पहला ब्यान 



जेम्स बांड की दृष्टि जब जन्म-पत्री जैसी इस वस्तु पर पड़ी तो उसकी खोपड़ी मित्राकर रह गई। लगभग दस मिनट से वह निरन्तार उसी को घूर रहा था, मगर अभी तक समझ नहीं पाया था कि इसका क्या तात्पर्य है। इस अजीबो-गरीब स्थान पर आकर उसने पिछले नब्बे निनाय में ऐसे-ऐसे करिश्मे देखे थे कि वह अपने मस्तिष्क से अपना नियंत्रणा खोता जा रहा था। अपनी कलाई बड़ी के अनुसार वह ठीक नब्बे निनट पहले माइक, हुचांग, बागारोफ और टुम्बकटू के साया था। परन्तु जब खण्डहर के चारों ओर बने उस तालाब में उतरने लगा तो चौथी सीढ़ी पर पैर रखते ही वह चकरा गया। संगमरमर के हंस ने उसे झपट लिया और फिर जब वह कुछ सोचने-समझने कि स्थिति में आया तो उसने स्वयं को एक विचित्र-सी कोठरी में पाया। कोठरी चारों ओर से बन्द थी और कहीं कोई मार्ग दृष्टिगोचर नहीं होता था। वह यह भी नहीं जान सका कि किस रास्ते से इस कोठरी में आ गया !

अभी वह अधिक सोच भी नहीं पाया था कि उसकी दृष्टि कोठरी की दीवार पर टंगी एक पेंटिंग पर पड़ी और यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि वह पेन्टिंग विश्व के जासूस सम्राट विजय की थी। 

पेन्टिंग के एक तरफ 'देव' लिखा हुआ था ।

जेम्स बांड ने उसे हर कोण से देखा और जब उसे ये विश्वास हो गया कि चित्र निस्संदेह विजय का ही है तो उसके मस्तिष्क में प्रश्न उभरा कि विजय का ये चित्र किसने बनाया है ? यहां कैसे पहुंच गया और इस दीवार पर टंगे रहने का क्या रहस्य हैं ? साथ ही यह भी सोचने का विषय था कि पेन्टिंग के नीचे 'देव' क्यों लिखा है ? यह 'देव' उस स्थान पर नहीं लिखा था, जहां चित्रकार पेन्टिंग बनाने के पश्चात आर्टिस्टिक ढंग से अपना नाम लिखा करता है, बल्कि यह नाम इस प्रकार लिखा गया था जिससे यही अनुमान लगता था कि चित्रकार इस नाम को यहां लिखकर यह दर्शाना चाहता है कि यह चित्र 'देव' नामक किसी व्यक्ति का है।

किन्तु बांड इस बात को स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं था कि यह चित्र विजय का न होकर देव नामक किसी अन्य व्यक्ति का यह काफी देर तक उस चित्र को घूरता रहा और समझने की कोशिश करता रहा... मगर अपने मस्तिष्क को थामने के अतिरिक्त वह कुछ नहीं कर सका। उलझन में फंसे बांड ने चित्र से दृष्टि हटा ली और कोठरी का निरीक्षण करने लगा ।

सपाट दीवारों के अतिरिक्त उसे कोठरी में अन्य कोई वस्तु ऐसी नहीं दिखाई दी, जिसका वर्णन किया जा सके।

अन्त में वह पुनः विजय के चित्र की ओर आकर्षित हुआ और इस बार उसने चित्र को अपने हाथ से स्पर्श किया। उसका इरादा इस चित्र को दीवार से उतारकर भली प्रकार देखने का था। जैसे ही उसने चित्र को दीवार से उतारना चाहा... कमरा एक विचित्र से संगीत की आवाज से गूंज उठा। घबराकर बांड ने एकदम चित्र से हाथ हटा लिया... आश्चर्यजनक ढंग से संगीत बन्द हो गया।

कुछ देर वह उसी स्थिति में रहकर चित्र को घूरता रहा, लेकिन जब उसे सबकुछ लाभहीन-सा लगा तो उसने पुनः चित्र को पहले की भांति पकड़ा । पुनः उसी प्रकार कोठरी संगीत की लहरों से गूंज उठी। इस बार जेम्स बांड ने चित्र नहीं छोड़ा, संगीत उसी प्रकार बज रहा था। संगीत ऐसा बिल्कुल नहीं था कि कान के पर्दे हिलते अनुभव होते... बल्कि संगीत बेहद धीमा और मधुर था । ऐसा प्रतीत होता था, मानो किसी संगीत विशेषज्ञ के नेतृत्व में उसके अनेक शिष्य अपना-अपना साज बजा रहे हों। सबकुछ मिलाकर संगीत गजब का मधुर और मदहोश कर देने वाला था। बांड जैसा व्यक्ति भी सबकुछ भूलकर उन संगीत की लहरों में डूबता जा रहा था।

उसकी दृष्टि विजय के चित्र पर ही जमी हुई थी। एकाएक उस क्षण वह उछल पड़ा, जब उसने विजय के चित्र के होंठ हिलते हुए देखे और साथ ही संगीत के बीच किसी मानव की आवाज उभरी --- "मेरा कान पकड़कर नीचे दबाओ मेरा कान पकड़कर नीचे दबाओ।" 

विजय के चित्र के मुंह से रह-रहकर यही आवाज निकलने लगी।

आश्चर्य का दामन थामकर बांड ने चित्र छोड़ दिया। संगीत एकदम बन्द हो गया और पुन: पहले जैसी स्थिति हो गई। अज्ञात संगीत और बोलते चित्र को देखकर बांड के आश्चर्य की सीमा निर्धारित करना हमारे बस का रोग नहीं है। ऐसा प्रतीत होता था मानो सम्पूर्ण विश्व का आश्चर्य उस क्षण एकमात्र बांड के चेहरे पर सिमट आया हो। वह तो कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पेन्टिंग द्वारा बनाया गया कोई चित्र बोल भी सकता है और वह भी इतने साफ ढंग से।

