“उसने इंकार किया तो मैं खुंबरी की जान ले लूंगा। खुंबरी मेरी न बन सकी तो जगमोहन की भी नहीं हो पाएगी ठोरा।” दोलाम का चेहरा क्रोध से दहक रहा था। ये कहने के साथ दोलाम ने मंत्रों वाले पानी से अपना हाथ निकाला और सुलगते अंदाज में पलटा कि थम से खड़ा का खड़ा रह गया।

दरवाजे पर बबूसा खड़ा शांत निगाहों से उसे देख रहा था।

दोलाम की आंखें सिकुड़ी, होंठ भिंच गए।

एकाएक बबूसा मुस्कराया। अजीब-सी मुस्कान।

दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।

“तुम तो मेरे दोस्त बनने के काबिल हो।” मुस्कराते हुए बबूसा ने कहा।

दोलाम के होंठ और भी सख्ती से गए।

“तुम्हारे विचार मुझे बहुत पसंद आए। मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हारे मन में ये सब चल रहा है।” बबूसा बोला।

दोलाम ने गहरी सांस ली। जैसे उसने तनाव भरे शरीर को ढीला छोड़ दिया हो।

“किसी बात की फिक्र मत करो दोलाम।” बबूसा ने दोस्ताना भाव में कहा-“मैं तुम्हारे साथ हूं।”

“क्या कह रहे हो।” दोलाम तीखे स्वर में बोला-“मैं समझा नहीं।”

“लेकिन मैं तो तुम्हें पूरी तरह समझ चुका हूं। सब सुना मैंने। फिक्र मत करो मैं ये बात किसी को बताने वाला नहीं।”

दोलाम, बबूसा को सख्त निगाहों से देखे जा रहा था।

“तुम जुबान बंद भी क्यों रखोगे?” दोलाम शब्दों को चबाकर कह उठा।

“क्योंकि मैं भी खुंबरी की मौत चाहता हूं।” बबूसा ने सामान्य स्वर में कहा।

दोलाम, बबूसा को देखता रहा। बबूसा बोला।

“पांच सौ साल बहुत लम्बे होते हैं दोलाम। इतनी देर किसी की सेवा करना, किसी के शरीर का ध्यान रखना, बहुत मेहनत का काम होता है तुमने ईमानदारी से मेहनत की। खुंबरी के शरीर की देखभाल की। ऐसे में खुंबरी को चाहिए कि तुझे प्यार करती। अपना बनाती। अपने शरीर का मालिक तुम्हें बनाती। तुम्हारी एहसानमंद होती। परंतु खुंबरी ने ऐसा सोचा भी नहीं। क्योंकि उसकी निगाहों में तुम सेवक हो, तुम मात्र उसकी सेवा करने के लिए हो। बात यहीं तक रहती तो तब भी तुम सह लेते, परंतु ने हद तो ये कर दी कि तुम्हारी ही नजरों के सामने, पृथ्वी से आए पुरुष को अपना दिल दे दिया और उसे अपना शरीर सौंप दिया जबकि हकदार तुम थे। परंतु खुंबरी ने तुम्हारी परवाह जरा भी नहीं की।

दोलाम ने बबूसा को घूरा।

“तुम्हें मेरी चिंता क्यों है?” दोलाम कह उठा।

“मुझे तुम्हारी चिंता नहीं है। मैं तो तुम्हें, तुम्हारी स्पष्ट स्थिति बता रहा हूं। मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि खुंबरी को तुमसे प्यार करना चाहिए था। तुम हकदार थे खुंबरी के शरीर के। तुम्हारे साथ गलत हुआ है। तुमने खुंबरी की जान ले लेने का मन बनाया है। उस पर भी मैं सहमत हूं कि तुम जरा भी गलत नहीं सोच रहे। मैं तुम्हारे दिल की हालत समझ रहा हूं। इधर तुम तो जानते ही हो कि मैं खुंबरी को पसंद नहीं करता। खुंबरी ने अपने स्वार्थ की खातिर, ताकतों का सहारा लेकर राजा देव और रानी ताशा को अलग कर दिया था। रानी ताशा के हाथों, राजा देव की सदूर से बाहर, अंतरिक्ष में फेंक दिया था, जबकि दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। ये अन्याय किया खुंबरी ने। ये ही वजह है कि मैं भी खुंबरी की जान लेना चाहता हूं। हम लोग खुंबरी की जान लेने ही यहां आए हैं और तुम भी ये ही चाहते हो। तो हम दोनों की बेहतरी इसी में है कि हम मिलकर खुंबरी की जान लें।”

दोलाम होंठ भींचकर रह गया।

“तुम खुंबरी को मारकर, खुंबरी की जगह ले सकते हो। ताकतों के मालिक बन सकते हो। हकदार भी हो इसके कि तुमने दिल से खुंबरी की सेवा की है। खुंबरी की जगह अब तुम्हारी ही होनी चाहिए।”

“ये बात तुम दिल से कह रहे हो?” दोलाम का स्वर शक से भरा था।

“पूरी तरह दिल से।”

“तुम भी खुंबरी की मौत चाहते हो?”

“दिल से।” बबूसा ने दिल पर हाथ रखा-“हम दोनों की मंजिल एक है। एक ही जगह पहुंचना है हमें। तो क्यों न एक साथ ही रास्ता तय करें। दोनों को एक-दूसरे का सहारा रहेगा। हम जल्दी मंजिल पर पहुंच जाएंगे।”

“जगमोहन को तो तुम जानते ही होंगे?” दोलाम बोला।

“अच्छी तरह।”

“वो खुंबरी पर आशिक है। अगर तुम खुंबरी की जान लोगे तो उसे बुरा लगेगा।”

“वो भटक चुका है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“खुंबरी के रूप का जादू उसके सिर चढ़कर बोल रहा है। खुंबरी बुरी ताकतों की मालिक है। ये बात भी वो भूल गया। मेरा पूरा ध्यान खुंबरी को खत्म कर देने पर है। ऐसा होने पर राजा देव और रानी ताशा बहुत खुश होंगे। मैं राजा देव का सेवक हूं और उनके पक्ष में ही काम करता हूं। मुझे जगमोहन की इतनी परवाह नहीं कि उसके लिए मैं खुंबरी की जान लेने का इरादा छोड़ दूं।”

दोलाम ने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया।

“तो हम दोस्त बन जाएं दोलाम?” बबूसा ने मुस्कराकर कहा।

“अभी नहीं।” दोलाम ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मैं समझा नहीं कि तुम्हारे मन में क्या है।”

“ठोरा ने कहा कि मुझे खुंबरी से स्पष्ट बात करनी चाहिए। हो सकता है खुंबरी मेरी बात सुनकर स्वयं को मेरे हवाले कर दे और जगमोहन से दूर हो जाए।” दोलाम ने कहा।

“तुम्हारा मतलब कि खुंबरी अपना शरीर तुम्हें सौंप देगी?”

“सम्भव है।”

“ऐसा कभी नहीं होगा दोलाम।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

दोलाम की आंखें सिकुड़ी। वो बबूसा को देखने लगा।

“क्यों?”

“खुंबरी को अगर तुम्हारी परवाह होती तो वो अपना शरीर कबका तुम्हें सौंप चुकी होती।”

“सम्भव है खुंबरी का ध्यान मुझ पर कभी गया ही न हो।”

“तुम उसके मात्र सेवक हो।”

“मात्र सेवक? मैंने के लिए आज तक जो किया, वो मात्र सेवक रहने वाले नहीं करते बबूसा।”

“ये तो तुम कहते हो, लेकिन खुंबरी ऐसा नहीं सोचती। उसके विचार तुम्हारे लिए ‘मात्र सेवक’ वाले ही हैं।”

“तुम इस बात को इतने विश्वास के साथ कैसे कह रहे हो?”

“मेरा दिल कहता है कि मेरा ख्याल बिल्कुल ठीक है। खुंबरी की निगाहों में तुम सेवक से ज्यादा महत्व नहीं रखते।”

दोलाम के दांत भिंच गए।

बबूसा उसे देखता शांत-सा खड़ा था।

“मैं खुंबरी से स्पष्ट बात करूंगा।”

“खुंबरी तुमसे नाराज भी हो सकती है कि तुम उसके बारे में, प्यार वाले विचार रखते हो।”

“मैं खुंबरी से सच में प्यार करता हूं अगर वो मेरी चाहत की इज्जत करे तो...”

