलिक साहब अलसाए स्वर में बोले ।
सुनील ने फोन उठा लिया ।
“हल्लो !” - सुनील माउथपीस में बोला ।
दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप सुनील के हाथ से रिसीवर छूटते-छूटते बचा । उसके चेहरे की रंगत बदल गई ।
“क्या बात है ?” - मलिक साहब ने पूछा ।
सुनील ने हाथ उठा कर उन्हें चुप रहने का संकेत किया और फिर फोन में बोला - “आप लोगों से शिनाख्त में कोई गलती तो नहीं हुई ? ओके । मैं पहचान के लिए आता हूं... क्या ? आधे घण्टे बाद ? ...अच्छा ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया । उसके चेहरे पर दुख और विषाद के लक्षण उभर आए थे ।
“क्या हुआ ?” - मलिक साहब ने बेसब्री से पूछा - “किसका फोन था ?”
“इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल का । राजेश की हत्या हो गई है ।” - सुनील धीमे स्वर से बोला ।
“क्या ?” - मलिक साहब एकदम हैरानी से चिल्ला उठे ।
“जी हां ।”
“लेकिन वह तो विशालगढ में था ?”
“उसका मृत शरीर राजनगर के बाहर एक उजाड़ जगह पर पाया गया है । लाश केवल आधा घण्टा पहले मिली है लेकिन हत्या पिछले चौबीस घण्टों में किसी समय हुई है । मृत्यु सिर के पिछले भाग में किसी भारी चीज की चोट पड़ने से हुई है । उसका सिर बुरी तरह कुचला हुआ पाया गया था । इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल का ख्याल है कि उसे मारा कहीं और गया है लेकिन बाद में उसकी लाश लाकर वहां फेंक दी गई है । लाश लगभग आधे घन्टे बाद मोर्ग में पहुंच जाएगी ।”
“बेचारा ।” - मलिक साहब दुखपूर्ण स्वर से बोले - “मैंने ही उसे मौत के मुंह में झोंका है । भगवान जाने उसने किस के विरुद्ध क्या खोज निकाला था कि लोगों ने उसकी हत्या कर दी ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील” - मलिक साहब एकाएक उत्तेजित हो उठे - “हम हत्यारे को छोड़ेंगे नहीं । हमें राजेश की मौत का बदला लेना है । चाहें हमें इसके लिए जमीन आसमान एक कर देना पड़े । सुनील, तुम अपने यूथ क्लब के सदस्यों से अपील करो कि वह इस विषय में हमारी सहायता करें । वे पता लगायें कि राजेश इतने दिन विशालगढ में क्या करता रहा है, किस के पीछे पड़ा हुआ था, वह किस लाइन पर काम कर रहा था और जिस विदेशी युवती का उसने जिक्र किया था उसका चोपड़ा के केस से क्या सम्बन्ध था और अगर राजेश की हत्या से उस चोपड़े के बच्चे का सम्बन्ध है तो मैं अपने हाथों से उसका गला घोंट देना पसन्द करूंगा ।”
“लेकिन मलिक साहब, चोपड़ा का इस हत्या से क्या सम्बन्ध हो सकता है ? अगर उसने राजेश की हत्या ही करनी थी तो फिर उसे हमसे समझौता करने की क्या जरूरत थी ?”