बांड के जेहन में रह-रहकर चित्र द्वारा कहे गए शब्द टकरा रहे थे । कुछ देर तक वह अपनी स्थिति पर विचार करता रहा और फिर उसने वही करने का निर्णय किया, जो उस तस्वीर ने उससे कहा था । किन्तु चित्र की ओर हाथ बढ़ाते समय उसके दिमाग में आया कि चित्र ने अपने वाक्य में यह तो बताया ही नहीं कि उसका कौन-सा कान दबाना है। उसने सोचा कि क्यों न वह चित्र के दोनों ही कान दबाए। उसने अपने इसी विचार को कार्यान्वित किया और परिणाम ये हुआ कि कोठरी में धीमे से संगीत के साथ एकदम दो दरवाजे उत्पन्न हो गए। एक कमरे की दाईं दीवार में, दूसरा बाईं दीवार में | बांड के नेत्र चमक उठे। हालांकि वह नहीं जानता था कि ये दोनों रास्ते उसे कहां ले जाएंगे, किन्तु इस छोटी-सी कोठरी में जब से वह आया था—किसी प्रकार का रास्ता न पाकर उसका दम घुट रहा था । इस विचार से वह संतुष्ट हुआ कि वह आगे तो बढ़ सकेगा ।

बांड बेचारा क्या जानता था कि इस बार वह एक ऐसे रहस्य के दर्शन करने जा रहा है, जो उसके लिए दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य बन जाएगा।

उसने पहले दाएं कान से हाथ हटाया किन्तु मार्ग बन्द नहीं हुआ, उसी प्रकार बना रहा मानो उसे अपनी ओर आमंत्रित कर रहा हो—संतुष्ट होकर उसने दूसरे कान से भी हाथ हटा लिया । अब बांड के सामने इस कोठरी से बाहर जाने के लिए दो मार्ग थे—–— एक क्षण उसने सोचा कि वह किस मार्ग की ओर बढ़े ——उसे मालूम नहीं था कि कौन-सा रास्ता उसे कहां ले जाएगा। उसने सोचा कि पहले वह दोनों के करीब जा जाकर देख ले कि कौन-से दरवाजे के बाहर क्या है ? यही निर्णय करके पहले वह दाईं तरफ बढ़ा... दरवाजे के समीप पहुंचा तो उसने देखा कि वह रास्ता एक अन्य कमरे तक चला गया था। अथवा यूं कहिए कि वह रास्ता एक अन्य कमरे में था । यह कमरा उस कोठरी से काफी बड़ा और अजीब-सी चीजों से भरा हुआ था। कमरे के ठीक बीच में एक विशाल चबूतरा था—उस चबूतरे पर संगमरमर का एक हंस खड़ा हुआ था । यह हंस भी उसी कारीगरी से बना हुआ था, जैसे उसने इस खण्डहर के बाहर तालाब के चारों ओर अनेक पक्षी देखे थे अर्थात् देखने में वह एक सच्चा हंस जान पड़ता था - हंस के ऊपर एक शेर बैठा दिखाया गया था—यह शेर कुछ ऐसे पत्थरों का समावेश करके बनाया गया था कि उसके नकली होने का गुमान भी कोई नहीं कर सकता था। उसने ध्यान से देखा तो हंस और शेर की पुतलियों में हरकत भी अनुभव की... उस क्षण तो बांड को ऐसा लगा कि हंस और शेर को नकली समझकर वह बहुत बड़ी भूल कर रहा है । लेकिन हंस के ऊपर शेर का बैठना एकदम असम्भव था – कोठरी और कमरे के दरवाजे में खड़ा बांड उस दृश्य को घूरता रहा... कभी उसे उनके नकली होने का सन्देह होता और कभी असली। यही बात जांचने हेतु उसने और अधिक ध्यान से उन्हें देखा... मगर दोनों में से किसी में भी सांस लेने की प्रक्रिया नहीं हो रही थी । 

अतः बांड ने निश्चय किया कि वे दोनों असली नहीं, बल्कि नकली हैं ।

जेम्स बांड ने अनुभव किया जैसे वे दोनों उसी की ओर देख रहे हैं। उनकी हरकत करती पुतलियां उसे सन्देह में डाल रही थीं। एक बार को तो उसके दिमाग में आया कि वह आगे बढ़े और उनके समीप पहुंचकर उनका रहस्य जाने, किन्तु तभी उसके दिमाग में विचार आया कि अगर कमरे में जाते ही यह दरवाजा बन्द हो गया तो वह व्यर्थ ही इस अजीबो-गरीब कमरे में फंसकर रह जाएगा ।

उसने यही निश्चय किया कि पहले दूसरे रास्ते की स्थिति देख ली जाए। वहां से हटकर बांड कोठरी की दाईं ओर की दीवार वाले रास्ते की ओर बढ़ा । जैसे ही वह दरवाजे के बीच में कोठरी की ओर हटा, एक तेज झटके के साथ दरवाजा बन्द हो गया... अब वह हंस और शेर को नहीं देख सकता था — वह तेजी से बाईं ओर के दरवाजे की तरफ मुड़ा... यह देखकर उसकी आंखें चमक उठीं कि वह दरवाजा उसी प्रकार खुला हुआ था — वह उसी तरफ बढ़ा । उसने देखा कि यह दरवाजा एक गैलरी में खुलता था – दरवाजे के बीच में ही खड़े खड़े उसने भली प्रकार गैलरी का निरीक्षण किया । गैलरी दाएं-बाएं, दूर-दूर तक चली गई थी —–—गैलरी का फर्श काले और सफेद संगमरमर के चौकोर पत्थरों का बना हुआ था । हर पत्थर एक हाथ लम्बा और एक हाथ चौड़ा था—यानी आदमी एक पत्थर पर आराम से पैर रख सकता था, चौकोर पत्थर इस हिसाब से लगे हुए थे कि एक काला, और सफेद, फिर एक काला और सफेद—–—सारी गैलरी के फर्श पर काले व सफेद रंग के चौकोर पत्थर इसी क्रम में लगे थे। ये तो बांड देख ही रहा था इसमें आश्चर्य की बात नहीं थी—– किन्तु आश्चर्य की बात यह थी कि गैलरी की दाईं-बाईं दीवारों के साथ-साथ एक-एक हाथ की दूरी पर सात-सात फुट लम्बे संगमरमर के आदमी खड़े थे। उनके हाथ गैलरी में आगे को फैले हुए थे। भिन्न आदमियों के हाथों में भिन्न प्रकार के अजीब-से हथियार थे—मुगदर, थपकी, डंडा, तलवार, बर्छा इत्यादि अनेक किस्म के हथियार। यह दृश्य जेम्स बांड को बड़ा विचित्र-सा और आकर्षक लगा | मगर वह यह नहीं समझ सका कि गैलरी की यह बनावट क्यों हैं ।