“ये तुम्हारा बेकार का ख्याल है।”

“तो तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ मिल जाऊं और हम खुंबरी को मार दें। तब तुम खुश हो।” दोलाम का स्वर कड़वा हो गया।

बबूसा ने दोलाम की आंखों में झांका। फिर सिर हिलाकर बोला।

“ठीक है। तुम खुंबरी के सामने अपनी कोशिश कर लो। मुझे ये जानकर दुख नहीं होगा, जब वो तुमसे प्यार करने को इंकार कर देगी। क्योंकि मुझे पता है कि ऐसा ही होने वाला है। जगमोहन के सामने तुम कुछ भी नहीं।”

“मैं खुंबरी से इस बारे में बात जरूर करूंगा।” दोलाम दृढ़ स्वर में बोला।

बबूसा मुस्कराया, जैसे कह रहा हो, करके देख लो।

“तुम ये बात किसी से नहीं कहोगे कि मेरे दिल में क्या चल रहा है।” दोलाम ने कहा।

“मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला। क्योंकि मैं तुम्हें दिल से अपना दोस्त मान चुका हूं और मुझे यकीन है कि तुम जल्द ही दोस्त के रूप में मेरा हाथ थामने आओगे।” बबूसा ने सिर हिलाया।

दोलाम दृढ़ता भरे अंदाज में दरवाजे की तरफ बढ़ा।

बबूसा तुरंत चौखट से हट गया।

दोलाम बाहर निकलकर दो कदम आगे गया फिर ठिठककर बोला।

“रात हो चुकी है अपने कमरे में चले जाओ। तुम्हें इस तरह घूमने की इजाजत नहीं है।” कहकर दोलाम आगे बढ़ गया।

बबूसा पलटा और दोलाम के पीछे चल पड़ा। चेहरे पर विश्वास के भाव दिखाई दे रहे थे।

qqq

खुंबरी ने आंखें खोलीं और उठ बैठी। चेहरे पर मोहक मुस्कान थी। आंखों में अजीब-सा नशा तैर रहा था। उसका खूबसूरत चेहरा, अपनी खूबसूरती के साथ दहक रहा था। बाल खुले थे। बालों की मोटी-सी लट झूलती हुई ठोढ़ी तक आकर मुड़-सी रही थी। रसभरे होंठों में जीवन की झलक मिल रही थी। सीने तक ले रखी चादर बैठते ही नीचे जा सरकी थी और उसके उरोज जो दिखे, उससे उसकी सुंदरता में चार चांद लग गए थे। वो सच में बेपनाह खूबसूरत थी। जिधर से भी देखे तो देखता ही रह जाए देखने वाला। दुनिया के महंगे हीरे से भी ज्यादा चमक थी खुंबरी में।

खुंबरी ने सीना ढांपने की जरा भी चेष्टा नहीं की।

मुस्कराता चेहरा बगल में जगमोहन की तरफ घुमाया।

बेहद गहरी नींद में था जगमोहन।

खुंबरी उसके खूबसूरत, मासूम से दिखने वाले चेहरे को देखती रह गई। फिर नीचे झुकी और उसके गाल को चूम लिया। उसके बालों में हाथ फेरा।

“बस भी करो।” जगमोहन नींद में डूबा कह उठा-“सोने दो।”

खुंबरी हौले-से हंस पड़ी और प्यार से बोली।

“बहुत वक्त हो गया है मेरे राजा। बाहर दिन निकल चुका होगा।”

परंतु जगमोहन नींद में डूबा रहा।

खुंबरी बेड से उतरी और अपने कपड़े तलाश करके पहनने लगी। चेहरे पर मस्ती नाच रही थी। रात की यादें मस्तिष्क में दौड रही थीं और रह-रहकर चेहरे पर गहरी मुस्कान नाच उठती थी।

कपड़े पहनने के बाद पलटी तो जगमोहन को देखते ही ठिठक गई।

जगमोहन उसी प्रकार लेटा आंखें खोले उसे देख रहा था।

“तो तुम मुझे देख रहे हो।” खुंबरी ने शरारती स्वर में कहा।

“बहुत खूबसूरत हो तुम।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

खुंबरी वापस बेड पर आ बैठी।

जगमोहन ने उसका हाथ थाम लिया।

“हममें कितना प्यार हो गया जगमोहन।” खुंबरी प्यार से बोली।

“मैं भी ये ही सोचता हूं।”

“हमें मिलने में देर हो गई-है न?”

“हां। हम पृथ्वी पर भी मिल सकते थे।”

“पृथ्वी ग्रह पर कैसे मिलते। मेरा शरीर तो सदूर ग्रह पर था।” खुंबरी ने कहा।

“तुम्हारे रूप में धरा भी तो थी वहां।”

“धरा में और खुंबरी में बहुत फर्क है। मैं खुंबरी हूं और धरा मेरा दूसरा रूप है। उसकी मेरी सोचों में फर्क है।”

“धरा इतनी देर मेरे साथ रही, परंतु उसने कभी भी मुझ पर ज्यादा नहीं दिया।”

“वो ऐसा कर भी नहीं सकती थी।” सिर हिलाकर धीमे स्वर में बोली-“तब धरा के ऊपर बहुत जिम्मेवारियां थीं। उसने सुरक्षित सदूर ग्रह पर पहुंचना था, जबकि वो जानती थी कि वहां डुमरा उसके आने के इन्तेजार में खड़ा है। फिर धरा ने यहां आना था। मुझमें जान डालने जैसा महत्वपूर्ण काम उसने करना था। मंत्रों वाले कटोरे को दोबारा चालू करना था कि ताकतें अपने लिए ऊर्जा प्राप्त करके ताकतवर बन सकें। धरा ने अपने कामों को ठीक से पूरा किया। पांच सौ साल से सुरक्षित रखे मेरे शरीर में फिर से जान आ गई। फिर सब कुछ सुचारु रूप से चलने लगा। उसके बाद ही तुम मुझे मिले और मैं तुम्हें देखते ही तुमसे प्यार कर बैठी।” खुंबरी मुस्कुराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा-सा दिखने लगा।

“मैं भी। मैं भी तुम्हें देखते ही दिल दे बैठा।” जगमोहन भी मुस्कराया।

“प्यार कितना अच्छा होता है।”

“बहुत अच्छा।” जगमोहन ने का हाथ दबाया-“प्यार इंसान को सब कुछ भुला देता है।”

“प्यार में बहुत ताकत होती है।” खुंबरी ने मदहोश स्वर में कहा।

जगमोहन उठ बैठा और खुंबरी के खूबसूरत चेहरे को देखने लगा।

“प्यार में ताकत होती है न?” जगमोहन बोला।

“बहुत।”

“तो तुम्हें प्यार की ताकत के सहारे जीवन बिताना चाहिए। तुम बुरी ताकतों की मालकिन क्यों बनी बैठी हो?”

खुंबरी ने उसी पल जगमोहन के हाथ से अपना हाथ खींच लिया।

दोनों की नजरें मिलीं।

खुंबरी के चेहरे पर ठहरे प्यार के भाव अब कम हो गए थे।

“तुमने फिर वो ही बात शुरू कर दी।” शांत स्वर में बोली।

“तुमने ही तो कहा कि प्यार में ताकत होती है, तो मैंने क्या गलत कहा कि बुरी ताकतों का साथ छोड़ दो। हम प्यार से...”

“इसका जवाब मैं तुम्हें दे चुकी हूं जगमोहन।” खुंबरी ने शांत स्वर में कहा-“ताकतें मेरे जीवन का अहम हिस्सा हैं। इनके बिना मैं जीवन की बिताने की सोच भी नहीं सकती। ताकतें मेरा साथ न देतीं तो खुंबरी का अस्तित्व ही मिट चुका होता। ताकतों ने ही कभी मुझे सदूर की रानी बनाया था। मेरे दुश्मनों को खत्म किया था और अब फिर मेरी ताकतें मुझे सदूर की रानी बना देंगी। लेकिन उससे पहले मैं अपने दुश्मन डुमरा को खत्म करूंगी। डुमरा ने पांच सौ सालों का श्राप देकर मुझे सदूर से बाहर, पृथ्वी पर रहने को मजबूर कर दिया था। मैं डुमरा से बदला लूंगी। उसकी मौत के बाद ही अन्य कामों के देखूंगी।” खुंबरी के चेहरे पर सख्ती आ गईं।

जगमोहन की निगाह खुंबरी के चेहरे पर थी।

“तुम मेरे लिए भी अपनी ताकतों को नहीं छोड़ सकतीं?”

