दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा फिर सड़क पार छोटे से बंगले को देखने लगे ।


उनकी जेबों में रिवाल्वर मौजूद थी। एक का हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर पर ही रखा था कि जरूरत पड़ने पर फौरन रिवाल्वर निकालकर, उसका इस्तेमाल किया जा सके।


शाम के चार बज चुके थे।


वे दोनों दोपहर एक बजे से उस बंगले की निगरानी पर थे। “तू खबर पक्की लाया है ना कि बंसीलाल इसी बंगले में ही है? ” एक ने पूछा ।


“हां। ये बंगला उसकी महबूबा का है।" दूसरे ने विश्वास भरे स्वर में कहा - "वो अक्सर यहां आता रहता है। कभी रात भर रुकता है तो कभी कुछ घंटे बिताकर चला जाता है। आज सुबह दस बजे वो इस बंगले पर आया था। बंसीलाल के आदमी ने ही मुझे खबर दी है, वो आदमी मेरा खास यार है ।"


“हूं।” उसकी निगाह पुनः बंगले पर जा टिकी । “निशाना लगाने में चूकना मत। शाम हो रही है। वो कभी भी बाहर आ - ।”


"मेरा निशाना आज तक नहीं चूका।" कहते हुए उसके दांत भिंच गये। 


तभी फुटपाथ पर से गुजरते एकाएक तीन आदमी उनके पास ठिठके और उन्हें घेरे में लेने वाले अंदाज में खड़े हो गये। दोनों की निगाह फौरन तीनों पर गई ।


"रिवाल्वर जेबों से बाहर निकालने की चेष्टा मत करना।" एक ने खतरनाक स्वर में कहा- "रिवाल्वर पर रखा हाथ जेब से बाहर -निकाल लो। खबरदार, कोई चालाकी नहीं।"


दोनों ने एक-दूसरे को देखा फिर एक ने जेब से अपना हाथ बाहर निकाल लिया।


एकाएक वहां अजीब-सा, तनाव भरा माहौल उठ खड़ा हुआ था । “तो बंसी भाई के बाहर निकलने का इन्तजार हो रहा है।"


इस बार तीनों में से दूसरा बोला ।


“निशाना बनाओगे बंसी भाई को।” तीसरे की आवाज में दरिन्दगी के भाव भरे हुए थे । 


“तुम्हें कैसे मालूम ?” दोनों में से एक के होंठों से हैरानी भरा स्वर निकला।


“बच्चे!” उसने रिवाल्वर निकालकर इस तरह हथेली में छिपा ली कि राह चलता आसानी से उसकी भनक न पा सके। दोनों ने देखा कि रिवाल्वर पर साईलैंसर भी लगा है-"हमें सब मालूम रहता है। तुम जैसों की गर्दनें तोड़ना ही हमारा काम है। तुमने हमारे हीं आदमी से मालूम किया कि बंसी भाई कहां है । उसी ने बंसी भाई को खबर दी कि, दो हरामी उसका निशाना लेने वाले हैं।"


“ओह !”


“तूने तो कहा था, वो तेरा खास यार है।" उसने अपने साथी को खा जाने वाली नजरों से घूरा।


उससे कुछ कहते न बना।


"ये बातें बाद में कर लेना।" रिवाल्वर वाला दांत भींचकर बोला- "अगर बचना चाहते हो तो हमारी बात का जवाब दो।" 


“क....क्या ?"


"तुम किसके कहने पर बंसी भाई की हत्या करने जा रहे थे- ? लोगों की अपनी दुश्मनी तो बंसी भाई से होने से रही।” 


दोनों चुप एक-दूसरे को देखकर रह गये।


तभी साईलैंसर लगी एक और रिवाल्वर निकल आई। इस बार रिवाल्चर छिपाने की चेष्टा नहीं की गई। रिवाल्वर निकालने वाले के चेहरे पर मौत के भाव नाच उठे थे।


"हमारे पास फालतू का वक्त नहीं है कि तुम लोगों के चेहरे देखते रहें। आवाज में खूखारर्ता के भाव थे-“एक मौका दिया था तुम लोगों को जीने का कि हमारी बात का जवाब देकर जिन्दा वच सकते....। "छोड़ो।" तीसरा दांत भींचकर बोला-"हमें कुछ नहीं पूछना इससे शूट करो। कोई ऊपर से आ गया तो खामख्वाह मुसीबत- ।"


"नहीं हमें मत मारो।" एक ने घबरा कर कहा। । 


"हम बता देते हैं कि थापर साहब ने, बंसीलाल को खत्म करने के लिये कहा था ।” दूसरा जल्दी से बोला । 


“थापर साहब ?”