उसने निश्चय किया कि उसे इसी गैलरी में आगे बढ़ना चाहिए।

इस निश्चय के साथ उसने अभी अपना पहला पैर गैलरी में रखा ही था कि संगमरमर का एक आदमी विद्युत गति से उस पर झपटा। बांड को इतना अवसर ही नहीं मिला कि वह सम्भल सके । संगमरमर के उस आदमी के हाथ में दबा डंडा बांड के सिर पर पड़ा—उसके जिस्म में तेज झनझनाहट की एक ऐसी लहर दौड़ गई, मानो विद्युत के नग्न तार उसके जिस्म से स्पर्श करा दिए गए हों ।

उसने स्वयं को सम्भालने की लाख चेष्टा की, मगर सम्भाल नहीं सका और बेहोश हो गया ।

सावधान ! अब हम पाठकों को एक ऐसे रहस्य के नजदीक ले जा रहे हैं, जिसमें पाठक निश्चय ही उलझकर रह जाएंगे- अब आप जरा अपने धड़कते दिल पर काबू पाइए और उस रहस्य को जानिए । आइए ... हम बांड के साथ उस रहस्य से उलझते हैं और बांड के साथ खुद भी आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हैं... वो देखिए—बांड की चेतना वापस लौट रही है।

ध्यान से देखिए वह हल्के-हल्के कराह रहा है। बेशक ! उसके सिर पर डंडे की काफी सख्त चोट लगी है। उसने कराहकर नेत्र खोल दिए। यह देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया कि वह जहां बेहोश हुआ था, इस समय वहां नहीं है... बल्कि किसी दूसरे स्थान पर है। अचानक बांड ने एक दृश्य देखा और इस प्रकार उछल पड़ा, मानो हजारों बिच्छुओं ने उसे एक साथ डंक मार दिए हों ।

वह हैरत से आंखें फाड़-फाड़कर उस दृश्य को देख रहा है, उसका दिल कह रहा है कि वह इस खौफनाक दृश्य पर विश्वास न करे... किन्तु जो कठोर यथार्थ उसकी आंखों के समक्ष है, उससे भला वह विमुख कैसे हो सकता है ? मगर... मगर दिल नहीं मानता — वह कैसे विश्वास करे कि वह जो कुछ देख रहा है वह कोई दुस्वप्न नहीं, बल्कि कठोर यथार्थ है, हकीकत है ! जेम्स बांड ने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जीवन में कभी वह इतना भयानक दृश्य भी देखेगा। लाखों प्रयासों के पश्चात् भी उसे उस दृश्य की वास्तविकता पर विश्वास नहीं हो रहा था। 

हम जानते हैं कि जिस दृश्य को इस समय जेम्स बांड देख रहा है— उसे देखने हेतु पाठक भी व्यग्र हैं। हम पाठकों को अधिक देर तक इस भयानकतम दृश्य से वंचित नहीं रखेंगे। आइए, हम वह दृश्य आपको दिखाते हैं, वो देखिए।

जेम्स बांड इस समय एक बालकनी में खड़ा है। बालकनी में कई बड़े-बड़े दरवाजे हैं। बालकनी के नीचे एक लम्बा-चौड़ा खूबसूरत बाग है। यह बालकनी बाग के बीचो-बीच में बनी इमारत की तीसरी मंजिल पर है—इसी बालकनी में इस समय बांड खड़ा है, और उसकी आंखों के ठीक सामने–बालकनी के दरवाजों पर सात लाशें उल्टी टंगी हुई हैं अर्थात् सिर नीचे पैर ऊपर । रस्सियों के जरिए उन लाशों को उल्टी करके दरवाजों के ऊपर कुण्डों से बांधा गया है। हवा के झोंकों के साथ-साथ वे लाशें हिल रही है । हिलने के साथ-साथ वहां एक भयानक सीटी-सी गूंज रही है।

बांड के इतने आश्चर्य का कारण वे सात लाशें नहीं, बल्कि केवल दो लाशें हैं।

क्योंकि...  क्योंकि वे दोनों लाशें प्रिंसेज जैक्सन और सिंगही की हैं। सिंगही और जैक्सन – विश्व विजेता बनने के ख्वाब देखने वाले विश्व के दो महान भयानकतम अपराधी । यहां ———– इस हाल में—–——लाशों के रूप में ! यह जेम्स बांड की कल्पना से बाहर की बात थी। हमेशा विश्व के लिए खतरा बनने वाले ये खतरनाक मुजरिम यहां कैसे फंस गए ! ये उनकी लाशें हैं ! ये दोनों मारे गए ! नहीं नहीं ! बांड का दिल स्वयं ही चीख उठाये दोनों इतनी आसानी से मरने वाले नहीं हैं ।

तो फिर —वह यह क्या देख रहा है। सिंगही और जैक्सन की लाशें !

और लाशें भी भयानकतम घृणित स्थिति में, ऐसा प्रतीत होता है, जैसे सदियों से ये लाशें यहीं, इसी स्थिति में टंगी हुई हवा में झोंकों के साथ लहरा रही हों। लाशों से तीव्र दुर्गन्ध उठ रही थी । विभिन्न प्रकार के कीड़ों ने उनकी लाशों को नोच दिया था। लाशें सड़ चुकी थीं— तीव्र सड़ांध बांड के नथुनों में घुसकर उसके दिमाग को भी सड़ाने लगी। किसी भी लाश के जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं था । सभी बांड की आंखों के सामने झूल रही थीं। उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि वह जो कुछ देख रहा है वह हकीकत है—सिंगही और जैक्सन मर भी सकते हैं !