“मेरे लिए जैसे ताकतें जरूरी थीं, वैसे ही अब तुम भी जरूरी हो गए हो जगमोहन। मैं तुमसे दिल हार बैठी हूं। पांच सौ सालों के पहले भी मैं किसी मर्द के करीब नहीं गई। ये सब सोचने में भी मुझे अच्छा नहीं लगता था। इतने लम्बे जीवन में पहली बार मैंने तुम जैसे पुरुष से प्यार किया और मुझे पता चला कि प्यार कितना अच्छा होता है। क्यों लोग एक-दूसरे से प्यार करते है और जान भी दे देते हैं। ये सब कारू (शराब) पीने जैसा है। ताकतों के बिना खुंबरी नहीं, इसी तरह अब जगमोहन के बिना भी नहीं। ताकतें और तुम मेरी जरूरत बन गए हो।”

“मैंने पूछा था कि तुम मेरे लिए ताकतों को नहीं छोड़ सकती?” जगमोहन ने पुन: पूछा।

“नहीं।” खुंबरी ने सामान्य स्वर में कहा-“तुम्हारे लिए मैं ताकतें नहीं छोड़ सकती और ताकतों के लिए मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती। मेरे फैसले के बीच कोई भी नहीं आ सकता।”

“हमारा प्यार, तुम्हारे किसी फैसले पर नहीं टिका।” जगमोहन बोला।

खुंबरी ने जगमोहन को देखा।

“मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो इसलिए तुमसे प्यार कर रहा हूं, इसलिए तुम्हारे करीब हूं।”

“स्पष्ट कहो।”

“मैं चाहता हूं मेरी खुंबरी बुरी ताकतों से दूर हो जाए।” जगमोहन मुस्कुराया।

“बुरी ताकतें?”

“हां खुंबरी। वो बुरी तो हैं।”

“तुमने मुझमें कोई बुराई देखी अब तक?”

“जरा भी नहीं।”

“इसका मतलब मैं बुरी नहीं हूं।”

“मैंने तुम्हें बुरी नहीं कहा।”

“तो फिर मेरी ताकतें हमारे प्यार के बीच कहां से आ गईं। मुझे तुमसे प्यार है, तुम्हें मुझसे प्यार है। हम दोनों अच्छे हैं। एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं। हमारे लिए इतना ही बहुत है जगमोहन।” खुंबरी ने कहा।

“मैं चाहता हूं तुम बुरी ताकतों का साथ छोड़ दो।”

“मैं सम्भव नहीं। मैं तुम्हें जवाब दे चुकी हूं। मेरी ताकतों से तुम्हें कोई समस्या हो तो कहो।”

“तुम डुमरा की जान लेना चाहती हो।”

“जरूर लूंगी। उसने बिना वजह मुझे पांच सौ सालों का श्राप (ये जानने के लिए पढ़े ‘राजा पॉकेट बुक्स’ में प्रकाशित अनिल मोहन का बबूसा श्रृंखला का उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’) दिया। मुझे सदूर से निकाल दिया। कितनी तकलीफ दी उसने तुम्हारी खुंबरी को। मेरा शरीर यहां पड़ा रहा और मैं पृथ्वी पर नए शरीर में जन्म लेती रही। डुमरा अब भी मेरी ताक में है। वो मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा। इस वक्त भी बाहर जंगल में भटकता मेरी तलाश कर रहा है कि मुझ पर वार करके मुझे खत्म कर सके। तुम लोगों को भी उसने मेरी तलाश में लगा...”

“डुमरा तुम्हारे खिलाफ नहीं है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तो?”

“वो उन बुरी ताकतों के खिलाफ लड़ रहा है, जो तुम्हारे अधिकार में है। अगर तुम अपनी ताकतों को छोड़ दो तो डुमरा तुम्हें सदूर की रानी बना देगा। तुम बुरी नहीं...”

खुंबरी हौले-से हंस पडी।

जगमोहन अपने शब्द अधूरे छोड़कर उसे देखने लगा।

“मेरे प्यारे जगमोहन।” मुस्कराती खुंबरी का निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“सदूर की रानी तो मेरी ताकतें मुझे चुटकी में बना देंगी। इस काम के लिए मुझे डुमरा की जरूरत नहीं है। बल्कि डुमरा तो खुद ही बड़े खतरे में फंस चुका है।”

“वो कैसे?”

“डुमरा इस ठिकाने के बाहर जंगल में मुझे तलाशता घूम रहा है।” होंठों पर उभरी मुस्कान ने का निचला होंठ टेढ़ा कर रखा था-“परन्तु वो किसी भी हाल में ये जगह तलाश नहीं कर सकता क्योंकि मेरी ताकतों ने इस जगह पर काले साये फैला रखे हैं। डुमरा इस जगह के पास से निकल जाएगा, लेकिन उसे दिखेगा कुछ भी नहीं, क्योंकि उसकी पवित्र शक्तियां उसके साथ हैं, जिसकी वजह से ताकतों के फैले सायों का उसे आभास नहीं होगा। साधारण मनुष्य अवश्य इस जगह को देख सकता है, तभी तो उसने तुम सबकी, देवराज चौहान, रानी ताशा, नगीना, सोमारा, मोना चौधरी बबूसा की सहायता ली कि इस जगह को ये लोग देखकर उसे बता देंगे। लेकिन वो सब मेरी कैद में आ गए और तुमसे तो मुझे प्यार हो गया जगमोहन।”

जगमोहन के चेहरे पर मुस्कान नहीं उभरी।

“तुम डुमरा के खतरे में फंसने की बात कर रही थीं।”

“हां। मेरी ताकतें डुमरा पर बड़ा वार करने जा रही है। कल ओहारा ने कहा था कि आज वो डुमरा पर वार करके उसे खत्म कर देगा। ओहारा डुमरा का ऐसा हाल कर देगा कि उसकी जान निकल जाएगी।”

“मैं नहीं चाहता कि डुमरा की जान जाए।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“इससे तुम्हें कोई भी मतलब नहीं होना चाहिए जगमोहन।”

“क्यों?”

“तुम्हारा वास्ता मेरे से है। मेरा वास्ता तुमसे है। हम दोनों का प्यार ठीक राह पर चल रहा है। डुमरा से तुम्हारा कोई मतलब नहीं है। वो मेरा दुश्मन है, शक्तियों का साथ पाकर वो मुझे कब से परेशान कर रहा है। अब उसे मरना ही होगा। मेरी शक्तियां उसे खत्म कर देंगी।” खुंबरी ने मुस्कराकर कहा।

“अगर मैं कहूं कि तुम डुमरा की जान मत लो, तो...”

“ये गलत होगा। मेरे और मेरी ताकतों में ये दखलअंदाजी होगी। तुम बेकार की बातें क्यों सोचते हो। मेरे बारे में सोचो, जैसे कि मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं। मेरी ताकतें कहें कि मैं तुमसे अलग हो जाऊं तो क्या मैं उनकी बात मानूंगी। नहीं मानूंगी। हम दोनों ही तो...”

“खुंबरी।” जगमोहन गम्भीर था-“मैं चाहता हूं तुम डुमरा की जान मत लो।”

खुंबरी के चेहरे पर से मुस्कान गायब हो गई।

“ये तुम क्या कर रहे हो जगमोहन?”

“मेरी बात मान लो खुंबरी।”

“कभी नहीं।” खुंबरी की आवाज में दृढ़ता भरने लगी-“तुम मेरे और डुमरा के बारे में सब कुछ जानते हो। तुम जानते हो कि डुमरा ने मुझे पांच सौ सालों का श्राप देकर सदूर से बाहर चले जाने को मजबूर कर दिया। जबकि मैंने उसे कभी परेशान नहीं किया था। अब जब वापस आई तो वो मेरे इंतजार में था और फिर मुझे ताकतों का साथ छोड़ देने को कहने लगा। लेकिन मैं तो सोचे बैठी थी कि श्राप का बदला लेकर रहूंगी। वो जानता है कि सदूर के पूर्व के जंगलों में कहीं मेरा ठिकाना है और शक्तियां मेरे ठिकानों को तलाश नहीं कर सकतीं। क्योंकि ताकतों के साए इस जगह पर फैले हैं। ऐसे में डुमरा ने तुम लोगों को, इस ठिकाने की तलाश में भेज दिया। उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि मैं उसके बारे कुछ सोचूं। लेकिन तुम्हें डुमरा की चिंता क्यों है?”