“तीनों की निगाहें आपस में मिलीं।


“ थापर समूह के मालिक। अखबारों में भी, बड़े उद्योगपति के तौर पर उनका नाम आता है।”


“गुड | फिर तो हम थापर की पहचान करना कठिन काम नहीं।” तीसरे ने क्रूरता से कहा-


“चलो यहां से । " तभी एक के साईलैंसर लगे रिवाल्वर से कम आवाज के साथ कुछ शोले निकले और उन दोनों के शरीरों में समाते चले गये। उन्हें चीखने-समझने का भी मौका नहीं मिला और नीचे गिरते ही वो खत्म हो गये ।


इसके साथ ही तीनों पलटे और कुछ दूर खड़ी कार की तरफ तेजी से बढ़ गये।


***

बंसीलाल ।

छरहरा बदन । लम्बा कद । होंठों पर बारीक सी मूंछें। पांव में हमेशा जूते पहने रहने की आदत । पैंट और ऊपर ढीली सी झूलती कमीज जिसके दो बटन हमेशा खुले रहते। छोटे-छोटे बाल । गले में सोने की भारी चैन और कलाई में सोने का कड़ा डाले रहता था। उम्र तीस बरस ।

बचपन से ही गुनाह की गलियां उसका रास्ता थीं। बदमाशों से, भाई लोगों से कैसे बात करनी है या पुलिस को कैसे संभालना है। सारे लटके-झटके उसने तब ही सीख लिए थे, जब वह सिर्फ पन्द्रह बरस का था। बीस बरस की उम्र तक, वो एक बड़े इलाके में दबदबा कायम कर चुका था। उसके इलाके में कई तरह के धंधे होते थे। पुलिस को हफ्ता और महीना पर, संभाल रखा था । पच्चीस बरस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बंसीलाल तगड़ा
गैंगस्टर बन चुका था। उसके गैंग से टकराने से पहले बड़े से बड़ा दादा भी एक बार सोचता था। और ऐसे हीरों के असली कद्रदान होते हैं, देश के नेता जिन्हें कि देश के पहिये कहा जाता है। जिन्हें कुर्सी पाने के लिए, दूसरे नेता को कत्ल करवाना पड़ता है कि वो, कुर्सी का हकदार न बन पाये। चुनावों में उसकी जीत न हो जाये । जनता में इतनी दहशत फैला दी जाये कि लोग, वोट दें तो, परन्तु उनके इशारे पर ।

या राह बंसीलाल को बहुत आसान लगी । खतरा भी कम और नोट ही नोट ।

दो-चार सालों में एक बार या फिर बीच में भी कभी-कभी नेताओं का काम किया और बाकी के साल ठाठ से। नोट बराबर मिलते रहते थे नेताओं से नेता लोग किसी लफड़े में फंसे तो, वो हाजिर और अगर वो कोई बड़ा कांड कर दे तो, नेता भाई उसे बचा लेते। मजे से गाड़ी चल रही थी बंसीलाल की। शायद ही कोई दूसरा गैंग रहा होगा जो उससे ज्यादा ताकतवर हो शहर में। वरना उसके नाम का ही सिक्का चलता था।

बंसीलाल का ड्रग्स का धंधा चलता था। हत्याओं के ठेके वो लेता था। इसके अलावा जैसा भी काम मिल जाये। नोट भारी होने चाहिये । बंसीलाल की उम्र और सामान्य रहन-सहन देखकर कोई भी सोच नहीं सकता था कि वो खतरनाक गैंग का लीडर भी हो सकता है।

बंसीलाल ने सिग्रेट सुलगाई और सामने मौजूद तीनों व्यक्तियों को देखा। वो इस वक्त सजे-सजाये शानदार कमरे में था। उनकी बातें सुनने के बाद, कुछ देर खामोश रहा फिर सिर के छोटे-छोटे बालों पर हाथ फेरकर शांत स्वर में कह उठा ।

“थापर। थापर समूह का मालिक। हां। नाम सुना है इसका। ये नाम साल-दो साल से सुनने में आ रहा है। मोटी पार्टी है।” बंसीलाल ने सिर से हाथ हटाया और पुनः तीनों को देखा- “लेकिन इसे मेरे से क्या दुश्मनी हो गई जो मेरी जान लेने के लिये आदमी भेज दिए। क्यों? हम क्या इसके दरवाजे के सामने से निकले क्या ?"