“समझौते का तो केवल यह अर्थ था कि हम उस के विरुद्ध अपनी कार्यवाही बन्द कर देंगे अर्थात राजेश को वापिस बुला लेंगे । लेकिन अगर उतने ही समय में राजेश चोपड़ा के बारे में कोई खतरनाक बात जान गया था तो समझौते के बाद राजेश उसे भुला थोड़े ही सकता था ? क्या पता राजेश को कोई ऐसी बात मालूम हो गई हो जो चोपड़ा का पटड़ा कर के रख सकती हो तो उस में समझौता क्या सहायता करेगा और उसी बात से भयभीत होकर शायद चोपड़ा ने राजेश की हत्या करवा दी हो या खुद उसे मार डाला हो और बाद में लाश को राजनगर के बाहर फेंक गया हो ताकि लोग यही समझें कि उसकी हत्या राजनगर में हुई है ।”
“सम्भव है ।” - सुनील बोला ।
फिर सुनील ने मलिक साहब की डायरेक्ट लाइन वाले फोन का रिसीवर उठा लिया और यूथ क्लब का नम्बर डायल कर दिया ।
“पुट मी टु रमाकांत ।” - वह बोला ।
कुछ क्षण बाद उसे दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई दी - “रमाकांत स्पीकिंग ।”
“रमाकांत” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “मैं तुम से एक बहुत महत्वपूर्ण काम करवाना चाहता हूं ।”
“क्या ?” - रमाकांत सतर्क स्वर से बोला ।
“तुम राजेश की जानते थे ?”
“वह जो लड़का सा है । तुम्हारे यहां रिपोर्टर है । और...”
“है नहीं । था ।”
“क्या मतलब ?”
“उसकी हत्या हो गई है ।”
“क्या ?” - रमाकांत का आश्चचर्य भरा स्वर सुनाई दिया ।
“हां । अभी आधे घण्टे पहले समाचार मिला है ।”
“मुझे क्या करना है ?”
“राजेश पिछले कुछ दिनों से विशालगढ में था । वह वहां के एक बेहद प्रसिद्ध व्यक्ति उमाशंकर चोपड़ा के पीछे पड़ा हुआ था । तुमने मुख्य रूप से तीन बातें पता करनी हैं । एक तो यह कि पिछले चौबीस घन्टों के बीच के समय में उमाशंकर चोपड़ा कहां था क्योंकि पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार राजेश की हत्या पिछले चौबीस घन्टों में किसी समय हुई है । दूसरी बात यह कि राजेश को विशालगढ के लोकल अखबार की पिछले कई सालों की फाइलें देखने के लिए कहा गया था ताकि उसे उमाशंकर चोपड़ा के विषय में कोई बात मालूम हो सके । तुम यह जानने की चेष्टा करो कि क्या उसे उन अखबारों में से कोई महत्वपूर्ण बात मालूम हुई थी । यह जानना कठिन तो है लेकिन सम्भव है उसे क्लर्क ने या किसी और आदमी ने किसी समाचार विशेष को आवश्यकता से अधिक रुचि से पढते देखा हो । और तीसरी बात यह है कि क्या विशालगढ या राजनगर में राजेश किसी विदेशी युवती के सम्पर्क में देखा गया था ?”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“रमाकांत, यह ‘ब्लास्ट’ की आन का सवाल है । यह काम होना ही चाहिए, तुम अधिक के अधिक आदमी लगा दो, खर्चे की परवाह मत करो ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया और उठता हुआ मलिक साहब से बोला - “मैं मोर्ग में राजेश की लाश देखने जा रहा हूं । आप चलेंगे ?”
“जरूर चलूंगा” - मलिक साहब उठते हुए बोले - “इस आशा में कि शायद शिनाख्त में गलती हो गई हो और मरने वाला राजेश न हो ।”
***
शाम को जब सुनील प्रमिला के साथ अपने बैंक स्ट्रीट स्थित फ्लैट पर पहुंचा तो उसने एक आदमी को अपने फ्लैट के द्वार पर चहलकदमी करते पाया ।
सुनील को देखते ही वह आदमी उसके समीप आ खड़ा हुआ ।
“हल्लो” - वह बोला - “पहचान मुझे ?”
“तुम्हें कैसे भूल सकता हूं, प्यारेलाल” - सुनील उस पर एक दृष्टि डाल कर फ्लैट का ताला खोलता हुआ बोला - “ग्रेट मिस्टर रामपाल, कभी अपनी गवाही की सहायता से मुझे कत्ल के इलजाम में फंसा सकते थे । तुम्हारे ज्यूल बाक्स का क्या हाल है ? मैं कैसे याद आ गया तुम्हें ?”