“मैं उससे मिल चुका हूं। वो अच्छा इंसान है।”

“तो क्या मैं तुम्हें बुरी लगी?”

“कभी नहीं, जरा भी नहीं।” जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया।

“तो फिर डुमरा से कहते कि वो मेरे पीछे क्यों पड़ा है।” खुंबरी स्वर में सख्ती आ गई थी।

“ये तुम्हारी और डुमरा की लड़ाई नहीं है। ताकतों और शक्तियों की लड़ाई है अच्छाई और बुराई की लड़ाई...”

“तुम ऐसा समझते हो तो फिर ये क्यों कहते हो कि मैं डुमरा की जान न लूँ। डुमरा उन शक्तियों के दम पर अकड़ रहा है जो उसका साथ देती हैं, डुमरा में है ही क्या जो मेरे सामने खड़ा होने की हिम्मत कर पाता।”

“तुम भी तो ताकतों के दम पर डुमरा का मुकाबला कर रही हो।”

खुंबरी ने जगमोहन को देखकर गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम मेरे और डुमरा के बीच में मत आओ। मैं नहीं चाहती कि हमारे प्यार पर इन बातों का कोई प्रभाव पड़े।”

“प्रभाव पड़ सकता है क्या?” जगमोहन मुस्कराया।

“मेरे ख्याल में तो नहीं।” खुंबरी भी मुस्कराई।

“मैं चाहता हूं कि मेरी खुंबरी हर बंधन से आजाद हो जाए और हम दोनों एक-दूसरे की बांहों में रहें।”

“ऐसा ही हो रहा है और आगे भी ऐसा ही होगा।” खुंबरी ने एकाएक प्यार से कहा।

“पर कभी-कभी सोचता हूं कि ताकतों और शक्तियों की लड़ाई हमारे प्यार पर असर न डाल दे।”

“ऐसा कभी नहीं होने वाला।” खुंबरी ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मेरे सब साथी तुम्हारी कैद में हैं खुंबरी।”

“उनका कैद में रहना जरूरी है। वो सब मेरे से इस बात का बदला लेना चाहते हैं कि कभी ताकतों ने पृथ्वी से सदूर तक का, मेरे लिए रास्ता बनाने के लिए, रानी ताशा और राजा देव को अलग कर दिया था। परंतु उस वक्त ये काम करना जरूरी था। वरना मैं धरा के रूप में सशरीर सदूर पर कैसे लौट पाती। रानी ताशा तो पागल हुई पड़ी है, मेरी जान लेने लिए। क्या तुम्हें अच्छा लगेगा कि रानी ताशा मेरी जान ले ले।”

“जरा भी अच्छा नहीं लगेगा।”

“अभी उन्हें कैद में रहने दो। तुमने किसी एक को कैद से निकाल को कल कहा था तो मैंने बबूसा को...”

“सोमाथ को तुम भूल रही हो।” जगमोहन एकाएक बोला।

“वो मशीनी मानव। जिसे महापंडित ने बनाया है।”

“वो ही। उस पर तो ताकतें असर नहीं कर सकतीं वो सामने पड़ गया तो उसका मुकाबला कैसे होगा?”

“वो जंगल में ही भटकता रहेगा।” खुंबरी ने कहा।

“भटककर इस तरफ भी तो आ सकता है, जैसे मैं आ गया था।”

“ऐसा हुआ तो उसका भी कोई इंतजाम हो जाएगा।”

“लगता नहीं कि तुम उसका मुकाबला कर पाओगी।” जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया।

“तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?”

“सोमाथ नाम का मशीनी मानव बहुत ताकत रखता है। महापंडित ने उसका दिमाग कमाल का बनाया है। वो हम इंसानों से बेहतर सोच लेता है। उस पर काबू नहीं पाया जा सकता। मैंने उसकी ताकत अपनी आंखों से देखी है।”

खुंबरी, जगमोहन को देखती रही।

“सोमाथ के बारे में तुम्हें गम्भीरता से विचार करना चाहिए खुंबरी।”

“क्या तुम इस मामले में मेरे साथ हो?”

“नहीं। मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं इसलिए तुम्हारे पास हूं। तुम अपनी ताकतों को कहां इस्तेमाल करती हो, मुझे मतलब नहीं।”

“तो क्या इस मामले में तुम अपने साथियों के साथ हो?” खुंबरी हौले से मुस्कराई।

“मैं...? मैं सिर्फ देवराज चौहान के साथ हूं, किसी अन्य से मेरा कोई मतलब नहीं।”

“देवराज चौहान यानी कि राजा देव?”

“हां, मेरा ये ही मतलब था।”

“देवराज चौहान तो मेरी जान लेना चाहता है।”

“इस काम में मैं देवराज चौहान के साथ नहीं हूं। वक्त आया तो उसे ऐसा करने से रोकने की चेष्टा करूंगा।”

“मतलब कि मेरे लिए तुम देवराज चौहान से भी झगड़ा कर सकते हो।”

“शायद, ये नौबत नहीं आएगी।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं समझी नहीं।”

“देवराज चौहान समझदार है। मेरे हालातों को वो जरूर समझेगा और तुम्हारी तरफ नहीं बढ़ेगा।”

“परंतु इस वक्त तो वो रानी ताशा के साथ है। रानी ताशा मेरी जान ले लेने की चाहत रखती है। उनके साथ नगीना है, देवराज चौहान की पत्नी। साथ में मोना चौधरी है, नगीना की बहन। सोमारा भी...”

“खुंबरी।” जगमोहन सोच भरे स्वर में कह उठा।

“हां-कहो।”

“इन बातों को मत छेड़ो। ये नाजुक मसला है।”

खुंबरी जगमोहन को देखने लगी फिर बोली।

“तुम्हारे दिल में शंका है कि देवराज चौहान तुम्हारी बात को मानेगा या नहीं।”

“मैं इस बारे में देवराज चौहान से बात करूंगा।”

“जरूर करना।” ने सिर हिलाया-“पर तुम्हारा क्या ख्याल

है कि वक्त आने पर देवराज चौहान तुम्हारी बात मानेगा?”

“बहुत ज्यादा उम्मीद है कि वो मेरा ही साथ देगा।”

“परंतु वो रानी ताशा का साथ देने को कह चुका है। तभी तो यहां आया है।”

जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर खुंबरी को देखा।

खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“मेरे प्यारे जगमोहन।” खुंबरी जगमोहन के सिर के बालों में हाथ की उंगलियां फेरती कह उठी-“तुमसे बेहतर मैं हालातों को समझ रही हूँ। रानी ताशा देवराज चौहान की सदूर ग्रह की पुरानी पत्नी है। देवराज चौहान को सदूर के जन्म की याद आ चुकी है। रानी ताशा से अलग होने का उसे पूरा पता है। बेशक आज उसकी पत्नी नगीना है, परंतु रानी ताशा के लिए उसके मन में जगह जरूर होगी। तभी वो मेरी तलाश में यहां तक आ गया। अब वो रानी ताशा का पूरा साथ दे रहा है।”

“लेकिन देवराज चौहान रानी ताशा के साथ मेरा मुकाबला नहीं कर सकता।” जगमोहन कह उठा।

“खूब। समझ गई तुम्हारी बात।” खुंबरी मुस्कराई-“तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान के सामने जब रानी ताशा या तुममें से किसी को चुनने का मौका आया तो वो तुम्हें चुनेगा। ये ही कहना चाहते हो न?”