“नहीं।" एक ने कहा- “थापर का हमसे कभी कोई वास्ता नहीं रहा।"

“वास्ता तो है।" बंसीलाल मुस्कराया । 

"वो कैसे ?”

बंसीलाल की मुस्कान और भी गहरी हो गई । 

“थापर समूह का मालिक, इतना बेवकूफ नहीं हो सकता कि मेरी गर्दन पर हाथ डाल दे। ये तो पक्का है कि जाने-अनजाने में मेरा पाँव थापर की पूंछ पर अवश्य पड़ा है। तभी तो- " 

"ये मालूम कर लूंगा कि थापर क्यों आपकी जान-।" 

"नहीं। बिल्कुल नहीं।" बंसीलाल ने फौरन सिर हिलाया“ मामले को लम्बा खींचने से क्या फायदा। हमें इससे क्या 
कि थापर को हमने कहां चोट दी। हमारे काम तो चलते ही रहते हैं। 

“तो क्या करें ?”

“मालूम करो थापर कहां मिलता है और मौका मिलते ही गोली मार दो।" बंसीलाल के चेहरे पर मुस्कान और आंखों में लाली भर आई थी – “ये काम जल्दी करना, कहीं इस बार थापर मुझ पर बड़ा हमला न करवा दे।”

रात के ग्यारह बज रहे थे। वो मुम्बई का शांत इलाका था। इधर, बहुत कम वाहन निकल रहे थे। वो पुरानी सी कार थी । उसकी हालत देखकर लग रहा था कि, उस कार को  दुरुस्त करने के लिये मैकेनिक ने बहुत मेहनत की होगी। वो चालीस से ज्यादा की रफ्तार से नहीं चल पा रही थी। उसकी हैडलाइटें भी इतनी मध्यम सी थीं कि वो रास्ता दिखाने का काम न करके सिर्फ ट्रेफिक वालों के चालान से बचा रही थी।

उस कार ने एक मोड़ काटा और कुछ आगे जाकर रुक गई। कार का इंजन भी बंद हो गया और हैडलाईट भी ऑफ हो गई। ये सुनसान सी सड़क लग रही थी। कुछ पल चुप्पी सी छाई रही फिर कार का पीछे वाला दरवाजा खुला और काला सूट पहने एक व्यक्ति सतर्क से अंदाज में बाहर निकला। रिवाल्वर उसने हाथ में दबा रखी थी ।

कर की आगे वाली खिड़की से गन की बैरल नजर आने लगी। कुछ पल ऐसे ही बीत गये । फिर वो व्यक्ति पलट कर, खिड़की के पास झुककर बोला । “बाहर आ जाईये थापर साहब। मेरे ख्याल से कोई खतरा नहीं।” 

“राजाराम को आने दो।" आगे बैठा व्यक्ति कह उठा- “हमें जल्दी नहीं करनी चाहिये ।” 

उसके बीच खामोशी छा गई। तभी कार में बैठे थापर की आवाज सुनाई दी। 

“दरवाजा खोलो।"

"लेकिन थापर साहब-" आगे बैठा व्यक्ति कह उठा । 

"इस तरह डरने से काम नहीं चलेगा। हम लोग हैं। उधर राजाराम है।"

बाहर खड़े व्यक्ति ने दरवाजा खोला तो थापर बाहर आ गया। "एक कार के पास ही रहे।” थापर ने कहा- “बाकी दोनों मेरे साथ आओ।"

"फ़ौरन दरवाजा खुला और गन थामे एक व्यक्ति बाहर निकल आया। कार ड्राईव करने वाला कार में ही बैठा रहा। थापर दोनों के साथ आगे बढ़ गया। रात के अंधेरे में उनके कदमों की मध्यमसी आवाज गूंज रही थी। तभी रिवाल्वर वाला फुर्ती से घूमा और चंद कदमों के फले पर उसे कोई नजर आया।"

“हिलना मत।" वो गुर्राया- "वहीं खड़े रहो। वरना।" 

थापर और गन वाला भी तेजी से घूमें । 

“मैं हूं। राजाराम ।” चंद कदमों के फांसले पर मौजूद व्यक्ति जल्दी से बोला- “गोली मत चलाना ।"

उभरा तनाव एकाएक कम हो गया।

राजाराम पास आया तो थापर गम्भीर स्वर में बोला। “किधर ?”