आगन्तुक, जो वास्तव में रामपाल था, चुपचाप खड़ा रहा और सुनील के द्वार खोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“लेडीज फर्स्ट ।” - सुनील प्रमिला के लिए रास्ता छोड़ता हुआ बोला ।
“थैंक्यू ।” - प्रमिला बोली और भीतर घुस गई ।
“तशरीफ लाइये ।” - वह रामपाल से बोला ।
रामपाल भीतर घुस गया ।
“बैठिए ।”
रामपाल चिन्तित सा मुद्रा बनाये एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“मैं चाय लाती हूं ।” - प्रमिला बोली और किचन घुस गई ।
“फरमाइए, क्या सेवा कर सकता हूं मैं आपकी ?” - सुनील रामपाल की ओर आकर्षित होता हुआ बोला ।
“सुनील” - रामपाल बोला - “भगवान के लिए इतना तकल्लुफ मत दिखाओ । मैं सहायता के लिए तुम्हारे पास आया हूं ।”
“कैसी सहायता ?”
“आज के समाचार पत्र में ज्यूल बाक्स में पड़े डाके का हाल तो पढा ही होगा तुमने ?”
“हां, पढा है । लेकिन वह डाका ज्यूल बाक्स में थोड़े ही पड़ा था । वह तो ज्यूल बाक्स के ऊपर स्थित कल्ब में पड़ा था । जहां कभी माइक जुआघर चलाया करता था ।”
“एक ही बात है । अखबार में तुमने पढा होगा कि डाकुओं ने क्लब के दो आदमियों को शूट कर दिया था और मेरे सेफ में से काफी रुपया ले उड़े थे ।”
“हां पढा था ।”
“कुछ बातें ऐसी हैं जो अखबार में नहीं छपी हैं । वह तुम्हें मैं बताता हूं । डाकू उस सेफ में से लगभग एक लाख रुपया ले उड़े हैं ।”
“तुमने यह बात पुलिस को क्यों नहीं बताई ?”
“क्योंकि अगर पुलिस को मैं यह बताता कि मेरे सेफ में से एक लाख रुपया चुराया गया है और लगभग इतना ही रुपया उसमें और भी था तो वे मुझ से फौरन ये सवाल पूछते कि इतना रुपया मेरे पास आया कहां से ?”
“यह सवाल तो मैं भी पूछना चाहता तुमसे ?”
“तुम्हें बताने में और पुलिस को बताने में बड़ा अन्तर है । पुलिस को अगर पता चल जाता कि वह रुपया कहां से आया है डाकू तो भगवान जाने पकड़े जाते भी या नहीं लेकिन मैं जरूर गिरफ्तार हो जाता ।”
“क्या मतलब ?”
“सुनील साहब, वह सब जुआघर की कमाई ही थी जो ज्यूल बाक्स की पहली मंजिल पर क्लब की आड़ में चलाया जा रहा है ।”
“तुम्हारा मतलब है कि वह जुआघर अब भी चल रहा है ?” - सुनील ने हैरान होकर पूछा ।
“हां ।”
“लेकिन तुमने तो मुझसे वादा किया था तुम जुआघर बन्द कर दोगे ?”
“मैंने तुमसे जो वादा किया था, उसे निभाया भी था । मैंने जुआघर वाकई बन्द कर दिया था । लेकिन उस समय तुम्हारी बात स्वीकार कर लेने का एक कारण था ।”
“क्या ?”