अभी बांड अपने आश्चर्य पर काबू भी नहीं कर पाया था कि-"तुम भी यहां आ गए, जेम्स बांड...?" एकाएक बांड उछल पड़ा, जब उसने सिंगही की लाश को बोलते हुए देखा — "हमें लगता है कि दुनिया के सभी जांबाजों की कब्र इसी तिलिस्म में बनेगी —तुमने मुझे पहचान तो लिया ही होगा ! मैं सिंगही हूं... | "

बांड के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा—–——उसने साफ देखा था, उल्टे सिंगही के होंठ हिले और सिंगही की आवाज को भी वह लाखों में पहचान सकता था। अपने महानतम् आश्चर्य पर काबू पाते हुए वह बोला – “क्या तुम जीवित हो...?"

—“इस भ्रम में न रहो बांड । " एकाएक प्रिंसेज जैक्सन की लाश बोल पड़ी – "हम सब मृत हैं।"

“क्या बकते हो ?" बांड की खोपड़ी घूम गई— "लाशें भी कहीं बोलती हैं ?"

— “यही तो तुम नहीं जानते नादान जासूस !" प्रिंसेज जैक्सन के पास ही टंगी दूसरी लाश कह उठी – "हम मानते हैं कि जिस दुनिया से तुम आए हो—वहां लाशें बोला नहीं करती हैं, लेकिन याद रखो इस समय तुम ऐसी नगरी में हो, जहां तुम्हें एक भी आदमी जीवित नहीं मिलेगा, सभी मृत हैं— लेकिन यहां की सभी लाशें बोलती हैं। कुछ दिन बाद तुम भी जीवित नहीं रहोगे – हमारी तरह लाश बन जाओगे | "

—“मैं इस बेवकूफी को नहीं मान सकता । " पागल सा होकर बांड चीख पड़ा – "तुम सब मुझे भ्रमित करना चाहते हो। तुम मरे नहीं हो ।" 

बांड कहने के साथ ही एकदम जोश में सिंगही की लाश की ओर झपटा—मगर उसके जिस्म पर हाथ लगाते ही चकरा गया बांड सिंगही का जिस्म किसी लाश की भांति ही एकदम ठण्डा था। बांड ने उसके जिस हिस्से पर हाथ लगाया था, वहां की खाल इस तरह किरकिराकर नीचे गिर गई, जैसे वह जला हुआ कागज हो । उसने जल्दी से सिंगही की नब्ज टटोली एक भी स्पन्दन नहीं था । लाशें सांस नहीं ले रही थीं। इसका मतलब वे सब वास्तव में मृत थे । जीवन का एक भी लक्षण उन जिस्मों में नहीं था ——लेकिन वे बोल रहे थे ।

–“क्यों, अब तो विश्वास हुआ कि हम सब मर चुके हैं ?" सिंगही की लाश बोल उठी ।

जेम्स बांड आश्चर्य से दो कदम पीछे हट गया । जीवन में शायद बांड को कभी एक साथ इतने अधिक व गूढ़ आश्चर्यों का सामना नहीं करना पड़ा था — वह हैरत के साथ उन लोगों को देख रहा था, जिनमें  बोलने के अतिरिक्त जीवन का अन्य कोई संकेत नहीं था । 

अचानक हवा का एक तीव्र झोंका आया और सातों लाशें जोरों से  हिल पड़ीं। फिर !

एकाएक सिंगही की लाश खिलखिला उठी, फिर जैक्सन की। और फिर देखते-ही-देखते वे सातों लाशें जोर-जोर से हंसने लगीं। कभी भयभीत न होने वाले बांड के जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई। लाशों से निकली तीक्ष्ण सड़ांध के कारण उसका दिमाग फटा जा रहा था। लाशें जोर-जोर से हिल रही थीं। बांड में इतना साहस नहीं रहा कि वह अधिक देर तक अपने स्थान पर खड़ा रहे । वह गैलरी में एक तरफ को इस प्रकार भागा, मानो हजारों भूत एकदम उसके पीछे लग गए हों। उसे ध्यान नहीं रहा कि वह किधर भागा जा रहा है— बस भागता हो रहा, अचानक उसे बालकनी में एक तरफ एक कमरे का खुला हुआ द्वार चमका। बिना कुछ सोच-समझे वह उसी में घुस गया । 

उसे तो उस समय होश आया— जब उसने महसूस किया कि जिस कमरे में वह घुसा है——उसके अन्दर आते ही कमरे का दरवाजा बन्द हो गया। उसने पलटकर पीछे देखा— दरवाजा बन्द —–— बाहर निकलने का कहीं कोई रास्ता नहीं। उसके चेहरे पर अजीब-से अज्ञात भाव थे । सांस फूली हुई थी—सारा जिस्म पसीने से तर था । जब उसने कुछ होश सम्भाला तो उसने देखा—

वह उसी हंस और शेर वाले कमरे में था । यह देखकर उसे एक बार पुनः गहन आश्चर्य हुआ, उसकी समझ में यह नहीं आया कि वह इतना घूमकर पुनः इस कमरे में कैसे आ गया।

एक बार को तो बांड ने सोचा कि कहीं वह पहले जैसे ही बने किसी दूसरे कमरे में तो नहीं आ गया है ? मगर इस विचार को स्वयं उसके दिमाग ने भी स्वीकार नहीं किया। एक-एक चीज वैसी ही थी जैसी कि वह विजय के चित्र वाली कोठरी के दरवाजे में से खड़ा होकर देख चुका था। उसने महसूस किया कि इस बार भी हंस और शेर उसी को घूर रहे हैं। इस बार वह उस हंस और शेर की विशाल आकृति की ओर बढ़ा —–— उनकी पुतलियां इस समय भी उसी प्रकार झपक रही थीं । वह उसी आकृति पर दृष्टि जमाए समीप पहुंचा। वहां पहुंचते ही सबसे पहले जिस चीज पर सर्वप्रथम उसकी दृष्टि स्थिर हुई, वह अन्य कुछ नहीं, बल्कि वही जन्मपत्री थी, जो हम इस बयान के शुरू में ही बना आए हैं। यह जन्मपत्री संगमरमर के बने हंस के मस्तक पर बनी है। उसी की नकल उतारकर हमने इस बयान के श्रीगणेश की शोभा में चार चांद लगाए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हंस और शेर की आकृति को बनाने वाले कारीगर ने उसी समय हंस के मस्तक वाले संगमरमर को तराश कर ये जन्म-पत्री बनाई है।