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

खुंबरी के चेहरे पर गम्भीर भाव आ गए।

“पर मुझे लगता है कि ऐसा नहीं होगा।” खुंबरी पुन: बोली-“देवराज चौहान कभी भी तुम्हारा साथ नहीं देगा। क्योंकि मैं ताकतों की मालिक हूं और तुम मुझसे प्यार कर बैठे हो। वो रानी ताशा का साथ देगा, क्योंकि रानी ताशा कभी सदूर पर उसकी रानी थी। दोनों एक-दूसरे से खूब प्यार करते थे और मेरी ताकतों ने उन्हें अलग कर दिया। ऐसे में देवराज चौहान का पुराना प्यार, बेशक चोरी-छिपे ही, उछाल जरूर मारेगा और वो रानी ताशा का साथ देगा। ऐसे वक्त में दोस्त के बारे में नहीं सोचा जाता, औरत दिमाग पर ज्यादा असर करती है।”

“बात इतनी भी नहीं है, जितना कि तुम कह रही हो खुंबरी।” सख्त-सा स्वर निकला जगमोहन के होंठों से।

“ठीक है।” उसके गालों पर हाथ फेरती मुस्कराकर बोली-“ये बात तुम देवराज चौहान से करना। अगर वो रानी ताशा का साथ छोड़कर तुम्हारा साथ देने को तैयार है तो वो सिर्फ हां कर दे, मैं उसी वक्त उसे आजाद कर दूंगी।”

जगमोहन ने खुंबरी को देखा।

खुंबरी ने प्यार से जगमोहन के गाल पर हाथ फेरा। बोली।

“इससे तुम्हें ये भी पता चल जाएगा कि देवराज चौहान की नजरों में तुम्हारा क्या महत्व है या है ही नहीं।”

“तुम देवराज चौहान के लिए मेरे मन में जहर भर रही हो।” जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा।

“ऐसा मत कहो। मैं तुम्हें शानदार मौका दे रही हूं कि तुम देवराज चौहान को ठीक से जान सको।”

“देवराज चौहान को मुझसे ज्यादा कोई नहीं जानता।”

“तुम्हारी ये गलतफहमी भी बहुत जल्द दूर हो जाएगी।” खुंबरी ने कहा और बेड से उतरकर खड़ी हो गई।

जगमोहन की निगाह खुंबरी पर थी।

“तुम कथित इस गलतफहमी को दूर करने में दिलचस्पी क्यों दिखा रही हो?”

“ताकि तुम्हें पता चल सके कि एक सिर्फ मैं ही हूं जो अपने जगमोहन की चिंता करती हूं। मेरे से ज्यादा तुम्हें चाहने वाला, न तो पृथ्वी ग्रह पर है, न सदूर पर। मैं हमेशा तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं। इसके लिए जरूरी है कि तुम्हें इस बात का एहसास हो जाए कि पृथ्वी पर तुम्हारी चिंता करने वाला कोई नहीं है। वहां पर जाने का ख्याल भी मन में न लाओ और सदूर के राजा बनकर मेरे साथ जीवन व्यतीत कर दो।”

“हम जहां भी रहेंगे एक साथ ही रहेंगे खुंबरी।” जगमोहन के स्वर में प्यार उमड़ आया।

“हां, हम साथ ही रहेंगे। सदूर पर एक-दूसरे की बांहों में जिंदगी बिता देंगे। मैं तुम्हें अपनी पलकें बिछाकर उस पर तुम्हें बिठाकर रखूंगी कि तुम्हें कोई तकलीफ न हो। खुंबरी का प्यार मौसम के रंग की तरह कभी भी फीका नहीं पड़ेगा। ये मेरा पहला और आखिरी प्यार है तुम्हारे साथ। तुम मेरे जीवन हो, मैं तुम्हारा जीवन हूं।”

“हां खुंबरी हां।” जगमोहन का स्वर कांपा-“ऐसा ही है।”

“जगमोहन।” खुंबरी की आवाज में भी कम्पन उभरा।

जगमोहन जल्दी-से बेड से उतरा और खुंबरी को बांहों के घेरे में लेकर अपने से सटा लिया। खुंबरी की बांहें भी जगमोहन के गिर्द लिपट चुकी थीं।

“मुझसे कभी दूर मत जाना जगमोहन।”

“तुममें तो अब मेरी जान बसने लगी है।” जगमोहन का स्वर भर्रा उठा।

“मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करती हूं जगमोहन। देवराज चौहान से भी ज्यादा प्यार। स्त्री-पुरुष का प्यार। हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। हम दोनों ही कबसे एक-दूसरे को जन्मों से तलाश कर रहे थे।”

“खुंबरी।”

“जगमोहन।”

लम्बे पलों तक दोनों एक-दूसरे के लिपटे इसी तरह खड़े रहे।

फिर जगमोहन ही अलग हुआ।

खुंबरी की आंखें गीली थीं। वो प्यार भरी निगाहों से जगमोहन को निहार रही थी।

“सच में प्यार में ताकत होती है।” खुंबरी बोली-“मैं नादान, कभी जान ही नहीं पाई।” कहने के साथ ही उसने जगमोहन का हाथ पकड़ा-“हम दोनों एक साथ कुंड में स्नान करेंगे। बड़ा मजा आएगा।”

“पर वहां दोलाम खड़ा रहता है।” जगमोहन मुस्कराकर कह उठा।

“मैं उसे वहां आने को मना कर दूंगी। अब खुश?” खुंबरी ने दोनों आंखें नचाईं।

जवाब में जगमोहन हंस पड़ा।

qqq

दोलाम खाने के कमरे में कमर पर हाथ बांधे क्रोध भरे अंदाज में टहल रहा था। चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। होंठ भिंच हुए थे। आंखें सुलग-सी रही थीं। खुंबरी और जगमोहन पानी के कुंड में नहा रहे थे। धरा उनकी देख-रेख के लिए वहां मौजूद थी। परंतु ने उसे कुंड की तरफ न आने का आदेश दे दिया था। ये पहली बार हुआ था कि नहा रही हो और वो पास में मौजूद न हो। आज पहली बार दोलाम को अपमान जैसा महसूस हुआ था। उसे स्पष्ट महसूस हो रहा था कि जगमोहन के आने के बाद बदल-सी गई है। पहले उससे बातें किया करती थी। सलाह भी लेती थी लेकिन अब वो हर वक्त जगमोहन के साथ ही रहती है और उसे उसकी परवाह तक नहीं है।

खुंबरी जगमोहन के साथ क्यों है, उसके साथ क्यों नहीं?

ये बाल उसे खाए जा रही थी।

खुंबरी पर उसका हक है। उसने पांच सौ सालों तक सच्चे मन से खुंबरी के शरीर की सेवा की। ऐसा नहीं कि खुंबरी का शरीर पाने के लिए सेवा की। अपने फर्ज समझ कर सेवा की। खुंबरी अगर किसी को प्यार न करती तो ये बात उसके मन में भी नहीं आनी थी कि खुंबरी से प्यार करने का, उसका हक बनता है। परंतु खुंबरी ने पृथ्वी से आए जगमोहन के हवाले अपना शरीर कर दिया। ये ही बात उसे परेशान कर रही थी कि खुंबरी को प्यार करना था तो उससे करती। उससे बेहतर इंसान खुंबरी के लिए दूसरा कोई था ही नहीं। उसने हमेशा ही खुंबरी की भरपूर सेवा की है।

चहलकदमी करते दोलाम ने चबूतरे पर मौजूद खाली बर्तनों को देखा। वो जानता था कि जब खुंबरी का खाने का मन होगा तो ये बर्तन खाने के व्यंजनों से भर जाएंगे। ताकतें खुंबरी का पूरा ध्यान रखती थीं।

दोलाम की सोचें पुन: खुंबरी और जगमोहन की तरफ चली गईं।

तभी कदमों की आहट उसके कानों में पड़ी तो उसने दरवाजे जैसे खाली स्थान की तरफ देखा। अगले ही पल वहां बबूसा दिखा।

“तुम यहां हो।” बबूसा भीतर आता कह उठा-“मैं तुम्हें ही ढूंढ रहा था।”

बबूसा भीतर आ गया।

दोलाम ने उखड़ी नजरों से उसे देखा।

“यहां कोई दिख नहीं रहा। धरा भी नहीं, जगमोहन और भी

नहीं। हर तरफ शांति है।” बबूसा ने कहा।

“खुंबरी और जगमोहन कुंड में नहा रहे हैं।” दोलाम शब्दों को चबाकर बोला।

“कुंड कहां है मुझे तो नहीं दिखा।”

“वो दूसरे रास्ते पर है। अभी तुमने वो रास्ता देखा नहीं।”

“समझा। धरा भी वहीं है।”

“हां।” दोलाम ने बल खाकर कहा।

“तुम्हारा तो वहां जाना मना होगा।” बबूसा ने दोलाम को देखा- “खुंबरी के नहाते समय, तुम पास में क्यों रहोगे?”

“मैं हमेशा ही पास में होता हूं। आज पहली बार है कि नहीं हूं।”

“अच्छा।” बबूसा ने सिर हिलाया-“आज पहली बार ऐसा क्यों हो गया दोलाम?”