“उस समय वह जुआघर गुप्त के रूप से चलाया जा रहा था । कोई बाहरी आदमी यह नहीं जानता था कि जुआघर कहां है ? पुलिस सिर पटककर मर गई थी लेकिन जुआघर का पता नहीं लगा पाई थी । यहां तक कि वहां सैकड़ों बार आए हुए लोग भी यह नहीं जानते थे कि जुआघर ज्यूल बाक्स की ही ऊपर की मंजिल पर है । लेकिन तुम जुआघर का पता जान गये थे । मैंने तुमसे सौदा किया था कि अगर मैं तुम्हारे विरुद्ध गवाही नहीं दूंगा तो तुम जुआघर का रहस्य पुलिस को नहीं बताओगे लेकिन मुझे जुआघर बन्द करना पड़ेगा । मैंने उसे समय यह शर्त इसलिये स्वीकार कर ली थी क्योंकि इसके सिवाय कोई चारा नहीं था । मैं पुलिस से बहुत डरता था । मैंने जुआघर बन्द कर दिया । लेकिन बाद में एक ऐसा तुरप का पत्ता मेरे हाथ में आ गया कि मेरे मन से पुलिस का भय जाता रहा । मैंने जुआघर फिर से शुरू कर दिया । आज पोजीशन यह है कि बिना किसी छुपाव के जुआघर पुलिस की नाक के नीचे धड़ाके से चल रहा है, ऊंची सोसायटी के लोग वहां आते हैं और पुलिस किसी का कुछ बिगाड़ नहीं पाती है ।”
“लेकिन यह हुआ कैसे ?”
“उसकी चिन्ता छोड़ो तुम” - रामपाल लापरवाही से बोला - “सुनील, मुझे सेफ में से चोरी गये रुपये की परवाह नहीं है, न ही मुझे परवाह है उन दो आदमियों की जो डाकुओं की गोली का शिकार हो गये, मुझे तो चिन्ता है उन कागजों की जो सेफ में थे और जिन्हें डाकू ले गये हैं । वे कागज मेरे ही लिए महत्वपूर्ण नहीं थे, इस नगर के कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण थे । यह बात बहुत महत्वपूर्ण हो उठी है कि पुलिस के हाथ लगने से पहले वे कागज मुझे मिल जायें । इसी सिलसले में मैं तुम्हारी सहायता चाहता हूं ।”
“मैं क्या कर सकता हूं इसमें ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“तुम उन कागजों को मुझे वापिस दिलाने में मेरी सहायता कर सकते हो । सारा नगर जानता है कि तुम विलक्षण प्रतिभा के आदमी हो । केवल अपने मास्टर माइन्ड के दम से तुमने कई ऐसे केस सुलझाए हैं, जिन्हें पुलिस के जासूस सिर पटककर मर गये लेकिन सुलझा नहीं पाये । अगर तुम केवल इतना पता लगा दो कि डाकू कौन थे तो वे कागज मैं उनसे किसी भी कीमत पर वापिस खरीद लूंगा ।”
“लेकिन उन कागजों से आखिर ऐसा था क्या ?”
“वे कागज मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण थे मैं केवल इतना ही बता सकता हूं तुम्हें । अगर वे कागज पुलिस के हाथों में पहुंच गये तो अनर्थ हो जायेगा ।”
“तुम कुछ बता नहीं रहे हो मुझे ।”
“मैं इससे अधिक कुछ नहीं बता सकता । सुनील, तुम्हें मेरी सहायता करनी पड़ेगी ।”
“नहीं ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“क्या नहीं ?”
“मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता ।”
“लेकिन क्यों ?” - रामपाल हैरान होकर बोला ।
“कई कारण हैं । पहला तो यह कि मैं शरलक होम्ज नहीं हूं । जरूरी नहीं है कि मैं डाकुओं का पता लगा ही सकूं । दूसरा यह कि मैं कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता जिसके दौरान में मुझमें और पुलिस में टकराव पैदा हो । पुलिस के आदमी भी इस लाइन पर काम कर रहे होंगे इसलिए वे प्राइवेट इन्वैस्टिगेशन को अच्छी निगाहों से नहीं देखेंगे । तीसरा यह कि अभी तुमने उन कागजों के विषय में मुझे कुछ बताया नहीं है और बिना पूरी जानकारी हासिल किये किसी काम में हाथ डालना मेरी आदत नहीं है । चौथा यह कि मैं उसी काम में अपनी दिमाग खपाई करना पसन्द करता हूं जिसमें मुझे किसी भले आदमी का हित दिखाई देता है । उन कागजों को खोज निकालने में मुझे किसी भले आदमी का हित दिखाई नहीं दे रहा है ।”
रामपाल कसमसाया लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला ।
उसी समय प्रमिला चाय ले आई ।
उसने चाय बनाकर रामपाल और सुनील को दी । फिर वह अपने लिए चाय बनाने लगी ।
रामपाल कई क्षण चाय में से उठती हुई भांप को घूरता रहा और फिर गम्भीर स्वर से बोला - “सुनील, प्रत्यक्ष है कि तुम मुझे भला आदमी नहीं समझते हो लेकिन उन कागजों के गलत हाथों में पहुंच जाने से समाज के कई कथित भले आदमियों का भारी अहित होने की सम्भावना है ।”
“यही तो मैं जानना चाहता हूं कि आखिर उन कागजों में ऐसा क्या है ?”