जेम्स बांड यह तो समझ ही रहा था कि हंस के माथे पर बनी इस जन्मपत्री का मतलब कोई गहरा है ? किन्तु यह मतलब क्या है—यही बात बांड के दिमाग में नहीं बैठ रही थी ? इस थोड़े से समय में ही बांड ने ऐसे-ऐसे करिश्मे देखे थे कि उसे महसूस हो रहा था, अगर कुछ देर वह और इस तिलिस्म में फंसा रहा तो निश्चय ही वह पागल हो जाएगा।

यह जन्म-पत्री पाठकों के लिए भी एक चुनौती है, बुद्धिजीवी पाठक इसका मतलब निकालने का प्रयास करें। वर्ना आगे चलकर हम तो कहीं-न-कहीं खोल ही देंगे। देखिए बांड इस जन्मपत्री को अभी तक नहीं समझ पाया है और बेचारा अपना सिर पकड़कर वहीं बैठ गया है।

दूसरा बयान

-'"कौन उमादत्त ?”

विकास गौरवसिंह के होंठों से निकली अन्तिम बुद्बुदाहट को सुनते ही उसकी ओर घूमकर बोला।

- जरूरी नहीं है कि जो तुम मुझसे पूछो, मैं तुम्हारे हर उस प्रश्न का उत्तर दे दूं।" गौरवसिंह ने ध्यान से विकास को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा – "शायद अब तुम्हें मालूम हो गया होगा कि गौरव किसी चूहे का नाम नहीं है, मेरे जिस्म में देवसिंह का खून है।"

- "तुम वो पहले आदमी हो गौरव, जो विकास से इतनी देर तक लड़ सका है और असफल नहीं हुआ है।" विकास नपे-तुले स्वर में बोला— "जो असली बहादुर होता है, वह हमेशा बहादुरों की इज्जत करता है और यह गुण मैंने अपने सामने आने वालों में से केवल तुममें पाया मुकाबला किया है। तुमने न केवल सफलता और बहादुरी के साथ मेरा है, बल्कि अजगर से मेरी जान भी बचाई है, इसका सीधा-सा मतलब है कि तुम बहादुर भी हो और फिर तुम्हारे पास एक सच्चा दिल भी है, अतः मैं तुम्हारी कद्र करता हूं... | "

-"मेरी तारीफ के पुल बांधकर आखिर तुम अपना कौन-सा मतलब हल करना चाहते हो !" गौरव ने उसे सावधानी से घूरते हुए कहा – “अगर बुद्धि के मामले में मुझसे टकराना चाहते हो तो भी तुम जीत नहीं सकोगे, विकास–जिसके तुम शिष्य हो, मैं उनका लड़का हूं। मैं ये प्रण करके आया हूं कि पिताजी को मां के पास लेकर जाऊंगा और अपना प्रण मैं पूरा करके रहूंगा। "

-"ये तुम्हारा सौभाग्य है गौरव बेटे कि विकास तुम्हारी तारीफ कर रहा है।" विकास बोला – “वर्ना लोग विकास की तारीफ करते हैं, विकास लोगों की नहीं। मैं तुमसे वायदा करता हूं कि अब तक तुमने जो कुछ भी कहा है, अगर वह सच हुआ — यानी अगर तुमने सिद्ध कर दिया कि तुम विजय गुरु के लड़के हो और कांता तुम्हारी मां है तो यकीन मानो मैं तुम्हारे प्रण के बीच में बाधक नहीं बनूंगा–बल्कि मैं तुम्हारी मदद ही करूंगा, तुम मुझ पर केवल यह रहस्य खोल दो कि असली चक्कर क्या है ?"

विकास और गौरव के बीच ये बातें हो रही थीं और निर्भयसिंह, ब्लैक ब्वॉय, सुपर रघुनाथ और रैना भी उनके पास आ चुके थे।

यह घटना इस दृश्य के बाद की है—जब गौरव और  विकास के बीच खूनी युद्ध हुआ और गौरव ने विकास को अजगर से बचाया। उसी समय बेहोश विजय को एक नकाबपोश उस स्थान पर धुएं का बन डालकर ले भागा। इस घटना को देखकर ही गौरव के मुंह से निकला था कि — 'इसका मतलब ये कि– उमादत्त के आदमी यहां भी पहुंच गए।'

बस ! उसकी इसी अन्तिम बुद्बुदाहट को विकास ने सुन लिया था और उसे टोक दिया था ।

- " यह रहस्य तुम मुझसे प्यार से पूछ रहे हो या धमकी देकर ?” गौरव ने मुस्कराते हुए पूछा।

-“अगर मैं ये कहूं कि धमकी देकर पूछ रहा हूं तो ?” विकास भी शरारत के मूड में बोला ।

–" तो — सात जन्म भी तुम मुझसे कुछ नहीं पूछ सकोगे।” गौरव बोला—“चाहे कोशिश करके देख लो।"

-“अगर मैं कहूं कि प्यार से पूछ रहा हूं तो ?" विकास अपनी उसी मुस्कान के साथ बोला ।

-" तो ये रहस्य मैं तुम्हें आसानी से बता सकता हूं, क्योंकि वह सबकुछ तुम्हें बताने में मैं किसी प्रकार की हानि नहीं समझता । वैसे मैं जानता हूं कि तुम एक बहुत काम के आदमी हो— और फिर मेरे पिताजी भी तो तुम्हें बहुत प्यार करते हैं ।

-“तो बेटे बताओ ना कि असली रहस्य क्या है ? " बुरी तरह व्यग्र होकर ठाकुर निर्भयसिंह बोले – “जो रहस्य बताने में तुम्हारी कोई विशेष हानि नहीं है — वह रहस्य जानने के बाद शायद हमें किसी प्रकार की शांति प्राप्त हो सके। अगर तुम विजय के लड़के हो तो तुम हमारे पोते हुए और हमें आशा है कि तुम अपने दादा की प्रार्थना ठुकराओगे नहीं । "

– “कैसी बातें कर रहे हैं दादाजी ?" बेहद श्रद्धा के साथ उसने एकदम ठाकुर निर्भयसिंह के चरण स्पर्श किये और बोला—"बड़े प्रार्थना नहीं करते दादाजी, आज्ञा देते हैं। मुझसे प्रार्थना करके आप मुझे नरक का भागी न बनाएं –आज्ञा दें, मैं इसी समय आपको सबकुछ सुनाने के लिए तैयार हूं। हमें बड़ों का सम्मान करना सिखाया जाता है।"

–“ "फिर हम दावे से ये कह सकते हैं, गौरव भाई—–— कि तुम गुरु — की औलाद नहीं हो सकते ।" शरारत के मूड में टपका विकास । -"क्यों ?"