दोलाम ने होंठ भींचकर बबूसा को देखा।

“मैं तुम्हारा दोस्त है दोलाम। मुझे पराया न समझो। अपने मन की बात कह दो।”

“खुंबरी ने मना कर दिया।”

“तो ये बात है।” बबूसा ने सिर हिलाया-“खुंबरी कुंड में कपड़े उतारकर नहाती है।”

“हाँ।”

“और तुम हमेशा उसके पास रहते हो?”

“हां। अब भी और पांच सौ साल पहले भी, खुंबरी के नहाने के समय मैं उसकी सेवा में रहता था।”

“परंतु अब खुंबरी ने नहाते समय तुम्हारी सेवा लेने से इंकार कर दिया।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा-“ये खुंबरी का इंकार नहीं, जगमोहन का इंकार है। जगमोहन ने ही खुंबरी से कहा होगा कि नहाते समय दोलाम तुम्हारा शरीर देखता रहता है। इसलिए कुंड के पास दोलाम को मत रहने दिया करो।”

दोलाम के होंठों से गुर्राहट निकली।

“जगमोहन धीरे-धीरे तुम्हारे सारे रास्ते बंद कर देगा।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा।” दोलाम ने सख्त स्वर में कहा।

“नहीं होगा? होना शुरू हो गया है।” बबूसा ने गहरी सांस ली-“जो मैं देख रहा हूं वो तुम नहीं देख पा रहे।”

“मैं खुंबरी से स्पष्ट बात करूंगा।”

“वो ही प्यार वाली बात?”

“हां। खुंबरी को जगमोहन का साथ छोड़कर, मेरा हाथ थामना होगा। वो मेरी बात मानेगी।”

“बहुत भरोसा है अपने पर तुझे दोलाम।”

“भरोसा है। मैंने खुंबरी की सेवा की है तो खुंबरी पर मेरा हक बनता है। ठोरा ने भी ऐसा ही कहा था।”

“मुझे नहीं लगता कि खुंबरी, जगमोहन को छोड़कर तेरे पास आएगी।”

“वो जरूर ऐसा ही करेगी जब उसे पता चलेगा कि दोलाम उसे चाहता है।”

“मुझे तो ऐसा होता नहीं लगता। फिर भी तुम कोशिश जरूर करना।” बबूसा बोला-“मुझे भूख लग रही है। खाने को...”

“अभी खाने को कुछ नहीं है।” दोलाम बोला-“खाने के बर्तन खाली हैं।”

“तुमने खाना बनाया नहीं?”

“मैं खाना कभी नहीं बनाता। ताकतें ही बर्तनों को खाने से भर देती है।” दोलाम बोला।

“ऐसा कब होगा?”

“जब खुंबरी को खाने का मन होगा।”

“ठीक है। जब खाना आ जाए तो मुझे बता देना।” बबूसा पलटते हुए बोला-“और तुम से बात करना मत भूलना। हो सकता है खुंबरी का मन बदल जाए और वो जगमोहन को छोड़कर, तुमसे प्यार करने लगे।” बबूसा बाहर निकला और आगे बढ़ गया। चेहरे पर मुस्कान फैल गई-“दोलाम बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहा है।” वो बड़बड़ा उठा।

qqq

पानी के कुंड में खुंबरी और जगमोहन अठखेलियां कर रहे थे। पानी में डाली गई खुशबू से कुंड के आसपास का वातावरण भी महक रहा था। दोनों के कपड़े कुंड के किनारे पर रखे थे। रह-रहकर और जगमोहन की हंसी गूंज उठती थी। धरा कुछ हटकर फर्श पर बैठी थी। दोनों की आवाजें सुनकर रह-रहकर मुस्करा पड़ती।

तभी धरा के कानों में अमाली की मध्यम-सी आवाज पड़ी।

“कैसी है तू?”

“मजे में हूं।”

“खुंबरी के पास तो वक्त ही नहीं है मेरे से बात करने का। वो हमेशा जगमोहन के ही पास रहती है। इतना भी प्यार ठीक नहीं।”

“वाह।” धरा हंसकर बोली-“ये तू कह रही है।”

“तो क्या गलत कह दिया। खुंबरी मेरे से बात क्यों नहीं करती?”

“वो नहीं करती तो तू कर ले।”

“मैं तो बहुत बार आई बात करने पर हर बार मेरी ताकतों ने मुझे ये ही इशारा दिया कि खुंबरी प्यार करने में व्यस्त है।”

“तो वो प्यार भी न करे। पहली बार तो वो मर्द का सुख ले रही है।” धरा बराबर मुस्कराती रही थी-“तू जलती है।”

“मैं क्यों जलने लगी।” अमाली ने नाराजगी से कहा।

“तू मेरे से बात कर। मैं भी तो खुंबरी हूं।”

“वो तो ठीक है। पर मैं उसी खुंबरी से बात करना चाहती हूं।”

“आखिर बात क्या है?”

जवाब में अमाली की आवाज नहीं आईं।

“अमाली।” धरा ने पुकारा।

“यहीं हूं तेरे पास।”

“बोलती क्यों नहीं। चुप क्यों हो गई?”

“तू खुंबरी से मेरी बात करा।”

“जाकर कर ले।”

“कैसे करूं। उसने बटाका उतारकर अपने कपड़ों के पास ही रख छोड़ा है।”

“वो नहा रही है। तुझे अभी बात करनी है।”

“खुंबरी के पास आज कल वक्त ही कहां होता है। तू अभी मेरी बात करा।”

“रुक तो जरा।” कहने के साथ ही धरा उठी और कुंड के किनारे पर जा पहुंची।

धरा के देखते ही देखते पानी में जगमोहन की तरफ लपकी और पास पहुंचकर जगमोहन को पानी की गहराइयों में लेती चली गई। दोनों दिखने बंद हो गए।

धरा मुस्कराई।

“देखा। क्या आग लगी है खुंबरी को मर्द की। उसे एक मिनट भी चैन से नहीं रहने देती।”

“तू क्यों सड़ रही है।” धरा हंसी।

“मैं सड़ नहीं रही, तेरे को बता रही हूं।”

“तूने भी तो कभी मर्द से प्यार किया होगा।”

“हाय।” अमाली गहरी सांस लेने की आवाज आई-“मैंने तो एक ही बार में दो-दो मर्दों से प्यार किया था।”

“एक साथ?”

“नहीं-नहीं। दोनों से अलग-अलग प्यार करती थी। एक मेरा पति की, दूसरा उसका भाई। कितना मजा आता था। जब पति काम पर चला जाता था तो फिर उसका भाई-आह-वो तो मेरा बुरा हाल कर देता था। पूरा मर्द था। पर वो सच में मुझे प्यार करता था। उसने शादी नहीं की थी और इसी तरह मेरे साथ जिंदगी बिता दी थी।”

तभी पानी में शोर उठा और खुंबरी और जगमोहन पानी की सतह पर आ गए।

“अब की बार छेड़ा तो छोडूंगी नहीं।” खुंबरी ने मस्त स्वर में जगमोहन से कहा।

जवाब में जगमोहन हंस पड़ा।

“तेरे से अमाली बात करना चाहती है।” धरा ने खुंबरी से कहा।

खुंबरी ने धरा को देखा।

“कह दे, वक्त नहीं है अभी।”

“वो परेशान है कि तेरे से बात नहीं हो पा रही।” धरा बोली।

“कोई खास बात कहनी है उसे?”

“पता नहीं। तू बात कर ले।”

“बोल अमाली।” इस बार खुंबरी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा।

“तेरे पास तो वक्त ही नहीं होता अब मेरे से बात करने का।” अमाली की आवाज धरा के पास कुछ ऊंची आई।

“काम की बात कह।”

“हां-हां। अब तो तू ये ही कहेगी।”

“जल्दी बोल।”

“मैं तेरे से इजाजत लेने आई हूं कि तू मुझे, अपने और जगमोहन के प्यार का भविष्य देखने दे।”

“मैं पहले ही मना कर चुकी हूं।”

“पता है मुझे। पर मेरे से रहा नहीं जा रहा। मैं तेरे प्यार का भविष्य देखना चाहती हूं।”

“इस बात की मैं इजाजत नहीं दूंगी।” खुंबरी ने कहा।

“क्यों?”