“मैं बताता हूं तुम्हें, इस उम्मीद से कि शायद तुम यह काम करने के लिए तैयार हो जाओ । सुनील, वे कागज नगर के कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए डायनामाइट सिद्ध हो सकते हैं । तुम जानते हो मेरा पार्टनर माइक ब्लैकमेलर था और यही ब्लैकमेलिंग उसकी मौत का कराण बना था । वह मनमोहन नाम के एक लखपति युवक को ब्लैकमेल कर रहा था । मनमोहन की पत्नी मालती ने अपनी पति का जीवन सुखी करने के लिए माइक की हत्या कर दी थी और फिर स्वयं जहर खाकर मर गई थी ?”
“मुझे मालूम है ।”
“मनमोहन माइक का अकेला शिकार नहीं था । माइक नगर के कई बड़े आदमियों को ब्लैकमेल कर रहा था । उसने कई बड़े आदमियों की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा उन कागजों की सूरत में सेफ में रखा हुआ था । उन कागजों में जानते हो किन किन की काली करतूतों का हवाला था ? एक हाईकोर्ट का जज, कैबिनेट मिनिस्टर, एक पुलिस कमिश्नर, एक सी आई बी का डिप्टी डायरेक्टर, एक नगर का प्रमुख उद्योगपति और ऐसे ही कई कथित भले आदमी । अगर वे कागज पुलिस के हाथ में पड़ गये तो ये भले आदमी या तो आत्महत्या कर लेंगे या फिर जेल में दिखाई देंगे ।”
“यह तो सम्भव है कि डाकू ही उन कागजों का महत्व समझ जाएं और स्वयं ही इन लोगों को ब्लैकमेल करना शुरू कर दें ?”
“नहीं, यह सम्भव नहीं है । वे तो रुपया लूटने आये थे और लूट कर चले गए । वे कागज तो वे खामखाह उठा कर ले गए हैं । वे उनके लए रद्दी कागजों के पुलन्दे से अधिक महत्व नहीं रखते हैं ।”
“तुम माइक के शिकारों से उन कागजों के बदले में कितना रुपया हथिया चुके हो ?”