इस बार गौरव विकास की बात का अर्थ नहीं समझ पाया था ।

- "इसलिए कि गुरु ने तो कभी स्वप्न में भी बड़ों की इज्जत नहीं की होगी।"

– “विकास !" रघुनाथ ने एकदम उसे डांटा — "बेकार की बातें नहीं किया करते । "

—“ये ठीक कह रहे हैं विकास !" गौरव गम्भीर स्वर में बोला – “वास्तव में इस समय विनोद मजाक का वक्त नहीं है, मेरे ख्याल से पिताजी को उमादत्त के ऐयार उठाकर ले गए हैं। निश्चय ही इस समय वे खतरे में होंगे । "

—" तो फिर जल्दी बताओ बेटे कि वास्तविकता क्या है ?" ठाकुर निर्भयसिंह ने कहा ।

— “ क्षमा करना दादाजी, इतना तो समय नहीं है कि मैं आपको सबकुछ बता सकूं।" गौरव सम्मानित ढंग से हाथ जोड़कर बोला- "मैं संक्षेप में आपको इतना सबकुछ बता सकता हूं कि आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाए और असली रहस्य की बात भी आपको पता लग जाए। सबसे पहली बात तो ये कि मैं आपके लड़के का इस जन्म का लड़का नहीं हूं। "

-"क्या ?" उसका वाक्य सुनकर पांचों ही चौंक पड़े।

-" जी हां ।" गौरव ने कहा – “मैं उनके पिछले जन्म का लड़का हूं, तभी तो मेरी आयु उनसे दो वर्ष बड़ी है। पूर्व जन्म में विजय का नाम देवसिंह था । मैं अपनी कहानी में अब अपने पिता को देवसिंह ही कहूंगा, अतः आप अपने समझने के लिए देवसिंह के स्थान पर विजय ही समझ सकते हैं। ये मैं भी जानता हूं कि इस जन्म में मेरे पिता पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं। किसी लड़की से सम्बन्ध का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, अतः इस जन्म में वे किसी के पिता नहीं बन सकते, मगर जैसा कि मैं बता चुका हूं-पिछले जन्म में वे देवसिंह थे और कांता नामक एक राजकुमारी से प्रेम करते थे। उन दोनों के बीच समाज की अनेक दीवारें थीं। किसी ने कहा है कि प्रेम सच्चा एवं पवित्र हो तो प्रत्येक दीवार कागज का टुकड़ा बनकर रह जाती है ।

–“अन्त में ये हुआ कि देव ने कांता को और कांता ने देव को प्राप्त कर लिया — कुछ दिन उन्होंने शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत किया, फिर उन्होंने शादी कर ली। कांता के गर्भ से एक साथ दो जुड़वां बच्चे पैदा हुए, जिनमें से एक मैं हूं और दूसरी मेरी बहन वंदना | वंदना की भी शादी हो चुकी है और उसकी एक लड़की भी है जो आयु में विकास से तनिक छोटी होगी, उसका नाम प्रगति है। खैर मैं मुख्य विषय से थोड़ा-सा भटक गया हूं। इस समय इतनी लम्बी कहानी सुनाने का वक्त नहीं है। आप केवल इतना ही जान लीजिए कि हमारे पैदा होने के एक वर्ष पश्चात् हमारे माता-पिता — यानी देवकांता के शत्रु पुनः प्रबल हुए और अपनी कोशिशों से उन्होंने हमारी मां अर्थात् कांता को एक बड़े भारी, विशाल और खतरनाक तिलिस्म में कैद कर लिया । देवसिंह कांता को तिलिस्म से निकालने के चक्कर में ही मारे गए। हमें हमारे गुरु दुश्मनों के बीच से निकालकर ले गए ।

- " हम बड़े हुए तो हमारे गुरु ने हमें ऐयारी सिखाई और हमें बताया कि हमारी मां फलां तिलिस्म में कैद है, हमारा आधा जीवन इसी प्रयास में निकल गया कि हम मां को तिलिस्म से निकाल सकें। कुछ ही दिनों पूर्व हमारी रियासत के एक ज्योतिषी ने बताया कि इस तिलिस्म को देवसिंह के अतिरिक्त कोई नहीं तोड़ सकता । इस पर हमने प्रश्न किया कि हमारे पिता देवसिंह तो मर चुके हैं, फिर इस तिलिस्म को कौन तोड़ेगा ? तब उन्होंने कहा कि जो होनी होती है, विधाता उसे पहले ही लिख देता है। विधाता ने देवसिंह के भाग्य में लिखा था कि इस जन्म में वह तिलिस्म तोड़ता-तोड़ता मर जाएगा, किन्तु पूरा नहीं तोड़ सकेगा । यह तय है कि इस तिलिस्म को तोड़ेगा देवसिंह ही पर अगले जन्म में | 

— "इस तिलिस्म का सबसे मुख्य ताला इस किस्म का है जो केवल ऐसी उंगली से खुलेगा जो आगे से हल्की-सी मुड़ी हुई होगी ।

—“ऐसी उंगली केवल देवसिंह की ही होगी, वह भी उस जन्म में नहीं, जबकि देवसिंह होगा, बल्कि अगले जन्म में वह विजय की होगी। आप लोगों को शायद विदित हो कि आपके विजय और हमारे पिता देवसिंह के दाएं हाथ की अंगूठे के पास वाली अंगुली का अग्रिम भाग मुड़ा हुआ होगा। 