“मुझे अपने जगमोहन पर पूरा भरोसा है। ये मुझे दिलोजान से चाहता है।”

“बेवकूफी न कर। प्यार में न मर्द का भरोसा होता है न औरत का। किसी पर भी भरोसा करना कठिन होता है। मैं ये नहीं कहती कि तेरा जगमोहन गलत है या बुरा है। पर तू मुझे मेरा काम करने से मत रोक।”

कुंड के पानी में मौजूद जगमोहन मुस्करा पड़ा।

“मैं तुझे सख्ती से कहती हूं कि तू मेरे प्यार का भविष्य जानने की कोशिश नहीं करेगी।”

“सोच ले खुंबरी। कहीं बाद में तुझे पछताना न पड़े।” अमाली का स्वर गम्भीर हो गया।

“तू मेरी इतनी ज्यादा भी चिंता न कर।”

तभी जगमोहन कह उठा।

“ये जो भी है इसे देखने दे कि हमारे प्यार का भविष्य क्या है।”

“मुझे तुम पर पूरा भरोसा है जगमोहन। अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं तो मैं अमाली से हां कह देती हूं।”

“मुझे भी तुम पर भरोसा है।” जगमोहन ने प्यार भरे स्वर में

कहा-“पूरा भरोसा है खुंबरी पर।”

खुंबरी मुस्करा पड़ी फिर ऊंचे स्वर में बोली।

“तू जा अमाली। अब ये बात मेरे से दोबारा नहीं करना।”

qqq

टेबल पर रखा खाना सब कुर्सियों पर बैठे खा रहे थे। खुंबरी, धरा, जगमोहन, बबूसा खाने में व्यस्त थे। जगमोहन और खुंबरी ने नहाने के बाद अपने शरीरों पर गाऊन लपेटा हुआ था। दोनों के सिर के बाल अभी भी गीले थे। दोलाम पांच कदमों की दूरी पर सपाट चेहरे के साथ खड़ा था। इस बीच कभी उसकी निगाह बबूसा से मिलती तो, बबूसा को मुस्कराते पाता, जैसे वो कह रहा हो कि तुम तो खुंबरी के साथ बैठकर खाना भी नहीं खा सकते। ऐसे में खुंबरी को पा लेने का ख्वाब छोड़ दो तो ठीक रहेगा।

दोलाम के शरीर में तनाव की लहरें उठ रही थीं। वो अपने चेहरे पर उभरने वाले भावों को दबाए हुए था। रह-रहकर जगमोहन पर उसकी तीखी निगाह पड़ जाती थी। इस दौरान दोलाम ने तीन बार खाली हो चुका पानी का बर्तन पुन: भरा था। परंतु दोलाम ये महसूस नहीं कर सकता था कि धरा कई बार नजरें उठाकर उसे देख चुकी है। शायद वो दोलाम के तनाव को महसूस कर चुकी थी। परंतु कहा उसने कुछ नहीं था।

खुंबरी और जगमोहन तो खाते हुए बार-बार एक-दूसरे को प्यार भरी से देख रहे थे। वे दोनों जैसे आंखों-आंखों में बात कर रहे थे। तभी जगमोहन कह उठा।

“मैं अभी देवराज चौहान से मिलने जाऊंगा।”

“क्यों नहीं, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी।” खुंबरी ने फौरन सिर हिलाया।

“मैं अकेला जाऊंगा खुंबरी।”

“अकेला?” खुंबरी खाना खाते-खाते रुक गई। उसे देखने लगी।

“जो बातें मैंने देवराज चौहान से करनी है, वो तुम्हारी मौजूदगी में नहीं कर सकता।”

“समझी।” खुंबरी पुनः खाना खाने लगी-“तुम उससे पूछना चाहते हों कि वो तुम्हारे साथ है या रानी ताशा के साथ।”

जगमोहन ने सिर हिलाया।

“अगर देवराज चौहान तुम्हारे साथ है तो मैं अभी उसे कैद से आजाद कर दूंगी।”

“मुझे यकीन है कि वो मेरे साथ है।”

“खाना खाकर तुम देवराज चौहान से मिलने चले जाना। साथ में दोलाम को...”

“मैं अकेला जाऊंगा। कल जब गया था तो वहां का रास्ता मैंने देख लिया था।”

“जैसा तुम ठीक समझो जगमोहन।” खुंबरी मुस्करा पड़ी।

“मैं भी तुम्हारे साथ चलूं?” उनकी बातें सुनता बबूसा कह उठा।

“नहीं।” जगमोहन ने बबूसा को देखा-“मैं अकेला जाऊंगा।”

बबूसा खामोश हो गया। तभी धरा ने खुंबरी से कहा।

“आज ओहारा ने डुमरा पर ‘वार’ करना है। हमें ओहारा से बात करनी चाहिए।”

“ओहारा अपना काम करना जानता है।” खुंबरी बोली।

“फिर भी उससे एक बार बात कर ली जाए तो ठीक होगा।”

“तुम कर लेना।”

खाना समाप्त हो गया।

दोलाम टेबल पर रखे खाली बर्तन ले जाने लगा।

धरा ने बटाका थामते हुए ओहारा को पुकारा।

“ओहारा।”

“हुक्म महान खुंबरी।” उसी पल धरा के कानों के पास ओहारा की आवाज उभरी।

“आज तुमने डुमरा की जान लेनी है। तुमने कहा था कि उस पर आज वार करोगे।” धरा बोली।

“मैंने अपनी तैयारी पूर्ण कर ली है। इस बार डुमरा मेरे वारों से नहीं बच सकता।”

“ये काम जल्दी पूरा करो। उसके बाद सदूर की रानी बनने की तैयारी करनी है। परंतु मैंने सोच रखा है कि डुमरा से पांच सौ सालों के श्राप का बदला लेने के बाद सदूर की रानी बनने की तैयारी करूंगी।”

“आज डुमरा का आखिरी दिन होगा। शाम तक वो मर जाएगा। मैं उसे घेरने जा रहा हूं। उसके बाद तुम सदूर की रानी बनने की तैयारी शुरू कर देना। आज मेरे पास समय की कमी है। मैं जाता हूं।”

फिर ओहारा की आवाज नहीं आईं।

“मैंने कहा था न कि ओहारा इसी काम में लगा होगा।” खुंबरी कुर्सी से उठते हुए धरा से बोली।

दोलाम सारे बर्तन टेबल से हटा चुका था। वो कुछ फासले पर खड़ा शांत स्वर में बोला।

“महान खुंबरी। मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहता हूं।”

“कहो दोलाम।” खुंबरी ने मुस्कराकर उसे देखा।

“अकेले में बात करनी है।” दोलाम ने पुन: दोहराया।

खुंबरी ने होंठ सिकोड़कर सिर हिलाया फिर जगमोहन से बोली।

“तुम देवराज चौहान से अभी मिलने जाओगे?”

“हाँ, मैं सीधा उसी के पास जा रहा हूं।”

“जल्दी आना।” खुंबरी प्यार से कह उठी-“मैं कमरे में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।”

जगमोहन ने खुंबरी का हाथ थामा, चूमा और पलटकर चला गया।

धरा अभी भी बार-बार दोलाम को देख रही थी।

“बबूसा।” खुंबरी बोली-“तुम अपने कमरे में जाओ।”

“मेरे ख्याल में दोलाम को मेरे यहां रहने से एतराज नहीं...”

“एतराज है।” दोलाम सपाट स्वर में बोला।

बबूसा ने कुछ नहीं कहा और वहां से बाहर निकलता चला गया।

खुंबरी ने दोलाम को देखा कि धरा शांत स्वर में कह उठी।

“खाने के दौरान मैंने तुम्हें तनाव में महसूस किया था।”

“हां महान खुंबरी। मैं वास्तव में तनाव में हूं।”

“कह दो दोलाम। सब ठीक हो जाएगा। क्या बात है?” धरा मुस्कराई।

दोलाम ने धरा पर से निगाह हटाकर खुंबरी को देखा।

“कहो दोलाम।” खुंबरी भी मुस्कराई।

“महान खुंबरी।” दोलाम के स्वर में व्याकुलता, डर और हिम्मत का समावेश था-“मैंने तुम्हारी बहुत सेवा की।”

“ये सच है दोलाम। तुम हमेशा से ही मेरे सबसे पास रहे हो और तुमने सेवा करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।”

“पांच सौ साल का श्राप जब डुमरा ने दिया तो उससे पहले भी मैं आपकी सेवा दिल से करता था।”

“हां। ये बातें मैं भूलती नहीं।” खुंबरी ने सिर हिलाया।

धरा की निगाह दोलाम पर टिकी थी।

“श्राप के समय में पांच सौ साल तक, दिन-रात मैं आपके शरीर की सेवा करता रहा।”