“एक पैसा भी नहीं । सुनील, यकीन मानो । मैंने कल उन लोगों का ब्लैकमेल करने की कोशिश नहीं की ।”
“तो फिर तुम्हें इससे क्या फर्क पड़ता है कि वे कागज तुम्हारे पास रहे, चोरी चले गए या पुलिस के हाथ पड़ गए ।”
“फर्क पड़ता है । भारी फर्क पड़ता है । सुनील जुआ घर से मुझे भारी कमाई है । मेरा जुआघर खुले आम चल रहा है केवल इन्हीं लोगों की मेहरबानी से । एक जज, एक मिनिस्टर, पुलिस कमिश्नर और सी आई बी के डिप्टी डायरेक्टर की छत्रछाया में चल रहा है यह जुआघर । मैंने इन लोगों को धमकी दी हुई है कि अगर जुआघर बन्द हो गया तो मैं सबका कच्चा चिट्ठा खोल दूंगा । इसका नतीजा यह है कि जुआघर के हित के लिए वह मुझसे अधिक चिन्तित हैं । कभी जुआघर पर पुलिस का छापा पड़ने वाला होता है तो मुझे एक घण्टा पहले सूचना मिल जाती है । उस एक घण्टे का समय में जुआघर का हुलिया बदल जाता है । रौलेट और ताश की मेजों के स्थान पर बिलियर्ड और टेबल टेनिस की मेजें दिखाई देने लगती हैं । जुआ घर शरीफ लोगों का क्लब बन जाता है । पुलिस आती है और सन्तुष्ट होकर चली जाती है । क्लब फिर जुआघर में बदल जाता है ।”
“यह भी तो ब्लैकमेल ही है ।”
“इसमें ब्लैकमेल वाली कौन सी बात है ? मेरे जुआघर के चलने से उन लोगों की जेब से क्या जा रहा है ? मैंने माइक की तरह आज तक उनसे एक पैसे की मांग नहीं की ।”
“ब्लैकमेल का केवल यही मतलब नहीं होता, मिस्टर रामपाल, कि तुम किसी से रुपया वसूल कर रहे हो । ब्लैकमेल की भी सैकड़ों किस्में होती हैं । आप ब्लैकमेल द्वारा किसी को नौकरी दिलाने के लिए मजबूर कर सकते हैं । आप ब्लैकमेल द्वारा किसी की बीवी हथिया सकते हैं । आप ब्लैकमेल द्वारा किसी को नगर छोड़ जाने के लिए मजबूर कर सकते हैं । आप ब्लैकमेल द्वारा किसी की अपने विरुद्ध जबान बन्द कर सकते हैं । तुम ब्लैकमेल द्वारा अपना जुआघर चला रहे हो । पुलिस का छापा पड़ने से एक घण्टा पहले लोग तुम्हें सुचना भिजवा देते हैं । यह ब्लैक मेल नहीं तो क्या है ?”
रामपाल चुप रहा ।
“आपने चाय का एक घूंट भी नहीं पिया है ।” - प्रमिला रामपाल का ध्यान चाय के कप की ओर आकर्षित करती हुई बोली ।
“ओह, सॉरी ।” - रामपाल बोला । उसने कप होंठों से लगा लिया । चाय ठण्डी हो चुकी थी । उसने एक ही सांस में सारी चाय पी ली और कप रख दिया ।
प्रमिला हैरानी से उसका मुंह देखने लगी ।
“तो तुमने फैसला कर लिया है कि मेरी सहायता नहीं करोगे ?” - रामपाल ने पूछा ।
“आई एम सॉरी ।” - सुनील बोला ।
“देखो सुनील, उन डाकुओं में से एक को आसानी से पहचाना जा सकता है । वह डाकुओं का लीडर मालूम होता था । वह लम्बे चौड़े शरीर वाला आदमी था और उसके दायें हाथ की छोटी उंगली गायब थी । उसने दस्ताने पहने हुए थे लेकिन फिर भी यह बात स्पष्ट रुप से देखी जा सकती थी कि उसके दायें हाथ में चार उंगलियां हैं । ज्यूल बाक्स में हुई हत्याओं के लिए डाकुओं को गिरफ्तार करना पुलिस का काम है । अगर तुम केवल उन चार उंगलियों वाले का पता लगा सको तो बाकी का काम मैं कर लूंगा । मैं उससे किसी भी कीमत में वे कागज खरीद लूंगा । क्योंकि उनके बिना मैं जुआघर नहीं चला सकता । इतने से काम के बदले में मैं तुम्हें दस हजार रुपये देने के लिए तैयार से काम के बदले में मैं तुम्हें दस हजार रुपये देने के लिए तैयार हूं ।” - और उसने आशापूर्ण नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“सॉरी ।”
“पन्द्रह हजार ।”
“नो ।”
“बीस हजार ।”
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट निकालकर सुलगाया और उसके लम्बे-लम्बे कश लेने लगा ।
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ?” - रामपाल ने पूछा ।
“हां ।” - सुनील ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया ।
“ओके” - रामपाल उठता हुआ बोला - “मैं ही बेवकूफ था जो तुम्हारे पास भागा चला आया ।”
और वह दनदनाता हुआ सुनील के फ्लैट से बाहर निकल आया ।
“सोनू” - प्रमिला बोली - “जो काम वह कह रहा था, तुम कर सकते हो उसे ?”