—"यह बात हमें उस ज्योतिषी ने बताई गर्ज ये कि जिसमें हमारी मां कैद है, उस तिलिस्म को आपके विजय के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं तोड़ सकता। हमें ज्योतिषी ने यह बताया कि इस जन्म में देवसिंह का नाम विजय है जो भारत के एक शहर राजनगर में रहता है। वहां के आई.जी. ठाकुर निर्भयसिंह का लड़का है, दुनिया के जासूसों में उसका सर्वाधिक नाम होगा। विजय के रूप में वह कभी किसी नारी को पत्नी की दृष्टि से नहीं देखेगा। उन्होंने यही बताया कि उन्तालीस वर्ष की आयु तक विजय कभी महसूस नहीं कर सकेगा कि पिछले जन्म में वह क्या था। चालीस वर्ष की आयु में उसे एक स्वप्न दिखेगा। इस स्वप्न में वह खण्डहर जिसमें कांता कैद है, चमकेगा। अपने पूर्व जन्म की कुछ घटनाएं चमकेंगी, साथ ही कांता की चीख भी वह महसूस करेगा। इस स्वप्न के पश्चात उसे उस समय तक सारे जीवन यह स्वप्न चमकता रहेगा, जब तक कि वह उस तिलिस्म को तोड़कर कांता को अपनी बांहों में समेट नहीं लेगा । उसी दिन के बाद उसके मस्तिष्क को किसी प्रकार की शांति मिल सकेगी। कांता के लिए वह ऐसा ही दीवाना हो जाएगा, जैसे कि वह पूर्व जन्म में अर्थात् देवसिंह के रूप में था। इसके बाद चाहे दुनिया की कोई भी शक्ति रोके, वह नहीं रुकेगा। जब तक वह तिलिस्म से कांता को निकाल नहीं लेगा, तब तक वह किसी की चिंता नहीं करेगा। सोते ही उसे कांता, खण्डहर और अपने पूर्व जन्म की घटनाएं चमकेंगी और वह कान्ता के पीछे दीवाना होकर उठ खड़ा होगा। सारे जीवन वह आराम से नहीं सो सकेगा। ज्योतिषी ने यह भी बताया कि उसको यहां आने से कुछ लोग रोक भी सकते हैं। उन्होंने साफ बताया था कि कुछ लोग उन्हें रोकने का प्रयास करेंगे इस पर हमारे गुरुजी ने हमसे कहा कि अपने पिता को लाना हमारे जिम्मे है। मेरी बहन और मुझे यहां उन्हें लेने के लिए ही भेजा गया था । "

-" तो तुम्हारी बहन कहां है?" विकास ने पूछा ।

—"उसी के भरोसे पर तो मैं अभी तक यहां शान्तिपूर्वक  खड़ा हुआ हूं।" गौरव ने बताया – “निश्चय ही वह उस नकाबपोश के पीछे गई होगी जो पिताजी को उठाकर ले गया है। अगर उसका भरोसा नहीं होता तो मैं इस समय आपको कहानी सुनाने के स्थान पर उनकी खोज करता।" 


-"क्या तुम्हें यकीन है कि तुम्हारी बहन गुरु को दुश्मनों से मुक्त करा लाएगी ?” रघुनाथ ने पूछा ।

–“आपने अभी वंदना को देखा नहीं है ।" गौरव बोला— “वह नम्बर एक की ऐयार है, किसी भी फन में वह मुझसे पीछे नहीं है। मुझे पूरा भरोसा है उस पर । यकीनन वह पिताजी को किसी प्रकार की क्षति पहुंचने देगी । ” 

" और —–——ये उमादत्त कौन है ? " प्रश्न विकास ने किया । 

- " इस प्रश्न का जवाब काफी विस्तृत है, किन्तु इस वक्त केवल आप ये समझ लें कि उमादत्त हमारे दुश्मनों में से एक है — वैसे हमने अथवा यूं कहिए कि हमारे गुरु ने दुश्मनों को धोखा देने के लिए काफी अच्छी चाल चली थी, मगर फिर भी पता नहीं कि उमादत्त के ऐयारों को कैसे भनक लग गई कि हम यहां आए हैं। वरना वे किसी भी कीमत पर यहां नहीं पहुंच सकते थे।" 

- "दुश्मनों को धोखा देने के लिए तुम्हारे गुरु ने क्या चाल चली थी ?"

-"हमें बेहद गुप्त ढंग से यहां भेजा गया है और वहां दो अन्य ऐयारों को गौरव और वंदना बनाया गया है, ताकि दुश्मन हमारे गायब होने का भेद न जाने सकें । परन्तु मुझे लगता है कि हमारा कोई ऐयार दुश्मनों से मिला हुआ है वर्ना ये रहस्य दुश्मन कभी नहीं जान सकते थे।"

 "तुम्हारी कहानी बड़ी अजीब-सी है।" विकास ने कहा – “कहना ये चाहिए कि विश्वास हो भी रहा है और नहीं भी—क्योंकि वास्तव में गुरु जब भी कांता-कांता चीखकर उठ खड़े होते हैं। न केवल हम गुरु को तुम्हारे साथ भेजेंगे, कि सोते हैं, कुछ देर बाद ही वे खैर... मैं तुमसे वादा करता हूं बल्कि मैं खुद भी चलूंगा । " 

–“लेकिन विजय इस समय होगा कहां ?" ठाकुर निर्भयसिंह बोले ।

–“पिताजी यहां हैं।" एकाएक उनके बीच एक नारी की गूंजी। सबने पलटकर देखा एक लड़की विजय को कंधे पर डाले उनके करीब आ रही थी। उसे देखते ही गौरव उसकी तरफ बढ़ा और बोला – "वंदना !"