“उधर- ।" गली है। आईये । 

वो लोग राजराम के साथ गली के मोड़ पर पहुंचे। गन वाला और रिवाल्वर वाला गली के बाहर ही रुक गये। थापर राजाराम के साथ गली में प्रवेश कर गया। बड़ी-बड़ी इमारतों की तंग गली में उनके जूतों की मध्यम सी आवाजें गूंज रही थीं।

पच्चीस-तीस कदम चलकर वो धीमें हो गये। गली की दीवार के साथ, अंधेरे में एक व्यक्ति खड़ा नजर आया। उसके पास पहुंचकर दोनों ठिठके।

“टार्च- ।" राजाराम की आवाज में गम्भीरता थी। तभी उस व्यक्ति के हाथ में दबी टार्च रोशन हुई और लाईट पास ही मौजूद दो लोगों पर पड़ी।  

एक के शरीर में तीन गोलियां लगी नजर आ रही थीं। दूसरे की छाती में दो ।

थापर के दांत भिंच गये। गुस्से से भर उठा वो । “टार्च बंद करो।" थापर के होठों से कठोर स्वर निकला। रोशनी बंद हो गयी । 

"कैसे हुआ ये सब?" थापर ने अंधेरे में राजाराम को देखा। 

"ये दोनों बंसीलाल को खत्म करने गये थे।" राजाराम ने 
गम्भीरता से कहा- "लेकिन जाने कैसे बंसीलाल के आदमियों की नजर में आ गये। उन्होंने इन्हें खत्म कर दिया। ये अच्छा रहा कि इनकी हत्या होने की खबर मुझे उसी वक्त मिल गई और मेरे भेजे आदमियों ने पुलिस आने से पहले ही लाशों को फौरन उठवा लिया।" 

"पक्का है कि इन्हें बंसीलाल के आदमियों ने ही मारा है।" 

"हां थापर साहब।" राजाराम बोला- "ये बात शाम को पक्के तौर पर मैंने मालूम की थी - ।” 

“बहुत बड़ी हिम्मत दिखा रहा है बंसीलाल - "

“वो खतरनाक गैंगस्टर है ।" राजाराम गम्भीर स्वर में बोला। 

थापर साहब ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“कई नेताओं का वो खास है । " 

"ये बातें मुझे मत बताओ।” थापर ने सख्त स्वर में कहा- "इन लाशों को पुलिस की नजरों में नहीं आना चाहिये। ये मेरे आदमी हैं, ये बात आम हो सकती है कि जो इन दिनों ठीक नहीं। मेरे बड़े प्रोजेक्ट शुरू हो रहे हैं। इनके घरवालों को समझा देना और साथ में दस-दस लाख रुपया दे देना।"

“ठीक है। रुपया कब देंगे, ताकि - ।" 

“बांकेलाल राठौर से ले लो । ”

“जी-।"

थापर जाने को हुआ कि राजाराम ने गम्भीर स्वर में कहा ! “थापर साहब! मरने से पहले इन लोगों ने, बंसीलाल के आदमियों को बता दिया था कि आपके कहने पर बंसीलाल की हत्या कर रहे हैं। पहले ये बात बंसीलाल नहीं जानता था।" 

“तुम कहना क्या चाहते हो?” थापर ने शब्दों को चबाकर कहा । 

"बंसीलाल वास्तव में बहुत खतरनाक आदमी है। वो चुप नहीं बैठेगा।" राजाराम बोला ।

“इस बात का मुझे एहसास हो चुका है कि वो चुप नहीं बैठेगा।" थापर ने ठंडे स्वर में कहा- "और मैं भी चुप नहीं बैठ सकता। दिव्या के पिता से मैंने, बंसीलाल को खत्म करने का वायदा किया है।"

“बंसीलाल के आदमी खुलेआम सड़क पर गोलियां चलाने का हौसला रखते हैं। उसके पीछे सियासत की ताकत है जबकि आप अपने आदमियों को इस तरह गोलियां चलाने का आदेश नहीं दे सकते। आपका रुतबा है शहर में।"

“तुम्हें जो कहा है, वो करो राजाराम, बंसीलाल के बारे में मैं देख लूंगा कि क्या करना है।" 

पहले वाले स्वर में कहते हुए थापर पलटा और आगे बढ़ गया ।

राजाराम के कानों में रात के शांत माहौल में थापर के जूतों की ठक-ठक पड़ती रही।

***
अगले दिन सुबह नौ बजे । लम्बी विदेशी कार को वर्दी पहने ड्राईवर चला रहा था। बगल में गन थामे गनमैन मौजूद था। पीछे वाली सीट पर थापर था और उसके दायें बायें दो व्यक्ति बैठे थे।