खुंबरी ने पुन: सिर हिलाया।

दोलाम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर खुंबरी और धरा को देखा।

“तुम कोई खास बात कहने वाले हो दोलाम।” धरा कह उठी।

“तुम्हें कैसे पता?” दोलाम के होंठों से निकला।

“मेरे पास पृथ्वी ग्रह पर रहने का अनुभव है। ऐसी बातें मैं ज्यादा समझ सकती हूं।”

“हाँ महान खुंबरी। जो मैं कहने वाला हूं वो मेरे लिए बहुत महत्व रखता है।”

“अब कह भी दो दोलाम।” खुंबरी ने सामान्य स्वर में कहा।

“मैंने ताकतों की भी सेवा की, जब-जब मुझे ऐसा कुछ करने का मौका मिला। मैंने महान खुंबरी को कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दिया। मुझे याद नहीं कभी ऐसा वक्त आया हो।”

खुंबरी मुस्कराई।

जबकि धरा की आंखें सिकुड़ गईं।

“बदले में मैंने महान खुंबरी से कभी कुछ नहीं मांगा।”

“तुम्हें किसी चीज की कमी भी तो नहीं।”

“इंसान को कितना भी मिल जाए, कमी हमेशा बनी रहती है। फिर भी मेरे दिल में इस बात की इच्छा हमेशा रही कि महान खुंबरी खुश होकर मुझे कुछ दें। परन्तु तुमने मेरी तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया।”

“तो ये बात है।” खुंबरी कह उठी-“मैं तुम्हें बहुत सारी धातु दूंगी।”

“मुझे धातु की जरूरत नहीं।” दोलाम कह उठा-“कीमती चीजों की मुझे कभी इच्छा नहीं रही।”

“तो क्या चाहिए तुम्हें दोलाम?”

“महान खुंबरी।” दोलाम की जीभ थोड़ी-सी कांपी-“मैंने अपना सारा जीवन आप पर लगा दिया। ऐसे में मैं भी आशा करता हूं कि आप मेरी सेवाओं को सामने रखते हुए, अपने शरीर का मालिक मुझे बना दें।”

दो पलों के लिए इनके बीच सन्नाटा आ ठहरा।

“दोलाम।” खुंबरी गुर्रा पड़ी-“तुम अपने होश खो चुके हो।”

“नहीं महान खुंबरी। क्या तुम्हें पाने की चाहत होश खोना है। अगर ऐसा है तो मैं होश खो चुका हूं। मैंने हमेशा महान खुंबरी का हुक्म माना है। मैंने तुम्हें हमेशा दिल से चाहा, तभी तो तुम्हारी सेवा कर सका। तुम ही सोचो, पांच सौ सालों तक क्या कोई किसी के शरीर को सलामत रख सकता है? परंतु मैंने रखा। ये मेरा प्यार नहीं तो और क्या है। अगर मेरी लापरवाही से तुम्हारा शरीर खराब हो गया होता तो आज तुममें जान कैसे आती? परन्तु मैंने ऐसा नहीं होने दिया। सम्भव था कि मैं अपने प्यार को अपने मन में ही रखता, लेकिन तुमने अपना शरीर पृथ्वी से आए पुरुष के हवाले कर दिया। मेरी निगाह में ये बात सबसे गलत रही। क्या तुम्हें दोलाम का एक बार भी ख्याल न आया। तुम्हारे लिए सबसे बेहतर पुरुष अगर कोई है तो वो दोलाम ही है। मेरी इच्छा है कि तुम जगमोहन को कैद में डाल दो और मेरे संग अपनी जिंदगी बिता दो। तुम सदूर की रानी बनना, मैं सदूर का राजा बनकर सारा राज्य संभालूंगा।”

खुंबरी के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।

“तुम्हारी ये हिम्मत दोलाम कि तुम मुझे हुक्म दो।”

“ये हुक्म नहीं महान खुंबरी, एक सेवक की इच्छा है।” दोलाम दबे स्वर में बोला।

“तुम-तुम मेरे साथ सोने की इच्छा रखते हो, तुम-तुम मेरे साथ, खुंबरी के साथ सम्बंध बनाना चाहते...”

“महान खुंबरी मेरी बात मानेगी तो सेवक इसे अपना इनाम समझेगा।” दोलाम बोला।

“कभी नहीं।” खुंबरी गुर्रा उठी।

दोलाम ने सिर झुका लिया।

“तुम अपनी सीमाएं भूल गए दोलाम। खुंबरी के बारे में तुमने ऐसा सोचा भी क्यों-तुम सिर्फ मेरे...”

“दोलाम की बात पर गौर करो।” धरा शांत स्वर में बोली।

“क्या मतलब?” खुंबरी ने धरा को देखा।

“दोलाम हमारी ताकत का हिस्सा नहीं है। वो इंसान है।” धरा ने कहा-“दिल रखता है। इच्छाएं रखता है। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि दोलाम ने बिना कुछ मांगे सैकड़ों बरसों तक हमारी सेवा की है। आज अगर ये कुछ मांगता है तो गलत नहीं कर रहा। ये हमेशा ही हमारा सबसे खास सेवक रहा है।”

दोलाम ने नजरें उठाकर धरा को देखा।

खुंबरी के माथे पर बल पड़े।

“मुझे हैरानी है कि तुम ऐसी बात कह रही हो।” खुंबरी बोली।

“मैं सही कह रही हूं। शांत दिमाग से सोचो। दोलाम हमारे लिए हमेशा ही खास रहा है।”

“क्या कहना चाहती हो तुम?” खुंबरी का स्वर तीखा हो गया।

“दोलाम की इच्छा पूरी करो।”

“ये नहीं हो सकता। मैंने पहली और आखिरी बार जगमोहन से प्यार किया है। उसे ही अपना शरीर सौंपा है। अब ये शरीर किसी और को कैसे दे सकती हूं। ये सिर्फ जगमोहन का है।”

“पृथ्वी ग्रह पर ऐसा कोई नियम नहीं है। वहां एक औरत कइयों से सम्बंध बना लेती है। नहीं भी बनाती। ये सब अपनी मर्जी पर निर्भर होता है। तुम्हें ये सोचना है कि तुम्हारे लिए जगमोहन महत्वपूर्ण है या दोलाम?”

“दोनों।”

“तो फिर दोनों को अपना शरीर सौंपो।” धरा ने शांत स्वर में कहा।

“ये सम्भव ही नहीं।” खुंबरी दृढ़ स्वर में कह उठी।

धरा ने दोलाम को देखकर कहा।

“तुमने क्या सोचा कि अगर खुंबरी इंकार करे तो तुम क्या करोगे?”

“मैंने कुछ भी नहीं सोचा।” दोलाम शांत स्वर में कह उठा।

“बेहतर होगा कि खुंबरी को इस बारे में सोचने का मौका मिले।”

“मुझे कोई जल्दी नहीं है।” दोलाम बोला।

खुंबरी ने कठोर निगाहों से दोलाम को देखा फिर पलटकर वहां से चली गई, खुंबरी के कदमों की आवाजें कई पलों तक कानों में पड़ती रही। धरा और दोलाम की नजरें मिलीं।

“खुंबरी के लिए तुम्हारी मांग काफी सख्त है दोलाम।”

“महान खुंबरी ने पृथ्वी से आए पुरुष से सम्बंध न बनाए होते तो मैं ऐसी मांग नहीं रखता।” दोलाम बोला।

“तुम्हें ये बात उस पुरुष के आने से पहले कहनी चाहिए थी। मेरे ख्याल में तुमने बात कहने में देर कर दी।

“महान खुंबरी पर मेरा हक बनता है। मैंने पांच सौ सालों तक उसके शरीर की देखभाल की है।”

“अगर खुंबरी न मानी तो तुमने जरूर सोच रखा होगा कि क्या करोगे।” धरा मुस्कराई।

दोलाम ने धरा को देखा फिर कह उठा।

“इससे आगे मैंने कुछ भी नहीं सोचा महान खुंबरी।”

“इस मामले में मैं तुम्हारे साथ हूं।” धरा ने दोलाम के कंधे पर हाथ रखा- “खुंबरी को मैं मना लूंगी।”

दोलाम की आंखें चमक उठी।

“सच?”

“मैं पूरी कोशिश करूंगी कि खुंबरी मान जाए।”

qqq