–“हां भैया !” वंदना उनके पास आ गई— “पिताजी को उमादत्त का ऐयार गोवर्धन उठाकर ले गया था। वह गौरव अर्थात् तुम बना हुआ था। पिताजी को वह अपना नाम गौरव बताकर धोखा देना चाहता था । इनको पूरी तरह से धोखे में डालने के लिए उसने अपनी लड़की गोमती को हमारी मां अर्थात् कांता बना रखा था। उसकी योजना ये थी कि पहले गोवर्धन गौरव के नाम से इन्हें धोखा देगा और अपने सच्चे होने का विश्वास दिलाने के लिए गोमती को कांता बना दिया था। जिस समय वह यहां से पिताजी को लेकर भागा तो मैंने अपने घोड़े से उसका पीछा किया। कोई पांच कोस दूर जंगल में जाकर एक शिकारगाह है। वे लोग वहीं ठहरे और पिताजी को भी वहीं ले गए। मैंने छुपकर उनकी बातें सुनीं और मुझे मालूम हो गया कि गोमती को कांता बनाया गया है। शिकारगाह के एक कमरे में ले जाकर पिताजी से गोवर्धन बातें करने लगा। इस बीच मैंने एक कमरे में देखा, गोमती कांता बनी बैठी थी । मैंने उसे बेहोशी की बुकनी सुंघाकर बेहोश किया और खुद कांता बन बैठी। गोमती को मैंने कमरे में एक तरफ छुपा दिया था। अब मैं गोवर्धन के आने की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ देर बाद गोवर्धन का एक ऐयार शिष्य रोशनसिंह मुझे बुलाने आया, उसने कहा — गोमती जी—आपको गुरुजी (गोवर्धन) ने बुलाया है।' 

–“मैं उठकर खड़ी हो गई ।

- "इसके पश्चात् मैं उस कमरे में पहुंची, जहां पिताजी थे। मैंने वैसा ही अभिनय किया, जैसे गोवर्धन ने गोमती से करने के लिए कहा था। अपनी योजना के अनुसार मेरे कमरे में आने के बाद गोवर्धन अपने सारे साथियों के साथ उस कमरे से बाहर निकल गया–कमरा भी उन्होंने बन्द कर दिया। इस सबके पीछे उनकी एक ही योजना थी कि अकेले में मैं कांता बनी उसे अपने कांता होने का विश्वास दिला दूं और वे पिताजी को अपने कब्जे में कर लें, मगर उन्होंने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी गोमती एक तरफ बेहोश पड़ी है और कांता बनी जिस लड़की को वे गोमती समझ रहे हैं, वह मैं थी। उन सबके कमरे से बाहर जाते ही मैंने बेहोशी के चूर्ण द्वारा पिताजी को बेहोश किया— कमरे के रोशनदान में कमन्द लगाया और पिताजी को लेकर सीधी यहां आ गई — मेरा घोड़ा उन पिछली झाड़ियों में खड़ा है। "

हालांकि विकास विश्व का सबसे बड़ा जासूस था । एक से एक चकरा देने वाली चाल वह सोचा करता था । किन्तु वंदना की बातें सुनकर उसकी भी बुद्धि चकरा गई। इस सारे किस्से में कहीं भी मारधाड़ का जिक्र नहीं हुआ था और दुश्मनों के बीच से अकेली वंदना विजय को निकाल लाई थी। विकास भी गौरव और वंदना से प्रभावित हुए बिना न रह सका-यह सोचकर उसे अजीब-सा लग रहा था कि दोनों विजय के पुत्र एवं पुत्री हैं।

-''मैं समझता हूं दादाजी कि यह स्थान गोवर्धन ने देख लिया है।" गौरव ठाकुर निर्भयसिंह की ओर मुड़कर बोला- "जब उन्हें वंदना की ऐयारी का पता लगेगा यानी जब वे जानेंगे कि वंदना गोमती को बेहोश करके खुद कांता बनी और पिताजी को उनके बीच से निकाल लाई तो निश्चय ही वे इस तरफ दौड़ेंगे। इसलिए मेरा विचार है कि हमें जल्दी से यहां से हट जाना चाहिए।"

-"तुम हटने के लिए कह रहे हो गौरव।" विकास तनिक जोश में आकर बोला ---- " और में यह सोच रहा हूं कि उस शिकारगाह में जाकर गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठा लिया जाए यानी उसे यमलोक पहुंचा दिया जाए।"

- " नहीं - ये दुष्टता का काम होगा।" गौरव बोला- "एक ऐयार कभी दूसरे ऐयार को मारता नहीं है केवल कैद कर सकता है। "

- "मारता क्यों नहीं ?" विकास ने चकराकर प्रश्न किया ।

- "यह ऐयारों का सिद्धांत होता है।" गौरव ने बताया- "ऐयार को हम दूत के समान मानते हैं। उसे मारना पाप होता है। जो ऐयार को मारता है, वह दुष्ट, पापी और दुराचारी कहलाता है। एक-दूसरे को धोखा देकर अपना काम निकालना ही ऐयारी होती है । "

 — "अजीब सिद्धांत है।" विकास बुदबुदा उठा – "ऐयार को कैद कर सकते हैं मार नहीं सकते। "

-"अब तो यहां से चलना चाहिए।" गौरव ने कहा । 

इस प्रकार वंदना, गौरव, विकास, निर्भयसिंह, रघुनाथ, रैना और ब्लैक ब्वॉय बेहोश विजय को लेकर उसी भूत-प्रेत विशेषज्ञ के मकान पर पहुंच गए। एक कमरे में आराम से बैठकर विजय को लखलखा सुंघाकर होश में लाया जाता है। कांता - कांता बुदबुदाता विजय होश में आता है । इसके बाद ये सब उसे उसके बेहोश होने के बाद की सारी घंटनाएं बताते हैं, जिन्हें सुनकर विजय यह सोचने पर विवश हो जाता है कि इस बार वो बड़े अजीब-से लोगों के बीच फंसे है ।

हमारे ख्याल से पाठक समझ गए होंगे कि इसके बाद क्या हुआ अगर नहीं समझे तो हम बताते हैं—पहले भाग के पेज ६४ पर जहां से नया बयान शुरू हुआ है । वह इसी बयान के बाद का है। इसमें बताया गया है कि गौरव, वंदना, विकास, ठाकुर, रैना, रघुनाथ, ब्लैक ब्वॉय और विजय किस प्रकार एकत्रित हुए। इसके बाद विजय ने उन्हें क्या कहानी सुनाई, यह पाठक पहले भाग के बयान में पढ़ चुके हैं।

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