कार सामान्य रफ्तार से भीड़ भरी सड़क पर आगे बढ़ रही थी । 

“सर !” एक व्यक्ति खुली फाईल घुटनों पर रखे कह उठा"- पहले छः महीने इस फैक्ट्री से हमें सत्तर लाख का प्रॉफिट मिला और दूसरे छः महीनों में यही फायदा नब्बे लाख तक जा पहुंचा । " 

“वजह - ?" थापर के होठों से शांत स्वर निकला।

“सर, हमारी फैक्ट्री में बना माल, मार्किट में अपनी पकड़ बना गया है। हर कोई हमारा ब्रांड ही खरीदना चाहता है। कई नये डिस्ट्रीब्यूटर्स सामने आ रहे हैं।" वो पुनः कह उठा- “दरअसल, आपके कहे मुताबिक फैक्ट्री में बनने वाला माल बढ़िया रखा गया और हमने अपना मारजन कम रखा । बढ़िया माल होने की वजह से हमारा माल मार्किट में अपनी जगह बना गया। हमें अपनी प्रोडक्शन बढ़ानी पड़ी। फौरन हमने हर जगह अपने ही ब्रांड का माल फैला दिया कि ग्राहक को हर जगह वही नजर आये। एक बार लें। इस्तेमाल करें और भविष्य के लिये हमारा पक्का ग्राहक बन जाये। ऐसा ही हुआ सर ।”

“गुड । भविष्य में भी इस बात का ध्यान रखा जाये कि हमारे ब्रांड की गुणवत्ता कम न हो ।”

“श्योर सर। हम - " 

यही वो वक्त था कि एकाएक कार पर गोलियों की बरसात होने लगी।

थापर फुर्ती से नीचे झुकता हुआ, फुटबोर्ड पर सीट के साथ उकडू सा बैठता चला गया ।

उसके दायें-बायें बैठे व्यक्तियों की तेज चीखें गूंजीं। वो गोलियों से छलनी हो गये। ड्राईवर ने फौरन ब्रेक मारे। कार तीव्र झटके के साथ रुकी।

गनमैन ने उस नीली कार को देख लिया था, जो बगल में चल रही थी और उसके पीछे वाली खिड़की से झांकती नाल से गोलियां निकली थीं। उसने तुरन्त ड्राईवर को नीचे किया और कार की तरफ गन करके गोलियां चलाने ही वाला था कि वो नीली कार, रफ्तार पकड़ कर दूसरी तरफ होती चली गई।

“जल्दी उस कार के पीछे चलो।" गनमैन दांत भींचकर कह उठा। तभी थापर सीधा होता हुआ बोला। 

“कार के पीछे जाने की कोई जरूरतनहीं।" थापर का चेहरा सुलग रहा था।

“लेकिन सर - !". 

“चुप रहो।" -

किसी तरह थापर बाहर निकला। ड्राईवर और गनमैन भी बाहर निकल आये थे। ड्राईवर के चेहरे पर घबराहट थी, जबकि गनमैन रह-रह कर दांत भींच रहा था। थापर ने सिग्रेट सुलगाई और कश लिया।

“वो लोग वास्तव में बहुत अच्छे निशानेबाज थे।" थापर की आवाज में मौत के भाव थे ।

“मैं समझा नहीं सर ।” गनमैन ने थापर को देखा।

“उनकी चलाई गोलियां सिर्फ पीछे वाली सीट पर ही लगीं। हाथ बहका नहीं कि तुम लोगों को गोली लगतीं। वो मुझे शूट करना चाहते थे ! अच्छे निशानेबाज भेजे गये थे, मेरे लिये।” थापर की आवाज में ठण्डक थी ।

“किन लोगों ने आपकी जान लेने की कोशिश की ?” गनमैन ने पूछा !

जवाब में थापर दांत भींचकर रह गया। नजरें कार के पीछे वाली सीट पर मौजूद दोनों आदमियों की लाशों पर जा टिकीं। नीचे न झुक गया होता तो वो भी इस वक्त जिन्दा न होता। उनकी कार रुकने से ट्रेफिक जाम हो गया था। लोग कारों से बाहर निकलने शुरू हो गये थे। हर कोई जैसे जान लेना चाहता था कि गोलियां कैसे चलीं? किसे लगीं? कितने मरें। तभी पुलिस पैट्रोल कार का सायरन वहां गूंजने लगा ।

***