“हां ।”
“तो फिर करते क्यों नहीं ? बीस हजार रुपये तो दे रहा था वह तुम्हें ।”
“सवाल रुपयों का नहीं है पम्मी, सिद्धान्त का है । जासूसी मेरा पेशा नहीं, शौक है । मैं यह सब काम इसलिए करता हूं क्योंकि मुझे एडवैन्चर पसन्द है । मुझे एक्साईटमैंट से लगाव है । केवल रुपयों की खातिर मैं रामपाल जैसे उचक्के आदमी का काम करने के लिए तैयार नहीं हो सकता । और दूसरी बात यह है कि रामपाल की थ्योरी बिल्कुल गलत है ।”
“क्या मतलब ?”
“वह यह समझता है कि डाकू जुआ घर में धन लूटने के लिए आए थे, वे कागज तो खामखाह ही ले गए हैं जब कि हर बात इस ओर संकेत करती है कि उन्होंने उन कागजों की खातिर ही डाका डाला था ।”
“कैसे ?”
“रामपाल ने स्वयं बताया था कि वे सेफ में से लगभग एक लाख रुपया निकालकर ले गए हैं जब कि इतना ही उसमें और था । वे छः आदमी थे । अगर वे धन लूटने के इरादे से ही वहां आये थे तो उन्होंने बाकी का रुपया सेफ में ही क्यों छोड़ दिया । प्रत्यक्ष है कि सेफ में से धन मिलने के विषय में तो उन्होंने सोचा भी नहीं था वर्ना वे उसमें एक पैसा नहीं छोड़ते । सेफ में से कागज निकालने के बाद तो ऐसा लगता है कि जितने नोट वे जेबों में भर सके उन्होंने भर लिए और बाकी छोड़ दिए ।”
प्रमिला चुप रही ।
“एक बात और भी है जो इस ओर संकेत करती है कि डाका धन के लिए नहीं डाला गया था” - सुनील फिर बोला - “वह एक जुआघर था । रामपाल के कथनानुसार वहां बड़े-बड़े लोग आते हैं । अवश्य ही वे जुआ खेलने के लिए साथ में मोटी रकमें भी लाते होंगे । बाहर हाल में मौजूद लोगों की तीन नकाबपोश कवर किये हुए थे लेकिन उन्होंने लोगों को लूटने की चेष्टा नहीं की । इसका केवल यही कारण हो सकता है कि उनका मुख्य ध्येय धन लूटना नहीं, कागज चुराना था । अब प्रश्न यह उठता है कि उन डाकुओं को कागजों में क्या दिलचस्पी थी ?”
“सम्भव है” - प्रमिला बोली - “कि वे डाकू केवल भाड़े के टट्टू हों । जिन लोगों से सम्बन्धित कागज उस सेफ में थे, शायद उन्होंने एक मोटी रकम देकर कुछ पेशेवर हत्यारों का इस बात के लिए तैयार कर लिया हो कि वे जुआघर के सेफ में से कागज लायें ताकि वे लोग चैन की सांस ले सकें ।”
“सम्भव क्या, मुझे तो लगता है कि यही हुआ है । लेकिन यह कैसे पता लगे कि रामपाल कौन से जज को, कौन से कमिश्नर को, कौन से डिप्टी डायरेक्टर को ब्लैकमेल कर रहा है । रामपाल तो, प्रत्यक्ष है, इस विषय में कुछ बतायेगा नहीं ।”
प्रमिला चुप रही ।
“केवल एक ही आदमी है जो इस मामले पर कुछ प्रकाश डाल सकता है । उसे तलाश करना ही पड़ेगा ।”
“कौन ?”
“वह चार उंगलियों वाला रिगं लीडर जिसका जिक्र रामपाल ने किया था ।”
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